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Shukriya bhaiFor completed 5k views on your story thread.....
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Shukriya bhaiFor completed 5k views on your story thread.....
Thanks for your beautiful review bhai. Really glad to read this review bro. This type of review is rarely seen here. When a reader expresses his review of the story in this way, then the author feels that his hard work is not going in vain. A reader who gives such reviews is better than a thousand readers who leave just writing a nice update. SANJU ( V. R. ) bhaiya is the best in this forum in terms of doing beautiful reviews. When he gives a review about the story the heart becomes happy. Well achha laga bhai aur ummid karta hu ki aage bhi apni kahaniyo me aapki aisi hi khubsurat sameekshaaye dekhne ko milti rahengi. Thanks once againDhruv, yahi hai kahani ke naayak ka naam... Jiske ird – gird ye kahani ghoomti nazar aa rahi hai... Fantasy genre zaroor hai kahani ka par Nischit hi ek behatreen Romantic Storyline ki jhalak dekhne ko mili hai abhi tak ke updates mein... Megha aur Dhruv ki prem kahani jo shayad sahi prakaar se kabhi shuru hi nahi huyi, uske bikhar jaane se Dhruv ki haalat ek mrit insaan se bhi badtar ho chali hai...
Megha ka raaz... Jo bhi raha ho, zaroor koyi bada hi ghatak satya hoga... Jiske chalte shayad Dhruv khatre mein padd jaata aur issi darr ke chalte wo Dhruv se door ho gayi... Par haan Nischit hi uska ye faisla khud uske jazbaaton ko bhi jhanjor dene waala raha hoga... Aakhir wo bhi to Dhruv se pyaar karti thi... Dhruv aur Megha ki mulaakat ek accident ke chalte huyi par Megha ka Dhruv ko baar baar ye kehna ki wo aam taur par Insaano ki madad nahi kiya karti kisi aur hi taraf ishara kar raha hai... Megha Insaan hi hai ya?? Waise bhi kahani ke poster dekh kar lage ki Megha Vampire Girl hai shayad...
Jo bhi ho Megha ne apni sachayi Dhruv ko bataayi jiss se hum log filhaal anjaan hain par uss sach ko jaan lene ke baad bhi Dhruv ne usse saharsh sweekar karne ki baat kahi... Par shayad Megha ki duwidha bhi waajib thi... Wo nahi chahti thi ke Dhruv uske kaaran kisi sankat ka saamna kare...
Jo bhi ho par filhaal to Dhruv bilkul baawara ho gaya hai... Ishq cheez hi aesi hai paagal ko salaamat kar de aur salaamat ko paagal... Khair, ye to samajh aa chuka hai ke Agar Dhruv ki Mohabbat mukammal nahi huyi to uska jeevan issi tarah usse pal pal maarta rahega... Har roz ussi jagah jaana aur uss nirjan sthaan par sirf ek chehre ko besabri ke satah khojna saabit karne ke liye kaafi hai ke kitni shiddat se Dhruv Megha se Mohabbat karta hai... Iss sabmein uska apni job ke prati laaparwaah hona laazmi hi hai... Ab jab sote – jaagte ek hi khayaal dil – o – dimaag mein chhaaya rahega to wo bechara bhi kya kare...
Lekin uske Boss ki bhi galti nahi hai... Aakhir usse bhi to dekhna hai ke kisi employee ki wajah se uska nuksaan na hone lage... Iss beech ye bhi pata chala ke Dhruv awwal darje ka karigar hai aur yadi Megha uski zindagi mein bani rehti to shayad wo ek bade mukaam tak bhi pahunch gaya hota...
Khair, jo bhi ho dekhna ye hai ke kya Dhruv ki khoj rang laayegi, kya wo Megha ko fir se dekh paayega aur yadi dhoond bhi leta hai to kya dono ek ho paayenge?? Jo bhi ho bada romanchak rehne waala hai Dhruv & Megha ke iss pyaar ka safar...
Behadh hi shaandar kahani likh rahen hain Bhai aap... Iss se pehle aapki kahaniyon mein se sirf do hi padh paaya tha – Pyaar Ka Suboot & Begunaah, par us waqt silent reader tha isliye apni pratikriya nahi de paaya... But nischit hi aapke lekhan ka ek bada fan raha hoon main... Ghazal/Shayari to awwal darje ki likhte hi hain par sabse khaas baat aapki stories ki hoti hai jiss tarah aap scenes ko explain karte hain... Shabdon ka chayan ho ya dialogues ya fir Present & Flashback ka combination sabhi maayno mein ye kahani ucch stariya hai...
Outstanding Updates Bhai & Waiting For Next...
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Death king is no doubt outstanding reviewer. Bahut kahani me ham dono saath saath hai. Story par unke samajh kafi acchi hai.Thanks for your beautiful review bhai. Really glad to read this review bro. This type of review is rarely seen here. When a reader expresses his review of the story in this way, then the author feels that his hard work is not going in vain. A reader who gives such reviews is better than a thousand readers who leave just writing a nice update. SANJU ( V. R. ) bhaiya is the best in this forum in terms of doing beautiful reviews. When he gives a review about the story the heart becomes happy. Well achha laga bhai aur ummid karta hu ki aage bhi apni kahaniyo me aapki aisi hi khubsurat sameekshaaye dekhne ko milti rahengi. Thanks once again![]()
Aise readers ki umar 1000 saal ki honi chahiyeDeath king is no doubt outstanding reviewer. Bahut kahani me ham dono saath saath hai. Story par unke samajh kafi acchi hai.
