नास्ता पानी करके मैं अपने कमरे में गया और धोने के लिए कपडे इकट्ठे करने लगा थोड़ी चीजे इधर उधर बिखरी पड़ी थी उनको जमाया करीब दस बज गए थे माँ को कुछ काम से मामा के जाना पड़ा तो वो पिताजी के साथ ही निकल गयी थी कपड़ो का ढेर उठा कर मैं बाहर जा ही रहा था की तभी फ़ोन की रिंग बजी मेरे कान खड़े हो गए दो बार रिंग आकर कट गयी तीसरी बार में मैंने उठाया उधर पिस्ता थी उसने बताया की वो कुछ काम से सहर तक जा रही है चलोगे क्या , पर मैंने मन कर दिया क्योंकि मुझे कपडे धोने थे तो उसने कहा की वो फिर शाम को जंगल में लकड़ी काटने जाएगी तो मैं उसको 4 बजे मिलु उधर मैंने हाँ कर दी
घर के बाहर पड़े पट्टी पर मैं कपडे धो रहा था की बिमला निकल आई- उसने पुचा कहा रहते हो आज कल
मैं- बस भाभी आजकल थोडा टाइम का प्रॉब्लम हैं
बिमला- पर पढने तो जाते नहीं हो , घर पर मिलते नहीं हो तो फिर रहते किधर हो
अब मैं क्या बताता उसको की आजकल असल में हो क्या रहा था मेरे साथ तो बोला भाभी बस पूछो न किधर रहता हूँ बस इतना जान लो कट रही है अपनी भी
बिमला- मुझे लग रहा की किसी न किसी को फांस लिया हैं तुमने जैसे मुझे जाल में फसाया तुमने, अब तभी तो मेरी याद नहीं आती तुम्हे
मैं- पेंट को ब्रश से घिसते हुए- कमाल करते हो भाभी आप भी, बोला न आजकल थोडा टाइम का लोचा है
बिमला- बच्चे स्कूल गए है मैं अकेली ही हूँ देख लो फिर ना कहना की भाभी ने काम नहीं किया
मैं- कपडे धो कर आता हूँ
बिमला कातिल मुस्कान बिखेरते हुए, पक्का आ जाना और चली गयी ना जाने क्यों उसकी चाल कुछ ज्यादा ही लहराती सी लगी मुझे
आधे कपडे धोये ही थे की मोहल्ले का एक लड़का आया और बोला- भाई, गाँव की टीम का फाइनल मैच हैं आज तेरी जरुरत है बस ये मैच निकल वादे कुछ भी करके हार गए तो पडोसी गाँव में बहुत चीच्लेदार होगी अब क्रिकेट का जूनून अपने को कुछ ज्यादा ही था तो बस कपड़ो को छोड़ा वाही पर और अपना किट लेकर लादा उसको और साइकिल से पहूँच गए नीनू के गाँव उसके घर से बस थोड़ी ही दूर पर खाली साइड में ग्राउंड बनाया हुआ था
फाइनल मैच था तो शुरू होते होते देर हो गयी फिर ऐसे मैच में थोड़ी तना तानी तो होती ही हैं खेल ख़तम होते होते शाम ढल आई जीतने के बाद मैं अपना सामान समेट कर घर की और चला ही था की कच्चे रस्ते को पार करते ही नीनू मिल गयी सर पर घास का गठर लिए हुए, मुझे देख कर उसने घास को नीचे रख दिया और बोली- तुम यहाँ इस वक़्त
मैं- वो आज मैच खेलने आया था
वो हँसी और बोली- पढने क्यों नहीं आते आजकल
मैं- कल से आऊंगा कुछ काम थे तो छुट्टी की हुई थी
वो- मैं सोच रही थी की कहीं बीमार विमर तो नहीं हो गयी दर्शन ही दुर्लभ हो गए तुम्हारे आओ घर चलो चाय पीकर जाना
मैं- नहीं रे वैसे ही लेट हो रहा है , फिर कभी पक्का आऊंगा अभी चलता हूँ कल फुर्सत से बाते करेंगे वो बोली ठीक है
घर पहूँचते पहूँचते अँधेरा घिर आया था चाचा घर के बाहर ही बैठे थे थोडा गुस्से में लग रहे थे पूछा कहा से आ रहे हो
मैं- जी पड़ोस के गाँव में मैच खेलने गया था
