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Fantasy Dark Love (Completed)

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
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117,187
354
फिर पिशाचिनी को अंग्रेजी में क्या कहेंगे महोदय।😂
Sarita :sex:
 
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TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
Supreme
79,768
117,187
354
Update - 11
(Last Update)
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मेघा वैम्पायर थी और उसने अपनी असलियत मुझे पहले ही बता दी थी लेकिन उसकी असलियत जानने के बाद भी मेरे प्रेम में कोई फ़र्क नहीं आया था। उसने मुझे बताया कि वो उस पुराने मकान में मेरे पास ज़्यादा देर तक इसी लिए नहीं रहती थी क्योंकि मेरे पास ज़्यादा देर रहने से वो खुद पर काबू नहीं रख सकती थी। मैं क्योकि इंसान था इस लिए मेरा खून उसकी कमज़ोरी बन सकता था जिसके लिए वो मुझे चोट पहुंचाने पर बिवस हो सकती थी। यही वजह थी कि वो उस मकान में मुझे खाना देने और दवा लगाने के लिए ही आती थी और जल्द से जल्द वहां से निकल जाती थी। उसे भी मुझसे प्रेम हो गया था लेकिन उसकी बिवसता यही थी कि पिशाच होने के नाते वो मेरे पास ज़्यादा देर तक रुक नहीं सकती थी। इंसानी खून पीने के लिए वो मजबूर हो जाती जो कि वो किसी भी कीमत पर नहीं चाहती थी।

मेघा ने जब अपनी असलियत बताई थी तब मैंने उससे कहा था कि वो मुझे भी अपने जैसा बना दे लेकिन उसने ऐसा करने से साफ़ इंकार कर दिया था। उसका कहना था कि पिशाच बन कर जीना एक बहुत बड़ा अभिशाप है जिसकी मुक्ति नहीं हो सकती। उसे मेरे प्रेम में तड़पना तो मंजूर था लेकिन मुझे अभिशाप से भरा हुआ जीवन देना मंजूर नहीं था। ख़ैर उसने ये सब तो बताया था किन्तु इसके पीछे की असल वजह ये नहीं बताई था कि मेरे खून से उसके पिता को नया जीवन मिल सकता है। मेरे प्रति प्रेम की ये उसकी प्रबल भावना ही थी जिसके चलते उसने अपने पिता को मेरे द्वारा नया जीवन देने के बजाय मेरी सलामती को ज़्यादा महत्वा दिया था।

इत्तेफ़ाक से जब मैं यहाँ पहुंचा तब मुझे इन सारी बातों का रूद्र और वीर के द्वारा ही पता चला था। मुझे ये सोच कर गर्व तो हुआ कि मेघा ने अपने पिता की बजाय मुझे अहमियत दी लेकिन अब ये मेरा फ़र्ज़ था कि मैं अपनी मेघा के लिए वो करूं जिससे उसके माथे पर ये कलंक न लगे कि उसने अपने जन्म देने वाले पिता को महत्वा न दे कर एक इंसान को ज़्यादा महत्वा दिया।

रुद्र और वीर को ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि मैं इतनी आसानी से इस कार्य के लिए मान जाऊंगा और अपना बलिदान इस तरह सहजता से देने को तैयार हो जाऊंगा। मेघा अभी भी मेरे लिए दुखी थी लेकिन मैंने उसे समझा दिया था कि अगर नियति में हमारा मिलन लिखा होगा तो उसे खुद नियति भी रोक नहीं पाएगी।

महल के अंदर मौजूद वो एक अलग ही स्थान था जहां पर एक बड़े से ताबूत में वैम्पायर यानि पिशाचों के पितामह अनंत का निर्जीव शरीर रखा हुआ था। रूद्र के अनुसार पितामह अनंत का शरीर पिछले सौ सालों से उस ताबूत में रखा हुआ था। शुरुआत में जब मेरी नज़र ताबूत के अंदर पड़े उस शरीर पर पड़ी तो डर के मारे मेरी चीख निकलते निकलते रह गई थी। मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था कि पिशाच दिखने में ऐसे होते होंगे। रूद्र और मेघा दोनों आपस में भाई बहन थे और उन दोनों के पिता अनंत थे। अनंत पिशाचों के पितामह थे। वीर नाम का वैम्पायर रूद्र का दोस्त था। इनके जैसे और भी पिशाच यहाँ थे लेकिन इस वक़्त वो सब इंसानों की तरह साधारण रूप में दिख रहे थे।

मुझे महल के अंदर एक ऐसे कमरे में ले जाया गया था जहां पर कमरे के बीचो बीच एक बड़ा सा चबूतरा बना हुआ था। उस कमरे में चारो तरफ अनगिनत मोमबत्तियां जल रहीं थी। उस चबूतरे के बगल से वो ताबूत भी रख दिया गया था जिसमें पिशाचों के पितामह अनंत का शरीर रखा हुआ था। ताबूत का ढक्कन हटा कर ताबूत के किनारों पर ढेर सारी मोमबत्तियां रख कर जला दी गईं थी। मुझे ऊपर से नंगा कर के उस चबूतरे में लेटा दिया गया था और साथ ही मेरे दोनों हाथ और दोनों पैरों को मजबूत रस्सी से बाँध दिया गया था। मैं अंदर से बेहद ही घबराया हुआ था लेकिन अपनी मेघा और अपने प्रेम के लिए खुद का बलिदान देने को तैयार था। चबूतरे के चारो तरफ कमरे में काले कपड़े पहने बहुत सारे पिशाच खड़े थे। रूद्र और वीर मेरे पास ही आँखें बंद किए खड़े थे। उन दोनों के होठ हिल रहे थे, ऐसा लगता था जैसे कोई मंत्र पढ़ रहे हों। मेरे एक तरफ मेघा खड़ी थी जिसका चेहरा इस वक़्त बेहद सपाट था। शायद उसने अपने जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से काबू किया हुआ था।

रूद्र और वीर ने आंखें खोल कर एक बार मेरी तरफ देखा उसके बाद उसने दूसरी तरफ देख कर कुछ इशारा सा किया, परिणामस्वरूप कुछ ही देर में दो वैम्पायर एक ट्राली लिए आते दिखे। उस ट्राली में कई सारी चीज़ें रखी हुईं थी। ट्राली के दो सिरों में राड लगी हुई थी जो ऊपर एक अलग राड में जुड़ी हुई थी। ऊपर की उस राड के दोनों छोर पर कुंडे बने हुए थे जिनमें पतले से किन्तु पारदर्शी क‌ई पाइप लटक रहे थे। ट्राली में कांच के बड़े बड़े बोतल रखे हुए थे और उसके बगल से लोहे के कुछ ऐसे इंस्ट्रूमेंट्स जिन्हें मैंने कभी नहीं देखा था।

