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Erotica Dilwale - Written by FTK aka HalfbludPrince (Completed)

Incest

Supreme
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अगला कुछ वक़्त बस ख़ामोशी में बीत गया काफ़ी दिनों बाद मैंने बाहर का खाना खाया था तो मुझे तो मजा आ गया , अब करने को कुछ था नहीं तो खाते ही मैं थोड़ी देर लेट गया फिर सीधा शाम को ही उठा, रति पास म ही बैठी कुछ कर रही थी वो मेरी और देखि और बोली

रति- सोते बहुत हो तुम

मैं- हां, सभी ऐसा कहते हैं मुझे आप बताओ

वो- मैं क्या बताऊ,

मैं- कुछ अपने बारे में

वो- कुछ खास नहीं है बस लाइफ कट रही है इतना काफी हैं मेरे लिए सब ठीक ठाक ही था पर कल मुसीबत आन पड़ी ये पूरी टांग ही छिल गयी है दोपहर में मैंने देखा काफ़ी दिन लगेंगे जख्म ठीक होते होते और निशाँ तो रह ही जायेंगे

मैं- आपके भाग की बात है वर्ना हादसे में क्या हो जाये

वो- हां,

मैं- रति बुरा ना मानो तो एक बात पूछ सकता हूँ

वो- बुरा मानने की क्या बात है पूछो जो पूछना है

मैं- तुम्हारी इन खूबसूरत आँखों में एक अजीब सी ख़ामोशी नजर आती हैं मुझे

वो- ऐसा क्यों लगा तुम्हे

मैं- तुम्हे मुझसे ज्यादा पता हैं ना

वो- हां

मैं- अब जो औरत अजनबी को घर में पनाह दे सकती है वो दिल कि बुरी तो हो नहीं सकती तो फिर तुमको क्या गम हो सकता है

वो- सच मेमें सही हूँ मस्त हूँ

मैं- देखो मेरा कोई हक तो नहीं है पर दिल में कोई बात हो तो उसे बता देना चाहिए क्या होता है काफ़ी बार हम घुटते रहते है दो पल के लिए मुझे अपना दोस्त मान कर ही शेयर कर लो

वो- अब छोटी मोटी परेशानिया तो चलती ही रहती हैं ना उसके बारे में क्या सोचना

मैं- हां बिलकुल चलो छोड़ो इन सब बातो को बस जल्दी से ठीक हो जाओ आप यही दुआ हैं मेरी तो

वो मुस्कुराई

मैं- कल तो सहर को घुमुंगा अच्छे से शाम को ही आऊंगा मैं

वो- ठीक है जैसे आप चाहो

वो- अपने बारे में बताओ कुछ बातो से तो बड़े दिलचस्प टाइप लगते हो

मैं- कुछ ख़ास नहीं है मेरे बारे में बस जिंदगी शुरू हो रही है धीरे धीरे से आँखों में कुछ सपने है छोटे मोटे ख्वाब पुरे करने की आस है बस यही अपनी कहानी हैं

वो- हम्म

मैं- आपने तो पूरा सहर अच्छे से देख लिया होगा ना, मैंने मेहरानगढ़ के किले के बारे में बहुत सुना है और ये भी की जोधपुर का तक़रीबन हर घर नीला है

वो- नहीं जी, काम से इतनी फुर्सत ही नहीं मिलती हां थोडा बहुत देखा है पर पूरी तरह से नहीं

मैं- तो जब आपके वो आये तो जाओ उनके साथ कही पे

वो- उनके पास वक़्त ही कहा मेरे लिए

मैं- ऐसा क्यों भला वो- कभी समझ ही नहीं पाई उनको

३ साल हुए शादी को , कुछ ज्यादा बात नहीं हूति हमारे बीच में बस हाय- हेल्लो इ फॉर्मेलिटी के अलावा पता नहीं उन्हें मुझ में क्या कमी नजर आती है ३ साल में एक बार भी नहीं देखा उन्होंने मेरी तरफ , बात करने की कोशिश की मैंने पर कुछ नहीं ...............


कमरे में एक ठंडी सी ख़ामोशी च गयी थी हम दोनों के दरमियान कुछ निजी सवाल अपने लिए जवाब मांग रहे थे रति जूझ रही थी अपनी ही परेशानियों से और मैं एक मुसाफिर अनजाना

पर तुम में क्या कमी है

वो- मेरे पति किसी और को चाहते हैं पर घरवालो के दवाब में उनको मुझसे शाद्की करनी पड़ी अब बताओ इसमें मेरा क्या दोष हैं अगर उनको प्रॉब्लम थी तो बात कर सकते थे अब मुझे लटका दिया गरीब माँ- बाप की बेटी हूँ नोकरी मिल गयी तो अच्छे रिश्ते के कारण ब्याह कर दिया मेरा पर अब हाल देखो मैं अपना हाल किस से कहू, कहते कहते रती की आँखे डबडबा आई मोटे मोटे आंसू बह चले



मैं भी थोडा सा उदास सा हो गया पर इन हालातो पर किसका काबू होता है जनाब उसकी सिसकिय कही ना कही मरे दिल में घाव कर रही थी हम तो अपने आप को कोसते थे की हम दुखी है जब रखा घर से बाहर कदम तो मालूम हुआ की गम होता क्या हैं मैंने रुमाल उसको दिया और कहा – पोंछ लो इन आंसुओ को ये बहुत कीमती होते है , अगर आंसुओ से किसी समस्या का हल निकलता तो आज कोई दुखी नहीं होता लो थोडा पानी पियो जी हल्का होगा तुम्हारा


रती देखो तुम्हारे पति का जो भी मेटर हो , वो उनका पर्सनल है पर जब उन्होंने तुम्हारा हाथ थमा तो उसी लम्हे से वो तुमसे जुड़ गए और फिर कहते हैं न की पति पत्नी तो जन्म-जन्मान्तर के साथी होते है देखो तुम अब जब भी मिलो उनसे तस्सली से बात करो उम्मीद है सब ठीक हो जायेगा ये दुरिया कब मिट जाएगी तुम्हे पता भी नहीं चलेगा

बातो बातो में रात काफी हो गयी थी तभी उसके पाँव में दर्द होने लगा

मैं- लाओ मैं दवाई लगा देता हूँ

वो- नहीं मैं लगा लुंगी

मैं- अपने इस दोस्त को इतना भी हक़ ना दोगी उसने बिना कुछ कहे ट्यूब मुझे दी और लेट गयी


मैंने मैक्सी को थोडा सा ऊपर किया काफी खाल चिल गयी थी उसकी वो जख्म ऐसा लगा जैसे की चाँद में दाग लगा दिया हो किसी ने मैंने दवाई ली और धीमे से उसको टच किया आः आह हलके से वो सिसक पड़ी ..
रती की दूधिया जांघो पर वो जख्म ऐसे लग रहा था जैसे की चाँद पर कोई दाग हो , मैंने उसकी टांग को थोडा सा और अपनी तरफ खीचा तो वो बोल पड़ी- आहिस्ता से


उसकी मैक्सी थोड़ी सी और ऊपर को हो गयी मुझे उसकी आधे से ज्यादा जांघो का नजारा मिल रह था पर मैं उस चीज़ के बारे में सोचना नहीं चाहता था मैंने फिर से मेरे हाथ से उसकी जांघ को दबाया पर पुरुष के स्पर्श से रती को थोडा सा तनाव भी हो रहा था उसकी केले के तने जैसी चिकनी टांगे बहुत मस्त लग रही थी उन मक्खन सी टांगो पर मेरे खुरदुरे हाथो को सपर्श अब मैं इस से ज्यादा और क्या कहू


मैंने रुई के फाहे को डेटोल से भिगोया और उसके जख्म को साफ़ करने लगा सीईईई की आवाज निकली उसके मुह से अब डेटोल की वजह से दर्द तो होना ही था मैंने कहा – बस बस हो गया दो तीन बार अच्छे से रुई को फिराया मैंने आस पास फिर क्रीम लगाने लगा मैं बहुत आहिस्ता से उसके पाँव पर अपना हाथ फिर रहा था रती के गोरे चेहरे पर एक गुलाबीपन सा उतर आया था धीरे धीरे से मैंने पूरी दवाई वहा पर लगा दी और उसकी मैक्सी को नीचे कर दिया


शुक्रिया- कहा उसने पीठ पर भी दवाई लगा दो कल भी नहीं लगा पाई थी मैं

मैं- वो थोडा सा मुश्किल होगा क्योंकि उसके लिए . मैंने बात अधूरी छोड़ दी

वो- मैं खुद तो लगा नहीं पाऊँगी , और फिर दर्द के मारे पूरी रात नींद भी नहीं आएगी


मैं- पर मैं कैसे ..........

वो- मैं समझती हूँ तुम्हारी कशमकश पर तुम्हे दोस्त समझा है तो इतना तो ट्रस्ट कर ही सकती हूँ ना

मैं- हां, तभी मुझे आईडिया आया मैंने बल्ब बंद कर दिया मैंने कहा अब ठीक है इस तरह तुम्हारे मेरे बीच पर्दा भी रहेगा और दवाई भी लगा दूंगा एक्चुअली मेरे मन में उसके प्रति थोडा सा अलग भाव था तो मैं उसको उस नजर से नहीं देखना चाहता था वर्ना मैं तो ठरकी नंबर वन


अंदाजे से मुझे पता चल गया था की रती साइड में होकर लेती है मैंने कहा मैं हाथ रखता हूँ तुम बताना कहा पर स्पॉट है वो- ठीक हैं
 

Incest

Supreme
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उसने अपनी मैक्सी को पीठ की तरफ से पूरा ऊपर कर लिया मैंने अपना हाथ उसकी पीठ पर टच किया कसम से बहुत जबदस्त फीलिंग आई इतनी मुलायम खाल थी उसकी मेरे छुते ही उसके बदन में सनसनाहट हुई , उसकी झुरझुरी को महसूस किया मैंने ,अपने हाथ को पीठ पर फिराते हुए थोडा सा ऊपर को किया मैंने तो उसकी ब्रा की स्ट्रेप से टकरा गया वो मैंने तुरंत हाथ हटाया वहा से और पूछा- कहा पर

वो- नीचे की तरफ मैं हाथ को लाया यहाँ

वो- नहीं और नीचे

मैं- यहाँ

वो- थोडा सा और नीचे

अब मेरा हाथ उसकी कमर के निचले हिस्से पर था मैंने कहा यहाँ

वो- थोडा सा और नीचे और इसी के साथ मेरा हाथ उसकी पेंटी के इलास्टिक से जा टकराया यहाँ से उसके कुलहो का हिस्सा शुरू होता था ,वो थोडा सा शरमाते हुए- बोली बस यही पर ही बहुत दर्द है

मैं- ठीक है, पर रती ये जो जगह हैं ना , देखो मेरा मतलब है की ........

वो- हां मैं समझ गयी तुम टेंशन ना लो

मैं- ठीक हैं

मैंने दवाई लगाना शुरू किया यहाँ पर थोड़ी मालिश करनी थी मैंने उसकी कच्छी को थोडा सा अपने स्थान से सरकाया उसके चुतद मेरे हाथो से टच होने लगे, हम दोनों में अब कोई बात नहीं हो रही थी बस चुपचाप मैं अपने हाथो को वहा पर फिर रहा था उसके बदन में गर्मी बढती सी लग रही थी मुझे , उसकी सांसो की सरगर्मिया चुहलबाजी सी करती लगी मुझे


मैं- क्या हुआ

वो- कुछ कुछ नहीं

मैं- खामोश क्यों हो

वो- पता नहीं

मैं- कुछ तो बात हैं

वो- कुछ नहीं

तभी मेरी चिकनी उंगलिया उसकी गांड की दरार की तरफ फिसली वो चिहुंकी उसका एक साइड का कुल्हा मेरे हाथ में था अबकी बार जान कर मैंने उसपर अपना हाथ फेर दिया रती के बदन में कंपकंपी छुट गयी पर तुरंत ही मैंने वहा से अपना हाथ हटा लिया वो बहुत लरजने से लगी थी मैं धीरे धीरे उसकी मालिश कर रहा था ये बात और भी की बीच बीच में मुझसे थोड़ी बहुत छेड़खानी भी हो जाया करती थी करीब १५-२० मिनट तक ऐसा ही चलता रहा उसका तो पता नहीं पर मेरा हाल बहुत बुरा हो गया था मेरा लंड फटने को तैयार था



मैंने- कहा हो गया ,

उसने शुक्रिया अदा किया .

टाइम भी ज्यादा हो गया था तो अब बस सोना ही था रती अपने बिस्तर पर थी मैं पास में एक गुदड़ी पर लेट गया अब घर जैसा कहा मिले पर अजनबी सहर में इतना आसरा भी किसी फाइव स्टार से कम नहीं था नींद भी जल्दी ही आ गयी पता नहीं रात के कितने बजे थे कमरे में घुप्प अँधेरा छाया हुआ था बस पंखे के चलने की ही आवाज आ रही थी मेरी आँख खुली तो मैंने अपने शारीर पर कुछ महसूस किया तो पता चला की मेरी छाती पर रती का हाथ है

वो सरक कर मेरी और खिसक गयी थी मेरे गालो पर उसकी साँसे पड़ रही थी , ये बात मेरे ध्यान में आते ही मेरा लंड हरकत में आ गया चूत मेरे इतने पास थी , पर मुझे ख्याल आया की कही ये मुझे परख तो नहीं रही पर जल्दी ही पता चल गया की वो बस एक ख्याल था वो तो मस्त थी अपनी नींद की दुनिया में हम जागती आँखों से परेशां

अब मीच ली आँखे और करने लगे प्रयास सोने का देर सवेर नींद आ ही गयी
अगला दिन काफ़ी अरमान लिए आया कल का पूरा दिन बेफआलतू में ही कट गया था सुबह उठा तो रति मुझ को दिखी नहीं थोडा फ्रेश वगैरा होकर आया तब भी वो नहीं थी ये कहा गयी थोडा इंतज़ार किया पर वो ना आई करीब आधा घंटा हो गया तब वो आई,


कहा गए थे


वो- बस जरा पास की दुकान तक गयी थी


मैं- मै चला जाता पैर में लगी पड़ी है फिर भी , ये लापरवाही ठीक नहीं हैं


वो- पर जाना भी जरुरी था


मैं- आप जानो मैं ये कह रहा था की मैं चलता हूँ शाम को आऊंगा कुछ काम हो तो बताओ


वो- काम कुछ भी नहीं


मैं- तो मैं जाता हूँ


वो- एक मिनट रुको , वो तुम्हारे पैसे तो लेते जाओ तुम्हे जरुरत पड़ेगी उसने अपनी अलमारी खोली और मुझे मेरे पैसे दिए मैंने मन ही मन शुक्रिया कहा उसको और ये पंछी निकल पड़ा आजाद आसमान में उड़ने को , अब समय था रंगीले राजस्थान के रंगों में रंग जाने का , ऑटो पकड़ा उसको पता बताया और सफ़र शुरू हो गया टाइम तो अभी कुछ ना हुआ था पर धुप काफी हो गयी थी ऑटो में बैठे मैं सहर को देख रहा था हवा मेरे बालो से टकरा रही थी



औटोवाला भी साला लीचड़ ही था , बहुत देर लगादी उसने पर शुकर था की पंहूँचा ही दिया ,राजे महाराजो के किस्से कहानिया तो बहुत सुने थे हमने आज उनको अनुभव करने का समय था अपने बैग को सँभालते हुए मैं उतरा और वही पास में खड़े होकर नीनू का इंतज़ार करने लगा मेरे चारो तरफ चहल पहल मची पड़ी थी कुछ देसी- कुछ विदेशी लोग वो छोटा सा बाजार तरह तरह के सामान जैसे की कोई मेला लगा हो ,



थोड़ी देर बाद मेहरबान भी आ गयी, क्या गजब लग रही थी वो आज एक दम फैशन में आँखों पर चश्मा लगाये खुले बाल हमारा तो दिल ही धडक गया मैं तेजी से बढ़ा उसकी और , वो मुझे देख कर मुस्कुराई


कैसी हो पूछा मैंने


वो- मस्त तुम बताओ


मैं- मैं भी ठीक बस तुम्हारी यद् आई


वो- आ तो गयी हूँ


बाते करते करते हम लोगो ने पास लिए और चल दिए सच कहू कुछ तो बात थी राजस्थान में किले का नजारा बड़ा मस्त था ऐसे लग रहा था की जैसे ये ही अपने आप में एक शहर हो क्या ठाठ बात आज तो ये फिर भी समय की मार झेल रहा है पर अपने दिनों में जब ये जवान होगा खूब होगा मैंने नीनू का हाथ पकड़ा और हम एक साइड में बैठ गए


वो- क्या हुआ

मैं- थोडा सा थक गया हूँ


वो- अभी से , अभी तो कुछ भी नहीं देखा


मैं- हां यार सुबह से कुछ खाया पिया भी नहीं थोड़ी प्यास भी लग आई है


वो- लो पानी पियो और चलो फिर ऊपर से पुरे सहर को देखोगे तो भूख प्यास सब मिट जाएगी
 

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मैं पानी पीते हुए ठीक हैं तो फिर चलो ओर जल्दी ही हम उस अद्भुद नज़ारे को देख रहे थे शहर ऐसे लग रहा था की कोई नील का खेत हो हर तरफ एक आभा सी छाई हुई थी मनमोहक नजारा मैंने बैग से कैमरा निकाला और फोटो खीचने लगा तभी मेरी नजर दूर बहुत दूर रेत के समंदर पर पड़ी , सहर दूर कड़ी धुप में चमकता हुआ सा वो नजारा अब क्या कहू मैं उसके बारे में खो सा गया मैं तो


नीनू- क्या हुआ क्या देखने लगे


मैं- कुछ नहीं ऐसे ही


वो- मस्त दीखता हैं न इधर से


मैं- हां यार


मैं- तेरी फोटू खीछु क्या


वो- हां वो जो तोप है न बड़ी सी उधर चल के खीच


नीनू की काफ़ी तस्वीरे खीची, अलग अलग तरह से हंसती मुस्कुराती अपने आप में मस्त लड़की दो चार फोटो हमने साथ खिचवाई आज का दिन बड़ा शानदार था बस हम दोनों थे मैं बस नीनू के साथ इन्ही लम्हों को तो जीना चाहता था ऐसा ख्याल मेरे दिल में आया



मैं- इस किले की भी कोई कहानी होगी न


वो- होगी पर मुझे पता नहीं वैसे भी कितनी सदियों से ये ऐसे ही हैं कितनी कहानिया यहाँ बनी होंगी और मिट गयी होंगी


मैं- बात तो तेरी सही हैं


मैं- नीनू, कितनी छोटी- मोटी प्रेम कहानियो को जवान होते देखा होगा ना इसने


वो- छोटी- मोटी क्या होता, प्यार तो प्यार होता हैं चाहे राजाओ का हो या आम इंसानों का


मैं- तुझे बहुत पता है प्यार के बारे में


वो- मैं कोई ना समझ हूँ क्या तेरी तरह


बाते करते करते हम लोग एक ऐसी जगह पर आ गए जहा थोड़ी सी छाया थी और शान्ति भी हम बैठ गए वहा पर की मेरी नजर पड़ी दीवार पर कुछ लोगो ने अपने नाम लिख रखे थे जैसे – मनोज- पिंकी

रेखा- राज फलाने फलाने


मैं- देख नीनू हम भी अपना नाम लिखे क्या


वो- ये तो कोई प्रेमी जोड़ी की कारस्तानी लगती है पर हम कोई प्रेमी थोड़ी ना है


मैं- दोस्त तो हैं ना

वो- दोस्तों का नाम कौन लिखे है रे पगले


मैं- तो नाम लिखने के लिए प्यार करू के तुमसे


वो- प्यार और मुझसे मजाक मस्त करते हो तुम


मैं- तुमसे प्यार नहीं कर सकता क्या


वो – छोड़ो ना बेकार की बाते, तुम्हे नाम लिखना है लिख दो तुम्हारी तस्सली हो जायगी


मैं- और कही सच में प्यार हो गया तो


वो- नहीं होगा


मैं – हो गया तो


वो- तुम्हारी दिक्कत होगी वो मेरी ना वैसे भी ये प्यार वफ़ा सब किताबो फिल्मो में ही ठीक लगते है अपने पास और भी तो बाते है वो करो ना


मैं- अगर कही मुझे तुमसे प्यार हो गया तो ...........