Update - 02
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एक बार फिर से उसकी तलाश में मुझे नाकामी मिल गई थी। एक बार फिर से मैं मायूस और निराश हो गया था। एक बार फिर से मेरा दिल तड़प कर रह गया था। मेरी आँखों से आंसू के क़तरे छलक कर मेरे गालों पर आ गिरे। मैंने चेहरा उठा कर आसमान की तरफ देखा और मन ही मन ऊपर वाले से एक बार फिर शिकवा किया और उससे फ़रियाद भी की।
वापसी की राह हमेशा की तरह मुश्किल थी लेकिन ऐसी मुश्किलों को तो मैंने खुद ही शौक़ से चुना था इस लिए चल पड़ा घर की तरफ। मन में हज़ारों तरह के झंझावात लिए मैं जिस तरफ से यहाँ तक आया था उसी तरफ वापस चल पड़ा। न मेरे पागलपन की कोई सीमा थी और ना ही उस शख़्स के सताने की जिसकी मोहब्बत में मैं इस क़दर गिरफ़्तार था कि अपनी हालत को ऐसा बना बैठा था।
ये मोहब्बत भी बड़ी अजीब चीज़ होती है। जब तक किसी से नहीं होती तब तक इंसान न जाने कितने ही तरीके से खुद को खुश कर लेता है लेकिन जब किसी से मोहब्बत हो जाती है और साथ ही इस तरह का आलम हो जाता है तो दुनियां की कोई भी चीज़ उसे खुश नहीं कर सकती, सिवाय इसके कि उसे बस वो मिल जाए जिसे वो टूट टूट कर मोहब्बत कर रहा होता है। मोहब्बत वो बला है जिसके मिलन में तो मज़ा है ही किन्तु उसके हिज़्र में तड़पने का भी अपना एक अलग ही मज़ा है।
हर इक ज़ख़्म दिल का जवां जवां करके।
चला गया वो ज़िन्दगी धुआं धुआं करके।।
एक मुद्दत से कहीं उसका पता ही नहीं,
जाने कहां गया है मुझको परेशां करके।।
मेरे बग़ैर कहीं तो सुकूं से रह रहा होगा,
वो जो यादें दे गया मुझे एहसां करके।।
किसे बताऊं मुसलसल उसकी जुस्तजू में,
थक गया हूं बहुत ज़मीनो-आसमां करके।।
ग़म ये नहीं के मेरे हिस्से में इंतज़ार आया,
ग़म ये है के लौटा नहीं मुझे तन्हां करके।।
ख़ुदा करे के कहीं से ख़बर हो जाए उसे,
के बैठा है कोई बीमारे-दिलो-जां करके।।
घर पहुंचते पहुंचते ऐसी हालत हो गई थी कि न कुछ खाने का होश रहा था और ना ही कुछ पीने का। जिस हालत में था उसी हालत में बिस्तर पर बेहोश सा पसर गया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था बल्कि ऐसा अक्सर ही होता था। मुझे अपनी सेहत का या अपनी किसी बात का ज़रा भी ख़याल नहीं था। मेरे दिल में अगर उसको एक बार देख लेने की हसरत न होती तो मैं हर रोज़ ऊपर वाले से बस यही दुआ मांगता कि ऐसी ज़िन्दगी को विराम लगाने में वो एक पल न लगाए।
सुबह हमेशा की तरह मेरी आँख अपने टाइम पर ही खुली। हमेशा की तरह बेमन से मैं उठा और नित्य क्रिया से फुर्सत होने के बाद अपने पेट की तपिश को मिटाने के लिए घर के पास ही थोड़ी दूरी पर मौजूद ढाबे की तरफ चल दिया। मेरे घर में यूं तो ज़रूरत का हर सामान था लेकिन मेरे लिए वो किसी काम का नहीं था, बल्कि अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि मुझे घर के किसी सामान से मतलब ही नहीं था। अपने पेट की भूख मिटाने के लिए मैं बाहर ही थोड़ा बहुत खा लेता था। मेरे जीवन की दिनचर्या यही थी कि सुबह अपने काम पर जाना और शाम होने से पहले ही काम से वापस आ कर मेघा की खोज करना। इसके अलावा जैसे मेरे जीवन में ना तो कोई काम था और ना ही मेरी कोई ख़्वाहिशें थी।
मेघा के प्रति मेरे दिल में इस क़दर चाहत घर गई थी कि मैं हर पल बस उसी के बारे में सोचता रहता था। अगर मैं ये कहूं तो ग़लत न होगा कि मैं मेघा की मोहब्बत में एक तरह से पागल हो चुका था। उसकी चाहत का नशा हर पल मेरे दिलो दिमाग़ में चढ़ा रहता था। काम करते वक़्त भी मैं मेघा के ही ख़यालों में खोया रहता था। शायद यही वजह थी कि मुझे जानने पहचानने वाले लोग अक्सर मुझे देख कर उल्टी सीधी बातें करते रहते थे।
"क्या अब भी तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारे लायक हूं ध्रुव?" मेरे ज़हन में मेघा के द्वारा कहे गए शब्द गूँज उठते थे____"क्या मेरा सच जानने के बाद भी तुम मुझसे प्यार करोगे?"