"तुम तैयार हो न लड़के?" सहसा रूद्र ने मेरे क़रीब आते हुए कहा____"क्योंकि अब जो कुछ भी होगा वो तुम्हारे लिए बेहद ही असहनीय होगा।"

"मुझे परवाह नहीं रूद्र जी।" मैंने अपनी घबराहट को काबू करते हुए कहा____"आप अपना काम कीजिए लेकिन उससे पहले मुझे मेरी एक ख़्वाहिश पूरी कर लेने दीजिए।"

"कैसी ख़्वाहिश?" रूद्र के माथे पर सलवटें उभरीं।
"मुझे अपनी मेघा को एक बार और देखना है।" मैंने कहा____"अपनी आँखों में अपनी मेघा का चेहरा बसा कर इस दुनियां से जाना चाहता हूं।"

"ठीक है।" रूद्र ने कुछ देर तक मेरी तरफ देखते रहने के बाद कहा और एक तरफ हट गया। उसके साथ वीर भी हट गया। उन दोनों के हटते ही मेघा मेरी आँखों के सामने आ कर मेरे पास ही खड़ी हो गई। उसका चेहरा ही बता रहा था कि वो इस वक़्त अपने दिल के जज़्बातों को काबू करने की बहुत ही जद्दो जहद कर रही थी। उसकी आँखों में आंसू तैर रहे थे।

"क्या ऐसे दुखी हो कर विदा करोगी मुझे?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए फीकी मुस्कान के साथ कहा तो मेघा खुद को सम्हाल न पाई और तड़प कर मेरे सीने में अपना चेहरा छुपा कर रोने लगी।

"ऐसा मत करो ध्रुव" मेघा ने रोते हुए कहा____"मुझे इस तरह छोड़ कर मत जाओ। मैं इसी लिए तुम्हारे प्रेम को स्वीकार नहीं कर रही थी क्योंकि मैं पहले से जानती थी कि मेरे पिता को फिर से जीवन मिलने की क्या शर्त है। मैंने एक बार भैया की बातें सुन ली थी और इसी लिए हर बार तुम्हारे प्रेम को ठुकरा रही थी ताकि तुम अपने दिल से मेरा ख़याल निकाल दो।"

"अब इन सब बातों का समय नहीं है मेघा।" मैंने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"अब तो बस हंसते हंसते खुद को फ़ना कर देने का वक़्त है। मैं बेहद खुश हूं कि ऊपर वाले ने मुझे तुमसे मिलाया। हाँ, इस बात का थोड़ा दुःख ज़रूर है कि तुम्हारा साथ मेरी किस्मत में बहुत थोड़ा सा लिखा उसने लेकिन कोई बात नहीं, जीवन में इंसान को भला कहां सब कुछ मिल जाया करता है? ख़ैर छोड़ ये सब बातें और मुझे अपनी वैसी ही मोहिनी सूरत दिखाओ जैसे दो साल पहले मैंने देखी थी। बिलकुल वैसा ही चाँद की तरह चमकता हुआ चेहरा और वही मुस्कान।"

"नहीं, ये मुझसे नहीं होगा।" मेघा ने तड़प कर कहा____"ऐसे हाल में मैं मुस्कुरा भी कैसे सकती हूं ध्रुव जबकि मैं उस महान शख़्स को हमेशा के लिए खो देने वाली हूं जिसने मुझ जैसी पिशाचनी से प्रेम किया और मुझे प्रेम करना सिखाया?"

"मैं हमेशा तुम्हारे दिल में ही रहूंगा मेघा।" मैंने कहा____"तुम्हारे दिल से तो नहीं जा रहा न मैं? फिर क्यों दुखी होती हो? इस वक़्त मैं बस यही चाहता हूं कि मेरी मेघा मुझे मुस्कुराते हुए विदा करे और सच्चे मन से अपने पिता को पुनः प्राप्त करने की हसरत रखे।"

मेघा ने मेरे सीने से अपना चेहरा उठा कर मेरी तरफ देखा। नीली गहरी आँखों में तड़प और आंसू के अलावा कुछ न था। दूध की तरह गोरा चेहरा सुर्ख पड़ा हुआ था। मेरे दोनों हाथ बँधे हुए थे इस लिए मैं उसके सुन्दर चेहरे को अपनी हथेलियों में नहीं ले सकता था।

"तुम्हें मेरी क़सम है मेघा।" मैंने उसकी आँखों में देखते हुए कहा____"तुम सच्चे मन से वही करो जो इस वक़्त ज़रूरी है और हाँ मुझे अपनी मनमोहक मुस्कान के साथ ही विदा करो। मैं तुम्हारे मुस्कुराते हुए चेहरे को अपनी आँखों में बसा कर इस दुनिया से जाना चाहता हूं। क्या तुम मेरी ये आख़िरी हसरत पूरी नहीं करोगी?"

मेरी बातें सुन कर मेघा ने अपनी आँखें बंद कर ली। जैसे ही पलकें बंद हुईं तो आंसू की धार बाह कर उसके दोनों गालों को नहला ग‌ई। चेहरे के भाव बदले और कुछ ही पलों में उसने पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा। अपनी आस्तीन से उसने अपने आंसू पोंछे और मेरी तरफ देखते हुए बस हल्के से मुस्कुराने की कोशिश की। वो जैसे ही मुस्कुराई तो ऐसा लगा जैसे सब कुछ मिल गया हो मुझे। दिल का ज़र्रा ज़र्रा ख़ुशी से भर गया। मेरे होठों पर भी मुस्कान उभर आई। तभी जाने उसे क्या हुआ कि वो झुकी और मेरे होठों पर अपने होंठ रख दिए। वक़्त जैसे एकदम से ठहर गया। मैं किसी और ही दुनिया में पहुंच गया किन्तु जल्दी ही वापस आया। मेघा ने मेरे चेहरे को एक बार प्यार से सहलाया और फिर एक तरफ चली गई।

मेघा के जाने के बाद रूद्र और वीर के कहने पर दो पिशाच ट्राली ले कर मेरे पास आए। रूद्र ने मुझे बताया कि आगे अब जो होगा उसमें मुझे बेहद तकलीफ़ होगी इस लिए मैं उस तकलीफ़ को सहने के लिए तैयार हो जाऊं। मैं अंदर से बेहद डरा हुआ था किन्तु अब भला डरने से क्या हो सकता था? ये सब तो मैंने खुद ही ख़ुशी से चुना था। कुछ ही देर में दो पिशाच मेरे दाएं बाएं आ कर खड़े हुए। उन दोनों के हाथ में बड़ी सी सुई थी और सुई के पीछे पतला किन्तु पारदर्शी पाईप। वीर के इशारे पर दो चार पिशाच मेरे पास आए और मुझे शख़्ती से पकड़ लिया। उनके ऐसा करते ही मेरी धड़कनें तेज़ चलने लगीं। ऐसा लगा जैसे मुझे बकरा समझ कर हलाल करने वाले थे वो। हालांकि एक तरह से मैं बकरा ही तो था।

