• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy Dark Love (Completed)

parkas

Well-Known Member
28,439
62,755
303
Update - 06
___________________




ठण्ड लगने की वजह से मुझे होश आया। पलकें खुलीं तो कोहरे की धुंध में मैंने दूर दूर तक देखने की कोशिश की। मेरे पास ही कहीं पर रौशनी का आभास हुआ तो मैं चौंका। पहले तो कुछ समझ न आया कि मैं कहां हूं और किस हाल में हूं किन्तु कुछ पलों में जैसे ही ज़हन सक्रिय हुआ तो मुझे अपनी हालत का एहसास हुआ। नज़र पीछे की तरफ पड़ी तो देखा मेरी टोर्च ज़मीन पर पड़ी हुई थी। उसी टोर्च की रौशनी का मुझे आभास हुआ था। ठण्ड ज़ोरों की लग रही थी इस लिए उठ कर मैंने अपने कपड़ों को ब्यवस्थित किया जिससे ठण्ड का प्रभाव थोड़ा कम हो गया।

मैंने जब बेहोश होने से पूर्व का घटनाक्रम याद किया तो एक बार फिर से दिल में दर्द जाग उठा। ज़हन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे। ज़ाहिर है वो सभी ख़याल मुझे कोई खुशियां नहीं दे रहे थे इस लिए मैंने बड़ी मुश्किल से उन ख़यालों को अपने ज़हन से निकाला और ज़मीन पर पड़ी टोर्च को उठा कर खड़ा हो गया। पलट कर उस दिशा की तरफ देखा जहां बेहोश होने से पूर्व मैंने उस झरने को देखा था। मेरे अलावा दुनियां का कोई भी इंसान इस बात का यकीन नहीं कर सकता था कि मैंने अपनी खुली आँखों से इस जंगल में दो दो बार एक ऐसे झरने को देखा था जो किसी मायाजाल से कम नहीं था।

मेरा दिल तो बहुत उदास और बहुत दुखी था जिसकी वजह से अब कुछ भी करने की हसरत नहीं थी किन्तु जाने क्यों मैं उसी तरफ चल पड़ा जिस तरफ मैंने झरने को देखा था। वही कच्ची ज़मीन, वही पेड़ पौधे और ज़मीन पर पड़े सूखे हुए पत्ते। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि जिस जगह पर मैं चल रहा हूं यहीं पर कुछ समय पहले एक अच्छा ख़ासा झरना था। क्या हो अगर वो झरना फिर से प्रकट हो जाए? ज़ाहिर है मैं सीधा उसके पानी में डूबता चला जाऊंगा और ऐसी ठण्ड में मेरे सलामत होने की कोई उम्मीद भी नहीं होगी। इस ख़याल ने मेरे जिस्म में झुरझुरी सी पैदा की किन्तु मैं रुका नहीं बल्कि आगे बढ़ता ही चला गया। टोर्च की रौशनी कोहरे को भेदने में नाकाम थी लेकिन मुझे रोक देने की ताकत उस कोहरे में तो हर्गिज़ नहीं थी।

"क्या बात है, तुम इतने गुमसुम से क्यों दिख रहे हो?" अगली सुबह मेघा आई और जब काफी देर गुज़र जाने पर भी मैंने कुछ न बोला था तो उसने पूछा था____"कुछ हुआ है क्या? कहीं तुम मेरे मना करने के बाद भी इस कमरे से बाहर तो नहीं चले गए थे?"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा था____'पहले तुम्हें मेरे बोलने पर समस्या थी और अब जबकि मैं चुप हूं तो तुम पूछ रही हो कि मैं गुमसुम क्यों हूं?"

"इसमें अजीब क्या है?" उसने एक पीतल की थाली में खाने को सजा कर मेरे पास लाते हुए कहा था____"यहां पर तुम मेरे मेहमान हो और मेरी वजह से ज़ख़्मी भी हुए हो इस लिए ये मेरा फ़र्ज़ है कि मेरी वजह से तुम्हें फिर से कोई तकलीफ़ न हो। हालांकि तुम पहले ऐसे इंसान हो जिसके बारे में मैं ऐसा सोचती हूं और इतना कुछ कर रही हूं वरना मेरी फितरत में किसी इंसान के लिए ऐसा कुछ करना है ही नहीं।"

"तो फिर मत करो मेरे लिए ये सब।" मैंने उसके चेहरे की तरफ देखते हुए कहा था____"अगर तुम्हारी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं तो फिर मेरे लिए भी तुम्हें ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है। मैं अगर तुम्हारी वजह से ज़ख़्मी हुआ भी था तो तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ कर चुप चाप चली जाती। मुझे तुमसे इसके लिए कोई शिकायत नहीं होती बल्कि मैं ये समझ लेता कि ज़िन्दगी जहां इतने दुःख दे रही है तो एक ये अदना सा दुःख और सही।"

"मैं नहीं जानती कि तुम ये सब क्या और क्यों कह रहे हो।" मेघा ने मुझे हल्के से खींच कर बेड की पिछली पुष्त पर टिकाते हुए कहा____"लेकिन तुम्हें उस हालत में छोड़ कर नहीं जा सकती थी। उस दिन जब मैं तुम्हें यहाँ लाई थी तो मैं खुद हैरान थी कि मैंने ऐसा क्यों किया। काफी सोचने के बाद भी मुझे कुछ समझ नहीं आया था। तुम तो बेहोश थे लेकिन मैं अपने अंदर चल रहे द्वन्द से जूझ रही थी। उसके बाद न चाहते हुए भी मैं वो सब करती चली गई जो मेरी फितरत में है ही नहीं। जब तुम्हें होश आया और तुमसे बातें हुईं तो एक अलग ही एहसास हुआ मुझे जिसके बाद मैंने तुम्हारे ज़ख्मों का इलाज़ करना शुरू कर दिया। मैं आज भी नहीं जानती कि मैंने किसी इंसान के लिए इतना कुछ कैसे किया और अब भी क्यों कर रही हूं?"

"तुम बार बार ऐसा क्यों कहती हो कि तुम्हारी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं?" मैंने वो सवाल किया जो मेरे मन में कई दिनों से उभर रहा था____"क्या तुम्हें मर्दों से कोई समस्या है या तुम उनसे नफ़रत करती हो?"

"ये सब ना ही जानो तो तुम्हारे लिए बेहतर होगा।" मेघा पीछे से आ कर मेरे पास ही बेड के किनारे पर बैठते हुए बोली थी____"चलो अब जल्दी से खाना खा लो। उसके बाद मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा दूंगी।"

"चलो मान लिया मैंने कि तुम्हें हम मर्दों से नफ़रत है जिसकी वजह से तुम किसी भी इंसान से किसी भी तरह का ताल्लुक नहीं रखती।" मैंने पीतल की थाली में रखे खाने की तरफ देखते हुए कहा____"लेकिन ये भी सच है कि तुमने मेरे लिए इतना कुछ किया। क्या तुमने ये समझने की कोशिश नहीं की कि ऐसा क्यों किया होगा तुमने? अगर तुम्हारी फितरत में ऐसा करना है ही नहीं तो फिर क्यों ऐसा किया तुमने?"