"मेरा प्यार तुम्हारे किसी सच को जान लेने से ख़त्म नहीं हो सकता मेघा।" मैंने उसकी गहरी आँखों में अपलक देखते हुए कहा था_____"बल्कि सच तो ये है कि तुम चाहे जिस भी रूप में मेरे सामने आओ तुम्हारे प्रति मेरी चाहत में कोई फ़र्क नहीं आएगा।"
"ओह! ध्रुव।" मेघा के चेहरे पर दर्द और बेबसी के मिले जुले भाव उभर आए थे। मेरे दाएं गाल को सहलाते हुए कहा था उसने____"ये कैसा पागलपन है? तुम मेरी हक़ीक़त जान लेने के बाद भी मेरे प्रति भला ऐसे जज़्बात कैसे रख सकते हो?"
"सच्ची मोहब्बत में पैदा हुए दिल के जज़्बात किसी सच या झूठ को जान कर अपना रंग नहीं बदलते।" मैंने उसका वो हाथ थाम कर कहा था जिस हाथ से उसने मेरा दायां गाल सहलाया था____"ख़ैर, अब तो तुम्हें भी पता चल गया है ना कि मुझे तुम्हारी हक़ीक़त से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता इस लिए क्या अब भी तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी ?"
"तुमसे मिलने से पहले।" वो मेरे चेहरे की तरफ देखते हुए कह रही थी____"मैं कभी इस तरह किसी धर्म संकट में नहीं फंसी थी और ना ही इस तरह बेबस और लाचार हुई थी। तुमसे मिलने से पहले मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मोहब्बत क्या होती है और मोहब्बत की दीवानगी क्या होती है। मैंने ख़्वाब में भी ये नहीं सोचा था कि कोई इंसान मुझसे इस क़दर टूट कर मोहब्बत करेगा। ये विधाता की कैसी लीला है ध्रुव?"
"मैं किसी की लीला को नहीं जानता मेघा।" मैंने होठों पर फीकी सी मुस्कान सजा कर कहा था____"मैं तो बस इतना जानता हूं कि मैं तुमसे बेहद प्रेम करता हूं और इस बात का भी मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो चुका है कि मैं तुम्हारे बिना ना तो कभी खुश रह पाऊंगा और ना ही चैन से जी पाऊंगा। अब ये तुम पर है कि तुम मुझे किस हाल में रखती हो?"
"नहीं ध्रुव, ऐसा मत कहो।" उसने बेबस भाव से कहा था____"मैं सच में इस लायक नहीं हूं कि मेरी वजह से तुम अपनी ऐसी हालत बना लो। सच तो ये है कि तुम मेरे साथ भी कभी खुश नहीं रह पाओगे, बल्कि मुझसे जुड़ने के बाद तो तुम्हारी ज़िन्दगी ही ख़तरे में पड़ जाएगी। मैं ये कैसे चाह सकती हूं कि जो इंसान मुझसे इतना प्रेम करता है वो मेरी वजह से मौत के मुँह में चला जाए?"
"मुझे अपनी मौत का ज़रा भी डर नहीं है मेघा।" मैंने उठते हुए कहा था____"और अगर यही सच है कि तुमसे जुड़ने के बाद मुझे मौत ही आ जानी है तो मेरी बस यही आरज़ू है कि मेरा दम तुम्हारी बांहों में ही निकले। आह! कितना हसीन होगा ना वो मंज़र, जब मेरी जान मेरी जान की बांहों में जाएगी।"
मैं बेड पर उठ कर बैठ गया था और बेड की पिछली पुश्त से अपनी पीठ को टिका लिया था। मेरी बात सुन कर मेघा मुझे अपलक देखती रह गई थी। उसके चेहरे पर बेबसी और बेचैनी के भाव उजागर हो रहे थे। चाँद की तरह चमकता हुआ चेहरा ग्रहण सा लगाए हुए नज़र आने लगा था।
अपने चारो तरफ से आने लगी अजीब तरह की आवाज़ों को सुन कर मैं एकदम से चौंका। गर्दन घुमा कर इधर उधर देखा तो ढाबे में मेरे दाएं बाएं और पीछे मौजूद लोग मुझे देखते हुए एक दूसरे से जाने क्या क्या कहते दिख रहे थे। मैंने फ़ौरन ही खुद को सम्हाला और ढाबे वाले से दो सौ ग्राम भुजिया के साथ चटनी ले कर अपने घर की तरफ चल पड़ा। अक्सर ऐसा ही होता था कि मैं मेघा के ख़यालों में खो जाता था और मेरा ध्यान ऐसी ही आवाज़ों के द्वारा टूट जाता था।
सुबह का नास्ता कर के मैं अपने काम पर पहुंचा ही था कि मोटर गैराज के मालिक ने आवाज़ दे कर मुझे अपने केबिन में बुलाया। मैं समझ गया कि हमेशा की तरह आज सुबह सुबह फिर से वो मुझे चार बातें सुनाएगा। मैंने एक बार गैराज में मौजूद बाकी लोगों की तरफ देखा और फिर चुप चाप मालिक के केबिन की तरफ बढ़ गया।
"क्या तुमने क़सम खा रखी है कि तुम किसी और की नहीं सुनोगे बल्कि हमेशा वही करोगे जो तुम्हारी मर्ज़ी होगी?" मैं केबिन में दाखिल हुआ ही था कि मोटर गैराज का मालिक मुझे देख कर तेज़ आवाज़ में चिल्ला उठा____"ख़यालों की दुनियां से निकल कर हक़ीक़त की दुनियां में आ जाओ। मेरी नरमी का नाजायज़ फायदा मत उठाओ। मैं पिछले दो साल से तुम्हें सिर्फ इस लिए बरदास्त कर रहा हूं क्योंकि तुम एक अनोखे कारीगर हो। मैं हमेशा ये सोच कर हैरान हो जाता हूं कि तुम्हारे जैसे पागल इंसान के अंदर ऐसा गज़ब का हुनर कैसे हो सकता है?"