एक साथ दोनों तरफ से मेरे हाथ में बड़ी बड़ी दो सुईयां चुभा दी ग‌ईं। मैं दर्द के मारे पूरी शक्ति से चिल्लाया। हालांकि दर्द को बर्दास्त करने की मैंने बहुत कोशिश की थी लेकिन दर्द मेरी सोच से कहीं ज़्यादा असहनीय था। दो सुईयां हाथ में चुभाने के बाद पहले वाले दो पिशाच वापस पलटे और कुछ देर बाद फिर से वापस आए और इस बार वो दो बड़ी बड़ी सुईयां मेरे सीने में चुभा दिया। मैं एक बार फिर से हलक फाड़ कर चिल्लाया। मेरी चीखों से समूचा हाल दहल उठा। कुछ देर बाद धीरे धीरे दर्द कम होने लगा तो मैंने राहत की लम्बी साँसें ली।

मुझे आँखों के सामने अँधेरा छाता हुआ महसूस होने लगा था। मेरे जिस्म में चार जगह सुईयां लगी हुईं थी। उन सुईयों के पीछे लगे पाइप में मेरा खून बड़ी तेज़ी से मेरे जिस्म से निकल कर पाईप के आख़िरी उस छोर पर जा रहा था जहां पर कांच के चार बॉटल रखे हुए थे। वो चारो बॉटल ट्राली के नीचे रखे हुए थे। प्रतिपल मेरी आँखों के सामने अँधेरा गहराता जा रहा था और मैं रफ्ता रफ्ता मौत की गहरी नींद में डूबता चला जा रहा था। एक वक़्त ऐसा भी आया जब मैंने महसूस किया जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया है और अब पूरी कायनात में शान्ति छा गई है।

✮✮✮

हर तरफ काला स्याह अँधेरा था। एक ऐसा अँधेरा जिसका कोई अंत नहीं जान पड़ता था। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं उस अँधेरे में ऊपर की तरफ बड़ी तेज़ी से उड़ता चला जा रहा था। हालांकि मैं अपना वजूद महसूस नहीं कर पा रहा था किन्तु इतना ज़रूर आभास हो रहा था जैसे मैं अनंत अँधेरे में कहीं तो ज़रूर हूं। पता नहीं कब तक मैं यूं ही अँधेरे में ऊपर की तरफ उड़ता हुआ महसूस करता रहा। मैं अंदर से बेहद घबराया हुआ था और अपने हाथ पैर चलाना चाहता था किन्तु ऐसा लगता था जैसे मेरा समूचा जिस्म निष्क्रिय हो गया हो। एकाएक अँधेरे में मुझे एक छोटा सा बिंदु टिमटिमाता हुआ दिखा। मैंने चारो तरफ गर्दन घुमा कर देखने की कोशिश की किन्तु सब ब्यर्थ। मैं निरंतर उस बिंदु की तरफ ही बढ़ता चला जा रहा था।

मैंने महसूस किया कि वो बिंदु प्रतिपल अपना आकार बड़ा कर रहा था। मेरे लिए ये हैरानी की बात थी किन्तु मैं कुछ भी कर पाने में असमर्थ था। अनंत अँधेरे में दिखा वो छोटा सा बिंदु जैसे जैसे बड़ा होता जा रहा था वैसे वैसे अनंत अँधेरा कम होता जा रहा था। मैं एक तरफ जहां अँधेरे के कम होने पर ख़ुशी महसूस करने लगा था वहीं उस टिमटिमाते हुए बिंदु को प्रतिपल बड़ा होते देख घबराहट से भी भरता जा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ये सब क्या था और मैं ये कहां पहुंच गया हूं?

एक वक़्त ऐसा आया जब छोटा सा दिखने वाला बिंदु इतना बड़ा हो गया कि उसकी तेज़ रोशनी से मेरी आँखें चौंधियां गईं और मैंने झट से अपनी आँखें बंद कर ली। ऐसा लगा जैसे पलक झपकते ही अनंत अँधेरा उस तेज़ प्रकाश से कहीं विलुप्त हो गया हो। उस बिंदु का प्रकाश इतना तेज़ था कि बंद पलकों के बावजूद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी आँखों के बल्ब फ्यूज हो जाएंगे।

"आँखें खोलो ध्रुव।" अनंत सन्नाटे में एक ऐसी आवाज़ गूँजी जिसने मेरी रूह को थर्रा कर रख दिया। डर के मारे मैं बुरी तरह कांपने लगा था किन्तु उस आवाज़ का असर ऐसा था कि मैंने किसी सम्मोहन में फंसे इंसान की तरह झट से अपनी आँखें खोल दी।

आंखें खुली तो तेज़ रोशनी को मैं देख न सका इस लिए फ़ौरन ही अपनी आँखें फिर से बंद कर ली। कुछ पलों बाद मैंने बहुत ही आहिस्ता से अपनी पलकों को खोला तो इस बार मुझे रोशनी का तेज़ थोड़ा कम महसूस हुआ।

"हम तुम्हारे पवित्र प्रेम और प्रेम में दिए हुए बलिदान से बेहद प्रसन्न हुए ध्रुव।" उस तेज़ प्रकाश से फिर आवाज़ गूंजी____"इस लिए हमारा आशीर्वाद है कि तुम्हारा ये बलिदान ब्यर्थ नहीं जाएगा। हम तुम्हें वापस तुम्हारी प्रेमिका के पास भेज रहे हैं। तुम धरती पर मेघा के साथ सौ वर्ष तक रहोगे। सौ वर्ष बाद तुम दोनों को हमारी कृपा से मुक्ति मिल जाएगी।"

उस तेज़ प्रकाश से निकली इस बात को सुन कर मैं बेहद खुश हो गया। मैंने उस प्रकाश को हाथ जोड़ कर प्रणाम किया। प्रणाम करने के बाद जैसे ही मैंने सिर उठा कर उस प्रकाश की तरफ देखा तो चौंक गया क्योंकि अब वहां कोई प्रकाश नहीं था बल्कि हर तरफ वैसा ही अँधेरा था जैसे पहले था। तभी मैंने महसूस किया जैसे मैं नीचे की तरफ बड़ी तेज़ी से जा रहा हूं। एक बार फिर से मेरे अंदर तेज़ घबराहट भर गई। मैं अपने हाथ पाँव चलाना चाहता था किन्तु मैं सब ब्यर्थ। ऐसा लगा जैसे मेरे जिस्म का हर अंग निष्क्रिय हो गया हो। मैं बड़ी तेज़ी से नीचे आ रहा था। अनंत अँधेरे में मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

