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Adultery C. M. S. [Choot Maar Service] ( Completed )

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यह तो पहले ही समझ में आ गया था कि विक्रम के फादर के कमरे से जुड़ा हुआ एक तहखाना है । तहखाने तक पहुंचने का रास्ता पुरा फिल्मी था । और मुझे लगता है कि तहखाने में दीवार पर बने जिस चौकोर को देखकर विक्रम चौंका वो वहां से बाहर निकलने का रास्ता है ।
लेकिन सवाल यह है कि उसके पुजनीय बापू जी के कमरे में इतना रहस्यमई तहखाना क्यों है ? जिस तहखाने के बारे में उन्होंने अपने एकलौते पुत्र को भी नहीं बताया उससे उनका कैरेक्टर शक के घेरे में आ जाता है ।
विक्रम को सबसे पहले तो अपने बापू जी से ही पुछना चाहिए कि यह सब क्या है । आखिर वो क्या कहते हैं यह जानना भी जरूरी है । शायद उनके पास कोई सही जवाब हो ।

बहुत ही बेहतरीन अपडेट था शुभम भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।
 
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Dosto, pariwar me shadi thi is liye story ka update likhne ka waqt hi nahi mila. Jald hi story ka next update aayega,,,,:declare:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Nice update
Shukriya bhai,,,,:hug:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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यह तो पहले ही समझ में आ गया था कि विक्रम के फादर के कमरे से जुड़ा हुआ एक तहखाना है । तहखाने तक पहुंचने का रास्ता पुरा फिल्मी था । और मुझे लगता है कि तहखाने में दीवार पर बने जिस चौकोर को देखकर विक्रम चौंका वो वहां से बाहर निकलने का रास्ता है ।
लेकिन सवाल यह है कि उसके पुजनीय बापू जी के कमरे में इतना रहस्यमई तहखाना क्यों है ? जिस तहखाने के बारे में उन्होंने अपने एकलौते पुत्र को भी नहीं बताया उससे उनका कैरेक्टर शक के घेरे में आ जाता है ।
विक्रम को सबसे पहले तो अपने बापू जी से ही पुछना चाहिए कि यह सब क्या है । आखिर वो क्या कहते हैं यह जानना भी जरूरी है । शायद उनके पास कोई सही जवाब हो ।

बहुत ही बेहतरीन अपडेट था शुभम भाई ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग ।
Shukriya bhaiya ji is khubsurat sameeksha ke liye,,,,:hug:
 
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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अध्याय - 25
_______________


अब तक...

मेरे ज़हन में ऐसे ऐसे ख़याल उभर रहे थे जिनको मेरा अपना ही मन मानने को तैयार नहीं था किन्तु इतना कुछ देख लेने के बाद मैं हक़ीक़त को नज़रअंदाज़ भी नहीं कर सकता था। मुझे अब पूरी तरह यकीन हो गया था कि मेरे पापा कोई मामूली इंसान नहीं हैं बल्कि उनका किरदार बड़ा ही रहस्यमय है।

अब आगे....


उस वक़्त शाम के छह बज रहे थे जब संस्था द्वारा दिए गए मोबाइल पर मैसेज आया देख कर मैं हल्के से चौंका था। मैसेज के द्वारा संस्था के चीफ़ ने मुझे गुप्त भवन बुलाया था। जब से मेरे साथ हादसा हुआ था तब से ये पहली बार था जब संस्था द्वारा मेरे पास कोई सन्देश आया था। मैं ये तो जानता था कि चीफ़ को मेरे साथ हुए हादसे के बारे में पहले ही पता चल गया रहा होगा किन्तु ये समझ में नहीं आ रहा था कि मुझे गुप्त भवन में आने का हुकुम किस लिए हो सकता था?

