If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.
अक्षिता और सरिता जी ने एकांश के चिल्लाने की आवाज सुनी तो दोनो चौकी और क्या हुआ है जानने के लिए दोनो बाहर आई तो देखा के एकांश फोन पर बात करते हुए किसी पर चिल्ला रहा था
"क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने पूछा
"कुछ नही आंटी मेरी कार का टायर पंचर हो गया और मेरा ड्राइवर हाईवे के बीच में फसा है क्युकी उस गधे ने गाड़ी में स्टेपनी नही रखी" एकांश ने कहा
"बस इतनी सी बात पर इतना हंगामा?" अक्षिता ने थोड़ा चिढ़कर कहा
"छोटी सी बात? एक घंटे में मेरी एक जरूरी मीटिंग है और मुझे आधे घंटे में ऑफिस पहुंचना है" एकांश ने भी उसी टोन में कहा
"Whatever, still ये इतनी बड़ी बात भी नहीं है जो यू चिल्ला रहे हो" अक्षिता ने कहा
"देखो अक्षिता, मैं पहले ही परेशान हु प्लीज मुझे और गुस्सा मत दिलाओ" एकांश ने कहा और एक बार फिर ये दोनो बच्चो की तरह लड़ने लगे थे जिसे सरिताजी को चुप कराना पड़ा
"बस करो तुम दोनों।"
उन दोनो ने बहस रोक सरिता जी को देखा जो उन्हें ही देख रही थी और फिर एकांश अपना फोन निकालते हुए बोला
"I am calling a cab"
"इस एरिया में तुम्हे कोई कैब नही मिलेगी" अक्षिता ने कहा।
"तो अब तुम ही बताओ मैं क्या करू?"
"रुको मैं मेरे भाई से पूछती हु शायद कोई बाइक या कार मिल।जाए" सरिता जी ने अपना फोन लेते हुए कहा और एकांश उम्मीद भरी नजरो से उन्हें देखा
"अरे छोड़ो ना मां मुझे पता है इसे ऑफिस कैसे पहुंचाना है" अक्षिता ने कहा
"कैसे?" दोनों ने अक्षिता से पूछा जो उन्हें देख मुस्कुरा रही थी
"मां आप चिंता मत करो इसे टाइम पर ऑफिस पहुंचाना मेरा काम" अक्षिता ने अपनी मां से कहा और फिर एकांश को देख बोली "चलो!"
और एकांश को तो बस मौका ही चाहिए था अक्षिता के साथ अकेले में समय बिताने का उसे भला इस प्लान में क्या दिक्कत होनी थी
"हम कैसे जायेंगे?" एकांश ने पूछा
"तुम बस मेरे साथ आओ" अक्षिता ने गेट से बाहर निकलते हुए कहा और एकांश उसके पीछे पीछे चल पड़ा
एकांश को समझ नहीं आ रहा था के अक्षिता उसे कहा ले जा रही थी वो लोग अभी अपनी गली पार कर रहे थे और वो बस अक्षिता के पीछे पीछे चल रहा था और उसका ध्यान बस अक्षिता की ओर था और अचानक चलते चलते अक्षिता रुकी और एकांश को उसे उसे ही देखते हुए आगे चल रहा था वो उससे टकरा गया लेकिन फिर जल्दी की संभाल गया वही अक्षिता ने इस बात को नजरंदाज कर दिया
"here we are!" अक्षिता ने पलटकर एकांश को देखते हुए मुसकुराते हुए कहा
एकांश ने पहले अक्षिता की तरफ देखा और फिर आस-पास के इलाके को देखा, उसने फिर से अक्षिता को देखा क्योंकि उनके सामने कुछ भी नहीं था..... न कार, न बाइक..... कुछ भी नहीं
"यहाँ कुछ भी नहीं है।" एकांश ने कहा जिसके बदले मे अक्षिता के इक्स्प्रेशन थोड़े बदले
"तुम अंधे हो क्या?” अक्षिता ने थोड़ा चिढ़ कर कहा और एकांश ने वापिस चारों ओर देखा
"तुम बस मेरा समय खराब कर रही हो" एकांश ने कहा और अपना फोन निकाला और किसी से कहा कि वो उसके लिए कार ले आए लेकिन अक्षिता ने उसे रोका
"रुको, उधर देखो" अक्षिता ने कहा और अपनी दाईं ओर एक जगह की ओर इशारा किया और एकांश ने देखा तो वो बस स्टॉप पर खड़े थे, अब अमीर बाप के लड़के को इसकी आदत थोड़े ही थी
"तुम बस स्टॉप पर हो और यह से कही भी जा सकते हो" अक्षिता ने कहा वही एकांश बगैर कुछ बोले उसे घूरने लगा
“तो तुम चाहती को के अब मैं बस मे ऑफिस जाऊ" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने अपना सिर जोर से ऊपर-नीचे हिलाया
"तुम पागल हो? तुमने सचमुच सोचा था कि मैं बस से ऑफिस जाऊँगा, वो भी बिजनेस सूट पहनकर"
"इसमें ग़लत क्या है?” अक्षिता ने सहज भाव से कहा
"अगर तुम सोचती हो कि मैं बस में जाऊंगा तो तुम सचमुच पागल हो गई हो"
"देखो तुम्हारे पास वैसे भी कोई गाड़ी नहीं है और यहाँ कोई टैक्सी भी नहीं मिलेगी ऑटो रिक्शा लेने के लिए हमें थोड़ा और चलना पड़ेगा और जब तक तुम कार बुला कर ऑफिस पहुचओगे तब तक तुम्हारी मीटिंग का टाइम खतम को जाएगा इसलिए फिलहाल बस ही सही रास्ता है" अक्षिता ने कहा
"मैंने पहले कभी सिटी बस मे सफर नहीं कीया है और न ही कभी करूंगा" एकांश ने कहा
"ठीक है, अब तुम्हें मीटिंग छोड़नी ही है तो तुम्हारी मर्जी वैसे अभी बस आ जाएगी और तुम टाइम पर पहुच सकते हो” अक्षिता ने कहा जिसपर एकांश कुछ नहीं बोला
अक्षिता एकांश का ऐसा ऐटिटूड देख थोड़ा निराश हुई, एक अभी प्रापर बिगड़ेल अमीरजादा लग रहा था, पहले तो उसने सोचा था कि वो उसे सिर्फ़ परेशान करेगी लेकिन अब वो सही में चाहती थी कि एकांश जाने के धन-दौलत और आराम के बिना भी जीवन है और उससे भी बढ़कर वो उसके साथ थोड़ा समय बिताना चाहती थी
लेकिन उसे ये नहीं पता था के एकांश ने अपनी सारी आराम की जिंदगी सिर्फ उसके साथ रहने के लिए छोड़ दी थी, उसने अपनी सारी सुख-सुविधाएं छोड़ दीं और सिर्फ उसके लिए एक छोटे से कमरे में रह रहा था
एकांश ने अक्षिता के चेहरे को देखा और फिर बस मे जानेको मान गया
"ठीक लेकिन मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है" एकांश ने कहा
"कोई नहीं, मैं हु ना" अक्षिता ने मुसकुराते हुए कहा और इस मुस्कान के लिए तो वो कुछ भी कर सकता था
"चलो, अब जल्दी करो, नहीं तो बस छूट जाएगी" अक्षिता ने आती हुई बस की ओर इशारा किया और एकांश का हतरः पकड़ और बस की ओर ले जाने लगी और एक मिनट में एक बस आकर उनके सामने रुकी
एकांश बस वहीं मूक खड़ा रहा।
"एकांश आओ, बस मे चढ़ो।" अक्षिता ने कहा और एकांश जल्दी से बस में चढ़ गया और बस में बैठे सभी लोग उसे थोड़ा अजीब नजरों से देखने लगे बस नॉर्मल लोगों के बीच सुबह सुबह बिजनस सूट पहने वो अलग ही दिख रहा था
"मैं उन्हें बेवकूफ लग रहा हू न" एकांश ने बड़बड़ाते हुए कहा, जिस पर अक्षिता हस पड़ी
एकांश ने पहले उसकी ओर देखा और फिर उन सबकी ओर जो अभी भी उसे ही देख रहे थे
बस चल पड़ी थी और उनके बैठने के लिए कोई सीट नहीं थी इसलिए वो लोग हैंडल को पकड़कर खड़े हो गए
कुछ ही पलों मे कन्डक्टर आया और टिकट के लिए कहा एकांश ने जेब में पैसे ढूंढे और कंडक्टर की ओर 500 रुपए का नोट बढ़ाया
"सुबह सुबह का वक्त है भई 10 रुपया खुल्ला दो" कंडक्टर ने 500 का नोट देख झल्लाकर कहा
"पर मेरे पास तो सिर्फ़ 500 के नोट हैं"
अब इससे पहले ही कन्डक्टर आगे कुछ बोलत अक्षिता ने कंडक्टर से कहा कि वो उन्हें 2 टिकट दे और बताया कि उन्हें कहाँ उतरना है, उसने उसे 20 रुपये दिए और टिकट लिया
अगले स्टॉप पर कोई उतर गया और अक्षिता एकांश के साथ खाली सीट पर जा बैठी, एकांश को वो सीट नहीं सम रही थी
"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं ये कर रहा हूँ" एकांश बुदबुदाया
"क्या?"
"कुछ नहीं" कहते हुए एकांश ने चारों ओर देखा
एक लड़का उनकी तरफ देख रहा था एकांश ने उस लड़के की तरफ़ देख भौंहें उठाईं लेकिन उस लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया एकांश ने और गौर से उसकी तरफ़ देखा
जब उसे एहसास हुआ कि वह लड़का खिड़की से बाहर देख रही अक्षिता को घूर रहा है तो अब उसे गुस्सा आने लगा लेकिन इस वक्त वो लड़ने के तो मूड मे नहीं था लेकिन वो उस लड़के को ये भी बबताना चाहता था के वो उसकी है
एकांश ने अक्षिता के कंधे पर हाथ रखा और उसे अपने पास खींच लिया, अक्षिता ने उसे चौक कर देखा लेकिन एकांश उस लड़के को ही घूर रहा था
अब एकांश पर नजर जाते ही वो लड़का डर कर दूसरी तरफ देखने लगा लेकिन एकांश ने अपना हाथ नहीं हटाया, अक्षिता को भी एकांश का यू हक जताना अच्छा लगा था,एकांश ने उसकी तरफ देखा जो खिड़की से बाहर देख कर मुस्कुरा रही थी
एकांश के चेहरे पर भी स्माइल थी क्योंकि उसने उसके कंधे पर हाथ रखने का विरोध नहीं किया था और जब उनका स्टॉप आने लगा तो अक्षिता अपनी सीट से उठ गई जबकि एकांश उसे हैरान होकर देख रहा था
"अगला स्टॉप हमारा है" अक्षिता ने कहा
एकांश भी अपनी सीट से उठ गया था और अक्षिता के पास खड़ा था, पहले तो वो बस मे बैठने को ही तयार नहीं था लेकिन अब उसे ऐसा लग रहा था के ये सफर चलता रहे, अक्षिता जो उसके पास थी, बस से उतरकर वो ऑफिस की ओर चल पड़े और वहा पहुचते ही अक्षिता बोली
"देखा कहा था ना टाइम पर पहुच जाएंगे"
"थैंक्स"
"चलो देन बाय!" अक्षिता ने वापिस जाने के लिए मुड़ते हुए कहा
"रुको! तुम जाओगी कैसे?"
"जैसे अभी आए है, बस से"
तभी एकांश को याद आया कि कैसे वो लड़का अक्षिता को घूर रहा था उसे लगा कि उसका अकेले जाना ठीक नहीं (over possessive )
"नहीं, चलो ऑफिस मे चलो”
"क्या? क्यों?"
"मेरी कार एक घंटे में आजाएगी तो मेरा ड्राइवर तुम्हें घर छोड़ देगा" एकांश ने ऑफिस में जाते हुए कहा
"मैं अकेले चली जाऊंगी" अक्षिता ने वापिस वहा से जाते हुए कहा
"तुम अकेले नहीं जाओगी" एकांश ने सख्ती से कहा
“तुम मुझे ऑर्डर नहीं दे सकते, मैं अब तुम्हारी एम्प्लोयी नहीं हु" अक्षिता ने कहा और एकांश भी आके कुछ कहना चाहता था लेकिन उसने आसपास देखा तो पाया के कुछ लोग उन्हे ही देख रहे थे क्युकी बोलते हुए दोनों का ही आवाज ऊंचा हो गया था तभी एकांश का एक एम्प्लोयी वहा आया
"सर, मीटिंग का वक्त हो रहा है क्या हम एक बार फिर प्रेजेंटेशन चेक कर लें?" स्टाफ के बंदे ने कहा
"हाँ और इन मैडम मेरे केबिन में बैठाओ" एकांश ने अक्षिता की ओर इशारा करते हुए कहा
"ओके सर"
"नहीं! मैं घर जा रही हूँ।" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ी
लेकिन एकांश ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा
"क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे" अक्षिता ने हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा
"जब तक तुम रुक नहीं जाती तब तक नहीं।" एकांश ने कहा
"नहीं."
"मान जाओ अक्षिता" एकांश ने कहा और अक्षिता ने भी कुछ पलों तक उसे देखा
"अच्छा ठीक है” आखिर मे अक्षिता ने एकांश के आगे हथयार डालते हुए कहा
"गुड! जाओ और मेरे केबिन में इंतज़ार करो" एकांश ने अक्षिता का हाथ छोड़ा और अपने स्टाफ को देखते हुए बोला
"मैडम के लिए बढ़िया खाने का इंतजाम करो और उन्हे मेरी कैबिन से बाहर मत आने देना" एकांश ने कहा और मीटिंग रूम ही ओर बढ़ गया वही अक्षिता पैर पटकते हुए उसके कैबिन मे जा बैठी
******
मीटिंग के बाद जब दोनों साथ घर आ रहे थे तब अक्षिता पूरे रास्ते बड़बड़ा रही थी वही एकांश उसकी बड़बड़ को इग्नोर किए जा रहा था जिससे अक्षिता और भी ज्यादा चिढ़ रही थी वही एकांश को उसे यू चिढ़ाने मे मजा आ रहा था, आज काफी समय बाद दोनों ने कुछ समय साथ बिताया था भले ही थोड़े समय के लिए हो लेकिन दोनों ने एक दूसरे की मौजूदगी का आनंद लिया था
घर पहुच कर दोनों ही सरिताजि के पास पहुचे जो दइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी और दोनों ही उनके पास बच्चों की तरह शिकायाते करने लगे एकांश ने ये शिकायत की के अक्षिता ने उसे बस मे सफर करवाया वही अक्षिता ने भी उसकी हरकतों की शिकायत की
"तुमने उसे लोकल बस में ऑफिस भेजा!" सरिताजी ने अक्षिता को घूर कर देखा वही अक्षिता ने अपनी माँ को देखकर मुंह बनाया और एकांश उसे देखकर मुस्कुरा दिया
"माँ, लेकिन उसके बारे में मेरी शिकायत का क्या होगा?" अक्षिता ने बड़बड़ाते हुए कहा
"उसने तुम्हारा इतना ख्याल रखा कि तुम अकेली घर नहीं आओगी इसमें शिकायत की क्या बात है?"