✮✮✮

"आपको तो नया जीवन मिल गया पिता जी।" मेघा रोते हुए कह रही थी_____"लेकिन अब मुझे यहाँ नहीं रहना। मुझे इस जीवन से मुक्ति दे दीजिए ताकि मैं भी अपने ध्रुव के पास चली जाऊं। उसने मेरे प्रेम में आपके ख़ातिर खुद का बलिदान दे दिया। उसने आपको फिर से जीवन देने के लिए अपना अमूल्य जीवन बलिदान कर दिया पिता जी। मुझे ख़ुशी है कि आपको फिर से नया जीवन मिल गया। आप अनंत काल तक जिएं और शान से यहाँ राज कीजिए लेकिन मुझे मुक्ति दे दीजिए। मुझे अपने ध्रुव के पास जाना है, उसे मेरी और मेरे प्यार की ज़रूरत है पिता जी। आप नहीं जानते उसने मेरी सिर्फ एक झलक पाने के लिए कितने दुःख सहे थे। उसने ये जान कर भी मुझसे टूट कर प्रेम किया कि मैं कोई इंसान नहीं बल्कि एक पिशाचनी हूं। आज उसने उसी प्रेम के लिए अपना बलिदान दे दिया। ऐसे महान इंसान के बिना मैं एक पल भी इस दुनिया में जीना नहीं चाहती। कृपया मुझे मुक्ति दे दीजिए पिता जी।"

"हमें माफ़ कर दो बेटी।" सम्राट अनंत ने मेघा के क़रीब आते हुए कहा_____"किन्तु हम ये नहीं कर सकते। हम अपने ही हाथों से अपनी बेटी का गला नहीं घोंट सकते। काश! हमें इस बात का सौ साल पहले एहसास हुआ होता तो उस समय हम रूद्र को ऐसा करने को कहते ही नहीं। ये तो अब तुम्हें इस हाल में देख कर हमें एहसास हो रहा है कि अपने स्वार्थ में हमने अपनी बेटी की ख़ुशी छीन ली।"

"मैं आपको इसके लिए कसूरवार नहीं ठहराऊंगी पिता जी।" मेघा ने दुखी भाव से कहा____"बल्कि अगर आप मुझे मुक्ति दे कर मेरे ध्रुव के पास भेज दें तो मुझे ख़ुशी ही होगी।"

"हमें तुम्हारे दुःख का अंदाज़ा है बेटी।" सम्राट अनंत ने कहा____"लेकिन तुम हमारी बिवसता को समझो। भला कोई पिता अपने ही हाथों से कैसे अपनी बेटी की जान ले ले सकता है?"

"पिता जी ठीक कह रहे हैं मेघा।" रूद्र ने मेघा के पास ही बैठते हुए कहा_____"दुसरी बात तुम भूल रही हो कि हम कौन हैं। हम पिशाच हैं मेघा और हमें इस तरह से मुक्ति नहीं मिलती। देखो, मैं भी तो सृष्टि के बिना जी ही रहा हूं न? क्या मैं नहीं चाहता कि मुझे भी मुक्ति मिल जाए और मैं अपनी सृष्टि के पास पहुंच जाऊं? मैंने बहुत कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। हम पिशाचों की यही किस्मत है मेघा।"

"जो भी हो लेकिन मैं अपने ध्रुव के बिना एक पल भी इस दुनिया में नहीं रहना चाहती।" मेघा उठी और भागते हुए उस चबूतरे के पास आई जिस चबूतरे में मैं लेटा हुआ था। मैं अभी भी वैसे ही उस चबूतरे में बंधा आँखें बंद किए पड़ा हुआ था। मेघा भाग कर मेरे पास आई और मुझे झिंझोड़ते हुए बोली_____"मुझे भी अपने पास बुला लो ध्रुव। मैं तुम्हारे बिना यहाँ नहीं रहना चाहती। तुम तो मुझे दुखी और बेबस नहीं कर सकते न क्योंकि तुमने ही कहा था कि ऐसा करना प्रेम की तौहीन करना कहलाता है। फिर तुम खुद ही ऐसा कैसे कर सकते हो? वापस आ जाओ मेरे ध्रुव, तुम्हारी मेघा तुम्हें पुकार रही है। मुझे यहाँ इस तरह अकेले छोड़ कर मत जाओ।"

कहने के साथ ही मेघा मुझसे लिपट कर रोने लगी। रूद्र, वीर और खुद सम्राट अनंत भी उसके पास आ गए थे। मेघा को इस तरह मेरे निर्जीव पड़े शरीर से लिपटे रोता देख उनके चेहरे पर भी दुःख के भाव उभर आए किन्तु वो कुछ नहीं कर सकते थे। उधर मेघा बार बार मुझे झकझोर रही थी और साथ ही रो रो कर मुझसे जाने क्या क्या कहती जा रही थी। एकाएक मेरे जिस्म को झटका लगा और मैं लम्बी सांस ले कर जाग उठा।

मेरी आँखें खुल चुकी थी। मैं तेज़ तेज़ साँसें ले रहा था और बीच बीच में ख़ास भी रहा था। ये सब देख वहां मौजूद सब के सब बुरी तरह उछल पड़े। रूद्र, वीर और सम्राट अनंत भाग कर मेरे क़रीब आए। मेघा जल्दी से मुझसे से अलग हुई और मुझे जीवित देख कर उसकी आँखों से ख़ुशी के आंसू छलक पड़े। वो मेरा नाम लेते हुए फिर से मुझसे लिपट गई। सब के सब आश्चर्य चकित थे। किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि मैं इस तरह ज़िंदा हो जाऊंगा।

"मैं जानती थी कि तुम मुझे इस तरह छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते।" मेघा ख़ुशी के मारे मेरे चेहरे को चूमती हुई बोलती जा रही थी____"मैं जानती थी कि तुम अपनी मेघा को दुःख तकलीफ़ नहीं दे सकते।" सहसा वो पलटी और सम्राट अनंत की तरफ देखते हुए बोली____"पिटा जी मेरा ध्रुव वापस आ गया। वो अपनी मेघा के पास वापस आ गया पिता जी, देखिए न।"

साम्राट अनंत अपनी बेटी की बात सुन कर इस तरह चौंका जैसे अभी तक वो किसी और ही दुनिया में खोया हुआ था। वो ब्याकुल भाव से बोला_____"हां बेटी देख लिया हमने। हमने देख लिया कि तुम दोनों के प्रेम को ऊपर वाले ने भी स्वीकार कर लिया है। अगर ऐसा न होता तो तुम्हारा ध्रुव वापस नहीं लौटता।"

जल्द ही सम्राट अनंत के हुकुम पर मुझे बन्धनों से मुक्त कर के उस चबूतरे से उतारा गया। हाल में मौजूद सारे पिशाच मुझे ज़िंदा देख कर चकित थे। मैं खुद भी हैरान था कि ये सब कैसे हुआ? मेरे जिस्म में ना तो कोई ज़ख्म नज़र आ रहा था और ना ही मुझे कोई कमज़ोरी महसूस हो रही थी।