मैं क्योंकि चलने फिरने लायक हो गया था इस लिए सविता आंटी से ये कह कर बाहर निकल गया कि घूमने जा रहा हूं। मुझे पता था कि मेरे जाने के बाद सविता आंटी संजय अंकल को मेरे बारे में सूचित करेंगी। ख़ैर मैं हर तरह की सावधानी रखते हुए बंगलो से निकला और एक ऑटो कर के गुप्त भवन की तरफ निकल गया। गुप्त भवन यानी की चूत मार सर्विस का ऐसा मुख्यालय जिसके बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं था।

जब मैं "सी एम एस" के मुख्यालय पहुंचा तो उस वक़्त सात बज गए थे। मैं अंदर से काफी असामान्य हालत में था। यहाँ आने के बाद पता नहीं क्या हो जाता था कि मेरे अंदर एक तरह की घबराहट भर जाती थी और मैं थोड़ा असहज सा महसूस करने लगता था।

"ज़ीरो ज़ीरो सेवन।" हॉल में रहस्यमय ब्यक्ति यानी संस्था के चीफ़ की अजीब सी आवाज़ गूंजी____"तुमने संस्था के नियम तोड़ने की ज़ुर्रत क्यों की?"
"क्...क्या????" चीफ़ की बात सुन कर मैं बुरी तरह उछल पड़ा था और साथ ही हकला भी गया था, किन्तु फिर जल्दी ही खुद को सम्हाल कर मैंने कहा____"मेरा मतलब है कि मैंने कब संस्था के किसी नियम को तोड़ा सर??"

"यहां किसी एजेंट को सवाल के जवाब में कोई सवाल करने की इजाज़त नहीं है।" चीफ़ ने ख़तरनाक भाव से कहा____"तुमने संस्था के नियम का पालन नहीं किया जोकि अपराध है और इस अपराध के लिए तुम्हें मौत की सज़ा मिल सकती है।"

चीफ़ के ऐसा कहने के बाद मैं चाह कर भी कुछ बोल न सका। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर मैंने संस्था का कौन सा नियम तोड़ा था जिसके लिए मुझे मौत की सज़ा मिल जाएगी। मैं अभी इसी ख़याल में गुम था कि तभी हाल में चीफ़ की आवाज़ फिर गूँजी।

"संस्था के हर एजेंट का ये फ़र्ज़ है कि वो ऐसा कोई भी काम न करें जिसकी वजह से किसी को संस्था के बारे में या उसकी खुद की असलियत के बारे में पता चल जाए।" चीफ़ कह रहा था____"तुमने अपने निजी कारण के चलते संस्था की गोपनीयता को भी ताक पर रख दिया। वो तो शुक्र था कि सही समय पर हमारा एक एजेंट उस जगह पहुंच गया था वरना कोई दूसरा होता तो जाने क्या हो जाता।"

"मुझे माफ़ करें चीफ़ लेकिन प्लीज मुझे ये बताने की कृपा कीजिए कि मुझसे ऐसा कौन सा गुनाह हो गया है जिसके लिए आप ऐसा कह रहे हैं?" मैंने हिम्मत कर के पूछने की ज़ुर्रत की_____"अपनी समझ में तो मैंने अभी तक संस्था का कोई भी नियम नहीं तोड़ा है।"

"हम तुम्हारे साथ हुए उस हादसे के सम्बन्ध में ऐसा कह रहे हैं जिस हादसे में तुम संस्था द्वारा दिए गए मोबाइल को खो चुके थे।" चीफ़ ने कहा____"क्या तुम्हें हालात की गंभीरता का ज़रा भी एहसास है? ज़रा सोचो अगर वो मोबाइल किसी ऐसे ब्यक्ति के हाथ लग जाता जो उसकी खासियतों को देख कर उसकी जांच करने पर उतारू हो जाता तो क्या होता? वो कोई मामूली मोबाइल नहीं है और यही बात किसी के भी मन में ये जानने की उत्सुकता पैदा कर सकती है कि आख़िर वो मोबाइल ऐसा क्यों है कि उसमे कोई फंक्शन ही नज़र नहीं आता? मान लो अगर वो मोबाइल किसी पुलिस या इंटेलिजेंस वालों के हाथ लग जाता तब क्या होता?"