वो काफ़ी देर तक खामोश रही फिर बोली- देखो अभी तो नहीं हुआ हैं ना तो फिर अभी क्यों सोचना जब होगा तब की तब सोचेंगे हम उस पल के लिए अपने इस पल को क्यों ख़राब करे चलो आओ खाना खाते है मुझे पता था तुम तो भूखे ही मिलोगे तो मैं ले आई थी



उस भोली सी लड़की की यही बाते तो मार जाती थी मुझे बड़ी ही खूबसूरती से बातो का रुख मोड़ दिया था उसने हँसी ठिठोली करते हुए हमने खाना ख़तम किया और फिर से लगे टहलने कभी इधर कभी उधर खुद को किसी राजा से कम न समझ रहा था मैं , मैंने देखा की एक औरत कुछ सामान बेच रही है उसके पास एक झुमको की जोड़ी देखि मुझे भा गयी बिना मोल भाव किये मैंने खरीद लिए


नीनू- झुमके किसके लिए लिए तुमने


मैं- है कोई

वो- बताओ ना

मैं- कहा ना है कोई

वो- कही मेरी सौतन तो नहीं
मैं उसकी बात को सुन कर हंस पड़ा और कहा – अच्छा जी तो बात यहाँ तक पहूँच गयी है बस हम ही अनजान रह गये


वो- ऐसे ही कह रही थी तुम्हे जलाने को तुम सच मान बैठे


मैं- हम तो इसी ग़लतफहमी में भी उम्र गुजार दे तुम कहो तो सही


वो= बड़े शायराना हो रहे हो आजकल बात क्या है कही सची में तो किसी से दिल नहीं लगा लिया है तुमने


मैं- हमारी ऐसी किस्मत कहा


वो- तुम्हारा कुछ पता नहीं फितरत जो आवारा है तुम्हारी


मैं- तो फिर इस आवारापन को कोई मुकाम दे क्यों नहीं देती तुम


वो- मैं ही क्यों


मैं- तुम ही क्यों नहीं


वो- ना जी ना


मैं- कह भी दो हां


वो- दिल्लगी करते हो


मैं- मोहबात है जो छह नाम दे दो


वो- सच में


मैं- तुम जानो


वो- इतनी अच्छी लगती हूँ क्या


मैं- तुम ही जानो


वो- तुम तो बताओ


मैं – कुछ नहीं बताने को


वो- क्यों भला


मैं- जो सब कुछ जाने उसको क्या बताना मेरा हाल कहा तुमसे जुदा है


वो- बातो में कोई ना जीते तुमसे


मैं- कुछ बाते समझो भी तुम


वो- समय का इशारा किस और


मैं- ढलती छाँव में जवान मोहब्बत की और

वो- और अंजाम क्या


मैं- मैं ना जानू


वो- तो फिर किसको पता


मैं- जो उसके रंग में रंगे

वो- पर कौन

मैं – हम तुम

वो- ना ना

मैं क्यों नहीं ,

वो- चलो छोड़ दो वक़्त की लहरों पर खुद को देखते है क्या लिखा तकदीर की कलम ने


मैं- तुम भी ना

वो- चलो अब ये झुमके दे भी दो मुझे जानती हूँ मेरे लिए ही ख़रीदे हैं तुमने मैं मुस्कुराया और झुमके उसके हाथो में दे दिया



मैं- झुमको के साथ पायल भी खरीद लू


वो- एक लड़की को पायल पहनाने का मतलब जानते हो


मैं- हर चीज़ का मतलब होना जरुरी हैं क्या


वो- कुछ चीज़े बेमतलब भी तो नहीं होती ना


मैं- चल फिर जाने दे


साँझ ढलने लगी थी तपता सूरज अब ठंडा हो रहा था उसकी लालिमा में मेरे अरमान अपने सवालों का जवाब तलाश रहे थे नीनू बोली- अब मैं चलती हूँ कल तुम फ़ोन करना फिर मैं बताउंगी मैं- ठीक हैं उसने ऑटो पकड़ा और चली गयी मैं भाग कर वापिस गया और एक जोड़ी पायल पिस्ता के लिए खरीद ली वो भी मुझसे कही ना कही जुड़ गयी थी , ये और बात थी की कुछ बाते बस बाते ही थी उनका कोई मतलब नहीं था कुछ एर के लिए मैं कही खो सा गया था सोचने लगा की वो मेरी ज़िन्दगी में कहा फिट होती है कुछ बातो का अंजाम तक पंहूँचा भी तो जरुरी होता हैं



दिल में एक तीस सी लगने लगी पिस्ता से मिलने की ललक सी उठी पर अब वो कहा मैं कहा था मैंने सोचा क्या उसके घर फ़ोन करू पर फिर ये ख्याल भी कुछ जंचा नहीं चला था मैं जो खुद को तलाशने इस राहे सफ़र पर लोग मिलते गए मैं उलझ ता गया , पूरा दिन हंसी ख़ुशी बीता था मेरा पर अब ये शाम की उदासी अपना असर दिखाने लगी थी मुझ पर ये पता नहीं क्या बात थी मेरे साथ पता नहीं कौन सा दुःख था जो कभी दूर होता नही थी जिंदगी एक हसीं साए की तरह बाहे फैलाये खड़ी थी मेरे इस्तकबाल के लिए बस मुझे ही कदम बढ़ाना था



सिटी बस के धक्के खाते हुए थका हारा मैं मास्टरनी के घर पंहूँचा और बिस्तर पर पड़ गया


रति- कैसा दिन बीता तुम्हारा , थके हाल लगते हो


मैं- दिन तो मस्त बीता एकदम जिंदगी में पहली बार खुली हवा में साँस जो ली, पर थक भी बहुत गया हूँ,


वो- नाहा लो तब तक मैं तुम्हारी लिए चाय बनाती हूँ


मैं- ठीक है जी


पसीने से भीगे शरीर पर जो ठंडा पानी पड़ा तो कसम से लगा की ज़िन्दगी के सबसे बड़े सुख को पा लिया हैं काफ़ी देर तक खूब मल मल कर नहाया रूह तक ताजगी का एहसास हो गया मुझे , फिर रति के हाथो से बनी मस्त अदरक वाली चाय मजा आ गया



चाय पीने के बाद मैंने पूछा- डॉक्टर को फिर से दिखाया क्या

वो- ना,

मैं- तो ठीक है चलो फिर अभी चलते है

वो- पर अभी कैसे चल सकते है


मैं- काम तो होता रहेगा उसने वैसे भी तीन दिन का कहा था जल्दी से तैयार हो जाओ चलते है अभी के अभी



तो करीब आधे घंटे बाद पब्लिक ऑटो में एक दुसरे से सटे हुए हम हिचकोले खाते हुए जा रहे थे रति ने एक ढीला सा सूट डाला हुआ था नार्मल सा बस चेकअप ही तो करवाना था शाम का समय लोगो के घर आने का टाइम थोड़ी सी भीड़ मैं सरका उसकी ओर हमारे पाँव एक दुसरे से सटे हुए रगड़ खाए मेरे मन में कुछ कुछ होने लगा अब मन पर किसका जोर वो तो कभी भी बहक जाये उसको क्या लाज शर्म मेरी कोहनी उसकी छातियो से हल्का हल्का सा छु रही थी इसका अहसास उसको भी था ऊपर से ऑटोवाले ने एक सवारी को और एडजस्ट करने को कहा थोडा बहुत सरकम सरकाई हुई मैं और सरका उसकी और उसकी मांसल जांघो से मेरी टाँगे उलझने लगी रति ने अपना हाथ मेरे घुटने पर रख दिया


मैंने- पूछा कोई परेशानी


वो- नहीं और मुस्कुराई

मेरे शारीर में उन हरकतों से गर्मी बढ़ने लगी सफ़र अपनी जगह पर मेरे दिमाग में कुछ और ही चलने लगा मैं थोडा सा बहकने अलग और बार बार अपनी कोहनी से उसके बोबो को टच करने लगा थोड़ी देर बाद ऑटो ने ब्रेक लगाये तो मैंने अपने हाथ से उसकी कोमल जांघ को दबा दिया पर उसने कोई रिएक्शन नहीं दिया मेरे दिल का चोर थोडा सा गुस्ताख होने लगा



ऑटो फिर से चल पड़ा पर मैंने अपना हाथ उसकी जांघ से नहीं हटाया बल्कि थोडा थोडा सा उसको सहलाता रहा रति के चेहरे पर काफ़ी तरह के भाव आते जा रहे थे जिन्हें मैं समझने की कोशिश करने लगा ये छोटे मोटे सफ़र भी अक्सर कुछ ऐसे काम कर दिया करते है जो हमेशा हमे याद रहते है अब जो मैंने उसकी जांघ को थोडा सा दबाया तो उसने फ़ौरन अपना हाथ मेरे हाथ पर रखा और थोडा सा दबा दिया कठोरता से .
मेरी तो जैसे साँस ही रुक गयी उसने अपना हाथ वैसे ही रखा उसके बाद मैंने कुछ नहीं किया और ख़ामोशी से बैठा रहा कुछ देर बाद नर्सिंग होम आया , हम उतरे , डॉक्टर ने चेक वगैरा किया कुछ खास था नहीं ज़ख्म भरने में टाइम तो लगना ही था एक दो दवाई और जोड़ दी करीब घंटे भर बाद हम फारिग हुए बड़े शहरों की रात हम वहा से थोड़ी दूर पैदल ही आ गए एक जगह पर आइसक्रीम वाला खड़ा था रति बोली- आओ कुल्फी चखते है और हम वहा पर पहुँच गए


वो काफी रिलैक्स लग रही थी उसके चेहरे को छूती जुल्फे जिन्हें वो बार बार साइड में करती थी कुल्फी चखते हुए मेरा ध्यान उसके नरम होंठो पर था जो कुल्फी की मलाई से सने हुए थे ऐसे लग रहा था जैसे की उन से ही मलाई टपक रही हो मेरा चंचल मन मचलने लगा वैसे ही काफ़ी दिनों से अपना काम हुआ नहीं था ऊपर से चढ़ती जवानी हाल मेरा बुरा करू तो क्या करू गाँव में होता तो पिस्ता थी बिमला थी पानी निकाली का जुगाड़ था अपने ख्यालो में कुछ ज्यादा ही खो गया था मैं कुल्फी कब पिघल कर नीचे गिर गयी पता ही नहीं चला तन्द्रा तब टूटी जब रति ने मुझे हिलाया कहा खो गए तुम देखो कुल्फी भी ख़राब हो गयी रुको मैं एक और लेती हूँ तुम्हारे लिए
मैं- नहीं कोई जरुरत नहीं पर वो कहा सुनने वाली थी मेरी

एक बार फिर से हम चलने लगे की उसने पूछा- गर्लफ्रेंड की याद आ गयी थी क्या
मैं- मेरी गर्लफ्रेंड है ही नहीं
वो- तो फिर किसके ख्यालो में खो गए थे
मैं- कहा खोया था मैं कही भी तो नहीं

वो-झूट क्यों बोलते हो , कही तुम्हारी उसी दोस्त की याद तो नहीं आ गयी जिसके साथ आये हो
मैं- ना
वो- पर किसी का तो ख्याल था ही
मैं- वो तो बस ऐसे ही
वो- ओह कम ओन्न बता भी दो न देखो चेहरे का रंग कैसे उड़ गया हैं तुम्हारा

मैं- बस ऐसे ही कुछ याद आ गया था
वो- वो ही तो मैं पूछ रही हूँ की क्या याद आ गया , अगर मुझे अपनी दोस्त मानते हो तो फिर बता भी दो वर्ना मैं ये समझूंगी की तुम मुझे दोस्त नहीं समझते हो
मैं उलझा उसकी बातो में
मैं- कही सुनकर तुम नाराज ना हो जाओ
वो- नहीं होउंगी
मैं- पक्का
वो- हां बाबा पक्का
मैं- वो दरअसल जब तुम कुल्फी चख रही थी तो मेरा ध्यान तुम्हारे होंठो पर चला गया था
रति एक पल के लिए शॉक हो गयी पर फिर बोली- तो क्या ओब्सेर्व किया तुमने
मैं- तुम बहुत खूबसूरत हो
वो- हम्म , क्या सच में
मैं- तुम्हे नहीं पता क्या
वो- अगर ऐसा हैं तो मेरे पति मेरी तरफ क्यों नहीं देखते
मैं- मैं कुछ नहीं कह सकता तुम लोगो के आपस का मामला है तुम्ह ही बात करनी होगी
वो- तुम मेरे पति होते तो तुम्हारा क्या नजरिया होता
मैं- मैं कैसे कह सकता हूँ
वो- क्यों नहीं कह सकते जब तुम मेरी खूबसूरती को निहार सकते हो उसके बारे में बात कर सकते हो फिर ये इमेजिन करने में क्या दिक्कत हैं
मैं- दिक्कत हैं क्योंकि मैं नहीं जानता की उनकी सोच किस तरह से हैं मेरा मतलब हर व्यक्ति के विचार अलग अलग होते है जैसे की देखो मुझे तुम्हारे लम्बे बाल पसंद है जबकि किसी को तुम छोटे बालो में पसंद आओगे
वो मेरे हाथ को थामते हुए, एक बार इमेजिन तो करो ना अच्छा चलो तुम्हारे तरीके से तो बताओ
मैं- किस तरीके से बताऊ, मैं तुम्हे जानता ही कितना हूँ
वो- अच्छा जी तो किसी अजनबी को उस तरह की नजर से देख सकते हो लड़की को ताड़ लो एक्सरा कर लो उसका अपनी निगाहों से वो ठीक है पर जब कोई डायरेक्ट पूछ ले तो बोलती बंद हो गयी

मैं- देखो तुम मेरी बात समझ नहीं रही हो
वो- तुम मेरी बात समझो , देखो ऐसा मान लो की मैं ही वो लड़की हूँ जिसकी तलाश हैं तुम्हे इस से तुम्हारे लिए थोडा आसन होगा
मैं- उलझाओ न मुझे इन बातो के तार में
वो- सच में
मैं- देखो मुझे नहीं पता की वो कौन होगी कैसी होगी जो मेरे दिल को धड़का पाएगी और फिर कहा आसन होता है अगर कोई पसंद भी आ जाये तो उसको अपना बना लेना अपने चाहने ना चाहने से क्या हो


वो मेरे और थोडा पास आई और बोली- अपनी आँखे बंद करो और उसके बारे में सोचो जिसे तुम पसंद करते हो जिसके ख्याल हमेशा तुम्हारे तस्सवुर में रहते है
मैं- पर तुम तो अभी बोल रही थी की तुम्हे इमेजिन करू
वो- तो कहा कर रहे हो तुम
मैं- कोशिश करता हूँ मैंने एक ठंडी सांस ली और अपनी आँखे बंद की और सोचने लगा मुझे पता था की शायद नीनू आएगी मेरे ख्यालो में पर जो चेहरा मेरी नजरो में आया मैं खुद हैरान रह गया

मैंने झट से अपनी आँखे खोली चेहरे पर हैरानी थी मेरे
क्या हुआ कहाःउसने
मैं- कुछ नहीं
वो- कौन दिखी
मैं- जाने दो ना
वो- अरे सस्पेंस में ना छोड़ो
मैं- रति, पता है मैं सोच रहा था की या तो नीनू होगी या पिस्ता भी हो सकती है पर ये तो कुछ और ही दिखा बस एक अजनबी सी परछाई सी दिखी मुझे झलक भर कुछ देख भी ना पाया मैं ठीक से पर जाने दो इनसब को विअसे भी तकदीर जिस ओर ले जाएगी उधर ही जाना होगा आओ चलो घर चलते है मुझे भूख भी बहुत लगी है
उसके बाद उसने भी कोई सवाल नहीं किया हम ने ऑटो लिया और घर आ गए मुझ मेरी उसी उदासी ने घेर लिया था ख़ामोशी में ही खाना हुआ मैंने बिस्तर का एक कोना पकड़ लिया मेरी धड़कने थोडा अजीब व्यवहार कर रही थी मैंने सोचा की आखिर मुझे इसके बारे में सोचना ही क्यों है रति ने खामखा मुझे उलझा दिया था ये बस महज बाते थी कोरी बाते वैसे भी जिंदगी की बस शुरुआत ही थी अब कौन जाने भविष्य में क्या हो

सो गए क्या पूछा उसने
मैं- नहीं तो
वो- क्या सोच रहे हो
मैं – तुम्हारी खूबसूरती के बारे में
वो- सच में
मैं- और नहीं तो क्या
वो- तुम्हे अच्छी लगी मैं
मैं- हां
वो- कितनी अच्छी
मैं- कितनी तो पता नहीं पर अच्छी हो देखो तुमने मेरे रहने और खाने का खर्चा जो बचा दिया
वो- पर बाजार में तो किसी और नजर से देख रहे थे तुम
मैं- अब नजरो की कारस्तानी नजरे जाने उनपे कहा मेरा बस चलता है
वो- बाते बड़ी चोखी करते हो तुम
मैं- जी मैं तो बस बात करता हूँ
मुझे थोड़ी नींद आ रही है मैं सोता हूँ , आदमी को रात को नरम बिस्तर मिल जाये ये भी जिन्दगी का परम सुख है उस एक गुदड़ी की एक साइड में रति थी दूसरी तरफ करवट लिए मैं उअर हमारे आलावा एक पंखा जो चल कम रहा था आवाज ज्यादा कर रहा था , रात को मैं पानी पीने के लिए उठा तो देखा की रति बिलकुल मरे पास ही है उसकी पीठ मेरी तरफ थी मैक्सी घुटनों से थोडा ऊपर तक चढ़ी पड़ी थी रति की गोल मटोल छातिया किसी धोंकनी की भांति ऊपर नीचे हो रही थी उसके इस रूप को देख कर मेरे अन्दर बेईमानी आने लगी


मेरे लंड में कब कसावट आ गयी पता ही नहीं चला मैं थोड़ी देर तक उसको देखता रहा लालच मुझ पर सवार होने लगा मैंने उठ कर बल्ब बंद किया और धीरे से उसके पास सरक गया हालाँकि मैं जनता था की इस औरत ने मुझे पराये सहर में आसरा दिया है पर हवस मेरे सोचने समझने की शक्ति को थोडा सा कम कर रही थी , मैं थोडा सा सरका और उस से चिपक गया उसकी गांड पर मेरे लंड को धीरे धीरे से रगड़ने लगा मेरा बदन ऐसे हो गया की पता नहीं कितने दिन इ बुखार चढ़ा हो

मैंने अपने कांपते हाथ को उसकी चूची पर रख दिया और उसकी तरफ देखा वो नींद में बेखबर सोयी पड़ी थी हौले से उसको दबा मैंने बड़ा अच्छा लगा बिना ज्यादा दवाब डाले मैं सहलाने लगा दो दो को चोद दिया था पर आज ऐसे लग रहा था की जैसे पहली बार हो मैंने अपने लंड को बाहर निकाल लिया और उसकी गांड पर रगड़ने लगा अब डर तो था पर मजा भी बहुत आ रहा था थोड़ी देर ऐसे ही निकल गयी फिर रति ने करवट ली और मेरी तरफ हो गयी मेरे पास बहुत पास

उसकी साँसे मेरे गालो पर पड़ने लगी मुझे लगा की जैसे मेरी तो सांस ही रुक गयी हो मैं वहा से सरकने ही वाला था की हद हो गयी नींद में ही उसने मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया और अपनी एक टांग को मेरे ऊपर रख दिया अब मैं भाग भी नहीं सकता था वहा से इधर औरत के हाथ की गर्मी पाते ही लंड महाराज और फुफ्करनी लगे मेरी परेशानी हुई दुगनी इधर बदन में वासना के कीड़े तैर रहे थे दूसरी तरफ दिमाग कुछ और कह रहा था बदन क रोंगटे खड़े हो गए थे पर ये पता नहीं था की डर के है या रोमांच के


मैंने रति के हाथ को अपने लंड पर दबाया तो मजा आया मैंने सोचा थोडा सा मजा लेना चाहिए मैं उसके हाथ को अपने हाथ से लंड पर हिलाने लगा धीरे धीरे से जैसे की वो ही मेरी मुठ मार रही हो धीरे धीरे से लंड और खूंखार होने लगा दिलो दिमाग चीख चीख कर कह रहा था की चोद दे इसको चोद दे इसको पर हाई रे किस्मत पर थोड़ी देर बाद मुझे ऐसे लगा की जैसे उसकी पकड़ लंड पर कसती जा रही हो मैं सोचा कही रति जाग तो नहीं गयी तो मैं रुक गया और उसको गोर से देखने लगा पर वो वैसे ही शान्ति से सो रही थी

पर लंड को जो गन्दी आदत थी वो बिना पानी निकाले कहा मानने वाला था वर्ना फिर वो जीने नहीं देता तो मैं फिर से उसके हाथ से लंड को हिलाने लगा बीच बीच के एक दो बार और लगा मुझे की उसकी पकड लंड पर कसी हो पर अब मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया और थोड़ी देर बाद मेरा सख्लन हो गया ढेर सारा वीर्य उसके हाथ पर गिर गया थोड़ी शान्ति सी बी मिली मैंने अपनी शर्ट से उसके हाथ को साफ़ किया और फिर सो गया
सुबह मैं उठा तो रति बिस्तर पर ही बैठी अखबार पढ़ रही थी उसने मुस्कुरा कर मेरी तरफ देखा और बोली- रात को अच्छी नींद आई
ये सुनते ही मैं थोडा सा सकपका गया पर फिर खुद को सँभालते हुए बोला- हां ठीक नींद आई
रति- कल रात को गर्मी बहुत थी ना, ये पंखा भी न बराबर ही हैं सोच रही हूँ की एक कूलर ले ही लू अब ये गर्मी सही नहीं जाती
उसने मेरी और देखते हुए कहा उसकी नजरे मुझ पर ही जमी थी मुझे बिलकुल नहीं समझ आया की ये बात वो किस रूप में कह रही है मैं बस उठा और बाथरूम में घुस गया वो ही सही लगा मुझ को बार बार यही ख्याल सटा रहा था की कही रात को रति जाग तो नहीं रही थी फिर मैंने सोचा की अगर ये जाग रही होती तो रात को ही कुछ ना कुछ तो बोलती जरुर काश कोई उपाय होता जिस से दुसरे के मन की बात को समझ सकते तो मेरी ये मुश्किल आसन हो जाती पर ऐसा मुमकिन नहीं था
 