"मैं ये सब फ़ालतू की बातें नहीं सोचना चाहती।" मेघा ने सपाट लहजे में कहा था किन्तु उसके चेहरे के भाव कुछ अलग ही नज़र आ रहे थे जिन्हें देखते हुए मैंने कहा____"ठीक है, लेकिन मैं बता सकता हूं कि तुमने ऐसा क्यों किया?"

"क्या??" मेघा ने एक झटके से गर्दन घुमा कर मेरी तरफ देखा था____"मेरा मतलब है कि तुम भला कैसे बता सकते हो?"
"क्यों नहीं बता सकता?" मैंने थाली से नज़र हटा कर उसकी तरफ देखा____"आख़िर ऊपर वाले ने थोड़ा बहुत बुद्धि विवेक मुझे भी दिया है।"
"कहना क्या चाहते हो?" मेघा ने मेरी तरफ उलझन भरे भाव से देखते हुए कहा था।

"यही कि जो बात किसी इंसान की समझ से बाहर होती है।" मैंने जैसे दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा था____"ज़रूरी नहीं कि उसका कोई मतलब ही न हो। सच तो ये है कि दुनियां में जो भी होता है वो सब उस ऊपर वाले की इच्छा से ही होता है। मैं नहीं जानता कि तुम इंसानों के प्रति ऐसे ख़याल क्यों रखती हो लेकिन इसके बावजूद अगर तुम्हें ये सब करना पड़ रहा है तो ज़ाहिर है कि इसमें नियति का कोई न कोई खेल ज़रूर है। इस सबके बारे में हम दोनों में से किसी ने भी कल्पना नहीं की थी कि ऐसा कुछ होगा लेकिन फिर भी ये सब हुआ तो ज़ाहिर है कि इसके पीछे कोई ऐसी वजह ज़रूर है जिसे हम दोनों को ही समझने की ज़रूरत है। हालांकि मैंने तो समझ लिया है लेकिन तुम्हें शायद देर से समझ आए।"

"तुमने ऐसा क्या समझ लिया है?" मेघा ने आँखें सिकोड़ते हुए पूछा था____"और ऐसा क्या है जो तुम्हारे हिसाब से मुझे देर से समझ में आएगा?"
"एक ऐसी चीज़ जो किसी के भी दिल में किसी के भी प्रति खूबसूरत एहसास जगा देती है।" मैंने कहा था____"उस एहसास को ये दुनिया प्रेम का नाम देती है। मैं बता ही चुका हूं कि तुम्हारे प्रति मेरे दिल में बेपनाह प्रेम का सागर अपना वजूद बना चुका है जबकि तुम्हें इसके बारे में शायद देर से पता चले। तुम खुद सोचो कि अचानक से हम दोनों एक दूसरे को क्यों मिल गए और इस वक़्त एक दूसरे के इतने क़रीब क्यों हैं? हम दोनों को भले ही ये नज़र आता हो कि इसकी वजह वो हादसा है लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वो हादसा भी इसी लिए हुआ हो ताकि हम दोनों को एक दूसरे के क़रीब रहने का मौका मिले और एक दिन हम दोनों एक हो जाएं?"

"पता नहीं तुम इंसान कैसी कैसी कल्पनाएं करते रहते हो।" मेघा ने हैरान नज़रों से मुझे देखते हुए कहा था____"अच्छा अब तुम चुप चाप खाना खाओ। तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा कर मुझे यहाँ से जाना भी है।"

"अभी और कितना वक़्त लगेगा मेरे इन ज़ख्मों को ठीक होने में?" मैंने थाली से एक निवाला अपने मुँह में डालने के बाद कहा था____"क्या कोई ऐसी दवा नहीं है जो एक पल में मेरे ज़ख्मों को ठीक कर दे?"

"ऐसी दवा तो है।" मेघा ने कहीं खोए हुए भाव से कहा था____"लेकिन वो दवा तुम्हारे लिए ठीक नहीं है।"
"ये क्या बात हुई भला?" मैंने हैरानी से मेघा की तरफ देखा था_____"ऐसी दवा तो है लेकिन मेरे लिए ठीक नहीं है इसका क्या मतलब हुआ?"

"तुम बाल की खाल निकालने पर क्यों तुल जाते हो?" मेघा ने नाराज़गी भरे भाव से कहा था____"चुप चाप खाना खाओ अब।"
"जो हुकुम।" मैंने अदब से सिर नवा कर कहा और चुप चाप खाना खाने लगा। उधर मेघा बेड से उठ कर तथा थोड़ी दूर जा कर जाने क्या करने लगी थी। मेरी तरफ उसकी पीठ थी इस लिए मैं देख नहीं सकता था।

पिछले पांच दिनों से मैं इस जगह पर रह रहा था। मेघा के ना रहने पर मैं अकेला पता नहीं क्या क्या सोचता रहता था। मुझे किसी भी चीज़ की समस्या नहीं थी यहाँ लेकिन जाने क्यों दिल यही चाहता था कि मेघा हर पल मेरे पास ही रहे। वो जब चली जाती थी तो मैं शाम या फिर सुबह होने का बड़ी शिद्दत से इंतज़ार करता था। रात तो को देर से ही सही लेकिन आँख लग जाती थी जिससे जल्द ही सुबह हो जाती थी लेकिन दिन बड़ी मुश्किल से गुज़रता था। अब तक मैंने मेघा से अपने दिल का हर हाल बयां कर दिया था और यही उम्मीद करता था कि उसके दिल में भी मेरे लिए वही एहसास पैदा हो जाए जैसे एहसास उसके प्रति मेरे दिल में फल फूल रहे थे। जैसे जैसे दिन गुज़र रहे थे और जैसे जैसे मुझे ये एहसास हो रहा था कि मेरी चाहत फ़िज़ूल है वैसे वैसे मेरी हालत बिगड़ती जा रही थी। अक्सर ये ख़याल मेरी धड़कनों को जाम कर देता था कि क्या होगा जब मेरे ठीक हो जाने पर मेघा मुझे मेरे घर पहुंचा देगी? मैं कैसे उसके बिना ज़िन्दगी में कोई ख़ुशी खोज पाऊंगा?