चीफ़ की बात सुन कर मुझे पहली बार एहसास हुआ कि वास्तव में उस मोबाइल को खो देने की मैंने कितनी बड़ी ग़लती की थी। हालांकि मुझे उसके खो जाने का बेहद मलाल भी हुआ था किन्तु उसके लिए मैं कर भी क्या सकता था। मैं तो इसी बात से राहत महसूस करने लगा था कि वो संदीप गुप्ता नाम के किसी अच्छे आदमी के हाथ लग गया था जिसने उसे सही सलामत मुझे लौटा दिया था।

"अब तुम्हें समझ आ गया होगा कि तुमने अपने निजी कारण के चलते संस्था के लिए कितना बड़ा ख़तरा पैदा कर दिया था।" चीफ़ ने कहा____"संस्था के हर एजेंट पर हमारी पैनी नज़र रहती है और यही वजह है कि हमने ख़तरे को तुरंत ही मिटा देने का काम करवा दिया। हम ये कैसे बरदास्त कर सकते हैं कि संस्था का कोई एजेंट अपने किसी निजी कारण के लिए संस्था के वजूद को ख़तरे में डाल दे?"

"मुझे माफ़ कर दीजिए चीफ़।" मैंने आहत भाव से कहा_____"मैं मानता हूं कि मोबाइल को उस वक़्त एक्सीडेंट के चलते खो देने से संस्था के लिए ख़तरा बन गया था लेकिन वो सब मुझसे जान बूझ कर नहीं हुआ था। उस दिन वैसा कुछ हो जाएगा इसकी मैंने कल्पना भी नहीं की थी। मैं तो बस अपने पिता जी का पीछा कर रहा था। ये जानने के लिए कि अगर वो उस दिन अपने ऑफिस नहीं जा रहे थे तो आख़िर कहां जा रहे थे?"

"माना कि तुम अपने पिता का किन्हीं कारणों से पीछा कर रहे थे।" चीफ़ ने कहा____"लेकिन उसके चलते तुमने इस संस्था के वजूद को ख़तरे में डाला उसका क्या? तुम्हें ये कभी नहीं भूलना चाहिए कि तुम एक आम इंसान नहीं हो बल्कि किसी ऐसी संस्था के एजेंट भी हो जिसके वजूद की हर तरह से हिफाज़त करना तुम्हारा सबसे पहला कर्त्तव्य है।"

मैं समझ सकता था कि चीफ़ अपनी जगह सही था लेकिन मैं अब उसे कैसे समझाता कि मैं आज कल किस तरह के हालातों से गुज़र रहा था?

"हम उम्मीद करते हैं कि अगली बार से तुम ऐसी कोई ग़लती नहीं करोगे।" मुझे चुप देख कर चीफ़ ने कहा____"अब तुम जा सकते हो।"
"थैंक यू चीफ़।" मैंने खुश हो कर कहा____"थैंक यू सो मच।"

मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि चीफ़ इस तरह से जाने देगा। जिस तरह से उसने संस्था के नियम तोड़ने और उसके लिए सज़ा देने की बात कही थी उससे तो मैं हिल ही गया था किन्तु अब मैं ये सोच कर थोड़ा हैरान हुआ था कि उसने मुझे बिना कोई सज़ा दिए जाने दिया।

घर आया तो देखा मम्मी पापा ऑफिस से आ चुके थे। मुझे देख कर उन्होंने नाराज़गी से कहा कि मैं बाहर घूमने क्यों गया था जबकि मुझे अभी घर में ही रह कर आराम करना चाहिए था। मैंने मम्मी पापा को किसी तरह समझाया और अपने कमरे में चला गया।

दिन ऐसे ही गुज़रने लगे। मैं अपने कमरे में ही रहता और मम्मी पापा के ऑफिस चले जाने के बाद उनके कमरे में मौजूद तहख़ाने में जा कर उस दूसरे वाले दरवाज़े को खोलने की कोशिश करता। एक हप्ता गुज़र गया था और इस एक हप्ते में भी मुझे उस दूसरे वाले दरवाज़े को खोलने में कामयाबी नहीं मिल सकी थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा कौन सा जुगाड़ था जिसकी वजह से वो दरवाज़ा खुलता था? संभव था कि उस दरवाज़े को खोलने का कोई जरिया ऐसा हो जो वहां मौजूद कंप्यूटर से ऑपरेट किया जाता हो। मेरे ज़हन में भी ये बात अब बैठ चुकी थी कि उस दरवाज़े को खोलने का जुगाड़ वहां मौजूद किसी कंप्यूटर में ही होगा, क्योंकि बाकी तो मैंने हर चीज़ को जाने कितनी ही बार बारीकी से चेक कर लिया था।

