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Fantasy Dark Love (Completed)

parkas

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Update - 11
(Last Update)
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मेघा वैम्पायर थी और उसने अपनी असलियत मुझे पहले ही बता दी थी लेकिन उसकी असलियत जानने के बाद भी मेरे प्रेम में कोई फ़र्क नहीं आया था। उसने मुझे बताया कि वो उस पुराने मकान में मेरे पास ज़्यादा देर तक इसी लिए नहीं रहती थी क्योंकि मेरे पास ज़्यादा देर रहने से वो खुद पर काबू नहीं रख सकती थी। मैं क्योकि इंसान था इस लिए मेरा खून उसकी कमज़ोरी बन सकता था जिसके लिए वो मुझे चोट पहुंचाने पर बिवस हो सकती थी। यही वजह थी कि वो उस मकान में मुझे खाना देने और दवा लगाने के लिए ही आती थी और जल्द से जल्द वहां से निकल जाती थी। उसे भी मुझसे प्रेम हो गया था लेकिन उसकी बिवसता यही थी कि पिशाच होने के नाते वो मेरे पास ज़्यादा देर तक रुक नहीं सकती थी। इंसानी खून पीने के लिए वो मजबूर हो जाती जो कि वो किसी भी कीमत पर नहीं चाहती थी।

मेघा ने जब अपनी असलियत बताई थी तब मैंने उससे कहा था कि वो मुझे भी अपने जैसा बना दे लेकिन उसने ऐसा करने से साफ़ इंकार कर दिया था। उसका कहना था कि पिशाच बन कर जीना एक बहुत बड़ा अभिशाप है जिसकी मुक्ति नहीं हो सकती। उसे मेरे प्रेम में तड़पना तो मंजूर था लेकिन मुझे अभिशाप से भरा हुआ जीवन देना मंजूर नहीं था। ख़ैर उसने ये सब तो बताया था किन्तु इसके पीछे की असल वजह ये नहीं बताई था कि मेरे खून से उसके पिता को नया जीवन मिल सकता है। मेरे प्रति प्रेम की ये उसकी प्रबल भावना ही थी जिसके चलते उसने अपने पिता को मेरे द्वारा नया जीवन देने के बजाय मेरी सलामती को ज़्यादा महत्वा दिया था।

इत्तेफ़ाक से जब मैं यहाँ पहुंचा तब मुझे इन सारी बातों का रूद्र और वीर के द्वारा ही पता चला था। मुझे ये सोच कर गर्व तो हुआ कि मेघा ने अपने पिता की बजाय मुझे अहमियत दी लेकिन अब ये मेरा फ़र्ज़ था कि मैं अपनी मेघा के लिए वो करूं जिससे उसके माथे पर ये कलंक न लगे कि उसने अपने जन्म देने वाले पिता को महत्वा न दे कर एक इंसान को ज़्यादा महत्वा दिया।

रुद्र और वीर को ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि मैं इतनी आसानी से इस कार्य के लिए मान जाऊंगा और अपना बलिदान इस तरह सहजता से देने को तैयार हो जाऊंगा। मेघा अभी भी मेरे लिए दुखी थी लेकिन मैंने उसे समझा दिया था कि अगर नियति में हमारा मिलन लिखा होगा तो उसे खुद नियति भी रोक नहीं पाएगी।

महल के अंदर मौजूद वो एक अलग ही स्थान था जहां पर एक बड़े से ताबूत में वैम्पायर यानि पिशाचों के पितामह अनंत का निर्जीव शरीर रखा हुआ था। रूद्र के अनुसार पितामह अनंत का शरीर पिछले सौ सालों से उस ताबूत में रखा हुआ था। शुरुआत में जब मेरी नज़र ताबूत के अंदर पड़े उस शरीर पर पड़ी तो डर के मारे मेरी चीख निकलते निकलते रह गई थी। मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था कि पिशाच दिखने में ऐसे होते होंगे। रूद्र और मेघा दोनों आपस में भाई बहन थे और उन दोनों के पिता अनंत थे। अनंत पिशाचों के पितामह थे। वीर नाम का वैम्पायर रूद्र का दोस्त था। इनके जैसे और भी पिशाच यहाँ थे लेकिन इस वक़्त वो सब इंसानों की तरह साधारण रूप में दिख रहे थे।

मुझे महल के अंदर एक ऐसे कमरे में ले जाया गया था जहां पर कमरे के बीचो बीच एक बड़ा सा चबूतरा बना हुआ था। उस कमरे में चारो तरफ अनगिनत मोमबत्तियां जल रहीं थी। उस चबूतरे के बगल से वो ताबूत भी रख दिया गया था जिसमें पिशाचों के पितामह अनंत का शरीर रखा हुआ था। ताबूत का ढक्कन हटा कर ताबूत के किनारों पर ढेर सारी मोमबत्तियां रख कर जला दी गईं थी। मुझे ऊपर से नंगा कर के उस चबूतरे में लेटा दिया गया था और साथ ही मेरे दोनों हाथ और दोनों पैरों को मजबूत रस्सी से बाँध दिया गया था। मैं अंदर से बेहद ही घबराया हुआ था लेकिन अपनी मेघा और अपने प्रेम के लिए खुद का बलिदान देने को तैयार था। चबूतरे के चारो तरफ कमरे में काले कपड़े पहने बहुत सारे पिशाच खड़े थे। रूद्र और वीर मेरे पास ही आँखें बंद किए खड़े थे। उन दोनों के होठ हिल रहे थे, ऐसा लगता था जैसे कोई मंत्र पढ़ रहे हों। मेरे एक तरफ मेघा खड़ी थी जिसका चेहरा इस वक़्त बेहद सपाट था। शायद उसने अपने जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से काबू किया हुआ था।

रूद्र और वीर ने आंखें खोल कर एक बार मेरी तरफ देखा उसके बाद उसने दूसरी तरफ देख कर कुछ इशारा सा किया, परिणामस्वरूप कुछ ही देर में दो वैम्पायर एक ट्राली लिए आते दिखे। उस ट्राली में कई सारी चीज़ें रखी हुईं थी। ट्राली के दो सिरों में राड लगी हुई थी जो ऊपर एक अलग राड में जुड़ी हुई थी। ऊपर की उस राड के दोनों छोर पर कुंडे बने हुए थे जिनमें पतले से किन्तु पारदर्शी क‌ई पाइप लटक रहे थे। ट्राली में कांच के बड़े बड़े बोतल रखे हुए थे और उसके बगल से लोहे के कुछ ऐसे इंस्ट्रूमेंट्स जिन्हें मैंने कभी नहीं देखा था।

"तुम तैयार हो न लड़के?" सहसा रूद्र ने मेरे क़रीब आते हुए कहा____"क्योंकि अब जो कुछ भी होगा वो तुम्हारे लिए बेहद ही असहनीय होगा।"

"मुझे परवाह नहीं रूद्र जी।" मैंने अपनी घबराहट को काबू करते हुए कहा____"आप अपना काम कीजिए लेकिन उससे पहले मुझे मेरी एक ख़्वाहिश पूरी कर लेने दीजिए।"

"कैसी ख़्वाहिश?" रूद्र के माथे पर सलवटें उभरीं।
"मुझे अपनी मेघा को एक बार और देखना है।" मैंने कहा____"अपनी आँखों में अपनी मेघा का चेहरा बसा कर इस दुनियां से जाना चाहता हूं।"

"ठीक है।" रूद्र ने कुछ देर तक मेरी तरफ देखते रहने के बाद कहा और एक तरफ हट गया। उसके साथ वीर भी हट गया। उन दोनों के हटते ही मेघा मेरी आँखों के सामने आ कर मेरे पास ही खड़ी हो गई। उसका चेहरा ही बता रहा था कि वो इस वक़्त अपने दिल के जज़्बातों को काबू करने की बहुत ही जद्दो जहद कर रही थी। उसकी आँखों में आंसू तैर रहे थे।

"क्या ऐसे दुखी हो कर विदा करोगी मुझे?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए फीकी मुस्कान के साथ कहा तो मेघा खुद को सम्हाल न पाई और तड़प कर मेरे सीने में अपना चेहरा छुपा कर रोने लगी।

"ऐसा मत करो ध्रुव" मेघा ने रोते हुए कहा____"मुझे इस तरह छोड़ कर मत जाओ। मैं इसी लिए तुम्हारे प्रेम को स्वीकार नहीं कर रही थी क्योंकि मैं पहले से जानती थी कि मेरे पिता को फिर से जीवन मिलने की क्या शर्त है। मैंने एक बार भैया की बातें सुन ली थी और इसी लिए हर बार तुम्हारे प्रेम को ठुकरा रही थी ताकि तुम अपने दिल से मेरा ख़याल निकाल दो।"

"अब इन सब बातों का समय नहीं है मेघा।" मैंने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"अब तो बस हंसते हंसते खुद को फ़ना कर देने का वक़्त है। मैं बेहद खुश हूं कि ऊपर वाले ने मुझे तुमसे मिलाया। हाँ, इस बात का थोड़ा दुःख ज़रूर है कि तुम्हारा साथ मेरी किस्मत में बहुत थोड़ा सा लिखा उसने लेकिन कोई बात नहीं, जीवन में इंसान को भला कहां सब कुछ मिल जाया करता है? ख़ैर छोड़ ये सब बातें और मुझे अपनी वैसी ही मोहिनी सूरत दिखाओ जैसे दो साल पहले मैंने देखी थी। बिलकुल वैसा ही चाँद की तरह चमकता हुआ चेहरा और वही मुस्कान।"

"नहीं, ये मुझसे नहीं होगा।" मेघा ने तड़प कर कहा____"ऐसे हाल में मैं मुस्कुरा भी कैसे सकती हूं ध्रुव जबकि मैं उस महान शख़्स को हमेशा के लिए खो देने वाली हूं जिसने मुझ जैसी पिशाचनी से प्रेम किया और मुझे प्रेम करना सिखाया?"

"मैं हमेशा तुम्हारे दिल में ही रहूंगा मेघा।" मैंने कहा____"तुम्हारे दिल से तो नहीं जा रहा न मैं? फिर क्यों दुखी होती हो? इस वक़्त मैं बस यही चाहता हूं कि मेरी मेघा मुझे मुस्कुराते हुए विदा करे और सच्चे मन से अपने पिता को पुनः प्राप्त करने की हसरत रखे।"

मेघा ने मेरे सीने से अपना चेहरा उठा कर मेरी तरफ देखा। नीली गहरी आँखों में तड़प और आंसू के अलावा कुछ न था। दूध की तरह गोरा चेहरा सुर्ख पड़ा हुआ था। मेरे दोनों हाथ बँधे हुए थे इस लिए मैं उसके सुन्दर चेहरे को अपनी हथेलियों में नहीं ले सकता था।

"तुम्हें मेरी क़सम है मेघा।" मैंने उसकी आँखों में देखते हुए कहा____"तुम सच्चे मन से वही करो जो इस वक़्त ज़रूरी है और हाँ मुझे अपनी मनमोहक मुस्कान के साथ ही विदा करो। मैं तुम्हारे मुस्कुराते हुए चेहरे को अपनी आँखों में बसा कर इस दुनिया से जाना चाहता हूं। क्या तुम मेरी ये आख़िरी हसरत पूरी नहीं करोगी?"

मेरी बातें सुन कर मेघा ने अपनी आँखें बंद कर ली। जैसे ही पलकें बंद हुईं तो आंसू की धार बाह कर उसके दोनों गालों को नहला ग‌ई। चेहरे के भाव बदले और कुछ ही पलों में उसने पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा। अपनी आस्तीन से उसने अपने आंसू पोंछे और मेरी तरफ देखते हुए बस हल्के से मुस्कुराने की कोशिश की। वो जैसे ही मुस्कुराई तो ऐसा लगा जैसे सब कुछ मिल गया हो मुझे। दिल का ज़र्रा ज़र्रा ख़ुशी से भर गया। मेरे होठों पर भी मुस्कान उभर आई। तभी जाने उसे क्या हुआ कि वो झुकी और मेरे होठों पर अपने होंठ रख दिए। वक़्त जैसे एकदम से ठहर गया। मैं किसी और ही दुनिया में पहुंच गया किन्तु जल्दी ही वापस आया। मेघा ने मेरे चेहरे को एक बार प्यार से सहलाया और फिर एक तरफ चली गई।

मेघा के जाने के बाद रूद्र और वीर के कहने पर दो पिशाच ट्राली ले कर मेरे पास आए। रूद्र ने मुझे बताया कि आगे अब जो होगा उसमें मुझे बेहद तकलीफ़ होगी इस लिए मैं उस तकलीफ़ को सहने के लिए तैयार हो जाऊं। मैं अंदर से बेहद डरा हुआ था किन्तु अब भला डरने से क्या हो सकता था? ये सब तो मैंने खुद ही ख़ुशी से चुना था। कुछ ही देर में दो पिशाच मेरे दाएं बाएं आ कर खड़े हुए। उन दोनों के हाथ में बड़ी सी सुई थी और सुई के पीछे पतला किन्तु पारदर्शी पाईप। वीर के इशारे पर दो चार पिशाच मेरे पास आए और मुझे शख़्ती से पकड़ लिया। उनके ऐसा करते ही मेरी धड़कनें तेज़ चलने लगीं। ऐसा लगा जैसे मुझे बकरा समझ कर हलाल करने वाले थे वो। हालांकि एक तरह से मैं बकरा ही तो था।

एक साथ दोनों तरफ से मेरे हाथ में बड़ी बड़ी दो सुईयां चुभा दी ग‌ईं। मैं दर्द के मारे पूरी शक्ति से चिल्लाया। हालांकि दर्द को बर्दास्त करने की मैंने बहुत कोशिश की थी लेकिन दर्द मेरी सोच से कहीं ज़्यादा असहनीय था। दो सुईयां हाथ में चुभाने के बाद पहले वाले दो पिशाच वापस पलटे और कुछ देर बाद फिर से वापस आए और इस बार वो दो बड़ी बड़ी सुईयां मेरे सीने में चुभा दिया। मैं एक बार फिर से हलक फाड़ कर चिल्लाया। मेरी चीखों से समूचा हाल दहल उठा। कुछ देर बाद धीरे धीरे दर्द कम होने लगा तो मैंने राहत की लम्बी साँसें ली।

मुझे आँखों के सामने अँधेरा छाता हुआ महसूस होने लगा था। मेरे जिस्म में चार जगह सुईयां लगी हुईं थी। उन सुईयों के पीछे लगे पाइप में मेरा खून बड़ी तेज़ी से मेरे जिस्म से निकल कर पाईप के आख़िरी उस छोर पर जा रहा था जहां पर कांच के चार बॉटल रखे हुए थे। वो चारो बॉटल ट्राली के नीचे रखे हुए थे। प्रतिपल मेरी आँखों के सामने अँधेरा गहराता जा रहा था और मैं रफ्ता रफ्ता मौत की गहरी नींद में डूबता चला जा रहा था। एक वक़्त ऐसा भी आया जब मैंने महसूस किया जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया है और अब पूरी कायनात में शान्ति छा गई है।

✮✮✮

हर तरफ काला स्याह अँधेरा था। एक ऐसा अँधेरा जिसका कोई अंत नहीं जान पड़ता था। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं उस अँधेरे में ऊपर की तरफ बड़ी तेज़ी से उड़ता चला जा रहा था। हालांकि मैं अपना वजूद महसूस नहीं कर पा रहा था किन्तु इतना ज़रूर आभास हो रहा था जैसे मैं अनंत अँधेरे में कहीं तो ज़रूर हूं। पता नहीं कब तक मैं यूं ही अँधेरे में ऊपर की तरफ उड़ता हुआ महसूस करता रहा। मैं अंदर से बेहद घबराया हुआ था और अपने हाथ पैर चलाना चाहता था किन्तु ऐसा लगता था जैसे मेरा समूचा जिस्म निष्क्रिय हो गया हो। एकाएक अँधेरे में मुझे एक छोटा सा बिंदु टिमटिमाता हुआ दिखा। मैंने चारो तरफ गर्दन घुमा कर देखने की कोशिश की किन्तु सब ब्यर्थ। मैं निरंतर उस बिंदु की तरफ ही बढ़ता चला जा रहा था।

मैंने महसूस किया कि वो बिंदु प्रतिपल अपना आकार बड़ा कर रहा था। मेरे लिए ये हैरानी की बात थी किन्तु मैं कुछ भी कर पाने में असमर्थ था। अनंत अँधेरे में दिखा वो छोटा सा बिंदु जैसे जैसे बड़ा होता जा रहा था वैसे वैसे अनंत अँधेरा कम होता जा रहा था। मैं एक तरफ जहां अँधेरे के कम होने पर ख़ुशी महसूस करने लगा था वहीं उस टिमटिमाते हुए बिंदु को प्रतिपल बड़ा होते देख घबराहट से भी भरता जा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ये सब क्या था और मैं ये कहां पहुंच गया हूं?

एक वक़्त ऐसा आया जब छोटा सा दिखने वाला बिंदु इतना बड़ा हो गया कि उसकी तेज़ रोशनी से मेरी आँखें चौंधियां गईं और मैंने झट से अपनी आँखें बंद कर ली। ऐसा लगा जैसे पलक झपकते ही अनंत अँधेरा उस तेज़ प्रकाश से कहीं विलुप्त हो गया हो। उस बिंदु का प्रकाश इतना तेज़ था कि बंद पलकों के बावजूद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी आँखों के बल्ब फ्यूज हो जाएंगे।

"आँखें खोलो ध्रुव।" अनंत सन्नाटे में एक ऐसी आवाज़ गूँजी जिसने मेरी रूह को थर्रा कर रख दिया। डर के मारे मैं बुरी तरह कांपने लगा था किन्तु उस आवाज़ का असर ऐसा था कि मैंने किसी सम्मोहन में फंसे इंसान की तरह झट से अपनी आँखें खोल दी।

आंखें खुली तो तेज़ रोशनी को मैं देख न सका इस लिए फ़ौरन ही अपनी आँखें फिर से बंद कर ली। कुछ पलों बाद मैंने बहुत ही आहिस्ता से अपनी पलकों को खोला तो इस बार मुझे रोशनी का तेज़ थोड़ा कम महसूस हुआ।

"हम तुम्हारे पवित्र प्रेम और प्रेम में दिए हुए बलिदान से बेहद प्रसन्न हुए ध्रुव।" उस तेज़ प्रकाश से फिर आवाज़ गूंजी____"इस लिए हमारा आशीर्वाद है कि तुम्हारा ये बलिदान ब्यर्थ नहीं जाएगा। हम तुम्हें वापस तुम्हारी प्रेमिका के पास भेज रहे हैं। तुम धरती पर मेघा के साथ सौ वर्ष तक रहोगे। सौ वर्ष बाद तुम दोनों को हमारी कृपा से मुक्ति मिल जाएगी।"

उस तेज़ प्रकाश से निकली इस बात को सुन कर मैं बेहद खुश हो गया। मैंने उस प्रकाश को हाथ जोड़ कर प्रणाम किया। प्रणाम करने के बाद जैसे ही मैंने सिर उठा कर उस प्रकाश की तरफ देखा तो चौंक गया क्योंकि अब वहां कोई प्रकाश नहीं था बल्कि हर तरफ वैसा ही अँधेरा था जैसे पहले था। तभी मैंने महसूस किया जैसे मैं नीचे की तरफ बड़ी तेज़ी से जा रहा हूं। एक बार फिर से मेरे अंदर तेज़ घबराहट भर गई। मैं अपने हाथ पाँव चलाना चाहता था किन्तु मैं सब ब्यर्थ। ऐसा लगा जैसे मेरे जिस्म का हर अंग निष्क्रिय हो गया हो। मैं बड़ी तेज़ी से नीचे आ रहा था। अनंत अँधेरे में मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

✮✮✮

"आपको तो नया जीवन मिल गया पिता जी।" मेघा रोते हुए कह रही थी_____"लेकिन अब मुझे यहाँ नहीं रहना। मुझे इस जीवन से मुक्ति दे दीजिए ताकि मैं भी अपने ध्रुव के पास चली जाऊं। उसने मेरे प्रेम में आपके ख़ातिर खुद का बलिदान दे दिया। उसने आपको फिर से जीवन देने के लिए अपना अमूल्य जीवन बलिदान कर दिया पिता जी। मुझे ख़ुशी है कि आपको फिर से नया जीवन मिल गया। आप अनंत काल तक जिएं और शान से यहाँ राज कीजिए लेकिन मुझे मुक्ति दे दीजिए। मुझे अपने ध्रुव के पास जाना है, उसे मेरी और मेरे प्यार की ज़रूरत है पिता जी। आप नहीं जानते उसने मेरी सिर्फ एक झलक पाने के लिए कितने दुःख सहे थे। उसने ये जान कर भी मुझसे टूट कर प्रेम किया कि मैं कोई इंसान नहीं बल्कि एक पिशाचनी हूं। आज उसने उसी प्रेम के लिए अपना बलिदान दे दिया। ऐसे महान इंसान के बिना मैं एक पल भी इस दुनिया में जीना नहीं चाहती। कृपया मुझे मुक्ति दे दीजिए पिता जी।"

"हमें माफ़ कर दो बेटी।" सम्राट अनंत ने मेघा के क़रीब आते हुए कहा_____"किन्तु हम ये नहीं कर सकते। हम अपने ही हाथों से अपनी बेटी का गला नहीं घोंट सकते। काश! हमें इस बात का सौ साल पहले एहसास हुआ होता तो उस समय हम रूद्र को ऐसा करने को कहते ही नहीं। ये तो अब तुम्हें इस हाल में देख कर हमें एहसास हो रहा है कि अपने स्वार्थ में हमने अपनी बेटी की ख़ुशी छीन ली।"

"मैं आपको इसके लिए कसूरवार नहीं ठहराऊंगी पिता जी।" मेघा ने दुखी भाव से कहा____"बल्कि अगर आप मुझे मुक्ति दे कर मेरे ध्रुव के पास भेज दें तो मुझे ख़ुशी ही होगी।"

"हमें तुम्हारे दुःख का अंदाज़ा है बेटी।" सम्राट अनंत ने कहा____"लेकिन तुम हमारी बिवसता को समझो। भला कोई पिता अपने ही हाथों से कैसे अपनी बेटी की जान ले ले सकता है?"

"पिता जी ठीक कह रहे हैं मेघा।" रूद्र ने मेघा के पास ही बैठते हुए कहा_____"दुसरी बात तुम भूल रही हो कि हम कौन हैं। हम पिशाच हैं मेघा और हमें इस तरह से मुक्ति नहीं मिलती। देखो, मैं भी तो सृष्टि के बिना जी ही रहा हूं न? क्या मैं नहीं चाहता कि मुझे भी मुक्ति मिल जाए और मैं अपनी सृष्टि के पास पहुंच जाऊं? मैंने बहुत कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। हम पिशाचों की यही किस्मत है मेघा।"

"जो भी हो लेकिन मैं अपने ध्रुव के बिना एक पल भी इस दुनिया में नहीं रहना चाहती।" मेघा उठी और भागते हुए उस चबूतरे के पास आई जिस चबूतरे में मैं लेटा हुआ था। मैं अभी भी वैसे ही उस चबूतरे में बंधा आँखें बंद किए पड़ा हुआ था। मेघा भाग कर मेरे पास आई और मुझे झिंझोड़ते हुए बोली_____"मुझे भी अपने पास बुला लो ध्रुव। मैं तुम्हारे बिना यहाँ नहीं रहना चाहती। तुम तो मुझे दुखी और बेबस नहीं कर सकते न क्योंकि तुमने ही कहा था कि ऐसा करना प्रेम की तौहीन करना कहलाता है। फिर तुम खुद ही ऐसा कैसे कर सकते हो? वापस आ जाओ मेरे ध्रुव, तुम्हारी मेघा तुम्हें पुकार रही है। मुझे यहाँ इस तरह अकेले छोड़ कर मत जाओ।"

कहने के साथ ही मेघा मुझसे लिपट कर रोने लगी। रूद्र, वीर और खुद सम्राट अनंत भी उसके पास आ गए थे। मेघा को इस तरह मेरे निर्जीव पड़े शरीर से लिपटे रोता देख उनके चेहरे पर भी दुःख के भाव उभर आए किन्तु वो कुछ नहीं कर सकते थे। उधर मेघा बार बार मुझे झकझोर रही थी और साथ ही रो रो कर मुझसे जाने क्या क्या कहती जा रही थी। एकाएक मेरे जिस्म को झटका लगा और मैं लम्बी सांस ले कर जाग उठा।

मेरी आँखें खुल चुकी थी। मैं तेज़ तेज़ साँसें ले रहा था और बीच बीच में ख़ास भी रहा था। ये सब देख वहां मौजूद सब के सब बुरी तरह उछल पड़े। रूद्र, वीर और सम्राट अनंत भाग कर मेरे क़रीब आए। मेघा जल्दी से मुझसे से अलग हुई और मुझे जीवित देख कर उसकी आँखों से ख़ुशी के आंसू छलक पड़े। वो मेरा नाम लेते हुए फिर से मुझसे लिपट गई। सब के सब आश्चर्य चकित थे। किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि मैं इस तरह ज़िंदा हो जाऊंगा।

"मैं जानती थी कि तुम मुझे इस तरह छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते।" मेघा ख़ुशी के मारे मेरे चेहरे को चूमती हुई बोलती जा रही थी____"मैं जानती थी कि तुम अपनी मेघा को दुःख तकलीफ़ नहीं दे सकते।" सहसा वो पलटी और सम्राट अनंत की तरफ देखते हुए बोली____"पिटा जी मेरा ध्रुव वापस आ गया। वो अपनी मेघा के पास वापस आ गया पिता जी, देखिए न।"

साम्राट अनंत अपनी बेटी की बात सुन कर इस तरह चौंका जैसे अभी तक वो किसी और ही दुनिया में खोया हुआ था। वो ब्याकुल भाव से बोला_____"हां बेटी देख लिया हमने। हमने देख लिया कि तुम दोनों के प्रेम को ऊपर वाले ने भी स्वीकार कर लिया है। अगर ऐसा न होता तो तुम्हारा ध्रुव वापस नहीं लौटता।"

जल्द ही सम्राट अनंत के हुकुम पर मुझे बन्धनों से मुक्त कर के उस चबूतरे से उतारा गया। हाल में मौजूद सारे पिशाच मुझे ज़िंदा देख कर चकित थे। मैं खुद भी हैरान था कि ये सब कैसे हुआ? मेरे जिस्म में ना तो कोई ज़ख्म नज़र आ रहा था और ना ही मुझे कोई कमज़ोरी महसूस हो रही थी।

मेघा की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था। सम्राट अनंत ने मुझे अच्छे से नहलाने के लिए कहा तो मेघा खुद मुझे ले कर चल दी। वो मुझे छोड़ ही नहीं रही थी। मुझे शुरुआत में कुछ समझ नहीं आ रहा था किन्तु फिर ये सोच कर खुश हो गया कि जैसे भी हुआ हो लेकिन मैं ज़िंदा हो गया था और अब अपनी मेघा के साथ था। मेघा मुझे अपने कमरे में ले गई और वहीं गुशलखाने में वो अपने हाथों से मुझे नहलाने को बोली। मैं उसका ये प्यार देख कर खुश था किन्तु गुशलखाने में उसके सामने नंगा हो कर नहाने में मुझे बेहद शर्म आ रही थी। आख़िर मेरे बहुत ज़ोर देने पर मेघा ने मुझे अकेला छोड़ा।

मैं मेघा के कमरे से नहा धो कर तथा अच्छे कपड़े पहन कर बाहर निकला। मेघा मुझे ले कर सम्राट के दरबार में आई। दरबार में रूद्र और वीर के साथ साथ बाकी और भी कई पिशाच मौजूद थे। वहां पर मेरे बारे में ही बातें चल रही थी और साथ ही साथ इस बारे में भी कि सम्राट के पुनः वापस आने के बाद अब यहाँ पर एक बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाएगा जिसमें हर जगह के पिशाच शामिल होंगे।

"आओ बैठो बेटा।" सम्राट अनंत ने अपने क़रीब ही रखी एक कुर्सी पर मुझे बैठने का इशारा किया तो मैं जा कर बैठ गया। मेरे बगल वाली कुर्सी पर मेघा बैठ गई। मेरे लिए ये सब बहुत ही अजीब था और बहुत ही ज़्यादा असहज भी।

"तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया बेटा कि तुमने हमें नया जीवन देने के लिए ख़ुशी ख़ुशी अपना बलिदान दिया।" सम्राट अनंत ने प्रेम भाव से कहा_____"लेकिन हम सबके लिए ये बहुत ही ज़्यादा आश्चर्यचकित कर देने वाली बात है कि तुम वापस ज़िंदा कैसे हो गए? हम ये भी अच्छी तरह जानते हैं कि तुम कोई ऐसी चीज़ नहीं हो जिसमें कोई दैवीय शक्तियां हों इस लिए तुम्हारे ज़िंदा होने वाली बात संभव हो ही नहीं सकती।"

"मैं खुद इस बात से हैरान हूं।" मैंने खुद को नियंत्रित करते हुए कहा____"लेकिन हाँ इस बात से बेहद खुश हूं कि ऊपर वाले की कृपा से मैं फिर से अपनी मेघा के पास आ गया।"

"शायद इन दोनों के प्रेम को ऊपर वाले ने स्वीकार कर लिया होगा।" रूद्र ने कुछ सोचते हुए कहा____"आप तो जानते ही हैं कि प्रेम में बहुत बड़ी ताक़त होती है और उसका असर भी बहुत होता है।"
"हां यही हो सकता है।" वीर ने सिर हिलाया।

"वैसे पिता जी हम सब ये जानना चाहते हैं कि आपको पुनः जीवन मिलने की ऐसी शर्त क्यों थी?" रूद्र ने संतुलित लहजे में कहा____"सौ साल पहले आपने मुझे इस बारे में ज़्यादा कुछ नहीं बताया था। इस लिए हम सब अभी भी इस बात को जानने के लिए उत्सुक हैं कि आख़िर ऐसा क्या हुआ था जिसके चलते आप मुर्दा हो ग‌ए और आपके मुर्दा शरीर को ताबूत में रखना पड़ा? इतना ही नहीं बल्कि आपको पुनः जीवित करने के लिए इस तरह की शर्त का क्या रहस्य था? कृपया हम सबको इस रहस्य के बारे में बताइए पिता जी।"

"ऐसा एक श्राप की वजह से सब हुआ।" सम्राट अनंत ने गंभीरता से कहा____"सौ साल पहले की बात है। एक बार हम अपनी दुनिया से निकल कर इंसानी दुनिया में एक ऐसी जगह पहुंच गए जहां पर सिद्ध ऋषि मुनि लोग रहते थे। हालांकि हमें ये पता नहीं था कि वो जगह सिद्ध ऋषि मुनियों की थी। रात का समय था और आसमान में पूरा चमकता हुआ चाँद था। चाँद की रौशनी में हमने देखा एक सुन्दर झरने पर एक लड़की पत्थर पर बैठी हुई थी। पत्थर के चारो तरफ झरने का पानी था और उसके दाहिने तरफ कुछ दूरी पर उँचाई से झरने का पानी गिर रहा था। हमें ये देख कर थोड़ा अजीब लगा कि रात के वक़्त ऐसी जगह पर वो लड़की इस तरह अकेली क्यों बैठी हुई थी। ख़ैर हम बड़ी सावधानी से उसके पास पहुंचे। उस लड़की के गोरे जिस्म पर सिर्फ़ साड़ी ही थी जो कि गेरुए रंग की थी और उसके जिस्म पर इस तरह लिपटी हुई थी जो सिर्फ़ उसके गुप्तांगों को ही ढँके थी, बाकी उसका जिस्म बेपर्दा था और चाँद की रौशनी में चमक रहा था। सिर के बालों को उसने सुगन्धित फूलों की माला के द्वारा जूड़े के रूप में बाँध रखा था। हम जब उसके क़रीब पहुंचे तो देखा वो झरने के पानी में अपने दोनों पैर डाले घास के एक तिनके द्वारा पानी से खेल रही थी। उसे हमारे आने का ज़रा भी आभास नहीं हुआ था। इधर हम बेहद खुश थे कि आज शिकार के रूप में हमें एक लड़की इस तरह अकेली मिल गई थी। हम उसके और क़रीब पहुंचे तो जैसे उसे कुछ आभास हुआ। उसने पलट कर पीछे देखा तो किसी अंजान आदमी को देख कर वो दर गई। हमारी नज़र पहले तो उसके डरे हुए चेहरे पर पड़ी किन्तु जल्दी ही उसके खुले हुए गले पर जा पड़ी। हमारी आँखों को उसके गले में चमकती उछलती नश और सुर्ख खून दिखने लगा जिसकी वजह से हम पर प्यास तारी हो गई और हम फ़ौरन ही उस पर झपट पड़े। वो हलक फाड़ कर चिल्लाई किन्तु तब तक हमने उसके गले पर अपने दोनों दाँत पेवस्त कर दिए थे। वो बुरी तरह चीख रही थी और हमसे छूटने के लिए छटपटा रही थी। उसकी चीख का ही प्रभाव था कि कुछ ही पलों में वहां पर एक सिद्ध ऋषि जैसा इंसान भागता हुआ आया। उसकी तेज़ आवाज़ सुन कर हमने उस लड़की को छोड़ कर उसकी तरफ देखा। हमारे मुख में उस लड़की का खून लगा हुआ था और कुछ खून हमारे मुख से बह रहा था। उधर वो लड़की एकदम बेजान सी हमारी बाहों में झूल रही थी। ज़ाहिर था वो मर चुकी थी। उस लड़की की ऐसी हालत देख कर उस ऋषि का चेहरा गुस्से से भर गया और उसने हमें श्राप दिया।"

"नीच पिशाच" उस ऋषि ने गुस्से से कहा था____"तुमने जिस लड़की का खून पी कर उसकी जान ली है वो मेरी प्रियतमा है। यहाँ पर वो मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। मेरी निर्दोष प्रियतमा को इस तरह मारने वाले नीच पिशाच मैं तुझे श्राप देता हूं कि तू जल्द ही मुर्दे में तब्दील हो जाएगा किन्तु तुझे इस योनि से कभी मुक्ति नहीं मिलेगी।"

हम सब ख़ामोशी से सम्राट अनंत की बातें सुन रहे थे। उधर वो इतना कहने के बाद ख़ामोश हो गए थे। हमें लगा वो आगे कुछ बोलेंगे लेकिन जब काफी देर गुज़र जाने पर भी वो कुछ न बोले तो रूद्र से रहा न गया।

"फिर क्या हुआ पिता जी?" रूद्र ने उत्सुकता से पूछा_____"उस ऋषि ने आपको जब ऐसा श्राप दिया तब आपने क्या किया था?"