चाचा- घर पे बता के गए थे
मैं- चुप रहा
चाचा – बहुत बिगड़ गया हैं तू आज तेरा इलाज करना ही पड़ेगा और दिया एक खीच कर थप्पड़
मैं फिर भी चुप चाप खड़ा रहा दो- तीन थप्पड़ लगातार टिक गए
पर हद तो जब हुई जब उन्होंने मेरा बैट तोड़ दिया गुस बहुत आया मुझे उस पल पर वो बड़े थे तो बस सब्र कर लिया वो तो चले गए थे पर मैं रह गया था उन लकड़ी के टुकडो के साथ वहा पर आँखों से कुछ आंसू टपक पड़े वो शाम मैंने अपनी लाइफ का आखिरी मैच खेला था बैट के टुकडो को अलमारी में रखा और घर से बाहर आ गया चाची ने रोटी के लिए आवाज दी पर भूख नहीं थी दिमाग हद से ज्यादा ख़राब हो गया था मेरा
पर किसी पर जोर भी तो नहीं चलता था मेरा रोने को दिल कर रहा था पर रो न सका कल पढने भी जाना था तो दुकान पर पंहूँचा पेन लेने के लिए रस्ते में पिस्ता मिल गयी पुछा आया क्यों नहीं जंगल में कितनी बाट जोही मैंने
मैं- कुछ काम हो गया था तो ना आ सका
वो- कोई बात नहीं होता है कुछ उदास से दीखते हो
क्या हुआ
मैं- कुछ नहीं
वो- मेरे साथ आओ फिर बात करते हैं
उसके घर आ गए , वो बोली- तुम्हारी शकल से दिख रहा है उदास हो अब बताओ भी न क्या बात है
दुखी मन से मैंने उसको सारी बात बताई तो वो एक ठंडी सांस लेकर बोली कोई ना यार होता है दिल पे मत लो ये जो घरवाले होते हैं ना ये बड़े अजीब टाइप लोग होते है इनको ज्यादा सीरियस ना लेना चाहिए इनका काम ही बस फालतू बातो का रोना रोना होता हैं ये अपने जैसे लोगो की फीलिंग्स को कभी नहीं समझ सकते इनको इनके हाल पे छोड़ दो और मस्त रहो
आज आलू के परांठे बनाये है आओ साथ साथ खाते है मैंने कहा भूख नहीं है तो वो बोली- ज्यादा ना बनो आओ खालो चुपचाप
गरमा गरम परांठे और देसी घी में बनी लाल मिर्च की चटनी मजा ही आ गया 4-५ परांठे लपेट दिए मजे मजे में मैंने पूछा अब क्या वो बोली अब बस सोना ही हैं कल मेरी माँ आ जाएगी तो थोडा कम टाइम मिलेगा फिर ऊपर से मेरा भाई भी आने वाला है छुट्टी क्या पता इस बार उसकी शादी का जुगाड़ हो जाये
मैं- तो अपना मिलना मुश्किल होगा क्या
वो- ना रे, कर लेंगे कुछ न कुछ जुगाड़ पर भाई होगा घर पे तो थोडा सावधान तो रहना ही पड़ेगा ना अब उसकी फीलिंग्स का भी तो ख्याल रखना पड़ेगा न मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से उसको कोई टेंशन हो वैसे भी एक दो दिन अपन ना मिलेंगे तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा
मैं- बात तो सही हैं कोई ना नजरे तो है ही न आते जाते दुआ सलाम होती रहेगी
वो हस पड़ी मेरी इस बात पे मैं अपने घर आ गया और बिस्तर पकड़ लिया थोड़ी देर बाद ध्यान आया की बिमला के घर सोना है तो फिर पहूँच गया और खडका दिया दरवाजा उसका
दो चार बार दरवाजऐ की कुण्डी खडकी तब जाकर बिमना ने दरवाजा खोला मुझे देखते ही उसके रसीले होंतो पर एक चिर परिचीत मुस्कराहट आ गयी घागरा- चोली में बड़ी कसी हुई लग रही थी वो मुझे उसने घर के अंदर लिया और हम बैठक में आ गए मैंने तुरंत ही उसको अपनी बाँहों में ले लिया और उसके बोबो से खिलवाड़ करने लगा बिमला बोली- आज जब खुद की गरज हैं तो आ गए मुझे बिगाड़ कर दूर दूर भागते हो