मेरे सिर की चोट अब काफी हद तक ठीक हो चुकी थी। मैंने ये सोचा था कि जब तक यहाँ पर हूं तब तक यहीं रह कर पापा और उनके दोस्तों के बारे में पता करता रहूंगा लेकिन सच तो ये था कि मैं उस तहख़ाने में ही फंस कर रह गया था। इस बीच मैंने दुबारा संजय अंकल को अपने घर पर सविता आंटी से मिलते नहीं देखा था। हालांकि मेरे दोस्त लोग मुझसे मिलने आते रहते थे। उस एक्सीडेंट के बाद से मैंने दुबारा पापा का पीछा भी नहीं किया था। इतना तो मैं समझ गया था कि मुझ पर कड़ी नज़र रखी जा रही थी। इस लिए मैंने भी किसी का पीछा कर के किसी के बारे में जानने का मंसूबा करना छोड़ दिया था।

मैंने एक दिन मम्मी पापा से अपने काम पर जाने की बात कही तो उन्होंने भी मुझे जाने की इजाज़त दे दी। असल में अब वो भी देख चुके थे कि मैं अब पहले से काफी बेहतर हो चुका हूं। दूसरे शहर में आ कर मैंने एक दो दिन तो अपने काम पर ही ध्यान दिया, उसके बाद मैंने एक ऐसे प्राइवेट डिटेक्टिव को तलब किया जो ऐसे मामलों को अंजाम देने में माहिर हो। मैंने उस डिटेक्टिव को अपने पापा और उनके सभी दोस्तों के बारे में गहराई से पता करने का काम सौंप दिया और साथ ही उसे ये भी बता दिया था कि इस काम में वो जितनी सावधानी रख सके रखे क्योंकि इस काम में उसकी जान को भी ख़तरा हो सकता है। मेरी बातें सुन कर वो डिटेक्टिव ऐसे मुस्कुराया था जैसे मैंने कोई बचकानी बात कह दी हो। ख़ैर डिटेक्टिव को काम पर लगा कर मैं अपने ऑफिस के काम में लग गया था और साथ ही उस डिटेक्टिव की रिपोर्ट का बेसब्री से इंतज़ार करने लगा था।

☆☆☆

शाम को शिवकांत वागले अपनी ड्यूटी से फ़ारिग हो कर अपने घर पहुंचा। उसके ज़हन में तो आज कल विक्रम सिंह और उसकी कहानी ही छाई रहती थी किन्तु वो चाहता था कि घर आने के बाद वो स्वतंत्र मन से अपनी खूबसूरत बीवी सावित्री के साथ प्यार का वक़्त बिता सके। पिछले कुछ दिनों से उसे सावित्री के साथ सेक्स से भरा प्यार करने में बेहद ही आनंद आने लगा था और वो नहीं चाहता था कि अब किसी वजह से उसका ये आनंद फीका पड़ जाए। इसके लिए वो पूरी कोशिश कर रहा था लेकिन विक्रम सिंह की कहानी अब ऐसे मोड़ पर आ पहुंची थी कि वो चाह कर भी उससे अपना ध्यान हटा नहीं पाता था। उसके ज़हन में बार बार ये सवाल उभर आते थे कि आख़िर विक्रम सिंह के पिता और उसके पिता के सभी दोस्त किस चक्कर में थे और उसके बाद ऐसा क्या हुआ होगा जिसके चलते विक्रम सिंह ने अपने ही माता पिता की हत्या कर दी थी? वो जल्द से जल्द इस बारे में सब कुछ जान लेना चाहता था किन्तु उसके पास इतना वक़्त भी नहीं होता था कि वो विक्रम सिंह की डायरी को एक ही बार में पढ़ कर सब कुछ जान ले।