"शायद उस लड़की के शुद्ध रक्त का ही प्रभाव था कि हम एकदम से शांत पड़ गए थे।" सम्राट अनंत ने बताना शुरू किया____"उस ऋषि का श्राप सुन कर हमारे अंदर डर और घबराहट भर गई। हमें अपनी ग़लती का एहसास हुआ तो हम उस ऋषि के पास जा कर उसके पैरो में गिर गए और उससे अपने द्वारा किए गए उस जघन्य अपराध के लिए माफ़ी मांगने लगे। आख़िर हमारी प्रार्थना से द्रवित हो कर उस ऋषि ने शांत भाव से कहा____'मेरा श्राप तो टल नहीं सकता लेकिन क्योंकि तुझे अपनी ग़लती का एहसास हो गया है इस लिए हम अपने श्राप को एक निश्चित अवधि में परिवर्तित कर सकते हैं। सौ साल बाद जब तेरी बेटी को किसी इंसान से प्रेम होगा तो उस इंसान के खून द्वारा ही तेरा मुर्दा शरीर फिर से सजीव हो जाएगा, लेकिन...'

"लेकिन क्या ऋषिवर?" हम उस ऋषि के लेकिन कहने पर आशंकित हो उठे थे।
"लेकिन ये कि उस इंसान का खून तभी अपना असर दिखाएगा जब वो इंसान अपनी ख़ुशी से तुझे जीवन देने के लिए अपना बलिदान देगा।" ऋषि ने कहा_____"अगर इस कार्य में तेरी बेटी और तेरी बेटी के उस प्रेमी की रज़ामंदी नहीं होगी तो उसके खून का कोई असर नहीं होगा।"

"मेरे मुर्दा शरीर को फिर से सजीव करने की ये कैसी शर्त है ऋषिवर?" हमने हताश भाव से कहा था____"आप अच्छी तरह जानते हैं कि हम पिशाच किसी इंसान से प्रेम करने का सोच भी नहीं सकते बल्कि किसी इंसान को देखते ही हम उसका खून पीने के लिए मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में मेरी बेटी भला कैसे किसी इंसान से प्रेम करने का सोचेगी? जब ऐसा होगा ही नहीं तो मेरा मुर्दा शरीर कैसे फिर से सजीव हो सकेगा?"

"हमारा कथन कभी झूठा नहीं हो सकता।" उस ऋषि ने कहा____"अब तू जा क्योंकि तेरे पास अब ज़्यादा समय नहीं है।"

इतना कह कर वो ऋषि पलटा और एक तरफ को चला गया। उसके जाते ही हम चौंके क्योंकि हमारे पीछे अचानक ही हमें आग जलती हुई प्रतीत हुई थी। हमने तेज़ी से पलट कर पीछे देखा। जिस लड़की का हमने खून पिया था और उसकी जान ली थी उसका शरीर आग में जल रहा था। हमारे देखते ही देखते वो लड़की जल गई और जब आग समाप्त हुई तो पत्थर में कुछ नहीं था। उस लड़की के जले हुए शरीर की राख तक नहीं थी उस पत्थर पर। हमारे लिए ये बड़े ही आश्चर्य की बात थी किन्तु फिर ख़याल आया कि हमारे पास ज़्यादा वक़्त नहीं है इस लिए हम जल्दी ही वहां से अपनी दुनिया में लौट आए और फिर हमने तुम्हें ये बताया कि कैसे हमारा मुर्दा शरीर फिर से सजीव होगा।"

"तो ये कहानी थी आपके मुर्दा हो जाने की।" रूद्र ने लम्बी सांस खींचते हुए कहा_____"अब समझ आया कि उस समय आपके पास ज़्यादा समय नहीं था और इसी लिए आप सारी बातें मुझे नहीं बता सकते थे। सिर्फ़ वही बताया जो ज़रूरी था।"

"मुझे आपसे कुछ कहना है पिता जी।" सहसा मेघा ने ये कहा तो सबने उसकी तरफ देखा, जबकि सम्राट अनंत ने कहा____"हां कहो बेटी, क्या कहना चाहती हो तुम?"

"मैं अपने ध्रुव के साथ यहाँ से कहीं दूर जाना चाहती हूं।" मेघा ने सपाट लहजे में कहा____"एक ऐसी जगह जहां पर मेरे और मेरे ध्रुव के अलावा तीसरा कोई न हो।"

"तुम अपने ध्रुव के साथ यहाँ भी तो रह सकती हो बेटी।" सम्राट अनंत ने कहा____"हम तुम्हें वचन देते हैं कि यहाँ पर तुम्हारे ध्रुव को किसी से कोई भी ख़तरा नहीं होगा। जिस इंसान ने हमें एक नया जीवन दिया है हम खुद कभी ये नहीं चाहेंगे कि उस पर किसी तरह की कोई बात आए।"

"मुझे यकीन है कि यहाँ पर मेरे ध्रुव को किसी से कभी कोई ख़तरा नहीं होगा।" मेघा ने कहा____"लेकिन इसके बावजूद मैं यहाँ से जाना चाहती हूं पिता जी। कृपया मुझे अपने ध्रुव के साथ अपनी एक अलग दुनिया बसाने की इजाज़त दे दीजिए। मैं अब अपने ध्रुव के साथ एक साधारण इंसान की तरह रहना चाहती हूं।"

"अगर तुमने ऐसा सोच ही लिया है तो ठीक है।" सम्राट अनंत ने कहा____"हम तुम्हें जाने की इजाज़त देते हैं लेकिन अगर कभी हमें तुम्हारी याद आई तो हमसे मिलने ज़रूर आना। अपने इस अभागे पिता को भूल मत जाना बेटी।"

साम्राट अनंत की बातें सुन कर मेघा के चेहरे पर ख़ुशी के भाव उभर आए। वो कुर्सी से उठी और अपने पिता की तरफ बढ़ी तो सम्राट अनंत भी अपने सिंघासन से उठ कर खड़े हो ग‌ए। मेघा जब उनके क़रीब पहुंची तो उन्होंने उसे अपने गले से लगा लिया। कुछ देर बाद मेघा उनसे अलग हुई और रुद्र की तरफ देखा।

"मुझे तुझ पर नाज़ है मेरी बहन।" रूद्र ने मेघा के चेहरे को प्यार से सहला कर कहा____"और खुश भी हूं कि तुझे तेरा प्रेम हासिल हो गया। अपने ध्रुव के साथ हमेशा खुश रहना और उसे भी खुश रखना। जब भी मेरी ज़रूरत पड़े तो अपने इस भैया को याद कर लेना। मैं पलक झपके ही तेरे सामने हाज़िर हो जाऊंगा।"

मेघा सबसे विदा ले रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो सच में ससुराल जा रही हो। रूद्र और वीर मुझसे भी गले मिले। वीर के लिए मैं अभी भी एक अजूबा जैसा था। ख़ैर मैं और मेघा महल से निकल कर अपनी एक अलग दुनिया बसाने चल दिए।

मेघा को हमेशा के लिए पा कर मैं बेहद खुश हो गया था। मेघा मुझसे कहीं ज़्यादा खुश थी। वो पिशाचनी थी किन्तु उसके बर्ताव से कहीं भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वो असल में क्या थी, बल्कि वो तो किसी साधारण इंसान की तरह ही बर्ताव कर रही थी। मुझसे किसी छोटी सी बच्ची की तरह चिपकी हुई थी और मारे ख़ुशी के जाने क्या क्या कहती जा रही थी।

हम दोनों एक ऐसी जगह पहुंचे जिस जगह को देख कर मैं एकदम से चकित रह गया था। ये वही जगह थी जिसे मैंने सपने में देखा था। चारो तरफ दूर दूर तक प्रकिति की खूबसूरती का नज़ारा दिख रहा था। वही हरी भरी खूबसूरत वादियां, वही चारो तरफ दिख रहे पहाड़, एक तरफ दूर उँचाई से बहता हुआ वही जल प्रवाह जो नीचे जा कर एक खूबसूरत नदी का रूप लिए हुए था। हरी भरी ज़मीन पर जगह जगह उगे हुए वही रंग बिरंगे फूल जो मन को मोहित कर रहे थे। ये सब देख कर मुझे ऐसा लगा जैसे मैं एक बार फिर से सपना देखने लगा हूं। इस एहसास के साथ ही मेरी धड़कनें बढ़ गईं और मेरे अंदर घबराहट सी भरने लगी। मैंने जल्दी से मेघा की तरफ देखा। वो वैसे ही मुझसे चिपकी हुई खूबसूरत वादियों को देख रही थी।

"कितनी खूबसूरत जगह है न ध्रुव?" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए हल्की मुस्कान के साथ कहा____"ऐसा लगता है जैसे ये जगह प्रकृति ने हमारे लिए ही बनाई है। हम यहीं पर अपने प्रेम की खूबसूरत दुनिया बसाएंगे। तुम क्या कहते हो इस बारे में?"

"मेरी तो खूबसूरत दुनिया तुम ही हो मेघा।" मैंने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर कहा____"जहां मेरी मेघा होगी वहीं मेरा सब कुछ होगा।"
"ओह! ध्रुव।" मेघा एकदम से मेरे सीने से लगते हुए बोली____"इतना प्रेम मत करो मुझसे कि मैं ख़ुशी के मारे बावरी हो जाऊंगा।"

"प्रेम तो वही है न।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"जिसमें इंसान बावरा हो जाए।"
"अच्छा।" मेघा मेरे सीने से लगी हुई ही मानो मासूमियत से बोली___"अगर ऐसा है तो मुझे भी तुम्हारे प्रेम में बावरी होना है।"

"वो तो तुम पहले से ही हो।" मैंने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा____"और इस बात को ऊपर वाला भी जानता है। ख़ैर छोडो इस बात को, चलो हम यहीं पर अपने प्रेम का खूबसूरत अशियाना बनाते हैं।"

"ठीक है।" मेघा मुझसे अलग हो कर बोली____"हम यहाँ पर एक छोटा सा घर बनाएंगे। हम दोनों यहाँ पर साधारण इंसानों की तरह प्रेम से रहेंगे। हम दोनों यहाँ की ज़मीन को खेती करने लायक बनाएंगे और फसल ऊगा कर उसी से अपना गुज़ारा करेंगे।"

मेघा की ये बातें सुन कर मैं मन ही मन चौंका। उसे मेरे मन की बातें कैसे पता थीं? यही तो मैं भी चाहता था और ऐसा ही तो मैंने सपने में देखा था। क्या सच में हमारे प्रेम के तार इस तरह एक दूसरे से जुड़ चुके थे कि हम दोनों एक दूसरे के मन की बातें भी जान सकते थे?

ज़िन्दगी में बहार आ गई थी। दुःख दर्द के वो बुरे दिन गायब हो गए थे। ये कोई सपना नहीं था बल्कि एक ऐसी हक़ीक़त थी जिसे मैं पूरे होशो हवास में अपनी खुली आँखों से देख रहा था और दिल से महसूस भी कर रहा था। जिसकी तलाश में मैं पिछले दो सालों से दर दर भटक रहा था वो अब मेरी आँखों के सामने थी और मेरे पास थी। जिसके लिए मैं दो सालों से तड़प रहा था वो अपने प्रेम के द्वारा मेरे हर दुःख दर्द मिटाती जा रही थी। हम दोनों बेहद खुश थे। हम दोनों ने मिल कर अपनी मेहनत से एक छोटा सा घर बना लिया था और अब ज़मीन को खेती करने लायक बना रहे थे। हम दोनों ख़ुशी ख़ुशी हर काम कर रहे थे। हमारा प्रेम हर पल बढ़ता ही जा रहा था।

मैं अच्छी तरह जानता था कि मैं मेघा से शादी करके उसे अपनी पत्नी नहीं बना सकता था और ना ही उसके द्वारा बच्चे पैदा कर सकता था। वो एक वैम्पायर लड़की थी और मैं एक साधारण इंसान। हम दोनों का कोई मेल नहीं था लेकिन सिर्फ़ एक ही चीज़ ऐसी थी जिसने हम दोनों को आपस में जोड़ रखा था और वो था हम दोनों का अटूट प्रेम। मुझे इसके अलावा और कुछ भी नहीं चाहिए था। मेघा के साथ हमारे प्रेम की ये अलग दुनिया बहुत ही खूबसूरत लग रही थी और मैं चाहता था कि प्रेम की इस दुनिया का कभी अंत न हो।

कभी कभी ये ख़याल आ जाता था कि क्या मैं सच में मर कर ज़िंदा हुआ था? ज़हन में कभी कभी धुंधला सा एक ऐसा मंज़र उभर आता था, जिसमें अनंत अंधेरा होता था और उस अनंत अंधेरे में एक छोटा सा प्रकाश पुंज टिमटिमाता हुआ दिखता था। कानों में रहस्यमई एक ऐसी आवाज़ गूंज उठती थी जो मुझसे कुछ कहती हुई प्रतीत होती थी और मैं अक्सर उसे समझने की कोशिश करता था। ये कोशिश आज भी जारी है और मेघा के साथ हमारे प्रेम की दुनिया आज भी आबाद है। हम दोनों को ही यकीन है कि एक दिन ऊपर वाला हमें इस लायक ज़रूर बनाएगा जब हम हर तरह से एक हो जाएंगे।


दुवा करो के मोहब्बत यूं ही बनी रहे।
मेरे ख़ुदा तेरी रहमत यूं ही बनी रहे।।

अब न आए कोई ग़म इस ज़िन्दगी में,
बहारे-गुल की इनायत यूं ही बनी रहे।।

जिसको चाहा उसे पा लिया आख़िर,
ख़ुदा करे ये अमानत यूं ही बनी रहे।।

हमारे दरमियां अब कभी फांसले न हों,
हमारे दरमियां कुर्बत यूं ही बनी रहे।।

जैसे अब तक एतबार रहा तुझ पर,
उसी तरह ये सदाक़त यूं ही बनी रहे।।


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✮✮✮ The End ✮✮✮
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Nice and beautiful update....
 
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मेघा वैम्पायर थी और उसने अपनी असलियत मुझे पहले ही बता दी थी लेकिन उसकी असलियत जानने के बाद भी मेरे प्रेम में कोई फ़र्क नहीं आया था। उसने मुझे बताया कि वो उस पुराने मकान में मेरे पास ज़्यादा देर तक इसी लिए नहीं रहती थी क्योंकि मेरे पास ज़्यादा देर रहने से वो खुद पर काबू नहीं रख सकती थी। मैं क्योकि इंसान था इस लिए मेरा खून उसकी कमज़ोरी बन सकता था जिसके लिए वो मुझे चोट पहुंचाने पर बिवस हो सकती थी। यही वजह थी कि वो उस मकान में मुझे खाना देने और दवा लगाने के लिए ही आती थी और जल्द से जल्द वहां से निकल जाती थी। उसे भी मुझसे प्रेम हो गया था लेकिन उसकी बिवसता यही थी कि पिशाच होने के नाते वो मेरे पास ज़्यादा देर तक रुक नहीं सकती थी। इंसानी खून पीने के लिए वो मजबूर हो जाती जो कि वो किसी भी कीमत पर नहीं चाहती थी।

मेघा ने जब अपनी असलियत बताई थी तब मैंने उससे कहा था कि वो मुझे भी अपने जैसा बना दे लेकिन उसने ऐसा करने से साफ़ इंकार कर दिया था। उसका कहना था कि पिशाच बन कर जीना एक बहुत बड़ा अभिशाप है जिसकी मुक्ति नहीं हो सकती। उसे मेरे प्रेम में तड़पना तो मंजूर था लेकिन मुझे अभिशाप से भरा हुआ जीवन देना मंजूर नहीं था। ख़ैर उसने ये सब तो बताया था किन्तु इसके पीछे की असल वजह ये नहीं बताई था कि मेरे खून से उसके पिता को नया जीवन मिल सकता है। मेरे प्रति प्रेम की ये उसकी प्रबल भावना ही थी जिसके चलते उसने अपने पिता को मेरे द्वारा नया जीवन देने के बजाय मेरी सलामती को ज़्यादा महत्वा दिया था।

इत्तेफ़ाक से जब मैं यहाँ पहुंचा तब मुझे इन सारी बातों का रूद्र और वीर के द्वारा ही पता चला था। मुझे ये सोच कर गर्व तो हुआ कि मेघा ने अपने पिता की बजाय मुझे अहमियत दी लेकिन अब ये मेरा फ़र्ज़ था कि मैं अपनी मेघा के लिए वो करूं जिससे उसके माथे पर ये कलंक न लगे कि उसने अपने जन्म देने वाले पिता को महत्वा न दे कर एक इंसान को ज़्यादा महत्वा दिया।

रुद्र और वीर को ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि मैं इतनी आसानी से इस कार्य के लिए मान जाऊंगा और अपना बलिदान इस तरह सहजता से देने को तैयार हो जाऊंगा। मेघा अभी भी मेरे लिए दुखी थी लेकिन मैंने उसे समझा दिया था कि अगर नियति में हमारा मिलन लिखा होगा तो उसे खुद नियति भी रोक नहीं पाएगी।

महल के अंदर मौजूद वो एक अलग ही स्थान था जहां पर एक बड़े से ताबूत में वैम्पायर यानि पिशाचों के पितामह अनंत का निर्जीव शरीर रखा हुआ था। रूद्र के अनुसार पितामह अनंत का शरीर पिछले सौ सालों से उस ताबूत में रखा हुआ था। शुरुआत में जब मेरी नज़र ताबूत के अंदर पड़े उस शरीर पर पड़ी तो डर के मारे मेरी चीख निकलते निकलते रह गई थी। मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था कि पिशाच दिखने में ऐसे होते होंगे। रूद्र और मेघा दोनों आपस में भाई बहन थे और उन दोनों के पिता अनंत थे। अनंत पिशाचों के पितामह थे। वीर नाम का वैम्पायर रूद्र का दोस्त था। इनके जैसे और भी पिशाच यहाँ थे लेकिन इस वक़्त वो सब इंसानों की तरह साधारण रूप में दिख रहे थे।

मुझे महल के अंदर एक ऐसे कमरे में ले जाया गया था जहां पर कमरे के बीचो बीच एक बड़ा सा चबूतरा बना हुआ था। उस कमरे में चारो तरफ अनगिनत मोमबत्तियां जल रहीं थी। उस चबूतरे के बगल से वो ताबूत भी रख दिया गया था जिसमें पिशाचों के पितामह अनंत का शरीर रखा हुआ था। ताबूत का ढक्कन हटा कर ताबूत के किनारों पर ढेर सारी मोमबत्तियां रख कर जला दी गईं थी। मुझे ऊपर से नंगा कर के उस चबूतरे में लेटा दिया गया था और साथ ही मेरे दोनों हाथ और दोनों पैरों को मजबूत रस्सी से बाँध दिया गया था। मैं अंदर से बेहद ही घबराया हुआ था लेकिन अपनी मेघा और अपने प्रेम के लिए खुद का बलिदान देने को तैयार था। चबूतरे के चारो तरफ कमरे में काले कपड़े पहने बहुत सारे पिशाच खड़े थे। रूद्र और वीर मेरे पास ही आँखें बंद किए खड़े थे। उन दोनों के होठ हिल रहे थे, ऐसा लगता था जैसे कोई मंत्र पढ़ रहे हों। मेरे एक तरफ मेघा खड़ी थी जिसका चेहरा इस वक़्त बेहद सपाट था। शायद उसने अपने जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से काबू किया हुआ था।

रूद्र और वीर ने आंखें खोल कर एक बार मेरी तरफ देखा उसके बाद उसने दूसरी तरफ देख कर कुछ इशारा सा किया, परिणामस्वरूप कुछ ही देर में दो वैम्पायर एक ट्राली लिए आते दिखे। उस ट्राली में कई सारी चीज़ें रखी हुईं थी। ट्राली के दो सिरों में राड लगी हुई थी जो ऊपर एक अलग राड में जुड़ी हुई थी। ऊपर की उस राड के दोनों छोर पर कुंडे बने हुए थे जिनमें पतले से किन्तु पारदर्शी क‌ई पाइप लटक रहे थे। ट्राली में कांच के बड़े बड़े बोतल रखे हुए थे और उसके बगल से लोहे के कुछ ऐसे इंस्ट्रूमेंट्स जिन्हें मैंने कभी नहीं देखा था।

"तुम तैयार हो न लड़के?" सहसा रूद्र ने मेरे क़रीब आते हुए कहा____"क्योंकि अब जो कुछ भी होगा वो तुम्हारे लिए बेहद ही असहनीय होगा।"

"मुझे परवाह नहीं रूद्र जी।" मैंने अपनी घबराहट को काबू करते हुए कहा____"आप अपना काम कीजिए लेकिन उससे पहले मुझे मेरी एक ख़्वाहिश पूरी कर लेने दीजिए।"

"कैसी ख़्वाहिश?" रूद्र के माथे पर सलवटें उभरीं।
"मुझे अपनी मेघा को एक बार और देखना है।" मैंने कहा____"अपनी आँखों में अपनी मेघा का चेहरा बसा कर इस दुनियां से जाना चाहता हूं।"

"ठीक है।" रूद्र ने कुछ देर तक मेरी तरफ देखते रहने के बाद कहा और एक तरफ हट गया। उसके साथ वीर भी हट गया। उन दोनों के हटते ही मेघा मेरी आँखों के सामने आ कर मेरे पास ही खड़ी हो गई। उसका चेहरा ही बता रहा था कि वो इस वक़्त अपने दिल के जज़्बातों को काबू करने की बहुत ही जद्दो जहद कर रही थी। उसकी आँखों में आंसू तैर रहे थे।

"क्या ऐसे दुखी हो कर विदा करोगी मुझे?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए फीकी मुस्कान के साथ कहा तो मेघा खुद को सम्हाल न पाई और तड़प कर मेरे सीने में अपना चेहरा छुपा कर रोने लगी।

"ऐसा मत करो ध्रुव" मेघा ने रोते हुए कहा____"मुझे इस तरह छोड़ कर मत जाओ। मैं इसी लिए तुम्हारे प्रेम को स्वीकार नहीं कर रही थी क्योंकि मैं पहले से जानती थी कि मेरे पिता को फिर से जीवन मिलने की क्या शर्त है। मैंने एक बार भैया की बातें सुन ली थी और इसी लिए हर बार तुम्हारे प्रेम को ठुकरा रही थी ताकि तुम अपने दिल से मेरा ख़याल निकाल दो।"

"अब इन सब बातों का समय नहीं है मेघा।" मैंने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"अब तो बस हंसते हंसते खुद को फ़ना कर देने का वक़्त है। मैं बेहद खुश हूं कि ऊपर वाले ने मुझे तुमसे मिलाया। हाँ, इस बात का थोड़ा दुःख ज़रूर है कि तुम्हारा साथ मेरी किस्मत में बहुत थोड़ा सा लिखा उसने लेकिन कोई बात नहीं, जीवन में इंसान को भला कहां सब कुछ मिल जाया करता है? ख़ैर छोड़ ये सब बातें और मुझे अपनी वैसी ही मोहिनी सूरत दिखाओ जैसे दो साल पहले मैंने देखी थी। बिलकुल वैसा ही चाँद की तरह चमकता हुआ चेहरा और वही मुस्कान।"

"नहीं, ये मुझसे नहीं होगा।" मेघा ने तड़प कर कहा____"ऐसे हाल में मैं मुस्कुरा भी कैसे सकती हूं ध्रुव जबकि मैं उस महान शख़्स को हमेशा के लिए खो देने वाली हूं जिसने मुझ जैसी पिशाचनी से प्रेम किया और मुझे प्रेम करना सिखाया?"

"मैं हमेशा तुम्हारे दिल में ही रहूंगा मेघा।" मैंने कहा____"तुम्हारे दिल से तो नहीं जा रहा न मैं? फिर क्यों दुखी होती हो? इस वक़्त मैं बस यही चाहता हूं कि मेरी मेघा मुझे मुस्कुराते हुए विदा करे और सच्चे मन से अपने पिता को पुनः प्राप्त करने की हसरत रखे।"

मेघा ने मेरे सीने से अपना चेहरा उठा कर मेरी तरफ देखा। नीली गहरी आँखों में तड़प और आंसू के अलावा कुछ न था। दूध की तरह गोरा चेहरा सुर्ख पड़ा हुआ था। मेरे दोनों हाथ बँधे हुए थे इस लिए मैं उसके सुन्दर चेहरे को अपनी हथेलियों में नहीं ले सकता था।

"तुम्हें मेरी क़सम है मेघा।" मैंने उसकी आँखों में देखते हुए कहा____"तुम सच्चे मन से वही करो जो इस वक़्त ज़रूरी है और हाँ मुझे अपनी मनमोहक मुस्कान के साथ ही विदा करो। मैं तुम्हारे मुस्कुराते हुए चेहरे को अपनी आँखों में बसा कर इस दुनिया से जाना चाहता हूं। क्या तुम मेरी ये आख़िरी हसरत पूरी नहीं करोगी?"

मेरी बातें सुन कर मेघा ने अपनी आँखें बंद कर ली। जैसे ही पलकें बंद हुईं तो आंसू की धार बाह कर उसके दोनों गालों को नहला ग‌ई। चेहरे के भाव बदले और कुछ ही पलों में उसने पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा। अपनी आस्तीन से उसने अपने आंसू पोंछे और मेरी तरफ देखते हुए बस हल्के से मुस्कुराने की कोशिश की। वो जैसे ही मुस्कुराई तो ऐसा लगा जैसे सब कुछ मिल गया हो मुझे। दिल का ज़र्रा ज़र्रा ख़ुशी से भर गया। मेरे होठों पर भी मुस्कान उभर आई। तभी जाने उसे क्या हुआ कि वो झुकी और मेरे होठों पर अपने होंठ रख दिए। वक़्त जैसे एकदम से ठहर गया। मैं किसी और ही दुनिया में पहुंच गया किन्तु जल्दी ही वापस आया। मेघा ने मेरे चेहरे को एक बार प्यार से सहलाया और फिर एक तरफ चली गई।

मेघा के जाने के बाद रूद्र और वीर के कहने पर दो पिशाच ट्राली ले कर मेरे पास आए। रूद्र ने मुझे बताया कि आगे अब जो होगा उसमें मुझे बेहद तकलीफ़ होगी इस लिए मैं उस तकलीफ़ को सहने के लिए तैयार हो जाऊं। मैं अंदर से बेहद डरा हुआ था किन्तु अब भला डरने से क्या हो सकता था? ये सब तो मैंने खुद ही ख़ुशी से चुना था। कुछ ही देर में दो पिशाच मेरे दाएं बाएं आ कर खड़े हुए। उन दोनों के हाथ में बड़ी सी सुई थी और सुई के पीछे पतला किन्तु पारदर्शी पाईप। वीर के इशारे पर दो चार पिशाच मेरे पास आए और मुझे शख़्ती से पकड़ लिया। उनके ऐसा करते ही मेरी धड़कनें तेज़ चलने लगीं। ऐसा लगा जैसे मुझे बकरा समझ कर हलाल करने वाले थे वो। हालांकि एक तरह से मैं बकरा ही तो था।

एक साथ दोनों तरफ से मेरे हाथ में बड़ी बड़ी दो सुईयां चुभा दी ग‌ईं। मैं दर्द के मारे पूरी शक्ति से चिल्लाया। हालांकि दर्द को बर्दास्त करने की मैंने बहुत कोशिश की थी लेकिन दर्द मेरी सोच से कहीं ज़्यादा असहनीय था। दो सुईयां हाथ में चुभाने के बाद पहले वाले दो पिशाच वापस पलटे और कुछ देर बाद फिर से वापस आए और इस बार वो दो बड़ी बड़ी सुईयां मेरे सीने में चुभा दिया। मैं एक बार फिर से हलक फाड़ कर चिल्लाया। मेरी चीखों से समूचा हाल दहल उठा। कुछ देर बाद धीरे धीरे दर्द कम होने लगा तो मैंने राहत की लम्बी साँसें ली।

मुझे आँखों के सामने अँधेरा छाता हुआ महसूस होने लगा था। मेरे जिस्म में चार जगह सुईयां लगी हुईं थी। उन सुईयों के पीछे लगे पाइप में मेरा खून बड़ी तेज़ी से मेरे जिस्म से निकल कर पाईप के आख़िरी उस छोर पर जा रहा था जहां पर कांच के चार बॉटल रखे हुए थे। वो चारो बॉटल ट्राली के नीचे रखे हुए थे। प्रतिपल मेरी आँखों के सामने अँधेरा गहराता जा रहा था और मैं रफ्ता रफ्ता मौत की गहरी नींद में डूबता चला जा रहा था। एक वक़्त ऐसा भी आया जब मैंने महसूस किया जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया है और अब पूरी कायनात में शान्ति छा गई है।

✮✮✮

हर तरफ काला स्याह अँधेरा था। एक ऐसा अँधेरा जिसका कोई अंत नहीं जान पड़ता था। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं उस अँधेरे में ऊपर की तरफ बड़ी तेज़ी से उड़ता चला जा रहा था। हालांकि मैं अपना वजूद महसूस नहीं कर पा रहा था किन्तु इतना ज़रूर आभास हो रहा था जैसे मैं अनंत अँधेरे में कहीं तो ज़रूर हूं। पता नहीं कब तक मैं यूं ही अँधेरे में ऊपर की तरफ उड़ता हुआ महसूस करता रहा। मैं अंदर से बेहद घबराया हुआ था और अपने हाथ पैर चलाना चाहता था किन्तु ऐसा लगता था जैसे मेरा समूचा जिस्म निष्क्रिय हो गया हो। एकाएक अँधेरे में मुझे एक छोटा सा बिंदु टिमटिमाता हुआ दिखा। मैंने चारो तरफ गर्दन घुमा कर देखने की कोशिश की किन्तु सब ब्यर्थ। मैं निरंतर उस बिंदु की तरफ ही बढ़ता चला जा रहा था।

मैंने महसूस किया कि वो बिंदु प्रतिपल अपना आकार बड़ा कर रहा था। मेरे लिए ये हैरानी की बात थी किन्तु मैं कुछ भी कर पाने में असमर्थ था। अनंत अँधेरे में दिखा वो छोटा सा बिंदु जैसे जैसे बड़ा होता जा रहा था वैसे वैसे अनंत अँधेरा कम होता जा रहा था। मैं एक तरफ जहां अँधेरे के कम होने पर ख़ुशी महसूस करने लगा था वहीं उस टिमटिमाते हुए बिंदु को प्रतिपल बड़ा होते देख घबराहट से भी भरता जा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ये सब क्या था और मैं ये कहां पहुंच गया हूं?