Incest

Supreme
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859
64
खैर नाहा धोकर हुआ तैयार ,
मैंने रति से पूछा की स्कूल कब जाओगे
वो- कुछ दिन के लिए छुट्टी ली है और फिर मेरी स्कूटी भी ठीक करवानी है
मैं- मैं करवा लाता हूँ उसको
वो- नहीं इधर पास में ही एक ऑटो शॉप है उधर ही हो जायेगा
मैं- ठीक है और कुछ काम हो तो बताओ कुछ सामान वगैरा मंगवाना हो या कुछ भी
वो- नहीं सब ठीक ही है वैसे तो मुझे आज मंदिर जाना था पर तुम अपना प्रोग्राम एन्जॉय करो मैं फिर कभी हो आउंगी इतना भी जरुरी नहीं हैं
मैं- जरुरी क्यों नहीं है जब जाना है तो जाना है तुम फटाफट से तैयार हो जाओ चलते है फिर मेरा क्या हैं मैं तो इधर घुमने ही आया हूँ तुम्हारे साथ घूम लूँगा इसी बहाने क्या पता मेरी भी कोई दुआ कबूल हो जाये
रति हंस पड़ी और बोली- तुम आखिर हो क्या चीज़
मैं- बस एक मुसाफिर
वो- ठीक है मैं बस यु तैयार हो जाती हूँ
मैं- हां
रति बाथरूम में घुस गयी मैंने सोचा की नीनू को फ़ोन करलू तो मैं घर से बाहर आ गया एसटीडी की तरफ मैंने नीनू को किस्सा बताया तो वो काफी नाराज हुई , अब मेरी वजह से उसके प्लान की बैंड जो बजनी थी मैंने उसको समझाया जैसे तैसे करके तो उसने कहा की वो कल नहीं चल पायेगी उसके मामा की छुट्टी है कल तो अब परसों ही मिलेंगे मैंने कहा ठीक है जैसे तुम कहो

ये ज़िन्दगी कैसे कैसे रंग दिखा रही थी मुझको कहा तो मैं क्या था और अब क्या हो गया था करीब आधे घंटे बाद जब मैं वापिस गया तो रति साडी पहन रही थी उसको उस तरह देख कर फिर से मन में उछल कूद सी होने लगी बिना आँचल के उसके ब्लोउज का कातिल नजारा उसके ठोस संतरे जैसे कह रहे हो दूर क्यों खड़े हो आओ हमारा रस निचोड़ लो मुझे देख कर रति ने अपने पल्लू को ऊपर किया और बोली बस ५ मिनट तैयार हो ही गयी हूँ

मेरा मन तो कर रहा था की तुम कभी तैयार होना ही मत बस ऐसे ही इस सेक्सी नज़ारे को मुझे दिखाती रहो मेरी धडकनों की सरगोशिया कुछ तेज सी हो गयी थी रति की पतली कमर ऊपर से उसने अपनी साडी को नाभि से थोडा नीचे की तरफ बाँधा हुआ था तो गजब लग रही थी वो ५ फूट के सांचे में ढली वो सुंदर मूरत कही ना कही उसके प्रति मेरी भावनाओ को बहका रही थी मैं चाह कर भी उसके आकर्षण में कैद होने स खुद को बचा नहीं पा रहा था

कहा खो गए कहा उसने
मैं- बस तुम्हे ही देख रहा था
वो- अगर देखना हो गया हो तो अब चले
मैं- हां चलो

गहरे गुलाबी रंग की साडी में क्या गजब लग रही थी आज तो जैसे की कोई अप्सरा ही कहर ढाने के मूड में हो उसके गीले बाल जो कमर से भी नीचे तक आकर उसके पुष्ट नितम्बो को जैसे चूम रहे हो मेरा तो मन कर रहा था की हर लाज शर्म छोड़ कर रति को अपनी बाहों में भर लू और जी भर कर प्यार करूँ उसके योवन की झुलसा देने वाली गर्मी से तपने लगा था मेरा क्या करू मैं किस किस को समझाऊ अपने इस भटकते हुए दिल को पेंट के ताने हुए लंड को दोनों की अपनी अपनी हसरते थी

कहा खो गए चलना नहीं है क्या –कहा उसने
मैं- हां हां
बाते करते हुए हम लोग मेन चोराहे तक आये तो रति ने बताया की वो मंदिर ना सहर से करीब १५ किलोमीटर दूर है एक गांवमे पर हैं बहुत अच्छा तुम्हे भा जायेगा
मैं- अब तुम कह रही हो तो अच्छा ही होंगा न
हमने बस ली शुकर था की सीट मिल गयी रति खिड़की वाली साइड पे बैठी थी हवा उसकी जुल्फों को चूम चूम कर जा रही थी मैं बस उसको ही निहार रहा था चोर नजरो से पर चोरी तो चोरी होती है कभी भी पकड़ी जाए उसने भी पकड़ ली

रति- अब इतना भी यु ना देखो मुझे कोई खामखा गलत मतलब निकाल लेगा
मैं- पता नहीं क्यों मैं खुद को रोक नहीं प् रहा हूँ
रति- होता है इस उम्र में अट्रैक्शन होता है
मैं- वो बात नहीं है पर ऐसे लगता हैं की जैसे कोई डोर है जो मुझे तुम्हारी और खीच रही हो
वो- लाइन मारने का इरादा कर लिया क्या तुमने
मैं- नहीं , नहीं पर सच कहू तो तुम अच्छी भी लगने लगी हो मुझे
वो- पर मैं किसी और की अमानत हूँ
मैं- जानता हूँ पर मान ने को जी नहीं करता
वो- पर सच हमेशा ऐसा ही होता है और सच तो ये है की कुछ डोर उलझी होती है इस तरह से की वो कभी खुल नहीं सकती बल्कि उलझती ही जाती हैं
मैं- पर कुछ चीज़े हर बंधन से दूर होती है
वो- जैसे की
मैं- जैसे तुम्हारा मेरा रिश्ता
वो- मुझे नहीं लगा की ऐसा कोई रिश्ता है
मैं- उसके हाथ को थामते हुए तक़दीर का रहा होगा कुकन हा कुछ तो वास्ता जो तुमसे यु मिला दिया
वो- मुझे शब्दों के जाल में बांध रहे हो
मैं- अपना हाल बता रहा हूँ तुम्हे
सफ़र बदस्तूर जारी था वो थी मैं था और कुछ खामोशियाँ थी जो हम दोनों के दरमियान आ कर खड़ी हो गयी थी बीते तीन दिनों में ही रति को अपने बहुत करीब महसोस करने लगा था मैं जैसे की वो मेरा ही कुछ हिस्सा हो उसके मुस्कुराते हुए चेहरे के पीछे छिपे दर्द को महसूस करता था मैं हर पल हमारी हसरते, हमारी आरजुएं ये पागल भटकता हुआ मन बावरा कहा ज़माने के दस्तूर समझता है कुछ भी तो नहीं लगती थी वो मेरी पर फिर भी अपनी सी लगने लगी थी उस सफ़र में हमारी बातो का सिलसिला तो कब का ख़तम हो गया था उसने अपना सर मेरे कंधे पर रख लिया और आँखे मूँद ली बातो को टालने का हूँनर अच्छा था उसका


पर ये छोटा सा सफ़र भी जल्दी ही ख़तम हो गया और हम अपनी मंजिल की तलाश में चल दिए रति ने मुझे बताया की किस तरफ चलना है , ये कोई गाँव था जिसकी बहरी तरफ में ये मंदिर था सबकुछ अपना सा ही लग रहा था पर अगर कुछ दोष था तो मेरी नजरो में जो रति के जिस्म को अपनी हवस के तीरों से बींध रही थी मैं बहुत कोशिश कर रहा था पर चाह कर भी खुद को रोक नहीं पा रहा था पल पल हर पल उसको पा लेने का मेरे लालच बढ़ता ही जा रहा था उसका मैं क्या जानू पर मेरा हाल ऐसा ही था बस किसी तरह पा लू उसको इतनी हसरत में ही सिमट गया था मैं


रति ने बताया की ये एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है जो भी दुआ दिल से मांगो हमेशा पूरी होती है मैंने कहा - फिर तुम्हारे हिस्से की ख़ुशी कहा है क्यों तुम्हारी दुआ कबूल नहीं होती है

रति- शायद मेरे में ही कोई कमी होगी

मैं- ऐसा न सोचो

रति ने कुछ जवाब नहीं दिया हमने प्रसाद की थाली खरीदी और लाइन में लग गए एक तो गर्मी का मोसम ऊपर से लाइन भी बहुत लम्बी, भीड़ हद से ज्यादा मैं रति के जस्ट पीछे खड़ा था भीड़ में जो कसमसाहट हुई तो मैं उस से बिलकुल चिपक सा ही गया उसकी भारी गांड को मैं अपने अगले हिस्से पर महसूस करने लगा मेरे दिमाग के तार बुरी तरह से झनझना गए उस पल उस अजीब से माहौल में मुझे उसके इस तरह से नजदीक आने का मोका मिल रहा था मेरा दिमाग मुझे रोके बार बार पर मेरा बेचैन दिल मुझे आगे बढ़ने को कहे



मेरा लंड खड़ा होना शुरू हो गया हालात पे मेरा जोर कहा चलता था वैसे भी मैं जरा सा आगे और सरका और अपने खड़े लंड को रति की गांड से छुआ ने लगा उसके ठोस चूतड बड़े कमाल के पर तभी मुझे लगा की जैसे रति ने अपने कुलहो को खुद पीछे की तरफ किया हो मेरा लंड तो जैसे पेंट की कैद को तोड़कर भागने की फ़िराक में था उस पल को लाइन किसी चींटी की तरह रेंग रेंग कर आगे को बढ़ रही थी मेरा दिल बार बार कह रहा था की इस मोके का पूरा फायदा उठा ये ही रास्ता है रति की चूत तक पहूँचने का और मैं मजबूर इंसान


तभी भीड़ में पीछे से मुझे धक्का सा लगा तो आप धापी में मैंने बैलेंस बिगड़ने के दर से रति की कमर को पकड़ लिया मक्खन सी चिकनी उसकी कमर पर मेरी पकड़ कस गयी रति को चिकोटी काटने जैसा दर्द हुआ उसने पीछे मुड कर देखा और बस मुस्कुरा कर रह गयी मैंने अपना हाथ उसकी कमर से नहीं हटाया बल्कि धीरे धीरे से कमर को सहलाने लगा एक तो जबरदस्त भीड़ ऊपर से गर्मी जान खाए रति के बदन से आती पसीने की खुशबू मेरे रोम रोम में एक उत्तेजना सी जगा रही थी इधर मेरा लंड जैसे उसकी साडी समेत ही उसकी गांड में घुसने को बेताब हो रहा था मुझे पता था की रति को भी लंड की उसकी गांड पे मोजुदगी का पूरा एहसास होगा पर वो कुछ शो नहीं कर रही थी बस हाथो में पूजा की थाली लिए निश्चिन्त खड़ी थी


मेरी हिम्मत थोड़ी सी और बढ़ी मैंने अपनी उंगलियों से उसकी नाभि से छेड़खानी शुरू कर दी रति के पेट वाला हिस्से में कम्पन होने लगा मुझे भी मजा आने लगा रति ने अपने सर को बिना घुमाये ही मेरी तरफ किया और बोली क्या कर रहे हो गुदगुदी होती है

मैं- अच्छा लग रहा है तुम्हे

रति- हाथ हटाओ वहा से आस पास कितने लोग है और तुम मुझे छेड़ रहे हो

मैं- सच में

वो- और नहीं तो क्या

मैं- तो फिर छिड लो ना थोड़ी देर

वो- ना जी ना

मैं उसकी नाभि को धीरे से कुरेदते हुए उसके कान के पास फुसफुसाया - अच्छा नहीं लग रहा क्या

वो- बेकार की बाते न करो और चुप चाप खड़े रहो लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे

मैं- क्या कहेंगे

वो- कहेंगे नहीं बल्कि मुझे छेड़ने के लिए सुताई कर देंगे तुम्हारी

मैं- वो भी मंजूर है पर इस मोके को ना छोडूंगा

रति फुसफुसाते हुए- क्यों तंग कर रहे हो मुझे

मैं- कुछ कुछ होता है क्या

वो- कुछ क्यों होगा

मैं- क्यों नहीं होगा

वो- बस मान भी जाओ ना आराम से खड़े रहो अपना नंबर आने ही वाला है थोड़ी देर में

मैं- कहा देखो कितनी देर से इधर ही खड़े है

वो- तो थोड़ी देर और खड़े रहो ना बस कुछ देर की बात है


पर वो कुछ देर बहुत थी कुछ देर ऐसे ही मैं चुपचाप अपने लंड को उसकी गांड से सटाए खड़ा रहा लाइन बिलकुल धीमी गति से सरक रही थी ऊपर से जब रति अपनी गांड को जानबूझ कर हिलती जिस से मेरा लंड और रगड़ खता वहा पर ऐसे लगता था की जैसे वो आज तो मेरे ऊपर फुल बिजलिया गिराने का ही इरादा करके आये थी गर्मी को सहना बहुत ही मुस्किल हो रहा था वातावरण में काफी उमस हो रही थी रति के गले से बहती पसीने की बूंदे उसकी खूबसूरती में चार चाँद लगा रही थी , मुझ से कण्ट्रोल नहीं हुआ उसके कान के साइड के पसीने को मैंने हौले से चाट लिया नजर बचा कर मेरी जीभ के स्पर्श से रति का पूरा बदन किसी सूखे पत्ते की तरफ कांप उठा


उसने अपने हाथ से मेरे हाथ को कस कर दबाया और कातिल निगाहों से मेरी तरफ देखा और तभी मेरे दिल को एक ख़ास एहसास छुते हुए निकल गया

रति के साथ वो थोड़े से पल मुझे ऐसे लगने लगे थे जैसे की काफ़ी सदियाँ बीत गयी हो ऐसा लगता था की जैसे बहुत गहरे से जुडी हो मुझसे वो कही न कही उसको पा भर लेने की लालसा मेरे अन्दर बेचैनी बन कर दोड़ रही थी उसके बदन से उठती वो पसीने की महक मुझे पागल किये जा रही थी जैसे जैसे लाइन आगे बढती जा रही थी भीड़ का दवाब महसूस होने लगा था रति ने बताया की आज यहाँ विशेष पूजा है इसलिए भीड़ ज्यादा है पर मुझे तो बस रति ही दिख रही थी वहा पर इन्सान की भी अदि अजीब फितरत होती है जब उसको ठरक चढ़ती हैं तो क्या माहौल है क्या जगह है कुछ नहीं देखता अगर कुछ देखता है तो बस अपना नजरिया


मैं रति से बहुत चिपक के खड़ा हुआ था अबकी बार उसने जो खुद को थोडा सा एडजस्ट किया मेरा लंड बिलकुल उसकी गांड की दरार पर सेट हो गया करार आ गया मुझे तो रति के कुलहो ने झुरझुरी सी ली पर उसने पीछे मुड के नहीं देखा मैंने उसकी गांड पर थोडा सा और दवाब डाला रति के बदन में कम्पन होने लगी उसका चेहरा एक दम लाल हो गया था जैसे की सूरज की पूरी आभा उसके मुख पर ही आ गयी हो , उसकी सांसो की गति बढ़ने लगी पर मैं भी क्या करता मेरी भी मज़बूरी ऐसी ही थी थोड़ी थोड़ी देर बाद मौका देख कर मैं अपने लंड को गांड पर रगड़ने लगा


हम दोनों कुछ नहीं बोल रहे थे बल्कि जो हो रहा था उसको समझ नहीं पा रहे थे उसके चेहरे पर काफ़ी भाव आ जा रहे थे तभी उसने मुझे टोका और कहा –“ प्यास लगी है बड़ी तेज ”


मैंने बैग से पानी की बोतल निकाल कर उसको दी थोड़ी हड़बड़ी में वो पानी पि रही थी जिस से कुछ घूँट छलक कर उसके ब्लाउज पर गिर गए है रे तेरा कटीला हूँस्न मार ही डालोगी क्या उसकी चूचियो की घाटी वाली जगह पानी से गीली हो गयी थी बड़ा सेक्सी सा नजारा था वो मैं एक तक देखता ही गया तो उसने टोक ही दिया “ क्या देख रहे हो इतनी गोर से ”

मैं- कुछ नहीं बस ऐसे ही

और फिर से हम अपनी अपनी जगह पर खड़े हो गए हमारा नंबर आने में ज्यादा देर नहीं थी हमे तो फिर मैं भी चुप चाप ही खड़ा रहा धीरे धीरे हम लोग मंदिर के गर्भ गृह में पहूँच गए अन्दर बेहद ही अद्भुद नजारा था रति पूजा करने लगी मैंने अपने कैमरे से कुछ तस्वीरे निकाल ली पूजा करते टाइम रति के चेहरे पर जो तेज था कसम से मेरा दिल मुझसे कहने लगा की यही है तेरी तलाश थाम ले इसका हाथ पर कहा ये मुमकिन था मेरे लिए उसने इशारे से मुझे अपने पास बुलाया और पूजा करने को कहा मैं भी उसका साथ देने लगा करीब दो घंटे बाद हम लोग फ्री हुए वहा से और थोड़ी साइड में एक पेड़ के नीचे बैठ गए गर्मी बहुत भयंकर पड़ रही थी पूरा बदन पसीना पसीना हो रहा था मैंने अपना रुमाल उसको दिया और कहा “पसीना पोंछ लो ”

मुझसे रुका नहीं गया मैंने उसको कह ही दिया – रति आज तुम बहुत सुन्दर लग रही हो

रति- सच में

मैं- हां

वो- तभी तुम कुछ ज्यादा ही एडवांटेज ले रहे थे लाइन में

मैं- वो तो ऐसे ही

वो- ऐसे ही क्या , ऐसा भला कोई करता है क्या तुम्हारी जगह कोई और ऐसा करता तो वाही के वही चप्पल
उतार के तगड़ी रंगाई करती उसकी

मैं- तो की क्यों नहीं , मुझे भी तो सजा मिलनी चाहिए ना

वो- सजा तो मिलेगी तुम्हे भी पर अभी नहीं

मैं- जो मैंने किया उसके लिए हो सकते तो माफ़ करना पर मैं सच कहता हूँ की तुम्हारे रूप की ज्वाला में मैं पिघलने लगा था खुद को लाख समझाया पर कण्ट्रोल कर नहीं पापय मुझे शर्मिंदगी भी है तुम्हारी हर सजा मंजूर है मुझे

रति- बस तुम्हारी यही साफगोई तुम्हारा बचाव कर जाती है वर्ना मैंने तो इरादा कर लिया था पक्का

मैं- तो फिर हर सजा सर आँखों पर

वो- मुझे भूख लगी है आओ पहले कुछ खाना पीना हो जाये बाते तो फिर भी होती रहेंगे

पर मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसको रोक लिया और कहा –“रति, मरे मन में कुछ उलझाने है कौन सुलझाएगा उनको मुझे कुछ कहना है तुमसे ”


वो- कहा ना फिर बात करेंगे

मैं- फिर कब अभी क्यों नहीं

वो- क्योंकि मैं बचना चाहती हूँ तुम्हारी बातो से नहीं सुनना चाहती क्योकि कुछ सवालों के कभी कोई जवाब नहीं होते है और फिर क्या कहोगे तुम वो बाते जो कभी हो नहीं सकती है तुम्हारा मेरा साथ है भी कितना बस जब तक तुम यहाँ हो फिर उसके बाद क्या रहना तो मुझे है अपने उसी अकेलेपन के साथ जिसके साथ मैं रह रही हूँ, तुम पता नहीं कहा से एक ठन्डे झोंके की तरह आ गए पर एक झोंके की उम्र भला कितनी है सच कहू तो मैं डरती हूँ जो पल महसूस कर रही हूँ मैं कल को जब मैं अपने आप से जुन्झुंगी तब कैसे संभाल पाऊँगी खुद को


मैं- जानता हूँ रति पर क्या तुम्हे कोई हक नहीं है अपनी ज़िन्दगी को खुसी से जीने का

