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Fantasy Dark Love (Completed)

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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Aadhyatmik man wale apna naam kamdev nahi rakhte aur na hi moksh pradaan karne ka jhootha vachan dete hain :lol:
Kamdev bhi adhyatmik hain aur moksh bhi :approve:
Bahut badi jimmedari hai aapke upar aur is bare me aapne pahle bhi bataya tha. Ye achhi baat hai ki sabke bare me itne achhe khayaal hain aapke man me aur sath hi apne bete ko is laayak banana chahte hain ki wo ghar baithe hi aisa kuch kar sake jiski vajah se uska bhi jeewan sukhmay ho aur uske karmo se aapka naam bhi roshan ho. Main ishwar se dua karta hu ki aap jaisa chaahte hain waisa hi ho. :pray:
Nam na sahi sirf kam hi roshan ho jaye... Wohi kafi hai....
Meine apne jivan me kabhi naukri nahi ki.. Aur bete ko bhi nahi karana chahta,
Wo business, politics ya lobbying kuchh bhi kar le
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए.
kintu mobile ke sath familiar hona zaruri hai. Zaahir hai agar laptop kharab hai to mobile ke dwara hi yaha aagman hota hoga aur daily 100+ stories ko aapke dwara padha jata hai to ye baat hajam nahi hoti ki jab mobile ke dwara itna time yaha spend kiya jata hai to reviews kyo nahi diya jata? Khair iska bhi koi na koi bahana aapke paas ready hoga. Jaane dijiye....aap apni family par concentrate kijiye... :good:
Bhai saikdo kahaniya nahi padh pata ab roj... Sirf apne kuchh favourite writers ko hi padhta hu...jaise ki aap, Champ_AK_81 RASCAL420 aur Swaraj bhai
Lekin Unme se bhi kuchh chhoot jate hain... Jaise ki nain11ster avsji Rockstar_Rocky Mahi Maurya aur Shikari_golu bhai logo ki kahaniya waiting list me hain... Pending

Kya karu... Time nahi mil pata..... Lekin ummeed hai agle mahine free ho jaunga bete ke exams aur company ke registration ke baad dusro ko jimmedariyan saunp kar
 

Shikari_golu

Well-Known Member
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Kamdev bhi adhyatmik hain aur moksh bhi :approve:

Nam na sahi sirf kam hi roshan ho jaye... Wohi kafi hai....
Meine apne jivan me kabhi naukri nahi ki.. Aur bete ko bhi nahi karana chahta,
Wo business, politics ya lobbying kuchh bhi kar le
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए.

Bhai saikdo kahaniya nahi padh pata ab roj... Sirf apne kuchh favourite writers ko hi padhta hu...jaise ki aap, Champ_AK_81 RASCAL420 aur Swaraj bhai
Lekin Unme se bhi kuchh chhoot jate hain... Jaise ki nain11ster avsji Rockstar_Rocky Mahi Maurya aur Shikari_golu bhai logo ki kahaniya waiting list me hain... Pending

Kya karu... Time nahi mil pata..... Lekin ummeed hai agle mahine free ho jaunga bete ke exams aur company ke registration ke baad dusro ko jimmedariyan saunp kar

Are kamdev99008 bhai......explain karne ki koi jaroorat hi nhi.....jab faltu time ho tabhi padhna....bcoz real time is far imp then dis vertual world....

Jab extra time hota hai....tabhi koi likhta hai....aur tabhi padhta hai....aur tabhi hi kisi se kuch baat karta hai....

Maine bhi mahino se koi story nhi read ki...bas likhne aur reply dene ka hi time mil pata hai....

So, carry on wid ur life....will wait for ur free waste time...ok...


Sab yahi karte hai.....bas kuch ko chhod kar....jo madam hone ka dava kar ke sir log baithe hai na yaha.....unka to working hour hi yahi hota hai....samjh hi gaye hoge.....:wink::wink::wink:
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Kya karu... Time nahi mil pata..... Lekin ummeed hai agle mahine free ho jaunga bete ke exams aur company ke registration ke baad dusro ko jimmedariyan saunp kar
Intzaar rahega :hug:
 

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
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Kamdev bhi adhyatmik hain aur moksh bhi :approve:

Nam na sahi sirf kam hi roshan ho jaye... Wohi kafi hai....
Meine apne jivan me kabhi naukri nahi ki.. Aur bete ko bhi nahi karana chahta,
Wo business, politics ya lobbying kuchh bhi kar le
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं,
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए.

Bhai saikdo kahaniya nahi padh pata ab roj... Sirf apne kuchh favourite writers ko hi padhta hu...jaise ki aap, Champ_AK_81 RASCAL420 aur Swaraj bhai
Lekin Unme se bhi kuchh chhoot jate hain... Jaise ki nain11ster avsji Rockstar_Rocky Mahi Maurya aur Shikari_golu bhai logo ki kahaniya waiting list me hain... Pending

Kya karu... Time nahi mil pata..... Lekin ummeed hai agle mahine free ho jaunga bete ke exams aur company ke registration ke baad dusro ko jimmedariyan saunp kar

Sir ji,

Main jaanta hun ki aap is smy vyast hain or main iske liye aap se koi shiqayat nahin karta. Haan ek request jarryr hai apase ki jab main kahani khtm karun (jo ki jld hi hone waali hai) to mere antim post ko padhne ka smay avshy nikaalna. Mere liye bas wahi post jarruri hai, baaki aapko jab samay lage aap updates padh lena.
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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Update - 10
_________________





किसी चीज़ के द्वारा मुझे तेज़ दर्द हुआ तो एक झटके से मेरी आँखें खुल ग‌ईं। पहले तो मुझे कुछ समझ न आया किन्तु कुछ समय बाद जब ज़हन सक्रिय हुआ तो मुझे तीव्र झटका लगा। मेरी आँखों के सामने एक अलग ही मंज़र नज़र आ रहा था। मैंने चारो तरफ नज़र घुमा घुमा कर देखा और खुद की हालत का जब मुझे एहसास हुआ तो मेरे पैरों तले से ज़मीन गायब हो गई। हालांकि ज़मीन तो पहले ही गायब थी क्योंकि मैं ज़मीन पर था ही नहीं। मेरा पूरा जिस्म मोटी मोटी ज़ंजीरों में बंधा हुआ था और मैं ज़मीन से ऊपर हवा में सीधा लटक रहा था। मेरे सामने मेरी ही तरह ज़ंजीरों में बंधी मेघा लटक रही थी। उसकी हालत मेरी ही तरह ख़राब थी। उसे इस हालत में देख कर मेरा दिल मेरी आत्मा तक थरथरा उठी। इस वक़्त उसकी आँखें बंद थीं और उसका सिर नीचे की तरफ झुका हुआ था। जिस्म पर वही राजकुमारियों जैसा लिबास था जैसा मैंने दो साल पहले उसे पहने देखा था।

खुद को और अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी मेघा को इस हाल में देख कर मैं स्तब्ध रह गया था। कहां इसके पहले मैं उसके साथ किन्हीं खूबसूरत वादियो में हमारे प्रेम की दुनिया बसाने जा रहा था और कहां इस वक़्त मैं और वो ज़ंजीरों में बँधे लटक रहे थे। ये वही हाल था जिसे मैंने सपने में देखा था और जहां पर मैं मरी हुई मेघा को अपने कलेजे से छुपकाए चीख रहा था। मुझे इस एहसास के साथ ही झटका लगा कि एक बार फिर से मैं सपने में चला गया था। वो सपना ही तो था जिसमें मेघा मुझे किन्हीं खूबसूरत वादियों में ले गई थी और हम दोनों वहां पर अपने पवित्र प्रेम की दुनिया बसाने वाले थे। आँखों के सामने वो खूबसूरत मंज़र उजागर हुआ तो दिल तड़प कर रह गया और आँखों से आंसू छलक पड़े। आँखें बंद कर के मैंने मन ही मन ऊपर वाले से कहा कि मेरे साथ इस तरह का मज़ाक क्यों? आख़िर किस गुनाह की सज़ा मिल रही है मुझे? क्यों मेरी किस्मत को इस तरह से लिखा है कि मुझे अपनी ज़िन्दगी में कभी एक पल के लिए भी ख़ुशी नहीं मिल सकती? मेघा नाम की एक लड़की मिली जिसके प्रति दिल में बेपनाह मोहब्बत भर दी और अब उसकी जुदाई के दर्द में मुझे तिल तिल कर तड़पा रहे हो...आख़िर क्यों?