एक वक़्त ऐसा आया जब छोटा सा दिखने वाला बिंदु इतना बड़ा हो गया कि उसकी तेज़ रोशनी से मेरी आँखें चौंधियां गईं और मैंने झट से अपनी आँखें बंद कर ली। ऐसा लगा जैसे पलक झपकते ही अनंत अँधेरा उस तेज़ प्रकाश से कहीं विलुप्त हो गया हो। उस बिंदु का प्रकाश इतना तेज़ था कि बंद पलकों के बावजूद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी आँखों के बल्ब फ्यूज हो जाएंगे।

"आँखें खोलो ध्रुव।" अनंत सन्नाटे में एक ऐसी आवाज़ गूँजी जिसने मेरी रूह को थर्रा कर रख दिया। डर के मारे मैं बुरी तरह कांपने लगा था किन्तु उस आवाज़ का असर ऐसा था कि मैंने किसी सम्मोहन में फंसे इंसान की तरह झट से अपनी आँखें खोल दी।

आंखें खुली तो तेज़ रोशनी को मैं देख न सका इस लिए फ़ौरन ही अपनी आँखें फिर से बंद कर ली। कुछ पलों बाद मैंने बहुत ही आहिस्ता से अपनी पलकों को खोला तो इस बार मुझे रोशनी का तेज़ थोड़ा कम महसूस हुआ।

"हम तुम्हारे पवित्र प्रेम और प्रेम में दिए हुए बलिदान से बेहद प्रसन्न हुए ध्रुव।" उस तेज़ प्रकाश से फिर आवाज़ गूंजी____"इस लिए हमारा आशीर्वाद है कि तुम्हारा ये बलिदान ब्यर्थ नहीं जाएगा। हम तुम्हें वापस तुम्हारी प्रेमिका के पास भेज रहे हैं। तुम धरती पर मेघा के साथ सौ वर्ष तक रहोगे। सौ वर्ष बाद तुम दोनों को हमारी कृपा से मुक्ति मिल जाएगी।"

उस तेज़ प्रकाश से निकली इस बात को सुन कर मैं बेहद खुश हो गया। मैंने उस प्रकाश को हाथ जोड़ कर प्रणाम किया। प्रणाम करने के बाद जैसे ही मैंने सिर उठा कर उस प्रकाश की तरफ देखा तो चौंक गया क्योंकि अब वहां कोई प्रकाश नहीं था बल्कि हर तरफ वैसा ही अँधेरा था जैसे पहले था। तभी मैंने महसूस किया जैसे मैं नीचे की तरफ बड़ी तेज़ी से जा रहा हूं। एक बार फिर से मेरे अंदर तेज़ घबराहट भर गई। मैं अपने हाथ पाँव चलाना चाहता था किन्तु मैं सब ब्यर्थ। ऐसा लगा जैसे मेरे जिस्म का हर अंग निष्क्रिय हो गया हो। मैं बड़ी तेज़ी से नीचे आ रहा था। अनंत अँधेरे में मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

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"आपको तो नया जीवन मिल गया पिता जी।" मेघा रोते हुए कह रही थी_____"लेकिन अब मुझे यहाँ नहीं रहना। मुझे इस जीवन से मुक्ति दे दीजिए ताकि मैं भी अपने ध्रुव के पास चली जाऊं। उसने मेरे प्रेम में आपके ख़ातिर खुद का बलिदान दे दिया। उसने आपको फिर से जीवन देने के लिए अपना अमूल्य जीवन बलिदान कर दिया पिता जी। मुझे ख़ुशी है कि आपको फिर से नया जीवन मिल गया। आप अनंत काल तक जिएं और शान से यहाँ राज कीजिए लेकिन मुझे मुक्ति दे दीजिए। मुझे अपने ध्रुव के पास जाना है, उसे मेरी और मेरे प्यार की ज़रूरत है पिता जी। आप नहीं जानते उसने मेरी सिर्फ एक झलक पाने के लिए कितने दुःख सहे थे। उसने ये जान कर भी मुझसे टूट कर प्रेम किया कि मैं कोई इंसान नहीं बल्कि एक पिशाचनी हूं। आज उसने उसी प्रेम के लिए अपना बलिदान दे दिया। ऐसे महान इंसान के बिना मैं एक पल भी इस दुनिया में जीना नहीं चाहती। कृपया मुझे मुक्ति दे दीजिए पिता जी।"

"हमें माफ़ कर दो बेटी।" सम्राट अनंत ने मेघा के क़रीब आते हुए कहा_____"किन्तु हम ये नहीं कर सकते। हम अपने ही हाथों से अपनी बेटी का गला नहीं घोंट सकते। काश! हमें इस बात का सौ साल पहले एहसास हुआ होता तो उस समय हम रूद्र को ऐसा करने को कहते ही नहीं। ये तो अब तुम्हें इस हाल में देख कर हमें एहसास हो रहा है कि अपने स्वार्थ में हमने अपनी बेटी की ख़ुशी छीन ली।"

"मैं आपको इसके लिए कसूरवार नहीं ठहराऊंगी पिता जी।" मेघा ने दुखी भाव से कहा____"बल्कि अगर आप मुझे मुक्ति दे कर मेरे ध्रुव के पास भेज दें तो मुझे ख़ुशी ही होगी।"

"हमें तुम्हारे दुःख का अंदाज़ा है बेटी।" सम्राट अनंत ने कहा____"लेकिन तुम हमारी बिवसता को समझो। भला कोई पिता अपने ही हाथों से कैसे अपनी बेटी की जान ले ले सकता है?"

"पिता जी ठीक कह रहे हैं मेघा।" रूद्र ने मेघा के पास ही बैठते हुए कहा_____"दुसरी बात तुम भूल रही हो कि हम कौन हैं। हम पिशाच हैं मेघा और हमें इस तरह से मुक्ति नहीं मिलती। देखो, मैं भी तो सृष्टि के बिना जी ही रहा हूं न? क्या मैं नहीं चाहता कि मुझे भी मुक्ति मिल जाए और मैं अपनी सृष्टि के पास पहुंच जाऊं? मैंने बहुत कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। हम पिशाचों की यही किस्मत है मेघा।"

"जो भी हो लेकिन मैं अपने ध्रुव के बिना एक पल भी इस दुनिया में नहीं रहना चाहती।" मेघा उठी और भागते हुए उस चबूतरे के पास आई जिस चबूतरे में मैं लेटा हुआ था। मैं अभी भी वैसे ही उस चबूतरे में बंधा आँखें बंद किए पड़ा हुआ था। मेघा भाग कर मेरे पास आई और मुझे झिंझोड़ते हुए बोली_____"मुझे भी अपने पास बुला लो ध्रुव। मैं तुम्हारे बिना यहाँ नहीं रहना चाहती। तुम तो मुझे दुखी और बेबस नहीं कर सकते न क्योंकि तुमने ही कहा था कि ऐसा करना प्रेम की तौहीन करना कहलाता है। फिर तुम खुद ही ऐसा कैसे कर सकते हो? वापस आ जाओ मेरे ध्रुव, तुम्हारी मेघा तुम्हें पुकार रही है। मुझे यहाँ इस तरह अकेले छोड़ कर मत जाओ।"

कहने के साथ ही मेघा मुझसे लिपट कर रोने लगी। रूद्र, वीर और खुद सम्राट अनंत भी उसके पास आ गए थे। मेघा को इस तरह मेरे निर्जीव पड़े शरीर से लिपटे रोता देख उनके चेहरे पर भी दुःख के भाव उभर आए किन्तु वो कुछ नहीं कर सकते थे। उधर मेघा बार बार मुझे झकझोर रही थी और साथ ही रो रो कर मुझसे जाने क्या क्या कहती जा रही थी। एकाएक मेरे जिस्म को झटका लगा और मैं लम्बी सांस ले कर जाग उठा।

मेरी आँखें खुल चुकी थी। मैं तेज़ तेज़ साँसें ले रहा था और बीच बीच में ख़ास भी रहा था। ये सब देख वहां मौजूद सब के सब बुरी तरह उछल पड़े। रूद्र, वीर और सम्राट अनंत भाग कर मेरे क़रीब आए। मेघा जल्दी से मुझसे से अलग हुई और मुझे जीवित देख कर उसकी आँखों से ख़ुशी के आंसू छलक पड़े। वो मेरा नाम लेते हुए फिर से मुझसे लिपट गई। सब के सब आश्चर्य चकित थे। किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि मैं इस तरह ज़िंदा हो जाऊंगा।

"मैं जानती थी कि तुम मुझे इस तरह छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते।" मेघा ख़ुशी के मारे मेरे चेहरे को चूमती हुई बोलती जा रही थी____"मैं जानती थी कि तुम अपनी मेघा को दुःख तकलीफ़ नहीं दे सकते।" सहसा वो पलटी और सम्राट अनंत की तरफ देखते हुए बोली____"पिटा जी मेरा ध्रुव वापस आ गया। वो अपनी मेघा के पास वापस आ गया पिता जी, देखिए न।"

साम्राट अनंत अपनी बेटी की बात सुन कर इस तरह चौंका जैसे अभी तक वो किसी और ही दुनिया में खोया हुआ था। वो ब्याकुल भाव से बोला_____"हां बेटी देख लिया हमने। हमने देख लिया कि तुम दोनों के प्रेम को ऊपर वाले ने भी स्वीकार कर लिया है। अगर ऐसा न होता तो तुम्हारा ध्रुव वापस नहीं लौटता।"

जल्द ही सम्राट अनंत के हुकुम पर मुझे बन्धनों से मुक्त कर के उस चबूतरे से उतारा गया। हाल में मौजूद सारे पिशाच मुझे ज़िंदा देख कर चकित थे। मैं खुद भी हैरान था कि ये सब कैसे हुआ? मेरे जिस्म में ना तो कोई ज़ख्म नज़र आ रहा था और ना ही मुझे कोई कमज़ोरी महसूस हो रही थी।

मेघा की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था। सम्राट अनंत ने मुझे अच्छे से नहलाने के लिए कहा तो मेघा खुद मुझे ले कर चल दी। वो मुझे छोड़ ही नहीं रही थी। मुझे शुरुआत में कुछ समझ नहीं आ रहा था किन्तु फिर ये सोच कर खुश हो गया कि जैसे भी हुआ हो लेकिन मैं ज़िंदा हो गया था और अब अपनी मेघा के साथ था। मेघा मुझे अपने कमरे में ले गई और वहीं गुशलखाने में वो अपने हाथों से मुझे नहलाने को बोली। मैं उसका ये प्यार देख कर खुश था किन्तु गुशलखाने में उसके सामने नंगा हो कर नहाने में मुझे बेहद शर्म आ रही थी। आख़िर मेरे बहुत ज़ोर देने पर मेघा ने मुझे अकेला छोड़ा।

मैं मेघा के कमरे से नहा धो कर तथा अच्छे कपड़े पहन कर बाहर निकला। मेघा मुझे ले कर सम्राट के दरबार में आई। दरबार में रूद्र और वीर के साथ साथ बाकी और भी कई पिशाच मौजूद थे। वहां पर मेरे बारे में ही बातें चल रही थी और साथ ही साथ इस बारे में भी कि सम्राट के पुनः वापस आने के बाद अब यहाँ पर एक बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाएगा जिसमें हर जगह के पिशाच शामिल होंगे।

"आओ बैठो बेटा।" सम्राट अनंत ने अपने क़रीब ही रखी एक कुर्सी पर मुझे बैठने का इशारा किया तो मैं जा कर बैठ गया। मेरे बगल वाली कुर्सी पर मेघा बैठ गई। मेरे लिए ये सब बहुत ही अजीब था और बहुत ही ज़्यादा असहज भी।

"तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया बेटा कि तुमने हमें नया जीवन देने के लिए ख़ुशी ख़ुशी अपना बलिदान दिया।" सम्राट अनंत ने प्रेम भाव से कहा_____"लेकिन हम सबके लिए ये बहुत ही ज़्यादा आश्चर्यचकित कर देने वाली बात है कि तुम वापस ज़िंदा कैसे हो गए? हम ये भी अच्छी तरह जानते हैं कि तुम कोई ऐसी चीज़ नहीं हो जिसमें कोई दैवीय शक्तियां हों इस लिए तुम्हारे ज़िंदा होने वाली बात संभव हो ही नहीं सकती।"

"मैं खुद इस बात से हैरान हूं।" मैंने खुद को नियंत्रित करते हुए कहा____"लेकिन हाँ इस बात से बेहद खुश हूं कि ऊपर वाले की कृपा से मैं फिर से अपनी मेघा के पास आ गया।"

"शायद इन दोनों के प्रेम को ऊपर वाले ने स्वीकार कर लिया होगा।" रूद्र ने कुछ सोचते हुए कहा____"आप तो जानते ही हैं कि प्रेम में बहुत बड़ी ताक़त होती है और उसका असर भी बहुत होता है।"
"हां यही हो सकता है।" वीर ने सिर हिलाया।

"वैसे पिता जी हम सब ये जानना चाहते हैं कि आपको पुनः जीवन मिलने की ऐसी शर्त क्यों थी?" रूद्र ने संतुलित लहजे में कहा____"सौ साल पहले आपने मुझे इस बारे में ज़्यादा कुछ नहीं बताया था। इस लिए हम सब अभी भी इस बात को जानने के लिए उत्सुक हैं कि आख़िर ऐसा क्या हुआ था जिसके चलते आप मुर्दा हो ग‌ए और आपके मुर्दा शरीर को ताबूत में रखना पड़ा? इतना ही नहीं बल्कि आपको पुनः जीवित करने के लिए इस तरह की शर्त का क्या रहस्य था? कृपया हम सबको इस रहस्य के बारे में बताइए पिता जी।"

"ऐसा एक श्राप की वजह से सब हुआ।" सम्राट अनंत ने गंभीरता से कहा____"सौ साल पहले की बात है। एक बार हम अपनी दुनिया से निकल कर इंसानी दुनिया में एक ऐसी जगह पहुंच गए जहां पर सिद्ध ऋषि मुनि लोग रहते थे। हालांकि हमें ये पता नहीं था कि वो जगह सिद्ध ऋषि मुनियों की थी। रात का समय था और आसमान में पूरा चमकता हुआ चाँद था। चाँद की रौशनी में हमने देखा एक सुन्दर झरने पर एक लड़की पत्थर पर बैठी हुई थी। पत्थर के चारो तरफ झरने का पानी था और उसके दाहिने तरफ कुछ दूरी पर उँचाई से झरने का पानी गिर रहा था। हमें ये देख कर थोड़ा अजीब लगा कि रात के वक़्त ऐसी जगह पर वो लड़की इस तरह अकेली क्यों बैठी हुई थी। ख़ैर हम बड़ी सावधानी से उसके पास पहुंचे। उस लड़की के गोरे जिस्म पर सिर्फ़ साड़ी ही थी जो कि गेरुए रंग की थी और उसके जिस्म पर इस तरह लिपटी हुई थी जो सिर्फ़ उसके गुप्तांगों को ही ढँके थी, बाकी उसका जिस्म बेपर्दा था और चाँद की रौशनी में चमक रहा था। सिर के बालों को उसने सुगन्धित फूलों की माला के द्वारा जूड़े के रूप में बाँध रखा था। हम जब उसके क़रीब पहुंचे तो देखा वो झरने के पानी में अपने दोनों पैर डाले घास के एक तिनके द्वारा पानी से खेल रही थी। उसे हमारे आने का ज़रा भी आभास नहीं हुआ था। इधर हम बेहद खुश थे कि आज शिकार के रूप में हमें एक लड़की इस तरह अकेली मिल गई थी। हम उसके और क़रीब पहुंचे तो जैसे उसे कुछ आभास हुआ। उसने पलट कर पीछे देखा तो किसी अंजान आदमी को देख कर वो दर गई। हमारी नज़र पहले तो उसके डरे हुए चेहरे पर पड़ी किन्तु जल्दी ही उसके खुले हुए गले पर जा पड़ी। हमारी आँखों को उसके गले में चमकती उछलती नश और सुर्ख खून दिखने लगा जिसकी वजह से हम पर प्यास तारी हो गई और हम फ़ौरन ही उस पर झपट पड़े। वो हलक फाड़ कर चिल्लाई किन्तु तब तक हमने उसके गले पर अपने दोनों दाँत पेवस्त कर दिए थे। वो बुरी तरह चीख रही थी और हमसे छूटने के लिए छटपटा रही थी। उसकी चीख का ही प्रभाव था कि कुछ ही पलों में वहां पर एक सिद्ध ऋषि जैसा इंसान भागता हुआ आया। उसकी तेज़ आवाज़ सुन कर हमने उस लड़की को छोड़ कर उसकी तरफ देखा। हमारे मुख में उस लड़की का खून लगा हुआ था और कुछ खून हमारे मुख से बह रहा था। उधर वो लड़की एकदम बेजान सी हमारी बाहों में झूल रही थी। ज़ाहिर था वो मर चुकी थी। उस लड़की की ऐसी हालत देख कर उस ऋषि का चेहरा गुस्से से भर गया और उसने हमें श्राप दिया।"

"नीच पिशाच" उस ऋषि ने गुस्से से कहा था____"तुमने जिस लड़की का खून पी कर उसकी जान ली है वो मेरी प्रियतमा है। यहाँ पर वो मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। मेरी निर्दोष प्रियतमा को इस तरह मारने वाले नीच पिशाच मैं तुझे श्राप देता हूं कि तू जल्द ही मुर्दे में तब्दील हो जाएगा किन्तु तुझे इस योनि से कभी मुक्ति नहीं मिलेगी।"

हम सब ख़ामोशी से सम्राट अनंत की बातें सुन रहे थे। उधर वो इतना कहने के बाद ख़ामोश हो गए थे। हमें लगा वो आगे कुछ बोलेंगे लेकिन जब काफी देर गुज़र जाने पर भी वो कुछ न बोले तो रूद्र से रहा न गया।

"फिर क्या हुआ पिता जी?" रूद्र ने उत्सुकता से पूछा_____"उस ऋषि ने आपको जब ऐसा श्राप दिया तब आपने क्या किया था?"

"शायद उस लड़की के शुद्ध रक्त का ही प्रभाव था कि हम एकदम से शांत पड़ गए थे।" सम्राट अनंत ने बताना शुरू किया____"उस ऋषि का श्राप सुन कर हमारे अंदर डर और घबराहट भर गई। हमें अपनी ग़लती का एहसास हुआ तो हम उस ऋषि के पास जा कर उसके पैरो में गिर गए और उससे अपने द्वारा किए गए उस जघन्य अपराध के लिए माफ़ी मांगने लगे। आख़िर हमारी प्रार्थना से द्रवित हो कर उस ऋषि ने शांत भाव से कहा____'मेरा श्राप तो टल नहीं सकता लेकिन क्योंकि तुझे अपनी ग़लती का एहसास हो गया है इस लिए हम अपने श्राप को एक निश्चित अवधि में परिवर्तित कर सकते हैं। सौ साल बाद जब तेरी बेटी को किसी इंसान से प्रेम होगा तो उस इंसान के खून द्वारा ही तेरा मुर्दा शरीर फिर से सजीव हो जाएगा, लेकिन...'

"लेकिन क्या ऋषिवर?" हम उस ऋषि के लेकिन कहने पर आशंकित हो उठे थे।
"लेकिन ये कि उस इंसान का खून तभी अपना असर दिखाएगा जब वो इंसान अपनी ख़ुशी से तुझे जीवन देने के लिए अपना बलिदान देगा।" ऋषि ने कहा_____"अगर इस कार्य में तेरी बेटी और तेरी बेटी के उस प्रेमी की रज़ामंदी नहीं होगी तो उसके खून का कोई असर नहीं होगा।"

"मेरे मुर्दा शरीर को फिर से सजीव करने की ये कैसी शर्त है ऋषिवर?" हमने हताश भाव से कहा था____"आप अच्छी तरह जानते हैं कि हम पिशाच किसी इंसान से प्रेम करने का सोच भी नहीं सकते बल्कि किसी इंसान को देखते ही हम उसका खून पीने के लिए मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में मेरी बेटी भला कैसे किसी इंसान से प्रेम करने का सोचेगी? जब ऐसा होगा ही नहीं तो मेरा मुर्दा शरीर कैसे फिर से सजीव हो सकेगा?"

"हमारा कथन कभी झूठा नहीं हो सकता।" उस ऋषि ने कहा____"अब तू जा क्योंकि तेरे पास अब ज़्यादा समय नहीं है।"

इतना कह कर वो ऋषि पलटा और एक तरफ को चला गया। उसके जाते ही हम चौंके क्योंकि हमारे पीछे अचानक ही हमें आग जलती हुई प्रतीत हुई थी। हमने तेज़ी से पलट कर पीछे देखा। जिस लड़की का हमने खून पिया था और उसकी जान ली थी उसका शरीर आग में जल रहा था। हमारे देखते ही देखते वो लड़की जल गई और जब आग समाप्त हुई तो पत्थर में कुछ नहीं था। उस लड़की के जले हुए शरीर की राख तक नहीं थी उस पत्थर पर। हमारे लिए ये बड़े ही आश्चर्य की बात थी किन्तु फिर ख़याल आया कि हमारे पास ज़्यादा वक़्त नहीं है इस लिए हम जल्दी ही वहां से अपनी दुनिया में लौट आए और फिर हमने तुम्हें ये बताया कि कैसे हमारा मुर्दा शरीर फिर से सजीव होगा।"

"तो ये कहानी थी आपके मुर्दा हो जाने की।" रूद्र ने लम्बी सांस खींचते हुए कहा_____"अब समझ आया कि उस समय आपके पास ज़्यादा समय नहीं था और इसी लिए आप सारी बातें मुझे नहीं बता सकते थे। सिर्फ़ वही बताया जो ज़रूरी था।"

"मुझे आपसे कुछ कहना है पिता जी।" सहसा मेघा ने ये कहा तो सबने उसकी तरफ देखा, जबकि सम्राट अनंत ने कहा____"हां कहो बेटी, क्या कहना चाहती हो तुम?"

"मैं अपने ध्रुव के साथ यहाँ से कहीं दूर जाना चाहती हूं।" मेघा ने सपाट लहजे में कहा____"एक ऐसी जगह जहां पर मेरे और मेरे ध्रुव के अलावा तीसरा कोई न हो।"

"तुम अपने ध्रुव के साथ यहाँ भी तो रह सकती हो बेटी।" सम्राट अनंत ने कहा____"हम तुम्हें वचन देते हैं कि यहाँ पर तुम्हारे ध्रुव को किसी से कोई भी ख़तरा नहीं होगा। जिस इंसान ने हमें एक नया जीवन दिया है हम खुद कभी ये नहीं चाहेंगे कि उस पर किसी तरह की कोई बात आए।"

"मुझे यकीन है कि यहाँ पर मेरे ध्रुव को किसी से कभी कोई ख़तरा नहीं होगा।" मेघा ने कहा____"लेकिन इसके बावजूद मैं यहाँ से जाना चाहती हूं पिता जी। कृपया मुझे अपने ध्रुव के साथ अपनी एक अलग दुनिया बसाने की इजाज़त दे दीजिए। मैं अब अपने ध्रुव के साथ एक साधारण इंसान की तरह रहना चाहती हूं।"

"अगर तुमने ऐसा सोच ही लिया है तो ठीक है।" सम्राट अनंत ने कहा____"हम तुम्हें जाने की इजाज़त देते हैं लेकिन अगर कभी हमें तुम्हारी याद आई तो हमसे मिलने ज़रूर आना। अपने इस अभागे पिता को भूल मत जाना बेटी।"

साम्राट अनंत की बातें सुन कर मेघा के चेहरे पर ख़ुशी के भाव उभर आए। वो कुर्सी से उठी और अपने पिता की तरफ बढ़ी तो सम्राट अनंत भी अपने सिंघासन से उठ कर खड़े हो ग‌ए। मेघा जब उनके क़रीब पहुंची तो उन्होंने उसे अपने गले से लगा लिया। कुछ देर बाद मेघा उनसे अलग हुई और रुद्र की तरफ देखा।

"मुझे तुझ पर नाज़ है मेरी बहन।" रूद्र ने मेघा के चेहरे को प्यार से सहला कर कहा____"और खुश भी हूं कि तुझे तेरा प्रेम हासिल हो गया। अपने ध्रुव के साथ हमेशा खुश रहना और उसे भी खुश रखना। जब भी मेरी ज़रूरत पड़े तो अपने इस भैया को याद कर लेना। मैं पलक झपके ही तेरे सामने हाज़िर हो जाऊंगा।"

मेघा सबसे विदा ले रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो सच में ससुराल जा रही हो। रूद्र और वीर मुझसे भी गले मिले। वीर के लिए मैं अभी भी एक अजूबा जैसा था। ख़ैर मैं और मेघा महल से निकल कर अपनी एक अलग दुनिया बसाने चल दिए।

मेघा को हमेशा के लिए पा कर मैं बेहद खुश हो गया था। मेघा मुझसे कहीं ज़्यादा खुश थी। वो पिशाचनी थी किन्तु उसके बर्ताव से कहीं भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वो असल में क्या थी, बल्कि वो तो किसी साधारण इंसान की तरह ही बर्ताव कर रही थी। मुझसे किसी छोटी सी बच्ची की तरह चिपकी हुई थी और मारे ख़ुशी के जाने क्या क्या कहती जा रही थी।

हम दोनों एक ऐसी जगह पहुंचे जिस जगह को देख कर मैं एकदम से चकित रह गया था। ये वही जगह थी जिसे मैंने सपने में देखा था। चारो तरफ दूर दूर तक प्रकिति की खूबसूरती का नज़ारा दिख रहा था। वही हरी भरी खूबसूरत वादियां, वही चारो तरफ दिख रहे पहाड़, एक तरफ दूर उँचाई से बहता हुआ वही जल प्रवाह जो नीचे जा कर एक खूबसूरत नदी का रूप लिए हुए था। हरी भरी ज़मीन पर जगह जगह उगे हुए वही रंग बिरंगे फूल जो मन को मोहित कर रहे थे। ये सब देख कर मुझे ऐसा लगा जैसे मैं एक बार फिर से सपना देखने लगा हूं। इस एहसास के साथ ही मेरी धड़कनें बढ़ गईं और मेरे अंदर घबराहट सी भरने लगी। मैंने जल्दी से मेघा की तरफ देखा। वो वैसे ही मुझसे चिपकी हुई खूबसूरत वादियों को देख रही थी।

"कितनी खूबसूरत जगह है न ध्रुव?" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए हल्की मुस्कान के साथ कहा____"ऐसा लगता है जैसे ये जगह प्रकृति ने हमारे लिए ही बनाई है। हम यहीं पर अपने प्रेम की खूबसूरत दुनिया बसाएंगे। तुम क्या कहते हो इस बारे में?"

"मेरी तो खूबसूरत दुनिया तुम ही हो मेघा।" मैंने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर कहा____"जहां मेरी मेघा होगी वहीं मेरा सब कुछ होगा।"
"ओह! ध्रुव।" मेघा एकदम से मेरे सीने से लगते हुए बोली____"इतना प्रेम मत करो मुझसे कि मैं ख़ुशी के मारे बावरी हो जाऊंगा।"

"प्रेम तो वही है न।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"जिसमें इंसान बावरा हो जाए।"
"अच्छा।" मेघा मेरे सीने से लगी हुई ही मानो मासूमियत से बोली___"अगर ऐसा है तो मुझे भी तुम्हारे प्रेम में बावरी होना है।"

"वो तो तुम पहले से ही हो।" मैंने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा____"और इस बात को ऊपर वाला भी जानता है। ख़ैर छोडो इस बात को, चलो हम यहीं पर अपने प्रेम का खूबसूरत अशियाना बनाते हैं।"

"ठीक है।" मेघा मुझसे अलग हो कर बोली____"हम यहाँ पर एक छोटा सा घर बनाएंगे। हम दोनों यहाँ पर साधारण इंसानों की तरह प्रेम से रहेंगे। हम दोनों यहाँ की ज़मीन को खेती करने लायक बनाएंगे और फसल ऊगा कर उसी से अपना गुज़ारा करेंगे।"

मेघा की ये बातें सुन कर मैं मन ही मन चौंका। उसे मेरे मन की बातें कैसे पता थीं? यही तो मैं भी चाहता था और ऐसा ही तो मैंने सपने में देखा था। क्या सच में हमारे प्रेम के तार इस तरह एक दूसरे से जुड़ चुके थे कि हम दोनों एक दूसरे के मन की बातें भी जान सकते थे?

ज़िन्दगी में बहार आ गई थी। दुःख दर्द के वो बुरे दिन गायब हो गए थे। ये कोई सपना नहीं था बल्कि एक ऐसी हक़ीक़त थी जिसे मैं पूरे होशो हवास में अपनी खुली आँखों से देख रहा था और दिल से महसूस भी कर रहा था। जिसकी तलाश में मैं पिछले दो सालों से दर दर भटक रहा था वो अब मेरी आँखों के सामने थी और मेरे पास थी। जिसके लिए मैं दो सालों से तड़प रहा था वो अपने प्रेम के द्वारा मेरे हर दुःख दर्द मिटाती जा रही थी। हम दोनों बेहद खुश थे। हम दोनों ने मिल कर अपनी मेहनत से एक छोटा सा घर बना लिया था और अब ज़मीन को खेती करने लायक बना रहे थे। हम दोनों ख़ुशी ख़ुशी हर काम कर रहे थे। हमारा प्रेम हर पल बढ़ता ही जा रहा था।

मैं अच्छी तरह जानता था कि मैं मेघा से शादी करके उसे अपनी पत्नी नहीं बना सकता था और ना ही उसके द्वारा बच्चे पैदा कर सकता था। वो एक वैम्पायर लड़की थी और मैं एक साधारण इंसान। हम दोनों का कोई मेल नहीं था लेकिन सिर्फ़ एक ही चीज़ ऐसी थी जिसने हम दोनों को आपस में जोड़ रखा था और वो था हम दोनों का अटूट प्रेम। मुझे इसके अलावा और कुछ भी नहीं चाहिए था। मेघा के साथ हमारे प्रेम की ये अलग दुनिया बहुत ही खूबसूरत लग रही थी और मैं चाहता था कि प्रेम की इस दुनिया का कभी अंत न हो।

कभी कभी ये ख़याल आ जाता था कि क्या मैं सच में मर कर ज़िंदा हुआ था? ज़हन में कभी कभी धुंधला सा एक ऐसा मंज़र उभर आता था, जिसमें अनंत अंधेरा होता था और उस अनंत अंधेरे में एक छोटा सा प्रकाश पुंज टिमटिमाता हुआ दिखता था। कानों में रहस्यमई एक ऐसी आवाज़ गूंज उठती थी जो मुझसे कुछ कहती हुई प्रतीत होती थी और मैं अक्सर उसे समझने की कोशिश करता था। ये कोशिश आज भी जारी है और मेघा के साथ हमारे प्रेम की दुनिया आज भी आबाद है। हम दोनों को ही यकीन है कि एक दिन ऊपर वाला हमें इस लायक ज़रूर बनाएगा जब हम हर तरह से एक हो जाएंगे।


दुवा करो के मोहब्बत यूं ही बनी रहे।
मेरे ख़ुदा तेरी रहमत यूं ही बनी रहे।।

अब न आए कोई ग़म इस ज़िन्दगी में,
बहारे-गुल की इनायत यूं ही बनी रहे।।

जिसको चाहा उसे पा लिया आख़िर,
ख़ुदा करे ये अमानत यूं ही बनी रहे।।

हमारे दरमियां अब कभी फांसले न हों,
हमारे दरमियां कुर्बत यूं ही बनी रहे।।

जैसे अब तक एतबार रहा तुझ पर,
उसी तरह ये सदाक़त यूं ही बनी रहे।।


✮✮✮
_______________________
✮✮✮ The End ✮✮✮
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Beautiful Romantic Story.
Pyar mein Supreme Sacrifice ka Example hey yeh story.🙏
 
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kingkhankar

Multiverse is real!
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Ek aur baat pata chala TheBlackBlood ka yeh answer se. पिशाचिनी niche wale muhn se kuhn piti hey aur Vampire uper wale muhn se:)
 
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Death Kiñg

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So, another feather in the cap of TheBlackBlood ... Ek behad hi khoobsurat kahani ka ant hua aur saath hi ant hua Dhruv ki tadap ka bhi... Shayad jeevan mein usne kabhi koyi sukh nahi paaya... Hamesha hi dukh aur takleefein uske ird gird ghoomti rahi... Par usne hamesha hi apni kismat ka diya sweekaar kiya... Lekin Megha ka uski zindagi mein aagman shayad uske liye khushiyon ki ek dastak laaya jo zyada samay tak takdeer ko raas naa aayi... Megha ka jaana... Uss se bichhadne ka gum... 2 saal tak ki wo tadap... Wo intezaar shayad ussika fal hai ke ant mein Dhruv ne Megha ko paa liya...