वो- जब मेरा हक़दार ही इस बात को नहीं समझता तो फिर दुनिया को क्या

मैं- सब ठीक होगा भरोसा रखो

वो- कुछ ठीक नहीं होगा

मैं- भरोसा रखो कोशिश करो ज़िन्दगी हर दिन एक नया दरवाजा खोलती है

वो- मुझे भूख लगी है

मैं- ठीक है खाना खाते है

मंदिर में जो भंडारा लगा था उधर ही हम लोगो ने अपना दोपहर का भोजन खाया रति के चेहरे की मायूसी मर दिल जला रही थी मैंने घडी में टाइम टाइम देखा शाम के ४ बज रहे थे मैंने उसको चलने का कहा तो उसने कहा थोड़ी देर में चलेंगे बहार कुछ दुकाने सी लगी थी मैंने नीनू के लिए एक चेन खरीद ली रति बोली- तुम्हारी गर्लफ्रेंड के लिए

मैं- वो बस दोस्त है मेरी पर उसी के लिए ली है

वो मुस्कुरा पड़ी और बोली- आओ तुम्हे कुछ दिखाती हूँ मेरे साथ आओ
वहां से थोड़ी दूर आने पर एक साइड में खेतो का इलाका शुरू होता था और रोड के दूसरी तरफ पर थोडा जंगली टाइप इलाका था रति ने वो राह पकड़ी मैंने कहा तो कुछ नहीं पर मन में सोचने जरुर लगा की ये कहाँ ले जा रही है पर मैं उसके साथ ही चलता रहा करीब १० मिनट चलने के बाद हम लोग एक ऐसी जगह पर पहूँचे जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी घने पेड़ पोधो झाड झंखाड़ के बीच में ये एक पुरानी छत्री सी थी बीते ज़माने में मुसाफिर लोग थकान मिटाने के लिए इसका प्रयोग करते होंगे राजस्थान के निराले रंग ये तो वक़्त की मार से इसका ये हाल हो गया था पर रुतबा वैसे का वैसे ही था


रति- अच्छा लगा तुम्हे

मैं- बहुत शानदार

वो- हां

मैं- पर तुम्हे कैसे पता लगा इसका

वो- एक बार किसी के साथ आई थी इधर तभी से आ जाती हूँ यहाँ

मैं- किसके साथ आई थी जरा हमे भी तो बता दो

रति- क्या तुम भी कुछ भी सवाल कर बैठते हो

मैं- वो सब छोड़ो पर यहाँ हम आये क्यों है वो बताओ

वो- देखो कितनी शांति है यहाँ पर मन को कितना सुकून मिलता है

मैं- मेरा सुकून तो तुमने चुरा लिया है

वो- तुम फिर से शुरू हो गए

मैं- तुम बार बार रोक जो देती हो

रति वही सीढियों पर बैठ गयी उसका आँचल एक बार फिर से सरक गया ठोस उभार जैसे कपड़ो की हर कैद को तोड़कर आजाद होने को मचल रहे थे उसकी धोंकनी की तरह ऊपर नीचे होते उभार किसी को भी दो पल में गरम कर दे अच्छे अच्छो को धर्म भ्रष्ट कर दे मैं भी उसके पास ही बैठ गया सच कहू तो थकन सी हो रही थी मैंने अपना सर उसके घुटनों पर रखा और वाही पर लेट गया

रति- क्या कर रहे हो कपडे ख़राब हो जायेंगे तुम्हारे

मैं- होने दो क्या फरक पड़ता है , वैसे ज्यादा फिकर हो रही है तो अपनी साडी को बीचा दो मैं तो बुरी तरह से थक गया हूँ पैरो में अब जान न रही

रति- अब तुम इतने भी ख़ास ना हो जो तुम्हारे लिया इतना भी किया जाये

मैं- तो किसके लिए करोगी

वो- कोई तो है ही

मैं- थोड़ी नेमत मुझ गरीब पर भी कर दो

वो- हर दुआ थोड़ी ना कबूल हुआ करती है मुसाफिर बाबु

मैं- तो क्या तुम्हारे दर से भी खाली हाथ जाना पड़ेगा

वो- वैसे कितने दरो पर ठोकर खायी है तुमने

मैं- पहले का तो पता नहीं पर तुम्हारे दर से खाली न जाऊंगा

वो- तुम्हारे हसीं सपने

मैं- सपने कभी कभी सच भी हो जाते है

वो- मैं ना मानु

मैं- तुम्हारी मर्जी

हमारी बाते मेरे तन बदन को रोमानियत से भर रही थी एक कमबख्त मेरा लंड मुझे दो पल भी चैन नहीं लेने दे रहा था सुनसान सी उस जगह पर हम दोनों अपने मन की बाते बतला रहे थे मुझे ख्याल आ रहा था की कही रति यहाँ मुझसे चुदना तो नहीं चाहती पर ख्यालो का क्या वो तो ऐसे ही आते जाते रहते लेते लेटे ही मैं उसके पेट पर उंगलिया फिराने लगा वो बोली- मत करो ना शरारत गुदगुदी होती है

मैं- होने दो मैं क्या करू

वो- मानो ना

हमे वहा पर काफ़ी देर हो गयी थी रति की निगाह मेरी घडी पर पड़ी तो वो बोली बाप रे साढ़े पांच हो गए देर हो रही है हमे वापिस भी तो चलना है वो कह ही रही थी की मोसम अजीब सा होने लगा धुल भारी हवा चलने को लगे

रति- उफ्फ्फफ्फ्फ़ लगता है आंधी आने वाली है

मैं- गर्मी को देख कर अंदाजा हो रहा था मुझे भी अब क्या करे

वो- आंधी तो सर पर आ गयी दिवार की ओट ले लो थोड़ी देर में ये बवंडर चला जायेगा फिर अपन लोग भी चल पड़ेंगे


हम खड़े हुए दिवार की ओट में ऊपर से गर्मी बहुत थोड़ी ही देर में धुल भरी हवा चलने लगी हर तरफ बस मिटटी सी उड़ने लगी रति सरक कर मेरे पास आ गयी हम दोनों एक दुसरे के आमने सामने खड़े थे

वो- ऐसे क्या देख रहे हो

मैं- तुम्हे देख रहा हूँ

वो- इस तरह मत देखो मुझे

मैं- क्यों ना देखू देखने की चीज़ तो देखि ही जाएगी ना

वो- तो मैं तुम्हे चीज़ लगी

वो कह ही रही थी की झरोखे से धुल हमारी तरफ आई और हमे ढूल्म धुल कर गयी रति के पुरे बाल मिटटी से सन गए वो खांस ने लगी इसी में उसका पल्लू उसके हाथ से छुट गया वो थोडा सा पीछे को हुई पर मैंने उसकी बांह को पकड़ लिया और रति को खीच लिया अगले ही पल वो मेरे सीने से आ लगी , ये मेरे लिए एक बहुत ही कमजोर लम्हा था जिसमे मैं अपने आप पर बिलकुल भी काबू ना रख पाया मेरा हाथ उसकी नाजुक पीठ पर कसता चला गया और बिना कुछ सोचे समझे मैंने अपने होंठ उसके अनछुए रस से भरे मदिरा के प्यालो पर रख दिए मेरे लबो का अहसास पाते ही रति के तन बदन में एक आग सी लग गयी उसने खुद को मुझसे अलग करने की कोशिश की पर मेरी पकड़ मजबूत थी


वो जैसे कुछ कहना चाहती थी मुझे रोकना चाहती जैसे ही उसके होंठ खुले मैंने अपने होंठो में उसके निचले होंट को भर लिया और कास कर उसे चूसने लगा वो लगातार मुझसे दूर होना चाह रही थी पर मैंने उसे नहीं छोड़ा जबतक की हमारी साँसे फटने के कगार पर नहीं आ गयी हांफते हुए वो मुझसे दूर हुई उसके होंठ से खून रिसने लगा

वो मुझसे थोडा दूर गयी और बोली- तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे छूने की कैसे किस किया मुझे तुमने
मैं उसके पास गया और अपनी ऊँगली को उसके होठो पर रखते हुए बोला- रति कुछ सवालों के जवाब मेरे पास नहीं है बेहतर होगा की तुम अपने आप से पूछ लो
 

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वो साइड में जाने लगी पर मैंने फिर से उसको अपने आगोश में ले लिया और एक बार फिर से हमारे लब एक दुसरे के संपर्क में आ गए रति दिवार के सहारे खड़ी थी मैं बेबाकी से उसके अधरों के शाहद को निचोड़े जा रहा था हालाँकि वो अपना विरोध जाता रही थी पर मैंने अपने मन की बात उस पर मोहर लगा दी थी उसकी हर सजा मंजूर थी मुझको पर ये गुस्ताखी तो करनी ही थी अब अचानक से मुझे लगा की रति की बाहे मुझ पर कसी हो जैसे उस धुल भरी आंधी में मैं पागलो की तरह उसके लबो का रसपान किये जा रहा था


उसके हाथो की उंगलिया मेरे हाथो में फंस कर जोर आजमाइश कर रही थी उसके लबो को पीते पीते मैं अपने एक हाथ से उसकी गांड को दबाने लगा पर तभी रति मुझ से अलग हो गयी और अपनी साँसों को संभालते हुए बोली- मुझे लगता है यही रुकना बेहतर होगा कुछ चीज़े अपनी हदों में ही रहे तो बेहतर होता है

मैं- रति मैं तुम्हारा हाथ थामना चाहता हूँ

वो- छोड़ो इन बातो को

मैं- मेरी सुनो तो सही

वो- कहा ना छोड़ो इन बातो को आंधी रुकने लगी है अपना हूँलिया ठीक करलो समय भी बहुत हो गया है चलते है थोड़ी देर में


फिर उसने कुछ कहा ना मैंने कुछ कहा वो पंद्रह बीस मिनट का समय बड़ी बेचैनी में बीता जब हम वहा से चले तो शाम के साढ़े ६ हो रहे थे आंधी की वजह से सब कुछ बहुत बुरा लग रहा था पर गनीमत थी की हवा से गर्मी कुछ कम हो गयी थी हम लोग मेन सडक पर आये और बस का इंतज़ार कर ने लगे ऊपर आसमान में बिना वजह के ही बादल अंगड़ाईयाँ लेने लगे

लगता है बारिश होने वाली है बिन मोसम के

रति- ये और मुसीबत आज ही आनी थी बस जल्दी से बस आ जाये

पर आज वो भी मेहरबान ही था शायद बस तो नहीं आई पर हलकी हलकी बूंदे गिरने लगी अब हम लोग कहा जाये रति होने लगी परेशान उसके माथे पर बल पड़ने लगे वो हड़बड़ी में कभी इधर देखे कभी उधर

मैं- कितनी देर में आती है बस , बरसात तेज होने लगी है

वो- बस का टाइम ऐसा ही है आये तो अभी आ जाये मैं आज से पहले शाम तक रुकी नहीं तो पता नहीं
बारिश की मोटो बूंदे गिरने लगी थी

मैं- आसपास कोई खड़े होने की जगह भी नहीं दिख रही

वो- ह्म्म्म

हमारे कपडे गीले होने लगे थे रति उस गीली साडी में बहुत खूबसूरत लगने लगी थी मेरे चेहरे पर मुस्कान आ गयी

वो पूछ बैठी- परेशानी के समय भी हस रहे हो

मैं- बात ही ऐसी है

वो लगभग झल्लाते हुए- क्या

मैं- तुम मोहरा की रवीना टंडन से कम नहीं लग रही हो कसम से .
रति- यहाँ पर मैं भीग रही हूँ तुम्हे मसखरी सूझ रही है बारिश अब तेज होने लगी है मुझे दर है कही मेरा पाँव के ज़ख्म में कोई दिक्कत न हो जाये

मैं- कुछ नहीं होगा और वैसे भी इस हालात में मैं कुछ नहीं कर सकता हूँ एक काम कर सकते है या तो वापिस उसी छत्री में चलते है अब मंदिर तो दूर रह गया वर्ना वाही पर शरण ले लेते बताओ क्या कहती हो
वो- नहीं उधर नहीं जा सकते छत्री सुनसान इलाके में है ऊपर से अब अँधेरा भी घिरने लगा है उधर जायेंगे तो बस या और कोई साधन कब आया कब गया पता भी नहीं चलेगा और हमे कोई रात थोड़ी ना काटनी है मंदिर जायेंगे तो भी वही दिक्कत है जाना तो हमे घर ही हैं ना


मैं- तो फिर इंतज़ार करो और क्या कर सकते है कमबख्त इस रोड पर कोई दूकान भी नहीं है वर्ना उधर ही खड़े हो जाते , एक काम करो तुम मेरा बैग सर पर रख लो



रति- उस से कौन सा मैं भीगने से बच जाउंगी ,


मैं- तो फिर चुपचाप इंतजार करो जो भी साधन आता दिखेगा उसी में चल पड़ेंगे

बारिश धीरे धीरे से अपने सुरूर पर आती जा रही थी बादल कड कड़क करके गरज रहे थे रति के माथे की चिंता मैं साफ़ पढ़ रहा था फ़िक्र तो मुझे भी थी पर अब किया क्या जाये बुरे फंसे आज तो अँधेरा भी होने लगा था

मैं- डर लग रहा है क्या

वो- नहीं तो , बस थोड़ी सी घबराहट हो रही है , अँधेरा भी घिर आया है अगर टाइम से घर पहूँच जाते तो ऊपर से इस कमबख्त मोसम को भी आज ही बिगड़ना था

मैं- मोसम की गुज्जारिश है की हम दोनों थोडा टाइम साथ जिए

रति- कही तुमने ही तो को पनौती ना लगा दी

मैं- रति , वो थोडा आगे एक पेड़ सा है उसके नीचे खड़े होते है कम से कम बारिश से सीधा सीधा तो ना भींगेंगे

उसको भी ख्याल जंच गया और हम पेड़ के नीचे आ गए पर वो घना पेड़ नहीं था तो भीगना तो इधर भी पड़ ही रहा था पानी की मस्त बूंदे उसके पेट और नाभि से होते हुए नीचे को लुढ़क रही थी काश वो पिस्ता की तरह होती तो अभी इसी वक़्त इस पेड़ के नीचे ही उसकी चुदाई शुरू हो चुकी होती पर यहाँ पर थोडा थोडा करके आगे बढ़ना था मुझे दिल तो कर रहा था की दो चार चुम्मिया तो यही पर ले डालू पर खुले रस्ते पर क्यों रिस्क लिया जाए


तभी वो बोली- तुम जरा थोडा दूर जाओ

मैं- क्यों इधर ही सही है फुहार ही पड़ रही है इधर

वो- जाओ ना थोड़ी देर

मैं- बात क्या है वो बताओ

वो शर्माते हुए, मुझे सुसु करना है

मैं- ओह, एक काम करो पेड़ की दूसरी साइड में करलो

वो- उधर काफी झंखाड़ है कही कोई जानवर सांप, बिच्छु न निकल आये

मैं- तो यही पर करलो मैं नहीं जाने वाला कही पे भी

वो- प्लीज मान भी जाओ ना बहुत तेज लगी है

मैं- ठीक है बाबा, मैं उधर मुह करके खड़ा होता हूँ, जल्दी से करलो

वो –हूँ

मैंने अपना मुह दूसरी तरफ कर लिया और रति मूतने बैठ गयी दिल तो कर रहा था की उस को देखू पर अँधेरा भी था तो कोई फायदा नहीं था करीब दो मिनट बाद मैंने पुछा- हो गया

वो- हां


मैं उसको छेड़ते हुए, वैसे बताने की क्या जरुरत थी ऐसे ही खड़े खड़े कर लेती कपडे तो वैसे बुरी तरह से गीले है किसको पता चलना था

वो- सबको तुम्हारी तरह से समझा है क्या

मैं- बुरा मान गयी क्या

वो- बात ही ऐसी गन्दी करते हो तुम

मैं- तो तुम अच्छी बाते सिखा क्यों नहीं देती

मैं थोडा सा उसकी और हुआ और उसको अपनी तरफ खीच लिया वो कसमसाते हुए बोली – ये सब ठीक नहीं है क्यों मुझे तंग करते हो

मैं- सच बताओ अच्छा नहीं लगता क्या तुम्हे

वो- तुम बस चुप रहो

मैं- सच बोलने से डरती हो ना तुम

वो- कोई फायदा नहीं इन बातो का कितनी बार बताऊ तुम्हे

मैं- एक बार मुझे समझो तो सही इस ,

वो- छोड़ो मुझे वैसे ही तुम्हरे दांत की वजह से मेरा होंठ कट गया है अभी तक दर्द हो रहा है

मैं- अब तुम्हारे लब इतने मुलायम है तो मैं क्या करू सच कहता हूँ कितनी मीठी हो तुम

वो- अपनी बातो से मुझे ना फंसाओ

मैं- सच बोला मैंने तो बस , कहो तो एक किस और करलू

वो- पागल हुए हो क्या

मैं- पहले तो था नहीं अब तुमने कर दिया वो अलग बात है

वो- मत सताओ ना मुझे

मैं- और जो मेरा हाल बुरा हुआ है उसका क्या

वो खामोश खड़ी रही मैंने उसके चेहरे को ऊपर उठाया और अपने प्यासे होंठो को एक बार फिर से मधुशाला के प्यालो पर रख दिया वो बस कसमसा कर रह गयी उस अँधेरे का फायदा उठाते हुए मैं उसकी सासों को अपनी साँसों में घोलने लगा मुझे ना किसी की फ़िक्र थी ना किसी का डर मैं बस चाहता था की ये लम्हा यही पर रुक जाये कुछ देर के लिए मक्खन से भी चिकने मीठे रस के प्याले उसके अधरों को चूसने लगा मैं पर रति जल्दी ही मुझसे अलग हो गयी और वो बोली- क्या करते हो सुजाओ गे क्या


वो कह ही रही थी की तभी दूर सड़क पर हेडलाइट की रौशनी सी पड़ी और हम भाग कर सड़क पर आये
मैं सड़क के बीचो बीच खड़ा हो गया ताकि जो भी साधन आ रहा है उसको रुकवा सकू पर पास आते ही लगा की मर प्रयत्न वेस्ट हो गया , दरअसल वो एक कबाड़ का टेम्पो था अब क्या किया जाये पर जाना तो था ही उस बारिश में थोड़ी ना फंसे खड़े रेस सकते थे मैंने टेम्पो वाले को पुछा की भाई सहर तक छोड़ दोगे क्या


टेम्पो वाला- “भाई जी, आगे तो बस ड्राईवर की ही जगह है और पीछे कबाड़ भरा पड़ा है कहा पर एडजस्ट करू ”


मैं- भाई दुगना किराया दूंगा , बस सिटी तक पंहूँचा दे बहुत देर हुई राह देखते देखते बस नहीं आई बारिश में भीग रहे है कब से मदद कर दे यार


वो सोचते हुए- भाई जी बात ऐसी है की पीछे खड़े हो जाओ कबाड़ को इधर उधर करके जगह हो जाएगी खड़े होने की तो पर भीगना फिर भी पड़ेगा मेरे पास कोई तिरपाल भी नहीं है देख लो आपको जंचे तो


मैं- ठीक है भाई खड़े हो जायेंगे बस तू पंहूँचा दे जल्दी से


कबाड़ी ने उठा पटक करके जगह बनायीं मैंने पहले रति को चढ़ाया और फिर खुद भी चढ़ गया टेम्पो चल पड़ा सहर की और चारो तरफ घुप्प अँधेरा छाया हुआ था काफी देर भीगने के कारन सर्दी सी लगने लगी थी रति भी मेरे पास खड़ी हलकी हलकी सी कांप रही थी हालात के मारे यहाँ जाके अटके हम


मैं- क्या सोच रही हो

वो- मेरे पाँव का जख्म पूरा गीला हो गया है डर है कही जो थोडा बहुत जख्म ठीक हुआ है फिर से हरा ना हो जाये

मैं- चिंता मत करो कुछ नहीं होगा


तभी टेम्पो ने हिचकोला खाया और मैं रति पर झुक गया

वो- क्या करते हो

मैं- पकड़ने की जरा भी जगह नहीं है क्या करूँ


रति थोडा सा साइड में हुई मैं अब बिलकुल उसके पीछे आ गाया था हम दोनों के शरीर आपस में फिर से रगड़ खाने लगे ठंडी बरसात में दोनों के शरीर की गर्मी जो मिली तो सरसराहट होने लगी मैंने अपने कांपते हाथ उसके पेट पर रख दिए


आआआआआह उसके नाजुक होंठो से आह सी फूट पड़ी ,”क्या कर रहे हो ”


मैं- कुछ भी तो नहीं

मैंने उसको बिलकुल अपने से चिपका लिया और धीरे धीरे से उसके पेट को सहलाने लगा उसके पेट वाले हिस्से में कम्पन होने लगी रति की भारी गांड बिलकुल मेरे लंड पर सेट हो चुकी थी वो मेरी बाहों में सिसकने लगी थी थोड़ी देर तक मैं उसके पेट को सहलाता रहा फिर मैंने बेबाकी से अपने दोनों हाथो में उसके कबूतरों को थाम लिया और कस के भींच दिया रति ने अपने हाथो से मेरे हाथो को थाम लिया और बोली-“ मत करो ना क्यों मुझे सता रहे हो मैंने कहती हूँ मान भी जाओ ना ”