मैं- ऐसी बात नहीं हैं भाभी पर आप समझो जरा आजकल बहुत काम है मुझे तो बिलकुल भी टाइम नहीं मिल रहा पर आज रात तो हैं न अपने पास जी भर कर खुश करूँगा आप को , अब टाइम ख़राब ना करो आओ भी ना बहुत दिन हुए आपके हूँस्न के दीदार ना किये है
घर के बाहर पड़े पट्टी पर मैं कपडे धो रहा था की बिमला निकल आई- उसने पुचा कहा रहते हो आज कल
मैं- बस भाभी आजकल थोडा टाइम का प्रॉब्लम हैं
बिमला- पर पढने तो जाते नहीं हो , घर पर मिलते नहीं हो तो फिर रहते किधर हो
अब मैं क्या बताता उसको की आजकल असल में हो क्या रहा था मेरे साथ तो बोला भाभी बस पूछो न किधर रहता हूँ बस इतना जान लो कट रही है अपनी भी
बिमला- मुझे लग रहा की किसी न किसी को फांस लिया हैं तुमने जैसे मुझे जाल में फसाया तुमने, अब तभी तो मेरी याद नहीं आती तुम्हे
मैं- पेंट को ब्रश से घिसते हुए- कमाल करते हो भाभी आप भी, बोला न आजकल थोडा टाइम का लोचा है
बिमला- बच्चे स्कूल गए है मैं अकेली ही हूँ देख लो फिर ना कहना की भाभी ने काम नहीं किया
मैं- कपडे धो कर आता हूँ
बिमला कातिल मुस्कान बिखेरते हुए, पक्का आ जाना और चली गयी ना जाने क्यों उसकी चाल कुछ ज्यादा ही लहराती सी लगी मुझे
आधे कपडे धोये ही थे की मोहल्ले का एक लड़का आया और बोला- भाई, गाँव की टीम का फाइनल मैच हैं आज तेरी जरुरत है बस ये मैच निकल वादे कुछ भी करके हार गए तो पडोसी गाँव में बहुत चीच्लेदार होगी अब क्रिकेट का जूनून अपने को कुछ ज्यादा ही था तो बस कपड़ो को छोड़ा वाही पर और अपना किट लेकर लादा उसको और साइकिल से पहूँच गए नीनू के गाँव उसके घर से बस थोड़ी ही दूर पर खाली साइड में ग्राउंड बनाया हुआ था
फाइनल मैच था तो शुरू होते होते देर हो गयी फिर ऐसे मैच में थोड़ी तना तानी तो होती ही हैं खेल ख़तम होते होते शाम ढल आई जीतने के बाद मैं अपना सामान समेट कर घर की और चला ही था की कच्चे रस्ते को पार करते ही नीनू मिल गयी सर पर घास का गठर लिए हुए, मुझे देख कर उसने घास को नीचे रख दिया और बोली- तुम यहाँ इस वक़्त
मैं- वो आज मैच खेलने आया था
वो हँसी और बोली- पढने क्यों नहीं आते आजकल
मैं- कल से आऊंगा कुछ काम थे तो छुट्टी की हुई थी
वो- मैं सोच रही थी की कहीं बीमार विमर तो नहीं हो गयी दर्शन ही दुर्लभ हो गए तुम्हारे आओ घर चलो चाय पीकर जाना
मैं- नहीं रे वैसे ही लेट हो रहा है , फिर कभी पक्का आऊंगा अभी चलता हूँ कल फुर्सत से बाते करेंगे वो बोली ठीक है
घर पहूँचते पहूँचते अँधेरा घिर आया था चाचा घर के बाहर ही बैठे थे थोडा गुस्से में लग रहे थे पूछा कहा से आ रहे हो
मैं- जी पड़ोस के गाँव में मैच खेलने गया था
चाचा- घर पे बता के गए थे
मैं- चुप रहा
चाचा – बहुत बिगड़ गया हैं तू आज तेरा इलाज करना ही पड़ेगा और दिया एक खीच कर थप्पड़
मैं फिर भी चुप चाप खड़ा रहा दो- तीन थप्पड़ लगातार टिक गए