जाने कितनी ही देर लगी मुझे इस सदमे से उबरने में। आँखें खोल कर मैंने सामने मेघा की तरफ देखा। वो वैसे ही नीचे की तरफ सिर झुकाए ज़ंजीरों में बंधी लटक रही थी। जिस्म पर मौजूद राजकुमारियों जैसा लिबास जगह जगह से फटा हुआ और मैला नज़र आ रहा था। ज़ाहिर था उसके साथ किसी ने बहुत ज़्यादा अत्याचार किया था। अचानक ही मेरे ज़हन में एक ख़याल बिजली की तरह कौंधा। सपने में तो मेघा के पेट में बड़ा सा खंज़र घुसा हुआ था और उसके पेट से काले रंग का खून निकल रहा था। मैंने मेघा के पेट की तरफ नज़र डाली और ये देख कर चौंका कि उसके पेट में ना तो कोई खंज़र घुसा हुआ था और ना ही काले रंग का खून निकल रहा था। सपने में उसने लेदर के काले कपड़े पहन रखे थे जो कि चुस्त दुरुस्त थे किन्तु इस वक़्त उसके जिस्म पर वो कपड़े नहीं थे। इसका मतलब सपने में मैंने जो कुछ देखा था वो सब सिर्फ़ सपना ही था जो कि सच नहीं था।

मन ही मन ये सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई कि भला कहीं सपने भी सच होते हैं? ये सोच कर जहां एक तरफ मुझे ये जान कर ख़ुशी हुई कि मेघा जीवित है वहीं ये सोच कर तकलीफ़ भी हुई कि जिन खूबसूरत वादियों में मैं मेघा के साथ अपने प्रेम का संसार बसाने वाला था वो सब महज एक सपना था। इस एहसास के चलते दिल को तकलीफ़ तो हुई लेकिन वो तकलीफ़ इस सच से बहुत मामूली साबित हुई कि मेघा जीवित है। अब सवाल ये था कि वो और मैं इस हालत में कैसे थे? आख़िर किसने हम दोनों को इस हाल में पहुंचाया?

मैंने हाल में चारो तरफ निगाह दौड़ाई। चारो तरफ की दीवारों में बने कुंडे पर बड़े बड़े मशाल जलते हुए दिख रहे थे। हाल के ऊपर वैसा ही बड़ा सा झूमर लटक रहा था जैसा मैंने सपने में देखा था। एक तरफ बाहर जाने के लिए बड़ा सा गलियारा था और दूसरी तरफ ऊपर के फ्लोर में जाने के लिए चौड़ी सीढ़ियां जो ऊपर दोनों तरफ की बालकनी में मुड़ जाती थीं। मैंने चारो तरफ निगाह घुमाई लेकिन मेरे और मेघा के अलावा तीसरा कोई नज़र नहीं आया। ज़हन में सवालों का भण्डार लगता जा रहा था लेकिन जवाब देने वाला कोई न था। ऐसी हालत में दिलो दिमाग़ में एक भय भी भरता जा रहा था। दिल की धड़कनें कभी थम जातीं तो कभी अनायास ही तेज़ हो जाती थीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या था और क्यों था? ज़हन में ये विचार भी उभर आता कि कहीं मैं फिर से कोई सपना तो नहीं देखने लगा हूं?

मेघा को उस हाल में देख कर मेरा दिल बुरी तरह ब्यथित हो रहा था। मेरा जी कर रहा था कि मैं ज़ंजीरों को तोड़ कर मेघा के पास पहुंच जाऊं और उसे ज़ंजीरों से निकाल कर अपने कलेजे से लगा लूं लेकिन ये सब करना मेरे अख़्तियार में नहीं था। मुझसे रहा न गया तो मैं पूरी शक्ति से हलक फाड़ कर चिल्लाया। मेरी चीख का मेघा पर तो कोई असर न हुआ लेकिन फ़िज़ा में अचानक ही हलचल महसूस हुई। कुछ ही देर में ऊपर के माले में कई ऐसे लोग नज़र आए जिन्हें देख कर मेरे जिस्म का रोयां रोयां डर से थर्रा गया।

"तो होश आ गया तुम्हें?" उनमें से एक ने अपनी भारी आवाज़ में कहा____"बहुत खूब। मैं तुम्हारे होश में आने का ही इंतज़ार कर रहा था लड़के।"

"कौन हो तुम?" मैं अंदर से तो बेहद डर गया था लेकिन हिम्मत कर के पूंछ ही लिया____"और मुझे यहाँ पर इस तरह ज़ंजीरों में बाँध कर क्यों लटकाया हुआ है? आख़िर क्या चाहते हो मुझसे?"

"तुम्हारा खून।" वो मुस्कुराते हुए अजीब अंदाज़ में बोला_____"तुम्हारा खून चाहिए मुझे।"
"खू...खून???" उसकी बात सुन कर मेरी आवाज़ लड़खड़ा गई थी।

"हां लड़के, तुमने बिल्कुल ठीक सुना।" वो सीढ़ियों से नीचे की तरफ उतरते हुए बोला_____"लेकिन सिर्फ़ तुम्हारे खून से ही काम नहीं होगा इस लिए तुम्हारे खून में उसके खून को भी शामिल करना होगा जो तुम्हारे सामने तुम्हारी ही तरह ज़ंजीरों में बंधी लटक रही है।"

"ये..ये क्या कह रहे हो तुम?" मैं उसकी बात सुन कर बुरी तरह हकला गया था____"नहीं नहीं, तुम मेरी मेघा के साथ कुछ भी उल्टा सीधा नहीं कर सकते। तुम्हें खून ही चाहिए न तो मेरे जिस्म का एक एक बूँद खून ले लो। बस मेरी मेघा को छोड़ दो, मैं उसे इस हाल में नहीं देख सकता।"

"देखा वीर।" उस शख़्स ने ऊपर बालकनी में खड़े एक दूसरे आदमी की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा____"मैंने कहा था न कि ये मेरी बहन के प्रेम में कुछ भी करने को तैयार हो जाएगा।"

"हां रुद्र।" वीर नामक उस शख़्स ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"तुम्हारा कहना बिल्कुल सही था लेकिन सिर्फ़ इसके तैयार होने बस से क्या होगा। उसके लिए तो मेघा का तैयार होना भी ज़रूरी है और तुम अच्छी तरह जानते हो कि वो इसके लिए किसी भी कीमत पर राज़ी नहीं हो रही है। पिछले दो साल से हमारी कोशिश नाकाम ही होती रही है।"

"लेकिन अब ऐसा नहीं होगा वीर।" रूद्र ने शख़्त भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"क्योंकि इतना तो तुम भी जानते हो कि प्रेम में जहां बेपनाह ताक़त होती है वहीं बेपनाह निर्बलता भी होती है। अभी तक हम इस लिए नाकाम होते रहे थे क्योंकि ये हमारे हाथ नहीं लगा था। पिछले दो साल से मेरी ये बहन इसके चारो तरफ सुरक्षा कवच बनाए हुए थी लेकिन अब हम इसके सुरक्षा घेरे को तोड़ने में कामयाब हो चुके हैं। पहले मेरी बहन ये सोच कर बेफ़िक्र थी कि हम इसके प्रेमी को कोई चोट नहीं पहुंचा सकते किन्तु अब ऐसा नहीं है। अब ये अपने प्रेमी के लिए हर वो काम करने को तैयार होगी जो करने के लिए हम इससे कहेंगे।"

"बात तो ठीक है रुद्र।" वीर ने मेघा की तरफ निगाह डालते हुए शख़्त भाव से कहा____"लेकिन अपने पिता की जगह इस मामूली इंसान को इसने जो सबसे ज़्यादा एहमियत दी ये ठीक नहीं किया इसने। हमारे प्रेम का नाजायज़ फ़ायदा उठाया है इसने।"

"शान्त हो जाओ दोस्त।" रूद्र ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं भी जानता हूं कि इसने ये सब कर के ठीक नहीं किया है क्योंकि किसी इंसान से प्रेम करना हमारा काम नहीं है बल्कि हमारा काम तो इंसानों का खून पीना है, ताकि हम अनंत काल तक जीवित रह सकें। मेरी बहन ने जो किया वो प्रेम में मजबूर हो कर किया। तुम नहीं समझोगे वीर, प्रेम किसी भी प्राणी को बदल देने की क्षमता रखता है। एक बार मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है और इसी लिए मैं इस बात को समझता हूं। यही वजह है कि मैंने इन दो सालों में कभी भी अपनी इस बहन को उस तरह से मजबूर नहीं किया जैसे कि इन हालातों में करना चाहिए था। दूसरी महत्वपूर्ण बात ये भी है कि हम नियति के हाथों मजबूर थे। मेरे पिता को फिर से जीवित करने का बस यही एक रास्ता था। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि आख़िर उनके जीवित होने की यही एक शर्त क्यों है?"

रुद्र और वीर आपस में बातें कर रहे थे और मैं चकित भाव से तथा ख़ामोशी से उनकी बातें सुन रहा था। उनकी बातों से मुझे भी ये पता चल रहा था कि मेघा ने इन दो सालों में मेरे लिए क्या किया था और क्यों उसने मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं किया था? मैं इस सबके बारे में पूरा सच जानना चाहता था इस लिए मैं ख़ामोशी से उन दोनों की बातें सुनता जा रहा था।

"मैंने भी इसी लिए आज तक मेघा के साथ कभी वैसा शख़्त बर्ताव नहीं किया।" वीर ने कहा____"क्योंकि वो तुम्हारी बहन है। तुम मेरे दोस्त हो और इस नाते वो मेरी भी बहन है लेकिन तुम्हारी तरह मैं भी इस बात को नहीं समझ पा रहा हूं कि आख़िर तुम्हारे पिता को जीवित करने की ऐसी शर्त क्यों है? आख़िर ऐसा क्यों है कि बाहरी दुनिया के किसी मामूली इंसान से उनकी खुद की बेटी का प्रेम सम्बन्ध बने और उस प्रेम सम्बन्ध के चलते ही उस इंसान के खून द्वारा हमारे पितामह अनंत का शरीर पुनः जीवित हो?"