अचानक किसी पत्थर से मेरा पाँव टकरा गया जिससे एकदम से मैं वर्तमान में आ गया। ज़मीन पर पड़े पत्थर से मेरा पाँव ज़्यादा तेज़ी से नहीं टकराया था इस लिए मैं सिर्फ लड़खड़ा कर ही रह गया था। ख़ैर वर्तमान में आया तो मुझे आभास हुआ कि मैं चलते चलते पता नहीं कहां आ गया हूं मैं। मैंने ठिठक कर टोर्च की रौशनी दूर दूर तक डाली। कोहरे की वजह से दूर का कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। ज़हन में ख़याल उभरा कि ऐसे कब तक चलता रहूंगा मैं? इस तरफ ठण्ड कुछ ज़्यादा ही महसूस हो रही थी। कुछ देर अपनी जगह पर खड़ा मैं इधर उधर यूं ही देखता रहा उसके बाद अपने बाएं तरफ चल दिया।

मैं एक बार फिर से मेघा के ख़यालों में खोने ही वाला था कि तभी मैं चौंका। मेरे कानों में फिर से झरने में बहते पानी की आवाज़ सुनाई देने लगी थी। इस एक रात में ये दूसरी बार था जब झरने का वजूद मुझे नज़र आया था और इस बार मैं झरने के दूसरी तरफ मौजूद था। ये जान कर अंदर से मुझे जाने क्यों एक ख़ुशी सी महसूस हुई। दिल की धड़कनें ये सोच कर थोड़ी तेज़ हो गईं कि क्या इस तरफ सच में कहीं पर मेघा का वो पुराना सा मकान होगा? इस ख़याल के साथ ही मेरे जिस्म में एक नई जान सी आ गई और मैं तेज़ी से एक तरफ को बढ़ता चला गया।

मुझे पूरा यकीन था कि झरने के आस पास ही कहीं पर वो मकान था जिसमें मैं एक हप्ते रहा था। इसके पहले मैं इस तरफ का पूरा जंगल छान मारा था किन्तु तब में और अब बहुत फ़र्क हो गया था। पहले मुझे इस झरने का कोई वजूद नहीं दिखा था और आज दो दो बार ये झरना मेरी आँखों के सामने आ चुका था जो मेरे लिए किसी रहस्य से कम नहीं था। शुरू में ज़रूर मैं इस झरने की माया से चकित था लेकिन फिर ये सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई थी कि ये भी मेघा की तरह ही रहस्यमी है।

"क्या हुआ।" शाम को जब मेघा वापस आई थी तो वो एकदम ख़ामोश थी। उसके चेहरे के भाव कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे थे। इसके पहले वो एकदम खिली खिली सी लगती थी। जब काफी देर गुज़र जाने पर भी उसने कोई बात नहीं की थी तो मैं उससे पूछ बैठा था____"इतनी शांत और चुप सी क्यों हो मेघा? तुम्हारे चेहरे के भाव ऐसे हैं जैसे कोई गंभीर बात है। मुझे बताओ कि आख़िर बात क्या है? क्या मेरी वजह से तुम्हें कोई परेशानी हो गई है? अगर ऐसा है तो तुम्हें मेरे लिए ये सब करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं अब पहले से काफी ठीक हूं और मैं खुद अपने से अपना ख़याल रख सकता हूं।"

"तुम ग़लत समझ रहे हो ध्रुव।" मेघा ने थाली में मेरे लिए खाना सजाते हुए कहा था____"मुझे तुम्हारी वजह से कोई परेशानी नहीं है।"
"तो फिर ऐसी क्या बात है जिसकी वजह से तुम्हारा चाँद की तरह खिला रहने वाला चेहरा इस वक़्त बेनूर सा नज़र आ रहा है?"

"तो तुम्हें मेरा चेहरा चाँद की तरह खिला हुआ नज़र आता था?" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए पहली बार हल्के से मुस्कुरा कर कहा था____"ये तारीफ़ थी या मुझे यूं ही आसमान में चढ़ा रहे थे?"

"बात को मत बदलो।" मैंने उससे नज़रें चुराते हुए कहा____"मैंने जो पूछा है उसका जवाब दो। आख़िर ऐसी क्या वजह थी कि तुम इतना गंभीर नज़र आ रही थी?"
"आज सारा दिन तुम्हारे द्वारा कही गई बातों के बारे में सोचती रही थी मैं।" मेघा ने थोड़े गंभीर भाव से कहना शुरू किया था____"जीवन में पहली बार मैंने किसी के द्वारा प्रेम के सम्बन्ध में ऐसी बातें सुनी थी। सुबह तुम्हारी बातें मुझे बहुत अजीब सी लग रहीं थी। मन में अजीब अजीब से ख़याल उभर रहे थे। यहाँ से जाने के बाद मैंने जब अकेले में तुम्हारी बातों पर विचार किया तो मुझे बहुत कुछ ऐसा महसूस हुआ जिसने मुझे एकदम से गंभीर बना दिया।"

"ऐसा क्या महसूस हुआ तुम्हें जिसकी वजह से तुम एकदम से इतना गंभीर हो गई?" मैं धड़कते हुए दिल से एक ही सांस में पूछ बैठा था।
"वही जो नहीं महसूस करना चाहिए था मुझे।" मेघा ने अजीब भाव से कहा____"कम से कम किसी इंसान के लिए तो हर्गिज़ नहीं।"

"मुझे समझ में नहीं आ रहा कि ये तुम क्या कह रही हो?" मैं सच में उसकी बातें सुन कर उलझन में पड़ गया था____"साफ़ साफ़ बताओ न कि बात क्या है?"
"मैं इस बारे में अब और कोई बात नहीं करना चाहती।" मेघा ने मेरे सामने बेड पर थाली रखते हुए कहा था____"तुम जल्दी से खाना खा लो ताकि मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा सकूं।"

मेघा की बातें सुन कर मैं एकदम से कुछ बोल न सका था, बल्कि मन में विचारों का तूफ़ान लिए बस उसकी तरफ देखता रह गया था। उसके चेहरे से भी ये ज़ाहिर हो रहा था कि वो किसी बात से परेशान है। मैं समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर वो किस बात से इतना परेशान और गंभीर दिखने लगी थी। मेरे सामने पीतल की थाली में खाना रखा हुआ था किन्तु उसे खाने का ज़रा भी मन नहीं कर रहा था।

"क्या हुआ?" मुझे खाता न देख मेघा ने पूछा____"तुम खा क्यों नहीं रहे?"
"मुझे भूख नहीं है।" मैंने उसकी तरफ बड़ी मासूमियत से देखते हुए कहा था, जिस पर वो कुछ पलों तक ख़ामोशी से मेरे चेहरे को देखती रही उसके बाद बोली____"ठीक है, बाद में खा लेना। चलो अब मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा देती हूं।"

मेघा की ये बात सुन कर मुझे बड़ी मायूसी हुई। मुझे एक पल को यही लगा था कि शायद वो खुद ये कहे कि चलो मैं खिला देती हूं लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। हालांकि मुझे सच में भूख नहीं थी। इस वक़्त उसे परेशान देख कर मुझे बहुत बुरा महसूस हो रहा था। मैं चाहता था कि उसका चेहरा वैसे ही खिल जाए जैसे हर रोज़ खिला रहता था।