Megha ke Pita arthat Mahamahim ki back story saamne aayi... Apni khoon ki pyaas mein unhone ek nirdosh ki jaan le li jiske chalte unhe wo shraap mila... Par fir baad mein uss shraap se mukt hone ka tareeka bhi mila joki Dhruv yaani unki beti ke premi ka khoon tha... Dhruv ne Megha ke daaman ko saaf rakhne ke liye khushi se apna balidaan kar diya... Ke koyi ye naa keh sake ki Megha ne Prem mein andhe hokar ek insaan ke liye apne Pita ko dar kinaar kar diya...

Par uss divya roshni, arhat ooparwaale ko bhi aakhir kaar Dhruv par taras aa hi gaya... Aur Dhruv ko ek naya jeevan mila jahaan wo khushi se Megha ke saath apne sapnon ke ghar mein reh sakta hai... Wahi sapna jo usse aaya tha sach ho gaya aur dono prem panchhi ek saath apne naye ghonsle mein pahunch gaye... Haalanki aesi kahaniyon ka ant sukhad nahi hota hai kyonki dono ka milan asambhav sa hi tha... Par Dhruv ne jo kuchh jhela tha ab tak uske paraspar shayad ye sukhad ant wo deserve bhi karta tha...

Ant mein Dhruv ka kehna ke uska Aur Megha ka kabhi milan nahi ho sakta shareerik roop se aur naahi unki koyi santaan ho sakti hai... Par fir bhi prem... Vishudhh prem ne unki aatmaaon ka milan kar diya jo sarvopari hai... Megha ka bhai bhi Prem ke dard se achhoota nahi hai... Srishti naam ki Apni Premika ke jaane ke gam ko wo bhi seh raha hai...

Khair, kitni hi kathinaiyon ke baad aakhirkaar dono ek ho gaye aur ban gaya inka ek chhota sa aashiyana... Bahut hi khubsurat kahani Shubham bhai ek baar firse... Aapki lekhni ki jitni bhi tareef ki jaaye wo kam hi hogi... Aapne ab tak jitni stories complete kar hamare saamne pesh ki hain wo apne aap mein kaabil e tareef hai...

Chaahe wo shabdon ka chayan ho... Narration ho... Prakriti ka varnan ho... Emotions hon ya fir hon Ghazal... Kahani ke har pehlu par aapne shaandar kaam kiya hai... Aapko iss kahani ke poore hone par dheron badhaiyan aur agli kahani ke liye shubhkamnaye...

Outstanding Story Brother & Waiting For Next... (Story :winknudge:)
 
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Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
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Update - 03
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सारा दिन मैं किसी मशीन की तरह काम में लगा रहा। काम पूरा होते ही मैंने खुद को साफ़ किया और बिना किसी से कुछ बोले गैराज से निकल लिया। मेरे हिस्से में मुझे जितना काम मिलता था उसे पूरा करने के बाद मैं एक पल के लिए भी गैराज में नहीं रुकता था, फिर चाहे भले ही क़यामत आ जाए। मेरे साथ गैराज में काम करने वाले बाकी लोगों को अब मेरे इस रवैए की आदत पड़ चुकी थी। मेरे सामने तो वो कुछ नहीं बोलते थे किन्तु मेरे जाते ही वो सब बातें शुरू कर देते थे।

गैराज से निकल कर मैं अपने घर नहीं जाता था बल्कि मेघा की खोज में उसी जंगल की तरफ निकल पड़ता था जहां पर मैंने उसके साथ चंद दिन गुज़ारे थे। सारी दुनियां भले ही मुझे पागल समझती थी लेकिन मेरे दिल को यकीन था कि मेघा मुझे जब भी मिलेगी उसी जंगल में मिलेगी। अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर मैं हर रोज़ शाम होने से पहले उस जंगल में दाखिल हो जाता था।

ठण्ड ने अपना असर दिखाना पहले ही शुरू कर दिया था और कोहरे ने फ़िज़ा में धुंध फैला दी थी। जंगल में दाखिल होने से पहले एक बार मैं उस जगह पर ज़रूर जाता था जहां पर दो साल पहले मेरे साथ हादसा हुआ था। वो हादसा ही था जिसने मेरी ज़िन्दगी को एक नया मोड़ दिया था और उसी की वजह से मुझे मेघा मिली थी।

दो साल पहले का वो हादसा आज भी मेरे ज़हन में तारो ताज़ा था। मैं हर रोज़ की तरह सुबह सुबह अपने काम पर जाने के लिए निकला था। उस दिन भी आज की ही तरह ठण्ड थी और फ़िज़ा में कोहरे की धुंध छाई हुई थी। मैं अपनी ही धुन में एक पुरानी मोटर साइकिल में बैठा गजराज शेठ के मोटर गैराज की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। कोहरे की धुंध की वजह से सड़क पर ज़्यादा दूर का दिखाई नहीं दे रहा था इस लिए मैं धीमी रफ़्तार में ही मोटर साइकिल से जा रहा था। घर से क़रीब दो किलो मीटर दूर निकल आने के बाद अचानक मेरी नज़र सामने से भागती हुई आ रही एक लड़की पर पड़ी थी। कोहरे की वजह से वो अचानक ही मुझे दिखी थी और मेरे काफी पास आ गई थी। मैं उसे यूं अचानक देख कर एकदम से बौखला गया था। उसे बचाने के चक्कर में मैंने मोटर साइकिल का हैंडल जल्दी से घुमाया और ऐसा करना जैसे मुझ पर ही भारी पड़ गया।

मोटर साइकिल का अगला पहिया सड़क पर पड़े किसी पत्थर पर ज़ोर से लगा था और मैं मोटर साइकिल सहित सड़क पर जा गिरा था। अगर सिर्फ इतना ही होता तो बेहतर था लेकिन सड़क पर जब मैं गिरा था तो झोंक में मेरा सिर किसी ठोस चीज़ से टकरा गया था। मेरे हलक से घुटी घुटी सी चीख निकली और फिर मेरी आँखों के सामने अँधेरा छाता चला गया था। उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ भी याद नहीं रहा था।

जब मेरी आँखें खुलीं तो मैंने खुद को एक ऐसे कमरे के बेड पर पड़ा हुआ पाया जिस कमरे की दीवारें काले पत्थरों की थीं। दीवारों पर दिख रहे काले पत्थर ऐसे थे जैसे न जाने कब से उन पर चढ़ी हुई धूल या काई को साफ़ ना किया गया हो। कमरा सामान्य कमरों से कहीं ज़्यादा बड़ा था और कमरे की छत भी सामान्य से कहीं ज़्यादा उँचाई पर थी। एक तरफ की दीवार पर लोहे की खूँटी थी जिस पर पुरानी जंग लगी हुई लालटेन टंगी हुई थी। उसी लालटेन का धीमा प्रकाश पूरे कमरे में फैला हुआ था। हालांकि उसका प्रकाश कमरे को पूरी तरह रोशन करने में सक्षम नहीं था किन्तु इतना ज़रूर था कि कमरे में मौजूद किसी वस्तु को देखा जा सके। कमरे में कोई खिड़की या रोशनदान नहीं था, बल्कि लकड़ी का एक ऐसा दरवाज़ा था जिसे देख कर यही लगता था कि अगर उस दरवाज़े पर थोड़ा सा भी ज़ोर लगा दिया जाए तो वो टूट जाएगा। दरवाज़े में लगे लकड़ी के पटरों पर झिर्रियां थी जिससे उस पार का दृश्य आसानी से देखा जा सकता था।

मैं खुद को ऐसी विचित्र जगह पर पा कर पहले तो हड़बड़ा गया था उसके बाद एकदम से मेरे अंदर अजीब सा डर और घबराहट भरती चली गई थी। मैं समझने की कोशिश करने लगा था कि आख़िर मैं ऐसी जगह पर पहुंच कैसे गया था? ज़हन पर ज़ोर डाला तो मुझे याद आया कि मेरे साथ हादसा हुआ था। यानि किसी लड़की को बचाने के चक्कर में मैं खुद ही घायल हो गया था। सिर पर गहरी चोट लगने की वजह से मैं बेहोश हो गया था। उसके बाद जब मुझे होश आया तो मैं ऐसी जगह पर था।

ऐसी डरावनी जगह पर खुद को एक बिस्तर पर पड़े देख मेरे मन में तरह तरह के भयानक ख़याल आने लगे थे। मैंने चारो तरफ नज़रें घुमा घुमा कर देखा किन्तु मेरे अलावा उस कमरे में कोई नज़र नहीं आया। मैंने हिम्मत जुटा कर बिस्तर से उठने की कोशिश की तो एकदम से मेरे मुख से कराह निकल गई। मेरी पीठ पर बड़ा तेज़ दर्द हुआ था जिसकी वजह से मैं वापस उसी बिस्तर पर लेट गया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं ऐसी जगह पर आख़िर कैसे पहुंच गया था? मुझे अच्छी तरह याद था कि हादसा सड़क पर हुआ था जबकि ये ऐसी जगह थी जिसको मैंने तसव्वुर में भी कभी नहीं देखा था। अचानक ही मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मुझे यहाँ पर पहुंचाने वाली कहीं वो लड़की ही तो नहीं जिसे बचाने के चक्कर में मैं खुद ही घायल हुआ था? उस लड़की का ख़याल आया तो मेरे ज़हन में उसके बारे में भी तरह तरह के ख़याल उभरने लगे। मैं सोचने लगा कि अगर वो लड़की ही मुझे यहाँ ले कर आई है तो वो खुद कहां है इस वक़्त?

मैं अभी इन ख़यालों में खोया ही हुआ था कि तभी कमरे का दरवाज़ा अजीब सी चरमराहट के साथ खुला तो मैंने चौंक कर उस तरफ देखा। दरवाज़े से दाखिल हो कर जो शख्सियत मेरे सामने मुझे नज़र आई उसे देख कर मैं जैसे अपने होशो हवास खोता चला गया। कुछ देर के लिए ऐसा लगा जैसे मैं अचानक से ही कोई हसीन ख़्वाब देखने लगा हूं।

"अब कैसा महसूस कर रहे हो तुम?" उसकी मधुर आवाज़ मेरे एकदम पास से आई तो जैसे मुझे होश आया। जाने कब वो मेरे एकदम पास में आ कर बिस्तर के किनारे पर बैठ गई थी। मैंने जब उसे अपने इतने क़रीब से देखा तो मैंने महसूस किया जैसे मैं उसके सम्मोहन में फँसता जा रहा हूं। वो अपने सवाल के जवाब की उम्मीद में मुझे ही देखे जा रही और मैं उसे। जीवन में पहली बार मैंने अपने इतने क़रीब किसी लड़की को देखा था, वो भी ऐसी वैसी लड़की नहीं बल्कि दुनियां की सबसे हसीन लड़की को। मैं दावे के साथ कह सकता था कि दुनियां में उसके जैसी खूबसूरत लड़की कोई हो ही नहीं सकती थी।

चेहरा चांद की तरह रौशन था। बड़ी बड़ी आँखों में समुन्दर से भी कहीं ज़्यादा गहराई थी। नैन नक्श ऐसे थे जैसे किसी मूर्तिकार ने अपने हाथों से उस अद्भुत मूरत को रचा था। लम्बे सुराहीदार गले में लटका एक बड़ा सा लॉकेट जिसमें गाढ़े नीले रंग का नगीने जैसा पत्थर था। दूध की तरह सफ्फाक बदन पर ऐसे कपड़े थे मानो किसी बहुत ही बड़े साम्राज्य की राज कुमारी हो। बड़े गले वाली कमीज थोड़ा कसी हुई थी जिसके चलते उसके सीने की गोलाइयों के उभार साफ़ दिख रहे थे। अपने रेशमी बालों को वैसे तो उसने जूड़े की शक्ल दे कर बाँध रखा था लेकिन इसके बावजूद उसके बालों की कुछ लटाएं दोनों तरफ से नीचे झूल कर उसके खूबसूरत गालों को बारहा चूम रहीं थी। खूबसूरत होठों पर गहरे सुर्ख रंग की लिपस्टिक लगी हुई थी। मैं साँसें रोके जैसे उसकी सुंदरता में ही खो गया था।

"क्या हुआ? तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?" मुझे अपनी तरफ अपलक देखता देख उसने कहा था____"मैं पूछ रही हूं कि अब कैसा महसूस कर रहे हो तुम?"

"आं..हां???" मैं उसकी शहद में मिली हुई आवाज़ को सुन कर हल्के से चौंका था, फिर जल्दी से खुद को सम्हाल कर बोला_____"म..मैं बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं लेकिन...।"

"लेकिन???" उसके चमकते हुए चेहरे पर सवालिया भाव उभरे।
"ल..लेकिन तुम कौन हो?" वस्तुस्थित का एहसास होते ही मैं धड़कते दिल से पूछ बैठा था_____"और..और मैं यहाँ कैसे आ गया? मैं तो...।"

"फ़िक्र मत करो।" उसने इस लहजे से कहा कि उसकी खनकती हुई आवाज़ मेरे दिल की गहराइयों में उतरती चली गई थी____"तुम यहाँ पर सुरक्षित हो। तुमने मुझे बचाने के चक्कर में खुद को ही चोट पहुंचा लिया था। मैं तो ख़्वाब में भी नहीं सोच सकती थी कि कोई इंसान इतना नेकदिल हो सकता है। मैं चाह कर भी तुम्हें उस हालत में देख कर खुद को रोक नहीं पाई थी जोकि मेरे लिए बहुत ही आश्चर्य की बात ही थी। ख़ैर, मैं तुम्हें उस जगह से यहाँ ले आई और तुम्हारे ज़ख्मों का इलाज़ किया।"

"तो क्या तुम्हीं वो लड़की थी जो अचानक से मेरे सामने भागती हुई आ गई थी?" मैंने हैरत से उसकी तरफ देखते हुए पूछा था जिस पर वो हल्के से मुस्कुराई। मैं उसकी मुस्कान को देख कर अपने दिल में बजने लगी घंटियों को महसूस करने लगा था। जबकि उसने कहा____"हां वो मैं ही थी लेकिन जिस तरह से तुमने मेरे लिए खुद को ख़तरे में डाला था उससे मैं बेहद प्रभावित हुई थी।"

"पर तुम सुबह सुबह उस वक़्त ऐसे भागती हुई जा कहां रही थी?" मैं उससे पूछ ज़रूर रहा था लेकिन सच तो ये था कि मेरी नज़रें उसके हसीन चेहरे से हट ही नहीं रही थी और यकीनन उसे भी इस बात का एहसास ज़रूर था।

"इस दुनियां में कोई न कोई बहुत कुछ ऐसा कर रहा होता है जो बाकी लोगों की नज़र में अटपटा होता है।" उसने जैसे दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा था____"ख़ैर छोड़ो इस बात को। तुम्हें अभी आराम की ज़रूरत है। अगर किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो मुझे याद कर लेना।"

"तुमने अभी तक ये नहीं बताया कि तुम कौन हो?" मैंने धड़कते हुए दिल से उससे कहा था____"मैंने अपने जीवन में तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की ख़्वाब में भी नहीं देखी। तुम्हें मैं एक ढीठ किस्म का इंसान ज़रूर लग सकता हूं लेकिन सच यही है कि तुम्हें देख कर मेरा दिल तुम्हारी तरफ किसी चुम्बक की तरह खिंचा जा रहा है। मेरे दिल में अजीब सी हलचल मच गई है। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि ये अचानक से मुझे क्या हो रहा है। मेरे अब तक के जीवन में मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ। भगवान के लिए मुझे बताओ कि कौन हो तुम और मेरे दिल में तुम्हारे प्रति प्रेम की तरंगें क्यों उठ रही हैं?"

"तुम सिर्फ़ इतना जान लो कि मेरा नाम मेघा है।" उसने अजीब भाव से कहा था____"जो किसी वजह से तुमसे आ मिली है। तुम्हारे लिए मेरी सलाह यही है कि मेरे प्रति अपने अंदर प्रेम जैसे जज़्बात मत उभरने दो क्योंकि इससे तुम्हें ही नुक्सान होगा।"

"ऐसा क्यों कह रही हो तुम?" उसकी बातें सुन कर मेरा दिल धाड़ धाड़ कर के बजने लगा था। एक अंजाना सा भय मेरे अंदर उभर आया था, जिसे बड़ी मुश्किल से सम्हाला था मैंने।

"क्योंकि किसी इंसान से प्रेम करना मेरी फितरत में नहीं है।" उसने सपाट लहजे में कहा था____"इस लिए तुम्हारे लिए बेहतर यही है कि मेरा ख़याल दिल से निकाल दो। तुमने क्योंकि मुझे बचाने के लिए अपनी जान जोख़िम में डाली थी इस लिए मैं अपनी फितरत के खिलाफ़ जा कर तुम्हारा इलाज़ कर के तुम्हें वापस तुम्हारे घर भेज देना चाहती हूं। उसके बाद हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे।"

मुझे हैरान परेशान कर के मेघा नाम की वो लड़की मानो हवा के झोंके की तरह कमरे के दरवाज़े से बाहर निकल गई थी। उसके जाते ही ऐसा लगा जैसे मैं गहरी नींद से जागा था। कुछ देर तक तो मैं अपनी हालत को ही समझने की कोशिश करता रहा उसके बाद गहरी सांस ले कर मेघा और उसकी बातों के बारे में सोचने लगा।

अभी मैं दो साल पहले हुए उस हादसे के ख़यालों में ही गुम था कि तभी किसी वाहन के तेज़ हॉर्न से मैं हक़ीक़त की दुनियां में आ गया। मैंने नज़र उठा कर आने वाले वाहन की तरफ देखा और फिर एक तरफ को बढ़ चला।

कोहरे की धुंध में पता ही नहीं चल रहा था कि शाम ढल चुकी है या अभी भी शाम ढलने में कुछ समय बाकी है। मैं सड़क से बाएं तरफ एक ऐसे संकरे रास्ते की तरफ मुड़ गया जो जंगल की तरफ जाता था। दूसरी तरफ पहाड़ों की ऊँची ऊँची पर्वत श्रृंखलाएं थीं जोकि कोहरे की गहरी धुंध की वजह से दिख नहीं रहीं थी।

एक बार फिर से मैं उसी जंगल में दाखिल हो चुका था जिस जंगल में मुझे ये उम्मीद थी कि मेघा का कहीं अशियाना होगा या ये कहूं कि जहां पर मैं उसके साथ एक हप्ते रहा था। मैं अगर सामान्य हालत में होता तो यकीनन ये सोचता कि मेरे जैसा बेवकूफ़ इंसान शायद ही इस दुनियां में कोई होगा जो आज के युग में किसी लड़की के प्रेम में पागल हो कर इस तरह उसकी खोज में दर दर भटक रहा है।

क़रीब डेढ़ घंटे टार्च की रौशनी में चलने के बाद अचानक ही एक जगह मैं रुक गया। मेरे रुक जाने की वजह थी कुछ आवाज़ें जो मेरे दाएं तरफ से हल्की हल्की आ रहीं थी। मैंने गौर से सुनने की कोशिश की तो अगले ही पल मेरे थके हारे जिस्म में जैसे न‌ई ताक़त और न‌ई स्फूर्ति भर गई। मैं उन आवाज़ों को सुन कर एकदम खुशी से पागल सा होने लगा। मैं फ़ौरन ही दाएं तरफ तेज़ी से बढ़ता चला गया। जैसे जैसे मैं आगे बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे वो आवाज़ें और भी साफ़ सुनाई देती जा रहीं थी। मैं दुगुनी रफ़्तार से चलते हुए जल्दी ही उस जगह पर पहुंच गया जहां से आवाज़ें आ रहीं थी।

कोहरे की गहरी धुंध में मैंने आवाज़ों की दिशा में टार्च की रौशनी डाली तो मुझे वो झरना दिखा जिसके पानी के गिरने की आवाज़ अक्सर मैं मेघा के उस कमरे में बेड पर लेटे हुए सुना करता था। इन दो सालों में पहली बार मुझे कोई ऐसी चीज़ खोजने पर मिली थी जो इस बात को साबित करती थी कि इस झरने के आस पास ही कहीं पर वो पुराना सा मकान था जिसके एक कमरे में मैं एक हप्ते रहा था। मेरा दिल इन दो सालों में पहली बार झरने को देख कर खुशी से झूमा था। मैं पहले भी कभी एक पल के लिए नाउम्मीद नहीं हुआ था और आज तो इस झरने के मिल जाने पर नाउम्मीद होने का सवाल ही नहीं था। एक मुद्दत से जो दिल बहुत उदास था वो इस झरने के मिल जाने से खुश हो गया था और साथ ही मेघा के दीदार के लिए बुरी तरह मचलने लगा था। जाने क्यों मेरे दिल के जज़्बात बड़े ज़ोरों से मचल उठे।


दिल को इक पल क़रार आना भी नहीं मुमकिन।
तेरे बग़ैर मेरे दोस्त, जी पाना भी नहीं मुमकिन।।

हर शब मैं तेरी जुस्तजू में भटका हूं कहां कहां,
मिल जाओ के दिल को बहलाना भी नहीं मुमकिन।।

दिल-ए-नादां पे गुज़री है क्या क्या तेरे बग़ैर,
हाले-दिल किसी को, बताना भी नहीं मुमकिन।।

तेरे ख़याल में गुम रहना ही मयस्सर है मुझे,
के तुझे एक पल भूल जाना भी नहीं मुमकिन।।

मैं तेरी याद में पतंगों सा जलता तो हूं मगर,
तेरी याद में फना हो जाना भी नहीं मुमकिन।।


✮✮✮
Superb update bhai..
 

Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
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Update - 04
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पिछले दो साल से मैं मेघा को तलाश कर रहा था और उसको देखने के लिए तड़प रहा था। इन दो सालों से जहां दिल बहुत उदास और टूटा हुआ सा था वहीं इस झरने के मिल जाने से ऐसा लग रहा था जैसे मेरे मुरझाए हुए गुलशन में बहार ने आ कर जान डाल दी हो। झरना इस बात का सबूत था कि उसके आस पास ही कहीं पर वो पुराना सा मकान था जहां दो साल पहले मैं मेघा के साथ एक हप्ते रहा था। मेरे दिल में अब मेघा से मिलने की और उसे देखने की बेचैनी एकदम से बढ़ गई थी। जी चाह रहा था कि पलक झपकते ही मैं मेघा के पास पहुंच जाऊं और उससे लिपट कर दो सालों की जुदाई का दुःख दर्द भूल जाऊं।

मेरी नज़रें अभी भी उस झरने को घूर रहीं थी, जैसे उसी झरने में कहीं पर मुझे मेघा का अक्श दिख रहा हो जिसे मैं अपलक देखे जा रहा था। ऊंचाई से गिरते हुए पानी की आवाज़ इस वक़्त अजीब सी लग रही थी जो दिल में एक भय सा उत्पन्न कर रही थी। हालांकि कोहरे की धुंध छाई हुई थी इस लिए ऊंचाई से गिरता हुआ पानी मुझे साफ़ नहीं दिख रहा लेकिन एक धुंध जैसा ज़रूर दिख रहा था जो ऊपर से नीचे की तरफ जाता उजागर हो रहा था।

दिल में मेघा से मिलने की तड़प बढ़ चुकी थी और अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था। मैं एक झटके से पलटा और दाएं हाथ में पकड़ी हुई टार्च के प्रकाश को पहले इधर उधर घुमाया उसके बाद एक तरफ को बढ़ चला। जिस्म में मौजूद थकान जाने कहां गायब हो गई थी। न अपनी हालत का होश था और ना ही अपने पेट के अंदर भूख की वजह से ऊपर नीचे उठ रहे गैस के गोलों का। मुझे बस इस बात की ख़ुशी महसूस हो रही थी कि झरना मिल गया है तो अब जल्द ही मुझे मेघा भी मिल जाएगी। मेघा से मिलने की ख़ुशी इतनी ज़्यादा थी कि मैं बिना रुके और बिना कुछ सोचे आगे बढ़ता ही जा रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल बुनता जा रहा था कि जब मेघा मुझे मिलेगी तो मैं ऐसा करुंगा या वैसा करुंगा।

काफी देर तक चलने के बाद अचानक ही मुझे झटका सा लगा और मैं बुरी तरह चौंक गया। कारण मैं मेरे कानों में एक बार फिर से झरने में ऊपर से नीचे गिरते हुए पानी की आवाज़ सुनाई दे रही थी। मैंने टार्च के प्रकाश को बाएं तरफ घुमाया तो ये देख कर चौंक गया कि मैं उसी जगह खड़ा हूं जहां पर मैं पहले खड़ा था, यानि झरने के किनारे पर। मुझे समझ न आया कि ये क्या चक्कर है? मैं तो कुछ देर पहले इसी जगह से मेघा को खोजने ख़ुशी ख़ुशी गया था, जबकि मैं काफी देर तक चलने के बाद भी उसी झरने के पास आ गया था।

कुछ देर झरने के किनारे पर खड़ा मैं इस सबके बारे में सोचता रहा। मैं समझ गया कि शायद अंजाने में मैं घूम फिर कर वापस झरने के पास आ गया हूं। मेघा से मिलने की ख़ुशी ही इतनी थी कि मुझे बाकी किसी चीज़ का होश ही नहीं रह गया था। मेरे दिल को थोड़ी तकलीफ़ तो हुई लेकिन किसी तरह खुद को बहला कर मैंने फैसला किया कि इस बार मुझे पूरे होशो हवास में मेघा को खोजना है।

एक बार फिर से मैं मेघा और उसके उस पुराने से मकान की खोज में चल पड़ा। इस बार मैं पूरे होशो हवास में आगे बढ़ रहा था। मेरे हाथ में मौजूद टार्च का तेज़ प्रकाश कोहरे की धुंध को भेदता हुआ मुझे आगे बढ़ने में मदद कर रहा था। चारो तरफ घने पेड़ थे। कच्ची ज़मीन पर पेड़ों के सूखे पत्ते थे जो मेरे चलने से बड़ी अजीब सी आवाज़ें कर रहे थे। मेरी जगह कोई सामान्य मनुष्य होता तो वो भय के मारे पेशाब कर देता लेकिन मैं तो जैसे इन दो सालों में खुद ही एक भूत बन गया था जो अँधेरे में ऐसे भयावह जंगल में हर रात विचरण करता था। मुझे इन दो सालों में कभी भी ऐसी जगह पर इधर उधर भटकने में डर का आभास नहीं हुआ। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मैं हर वक़्त सिर्फ मेघा के ख़यालों में ही रहता था। किसी और चीज़ का मुझे ख़याल ही नहीं रहता था। अगर मैं ये सोचता कि मैं रात के अँधेरे में एक ऐसे जंगल में भटक रहा हूं जहां पर किसी भी वक़्त मुझे कोई भी जीव या जानवर नुक्सान पहुंचा सकता है तो यकीनन इस ख़याल से मैं डरता और यहाँ रात के अँधेरे में आने के बारे में सोचता भी नहीं।

हड्डियों को भी कंपा देने वाली ठण्ड थी। कोहरे की धुंध के बीच ब्याप्त भयावह सन्नाटा जैसे मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता था। मैं बिना रुके आगे बढ़ता ही चला जा रहा था। मुझे चलते हुए काफी देर हो चुकी थी। मैं कुछ दूर चलने के बाद रुक जाता था और टार्च के प्रकाश को इधर उधर घुमा कर ये भी देखता था कि मेघा के साथ मैं जिस मकान में रहा था वो कहीं दिख रहा है कि नहीं? कुछ देर और चलने के बाद अचानक से मैं ठिठक गया और साथ ही मैं आश्चर्यचकित भी रह गया। कारण एक बार फिर से मैं झरने के पास ही आ गया था।

मेरे लिए ये बेहद ही चौंकाने वाली बात थी कि मैं दूसरी बार एक ही जगह पर कैसे आ गया था? मैं अच्छी तरह जानता था कि मैं कोई ख़्वाब नहीं देख रहा था लेकिन ये जो कुछ भी हुआ था वो ऐसा था जैसे मैं किसी ख़्वाबों की दुनियां में पहुंच गया हूं। ऐसी हैरतअंगेज़ बात ख़्वाब में ही हो सकती थी लेकिन सबसे बड़ा सच यही था कि ये कोई ख़्वाब नहीं था बल्कि वास्तविकता थी। एक ऐसी वास्तविकता जिसने मुझे बुरी तरह उलझा कर रख दिया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा कैसे हो सकता था? मैं हर बार घूम फिर कर उसी झरने के पास क्यों आ जाता था? क्या ये मेरे लिए किसी प्रकार का संकेत था या फिर किसी तरह की चेतावनी थी?