"इस रहस्य को तो पिता जी ही बता सकते हैं।" रूद्र ने कहा____"मुझे तो उन्होंने अपने अंतिम समय में बस यही बताया था कि उनके पुनः जीवित होने की यही एक मात्र शर्त है। मैं उनसे इसके बारे में पूछना चाहता था लेकिन उनके पास समय ही नहीं था। आज इस बात को गुज़रे हुए क़रीब सौ साल गुज़र गए हैं। उन्होंने ये भी कहा था कि इस बारे में मेघा को पता नहीं चलना चाहिए। उनका कहना था कि एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब मेघा को बाहरी दुनिया का कोई ऐसा इंसान मिलेगा जिसे वो मारेगी नहीं बल्कि वो उसे अपने साथ ले आएगी और फिर उसे उस इंसान से प्रेम हो जाएगा। हम मेघा को इस बारे में तभी बताएँगे जब वो उस इंसान से प्रेम करने लगे। मेघा और उसके प्रेमी की रज़ामंदी से ही सारी प्रक्रिया होगी। अगर उन दोनों की रज़ामंदी नहीं होगी तो उस इंसान के खून का कोई असर नहीं होगा।"

"बड़ी विचित्र बात है।" वीर सीढ़ियों की तरफ बढ़ता हुआ बोला_____"पितामह को ये सारी बातें पहले से ही कैसे पता थीं कि आने वाले समय में ऐसा ही होगा? ज़रूर इस बारे में भी कोई रहस्य होगा।"

"वो सब छोड़ो।" रूद्र ने कहा____"हमे अब ये सोचना है कि इनके साथ क्या किया जाए?"
"करना क्या है।" वीर ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मेघा को तो हमने इसके लिए बहुत मनाया जिसका नतीजा ये निकला कि वो इस सबके लिए तैयार ही नहीं हुई। अब हमें इस लड़के के द्वारा ही मेघा को मजबूर करना होगा।"

"क्या करने वाले हो तुम लोग मेरी मेघा के साथ?" मैं घबरा कर एकदम से बोल पड़ा था।
"हमारी बातें तो तुमने सुन ही ली होंगी।" रूद्र ने गहरी मुस्कान के साथ कहा_____"हमारा मकसद भी यही था कि तुम हमारे द्वारा ये जान लो कि तुम और मेघा यहाँ पर किस हाल में हो और किस लिए हो? अब ये तुम पर है कि अपने प्रेम के लिए खुद का बलिदान करते हो या नहीं?"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैं घबराहट के मारे उलझ सा गया था_____"आख़िर किस तरह का बलिदान चाहते हो मुझसे?"
"ज़रूर बताएँगे लड़के।" रूद्र ने मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा____"लेकिन उसके अहले ये तो बताओ कि क्या तुम्हें मेरी बहन मेघा की असलियत के बारे में पता है? क्या उसने तुम्हें बताया है कि वो असल में कौन है?"

"हां, मुझे उसकी असलियत के बारे में पता है।" मैंने हिम्मत कर के कहा____"मेरे ज़ोर देने पर उसने मुझे अपने बारे में सब कुछ बताया था।"

"अच्छा।" वो ब्यंगात्मक भाव से मुस्कुराया____"यानि उसकी असलियत जान लेने के बाद भी तुम उससे प्रेम करते हो?"
"मेरा प्रेम किसी ब्यक्ति विशेष के किसी सच या झूठ से ना तो बदल सकता है और ना ही मिट सकता है।" मैंने बड़े गर्व से कहा____"मेघा से मैं सच्चे दिल से प्रेम करता हूं। उसकी असलियत से मुझे ना पहले कोई फ़र्क पड़ा था और ना ही आगे कभी कोई फ़र्क पड़ेगा।"

"कमाल है।" वीर मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुराया_____"अगर ऐसा है तो फिर तुम अपने प्रेम के लिए कुछ भी कर सकते हो...है ना?"
"बिल्कुल।" मैं अंदर ही अंदर उसकी बात सुन कर थोड़ा घबरा गया था लेकिन फिर एकदम से निडर हो कर बोल पड़ा था_____"मैं उसके लिए कुछ भी कर जाऊंगा लेकिन सिर्फ़ इसी शर्त पर कि तुम लोग मेरी मेघा के साथ कुछ भी बुरा नहीं करोगे।"

"भाई रुद्र।" वीर ने पलट कर रूद्र से कहा____"पहली बार ऐसा इंसान देखा है जो इतना भोला है और इतना सच्चा भी है। क्या सच में प्रेम ऐसा होता है कि उसके लिए कोई इंसान कुछ भी करने को तैयार हो जाए?"

"तुम्हें आज तक किसी से प्रेम नहीं हुआ वीर इसी लिए तुम्हें प्रेम के क्रिया कलापों पर हैरानी और अविश्वास हो रहा है।" रूद्र ने कहा____"जबकि सच यही है कि अगर प्रेम सच्चा हो तो प्रेम करने वाला अपने प्रेमी के लिए कुछ भी कर जाता है।"

"अगर ऐसी बात है तो इससे कहो कि ये अपने प्रेम के लिए खुद को बलिदान करे।" वीर ने शख़्त लहजे में कहा_____"इसे अपने प्रेम की ख़ातिर मेघा को इस बात के लिए राज़ी करना होगा कि वो भी इसके साथ ख़ुशी ख़ुशी हमारे पितामह अनंत को शर्तों के अनुसार अपने प्रेमी का खून दे कर जीवित करे।"

"नहीं.....।" पूरे हाल में एक चीख गूँज उठी। मेरे साथ साथ वीर और रूद्र ने भी चौंक कर आवाज़ की तरफ देखा था। वो मेघा की चीख थी। शायद अब तक वो अचेत अवस्था में थी। ज़ंजीरों में बंधी वो बुरी तरह छटपटा रही थी।

"मेघा....।" उसे इस तरह छटपटाते देख मेरा दिल तड़प उठा और मैं ज़ोर से चिल्लाया_____"तुम ठीक तो हो न मेघा? मुझे लगा मैंने अपनी मेघा को हमेशा के लिए खो दिया है। भगवान का लाख लाख शुक्र है कि तुम जीवित हो।"

"तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था ध्रुव।" मेघा ने दुखी भाव से कहा_____"ये लोग तुम्हें मार डालेंगे।"
"तुम्हारे बिना तो मैं वैसे भी जीना नहीं चाहता मेघा।" मैंने तड़प कर कहा____"दिल में बस एक बार तुम्हें देख लेने की हसरत थी, इसी लिए अब तक जीवित हूं। तुम्हें देख लेने के बाद अब अगर मौत भी आती है तो हंसते हंसते उसे स्वीकार कर लूंगा।"

"ऐसा मत कहो ध्रुव।" मेघा की आँखों से आंसू छलक पड़े____"और मुझे इसके लिए माफ़ कर दो कि मेरी वजह से तुम्हें अब तक इतने दुःख सहने पड़े। मुझे इसके लिए भी माफ़ कर दो कि मैंने तुम्हारे पवित्र प्रेम को स्वीकार नहीं किया लेकिन ध्रुव, मैंने ऐसा इसी लिए नहीं किया था क्योंकि मैं तुम्हें किसी भी तरह के संकट में नहीं डालना चाहती थी।"

"हां, मैं जानता हूं मेघा।" मैंने लरज़ते हुए स्वर में कहा_____"मैं शुरू से ही जानता था कि तुम भी मुझसे बेहद प्रेम करती हो। वो तो तुम्हारी कोई मज़बूरी ही थी जिसकी वजह से तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर रही थी लेकिन मेघा, तुम अपने इस ध्रुव को समझ ही नहीं पाई और ना ही प्रेम के मर्म को ठीक से समझा है। मैंने तुमसे कहा था ना कि प्रेम करने वाले किसी भी अंजाम की परवाह नहीं करते थे बल्कि वो तो हर हाल में प्रेम करते हैं। अगर साथ में जी नहीं सकते तो साथ में मर कर दुनिया में अमर हो जाते हैं।"

"मुझे माफ़ कर दो मेरे ध्रुव।" मेघा ने रोते हुए कहा_____"मैं बस यही चाहती थी कि भले ही मुझे अनंत काल तक तुम्हारे विरह में तड़पना पड़े लेकिन वो काम नहीं करुँगी जिससे तुम्हारा जीवन एक अभिशाप बन जाए।"

"मुझे किसी अभिशाप की परवाह नहीं है मेघा।" मैंने कहा____"मैंने तो दो साल पहले भी तुमसे कहा था कि मुझे अपने जैसा बना लो। कम से कम उस सूरत में तुम्हारे साथ रहने का सुख तो मिलेगा मुझे।"

"नहीं ध्रुव।" मेघा ने कहा____"मेरे जैसा बन कर ऐसा जीवन जीना बहुत बड़ा अभिशाप है जिसमें न इंसानियत होती है और ना ही मुक्ति का कोई रास्ता। तुम इंसान हो और तुम्हारे अंदर हर वो अच्छाईयां हैं जो तुम्हें मुक्ति के रास्ते तक आसानी से ले जाएंगी लेकिन मेरे जैसी पिशाचनी अनंत काल तक इस अभिशाप को लिए भटकती रहने का दुर्भाग्य बनाए रहेगी। मैं इस बात से तो बेहद खुश हूं कि कोई इंसान मुझ जैसी पिशाचनी से इतना प्रेम करता है और साथ ही मुझे भी प्रेम करना सिखाया लेकिन इस बात से दुखी भी हूं कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। तुम्हारे ईश्वर से बस यही प्रार्थना करती हूं कि किसी तरह वो मुझे इस जीवन से मुक्ति दे दें और अगले जन्म में मुझे तुमसे मिला दें।"

"नियति में जो होना लिखा होगा वो तो होगा ही मेघा।" मैंने अपने मचलते हुए जज़्बातों को काबू करते हुए कहा____"लेकिन तुम्हारे साथ मुझे अभिशाप से भरा हुआ जीवन जीना भी स्वीकार है। मुझे अपना बना लो मेघा, मुझे अपने प्रेम से वंचित न करो।"

"ये दोनों तो अपने प्रेम का राग अलापे जा रहे हैं रुद्र।" सहसा वीर ऊँचे स्वर में बोल पड़ा_____"मेरा तो मन करता है कि इस लड़के का अभी खून पी जाऊं।"
"गुस्सा मत हो दोस्त।" रूद्र ने कहा____"मत भूलो कि ये हमारे लिए क्या एहमियत रखता है। अगर तुमने इसका खून पी कर इसे मार दिया तो हम अपने पितामह को फिर से कैसे जीवित कर सकेंगे?"