पर मैं कहा रुकने वाला था मैं अपने लबो को उसकी गर्दन के पीछे वाले हिस्से पर रखते हुए बोला-“ रति, ये सफ़र फिर ना आएगा न फिर कभी तुम साथ होगी, मुझे ना रोको बहने दो मुझे इस हवा के साथ “


रति- पर ये गलत हैं

मैं- कुछ गलत नहीं की तुम्हे अच्छा नहीं लगता जब मैं तुम्हे छूता हूँ क्या तुम्हारा दिल नहीं करता की कोई तुम्हे जी भर के प्यार करे , क्या तुम नहीं चाहती की किसी की मजबूत बाहों में पनाह मिले तुम्हे


रति- तुम समझते क्यों नहीं मैं किसी और की अमानत हूँ

मैं- पता नहीं क्यों पर शायद कुछ तो हक मेरा भी हैं ना


रति अब खामोश थी उसने अचानक से अपने हाथ मेरे हाथो से हटा लिए मैंने धीरे से उसके बोबो को फिर से दबाया रति के बदन ने झुरझुरी सी ली उसकी मोरनी सी गर्दन को चूमते हुए उसके बॉब से खेलने लगा मैं मेरा लंड उसकी गांड में घुसने को बेचैन हो रहा था मैंने अपने लंड को उसकी गांड पर रगड़ने लगा उसको भी पता तो था ही की क्या हो रहा है धीरे धीरे उसकी गांड अपने आप हिलने लगी मैं अब तेजी से उसके बोबो को मसल रहा तह वो हूँस्न का मदमस्त प्याला मेरी बाहों में मचलने लगा था उस पल में


मैं खुद तो बेकाबू था ही उसको भी बेकाबू कर देना चाहता था मैं मैंने उसके ब्लाउज के हूँको को खोलना चालू किया तो वो मुझे रोकने लगी पर अब कहा रुकना था मैंने उसके हूँको को खोला और ब्रा के ऊपर से ही चूचियो को दबाने लगा रति के बदन में बिजलिया दोड़ने लगी मैंने रति के हाथ को लिया और अपनी पेंट में बने लंड के उभार पर रख दिया उसने हाथ हटा लिया मैंने फिर से रखा और अपने हाथ से दबा दिया इस बार उसने हाथ नहीं हटाया


भारी बरसात में धीमी रफ़्तार से हिचकोले खाता हुआ वो टेम्पो सहर की और बढ़ रहा था पिछले हिस्से में हम दोनों खामोश थे बेशक पर अरमान अपने ज़ोरों पर थे मैंने उसकी ब्रा को ऊपर किया और उसके निप्पल्स को अपनी उंगलियों से मसलने लगा रति के बदन में करंट दोड़ने लगा उसका हाथ मेरे लंड वाले हिस्से पर कसता चला गया ठीक तभी मैंने उसकी चूचियो को अपनी पकड़ से आजाद किया और रति की चूत को साडी के ऊपर से दबा दिया रति खुद पर काबू नहीं रख पायी और वो पलती और मेरी बाहों में समां गयी उसकी बढ़ी हुई धडकनों को मैं अपने सीने पर महसूस करने लगा


काफ़ी देर तक वो ऐसे ही मेरे सीने से लगी रहे मैंने उसके चेहरे को ऊपर किया और उसके रसीले होंठो को फिर से चाटने लगा इस बार वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी उसने अपनी बहे मेरे कंधो पर रख दी और अपने मुह को मेरे होंठो के लिए खोल दिया मेरा लंड अब उसकी चूत वाली जगह पर रगड़ खा रहा था शराब की बोतल से भी नशीले उसके लबो को पीते हुए मैंने अपने हाथ उसके पेट पर रखा और फिर धीरे से उसको नीचे को सरका दिया चूत की तरफ रति का बदन उस तेज बरसात में अब बुरी तरह से कांप रहा था


मैं बस चूत को छूने ही वाला था की वो बोल पड़ी- यहाँ नहीं

मैं कुछ नहीं वो बोला

वो- सहर आने वाला है देखो बस्तिया शुरू हो गयी है रौशनी भी दिखने लगी है किसी की नजर पड़ेगी तो क्या सोचेगा

मैंने उसको अपने आगोश से आजाद कर दिया उसने अपने ब्लाउज को सही किया और सलीके से खड़ी हो गयी सिटी थोड़ी ही दूर थी मैं कहा मान ने वाला था मैंने उसको अपने से चिपका लिया और उसके चुतद को सहलाने लगा एक हल्का सा किस मैंने उसकी गले के नीचे किया तभी वो बोली ये मेरी जांघो पर क्या चुभ रहा है

मैं- तुम्हे नहीं पता क्या

वो- नहीं तो

मैं- मुझे भी नहीं पता खुद ही देख लो

रति ने अपने हाथ को नीचे किया और मेरे लंड को पेंट के ऊपर से ही सहलाने लगी मर खुद से काबू छुटने लगा मैंने उसके कान में कहा इसको बहार निकाल लो


पर वो ऐसे ही सहलाती रही मेरी जान ही लने का इरादा कर लिया था उसने जैसे रति को खुद में ऐसे घोल लेना चाहता था मैं जैसे की किसी शरबत में गुलाब की खुशबू घुल जाया करती है मैं उसको वो ख़ुशी देना चाहता था जिस से वो वंचीत थी मैं उसको कोई नहीं लगता था सच था की वो किसी और की थी उसका असली हक़दार मैं नहीं था पर शायद अमानत में खयानत करने का वक़्त आ गया था ख्यालो में गम हुए इस कदर की कब सहर आ गया पता ही नहीं चला
शहर आ गया था बारिश इस साइड भी जोरो से हुई थी टेम्पो वाले को पैसे दिए मैंने रति के घर तक जाने में अभी भी कम से कम बीस मिनट लगने थे अगर ऑटो जल्दी मिल जाये तो पर कमसे कम अब ये तो था की घर पहूँच हो जायेंगे अपने गीले बालो पर हाथ मारते हुए मैंने एक ऑटो को हाथ दिया और एड्रेस बताया थोड़ी ना नुकुर के बाद वो चलने को तैयार हो गया एक बार फिर से हम दोनों साथ साथ बैठे थे काफ़ी देर गीली रहने से रति को ठण्ड सी लग रही थी बस थोड़ी देर की और बात हम लोग घर पहूँचने वाले होंगे


मैंने उसके हाथ को थाम लिया और अपनी आँखों से उसकी तरफ देखा उसने नजर दूसरी तरफ कर ली हमारी टाँगे एक दुसरे से रगड़ खा रही थी थोडा गर्मी का अहसास हो रहा था मैं लगातार उसके हाथ को सहलाता जा रहा था रति के चेहरे पर कोई भाव नहीं था हां पर इतना पक्का था की उसके दिल में भी कुछ तो ज़रूर चल्र रहा होगा उस समय चलती हुई ठंडी हवा अपने साथ बारिश की बूंदों को लेकर आ रही थी मैं अपनी ज़िन्दगी के बारे में सोचने लगा पिछले महीने-डेढ़ महीने में मैं का से क्या बन गया था एक दम से अल्गने लगा था की मैं बहुत बड़ा हो गया था


“क्या सोचने लगे ” पुछा उसने

मैं – कुछ नहीं बस ऐसे ही घर की याद आ गयी

वो मेरे पास सरकते हुए, “ क्या याद किया बताओ मुझे भी ”

मैं- बस ऐसे ही सोचने लगा की पिछले कुछ दिनों में मेरी ज़िन्दगी कितनी बदल गयी है देखो तुम और मैं कितने अजनबी कैसे मिल गए शायद पिछले किसी जनम में अवश्य ही तुमसे कोई नाता रहा होगा ऐसे लगता नहीं नहीं की बस कुछ रोज़ पहले ही मुलाकात हुई है तुमसे , ऐसे लगता है जैसे जन्मो से जानता हूँ तुम्हे


वो – तुम्हारी बहुत सी बाते समझ से परे लगती है मुझे

मैं- वो क्यों भला, मैं क्या दूसरी भाषा में बोलता हूँ

रति- हँसते हुए, नहीं बाबा ऐसा कब कहा मैंने

मैं उसकी जांघ को सहलाते हुए- तुम भी कहा मुझे अपना मानती हो

वो- तुम मेरे अपने हो ही कहा

मैं- क्या पता तकदीरो का कभी कभी कभी अजनबी भी अपने बन जाया करते है

वो- हां पर तुम वो नहीं हो

बाते करते करते मैं चोराहा आ गया आगे गली में ऑटो नहीं जा सकता था तो वही उतरे और चल पड़े उसके घर की तरफ चारो तरफ अँधेरा छाया हुआ था लाइट नहीं थी मोहाल्ले में मैंने कहा तुम घर चलो मैं पास के होटल से कुछ खाने के लिए ले आता हूँ

वो- नहीं कोई जरुरत नहीं मैं बना लुंगी देर कितनी लगनी है

मैं- नहीं यार, तुम भी तो मेरे साथ परेशान हुई हो, तुम चलो मैं बस यु गया और यु आया

मैं वाही से मुदा और होटल पहूँच गया टाइम वैसे तो करीब सवा आठ ही हुआ था पर बारिश के कारन रात ज्यदा हो गयी हो ऐसा लग रहा था बरसात का मस्त मोसम थोड़ी भीड़ भी थी मुझे अपना पार्सल लेने में करीब आधा घंटा लग गया भीगते भिगाते मैं घर पंहूँचा तो देखा की रति के आँगन में काफी पानी भरा है उसी पानी में चप्प चप्प करते हुए मैं कमरे के दरवाजे तक पंहूँचा और दरवाजा खटकाया


रति ने मुस्कुराते हुए दरवाजा खोला अन्दर मोमबत्ती जल रही थी मैंने देखा उसने कपडे चेंज कर लिए थे और वो ही ढीली सी मैक्सी डाली हुई थी मैं अन्दर आया उसको खाना दिया और कहा जरा मेरा बैग देना मैं भी कपडे चेंज कर लेता हूँ ,

रति- “ पूरा बैग गीला हो गया था मैंने अपने कपडे चेंज किये तो तुम्हरे बैग स भी कपडे निकाल कर बाथरूम में पटक दिए सुबह ही सूख पायेंगे वो तो ”

मैं- तो अब क्या करू मैं ऐसे गीला तो नहीं रह सकता ना

वो मुझे तौलिया देते हुए बोली- पहले इन कपड़ो को निकाल आओ वर्ना तुम्हे ठण्ड लग जाएगी रात तो तौलिये में ही रह लेना सुबह धुप आते ही कपडे सूख जाने है
 

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मैं बाथरूम में घुस गया हाथ मुह धोकर आया तब तक रति ने खाना लगा दिया था मोमबत्ती की हलकी सी रौशनी में अपना तो वोही कैंडल लाइट डिनर हो गया था चुप चाप हम भोजन कर रहे थे बदन में थोडा सा दर्द होने लगा था ऐसे लग रहा तह की आज जैसे कोई बहुत भारी काम किया हो खाने के बाद मैंने पुछा- तुम्हारे पैर की खाल कैसे ही दवाई लगाई क्या

वो- नहीं बस कपडे से साफ़ किया था सोने से पहले लगा लुंगी

मैं- अभी लगाओ अब बस सोना है और क्या करना है लाओ दवाई मैं लगा देता हूँ बाकी काम बाद में मैं दवाई की ट्यूब को खोल ही रहा था की वो मोमबती भी दम तोड़ गयी कमरे में घुप्प अँधेरा हो गया


दूसरी मोमबत्ती है क्या

वो- नहीं ये छोटा सा टुकड़ा ही था पहले पता होता तो रख लेती

मैं – चलो कोई बात नहीं

रति बिस्तर पर बैठ गयी अँधेरे में बस अब हाथो से ही काम चलाना था अंदाजे से मैंने उसकी मैक्सी को ऊपर किया और उसकी जख्म पर दवाई लगाने लगा रति को थोडा दर्द होने लगा पर दवाई भी जरुरी थी उसकी कोमल जांघो को सहलाते हुए मैं दवाई लगा रहा था रति के बदन में एक बार फिर से गर्मी बढ़ने लगी थी
आराम मिल रहा है पुछा मैंने

वो- हाँ, उम्म्फ आज तो लगता है की जैसे पैरो की जान ही निकल गयी हो

मैं- पैर दबा दू

वो- नहीं नहीं

मैं उसकी सही वाली जांघ पर अपनी उंगलिया फिराने लगा रति मेरे स्पर्श से बेचैन होने लगी मैं धीरे धीरे अपने हाथ को ऊपर चूत की तरफ ले जाने लगा उसकी पेंटी की लाइन को छूने लगा मैं

वो पैर पटकते हुए- क्या कर रहे हो

मैं- कुछ . . कुछ भी नहीं

वो- सच में

मैं- तुम्ही देख लो कुछ भी तो नहीं कर रहा

ये कहने के साथ ही मैंने अपनी मुट्टी में उसकी चूत को कस लिया और भींच दिया


आआआआआअह उफफ्फ्फ्फ़ की आवाज उसके मुह से निकली और उसने मेरा हाथ पकड़ लिया

मैं- रति................. छूने दो मुझे

वो- क्यों मेरी परीक्षा लेने पे तुले हो क्यों सता ते हो मुझे इस कदर तुम, अब तो दर सा लगने लगा की कही मैं बह न जाऊ तुम्हारे साथ

मैं उसकी चूत को मसलते हुए, - तो क्या हुआ क्या तुम्हारा हक़ नहीं अपने हिस्से की ख़ुशी को पाने का क्या तुम्हे इस जिस्म की अंगड़ाईयाँ मजबूर नहीं करती रति मैं बस चाहता हूँ की तुम भी इस ख़ुशी को महसूस करो आखिर कब तक अपने झूठे विश्वाश के बूते जीती रहोगी तुम, मैं कोई भंवर नहीं हूँ जो जिसे बस तुम्हारे यौवन के रस को चखने की प्यास है

तुम्हे दिल से अपना मान लिया है सहयाद ये मेरी किस्मत का कोई करम था जो तुम्हारे दरवाजे पर मुझे ले आया
वो- पर तुम वो भी तो नहीं हो जिसको मैं ये सब सौंप सकूँ मैं

मैं- तो फिर क्यों मैं यहाँ तक आ गया क्यों तुम मुझे मेरी पहली कोशिश पर ही नहीं रोक सकी , मन की मेरी तो फितरत आवारा ठहरी पर तुम तो मजबूत थी फिर क्यों इस वक़्त तुम इस हालात म मेरी बाहों में सिमटी पड़ी हो रति जरा कोशिश तो करो मेरे मन को समझने को तुम्हारे लिए इसमें कोई छल कपट नहीं बस अगर कुछ हैं तो बस एक निश्चलता , एक अपना पण तुम्हारे लिए मैंने बहुत कोशिश की इन बीते चार दिनों में हर पल खुद को रोका पर नहीं रोक सका तुम्हारे करीब आने से तुम्हारे रूप की ये जलती हुई पवित्र ज्योति मुझे खीच लायी तुम्हारे पास


कच्छी का चूत के ऊपर वाला हिस्सा पूरी तरह गीला हो चूका था उसकी चूत से टपकते हुए योनी रस से मेरी उंगलिया चिप छिपी होने लगी थी मैं थोडा सा उसकी तरफ सरका और रति को बिना कुछ कहे अपनी बाहों में कैद कर लिया और उसके गालो को चूमने लगा वो मीठी मीठी सी सिस्कारियां भरते हुए मेरी गोद में चढ़ सी आई , मैंने अपने हाथो से उसकी पीठ को सहलाने लगा और थोड़ी देर बाद पूर्ण रूप से उस यौवन के छलकते प्याले को अपनी गोद में बिठा लिया मेरा तौलिया ना जाने कब का खुल चूका था मेरे कच्चे की कैद में मेरा लंड बेकाबू होकर बहार निकलने का प्रयास कर रहा था ऊपर से रति के गोद में आ जाने से उसकी गांड मेरे लंड पर पूरा दवाब डाले हुए थी


रति- आः आह आह

मैंने धीरे से उसकी मैक्सी को उसके बदन से आजाद कर दिया रति ब्रा-पेंटी में मेरी गोद में बैठी हुई एक नाकाम कोशिश कर रही थी पर उसका बदन जो अब जल रहा था उस आग में जिसको आज उस बरसात की सख्त आवश्यकता थी जो उसके तन मन को आज इस कदर भिगो दे, उसको औरत होने का सुख दे उसकी हर प्यास को आज भिगो दे उस बंजर जमीन पर मैं आज घनघोर बादल बन कर बरस जाना चाहता था कमरे की खुली खिड़की से चन चन कर ठंडी हवा अपने साथ बारिश के एहसास को भी ला रही थी उसके सेब जैसे गालो को अपने मुह में भरते हुए मैंने उसकी ब्रा को खोल दिया पल में ही उसकी कसी हुई छातिया मेरे सीने से आकार लग गयी उनकी नुकीली नोक मेरे सीने में धंसने लगी


बिना देर किये मैंने अपने चेहरे को उसके उभारो पर झुका दिया और उसकी एक चूची को मुह में भर लिया रति इस बार अपनी आहो को मुह में कैद नहीं रख पायी और उसके होतो से आह फूट पड़ी उम्म्म्फफ्फ्फ़ आःह्ह यीईईईए ये क्या कर दिया तुमने आः उसके बदन में जैसे 440 वाल्ट का करंट दोड़ने लगा था उसकी चूची क्या गजब थी मैंने एक को पीने लगा और दूसरी को भेंचने लगा मदमस्त मस्ती की तरंग रति के कामुक बदन में हिलोरे लेने लगी कमरे के सन्नाटे को उसके लबो से फूटी आहे भंग करने लगी


अब मैंने रति को बिस्तर पर पटक दिया और जल्दी से अपने कच्छे को उतार फेंका और जल्दी से दुबारा उसकी छातियो पर झुक गया पर इस बार मैंने उसके हाथ को लिया और लंड पर रख किया रति इ लंड को पकड़ लिया और अपनी मुट्ठी में कस लिया औरत के हाथ को महसूस करते ही लंड की नसे फूलने-पिचकने लगी मैं बारी बारी से उसके दोनों बोबो का रसपान करने लगा रति धीरे धीरे मेरे लड को सहलाने लगी मुझे ख़ुशी थी की रति खुले मन से मेरा साथ दे रही थी आखिर उसे भी तो हक था अपनी इच्छाओ को जीने का चाहे फिर ये रास्ता बेशक गलत ही क्यों ना था पर फिर भी ................