मेघा ने थाली को उठा कर एक तरफ रखा और मेरे ज़ख्मों पर दवा लगाने लगी। न वो कुछ बोल रही थी और ना ही मैं। हालांकि हम दोनों के ज़हन में विचारों तूफ़ान चालू था। ये अलग बात है कि मुझे ये नहीं पता था कि उसके अंदर किस तरह के विचारों का तूफ़ान चालू था? कुछ ही देर में जब दवा लग गई तो मेघा ने वहीं पास में ही रखे घड़े के पानी से अपना हाथ धो कर साफ़ किया और फिर मेरी तरफ पलटी।

"मुझे यकीन है कि कल या परसों तक तुम्हारे ज़ख्म भर जाएंगे और तुम पूरी तरह ठीक हो जाओगे।" मेघा दरवाज़े के पास खड़ी कह रही थी____"उसके बाद मैं तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा दूंगी।"

"ठीक है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा था____"लेकिन अगर कभी तुम्हें देखने का मेरा दिल किया तो क्या तुम मुझसे नहीं मिलोगी?"
"बिल्कुल नहीं।" मेघा ने दो टूक लहजे में कहा था____"तुम्हें सही सलामत तुम्हारे घर पहुंचा देना ही मेरा मकसद है, उसके बाद हम दोनों ही एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे।"

"तुमने तो ये बात बड़ी आसानी से कह दी।" मैंने अपने अंदर बुरी तरह मचल उठे जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से काबू करते हुए कहा था____"लेकिन तुम्हें ये अंदाज़ा भी नहीं है कि यहाँ से जाने के बाद मेरी क्या हालत होगी। तुम्हारा दिल पत्थर का हो सकता है लेकिन मेरा नहीं। मेरे दिल के हर कोने में तुम्हारे प्रति मोहब्बत के ऐसे जज़्बात भर चुके हैं जो तुमसे जुदा होने के बाद मुझे चैन से जीने नहीं देंगे। ख़ैर कोई बात नहीं, मैं तो पैदा ही हुआ था जीवन में दुःख दर्द सहने के लिए। बचपन से ही मेरा कोई अपना नहीं था। बचपन से अब तक मैंने कैसे कैसे दुःख झेले हैं ये या तो मैं जानता हूं या फिर ऊपर बैठा सबका भगवान। न उसे कभी मेरी हालत पर तरस आया और ना ही तुम्हें आएगा लेकिन इसमें तुम्हारी ग़लती नहीं है मेघा बल्कि मेरे दिल की है। वो एक ऐसी लड़की से प्रेम कर बैठा है जो कभी उसकी हो ही नहीं सकती।"

"अपना ख़याल रखना।" मैं चुप हुआ तो मेघा ने बस इतना ही कहा और दरवाज़ा खोल कर किसी हवा के झोंके की तरह बाहर निकल गई। उसके जाने के बाद एकदम से मुझे झटका लगा। ज़हन में ख़याल उभरा कि ये मैंने क्या क्या कह दिया उससे। मुझे उससे ये सब नहीं कहना चाहिए था। मुझे अपने जज़्बातों पर काबू रखना चाहिए था। भला इसमें उसका क्या कुसूर?

मेघा जा चुकी थी और मैं बंद हो चुके दरवाज़े पर निगाहें जमाए किसी शून्य में डूबता चला गया था। कानों में किसी भी चीज़ की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। ज़हन पूरी तरह से निष्क्रिय हो चुका था लेकिन आंसू का एक कतरा मानो इस स्थिति में भी क्षण भर के लिए जीवित था। वो मेरी आँख से निकल कर नीचे गिरा और फ़ना हो गया।


कोई उम्मीद कोई ख़्वाहिश कोई आरज़ू क्यों हो।
वो नसीबों में नहीं मेरे, उसकी जुस्तजू क्यों हो।।

उम्र गुज़री है मेरी ख़िजां के साए में अब तलक,
फिर आसपास मेरे सितमगर की खुशबू क्यों हो।।

इससे अच्छा है किसी रोज़ मौत आ जाए मुझे,
इश्क़-ए-रुसवाई का आलम कू-ब-कू क्यों हो।।

कितना अच्छा हो अगर सब कुछ भूल जाऊं मैं,
खुद अपने ही आपसे हर वक़्त गुफ्तगू क्यों हो।।

मुझे भी उसकी तरह सुकूं से नींद आए कभी,
बंद पलकों में कोई चेहरा मेरे रूबरू क्यों हो।।

मेरे ख़ुदा तू इस अज़ाब से रिहा कर दे मुझे,
सरे-बाज़ार ये दिले-बीमार बे-आबरू क्यों हो।।


✮✮✮
Nice and excellent update....
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
33,766
59,148
304
पाँचवाँ भाग

बहुत ही बेहतरीन महोदय।

आखिर ये मेघा बला क्या है और ये झरने का भेद क्या है। ये दोनों तो पूरे मायावी लग रहे हैं साथ मे ये जंगल भी मायावी ही लग रहा है। किसी इंसान को टूटकर प्यार करना बुरी बात नहीं है। लेकिन ऐसा प्यार का हकदार वही होता है जो उसके काबिल हो, मुझे बिल्कुल भी नहीं लगता कि मेघा इस बेपनाह प्यार के काबिल है, क्योंकि उसके दिल मे ध्रुव के लिए प्यार नामक कोई जज्बात हैं ही नहीं, वरन वो ध्रुव को ऐसे तड़पाती न अपनी याद में, ध्रुव के इस प्यार को देखकर उसे लौट आना चाहिए था।।

वैसे ध्रुव भी मेघा से एकतरफा प्यार करता है और वो इस प्यार में पागल हो चुका है।। उसे इन 2 वर्षों में इतना तो समझ जाना चाहिए कि मेघा उसके प्यार के लायक नहीं है। जिसे प्यार की कद्र ही नहीं है। चलो ये मान लिया जाए कि ध्रुव की ज़िंदगी मे मेघा की अहमियत ज्यादा है। लेकिन ध्रुव को यव भी याद रखना चाहिए कि मेघा के अलावा भी उसकी और भी ज़िन्दगी है। कम से कम अपने कार्यस्थल पर अपने सहकर्मियों से तो वार्तालाप करना चाहिए। अपनी परेशानियों को उनके साथ साझा करना चाहिए। लोग कहते हैं कि गम बांटने से कम होता है।

ध्रुव की वर्तमान स्थिति में उसके ऊपर ये शायरी बिल्कुल दुरुस्त बैठती है।।
एक शख्स की चाहत का अरमान रहा अक्सर।।
जो जानकर भी सबकुछ अनजान रहा अक्सर।।।

ये प्यार मोहब्बत का है क्या खेल कोई न जाने।।

कि जिसने टूटकर प्यार किया उसको नुकसान रहा अक्सर।।।
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
33,766
59,148
304
छठवाँ भाग