पर हद तो जब हुई जब उन्होंने मेरा बैट तोड़ दिया गुस बहुत आया मुझे उस पल पर वो बड़े थे तो बस सब्र कर लिया वो तो चले गए थे पर मैं रह गया था उन लकड़ी के टुकडो के साथ वहा पर आँखों से कुछ आंसू टपक पड़े वो शाम मैंने अपनी लाइफ का आखिरी मैच खेला था बैट के टुकडो को अलमारी में रखा और घर से बाहर आ गया चाची ने रोटी के लिए आवाज दी पर भूख नहीं थी दिमाग हद से ज्यादा ख़राब हो गया था मेरा
पर किसी पर जोर भी तो नहीं चलता था मेरा रोने को दिल कर रहा था पर रो न सका कल पढने भी जाना था तो दुकान पर पंहूँचा पेन लेने के लिए रस्ते में पिस्ता मिल गयी पुछा आया क्यों नहीं जंगल में कितनी बाट जोही मैंने
मैं- कुछ काम हो गया था तो ना आ सका
वो- कोई बात नहीं होता है कुछ उदास से दीखते हो
क्या हुआ
मैं- कुछ नहीं
वो- मेरे साथ आओ फिर बात करते हैं
उसके घर आ गए , वो बोली- तुम्हारी शकल से दिख रहा है उदास हो अब बताओ भी न क्या बात है
दुखी मन से मैंने उसको सारी बात बताई तो वो एक ठंडी सांस लेकर बोली कोई ना यार होता है दिल पे मत लो ये जो घरवाले होते हैं ना ये बड़े अजीब टाइप लोग होते है इनको ज्यादा सीरियस ना लेना चाहिए इनका काम ही बस फालतू बातो का रोना रोना होता हैं ये अपने जैसे लोगो की फीलिंग्स को कभी नहीं समझ सकते इनको इनके हाल पे छोड़ दो और मस्त रहो
आज आलू के परांठे बनाये है आओ साथ साथ खाते है मैंने कहा भूख नहीं है तो वो बोली- ज्यादा ना बनो आओ खालो चुपचाप
गरमा गरम परांठे और देसी घी में बनी लाल मिर्च की चटनी मजा ही आ गया 4-५ परांठे लपेट दिए मजे मजे में मैंने पूछा अब क्या वो बोली अब बस सोना ही हैं कल मेरी माँ आ जाएगी तो थोडा कम टाइम मिलेगा फिर ऊपर से मेरा भाई भी आने वाला है छुट्टी क्या पता इस बार उसकी शादी का जुगाड़ हो जाये
मैं- तो अपना मिलना मुश्किल होगा क्या
वो- ना रे, कर लेंगे कुछ न कुछ जुगाड़ पर भाई होगा घर पे तो थोडा सावधान तो रहना ही पड़ेगा ना अब उसकी फीलिंग्स का भी तो ख्याल रखना पड़ेगा न मैं नहीं चाहती की मेरी वजह से उसको कोई टेंशन हो वैसे भी एक दो दिन अपन ना मिलेंगे तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा
मैं- बात तो सही हैं कोई ना नजरे तो है ही न आते जाते दुआ सलाम होती रहेगी
वो हस पड़ी मेरी इस बात पे मैं अपने घर आ गया और बिस्तर पकड़ लिया थोड़ी देर बाद ध्यान आया की बिमला के घर सोना है तो फिर पहूँच गया और खडका दिया दरवाजा उसका
दो चार बार दरवाजऐ की कुण्डी खडकी तब जाकर बिमना ने दरवाजा खोला मुझे देखते ही उसके रसीले होंतो पर एक चिर परिचीत मुस्कराहट आ गयी घागरा- चोली में बड़ी कसी हुई लग रही थी वो मुझे उसने घर के अंदर लिया और हम बैठक में आ गए मैंने तुरंत ही उसको अपनी बाँहों में ले लिया और उसके बोबो से खिलवाड़ करने लगा बिमला बोली- आज जब खुद की गरज हैं तो आ गए मुझे बिगाड़ कर दूर दूर भागते हो
मैं- ऐसी बात नहीं हैं भाभी पर आप समझो जरा आजकल बहुत काम है मुझे तो बिलकुल भी टाइम नहीं मिल रहा पर आज रात तो हैं न अपने पास जी भर कर खुश करूँगा आप को , अब टाइम ख़राब ना करो आओ भी ना बहुत दिन हुए आपके हूँस्न के दीदार ना किये है