मोटर गैराज का मालिक चालीश साल का गंजा ब्यक्ति था जिसका नाम गजराज शेठ था। पिछले पांच सालों से मैं उसके यहाँ मोटर मकैनिक के तौर पर काम करता आ रहा था। दो साल पहले आज के जैसे हालात नहीं थे किन्तु जब से मेरे जीवन में मेघा का दखल हुआ था तब से मेरा बर्ताव पूरी तरह बदल गया था। गजराज शेठ यूं तो बहुत अच्छा इंसान था लेकिन किसी भी तरह का नुक्सान उसे बरदास्त नहीं था।
पिछले दो साल से वो मुझे ऐसे ही बातें सुनाता आ रहा था और मैं तब तक ख़ामोशी से उसकी बातें सुनता रहता था जब तक कि वो मुझे खुद ही चले जाने को नहीं कह देता था। उसे भी हर किसी की तरह इस बात का पता था कि मेरे पागलपन या मेरे ऐसे बर्ताव की वजह क्या है। शुरुआत में उसने मुझसे कई बार इस सिलसिले में बात की थी और अपनी तरफ से हर कोशिश की थी कि मैं पहले जैसा बन जाऊं लेकिन जब मुझ पर कुछ असर ही नहीं हुआ तो उसने मुझे समझाना ही छोड़ दिया था।
मोटर गैराज में मेरे साथ काम करने वाले लोग अक्सर उससे मेरी शिकायतें करते थे और मुझे हटाने की कोशिश में लगे रहते थे लेकिन मैं अब भी गजराज शेठ के गैराज में टिका हुआ था। इसकी वजह यही थी कि मुझ में बाकी लोगों से कहीं ज़्यादा बेहतर हुनर था और मेरा किया हुआ काम ऐसा होता था जिसे देख कर खुद गजराज शेठ दांतों तले उंगली दबा लेता था। दूसरी वजह ये भी थी कि पिछले दो साल से मैंने गजराज शेठ से अपने काम का कोई पैसा नहीं माँगा था बल्कि अपना गुज़ारा मैं कस्टमर के द्वारा मिले हुए टिप्स से ही चलाता आ रहा था। ऐसा नहीं था कि मेरे न मांगने पर गजराज शेठ ने मुझे मेरे काम का पैसा देना नहीं चाहा था बल्कि वो तो हर महीने मेरी पगार मुझे पकड़ाता था लेकिन मैं ही लेने से इंकार कर देता था।
"देखो ध्रुव।" गजराज शेठ की आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा____"मैंने हमेशा यही चाहा है कि तुम भी आम इंसानों की तरह सामान्य जीवन जियो। इस तरह किसी के पागलपन में अपना कीमती जीवन बर्बाद मत करो। ऊपर वाले ने तुम्हें अच्छी शक्लो सूरत दी है और ऐसा क़ाबिले तारीफ़ हुनर भी दिया है जिसके बल पर तुम बेहतर से बेहतर जीवन गुज़ार सकते हो। मुझे हर रोज़ तुम पर यूं गुस्सा करना और चिल्लाना अच्छा नहीं लगता। मैं दिल से चाहता हूं कि तुम ठीक हो जाओ, इस लिए मैंने तुम्हारे लिए एक मनोचिकित्सक डॉक्टर से बात की है। उसने बताया कि उसके द्वारा दी जाने वाली बेहतर थैरेपी से तुम पहले जैसे बन जाओगे।"
गजराज शेठ इतना कह कर चुप हो गया और मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगा। शायद वो मुझे देखते हुए ये समझने की कोशिश कर रहा था कि मुझ पर उसकी बातों का कोई असर हुआ है या नहीं? जब काफी देर बाद भी मैंने उसकी बातों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने हताश भाव से गहरी सांस ली।
"आख़िर तुम किस तरह के इंसान हो ध्रुव?" फिर उसने झल्लाते हुए कहा____"तुम किसी की बातों को नज़रअंदाज़ क्यों कर देते हो? क्या तुम्हें ज़रा भी अपने जीवन से मोह नहीं है? आख़िर कब तक चलेगा ये सब? आज तुम्हें मेरी बातें सुननी भी पड़ेंगी और माननी भी पड़ेंगी। कल तुम मेरे साथ उस डॉक्टर के पास चलोगे, समझ गए न तुम?"