कहने के साथ ही वो मेघा की तरफ पलटा और फिर उससे बोला____"तुमसे ज़्यादा समझदार तो ये इंसान है मेघा और एक तुम हो जो अपने ही पिता को जीवन नहीं देना चाहती। कैसी बेटी हो तुम जो अपने पिता को जीवन देने की जगह इस इंसान के जीवन को बचा रही हो?"

"मैं अपने प्रेम को स्वार्थी नहीं बनाना चाहती भईया।" मेघा ने दुखी भाव से कहा____"ऐसा करने से मुझे यही लगेगा जैसे मैंने अपने पिता को जीवन प्रदान करने के लिए एक इंसान को अपने प्रेम के जाल में फंसाया है। ऐसा करने से मेरा प्रेम पवित्र नहीं कहलाएगा। अपने स्वार्थ के लिए मैं किसी इंसान को इस तरह स्तेमाल नहीं करना चाहती।"

"कमाल है।" रूद्र हँसा_____"पिछले सौ सालों से इंसानों का खून पी कर खुशियां मना रही थी, तब किसी इंसान के प्रति तुम्हारे मन में ऐसे ख़याल नहीं आए थे? आज एक इंसान से प्रेम क्या हो गया तुम्हारी तो सोच ही बदल गई...वाह! बहुत खूब। क्या तुमने कभी इन इंसानों के धर्म ग्रंथों में लिखी बातें नहीं पढ़ी जिनमें ये लिखा होता है कि माता पिता से बढ़ कर संसार में दूसरा कोई नहीं होता। क्या तुमने ये उपदेश नहीं पढ़ा कि जो प्राणी अपने माता पिता के लिए अपना सुख दुःख यहाँ तक कि अपनी मुक्ति का भी बलिदान कर देता है उसको ऊपर बैठा विधाता भी सलाम करता है?"

"तुम्हारे भैया सही कह रहे हैं मेघा।" मैंने मेघा के कुछ बोलने से पहले ही कहा____"मुझे तो इस बारे में पहले तुमने बताया ही नहीं था वरना मैं उसी समय तुमसे यही कहता कि तुम्हें सबसे पहले अपने पिता के बारे में ही सोचना चाहिए। मुझे भी ख़ुशी होती कि मेरा ये तुच्छ जीवन किसी के काम आया। मेरा यकीन करो मेघा, मैं तुम्हारे पिता को पुनः जीवन देने के लिए ख़ुशी ख़ुशी अपना बलिदान देने को तैयार हूं। अब समझ आया मुझे कि हम दोनों का मिलना महज कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं था बल्कि विधाता की ऐसी लीला थी जिसे हम दोनों ही समझ नहीं पाए। इस बात से ये भी समझ आता है कि ऊपर वाला यही चाहता था कि हम दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो ताकि हमारे द्वारा तुम्हारे पिता को फिर से जीवन मिल सके। अब जब ऊपर वाला यही चाहता है तो भला हम कौन होते हैं उसकी मर्ज़ी को ठुकराने वाले? मेरा जीवन तो वैसे भी बेमतलब था और जीने का कोई ख़ास मकसद नहीं था। ये बहुत ही अच्छा हुआ कि मेरा ये बेमतलब सा जीवन किसी ख़ास चीज़ के लिए काम आने वाला है। तुम अपने मन से ये बात निकाल दो कि तुम्हारे ऐसा करने से तुम्हारा प्रेम पवित्र नहीं रहेगा। मुझे ख़ुशी है कि तुमने मेरी सलामती के लिए इतना कुछ सोचा और इतने दुःख सहे लेकिन अब मैं खुद कहता हूं कि तुम्हें अपने पिता के लिए ख़ुशी ख़ुशी वो काम करना चाहिए जिसके लिए विधाता ने ये सारा खेल रचा है।"

"तुम कितने अच्छे हो ध्रुव।" मेघा की आँखें छलक पड़ीं____"कितनी आसानी से तुमने ये सब कह दिया। तुम सच में महान हो। मेरे पिता के लिए खुद को बलिदान कर देना चाहते हो, ऐसा इस संसार में कौन कर सकता है भला?"

"अब ये सब छोड़ो।" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"और चलो हम दोनों मिल कर तुम्हारे पिता को नया जीवन देते हैं।"
"इस लड़के ने तो मुझे आश्चर्य चकित कर दिया रुद्र।" वीर ने अपनी हैरत से फटी आँखों से मेरी तरफ देखते हुए कहा_____"यकीन नहीं होता कि कोई इंसान ऐसा करने के बारे में सोच सकता है।"

"काश! मुझे ये सब पहले पता चल गया होता।" मैंने मेघा की तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हें मुझसे ये सब बताना चाहिए था मेघा। क्या तुम्हें मुझ पर इतना भी एतबार नहीं था?"

"नहीं ध्रुव।" मेघा ने आहत भाव से कहा____"तुम पर तो खुद से ज़्यादा एतबार है मुझे। मैं जानती थी कि तुम मेरे लिए कुछ भी कर जाओगे लेकिन मैं तुम्हारे जीवन को अभिशाप नहीं बनाना चाहती थी और ना ही स्वार्थी बनना चाहती थी।"

"तो अब क्या इरादा है मेघा?" सहसा रूद्र मेघा से कह उठा____"अब तो ये लड़का खुद ही तुमसे कह रहा है कि ये हमारे पिता के लिए कुछ भी करेगा। इस लिए क्या अब भी तुम इसके लिए राज़ी नहीं होगी?"

"वो अब इसके लिए इंकार नहीं करेगी रूद्र जी।" मैंने रूद्र से कहा____"आप हम दोनों को इन ज़ंजीरों से मुक्त कर दीजिए। मैं आपको वचन देता हूं कि मैं और मेघा दोनों साथ मिल कर सच्चे दिल से आपके पिता के लिए वो सब करेंगे जिसके द्वारा उन्हें फिर से जीवन मिल जाए।"

मैंने देखा वीर अभी भी मुझे चकित भाव से देखे जा रहा था। शायद वो अभी भी समझने की कोशिश कर रहा था कि क्या सच में कोई इंसान इतनी सहजता से इतना कुछ करने की बात कह सकता है? उधर मेरे कहने के बाद रूद्र ने फ़ौरन ही हम दोनों को ज़ंजीरों से मुक्त करने का आदेश दे दिया। उसका आदेश होते ही ऊपर बालकनी में मौजूद कई सारे उनके जैसे ही लोग काम पर लग ग‌ए। वो सबके सब पिशाच ही थे। ये अलग बात है कि इस वक़्त वो सब साधारण इंसानों जैसे नज़र आ रहे थे।

कुछ ही समय में मैं और मेघा ज़ंजीरों से मुक्त हो ग‌ए। हाल के फर्श पर जब हम दोनों आए तो दोनों ही एक दूसरे की तरफ तेज़ी से दौड़ पड़े और एक दूसरे से लिपट ग‌ए। ऐसा लगा जैसे आत्मा तृप्त हो गई हो। मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े थे। मेरा जी चाह रहा था कि अब क़यामत तक मैं इसी तरह मेघा से लिपटा रहूं। ज़ाहिर है यही हाल मेघा का भी रहा होगा।

कुछ देर के लिए ही सही किन्तु उसे पा लिया था मैंने। उसको अपने सीने से लगा लिया था मैंने। मेरे दिल को कभी न मिटने वाला सुकून मिल गया था। जिसके दीदार के लिए दो सालों से तड़प रहा था आज उसे देख कर आंखें तृप्त हो ग‌ईं थी। मैं इस खुशी में सब कुछ भूल गया था। मैं भूल गया था कि मेघा से ये मेरी आख़िरी मुलाक़ात थी। मैं भूल गया था कि इस मुलाक़ात के बाद फ़ौरन ही मुझे उसके पिता को फिर से जीवन देने के लिए अपना बलिदान देना है। मैंने कभी इस बात का तसव्वुर भी नहीं किया था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब मुझे अपने प्रेम के लिए खुशी खुशी इस तरह से खुद को कुर्बान करना होगा।‌ मुझे इस बात का ज़रा भी रंज़ नहीं था बल्कि मैं तो बेहद खुश था कि मेरा बेमतलब और बोझ बना हुआ जीवन मेरी मेघा के किसी काम आ गया था।