"लेकिन माँ, इसने मुझे वहा रहने के लिए मजबूर किया" अक्षिता ने एकांश की ओर देखते हुए कहा
"हाँ, लेकिन मैंने ऐसा इसकी सैफ्टी के लिए किया आंटी" एकांश ने मासूमियत से सरिताजी से कहा जिसके बाद सरिताजी ने अक्षिता को ही दो बाते सुना ही और किचन मे चली गई वही एकांश अक्षिता को देख हसने लगा
"चुप करो!” अक्षिता ने जोर से कहा के तभी
"अक्षिता!" किचन से उसकी माँ की चेतावनी भरी आवाज़ आई जिससे उसका मुँह बंद हो गया
वही एकांश चुपचाप हंसने लगा और अक्षिता उसे घूरकर देखने लगी
"अब तुम दोनों लड़ना बंद करो और अपना खाना खाना शुरू करो।" सरिताजी ने उनकी प्लेटों में खाना परोसते हुए कहा और यूही नोकझोंक करते हुए हसते हुए वो खाने का मजा लेने लगे
I know maine multiple updates ka bola tha aur is update me kuch khas nahi hai koi imo baat nahi hai but theek hai aur mai bahar aaya hu aur aage ke update laptop me hai to wo subah post karta hu
अक्षिता और सरिता जी ने एकांश के चिल्लाने की आवाज सुनी तो दोनो चौकी और क्या हुआ है जानने के लिए दोनो बाहर आई तो देखा के एकांश फोन पर बात करते हुए किसी पर चिल्ला रहा था
"क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने पूछा
"कुछ नही आंटी मेरी कार का टायर पंचर हो गया और मेरा ड्राइवर हाईवे के बीच में फसा है क्युकी उस गधे ने गाड़ी में स्टेपनी नही रखी" एकांश ने कहा
"बस इतनी सी बात पर इतना हंगामा?" अक्षिता ने थोड़ा चिढ़कर कहा
"छोटी सी बात? एक घंटे में मेरी एक जरूरी मीटिंग है और मुझे आधे घंटे में ऑफिस पहुंचना है" एकांश ने भी उसी टोन में कहा
"Whatever, still ये इतनी बड़ी बात भी नहीं है जो यू चिल्ला रहे हो" अक्षिता ने कहा
"देखो अक्षिता, मैं पहले ही परेशान हु प्लीज मुझे और गुस्सा मत दिलाओ" एकांश ने कहा और एक बार फिर ये दोनो बच्चो की तरह लड़ने लगे थे जिसे सरिताजी को चुप कराना पड़ा
"बस करो तुम दोनों।"
उन दोनो ने बहस रोक सरिता जी को देखा जो उन्हें ही देख रही थी और फिर एकांश अपना फोन निकालते हुए बोला
"I am calling a cab"
"इस एरिया में तुम्हे कोई कैब नही मिलेगी" अक्षिता ने कहा।
"तो अब तुम ही बताओ मैं क्या करू?"
"रुको मैं मेरे भाई से पूछती हु शायद कोई बाइक या कार मिल।जाए" सरिता जी ने अपना फोन लेते हुए कहा और एकांश उम्मीद भरी नजरो से उन्हें देखा
"अरे छोड़ो ना मां मुझे पता है इसे ऑफिस कैसे पहुंचाना है" अक्षिता ने कहा
"कैसे?" दोनों ने अक्षिता से पूछा जो उन्हें देख मुस्कुरा रही थी
"मां आप चिंता मत करो इसे टाइम पर ऑफिस पहुंचाना मेरा काम" अक्षिता ने अपनी मां से कहा और फिर एकांश को देख बोली "चलो!"
और एकांश को तो बस मौका ही चाहिए था अक्षिता के साथ अकेले में समय बिताने का उसे भला इस प्लान में क्या दिक्कत होनी थी
"हम कैसे जायेंगे?" एकांश ने पूछा
"तुम बस मेरे साथ आओ" अक्षिता ने गेट से बाहर निकलते हुए कहा और एकांश उसके पीछे पीछे चल पड़ा
एकांश को समझ नहीं आ रहा था के अक्षिता उसे कहा ले जा रही थी वो लोग अभी अपनी गली पार कर रहे थे और वो बस अक्षिता के पीछे पीछे चल रहा था और उसका ध्यान बस अक्षिता की ओर था और अचानक चलते चलते अक्षिता रुकी और एकांश को उसे उसे ही देखते हुए आगे चल रहा था वो उससे टकरा गया लेकिन फिर जल्दी की संभाल गया वही अक्षिता ने इस बात को नजरंदाज कर दिया
"here we are!" अक्षिता ने पलटकर एकांश को देखते हुए मुसकुराते हुए कहा
एकांश ने पहले अक्षिता की तरफ देखा और फिर आस-पास के इलाके को देखा, उसने फिर से अक्षिता को देखा क्योंकि उनके सामने कुछ भी नहीं था..... न कार, न बाइक..... कुछ भी नहीं
"यहाँ कुछ भी नहीं है।" एकांश ने कहा जिसके बदले मे अक्षिता के इक्स्प्रेशन थोड़े बदले
"तुम अंधे हो क्या?” अक्षिता ने थोड़ा चिढ़ कर कहा और एकांश ने वापिस चारों ओर देखा
"तुम बस मेरा समय खराब कर रही हो" एकांश ने कहा और अपना फोन निकाला और किसी से कहा कि वो उसके लिए कार ले आए लेकिन अक्षिता ने उसे रोका
"रुको, उधर देखो" अक्षिता ने कहा और अपनी दाईं ओर एक जगह की ओर इशारा किया और एकांश ने देखा तो वो बस स्टॉप पर खड़े थे, अब अमीर बाप के लड़के को इसकी आदत थोड़े ही थी
"तुम बस स्टॉप पर हो और यह से कही भी जा सकते हो" अक्षिता ने कहा वही एकांश बगैर कुछ बोले उसे घूरने लगा
“तो तुम चाहती को के अब मैं बस मे ऑफिस जाऊ" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने अपना सिर जोर से ऊपर-नीचे हिलाया
"तुम पागल हो? तुमने सचमुच सोचा था कि मैं बस से ऑफिस जाऊँगा, वो भी बिजनेस सूट पहनकर"
"इसमें ग़लत क्या है?” अक्षिता ने सहज भाव से कहा
"अगर तुम सोचती हो कि मैं बस में जाऊंगा तो तुम सचमुच पागल हो गई हो"
"देखो तुम्हारे पास वैसे भी कोई गाड़ी नहीं है और यहाँ कोई टैक्सी भी नहीं मिलेगी ऑटो रिक्शा लेने के लिए हमें थोड़ा और चलना पड़ेगा और जब तक तुम कार बुला कर ऑफिस पहुचओगे तब तक तुम्हारी मीटिंग का टाइम खतम को जाएगा इसलिए फिलहाल बस ही सही रास्ता है" अक्षिता ने कहा
"मैंने पहले कभी सिटी बस मे सफर नहीं कीया है और न ही कभी करूंगा" एकांश ने कहा
"ठीक है, अब तुम्हें मीटिंग छोड़नी ही है तो तुम्हारी मर्जी वैसे अभी बस आ जाएगी और तुम टाइम पर पहुच सकते हो” अक्षिता ने कहा जिसपर एकांश कुछ नहीं बोला
अक्षिता एकांश का ऐसा ऐटिटूड देख थोड़ा निराश हुई, एक अभी प्रापर बिगड़ेल अमीरजादा लग रहा था, पहले तो उसने सोचा था कि वो उसे सिर्फ़ परेशान करेगी लेकिन अब वो सही में चाहती थी कि एकांश जाने के धन-दौलत और आराम के बिना भी जीवन है और उससे भी बढ़कर वो उसके साथ थोड़ा समय बिताना चाहती थी
लेकिन उसे ये नहीं पता था के एकांश ने अपनी सारी आराम की जिंदगी सिर्फ उसके साथ रहने के लिए छोड़ दी थी, उसने अपनी सारी सुख-सुविधाएं छोड़ दीं और सिर्फ उसके लिए एक छोटे से कमरे में रह रहा था
एकांश ने अक्षिता के चेहरे को देखा और फिर बस मे जानेको मान गया
"ठीक लेकिन मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है" एकांश ने कहा
"कोई नहीं, मैं हु ना" अक्षिता ने मुसकुराते हुए कहा और इस मुस्कान के लिए तो वो कुछ भी कर सकता था
"चलो, अब जल्दी करो, नहीं तो बस छूट जाएगी" अक्षिता ने आती हुई बस की ओर इशारा किया और एकांश का हतरः पकड़ और बस की ओर ले जाने लगी और एक मिनट में एक बस आकर उनके सामने रुकी
एकांश बस वहीं मूक खड़ा रहा।
"एकांश आओ, बस मे चढ़ो।" अक्षिता ने कहा और एकांश जल्दी से बस में चढ़ गया और बस में बैठे सभी लोग उसे थोड़ा अजीब नजरों से देखने लगे बस नॉर्मल लोगों के बीच सुबह सुबह बिजनस सूट पहने वो अलग ही दिख रहा था
"मैं उन्हें बेवकूफ लग रहा हू न" एकांश ने बड़बड़ाते हुए कहा, जिस पर अक्षिता हस पड़ी
एकांश ने पहले उसकी ओर देखा और फिर उन सबकी ओर जो अभी भी उसे ही देख रहे थे
बस चल पड़ी थी और उनके बैठने के लिए कोई सीट नहीं थी इसलिए वो लोग हैंडल को पकड़कर खड़े हो गए
कुछ ही पलों मे कन्डक्टर आया और टिकट के लिए कहा एकांश ने जेब में पैसे ढूंढे और कंडक्टर की ओर 500 रुपए का नोट बढ़ाया
"सुबह सुबह का वक्त है भई 10 रुपया खुल्ला दो" कंडक्टर ने 500 का नोट देख झल्लाकर कहा
"पर मेरे पास तो सिर्फ़ 500 के नोट हैं"
अब इससे पहले ही कन्डक्टर आगे कुछ बोलत अक्षिता ने कंडक्टर से कहा कि वो उन्हें 2 टिकट दे और बताया कि उन्हें कहाँ उतरना है, उसने उसे 20 रुपये दिए और टिकट लिया
अगले स्टॉप पर कोई उतर गया और अक्षिता एकांश के साथ खाली सीट पर जा बैठी, एकांश को वो सीट नहीं सम रही थी
"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं ये कर रहा हूँ" एकांश बुदबुदाया
"क्या?"
"कुछ नहीं" कहते हुए एकांश ने चारों ओर देखा
एक लड़का उनकी तरफ देख रहा था एकांश ने उस लड़के की तरफ़ देख भौंहें उठाईं लेकिन उस लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया एकांश ने और गौर से उसकी तरफ़ देखा
जब उसे एहसास हुआ कि वह लड़का खिड़की से बाहर देख रही अक्षिता को घूर रहा है तो अब उसे गुस्सा आने लगा लेकिन इस वक्त वो लड़ने के तो मूड मे नहीं था लेकिन वो उस लड़के को ये भी बबताना चाहता था के वो उसकी है
एकांश ने अक्षिता के कंधे पर हाथ रखा और उसे अपने पास खींच लिया, अक्षिता ने उसे चौक कर देखा लेकिन एकांश उस लड़के को ही घूर रहा था
अब एकांश पर नजर जाते ही वो लड़का डर कर दूसरी तरफ देखने लगा लेकिन एकांश ने अपना हाथ नहीं हटाया, अक्षिता को भी एकांश का यू हक जताना अच्छा लगा था,एकांश ने उसकी तरफ देखा जो खिड़की से बाहर देख कर मुस्कुरा रही थी
एकांश के चेहरे पर भी स्माइल थी क्योंकि उसने उसके कंधे पर हाथ रखने का विरोध नहीं किया था और जब उनका स्टॉप आने लगा तो अक्षिता अपनी सीट से उठ गई जबकि एकांश उसे हैरान होकर देख रहा था
"अगला स्टॉप हमारा है" अक्षिता ने कहा
एकांश भी अपनी सीट से उठ गया था और अक्षिता के पास खड़ा था, पहले तो वो बस मे बैठने को ही तयार नहीं था लेकिन अब उसे ऐसा लग रहा था के ये सफर चलता रहे, अक्षिता जो उसके पास थी, बस से उतरकर वो ऑफिस की ओर चल पड़े और वहा पहुचते ही अक्षिता बोली
"देखा कहा था ना टाइम पर पहुच जाएंगे"
"थैंक्स"
"चलो देन बाय!" अक्षिता ने वापिस जाने के लिए मुड़ते हुए कहा
"रुको! तुम जाओगी कैसे?"
"जैसे अभी आए है, बस से"
तभी एकांश को याद आया कि कैसे वो लड़का अक्षिता को घूर रहा था उसे लगा कि उसका अकेले जाना ठीक नहीं (over possessive )
"नहीं, चलो ऑफिस मे चलो”
"क्या? क्यों?"
"मेरी कार एक घंटे में आजाएगी तो मेरा ड्राइवर तुम्हें घर छोड़ देगा" एकांश ने ऑफिस में जाते हुए कहा
"मैं अकेले चली जाऊंगी" अक्षिता ने वापिस वहा से जाते हुए कहा
"तुम अकेले नहीं जाओगी" एकांश ने सख्ती से कहा
“तुम मुझे ऑर्डर नहीं दे सकते, मैं अब तुम्हारी एम्प्लोयी नहीं हु" अक्षिता ने कहा और एकांश भी आके कुछ कहना चाहता था लेकिन उसने आसपास देखा तो पाया के कुछ लोग उन्हे ही देख रहे थे क्युकी बोलते हुए दोनों का ही आवाज ऊंचा हो गया था तभी एकांश का एक एम्प्लोयी वहा आया
"सर, मीटिंग का वक्त हो रहा है क्या हम एक बार फिर प्रेजेंटेशन चेक कर लें?" स्टाफ के बंदे ने कहा
"हाँ और इन मैडम मेरे केबिन में बैठाओ" एकांश ने अक्षिता की ओर इशारा करते हुए कहा
"ओके सर"
"नहीं! मैं घर जा रही हूँ।" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ी
लेकिन एकांश ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा
"क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे" अक्षिता ने हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा
"जब तक तुम रुक नहीं जाती तब तक नहीं।" एकांश ने कहा
"नहीं."
"मान जाओ अक्षिता" एकांश ने कहा और अक्षिता ने भी कुछ पलों तक उसे देखा
"अच्छा ठीक है” आखिर मे अक्षिता ने एकांश के आगे हथयार डालते हुए कहा
"गुड! जाओ और मेरे केबिन में इंतज़ार करो" एकांश ने अक्षिता का हाथ छोड़ा और अपने स्टाफ को देखते हुए बोला
"मैडम के लिए बढ़िया खाने का इंतजाम करो और उन्हे मेरी कैबिन से बाहर मत आने देना" एकांश ने कहा और मीटिंग रूम ही ओर बढ़ गया वही अक्षिता पैर पटकते हुए उसके कैबिन मे जा बैठी
******
मीटिंग के बाद जब दोनों साथ घर आ रहे थे तब अक्षिता पूरे रास्ते बड़बड़ा रही थी वही एकांश उसकी बड़बड़ को इग्नोर किए जा रहा था जिससे अक्षिता और भी ज्यादा चिढ़ रही थी वही एकांश को उसे यू चिढ़ाने मे मजा आ रहा था, आज काफी समय बाद दोनों ने कुछ समय साथ बिताया था भले ही थोड़े समय के लिए हो लेकिन दोनों ने एक दूसरे की मौजूदगी का आनंद लिया था
घर पहुच कर दोनों ही सरिताजि के पास पहुचे जो दइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी और दोनों ही उनके पास बच्चों की तरह शिकायाते करने लगे एकांश ने ये शिकायत की के अक्षिता ने उसे बस मे सफर करवाया वही अक्षिता ने भी उसकी हरकतों की शिकायत की
"तुमने उसे लोकल बस में ऑफिस भेजा!" सरिताजी ने अक्षिता को घूर कर देखा वही अक्षिता ने अपनी माँ को देखकर मुंह बनाया और एकांश उसे देखकर मुस्कुरा दिया
"माँ, लेकिन उसके बारे में मेरी शिकायत का क्या होगा?" अक्षिता ने बड़बड़ाते हुए कहा
"उसने तुम्हारा इतना ख्याल रखा कि तुम अकेली घर नहीं आओगी इसमें शिकायत की क्या बात है?"