घर का दरवाज़ा हमेशा की तरह उसकी बीवी सावित्री ने ही खोला और बीवी के होठों पर सजी मुस्कान को देख कर वागले जैसे सब कुछ भूल गया था। सावित्री का चेहरा आज कुछ ज़्यादा ही चमक रहा था। उसकी आँखों में ऐसे भाव थे जिन्हें देख कर वागले के जिस्म में मीठी सी झुरझुरी दौड़ती चली गई थी। वागले सावित्री को कुछ पल निहारने के बाद मुस्कुराया और फिर उसके बगल से निकल कर कमरे की तरफ बढ़ गया। बच्चे ड्राइंग रूम में बैठे थे। वागले को देख कर दोनों ने उससे फौरी तौर पर उसका हाल चाल पूछा जिसका जवाब उसने चलते चलते ही दिया था।

रात में डिनर करने के बाद वागले कमरे में अपनी बीवी का इंतज़ार कर रहा था। कुछ ही समय में जब सावित्री अपने सारे काम निपटा कर आई तो वागले ने उसे फ़ौरन ही दबोच लिया। वागले का उतावलापन देख कर सावित्री धीमे स्वर में हंस पड़ी थी।

"क्या बात है।" फिर उसने कहा____"आज तो जनाब बड़े ही बेसब्री हो रहे हैं।"
"जिसकी बीवी इतनी सुन्दर हो और इतनी कामुक हो वो बेसब्र नहीं होगा तो और क्या होगा मेरी जान?" वागले ने सावित्री को बेड पर सीधा लेटा कर उसके चेहरे को सहलाते हुए कहा____"कितना बेवकूफ था मैं जो अब तक बेकार का जीवन जी रहा था। मैंने कभी ये देखने और समझने की कोशिश ही नहीं की थी कि मेरी बीवी आज भी ऐसी है जो सोलह साल की जवान लड़कियों को भी मात देती है। सच कहता हूं सावित्री तुम आज भी मस्त माल नज़र आती हो।"

"शरम कीजिए कुछ।" सावित्री ने मुस्कुराते हुए कहा____"इस उमर में ये आप कैसे शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं?"
"उमर चाहे जो हो सवित्री।" वागले ने झुक कर सावित्री के होठों को चूम कर कहा____"लेकिन मन तो सदा जवान ही रहता है ना। सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि सोच लेने भर से कोई बूढ़ा या जवान नहीं हो जाता। तुम खुद इस बात की गवाह हो कि पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से हमने एक दूसरे को प्यार किया है क्या वो किसी जवान इंसान से कमतर था?"

"हां ये बात तो मैं मानती हूं आपकी।" सावित्री ने वागले की आँखों में देखते हुए कहा____"आपके अंदर का जोश देख कर तो मैं हैरान ही हो गई थी। ऐसा लग ही नहीं रहा था कि पचास की उम्र के क़रीब पहुंच रहा मेरा पति किसी जवान मर्द की तरह इतने जोश में और इतनी क्षमता के साथ मेरे साथ सम्भोग कर रहा है।"

"सम्भोग की जगह चुदाई शब्द का स्तेमाल किया करो मेरी जान।" वागले ने सावित्री की एक छाती को जोर से मसल कर कहा____"प्यार करते समय जितना खुल कर चीज़ों का नाम लोगी उतना ही मज़ा आएगा। ख़ैर छोड़ो और ये बताओ कि आज इतना खुश और कामुक क्यों लग रही हो तुम? कोई ख़ास बात है क्या?"