मुझे ना तो किसी प्रकार के ख़तरे का डर था और ना ही अपनी जान जाने की फ़िक्र थी। मैं बस हर हाल में मेघा को खोजना चाहता था। अपने अंदर चल रही उथल पुथल को मैंने किसी तरह शांत किया और पलट कर फिर से एक तरफ को बढ़ चला।

रात तो शायद कब की हो चुकी थी लेकिन घने जंगल के बीच अभी भी वैसा ही वातावरण था जैसे यहाँ आने से पहले था। आसमान में शायद चाँद मौजूद था जिसकी रौशनी कोहरे को भेदने की नाकाम कोशिश कर रही थी। धुंध में रौशनी का आभास हो रहा था और यही वजह थी कि रात हो जाने पर भी मुझे शाम जैसा ही वातावरण प्रतीत हो रहा था। हालांकि संभव था कि इसकी कोई दूसरी वजह भी रही हो।

इस बार मैं झरने के किनारे किनारे ही चल रहा था। हालांकि झरने के किनारे पर कहीं मेघा के उस पुराने मकान का मौजूद होना ज़रूरी तो नहीं था किन्तु मैं देखना चाहता था कि इस बार भी मैं उसी जगह पर पहुंच जाता हूं या नहीं? काफी देर तक मैं किनारे किनारे ही चलता रहा। मेरे एक तरफ घना जंगल था तो दूसरी तरफ नीचे की तरफ दिख रही एक चौड़ी नदी जिसमें झरने का पानी अपने बहने का आभास करा रहा था। नदी के ऊपर हवा में कोहरे की धुंध थी जिसकी वजह से मुझे नदी में बहता पानी दिख नहीं रहा था। किनारे से चलते हुए मैं इतना ज़रूर अनुमान लगा रहा था कि नदी यहाँ की ज़मीन से काफी गहरी है। यानि मैं उंचाई पर चल रहा था। टार्च के प्रकाश में मैं आगे बढ़ता ही जा रहा था। मुझे महसूस हुआ कि इस बार मुझे चलते हुए काफी समय हो गया था। मैंने नदी की तरफ टार्च के प्रकाश को डाला तो सहसा मैं चौंक गया।

मेरे जिस तरफ नदी थी वहां अब नदी नहीं थी बल्कि उस जगह पर भी अब घने पेड़ पौधे और ज़मीन दिख रही थी। मैं सोच में पड़ गया कि क्या नदी पलक झपकते ही गायब हो गई या वो किसी दूसरी तरफ को मुड़ गई है? यकीनन वो किसी दूसरी तरफ ही मुड़ गई होगी, भला इतनी बड़ी नदी पलक झपकते ही तो गायब नहीं हो जाएगी। मैं कुछ और दूर आया तो देखा मेरे सामने पक्की सड़़क थी। मैं ये देख कर चौंका कि ये वही सड़़क है जहां से मैं हर रोज़ जंगल की तरफ मुड़ता था। यानि अंजाने में ही मैं सड़क पर आ गया था। दो सालों में ऐसा पहली बार हुआ था कि मैं जंगल में इतने समय तक भटकने के बाद अपने आप ही सड़क पर आ गया था।

सड़क का एक छोर मुझे मेरे घर तक ले जाने के लिए मानो मुझे ज़ोर दे रहा था तो दूसरी तरफ का छोर मुझे दूसरे शहर की तरफ जाने का एहसास करा रहा था। सड़क को देख कर मेरा दिलो दिमाग़ भारी पीड़ा से भर गया। एक बार फिर से नाकामी ने अपना चेहरा दिखा कर मुझे हताश और दुखी कर दिया था। कहां इसके पहले उस झरने के मिल जाने से मैं ये सोच कर ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था कि अब मुझे मेघा मिल जाएगी और कहां अब मैं एक बार फिर से उसको खोज न पाने की वजह से दुखी हो गया था। मेरा जी चाहा कि उसी सड़क पर अपने सिर को पटक पटक कर अपनी जान दे दूं।

जंगल की तरफ मुखातिब हो कर और मन ही मन मेघा को याद करते हुए मैं उसको अपने दिल की हालत बताने के लिए जैसे तड़़प उठा। मेरा दिल चीख चीख कर उससे कहना चाहता था कि वो उसके लिए कितना तड़प रहा है। उसको एक बार देख लेने के लिए बुरी तरह बेचैन है। ज़हन में न जाने कितने ही ख़याल उभरने लगे जिनके एहसास से मेरी आँखें छलक पड़ीं।


यूं किया है तुमने ग़म के हवाले मुझको।
कोई ऐसा भी नहीं जो सम्हाले मुझको।।

देख कर हाले-दिल अपना यूं लगता है,
हिज़्रे-ग़म किसी रोज़ मार न डाले मुझको।।

मरीज़े-दिल की बस एक ही ख़्वाहिश है,
चैन आ जाए अगर गले लगा ले मुझको।।

मैं तेरी दीद की हसरत लिए फिरता हूं,
मुझ पे रहम कर अपना बना ले मुझको।।

मेरी ज़िन्दगी में बहार आ जाए शायद,
अपने जूड़े में गुल सा सजा ले मुझको।।

ऐसा न हो किसी रोज़ डूब के मर जाऊं,
अपनी याद के दरिया से बचा ले मुझको।।

घर आते आते रात काफी गुज़र गई थी। मेरा दिल बुरी तरह तड़प रहा था। कमरे में जाते ही बिस्तर पर औंधे मुँह गिर गया। फ़िज़ा में शमशान की मानिन्द सन्नाटा ब्याप्त था। कमरे में हल्की रौशनी थी क्योंकि बिजली का एक छोटा सा बल्ब अपनी क्षमता के अनुसार टिमटिमा रहा था। कुछ देर तक यूं ही बिस्तर में चेहरा छुपाए अपने अंदर मचल रहे जज़्बातों को रोकने की कोशिश करते हुए पड़ा रहा। उसके बाद उठा और लकड़ी के स्टूल पर एक प्लेट में रखी भुजिया को उठा कर उसे ज़बरदस्ती खाने का प्रयास करने लगा। भुजिया सुबह की थी और ठण्ड में और भी ज़्यादा ठण्ड हो गई थी। इस वक़्त ढाबे से कुछ भी मिलना मुश्किल था क्योंकि रात काफी हो जाने की वजह से ढाबा पहले ही बंद हो चुका था। ख़ैर बड़ी मुश्किल से मैंने प्लेट में बची हुई भुजिया को हलक के नीचे उतारा और फिर पानी पी कर वापस बिस्तर में पसर गया।

"कहां चली गई थी तुम?" क़रीब तीन घंटे बाद जब मेघा वापस आई थी तो मैंने सबसे पहले उससे यही कहा था_____"तुम्हें अंदाज़ा भी है कि इस डरावनी जगह पर अकेले रहने से मेरी क्या हालत हो गई थी?"

"तुम्हारे लिए कुछ खाने का इंतजाम करने गई थी।" मेघा के हाथ में एक प्लास्टिक की थैली थी जिसे उसने एक पुराने से स्टूल पर रखते हुए कहा था____"मुझे पता है कि तुम भूखे होगे। हालांकि तुमने मुझसे इसके बारे में कहा नहीं लेकिन ये मेरा फ़र्ज़ है कि तुम्हारा ख़याल रखूं। मुझे नहीं पता कि तुम्हें खाने में क्या खाना पसंद है लेकिन फिर भी उम्मीद करती हूं कि मेरा लाया हुआ खाना तुम्हे पसंद आएगा।"

मेघा ये सब कहते हुए प्लास्टिक की उस थैली से निकाल कर खाने को एक बड़ी सी प्लेट में रख दिया था। मैं खाने की तरफ नहीं बल्कि उसके चेहरे की तरफ ही अपलक देखे जा रहा था। दूध में हल्का केसर मिले रंग जैसा उसका चेहरा गोरा था। उसके सिर में पहले की ही भाँति जूड़ा बना हुआ था और चेहरे के दोनों तरफ उसके बालों की दो लटें झूलते हुए उसके गालों को बार बार चूम ले रहीं थी। जिस्म पर वही रेशमी कपड़े थे जो उसने तीन घंटे पहले पहने थे। उसके कपड़े बिलकुल वैसे ही थे जैसे वो किसी बड़े साम्राज्य की राज कुमारी हो। झुके होने की वजह से उसकी कमीज का गला थोड़ा ज़्यादा फ़ैल गया था जिससे उसके सीने के बड़े बड़े उभार और उनके बीच की दरार साफ़ दिख रही थी। उसी दरार के सामने उसके गले में पड़ा हुआ वो लॉकेट झूल रहा था जिसमें गाढ़े नीले रंग का पत्थर जैसा नगीना लगा हुआ था।

"क्या हुआ?" उसकी मधुर आवाज़ से जैसे मेरा सम्मोहन टूटा तो मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा। जबकि उसने सीधा खड़े हो कर आगे कहा____"तुमने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया?"

"कि..किस बात का??" मैं एकदम से बौखला गया था। उधर उसने मेरे सवाल पर कुछ पलों तक मुझे देखा फिर स्टूल से उस प्लेट को उठा कर मेरे पास आते हुए कहा____"यही कि जो खाना मैं तुम्हारे लिए ले कर आई हूं वो तुम्हें ज़रूर पसंद आएगा।"

"हां बिल्कुल।" मैंने झट से कहा था____"भला ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम मेरे लिए कुछ लाओ और वो मुझे पसंद न आए?"
"अच्छा ऐसी बात है क्या?" उसने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा था____"फिर तो अच्छी बात है। मैं अपनी समझ में तुम्हारे लिए बेहतर खाना ही ले कर आई हूं। अब जबकि तुम खुद ही कह रहे हो कि मेरा लाया हुआ सब कुछ तुम्हें पसंद आएगा तो मुझे अब इसके लिए फ़िक्र करने की ज़रूरत ही नहीं है।"

मेघा ने मेरी तरफ प्लेट बढ़ाया तो मैंने उसे अपने एक हाथ से थाम लिया। मैंने पहली बार प्लेट में रखे हुए खाने की तरफ निगाह डाली और सच तो ये था कि मैंने ऐसा खाना पहली बार ही देखा था। हालांकि मैं जिस हैसियत वाला इंसान था उसमें मैंने वास्तव में ज़्यादा ब्यंजन के प्रकार नहीं देखे थे लेकिन इतना ज़रूर समझने की कोशिश कर सकता था कि ये ब्यंजन खाने योग्य है कि नहीं। प्लेट में जो खाना रखा हुआ था वो मेरे लिए बिलकुल ही अनभिज्ञ था लेकिन उसका रंग रूप बड़ा ही ख़ास नज़र आ रहा था।

"क्या देख रहे हो?" मुझे प्लेट की तरफ अपलक घूरता देख मेघा ने पूछा था____"ख़ाना पसंद नहीं आया क्या?"
"ऐसा तो मैंने नहीं कहा।" मैंने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा था____"और इसे खाने के बाद भी नहीं कहूंगा।"

"ऐसा क्यों?" मेघा ने हौले से पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा था।
"क्योंकि इस खाने को तुम ले कर आई हो।" मैंने बड़ी मोहब्बत से उसकी तरफ देखते हुए कहा था____"मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारी लाई हुई हर चीज़ बेहद ख़ास ही होगी और ऐसी भी होगी जो मुझे बेहद पसंद आएगी।"

"ये तुम नहीं बल्कि मेरे प्रति तुम्हारा प्रेम बोल रहा है ध्रुव।" मेघा ने कहा था____"मैंने तुम्हें उस वक़्त भी समझाते हुए कहा था कि मेरे प्रति ऐसे ख़याल अपने ज़हन से निकाल दो। तुम्हें मेरी असलियत पता नहीं है। अगर मेरी असलियत जान जाओगे तो तुम्हारा ये प्रेम का भूत एक पल में तुम्हारे अंदर से भाग जाएगा।"

"सच्चे प्रेम के भूत की यही तो ख़ासियत होती है मेघा कि वो जब एक बार किसी के सिर पर चढ़ जाता है तो मरते दम तक नहीं उतरता।" मैंने बेझिझक और बिना किसी डर के कहा था____"तुम्हारे जाने के बाद मैंने ख़ुद इस बारे में बहुत सोचा था और यकीन मानो मैं खुद चकित था कि किसी को एक बार देख लेने से उसके प्रति कैसे इस तरह के जज़्बात पैदा हो सकते हैं जो मिटाना चाह कर भी मिटाए ही न जाएं? सुना तो था कि जब भी किसी को किसी से प्रेम होता है तो वो पहली ही नज़र में हो जाता है लेकिन जब खुद पर ऐसा हुआ तब यकीन करने में देर नहीं लगी मुझे। मैंने खुद को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन अपने अंदर तुम्हारे प्रति उभरने वाले प्रेम के मीठे जज़्बातों को चाह की मिटा न सका। अब तो ऐसा आलम है कि मैं खुद भी ये प्रयास नहीं करना चाहता कि मैं तुम्हारे प्रति अपने अंदर उभर रहे जज़्बातों का गला घोटूं।"

"बड़े अजीब इंसान हो तुम।" मेघा ने चकित भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा था_____"क्या हर इंसान तुम्हारी तरह ही ढीठ और ज़िद्दी होता है?"

"मैं किसी और के बारे में कुछ नहीं कह सकता।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा था____"लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि इस हालत में और सामान्य हालत में काफी फ़र्क होता है। इंसान को जब तक किसी से प्रेम नहीं होता तब तक उसका नज़रिया अलग होता है और जब उसे किसी से प्रेम हो जाता है तो उसका नज़रिया अपने आप ही बदल जाता है।"

"ख़ैर मुझे इससे क्या लेना देना।" मेघा ने जैसे विषय बदलने की कोशिश की थी____"मैं बस इतना चाहती हूं कि तुम जल्द से जल्द पूरी तरह ठीक हो जाओ, ताकि मैं तुम्हें सही सलामत तुम्हारे घर भेज दूं।"

"ऐसा क्यों चाहती हो तुम?" मैंने अचानक से बढ़ चली अपनी धड़कनों को नियंत्रित करते हुए कहा____"क्या तुम्हें मेरा यहाँ पर रहना अच्छा नहीं लग रहा या फिर मैं तुम्हारे लिए बोझ सा लग रहा हूं?"

"ऐसी कोई बात नहीं है।" मेघा ने सपाट भाव से कहा था____"सच तो ये है कि मैं खुद इस बात से हैरान हूं कि मैं किसी इंसान के लिए इतना कुछ क्यों कर रही हूं? मेरी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं। माना कि तुमने मुझे बचाने के लिए खुद को ज़ख़्मी किया था लेकिन मेरी नज़र में ये कोई ऐसी बात नहीं थी जिसके लिए मुझे तुम्हें यहाँ ला कर तुम्हारा इलाज़ करना चाहिए था।"

"फिर भी तुमने ऐसा किया न?" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा था____"मैं नहीं जानता कि तुम्हारी फितरत कैसी है लेकिन जो कुछ तुमने किया है या कर रही हो वो इस बात का सबूत है कि तुम्हारे अंदर भी इंसानियत मौजूद है और तुम किसी ऐसे इंसान को उसके हाल पर छोड़ कर नहीं जाना चाहती जो तुम्हारी ही वजह से ज़ख़्मी हो गया हो।"

"तुम मेरे बारे में कुछ नहीं जानते ध्रुव।" मेघा ने थोड़ा शख़्त भाव से कहा था____"वरना मेरे बारे में ऐसी बातें सोचते भी नहीं। ख़ैर मैं तुमसे कोई बहस नहीं करना चाहती। फिलहाल मुझे यहाँ से जाना होगा और हाँ, यहाँ से कहीं बाहर जाने का सोचना भी मत। अगर तुम यहाँ से बाहर गए और तुम्हारे साथ कुछ उल्टा सीधा हो गया तो उसके जिम्मेदार तुम ख़ुद होगे।"

"ऐसा क्यों लगता है तुम्हें कि मैं यहाँ से बाहर जाने का सोचूंगा भी?" मैंने एक बार फिर से मेघा की तरफ मोहब्बत से देखते हुए कहा था____"सच तो ये है कि अब मैं मरते दम तक इस जगह पर रहना चाहता हूं, ताकि मैं दुनियां की उस हसीन लड़की को अपनी आँखों से देख सकूं जिससे मेरा दिल प्रेम करता है।"

मेरी बातें सुन कर मेघा बड़े ही शख़्त भाव से मेरी तरफ कुछ देर तक देखती रही उसके बाद बिना कुछ कहे दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गई। मैं बंद हो चुके दरवाज़े को घूरता रह गया था। फिर जैसे एकदम से मेरी तन्द्रा टूटी तो मैंने एक बार चारो तरफ नज़रें घुमाई और फिर हाथ में पकड़ी खाने की प्लेट को देखने लगा। खाना हल्का गर्म था और उसकी खुशबू भी काफी अच्छी थी। मैंने बड़ी ख़ुशी से उसे खाना शुरू कर दिया।

कहीं दूर घंटाघर में मौजूद बड़े से घंटे की आवाज़ आई तो मैं मेघा के ख़यालों से बाहर आया। मैंने महसूस किया कि मुझे ठण्ड लग रही है इस लिए अपने नीचे पड़ी रजाई को मैंने उठाया और खुद को उसके अंदर क़ैद कर लिया। रात बड़ी ही मुश्किल से आँख लगी थी लेकिन सुबह होने में देर भी नहीं लगी। एक नई सुबह जाने किस तरह मेरा स्वागत करने का मुझे आभास करा रही थी?


✮✮✮
jharna to mil gaya par vaha par kuch mayajal hai jisase ghum fir ke ek hi jagah par dhruv aa jata hai..

par megha ko dhudhne ka uska irada bahot majboot tha to dubara jarne ke pas se aage badha par phir se nakam raha or jungle ke bahar road par aa gaya..

Awesome update bhai
 
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मेघा वैम्पायर थी और उसने अपनी असलियत मुझे पहले ही बता दी थी लेकिन उसकी असलियत जानने के बाद भी मेरे प्रेम में कोई फ़र्क नहीं आया था। उसने मुझे बताया कि वो उस पुराने मकान में मेरे पास ज़्यादा देर तक इसी लिए नहीं रहती थी क्योंकि मेरे पास ज़्यादा देर रहने से वो खुद पर काबू नहीं रख सकती थी। मैं क्योकि इंसान था इस लिए मेरा खून उसकी कमज़ोरी बन सकता था जिसके लिए वो मुझे चोट पहुंचाने पर बिवस हो सकती थी। यही वजह थी कि वो उस मकान में मुझे खाना देने और दवा लगाने के लिए ही आती थी और जल्द से जल्द वहां से निकल जाती थी। उसे भी मुझसे प्रेम हो गया था लेकिन उसकी बिवसता यही थी कि पिशाच होने के नाते वो मेरे पास ज़्यादा देर तक रुक नहीं सकती थी। इंसानी खून पीने के लिए वो मजबूर हो जाती जो कि वो किसी भी कीमत पर नहीं चाहती थी।

मेघा ने जब अपनी असलियत बताई थी तब मैंने उससे कहा था कि वो मुझे भी अपने जैसा बना दे लेकिन उसने ऐसा करने से साफ़ इंकार कर दिया था। उसका कहना था कि पिशाच बन कर जीना एक बहुत बड़ा अभिशाप है जिसकी मुक्ति नहीं हो सकती। उसे मेरे प्रेम में तड़पना तो मंजूर था लेकिन मुझे अभिशाप से भरा हुआ जीवन देना मंजूर नहीं था। ख़ैर उसने ये सब तो बताया था किन्तु इसके पीछे की असल वजह ये नहीं बताई था कि मेरे खून से उसके पिता को नया जीवन मिल सकता है। मेरे प्रति प्रेम की ये उसकी प्रबल भावना ही थी जिसके चलते उसने अपने पिता को मेरे द्वारा नया जीवन देने के बजाय मेरी सलामती को ज़्यादा महत्वा दिया था।

इत्तेफ़ाक से जब मैं यहाँ पहुंचा तब मुझे इन सारी बातों का रूद्र और वीर के द्वारा ही पता चला था। मुझे ये सोच कर गर्व तो हुआ कि मेघा ने अपने पिता की बजाय मुझे अहमियत दी लेकिन अब ये मेरा फ़र्ज़ था कि मैं अपनी मेघा के लिए वो करूं जिससे उसके माथे पर ये कलंक न लगे कि उसने अपने जन्म देने वाले पिता को महत्वा न दे कर एक इंसान को ज़्यादा महत्वा दिया।

रुद्र और वीर को ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि मैं इतनी आसानी से इस कार्य के लिए मान जाऊंगा और अपना बलिदान इस तरह सहजता से देने को तैयार हो जाऊंगा। मेघा अभी भी मेरे लिए दुखी थी लेकिन मैंने उसे समझा दिया था कि अगर नियति में हमारा मिलन लिखा होगा तो उसे खुद नियति भी रोक नहीं पाएगी।

महल के अंदर मौजूद वो एक अलग ही स्थान था जहां पर एक बड़े से ताबूत में वैम्पायर यानि पिशाचों के पितामह अनंत का निर्जीव शरीर रखा हुआ था। रूद्र के अनुसार पितामह अनंत का शरीर पिछले सौ सालों से उस ताबूत में रखा हुआ था। शुरुआत में जब मेरी नज़र ताबूत के अंदर पड़े उस शरीर पर पड़ी तो डर के मारे मेरी चीख निकलते निकलते रह गई थी। मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था कि पिशाच दिखने में ऐसे होते होंगे। रूद्र और मेघा दोनों आपस में भाई बहन थे और उन दोनों के पिता अनंत थे। अनंत पिशाचों के पितामह थे। वीर नाम का वैम्पायर रूद्र का दोस्त था। इनके जैसे और भी पिशाच यहाँ थे लेकिन इस वक़्त वो सब इंसानों की तरह साधारण रूप में दिख रहे थे।

मुझे महल के अंदर एक ऐसे कमरे में ले जाया गया था जहां पर कमरे के बीचो बीच एक बड़ा सा चबूतरा बना हुआ था। उस कमरे में चारो तरफ अनगिनत मोमबत्तियां जल रहीं थी। उस चबूतरे के बगल से वो ताबूत भी रख दिया गया था जिसमें पिशाचों के पितामह अनंत का शरीर रखा हुआ था। ताबूत का ढक्कन हटा कर ताबूत के किनारों पर ढेर सारी मोमबत्तियां रख कर जला दी गईं थी। मुझे ऊपर से नंगा कर के उस चबूतरे में लेटा दिया गया था और साथ ही मेरे दोनों हाथ और दोनों पैरों को मजबूत रस्सी से बाँध दिया गया था। मैं अंदर से बेहद ही घबराया हुआ था लेकिन अपनी मेघा और अपने प्रेम के लिए खुद का बलिदान देने को तैयार था। चबूतरे के चारो तरफ कमरे में काले कपड़े पहने बहुत सारे पिशाच खड़े थे। रूद्र और वीर मेरे पास ही आँखें बंद किए खड़े थे। उन दोनों के होठ हिल रहे थे, ऐसा लगता था जैसे कोई मंत्र पढ़ रहे हों। मेरे एक तरफ मेघा खड़ी थी जिसका चेहरा इस वक़्त बेहद सपाट था। शायद उसने अपने जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से काबू किया हुआ था।

रूद्र और वीर ने आंखें खोल कर एक बार मेरी तरफ देखा उसके बाद उसने दूसरी तरफ देख कर कुछ इशारा सा किया, परिणामस्वरूप कुछ ही देर में दो वैम्पायर एक ट्राली लिए आते दिखे। उस ट्राली में कई सारी चीज़ें रखी हुईं थी। ट्राली के दो सिरों में राड लगी हुई थी जो ऊपर एक अलग राड में जुड़ी हुई थी। ऊपर की उस राड के दोनों छोर पर कुंडे बने हुए थे जिनमें पतले से किन्तु पारदर्शी क‌ई पाइप लटक रहे थे। ट्राली में कांच के बड़े बड़े बोतल रखे हुए थे और उसके बगल से लोहे के कुछ ऐसे इंस्ट्रूमेंट्स जिन्हें मैंने कभी नहीं देखा था।

"तुम तैयार हो न लड़के?" सहसा रूद्र ने मेरे क़रीब आते हुए कहा____"क्योंकि अब जो कुछ भी होगा वो तुम्हारे लिए बेहद ही असहनीय होगा।"

"मुझे परवाह नहीं रूद्र जी।" मैंने अपनी घबराहट को काबू करते हुए कहा____"आप अपना काम कीजिए लेकिन उससे पहले मुझे मेरी एक ख़्वाहिश पूरी कर लेने दीजिए।"

"कैसी ख़्वाहिश?" रूद्र के माथे पर सलवटें उभरीं।
"मुझे अपनी मेघा को एक बार और देखना है।" मैंने कहा____"अपनी आँखों में अपनी मेघा का चेहरा बसा कर इस दुनियां से जाना चाहता हूं।"

"ठीक है।" रूद्र ने कुछ देर तक मेरी तरफ देखते रहने के बाद कहा और एक तरफ हट गया। उसके साथ वीर भी हट गया। उन दोनों के हटते ही मेघा मेरी आँखों के सामने आ कर मेरे पास ही खड़ी हो गई। उसका चेहरा ही बता रहा था कि वो इस वक़्त अपने दिल के जज़्बातों को काबू करने की बहुत ही जद्दो जहद कर रही थी। उसकी आँखों में आंसू तैर रहे थे।

"क्या ऐसे दुखी हो कर विदा करोगी मुझे?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए फीकी मुस्कान के साथ कहा तो मेघा खुद को सम्हाल न पाई और तड़प कर मेरे सीने में अपना चेहरा छुपा कर रोने लगी।

"ऐसा मत करो ध्रुव" मेघा ने रोते हुए कहा____"मुझे इस तरह छोड़ कर मत जाओ। मैं इसी लिए तुम्हारे प्रेम को स्वीकार नहीं कर रही थी क्योंकि मैं पहले से जानती थी कि मेरे पिता को फिर से जीवन मिलने की क्या शर्त है। मैंने एक बार भैया की बातें सुन ली थी और इसी लिए हर बार तुम्हारे प्रेम को ठुकरा रही थी ताकि तुम अपने दिल से मेरा ख़याल निकाल दो।"

"अब इन सब बातों का समय नहीं है मेघा।" मैंने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"अब तो बस हंसते हंसते खुद को फ़ना कर देने का वक़्त है। मैं बेहद खुश हूं कि ऊपर वाले ने मुझे तुमसे मिलाया। हाँ, इस बात का थोड़ा दुःख ज़रूर है कि तुम्हारा साथ मेरी किस्मत में बहुत थोड़ा सा लिखा उसने लेकिन कोई बात नहीं, जीवन में इंसान को भला कहां सब कुछ मिल जाया करता है? ख़ैर छोड़ ये सब बातें और मुझे अपनी वैसी ही मोहिनी सूरत दिखाओ जैसे दो साल पहले मैंने देखी थी। बिलकुल वैसा ही चाँद की तरह चमकता हुआ चेहरा और वही मुस्कान।"

"नहीं, ये मुझसे नहीं होगा।" मेघा ने तड़प कर कहा____"ऐसे हाल में मैं मुस्कुरा भी कैसे सकती हूं ध्रुव जबकि मैं उस महान शख़्स को हमेशा के लिए खो देने वाली हूं जिसने मुझ जैसी पिशाचनी से प्रेम किया और मुझे प्रेम करना सिखाया?"

"मैं हमेशा तुम्हारे दिल में ही रहूंगा मेघा।" मैंने कहा____"तुम्हारे दिल से तो नहीं जा रहा न मैं? फिर क्यों दुखी होती हो? इस वक़्त मैं बस यही चाहता हूं कि मेरी मेघा मुझे मुस्कुराते हुए विदा करे और सच्चे मन से अपने पिता को पुनः प्राप्त करने की हसरत रखे।"

मेघा ने मेरे सीने से अपना चेहरा उठा कर मेरी तरफ देखा। नीली गहरी आँखों में तड़प और आंसू के अलावा कुछ न था। दूध की तरह गोरा चेहरा सुर्ख पड़ा हुआ था। मेरे दोनों हाथ बँधे हुए थे इस लिए मैं उसके सुन्दर चेहरे को अपनी हथेलियों में नहीं ले सकता था।

"तुम्हें मेरी क़सम है मेघा।" मैंने उसकी आँखों में देखते हुए कहा____"तुम सच्चे मन से वही करो जो इस वक़्त ज़रूरी है और हाँ मुझे अपनी मनमोहक मुस्कान के साथ ही विदा करो। मैं तुम्हारे मुस्कुराते हुए चेहरे को अपनी आँखों में बसा कर इस दुनिया से जाना चाहता हूं। क्या तुम मेरी ये आख़िरी हसरत पूरी नहीं करोगी?"

मेरी बातें सुन कर मेघा ने अपनी आँखें बंद कर ली। जैसे ही पलकें बंद हुईं तो आंसू की धार बाह कर उसके दोनों गालों को नहला ग‌ई। चेहरे के भाव बदले और कुछ ही पलों में उसने पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा। अपनी आस्तीन से उसने अपने आंसू पोंछे और मेरी तरफ देखते हुए बस हल्के से मुस्कुराने की कोशिश की। वो जैसे ही मुस्कुराई तो ऐसा लगा जैसे सब कुछ मिल गया हो मुझे। दिल का ज़र्रा ज़र्रा ख़ुशी से भर गया। मेरे होठों पर भी मुस्कान उभर आई। तभी जाने उसे क्या हुआ कि वो झुकी और मेरे होठों पर अपने होंठ रख दिए। वक़्त जैसे एकदम से ठहर गया। मैं किसी और ही दुनिया में पहुंच गया किन्तु जल्दी ही वापस आया। मेघा ने मेरे चेहरे को एक बार प्यार से सहलाया और फिर एक तरफ चली गई।

मेघा के जाने के बाद रूद्र और वीर के कहने पर दो पिशाच ट्राली ले कर मेरे पास आए। रूद्र ने मुझे बताया कि आगे अब जो होगा उसमें मुझे बेहद तकलीफ़ होगी इस लिए मैं उस तकलीफ़ को सहने के लिए तैयार हो जाऊं। मैं अंदर से बेहद डरा हुआ था किन्तु अब भला डरने से क्या हो सकता था? ये सब तो मैंने खुद ही ख़ुशी से चुना था। कुछ ही देर में दो पिशाच मेरे दाएं बाएं आ कर खड़े हुए। उन दोनों के हाथ में बड़ी सी सुई थी और सुई के पीछे पतला किन्तु पारदर्शी पाईप। वीर के इशारे पर दो चार पिशाच मेरे पास आए और मुझे शख़्ती से पकड़ लिया। उनके ऐसा करते ही मेरी धड़कनें तेज़ चलने लगीं। ऐसा लगा जैसे मुझे बकरा समझ कर हलाल करने वाले थे वो। हालांकि एक तरह से मैं बकरा ही तो था।

एक साथ दोनों तरफ से मेरे हाथ में बड़ी बड़ी दो सुईयां चुभा दी ग‌ईं। मैं दर्द के मारे पूरी शक्ति से चिल्लाया। हालांकि दर्द को बर्दास्त करने की मैंने बहुत कोशिश की थी लेकिन दर्द मेरी सोच से कहीं ज़्यादा असहनीय था। दो सुईयां हाथ में चुभाने के बाद पहले वाले दो पिशाच वापस पलटे और कुछ देर बाद फिर से वापस आए और इस बार वो दो बड़ी बड़ी सुईयां मेरे सीने में चुभा दिया। मैं एक बार फिर से हलक फाड़ कर चिल्लाया। मेरी चीखों से समूचा हाल दहल उठा। कुछ देर बाद धीरे धीरे दर्द कम होने लगा तो मैंने राहत की लम्बी साँसें ली।

मुझे आँखों के सामने अँधेरा छाता हुआ महसूस होने लगा था। मेरे जिस्म में चार जगह सुईयां लगी हुईं थी। उन सुईयों के पीछे लगे पाइप में मेरा खून बड़ी तेज़ी से मेरे जिस्म से निकल कर पाईप के आख़िरी उस छोर पर जा रहा था जहां पर कांच के चार बॉटल रखे हुए थे। वो चारो बॉटल ट्राली के नीचे रखे हुए थे। प्रतिपल मेरी आँखों के सामने अँधेरा गहराता जा रहा था और मैं रफ्ता रफ्ता मौत की गहरी नींद में डूबता चला जा रहा था। एक वक़्त ऐसा भी आया जब मैंने महसूस किया जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया है और अब पूरी कायनात में शान्ति छा गई है।

✮✮✮

हर तरफ काला स्याह अँधेरा था। एक ऐसा अँधेरा जिसका कोई अंत नहीं जान पड़ता था। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं उस अँधेरे में ऊपर की तरफ बड़ी तेज़ी से उड़ता चला जा रहा था। हालांकि मैं अपना वजूद महसूस नहीं कर पा रहा था किन्तु इतना ज़रूर आभास हो रहा था जैसे मैं अनंत अँधेरे में कहीं तो ज़रूर हूं। पता नहीं कब तक मैं यूं ही अँधेरे में ऊपर की तरफ उड़ता हुआ महसूस करता रहा। मैं अंदर से बेहद घबराया हुआ था और अपने हाथ पैर चलाना चाहता था किन्तु ऐसा लगता था जैसे मेरा समूचा जिस्म निष्क्रिय हो गया हो। एकाएक अँधेरे में मुझे एक छोटा सा बिंदु टिमटिमाता हुआ दिखा। मैंने चारो तरफ गर्दन घुमा कर देखने की कोशिश की किन्तु सब ब्यर्थ। मैं निरंतर उस बिंदु की तरफ ही बढ़ता चला जा रहा था।

मैंने महसूस किया कि वो बिंदु प्रतिपल अपना आकार बड़ा कर रहा था। मेरे लिए ये हैरानी की बात थी किन्तु मैं कुछ भी कर पाने में असमर्थ था। अनंत अँधेरे में दिखा वो छोटा सा बिंदु जैसे जैसे बड़ा होता जा रहा था वैसे वैसे अनंत अँधेरा कम होता जा रहा था। मैं एक तरफ जहां अँधेरे के कम होने पर ख़ुशी महसूस करने लगा था वहीं उस टिमटिमाते हुए बिंदु को प्रतिपल बड़ा होते देख घबराहट से भी भरता जा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ये सब क्या था और मैं ये कहां पहुंच गया हूं?

