चलते चलते हम लोग सोच रहे थे मैंने सोचा की इसको लेकर खेत पर चला जाऊ पर क्या पता चाचा हो उधर तो
बात गड़बड़ा सकती थी , मैंने घडी की तरफ देखा ३ बजने को आये थे बस ५-६ का टाइम हो जाता तो बोल सकते
थे की रात की बस थी बस सुबह ही पहूँचे , पर ये दो घंटे एडजस्ट करने मुशिकल हो रहे थे एक तो सफ़र की
थकन ऊपर से पैदल गांड घिस रही हुआ हाल बुरा मेरा तो , धोबी का कुत्ता न घर का घाट का वो बात हो
गयी
जिस सड़क पर दिन में हजार साधन गुजरते हो वो सुनसान पड़ी थी
घिसटते घिसटते हम लोग आखिर मेरे गाँव तक आ गए नीनू को मैंने फिर से कहा की मेरे घर चल पर उसकी
बात भी जायज थी तो गाँव के अड्डे पर बनी टंकी से पानी पिया और फिर से सामान लाद कर नीनू के गाँव
की तरफ चल पड़े, गाँव का तो नाम ही था घर तो उसका खेतो पर था , शॉर्टकट ले लिया था पर सुनसान
होने से डर भी लग रहा था पर वो कहते हैं ना की एक बार चलो तो सही देर सवेर पहूँच ही जाना होता है , जब
करीब दो- तीन खेत उसका घर दूर रह गया तो वो बोली- बस अब मैं चली जाउंगी
मैं- बड़ी जल्दी है तुम्हे जाने की
वो- अब घर आ गया है तो जाना ही होगा न
मैं- दो पल भी न ठहरो गी
वो- क्या बात है
मैं- कुछ भी नहीं
वो- तो फिर जाने दो
मैं उसके पास आ गया बिलकुल पास , उसके चेहरे के बिलकुल करीब इतना करीब की इंच भर भी जगह
बाकी न रही नीनू थोडा पीछे होते हुए- क्या कर रहे हो
मैंने उसकी कमर में हाथ डाला और उसको अपनी और खीच लिया उस अँधेरी रात में हम दोनों एक दुसरे के
इतने करीब थे की बस,
नीनू कांपते हुए- छोड़ो मुझे, जाने दो ना
मैं- दो पल रुको जरा देख लू तुम्हे जे भर के
वो- इतनी देर से नहीं देखा था क्या
मैं- चुप रहो तुम कुछ मत बोलो
मुझे उसके दिल की धड़कने साफ़ साफ़ सुनाई दे रही थी मेरे दिल में आया की किस तो बनता है पर मैंने
किया नहीं थोड़ी देर बाद उसको अपनी बाहों से आजाद कर दिया और बोला फिर कब मिलोगी
वो- जल्दी ही ,
वो जाने लगी तो मैंने फिर से उसके हाथ को पकड़ लिया तो वो बोली- फाइनल बताओ जाऊ के नहीं जाऊ
मैं- रोक भी त नहीं सकता तुम्हे , चलो जाओ
नीनू तो घर पहूँच गयी थी मुझे वापिस जाना था जब तो दो थे अब मैं एक तो डर सा लगने लगा
जैसे तैसे करके घर पहूँच ही गया मैं अँधेरा अभी भी था ही मैंने दो तीन बार किवाड़ खडकाया आवाज लगायी
किसी ने ना खोला सब नींद में मगन पड़े थे मुझे गुस्सा सा आने लगा बदन दर्द कर रहा था वो अलग सफ़र
में टूट कर आया था पर घरवाले अब किवाड़ न खोले तो क्या करू हार कर दरवाजे के पास ही बैठ गया बैठे
बैठे ही नींद का लटका आ गया , नींद थोड़ी गहरी हुई ही थी की किसी ने दरवाजा खोल दिया तो मेरी आँख
खुली मैंने देखा चाची दरवाजे पर खड़ी थी
मुझे देख कर बोली – तू कब आया
मैं- सुबह ४ बजे
वो- तो इधर क्यों सो गया घंटी बजानी थी ना
मैं- घंटी कब लगी अपने घर