मेघा की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था। सम्राट अनंत ने मुझे अच्छे से नहलाने के लिए कहा तो मेघा खुद मुझे ले कर चल दी। वो मुझे छोड़ ही नहीं रही थी। मुझे शुरुआत में कुछ समझ नहीं आ रहा था किन्तु फिर ये सोच कर खुश हो गया कि जैसे भी हुआ हो लेकिन मैं ज़िंदा हो गया था और अब अपनी मेघा के साथ था। मेघा मुझे अपने कमरे में ले गई और वहीं गुशलखाने में वो अपने हाथों से मुझे नहलाने को बोली। मैं उसका ये प्यार देख कर खुश था किन्तु गुशलखाने में उसके सामने नंगा हो कर नहाने में मुझे बेहद शर्म आ रही थी। आख़िर मेरे बहुत ज़ोर देने पर मेघा ने मुझे अकेला छोड़ा।

मैं मेघा के कमरे से नहा धो कर तथा अच्छे कपड़े पहन कर बाहर निकला। मेघा मुझे ले कर सम्राट के दरबार में आई। दरबार में रूद्र और वीर के साथ साथ बाकी और भी कई पिशाच मौजूद थे। वहां पर मेरे बारे में ही बातें चल रही थी और साथ ही साथ इस बारे में भी कि सम्राट के पुनः वापस आने के बाद अब यहाँ पर एक बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाएगा जिसमें हर जगह के पिशाच शामिल होंगे।

"आओ बैठो बेटा।" सम्राट अनंत ने अपने क़रीब ही रखी एक कुर्सी पर मुझे बैठने का इशारा किया तो मैं जा कर बैठ गया। मेरे बगल वाली कुर्सी पर मेघा बैठ गई। मेरे लिए ये सब बहुत ही अजीब था और बहुत ही ज़्यादा असहज भी।

"तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया बेटा कि तुमने हमें नया जीवन देने के लिए ख़ुशी ख़ुशी अपना बलिदान दिया।" सम्राट अनंत ने प्रेम भाव से कहा_____"लेकिन हम सबके लिए ये बहुत ही ज़्यादा आश्चर्यचकित कर देने वाली बात है कि तुम वापस ज़िंदा कैसे हो गए? हम ये भी अच्छी तरह जानते हैं कि तुम कोई ऐसी चीज़ नहीं हो जिसमें कोई दैवीय शक्तियां हों इस लिए तुम्हारे ज़िंदा होने वाली बात संभव हो ही नहीं सकती।"

"मैं खुद इस बात से हैरान हूं।" मैंने खुद को नियंत्रित करते हुए कहा____"लेकिन हाँ इस बात से बेहद खुश हूं कि ऊपर वाले की कृपा से मैं फिर से अपनी मेघा के पास आ गया।"

"शायद इन दोनों के प्रेम को ऊपर वाले ने स्वीकार कर लिया होगा।" रूद्र ने कुछ सोचते हुए कहा____"आप तो जानते ही हैं कि प्रेम में बहुत बड़ी ताक़त होती है और उसका असर भी बहुत होता है।"
"हां यही हो सकता है।" वीर ने सिर हिलाया।

"वैसे पिता जी हम सब ये जानना चाहते हैं कि आपको पुनः जीवन मिलने की ऐसी शर्त क्यों थी?" रूद्र ने संतुलित लहजे में कहा____"सौ साल पहले आपने मुझे इस बारे में ज़्यादा कुछ नहीं बताया था। इस लिए हम सब अभी भी इस बात को जानने के लिए उत्सुक हैं कि आख़िर ऐसा क्या हुआ था जिसके चलते आप मुर्दा हो ग‌ए और आपके मुर्दा शरीर को ताबूत में रखना पड़ा? इतना ही नहीं बल्कि आपको पुनः जीवित करने के लिए इस तरह की शर्त का क्या रहस्य था? कृपया हम सबको इस रहस्य के बारे में बताइए पिता जी।"

"ऐसा एक श्राप की वजह से सब हुआ।" सम्राट अनंत ने गंभीरता से कहा____"सौ साल पहले की बात है। एक बार हम अपनी दुनिया से निकल कर इंसानी दुनिया में एक ऐसी जगह पहुंच गए जहां पर सिद्ध ऋषि मुनि लोग रहते थे। हालांकि हमें ये पता नहीं था कि वो जगह सिद्ध ऋषि मुनियों की थी। रात का समय था और आसमान में पूरा चमकता हुआ चाँद था। चाँद की रौशनी में हमने देखा एक सुन्दर झरने पर एक लड़की पत्थर पर बैठी हुई थी। पत्थर के चारो तरफ झरने का पानी था और उसके दाहिने तरफ कुछ दूरी पर उँचाई से झरने का पानी गिर रहा था। हमें ये देख कर थोड़ा अजीब लगा कि रात के वक़्त ऐसी जगह पर वो लड़की इस तरह अकेली क्यों बैठी हुई थी। ख़ैर हम बड़ी सावधानी से उसके पास पहुंचे। उस लड़की के गोरे जिस्म पर सिर्फ़ साड़ी ही थी जो कि गेरुए रंग की थी और उसके जिस्म पर इस तरह लिपटी हुई थी जो सिर्फ़ उसके गुप्तांगों को ही ढँके थी, बाकी उसका जिस्म बेपर्दा था और चाँद की रौशनी में चमक रहा था। सिर के बालों को उसने सुगन्धित फूलों की माला के द्वारा जूड़े के रूप में बाँध रखा था। हम जब उसके क़रीब पहुंचे तो देखा वो झरने के पानी में अपने दोनों पैर डाले घास के एक तिनके द्वारा पानी से खेल रही थी। उसे हमारे आने का ज़रा भी आभास नहीं हुआ था। इधर हम बेहद खुश थे कि आज शिकार के रूप में हमें एक लड़की इस तरह अकेली मिल गई थी। हम उसके और क़रीब पहुंचे तो जैसे उसे कुछ आभास हुआ। उसने पलट कर पीछे देखा तो किसी अंजान आदमी को देख कर वो दर गई। हमारी नज़र पहले तो उसके डरे हुए चेहरे पर पड़ी किन्तु जल्दी ही उसके खुले हुए गले पर जा पड़ी। हमारी आँखों को उसके गले में चमकती उछलती नश और सुर्ख खून दिखने लगा जिसकी वजह से हम पर प्यास तारी हो गई और हम फ़ौरन ही उस पर झपट पड़े। वो हलक फाड़ कर चिल्लाई किन्तु तब तक हमने उसके गले पर अपने दोनों दाँत पेवस्त कर दिए थे। वो बुरी तरह चीख रही थी और हमसे छूटने के लिए छटपटा रही थी। उसकी चीख का ही प्रभाव था कि कुछ ही पलों में वहां पर एक सिद्ध ऋषि जैसा इंसान भागता हुआ आया। उसकी तेज़ आवाज़ सुन कर हमने उस लड़की को छोड़ कर उसकी तरफ देखा। हमारे मुख में उस लड़की का खून लगा हुआ था और कुछ खून हमारे मुख से बह रहा था। उधर वो लड़की एकदम बेजान सी हमारी बाहों में झूल रही थी। ज़ाहिर था वो मर चुकी थी। उस लड़की की ऐसी हालत देख कर उस ऋषि का चेहरा गुस्से से भर गया और उसने हमें श्राप दिया।"