एक वक़्त ऐसा आया जब छोटा सा दिखने वाला बिंदु इतना बड़ा हो गया कि उसकी तेज़ रोशनी से मेरी आँखें चौंधियां गईं और मैंने झट से अपनी आँखें बंद कर ली। ऐसा लगा जैसे पलक झपकते ही अनंत अँधेरा उस तेज़ प्रकाश से कहीं विलुप्त हो गया हो। उस बिंदु का प्रकाश इतना तेज़ था कि बंद पलकों के बावजूद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी आँखों के बल्ब फ्यूज हो जाएंगे।

"आँखें खोलो ध्रुव।" अनंत सन्नाटे में एक ऐसी आवाज़ गूँजी जिसने मेरी रूह को थर्रा कर रख दिया। डर के मारे मैं बुरी तरह कांपने लगा था किन्तु उस आवाज़ का असर ऐसा था कि मैंने किसी सम्मोहन में फंसे इंसान की तरह झट से अपनी आँखें खोल दी।

आंखें खुली तो तेज़ रोशनी को मैं देख न सका इस लिए फ़ौरन ही अपनी आँखें फिर से बंद कर ली। कुछ पलों बाद मैंने बहुत ही आहिस्ता से अपनी पलकों को खोला तो इस बार मुझे रोशनी का तेज़ थोड़ा कम महसूस हुआ।

"हम तुम्हारे पवित्र प्रेम और प्रेम में दिए हुए बलिदान से बेहद प्रसन्न हुए ध्रुव।" उस तेज़ प्रकाश से फिर आवाज़ गूंजी____"इस लिए हमारा आशीर्वाद है कि तुम्हारा ये बलिदान ब्यर्थ नहीं जाएगा। हम तुम्हें वापस तुम्हारी प्रेमिका के पास भेज रहे हैं। तुम धरती पर मेघा के साथ सौ वर्ष तक रहोगे। सौ वर्ष बाद तुम दोनों को हमारी कृपा से मुक्ति मिल जाएगी।"

उस तेज़ प्रकाश से निकली इस बात को सुन कर मैं बेहद खुश हो गया। मैंने उस प्रकाश को हाथ जोड़ कर प्रणाम किया। प्रणाम करने के बाद जैसे ही मैंने सिर उठा कर उस प्रकाश की तरफ देखा तो चौंक गया क्योंकि अब वहां कोई प्रकाश नहीं था बल्कि हर तरफ वैसा ही अँधेरा था जैसे पहले था। तभी मैंने महसूस किया जैसे मैं नीचे की तरफ बड़ी तेज़ी से जा रहा हूं। एक बार फिर से मेरे अंदर तेज़ घबराहट भर गई। मैं अपने हाथ पाँव चलाना चाहता था किन्तु मैं सब ब्यर्थ। ऐसा लगा जैसे मेरे जिस्म का हर अंग निष्क्रिय हो गया हो। मैं बड़ी तेज़ी से नीचे आ रहा था। अनंत अँधेरे में मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

✮✮✮

"आपको तो नया जीवन मिल गया पिता जी।" मेघा रोते हुए कह रही थी_____"लेकिन अब मुझे यहाँ नहीं रहना। मुझे इस जीवन से मुक्ति दे दीजिए ताकि मैं भी अपने ध्रुव के पास चली जाऊं। उसने मेरे प्रेम में आपके ख़ातिर खुद का बलिदान दे दिया। उसने आपको फिर से जीवन देने के लिए अपना अमूल्य जीवन बलिदान कर दिया पिता जी। मुझे ख़ुशी है कि आपको फिर से नया जीवन मिल गया। आप अनंत काल तक जिएं और शान से यहाँ राज कीजिए लेकिन मुझे मुक्ति दे दीजिए। मुझे अपने ध्रुव के पास जाना है, उसे मेरी और मेरे प्यार की ज़रूरत है पिता जी। आप नहीं जानते उसने मेरी सिर्फ एक झलक पाने के लिए कितने दुःख सहे थे। उसने ये जान कर भी मुझसे टूट कर प्रेम किया कि मैं कोई इंसान नहीं बल्कि एक पिशाचनी हूं। आज उसने उसी प्रेम के लिए अपना बलिदान दे दिया। ऐसे महान इंसान के बिना मैं एक पल भी इस दुनिया में जीना नहीं चाहती। कृपया मुझे मुक्ति दे दीजिए पिता जी।"

"हमें माफ़ कर दो बेटी।" सम्राट अनंत ने मेघा के क़रीब आते हुए कहा_____"किन्तु हम ये नहीं कर सकते। हम अपने ही हाथों से अपनी बेटी का गला नहीं घोंट सकते। काश! हमें इस बात का सौ साल पहले एहसास हुआ होता तो उस समय हम रूद्र को ऐसा करने को कहते ही नहीं। ये तो अब तुम्हें इस हाल में देख कर हमें एहसास हो रहा है कि अपने स्वार्थ में हमने अपनी बेटी की ख़ुशी छीन ली।"

"मैं आपको इसके लिए कसूरवार नहीं ठहराऊंगी पिता जी।" मेघा ने दुखी भाव से कहा____"बल्कि अगर आप मुझे मुक्ति दे कर मेरे ध्रुव के पास भेज दें तो मुझे ख़ुशी ही होगी।"

"हमें तुम्हारे दुःख का अंदाज़ा है बेटी।" सम्राट अनंत ने कहा____"लेकिन तुम हमारी बिवसता को समझो। भला कोई पिता अपने ही हाथों से कैसे अपनी बेटी की जान ले ले सकता है?"

"पिता जी ठीक कह रहे हैं मेघा।" रूद्र ने मेघा के पास ही बैठते हुए कहा_____"दुसरी बात तुम भूल रही हो कि हम कौन हैं। हम पिशाच हैं मेघा और हमें इस तरह से मुक्ति नहीं मिलती। देखो, मैं भी तो सृष्टि के बिना जी ही रहा हूं न? क्या मैं नहीं चाहता कि मुझे भी मुक्ति मिल जाए और मैं अपनी सृष्टि के पास पहुंच जाऊं? मैंने बहुत कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। हम पिशाचों की यही किस्मत है मेघा।"

"जो भी हो लेकिन मैं अपने ध्रुव के बिना एक पल भी इस दुनिया में नहीं रहना चाहती।" मेघा उठी और भागते हुए उस चबूतरे के पास आई जिस चबूतरे में मैं लेटा हुआ था। मैं अभी भी वैसे ही उस चबूतरे में बंधा आँखें बंद किए पड़ा हुआ था। मेघा भाग कर मेरे पास आई और मुझे झिंझोड़ते हुए बोली_____"मुझे भी अपने पास बुला लो ध्रुव। मैं तुम्हारे बिना यहाँ नहीं रहना चाहती। तुम तो मुझे दुखी और बेबस नहीं कर सकते न क्योंकि तुमने ही कहा था कि ऐसा करना प्रेम की तौहीन करना कहलाता है। फिर तुम खुद ही ऐसा कैसे कर सकते हो? वापस आ जाओ मेरे ध्रुव, तुम्हारी मेघा तुम्हें पुकार रही है। मुझे यहाँ इस तरह अकेले छोड़ कर मत जाओ।"

कहने के साथ ही मेघा मुझसे लिपट कर रोने लगी। रूद्र, वीर और खुद सम्राट अनंत भी उसके पास आ गए थे। मेघा को इस तरह मेरे निर्जीव पड़े शरीर से लिपटे रोता देख उनके चेहरे पर भी दुःख के भाव उभर आए किन्तु वो कुछ नहीं कर सकते थे। उधर मेघा बार बार मुझे झकझोर रही थी और साथ ही रो रो कर मुझसे जाने क्या क्या कहती जा रही थी। एकाएक मेरे जिस्म को झटका लगा और मैं लम्बी सांस ले कर जाग उठा।

मेरी आँखें खुल चुकी थी। मैं तेज़ तेज़ साँसें ले रहा था और बीच बीच में ख़ास भी रहा था। ये सब देख वहां मौजूद सब के सब बुरी तरह उछल पड़े। रूद्र, वीर और सम्राट अनंत भाग कर मेरे क़रीब आए। मेघा जल्दी से मुझसे से अलग हुई और मुझे जीवित देख कर उसकी आँखों से ख़ुशी के आंसू छलक पड़े। वो मेरा नाम लेते हुए फिर से मुझसे लिपट गई। सब के सब आश्चर्य चकित थे। किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि मैं इस तरह ज़िंदा हो जाऊंगा।

"मैं जानती थी कि तुम मुझे इस तरह छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते।" मेघा ख़ुशी के मारे मेरे चेहरे को चूमती हुई बोलती जा रही थी____"मैं जानती थी कि तुम अपनी मेघा को दुःख तकलीफ़ नहीं दे सकते।" सहसा वो पलटी और सम्राट अनंत की तरफ देखते हुए बोली____"पिटा जी मेरा ध्रुव वापस आ गया। वो अपनी मेघा के पास वापस आ गया पिता जी, देखिए न।"

साम्राट अनंत अपनी बेटी की बात सुन कर इस तरह चौंका जैसे अभी तक वो किसी और ही दुनिया में खोया हुआ था। वो ब्याकुल भाव से बोला_____"हां बेटी देख लिया हमने। हमने देख लिया कि तुम दोनों के प्रेम को ऊपर वाले ने भी स्वीकार कर लिया है। अगर ऐसा न होता तो तुम्हारा ध्रुव वापस नहीं लौटता।"

जल्द ही सम्राट अनंत के हुकुम पर मुझे बन्धनों से मुक्त कर के उस चबूतरे से उतारा गया। हाल में मौजूद सारे पिशाच मुझे ज़िंदा देख कर चकित थे। मैं खुद भी हैरान था कि ये सब कैसे हुआ? मेरे जिस्म में ना तो कोई ज़ख्म नज़र आ रहा था और ना ही मुझे कोई कमज़ोरी महसूस हो रही थी।

मेघा की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था। सम्राट अनंत ने मुझे अच्छे से नहलाने के लिए कहा तो मेघा खुद मुझे ले कर चल दी। वो मुझे छोड़ ही नहीं रही थी। मुझे शुरुआत में कुछ समझ नहीं आ रहा था किन्तु फिर ये सोच कर खुश हो गया कि जैसे भी हुआ हो लेकिन मैं ज़िंदा हो गया था और अब अपनी मेघा के साथ था। मेघा मुझे अपने कमरे में ले गई और वहीं गुशलखाने में वो अपने हाथों से मुझे नहलाने को बोली। मैं उसका ये प्यार देख कर खुश था किन्तु गुशलखाने में उसके सामने नंगा हो कर नहाने में मुझे बेहद शर्म आ रही थी। आख़िर मेरे बहुत ज़ोर देने पर मेघा ने मुझे अकेला छोड़ा।

मैं मेघा के कमरे से नहा धो कर तथा अच्छे कपड़े पहन कर बाहर निकला। मेघा मुझे ले कर सम्राट के दरबार में आई। दरबार में रूद्र और वीर के साथ साथ बाकी और भी कई पिशाच मौजूद थे। वहां पर मेरे बारे में ही बातें चल रही थी और साथ ही साथ इस बारे में भी कि सम्राट के पुनः वापस आने के बाद अब यहाँ पर एक बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाएगा जिसमें हर जगह के पिशाच शामिल होंगे।

"आओ बैठो बेटा।" सम्राट अनंत ने अपने क़रीब ही रखी एक कुर्सी पर मुझे बैठने का इशारा किया तो मैं जा कर बैठ गया। मेरे बगल वाली कुर्सी पर मेघा बैठ गई। मेरे लिए ये सब बहुत ही अजीब था और बहुत ही ज़्यादा असहज भी।

"तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया बेटा कि तुमने हमें नया जीवन देने के लिए ख़ुशी ख़ुशी अपना बलिदान दिया।" सम्राट अनंत ने प्रेम भाव से कहा_____"लेकिन हम सबके लिए ये बहुत ही ज़्यादा आश्चर्यचकित कर देने वाली बात है कि तुम वापस ज़िंदा कैसे हो गए? हम ये भी अच्छी तरह जानते हैं कि तुम कोई ऐसी चीज़ नहीं हो जिसमें कोई दैवीय शक्तियां हों इस लिए तुम्हारे ज़िंदा होने वाली बात संभव हो ही नहीं सकती।"

"मैं खुद इस बात से हैरान हूं।" मैंने खुद को नियंत्रित करते हुए कहा____"लेकिन हाँ इस बात से बेहद खुश हूं कि ऊपर वाले की कृपा से मैं फिर से अपनी मेघा के पास आ गया।"

"शायद इन दोनों के प्रेम को ऊपर वाले ने स्वीकार कर लिया होगा।" रूद्र ने कुछ सोचते हुए कहा____"आप तो जानते ही हैं कि प्रेम में बहुत बड़ी ताक़त होती है और उसका असर भी बहुत होता है।"
"हां यही हो सकता है।" वीर ने सिर हिलाया।

"वैसे पिता जी हम सब ये जानना चाहते हैं कि आपको पुनः जीवन मिलने की ऐसी शर्त क्यों थी?" रूद्र ने संतुलित लहजे में कहा____"सौ साल पहले आपने मुझे इस बारे में ज़्यादा कुछ नहीं बताया था। इस लिए हम सब अभी भी इस बात को जानने के लिए उत्सुक हैं कि आख़िर ऐसा क्या हुआ था जिसके चलते आप मुर्दा हो ग‌ए और आपके मुर्दा शरीर को ताबूत में रखना पड़ा? इतना ही नहीं बल्कि आपको पुनः जीवित करने के लिए इस तरह की शर्त का क्या रहस्य था? कृपया हम सबको इस रहस्य के बारे में बताइए पिता जी।"

"ऐसा एक श्राप की वजह से सब हुआ।" सम्राट अनंत ने गंभीरता से कहा____"सौ साल पहले की बात है। एक बार हम अपनी दुनिया से निकल कर इंसानी दुनिया में एक ऐसी जगह पहुंच गए जहां पर सिद्ध ऋषि मुनि लोग रहते थे। हालांकि हमें ये पता नहीं था कि वो जगह सिद्ध ऋषि मुनियों की थी। रात का समय था और आसमान में पूरा चमकता हुआ चाँद था। चाँद की रौशनी में हमने देखा एक सुन्दर झरने पर एक लड़की पत्थर पर बैठी हुई थी। पत्थर के चारो तरफ झरने का पानी था और उसके दाहिने तरफ कुछ दूरी पर उँचाई से झरने का पानी गिर रहा था। हमें ये देख कर थोड़ा अजीब लगा कि रात के वक़्त ऐसी जगह पर वो लड़की इस तरह अकेली क्यों बैठी हुई थी। ख़ैर हम बड़ी सावधानी से उसके पास पहुंचे। उस लड़की के गोरे जिस्म पर सिर्फ़ साड़ी ही थी जो कि गेरुए रंग की थी और उसके जिस्म पर इस तरह लिपटी हुई थी जो सिर्फ़ उसके गुप्तांगों को ही ढँके थी, बाकी उसका जिस्म बेपर्दा था और चाँद की रौशनी में चमक रहा था। सिर के बालों को उसने सुगन्धित फूलों की माला के द्वारा जूड़े के रूप में बाँध रखा था। हम जब उसके क़रीब पहुंचे तो देखा वो झरने के पानी में अपने दोनों पैर डाले घास के एक तिनके द्वारा पानी से खेल रही थी। उसे हमारे आने का ज़रा भी आभास नहीं हुआ था। इधर हम बेहद खुश थे कि आज शिकार के रूप में हमें एक लड़की इस तरह अकेली मिल गई थी। हम उसके और क़रीब पहुंचे तो जैसे उसे कुछ आभास हुआ। उसने पलट कर पीछे देखा तो किसी अंजान आदमी को देख कर वो दर गई। हमारी नज़र पहले तो उसके डरे हुए चेहरे पर पड़ी किन्तु जल्दी ही उसके खुले हुए गले पर जा पड़ी। हमारी आँखों को उसके गले में चमकती उछलती नश और सुर्ख खून दिखने लगा जिसकी वजह से हम पर प्यास तारी हो गई और हम फ़ौरन ही उस पर झपट पड़े। वो हलक फाड़ कर चिल्लाई किन्तु तब तक हमने उसके गले पर अपने दोनों दाँत पेवस्त कर दिए थे। वो बुरी तरह चीख रही थी और हमसे छूटने के लिए छटपटा रही थी। उसकी चीख का ही प्रभाव था कि कुछ ही पलों में वहां पर एक सिद्ध ऋषि जैसा इंसान भागता हुआ आया। उसकी तेज़ आवाज़ सुन कर हमने उस लड़की को छोड़ कर उसकी तरफ देखा। हमारे मुख में उस लड़की का खून लगा हुआ था और कुछ खून हमारे मुख से बह रहा था। उधर वो लड़की एकदम बेजान सी हमारी बाहों में झूल रही थी। ज़ाहिर था वो मर चुकी थी। उस लड़की की ऐसी हालत देख कर उस ऋषि का चेहरा गुस्से से भर गया और उसने हमें श्राप दिया।"

"नीच पिशाच" उस ऋषि ने गुस्से से कहा था____"तुमने जिस लड़की का खून पी कर उसकी जान ली है वो मेरी प्रियतमा है। यहाँ पर वो मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। मेरी निर्दोष प्रियतमा को इस तरह मारने वाले नीच पिशाच मैं तुझे श्राप देता हूं कि तू जल्द ही मुर्दे में तब्दील हो जाएगा किन्तु तुझे इस योनि से कभी मुक्ति नहीं मिलेगी।"

हम सब ख़ामोशी से सम्राट अनंत की बातें सुन रहे थे। उधर वो इतना कहने के बाद ख़ामोश हो गए थे। हमें लगा वो आगे कुछ बोलेंगे लेकिन जब काफी देर गुज़र जाने पर भी वो कुछ न बोले तो रूद्र से रहा न गया।

"फिर क्या हुआ पिता जी?" रूद्र ने उत्सुकता से पूछा_____"उस ऋषि ने आपको जब ऐसा श्राप दिया तब आपने क्या किया था?"

"शायद उस लड़की के शुद्ध रक्त का ही प्रभाव था कि हम एकदम से शांत पड़ गए थे।" सम्राट अनंत ने बताना शुरू किया____"उस ऋषि का श्राप सुन कर हमारे अंदर डर और घबराहट भर गई। हमें अपनी ग़लती का एहसास हुआ तो हम उस ऋषि के पास जा कर उसके पैरो में गिर गए और उससे अपने द्वारा किए गए उस जघन्य अपराध के लिए माफ़ी मांगने लगे। आख़िर हमारी प्रार्थना से द्रवित हो कर उस ऋषि ने शांत भाव से कहा____'मेरा श्राप तो टल नहीं सकता लेकिन क्योंकि तुझे अपनी ग़लती का एहसास हो गया है इस लिए हम अपने श्राप को एक निश्चित अवधि में परिवर्तित कर सकते हैं। सौ साल बाद जब तेरी बेटी को किसी इंसान से प्रेम होगा तो उस इंसान के खून द्वारा ही तेरा मुर्दा शरीर फिर से सजीव हो जाएगा, लेकिन...'

"लेकिन क्या ऋषिवर?" हम उस ऋषि के लेकिन कहने पर आशंकित हो उठे थे।
"लेकिन ये कि उस इंसान का खून तभी अपना असर दिखाएगा जब वो इंसान अपनी ख़ुशी से तुझे जीवन देने के लिए अपना बलिदान देगा।" ऋषि ने कहा_____"अगर इस कार्य में तेरी बेटी और तेरी बेटी के उस प्रेमी की रज़ामंदी नहीं होगी तो उसके खून का कोई असर नहीं होगा।"

"मेरे मुर्दा शरीर को फिर से सजीव करने की ये कैसी शर्त है ऋषिवर?" हमने हताश भाव से कहा था____"आप अच्छी तरह जानते हैं कि हम पिशाच किसी इंसान से प्रेम करने का सोच भी नहीं सकते बल्कि किसी इंसान को देखते ही हम उसका खून पीने के लिए मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में मेरी बेटी भला कैसे किसी इंसान से प्रेम करने का सोचेगी? जब ऐसा होगा ही नहीं तो मेरा मुर्दा शरीर कैसे फिर से सजीव हो सकेगा?"

"हमारा कथन कभी झूठा नहीं हो सकता।" उस ऋषि ने कहा____"अब तू जा क्योंकि तेरे पास अब ज़्यादा समय नहीं है।"

इतना कह कर वो ऋषि पलटा और एक तरफ को चला गया। उसके जाते ही हम चौंके क्योंकि हमारे पीछे अचानक ही हमें आग जलती हुई प्रतीत हुई थी। हमने तेज़ी से पलट कर पीछे देखा। जिस लड़की का हमने खून पिया था और उसकी जान ली थी उसका शरीर आग में जल रहा था। हमारे देखते ही देखते वो लड़की जल गई और जब आग समाप्त हुई तो पत्थर में कुछ नहीं था। उस लड़की के जले हुए शरीर की राख तक नहीं थी उस पत्थर पर। हमारे लिए ये बड़े ही आश्चर्य की बात थी किन्तु फिर ख़याल आया कि हमारे पास ज़्यादा वक़्त नहीं है इस लिए हम जल्दी ही वहां से अपनी दुनिया में लौट आए और फिर हमने तुम्हें ये बताया कि कैसे हमारा मुर्दा शरीर फिर से सजीव होगा।"

"तो ये कहानी थी आपके मुर्दा हो जाने की।" रूद्र ने लम्बी सांस खींचते हुए कहा_____"अब समझ आया कि उस समय आपके पास ज़्यादा समय नहीं था और इसी लिए आप सारी बातें मुझे नहीं बता सकते थे। सिर्फ़ वही बताया जो ज़रूरी था।"

"मुझे आपसे कुछ कहना है पिता जी।" सहसा मेघा ने ये कहा तो सबने उसकी तरफ देखा, जबकि सम्राट अनंत ने कहा____"हां कहो बेटी, क्या कहना चाहती हो तुम?"

"मैं अपने ध्रुव के साथ यहाँ से कहीं दूर जाना चाहती हूं।" मेघा ने सपाट लहजे में कहा____"एक ऐसी जगह जहां पर मेरे और मेरे ध्रुव के अलावा तीसरा कोई न हो।"

"तुम अपने ध्रुव के साथ यहाँ भी तो रह सकती हो बेटी।" सम्राट अनंत ने कहा____"हम तुम्हें वचन देते हैं कि यहाँ पर तुम्हारे ध्रुव को किसी से कोई भी ख़तरा नहीं होगा। जिस इंसान ने हमें एक नया जीवन दिया है हम खुद कभी ये नहीं चाहेंगे कि उस पर किसी तरह की कोई बात आए।"

"मुझे यकीन है कि यहाँ पर मेरे ध्रुव को किसी से कभी कोई ख़तरा नहीं होगा।" मेघा ने कहा____"लेकिन इसके बावजूद मैं यहाँ से जाना चाहती हूं पिता जी। कृपया मुझे अपने ध्रुव के साथ अपनी एक अलग दुनिया बसाने की इजाज़त दे दीजिए। मैं अब अपने ध्रुव के साथ एक साधारण इंसान की तरह रहना चाहती हूं।"

"अगर तुमने ऐसा सोच ही लिया है तो ठीक है।" सम्राट अनंत ने कहा____"हम तुम्हें जाने की इजाज़त देते हैं लेकिन अगर कभी हमें तुम्हारी याद आई तो हमसे मिलने ज़रूर आना। अपने इस अभागे पिता को भूल मत जाना बेटी।"

साम्राट अनंत की बातें सुन कर मेघा के चेहरे पर ख़ुशी के भाव उभर आए। वो कुर्सी से उठी और अपने पिता की तरफ बढ़ी तो सम्राट अनंत भी अपने सिंघासन से उठ कर खड़े हो ग‌ए। मेघा जब उनके क़रीब पहुंची तो उन्होंने उसे अपने गले से लगा लिया। कुछ देर बाद मेघा उनसे अलग हुई और रुद्र की तरफ देखा।

"मुझे तुझ पर नाज़ है मेरी बहन।" रूद्र ने मेघा के चेहरे को प्यार से सहला कर कहा____"और खुश भी हूं कि तुझे तेरा प्रेम हासिल हो गया। अपने ध्रुव के साथ हमेशा खुश रहना और उसे भी खुश रखना। जब भी मेरी ज़रूरत पड़े तो अपने इस भैया को याद कर लेना। मैं पलक झपके ही तेरे सामने हाज़िर हो जाऊंगा।"

मेघा सबसे विदा ले रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो सच में ससुराल जा रही हो। रूद्र और वीर मुझसे भी गले मिले। वीर के लिए मैं अभी भी एक अजूबा जैसा था। ख़ैर मैं और मेघा महल से निकल कर अपनी एक अलग दुनिया बसाने चल दिए।

मेघा को हमेशा के लिए पा कर मैं बेहद खुश हो गया था। मेघा मुझसे कहीं ज़्यादा खुश थी। वो पिशाचनी थी किन्तु उसके बर्ताव से कहीं भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वो असल में क्या थी, बल्कि वो तो किसी साधारण इंसान की तरह ही बर्ताव कर रही थी। मुझसे किसी छोटी सी बच्ची की तरह चिपकी हुई थी और मारे ख़ुशी के जाने क्या क्या कहती जा रही थी।

हम दोनों एक ऐसी जगह पहुंचे जिस जगह को देख कर मैं एकदम से चकित रह गया था। ये वही जगह थी जिसे मैंने सपने में देखा था। चारो तरफ दूर दूर तक प्रकिति की खूबसूरती का नज़ारा दिख रहा था। वही हरी भरी खूबसूरत वादियां, वही चारो तरफ दिख रहे पहाड़, एक तरफ दूर उँचाई से बहता हुआ वही जल प्रवाह जो नीचे जा कर एक खूबसूरत नदी का रूप लिए हुए था। हरी भरी ज़मीन पर जगह जगह उगे हुए वही रंग बिरंगे फूल जो मन को मोहित कर रहे थे। ये सब देख कर मुझे ऐसा लगा जैसे मैं एक बार फिर से सपना देखने लगा हूं। इस एहसास के साथ ही मेरी धड़कनें बढ़ गईं और मेरे अंदर घबराहट सी भरने लगी। मैंने जल्दी से मेघा की तरफ देखा। वो वैसे ही मुझसे चिपकी हुई खूबसूरत वादियों को देख रही थी।

"कितनी खूबसूरत जगह है न ध्रुव?" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए हल्की मुस्कान के साथ कहा____"ऐसा लगता है जैसे ये जगह प्रकृति ने हमारे लिए ही बनाई है। हम यहीं पर अपने प्रेम की खूबसूरत दुनिया बसाएंगे। तुम क्या कहते हो इस बारे में?"

"मेरी तो खूबसूरत दुनिया तुम ही हो मेघा।" मैंने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर कहा____"जहां मेरी मेघा होगी वहीं मेरा सब कुछ होगा।"
"ओह! ध्रुव।" मेघा एकदम से मेरे सीने से लगते हुए बोली____"इतना प्रेम मत करो मुझसे कि मैं ख़ुशी के मारे बावरी हो जाऊंगा।"

"प्रेम तो वही है न।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"जिसमें इंसान बावरा हो जाए।"
"अच्छा।" मेघा मेरे सीने से लगी हुई ही मानो मासूमियत से बोली___"अगर ऐसा है तो मुझे भी तुम्हारे प्रेम में बावरी होना है।"

"वो तो तुम पहले से ही हो।" मैंने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा____"और इस बात को ऊपर वाला भी जानता है। ख़ैर छोडो इस बात को, चलो हम यहीं पर अपने प्रेम का खूबसूरत अशियाना बनाते हैं।"

"ठीक है।" मेघा मुझसे अलग हो कर बोली____"हम यहाँ पर एक छोटा सा घर बनाएंगे। हम दोनों यहाँ पर साधारण इंसानों की तरह प्रेम से रहेंगे। हम दोनों यहाँ की ज़मीन को खेती करने लायक बनाएंगे और फसल ऊगा कर उसी से अपना गुज़ारा करेंगे।"

मेघा की ये बातें सुन कर मैं मन ही मन चौंका। उसे मेरे मन की बातें कैसे पता थीं? यही तो मैं भी चाहता था और ऐसा ही तो मैंने सपने में देखा था। क्या सच में हमारे प्रेम के तार इस तरह एक दूसरे से जुड़ चुके थे कि हम दोनों एक दूसरे के मन की बातें भी जान सकते थे?

ज़िन्दगी में बहार आ गई थी। दुःख दर्द के वो बुरे दिन गायब हो गए थे। ये कोई सपना नहीं था बल्कि एक ऐसी हक़ीक़त थी जिसे मैं पूरे होशो हवास में अपनी खुली आँखों से देख रहा था और दिल से महसूस भी कर रहा था। जिसकी तलाश में मैं पिछले दो सालों से दर दर भटक रहा था वो अब मेरी आँखों के सामने थी और मेरे पास थी। जिसके लिए मैं दो सालों से तड़प रहा था वो अपने प्रेम के द्वारा मेरे हर दुःख दर्द मिटाती जा रही थी। हम दोनों बेहद खुश थे। हम दोनों ने मिल कर अपनी मेहनत से एक छोटा सा घर बना लिया था और अब ज़मीन को खेती करने लायक बना रहे थे। हम दोनों ख़ुशी ख़ुशी हर काम कर रहे थे। हमारा प्रेम हर पल बढ़ता ही जा रहा था।

मैं अच्छी तरह जानता था कि मैं मेघा से शादी करके उसे अपनी पत्नी नहीं बना सकता था और ना ही उसके द्वारा बच्चे पैदा कर सकता था। वो एक वैम्पायर लड़की थी और मैं एक साधारण इंसान। हम दोनों का कोई मेल नहीं था लेकिन सिर्फ़ एक ही चीज़ ऐसी थी जिसने हम दोनों को आपस में जोड़ रखा था और वो था हम दोनों का अटूट प्रेम। मुझे इसके अलावा और कुछ भी नहीं चाहिए था। मेघा के साथ हमारे प्रेम की ये अलग दुनिया बहुत ही खूबसूरत लग रही थी और मैं चाहता था कि प्रेम की इस दुनिया का कभी अंत न हो।

कभी कभी ये ख़याल आ जाता था कि क्या मैं सच में मर कर ज़िंदा हुआ था? ज़हन में कभी कभी धुंधला सा एक ऐसा मंज़र उभर आता था, जिसमें अनंत अंधेरा होता था और उस अनंत अंधेरे में एक छोटा सा प्रकाश पुंज टिमटिमाता हुआ दिखता था। कानों में रहस्यमई एक ऐसी आवाज़ गूंज उठती थी जो मुझसे कुछ कहती हुई प्रतीत होती थी और मैं अक्सर उसे समझने की कोशिश करता था। ये कोशिश आज भी जारी है और मेघा के साथ हमारे प्रेम की दुनिया आज भी आबाद है। हम दोनों को ही यकीन है कि एक दिन ऊपर वाला हमें इस लायक ज़रूर बनाएगा जब हम हर तरह से एक हो जाएंगे।


दुवा करो के मोहब्बत यूं ही बनी रहे।
मेरे ख़ुदा तेरी रहमत यूं ही बनी रहे।।

अब न आए कोई ग़म इस ज़िन्दगी में,
बहारे-गुल की इनायत यूं ही बनी रहे।।

जिसको चाहा उसे पा लिया आख़िर,
ख़ुदा करे ये अमानत यूं ही बनी रहे।।

हमारे दरमियां अब कभी फांसले न हों,
हमारे दरमियां कुर्बत यूं ही बनी रहे।।

जैसे अब तक एतबार रहा तुझ पर,
उसी तरह ये सदाक़त यूं ही बनी रहे।।


✮✮✮
_______________________
✮✮✮ The End ✮✮✮
_______________________
Bahut khubsurat story likhi bhai ..
Romanch aur prem se bharpoor ..
Bahut hi shayrana andaaj aur philosophy ke sath ..
Story bahut jaldi khatm ho gayi but lambai utana mayane nahi
 
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Lovekillsyou

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किसी चीज़ के द्वारा मुझे तेज़ दर्द हुआ तो एक झटके से मेरी आँखें खुल ग‌ईं। पहले तो मुझे कुछ समझ न आया किन्तु कुछ समय बाद जब ज़हन सक्रिय हुआ तो मुझे तीव्र झटका लगा। मेरी आँखों के सामने एक अलग ही मंज़र नज़र आ रहा था। मैंने चारो तरफ नज़र घुमा घुमा कर देखा और खुद की हालत का जब मुझे एहसास हुआ तो मेरे पैरों तले से ज़मीन गायब हो गई। हालांकि ज़मीन तो पहले ही गायब थी क्योंकि मैं ज़मीन पर था ही नहीं। मेरा पूरा जिस्म मोटी मोटी ज़ंजीरों में बंधा हुआ था और मैं ज़मीन से ऊपर हवा में सीधा लटक रहा था। मेरे सामने मेरी ही तरह ज़ंजीरों में बंधी मेघा लटक रही थी। उसकी हालत मेरी ही तरह ख़राब थी। उसे इस हालत में देख कर मेरा दिल मेरी आत्मा तक थरथरा उठी। इस वक़्त उसकी आँखें बंद थीं और उसका सिर नीचे की तरफ झुका हुआ था। जिस्म पर वही राजकुमारियों जैसा लिबास था जैसा मैंने दो साल पहले उसे पहने देखा था।

खुद को और अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी मेघा को इस हाल में देख कर मैं स्तब्ध रह गया था। कहां इसके पहले मैं उसके साथ किन्हीं खूबसूरत वादियो में हमारे प्रेम की दुनिया बसाने जा रहा था और कहां इस वक़्त मैं और वो ज़ंजीरों में बँधे लटक रहे थे। ये वही हाल था जिसे मैंने सपने में देखा था और जहां पर मैं मरी हुई मेघा को अपने कलेजे से छुपकाए चीख रहा था। मुझे इस एहसास के साथ ही झटका लगा कि एक बार फिर से मैं सपने में चला गया था। वो सपना ही तो था जिसमें मेघा मुझे किन्हीं खूबसूरत वादियों में ले गई थी और हम दोनों वहां पर अपने पवित्र प्रेम की दुनिया बसाने वाले थे। आँखों के सामने वो खूबसूरत मंज़र उजागर हुआ तो दिल तड़प कर रह गया और आँखों से आंसू छलक पड़े। आँखें बंद कर के मैंने मन ही मन ऊपर वाले से कहा कि मेरे साथ इस तरह का मज़ाक क्यों? आख़िर किस गुनाह की सज़ा मिल रही है मुझे? क्यों मेरी किस्मत को इस तरह से लिखा है कि मुझे अपनी ज़िन्दगी में कभी एक पल के लिए भी ख़ुशी नहीं मिल सकती? मेघा नाम की एक लड़की मिली जिसके प्रति दिल में बेपनाह मोहब्बत भर दी और अब उसकी जुदाई के दर्द में मुझे तिल तिल कर तड़पा रहे हो...आख़िर क्यों?