वो- ओह! मैं तो भूल ही गयी थी तेरे पीछे से लगवाई है घर में फिटिंग का काम करवाया था तो , चल अन्दर आजा कब से पड़ा है इधर
मैंने अपना सामान लिया और घर के अंदर घुस गया पहली बार जिंदगी में लगा की घर तो घर ही होता है बड़ा
अच्छा लगा चाची बोली हाथ मुह धो ले फिर चाय के साथ कुछ खा पीके सो जाना , वैसे सुबह सुबह कैसे आ
गया तू
मैं- जी, रात की बस से आया हूँ
वो- हम्म्म, तो कैसा रहा तुम्हारा टूर
मैं- एक दम मजेदार बहुत मजा आया
वो- चल ठीक रहा वर्ना फिर हमे ही दोष देता
मैंने बिना उनकी बात पे ध्यान दिए चाय के साथ रात की बची रोटियों को डकारा और खाट पर लम्बा हो
गया सफ़र की थकन ऊपर से भरा हुआ पेट तो फिर आँख सीधे दोपहर को ही खुली जब मैं जगा तो घर पर
कोई नहीं था , उबासी लेते हुए मैं घर से बाहर आया तो देखा की बिमला गेहू साफ़ कर रही है मैं उसके पास
चला गया और पुछा- घरवाले कहा गए है पता चला की खेत में
बिमला- कहा घुमने चले गए थे , बड़े दिन लगा दिए आते आते
मैं- बस भाभी ऐसे ही
वो- ऐसे ही , पता है मैंने कितना याद किया तुम्हे
मैं- क्यों याद किया
वो- तुमने मेरी आदत जो बिगाड़ दी है
मैं- वो भला कैसे
वो- ओह! देखो तो सही कितना भोला बन रहा है , जैसे कुछ पता है ही नहीं
मैं- कोई ना भाभी मैं अब आ गया हूँ, आपकी हर तम्मान्ना पूरी कर दूंगा
वो- जाओ, बड़े आये तमन्ना पूरी करने वाले
मैं- तो क्या इरादा है
वो- कुछ नहीं
मैं- करे क्या
वो- आते ही शुरू हो गए
मैं- अब भाभी , आप चीज़ ही ऐसी हो , आओ करलेते है फटाफट से घर पे कोई नहीं है मैं जाता हूँ आप जल्दी से आ जाना
वो- देखती हूँ
मुझे पता था की बिमला पक्का आएगी उसकी चूत को लंड जो चाहिए था और मैं तो हमेशा चूत मारने को
तैयार कोई भी चूत हो कैसी ही चूत हो बस मिलनी चाइये अपने को , तो करीब दस मिनट बाद बिमला घर में
दाखिल हुई मैंने उसको बरामदे में ही पकड़ लिया और किस करने लगा , बिमला का बदन मेरी बाहों में झुमने
लगा उसके होंठो को काटते हुए मैं उसकी चोली खोलने लगा तो उसने मन कर दिया वो बोली- ना कपडे नहीं
उतरूंगी, दिन का समय है कोई भी आ निकलेगा इतनी जल्दी पहने ना जायेंगे ऊपर ऊपर से ही कर लो
मैं- कोई ना आएगा बस थोड़ी देर की तो बात है
पर वो ना मानी , मैंने अपने लंड को बाहर निकाल लिया और बिमला के हाथ में दे दिया बिमला बड़े प्यार से
उसको अपनी मुट्ठी में भर कर हिलाने लगी मैं फिर से उसको किस करने लगा काफ़ी देर तक जी भर कर उसके
लबो का रसपान करने के बाद, मैंने उसको खाट पर लिटा दिया और उसके घाघरे को कमर तक उठा दिया
बिमला ने कच्छी पहनी नहीं थी तो टांगो को खोलते ही उसकी काली चूत मेरी नजरो के सामने थी बिमला
की चूत के काले होंठ बहुत ही ज्यादा पसंद थे मुझे , बिमला का काला रंग , उसकी कामुकता को और भी
ज्यादा बढ़ा देता था