कुछ पल ही सही तेरा साथ नसीब हुआ।
हां मगर ऐसा मिलना कुछ अजीब हुआ।।

तू सलामत रहे सदा चांद तारों की तरह,
मैं खुश हूं के तेरे जैसा कोई हबीब हुआ।।

राह-ए-उल्फ़त न रास आई हमें ऐ दोस्त,
क्या करें के अपना ही ख़ुदा रक़ीब हुआ।।

साथ ही जाएगा ग़म-ए-हिज़्र-ए-यार मेरे,
जहां में कोई ग़मे-दिल का न‌ तबीब हुआ।।

ये तो अच्छा है किसी के काम आया मगर,
यही सोच के हैरां हूं, कैसे मैं नजीब हुआ।।

✮✮✮


शब्दार्थ:-

हबीब = सखा, मित्र, माशूक/माशूका।
रक़ीब = दुश्मन, शत्रु।
ग़म-ए-हिज़्र-ए-यार= यार की जुदाई का दुख।
तबीब= हकीम, चिकित्सक।
नजीब = सच्चा, शुद्ध रक्त वाला, भला इंसान।
___________________
 

TheBlackBlood

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Dosto, Story ka next update post kar diya hai. Socha tha ki is update me story ka end kar duga lekin aisa ho nahi paaya. Kuch zaruri baate shesh rah gai is liye maine socha ki ek aur update add karu taaki saari baato ko achhe se samjha saku. Khair main ek baat aur kahna chahta hu ki agar aap logo ke zahen me is kahani se sambandhit koi sawaal ya koi shanka hai to use apne comments/reviews ke dwara mujhe bata dijiye taaki next update me main aapke sawaalo ya aapki shankaao ka samadhaan kar saku. Shukriya....!! :thank_you:
 

TheBlackBlood

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Sir ji,

Main jaanta hun ki aap is smy vyast hain or main iske liye aap se koi shiqayat nahin karta. Haan ek request jarryr hai apase ki jab main kahani khtm karun (jo ki jld hi hone waali hai) to mere antim post ko padhne ka smay avshy nikaalna. Mere liye bas wahi post jarruri hai, baaki aapko jab samay lage aap updates padh lena.
Ju bahut sweet ho bhai :hug:
 

parkas

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Update - 10
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किसी चीज़ के द्वारा मुझे तेज़ दर्द हुआ तो एक झटके से मेरी आँखें खुल ग‌ईं। पहले तो मुझे कुछ समझ न आया किन्तु कुछ समय बाद जब ज़हन सक्रिय हुआ तो मुझे तीव्र झटका लगा। मेरी आँखों के सामने एक अलग ही मंज़र नज़र आ रहा था। मैंने चारो तरफ नज़र घुमा घुमा कर देखा और खुद की हालत का जब मुझे एहसास हुआ तो मेरे पैरों तले से ज़मीन गायब हो गई। हालांकि ज़मीन तो पहले ही गायब थी क्योंकि मैं ज़मीन पर था ही नहीं। मेरा पूरा जिस्म मोटी मोटी ज़ंजीरों में बंधा हुआ था और मैं ज़मीन से ऊपर हवा में सीधा लटक रहा था। मेरे सामने मेरी ही तरह ज़ंजीरों में बंधी मेघा लटक रही थी। उसकी हालत मेरी ही तरह ख़राब थी। उसे इस हालत में देख कर मेरा दिल मेरी आत्मा तक थरथरा उठी। इस वक़्त उसकी आँखें बंद थीं और उसका सिर नीचे की तरफ झुका हुआ था। जिस्म पर वही राजकुमारियों जैसा लिबास था जैसा मैंने दो साल पहले उसे पहने देखा था।

खुद को और अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी मेघा को इस हाल में देख कर मैं स्तब्ध रह गया था। कहां इसके पहले मैं उसके साथ किन्हीं खूबसूरत वादियो में हमारे प्रेम की दुनिया बसाने जा रहा था और कहां इस वक़्त मैं और वो ज़ंजीरों में बँधे लटक रहे थे। ये वही हाल था जिसे मैंने सपने में देखा था और जहां पर मैं मरी हुई मेघा को अपने कलेजे से छुपकाए चीख रहा था। मुझे इस एहसास के साथ ही झटका लगा कि एक बार फिर से मैं सपने में चला गया था। वो सपना ही तो था जिसमें मेघा मुझे किन्हीं खूबसूरत वादियों में ले गई थी और हम दोनों वहां पर अपने पवित्र प्रेम की दुनिया बसाने वाले थे। आँखों के सामने वो खूबसूरत मंज़र उजागर हुआ तो दिल तड़प कर रह गया और आँखों से आंसू छलक पड़े। आँखें बंद कर के मैंने मन ही मन ऊपर वाले से कहा कि मेरे साथ इस तरह का मज़ाक क्यों? आख़िर किस गुनाह की सज़ा मिल रही है मुझे? क्यों मेरी किस्मत को इस तरह से लिखा है कि मुझे अपनी ज़िन्दगी में कभी एक पल के लिए भी ख़ुशी नहीं मिल सकती? मेघा नाम की एक लड़की मिली जिसके प्रति दिल में बेपनाह मोहब्बत भर दी और अब उसकी जुदाई के दर्द में मुझे तिल तिल कर तड़पा रहे हो...आख़िर क्यों?

जाने कितनी ही देर लगी मुझे इस सदमे से उबरने में। आँखें खोल कर मैंने सामने मेघा की तरफ देखा। वो वैसे ही नीचे की तरफ सिर झुकाए ज़ंजीरों में बंधी लटक रही थी। जिस्म पर मौजूद राजकुमारियों जैसा लिबास जगह जगह से फटा हुआ और मैला नज़र आ रहा था। ज़ाहिर था उसके साथ किसी ने बहुत ज़्यादा अत्याचार किया था। अचानक ही मेरे ज़हन में एक ख़याल बिजली की तरह कौंधा। सपने में तो मेघा के पेट में बड़ा सा खंज़र घुसा हुआ था और उसके पेट से काले रंग का खून निकल रहा था। मैंने मेघा के पेट की तरफ नज़र डाली और ये देख कर चौंका कि उसके पेट में ना तो कोई खंज़र घुसा हुआ था और ना ही काले रंग का खून निकल रहा था। सपने में उसने लेदर के काले कपड़े पहन रखे थे जो कि चुस्त दुरुस्त थे किन्तु इस वक़्त उसके जिस्म पर वो कपड़े नहीं थे। इसका मतलब सपने में मैंने जो कुछ देखा था वो सब सिर्फ़ सपना ही था जो कि सच नहीं था।

मन ही मन ये सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई कि भला कहीं सपने भी सच होते हैं? ये सोच कर जहां एक तरफ मुझे ये जान कर ख़ुशी हुई कि मेघा जीवित है वहीं ये सोच कर तकलीफ़ भी हुई कि जिन खूबसूरत वादियों में मैं मेघा के साथ अपने प्रेम का संसार बसाने वाला था वो सब महज एक सपना था। इस एहसास के चलते दिल को तकलीफ़ तो हुई लेकिन वो तकलीफ़ इस सच से बहुत मामूली साबित हुई कि मेघा जीवित है। अब सवाल ये था कि वो और मैं इस हालत में कैसे थे? आख़िर किसने हम दोनों को इस हाल में पहुंचाया?

मैंने हाल में चारो तरफ निगाह दौड़ाई। चारो तरफ की दीवारों में बने कुंडे पर बड़े बड़े मशाल जलते हुए दिख रहे थे। हाल के ऊपर वैसा ही बड़ा सा झूमर लटक रहा था जैसा मैंने सपने में देखा था। एक तरफ बाहर जाने के लिए बड़ा सा गलियारा था और दूसरी तरफ ऊपर के फ्लोर में जाने के लिए चौड़ी सीढ़ियां जो ऊपर दोनों तरफ की बालकनी में मुड़ जाती थीं। मैंने चारो तरफ निगाह घुमाई लेकिन मेरे और मेघा के अलावा तीसरा कोई नज़र नहीं आया। ज़हन में सवालों का भण्डार लगता जा रहा था लेकिन जवाब देने वाला कोई न था। ऐसी हालत में दिलो दिमाग़ में एक भय भी भरता जा रहा था। दिल की धड़कनें कभी थम जातीं तो कभी अनायास ही तेज़ हो जाती थीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या था और क्यों था? ज़हन में ये विचार भी उभर आता कि कहीं मैं फिर से कोई सपना तो नहीं देखने लगा हूं?