"ख़ास तो कुछ नहीं है।" सावित्री ने हया से लजाते हुए कहा____"किन्तु जब से हम दोनों के बीच ये सब शुरू हुआ है तब से हर वक़्त जाने क्यों मेरा मन उसी बारे में सोच सोच कर रोमांचित होता रहता है। अब तो ये हाल है कि आपके बिना अकेले इस घर में रहा भी नहीं जाता। मेरे अंदर एक बेचैनी सी छाई रहती है। मन यही किया करता है कि जल्दी से आप आ जाएं और मुझे अपनी बाहों में भर कर मुझे खूब सारा प्यार करें।"

"अच्छा।" वागले ने मन ही मन हैरान हो कर कहा____"और क्या क्या लगा करता है तुम्हें?"
"कैसे बताऊं आपको?" सावित्री ने अपनी नज़रों को उससे हटा कर दूसरी तरफ देखते हुए कहा____"मेरा मन तो यही करता है कि कितनी जल्दी रात हो और फिर आप मुझे इस तरह प्यार करें कि मेरे जिस्म का रोम रोम ख़ुशी और आनंद से भर जाए। क्या आपको ऐसा नहीं लगता?"

"मेरी हालत तुमसे जुदा कैसे हो सकती मेरी जान?" वागले ने सावित्री के चेहरे को सीधा कर के फिर से उसके होठों को चूम कर कहा था____"मन तो मेरा भी यही करता है कि हर वक़्त तुम्हें अपनी बाहों में भर कर तुम्हें प्यार करता रहूं लेकिन क्या करूं जीवन में इसके अलावा भी बहुत से ऐसे ज़रूरी काम हैं जिन्हें करना जैसे मज़बूरी है।"

"सही कहा आपने।" सावित्री ने गहरी सांस ली____"बहुत कुछ सोचना पड़ता है और बहुत कुछ सहना भी पड़ता है। जवान हो चुके अपने बच्चों के बारे में भी सोचना पड़ता है कि अगर उन्हें किसी दिन हमारे ऐसे कर्मों का पता चला तो वो हमारे बारे में क्या सोचेंगे?"

"आज कल के बच्चे बहुत समझदार हैं सावित्री।" वागले ने कहा____"वो हमारे बारे में अच्छा ही सोचेंगे। तुम इस सबकी चिंता मत करो बल्कि इस प्यार का खुल कर आनंद लो। अब चलो छोड़ो ये सब बातें और आओ हम खुल कर एक दूसरे को प्यार करें।"

वागले की बात सुन कर सावित्री उसकी आँखों में देखने लगी। जबकि वागले ने कुछ पल उसे देखा और फिर झुक कर सावित्री के रसीले होठों को अपने मुँह में भर कर उनका रसपान करने लगा। एक हाथ से वो उसकी बड़ी बड़ी छातियों को भी बारी बारी से मसलने लगा था। सावित्री जल्दी ही एक मीठे आनंद में डूबती नज़र आने लगी थी। उसने भी खुल कर अपने पति का साथ देना आरम्भ कर दिया।

कुछ ही देर में आलम ये हो गया कि दोनों ही पूरी तरह निर्वस्त्र हो ग‌ए। वागले सावित्री के खूबसूरत जिस्म के हर हिस्से पर अपनी जीभ फिरा रहा था। सावित्री बेड पर किसी मछली की तरह मचल रही थी। सावित्री के सीने पर मौजूद उसके बड़े बड़े खरबूजों को वागले मुँह में भर कर चूस भी रहा था और हाथों से बुरी तरह मसलता भी जा रहा था। जल्दी ही वो उसके पेट से होते हुए उसकी चिकनी चूत पर आ गया। पहले तो उसने सावित्री की मोटी गुदाज़ जाँघों को चूमा चाटा और फिर एकदम से उसकी रस छोड़ती चूत पर अपनी जीभ लगा दी। चूत पर जैसे ही उसकी जीभ लगी तो उसे किसी गरम भट्ठी का आभास हुआ जिसकी तपिश से उसे अपना मुँह जलता हुआ सा प्रतीत हुआ।

वागले पागलों की तरह सावित्री की चूत को चाटता जा रहा था और एक हाथ की दो उंगली से वो उसकी चूत को भी छेड़ता जा रहा था जिससे सावित्री बुरी तरह आहें भरते हुए मचल रही थी। पूरे कमरे में सावित्री की घुटी घुटी सिसकियां और आहें गूँज रहीं थी। हालांकि वो अपनी सिसकियों और आहों को दबाने की भरपूर कोशिश कर रही थी लेकिन बावजूद इसके वो नाकाम हो रही थी। जल्दी ही सावित्री अपने चरम पर पहुंच गई और झटके खाते हुए झड़ गई। झड़ने के बाद वो गहरी गहरी साँसें लेते हुए बेड पर निढाल सी पड़ गई थी। उधर वागले उसकी चूत से निकले कामरस को सारा का सारा चाट गया था।