बहुत ही बेहतरीन कहानी।

आखिर ये मेघा है क्या।
इंसान है।
शैतान है।
पशु है।
पक्षी है।
हूर है।
ये दोजख से आई हुई कोई भटकती हुई आत्मा।
आखिर ये हैं क्या चीज़, जो बार बार कह रही है कि मुझे इंसानों की मदद नहीं करनी चाहिए थी, मेरी फितरत नहीं है किसी इंसान की मदद करना। आखिर उसके कहने का मतलब क्या है। वो कौन है।कहाँ से आई है। उसका मकसद क्या है। ये सब राज बना हुआ है।। वो ऐसे कैसे बोल सकती है कि उसने प्यार के बारे में पहली बार सुना है।।

इंसान से लेकर शैतान तक।
पशु से लेकर पक्षियों तक।
भूत पिशाच चुड़ैल
ऐसा कोई नहीं होगा जो प्यार के बारे में न जनता हो, अगर जनता नहीं होगा तो कम से कम सुना जरूर होगा,लेकिन यहां तो मेघा इस बात से साफ इंकार कर रही है, मेघा तो एक अनसुलझा रहश्य बनी हुई है। हर बढ़ते भाग के साथ ही मेघा के किरदार का राज और भी गहरा होता जा रहा है। सस्पेन्स और थ्रिल कहानी में बढ़ता जा रहा है। जल्दी से इस एड से पर्दा उठा दीजिए महोदय, नहीं तो क्रोसिन की गोली संघ लेकर कहानी आगे पढ़नी पड़ेगी।😀😃
किया है जिसे प्यार हमने ज़िन्दगी की तरह।।
वो आशना भी मिझसे मिला अजनबी की तरह।।

बढ़ा के प्यास मेरी उसने हाथ छुड़ा लिया।।
वो कर रहा था मोहब्बत भी दिल्लगी की तरह।।

किसे पता था कि बढ़ेगा और भी इंतजार मेरा।।
छुपेगा वो भी किसी बदली में चांदनी की तरह।।

कभी न सोचा था हमने उसके लिए।।
करेगा हमपर वो भी सितम हर किसी की तरह।।
 

Chutiyadr

Well-Known Member
16,915
41,669
259
Update - 01
_________________




हर एक पल रंज़-ओ-ग़म गवारा करके।
जी रहा हूं फक़त यादों का सहारा करके।।

हाल-ए-दिल मेरा समझता ही नहीं कोई,
बैठा है हर शख़्स मुझसे किनारा करके।।

तेरे बग़ैर मुझे रास न आएगी ये दुनियां,
देख लिया है मैंने हर सूं गुज़ारा करके।।

नींद आए कभी तो ख़्वाबों में देखूं तुझे,
जी नहीं लगता किसी का नज़ारा करके।।


ज़िन्दगी पहले भी बेरंग थी, ज़िन्दगी आज भी बेरंग है और न जाने कब तक ये ज़िन्दगी यूं ही बेरंग रहने वाली है। मैंने अपनी ज़िन्दगी को रंगों से भरने की बहुत कोशिश की लेकिन हर बार ऐसा ही हुआ है कि मेरी ज़िन्दगी मुझे बेरंग ही नज़र आई। मैं अक्सर सोचता था कि क्या मुझे कोई अभिशाप मिला है जिसकी वजह से मैं हर किसी की तरह खुश नहीं रह सकता? हलांकि इस दुनियां में खुश तो कोई नहीं है लेकिन मेरे अलावा बाकी लोगों को खुश रहने का कोई न कोई जरिया तो मिल ही जाता है। सबसे बड़ी बात तो ये भी है कि झूठ मूठ का ही सही लेकिन बाकी लोग खुश रहने का दिखावा तो कर ही लेते हैं किन्तु मेरी किस्मत में ऐसा दिखावा करना भी जैसे लिखा ही नहीं है।

पिछले दो साल में ऐसा कोई दिन नहीं गया जब मैंने उस जगह को खोजने की कोशिश न की हो जिस जगह पर मैंने एक ऐसी शख़्सियत के साथ जीवन के चंद दिन गुज़ारे थे जिसे देख कर मैं ये समझ बैठा था कि उसके साथ ही मेरी ज़िन्दगी की असल खुशियां हैं। कुदरत कभी कभी इंसान को खुली आँखों से ऐसे ख़्वाब दिखा देती है जो उसे कुछ पलों के लिए तो ख़ुशी दे देते हैं लेकिन उसके बाद जीवन भर का दर्द भी जैसे उन्हें सौगात में मिल जाता है। मुझे ऐसे दर्द से कोई शिकवा नहीं था बल्कि मैं तो यही चाहता था कि दर्द चाहे जितने भी मिल जाएं लेकिन जीवन में एक बार फिर से उसका दीदार हो जाए ताकि उसके खूबसूरत चेहरे को अपनी पलकों में और अपने दिल में बसा कर उसी के ख़यालों में ताऊम्र खोया रहूं।

"अब मुझे जाना होगा ध्रुव।" उसने प्यार से मेरे चेहरे को सहलाते हुए कहा था____"ऐसा पहली बार हुआ है कि मैंने किसी इंसान के साथ इतना वक़्त बिताया है।"

"ये..ये तुम क्या कह रही हो मेघा?" उसके जाने की बात सुन कर मेरी जान जैसे मेरे हलक में आ फंसी थी_____"तुम मुझे इस तरह छोड़ कर कैसे जा सकती हो?"

"मुझे जाना ही होगा ध्रुव।" मेघा ने पहले की भाँति ही मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा था_____"पिछले एक हप्ते से मैं तुम्हारे साथ यहाँ पर हूं। तुम्हारे ज़ख्म तो पहले ही ठीक हो गए थे लेकिन मैं तुम्हारे साथ इतने दिनों तक इसी लिए रह गई क्योंकि मेरी वजह से ही तुम मौत के मुँह में जाते जाते बचे थे। मैं खुद इस बात को नहीं जानती कि मैंने तुम्हारे लिए इतना कुछ क्यों किया जबकि मेरी फितरत में ऐसा करना है ही नहीं।"