"लेकिन माँ, इसने मुझे वहा रहने के लिए मजबूर किया" अक्षिता ने एकांश की ओर देखते हुए कहा
"हाँ, लेकिन मैंने ऐसा इसकी सैफ्टी के लिए किया आंटी" एकांश ने मासूमियत से सरिताजी से कहा जिसके बाद सरिताजी ने अक्षिता को ही दो बाते सुना ही और किचन मे चली गई वही एकांश अक्षिता को देख हसने लगा
"चुप करो!” अक्षिता ने जोर से कहा के तभी
"अक्षिता!" किचन से उसकी माँ की चेतावनी भरी आवाज़ आई जिससे उसका मुँह बंद हो गया
वही एकांश चुपचाप हंसने लगा और अक्षिता उसे घूरकर देखने लगी
"अब तुम दोनों लड़ना बंद करो और अपना खाना खाना शुरू करो।" सरिताजी ने उनकी प्लेटों में खाना परोसते हुए कहा और यूही नोकझोंक करते हुए हसते हुए वो खाने का मजा लेने लगे
अक्षिता और सरिता जी ने एकांश के चिल्लाने की आवाज सुनी तो दोनो चौकी और क्या हुआ है जानने के लिए दोनो बाहर आई तो देखा के एकांश फोन पर बात करते हुए किसी पर चिल्ला रहा था
"क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने पूछा
"कुछ नही आंटी मेरी कार का टायर पंचर हो गया और मेरा ड्राइवर हाईवे के बीच में फसा है क्युकी उस गधे ने गाड़ी में स्टेपनी नही रखी" एकांश ने कहा
"बस इतनी सी बात पर इतना हंगामा?" अक्षिता ने थोड़ा चिढ़कर कहा
"छोटी सी बात? एक घंटे में मेरी एक जरूरी मीटिंग है और मुझे आधे घंटे में ऑफिस पहुंचना है" एकांश ने भी उसी टोन में कहा
"Whatever, still ये इतनी बड़ी बात भी नहीं है जो यू चिल्ला रहे हो" अक्षिता ने कहा
"देखो अक्षिता, मैं पहले ही परेशान हु प्लीज मुझे और गुस्सा मत दिलाओ" एकांश ने कहा और एक बार फिर ये दोनो बच्चो की तरह लड़ने लगे थे जिसे सरिताजी को चुप कराना पड़ा
"बस करो तुम दोनों।"
उन दोनो ने बहस रोक सरिता जी को देखा जो उन्हें ही देख रही थी और फिर एकांश अपना फोन निकालते हुए बोला
"I am calling a cab"
"इस एरिया में तुम्हे कोई कैब नही मिलेगी" अक्षिता ने कहा।
"तो अब तुम ही बताओ मैं क्या करू?"
"रुको मैं मेरे भाई से पूछती हु शायद कोई बाइक या कार मिल।जाए" सरिता जी ने अपना फोन लेते हुए कहा और एकांश उम्मीद भरी नजरो से उन्हें देखा
"अरे छोड़ो ना मां मुझे पता है इसे ऑफिस कैसे पहुंचाना है" अक्षिता ने कहा
"कैसे?" दोनों ने अक्षिता से पूछा जो उन्हें देख मुस्कुरा रही थी
"मां आप चिंता मत करो इसे टाइम पर ऑफिस पहुंचाना मेरा काम" अक्षिता ने अपनी मां से कहा और फिर एकांश को देख बोली "चलो!"
और एकांश को तो बस मौका ही चाहिए था अक्षिता के साथ अकेले में समय बिताने का उसे भला इस प्लान में क्या दिक्कत होनी थी
"हम कैसे जायेंगे?" एकांश ने पूछा
"तुम बस मेरे साथ आओ" अक्षिता ने गेट से बाहर निकलते हुए कहा और एकांश उसके पीछे पीछे चल पड़ा
एकांश को समझ नहीं आ रहा था के अक्षिता उसे कहा ले जा रही थी वो लोग अभी अपनी गली पार कर रहे थे और वो बस अक्षिता के पीछे पीछे चल रहा था और उसका ध्यान बस अक्षिता की ओर था और अचानक चलते चलते अक्षिता रुकी और एकांश को उसे उसे ही देखते हुए आगे चल रहा था वो उससे टकरा गया लेकिन फिर जल्दी की संभाल गया वही अक्षिता ने इस बात को नजरंदाज कर दिया
"here we are!" अक्षिता ने पलटकर एकांश को देखते हुए मुसकुराते हुए कहा
एकांश ने पहले अक्षिता की तरफ देखा और फिर आस-पास के इलाके को देखा, उसने फिर से अक्षिता को देखा क्योंकि उनके सामने कुछ भी नहीं था..... न कार, न बाइक..... कुछ भी नहीं
"यहाँ कुछ भी नहीं है।" एकांश ने कहा जिसके बदले मे अक्षिता के इक्स्प्रेशन थोड़े बदले
"तुम अंधे हो क्या?” अक्षिता ने थोड़ा चिढ़ कर कहा और एकांश ने वापिस चारों ओर देखा
"तुम बस मेरा समय खराब कर रही हो" एकांश ने कहा और अपना फोन निकाला और किसी से कहा कि वो उसके लिए कार ले आए लेकिन अक्षिता ने उसे रोका
"रुको, उधर देखो" अक्षिता ने कहा और अपनी दाईं ओर एक जगह की ओर इशारा किया और एकांश ने देखा तो वो बस स्टॉप पर खड़े थे, अब अमीर बाप के लड़के को इसकी आदत थोड़े ही थी
"तुम बस स्टॉप पर हो और यह से कही भी जा सकते हो" अक्षिता ने कहा वही एकांश बगैर कुछ बोले उसे घूरने लगा
“तो तुम चाहती को के अब मैं बस मे ऑफिस जाऊ" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने अपना सिर जोर से ऊपर-नीचे हिलाया
"तुम पागल हो? तुमने सचमुच सोचा था कि मैं बस से ऑफिस जाऊँगा, वो भी बिजनेस सूट पहनकर"
"इसमें ग़लत क्या है?” अक्षिता ने सहज भाव से कहा
"अगर तुम सोचती हो कि मैं बस में जाऊंगा तो तुम सचमुच पागल हो गई हो"
"देखो तुम्हारे पास वैसे भी कोई गाड़ी नहीं है और यहाँ कोई टैक्सी भी नहीं मिलेगी ऑटो रिक्शा लेने के लिए हमें थोड़ा और चलना पड़ेगा और जब तक तुम कार बुला कर ऑफिस पहुचओगे तब तक तुम्हारी मीटिंग का टाइम खतम को जाएगा इसलिए फिलहाल बस ही सही रास्ता है" अक्षिता ने कहा
"मैंने पहले कभी सिटी बस मे सफर नहीं कीया है और न ही कभी करूंगा" एकांश ने कहा
"ठीक है, अब तुम्हें मीटिंग छोड़नी ही है तो तुम्हारी मर्जी वैसे अभी बस आ जाएगी और तुम टाइम पर पहुच सकते हो” अक्षिता ने कहा जिसपर एकांश कुछ नहीं बोला
अक्षिता एकांश का ऐसा ऐटिटूड देख थोड़ा निराश हुई, एक अभी प्रापर बिगड़ेल अमीरजादा लग रहा था, पहले तो उसने सोचा था कि वो उसे सिर्फ़ परेशान करेगी लेकिन अब वो सही में चाहती थी कि एकांश जाने के धन-दौलत और आराम के बिना भी जीवन है और उससे भी बढ़कर वो उसके साथ थोड़ा समय बिताना चाहती थी
लेकिन उसे ये नहीं पता था के एकांश ने अपनी सारी आराम की जिंदगी सिर्फ उसके साथ रहने के लिए छोड़ दी थी, उसने अपनी सारी सुख-सुविधाएं छोड़ दीं और सिर्फ उसके लिए एक छोटे से कमरे में रह रहा था
एकांश ने अक्षिता के चेहरे को देखा और फिर बस मे जानेको मान गया
"ठीक लेकिन मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है" एकांश ने कहा
"कोई नहीं, मैं हु ना" अक्षिता ने मुसकुराते हुए कहा और इस मुस्कान के लिए तो वो कुछ भी कर सकता था
"चलो, अब जल्दी करो, नहीं तो बस छूट जाएगी" अक्षिता ने आती हुई बस की ओर इशारा किया और एकांश का हतरः पकड़ और बस की ओर ले जाने लगी और एक मिनट में एक बस आकर उनके सामने रुकी
एकांश बस वहीं मूक खड़ा रहा।
"एकांश आओ, बस मे चढ़ो।" अक्षिता ने कहा और एकांश जल्दी से बस में चढ़ गया और बस में बैठे सभी लोग उसे थोड़ा अजीब नजरों से देखने लगे बस नॉर्मल लोगों के बीच सुबह सुबह बिजनस सूट पहने वो अलग ही दिख रहा था
"मैं उन्हें बेवकूफ लग रहा हू न" एकांश ने बड़बड़ाते हुए कहा, जिस पर अक्षिता हस पड़ी
एकांश ने पहले उसकी ओर देखा और फिर उन सबकी ओर जो अभी भी उसे ही देख रहे थे
बस चल पड़ी थी और उनके बैठने के लिए कोई सीट नहीं थी इसलिए वो लोग हैंडल को पकड़कर खड़े हो गए
कुछ ही पलों मे कन्डक्टर आया और टिकट के लिए कहा एकांश ने जेब में पैसे ढूंढे और कंडक्टर की ओर 500 रुपए का नोट बढ़ाया
"सुबह सुबह का वक्त है भई 10 रुपया खुल्ला दो" कंडक्टर ने 500 का नोट देख झल्लाकर कहा
"पर मेरे पास तो सिर्फ़ 500 के नोट हैं"
अब इससे पहले ही कन्डक्टर आगे कुछ बोलत अक्षिता ने कंडक्टर से कहा कि वो उन्हें 2 टिकट दे और बताया कि उन्हें कहाँ उतरना है, उसने उसे 20 रुपये दिए और टिकट लिया
अगले स्टॉप पर कोई उतर गया और अक्षिता एकांश के साथ खाली सीट पर जा बैठी, एकांश को वो सीट नहीं सम रही थी
"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं ये कर रहा हूँ" एकांश बुदबुदाया
"क्या?"
"कुछ नहीं" कहते हुए एकांश ने चारों ओर देखा
एक लड़का उनकी तरफ देख रहा था एकांश ने उस लड़के की तरफ़ देख भौंहें उठाईं लेकिन उस लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया एकांश ने और गौर से उसकी तरफ़ देखा
जब उसे एहसास हुआ कि वह लड़का खिड़की से बाहर देख रही अक्षिता को घूर रहा है तो अब उसे गुस्सा आने लगा लेकिन इस वक्त वो लड़ने के तो मूड मे नहीं था लेकिन वो उस लड़के को ये भी बबताना चाहता था के वो उसकी है
एकांश ने अक्षिता के कंधे पर हाथ रखा और उसे अपने पास खींच लिया, अक्षिता ने उसे चौक कर देखा लेकिन एकांश उस लड़के को ही घूर रहा था
अब एकांश पर नजर जाते ही वो लड़का डर कर दूसरी तरफ देखने लगा लेकिन एकांश ने अपना हाथ नहीं हटाया, अक्षिता को भी एकांश का यू हक जताना अच्छा लगा था,एकांश ने उसकी तरफ देखा जो खिड़की से बाहर देख कर मुस्कुरा रही थी
एकांश के चेहरे पर भी स्माइल थी क्योंकि उसने उसके कंधे पर हाथ रखने का विरोध नहीं किया था और जब उनका स्टॉप आने लगा तो अक्षिता अपनी सीट से उठ गई जबकि एकांश उसे हैरान होकर देख रहा था
"अगला स्टॉप हमारा है" अक्षिता ने कहा
एकांश भी अपनी सीट से उठ गया था और अक्षिता के पास खड़ा था, पहले तो वो बस मे बैठने को ही तयार नहीं था लेकिन अब उसे ऐसा लग रहा था के ये सफर चलता रहे, अक्षिता जो उसके पास थी, बस से उतरकर वो ऑफिस की ओर चल पड़े और वहा पहुचते ही अक्षिता बोली
"देखा कहा था ना टाइम पर पहुच जाएंगे"
"थैंक्स"
"चलो देन बाय!" अक्षिता ने वापिस जाने के लिए मुड़ते हुए कहा
"रुको! तुम जाओगी कैसे?"
"जैसे अभी आए है, बस से"
तभी एकांश को याद आया कि कैसे वो लड़का अक्षिता को घूर रहा था उसे लगा कि उसका अकेले जाना ठीक नहीं (over possessive )
"नहीं, चलो ऑफिस मे चलो”
"क्या? क्यों?"
"मेरी कार एक घंटे में आजाएगी तो मेरा ड्राइवर तुम्हें घर छोड़ देगा" एकांश ने ऑफिस में जाते हुए कहा
"मैं अकेले चली जाऊंगी" अक्षिता ने वापिस वहा से जाते हुए कहा
"तुम अकेले नहीं जाओगी" एकांश ने सख्ती से कहा
“तुम मुझे ऑर्डर नहीं दे सकते, मैं अब तुम्हारी एम्प्लोयी नहीं हु" अक्षिता ने कहा और एकांश भी आके कुछ कहना चाहता था लेकिन उसने आसपास देखा तो पाया के कुछ लोग उन्हे ही देख रहे थे क्युकी बोलते हुए दोनों का ही आवाज ऊंचा हो गया था तभी एकांश का एक एम्प्लोयी वहा आया
"सर, मीटिंग का वक्त हो रहा है क्या हम एक बार फिर प्रेजेंटेशन चेक कर लें?" स्टाफ के बंदे ने कहा
"हाँ और इन मैडम मेरे केबिन में बैठाओ" एकांश ने अक्षिता की ओर इशारा करते हुए कहा
"ओके सर"
"नहीं! मैं घर जा रही हूँ।" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ी
लेकिन एकांश ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा
"क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे" अक्षिता ने हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा
"जब तक तुम रुक नहीं जाती तब तक नहीं।" एकांश ने कहा
"नहीं."
"मान जाओ अक्षिता" एकांश ने कहा और अक्षिता ने भी कुछ पलों तक उसे देखा
"अच्छा ठीक है” आखिर मे अक्षिता ने एकांश के आगे हथयार डालते हुए कहा
"गुड! जाओ और मेरे केबिन में इंतज़ार करो" एकांश ने अक्षिता का हाथ छोड़ा और अपने स्टाफ को देखते हुए बोला
"मैडम के लिए बढ़िया खाने का इंतजाम करो और उन्हे मेरी कैबिन से बाहर मत आने देना" एकांश ने कहा और मीटिंग रूम ही ओर बढ़ गया वही अक्षिता पैर पटकते हुए उसके कैबिन मे जा बैठी
******
मीटिंग के बाद जब दोनों साथ घर आ रहे थे तब अक्षिता पूरे रास्ते बड़बड़ा रही थी वही एकांश उसकी बड़बड़ को इग्नोर किए जा रहा था जिससे अक्षिता और भी ज्यादा चिढ़ रही थी वही एकांश को उसे यू चिढ़ाने मे मजा आ रहा था, आज काफी समय बाद दोनों ने कुछ समय साथ बिताया था भले ही थोड़े समय के लिए हो लेकिन दोनों ने एक दूसरे की मौजूदगी का आनंद लिया था
घर पहुच कर दोनों ही सरिताजि के पास पहुचे जो दइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी और दोनों ही उनके पास बच्चों की तरह शिकायाते करने लगे एकांश ने ये शिकायत की के अक्षिता ने उसे बस मे सफर करवाया वही अक्षिता ने भी उसकी हरकतों की शिकायत की
"तुमने उसे लोकल बस में ऑफिस भेजा!" सरिताजी ने अक्षिता को घूर कर देखा वही अक्षिता ने अपनी माँ को देखकर मुंह बनाया और एकांश उसे देखकर मुस्कुरा दिया
"माँ, लेकिन उसके बारे में मेरी शिकायत का क्या होगा?" अक्षिता ने बड़बड़ाते हुए कहा
"उसने तुम्हारा इतना ख्याल रखा कि तुम अकेली घर नहीं आओगी इसमें शिकायत की क्या बात है?"