करीब दस मिनट बाद मैं उसके बोबो से हट गया और उसकी कच्छी को उतरने लगा रति ने एक बार फिर से कम्जोर कोशिश की और कांपती सी आवाज में बोली- मानोगे नहीं मुझे भी पापिन करोगे ही अपने साथ
मैं- ये कोई पाप नहीं है रति बस मिलन है दो दोस्तों का मिलन है दो हिस्सों का जो अब से पहले भटक रहे थे कही पर

मैंने जैसे ही इलास्टिक को खीचा रति ने अपनी गांड को थोडा सा ऊपर कर लिया ताकि मैं उसकी कच्छी को आराम से उतार सकू , अब उस अँधेरे में हम दोनों बिलकुल नंगे थे मैंने उसकी नाभि पर हल्का सा चुम्बन अंकित किया रति के समूल में हलचल मच रही वो किसी मछली की तरह मचलने लगी की आस हो जल्दी से समुन्दर में मिल जाऊ मैंने अपने हाथो से उसकी चूत को टटोला छोटी सी अनछुई चूत उसकी बेहद ही चिकनी एक भी बाल नहीं वहा पर ऐसा लगता था की जैसे आज या कल ही सफाई की गयी हो उसकी बहुत चिकनी पूरी तरह से योनी रस से भीगी हुई


मुझसे अब काबू ना रहा मैंने उसकी टांगो को सावधानी से थोडा सा फैलाया क्योंकि उसके पैर में जख्म भी तो था उस वजह से और अपने सर को उसकी जांघो के बीच में घुसा दिया , रति की चूत पर जीभ रखते ही मुझे मजा आ गया खारा खारा सा पानी मेरी जीभ से लड़ने लगा मेरी खुरदरी जीभ की रगड़ जो चूत पर पड़ी रति बुरी तरह से मचल पड़ी ओह्ह्हह्ह्ह्ह क्येआ किया तुम्नीईईईईईईईईईईई या क्याआआअ कर दिया ये तुमने मैंने मजबूती से उसकी टांगो को थामा और रति की पूरी चूत को अपने मुह में भर लिया रति की तो जैसे सिट्टी-पिट्टी गम हो गयी उसकी धड़कने बढ़ गयी साँसे रुक्नो को आई


उसकी चूत कर रस मेरे गले से नीचे उतरने लगा चूत की पतली सी दरार में मैं अपनी जीभ को घुसेड़ने लगा रति की गांड अपने आप उछालने लगी चूत से आती काम रस की मनमोहक खुशबू मेरे नथुनों से होती हुई दिल में उतरने लगी करीब ३-४ मिनट तक चूत को चाट ता रहा मैं रति ने अणि सिस्कारियो से जैसे पुरे कमरे को सर पर उठा लिया था मदहोशी के आलम में वो मेरे सर को बार बार अपनी चूत पर दबा रही थी मुझे थोड़ी मस्ती सूझीऔर मैंने उसकी चूत के भाग्नासे को अपने दांतों में दबा लिया क्या बताऊ उसका हाल कैसा था उस पल में



रति मेरे इस वर को सह नहीं पाई और तेज आवाज करते हुए मेरे मुह में ही झड़ने लगी उसकी चूत के पानी के कतरे कतरे को मैंने अपने गले में उतार लिया लम्बी लम्बी सासे लेटे हुए रति बिस्तर पर निढाल पड़ गयी

मैं भी उसकी बगल में लेट गया उसके बोबो को फिर से दबाते हुए मैंने पुछा- सच बताना कैसा लगा

वो- हांफते हुए- कमीने हो तुम , बहुत ज़ालिम हो तुम

मैं- मजा आया न

वो-मेरी छाती मे मुक्का मारते हुए बोली- धत्त


मैंने उसके आहत में फिर से अपने लंड को दे दिया और बोला – देखो ना इसको कितना गरम हो गया है
तुम्हारे लिए

ये रति उसको सहलाने लगी और बोली- तुम पहले भी ये सब कर चुके हो ना

मैं- हां कर चूका हूँ पर ये ना पूछना की किसके साथ वर्ना रात वो सब बताने में ही गुजर जायेगी और मैं तुम्हे प्यार नहीं कर पाउँगा

रति लंड को हिलाने सा लगी

मैं- रति इसको भी प्यार करो ना

वो- कर तो रही हूँ न

मैं- ऐसे नहीं जैसे मैंने तुम्हारे वहा पर कियावैसे ही इसको किस करो ना

वो- मुझसे नहीं होगा

मैं- क्या मेरे लिए नहीं करोगी

वो- नहीं होगा नामैं कुछ एर के लिय खामोश हो गया करीब ५ मिनट बाद मुझे लंड पर कुछ गीला सा महसूस हुआ

मैंने टटोला तो रति का सर था उसने लंड पर अपने कामुक होंठ रख दिए और उसको किस करने लगी मेरे मुह से आह निकली मैं बोला बहुत अ बढिया जरा मुह खोल कर इसको थोडा सा अन्दर ले लो

रति ने अपना मुह खोला और मेरे सुपाडे को अपने होंतो में दबा लिया कसम से प्राण ही निकलने को आये रति धीरे धीरे करके पुरे लंड से खेलने लगी मुझे बड़ा मजा आने लगा था उसके गुलाबी होंतो में मेरा लंड कैद था धीरे धीरे करके उसने आधे लंड को मुह में ले लिया था उसके मुह से रिश्ता थूक लंड को चमका रहा था चिकना कर रहा था
पर मैं उसके मुह में नहीं झाड़ना चाहता था , अब मैं पूरी तरह से तैयार था उसकी चूत मारने को मैंने लंड को उसके मुह से निकाल लिया और रति को बिस्तर पर लिटा दिया एक तकिये को उसके कुलहो के नीचे लगाया ताकि उसकी चूत ऊपर उठ जाए और मुझे लेने में आसानी हो , मैंने थोडा सा थूक उसकी चूत पर लगाया और लंड को चूत पे सता दिया रति की चूत आज पहली बार लंड को अपने मुह पर महसूस कर रही थी रति का बदन बुरी तरह से कांप रहा था , मैंने सुपाडे को चूत के दरवाजे पर सेट किया और धक्का लगाया पर वो फिसल गया रति के मुह से आह निकली


मैंने थोडा सा थूक और लगाया लंड पर बिलकुल भिगो दिया उसको एक बार फिर से लंड तैयार था इस बार जो धक्का लगाया उसकी चूत को फाड़ते हुए आधा सुपाडा अन्दर को सरक गया और इसी के साथ रति के गले से एक चीख निकल पड़ी अ”आः आह माँ मैं तो मरी रे ” उसका पूरा जिस्म अकड़ गया वो मेरी पकड़ से छुटने को जोर लगाने लगी पर मैंने उसको मजबूती से पकड़ा और एक धक्का और लगाया उसकी चूत अन्दर से इतनी गरम थी की मुझे लगा मेरा लंड जल ही जायेगा रति की रुलाई छुट पड़ी वो दर्द से रोने लगी पैरो को पटके पर मेरी पकड़ मजबूत


मैंने थोडा सा जोर और लगाया और इस बार आधा लंड चूत में घुस गया , बेहद टाइट चूत उसकी लंड रोता रोता सा अन्दर को जाए

रति रोते हुए-“बहुत दर्द हो रहा है मैंने तो मर ही गयी, आह निकालो इसे बहार ”

,मैं- बस हो गया हो गया अभी सब सही हो जायेगा

पर चूत फटने का दर्द तो वो ही जाने उसे ही झेलना था मैंने लंड को थोडा सा पीछे को खीचा और पूरा जोर लगाते हुए फिर से आगे को ठेल दिया रति की चूत की पंखुडियो को फैलाते हुए मेरा पूरा लंड चूत में धंस चूका था मेरे अंडकोष उसकी जांघो के जोड़ से टकराए मैं उस पर छाता चला गया रति की रुलाई बढ़ गयी मैं चुपचाप उसके ऊपर लेता हुआ था


करीब ५-७ मिनट बाद मैं बोला- बस अभी सब ठीक हो जायेगा बस थोड़ी हिम्मत रखो

वो- क्या ख़ाक हिम्मत रखु मुझे तो सांस नहीं आ रहा है ऐसा लगता है किसी ने तेजधार छुरी घुसेड दी हो

मैं- दो मिनट रुको तो सही

मैंने अपने लबो को उसके लबो से जोड़ दिया और उनको चूमने लगा ताकि दर्द से उसका ध्यान हट सके

मैं- तुम्हारे होंठ बहुत मीठे है

वो- सच में

मैं- तुम्हारी कसम मेरी जान चीनी भी कुछ नहीं जब इनका स्वाद आये

वो- आह ये दर्द

मैं – इस दर्द का भी एक सुख है रति उस सुख को सोचो

मैंने लंड को अब धीरे धीरे से हिलाना शुरू कर दिया उसकी दर्द भारी सिस्कारिया तेज हो गयी

रति- थोड़ी देर रुक जाओ ना बहुत दर्द हो रहा है

मैं- ये दर्द तो सहना ही होगा तुम्हे, हर औरत सहती है


मैंने अब लंड को किनारे तक बहार खीचा और रति की चूत में फिर से पेल दिया इस बार उसकी चीख मेरे मुह में ही दम तोड़ गयी अब मैंने उसको चोदना शुरू किया धीरे धीरे से हम दोनों के होंट ऐसे चिपके एक दुसरे से जैसे की फेविकोल का जोड़ हो कमरे की उमस से हम दोनों के शरीर से पसीना बह चला था कुछ देर बाद उसने अपने होंठ छुडाये और बोली दर्द कम होने लगा है मैंने कहा थोड़ी देर में गायब हो जायेगा और कस कर एक धक्का लगा दिया उसके बोबे मेरे हर धक्के पे बुरी तरह से हिल रहे थे

बस अब मुझे इस सूखी जमीं पर बादल बनकर खूब बरसना था अपने प्यार की बूँद बूँद से रति को पुलकित कर देना था चूत को मारते हुए मैंने धीरे से उस से पुछा कैसा लग रहा है

रति- कांपती आवाज में, बहुत अलग सा लग रहा है ऐसे अलग रहा है की जैसे मैं बहुत हलकी हो गयी हू मैं-
ये तो बस शुरुआत है

मेरे धाक्को की रफ़्तार अपने आप बढती जा रही थी रति की टाँगे अब ऊपर को होने लगी थी आह आह करती हुई वो चुदाई के रंग में रंगती जा रही थी पूरा लंड उसकी चूत में झटके से अन्दर बहार हो रहा तह लंड जब बहार को खीचता तो लगता की चूत की पंखुड़िया उसके साथ ही आएँगी बहुत ही चिकनी और गरम चूत उसकी, चूत से जो पानी रिस रहा था उस से उसकी जांघे और मेरे अंडकोष पूरी तरफ से गीले हो चुके थे रति कभी किस करती कभी अपने हाथो को मेरी पीठ पर रगड़ते हुए चूत मरवा रही थी


दो जवान जिस्म एक दुसरे में समा चुके थे घपा घप थप थप करते हुए मेरी टंगे उसकी टांगो से टकरा रही थी हम दोनों के होंठ थूक से पूरी तरह सने हुए थे उसका झटके खाता हुआ बदन पहली बार चुदाई के आनंद को प्राप्त करने की दिशा की और बढ़ रहा था साँसे सांसो में घुल रही थी धीरे धीरे उसके कुल्हे मेरे धक्को से कदम ताल मिलाने लगे थे चुदाई का सुरूर हम दोनों पर चा चूका था कमरे का वातावरण जैसे दाहक उठा था दिलो की आग जिस्मो की आग में तब्दील हो चुकी थी


उसकी चूत बहुत ज्यादा पानी छोड़ रही थी मेरा मस्ताना लंड उसकी चूत की हर दिवार क चूम चूम जा रहा था अचानक से ही रति की पकड़ मेरे जिस्म पर बहुत कस गयी उसने अपनी टटांगो को मेरी कमर की तरफ लपेट लिया और मुझे कस के अपने सीने से लगा लिया उर पता नहीं क्या क्या बद्बदते हुए अपने चरम सुख को महसूस करने लगी, उसकी जिंदगी की पहली चुदाई , पहले सुख को प्राप्त कर लिया था उसने पर मैं उसको अब तेजी से चोदे जा रहा था रति बुरी तरह से हाई हाय करते चुद रही थी वो झड गयी थी इसलिए अब उसक परेशानी हो रही थी


पर मैं क्या करू जब तक मेरा काम न हो कैसे छोड़ दू उसक पसीने से उसका पूरा बदन गीला हो चूका था वो कराहते हुए बोली छोड़ दो ना मुझे अब सहन नहीं होता है

मैं- हांफते हुए बस दो मिनट रुको होने वाला है मेरा भी

मैं धक्के पे धक्के लगाये जा रहा था बिना रुके हुए मेरे चेहरे पर सारा खून जमा होने अलग शरीर का जिस्म बुखार की तरह तपने लगा मेरा और फिर आह जैसे किसी ने बदन से पूरी ताकत निकाल ली हो मेरी मैं उसके ऊपर देह गया लंड से एक के बाद एक वीर्य की पिचकारिया उसकी गरम चूत में गिरने लगी मैं साख से टूटे किसी पत्ते की तरह उसके ऊपर ढेर हो गया
किसी दरख्त की टूटी शाख की तरह एक दुसरे के बाजु में पड़े थे हम लोग बाहर अब बरसात ही रही थी या नहीं पर अन्दर कमरे में अभी अभी एक बारिश थमी थी जिसमे मैं और रति बुरी तरह से भीग चुके थे , मैंने अपना हाथ उसकी छाती पर रखा , उसकी सांसे बहुत तेजी से चल रही थी मैंने उसको अपने सीने से चिपका लिया दिल को करार सा आ गया , थी कौन वो मेरे लिए एक अजनबी जो बस अब अजनबी ना रही थी , वो कैसे एक ताजा हवा के झोंके की तरह मेरे मन मंदिर में उतर गयी थी , क्या ये किस्मत का एक और इशारा था या बस मेरी आवारगी की एक और दास्ताँ

उसके चेहरे पर उलझ आई बालो की लटो को सुलझाते हे बोला मैं-“रति, ”

वो-हूँ

मैं- क्या सोच रही हो

वो- अपने आने वाले कल के बारे में

मैं- क्या दीखता है

वो- कुछ नहीं

मैं- रति, कभी सोचा नहीं था की तुम यु मेरी जिंदगी में आ जाओगी मेरा इस तरह तुम्हारे शहर में आना तुमसे मिलना सब किस्मत का ही तो लिखा है , जो पल तुम्हारे साथ जी रहा हूँ कल को जब यहाँ से जाना होगा कहीं मेरे पांवो की बेडिया ना बन जाये

वो- कहना क्या चाहते हो

मैं- कहीं मैं तुम्हे चाहने तो नहीं लगा

वो- ऐसा नहीं हो सकता

मैं- क्यों नहीं हो सकता

वो- मत भूलो की मैं किसी और की थी और उसकी ही रहूंगी , मैंने अभी जो भी तुम्हारे साथ किया उसका भली भाँती अंदाजा है मुझे , जानती हूँ ये बहुत गलत किया है मैंने पर मेरा दिल फिर भी इसे सही कह रहा है

मैं- दिल की बात दिल जाने मैं तो अपना हाल बता सकता तुम्हे

वो उठने की कोशिश करते हुए- आः आह दर्द होता हैं

मैं – कहा पर

वो- कहीं नहीं

मैं- बताओ ना

वो- उठाओ मुझे जरा ऐसा लगता है की किसी ने जान ही निकाल ली हैं मेरी तो ओअः


मैं उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में भरते हुए, यहाँ दर्द होता है क्या

वो- बड़े पाजी हो तुम भी , उठाओ न जरा सा , पानी पीना है मुझे

मैं- मैं लाकर देता हूँ

मैंने पानी का गिलास उसको पकडाया अँधेरे में कुछ बूंदे उसके पेट पर गिर गयी तो वो चिहुंक उठी

मैं- क्या हुआ वो ठंडा पानी पेट पर गिर गया मैं हंसने लगा

मैं फिर से उसके पास लेट गया और रति के हाथ को थाम लिया

वो- क्या इरादा हैं

मैं- तुम्हे प्यार करने का

वो- अभी किया तो था

मैं- और करना है

वो-ना बाबा ना अभी तक दुःख रहा हैं मुझे

मैंने चुपचाप अपने लंड को उसके हाथ में दे दिया लंड उसके हाथ में जाते ही फिर से तनाव में आने लगा रति अपने हाथ को लंड पर ऊपर नीचे करने लगी मैं अपनी ऊँगली को उसकी गहरी नाभि पर फिराने लगा उसके कोमल बदन में फिर से एक बार हलचल सी होने लगी , मैंने अपना मुह उसकी चूची पर लगाया तो उसने कस कर मेरे अन्डकोशो को मसल दिया दर्द और मजे का मिश्रित अनुभव हुआ मुझे , मैंने अपने दांतों से उसके निप्पल को काटा


“आह , क्या करते हो दुखता हैं ना”
 

Incest

Supreme
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मैंने उसको अनसुना कर दिया और अपना कम जारी रखा रति की साँसे धीरे धीरे फूलने लगी थी उसकी छातिया सख्त होने लगी थी वो अपने हाथ को तेजी से मेरे लंड पर ऊपर नीचे कर रही थी मैं बारी बारी से उसके दोनों बोबो को मसलते हुए पि रहा था मेरा औज़ार पूरी तरह फिर से तैयार हो चूका था बस अब ढील करने की कोई जरुरत नहीं थी दोनों जिस्म एक बार फिर से एक दुसरे में समा जाने दो बेताब होकर बिस्तर की चादर पर मचलने लगे थे


मैंने रति के कुलहो पर थाप दी और उसको टेढ़ी कर दिया उसकी एक टांग को हवा में थोडा सा खोला और अपने लंड को उसके कुलहो के बीच से होते हुए चूत के सुराख़ पर रख दिया थोडा सा थूक मला मैंने सुपाडे पर उसके पेट को थामा और लगा दिया निशाना मंजिल की और फुच की आवाज आई और लंड बढ़ चला चूत की गहराइयों की और , रति के जिस्म ने झटका खाया मैंने उसकी कमर को अपने बाह से दबोचा और एक पेल और मार दी


“आह, धीरे से नहीं डाल सकते क्या तुम ”


मैं- अगली बार धीरे से डालूँगा अब तो गया न


“ओह ,रति कितनी कामुक हो तुम , कितनी गरम चूत है तुम्हारी जैसे की कोई भट्टी सुलग रही हो अन्दर देखो तुम्हारे रूप की तपिश से किस तरह पिघल रहा हूँ मैं ”

मैंने लंड को और आगे को ठेला रति ने अपने चुतद और पीछे को सरकाए उसके पेट को सहलाते हुए मैंने चुदाई शुरू की


“आह, थोडा आहिस्ता से मेरा पैर खीच रहा है ” बोली वो

मैं – कुछ नहीं होगा तुम बस समा जाओ मुझमे , मैं बनकर

रति ने खुद को और टेढ़ा कर लिया और अब हम दोनों के बीच ख़ामोशी सी छा गयी थोड़े वक़्त के लिए बस कुछ आवाज आ रही थी तो उखड़ी हुई साँसों की या फिर थप थप मेरी गोलियों की उसकी गांड से टकराने की एक बार फिर से जिस्म जिस्म को तौलने लगा था , हसरते फिर से रूमानी हो उठी थी चूत और लंड कामुक रस बहाते हुए, प्यास की होली खेलने लगे थे

दनदनाता हुआ मेरा लंड रति की चूत के छल्ले को फैलता हुआ घमासान मचा रहा था ऊपर से उसकी रसीली चूत इतना रस छोड़ रही थी की मैं क्या बताऊ, बस ये मोसम बेईमान बाहर हो रहा था एक बेईमानी हम लोग बिस्तर पर कर रहे थे पैर की वजह से रति को अब टेढ़ी होने में परेशानी हो रही थी मैंने उसको सीधा लिटा दिया और सावधानी से उसकी टांगो को फैलाया


मैं अपने लंड को अब उसकी चूत में ना डाल कर बस चूत के होंटो पर रगड़ रहा था कभी कभी जब वो उसके दाने से रगड़ खा जाता तो रति सिसक उठती, उसकी आह सुनकर मुझे बहुत अच्छा लग रहा था रति इस समय बहुत गरम हो चुकी थी , उसने खुद मेरा लंड चूत पर रख कर अन्दर डालने का इशारा किया जैसे ही मैंने अपनी कमर को आगे की तरफ किया एक बार फिर से मेरा लंड चूत की पंखुडियो को चूमता हुआ रति के गर्भाशय की तरफ बढ़ने अलग उसकी टाँगे अपने आप चोडी होने लगी मैंने बिना उसपे झुके उसको चोदने लगा रति अपने हाथो से मेरे सीने को सहलाने लगी


चिकनी चूत में मेरा मस्ताना गरम लोडा तेजी से अन्दर बहार होने लगा था रति की आहे सीधा जाकर छत से टकरा रही थी , ऐसी गरम चूत को चोदना मेरे लिए सोभाग्य की बात थी हर धक्के के साथ मैं उसके ऊपर आता जा रहा था अब मैं बिलकुल उसपे गिर चूका था हमारे होंठ एक दुसरे से टकराने लगे थे उर फिर धीरे से मैंने उनको आपस में मिला लिया क्या मजा आ रहा था मुझे रति की गांड कामुकता की अधिकता से बहुत ज्यादा थिद्रक रही थी चूत का पानी रह रह कर छूट रहा था करीब बीस पचीस मिनट की घमासान चुदाई के बाद मैं और रति बस आग पीछे ही छुट गए, एक बार फिर से उसकी चूत ने मेरे वीर्य की छोटी से छोटी बूँद को अपने अन्दर सोख लिया था
“मत पूछ की क्या हाल है मेरा तेरे आगे , जरा देख क्या रंग है तेरा मेरे आगे ”

रात के उन लम्हों को अपनी आँखों में कैद किये कब रति की बाँहों में नींद आ गयी फिर मुझे पता ही नहीं चला सुबह थोड़ी सी ठण्ड के अहसास से आँख खुली तो देखा की रति की कम्बल की तरह मुझसे लिपटी हुई सो रही है गुलाबी चेहरे पर एक नूर सा था उसे देख कर ऐसे लग रहा था की जैसे किसी गुलाब के ताज़ा पत्ते पर शबनम की कुछ बूंदे बिखरी पड़ी हो , आहिस्ता से मैंने उसको अपने से दूर किया और अपने कपडे उठा कर बाथरूम में घुस गया , पूरा बदन एक मीठी सी कसक से कसमसा रहा था


जब मैं वापिस आया तो देखा की रति भी जाग गयी है मुझे देख कर वो शरमाई और चादर से अपने बदन को ढक लिया

मैं- मुझसे कैसा पर्दा , देखने तो मुझे तुम्हारे इस हूँस्न को

वो- मुझे शर्म आती है

मैं- अच्छा जी रात को तो बड़ी बेशर्मी हो रही थी

रति- चुप रहो तुम, रात की कोई बात ना करो

रति चादर लपेटे हुए ही उठी और बाथरूम में घुस गयी मेरा दिल तो किया की उसके पीछे पीछे बाथरूम में घुस जाऊ पर फिर जाने दिया मैंने दरवाजा खोला और बहार का हाल देखा घर के बहार बरसात के कारन जबरदस्त कीचड हुआ पड़ा था पर अपने को क्या था मैं आज के बारे में सोचने लगा , मुझे नीनू के साथ घुमने जाना था पर दिल रति के साथ रहने को कर रहा था , ये साला दिल भी अजीब चीज़ बनायीं उस उपरवाले ने कब क्या कर जाये कब धोखा दे जाये किसी को कुछ पता नहीं खैर,