जाने कितनी ही देर लगी मुझे इस सदमे से उबरने में। आँखें खोल कर मैंने सामने मेघा की तरफ देखा। वो वैसे ही नीचे की तरफ सिर झुकाए ज़ंजीरों में बंधी लटक रही थी। जिस्म पर मौजूद राजकुमारियों जैसा लिबास जगह जगह से फटा हुआ और मैला नज़र आ रहा था। ज़ाहिर था उसके साथ किसी ने बहुत ज़्यादा अत्याचार किया था। अचानक ही मेरे ज़हन में एक ख़याल बिजली की तरह कौंधा। सपने में तो मेघा के पेट में बड़ा सा खंज़र घुसा हुआ था और उसके पेट से काले रंग का खून निकल रहा था। मैंने मेघा के पेट की तरफ नज़र डाली और ये देख कर चौंका कि उसके पेट में ना तो कोई खंज़र घुसा हुआ था और ना ही काले रंग का खून निकल रहा था। सपने में उसने लेदर के काले कपड़े पहन रखे थे जो कि चुस्त दुरुस्त थे किन्तु इस वक़्त उसके जिस्म पर वो कपड़े नहीं थे। इसका मतलब सपने में मैंने जो कुछ देखा था वो सब सिर्फ़ सपना ही था जो कि सच नहीं था।

मन ही मन ये सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई कि भला कहीं सपने भी सच होते हैं? ये सोच कर जहां एक तरफ मुझे ये जान कर ख़ुशी हुई कि मेघा जीवित है वहीं ये सोच कर तकलीफ़ भी हुई कि जिन खूबसूरत वादियों में मैं मेघा के साथ अपने प्रेम का संसार बसाने वाला था वो सब महज एक सपना था। इस एहसास के चलते दिल को तकलीफ़ तो हुई लेकिन वो तकलीफ़ इस सच से बहुत मामूली साबित हुई कि मेघा जीवित है। अब सवाल ये था कि वो और मैं इस हालत में कैसे थे? आख़िर किसने हम दोनों को इस हाल में पहुंचाया?

मैंने हाल में चारो तरफ निगाह दौड़ाई। चारो तरफ की दीवारों में बने कुंडे पर बड़े बड़े मशाल जलते हुए दिख रहे थे। हाल के ऊपर वैसा ही बड़ा सा झूमर लटक रहा था जैसा मैंने सपने में देखा था। एक तरफ बाहर जाने के लिए बड़ा सा गलियारा था और दूसरी तरफ ऊपर के फ्लोर में जाने के लिए चौड़ी सीढ़ियां जो ऊपर दोनों तरफ की बालकनी में मुड़ जाती थीं। मैंने चारो तरफ निगाह घुमाई लेकिन मेरे और मेघा के अलावा तीसरा कोई नज़र नहीं आया। ज़हन में सवालों का भण्डार लगता जा रहा था लेकिन जवाब देने वाला कोई न था। ऐसी हालत में दिलो दिमाग़ में एक भय भी भरता जा रहा था। दिल की धड़कनें कभी थम जातीं तो कभी अनायास ही तेज़ हो जाती थीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या था और क्यों था? ज़हन में ये विचार भी उभर आता कि कहीं मैं फिर से कोई सपना तो नहीं देखने लगा हूं?

मेघा को उस हाल में देख कर मेरा दिल बुरी तरह ब्यथित हो रहा था। मेरा जी कर रहा था कि मैं ज़ंजीरों को तोड़ कर मेघा के पास पहुंच जाऊं और उसे ज़ंजीरों से निकाल कर अपने कलेजे से लगा लूं लेकिन ये सब करना मेरे अख़्तियार में नहीं था। मुझसे रहा न गया तो मैं पूरी शक्ति से हलक फाड़ कर चिल्लाया। मेरी चीख का मेघा पर तो कोई असर न हुआ लेकिन फ़िज़ा में अचानक ही हलचल महसूस हुई। कुछ ही देर में ऊपर के माले में कई ऐसे लोग नज़र आए जिन्हें देख कर मेरे जिस्म का रोयां रोयां डर से थर्रा गया।

"तो होश आ गया तुम्हें?" उनमें से एक ने अपनी भारी आवाज़ में कहा____"बहुत खूब। मैं तुम्हारे होश में आने का ही इंतज़ार कर रहा था लड़के।"

"कौन हो तुम?" मैं अंदर से तो बेहद डर गया था लेकिन हिम्मत कर के पूंछ ही लिया____"और मुझे यहाँ पर इस तरह ज़ंजीरों में बाँध कर क्यों लटकाया हुआ है? आख़िर क्या चाहते हो मुझसे?"

"तुम्हारा खून।" वो मुस्कुराते हुए अजीब अंदाज़ में बोला_____"तुम्हारा खून चाहिए मुझे।"
"खू...खून???" उसकी बात सुन कर मेरी आवाज़ लड़खड़ा गई थी।

"हां लड़के, तुमने बिल्कुल ठीक सुना।" वो सीढ़ियों से नीचे की तरफ उतरते हुए बोला_____"लेकिन सिर्फ़ तुम्हारे खून से ही काम नहीं होगा इस लिए तुम्हारे खून में उसके खून को भी शामिल करना होगा जो तुम्हारे सामने तुम्हारी ही तरह ज़ंजीरों में बंधी लटक रही है।"

"ये..ये क्या कह रहे हो तुम?" मैं उसकी बात सुन कर बुरी तरह हकला गया था____"नहीं नहीं, तुम मेरी मेघा के साथ कुछ भी उल्टा सीधा नहीं कर सकते। तुम्हें खून ही चाहिए न तो मेरे जिस्म का एक एक बूँद खून ले लो। बस मेरी मेघा को छोड़ दो, मैं उसे इस हाल में नहीं देख सकता।"

"देखा वीर।" उस शख़्स ने ऊपर बालकनी में खड़े एक दूसरे आदमी की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा____"मैंने कहा था न कि ये मेरी बहन के प्रेम में कुछ भी करने को तैयार हो जाएगा।"

"हां रुद्र।" वीर नामक उस शख़्स ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"तुम्हारा कहना बिल्कुल सही था लेकिन सिर्फ़ इसके तैयार होने बस से क्या होगा। उसके लिए तो मेघा का तैयार होना भी ज़रूरी है और तुम अच्छी तरह जानते हो कि वो इसके लिए किसी भी कीमत पर राज़ी नहीं हो रही है। पिछले दो साल से हमारी कोशिश नाकाम ही होती रही है।"

"लेकिन अब ऐसा नहीं होगा वीर।" रूद्र ने शख़्त भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"क्योंकि इतना तो तुम भी जानते हो कि प्रेम में जहां बेपनाह ताक़त होती है वहीं बेपनाह निर्बलता भी होती है। अभी तक हम इस लिए नाकाम होते रहे थे क्योंकि ये हमारे हाथ नहीं लगा था। पिछले दो साल से मेरी ये बहन इसके चारो तरफ सुरक्षा कवच बनाए हुए थी लेकिन अब हम इसके सुरक्षा घेरे को तोड़ने में कामयाब हो चुके हैं। पहले मेरी बहन ये सोच कर बेफ़िक्र थी कि हम इसके प्रेमी को कोई चोट नहीं पहुंचा सकते किन्तु अब ऐसा नहीं है। अब ये अपने प्रेमी के लिए हर वो काम करने को तैयार होगी जो करने के लिए हम इससे कहेंगे।"

"बात तो ठीक है रुद्र।" वीर ने मेघा की तरफ निगाह डालते हुए शख़्त भाव से कहा____"लेकिन अपने पिता की जगह इस मामूली इंसान को इसने जो सबसे ज़्यादा एहमियत दी ये ठीक नहीं किया इसने। हमारे प्रेम का नाजायज़ फ़ायदा उठाया है इसने।"

"शान्त हो जाओ दोस्त।" रूद्र ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं भी जानता हूं कि इसने ये सब कर के ठीक नहीं किया है क्योंकि किसी इंसान से प्रेम करना हमारा काम नहीं है बल्कि हमारा काम तो इंसानों का खून पीना है, ताकि हम अनंत काल तक जीवित रह सकें। मेरी बहन ने जो किया वो प्रेम में मजबूर हो कर किया। तुम नहीं समझोगे वीर, प्रेम किसी भी प्राणी को बदल देने की क्षमता रखता है। एक बार मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है और इसी लिए मैं इस बात को समझता हूं। यही वजह है कि मैंने इन दो सालों में कभी भी अपनी इस बहन को उस तरह से मजबूर नहीं किया जैसे कि इन हालातों में करना चाहिए था। दूसरी महत्वपूर्ण बात ये भी है कि हम नियति के हाथों मजबूर थे। मेरे पिता को फिर से जीवित करने का बस यही एक रास्ता था। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि आख़िर उनके जीवित होने की यही एक शर्त क्यों है?"

रुद्र और वीर आपस में बातें कर रहे थे और मैं चकित भाव से तथा ख़ामोशी से उनकी बातें सुन रहा था। उनकी बातों से मुझे भी ये पता चल रहा था कि मेघा ने इन दो सालों में मेरे लिए क्या किया था और क्यों उसने मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं किया था? मैं इस सबके बारे में पूरा सच जानना चाहता था इस लिए मैं ख़ामोशी से उन दोनों की बातें सुनता जा रहा था।

"मैंने भी इसी लिए आज तक मेघा के साथ कभी वैसा शख़्त बर्ताव नहीं किया।" वीर ने कहा____"क्योंकि वो तुम्हारी बहन है। तुम मेरे दोस्त हो और इस नाते वो मेरी भी बहन है लेकिन तुम्हारी तरह मैं भी इस बात को नहीं समझ पा रहा हूं कि आख़िर तुम्हारे पिता को जीवित करने की ऐसी शर्त क्यों है? आख़िर ऐसा क्यों है कि बाहरी दुनिया के किसी मामूली इंसान से उनकी खुद की बेटी का प्रेम सम्बन्ध बने और उस प्रेम सम्बन्ध के चलते ही उस इंसान के खून द्वारा हमारे पितामह अनंत का शरीर पुनः जीवित हो?"

"इस रहस्य को तो पिता जी ही बता सकते हैं।" रूद्र ने कहा____"मुझे तो उन्होंने अपने अंतिम समय में बस यही बताया था कि उनके पुनः जीवित होने की यही एक मात्र शर्त है। मैं उनसे इसके बारे में पूछना चाहता था लेकिन उनके पास समय ही नहीं था। आज इस बात को गुज़रे हुए क़रीब सौ साल गुज़र गए हैं। उन्होंने ये भी कहा था कि इस बारे में मेघा को पता नहीं चलना चाहिए। उनका कहना था कि एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब मेघा को बाहरी दुनिया का कोई ऐसा इंसान मिलेगा जिसे वो मारेगी नहीं बल्कि वो उसे अपने साथ ले आएगी और फिर उसे उस इंसान से प्रेम हो जाएगा। हम मेघा को इस बारे में तभी बताएँगे जब वो उस इंसान से प्रेम करने लगे। मेघा और उसके प्रेमी की रज़ामंदी से ही सारी प्रक्रिया होगी। अगर उन दोनों की रज़ामंदी नहीं होगी तो उस इंसान के खून का कोई असर नहीं होगा।"

"बड़ी विचित्र बात है।" वीर सीढ़ियों की तरफ बढ़ता हुआ बोला_____"पितामह को ये सारी बातें पहले से ही कैसे पता थीं कि आने वाले समय में ऐसा ही होगा? ज़रूर इस बारे में भी कोई रहस्य होगा।"

"वो सब छोड़ो।" रूद्र ने कहा____"हमे अब ये सोचना है कि इनके साथ क्या किया जाए?"
"करना क्या है।" वीर ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मेघा को तो हमने इसके लिए बहुत मनाया जिसका नतीजा ये निकला कि वो इस सबके लिए तैयार ही नहीं हुई। अब हमें इस लड़के के द्वारा ही मेघा को मजबूर करना होगा।"

"क्या करने वाले हो तुम लोग मेरी मेघा के साथ?" मैं घबरा कर एकदम से बोल पड़ा था।
"हमारी बातें तो तुमने सुन ही ली होंगी।" रूद्र ने गहरी मुस्कान के साथ कहा_____"हमारा मकसद भी यही था कि तुम हमारे द्वारा ये जान लो कि तुम और मेघा यहाँ पर किस हाल में हो और किस लिए हो? अब ये तुम पर है कि अपने प्रेम के लिए खुद का बलिदान करते हो या नहीं?"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैं घबराहट के मारे उलझ सा गया था_____"आख़िर किस तरह का बलिदान चाहते हो मुझसे?"
"ज़रूर बताएँगे लड़के।" रूद्र ने मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा____"लेकिन उसके अहले ये तो बताओ कि क्या तुम्हें मेरी बहन मेघा की असलियत के बारे में पता है? क्या उसने तुम्हें बताया है कि वो असल में कौन है?"

"हां, मुझे उसकी असलियत के बारे में पता है।" मैंने हिम्मत कर के कहा____"मेरे ज़ोर देने पर उसने मुझे अपने बारे में सब कुछ बताया था।"

"अच्छा।" वो ब्यंगात्मक भाव से मुस्कुराया____"यानि उसकी असलियत जान लेने के बाद भी तुम उससे प्रेम करते हो?"
"मेरा प्रेम किसी ब्यक्ति विशेष के किसी सच या झूठ से ना तो बदल सकता है और ना ही मिट सकता है।" मैंने बड़े गर्व से कहा____"मेघा से मैं सच्चे दिल से प्रेम करता हूं। उसकी असलियत से मुझे ना पहले कोई फ़र्क पड़ा था और ना ही आगे कभी कोई फ़र्क पड़ेगा।"

"कमाल है।" वीर मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुराया_____"अगर ऐसा है तो फिर तुम अपने प्रेम के लिए कुछ भी कर सकते हो...है ना?"
"बिल्कुल।" मैं अंदर ही अंदर उसकी बात सुन कर थोड़ा घबरा गया था लेकिन फिर एकदम से निडर हो कर बोल पड़ा था_____"मैं उसके लिए कुछ भी कर जाऊंगा लेकिन सिर्फ़ इसी शर्त पर कि तुम लोग मेरी मेघा के साथ कुछ भी बुरा नहीं करोगे।"

"भाई रुद्र।" वीर ने पलट कर रूद्र से कहा____"पहली बार ऐसा इंसान देखा है जो इतना भोला है और इतना सच्चा भी है। क्या सच में प्रेम ऐसा होता है कि उसके लिए कोई इंसान कुछ भी करने को तैयार हो जाए?"

"तुम्हें आज तक किसी से प्रेम नहीं हुआ वीर इसी लिए तुम्हें प्रेम के क्रिया कलापों पर हैरानी और अविश्वास हो रहा है।" रूद्र ने कहा____"जबकि सच यही है कि अगर प्रेम सच्चा हो तो प्रेम करने वाला अपने प्रेमी के लिए कुछ भी कर जाता है।"

"अगर ऐसी बात है तो इससे कहो कि ये अपने प्रेम के लिए खुद को बलिदान करे।" वीर ने शख़्त लहजे में कहा_____"इसे अपने प्रेम की ख़ातिर मेघा को इस बात के लिए राज़ी करना होगा कि वो भी इसके साथ ख़ुशी ख़ुशी हमारे पितामह अनंत को शर्तों के अनुसार अपने प्रेमी का खून दे कर जीवित करे।"

"नहीं.....।" पूरे हाल में एक चीख गूँज उठी। मेरे साथ साथ वीर और रूद्र ने भी चौंक कर आवाज़ की तरफ देखा था। वो मेघा की चीख थी। शायद अब तक वो अचेत अवस्था में थी। ज़ंजीरों में बंधी वो बुरी तरह छटपटा रही थी।

"मेघा....।" उसे इस तरह छटपटाते देख मेरा दिल तड़प उठा और मैं ज़ोर से चिल्लाया_____"तुम ठीक तो हो न मेघा? मुझे लगा मैंने अपनी मेघा को हमेशा के लिए खो दिया है। भगवान का लाख लाख शुक्र है कि तुम जीवित हो।"

"तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था ध्रुव।" मेघा ने दुखी भाव से कहा_____"ये लोग तुम्हें मार डालेंगे।"
"तुम्हारे बिना तो मैं वैसे भी जीना नहीं चाहता मेघा।" मैंने तड़प कर कहा____"दिल में बस एक बार तुम्हें देख लेने की हसरत थी, इसी लिए अब तक जीवित हूं। तुम्हें देख लेने के बाद अब अगर मौत भी आती है तो हंसते हंसते उसे स्वीकार कर लूंगा।"

"ऐसा मत कहो ध्रुव।" मेघा की आँखों से आंसू छलक पड़े____"और मुझे इसके लिए माफ़ कर दो कि मेरी वजह से तुम्हें अब तक इतने दुःख सहने पड़े। मुझे इसके लिए भी माफ़ कर दो कि मैंने तुम्हारे पवित्र प्रेम को स्वीकार नहीं किया लेकिन ध्रुव, मैंने ऐसा इसी लिए नहीं किया था क्योंकि मैं तुम्हें किसी भी तरह के संकट में नहीं डालना चाहती थी।"

"हां, मैं जानता हूं मेघा।" मैंने लरज़ते हुए स्वर में कहा_____"मैं शुरू से ही जानता था कि तुम भी मुझसे बेहद प्रेम करती हो। वो तो तुम्हारी कोई मज़बूरी ही थी जिसकी वजह से तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर रही थी लेकिन मेघा, तुम अपने इस ध्रुव को समझ ही नहीं पाई और ना ही प्रेम के मर्म को ठीक से समझा है। मैंने तुमसे कहा था ना कि प्रेम करने वाले किसी भी अंजाम की परवाह नहीं करते थे बल्कि वो तो हर हाल में प्रेम करते हैं। अगर साथ में जी नहीं सकते तो साथ में मर कर दुनिया में अमर हो जाते हैं।"

"मुझे माफ़ कर दो मेरे ध्रुव।" मेघा ने रोते हुए कहा_____"मैं बस यही चाहती थी कि भले ही मुझे अनंत काल तक तुम्हारे विरह में तड़पना पड़े लेकिन वो काम नहीं करुँगी जिससे तुम्हारा जीवन एक अभिशाप बन जाए।"

"मुझे किसी अभिशाप की परवाह नहीं है मेघा।" मैंने कहा____"मैंने तो दो साल पहले भी तुमसे कहा था कि मुझे अपने जैसा बना लो। कम से कम उस सूरत में तुम्हारे साथ रहने का सुख तो मिलेगा मुझे।"

"नहीं ध्रुव।" मेघा ने कहा____"मेरे जैसा बन कर ऐसा जीवन जीना बहुत बड़ा अभिशाप है जिसमें न इंसानियत होती है और ना ही मुक्ति का कोई रास्ता। तुम इंसान हो और तुम्हारे अंदर हर वो अच्छाईयां हैं जो तुम्हें मुक्ति के रास्ते तक आसानी से ले जाएंगी लेकिन मेरे जैसी पिशाचनी अनंत काल तक इस अभिशाप को लिए भटकती रहने का दुर्भाग्य बनाए रहेगी। मैं इस बात से तो बेहद खुश हूं कि कोई इंसान मुझ जैसी पिशाचनी से इतना प्रेम करता है और साथ ही मुझे भी प्रेम करना सिखाया लेकिन इस बात से दुखी भी हूं कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। तुम्हारे ईश्वर से बस यही प्रार्थना करती हूं कि किसी तरह वो मुझे इस जीवन से मुक्ति दे दें और अगले जन्म में मुझे तुमसे मिला दें।"

"नियति में जो होना लिखा होगा वो तो होगा ही मेघा।" मैंने अपने मचलते हुए जज़्बातों को काबू करते हुए कहा____"लेकिन तुम्हारे साथ मुझे अभिशाप से भरा हुआ जीवन जीना भी स्वीकार है। मुझे अपना बना लो मेघा, मुझे अपने प्रेम से वंचित न करो।"

"ये दोनों तो अपने प्रेम का राग अलापे जा रहे हैं रुद्र।" सहसा वीर ऊँचे स्वर में बोल पड़ा_____"मेरा तो मन करता है कि इस लड़के का अभी खून पी जाऊं।"
"गुस्सा मत हो दोस्त।" रूद्र ने कहा____"मत भूलो कि ये हमारे लिए क्या एहमियत रखता है। अगर तुमने इसका खून पी कर इसे मार दिया तो हम अपने पितामह को फिर से कैसे जीवित कर सकेंगे?"

कहने के साथ ही वो मेघा की तरफ पलटा और फिर उससे बोला____"तुमसे ज़्यादा समझदार तो ये इंसान है मेघा और एक तुम हो जो अपने ही पिता को जीवन नहीं देना चाहती। कैसी बेटी हो तुम जो अपने पिता को जीवन देने की जगह इस इंसान के जीवन को बचा रही हो?"

"मैं अपने प्रेम को स्वार्थी नहीं बनाना चाहती भईया।" मेघा ने दुखी भाव से कहा____"ऐसा करने से मुझे यही लगेगा जैसे मैंने अपने पिता को जीवन प्रदान करने के लिए एक इंसान को अपने प्रेम के जाल में फंसाया है। ऐसा करने से मेरा प्रेम पवित्र नहीं कहलाएगा। अपने स्वार्थ के लिए मैं किसी इंसान को इस तरह स्तेमाल नहीं करना चाहती।"

"कमाल है।" रूद्र हँसा_____"पिछले सौ सालों से इंसानों का खून पी कर खुशियां मना रही थी, तब किसी इंसान के प्रति तुम्हारे मन में ऐसे ख़याल नहीं आए थे? आज एक इंसान से प्रेम क्या हो गया तुम्हारी तो सोच ही बदल गई...वाह! बहुत खूब। क्या तुमने कभी इन इंसानों के धर्म ग्रंथों में लिखी बातें नहीं पढ़ी जिनमें ये लिखा होता है कि माता पिता से बढ़ कर संसार में दूसरा कोई नहीं होता। क्या तुमने ये उपदेश नहीं पढ़ा कि जो प्राणी अपने माता पिता के लिए अपना सुख दुःख यहाँ तक कि अपनी मुक्ति का भी बलिदान कर देता है उसको ऊपर बैठा विधाता भी सलाम करता है?"

"तुम्हारे भैया सही कह रहे हैं मेघा।" मैंने मेघा के कुछ बोलने से पहले ही कहा____"मुझे तो इस बारे में पहले तुमने बताया ही नहीं था वरना मैं उसी समय तुमसे यही कहता कि तुम्हें सबसे पहले अपने पिता के बारे में ही सोचना चाहिए। मुझे भी ख़ुशी होती कि मेरा ये तुच्छ जीवन किसी के काम आया। मेरा यकीन करो मेघा, मैं तुम्हारे पिता को पुनः जीवन देने के लिए ख़ुशी ख़ुशी अपना बलिदान देने को तैयार हूं। अब समझ आया मुझे कि हम दोनों का मिलना महज कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं था बल्कि विधाता की ऐसी लीला थी जिसे हम दोनों ही समझ नहीं पाए। इस बात से ये भी समझ आता है कि ऊपर वाला यही चाहता था कि हम दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो ताकि हमारे द्वारा तुम्हारे पिता को फिर से जीवन मिल सके। अब जब ऊपर वाला यही चाहता है तो भला हम कौन होते हैं उसकी मर्ज़ी को ठुकराने वाले? मेरा जीवन तो वैसे भी बेमतलब था और जीने का कोई ख़ास मकसद नहीं था। ये बहुत ही अच्छा हुआ कि मेरा ये बेमतलब सा जीवन किसी ख़ास चीज़ के लिए काम आने वाला है। तुम अपने मन से ये बात निकाल दो कि तुम्हारे ऐसा करने से तुम्हारा प्रेम पवित्र नहीं रहेगा। मुझे ख़ुशी है कि तुमने मेरी सलामती के लिए इतना कुछ सोचा और इतने दुःख सहे लेकिन अब मैं खुद कहता हूं कि तुम्हें अपने पिता के लिए ख़ुशी ख़ुशी वो काम करना चाहिए जिसके लिए विधाता ने ये सारा खेल रचा है।"

"तुम कितने अच्छे हो ध्रुव।" मेघा की आँखें छलक पड़ीं____"कितनी आसानी से तुमने ये सब कह दिया। तुम सच में महान हो। मेरे पिता के लिए खुद को बलिदान कर देना चाहते हो, ऐसा इस संसार में कौन कर सकता है भला?"

"अब ये सब छोड़ो।" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"और चलो हम दोनों मिल कर तुम्हारे पिता को नया जीवन देते हैं।"
"इस लड़के ने तो मुझे आश्चर्य चकित कर दिया रुद्र।" वीर ने अपनी हैरत से फटी आँखों से मेरी तरफ देखते हुए कहा_____"यकीन नहीं होता कि कोई इंसान ऐसा करने के बारे में सोच सकता है।"

"काश! मुझे ये सब पहले पता चल गया होता।" मैंने मेघा की तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हें मुझसे ये सब बताना चाहिए था मेघा। क्या तुम्हें मुझ पर इतना भी एतबार नहीं था?"

"नहीं ध्रुव।" मेघा ने आहत भाव से कहा____"तुम पर तो खुद से ज़्यादा एतबार है मुझे। मैं जानती थी कि तुम मेरे लिए कुछ भी कर जाओगे लेकिन मैं तुम्हारे जीवन को अभिशाप नहीं बनाना चाहती थी और ना ही स्वार्थी बनना चाहती थी।"

"तो अब क्या इरादा है मेघा?" सहसा रूद्र मेघा से कह उठा____"अब तो ये लड़का खुद ही तुमसे कह रहा है कि ये हमारे पिता के लिए कुछ भी करेगा। इस लिए क्या अब भी तुम इसके लिए राज़ी नहीं होगी?"

"वो अब इसके लिए इंकार नहीं करेगी रूद्र जी।" मैंने रूद्र से कहा____"आप हम दोनों को इन ज़ंजीरों से मुक्त कर दीजिए। मैं आपको वचन देता हूं कि मैं और मेघा दोनों साथ मिल कर सच्चे दिल से आपके पिता के लिए वो सब करेंगे जिसके द्वारा उन्हें फिर से जीवन मिल जाए।"

मैंने देखा वीर अभी भी मुझे चकित भाव से देखे जा रहा था। शायद वो अभी भी समझने की कोशिश कर रहा था कि क्या सच में कोई इंसान इतनी सहजता से इतना कुछ करने की बात कह सकता है? उधर मेरे कहने के बाद रूद्र ने फ़ौरन ही हम दोनों को ज़ंजीरों से मुक्त करने का आदेश दे दिया। उसका आदेश होते ही ऊपर बालकनी में मौजूद कई सारे उनके जैसे ही लोग काम पर लग ग‌ए। वो सबके सब पिशाच ही थे। ये अलग बात है कि इस वक़्त वो सब साधारण इंसानों जैसे नज़र आ रहे थे।

कुछ ही समय में मैं और मेघा ज़ंजीरों से मुक्त हो ग‌ए। हाल के फर्श पर जब हम दोनों आए तो दोनों ही एक दूसरे की तरफ तेज़ी से दौड़ पड़े और एक दूसरे से लिपट ग‌ए। ऐसा लगा जैसे आत्मा तृप्त हो गई हो। मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े थे। मेरा जी चाह रहा था कि अब क़यामत तक मैं इसी तरह मेघा से लिपटा रहूं। ज़ाहिर है यही हाल मेघा का भी रहा होगा।

कुछ देर के लिए ही सही किन्तु उसे पा लिया था मैंने। उसको अपने सीने से लगा लिया था मैंने। मेरे दिल को कभी न मिटने वाला सुकून मिल गया था। जिसके दीदार के लिए दो सालों से तड़प रहा था आज उसे देख कर आंखें तृप्त हो ग‌ईं थी। मैं इस खुशी में सब कुछ भूल गया था। मैं भूल गया था कि मेघा से ये मेरी आख़िरी मुलाक़ात थी। मैं भूल गया था कि इस मुलाक़ात के बाद फ़ौरन ही मुझे उसके पिता को फिर से जीवन देने के लिए अपना बलिदान देना है। मैंने कभी इस बात का तसव्वुर भी नहीं किया था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब मुझे अपने प्रेम के लिए खुशी खुशी इस तरह से खुद को कुर्बान करना होगा।‌ मुझे इस बात का ज़रा भी रंज़ नहीं था बल्कि मैं तो बेहद खुश था कि मेरा बेमतलब और बोझ बना हुआ जीवन मेरी मेघा के किसी काम आ गया था।


कुछ पल ही सही तेरा साथ नसीब हुआ।
हां मगर ऐसा मिलना कुछ अजीब हुआ।।

तू सलामत रहे सदा चांद तारों की तरह,
मैं खुश हूं के तेरे जैसा कोई हबीब हुआ।।

राह-ए-उल्फ़त न रास आई हमें ऐ दोस्त,
क्या करें के अपना ही ख़ुदा रक़ीब हुआ।।

साथ ही जाएगा ग़म-ए-हिज़्र-ए-यार मेरे,
जहां में कोई ग़मे-दिल का न‌ तबीब हुआ।।

ये तो अच्छा है किसी के काम आया मगर,
यही सोच के हैरां हूं, कैसे मैं नजीब हुआ।।


✮✮✮


शब्दार्थ:-

हबीब = सखा, मित्र, माशूक/माशूका।
रक़ीब = दुश्मन, शत्रु।
ग़म-ए-हिज़्र-ए-यार= यार की जुदाई का दुख।
तबीब= हकीम, चिकित्सक।
नजीब = सच्चा, शुद्ध रक्त वाला, भला इंसान।
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Isi trah ki love story mujhe bahut pasand hai
 
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Maine baat ye hain ki bhai kahani se jyada tumhara likhne ka tareeka jyada badhiya tha. Jab tumne kaha ki "tumhare bina to me vaise bhi jee nahi pata" ye line dil ko chhoo gayi. Agar iski jagah apne kaha hota ki tumhare bina to me vaise bhi pal pal mar raha tha, na bhai na ye baat to aisi thi jaise aayi aur nikal gayi lakin apki kahi ye alag line dil chhoo gayi
 
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किसी चीज़ के द्वारा मुझे तेज़ दर्द हुआ तो एक झटके से मेरी आँखें खुल ग‌ईं। पहले तो मुझे कुछ समझ न आया किन्तु कुछ समय बाद जब ज़हन सक्रिय हुआ तो मुझे तीव्र झटका लगा। मेरी आँखों के सामने एक अलग ही मंज़र नज़र आ रहा था। मैंने चारो तरफ नज़र घुमा घुमा कर देखा और खुद की हालत का जब मुझे एहसास हुआ तो मेरे पैरों तले से ज़मीन गायब हो गई। हालांकि ज़मीन तो पहले ही गायब थी क्योंकि मैं ज़मीन पर था ही नहीं। मेरा पूरा जिस्म मोटी मोटी ज़ंजीरों में बंधा हुआ था और मैं ज़मीन से ऊपर हवा में सीधा लटक रहा था। मेरे सामने मेरी ही तरह ज़ंजीरों में बंधी मेघा लटक रही थी। उसकी हालत मेरी ही तरह ख़राब थी। उसे इस हालत में देख कर मेरा दिल मेरी आत्मा तक थरथरा उठी। इस वक़्त उसकी आँखें बंद थीं और उसका सिर नीचे की तरफ झुका हुआ था। जिस्म पर वही राजकुमारियों जैसा लिबास था जैसा मैंने दो साल पहले उसे पहने देखा था।

खुद को और अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी मेघा को इस हाल में देख कर मैं स्तब्ध रह गया था। कहां इसके पहले मैं उसके साथ किन्हीं खूबसूरत वादियो में हमारे प्रेम की दुनिया बसाने जा रहा था और कहां इस वक़्त मैं और वो ज़ंजीरों में बँधे लटक रहे थे। ये वही हाल था जिसे मैंने सपने में देखा था और जहां पर मैं मरी हुई मेघा को अपने कलेजे से छुपकाए चीख रहा था। मुझे इस एहसास के साथ ही झटका लगा कि एक बार फिर से मैं सपने में चला गया था। वो सपना ही तो था जिसमें मेघा मुझे किन्हीं खूबसूरत वादियों में ले गई थी और हम दोनों वहां पर अपने पवित्र प्रेम की दुनिया बसाने वाले थे। आँखों के सामने वो खूबसूरत मंज़र उजागर हुआ तो दिल तड़प कर रह गया और आँखों से आंसू छलक पड़े। आँखें बंद कर के मैंने मन ही मन ऊपर वाले से कहा कि मेरे साथ इस तरह का मज़ाक क्यों? आख़िर किस गुनाह की सज़ा मिल रही है मुझे? क्यों मेरी किस्मत को इस तरह से लिखा है कि मुझे अपनी ज़िन्दगी में कभी एक पल के लिए भी ख़ुशी नहीं मिल सकती? मेघा नाम की एक लड़की मिली जिसके प्रति दिल में बेपनाह मोहब्बत भर दी और अब उसकी जुदाई के दर्द में मुझे तिल तिल कर तड़पा रहे हो...आख़िर क्यों?