"लेकिन माँ, इसने मुझे वहा रहने के लिए मजबूर किया" अक्षिता ने एकांश की ओर देखते हुए कहा
"हाँ, लेकिन मैंने ऐसा इसकी सैफ्टी के लिए किया आंटी" एकांश ने मासूमियत से सरिताजी से कहा जिसके बाद सरिताजी ने अक्षिता को ही दो बाते सुना ही और किचन मे चली गई वही एकांश अक्षिता को देख हसने लगा
"चुप करो!” अक्षिता ने जोर से कहा के तभी
"अक्षिता!" किचन से उसकी माँ की चेतावनी भरी आवाज़ आई जिससे उसका मुँह बंद हो गया
वही एकांश चुपचाप हंसने लगा और अक्षिता उसे घूरकर देखने लगी
"अब तुम दोनों लड़ना बंद करो और अपना खाना खाना शुरू करो।" सरिताजी ने उनकी प्लेटों में खाना परोसते हुए कहा और यूही नोकझोंक करते हुए हसते हुए वो खाने का मजा लेने लगे
Wah! Aapka Is update ko padh ke dil khush ho gaya! Akshita aur Ekansh ki jo nok-jhok hai, woh toh bas laajawab hai – padh ke sach mein bahut maza aaya! Aapka likhne ka andaaz kamal ka hai! Agle update ka besabri se intezaar rahega!
अक्षिता और सरिता जी ने एकांश के चिल्लाने की आवाज सुनी तो दोनो चौकी और क्या हुआ है जानने के लिए दोनो बाहर आई तो देखा के एकांश फोन पर बात करते हुए किसी पर चिल्ला रहा था
"क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने पूछा
"कुछ नही आंटी मेरी कार का टायर पंचर हो गया और मेरा ड्राइवर हाईवे के बीच में फसा है क्युकी उस गधे ने गाड़ी में स्टेपनी नही रखी" एकांश ने कहा
"बस इतनी सी बात पर इतना हंगामा?" अक्षिता ने थोड़ा चिढ़कर कहा
"छोटी सी बात? एक घंटे में मेरी एक जरूरी मीटिंग है और मुझे आधे घंटे में ऑफिस पहुंचना है" एकांश ने भी उसी टोन में कहा
"Whatever, still ये इतनी बड़ी बात भी नहीं है जो यू चिल्ला रहे हो" अक्षिता ने कहा
"देखो अक्षिता, मैं पहले ही परेशान हु प्लीज मुझे और गुस्सा मत दिलाओ" एकांश ने कहा और एक बार फिर ये दोनो बच्चो की तरह लड़ने लगे थे जिसे सरिताजी को चुप कराना पड़ा
"बस करो तुम दोनों।"
उन दोनो ने बहस रोक सरिता जी को देखा जो उन्हें ही देख रही थी और फिर एकांश अपना फोन निकालते हुए बोला
"I am calling a cab"
"इस एरिया में तुम्हे कोई कैब नही मिलेगी" अक्षिता ने कहा।
"तो अब तुम ही बताओ मैं क्या करू?"
"रुको मैं मेरे भाई से पूछती हु शायद कोई बाइक या कार मिल।जाए" सरिता जी ने अपना फोन लेते हुए कहा और एकांश उम्मीद भरी नजरो से उन्हें देखा
"अरे छोड़ो ना मां मुझे पता है इसे ऑफिस कैसे पहुंचाना है" अक्षिता ने कहा
"कैसे?" दोनों ने अक्षिता से पूछा जो उन्हें देख मुस्कुरा रही थी
"मां आप चिंता मत करो इसे टाइम पर ऑफिस पहुंचाना मेरा काम" अक्षिता ने अपनी मां से कहा और फिर एकांश को देख बोली "चलो!"
और एकांश को तो बस मौका ही चाहिए था अक्षिता के साथ अकेले में समय बिताने का उसे भला इस प्लान में क्या दिक्कत होनी थी
"हम कैसे जायेंगे?" एकांश ने पूछा
"तुम बस मेरे साथ आओ" अक्षिता ने गेट से बाहर निकलते हुए कहा और एकांश उसके पीछे पीछे चल पड़ा
एकांश को समझ नहीं आ रहा था के अक्षिता उसे कहा ले जा रही थी वो लोग अभी अपनी गली पार कर रहे थे और वो बस अक्षिता के पीछे पीछे चल रहा था और उसका ध्यान बस अक्षिता की ओर था और अचानक चलते चलते अक्षिता रुकी और एकांश को उसे उसे ही देखते हुए आगे चल रहा था वो उससे टकरा गया लेकिन फिर जल्दी की संभाल गया वही अक्षिता ने इस बात को नजरंदाज कर दिया
"here we are!" अक्षिता ने पलटकर एकांश को देखते हुए मुसकुराते हुए कहा
एकांश ने पहले अक्षिता की तरफ देखा और फिर आस-पास के इलाके को देखा, उसने फिर से अक्षिता को देखा क्योंकि उनके सामने कुछ भी नहीं था..... न कार, न बाइक..... कुछ भी नहीं
"यहाँ कुछ भी नहीं है।" एकांश ने कहा जिसके बदले मे अक्षिता के इक्स्प्रेशन थोड़े बदले
"तुम अंधे हो क्या?” अक्षिता ने थोड़ा चिढ़ कर कहा और एकांश ने वापिस चारों ओर देखा
"तुम बस मेरा समय खराब कर रही हो" एकांश ने कहा और अपना फोन निकाला और किसी से कहा कि वो उसके लिए कार ले आए लेकिन अक्षिता ने उसे रोका
"रुको, उधर देखो" अक्षिता ने कहा और अपनी दाईं ओर एक जगह की ओर इशारा किया और एकांश ने देखा तो वो बस स्टॉप पर खड़े थे, अब अमीर बाप के लड़के को इसकी आदत थोड़े ही थी
"तुम बस स्टॉप पर हो और यह से कही भी जा सकते हो" अक्षिता ने कहा वही एकांश बगैर कुछ बोले उसे घूरने लगा
“तो तुम चाहती को के अब मैं बस मे ऑफिस जाऊ" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने अपना सिर जोर से ऊपर-नीचे हिलाया
"तुम पागल हो? तुमने सचमुच सोचा था कि मैं बस से ऑफिस जाऊँगा, वो भी बिजनेस सूट पहनकर"
"इसमें ग़लत क्या है?” अक्षिता ने सहज भाव से कहा
"अगर तुम सोचती हो कि मैं बस में जाऊंगा तो तुम सचमुच पागल हो गई हो"
"देखो तुम्हारे पास वैसे भी कोई गाड़ी नहीं है और यहाँ कोई टैक्सी भी नहीं मिलेगी ऑटो रिक्शा लेने के लिए हमें थोड़ा और चलना पड़ेगा और जब तक तुम कार बुला कर ऑफिस पहुचओगे तब तक तुम्हारी मीटिंग का टाइम खतम को जाएगा इसलिए फिलहाल बस ही सही रास्ता है" अक्षिता ने कहा
"मैंने पहले कभी सिटी बस मे सफर नहीं कीया है और न ही कभी करूंगा" एकांश ने कहा
"ठीक है, अब तुम्हें मीटिंग छोड़नी ही है तो तुम्हारी मर्जी वैसे अभी बस आ जाएगी और तुम टाइम पर पहुच सकते हो” अक्षिता ने कहा जिसपर एकांश कुछ नहीं बोला
अक्षिता एकांश का ऐसा ऐटिटूड देख थोड़ा निराश हुई, एक अभी प्रापर बिगड़ेल अमीरजादा लग रहा था, पहले तो उसने सोचा था कि वो उसे सिर्फ़ परेशान करेगी लेकिन अब वो सही में चाहती थी कि एकांश जाने के धन-दौलत और आराम के बिना भी जीवन है और उससे भी बढ़कर वो उसके साथ थोड़ा समय बिताना चाहती थी
लेकिन उसे ये नहीं पता था के एकांश ने अपनी सारी आराम की जिंदगी सिर्फ उसके साथ रहने के लिए छोड़ दी थी, उसने अपनी सारी सुख-सुविधाएं छोड़ दीं और सिर्फ उसके लिए एक छोटे से कमरे में रह रहा था
एकांश ने अक्षिता के चेहरे को देखा और फिर बस मे जानेको मान गया
"ठीक लेकिन मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है" एकांश ने कहा
"कोई नहीं, मैं हु ना" अक्षिता ने मुसकुराते हुए कहा और इस मुस्कान के लिए तो वो कुछ भी कर सकता था
"चलो, अब जल्दी करो, नहीं तो बस छूट जाएगी" अक्षिता ने आती हुई बस की ओर इशारा किया और एकांश का हतरः पकड़ और बस की ओर ले जाने लगी और एक मिनट में एक बस आकर उनके सामने रुकी
एकांश बस वहीं मूक खड़ा रहा।
"एकांश आओ, बस मे चढ़ो।" अक्षिता ने कहा और एकांश जल्दी से बस में चढ़ गया और बस में बैठे सभी लोग उसे थोड़ा अजीब नजरों से देखने लगे बस नॉर्मल लोगों के बीच सुबह सुबह बिजनस सूट पहने वो अलग ही दिख रहा था
"मैं उन्हें बेवकूफ लग रहा हू न" एकांश ने बड़बड़ाते हुए कहा, जिस पर अक्षिता हस पड़ी
एकांश ने पहले उसकी ओर देखा और फिर उन सबकी ओर जो अभी भी उसे ही देख रहे थे
बस चल पड़ी थी और उनके बैठने के लिए कोई सीट नहीं थी इसलिए वो लोग हैंडल को पकड़कर खड़े हो गए
कुछ ही पलों मे कन्डक्टर आया और टिकट के लिए कहा एकांश ने जेब में पैसे ढूंढे और कंडक्टर की ओर 500 रुपए का नोट बढ़ाया
"सुबह सुबह का वक्त है भई 10 रुपया खुल्ला दो" कंडक्टर ने 500 का नोट देख झल्लाकर कहा
"पर मेरे पास तो सिर्फ़ 500 के नोट हैं"
अब इससे पहले ही कन्डक्टर आगे कुछ बोलत अक्षिता ने कंडक्टर से कहा कि वो उन्हें 2 टिकट दे और बताया कि उन्हें कहाँ उतरना है, उसने उसे 20 रुपये दिए और टिकट लिया
अगले स्टॉप पर कोई उतर गया और अक्षिता एकांश के साथ खाली सीट पर जा बैठी, एकांश को वो सीट नहीं सम रही थी
"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं ये कर रहा हूँ" एकांश बुदबुदाया
"क्या?"
"कुछ नहीं" कहते हुए एकांश ने चारों ओर देखा
एक लड़का उनकी तरफ देख रहा था एकांश ने उस लड़के की तरफ़ देख भौंहें उठाईं लेकिन उस लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया एकांश ने और गौर से उसकी तरफ़ देखा
जब उसे एहसास हुआ कि वह लड़का खिड़की से बाहर देख रही अक्षिता को घूर रहा है तो अब उसे गुस्सा आने लगा लेकिन इस वक्त वो लड़ने के तो मूड मे नहीं था लेकिन वो उस लड़के को ये भी बबताना चाहता था के वो उसकी है
एकांश ने अक्षिता के कंधे पर हाथ रखा और उसे अपने पास खींच लिया, अक्षिता ने उसे चौक कर देखा लेकिन एकांश उस लड़के को ही घूर रहा था
अब एकांश पर नजर जाते ही वो लड़का डर कर दूसरी तरफ देखने लगा लेकिन एकांश ने अपना हाथ नहीं हटाया, अक्षिता को भी एकांश का यू हक जताना अच्छा लगा था,एकांश ने उसकी तरफ देखा जो खिड़की से बाहर देख कर मुस्कुरा रही थी
एकांश के चेहरे पर भी स्माइल थी क्योंकि उसने उसके कंधे पर हाथ रखने का विरोध नहीं किया था और जब उनका स्टॉप आने लगा तो अक्षिता अपनी सीट से उठ गई जबकि एकांश उसे हैरान होकर देख रहा था
"अगला स्टॉप हमारा है" अक्षिता ने कहा
एकांश भी अपनी सीट से उठ गया था और अक्षिता के पास खड़ा था, पहले तो वो बस मे बैठने को ही तयार नहीं था लेकिन अब उसे ऐसा लग रहा था के ये सफर चलता रहे, अक्षिता जो उसके पास थी, बस से उतरकर वो ऑफिस की ओर चल पड़े और वहा पहुचते ही अक्षिता बोली
"देखा कहा था ना टाइम पर पहुच जाएंगे"
"थैंक्स"
"चलो देन बाय!" अक्षिता ने वापिस जाने के लिए मुड़ते हुए कहा
"रुको! तुम जाओगी कैसे?"
"जैसे अभी आए है, बस से"
तभी एकांश को याद आया कि कैसे वो लड़का अक्षिता को घूर रहा था उसे लगा कि उसका अकेले जाना ठीक नहीं (over possessive )
"नहीं, चलो ऑफिस मे चलो”
"क्या? क्यों?"
"मेरी कार एक घंटे में आजाएगी तो मेरा ड्राइवर तुम्हें घर छोड़ देगा" एकांश ने ऑफिस में जाते हुए कहा
"मैं अकेले चली जाऊंगी" अक्षिता ने वापिस वहा से जाते हुए कहा
"तुम अकेले नहीं जाओगी" एकांश ने सख्ती से कहा
“तुम मुझे ऑर्डर नहीं दे सकते, मैं अब तुम्हारी एम्प्लोयी नहीं हु" अक्षिता ने कहा और एकांश भी आके कुछ कहना चाहता था लेकिन उसने आसपास देखा तो पाया के कुछ लोग उन्हे ही देख रहे थे क्युकी बोलते हुए दोनों का ही आवाज ऊंचा हो गया था तभी एकांश का एक एम्प्लोयी वहा आया
"सर, मीटिंग का वक्त हो रहा है क्या हम एक बार फिर प्रेजेंटेशन चेक कर लें?" स्टाफ के बंदे ने कहा
"हाँ और इन मैडम मेरे केबिन में बैठाओ" एकांश ने अक्षिता की ओर इशारा करते हुए कहा
"ओके सर"
"नहीं! मैं घर जा रही हूँ।" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ी
लेकिन एकांश ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा
"क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे" अक्षिता ने हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा
"जब तक तुम रुक नहीं जाती तब तक नहीं।" एकांश ने कहा
"नहीं."