"ऐसा मत कहो मेघा।" मेरी आवाज़ भारी हो गई थी____"मेरी नज़र में तुम दुनियां की सबसे खूबसूरत और सबसे नेकदिल लड़की हो। एक हप्ते पहले जो कुछ भी हुआ था वो महज एक हादसा ज़रूर था लेकिन उस हादसे ने मुझे तुमसे मिलाया। सच कहूं तो मैं उस हादसे के होने से बेहद खुश हूं क्योंकि अगर वो हादसा न होता तो मैं एक ऐसी लड़की से कैसे मिल पाता जिसे अब मैं टूट टूट कर प्यार करने लगा हूं। तुम नहीं जानती मेघा, इसके पहले मेरी ज़िन्दगी का कोई मतलब ही नहीं था। इसके पहले मेरी ज़िन्दगी में ना तो कोई रंग थे और ना ही कोई खुशियां थी। सच तो ये है कि मुझे अपनी ही ज़िन्दगी बोझ सी लगती थी। एक पल भी जीने की आरज़ू नहीं होती थी, फिर भी इस उम्मीद में जीता था कि शायद किसी दिन मेरी ज़िन्दगी में भी कोई खुशियों की बहार आए। तुम मिली तो अब मुझे ऐसा ही लगता है जैसे मेरी वीरान पड़ी ज़िन्दगी में खुशियों की बहार आ गई है। मैं अब तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं जी सकता मेघा और ना ही जीना चाहता हूं। इस तरह मुझे छोड़ कर जाने को मत कहो। मैं तुमसे भीख मांगता हूं, भगवान के लिए मुझे छोड़ कर कहीं मत जाओ।"

"मुझे इस तरह मोह के जाल में मत फंसाओ ध्रुव।" मेघा ने लरज़ते स्वर में कहा था____"तुम पहले इंसान हो जिसके साथ मैंने इतना वक़्त गुज़ार दिया है वरना मेरी फितरत तो ऐसी है कि मैं किसी के लिए भी ऐसे जज़्बात नहीं रखती। तुम बहुत अच्छे हो ध्रुव लेकिन एक सच ये भी है कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। अपने दिल से मेरे प्रति ऐसे ख़याल निकाल दो। मैं चाह कर भी ना तो तुम्हारे साथ रह सकती हूं और ना ही तुम्हारे इस पवित्र प्रेम को स्वीकार कर सकती हूं।"

"आख़िर क्यों मेघा?" उसकी बातें सुन कर मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े थे। कातर भाव से कहा था मैंने____"क्या मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं? क्या मुझमें कोई कमी है जिसके चलते तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकती? तुम बस एक बार बता दो मेघा, मैं तुम्हारे लिए अपने अंदर की हर कमी को दूर कर दूंगा।"

"नहीं ध्रुव।" उसने जल्दी से अपनी हथेली को मेरे मुख पर रख दिया था, फिर अधीर हो कर कहा_____"तुम में कोई कमी नहीं है बल्कि तुम तो ऐसे हो जिसके प्रेम को अगर कोई लड़की स्वीकार न करे तो वो बदनसीब ही कहलाएगी।"

"फिर क्यों मुझे छोड़ कर जाने की बात कह रही हो?" मैंने अपने एक हाथ से उसकी हथेली को अपने मुख से हटाते हुए कहा था____"ये जानते हुए भी कि मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं जी सकता, फिर क्यों मुझे छोड़ कर जाना चाहती हो?"

"कुछ सवालों के जवाब नहीं होते ध्रुव।" उसने कहीं खोए हुए अंदाज़ से कहा था____"काश! मेरी किस्मत में भी तुम्हारे साथ रहना लिखा होता। काश! विधाता ने मुझे तुम्हारे लायक बनाया होता। काश! तुम्हारे इस पवित्र प्रेम को स्वीकार कर के मैं भी तुम्हारे साथ एक नई किन्तु हसीन दुनियां बसा सकती।"

"मुझे समझ में नहीं आ रहा कि तुम ये क्या कह रही हो?" मैं उसकी बातें सुन कर बहुत ज़्यादा उलझन में पड़ गया था_____"आख़िर ऐसी कौन सी बात है कि तुम मेरे साथ नहीं रह सकती? अगर किसी तरह की कोई समस्या है तो हम दोनों मिल कर उस समस्या को दूर करेंगे ना।"

"ऐसा नहीं हो सकता ध्रुव।" उसने फीकी सी मुस्कान के साथ मेरा चेहरा अपनी कोमल हथेलियों में भर कर कहा_____"इस दुनियां में बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जिन पर किसी का अख़्तियार नहीं होता। ख़ैर, मैं बहुत खुश हूं कि मेरे जैसी लड़की के लिए तुम्हारे दिल में ऐसे खूबसूरत जज़्बात हैं। यकीन मानो, मुझे इस बात का बेहद रंज है कि मैं एक ऐसे इंसान को छोड़ कर जाने के लिए मजबूर हूं जो मुझे बेहद प्रेम करता है। काश! विधाता ने मुझे इस लायक बनाया होता कि मेरे नसीब में भी किसी इंसान से प्यार करना लिखा होता और मैं किसी इंसान के साथ जीवन गुज़ार सकती।"

मैं मूर्खों की तरह उस खूबसूरत लड़की की तरफ देखता रह गया था जिसका चेहरा उस वक़्त मुझे ऐसा नज़र आ रहा था जैसे वो अपने अंदर चल रहे किसी बहुत ही बड़े झंझावात से जूझ रही हो। मेरा जी चाहा कि बेड से उठ कर उसे अपने सीने से लगा लूं लेकिन मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सका। मेरे ज़ख्म तो पहले ही भर गए थे लेकिन जिस्म में कमजोरी का आभास हो रहा था इस लिए मैं बेबस भाव से उसकी तरफ बस देखता ही रह गया था।

✮✮✮

एक बार फिर से शाम ढल चुकी थी और मैं हमेशा की तरह आज भी इस उम्मीद में यहाँ आया था कि शायद आज मुझे वो जगह मिल जाए जिस जगह पर मैंने मेघा के साथ अपने जीवन के बहुत ही खूबसूरत पल बिताए थे। उसके साथ बिताए हुए चंद दिनों का ऐसा असर हुआ था कि पहले से ही बेरंग लगती मेरी ज़िन्दगी उसके बिना मुझे और भी ज़्यादा बेरंग लगने लगी थी। हर वक़्त दिल से यही दुआ करता था कि बस एक बार उसका दीदार हो जाए और मैं जी भर के उसे देख लूं लेकिन न पहले कभी मेरी दुआएं क़ुबूल हुईं थी और ना ही शायद आगे कभी क़ुबूल होने वाली थीं। मुझे मेरी बदनसीबी पर इतना एतबार जो था।

दिसंबर के आख़िर में ज़ोरों की ठण्ड होने लगती थी और कोहरे की धुंध ऐसी होती थी कि पांच फ़ुट की दूरी पर खड़ा ब्यक्ति भी आसानी से दिखाई नहीं देता था। इन दो सालों में मैंने इस पूरे क्षेत्र को अच्छी तरह छान मारा था लेकिन मुझे वो जगह नहीं मिली थी जिस जगह पर मैंने दो साल पहले मेघा के साथ एक हप्ता गुज़ारा था। ऐसा नहीं था कि मेरे ज़हन से उस जगह का नक्शा मिट चुका था बल्कि वो तो मुझे आज भी अच्छी तरह याद है लेकिन जाने क्यों मैं उस जगह को आज तक खोज नहीं पाया था। मैं अक्सर सोचता था कि क्या उस जगह को ज़मीन ने निगल लिया होगा या फिर आसमान खा गया होगा?