मैंने अपने होठो पर जीभ फेरी और अपने मुह को उसकी टांगो के बिच घुसा दिया उसकी मस्त चूत की
नमकीन खुशबू मुझे मस्ताना करने लगी मेरी गरम साँसे जो उसकी चूत पर पड़ी बिमला ने एक आह भारी
और अपने हाथो से चूत की पंखुडियो को फैलाया उसकी चूत के अंदर का लाल लाल भाग दिखने लगा , मैंने
झट से बिमला की चूत पर अपने होठ सटा दिए बिमला की टाँगे कांप उठी , “ओह ओह आह आह ”
उसकी टाँगे मचलने लगी , चूत का नमकीन पण बढ़ने लगा , मेरी लम्बी जीभ surpppppppppppp
सुर्प्पप्प्प्पप्प्प करते हुए उसकी चूत के अनमोल रस को चख रही थी बिमला की आहे पल पल बढती ही
रही थीइधर मैं अपनी जीभ चला रहा था उधर बिमला अपनी गांड हिलाने लगी थी पर उसने ज्यादा देर चूत
न चुस्वाई वो बोली- बस अब जल्दी से अंदर डाल दो और फटाफट से कर लो कही कोई आ ना निकले,
मैं- भाभी, ऐसे मजा नहीं आता
वो- अभी करलो रात को छत पर आ जाउंगी फिर रगड़ लेना अभी जल्दी से कर लो
बात तो उसकी सही थी , कोई भी आ निकले , मैंने लंड पर थूक लगाया और भाभी की चूत से रगड़ने लगा
बिमला की चूत को काफ़ी दिन बाद लंड मिल रहा था चूत ने लंड का स्वागत किया मैंने बिमला की एक टांग
को कंधे पर रखा और लंड को चूत में सरका दिया
आह , थोडा धीरे
मैं- क्या भाभी आप भी
वो- अरे काफ़ी दिन में इसमें कुछ गया है ना
मैं- किस्मे क्या क्या गया भाभी
वो- हट गंदे, मुझसे बुलवाना चाहता है
मैं- अन्दर ले सकती हो बोल नहीं सकती
वो- मुझे लाज आती है
मैं- करती हो जब लाज नहीं आती चलो बताओ किस्मे क्या गया
भाभी- बड़े शैतान हो तुम, चूत , चूत में लंड गया और क्या
मैं- जियो भाभी
कहते ही मैंने पूरा लंड बिमला की चूत में उतार दिया और धक्के मारने लगा बिमला प्यार से मेरी तरफ
देखते हुए चुदने लगी मैंने उसकी टांग को सहलाते हुए चूत में लंड अन्दर बहार करने लगा “ओह, भाभी,
कितनी गरम चूत है तुम्हारी, मजा ही आ गया ”
बिमला – मेरे उपर आ जाओ पूरी तरह से
मैं बिमला के ऊपर आकर चोदने लगा उसने अपनी टांगो को ऊपर कर लिया और अपनी कमर को उचकते हुए
चूत में लंड लेने लगी , उसका बदन वास्तव् में ही बहुत गरम था एक नंबर की गरम औरत थी वो मैं उसके
गालो को खाने लगा तो वो मना करने लगी- बोली=निशाँ पड़ जायेंगे पर मैं कहा रुकने वाला था वो भी जब
ऐसी गरम चुदाई चल रही हो , फुच फुच फुच फुच करते हुए चूत क पानी से सना हुआ मेरा लंड लगातार चूत
की गहराइया नाप रही थी बिमला बोली होठ चूसो मेरे
तो मैं उसको किस करते हुए चूत पर धक्के मारने लगा बिमला में पूरी तरह समा कर हम दोनों स्वर्गिक
आनंद को भोग रहे थे लापा लापा चूत और लंड का खेल चल रहा था बिमला मेरे बालो को सहला रही थी और
फिर बिमला कस के मुझ से चिपक गयी बदन पसीने पसीने हो उठा और उसके झड़ते झड़ते ही मैंने भी
उसके काम रस से अपने वीर्य को मिला दिया और बिमला की चूत को भरने लगा .