मेघा को उस हाल में देख कर मेरा दिल बुरी तरह ब्यथित हो रहा था। मेरा जी कर रहा था कि मैं ज़ंजीरों को तोड़ कर मेघा के पास पहुंच जाऊं और उसे ज़ंजीरों से निकाल कर अपने कलेजे से लगा लूं लेकिन ये सब करना मेरे अख़्तियार में नहीं था। मुझसे रहा न गया तो मैं पूरी शक्ति से हलक फाड़ कर चिल्लाया। मेरी चीख का मेघा पर तो कोई असर न हुआ लेकिन फ़िज़ा में अचानक ही हलचल महसूस हुई। कुछ ही देर में ऊपर के माले में कई ऐसे लोग नज़र आए जिन्हें देख कर मेरे जिस्म का रोयां रोयां डर से थर्रा गया।

"तो होश आ गया तुम्हें?" उनमें से एक ने अपनी भारी आवाज़ में कहा____"बहुत खूब। मैं तुम्हारे होश में आने का ही इंतज़ार कर रहा था लड़के।"

"कौन हो तुम?" मैं अंदर से तो बेहद डर गया था लेकिन हिम्मत कर के पूंछ ही लिया____"और मुझे यहाँ पर इस तरह ज़ंजीरों में बाँध कर क्यों लटकाया हुआ है? आख़िर क्या चाहते हो मुझसे?"

"तुम्हारा खून।" वो मुस्कुराते हुए अजीब अंदाज़ में बोला_____"तुम्हारा खून चाहिए मुझे।"
"खू...खून???" उसकी बात सुन कर मेरी आवाज़ लड़खड़ा गई थी।

"हां लड़के, तुमने बिल्कुल ठीक सुना।" वो सीढ़ियों से नीचे की तरफ उतरते हुए बोला_____"लेकिन सिर्फ़ तुम्हारे खून से ही काम नहीं होगा इस लिए तुम्हारे खून में उसके खून को भी शामिल करना होगा जो तुम्हारे सामने तुम्हारी ही तरह ज़ंजीरों में बंधी लटक रही है।"

"ये..ये क्या कह रहे हो तुम?" मैं उसकी बात सुन कर बुरी तरह हकला गया था____"नहीं नहीं, तुम मेरी मेघा के साथ कुछ भी उल्टा सीधा नहीं कर सकते। तुम्हें खून ही चाहिए न तो मेरे जिस्म का एक एक बूँद खून ले लो। बस मेरी मेघा को छोड़ दो, मैं उसे इस हाल में नहीं देख सकता।"

"देखा वीर।" उस शख़्स ने ऊपर बालकनी में खड़े एक दूसरे आदमी की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा____"मैंने कहा था न कि ये मेरी बहन के प्रेम में कुछ भी करने को तैयार हो जाएगा।"

"हां रुद्र।" वीर नामक उस शख़्स ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"तुम्हारा कहना बिल्कुल सही था लेकिन सिर्फ़ इसके तैयार होने बस से क्या होगा। उसके लिए तो मेघा का तैयार होना भी ज़रूरी है और तुम अच्छी तरह जानते हो कि वो इसके लिए किसी भी कीमत पर राज़ी नहीं हो रही है। पिछले दो साल से हमारी कोशिश नाकाम ही होती रही है।"

"लेकिन अब ऐसा नहीं होगा वीर।" रूद्र ने शख़्त भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"क्योंकि इतना तो तुम भी जानते हो कि प्रेम में जहां बेपनाह ताक़त होती है वहीं बेपनाह निर्बलता भी होती है। अभी तक हम इस लिए नाकाम होते रहे थे क्योंकि ये हमारे हाथ नहीं लगा था। पिछले दो साल से मेरी ये बहन इसके चारो तरफ सुरक्षा कवच बनाए हुए थी लेकिन अब हम इसके सुरक्षा घेरे को तोड़ने में कामयाब हो चुके हैं। पहले मेरी बहन ये सोच कर बेफ़िक्र थी कि हम इसके प्रेमी को कोई चोट नहीं पहुंचा सकते किन्तु अब ऐसा नहीं है। अब ये अपने प्रेमी के लिए हर वो काम करने को तैयार होगी जो करने के लिए हम इससे कहेंगे।"

"बात तो ठीक है रुद्र।" वीर ने मेघा की तरफ निगाह डालते हुए शख़्त भाव से कहा____"लेकिन अपने पिता की जगह इस मामूली इंसान को इसने जो सबसे ज़्यादा एहमियत दी ये ठीक नहीं किया इसने। हमारे प्रेम का नाजायज़ फ़ायदा उठाया है इसने।"

"शान्त हो जाओ दोस्त।" रूद्र ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं भी जानता हूं कि इसने ये सब कर के ठीक नहीं किया है क्योंकि किसी इंसान से प्रेम करना हमारा काम नहीं है बल्कि हमारा काम तो इंसानों का खून पीना है, ताकि हम अनंत काल तक जीवित रह सकें। मेरी बहन ने जो किया वो प्रेम में मजबूर हो कर किया। तुम नहीं समझोगे वीर, प्रेम किसी भी प्राणी को बदल देने की क्षमता रखता है। एक बार मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है और इसी लिए मैं इस बात को समझता हूं। यही वजह है कि मैंने इन दो सालों में कभी भी अपनी इस बहन को उस तरह से मजबूर नहीं किया जैसे कि इन हालातों में करना चाहिए था। दूसरी महत्वपूर्ण बात ये भी है कि हम नियति के हाथों मजबूर थे। मेरे पिता को फिर से जीवित करने का बस यही एक रास्ता था। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि आख़िर उनके जीवित होने की यही एक शर्त क्यों है?"

रुद्र और वीर आपस में बातें कर रहे थे और मैं चकित भाव से तथा ख़ामोशी से उनकी बातें सुन रहा था। उनकी बातों से मुझे भी ये पता चल रहा था कि मेघा ने इन दो सालों में मेरे लिए क्या किया था और क्यों उसने मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं किया था? मैं इस सबके बारे में पूरा सच जानना चाहता था इस लिए मैं ख़ामोशी से उन दोनों की बातें सुनता जा रहा था।

"मैंने भी इसी लिए आज तक मेघा के साथ कभी वैसा शख़्त बर्ताव नहीं किया।" वीर ने कहा____"क्योंकि वो तुम्हारी बहन है। तुम मेरे दोस्त हो और इस नाते वो मेरी भी बहन है लेकिन तुम्हारी तरह मैं भी इस बात को नहीं समझ पा रहा हूं कि आख़िर तुम्हारे पिता को जीवित करने की ऐसी शर्त क्यों है? आख़िर ऐसा क्यों है कि बाहरी दुनिया के किसी मामूली इंसान से उनकी खुद की बेटी का प्रेम सम्बन्ध बने और उस प्रेम सम्बन्ध के चलते ही उस इंसान के खून द्वारा हमारे पितामह अनंत का शरीर पुनः जीवित हो?"

"इस रहस्य को तो पिता जी ही बता सकते हैं।" रूद्र ने कहा____"मुझे तो उन्होंने अपने अंतिम समय में बस यही बताया था कि उनके पुनः जीवित होने की यही एक मात्र शर्त है। मैं उनसे इसके बारे में पूछना चाहता था लेकिन उनके पास समय ही नहीं था। आज इस बात को गुज़रे हुए क़रीब सौ साल गुज़र गए हैं। उन्होंने ये भी कहा था कि इस बारे में मेघा को पता नहीं चलना चाहिए। उनका कहना था कि एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब मेघा को बाहरी दुनिया का कोई ऐसा इंसान मिलेगा जिसे वो मारेगी नहीं बल्कि वो उसे अपने साथ ले आएगी और फिर उसे उस इंसान से प्रेम हो जाएगा। हम मेघा को इस बारे में तभी बताएँगे जब वो उस इंसान से प्रेम करने लगे। मेघा और उसके प्रेमी की रज़ामंदी से ही सारी प्रक्रिया होगी। अगर उन दोनों की रज़ामंदी नहीं होगी तो उस इंसान के खून का कोई असर नहीं होगा।"

"बड़ी विचित्र बात है।" वीर सीढ़ियों की तरफ बढ़ता हुआ बोला_____"पितामह को ये सारी बातें पहले से ही कैसे पता थीं कि आने वाले समय में ऐसा ही होगा? ज़रूर इस बारे में भी कोई रहस्य होगा।"

"वो सब छोड़ो।" रूद्र ने कहा____"हमे अब ये सोचना है कि इनके साथ क्या किया जाए?"
"करना क्या है।" वीर ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मेघा को तो हमने इसके लिए बहुत मनाया जिसका नतीजा ये निकला कि वो इस सबके लिए तैयार ही नहीं हुई। अब हमें इस लड़के के द्वारा ही मेघा को मजबूर करना होगा।"

"क्या करने वाले हो तुम लोग मेरी मेघा के साथ?" मैं घबरा कर एकदम से बोल पड़ा था।
"हमारी बातें तो तुमने सुन ही ली होंगी।" रूद्र ने गहरी मुस्कान के साथ कहा_____"हमारा मकसद भी यही था कि तुम हमारे द्वारा ये जान लो कि तुम और मेघा यहाँ पर किस हाल में हो और किस लिए हो? अब ये तुम पर है कि अपने प्रेम के लिए खुद का बलिदान करते हो या नहीं?"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैं घबराहट के मारे उलझ सा गया था_____"आख़िर किस तरह का बलिदान चाहते हो मुझसे?"
"ज़रूर बताएँगे लड़के।" रूद्र ने मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा____"लेकिन उसके अहले ये तो बताओ कि क्या तुम्हें मेरी बहन मेघा की असलियत के बारे में पता है? क्या उसने तुम्हें बताया है कि वो असल में कौन है?"