ऐसा नहीं था कि मेरे कानों तक गजराज शेठ की बातें पहुंच नहीं रहीं थी बल्कि वो तो वैसे ही पहुंच रहीं थी जैसे किसी नार्मल इंसान के कानों में पहुँचती हैं लेकिन मेरी हालत ऐसी थी कि मैं किसी की बातों पर ज़रा भी ध्यान नहीं देता था। मैं नहीं चाहता था कि किसी की बातों की वजह से एक पल के लिए भी मेरे ज़हन से मेघा का ख़याल टूट जाए।
मुझे ख़ामोश खड़ा देख गजराज शेठ की हालत अपने बाल नोच लेने जैसी हो गई थी। उसके बाद गुस्से में ज़ोर से चिल्लाते हुए उसने "दफ़ा हो जाओ" कहा तो मैं चुप चाप पलट कर बाहर चला आया।
मेघा के प्रति मेरा प्रेम अब सिर्फ प्रेम ही नहीं रह गया था बल्कि वो एक पागलपन में बदल चुका था। मेरे अंदर बस एक ही ख़्वाहिश थी कि एक बार मेघा का खूबसूरत चेहरा देखने को मिल जाए उसके बाद फिर भले ही चाहे मुझे मौत आ जाए। दुनियां का कोई भी इंसान इस बात पर यकीन नहीं कर सकता था कि किसी लड़की के साथ सिर्फ एक हप्ता रहने से मुझे उससे इस हद तक प्यार हो सकता है कि मैं उसके लिए दुनियां जहान से बेख़बर हो कर पागल या सिरफिरा बन जाउंगा। मैंने खुद भी कभी ये सोचने की कोशिश नहीं की थी कि ऐसा कैसे हो सकता है?
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Update - 03
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सारा दिन मैं किसी मशीन की तरह काम में लगा रहा। काम पूरा होते ही मैंने खुद को साफ़ किया और बिना किसी से कुछ बोले गैराज से निकल लिया। मेरे हिस्से में मुझे जितना काम मिलता था उसे पूरा करने के बाद मैं एक पल के लिए भी गैराज में नहीं रुकता था, फिर चाहे भले ही क़यामत आ जाए। मेरे साथ गैराज में काम करने वाले बाकी लोगों को अब मेरे इस रवैए की आदत पड़ चुकी थी। मेरे सामने तो वो कुछ नहीं बोलते थे किन्तु मेरे जाते ही वो सब बातें शुरू कर देते थे।
गैराज से निकल कर मैं अपने घर नहीं जाता था बल्कि मेघा की खोज में उसी जंगल की तरफ निकल पड़ता था जहां पर मैंने उसके साथ चंद दिन गुज़ारे थे। सारी दुनियां भले ही मुझे पागल समझती थी लेकिन मेरे दिल को यकीन था कि मेघा मुझे जब भी मिलेगी उसी जंगल में मिलेगी। अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर मैं हर रोज़ शाम होने से पहले उस जंगल में दाखिल हो जाता था।
ठण्ड ने अपना असर दिखाना पहले ही शुरू कर दिया था और कोहरे ने फ़िज़ा में धुंध फैला दी थी। जंगल में दाखिल होने से पहले एक बार मैं उस जगह पर ज़रूर जाता था जहां पर दो साल पहले मेरे साथ हादसा हुआ था। वो हादसा ही था जिसने मेरी ज़िन्दगी को एक नया मोड़ दिया था और उसी की वजह से मुझे मेघा मिली थी।
दो साल पहले का वो हादसा आज भी मेरे ज़हन में तारो ताज़ा था। मैं हर रोज़ की तरह सुबह सुबह अपने काम पर जाने के लिए निकला था। उस दिन भी आज की ही तरह ठण्ड थी और फ़िज़ा में कोहरे की धुंध छाई हुई थी। मैं अपनी ही धुन में एक पुरानी मोटर साइकिल में बैठा गजराज शेठ के मोटर गैराज की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। कोहरे की धुंध की वजह से सड़क पर ज़्यादा दूर का दिखाई नहीं दे रहा था इस लिए मैं धीमी रफ़्तार में ही मोटर साइकिल से जा रहा था। घर से क़रीब दो किलो मीटर दूर निकल आने के बाद अचानक मेरी नज़र सामने से भागती हुई आ रही एक लड़की पर पड़ी थी। कोहरे की वजह से वो अचानक ही मुझे दिखी थी और मेरे काफी पास आ गई थी। मैं उसे यूं अचानक देख कर एकदम से बौखला गया था। उसे बचाने के चक्कर में मैंने मोटर साइकिल का हैंडल जल्दी से घुमाया और ऐसा करना जैसे मुझ पर ही भारी पड़ गया।
मोटर साइकिल का अगला पहिया सड़क पर पड़े किसी पत्थर पर ज़ोर से लगा था और मैं मोटर साइकिल सहित सड़क पर जा गिरा था। अगर सिर्फ इतना ही होता तो बेहतर था लेकिन सड़क पर जब मैं गिरा था तो झोंक में मेरा सिर किसी ठोस चीज़ से टकरा गया था। मेरे हलक से घुटी घुटी सी चीख निकली और फिर मेरी आँखों के सामने अँधेरा छाता चला गया था। उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ भी याद नहीं रहा था।