इन दो सालों में मेरी मानसिक हालत पागलों जैसी हो गई थी। मुझे दुनियां से और दुनियां वालों से जैसे कोई मतलब ही नहीं रह गया था। मैं आज भी सुबह काम पर जाता था और शाम से पहले ही काम से वापस आ जाता था। मेरे पास दिन का सिर्फ यही पहर होता था जब मैं उसकी खोज में इस क्षेत्र की वादियों में भटकता था। मुझे जानने पहचानने वाले लोग अक्सर मेरी पीठ के पीछे मेरे बारे में तरह तरह की बातें करते थे लेकिन मुझे उनसे और उनकी बातों से कभी कोई मतलब नहीं होता था। मुझे तो बस एक ही सनक सवार थी कि एक बार फिर से मुझे मेघा मिल जाए और मैं उसे जी भर के देख लूं। उसकी खोज में मैंने वो सब किया था जो मुझसे हो सकता था लेकिन दो साल गुज़र जाने के बाद भी ना तो मुझे उसका कोई सुराग़ मिल सका था और ना ही कहीं उसके होने की उम्मीद नज़र आई थी। इस सबके बावजूद मुझे इतना ऐतबार ज़रूर था कि वो जब भी मुझे मिलेगी तो यहीं कहीं मिलेगी, क्योंकि मुझे पूरा यकीन था कि यहीं पर कहीं आज भी उसका वजूद है।

शाम तो कब की ढल चुकी थी और गुज़रते वक़्त के साथ ठण्ड भी अपना ज़ोर दिखाती जा रही थी लेकिन मैं हाथ में बड़ी सी टार्च लिए मुसलसल आगे बढ़ता ही जा रहा था। हालांकि आसमान में चाँद खिला हुआ था किन्तु उसकी रौशनी कोहरे की गहरी धुंध को भेदने में नाकाम थी। मेरे चारो तरफ घना जंगल था और फ़िज़ा में रूह को थर्रा देने वाली सांय सांय की आवाज़ें गूँज रहीं थी लेकिन मेरे अंदर डर जैसी कोई बात नहीं थी। असल में मैं इन दो सालों में इस सबका आदी हो चुका था। अपने घर से बहुत दूर आ चुका था मैं और ये अक्सर ही होता था। कभी कभी ऐसा भी होता था कि मैं जंगल में ही थक कर सो जाता था और दिन निकलने पर जब मेरी आँखें खुलती तो वापस लौट जाता था, क्योंकि सुबह मुझे काम पर भी जाना होता था।

"मुझसे वादा करो ध्रुव कि तुम मुझे कभी भी खोजने की कोशिश नहीं करोगे।" दो साल पहले मेघा के द्वारा कहा गया ये वाक्य अक्सर मेरे कानों में गूँज उठता था_____"बल्कि मुझे भुलाने की कोशिश करते हुए तुम अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाओगे।"

"मैं तुमसे ऐसा वादा नहीं कर सकता मेघा।" मैंने दुखी भाव से कहा था____"मैं चाह कर भी तुम्हें भुला नहीं सकूंगा बल्कि सच तो ये है कि हर पल तुम्हारी याद में तड़पना ही जैसे मेरा मुक़द्दर बन जाएगा। क्या तुम्हें मेरी हालत पर ज़रा भी तरस नहीं आता? भगवान के लिए मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ। मेरा इस दुनिया में दूसरा कोई भी नहीं है।"

"ऐसी बातें मत करो ध्रुव।" मेघा ने अपनी आँखें बंद कर के मानो बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हालने की कोशिश की थी____"तुम्हारी ऐसी बातों से मेरा मुकम्मल वजूद कांप उठता है। तुम मेरी विवशता को नहीं समझ सकते। मैं तुम्हारे प्यार के लायक नहीं हूं और ना ही मेरी किस्मत में तुम्हारा साथ लिखा है।"

"आख़िर बार बार ऐसा क्यों कहती हो तुम?" मेघा के मलिन पड़े चेहरे की तरफ देखते हुए कहा था मैंने____"ऐसा क्यों लगता है तुम्हें कि तुम मेरे प्यार के लायक नहीं हो या तुम्हारी किस्मत में मेरे साथ रहना नहीं लिखा है? मुझे सच सच बताओ मेघा, आख़िर ऐसी कौन सी बात है?"

मेरे इस सवाल पर उसने बड़ी ही बेबसी से देखा था मेरी तरफ। उसकी गहरी आँखों में बड़ा अजीब सा सूनापन नज़र आया था मुझे। मैं अपने सवालों के जवाब की उम्मीद में उसी की तरफ अपलक देखता जा रहा था। लालटेन की धीमी रौशनी में भी उसका चेहरा चाँद की मानिन्द चमक रहा था। उसके सुर्ख होठ ताज़े खिले हुए गुलाब की पंखुड़ियों जैसे थे। कमर के नीचे तक बिखरे हुए उसके घने काले रेशमी बाल मानो घटाओं को भी मात दे रहे थे। उसके सुराहीदार गले में एक ऐसा लॉकेट था जिसमें गाढ़े नीले रंग का किन्तु बड़ा सा नगीने जैसा पत्थर था।

"क्या हुआ?" उसे गहरी ख़ामोशी में डूबा हुआ देख मैंने उससे कहा था____"तुम इस तरह ख़ामोश क्यों हो जाती हो मेघा? मुझे बताती क्यों नहीं कि ऐसी कौन सी बात है जिसकी वजह से तुम मेरे साथ नहीं रह सकती?"

मेरी बात सुन कर उसने एक बार फिर से मेरी तरफ बेबसी से देखा और फिर मेरे चेहरे के एकदम पास आ कर उसने जो कुछ कहा उसने मेरे मुकम्मल वजूद को हिला कर रख दिया था। मेरी हालत उस बुत की तरह हो गई थी जिसमें कोई जान नहीं होती। हैरत से फटी आँखों से मैं बस उसे ही देखे जा रहा था, जबकि वो अपने चेहरे को ऊपर कर के मेरी तरफ इस तरह देखने लगी थी जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो।

अभी मैं मेघा के ख़यालों में ही खोया हुआ था की तभी मेरे बगल से कोई इतनी तेज़ रफ़्तार से निकल कर भागा कि एक पल के लिए तो मेरी रूह तक फ़ना होती हुई महसूस हुई। मैंने बौखला कर तेज़ी से टार्च का फोकस उस तरफ को किया जिस तरफ से कोई बड़ी तेज़ी से भागता हुआ गया था। टार्च के तेज़ प्रकाश में भाग कर जाने वाला तो नहीं दिखा, अलबत्ता कोहरे की गहरी धुंध ज़रूर दिखी। ठण्ड इतनी थी कि घने जंगल में होने के बावजूद मैं रह रह कर कांप उठता था। हालांकि ठण्ड से खुद को बचाने के लिए मैंने अपने जिस्म में कई गर्म कपड़े डाल रखे थे। मैंने महसूस किया कि आज कोहरे की धुंध पिछले दिनों की अपेक्षा कुछ ज़्यादा ही थी और शायद यही वजह थी कि मुझे अपने सामने नज़र आने वाला हर रास्ता अंजान सा लग रहा था।