जाने कितनी ही देर लगी मुझे इस सदमे से उबरने में। आँखें खोल कर मैंने सामने मेघा की तरफ देखा। वो वैसे ही नीचे की तरफ सिर झुकाए ज़ंजीरों में बंधी लटक रही थी। जिस्म पर मौजूद राजकुमारियों जैसा लिबास जगह जगह से फटा हुआ और मैला नज़र आ रहा था। ज़ाहिर था उसके साथ किसी ने बहुत ज़्यादा अत्याचार किया था। अचानक ही मेरे ज़हन में एक ख़याल बिजली की तरह कौंधा। सपने में तो मेघा के पेट में बड़ा सा खंज़र घुसा हुआ था और उसके पेट से काले रंग का खून निकल रहा था। मैंने मेघा के पेट की तरफ नज़र डाली और ये देख कर चौंका कि उसके पेट में ना तो कोई खंज़र घुसा हुआ था और ना ही काले रंग का खून निकल रहा था। सपने में उसने लेदर के काले कपड़े पहन रखे थे जो कि चुस्त दुरुस्त थे किन्तु इस वक़्त उसके जिस्म पर वो कपड़े नहीं थे। इसका मतलब सपने में मैंने जो कुछ देखा था वो सब सिर्फ़ सपना ही था जो कि सच नहीं था।

मन ही मन ये सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई कि भला कहीं सपने भी सच होते हैं? ये सोच कर जहां एक तरफ मुझे ये जान कर ख़ुशी हुई कि मेघा जीवित है वहीं ये सोच कर तकलीफ़ भी हुई कि जिन खूबसूरत वादियों में मैं मेघा के साथ अपने प्रेम का संसार बसाने वाला था वो सब महज एक सपना था। इस एहसास के चलते दिल को तकलीफ़ तो हुई लेकिन वो तकलीफ़ इस सच से बहुत मामूली साबित हुई कि मेघा जीवित है। अब सवाल ये था कि वो और मैं इस हालत में कैसे थे? आख़िर किसने हम दोनों को इस हाल में पहुंचाया?

मैंने हाल में चारो तरफ निगाह दौड़ाई। चारो तरफ की दीवारों में बने कुंडे पर बड़े बड़े मशाल जलते हुए दिख रहे थे। हाल के ऊपर वैसा ही बड़ा सा झूमर लटक रहा था जैसा मैंने सपने में देखा था। एक तरफ बाहर जाने के लिए बड़ा सा गलियारा था और दूसरी तरफ ऊपर के फ्लोर में जाने के लिए चौड़ी सीढ़ियां जो ऊपर दोनों तरफ की बालकनी में मुड़ जाती थीं। मैंने चारो तरफ निगाह घुमाई लेकिन मेरे और मेघा के अलावा तीसरा कोई नज़र नहीं आया। ज़हन में सवालों का भण्डार लगता जा रहा था लेकिन जवाब देने वाला कोई न था। ऐसी हालत में दिलो दिमाग़ में एक भय भी भरता जा रहा था। दिल की धड़कनें कभी थम जातीं तो कभी अनायास ही तेज़ हो जाती थीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या था और क्यों था? ज़हन में ये विचार भी उभर आता कि कहीं मैं फिर से कोई सपना तो नहीं देखने लगा हूं?

मेघा को उस हाल में देख कर मेरा दिल बुरी तरह ब्यथित हो रहा था। मेरा जी कर रहा था कि मैं ज़ंजीरों को तोड़ कर मेघा के पास पहुंच जाऊं और उसे ज़ंजीरों से निकाल कर अपने कलेजे से लगा लूं लेकिन ये सब करना मेरे अख़्तियार में नहीं था। मुझसे रहा न गया तो मैं पूरी शक्ति से हलक फाड़ कर चिल्लाया। मेरी चीख का मेघा पर तो कोई असर न हुआ लेकिन फ़िज़ा में अचानक ही हलचल महसूस हुई। कुछ ही देर में ऊपर के माले में कई ऐसे लोग नज़र आए जिन्हें देख कर मेरे जिस्म का रोयां रोयां डर से थर्रा गया।

"तो होश आ गया तुम्हें?" उनमें से एक ने अपनी भारी आवाज़ में कहा____"बहुत खूब। मैं तुम्हारे होश में आने का ही इंतज़ार कर रहा था लड़के।"

"कौन हो तुम?" मैं अंदर से तो बेहद डर गया था लेकिन हिम्मत कर के पूंछ ही लिया____"और मुझे यहाँ पर इस तरह ज़ंजीरों में बाँध कर क्यों लटकाया हुआ है? आख़िर क्या चाहते हो मुझसे?"

"तुम्हारा खून।" वो मुस्कुराते हुए अजीब अंदाज़ में बोला_____"तुम्हारा खून चाहिए मुझे।"
"खू...खून???" उसकी बात सुन कर मेरी आवाज़ लड़खड़ा गई थी।

"हां लड़के, तुमने बिल्कुल ठीक सुना।" वो सीढ़ियों से नीचे की तरफ उतरते हुए बोला_____"लेकिन सिर्फ़ तुम्हारे खून से ही काम नहीं होगा इस लिए तुम्हारे खून में उसके खून को भी शामिल करना होगा जो तुम्हारे सामने तुम्हारी ही तरह ज़ंजीरों में बंधी लटक रही है।"

"ये..ये क्या कह रहे हो तुम?" मैं उसकी बात सुन कर बुरी तरह हकला गया था____"नहीं नहीं, तुम मेरी मेघा के साथ कुछ भी उल्टा सीधा नहीं कर सकते। तुम्हें खून ही चाहिए न तो मेरे जिस्म का एक एक बूँद खून ले लो। बस मेरी मेघा को छोड़ दो, मैं उसे इस हाल में नहीं देख सकता।"

"देखा वीर।" उस शख़्स ने ऊपर बालकनी में खड़े एक दूसरे आदमी की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा____"मैंने कहा था न कि ये मेरी बहन के प्रेम में कुछ भी करने को तैयार हो जाएगा।"

"हां रुद्र।" वीर नामक उस शख़्स ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"तुम्हारा कहना बिल्कुल सही था लेकिन सिर्फ़ इसके तैयार होने बस से क्या होगा। उसके लिए तो मेघा का तैयार होना भी ज़रूरी है और तुम अच्छी तरह जानते हो कि वो इसके लिए किसी भी कीमत पर राज़ी नहीं हो रही है। पिछले दो साल से हमारी कोशिश नाकाम ही होती रही है।"

"लेकिन अब ऐसा नहीं होगा वीर।" रूद्र ने शख़्त भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"क्योंकि इतना तो तुम भी जानते हो कि प्रेम में जहां बेपनाह ताक़त होती है वहीं बेपनाह निर्बलता भी होती है। अभी तक हम इस लिए नाकाम होते रहे थे क्योंकि ये हमारे हाथ नहीं लगा था। पिछले दो साल से मेरी ये बहन इसके चारो तरफ सुरक्षा कवच बनाए हुए थी लेकिन अब हम इसके सुरक्षा घेरे को तोड़ने में कामयाब हो चुके हैं। पहले मेरी बहन ये सोच कर बेफ़िक्र थी कि हम इसके प्रेमी को कोई चोट नहीं पहुंचा सकते किन्तु अब ऐसा नहीं है। अब ये अपने प्रेमी के लिए हर वो काम करने को तैयार होगी जो करने के लिए हम इससे कहेंगे।"

"बात तो ठीक है रुद्र।" वीर ने मेघा की तरफ निगाह डालते हुए शख़्त भाव से कहा____"लेकिन अपने पिता की जगह इस मामूली इंसान को इसने जो सबसे ज़्यादा एहमियत दी ये ठीक नहीं किया इसने। हमारे प्रेम का नाजायज़ फ़ायदा उठाया है इसने।"

"शान्त हो जाओ दोस्त।" रूद्र ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं भी जानता हूं कि इसने ये सब कर के ठीक नहीं किया है क्योंकि किसी इंसान से प्रेम करना हमारा काम नहीं है बल्कि हमारा काम तो इंसानों का खून पीना है, ताकि हम अनंत काल तक जीवित रह सकें। मेरी बहन ने जो किया वो प्रेम में मजबूर हो कर किया। तुम नहीं समझोगे वीर, प्रेम किसी भी प्राणी को बदल देने की क्षमता रखता है। एक बार मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है और इसी लिए मैं इस बात को समझता हूं। यही वजह है कि मैंने इन दो सालों में कभी भी अपनी इस बहन को उस तरह से मजबूर नहीं किया जैसे कि इन हालातों में करना चाहिए था। दूसरी महत्वपूर्ण बात ये भी है कि हम नियति के हाथों मजबूर थे। मेरे पिता को फिर से जीवित करने का बस यही एक रास्ता था। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि आख़िर उनके जीवित होने की यही एक शर्त क्यों है?"

रुद्र और वीर आपस में बातें कर रहे थे और मैं चकित भाव से तथा ख़ामोशी से उनकी बातें सुन रहा था। उनकी बातों से मुझे भी ये पता चल रहा था कि मेघा ने इन दो सालों में मेरे लिए क्या किया था और क्यों उसने मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं किया था? मैं इस सबके बारे में पूरा सच जानना चाहता था इस लिए मैं ख़ामोशी से उन दोनों की बातें सुनता जा रहा था।

"मैंने भी इसी लिए आज तक मेघा के साथ कभी वैसा शख़्त बर्ताव नहीं किया।" वीर ने कहा____"क्योंकि वो तुम्हारी बहन है। तुम मेरे दोस्त हो और इस नाते वो मेरी भी बहन है लेकिन तुम्हारी तरह मैं भी इस बात को नहीं समझ पा रहा हूं कि आख़िर तुम्हारे पिता को जीवित करने की ऐसी शर्त क्यों है? आख़िर ऐसा क्यों है कि बाहरी दुनिया के किसी मामूली इंसान से उनकी खुद की बेटी का प्रेम सम्बन्ध बने और उस प्रेम सम्बन्ध के चलते ही उस इंसान के खून द्वारा हमारे पितामह अनंत का शरीर पुनः जीवित हो?"

"इस रहस्य को तो पिता जी ही बता सकते हैं।" रूद्र ने कहा____"मुझे तो उन्होंने अपने अंतिम समय में बस यही बताया था कि उनके पुनः जीवित होने की यही एक मात्र शर्त है। मैं उनसे इसके बारे में पूछना चाहता था लेकिन उनके पास समय ही नहीं था। आज इस बात को गुज़रे हुए क़रीब सौ साल गुज़र गए हैं। उन्होंने ये भी कहा था कि इस बारे में मेघा को पता नहीं चलना चाहिए। उनका कहना था कि एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब मेघा को बाहरी दुनिया का कोई ऐसा इंसान मिलेगा जिसे वो मारेगी नहीं बल्कि वो उसे अपने साथ ले आएगी और फिर उसे उस इंसान से प्रेम हो जाएगा। हम मेघा को इस बारे में तभी बताएँगे जब वो उस इंसान से प्रेम करने लगे। मेघा और उसके प्रेमी की रज़ामंदी से ही सारी प्रक्रिया होगी। अगर उन दोनों की रज़ामंदी नहीं होगी तो उस इंसान के खून का कोई असर नहीं होगा।"

"बड़ी विचित्र बात है।" वीर सीढ़ियों की तरफ बढ़ता हुआ बोला_____"पितामह को ये सारी बातें पहले से ही कैसे पता थीं कि आने वाले समय में ऐसा ही होगा? ज़रूर इस बारे में भी कोई रहस्य होगा।"

"वो सब छोड़ो।" रूद्र ने कहा____"हमे अब ये सोचना है कि इनके साथ क्या किया जाए?"
"करना क्या है।" वीर ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मेघा को तो हमने इसके लिए बहुत मनाया जिसका नतीजा ये निकला कि वो इस सबके लिए तैयार ही नहीं हुई। अब हमें इस लड़के के द्वारा ही मेघा को मजबूर करना होगा।"

"क्या करने वाले हो तुम लोग मेरी मेघा के साथ?" मैं घबरा कर एकदम से बोल पड़ा था।
"हमारी बातें तो तुमने सुन ही ली होंगी।" रूद्र ने गहरी मुस्कान के साथ कहा_____"हमारा मकसद भी यही था कि तुम हमारे द्वारा ये जान लो कि तुम और मेघा यहाँ पर किस हाल में हो और किस लिए हो? अब ये तुम पर है कि अपने प्रेम के लिए खुद का बलिदान करते हो या नहीं?"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैं घबराहट के मारे उलझ सा गया था_____"आख़िर किस तरह का बलिदान चाहते हो मुझसे?"
"ज़रूर बताएँगे लड़के।" रूद्र ने मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा____"लेकिन उसके अहले ये तो बताओ कि क्या तुम्हें मेरी बहन मेघा की असलियत के बारे में पता है? क्या उसने तुम्हें बताया है कि वो असल में कौन है?"

"हां, मुझे उसकी असलियत के बारे में पता है।" मैंने हिम्मत कर के कहा____"मेरे ज़ोर देने पर उसने मुझे अपने बारे में सब कुछ बताया था।"

"अच्छा।" वो ब्यंगात्मक भाव से मुस्कुराया____"यानि उसकी असलियत जान लेने के बाद भी तुम उससे प्रेम करते हो?"
"मेरा प्रेम किसी ब्यक्ति विशेष के किसी सच या झूठ से ना तो बदल सकता है और ना ही मिट सकता है।" मैंने बड़े गर्व से कहा____"मेघा से मैं सच्चे दिल से प्रेम करता हूं। उसकी असलियत से मुझे ना पहले कोई फ़र्क पड़ा था और ना ही आगे कभी कोई फ़र्क पड़ेगा।"

"कमाल है।" वीर मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुराया_____"अगर ऐसा है तो फिर तुम अपने प्रेम के लिए कुछ भी कर सकते हो...है ना?"
"बिल्कुल।" मैं अंदर ही अंदर उसकी बात सुन कर थोड़ा घबरा गया था लेकिन फिर एकदम से निडर हो कर बोल पड़ा था_____"मैं उसके लिए कुछ भी कर जाऊंगा लेकिन सिर्फ़ इसी शर्त पर कि तुम लोग मेरी मेघा के साथ कुछ भी बुरा नहीं करोगे।"

"भाई रुद्र।" वीर ने पलट कर रूद्र से कहा____"पहली बार ऐसा इंसान देखा है जो इतना भोला है और इतना सच्चा भी है। क्या सच में प्रेम ऐसा होता है कि उसके लिए कोई इंसान कुछ भी करने को तैयार हो जाए?"

"तुम्हें आज तक किसी से प्रेम नहीं हुआ वीर इसी लिए तुम्हें प्रेम के क्रिया कलापों पर हैरानी और अविश्वास हो रहा है।" रूद्र ने कहा____"जबकि सच यही है कि अगर प्रेम सच्चा हो तो प्रेम करने वाला अपने प्रेमी के लिए कुछ भी कर जाता है।"

"अगर ऐसी बात है तो इससे कहो कि ये अपने प्रेम के लिए खुद को बलिदान करे।" वीर ने शख़्त लहजे में कहा_____"इसे अपने प्रेम की ख़ातिर मेघा को इस बात के लिए राज़ी करना होगा कि वो भी इसके साथ ख़ुशी ख़ुशी हमारे पितामह अनंत को शर्तों के अनुसार अपने प्रेमी का खून दे कर जीवित करे।"

"नहीं.....।" पूरे हाल में एक चीख गूँज उठी। मेरे साथ साथ वीर और रूद्र ने भी चौंक कर आवाज़ की तरफ देखा था। वो मेघा की चीख थी। शायद अब तक वो अचेत अवस्था में थी। ज़ंजीरों में बंधी वो बुरी तरह छटपटा रही थी।

"मेघा....।" उसे इस तरह छटपटाते देख मेरा दिल तड़प उठा और मैं ज़ोर से चिल्लाया_____"तुम ठीक तो हो न मेघा? मुझे लगा मैंने अपनी मेघा को हमेशा के लिए खो दिया है। भगवान का लाख लाख शुक्र है कि तुम जीवित हो।"

"तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था ध्रुव।" मेघा ने दुखी भाव से कहा_____"ये लोग तुम्हें मार डालेंगे।"
"तुम्हारे बिना तो मैं वैसे भी जीना नहीं चाहता मेघा।" मैंने तड़प कर कहा____"दिल में बस एक बार तुम्हें देख लेने की हसरत थी, इसी लिए अब तक जीवित हूं। तुम्हें देख लेने के बाद अब अगर मौत भी आती है तो हंसते हंसते उसे स्वीकार कर लूंगा।"

"ऐसा मत कहो ध्रुव।" मेघा की आँखों से आंसू छलक पड़े____"और मुझे इसके लिए माफ़ कर दो कि मेरी वजह से तुम्हें अब तक इतने दुःख सहने पड़े। मुझे इसके लिए भी माफ़ कर दो कि मैंने तुम्हारे पवित्र प्रेम को स्वीकार नहीं किया लेकिन ध्रुव, मैंने ऐसा इसी लिए नहीं किया था क्योंकि मैं तुम्हें किसी भी तरह के संकट में नहीं डालना चाहती थी।"

"हां, मैं जानता हूं मेघा।" मैंने लरज़ते हुए स्वर में कहा_____"मैं शुरू से ही जानता था कि तुम भी मुझसे बेहद प्रेम करती हो। वो तो तुम्हारी कोई मज़बूरी ही थी जिसकी वजह से तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर रही थी लेकिन मेघा, तुम अपने इस ध्रुव को समझ ही नहीं पाई और ना ही प्रेम के मर्म को ठीक से समझा है। मैंने तुमसे कहा था ना कि प्रेम करने वाले किसी भी अंजाम की परवाह नहीं करते थे बल्कि वो तो हर हाल में प्रेम करते हैं। अगर साथ में जी नहीं सकते तो साथ में मर कर दुनिया में अमर हो जाते हैं।"

"मुझे माफ़ कर दो मेरे ध्रुव।" मेघा ने रोते हुए कहा_____"मैं बस यही चाहती थी कि भले ही मुझे अनंत काल तक तुम्हारे विरह में तड़पना पड़े लेकिन वो काम नहीं करुँगी जिससे तुम्हारा जीवन एक अभिशाप बन जाए।"

"मुझे किसी अभिशाप की परवाह नहीं है मेघा।" मैंने कहा____"मैंने तो दो साल पहले भी तुमसे कहा था कि मुझे अपने जैसा बना लो। कम से कम उस सूरत में तुम्हारे साथ रहने का सुख तो मिलेगा मुझे।"

"नहीं ध्रुव।" मेघा ने कहा____"मेरे जैसा बन कर ऐसा जीवन जीना बहुत बड़ा अभिशाप है जिसमें न इंसानियत होती है और ना ही मुक्ति का कोई रास्ता। तुम इंसान हो और तुम्हारे अंदर हर वो अच्छाईयां हैं जो तुम्हें मुक्ति के रास्ते तक आसानी से ले जाएंगी लेकिन मेरे जैसी पिशाचनी अनंत काल तक इस अभिशाप को लिए भटकती रहने का दुर्भाग्य बनाए रहेगी। मैं इस बात से तो बेहद खुश हूं कि कोई इंसान मुझ जैसी पिशाचनी से इतना प्रेम करता है और साथ ही मुझे भी प्रेम करना सिखाया लेकिन इस बात से दुखी भी हूं कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। तुम्हारे ईश्वर से बस यही प्रार्थना करती हूं कि किसी तरह वो मुझे इस जीवन से मुक्ति दे दें और अगले जन्म में मुझे तुमसे मिला दें।"

"नियति में जो होना लिखा होगा वो तो होगा ही मेघा।" मैंने अपने मचलते हुए जज़्बातों को काबू करते हुए कहा____"लेकिन तुम्हारे साथ मुझे अभिशाप से भरा हुआ जीवन जीना भी स्वीकार है। मुझे अपना बना लो मेघा, मुझे अपने प्रेम से वंचित न करो।"

"ये दोनों तो अपने प्रेम का राग अलापे जा रहे हैं रुद्र।" सहसा वीर ऊँचे स्वर में बोल पड़ा_____"मेरा तो मन करता है कि इस लड़के का अभी खून पी जाऊं।"
"गुस्सा मत हो दोस्त।" रूद्र ने कहा____"मत भूलो कि ये हमारे लिए क्या एहमियत रखता है। अगर तुमने इसका खून पी कर इसे मार दिया तो हम अपने पितामह को फिर से कैसे जीवित कर सकेंगे?"

कहने के साथ ही वो मेघा की तरफ पलटा और फिर उससे बोला____"तुमसे ज़्यादा समझदार तो ये इंसान है मेघा और एक तुम हो जो अपने ही पिता को जीवन नहीं देना चाहती। कैसी बेटी हो तुम जो अपने पिता को जीवन देने की जगह इस इंसान के जीवन को बचा रही हो?"

"मैं अपने प्रेम को स्वार्थी नहीं बनाना चाहती भईया।" मेघा ने दुखी भाव से कहा____"ऐसा करने से मुझे यही लगेगा जैसे मैंने अपने पिता को जीवन प्रदान करने के लिए एक इंसान को अपने प्रेम के जाल में फंसाया है। ऐसा करने से मेरा प्रेम पवित्र नहीं कहलाएगा। अपने स्वार्थ के लिए मैं किसी इंसान को इस तरह स्तेमाल नहीं करना चाहती।"

"कमाल है।" रूद्र हँसा_____"पिछले सौ सालों से इंसानों का खून पी कर खुशियां मना रही थी, तब किसी इंसान के प्रति तुम्हारे मन में ऐसे ख़याल नहीं आए थे? आज एक इंसान से प्रेम क्या हो गया तुम्हारी तो सोच ही बदल गई...वाह! बहुत खूब। क्या तुमने कभी इन इंसानों के धर्म ग्रंथों में लिखी बातें नहीं पढ़ी जिनमें ये लिखा होता है कि माता पिता से बढ़ कर संसार में दूसरा कोई नहीं होता। क्या तुमने ये उपदेश नहीं पढ़ा कि जो प्राणी अपने माता पिता के लिए अपना सुख दुःख यहाँ तक कि अपनी मुक्ति का भी बलिदान कर देता है उसको ऊपर बैठा विधाता भी सलाम करता है?"

"तुम्हारे भैया सही कह रहे हैं मेघा।" मैंने मेघा के कुछ बोलने से पहले ही कहा____"मुझे तो इस बारे में पहले तुमने बताया ही नहीं था वरना मैं उसी समय तुमसे यही कहता कि तुम्हें सबसे पहले अपने पिता के बारे में ही सोचना चाहिए। मुझे भी ख़ुशी होती कि मेरा ये तुच्छ जीवन किसी के काम आया। मेरा यकीन करो मेघा, मैं तुम्हारे पिता को पुनः जीवन देने के लिए ख़ुशी ख़ुशी अपना बलिदान देने को तैयार हूं। अब समझ आया मुझे कि हम दोनों का मिलना महज कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं था बल्कि विधाता की ऐसी लीला थी जिसे हम दोनों ही समझ नहीं पाए। इस बात से ये भी समझ आता है कि ऊपर वाला यही चाहता था कि हम दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो ताकि हमारे द्वारा तुम्हारे पिता को फिर से जीवन मिल सके। अब जब ऊपर वाला यही चाहता है तो भला हम कौन होते हैं उसकी मर्ज़ी को ठुकराने वाले? मेरा जीवन तो वैसे भी बेमतलब था और जीने का कोई ख़ास मकसद नहीं था। ये बहुत ही अच्छा हुआ कि मेरा ये बेमतलब सा जीवन किसी ख़ास चीज़ के लिए काम आने वाला है। तुम अपने मन से ये बात निकाल दो कि तुम्हारे ऐसा करने से तुम्हारा प्रेम पवित्र नहीं रहेगा। मुझे ख़ुशी है कि तुमने मेरी सलामती के लिए इतना कुछ सोचा और इतने दुःख सहे लेकिन अब मैं खुद कहता हूं कि तुम्हें अपने पिता के लिए ख़ुशी ख़ुशी वो काम करना चाहिए जिसके लिए विधाता ने ये सारा खेल रचा है।"

"तुम कितने अच्छे हो ध्रुव।" मेघा की आँखें छलक पड़ीं____"कितनी आसानी से तुमने ये सब कह दिया। तुम सच में महान हो। मेरे पिता के लिए खुद को बलिदान कर देना चाहते हो, ऐसा इस संसार में कौन कर सकता है भला?"

"अब ये सब छोड़ो।" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"और चलो हम दोनों मिल कर तुम्हारे पिता को नया जीवन देते हैं।"
"इस लड़के ने तो मुझे आश्चर्य चकित कर दिया रुद्र।" वीर ने अपनी हैरत से फटी आँखों से मेरी तरफ देखते हुए कहा_____"यकीन नहीं होता कि कोई इंसान ऐसा करने के बारे में सोच सकता है।"

"काश! मुझे ये सब पहले पता चल गया होता।" मैंने मेघा की तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हें मुझसे ये सब बताना चाहिए था मेघा। क्या तुम्हें मुझ पर इतना भी एतबार नहीं था?"

"नहीं ध्रुव।" मेघा ने आहत भाव से कहा____"तुम पर तो खुद से ज़्यादा एतबार है मुझे। मैं जानती थी कि तुम मेरे लिए कुछ भी कर जाओगे लेकिन मैं तुम्हारे जीवन को अभिशाप नहीं बनाना चाहती थी और ना ही स्वार्थी बनना चाहती थी।"

"तो अब क्या इरादा है मेघा?" सहसा रूद्र मेघा से कह उठा____"अब तो ये लड़का खुद ही तुमसे कह रहा है कि ये हमारे पिता के लिए कुछ भी करेगा। इस लिए क्या अब भी तुम इसके लिए राज़ी नहीं होगी?"

"वो अब इसके लिए इंकार नहीं करेगी रूद्र जी।" मैंने रूद्र से कहा____"आप हम दोनों को इन ज़ंजीरों से मुक्त कर दीजिए। मैं आपको वचन देता हूं कि मैं और मेघा दोनों साथ मिल कर सच्चे दिल से आपके पिता के लिए वो सब करेंगे जिसके द्वारा उन्हें फिर से जीवन मिल जाए।"

मैंने देखा वीर अभी भी मुझे चकित भाव से देखे जा रहा था। शायद वो अभी भी समझने की कोशिश कर रहा था कि क्या सच में कोई इंसान इतनी सहजता से इतना कुछ करने की बात कह सकता है? उधर मेरे कहने के बाद रूद्र ने फ़ौरन ही हम दोनों को ज़ंजीरों से मुक्त करने का आदेश दे दिया। उसका आदेश होते ही ऊपर बालकनी में मौजूद कई सारे उनके जैसे ही लोग काम पर लग ग‌ए। वो सबके सब पिशाच ही थे। ये अलग बात है कि इस वक़्त वो सब साधारण इंसानों जैसे नज़र आ रहे थे।

कुछ ही समय में मैं और मेघा ज़ंजीरों से मुक्त हो ग‌ए। हाल के फर्श पर जब हम दोनों आए तो दोनों ही एक दूसरे की तरफ तेज़ी से दौड़ पड़े और एक दूसरे से लिपट ग‌ए। ऐसा लगा जैसे आत्मा तृप्त हो गई हो। मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े थे। मेरा जी चाह रहा था कि अब क़यामत तक मैं इसी तरह मेघा से लिपटा रहूं। ज़ाहिर है यही हाल मेघा का भी रहा होगा।

कुछ देर के लिए ही सही किन्तु उसे पा लिया था मैंने। उसको अपने सीने से लगा लिया था मैंने। मेरे दिल को कभी न मिटने वाला सुकून मिल गया था। जिसके दीदार के लिए दो सालों से तड़प रहा था आज उसे देख कर आंखें तृप्त हो ग‌ईं थी। मैं इस खुशी में सब कुछ भूल गया था। मैं भूल गया था कि मेघा से ये मेरी आख़िरी मुलाक़ात थी। मैं भूल गया था कि इस मुलाक़ात के बाद फ़ौरन ही मुझे उसके पिता को फिर से जीवन देने के लिए अपना बलिदान देना है। मैंने कभी इस बात का तसव्वुर भी नहीं किया था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब मुझे अपने प्रेम के लिए खुशी खुशी इस तरह से खुद को कुर्बान करना होगा।‌ मुझे इस बात का ज़रा भी रंज़ नहीं था बल्कि मैं तो बेहद खुश था कि मेरा बेमतलब और बोझ बना हुआ जीवन मेरी मेघा के किसी काम आ गया था।


कुछ पल ही सही तेरा साथ नसीब हुआ।
हां मगर ऐसा मिलना कुछ अजीब हुआ।।

तू सलामत रहे सदा चांद तारों की तरह,
मैं खुश हूं के तेरे जैसा कोई हबीब हुआ।।

राह-ए-उल्फ़त न रास आई हमें ऐ दोस्त,
क्या करें के अपना ही ख़ुदा रक़ीब हुआ।।

साथ ही जाएगा ग़म-ए-हिज़्र-ए-यार मेरे,
जहां में कोई ग़मे-दिल का न‌ तबीब हुआ।।

ये तो अच्छा है किसी के काम आया मगर,
यही सोच के हैरां हूं, कैसे मैं नजीब हुआ।।


✮✮✮


शब्दार्थ:-

हबीब = सखा, मित्र, माशूक/माशूका।
रक़ीब = दुश्मन, शत्रु।
ग़म-ए-हिज़्र-ए-यार= यार की जुदाई का दुख।
तबीब= हकीम, चिकित्सक।
नजीब = सच्चा, शुद्ध रक्त वाला, भला इंसान।
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Maine baat ye hain ki bhai kahani se jyada tumhara likhne ka tareeka jyada badhiya tha. Jab tumne kaha ki "tumhare bina to me vaise bhi jee nahi pata" ye line dil ko chhoo gayi. Agar iski jagah apne kaha hota ki tumhare bina to me vaise bhi pal pal mar raha tha, na bhai na ye baat to aisi thi jaise aayi aur nikal gayi lakin apki kahi ye alag line dil chhoo gayi
 
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