जब मेरी आँखें खुलीं तो मैंने खुद को एक ऐसे कमरे के बेड पर पड़ा हुआ पाया जिस कमरे की दीवारें काले पत्थरों की थीं। दीवारों पर दिख रहे काले पत्थर ऐसे थे जैसे न जाने कब से उन पर चढ़ी हुई धूल या काई को साफ़ ना किया गया हो। कमरा सामान्य कमरों से कहीं ज़्यादा बड़ा था और कमरे की छत भी सामान्य से कहीं ज़्यादा उँचाई पर थी। एक तरफ की दीवार पर लोहे की खूँटी थी जिस पर पुरानी जंग लगी हुई लालटेन टंगी हुई थी। उसी लालटेन का धीमा प्रकाश पूरे कमरे में फैला हुआ था। हालांकि उसका प्रकाश कमरे को पूरी तरह रोशन करने में सक्षम नहीं था किन्तु इतना ज़रूर था कि कमरे में मौजूद किसी वस्तु को देखा जा सके। कमरे में कोई खिड़की या रोशनदान नहीं था, बल्कि लकड़ी का एक ऐसा दरवाज़ा था जिसे देख कर यही लगता था कि अगर उस दरवाज़े पर थोड़ा सा भी ज़ोर लगा दिया जाए तो वो टूट जाएगा। दरवाज़े में लगे लकड़ी के पटरों पर झिर्रियां थी जिससे उस पार का दृश्य आसानी से देखा जा सकता था।
मैं खुद को ऐसी विचित्र जगह पर पा कर पहले तो हड़बड़ा गया था उसके बाद एकदम से मेरे अंदर अजीब सा डर और घबराहट भरती चली गई थी। मैं समझने की कोशिश करने लगा था कि आख़िर मैं ऐसी जगह पर पहुंच कैसे गया था? ज़हन पर ज़ोर डाला तो मुझे याद आया कि मेरे साथ हादसा हुआ था। यानि किसी लड़की को बचाने के चक्कर में मैं खुद ही घायल हो गया था। सिर पर गहरी चोट लगने की वजह से मैं बेहोश हो गया था। उसके बाद जब मुझे होश आया तो मैं ऐसी जगह पर था।
ऐसी डरावनी जगह पर खुद को एक बिस्तर पर पड़े देख मेरे मन में तरह तरह के भयानक ख़याल आने लगे थे। मैंने चारो तरफ नज़रें घुमा घुमा कर देखा किन्तु मेरे अलावा उस कमरे में कोई नज़र नहीं आया। मैंने हिम्मत जुटा कर बिस्तर से उठने की कोशिश की तो एकदम से मेरे मुख से कराह निकल गई। मेरी पीठ पर बड़ा तेज़ दर्द हुआ था जिसकी वजह से मैं वापस उसी बिस्तर पर लेट गया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं ऐसी जगह पर आख़िर कैसे पहुंच गया था? मुझे अच्छी तरह याद था कि हादसा सड़क पर हुआ था जबकि ये ऐसी जगह थी जिसको मैंने तसव्वुर में भी कभी नहीं देखा था। अचानक ही मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मुझे यहाँ पर पहुंचाने वाली कहीं वो लड़की ही तो नहीं जिसे बचाने के चक्कर में मैं खुद ही घायल हुआ था? उस लड़की का ख़याल आया तो मेरे ज़हन में उसके बारे में भी तरह तरह के ख़याल उभरने लगे। मैं सोचने लगा कि अगर वो लड़की ही मुझे यहाँ ले कर आई है तो वो खुद कहां है इस वक़्त?
मैं अभी इन ख़यालों में खोया ही हुआ था कि तभी कमरे का दरवाज़ा अजीब सी चरमराहट के साथ खुला तो मैंने चौंक कर उस तरफ देखा। दरवाज़े से दाखिल हो कर जो शख्सियत मेरे सामने मुझे नज़र आई उसे देख कर मैं जैसे अपने होशो हवास खोता चला गया। कुछ देर के लिए ऐसा लगा जैसे मैं अचानक से ही कोई हसीन ख़्वाब देखने लगा हूं।
"अब कैसा महसूस कर रहे हो तुम?" उसकी मधुर आवाज़ मेरे एकदम पास से आई तो जैसे मुझे होश आया। जाने कब वो मेरे एकदम पास में आ कर बिस्तर के किनारे पर बैठ गई थी। मैंने जब उसे अपने इतने क़रीब से देखा तो मैंने महसूस किया जैसे मैं उसके सम्मोहन में फँसता जा रहा हूं। वो अपने सवाल के जवाब की उम्मीद में मुझे ही देखे जा रही और मैं उसे। जीवन में पहली बार मैंने अपने इतने क़रीब किसी लड़की को देखा था, वो भी ऐसी वैसी लड़की नहीं बल्कि दुनियां की सबसे हसीन लड़की को। मैं दावे के साथ कह सकता था कि दुनियां में उसके जैसी खूबसूरत लड़की कोई हो ही नहीं सकती थी।
चेहरा चांद की तरह रौशन था। बड़ी बड़ी आँखों में समुन्दर से भी कहीं ज़्यादा गहराई थी। नैन नक्श ऐसे थे जैसे किसी मूर्तिकार ने अपने हाथों से उस अद्भुत मूरत को रचा था। लम्बे सुराहीदार गले में लटका एक बड़ा सा लॉकेट जिसमें गाढ़े नीले रंग का नगीने जैसा पत्थर था। दूध की तरह सफ्फाक बदन पर ऐसे कपड़े थे मानो किसी बहुत ही बड़े साम्राज्य की राज कुमारी हो। बड़े गले वाली कमीज थोड़ा कसी हुई थी जिसके चलते उसके सीने की गोलाइयों के उभार साफ़ दिख रहे थे। अपने रेशमी बालों को वैसे तो उसने जूड़े की शक्ल दे कर बाँध रखा था लेकिन इसके बावजूद उसके बालों की कुछ लटाएं दोनों तरफ से नीचे झूल कर उसके खूबसूरत गालों को बारहा चूम रहीं थी। खूबसूरत होठों पर गहरे सुर्ख रंग की लिपस्टिक लगी हुई थी। मैं साँसें रोके जैसे उसकी सुंदरता में ही खो गया था।
"क्या हुआ? तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?" मुझे अपनी तरफ अपलक देखता देख उसने कहा था____"मैं पूछ रही हूं कि अब कैसा महसूस कर रहे हो तुम?"