रति ने मुझे चाय का गिलास पकडाया और पुछा-“ तो आज का क्या इरादा है ”

मैं- तुम्हे प्यार करना

वो- उसके आलावा

मैं- नीनू के साथ जाऊंगा कुछ इधर उधर घुमने, फिर तुमसे मिलूँगा शाम को सच कहू तो तुम्हारे साथ ही रहने को दिल करता है पर नहीं गया तो वो नाराज हो जाएगी


रति- उसको नाराज करना भी नहीं चाहिए तुम्हे

मैं- और तुम्हारी नाराजगी

- मेरी कैसी नाराज़गी, मैं तो सफ़र की किसी सराय जैसी, वो हमकदम तुम्हारी

मैं- तुम भी कुछ लगती हो मुझ में पूछो

वो- कोई जरुरत नहीं ,तुम आराम से घुमो फिरो एन्जॉय करो , और हाँ शाम को जब आओ तो मकेनिक से पता करके आना मेरी स्कूटी ठीक की या नहीं

मैं- ठीक है मालिको , और कोई हूँक्म आपका

वो हँसते हुए- और कुछ नहीं

मेरे कपडे थोड़े थोड़े से गीले थे तो मैं उनको प्रेस करके सुखाने लगा रति खाने की तैयारिया करने लगी बार बार हमारी नजरी एक दुसरे से टकरा रही थी बिना बात के जैसे कोई तो बात थी जो बरबस ही होंठो पर आकर रुक सी जा रही थी , ये कैसी कशिश थी जो पल पल हमे एक दुसरे की तरफ ला रही थी उसके गीले बालो से आती वो मनमोहक जादुई खुशबू मुझे धीरे धीरे से उत्तेजना की तरफ धकेल रही थी मेरा ध्यान प्रेस से ज्यादा रति के बदन से टपकती हुई कामुकता की तरफ हो रहा था , मेरे दिल में फिर से रति को चोदने की इच्छा प्रबल होने लगी


आखिर मैं खड़ा हुआ और रति को पीछे से अपनी बाहों में भर लिया और उसके गालो को चुमते हुए उसकी ठोस गोलाइयो से छेड़ खानी करने लगा

रति-“छोड़ो ना मुझे खाना बनाने दो ”

मैं- बाद में बना लेना

वो- मानो ना

उसकी सलवार के नाड़े को खोलते हुए- मुझसे सब्र नहीं हो रहा खाना बाद में बना लेना पहले मुझे जो भूख है उसका सोचो

रति मेरी गर्दन में हाथ फिराते हुए- तुम्हारी ये भूख कभी नहीं शांत होगी , अभी मुझे परेशान मत करो ना

पर मैं कहा उसकी सुनने वाला था मैंने अपने रति की कच्छी को घुटनों तक सरका दिया और उसकी जांघो के बीच अपना लंड सरका दिया वो मेरे लंड को भीचते हुए बोली- तो नहीं मानोगे तुम

मैं- करने दो ना

वो – क्या करना है

मैं उसके सूट को निकालते हुए- तुम्हे,........ तुम्हे नहीं पता क्या करना है

मैंने उसकी ब्रा के ऊपर से ही उसके छातियो से खेलने लगा रति की गर्दन पर किस करते हुए अपने लंड को उसकी टांगो के बीच एडजस्ट करने लगा रति थोड़ी ना नुकुर कर रही थी पर मुझे पता तह की जल्दी ही वो मान जायेगी , मैंने कस के उसके दोनों बोबो को बेदर्दी सी मसल दिया तो वो गुस्से से मेरी और देखने लगी मैंने प्यार से उसके गाल पर किस किया और फिर से चूचियो को मसलने लगा रति ने अपनी आँखे बंद कर ली और खुद को मेरी बाहों के हवाले कर दिया जल्दी ही उसके निप्पलस खड़े हो गए टीवी टावर की तरह उसके गोरे चेहरे का रंग सुर्ख होने लगा


मैंने पास ही रखी तेल की सीशी से तेल लिया और रति की चूत पर मसलने लगा तेल से भीगी मेरी उंगलियों को की छेड़छाड़ को रति सह नहीं पा रही रही अपनी चूत पर मेरी एक पूरी ऊँगली अन्दर पहूँच चुकी थी उसकी टाँगे अपने आप खुलती चली गयी ,उसकी तेल से भीगी चूत को सहलाते हुए बड़े प्यार से मैं उसके निचले होंठ को अपने होंटो से लगाये हुए रति के साथ एक बार फिर से सम्भोग को तत्पर था, जल्दी ही उसकी योनी काम रस और तेल के मिश्रण से तरबतर हो चुकी थी मैंने उसको घुटनों पर झुकाया उसने अपनी टांगो को और खोला मेरे लिए


बिना देर किये मैंने लंड को फिर से अपनी मंजिल से मिलाने की लिए चूत से छुआ दिया रति क गीले बालो ने उसकी पूरी पीठ को ढक रखा था उनको साइड में किया और पीठ पर किस करते हुए चूत की चुदाई शुरू कर दी रति ने अपने कुल्हो को टाइट किया पर लंड तो जाना ही था चूत में , चूत की मासूम , सुकोमल पंखुड़िया फिर से लंड के चारो और कसी जा चुकी थी ,रति ने एक आह भरी और मैंने उसे थोडा सा और आगे को झुका दिया उसकी कमर के चारो और मैंने अपने हाथ लपेटे और अब लगा कस कस के उसकी चुदाई करने


लंड महाराज गरजते हुए उसकी चूत को दनादन पेले जा रहे थे रति की हवा में झूलती चूचिया बड़ी गजब लग रही थी पल पल उसके अन्दर और सामने की आरजू मेरी, दो तन मिलन कर रहे थे छप चाप की आवाज उसकी चूत से आ रही थी , रति के होठो से फूटती आहे मुझे और कामुक कर रही थी उसकी चूत के रस से पूरी तरह सना हुआ मेरा लंड उस छोटी सी चूत पर अपनी पूरी हकुमत चला रहा था मैं तो चाहता था की झड़ने तक रति को ऐसे ही घुटनों पर झुकाए रखु पर उसके पैर में लगी भी तो थी


तो जल्दी ही वो उस पोजीशन से उकता गयी , और खड़ी हो गयी लंड चूत से बाहर निकल आया वो भी चुदाई के इस मुकाम पर मैंने जल्दी से उसके चेहरे को अपनी और किया और फिर से उन शरबती होंटो को चाटने लगा रति भी मेरा पूरा सहयोग करने लगी करीब दो मिनट बाद मैंने उसको पास रखी कुर्सी पर बिठाया और उसकी केले के तने जैसी चिकनी जांघो को अपने कंधे पर रख लिया रति कुर्सी पर अधलेटी सी हो गयी , और एक बार फिर से मेरा लंड चूत चुदाई करने लगा रति का पूरा बदन मेरे धक्के के साथ साथ हिल रहा था छुई की मदहोशी में हो क्या क्या बोल रही थी पर मजा बहुत आ रहा था


उसकी चूत ने बहुत टाइट पकड़ बनायीं हुई थी मेरे लंड पर पर वो चूत ही क्या जिसे लंड चोद ना सके दाना दन बस चूत पर झटको की बरसात हो रही थी, मैंने रति को अपनी गोदी में ले लिया थोड़ी भारी थी वो पर जब लंड खड़ा हो तो क्या बोझ लगे, रति अब मेरे चेहरे को चूमते हुए मेरी गोदी में चुद रही थी मेरा पुरे चेहरे पर उसका थूक रिसने लगा था , उसके मोटे मोटे चुत्तदो को मजबूती से थाम रखा था मैंने , अगले दस पंद्रह मिनट बस हमारी साँसे ही उलझी रही एक दुसरे सी पसीना पसीना हो चुके थे हम दोनों , और फिर रति मेरी गोदी में ही ढेर हो गयी


वो ऐसे लिपट गयी मुझसे की क्या बताऊ उसकी छातिया जैसे मेरे सीने में घुस ही जायेंगी चूत से टपकता पानी हमारी जांघो को गीला करने में लगा था , और तभी मेरे लं ने भी रही सही कसर पूरी कर दी उसकी चूत से जब मैंने लंड को बाहर खीचा तो काफी सारे वीर्य की बूंदे बाहर को छलक पड़ी,............................. एक बार फिर से मैंने उसको पा लिया था ...

चुदाई का एक और दौर गुजर गया था रति मेरे आगोश से निकली और अपने कपडे पहन ने लगी मैंने भी आपके कपड़ो को दुरुस्त किया , रति चुपचाप रोटिया बनाने लगी मैं नीनू को फ़ोन करने के लिए एसटीडी पर चला गया ,उसने मुझसे स्पॉट बताया जहा हम मिलने वाले थे मैं उस से बात तो कर रहा था पर मेरा मन पूरी तरह से रति क चारो तरफ ही घूम रहा था , वापिस आकर मैंने खाना खाया और अपना बैग लेकर चल पड़ा ,मन तो नहीं कर रहा था पर नीनू भी मेरे लिए बहुत महत्त्व रखती थी , उस से भी तो नाता था अपना और उसको नाराज़ कर सकू इतनी हिम्मत नहीं थी मुझे


तय समय पर मैं पंहूँचा, नीनू पहले से ही मेरा इंतज़ार कर रही थी

कैसे हो , पुछा उसने

मैं-“ठीक हूँ, तुम बताओ ”

वो- मैं भी ठीक हूँ, कल तो जबरदस्त बारिश हुई ना,

मैं- हाँ हुई तो

वो-यार मैंने ऐसी बारिश पहले नहीं देखि कभी वो भी बिना मोसम के

मै- ये बिन मौसम की बारिशे भी अजीब होती है यार,

वो- तुम्हे क्या हुआ अब

मैं- कुछ होना चाहिए था क्या

वो- कुछ उखड़े से लगते हो

- कुछ नहीं यार , दिल पर एक बोझ सा लगता है,

- अक्सर कुछ हो तो उसको शेयर कर लेना चाहिए मन हल्का हो जाता है

बात तो सही थी उसकी पर कैसे बताता की रति पिछले चार दिनों में कितनी अपनी सी लगने लगी थी मुझे , क्यों मेरी हर सांस जैसे उसका ही नाम ल रही थी मैं नहीं जानता की मेरे मन में उसके लिए ये क्या था , क्या ये प्यार था या बस आकर्षण ही था कुछ तो था जो उस से इतना जुड़ाव लगने लगा था मुझे , शायद रहा होगा किसी जन्म में कुछ वास्ता उस से, वर्ना यु ही कोई अपना सा कहा लगा करता है


नीनू- “आओ एक चाय पीते है , साथ में तुम्हे जोधपुर की एक फेमस चीज़ भी चखाती हूँ ”

हमने पास ही थडी पर दो चाय और मिर्चिवड़ा बोला , लोग कहते हैं की जोधपुर आकर मिर्चिवड़ा न खाया तो आना बेकार , पूरी ही हरी मिर्च को बसन के घोल में पकाते है, जोधपुर की गरम दोपहर में गरम चाय के साथ इसका स्वाद, बस जबरदस्त से कम क्या कहूँ मैं, नीनू की हर बात में कोई ना कोई क्लास होती थी पर सादगी के साथ, यही उसकी सबसे अच्छी बात थी , ऊपर से उसकी और मेरी पसंद भी बहुत हद तक एक जैसे ही थी ,


चाय की चुस्कियां लेटे हुए मैंने पुछा-“ये कब पता चलता है की प्यार हो गया हैं ”

वो-एक दम से मेरी तरफ देखते हुए-“ तुम्हे हो गया क्या ”

मैं- मुझे लगने लगा है शायद से

वो- शायद से क्या हो गया या नहीं

मैं- तुझे क्या लगता हैं

वो- तेरे मन की मैं क्या जानू

मैं- तो फिर कौन जाने

वो- पता नहीं

मैं- नीनू , तूने किया किसी से प्यार

वो- ना, रे, अभी तक तो नहीं किया अब मेरी तरफ कौन देखे मैं कौन सी श्रीदेवी हूँ

मैं- कुछ तो बता ,

वो- ये तो प्यार करने वाला ही बता सके है यार, वैसे जो फिल्मो में दिखाते है वैसा कुछ हो रहा हैं क्या तुझे

मैं- ना रे, बस कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा मन मेरा भटका सा लगे है , बस रोने को जी चाहे

वो- बावला हुआ के

मैं- हाँ बावला हुआ हूँ

वो- देख, ये प्यार व्यार कुछ ना होवे है, क्यों अपना टाइम इस सब के बारे में खराब करते हो, तुम्हे मैं जब से जानती हूँ , तुम्हारा मन तो तबसे ही भटका भटका सा लगता हैं ,ये जो अजीब सी हरकते करते हो ना तुम , मुझे ये पागलपन के लक्षण लगते है, कल ही मेरे मामा बता रहे थे की पागल भी काफ़ी प्रकार के होते है मुझे तो लगे है घर पहूँचते ही तुम किसी डॉक्टर को दिखा ही लो एक बार .


मेरे मन में प्रबल इच्छा हुई की इसकी गांड पे लात दू, हम तो अपना दुखड़ा रो रहे है, इनको बकचोदी सूझ रही हैं

मैं- हाँ, वापिस चलते ही डॉक्टर को दिखा आऊंगा क्या पता बीमारी बढ़ जाए आगे

नीनू- मुझे कुछ कपडे खरीदने है तूम चलो मेरे साथ, उसके बाद तुम्हे मस्त लंच करवाउंगी

मैं- चल ले चल तेरी मर्ज़ी जहा हो वाही पर ले चल

लफ्जों की सौदे बाज़ी में उलझ कर रह गया था , मुझे पता था की नन्दू को अंदाजा हो चला था की मैं जो उस से कह रहा था, बात बड़ी गहरी थी पर शायद थोडा सा झिझक रही थी और मैं रति के प्रति अपनी भावनाओ को उसको चाह कर भिब बता नहीं पा रहा था , पर वो जो किसी आंधी- तूफ़ान की तरफ मेरी जिंदगी में आगयी थी उसका क्या , मेरे समूचे अस्तित्व को हिला कर रख दिया था रति ने, मानता हूँ की जिस्मानी रिश्ता जुड़ गया था उसके साथ पर मेरा और उसका रिश्ता था क्या, वो समझ नहीं आ रहा था
 

Incest

Supreme
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मैं तो एक आवारा परिंदा था जिसकी चोंच बस घोंसले से बाहर निकली भर ही थी पर रति एक शादी शुदा औरत थी चाहे उसकी गृहस्ती में हजार समस्या थी पर उनका समाधान हो ही जाना था , अगर मैं उसके सामने अपना प्रणय निवेदन कर भी दू, तो वो मेरे साथ नहीं आएगी, उम्र में भी बहुत बड़ी थी वो पर उसको छोड़ो कैसे मैं सामना करूँगा अपने घरवालो का , क्या बताऊंगा उनको कैसे रति का परिचय करवाऊंगा उनसे ये सब तमाम सवाल मेरे दिमाग में घुमने लगे एक साथ , सर में दर्द होने लगा मैंने ऑटो वाले को रोकने क कहा और उतर गया


नीनू भी मेरे पीछे आई और पानी की बोतल देते हुए बोली – क्या बात है क्या हुआ

मैं- नीनू, एक समस्या का समाधान करो ना , कुछ भी समझ नहीं आ रहा हैं, ये जिंदगी कैसा खेल खेल रही है मेरे साथ कुछ पता नहीं

नीनू मेरा हाथ पकड़ते हुए,- बताओ तो सही क्या बात हैं जब तक नहीं बताओगे , मैं कैसे कुछ कर पाऊँगी
हम लोग वही सड़क किनारे बैठ गए, मैं दो घूंट पानी पिया पर वो भी कलेजे को जा लगा नीनू एकटक मेरी और देखे जा रही थी , उसको समझ नहीं आ रहा था कुछ या वो सबकुछ जान कर भी अनजान बन रही थी

वो- चलो अब बताओ भी बात क्या है

मैं- यार ऐसा लगता है की जैसे मेरा चैन, करार सब छीन लिया हो किसी ने पिछले दिन जो इस शहर में गुजारे है मेरी जिन्दगी में तूफ़ान ले आये है, दिल पर काबू नहीं रहता मेरा

वो- देखो, इस अल्हड उम्र में हर चीज़ जिस से हमारा लगाव हो जाता है उसे हम प्यार समझ लेटे है जबकि तुम एक बार ठीक से सोचो क्या प्यार के लिए हम अभी तैयार है , ज़िन्दगी की शुरुआत हो रही है बहुत कुछ करना है , एक मुकाम बनाना है और फिर वैसे भी हम तुम एक छोटे से गाँव से ही तो है क्या तुम्हे नहीं पता की वहा इन सब बातो की क्या औकात है

मैं- नीनू , सब समजता हूँ मैं पर मेरा दिल , ये धड़कने कैसे काबू करू मैं इनपर देखो अभी भी कैसे धडक रहे है यार , मैं भी हर बात को समझ ता हूँ पर ये उलझने, कितना सुलझाऊ इन्हें

वो- सुलझाने की कोई जरुरत नहीं सब ठीक होगा अपने आप

अब मैं उसको क्या बताता की क्या गुजर रही है मुझ पर रति को छोड़ बेशक लिया था मैंने वो मेरी वासना थी पर कहीं ना कही मेरा मन उसको अपने अन्दर बसाने को मचल रहा था

वो- मुझे लगता है की तुम कोई बात खुल के नहीं बता रहे हो मुझसे छुपा रहे हो

मैं- नीनू, अगर कभी मैं जिंदगी की राह पर डगमगाऊ तो क्या तुम मुझे थाम लोगी

वो- मैं कैसे थाम सकुंगी तुम्हे, थोड़े दिन बाद हमारी राहे अलग हो जाएँगी, फिर क्या पता किस मोड़ पर मिले ना मिले

मैं- तो क्या अपनी दोस्ती बस इतनी ही है

वो- एक लड़की और लड़के की दोस्ती की बिसात अब क्या बताऊ तुम्हे , देखो कल को मैं पढने के लिए या नोकरी के लिए कही और जाउंगी तुम कही और, फिर शादी हो जाएगी कुछ हदे हो जाएगी , अब तुम ना समझ तो हो नहीं इतनी दुनिया दारी तो जानते ही हो

मैं- तुम्हारे मेरे बीच में दुनियादारी कब से आ गयी

वो- पर सच भी तो वाही है ना

मैं- तो अगर मैं कहूँ , की तुम मुझसे शादी कर लेना फिर तो ठीक रहेगा ना

वो- कैसे कर लुंगी तुमसे शादी और क्यों करुँगी बताओ जरा

मैं- मैंने सोचा मैं तुमसे मतलब हम लोग प्यार करते है

वो- कब से, मुझे भी तो बताओ

मैं- नीनू , देखो मैं हमेशा से अकेला रहा अपनों के बीच भी और बहार भी , एका एक मेरे जीवन में बहुत कुछ घटित हो गया हालाँकि मैंने कभी ऐसा नहीं सोचा था की ऐसा भी हो सकता है तुमसे बाते होने लगी तुम्हे खुद का ही एक हिस्सा मानने लगा मैं , मैं ठहरा सीधा साधा , ये बनावटी बाते मुझे आती नहीं और ना मैं कोई चापलूसी करना चाहता हूँ पर कभी कभी मेरे मन में ये ख्याल भी आता हैं की तुम एक बेहतर जीवन साथी बन सकोगी मेरे लिए


नेनू- देखो तुम बात को सीधे शब्दों में समझो, मेरा जो तुमसे नाता है वो एक पवित्र बंधन है हम दोनों कभी आपस में कुछ नहीं छुपाते है लगभग हर बात शेयर करते है पर इस रिश्ते की भी लिमिट है , हंसी मजाक एक जगह है पर हम लोग सचाई से भी तो मुह नहीं मोड़ सकते है मैं तुम्हे बहुत अच्छे से जानती हूँ और बस इतना ही कहूँगी की जितना भी समय हम साथ रहेंगे तुम मेरे सबसे अच्छे दोस्त रहोगे , क्या पता हमेशा के लिए मेरे मन में तुम्हारी याद रहेगी पर अभी इन सब बातो का कोई फायदा है ही नहीं , और जबकि तुम अब भी फालतू बातो की जगह अपने मन की असली परेशानी को छुपा रहे हो मुझसे


नीनू ने लास्ट के शब्दों में सही जगह पे चोट कर दी थी, मुझे उस समय समझ में आया की ये लड़की मुझे मुझसे भी ज्यादा समझती हैं जानती है उसपे मर मिटने को जी चाहा मेरा पर मेरी भी मज़बूरी थी क्या बताता मैं उसको की कैसे रति के साथ रात गुजारी थी मैंने कैसे मेरे भटकते मन को वो भी एक किनारा लगने लगी थी मैं जानता था की अगर रति का यु जिक्र करूँगा तो फिर पिस्ता, बिमला सब तक बात जाएगी मेरे मन में चोर था डर था की कहीं नीनू मेरे बारे में कुछ गलत ना सोचने लगे कही वो मुझसे दूर ना चली जाए तो मैं सोचा की छोड़ इस बात को फिर कभी सोचेंगे