जल्दबाजी भरी चुदाई के बाद हमने अपनी सांसो को संयंत किया बिमला ने बिस्तर की चादर से अपनी चूत
को साफ़ चूत से मेरा वीर्य बह रहा था , देख कर मैं मुस्कुरा पड़ा बिमला बोली- “रात को छत पर मिलना , तब रही सही कसर पूरी कर दूंगी ”
मैं- ठीक है भाभी
बिमला फिर अपने घर चली गयी मैं नहाने के लिए बाथरूम में घुस गया चुदाई के बाद ठन्डे पानी से नहाने का भी अपना मजा होता है , तरो ताज़ा होकर मैं आया तो मम्मी चाची दोनों घर आ चुकी थी, मम्मी ने मुझसे पूछा-
“तो, कैसा रहा, तुम्हारा टूर, ”
मैं- जी बहुत बढ़िया
मम्मी- घर सेबाहर जाते ही तुम लापरवाह हो गये , कम से कम फ़ोन तो कर सकते थे न ,
मैं- जी, मुझे ध्यान नहीं रहा
वो- ओह! तो ध्यान नहीं रहा , वैसे भी घरवालो को कुछ समझते तो तुम हो नहीं बड़े जो हो गए हो
मैं- मम्मी, सच में समय ही नहीं मिला , वह जाकर मैं बहुत बिजी हो गया था
वो- क्या हमे भी पता चलेगा की वहा कौन से तुम्हारे कारखाने चल रहे थे जो माँ- बाप से दो पल बात करने की फुर्सत न मिली तुम्हे
मैं-मम्मी आप भी शुरू हो गए, इस घर से मैं हूँ , मुझ से ये घर थोड़ी न कुछ पल जी लिए अपने लिए बस इतनी सी बात है
मम्मी- तुझसे तो बात करना बेकार है , इस बात को तू तब समझेगा जब तू बाप बनेगा चल जाने दे , घुमाई फिराई बहुत हुई, अब थोडा घर के कामो पे ध्यान देना , तुम नहीं थे तो काफ़ी काम अधूरे पड़े है
मैं- कल कर दूंगा
फिर चाय पीकर मैं घर से बहार निकल पड़ा , मोहल्ले में आया तो पानी की टंकी के पास खेली पर पिस्ता को देखा , भैंसों को पानी पिला रही थी इधर उधर देख कर मैं उसके पास चला गया उसने मुझे देखा मैंने उसको देखा पानी पीने के बहाने से मैंने धीरे से उस से पुछा- “कैसी हो ”
वो- जीयु या मरू तुमसे मतलब
मैं- तो किस से मतलब
वो- कितने दिन बाद आज शकल दिखा रहे हो, तुम्हारा काम निकल गया तो मुझे भुला दिया
मैं- कुछ भी बोल देती है , मेरी तो सुन
वो- क्या सुनु तुम्हारी
मैं- सुनेगी तो पता चलेगी ना
वो- मेरे पास टाइम ना है
मैं- फ़ालतू में गुस्सा ना हो यार , बात तो सुन
वो- मेरा मूड ना हैं तू जा अभी यहाँ से
अब इस को क्या हुआ, ये क्यों खफा हो गयी , जो भी हो मानना तो पड़ेगा ना
मैं- रात को तेरा इंतज़ार करूँगा कुएँ पर
वो- मेरा भाई है मैं ना आ सकुंगी
मैं- तो कब मिलोगी
वो- घर आजा फुर्सत से सुनूंगी तेरी कहानी
मैं- घर भाई न होगा के
वो- डर लगे है
मैं- तेरे लिए कैसा डर , तू जहा कहे वहा आ जाउंगा
वो- तो ठीक है मेरे चोबारे में मिलते है रात को