कुछ देर बाद जब सावित्री की साँसें थमी तो उसने अपनी आँखें खोल कर वागले को देखा। उसकी आँखों में परम संतुष्टी के भाव थे और वो वागले को बड़े ही प्यार से देख रही थी। उसे अपनी तरफ देखता देख वागले हल्के से मुस्कुराया और उसके चेहरे के पास आ कर उसने हल्के से उसके होठों को चूम लिया।

"तो कैसा लगा मेरी जान को?" फिर उसने मुस्कुराते हुए उससे पूछा"
"मज़े के उस एहसास को मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकती।" सावित्री ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"बस यही कह सकती हूं कि उस वक़्त मैं ऐसी दुनियां में थी जहां पर ऐसा आनंद था जैसा हक़ीक़त की दुनियां में कहीं हो ही नहीं सकता।"

"ऐसी बात है क्या।" वागले हल्के से मुस्कुराया____"फिर तो मुझे भी उसी दुनियां में उस आनंद को पाने की इच्छा है। मुझे भी उस दुनियां में भेजो डियर।"
"जी बिल्कुल।" सावित्री कहने के साथ ही उठी और फिर वागले के चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर कहा____"आप लेट जाइए, मैं जल्द ही आपको उस अद्भुत दुनियां में भेजती हूं।"

वागले मुस्कुराते हुए लेट गया। सावित्री ने कुछ देर उसके होठों को अपने होठों के बीच ले कर चूसा और फिर उसी के जैसे उसके जिस्म के हर हिस्से पर अपनी जीभ फिराने लगी। वागले जल्द ही मज़े की तरंगों में डूबने लगा। सावित्री का कोमल स्पर्श और उसकी गर्म साँसें जब वागले के जिस्म पर पड़तीं थी तो वो एक अलग ही तरह के मीठे एहसास में खो जाता था। आँखें बंद कर के वो उसी एहसास में खुद को डूबाने लगा था। जल्दी ही सावित्री उसके जिस्म के उस हिस्से पर आ गई जहां पर उसका स्पर्श पड़ते ही वागले के जिस्म में उठती तरंगों में इज़ाफ़ा हो गया।

सावित्री ने वागले के लंड को अपने कोमल हाथ में लिया और उसे कुछ पलों तक सहलाने के बाद झुक कर उसे चूम लिया। वागले को अपना जिस्म अंतरिक्ष में उड़ता महसूस होने लगा। सावित्री ने जैसे ही उसके लंड को अपने मुँह में लिया तो मज़े की तरंगों से मजबूर हो कर वागले ने फ़ौरन ही अपने दोनों हाथ बढ़ा कर सावित्री के सिर को थाम लिया और नीचे से अपना पिछवाड़ा उठा कर अपने लंड को और भी उसके मुँह में ठेल दिया। सावित्री का गर्म मुख और जीभ के घर्षण की वजह से वागले जल्द ही स्वर्ग जैसे आनंद में पहुंच गया।

सावित्री एक लय में अपने सिर को आगे पीछे करते हुए उसके लंड को चूस रही थी और साथ ही अपने हाथों से उसके टट्टों को भी सहला रही थी। वागले का लंड जल्द ही उसके मुख में फूलने लगा। सावित्री के मुख की गर्मी और उसके चूसने का जल्द ही असर हुआ। वागले ज़्यादा देर तक खुद को सम्हाल न पाया और किसी रेत के महल की तरह भरभरा कर उसके मुख में ही झड़ता चलता गया। झड़ते वक़्त उसका पूरा जिस्म झटके खा रहा था और फिर कुछ ही झटकों के बाद वो बेजान सा हो कर शांत पड़ गया। कमरे में उसकी भारी हो चुकी साँसें ही गूँज रहीं थी।

☆☆☆
 
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