"मान जाओ अक्षिता" एकांश ने कहा और अक्षिता ने भी कुछ पलों तक उसे देखा
"अच्छा ठीक है” आखिर मे अक्षिता ने एकांश के आगे हथयार डालते हुए कहा
"गुड! जाओ और मेरे केबिन में इंतज़ार करो" एकांश ने अक्षिता का हाथ छोड़ा और अपने स्टाफ को देखते हुए बोला
"मैडम के लिए बढ़िया खाने का इंतजाम करो और उन्हे मेरी कैबिन से बाहर मत आने देना" एकांश ने कहा और मीटिंग रूम ही ओर बढ़ गया वही अक्षिता पैर पटकते हुए उसके कैबिन मे जा बैठी
******
मीटिंग के बाद जब दोनों साथ घर आ रहे थे तब अक्षिता पूरे रास्ते बड़बड़ा रही थी वही एकांश उसकी बड़बड़ को इग्नोर किए जा रहा था जिससे अक्षिता और भी ज्यादा चिढ़ रही थी वही एकांश को उसे यू चिढ़ाने मे मजा आ रहा था, आज काफी समय बाद दोनों ने कुछ समय साथ बिताया था भले ही थोड़े समय के लिए हो लेकिन दोनों ने एक दूसरे की मौजूदगी का आनंद लिया था
घर पहुच कर दोनों ही सरिताजि के पास पहुचे जो दइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी और दोनों ही उनके पास बच्चों की तरह शिकायाते करने लगे एकांश ने ये शिकायत की के अक्षिता ने उसे बस मे सफर करवाया वही अक्षिता ने भी उसकी हरकतों की शिकायत की
"तुमने उसे लोकल बस में ऑफिस भेजा!" सरिताजी ने अक्षिता को घूर कर देखा वही अक्षिता ने अपनी माँ को देखकर मुंह बनाया और एकांश उसे देखकर मुस्कुरा दिया
"माँ, लेकिन उसके बारे में मेरी शिकायत का क्या होगा?" अक्षिता ने बड़बड़ाते हुए कहा
"उसने तुम्हारा इतना ख्याल रखा कि तुम अकेली घर नहीं आओगी इसमें शिकायत की क्या बात है?"
"लेकिन माँ, इसने मुझे वहा रहने के लिए मजबूर किया" अक्षिता ने एकांश की ओर देखते हुए कहा
"हाँ, लेकिन मैंने ऐसा इसकी सैफ्टी के लिए किया आंटी" एकांश ने मासूमियत से सरिताजी से कहा जिसके बाद सरिताजी ने अक्षिता को ही दो बाते सुना ही और किचन मे चली गई वही एकांश अक्षिता को देख हसने लगा
"चुप करो!” अक्षिता ने जोर से कहा के तभी
"अक्षिता!" किचन से उसकी माँ की चेतावनी भरी आवाज़ आई जिससे उसका मुँह बंद हो गया
वही एकांश चुपचाप हंसने लगा और अक्षिता उसे घूरकर देखने लगी
"अब तुम दोनों लड़ना बंद करो और अपना खाना खाना शुरू करो।" सरिताजी ने उनकी प्लेटों में खाना परोसते हुए कहा और यूही नोकझोंक करते हुए हसते हुए वो खाने का मजा लेने लगे
अक्षिता और सरिता जी ने एकांश के चिल्लाने की आवाज सुनी तो दोनो चौकी और क्या हुआ है जानने के लिए दोनो बाहर आई तो देखा के एकांश फोन पर बात करते हुए किसी पर चिल्ला रहा था
"क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने पूछा
"कुछ नही आंटी मेरी कार का टायर पंचर हो गया और मेरा ड्राइवर हाईवे के बीच में फसा है क्युकी उस गधे ने गाड़ी में स्टेपनी नही रखी" एकांश ने कहा
"बस इतनी सी बात पर इतना हंगामा?" अक्षिता ने थोड़ा चिढ़कर कहा
"छोटी सी बात? एक घंटे में मेरी एक जरूरी मीटिंग है और मुझे आधे घंटे में ऑफिस पहुंचना है" एकांश ने भी उसी टोन में कहा
"Whatever, still ये इतनी बड़ी बात भी नहीं है जो यू चिल्ला रहे हो" अक्षिता ने कहा
"देखो अक्षिता, मैं पहले ही परेशान हु प्लीज मुझे और गुस्सा मत दिलाओ" एकांश ने कहा और एक बार फिर ये दोनो बच्चो की तरह लड़ने लगे थे जिसे सरिताजी को चुप कराना पड़ा
"बस करो तुम दोनों।"
उन दोनो ने बहस रोक सरिता जी को देखा जो उन्हें ही देख रही थी और फिर एकांश अपना फोन निकालते हुए बोला
"I am calling a cab"
"इस एरिया में तुम्हे कोई कैब नही मिलेगी" अक्षिता ने कहा।
"तो अब तुम ही बताओ मैं क्या करू?"
"रुको मैं मेरे भाई से पूछती हु शायद कोई बाइक या कार मिल।जाए" सरिता जी ने अपना फोन लेते हुए कहा और एकांश उम्मीद भरी नजरो से उन्हें देखा
"अरे छोड़ो ना मां मुझे पता है इसे ऑफिस कैसे पहुंचाना है" अक्षिता ने कहा
"कैसे?" दोनों ने अक्षिता से पूछा जो उन्हें देख मुस्कुरा रही थी
"मां आप चिंता मत करो इसे टाइम पर ऑफिस पहुंचाना मेरा काम" अक्षिता ने अपनी मां से कहा और फिर एकांश को देख बोली "चलो!"
और एकांश को तो बस मौका ही चाहिए था अक्षिता के साथ अकेले में समय बिताने का उसे भला इस प्लान में क्या दिक्कत होनी थी
"हम कैसे जायेंगे?" एकांश ने पूछा
"तुम बस मेरे साथ आओ" अक्षिता ने गेट से बाहर निकलते हुए कहा और एकांश उसके पीछे पीछे चल पड़ा
एकांश को समझ नहीं आ रहा था के अक्षिता उसे कहा ले जा रही थी वो लोग अभी अपनी गली पार कर रहे थे और वो बस अक्षिता के पीछे पीछे चल रहा था और उसका ध्यान बस अक्षिता की ओर था और अचानक चलते चलते अक्षिता रुकी और एकांश को उसे उसे ही देखते हुए आगे चल रहा था वो उससे टकरा गया लेकिन फिर जल्दी की संभाल गया वही अक्षिता ने इस बात को नजरंदाज कर दिया
"here we are!" अक्षिता ने पलटकर एकांश को देखते हुए मुसकुराते हुए कहा
एकांश ने पहले अक्षिता की तरफ देखा और फिर आस-पास के इलाके को देखा, उसने फिर से अक्षिता को देखा क्योंकि उनके सामने कुछ भी नहीं था..... न कार, न बाइक..... कुछ भी नहीं
"यहाँ कुछ भी नहीं है।" एकांश ने कहा जिसके बदले मे अक्षिता के इक्स्प्रेशन थोड़े बदले
"तुम अंधे हो क्या?” अक्षिता ने थोड़ा चिढ़ कर कहा और एकांश ने वापिस चारों ओर देखा
"तुम बस मेरा समय खराब कर रही हो" एकांश ने कहा और अपना फोन निकाला और किसी से कहा कि वो उसके लिए कार ले आए लेकिन अक्षिता ने उसे रोका
"रुको, उधर देखो" अक्षिता ने कहा और अपनी दाईं ओर एक जगह की ओर इशारा किया और एकांश ने देखा तो वो बस स्टॉप पर खड़े थे, अब अमीर बाप के लड़के को इसकी आदत थोड़े ही थी
"तुम बस स्टॉप पर हो और यह से कही भी जा सकते हो" अक्षिता ने कहा वही एकांश बगैर कुछ बोले उसे घूरने लगा
“तो तुम चाहती को के अब मैं बस मे ऑफिस जाऊ" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने अपना सिर जोर से ऊपर-नीचे हिलाया
"तुम पागल हो? तुमने सचमुच सोचा था कि मैं बस से ऑफिस जाऊँगा, वो भी बिजनेस सूट पहनकर"
"इसमें ग़लत क्या है?” अक्षिता ने सहज भाव से कहा
"अगर तुम सोचती हो कि मैं बस में जाऊंगा तो तुम सचमुच पागल हो गई हो"
"देखो तुम्हारे पास वैसे भी कोई गाड़ी नहीं है और यहाँ कोई टैक्सी भी नहीं मिलेगी ऑटो रिक्शा लेने के लिए हमें थोड़ा और चलना पड़ेगा और जब तक तुम कार बुला कर ऑफिस पहुचओगे तब तक तुम्हारी मीटिंग का टाइम खतम को जाएगा इसलिए फिलहाल बस ही सही रास्ता है" अक्षिता ने कहा
"मैंने पहले कभी सिटी बस मे सफर नहीं कीया है और न ही कभी करूंगा" एकांश ने कहा
"ठीक है, अब तुम्हें मीटिंग छोड़नी ही है तो तुम्हारी मर्जी वैसे अभी बस आ जाएगी और तुम टाइम पर पहुच सकते हो” अक्षिता ने कहा जिसपर एकांश कुछ नहीं बोला
अक्षिता एकांश का ऐसा ऐटिटूड देख थोड़ा निराश हुई, एक अभी प्रापर बिगड़ेल अमीरजादा लग रहा था, पहले तो उसने सोचा था कि वो उसे सिर्फ़ परेशान करेगी लेकिन अब वो सही में चाहती थी कि एकांश जाने के धन-दौलत और आराम के बिना भी जीवन है और उससे भी बढ़कर वो उसके साथ थोड़ा समय बिताना चाहती थी
लेकिन उसे ये नहीं पता था के एकांश ने अपनी सारी आराम की जिंदगी सिर्फ उसके साथ रहने के लिए छोड़ दी थी, उसने अपनी सारी सुख-सुविधाएं छोड़ दीं और सिर्फ उसके लिए एक छोटे से कमरे में रह रहा था
एकांश ने अक्षिता के चेहरे को देखा और फिर बस मे जानेको मान गया
"ठीक लेकिन मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है" एकांश ने कहा
"कोई नहीं, मैं हु ना" अक्षिता ने मुसकुराते हुए कहा और इस मुस्कान के लिए तो वो कुछ भी कर सकता था
"चलो, अब जल्दी करो, नहीं तो बस छूट जाएगी" अक्षिता ने आती हुई बस की ओर इशारा किया और एकांश का हतरः पकड़ और बस की ओर ले जाने लगी और एक मिनट में एक बस आकर उनके सामने रुकी
एकांश बस वहीं मूक खड़ा रहा।
"एकांश आओ, बस मे चढ़ो।" अक्षिता ने कहा और एकांश जल्दी से बस में चढ़ गया और बस में बैठे सभी लोग उसे थोड़ा अजीब नजरों से देखने लगे बस नॉर्मल लोगों के बीच सुबह सुबह बिजनस सूट पहने वो अलग ही दिख रहा था
"मैं उन्हें बेवकूफ लग रहा हू न" एकांश ने बड़बड़ाते हुए कहा, जिस पर अक्षिता हस पड़ी
एकांश ने पहले उसकी ओर देखा और फिर उन सबकी ओर जो अभी भी उसे ही देख रहे थे
बस चल पड़ी थी और उनके बैठने के लिए कोई सीट नहीं थी इसलिए वो लोग हैंडल को पकड़कर खड़े हो गए
कुछ ही पलों मे कन्डक्टर आया और टिकट के लिए कहा एकांश ने जेब में पैसे ढूंढे और कंडक्टर की ओर 500 रुपए का नोट बढ़ाया
"सुबह सुबह का वक्त है भई 10 रुपया खुल्ला दो" कंडक्टर ने 500 का नोट देख झल्लाकर कहा
"पर मेरे पास तो सिर्फ़ 500 के नोट हैं"
अब इससे पहले ही कन्डक्टर आगे कुछ बोलत अक्षिता ने कंडक्टर से कहा कि वो उन्हें 2 टिकट दे और बताया कि उन्हें कहाँ उतरना है, उसने उसे 20 रुपये दिए और टिकट लिया
अगले स्टॉप पर कोई उतर गया और अक्षिता एकांश के साथ खाली सीट पर जा बैठी, एकांश को वो सीट नहीं सम रही थी
"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं ये कर रहा हूँ" एकांश बुदबुदाया
"क्या?"
"कुछ नहीं" कहते हुए एकांश ने चारों ओर देखा
एक लड़का उनकी तरफ देख रहा था एकांश ने उस लड़के की तरफ़ देख भौंहें उठाईं लेकिन उस लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया एकांश ने और गौर से उसकी तरफ़ देखा
जब उसे एहसास हुआ कि वह लड़का खिड़की से बाहर देख रही अक्षिता को घूर रहा है तो अब उसे गुस्सा आने लगा लेकिन इस वक्त वो लड़ने के तो मूड मे नहीं था लेकिन वो उस लड़के को ये भी बबताना चाहता था के वो उसकी है
एकांश ने अक्षिता के कंधे पर हाथ रखा और उसे अपने पास खींच लिया, अक्षिता ने उसे चौक कर देखा लेकिन एकांश उस लड़के को ही घूर रहा था
अब एकांश पर नजर जाते ही वो लड़का डर कर दूसरी तरफ देखने लगा लेकिन एकांश ने अपना हाथ नहीं हटाया, अक्षिता को भी एकांश का यू हक जताना अच्छा लगा था,एकांश ने उसकी तरफ देखा जो खिड़की से बाहर देख कर मुस्कुरा रही थी
एकांश के चेहरे पर भी स्माइल थी क्योंकि उसने उसके कंधे पर हाथ रखने का विरोध नहीं किया था और जब उनका स्टॉप आने लगा तो अक्षिता अपनी सीट से उठ गई जबकि एकांश उसे हैरान होकर देख रहा था
"अगला स्टॉप हमारा है" अक्षिता ने कहा
एकांश भी अपनी सीट से उठ गया था और अक्षिता के पास खड़ा था, पहले तो वो बस मे बैठने को ही तयार नहीं था लेकिन अब उसे ऐसा लग रहा था के ये सफर चलता रहे, अक्षिता जो उसके पास थी, बस से उतरकर वो ऑफिस की ओर चल पड़े और वहा पहुचते ही अक्षिता बोली
"देखा कहा था ना टाइम पर पहुच जाएंगे"
"थैंक्स"
"चलो देन बाय!" अक्षिता ने वापिस जाने के लिए मुड़ते हुए कहा
"रुको! तुम जाओगी कैसे?"
"जैसे अभी आए है, बस से"
तभी एकांश को याद आया कि कैसे वो लड़का अक्षिता को घूर रहा था उसे लगा कि उसका अकेले जाना ठीक नहीं (over possessive )
"नहीं, चलो ऑफिस मे चलो”
"क्या? क्यों?"
"मेरी कार एक घंटे में आजाएगी तो मेरा ड्राइवर तुम्हें घर छोड़ देगा" एकांश ने ऑफिस में जाते हुए कहा
"मैं अकेले चली जाऊंगी" अक्षिता ने वापिस वहा से जाते हुए कहा
"तुम अकेले नहीं जाओगी" एकांश ने सख्ती से कहा
“तुम मुझे ऑर्डर नहीं दे सकते, मैं अब तुम्हारी एम्प्लोयी नहीं हु" अक्षिता ने कहा और एकांश भी आके कुछ कहना चाहता था लेकिन उसने आसपास देखा तो पाया के कुछ लोग उन्हे ही देख रहे थे क्युकी बोलते हुए दोनों का ही आवाज ऊंचा हो गया था तभी एकांश का एक एम्प्लोयी वहा आया
"सर, मीटिंग का वक्त हो रहा है क्या हम एक बार फिर प्रेजेंटेशन चेक कर लें?" स्टाफ के बंदे ने कहा
"हाँ और इन मैडम मेरे केबिन में बैठाओ" एकांश ने अक्षिता की ओर इशारा करते हुए कहा
"ओके सर"
"नहीं! मैं घर जा रही हूँ।" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ी
लेकिन एकांश ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा
"क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे" अक्षिता ने हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा
"जब तक तुम रुक नहीं जाती तब तक नहीं।" एकांश ने कहा
"नहीं."