"आं..हां???" मैं उसकी शहद में मिली हुई आवाज़ को सुन कर हल्के से चौंका था, फिर जल्दी से खुद को सम्हाल कर बोला_____"म..मैं बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं लेकिन...।"
"लेकिन???" उसके चमकते हुए चेहरे पर सवालिया भाव उभरे।
"ल..लेकिन तुम कौन हो?" वस्तुस्थित का एहसास होते ही मैं धड़कते दिल से पूछ बैठा था_____"और..और मैं यहाँ कैसे आ गया? मैं तो...।"
"फ़िक्र मत करो।" उसने इस लहजे से कहा कि उसकी खनकती हुई आवाज़ मेरे दिल की गहराइयों में उतरती चली गई थी____"तुम यहाँ पर सुरक्षित हो। तुमने मुझे बचाने के चक्कर में खुद को ही चोट पहुंचा लिया था। मैं तो ख़्वाब में भी नहीं सोच सकती थी कि कोई इंसान इतना नेकदिल हो सकता है। मैं चाह कर भी तुम्हें उस हालत में देख कर खुद को रोक नहीं पाई थी जोकि मेरे लिए बहुत ही आश्चर्य की बात ही थी। ख़ैर, मैं तुम्हें उस जगह से यहाँ ले आई और तुम्हारे ज़ख्मों का इलाज़ किया।"
"तो क्या तुम्हीं वो लड़की थी जो अचानक से मेरे सामने भागती हुई आ गई थी?" मैंने हैरत से उसकी तरफ देखते हुए पूछा था जिस पर वो हल्के से मुस्कुराई। मैं उसकी मुस्कान को देख कर अपने दिल में बजने लगी घंटियों को महसूस करने लगा था। जबकि उसने कहा____"हां वो मैं ही थी लेकिन जिस तरह से तुमने मेरे लिए खुद को ख़तरे में डाला था उससे मैं बेहद प्रभावित हुई थी।"
"पर तुम सुबह सुबह उस वक़्त ऐसे भागती हुई जा कहां रही थी?" मैं उससे पूछ ज़रूर रहा था लेकिन सच तो ये था कि मेरी नज़रें उसके हसीन चेहरे से हट ही नहीं रही थी और यकीनन उसे भी इस बात का एहसास ज़रूर था।
"इस दुनियां में कोई न कोई बहुत कुछ ऐसा कर रहा होता है जो बाकी लोगों की नज़र में अटपटा होता है।" उसने जैसे दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा था____"ख़ैर छोड़ो इस बात को। तुम्हें अभी आराम की ज़रूरत है। अगर किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो मुझे याद कर लेना।"
"तुमने अभी तक ये नहीं बताया कि तुम कौन हो?" मैंने धड़कते हुए दिल से उससे कहा था____"मैंने अपने जीवन में तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की ख़्वाब में भी नहीं देखी। तुम्हें मैं एक ढीठ किस्म का इंसान ज़रूर लग सकता हूं लेकिन सच यही है कि तुम्हें देख कर मेरा दिल तुम्हारी तरफ किसी चुम्बक की तरह खिंचा जा रहा है। मेरे दिल में अजीब सी हलचल मच गई है। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि ये अचानक से मुझे क्या हो रहा है। मेरे अब तक के जीवन में मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ। भगवान के लिए मुझे बताओ कि कौन हो तुम और मेरे दिल में तुम्हारे प्रति प्रेम की तरंगें क्यों उठ रही हैं?"