ये भी साली गजब थी, भाई तो घर पे ही होगा , मरवाने का पूरा जुगाड़ कर रखा था पर उसकी नारजगी को दूर करना भी जरुरी था , ध्यान आया की बिमला ने भी रात को छत पर मिलने को कहा था दोनों का एक समय इक्कारार चुनु भी तो किसे पर पिस्ता बस मेरी हवस ही नहीं थी वो मेरी दोस्त भी थी तो बस हो गया फैसला थोड़ी बहुत घुमाई के बाद घर वापसी हो गयी , पता नहीं क्यों मन लग नहीं रहा था घर पर , पर इसके सिवा जाना भी कहा था
कुछ तस्वीरे थी जोधपुर की उनको देखने लगा कुछ अभी बाकी थी धुल्वानी , रति तस्वीर में भी भी इतनी जीवंत लगती थी की जैसे बस अभी के अभी बोल पड़ेगी दिल में बेचैनी सी बढ़ गयी होंठो पर मेरे मुस्कान थी आँखों में कुछ गीलापन सा था , ये भी अजीब हालात होते है जिंदगी में पल में हंसती है पल में रुलाती है , खाने के टाइम पिताजी से लम्बी बात चीत हुई , कुल मिला के बस टाइम कट रहा था मुझे इंतज़ार था था कब घरवाले सो जाये कब मैं चलूँ पिस्ता की तरफ
टाइम भी कुछ सुस्त सा हो गया कटे ही ना , तीन बार मैंने चेक किया की सब सो गए है नींद में फिर धीरे से दरवाजा खोला और अँधेरी गलियों को पार करते हुए चोर कदमो से चले जा रहे थे पिस्ता का दिल चुराने की कोशिश को , तो पहूँचे उसकी गली में जाना चोबारे में , देखा लाइट जल रही है मतलब जाग रही है पर सवाल वो ही चढू कैसे दीवार पर, पिछली बार टेलेफोन के पाइप से चढ़ा था पाँव में चोट लग गयी थी पर ना जाने कौन सा रिश्ता जोड़ लिया था उस मस्तानी से तो चलो ये परीक्षा भी दे ते है ,
बड़ी मेहनत लगी उसकी दिवार चढ़ने में पर वो मुलाकात ही क्या जिसमे धड़कने तेज ना हो , जिसमे कोई जुस्तुजू ना हो , दिवार पर चढ़ते ही ऐसी फीलिंग आई जैसे कारगिल ही जीत लिया हो अपनी चप्पल वाही दिवार पर राखी ताकि आवाज ना हो और चल पड़ा चोबारे के तरफ पसीना कुछ ज्यादा ही आने लगा था , दरवाजे को जो धुल्काया तो देखा की पिस्ता आराम से बेड पर बैठी टीवी देख रही थी मुझे देख कर मुस्कुराई
मैं- घरवाले सो गए क्या ,
वो- घर पे मैं बस अकेली ही हूँ
मैंने माथा पीट लिया , हद है यार ये लड़की भी ना पहले ना बता सकती थी क्या
मैं- जब तू अकेली थी , तो खेली पे ही ना बता देती खामखा परेशानी करवाई
वो- तो कौन सा घिस गए तुम , एक दिवार चढ़ने में ही मेरी नानी की तबियत कुछ ठीक नहीं है एडमिट करवाया है उनको तो भाई और माँ को जाना पड़ा ,
मैं- तो फ़ोन कर देती
वो- तू भी तो कर सकता था नंबर तो मालुम था ना
मैं- यार, तेरी नाराज़गी अपनी जगह पर मेरी तो सुन ज़रा मैं जोधपुर गया था तो बता कैसे मिलता तुझे
वो- पता है मुझे
मैं- किसने बताया
वो- तलाश, करने वाले तो खुदा को भी तलाश कर लिया करते है तुम तो फिर भी इंसान ही हो
मैं बेड पर उसके पास बैठ गया पिस्ता सरक आई मेरे पास मैंने उसके हाथ को पकड़ का अपनी छाती पर रख दिया वो मुझे देखने लगी मैं उसको देखने लगा खामोशिया कुछ कहने का प्रयास कर रही थी मैंने उसको थोडा सा झटका दिया और वो मेरे सीने पे आ गिरी .