"मान जाओ अक्षिता" एकांश ने कहा और अक्षिता ने भी कुछ पलों तक उसे देखा
"अच्छा ठीक है” आखिर मे अक्षिता ने एकांश के आगे हथयार डालते हुए कहा
"गुड! जाओ और मेरे केबिन में इंतज़ार करो" एकांश ने अक्षिता का हाथ छोड़ा और अपने स्टाफ को देखते हुए बोला
"मैडम के लिए बढ़िया खाने का इंतजाम करो और उन्हे मेरी कैबिन से बाहर मत आने देना" एकांश ने कहा और मीटिंग रूम ही ओर बढ़ गया वही अक्षिता पैर पटकते हुए उसके कैबिन मे जा बैठी
******
मीटिंग के बाद जब दोनों साथ घर आ रहे थे तब अक्षिता पूरे रास्ते बड़बड़ा रही थी वही एकांश उसकी बड़बड़ को इग्नोर किए जा रहा था जिससे अक्षिता और भी ज्यादा चिढ़ रही थी वही एकांश को उसे यू चिढ़ाने मे मजा आ रहा था, आज काफी समय बाद दोनों ने कुछ समय साथ बिताया था भले ही थोड़े समय के लिए हो लेकिन दोनों ने एक दूसरे की मौजूदगी का आनंद लिया था
घर पहुच कर दोनों ही सरिताजि के पास पहुचे जो दइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी और दोनों ही उनके पास बच्चों की तरह शिकायाते करने लगे एकांश ने ये शिकायत की के अक्षिता ने उसे बस मे सफर करवाया वही अक्षिता ने भी उसकी हरकतों की शिकायत की
"तुमने उसे लोकल बस में ऑफिस भेजा!" सरिताजी ने अक्षिता को घूर कर देखा वही अक्षिता ने अपनी माँ को देखकर मुंह बनाया और एकांश उसे देखकर मुस्कुरा दिया
"माँ, लेकिन उसके बारे में मेरी शिकायत का क्या होगा?" अक्षिता ने बड़बड़ाते हुए कहा
"उसने तुम्हारा इतना ख्याल रखा कि तुम अकेली घर नहीं आओगी इसमें शिकायत की क्या बात है?"
"लेकिन माँ, इसने मुझे वहा रहने के लिए मजबूर किया" अक्षिता ने एकांश की ओर देखते हुए कहा
"हाँ, लेकिन मैंने ऐसा इसकी सैफ्टी के लिए किया आंटी" एकांश ने मासूमियत से सरिताजी से कहा जिसके बाद सरिताजी ने अक्षिता को ही दो बाते सुना ही और किचन मे चली गई वही एकांश अक्षिता को देख हसने लगा
"चुप करो!” अक्षिता ने जोर से कहा के तभी
"अक्षिता!" किचन से उसकी माँ की चेतावनी भरी आवाज़ आई जिससे उसका मुँह बंद हो गया
वही एकांश चुपचाप हंसने लगा और अक्षिता उसे घूरकर देखने लगी
"अब तुम दोनों लड़ना बंद करो और अपना खाना खाना शुरू करो।" सरिताजी ने उनकी प्लेटों में खाना परोसते हुए कहा और यूही नोकझोंक करते हुए हसते हुए वो खाने का मजा लेने लगे
वाह आदि भैया वाह, क्या बात है,
तुम कहते हो की इस अपडेट मे कुछ खास बात नही थी, बस हसी मजाक और नोक-झोक के अलावा, तो प्यारे मित्र मै आपसे यही कहूंगा, की ये सब ही तो एक प्रेम कहानी की जान होती है, तुमने अपनी कहानी मे वो सब दिया है, जो इसकी जरुरत थी, जो फीलिंग्स मै कभी अपनी कहानी मे नही दे सका,, आप प्रेम कहानी लिखने वाले लेखकों मे मेरे पसंदीदा इसी लिए तो हो, अक्षिता ओर एकांश का साथ होना, वो भी उस समय, जब उसे उसकी सख्त जरूरत थी, उसकी जिंदगी की डोर ओर मजबूत करेगी, उन दोनो की ये नोक झोंक उनका प्रेम ही तो है, इसी लेखनी के लिए तो इंतजार था, लव यू आदिॠशी भाईऐसे ही बढिया-2 कहानी लिखते रहें।। शानदार
अक्षिता और सरिता जी ने एकांश के चिल्लाने की आवाज सुनी तो दोनो चौकी और क्या हुआ है जानने के लिए दोनो बाहर आई तो देखा के एकांश फोन पर बात करते हुए किसी पर चिल्ला रहा था
"क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने पूछा
"कुछ नही आंटी मेरी कार का टायर पंचर हो गया और मेरा ड्राइवर हाईवे के बीच में फसा है क्युकी उस गधे ने गाड़ी में स्टेपनी नही रखी" एकांश ने कहा
"बस इतनी सी बात पर इतना हंगामा?" अक्षिता ने थोड़ा चिढ़कर कहा
"छोटी सी बात? एक घंटे में मेरी एक जरूरी मीटिंग है और मुझे आधे घंटे में ऑफिस पहुंचना है" एकांश ने भी उसी टोन में कहा
"Whatever, still ये इतनी बड़ी बात भी नहीं है जो यू चिल्ला रहे हो" अक्षिता ने कहा
"देखो अक्षिता, मैं पहले ही परेशान हु प्लीज मुझे और गुस्सा मत दिलाओ" एकांश ने कहा और एक बार फिर ये दोनो बच्चो की तरह लड़ने लगे थे जिसे सरिताजी को चुप कराना पड़ा
"बस करो तुम दोनों।"
उन दोनो ने बहस रोक सरिता जी को देखा जो उन्हें ही देख रही थी और फिर एकांश अपना फोन निकालते हुए बोला
"I am calling a cab"
"इस एरिया में तुम्हे कोई कैब नही मिलेगी" अक्षिता ने कहा।
"तो अब तुम ही बताओ मैं क्या करू?"
"रुको मैं मेरे भाई से पूछती हु शायद कोई बाइक या कार मिल।जाए" सरिता जी ने अपना फोन लेते हुए कहा और एकांश उम्मीद भरी नजरो से उन्हें देखा
"अरे छोड़ो ना मां मुझे पता है इसे ऑफिस कैसे पहुंचाना है" अक्षिता ने कहा
"कैसे?" दोनों ने अक्षिता से पूछा जो उन्हें देख मुस्कुरा रही थी
"मां आप चिंता मत करो इसे टाइम पर ऑफिस पहुंचाना मेरा काम" अक्षिता ने अपनी मां से कहा और फिर एकांश को देख बोली "चलो!"
और एकांश को तो बस मौका ही चाहिए था अक्षिता के साथ अकेले में समय बिताने का उसे भला इस प्लान में क्या दिक्कत होनी थी
"हम कैसे जायेंगे?" एकांश ने पूछा
"तुम बस मेरे साथ आओ" अक्षिता ने गेट से बाहर निकलते हुए कहा और एकांश उसके पीछे पीछे चल पड़ा
एकांश को समझ नहीं आ रहा था के अक्षिता उसे कहा ले जा रही थी वो लोग अभी अपनी गली पार कर रहे थे और वो बस अक्षिता के पीछे पीछे चल रहा था और उसका ध्यान बस अक्षिता की ओर था और अचानक चलते चलते अक्षिता रुकी और एकांश को उसे उसे ही देखते हुए आगे चल रहा था वो उससे टकरा गया लेकिन फिर जल्दी की संभाल गया वही अक्षिता ने इस बात को नजरंदाज कर दिया
"here we are!" अक्षिता ने पलटकर एकांश को देखते हुए मुसकुराते हुए कहा
एकांश ने पहले अक्षिता की तरफ देखा और फिर आस-पास के इलाके को देखा, उसने फिर से अक्षिता को देखा क्योंकि उनके सामने कुछ भी नहीं था..... न कार, न बाइक..... कुछ भी नहीं
"यहाँ कुछ भी नहीं है।" एकांश ने कहा जिसके बदले मे अक्षिता के इक्स्प्रेशन थोड़े बदले
"तुम अंधे हो क्या?” अक्षिता ने थोड़ा चिढ़ कर कहा और एकांश ने वापिस चारों ओर देखा
"तुम बस मेरा समय खराब कर रही हो" एकांश ने कहा और अपना फोन निकाला और किसी से कहा कि वो उसके लिए कार ले आए लेकिन अक्षिता ने उसे रोका
"रुको, उधर देखो" अक्षिता ने कहा और अपनी दाईं ओर एक जगह की ओर इशारा किया और एकांश ने देखा तो वो बस स्टॉप पर खड़े थे, अब अमीर बाप के लड़के को इसकी आदत थोड़े ही थी
"तुम बस स्टॉप पर हो और यह से कही भी जा सकते हो" अक्षिता ने कहा वही एकांश बगैर कुछ बोले उसे घूरने लगा
“तो तुम चाहती को के अब मैं बस मे ऑफिस जाऊ" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने अपना सिर जोर से ऊपर-नीचे हिलाया
"तुम पागल हो? तुमने सचमुच सोचा था कि मैं बस से ऑफिस जाऊँगा, वो भी बिजनेस सूट पहनकर"
"इसमें ग़लत क्या है?” अक्षिता ने सहज भाव से कहा
"अगर तुम सोचती हो कि मैं बस में जाऊंगा तो तुम सचमुच पागल हो गई हो"
"देखो तुम्हारे पास वैसे भी कोई गाड़ी नहीं है और यहाँ कोई टैक्सी भी नहीं मिलेगी ऑटो रिक्शा लेने के लिए हमें थोड़ा और चलना पड़ेगा और जब तक तुम कार बुला कर ऑफिस पहुचओगे तब तक तुम्हारी मीटिंग का टाइम खतम को जाएगा इसलिए फिलहाल बस ही सही रास्ता है" अक्षिता ने कहा
"मैंने पहले कभी सिटी बस मे सफर नहीं कीया है और न ही कभी करूंगा" एकांश ने कहा
"ठीक है, अब तुम्हें मीटिंग छोड़नी ही है तो तुम्हारी मर्जी वैसे अभी बस आ जाएगी और तुम टाइम पर पहुच सकते हो” अक्षिता ने कहा जिसपर एकांश कुछ नहीं बोला
अक्षिता एकांश का ऐसा ऐटिटूड देख थोड़ा निराश हुई, एक अभी प्रापर बिगड़ेल अमीरजादा लग रहा था, पहले तो उसने सोचा था कि वो उसे सिर्फ़ परेशान करेगी लेकिन अब वो सही में चाहती थी कि एकांश जाने के धन-दौलत और आराम के बिना भी जीवन है और उससे भी बढ़कर वो उसके साथ थोड़ा समय बिताना चाहती थी
लेकिन उसे ये नहीं पता था के एकांश ने अपनी सारी आराम की जिंदगी सिर्फ उसके साथ रहने के लिए छोड़ दी थी, उसने अपनी सारी सुख-सुविधाएं छोड़ दीं और सिर्फ उसके लिए एक छोटे से कमरे में रह रहा था
एकांश ने अक्षिता के चेहरे को देखा और फिर बस मे जानेको मान गया
"ठीक लेकिन मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है" एकांश ने कहा
"कोई नहीं, मैं हु ना" अक्षिता ने मुसकुराते हुए कहा और इस मुस्कान के लिए तो वो कुछ भी कर सकता था
"चलो, अब जल्दी करो, नहीं तो बस छूट जाएगी" अक्षिता ने आती हुई बस की ओर इशारा किया और एकांश का हतरः पकड़ और बस की ओर ले जाने लगी और एक मिनट में एक बस आकर उनके सामने रुकी
एकांश बस वहीं मूक खड़ा रहा।
"एकांश आओ, बस मे चढ़ो।" अक्षिता ने कहा और एकांश जल्दी से बस में चढ़ गया और बस में बैठे सभी लोग उसे थोड़ा अजीब नजरों से देखने लगे बस नॉर्मल लोगों के बीच सुबह सुबह बिजनस सूट पहने वो अलग ही दिख रहा था
"मैं उन्हें बेवकूफ लग रहा हू न" एकांश ने बड़बड़ाते हुए कहा, जिस पर अक्षिता हस पड़ी
एकांश ने पहले उसकी ओर देखा और फिर उन सबकी ओर जो अभी भी उसे ही देख रहे थे
बस चल पड़ी थी और उनके बैठने के लिए कोई सीट नहीं थी इसलिए वो लोग हैंडल को पकड़कर खड़े हो गए
कुछ ही पलों मे कन्डक्टर आया और टिकट के लिए कहा एकांश ने जेब में पैसे ढूंढे और कंडक्टर की ओर 500 रुपए का नोट बढ़ाया
"सुबह सुबह का वक्त है भई 10 रुपया खुल्ला दो" कंडक्टर ने 500 का नोट देख झल्लाकर कहा
"पर मेरे पास तो सिर्फ़ 500 के नोट हैं"
अब इससे पहले ही कन्डक्टर आगे कुछ बोलत अक्षिता ने कंडक्टर से कहा कि वो उन्हें 2 टिकट दे और बताया कि उन्हें कहाँ उतरना है, उसने उसे 20 रुपये दिए और टिकट लिया
अगले स्टॉप पर कोई उतर गया और अक्षिता एकांश के साथ खाली सीट पर जा बैठी, एकांश को वो सीट नहीं सम रही थी
"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं ये कर रहा हूँ" एकांश बुदबुदाया
"क्या?"
"कुछ नहीं" कहते हुए एकांश ने चारों ओर देखा
एक लड़का उनकी तरफ देख रहा था एकांश ने उस लड़के की तरफ़ देख भौंहें उठाईं लेकिन उस लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया एकांश ने और गौर से उसकी तरफ़ देखा
जब उसे एहसास हुआ कि वह लड़का खिड़की से बाहर देख रही अक्षिता को घूर रहा है तो अब उसे गुस्सा आने लगा लेकिन इस वक्त वो लड़ने के तो मूड मे नहीं था लेकिन वो उस लड़के को ये भी बबताना चाहता था के वो उसकी है
एकांश ने अक्षिता के कंधे पर हाथ रखा और उसे अपने पास खींच लिया, अक्षिता ने उसे चौक कर देखा लेकिन एकांश उस लड़के को ही घूर रहा था
अब एकांश पर नजर जाते ही वो लड़का डर कर दूसरी तरफ देखने लगा लेकिन एकांश ने अपना हाथ नहीं हटाया, अक्षिता को भी एकांश का यू हक जताना अच्छा लगा था,एकांश ने उसकी तरफ देखा जो खिड़की से बाहर देख कर मुस्कुरा रही थी
एकांश के चेहरे पर भी स्माइल थी क्योंकि उसने उसके कंधे पर हाथ रखने का विरोध नहीं किया था और जब उनका स्टॉप आने लगा तो अक्षिता अपनी सीट से उठ गई जबकि एकांश उसे हैरान होकर देख रहा था
"अगला स्टॉप हमारा है" अक्षिता ने कहा
एकांश भी अपनी सीट से उठ गया था और अक्षिता के पास खड़ा था, पहले तो वो बस मे बैठने को ही तयार नहीं था लेकिन अब उसे ऐसा लग रहा था के ये सफर चलता रहे, अक्षिता जो उसके पास थी, बस से उतरकर वो ऑफिस की ओर चल पड़े और वहा पहुचते ही अक्षिता बोली
"देखा कहा था ना टाइम पर पहुच जाएंगे"
"थैंक्स"
"चलो देन बाय!" अक्षिता ने वापिस जाने के लिए मुड़ते हुए कहा
"रुको! तुम जाओगी कैसे?"