"नीच पिशाच" उस ऋषि ने गुस्से से कहा था____"तुमने जिस लड़की का खून पी कर उसकी जान ली है वो मेरी प्रियतमा है। यहाँ पर वो मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। मेरी निर्दोष प्रियतमा को इस तरह मारने वाले नीच पिशाच मैं तुझे श्राप देता हूं कि तू जल्द ही मुर्दे में तब्दील हो जाएगा किन्तु तुझे इस योनि से कभी मुक्ति नहीं मिलेगी।"

हम सब ख़ामोशी से सम्राट अनंत की बातें सुन रहे थे। उधर वो इतना कहने के बाद ख़ामोश हो गए थे। हमें लगा वो आगे कुछ बोलेंगे लेकिन जब काफी देर गुज़र जाने पर भी वो कुछ न बोले तो रूद्र से रहा न गया।

"फिर क्या हुआ पिता जी?" रूद्र ने उत्सुकता से पूछा_____"उस ऋषि ने आपको जब ऐसा श्राप दिया तब आपने क्या किया था?"

"शायद उस लड़की के शुद्ध रक्त का ही प्रभाव था कि हम एकदम से शांत पड़ गए थे।" सम्राट अनंत ने बताना शुरू किया____"उस ऋषि का श्राप सुन कर हमारे अंदर डर और घबराहट भर गई। हमें अपनी ग़लती का एहसास हुआ तो हम उस ऋषि के पास जा कर उसके पैरो में गिर गए और उससे अपने द्वारा किए गए उस जघन्य अपराध के लिए माफ़ी मांगने लगे। आख़िर हमारी प्रार्थना से द्रवित हो कर उस ऋषि ने शांत भाव से कहा____'मेरा श्राप तो टल नहीं सकता लेकिन क्योंकि तुझे अपनी ग़लती का एहसास हो गया है इस लिए हम अपने श्राप को एक निश्चित अवधि में परिवर्तित कर सकते हैं। सौ साल बाद जब तेरी बेटी को किसी इंसान से प्रेम होगा तो उस इंसान के खून द्वारा ही तेरा मुर्दा शरीर फिर से सजीव हो जाएगा, लेकिन...'

"लेकिन क्या ऋषिवर?" हम उस ऋषि के लेकिन कहने पर आशंकित हो उठे थे।
"लेकिन ये कि उस इंसान का खून तभी अपना असर दिखाएगा जब वो इंसान अपनी ख़ुशी से तुझे जीवन देने के लिए अपना बलिदान देगा।" ऋषि ने कहा_____"अगर इस कार्य में तेरी बेटी और तेरी बेटी के उस प्रेमी की रज़ामंदी नहीं होगी तो उसके खून का कोई असर नहीं होगा।"

"मेरे मुर्दा शरीर को फिर से सजीव करने की ये कैसी शर्त है ऋषिवर?" हमने हताश भाव से कहा था____"आप अच्छी तरह जानते हैं कि हम पिशाच किसी इंसान से प्रेम करने का सोच भी नहीं सकते बल्कि किसी इंसान को देखते ही हम उसका खून पीने के लिए मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में मेरी बेटी भला कैसे किसी इंसान से प्रेम करने का सोचेगी? जब ऐसा होगा ही नहीं तो मेरा मुर्दा शरीर कैसे फिर से सजीव हो सकेगा?"

"हमारा कथन कभी झूठा नहीं हो सकता।" उस ऋषि ने कहा____"अब तू जा क्योंकि तेरे पास अब ज़्यादा समय नहीं है।"

इतना कह कर वो ऋषि पलटा और एक तरफ को चला गया। उसके जाते ही हम चौंके क्योंकि हमारे पीछे अचानक ही हमें आग जलती हुई प्रतीत हुई थी। हमने तेज़ी से पलट कर पीछे देखा। जिस लड़की का हमने खून पिया था और उसकी जान ली थी उसका शरीर आग में जल रहा था। हमारे देखते ही देखते वो लड़की जल गई और जब आग समाप्त हुई तो पत्थर में कुछ नहीं था। उस लड़की के जले हुए शरीर की राख तक नहीं थी उस पत्थर पर। हमारे लिए ये बड़े ही आश्चर्य की बात थी किन्तु फिर ख़याल आया कि हमारे पास ज़्यादा वक़्त नहीं है इस लिए हम जल्दी ही वहां से अपनी दुनिया में लौट आए और फिर हमने तुम्हें ये बताया कि कैसे हमारा मुर्दा शरीर फिर से सजीव होगा।"

"तो ये कहानी थी आपके मुर्दा हो जाने की।" रूद्र ने लम्बी सांस खींचते हुए कहा_____"अब समझ आया कि उस समय आपके पास ज़्यादा समय नहीं था और इसी लिए आप सारी बातें मुझे नहीं बता सकते थे। सिर्फ़ वही बताया जो ज़रूरी था।"

"मुझे आपसे कुछ कहना है पिता जी।" सहसा मेघा ने ये कहा तो सबने उसकी तरफ देखा, जबकि सम्राट अनंत ने कहा____"हां कहो बेटी, क्या कहना चाहती हो तुम?"

"मैं अपने ध्रुव के साथ यहाँ से कहीं दूर जाना चाहती हूं।" मेघा ने सपाट लहजे में कहा____"एक ऐसी जगह जहां पर मेरे और मेरे ध्रुव के अलावा तीसरा कोई न हो।"

"तुम अपने ध्रुव के साथ यहाँ भी तो रह सकती हो बेटी।" सम्राट अनंत ने कहा____"हम तुम्हें वचन देते हैं कि यहाँ पर तुम्हारे ध्रुव को किसी से कोई भी ख़तरा नहीं होगा। जिस इंसान ने हमें एक नया जीवन दिया है हम खुद कभी ये नहीं चाहेंगे कि उस पर किसी तरह की कोई बात आए।"

"मुझे यकीन है कि यहाँ पर मेरे ध्रुव को किसी से कभी कोई ख़तरा नहीं होगा।" मेघा ने कहा____"लेकिन इसके बावजूद मैं यहाँ से जाना चाहती हूं पिता जी। कृपया मुझे अपने ध्रुव के साथ अपनी एक अलग दुनिया बसाने की इजाज़त दे दीजिए। मैं अब अपने ध्रुव के साथ एक साधारण इंसान की तरह रहना चाहती हूं।"