कुछ देर मेरे साथ लेटी रही वो ना वो कुछ बोल रही थी न मैं फिर एकाएक वो खी हुई और बोली –“कुछ खाओगे ”
मैं- ना
वो- कुछ पिओगे
मैं- तुम्हारे होंठो की शबनब
वो- उसके आलावा
मैं – तुम्हारे बोबो का दूध
वो- दूध तो आता नहीं है
मैं- कुछ नहीं खाना पीना बस तुम दूर ना जाओ मेरे पास आओ बैठो जरा बाते करने आया हूँ तुम्नसे तुम फॉर्मेलिटी में फसी पड़ी हो
पिस्ता झट से मेरी गोदी में बैठ गयी और अपने होंठो को मेरे होंठो से रगड़ते हुए बोली-“क्या बाते करोगे ”
मैं- कुछ तो बाते करेंगे ही , पर तुम बताओ मेरे बिना क्या किया
वो- क्या करना था वो ही रोज का काम भाई की सगाई कर दी है, अगले हफ्ते गोदभराई कर देंगे सब ठीक रहा तो , इस दीवाली के बाद ही शादी भी हो जाएगी
मैं- ये तो ठीक है , वैसे तेरा भाई कब जायेगा ड्यूटी पे
वो- क्यों तुझे उसके रहने से कोई दिक्कत है क्या
मैं- ना मुझे क्या दिक्कत होगी बस तुमसे मिलने में थोड़ी कंजूसी होगी और क्या
वो- वो तो है, वैसे भाई अभी पंद्रह- बीस दिन तो रहेगा ही
मैं- फिर हम कैसे मिलेंगे
वो- जैसे अब मिल रहे है, रे पगले, जिनको मिलना होता है ना उनको कोई ना रोक सके है मेरी छोड़ तू बता क्या करके आया जोधपुर
मैं- कुछ ख़ास नहीं बस ऐसे ही कभी इधर कभी उधर , हां पर इतना जरुर है की कुछ ऐसी यादे लेकर आया हूँ जो हमेशा दिल में रहेंगी
वो- ओह ओह हो ! ऐसी कौन सी यादे ले आये हो कही दिल तो ना लगा के आये वहा पर
uffffffffffffffff ये दिलकी बाते ज़ालिम ने चोट भी वहा कर दी थी जहा पर ज़ख्म गहरा था रति का मासूम चेहरा झट से दिल में उतरता चला गाय , खो ही गया था आइने एक बार फिर से उसके आभास में अगर पिस्ता ने मेरा ध्यान ना तोडा होता तो
मैं- नहीं रे, ये यार व्यार अपने बस का नहीं है और वैसे भी तू भी तो कहती है न की ये राह बहुत मुश्किल है इस्पे चला न जाये तो फिर क्यों अपने को टेंशन लेनी , और वैसे भी अपन कोई सलमान खान तो है नहीं की लाइन ही लगी है प्यार करने वालियों की ,
पिस्ता बोली- एक किताब में पढ़ा था की जो प्रेम होता है ना, वो तो आम लोगो में ही होता है बड़े लोगो का क्या उनकी वो जाने , हम तो अपनी बता सकते ना ,
मैं- तुझसे मेरा क्या छुपा है , कुछ भी तो नहीं एक तू ही तो है जो मेरे अमन को सबसे बेहतर पढ़ती है
वो- तो फिर बताते क्यों नहीं
मैं- यार, तुझे क्या लगता है, तू बता हम जिस से भी बोलते है , बात करते है वो प्यार तो नहीं हो सकता ना
वो- मैं क्या बोलू-
मैं- चल फिर जाने दे और बता
वो- और कुछ नहीं
मैंने उसके सूट को पकड़ा और ऊपर की तरफ कर दिया काली जालीदार ब्रा में कैद उसके सुकोमल उभार बड़े सुन्दर लग रहे थे , उसकी बगलों में जो हलके हलके बाल थे ना मेरे दिल में सुगबुगाहट सी कर रहे थे , उसकी मोरनी सी सुन्दर गर्दन पर जो चूमा मैंने तो एक आह सी निकल पड़ी उसके गले से, उसकी पीठ पर हाथ गया मेरा और ब्रा के हूँक खुल गए, उसकी मुलायम छातिया मेरे कठोर सीने से टकराने लगी
उसकी ठोड़ी के निचले हिस्से को जो मैंने चूमना शुरू किया तो पिस्ता बरबस ही मेरे आगोश से निकल गयी और बोली-“तुम तो कह रहे थे की बस बाते ही करनी है ”