"हां, मुझे उसकी असलियत के बारे में पता है।" मैंने हिम्मत कर के कहा____"मेरे ज़ोर देने पर उसने मुझे अपने बारे में सब कुछ बताया था।"

"अच्छा।" वो ब्यंगात्मक भाव से मुस्कुराया____"यानि उसकी असलियत जान लेने के बाद भी तुम उससे प्रेम करते हो?"
"मेरा प्रेम किसी ब्यक्ति विशेष के किसी सच या झूठ से ना तो बदल सकता है और ना ही मिट सकता है।" मैंने बड़े गर्व से कहा____"मेघा से मैं सच्चे दिल से प्रेम करता हूं। उसकी असलियत से मुझे ना पहले कोई फ़र्क पड़ा था और ना ही आगे कभी कोई फ़र्क पड़ेगा।"

"कमाल है।" वीर मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुराया_____"अगर ऐसा है तो फिर तुम अपने प्रेम के लिए कुछ भी कर सकते हो...है ना?"
"बिल्कुल।" मैं अंदर ही अंदर उसकी बात सुन कर थोड़ा घबरा गया था लेकिन फिर एकदम से निडर हो कर बोल पड़ा था_____"मैं उसके लिए कुछ भी कर जाऊंगा लेकिन सिर्फ़ इसी शर्त पर कि तुम लोग मेरी मेघा के साथ कुछ भी बुरा नहीं करोगे।"

"भाई रुद्र।" वीर ने पलट कर रूद्र से कहा____"पहली बार ऐसा इंसान देखा है जो इतना भोला है और इतना सच्चा भी है। क्या सच में प्रेम ऐसा होता है कि उसके लिए कोई इंसान कुछ भी करने को तैयार हो जाए?"

"तुम्हें आज तक किसी से प्रेम नहीं हुआ वीर इसी लिए तुम्हें प्रेम के क्रिया कलापों पर हैरानी और अविश्वास हो रहा है।" रूद्र ने कहा____"जबकि सच यही है कि अगर प्रेम सच्चा हो तो प्रेम करने वाला अपने प्रेमी के लिए कुछ भी कर जाता है।"

"अगर ऐसी बात है तो इससे कहो कि ये अपने प्रेम के लिए खुद को बलिदान करे।" वीर ने शख़्त लहजे में कहा_____"इसे अपने प्रेम की ख़ातिर मेघा को इस बात के लिए राज़ी करना होगा कि वो भी इसके साथ ख़ुशी ख़ुशी हमारे पितामह अनंत को शर्तों के अनुसार अपने प्रेमी का खून दे कर जीवित करे।"

"नहीं.....।" पूरे हाल में एक चीख गूँज उठी। मेरे साथ साथ वीर और रूद्र ने भी चौंक कर आवाज़ की तरफ देखा था। वो मेघा की चीख थी। शायद अब तक वो अचेत अवस्था में थी। ज़ंजीरों में बंधी वो बुरी तरह छटपटा रही थी।

"मेघा....।" उसे इस तरह छटपटाते देख मेरा दिल तड़प उठा और मैं ज़ोर से चिल्लाया_____"तुम ठीक तो हो न मेघा? मुझे लगा मैंने अपनी मेघा को हमेशा के लिए खो दिया है। भगवान का लाख लाख शुक्र है कि तुम जीवित हो।"

"तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था ध्रुव।" मेघा ने दुखी भाव से कहा_____"ये लोग तुम्हें मार डालेंगे।"
"तुम्हारे बिना तो मैं वैसे भी जीना नहीं चाहता मेघा।" मैंने तड़प कर कहा____"दिल में बस एक बार तुम्हें देख लेने की हसरत थी, इसी लिए अब तक जीवित हूं। तुम्हें देख लेने के बाद अब अगर मौत भी आती है तो हंसते हंसते उसे स्वीकार कर लूंगा।"

"ऐसा मत कहो ध्रुव।" मेघा की आँखों से आंसू छलक पड़े____"और मुझे इसके लिए माफ़ कर दो कि मेरी वजह से तुम्हें अब तक इतने दुःख सहने पड़े। मुझे इसके लिए भी माफ़ कर दो कि मैंने तुम्हारे पवित्र प्रेम को स्वीकार नहीं किया लेकिन ध्रुव, मैंने ऐसा इसी लिए नहीं किया था क्योंकि मैं तुम्हें किसी भी तरह के संकट में नहीं डालना चाहती थी।"

"हां, मैं जानता हूं मेघा।" मैंने लरज़ते हुए स्वर में कहा_____"मैं शुरू से ही जानता था कि तुम भी मुझसे बेहद प्रेम करती हो। वो तो तुम्हारी कोई मज़बूरी ही थी जिसकी वजह से तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर रही थी लेकिन मेघा, तुम अपने इस ध्रुव को समझ ही नहीं पाई और ना ही प्रेम के मर्म को ठीक से समझा है। मैंने तुमसे कहा था ना कि प्रेम करने वाले किसी भी अंजाम की परवाह नहीं करते थे बल्कि वो तो हर हाल में प्रेम करते हैं। अगर साथ में जी नहीं सकते तो साथ में मर कर दुनिया में अमर हो जाते हैं।"

"मुझे माफ़ कर दो मेरे ध्रुव।" मेघा ने रोते हुए कहा_____"मैं बस यही चाहती थी कि भले ही मुझे अनंत काल तक तुम्हारे विरह में तड़पना पड़े लेकिन वो काम नहीं करुँगी जिससे तुम्हारा जीवन एक अभिशाप बन जाए।"

"मुझे किसी अभिशाप की परवाह नहीं है मेघा।" मैंने कहा____"मैंने तो दो साल पहले भी तुमसे कहा था कि मुझे अपने जैसा बना लो। कम से कम उस सूरत में तुम्हारे साथ रहने का सुख तो मिलेगा मुझे।"

"नहीं ध्रुव।" मेघा ने कहा____"मेरे जैसा बन कर ऐसा जीवन जीना बहुत बड़ा अभिशाप है जिसमें न इंसानियत होती है और ना ही मुक्ति का कोई रास्ता। तुम इंसान हो और तुम्हारे अंदर हर वो अच्छाईयां हैं जो तुम्हें मुक्ति के रास्ते तक आसानी से ले जाएंगी लेकिन मेरे जैसी पिशाचनी अनंत काल तक इस अभिशाप को लिए भटकती रहने का दुर्भाग्य बनाए रहेगी। मैं इस बात से तो बेहद खुश हूं कि कोई इंसान मुझ जैसी पिशाचनी से इतना प्रेम करता है और साथ ही मुझे भी प्रेम करना सिखाया लेकिन इस बात से दुखी भी हूं कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। तुम्हारे ईश्वर से बस यही प्रार्थना करती हूं कि किसी तरह वो मुझे इस जीवन से मुक्ति दे दें और अगले जन्म में मुझे तुमसे मिला दें।"

"नियति में जो होना लिखा होगा वो तो होगा ही मेघा।" मैंने अपने मचलते हुए जज़्बातों को काबू करते हुए कहा____"लेकिन तुम्हारे साथ मुझे अभिशाप से भरा हुआ जीवन जीना भी स्वीकार है। मुझे अपना बना लो मेघा, मुझे अपने प्रेम से वंचित न करो।"

"ये दोनों तो अपने प्रेम का राग अलापे जा रहे हैं रुद्र।" सहसा वीर ऊँचे स्वर में बोल पड़ा_____"मेरा तो मन करता है कि इस लड़के का अभी खून पी जाऊं।"
"गुस्सा मत हो दोस्त।" रूद्र ने कहा____"मत भूलो कि ये हमारे लिए क्या एहमियत रखता है। अगर तुमने इसका खून पी कर इसे मार दिया तो हम अपने पितामह को फिर से कैसे जीवित कर सकेंगे?"

कहने के साथ ही वो मेघा की तरफ पलटा और फिर उससे बोला____"तुमसे ज़्यादा समझदार तो ये इंसान है मेघा और एक तुम हो जो अपने ही पिता को जीवन नहीं देना चाहती। कैसी बेटी हो तुम जो अपने पिता को जीवन देने की जगह इस इंसान के जीवन को बचा रही हो?"

"मैं अपने प्रेम को स्वार्थी नहीं बनाना चाहती भईया।" मेघा ने दुखी भाव से कहा____"ऐसा करने से मुझे यही लगेगा जैसे मैंने अपने पिता को जीवन प्रदान करने के लिए एक इंसान को अपने प्रेम के जाल में फंसाया है। ऐसा करने से मेरा प्रेम पवित्र नहीं कहलाएगा। अपने स्वार्थ के लिए मैं किसी इंसान को इस तरह स्तेमाल नहीं करना चाहती।"

"कमाल है।" रूद्र हँसा_____"पिछले सौ सालों से इंसानों का खून पी कर खुशियां मना रही थी, तब किसी इंसान के प्रति तुम्हारे मन में ऐसे ख़याल नहीं आए थे? आज एक इंसान से प्रेम क्या हो गया तुम्हारी तो सोच ही बदल गई...वाह! बहुत खूब। क्या तुमने कभी इन इंसानों के धर्म ग्रंथों में लिखी बातें नहीं पढ़ी जिनमें ये लिखा होता है कि माता पिता से बढ़ कर संसार में दूसरा कोई नहीं होता। क्या तुमने ये उपदेश नहीं पढ़ा कि जो प्राणी अपने माता पिता के लिए अपना सुख दुःख यहाँ तक कि अपनी मुक्ति का भी बलिदान कर देता है उसको ऊपर बैठा विधाता भी सलाम करता है?"