"जैसे अभी आए है, बस से"
तभी एकांश को याद आया कि कैसे वो लड़का अक्षिता को घूर रहा था उसे लगा कि उसका अकेले जाना ठीक नहीं (over possessive )
"नहीं, चलो ऑफिस मे चलो”
"क्या? क्यों?"
"मेरी कार एक घंटे में आजाएगी तो मेरा ड्राइवर तुम्हें घर छोड़ देगा" एकांश ने ऑफिस में जाते हुए कहा
"मैं अकेले चली जाऊंगी" अक्षिता ने वापिस वहा से जाते हुए कहा
"तुम अकेले नहीं जाओगी" एकांश ने सख्ती से कहा
“तुम मुझे ऑर्डर नहीं दे सकते, मैं अब तुम्हारी एम्प्लोयी नहीं हु" अक्षिता ने कहा और एकांश भी आके कुछ कहना चाहता था लेकिन उसने आसपास देखा तो पाया के कुछ लोग उन्हे ही देख रहे थे क्युकी बोलते हुए दोनों का ही आवाज ऊंचा हो गया था तभी एकांश का एक एम्प्लोयी वहा आया
"सर, मीटिंग का वक्त हो रहा है क्या हम एक बार फिर प्रेजेंटेशन चेक कर लें?" स्टाफ के बंदे ने कहा
"हाँ और इन मैडम मेरे केबिन में बैठाओ" एकांश ने अक्षिता की ओर इशारा करते हुए कहा
"ओके सर"
"नहीं! मैं घर जा रही हूँ।" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ी
लेकिन एकांश ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा
"क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे" अक्षिता ने हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा
"जब तक तुम रुक नहीं जाती तब तक नहीं।" एकांश ने कहा
"नहीं."
"मान जाओ अक्षिता" एकांश ने कहा और अक्षिता ने भी कुछ पलों तक उसे देखा
"अच्छा ठीक है” आखिर मे अक्षिता ने एकांश के आगे हथयार डालते हुए कहा
"गुड! जाओ और मेरे केबिन में इंतज़ार करो" एकांश ने अक्षिता का हाथ छोड़ा और अपने स्टाफ को देखते हुए बोला
"मैडम के लिए बढ़िया खाने का इंतजाम करो और उन्हे मेरी कैबिन से बाहर मत आने देना" एकांश ने कहा और मीटिंग रूम ही ओर बढ़ गया वही अक्षिता पैर पटकते हुए उसके कैबिन मे जा बैठी
******
मीटिंग के बाद जब दोनों साथ घर आ रहे थे तब अक्षिता पूरे रास्ते बड़बड़ा रही थी वही एकांश उसकी बड़बड़ को इग्नोर किए जा रहा था जिससे अक्षिता और भी ज्यादा चिढ़ रही थी वही एकांश को उसे यू चिढ़ाने मे मजा आ रहा था, आज काफी समय बाद दोनों ने कुछ समय साथ बिताया था भले ही थोड़े समय के लिए हो लेकिन दोनों ने एक दूसरे की मौजूदगी का आनंद लिया था
घर पहुच कर दोनों ही सरिताजि के पास पहुचे जो दइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी और दोनों ही उनके पास बच्चों की तरह शिकायाते करने लगे एकांश ने ये शिकायत की के अक्षिता ने उसे बस मे सफर करवाया वही अक्षिता ने भी उसकी हरकतों की शिकायत की
"तुमने उसे लोकल बस में ऑफिस भेजा!" सरिताजी ने अक्षिता को घूर कर देखा वही अक्षिता ने अपनी माँ को देखकर मुंह बनाया और एकांश उसे देखकर मुस्कुरा दिया
"माँ, लेकिन उसके बारे में मेरी शिकायत का क्या होगा?" अक्षिता ने बड़बड़ाते हुए कहा
"उसने तुम्हारा इतना ख्याल रखा कि तुम अकेली घर नहीं आओगी इसमें शिकायत की क्या बात है?"
"लेकिन माँ, इसने मुझे वहा रहने के लिए मजबूर किया" अक्षिता ने एकांश की ओर देखते हुए कहा
"हाँ, लेकिन मैंने ऐसा इसकी सैफ्टी के लिए किया आंटी" एकांश ने मासूमियत से सरिताजी से कहा जिसके बाद सरिताजी ने अक्षिता को ही दो बाते सुना ही और किचन मे चली गई वही एकांश अक्षिता को देख हसने लगा
"चुप करो!” अक्षिता ने जोर से कहा के तभी
"अक्षिता!" किचन से उसकी माँ की चेतावनी भरी आवाज़ आई जिससे उसका मुँह बंद हो गया
वही एकांश चुपचाप हंसने लगा और अक्षिता उसे घूरकर देखने लगी
"अब तुम दोनों लड़ना बंद करो और अपना खाना खाना शुरू करो।" सरिताजी ने उनकी प्लेटों में खाना परोसते हुए कहा और यूही नोकझोंक करते हुए हसते हुए वो खाने का मजा लेने लगे
अक्षिता और सरिता जी ने एकांश के चिल्लाने की आवाज सुनी तो दोनो चौकी और क्या हुआ है जानने के लिए दोनो बाहर आई तो देखा के एकांश फोन पर बात करते हुए किसी पर चिल्ला रहा था
"क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने पूछा
"कुछ नही आंटी मेरी कार का टायर पंचर हो गया और मेरा ड्राइवर हाईवे के बीच में फसा है क्युकी उस गधे ने गाड़ी में स्टेपनी नही रखी" एकांश ने कहा
"बस इतनी सी बात पर इतना हंगामा?" अक्षिता ने थोड़ा चिढ़कर कहा
"छोटी सी बात? एक घंटे में मेरी एक जरूरी मीटिंग है और मुझे आधे घंटे में ऑफिस पहुंचना है" एकांश ने भी उसी टोन में कहा
"Whatever, still ये इतनी बड़ी बात भी नहीं है जो यू चिल्ला रहे हो" अक्षिता ने कहा
"देखो अक्षिता, मैं पहले ही परेशान हु प्लीज मुझे और गुस्सा मत दिलाओ" एकांश ने कहा और एक बार फिर ये दोनो बच्चो की तरह लड़ने लगे थे जिसे सरिताजी को चुप कराना पड़ा
"बस करो तुम दोनों।"
उन दोनो ने बहस रोक सरिता जी को देखा जो उन्हें ही देख रही थी और फिर एकांश अपना फोन निकालते हुए बोला
"I am calling a cab"
"इस एरिया में तुम्हे कोई कैब नही मिलेगी" अक्षिता ने कहा।
"तो अब तुम ही बताओ मैं क्या करू?"
"रुको मैं मेरे भाई से पूछती हु शायद कोई बाइक या कार मिल।जाए" सरिता जी ने अपना फोन लेते हुए कहा और एकांश उम्मीद भरी नजरो से उन्हें देखा
"अरे छोड़ो ना मां मुझे पता है इसे ऑफिस कैसे पहुंचाना है" अक्षिता ने कहा
"कैसे?" दोनों ने अक्षिता से पूछा जो उन्हें देख मुस्कुरा रही थी
"मां आप चिंता मत करो इसे टाइम पर ऑफिस पहुंचाना मेरा काम" अक्षिता ने अपनी मां से कहा और फिर एकांश को देख बोली "चलो!"
और एकांश को तो बस मौका ही चाहिए था अक्षिता के साथ अकेले में समय बिताने का उसे भला इस प्लान में क्या दिक्कत होनी थी
"हम कैसे जायेंगे?" एकांश ने पूछा
"तुम बस मेरे साथ आओ" अक्षिता ने गेट से बाहर निकलते हुए कहा और एकांश उसके पीछे पीछे चल पड़ा
एकांश को समझ नहीं आ रहा था के अक्षिता उसे कहा ले जा रही थी वो लोग अभी अपनी गली पार कर रहे थे और वो बस अक्षिता के पीछे पीछे चल रहा था और उसका ध्यान बस अक्षिता की ओर था और अचानक चलते चलते अक्षिता रुकी और एकांश को उसे उसे ही देखते हुए आगे चल रहा था वो उससे टकरा गया लेकिन फिर जल्दी की संभाल गया वही अक्षिता ने इस बात को नजरंदाज कर दिया
"here we are!" अक्षिता ने पलटकर एकांश को देखते हुए मुसकुराते हुए कहा
एकांश ने पहले अक्षिता की तरफ देखा और फिर आस-पास के इलाके को देखा, उसने फिर से अक्षिता को देखा क्योंकि उनके सामने कुछ भी नहीं था..... न कार, न बाइक..... कुछ भी नहीं
"यहाँ कुछ भी नहीं है।" एकांश ने कहा जिसके बदले मे अक्षिता के इक्स्प्रेशन थोड़े बदले
"तुम अंधे हो क्या?” अक्षिता ने थोड़ा चिढ़ कर कहा और एकांश ने वापिस चारों ओर देखा
"तुम बस मेरा समय खराब कर रही हो" एकांश ने कहा और अपना फोन निकाला और किसी से कहा कि वो उसके लिए कार ले आए लेकिन अक्षिता ने उसे रोका
"रुको, उधर देखो" अक्षिता ने कहा और अपनी दाईं ओर एक जगह की ओर इशारा किया और एकांश ने देखा तो वो बस स्टॉप पर खड़े थे, अब अमीर बाप के लड़के को इसकी आदत थोड़े ही थी
"तुम बस स्टॉप पर हो और यह से कही भी जा सकते हो" अक्षिता ने कहा वही एकांश बगैर कुछ बोले उसे घूरने लगा
“तो तुम चाहती को के अब मैं बस मे ऑफिस जाऊ" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने अपना सिर जोर से ऊपर-नीचे हिलाया
"तुम पागल हो? तुमने सचमुच सोचा था कि मैं बस से ऑफिस जाऊँगा, वो भी बिजनेस सूट पहनकर"
"इसमें ग़लत क्या है?” अक्षिता ने सहज भाव से कहा
"अगर तुम सोचती हो कि मैं बस में जाऊंगा तो तुम सचमुच पागल हो गई हो"
"देखो तुम्हारे पास वैसे भी कोई गाड़ी नहीं है और यहाँ कोई टैक्सी भी नहीं मिलेगी ऑटो रिक्शा लेने के लिए हमें थोड़ा और चलना पड़ेगा और जब तक तुम कार बुला कर ऑफिस पहुचओगे तब तक तुम्हारी मीटिंग का टाइम खतम को जाएगा इसलिए फिलहाल बस ही सही रास्ता है" अक्षिता ने कहा
"मैंने पहले कभी सिटी बस मे सफर नहीं कीया है और न ही कभी करूंगा" एकांश ने कहा
"ठीक है, अब तुम्हें मीटिंग छोड़नी ही है तो तुम्हारी मर्जी वैसे अभी बस आ जाएगी और तुम टाइम पर पहुच सकते हो” अक्षिता ने कहा जिसपर एकांश कुछ नहीं बोला
अक्षिता एकांश का ऐसा ऐटिटूड देख थोड़ा निराश हुई, एक अभी प्रापर बिगड़ेल अमीरजादा लग रहा था, पहले तो उसने सोचा था कि वो उसे सिर्फ़ परेशान करेगी लेकिन अब वो सही में चाहती थी कि एकांश जाने के धन-दौलत और आराम के बिना भी जीवन है और उससे भी बढ़कर वो उसके साथ थोड़ा समय बिताना चाहती थी
लेकिन उसे ये नहीं पता था के एकांश ने अपनी सारी आराम की जिंदगी सिर्फ उसके साथ रहने के लिए छोड़ दी थी, उसने अपनी सारी सुख-सुविधाएं छोड़ दीं और सिर्फ उसके लिए एक छोटे से कमरे में रह रहा था
एकांश ने अक्षिता के चेहरे को देखा और फिर बस मे जानेको मान गया
"ठीक लेकिन मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है" एकांश ने कहा
"कोई नहीं, मैं हु ना" अक्षिता ने मुसकुराते हुए कहा और इस मुस्कान के लिए तो वो कुछ भी कर सकता था
"चलो, अब जल्दी करो, नहीं तो बस छूट जाएगी" अक्षिता ने आती हुई बस की ओर इशारा किया और एकांश का हतरः पकड़ और बस की ओर ले जाने लगी और एक मिनट में एक बस आकर उनके सामने रुकी
एकांश बस वहीं मूक खड़ा रहा।
"एकांश आओ, बस मे चढ़ो।" अक्षिता ने कहा और एकांश जल्दी से बस में चढ़ गया और बस में बैठे सभी लोग उसे थोड़ा अजीब नजरों से देखने लगे बस नॉर्मल लोगों के बीच सुबह सुबह बिजनस सूट पहने वो अलग ही दिख रहा था
"मैं उन्हें बेवकूफ लग रहा हू न" एकांश ने बड़बड़ाते हुए कहा, जिस पर अक्षिता हस पड़ी
एकांश ने पहले उसकी ओर देखा और फिर उन सबकी ओर जो अभी भी उसे ही देख रहे थे
बस चल पड़ी थी और उनके बैठने के लिए कोई सीट नहीं थी इसलिए वो लोग हैंडल को पकड़कर खड़े हो गए
कुछ ही पलों मे कन्डक्टर आया और टिकट के लिए कहा एकांश ने जेब में पैसे ढूंढे और कंडक्टर की ओर 500 रुपए का नोट बढ़ाया
"सुबह सुबह का वक्त है भई 10 रुपया खुल्ला दो" कंडक्टर ने 500 का नोट देख झल्लाकर कहा
"पर मेरे पास तो सिर्फ़ 500 के नोट हैं"
अब इससे पहले ही कन्डक्टर आगे कुछ बोलत अक्षिता ने कंडक्टर से कहा कि वो उन्हें 2 टिकट दे और बताया कि उन्हें कहाँ उतरना है, उसने उसे 20 रुपये दिए और टिकट लिया
अगले स्टॉप पर कोई उतर गया और अक्षिता एकांश के साथ खाली सीट पर जा बैठी, एकांश को वो सीट नहीं सम रही थी
"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं ये कर रहा हूँ" एकांश बुदबुदाया
"क्या?"
"कुछ नहीं" कहते हुए एकांश ने चारों ओर देखा
एक लड़का उनकी तरफ देख रहा था एकांश ने उस लड़के की तरफ़ देख भौंहें उठाईं लेकिन उस लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया एकांश ने और गौर से उसकी तरफ़ देखा
जब उसे एहसास हुआ कि वह लड़का खिड़की से बाहर देख रही अक्षिता को घूर रहा है तो अब उसे गुस्सा आने लगा लेकिन इस वक्त वो लड़ने के तो मूड मे नहीं था लेकिन वो उस लड़के को ये भी बबताना चाहता था के वो उसकी है
एकांश ने अक्षिता के कंधे पर हाथ रखा और उसे अपने पास खींच लिया, अक्षिता ने उसे चौक कर देखा लेकिन एकांश उस लड़के को ही घूर रहा था
अब एकांश पर नजर जाते ही वो लड़का डर कर दूसरी तरफ देखने लगा लेकिन एकांश ने अपना हाथ नहीं हटाया, अक्षिता को भी एकांश का यू हक जताना अच्छा लगा था,एकांश ने उसकी तरफ देखा जो खिड़की से बाहर देख कर मुस्कुरा रही थी
एकांश के चेहरे पर भी स्माइल थी क्योंकि उसने उसके कंधे पर हाथ रखने का विरोध नहीं किया था और जब उनका स्टॉप आने लगा तो अक्षिता अपनी सीट से उठ गई जबकि एकांश उसे हैरान होकर देख रहा था
"अगला स्टॉप हमारा है" अक्षिता ने कहा
एकांश भी अपनी सीट से उठ गया था और अक्षिता के पास खड़ा था, पहले तो वो बस मे बैठने को ही तयार नहीं था लेकिन अब उसे ऐसा लग रहा था के ये सफर चलता रहे, अक्षिता जो उसके पास थी, बस से उतरकर वो ऑफिस की ओर चल पड़े और वहा पहुचते ही अक्षिता बोली
"देखा कहा था ना टाइम पर पहुच जाएंगे"
"थैंक्स"
"चलो देन बाय!" अक्षिता ने वापिस जाने के लिए मुड़ते हुए कहा
"रुको! तुम जाओगी कैसे?"