जब से मेघा मुझे छोड़ कर गई थी तब से ऐसा कोई दिन नहीं गुज़रा था जब मैंने उसकी खोज न की हो या उसका पता न लगाया हो। शुरुआत में तो मैं उसके बारे में दूसरों से भी पूछता था और हर जगह उसे खोजता भी था। यहाँ तक कि दूसरे शहरों में जा कर भी उसकी तलाश की थी लेकिन मुझे मेघा का कहीं कोई सुराग़ तक न मिला था। ऐसा लगता था जैसे सच में वो कोई ऐसा ख़्वाब थी जिसको मैंने खुली आँखों से देखा था। एक वक़्त ऐसा आ गया था जब लोग मुझे देखते ही मुझसे किनारा करने लगे थे। ऐसा शायद इस लिए कि वो मुझे पागल समझने लगे थे और नहीं चाहते थे कि वो किसी पागल की बातें सुनें। मेरी जगह कोई दूसरा होता तो पहले ही मेघा का ख़याल अपने दिल से निकाल कर ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाता लेकिन मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सका था। सच तो ये था कि मैं मेघा को अपने दिलो दिमाग़ से निकालना ही नहीं चाहता था। मेरे जीवन में एक वही तो ऐसी थी जिसे देख कर मैंने ये महसूस किया था कि वो मेरा सब कुछ है और मेरी वीरान पड़ी ज़िन्दगी सिर्फ उसी के द्वारा संवर सकती थी। मैं जानता हूं कि मेरा ऐसा सोचना महज बेवकूफ़ी के सिवा कुछ नहीं था लेकिन अपने दिल को मैं किसी भी कीमत पर समझा नहीं सकता था।

टार्च की रौशनी में आगे बढ़ते हुए अचानक ही मैं खुले मैदान में आ गया। यहाँ पर चाँद की रौशनी में कोहरे की गहरी धुंध मुझे साफ़ दिख रही थी। अपनी जगह पर रुक कर मैंने दूर दूर तक देखने की कोशिश की लेकिन धुंध की वजह से मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया। मैंने महसूस किया कि इस जगह पर मैं पहली बार आया हूं और ये वो जगह नहीं है जहां पर दो साल पहले मैं मेघा के साथ उसके अजीब से घर में एक हप्ते रहा था। मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है कि पत्थर के बने उस अजीब से मकान के चारो तरफ घने पेड़ पौधे थे और पास में ही कहीं से किसी झरने से पानी बहने की आवाज़ आती थी।

✮✮✮
Too good , bahut intresting story hai :thumbhole:👍
 

Chutiyadr

Well-Known Member
16,915
41,669
259
Abhi tak ki kahani bahut hi sundar hai..
Sabse sunder aapki writing.. :good:
Suspense bhi khoob hai ki aage kya hoga..
Naye update ka intjaar rahega
 
10,269
43,139
258
छठवाँ भाग

बहुत ही बेहतरीन कहानी।

आखिर ये मेघा है क्या।
इंसान है।
शैतान है।
पशु है।
पक्षी है।
हूर है।
ये दोजख से आई हुई कोई भटकती हुई आत्मा।
आखिर ये हैं क्या चीज़, जो बार बार कह रही है कि मुझे इंसानों की मदद नहीं करनी चाहिए थी, मेरी फितरत नहीं है किसी इंसान की मदद करना। आखिर उसके कहने का मतलब क्या है। वो कौन है।कहाँ से आई है। उसका मकसद क्या है। ये सब राज बना हुआ है।। वो ऐसे कैसे बोल सकती है कि उसने प्यार के बारे में पहली बार सुना है।।

इंसान से लेकर शैतान तक।
पशु से लेकर पक्षियों तक।
भूत पिशाच चुड़ैल
ऐसा कोई नहीं होगा जो प्यार के बारे में न जनता हो, अगर जनता नहीं होगा तो कम से कम सुना जरूर होगा,लेकिन यहां तो मेघा इस बात से साफ इंकार कर रही है, मेघा तो एक अनसुलझा रहश्य बनी हुई है। हर बढ़ते भाग के साथ ही मेघा के किरदार का राज और भी गहरा होता जा रहा है। सस्पेन्स और थ्रिल कहानी में बढ़ता जा रहा है। जल्दी से इस एड से पर्दा उठा दीजिए महोदय, नहीं तो क्रोसिन की गोली संघ लेकर कहानी आगे पढ़नी पड़ेगी।😀😃

किया है जिसे प्यार हमने ज़िन्दगी की तरह।।
वो आशना भी मिझसे मिला अजनबी की तरह।।

बढ़ा के प्यास मेरी उसने हाथ छुड़ा लिया।।
वो कर रहा था मोहब्बत भी दिल्लगी की तरह।।

किसे पता था कि बढ़ेगा और भी इंतजार मेरा।।
छुपेगा वो भी किसी बदली में चांदनी की तरह।।

कभी न सोचा था हमने उसके लिए।।
करेगा हमपर वो भी सितम हर किसी की तरह।।
क्या बात है माही जी !
आपने तो मौसम बदल दिया । :D
बेहतरीन कविता लिखा है आपने । आउटस्टैंडिंग ।
 
10,269
43,139
258
Abhi tak ki kahani bahut hi sundar hai..
Sabse sunder aapki writing.. :good:
Suspense bhi khoob hai ki aage kya hoga..
Naye update ka intjaar rahega
Welcome back Doctor Sahab.
Bahut dino baad aap ko dekha. Bahut badhiya laga.
Abb jaldi se apni thread pe hame le chaliye. :D
 

Chutiyadr

Well-Known Member
16,915
41,669
259
Welcome back Doctor Sahab.
Bahut dino baad aap ko dekha. Bahut badhiya laga.
Abb jaldi se apni thread pe hame le chaliye. :D
Abhi itminaan se stories padhunga, fir nayi story hi shuru karunga ,purani ko aage badhane ki abhi himmat nahi ho rahi,bahut ulajh gayi hai wo story...
 
15,615
32,145
259
lovely update ..megha ko sochne par majbur kar diya prem ke baare me dhruv ne .
par ye abhi bhi ek paheli hai ki megha hai kaun 🤔🤔..
har baar wo yahi kehti hai ki insano me uski dilchaspi nahi hai .
jharne ko 2 baar dekh liya aaj dhruv ne aur ab wo dusri side hai jharne ke par kya usko wo makan milega 🤔..
 
Top