"तुम्हारे भैया सही कह रहे हैं मेघा।" मैंने मेघा के कुछ बोलने से पहले ही कहा____"मुझे तो इस बारे में पहले तुमने बताया ही नहीं था वरना मैं उसी समय तुमसे यही कहता कि तुम्हें सबसे पहले अपने पिता के बारे में ही सोचना चाहिए। मुझे भी ख़ुशी होती कि मेरा ये तुच्छ जीवन किसी के काम आया। मेरा यकीन करो मेघा, मैं तुम्हारे पिता को पुनः जीवन देने के लिए ख़ुशी ख़ुशी अपना बलिदान देने को तैयार हूं। अब समझ आया मुझे कि हम दोनों का मिलना महज कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं था बल्कि विधाता की ऐसी लीला थी जिसे हम दोनों ही समझ नहीं पाए। इस बात से ये भी समझ आता है कि ऊपर वाला यही चाहता था कि हम दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो ताकि हमारे द्वारा तुम्हारे पिता को फिर से जीवन मिल सके। अब जब ऊपर वाला यही चाहता है तो भला हम कौन होते हैं उसकी मर्ज़ी को ठुकराने वाले? मेरा जीवन तो वैसे भी बेमतलब था और जीने का कोई ख़ास मकसद नहीं था। ये बहुत ही अच्छा हुआ कि मेरा ये बेमतलब सा जीवन किसी ख़ास चीज़ के लिए काम आने वाला है। तुम अपने मन से ये बात निकाल दो कि तुम्हारे ऐसा करने से तुम्हारा प्रेम पवित्र नहीं रहेगा। मुझे ख़ुशी है कि तुमने मेरी सलामती के लिए इतना कुछ सोचा और इतने दुःख सहे लेकिन अब मैं खुद कहता हूं कि तुम्हें अपने पिता के लिए ख़ुशी ख़ुशी वो काम करना चाहिए जिसके लिए विधाता ने ये सारा खेल रचा है।"

"तुम कितने अच्छे हो ध्रुव।" मेघा की आँखें छलक पड़ीं____"कितनी आसानी से तुमने ये सब कह दिया। तुम सच में महान हो। मेरे पिता के लिए खुद को बलिदान कर देना चाहते हो, ऐसा इस संसार में कौन कर सकता है भला?"

"अब ये सब छोड़ो।" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"और चलो हम दोनों मिल कर तुम्हारे पिता को नया जीवन देते हैं।"
"इस लड़के ने तो मुझे आश्चर्य चकित कर दिया रुद्र।" वीर ने अपनी हैरत से फटी आँखों से मेरी तरफ देखते हुए कहा_____"यकीन नहीं होता कि कोई इंसान ऐसा करने के बारे में सोच सकता है।"

"काश! मुझे ये सब पहले पता चल गया होता।" मैंने मेघा की तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हें मुझसे ये सब बताना चाहिए था मेघा। क्या तुम्हें मुझ पर इतना भी एतबार नहीं था?"

"नहीं ध्रुव।" मेघा ने आहत भाव से कहा____"तुम पर तो खुद से ज़्यादा एतबार है मुझे। मैं जानती थी कि तुम मेरे लिए कुछ भी कर जाओगे लेकिन मैं तुम्हारे जीवन को अभिशाप नहीं बनाना चाहती थी और ना ही स्वार्थी बनना चाहती थी।"

"तो अब क्या इरादा है मेघा?" सहसा रूद्र मेघा से कह उठा____"अब तो ये लड़का खुद ही तुमसे कह रहा है कि ये हमारे पिता के लिए कुछ भी करेगा। इस लिए क्या अब भी तुम इसके लिए राज़ी नहीं होगी?"

"वो अब इसके लिए इंकार नहीं करेगी रूद्र जी।" मैंने रूद्र से कहा____"आप हम दोनों को इन ज़ंजीरों से मुक्त कर दीजिए। मैं आपको वचन देता हूं कि मैं और मेघा दोनों साथ मिल कर सच्चे दिल से आपके पिता के लिए वो सब करेंगे जिसके द्वारा उन्हें फिर से जीवन मिल जाए।"

मैंने देखा वीर अभी भी मुझे चकित भाव से देखे जा रहा था। शायद वो अभी भी समझने की कोशिश कर रहा था कि क्या सच में कोई इंसान इतनी सहजता से इतना कुछ करने की बात कह सकता है? उधर मेरे कहने के बाद रूद्र ने फ़ौरन ही हम दोनों को ज़ंजीरों से मुक्त करने का आदेश दे दिया। उसका आदेश होते ही ऊपर बालकनी में मौजूद कई सारे उनके जैसे ही लोग काम पर लग ग‌ए। वो सबके सब पिशाच ही थे। ये अलग बात है कि इस वक़्त वो सब साधारण इंसानों जैसे नज़र आ रहे थे।

कुछ ही समय में मैं और मेघा ज़ंजीरों से मुक्त हो ग‌ए। हाल के फर्श पर जब हम दोनों आए तो दोनों ही एक दूसरे की तरफ तेज़ी से दौड़ पड़े और एक दूसरे से लिपट ग‌ए। ऐसा लगा जैसे आत्मा तृप्त हो गई हो। मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े थे। मेरा जी चाह रहा था कि अब क़यामत तक मैं इसी तरह मेघा से लिपटा रहूं। ज़ाहिर है यही हाल मेघा का भी रहा होगा।

कुछ देर के लिए ही सही किन्तु उसे पा लिया था मैंने। उसको अपने सीने से लगा लिया था मैंने। मेरे दिल को कभी न मिटने वाला सुकून मिल गया था। जिसके दीदार के लिए दो सालों से तड़प रहा था आज उसे देख कर आंखें तृप्त हो ग‌ईं थी। मैं इस खुशी में सब कुछ भूल गया था। मैं भूल गया था कि मेघा से ये मेरी आख़िरी मुलाक़ात थी। मैं भूल गया था कि इस मुलाक़ात के बाद फ़ौरन ही मुझे उसके पिता को फिर से जीवन देने के लिए अपना बलिदान देना है। मैंने कभी इस बात का तसव्वुर भी नहीं किया था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब मुझे अपने प्रेम के लिए खुशी खुशी इस तरह से खुद को कुर्बान करना होगा।‌ मुझे इस बात का ज़रा भी रंज़ नहीं था बल्कि मैं तो बेहद खुश था कि मेरा बेमतलब और बोझ बना हुआ जीवन मेरी मेघा के किसी काम आ गया था।


कुछ पल ही सही तेरा साथ नसीब हुआ।
हां मगर ऐसा मिलना कुछ अजीब हुआ।।

तू सलामत रहे सदा चांद तारों की तरह,
मैं खुश हूं के तेरे जैसा कोई हबीब हुआ।।

राह-ए-उल्फ़त न रास आई हमें ऐ दोस्त,
क्या करें के अपना ही ख़ुदा रक़ीब हुआ।।

साथ ही जाएगा ग़म-ए-हिज़्र-ए-यार मेरे,
जहां में कोई ग़मे-दिल का न‌ तबीब हुआ।।

ये तो अच्छा है किसी के काम आया मगर,
यही सोच के हैरां हूं, कैसे मैं नजीब हुआ।।


✮✮✮


शब्दार्थ:-

हबीब = सखा, मित्र, माशूक/माशूका।
रक़ीब = दुश्मन, शत्रु।
ग़म-ए-हिज़्र-ए-यार= यार की जुदाई का दुख।
तबीब= हकीम, चिकित्सक।
नजीब = सच्चा, शुद्ध रक्त वाला, भला इंसान।
___________________
Nice and beautiful update....
 

kamdev99008

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Dosto, Story ka next update post kar diya hai. Socha tha ki is update me story ka end kar duga lekin aisa ho nahi paaya. Kuch zaruri baate shesh rah gai is liye maine socha ki ek aur update add karu taaki saari baato ko achhe se samjha saku. Khair main ek baat aur kahna chahta hu ki agar aap logo ke zahen me is kahani se sambandhit koi sawaal ya koi shanka hai to use apne comments/reviews ke dwara mujhe bata dijiye taaki next update me main aapke sawaalo ya aapki shankaao ka samadhaan kar saku. Shukriya....!! :thank_you:
:roflol: :hehe: :lol1:
Asli baat bata do....
Suspense kholna hai... Last update me...
Itni badi bhumika bandhne ki jarurat nahi thi :D

To... Ab ayega is kahani ka asli twist... In dono ke khoon ke milne se megha ke pita kaise 'jivit' honge... Agle update me
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
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शब्दार्थ:-
हबीब = सखा, मित्र, माशूक/माशूका।
रक़ीब = दुश्मन, शत्रु।
ग़म-ए-हिज़्र-ए-यार= यार की जुदाई का दुख।
तबीब= हकीम, चिकित्सक।
नजीब = सच्चा, शुद्ध रक्त वाला, भला इंसान।
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इतना सब बताने की क्या जरूरत थी।
कहानी का ट्विस्ट ही खत्म हो गया।।😂🤣😁
 
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