"अगर तुमने ऐसा सोच ही लिया है तो ठीक है।" सम्राट अनंत ने कहा____"हम तुम्हें जाने की इजाज़त देते हैं लेकिन अगर कभी हमें तुम्हारी याद आई तो हमसे मिलने ज़रूर आना। अपने इस अभागे पिता को भूल मत जाना बेटी।"

साम्राट अनंत की बातें सुन कर मेघा के चेहरे पर ख़ुशी के भाव उभर आए। वो कुर्सी से उठी और अपने पिता की तरफ बढ़ी तो सम्राट अनंत भी अपने सिंघासन से उठ कर खड़े हो ग‌ए। मेघा जब उनके क़रीब पहुंची तो उन्होंने उसे अपने गले से लगा लिया। कुछ देर बाद मेघा उनसे अलग हुई और रुद्र की तरफ देखा।

"मुझे तुझ पर नाज़ है मेरी बहन।" रूद्र ने मेघा के चेहरे को प्यार से सहला कर कहा____"और खुश भी हूं कि तुझे तेरा प्रेम हासिल हो गया। अपने ध्रुव के साथ हमेशा खुश रहना और उसे भी खुश रखना। जब भी मेरी ज़रूरत पड़े तो अपने इस भैया को याद कर लेना। मैं पलक झपके ही तेरे सामने हाज़िर हो जाऊंगा।"

मेघा सबसे विदा ले रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो सच में ससुराल जा रही हो। रूद्र और वीर मुझसे भी गले मिले। वीर के लिए मैं अभी भी एक अजूबा जैसा था। ख़ैर मैं और मेघा महल से निकल कर अपनी एक अलग दुनिया बसाने चल दिए।

मेघा को हमेशा के लिए पा कर मैं बेहद खुश हो गया था। मेघा मुझसे कहीं ज़्यादा खुश थी। वो पिशाचनी थी किन्तु उसके बर्ताव से कहीं भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वो असल में क्या थी, बल्कि वो तो किसी साधारण इंसान की तरह ही बर्ताव कर रही थी। मुझसे किसी छोटी सी बच्ची की तरह चिपकी हुई थी और मारे ख़ुशी के जाने क्या क्या कहती जा रही थी।

हम दोनों एक ऐसी जगह पहुंचे जिस जगह को देख कर मैं एकदम से चकित रह गया था। ये वही जगह थी जिसे मैंने सपने में देखा था। चारो तरफ दूर दूर तक प्रकिति की खूबसूरती का नज़ारा दिख रहा था। वही हरी भरी खूबसूरत वादियां, वही चारो तरफ दिख रहे पहाड़, एक तरफ दूर उँचाई से बहता हुआ वही जल प्रवाह जो नीचे जा कर एक खूबसूरत नदी का रूप लिए हुए था। हरी भरी ज़मीन पर जगह जगह उगे हुए वही रंग बिरंगे फूल जो मन को मोहित कर रहे थे। ये सब देख कर मुझे ऐसा लगा जैसे मैं एक बार फिर से सपना देखने लगा हूं। इस एहसास के साथ ही मेरी धड़कनें बढ़ गईं और मेरे अंदर घबराहट सी भरने लगी। मैंने जल्दी से मेघा की तरफ देखा। वो वैसे ही मुझसे चिपकी हुई खूबसूरत वादियों को देख रही थी।

"कितनी खूबसूरत जगह है न ध्रुव?" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए हल्की मुस्कान के साथ कहा____"ऐसा लगता है जैसे ये जगह प्रकृति ने हमारे लिए ही बनाई है। हम यहीं पर अपने प्रेम की खूबसूरत दुनिया बसाएंगे। तुम क्या कहते हो इस बारे में?"

"मेरी तो खूबसूरत दुनिया तुम ही हो मेघा।" मैंने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर कहा____"जहां मेरी मेघा होगी वहीं मेरा सब कुछ होगा।"
"ओह! ध्रुव।" मेघा एकदम से मेरे सीने से लगते हुए बोली____"इतना प्रेम मत करो मुझसे कि मैं ख़ुशी के मारे बावरी हो जाऊंगा।"

"प्रेम तो वही है न।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"जिसमें इंसान बावरा हो जाए।"
"अच्छा।" मेघा मेरे सीने से लगी हुई ही मानो मासूमियत से बोली___"अगर ऐसा है तो मुझे भी तुम्हारे प्रेम में बावरी होना है।"

"वो तो तुम पहले से ही हो।" मैंने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा____"और इस बात को ऊपर वाला भी जानता है। ख़ैर छोडो इस बात को, चलो हम यहीं पर अपने प्रेम का खूबसूरत अशियाना बनाते हैं।"

"ठीक है।" मेघा मुझसे अलग हो कर बोली____"हम यहाँ पर एक छोटा सा घर बनाएंगे। हम दोनों यहाँ पर साधारण इंसानों की तरह प्रेम से रहेंगे। हम दोनों यहाँ की ज़मीन को खेती करने लायक बनाएंगे और फसल ऊगा कर उसी से अपना गुज़ारा करेंगे।"

मेघा की ये बातें सुन कर मैं मन ही मन चौंका। उसे मेरे मन की बातें कैसे पता थीं? यही तो मैं भी चाहता था और ऐसा ही तो मैंने सपने में देखा था। क्या सच में हमारे प्रेम के तार इस तरह एक दूसरे से जुड़ चुके थे कि हम दोनों एक दूसरे के मन की बातें भी जान सकते थे?

ज़िन्दगी में बहार आ गई थी। दुःख दर्द के वो बुरे दिन गायब हो गए थे। ये कोई सपना नहीं था बल्कि एक ऐसी हक़ीक़त थी जिसे मैं पूरे होशो हवास में अपनी खुली आँखों से देख रहा था और दिल से महसूस भी कर रहा था। जिसकी तलाश में मैं पिछले दो सालों से दर दर भटक रहा था वो अब मेरी आँखों के सामने थी और मेरे पास थी। जिसके लिए मैं दो सालों से तड़प रहा था वो अपने प्रेम के द्वारा मेरे हर दुःख दर्द मिटाती जा रही थी। हम दोनों बेहद खुश थे। हम दोनों ने मिल कर अपनी मेहनत से एक छोटा सा घर बना लिया था और अब ज़मीन को खेती करने लायक बना रहे थे। हम दोनों ख़ुशी ख़ुशी हर काम कर रहे थे। हमारा प्रेम हर पल बढ़ता ही जा रहा था।

मैं अच्छी तरह जानता था कि मैं मेघा से शादी करके उसे अपनी पत्नी नहीं बना सकता था और ना ही उसके द्वारा बच्चे पैदा कर सकता था। वो एक वैम्पायर लड़की थी और मैं एक साधारण इंसान। हम दोनों का कोई मेल नहीं था लेकिन सिर्फ़ एक ही चीज़ ऐसी थी जिसने हम दोनों को आपस में जोड़ रखा था और वो था हम दोनों का अटूट प्रेम। मुझे इसके अलावा और कुछ भी नहीं चाहिए था। मेघा के साथ हमारे प्रेम की ये अलग दुनिया बहुत ही खूबसूरत लग रही थी और मैं चाहता था कि प्रेम की इस दुनिया का कभी अंत न हो।