"तुम सिर्फ़ इतना जान लो कि मेरा नाम मेघा है।" उसने अजीब भाव से कहा था____"जो किसी वजह से तुमसे आ मिली है। तुम्हारे लिए मेरी सलाह यही है कि मेरे प्रति अपने अंदर प्रेम जैसे जज़्बात मत उभरने दो क्योंकि इससे तुम्हें ही नुक्सान होगा।"
"ऐसा क्यों कह रही हो तुम?" उसकी बातें सुन कर मेरा दिल धाड़ धाड़ कर के बजने लगा था। एक अंजाना सा भय मेरे अंदर उभर आया था, जिसे बड़ी मुश्किल से सम्हाला था मैंने।
"क्योंकि किसी इंसान से प्रेम करना मेरी फितरत में नहीं है।" उसने सपाट लहजे में कहा था____"इस लिए तुम्हारे लिए बेहतर यही है कि मेरा ख़याल दिल से निकाल दो। तुमने क्योंकि मुझे बचाने के लिए अपनी जान जोख़िम में डाली थी इस लिए मैं अपनी फितरत के खिलाफ़ जा कर तुम्हारा इलाज़ कर के तुम्हें वापस तुम्हारे घर भेज देना चाहती हूं। उसके बाद हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे।"
मुझे हैरान परेशान कर के मेघा नाम की वो लड़की मानो हवा के झोंके की तरह कमरे के दरवाज़े से बाहर निकल गई थी। उसके जाते ही ऐसा लगा जैसे मैं गहरी नींद से जागा था। कुछ देर तक तो मैं अपनी हालत को ही समझने की कोशिश करता रहा उसके बाद गहरी सांस ले कर मेघा और उसकी बातों के बारे में सोचने लगा।
अभी मैं दो साल पहले हुए उस हादसे के ख़यालों में ही गुम था कि तभी किसी वाहन के तेज़ हॉर्न से मैं हक़ीक़त की दुनियां में आ गया। मैंने नज़र उठा कर आने वाले वाहन की तरफ देखा और फिर एक तरफ को बढ़ चला।
कोहरे की धुंध में पता ही नहीं चल रहा था कि शाम ढल चुकी है या अभी भी शाम ढलने में कुछ समय बाकी है। मैं सड़क से बाएं तरफ एक ऐसे संकरे रास्ते की तरफ मुड़ गया जो जंगल की तरफ जाता था। दूसरी तरफ पहाड़ों की ऊँची ऊँची पर्वत श्रृंखलाएं थीं जोकि कोहरे की गहरी धुंध की वजह से दिख नहीं रहीं थी।
एक बार फिर से मैं उसी जंगल में दाखिल हो चुका था जिस जंगल में मुझे ये उम्मीद थी कि मेघा का कहीं अशियाना होगा या ये कहूं कि जहां पर मैं उसके साथ एक हप्ते रहा था। मैं अगर सामान्य हालत में होता तो यकीनन ये सोचता कि मेरे जैसा बेवकूफ़ इंसान शायद ही इस दुनियां में कोई होगा जो आज के युग में किसी लड़की के प्रेम में पागल हो कर इस तरह उसकी खोज में दर दर भटक रहा है।
क़रीब डेढ़ घंटे टार्च की रौशनी में चलने के बाद अचानक ही एक जगह मैं रुक गया। मेरे रुक जाने की वजह थी कुछ आवाज़ें जो मेरे दाएं तरफ से हल्की हल्की आ रहीं थी। मैंने गौर से सुनने की कोशिश की तो अगले ही पल मेरे थके हारे जिस्म में जैसे नई ताक़त और नई स्फूर्ति भर गई। मैं उन आवाज़ों को सुन कर एकदम खुशी से पागल सा होने लगा। मैं फ़ौरन ही दाएं तरफ तेज़ी से बढ़ता चला गया। जैसे जैसे मैं आगे बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे वो आवाज़ें और भी साफ़ सुनाई देती जा रहीं थी। मैं दुगुनी रफ़्तार से चलते हुए जल्दी ही उस जगह पर पहुंच गया जहां से आवाज़ें आ रहीं थी।
कोहरे की गहरी धुंध में मैंने आवाज़ों की दिशा में टार्च की रौशनी डाली तो मुझे वो झरना दिखा जिसके पानी के गिरने की आवाज़ अक्सर मैं मेघा के उस कमरे में बेड पर लेटे हुए सुना करता था। इन दो सालों में पहली बार मुझे कोई ऐसी चीज़ खोजने पर मिली थी जो इस बात को साबित करती थी कि इस झरने के आस पास ही कहीं पर वो पुराना सा मकान था जिसके एक कमरे में मैं एक हप्ते रहा था। मेरा दिल इन दो सालों में पहली बार झरने को देख कर खुशी से झूमा था। मैं पहले भी कभी एक पल के लिए नाउम्मीद नहीं हुआ था और आज तो इस झरने के मिल जाने पर नाउम्मीद होने का सवाल ही नहीं था। एक मुद्दत से जो दिल बहुत उदास था वो इस झरने के मिल जाने से खुश हो गया था और साथ ही मेघा के दीदार के लिए बुरी तरह मचलने लगा था। जाने क्यों मेरे दिल के जज़्बात बड़े ज़ोरों से मचल उठे।
दिल को इक पल क़रार आना भी नहीं मुमकिन।
तेरे बग़ैर मेरे दोस्त, जी पाना भी नहीं मुमकिन।।
हर शब मैं तेरी जुस्तजू में भटका हूं कहां कहां,
मिल जाओ के दिल को बहलाना भी नहीं मुमकिन।।
दिल-ए-नादां पे गुज़री है क्या क्या तेरे बग़ैर,
हाले-दिल किसी को, बताना भी नहीं मुमकिन।।
तेरे ख़याल में गुम रहना ही मयस्सर है मुझे,
के तुझे एक पल भूल जाना भी नहीं मुमकिन।।
मैं तेरी याद में पतंगों सा जलता तो हूं मगर,
तेरी याद में फना हो जाना भी नहीं मुमकिन।।
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