मैंने बात बदलते हुए कहा – छोड़ो ना यार मेरी वजह से तुम्हारे अच्छे खासे मूड का नाश हो गया आओ चलो शौपिंग करते है , वैसे भी हम याहा घुमने फिरने आये है ये रोना धोना तो अपने शहर में भी कर लेंगे , नीनू मुस्कुराई पर उसके चेहरे पर तनाव की झलक मैंने पढ़ ली थी ,


अगले कुछ घंटे बस कपडे खरीदने में ही गुजर गए नीनू एक दूकान से दूसरी , दूसरी से तीसरी घुमाती रही कुछ खट्टी मीठी बाते होती रही एक बार फिर से मैं नार्मल होने लगा , मैंने सोचा क्यों इतना फिकर करू ज़िन्दगी को इसके हिसाब से चलने देता हूँ, जो होगा देखा जाएगा पर रति का वो मासूम चेहरा हट ता ही नहीं आँखों के सामने पर सच तो यही था की वो बस एक हसीं ख्वाब ही था मेरे लिए जो वक़्त के साथ धुंधला हो जाना था


पूरा दिन नीनू के साथ पैदल पैदल घुमने के बाद मैं बुरी तरह से थक गया था मैं घर पहुंचा तो रति मेरा ही इंतज़ार कर रही थी मुझे देख कर वो बोली- देर कर दी आज तो आने में

मैं- हाँ वो नीनू को कुछ कपडे लेने थे तो पूरा दिन घुमाया उसने

रति- चाय पियोगे

मैं- नहीं , भूख लगी है कुछ है तो दे दो

वो- थोड़ी देर रुको मैं गरमा गरम बना देती हूँ

मैं- अरे दिन का ही दे दो ना

वो- रोटी तो है पर सब्जी नहीं है वैसे भी खाना तो बनाना ही है बस थोड़ी देर लगेगी

मैं- रोटी और एक प्याज उठाता हुआ, अरे ये है ना बस इस से ही काम हो जायेगा हम तो गाँव के लोग है जो मिल जाये सही है बस पेट भरना चाहिए

रति मेरी और देख के मुस्कुराने लगी , और बोली- तो क्या क्या ख़रीदा

मैं- मैंने कुछ नहीं लिया बस वो ही कुछ कपडे कुछ चूडिया सब फालतू का सामान ले रही थी

वो- तुम्हे भी कुछ लेना चाहिए था , यहाँ से खाली हाथ जाओगे क्या

मैं- खाली हाथ क्यों जाऊंगा इतनी अनमोल चीज़ जो पा ली है मैंने यहाँ आके

रति ने शर्मा के नजरे झुका ली, मैं रोटी खाने लगा , खाने के बाद मैंने पुछा- डॉक्टर को पैर कब दिखाना है

वो- कल

मैं- ठीक है

मैं- आओ कुछ बात करते है

वो- क्या बात करोगे

मैं- जो भी मेरे दिल में है

वो- और क्या है दिल में

मैं- आओगी तभी तो बताऊंगा

रति मेरे पास आकार बैठ गयी ,

मैं- रति, अगर मैंने कहूँ की मुझे तुम चाहिए तो क्या कहोगी

वो- मुझे पा तो लिया है तुमने

मैं- उस तरह नहीं

वो- तो फिर किस तरह

मैं- तुम्हे सब है पता

वो- मुझे नासमझ रहना ही ठीक है

मैं- रति , ये प्यार क्या होता है

वो- कुछ भी नहीं , दो दिन के चोंचले है , जब को हमे भा जाता है तो दिल बार बार उसको देखने को करता है , उसके दीदार को भटकता है , ये एक आकर्षण की उच्च स्टेज होती है पर थोड़े दिन बाद हर चीज़ की तरह इसका भी रंग उड़ने लगता है, देखो जब दो लोग दूर हो, पर उनकी पसंद, नापसंद मिलने लगे तो एक मन में भावना सी हो जाती है , पर वही लोग अगर साथ रहने लगे तो पता चलता है की प्यार है या नहीं
,

मैं- तो फिर ये सब क्या है जो मेरे साथ हो रहा है,

वो- बोला ना- कुछ नहीं जल्दी ही तुम भी इ आकर्षण के जाल से मुक्त हो जाओगे

मैं- कुछ समझा नहीं

वो- समझने की कोई जरुरत भी नहीं नहीं

मैं- रति, क्या तुम मेरे साथ शादी करोगी

वो- मैं पहले से ही शादीशुदा हूँ, और फिर अभी तुम्हारी उम्र ही क्या हैं ज़िन्दगी पड़ी है बाकी

मैं- तुम बस नाम की शादीशुदा हो रति, कब तक टुकडो में जीती रहोगी

वो- वो मेरी परेशानी है , देर सवेर अब ठीक हो ही जायेगा

मैं- तो फिर ये सब क्यों, क्यों मुझे छुट दी की मैं इस कदर तुमसे जुड़ पाऊं , रति क्यों इस मुसाफिर को अपनि बाहों में पनाह दी मुझे, क्यों मेरे इस कदर पास आकर दूर चली जाओगी , मैं अपनी व्यथा किसे कहूँ,
वो- कोई व्यथा हैं ही नहीं, ये जो भटकाव की बात तुम कर रहे हो , खुद को जान ने की कोशिश करो, ये जो मुखोटे है चेहरों पर इनको उतार कर खुद को महसूस करो कभी , रूह से जुडो , जिस दिन खुद को पहचान लोगे ये अंदरूनी एकाकीपन ख़तम हो जायेगा तुम्हारा


वो- “जिंदगी में कब क्या हो जाये कोई कुछ नहीं कह सकता , मैंने कभी सोचा नहीं था की तुम या कोई और इस तरह मुझ से जुड़ जायेगा , जानती हूँ की ये जो रिश्ता हमने जोड़ा है कहने को तो कोई इसे हवस कहेगा, कोई कहेगा की कण्ट्रोल ना हुआ, हो सकता है की कोई मेरे लिए रंडी, वेश्या जैसे शब्दों का भी प्रयोग करे पर ये मैं जानती हूँ, ये तुम जानते हो की कहीं न कही अब सदा के लिए हम तुम एक दुसरे में जियेंगे, जीवन के किसी ना किसी मोड़ पर हमारी तुम्हारी यादे जुडी रहेंगी ”

“मैंने अपने जीवन की सबसे अनमोल चीज़ तुम्हे दी, तुमने मुझे औरत होने के सुख से परिचय करवाया , मैं बिलकुल ये नहीं कहूँगी की मैं बहक गयी थी, हालाँकि मुझे पता है की ये एक ऐसी गलती है जिसकी किसी भी कीमत से कोई भरपाई नहीं करी जा सकती है , पर इसके लिए मैं कभी कोई प्रायश्चित भी नहीं करुँगी कभी कभी लाइफ में कुछ फैसले ऐसे होते है जिनका हम पर कोई जोर नहीं होता है, ”

“तुम कहते हो क्यों नहीं, मैं बताती हूँ, ये जरुरी नहीं होता की हर रिश्ते को कोई नाम दिया ही जाए, कुछ बंधन समाज के हर प्रतिबंधो से ऊपर होते है, तुम मुझे समझे मैं तुम्हे समझी यही बहुत है जब कोई इंसान जाता है तो वो बस अपने साथ यादे ही ले जाता है कुछ यादे तुम अपने साथ ले जाओगे कुछ यादे मेरे पास रहेंगी, जो किसी हसीं ख्वाब की तरह हमारे होंठो पर मुस्कान की तरह सज जाएँगी ”

बस यही तो फलसफा है , हमारा तुम्हारा, मैं बताती हूँ, की क्या रिश्ता है तुम्हरा मेरा, जैसे सूरज का धुप से, जैसे चाँद का चांदनी से, जैसे सागर का किनारे से , तुम हो तो मैं हूँ मैं हूँ तो तुम हो


मैं- “ नीनू भी यही बात बोल रही थी ”

रति- उसका हाथ थाम लो, ज़िन्दगी में काफ़ी जगह आएँगी जब तुम्हे उसकी जरुरत पड़ेगी, जब हमें पता हो की कोई है जो गिरने से पहले हमे संभाल लेगा तो जिंदगी की राहे थोड़ी आसन हो जाया करती है


मैं- पर वो मुझे प्यार नहीं करती

रति अपने माथे पर हाथ मारते हुए- ओह सत्यानाश, तुम रहोगे भोंदू के भोंदू ही

अभी कितना समझाया तुम्हे, पर कुछ पल्ले नहीं पड़ा तुम्हरे , चलो रात बहुत हो गयी है, नींद भी बड़ी आ रही लाइट बंद कर दो सोते है
दिल में एक हलचल सी मची थी जिसपर रति के शब्दों ने कुछ पलो के लिए अपने शब्दों से बाँध बना दिया था मैंने खुद को समझाया की ये जो अवसाद मेरे मन में भरा पड़ा है , इस से मुझे ही बाहर निकल ना पड़ेगा, चलो फिर से एक बार फिर मैं कोशिश करूँगा औरो की तरह जीने की, रति ने अपना सर मेरे काँधे पर टिका दिया हम दोनों ख़ामोशी से लेटे हुए थे , धड़कने भी कुछ खामोश सी थी , अरमान भी ठन्डे पड़ रहे थे, वो थी मैं था और थी ये तन्हाई जो एक बार फिर स मुझे अपने अपने आगोश में लेने को तड़प रही थी ............


वो-“क्या सोचने लगे ”


मैं- कुछ नही

वो- चुप क्यों हो

मैं- तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था

वो- क्या सोच रहे थे

मैं- एक आरजू है तुम्हे अपना बनाने की

वो- तुम्हारे इल में झाँक कर देखो कही ना कही मैं मिल ही जाउंगी

मैं- दिल मेरे पास है ही कहा , वो तो कब का कोई लुटेरी, लूट ले गयी

वो- कौन है वो चोरनी

मैं- है कोई

वो- कौन

मैंने- रति के गाल पर हलके से चूमा और कहा- है कोई आस पास ही

रति- अच्छा जी, और उस डाकू का क्या जिसने हमारा दिन का चैन और रात की नींद ही चुरा ली

मैं- आपके शहर में डाकू भी हैं, पहले पता ना था वर्ना इधर आते ही नहीं , ये कैसा शहर है आपका जहा, चोर, लुटेरे भरे पड़े है

रति- बाते बनाना तो तुमसे सीखे कोई

मैंने अपना हाथ उसके पेट पर रखा और धीरे धीरे से सहलाने लगा वो मेर बाहों में सिमटने लगी, मैंने हाथ बढ़ा कर उसके सूट को निकाल दिया और ब्रा को भी आजाद कर दिया उसके उभारो को छेड़ने लगा


रति किसी मछली की तरह मेरी बाहो से निकल गयी और बोली- बहुत जताते हो चाह हमसे

मैं पीछे से उसको फिर से अपने आगोश में लेटे हुए- चाहना कोई गुनाह तो नहीं

वो- गुनाह तो कर ही चुके हो अब तो सजा का वक़्त आया

मैं- उसकी छातियो को मसलते हुए- कुछ दिनों में तुमसे बिछड़ना सजा से कम भी तो नहीं

रति के मुह से आह निकली “आह, आहिस्ता से ”


मैं उसकी पीठ को चूमने लगा उसके बदना में सुगबुगाहट होने लगी, मैं दीवानो की तरह उसकी पूरी पीठ पर कमर पर अपने चुम्बन अंकित करने लगा रति गर्म होने लगी और मैं तो हमेशा ही तैयार रहता था चूत के समुन्द्र में दुब्किया लगाने को, जल्दी ही उसकी सलवार उसके पैरो में पड़ी थी , रति ने मेरे लंड को पकड़ लिया और अपनी मुट्ठी में लेकर उस से खेलने लगी ,

मैं- खिलौना बड़ा पसंद है तुमको

वो- कुछ खेल , खेलने ही चाहिए ना

मैंने उसको लंड चूसने को कहा , थोड़ी ना- नुकुर के बाद रति अपने घुटनों के बल बैठ गयी और अपने होंठो को मेरे गोलियों पर रगड़ने लगी, मजा आने लगा फिर उसने अपना मुह खोला और गप्प से मेरे गुलाबी सुपाडे को अपने मुह में ले लिया औरत जब मजे से लंड चुस्ती है तो बड़ा सुख मिलता है उसकी जीभ मेरे सुपाडे पर गोल-गोल घूम रही थी मेरे पुरे बदन में गुड-गुडी होने लगी मेरी कमर हिलने लगी मैंने उसके मुह को पकड़ लिया और अपने लंड को उसके मुह में अन्दर बहार करने लगा रति ऊऊऊऊऊ ऊऊऊऊऊऊउ करने लगी मैं उसको अच्छे से लंड चुसाना चाहता था


उसका थूक मुह से निकल कर उसकी टांगो पर गिर रहा था धीरे धीरे करके मैंने पूरा लन्ड उसके गले तक पंहूँचा दिया जब जब वो अपने दांत मेरे लिंग की खाल में लगाती तो बहुत मजा आता ऐसे लगता की वो उसे चबा ही डालेगी रति दिल खोल कर मेरे लंड को चूस रही थी दीवानगी की हद एक बार फिर से पार होने को तैयार हो रही थी सुदुप सुदुप स्र्र्रर्र्र्र करते हुए रति लंड को पुरे मजे से चूसे जा रही थी लंड की प्रत्येक नस मस्ती के तारो से झनझना उठी थी मेरी रगों में दोड़ता खून अन्डकोशो में जमा होने लगा था
 

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मैं स्खलन की और बढ़ने लगा उसके होंटो की गर्मी को मेरे लिए अब बर्दाश्त करना मुस्किल हो रहा था और फिर जल्दी ही मैंने उसके मुह को अपने लंड पर दबा लिया वीर्य की बूंदे उसके मुह में गिरते हुए गले की गहराई में उतरती चली गयी, रति को उसकी उम्मीद नहीं थी मेरा खारा सा पानी का स्वाद उसके पुरे मुह में घुल गया आज तो ऐसे झड़ने में मजा आ गया था


खांसते हुए रति ने मेरे लंड को अपने मुह से निकाला और थूकने लगी पर देर हो चुकी थी मेरा पानी तो अब तक उसके पेट में पहूँच चुका था , खांसते हुए वो बोली-“बहुत गंदे हो तुम ”

मैं- क्या हुआ, चलो इस बहाने तुमने कोई अच्छी चीज़ टेस्ट कर ली

रति ने पानी से अपने गले को खंखारना शुरू किया अब बारी मेरी थी काम रस को चखने की, पता नहीं क्यों मुझे तो चूत से टपकते हुए रस को पीना बहुत ही भाता था, मैंने उसकी टांगो को फैलाते हुए अपने लबो को चूत के मुहाने पर लगाया और काम चालु कर दिया

रति की आहे फिर से कमरे में गूंजने लगी


आह आह आराम से काटो मत काटो मत


पर उसकी कौन सुने वो भी जब ऐसी करारी चूत हो जल्दी ही रति भी फोरम में अ गयी थी और अपनी गांड को हिलाते हुए अपने जोबन का रस मुझ पर चालकाने लगी थी पुच पुच पुच की आवाज उसकी चूत से आ रही थी समुन्दर का खारा पानी झर झर के बह रहा था मैंने शरारत करते हुए उसके भाग्नसे को मुह में लिया और उसको जीभ से रगड़ने लगा , रति की हालात हुई ख़राब उसके जिस्म का पूरा खून जैसे चेहरे में उतार आया हो रति का बदन अकड़ने लगा उसकी आँखे बंद हो गयी अपने आप उसकी गांड मेरी जीभ की ताल पर थिरक रही थी


रति लगातार अपनी टांगो को पटक रही थी और फिर वो एक दम से ऐसे शांत पड़ गयी जैसे की प्राण ही छुट गए हो शरीर से, ढेर सारा पानी मेरे मुह में गिर पड़ा चटखारे लेटे हुए मैं पी गया इस से पहले की वो अपनी सांसो को दुरुस्त कर पाती मैंने अपने लंड को चूत पर रख दिया , रति चूँकि अभी अभी झड़ी थी पर चूत तो मारनी ही थी फिर इंतज़ार करने का क्या फायदा , रति मेरे नीचे पिसने लगी उसकी चूत गीली होने में थोडा समय ले रही थी जिस से उसको कुछ परेशानी हो रही थी पर एक बार लंड बस घुस जाए चूत में फिर वो अपने आप सेट हो जाता है


जल्दी ही उसकी चूत मेरे लंड से ताल मिलाने लगी, वासना का तूफ़ान फिर से उमड़ आया था हूँमच हूँमच कर मैं ऊपर नीचे होते हुए रति को सम्भोग सुख से रूबरू करवा रहा था पल पल हर पल हम दोनों के अरमान एक दुसरे में यु ही समाये रहने के , उसकी दोनों टाँगे मेरे कंधो पर आ चुकी थी चुदाई का खुमार बरस रहा था हम दोनों पर एक इस सुख के लिए तो आवारा भँवरे कलियों के पीछे दिन रात मंडराया करते है ,रति मेरा पूरा साथ दे रही थी मेरे हर धक्के का जवाब देते हुए चूमा छाती के साथ गजब चुदाई चल रही थी तभी रति बोली – अन्दर म़त छोड़ना


मैं कुछ नहीं बोला बस चोदता रहा उसको , साँसे बहुत तेज गरम हो गयी थी पल पल बहुत भारी लगने लगा था रति के बदन की गर्मी मेरे बदन में भरने लगी थी , मैंने उसको अपनी बाहों में कस लिया उसने अपने कुल्हे ऊपर किये और मैंने अपना पानी चूत में ही छोड़ इडया मेरा पूरा शरीर मस्ती में डूबता चला गया रति को साथ लिए लिए इस भवसागर को फिर से पार कर गया था मैं
उस रात हमने तीन बार चुदाई की, सुबह मेरी आँख थोडा देर से खुली रति तब तक नहा-धो चुकी थी

वो- आज बहुत देर तक सोये

मैं- हाँ थोडा थक सा गया था, मैं उठा और बाथरूम की तरफ जाने लगा तो वो बोली-
“नंगे ही जाओगे कुछ तो पहन लो ”

मेरी निगाह अपने जिस्म पर गयी रात को मैं नंगा ही सो गया था , थोड़ी शर्म भी आई मैंने पास पड़ी चादर लपेटी और बाथरूम में घुस गया सर भारी भारी सा महसूस हो रहा था तो ठंडा होने के लिए काफ़ी देर तक नहाता रहा वापिस आया तब तक रति ने नाश्ता लगा दिया था , पर मैंने खाने से मना कर दिया

वो- क्या हुआ

मैं- थोडा सर दर्द हो रहा है

वो- लाओ मैं मालिश कर देती हूँ

रति मेरे गीले बालो में अपने हाथ फिराते हुए मालिश करने लगी और थोड़ी ही देर में मुझे राहत मिलने लगी शायद मेरी नींन्द पूरी नहीं हुई थी तो फिर से मुझ पर उसका असर होने लगा पता नहीं कब आँख लग गयी मेरी , पर ज़ब जागा तो शाम के चार बज रहे थे, आज तो बड़ा सोया था मैं , नीनू के साथ भी नहीं जा पाया था अब उसकी बाते सुनूंगा वो अलग एक कडक चाय पीकर कुछ होश में आया मैं , चाय की चुस्कियां लेटे हुए मैं गुजर गए पिछले हफ्ते के बारे में सोचने लगा कितना खूबसूरत था , और कब गुजर गया पता नहीं चला बिलकुल भी

ऐसे लगता था की जैसे यही थी मेरी जिंदगी यही तो मैं जीना चाहता था घर की जरा भी याद नहीं आई थी मुझे दुनिया जैसे रति के चारो तरफ ही सिमटने लगी थी मेरी , शाम को मैं रति की स्कूटी ले आया था कुछ फोटो जो मैंने खीची थी वो भी ले आया था , ये जो तस्वीरे होती हैं ना, इनकी एक बात बहुत बुरी लगती है मुझे जब भी देखो , दिल को परेशान कर ही देती है कही ना कही, तस्वीरों को देखते हुए रति बोली-
“तो, ये है तुम्हारी दोस्त ”

मैं- हूँ

वो-अच्छी लड़की है

मैं- मैं क्या बुरा हूँ

रति- बुरे तो हो ही तुम, एक काम करो कल नीनू को यहाँ बुला लो मैं मिलना चाहूंगी उस से

मैं- तुम क्यों मिलना चाहती हो उस से

वो- तुम्हे ऐतराज़ है तो रहने दो

मैं- मुझे क्या ऐतराज़ होगा, मैं तो ऐसे ही पूछ रहा था
 
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