कभी कभी ये ख़याल आ जाता था कि क्या मैं सच में मर कर ज़िंदा हुआ था? ज़हन में कभी कभी धुंधला सा एक ऐसा मंज़र उभर आता था, जिसमें अनंत अंधेरा होता था और उस अनंत अंधेरे में एक छोटा सा प्रकाश पुंज टिमटिमाता हुआ दिखता था। कानों में रहस्यमई एक ऐसी आवाज़ गूंज उठती थी जो मुझसे कुछ कहती हुई प्रतीत होती थी और मैं अक्सर उसे समझने की कोशिश करता था। ये कोशिश आज भी जारी है और मेघा के साथ हमारे प्रेम की दुनिया आज भी आबाद है। हम दोनों को ही यकीन है कि एक दिन ऊपर वाला हमें इस लायक ज़रूर बनाएगा जब हम हर तरह से एक हो जाएंगे।

दुवा करो के मोहब्बत यूं ही बनी रहे।
मेरे ख़ुदा तेरी रहमत यूं ही बनी रहे।।

अब न आए कोई ग़म इस ज़िन्दगी में,
बहारे-गुल की इनायत यूं ही बनी रहे।।

जिसको चाहा उसे पा लिया आख़िर,
ख़ुदा करे ये अमानत यूं ही बनी रहे।।

हमारे दरमियां अब कभी फांसले न हों,
हमारे दरमियां कुर्बत यूं ही बनी रहे।।

जैसे अब तक एतबार रहा तुझ पर,
उसी तरह ये सदाक़त यूं ही बनी रहे।।

✮✮✮
_______________________
✮✮✮ The End ✮✮✮
_______________________
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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Dost, Story ka last update post kar diya hai. Update padhiye aur dil khol kar apni pratikriya dijiye... :declare: :love:
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
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अंतिम भाग

बहुत ही बेहतरीन महोदय।

अगर प्रेम सच्चा हो और दिल की गहराइयों से किया गया हो तो वो जात, पात, धर्म, अमीर, गरीब, छोटा, बड़ा, गोरा, काला, ओहदा आदि नहीं देखता। प्यार तो बस प्यार होता है। जब सच्चा प्यार होता है तो हर जगह सिर्फ वही दिखाई देता है।। सारे बंधन तोड़ देता है प्यार। हर रस्म, हर रिवाज को धता बताकर अपने प्रेम को परवान चढ़ता हुआ देखना चाहते हैं प्रेमी। सच्चा प्यार बहुत कम ही सफल हो पाता है और किसी को उसका प्रेम मिलता है।।

ध्रुव का प्रेम तो सबसे विरला था और सबसे अद्भुत भी। ऐसा पहली बार हमने पढ़ा है कि किसी इंसान को किसी पिशाचिनी से प्रेम हुआ हो वो भी सच्चा प्रेम, वो भी तब जब पिशाचिनी ने अपनी सच्चाई बता दी थी ध्रुव को।। ये ध्रुव के अदभुत प्रेम का ही उदाहरण है कि वह मेघा की याद में खुद इंसान नहीं रह गया जब तक मेघा मिल नहीं गई। निशाचर हो गया था ध्रुव। दिन रात उठाते बैठते सोते जागते बस मेघा मेघा मेघा। मेघा को प्रेम ने उसकी हालत देवदास से भी बदतर कर दी थी, लेकिन वो कहते हैं न कि शिद्दत से चाहने पर तो भगवान भी मिल जाता है तो शैतान क्या चीज़ है। एक दिन मेघा उसे मिली भी।।

लेकिन अब परिस्थिति वैसी नहीं थी जैसी दो सस्ल पहले थी।। मेघा के बाप ने ऋषिकन्या का रक्त पिया था तो जो श्राप मिला था उसे। ध्रुव तो निमित्त मात्र था मेघा के बाप को फिर से जीवित करने का। इंसान का नसीब ऊपर बैठा हुआ विधाता लिखता है। ध्रुव के नसीब में उसने पिशाचिनी का प्रेम लिखा और ध्रुव ने अपने प्रेम का मान रखा। ये उसके पवित्र प्रेम की ही शक्ति थी जिसने ध्रुव नया जीवन दिया था। वैसे देखा जाए तो मेघा के भाई और पिता इतने भी क्रूर नहीं थी। उन्होंने मेघा के प्रेम की कद्र की और उसे उसका प्रेम दे दिया। आखिर में सच्चे प्यार की ही जीत हुई।।
 

kamdev99008

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आप तो ऐसे ना थे...
......
कहानियाँ लिखते लिखते... गप्पें भी लिखने लगे :banghead:
 
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Actually Vampire doe's not exist , but if I take it seriously , they can fill in love with your food.

Some filmy thoughts of mine about Vampire -
Vampire have lived for thousands years and their love is eternal. They are not only good as a lover also has a great personality.
They have phenomenal style.
They are hopeless romantic.
They are strong and intelligent
And finally , they are all yours.

खैर , यह तो हुई कुछ वेम्पायर की बातें ।
आखिरकार ध्रुव को अपनी सच्ची चाहत का इनाम मिल ही गया । कुदरत को भी अपने फैसले बदलने पड़े । उसकी चाहत , उसकी मेघा , उसकी महबूबा ..... से मिलाने के लिए उसे वापस मृत्यु लोक में भेज दिया ।
एक वेम्पायर से एक इंसान का मिलन हुआ ।
बढ़िया लगा जो कहानी का हैप्पी एंडिंग हुआ ।

लेकिन और भी ज्यादा तब अच्छा लगता जब सच में ही ध्रुव की मृत्यु हो गई होती । खुद को प्रेम " मेघा " के लिए न्योछावर कर देता । ऐसे प्रेम कहानियों का अंजाम कभी भी सुखद नहीं होता । नोर्थ पोल और साउथ पोल कभी भी मिल नहीं सकते । आकाश और धरती कभी भी एक दूसरे को स्पर्श नहीं कर सकते ।

चूंकि कहानी फैंटेसी है । काल्पनिक है । इसलिए ऐसा भी नहीं कह सकते कि जो अंजाम मेघा और ध्रुव का हुआ वह हो ही नहीं सकता ।

कहानी समाप्त हो गई और इसके लिए बहुत बहुत आभार आपको शुभम भाई । निःसंदेह आप की लेखन शैली उच्च स्तरीय है । इस कहानी में भी आपने एक बार फिर से अपने हुनर से हमें मंत्र मुग्ध कर दिया ।

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग एंड जगमग जगमग ।
 

TheBlackBlood

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Aapka hi asar hai :D
 
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