मैं- हां, बस बाते ही करनी है
वो- तो बाते करो ना
मैं- ये भी तो बाते ही है
वो-ना ना
मैं- आये, है तो काटेंगे एक रात तुम्हारी बस्ती में , चाहोगे तो कर लेंगे दो बात तुम्हारी बस्ती में
और मन के सूने आँगन में, अगर एक घटा तुम बन जाओगे , कर देंगे बरसात हम भी तुम्हारी बस्ती में
पिस्ता- ओह ! बातो को इस तरह मोड़ना भी आता है तुम्हे
मैं- हमे कुछ पता नहीं है , हम क्यों बहक रहे है , राते सुलग रही है दिन भी सुलग रही है
जब से है तुमको देखा हम इतना जानते है, तुम भी महक रहे हो हम भी महक रहे है””
पिस्ता- आज मूड में हो पुरे
मैं- तो इर तुम दूर क्यों हो आओ मेरे पास जरा
पिस्ता मेरे पास आकर खड़ी हो गयी
मैं- बरसात भी नहीं पर बादल गरज रहे है, सुलझी हुई है जुल्फे और हम उलझ रहे है
मदमस्त एक भंवरा क्या चाहता कलि से, तुम भी समझ रहे हो , हम भी समझ रहे है
अब भी हसीं सपने आँखों में पल रहे है, पलके है बंद फिर भी आंसू निकल रहे है
नींदे कहा से आये, बिस्तर पर करवटे है, वहा तुम बदलते हो यहाँ हम बदल रहे है “
पिस्ता बस कातिल अदा दिखाते हुए मुस्कुराने लगी उसके होंठ लरज़ने लगे मैं उसकी तरफ बढ़ा और बिना कुछ कहे बड़ी सादगी से उसके लबो को अपने लबो से जोड़ दिया उसकी शैतान सांसे मेरी साँसों से उलझने लगी थी , उसकी पीठ को सहलाते हुए मैं उसको चूमने लगा सच में पिस्ता को चूमने में बड़ा ही मजा आता था था उसको दरवाजे से लगाये मैं उसको किस पे किस किये जा रहा था थूक हमारे होंठो से नीचे टपक रहा था ना वो कम थी ना मैं
मैंने उसकी सलवार के नाडे को जो खीचा तो सलवार उसके पांवो में जा गिरी उसकी गोरी गोरी टाँगे बल्ब की रौशनी में चमकने लगी ब्रा की ही तरह उसने कच्छी भी जालीदार ही पहनी हुई थी मैंने जल्दी से अपने कपडे उतार दिए मैं उसमे समा जाने को पूरी तरह से आतुर हो उठा था ,ना कोई रोक थी ना कोई टोक थी बस वो थी मैं था और हमारी अधूरी हसरते थी होंठो पर एक प्यास थी दिल में एक आस थी कुछ जज्बात थे कुछ उल्फ़ते थी मैंने पिस्ता के सर के बालो में लगे रबड़ को खीच कर उसके बालो को आजाद कर दिया और उसके उस निखरे हुए रूप को निहारने लगा
पिस्ता ने मुझे धक्का देकर खुद से परे किया और बोली-“ मैं अभी आती हूँ ”
वो अपनी गांड को मच्काती हुई नीचे चली गयी उसी हालात में मैं अपने खड़े लंड को हिलाने लगा जल्दी ही वो वापिस आ गयी उसके हाथ में एक बाउल था , मैंने देखा उसमे रसमलाई थी
मैं- ये किसलिए
वो- मेरे हूँस्न का स्वाद इसमें मिला के चखो मजा आएगा
मैं मंद मंद मुस्कुराया पिस्ता ने कटोरे से रसमलाई को अपने होठो से लेकर बोबो पर गिराना शुरू किया आज तो क़यामत ही गिराने का इरादा कर रखा था इसने , उसके हलके गुलाबी होंठ पूरी तरह से रस से भीग चुके थे हूँस्न का छलकता हुआ जाम मेरे सामने था देर कितनी थी उसे अपने लबो से लगाने की, मैं पिस्ता के होंठो पर उसके सीने पर पानी जीभी फिराने लगा वो और रसमलाई गिराने लगी मैं बार बार सुको चाटने लगा पिस्ता के बदन में गर्मी बढ़ रही थी जब जब मैं उसकी रस से भीगी चूचियो की कोमल निप्पल को चूसता तो उसकी सिस्कारिया बता रही थी की पिस्ता के तन में कितनी आग भर गयी है