"जैसे अभी आए है, बस से"
तभी एकांश को याद आया कि कैसे वो लड़का अक्षिता को घूर रहा था उसे लगा कि उसका अकेले जाना ठीक नहीं (over possessive )
"नहीं, चलो ऑफिस मे चलो”
"क्या? क्यों?"
"मेरी कार एक घंटे में आजाएगी तो मेरा ड्राइवर तुम्हें घर छोड़ देगा" एकांश ने ऑफिस में जाते हुए कहा
"मैं अकेले चली जाऊंगी" अक्षिता ने वापिस वहा से जाते हुए कहा
"तुम अकेले नहीं जाओगी" एकांश ने सख्ती से कहा
“तुम मुझे ऑर्डर नहीं दे सकते, मैं अब तुम्हारी एम्प्लोयी नहीं हु" अक्षिता ने कहा और एकांश भी आके कुछ कहना चाहता था लेकिन उसने आसपास देखा तो पाया के कुछ लोग उन्हे ही देख रहे थे क्युकी बोलते हुए दोनों का ही आवाज ऊंचा हो गया था तभी एकांश का एक एम्प्लोयी वहा आया
"सर, मीटिंग का वक्त हो रहा है क्या हम एक बार फिर प्रेजेंटेशन चेक कर लें?" स्टाफ के बंदे ने कहा
"हाँ और इन मैडम मेरे केबिन में बैठाओ" एकांश ने अक्षिता की ओर इशारा करते हुए कहा
"ओके सर"
"नहीं! मैं घर जा रही हूँ।" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ी
लेकिन एकांश ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा
"क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे" अक्षिता ने हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा
"जब तक तुम रुक नहीं जाती तब तक नहीं।" एकांश ने कहा
"नहीं."
"मान जाओ अक्षिता" एकांश ने कहा और अक्षिता ने भी कुछ पलों तक उसे देखा
"अच्छा ठीक है” आखिर मे अक्षिता ने एकांश के आगे हथयार डालते हुए कहा
"गुड! जाओ और मेरे केबिन में इंतज़ार करो" एकांश ने अक्षिता का हाथ छोड़ा और अपने स्टाफ को देखते हुए बोला
"मैडम के लिए बढ़िया खाने का इंतजाम करो और उन्हे मेरी कैबिन से बाहर मत आने देना" एकांश ने कहा और मीटिंग रूम ही ओर बढ़ गया वही अक्षिता पैर पटकते हुए उसके कैबिन मे जा बैठी
******
मीटिंग के बाद जब दोनों साथ घर आ रहे थे तब अक्षिता पूरे रास्ते बड़बड़ा रही थी वही एकांश उसकी बड़बड़ को इग्नोर किए जा रहा था जिससे अक्षिता और भी ज्यादा चिढ़ रही थी वही एकांश को उसे यू चिढ़ाने मे मजा आ रहा था, आज काफी समय बाद दोनों ने कुछ समय साथ बिताया था भले ही थोड़े समय के लिए हो लेकिन दोनों ने एक दूसरे की मौजूदगी का आनंद लिया था
घर पहुच कर दोनों ही सरिताजि के पास पहुचे जो दइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी और दोनों ही उनके पास बच्चों की तरह शिकायाते करने लगे एकांश ने ये शिकायत की के अक्षिता ने उसे बस मे सफर करवाया वही अक्षिता ने भी उसकी हरकतों की शिकायत की
"तुमने उसे लोकल बस में ऑफिस भेजा!" सरिताजी ने अक्षिता को घूर कर देखा वही अक्षिता ने अपनी माँ को देखकर मुंह बनाया और एकांश उसे देखकर मुस्कुरा दिया
"माँ, लेकिन उसके बारे में मेरी शिकायत का क्या होगा?" अक्षिता ने बड़बड़ाते हुए कहा
"उसने तुम्हारा इतना ख्याल रखा कि तुम अकेली घर नहीं आओगी इसमें शिकायत की क्या बात है?"
"लेकिन माँ, इसने मुझे वहा रहने के लिए मजबूर किया" अक्षिता ने एकांश की ओर देखते हुए कहा
"हाँ, लेकिन मैंने ऐसा इसकी सैफ्टी के लिए किया आंटी" एकांश ने मासूमियत से सरिताजी से कहा जिसके बाद सरिताजी ने अक्षिता को ही दो बाते सुना ही और किचन मे चली गई वही एकांश अक्षिता को देख हसने लगा
"चुप करो!” अक्षिता ने जोर से कहा के तभी
"अक्षिता!" किचन से उसकी माँ की चेतावनी भरी आवाज़ आई जिससे उसका मुँह बंद हो गया
वही एकांश चुपचाप हंसने लगा और अक्षिता उसे घूरकर देखने लगी
"अब तुम दोनों लड़ना बंद करो और अपना खाना खाना शुरू करो।" सरिताजी ने उनकी प्लेटों में खाना परोसते हुए कहा और यूही नोकझोंक करते हुए हसते हुए वो खाने का मजा लेने लगे
अक्षिता और सरिता जी ने एकांश के चिल्लाने की आवाज सुनी तो दोनो चौकी और क्या हुआ है जानने के लिए दोनो बाहर आई तो देखा के एकांश फोन पर बात करते हुए किसी पर चिल्ला रहा था
"क्या हुआ बेटा?" सरिताजी ने पूछा
"कुछ नही आंटी मेरी कार का टायर पंचर हो गया और मेरा ड्राइवर हाईवे के बीच में फसा है क्युकी उस गधे ने गाड़ी में स्टेपनी नही रखी" एकांश ने कहा
"बस इतनी सी बात पर इतना हंगामा?" अक्षिता ने थोड़ा चिढ़कर कहा
"छोटी सी बात? एक घंटे में मेरी एक जरूरी मीटिंग है और मुझे आधे घंटे में ऑफिस पहुंचना है" एकांश ने भी उसी टोन में कहा
"Whatever, still ये इतनी बड़ी बात भी नहीं है जो यू चिल्ला रहे हो" अक्षिता ने कहा
"देखो अक्षिता, मैं पहले ही परेशान हु प्लीज मुझे और गुस्सा मत दिलाओ" एकांश ने कहा और एक बार फिर ये दोनो बच्चो की तरह लड़ने लगे थे जिसे सरिताजी को चुप कराना पड़ा
"बस करो तुम दोनों।"
उन दोनो ने बहस रोक सरिता जी को देखा जो उन्हें ही देख रही थी और फिर एकांश अपना फोन निकालते हुए बोला
"I am calling a cab"
"इस एरिया में तुम्हे कोई कैब नही मिलेगी" अक्षिता ने कहा।
"तो अब तुम ही बताओ मैं क्या करू?"
"रुको मैं मेरे भाई से पूछती हु शायद कोई बाइक या कार मिल।जाए" सरिता जी ने अपना फोन लेते हुए कहा और एकांश उम्मीद भरी नजरो से उन्हें देखा
"अरे छोड़ो ना मां मुझे पता है इसे ऑफिस कैसे पहुंचाना है" अक्षिता ने कहा
"कैसे?" दोनों ने अक्षिता से पूछा जो उन्हें देख मुस्कुरा रही थी
"मां आप चिंता मत करो इसे टाइम पर ऑफिस पहुंचाना मेरा काम" अक्षिता ने अपनी मां से कहा और फिर एकांश को देख बोली "चलो!"
और एकांश को तो बस मौका ही चाहिए था अक्षिता के साथ अकेले में समय बिताने का उसे भला इस प्लान में क्या दिक्कत होनी थी
"हम कैसे जायेंगे?" एकांश ने पूछा
"तुम बस मेरे साथ आओ" अक्षिता ने गेट से बाहर निकलते हुए कहा और एकांश उसके पीछे पीछे चल पड़ा
एकांश को समझ नहीं आ रहा था के अक्षिता उसे कहा ले जा रही थी वो लोग अभी अपनी गली पार कर रहे थे और वो बस अक्षिता के पीछे पीछे चल रहा था और उसका ध्यान बस अक्षिता की ओर था और अचानक चलते चलते अक्षिता रुकी और एकांश को उसे उसे ही देखते हुए आगे चल रहा था वो उससे टकरा गया लेकिन फिर जल्दी की संभाल गया वही अक्षिता ने इस बात को नजरंदाज कर दिया
"here we are!" अक्षिता ने पलटकर एकांश को देखते हुए मुसकुराते हुए कहा
एकांश ने पहले अक्षिता की तरफ देखा और फिर आस-पास के इलाके को देखा, उसने फिर से अक्षिता को देखा क्योंकि उनके सामने कुछ भी नहीं था..... न कार, न बाइक..... कुछ भी नहीं
"यहाँ कुछ भी नहीं है।" एकांश ने कहा जिसके बदले मे अक्षिता के इक्स्प्रेशन थोड़े बदले
"तुम अंधे हो क्या?” अक्षिता ने थोड़ा चिढ़ कर कहा और एकांश ने वापिस चारों ओर देखा
"तुम बस मेरा समय खराब कर रही हो" एकांश ने कहा और अपना फोन निकाला और किसी से कहा कि वो उसके लिए कार ले आए लेकिन अक्षिता ने उसे रोका
"रुको, उधर देखो" अक्षिता ने कहा और अपनी दाईं ओर एक जगह की ओर इशारा किया और एकांश ने देखा तो वो बस स्टॉप पर खड़े थे, अब अमीर बाप के लड़के को इसकी आदत थोड़े ही थी
"तुम बस स्टॉप पर हो और यह से कही भी जा सकते हो" अक्षिता ने कहा वही एकांश बगैर कुछ बोले उसे घूरने लगा
“तो तुम चाहती को के अब मैं बस मे ऑफिस जाऊ" एकांश ने पूछा और अक्षिता ने अपना सिर जोर से ऊपर-नीचे हिलाया
"तुम पागल हो? तुमने सचमुच सोचा था कि मैं बस से ऑफिस जाऊँगा, वो भी बिजनेस सूट पहनकर"
"इसमें ग़लत क्या है?” अक्षिता ने सहज भाव से कहा
"अगर तुम सोचती हो कि मैं बस में जाऊंगा तो तुम सचमुच पागल हो गई हो"
"देखो तुम्हारे पास वैसे भी कोई गाड़ी नहीं है और यहाँ कोई टैक्सी भी नहीं मिलेगी ऑटो रिक्शा लेने के लिए हमें थोड़ा और चलना पड़ेगा और जब तक तुम कार बुला कर ऑफिस पहुचओगे तब तक तुम्हारी मीटिंग का टाइम खतम को जाएगा इसलिए फिलहाल बस ही सही रास्ता है" अक्षिता ने कहा
"मैंने पहले कभी सिटी बस मे सफर नहीं कीया है और न ही कभी करूंगा" एकांश ने कहा
"ठीक है, अब तुम्हें मीटिंग छोड़नी ही है तो तुम्हारी मर्जी वैसे अभी बस आ जाएगी और तुम टाइम पर पहुच सकते हो” अक्षिता ने कहा जिसपर एकांश कुछ नहीं बोला
अक्षिता एकांश का ऐसा ऐटिटूड देख थोड़ा निराश हुई, एक अभी प्रापर बिगड़ेल अमीरजादा लग रहा था, पहले तो उसने सोचा था कि वो उसे सिर्फ़ परेशान करेगी लेकिन अब वो सही में चाहती थी कि एकांश जाने के धन-दौलत और आराम के बिना भी जीवन है और उससे भी बढ़कर वो उसके साथ थोड़ा समय बिताना चाहती थी
लेकिन उसे ये नहीं पता था के एकांश ने अपनी सारी आराम की जिंदगी सिर्फ उसके साथ रहने के लिए छोड़ दी थी, उसने अपनी सारी सुख-सुविधाएं छोड़ दीं और सिर्फ उसके लिए एक छोटे से कमरे में रह रहा था
एकांश ने अक्षिता के चेहरे को देखा और फिर बस मे जानेको मान गया
"ठीक लेकिन मुझे इसके बारे में कुछ भी पता नहीं है" एकांश ने कहा
"कोई नहीं, मैं हु ना" अक्षिता ने मुसकुराते हुए कहा और इस मुस्कान के लिए तो वो कुछ भी कर सकता था
"चलो, अब जल्दी करो, नहीं तो बस छूट जाएगी" अक्षिता ने आती हुई बस की ओर इशारा किया और एकांश का हतरः पकड़ और बस की ओर ले जाने लगी और एक मिनट में एक बस आकर उनके सामने रुकी
एकांश बस वहीं मूक खड़ा रहा।
"एकांश आओ, बस मे चढ़ो।" अक्षिता ने कहा और एकांश जल्दी से बस में चढ़ गया और बस में बैठे सभी लोग उसे थोड़ा अजीब नजरों से देखने लगे बस नॉर्मल लोगों के बीच सुबह सुबह बिजनस सूट पहने वो अलग ही दिख रहा था
"मैं उन्हें बेवकूफ लग रहा हू न" एकांश ने बड़बड़ाते हुए कहा, जिस पर अक्षिता हस पड़ी
एकांश ने पहले उसकी ओर देखा और फिर उन सबकी ओर जो अभी भी उसे ही देख रहे थे
बस चल पड़ी थी और उनके बैठने के लिए कोई सीट नहीं थी इसलिए वो लोग हैंडल को पकड़कर खड़े हो गए
कुछ ही पलों मे कन्डक्टर आया और टिकट के लिए कहा एकांश ने जेब में पैसे ढूंढे और कंडक्टर की ओर 500 रुपए का नोट बढ़ाया
"सुबह सुबह का वक्त है भई 10 रुपया खुल्ला दो" कंडक्टर ने 500 का नोट देख झल्लाकर कहा
"पर मेरे पास तो सिर्फ़ 500 के नोट हैं"
अब इससे पहले ही कन्डक्टर आगे कुछ बोलत अक्षिता ने कंडक्टर से कहा कि वो उन्हें 2 टिकट दे और बताया कि उन्हें कहाँ उतरना है, उसने उसे 20 रुपये दिए और टिकट लिया
अगले स्टॉप पर कोई उतर गया और अक्षिता एकांश के साथ खाली सीट पर जा बैठी, एकांश को वो सीट नहीं सम रही थी
"मुझे यकीन नहीं हो रहा कि मैं ये कर रहा हूँ" एकांश बुदबुदाया
"क्या?"
"कुछ नहीं" कहते हुए एकांश ने चारों ओर देखा
एक लड़का उनकी तरफ देख रहा था एकांश ने उस लड़के की तरफ़ देख भौंहें उठाईं लेकिन उस लड़के ने कोई जवाब नहीं दिया एकांश ने और गौर से उसकी तरफ़ देखा
जब उसे एहसास हुआ कि वह लड़का खिड़की से बाहर देख रही अक्षिता को घूर रहा है तो अब उसे गुस्सा आने लगा लेकिन इस वक्त वो लड़ने के तो मूड मे नहीं था लेकिन वो उस लड़के को ये भी बबताना चाहता था के वो उसकी है
एकांश ने अक्षिता के कंधे पर हाथ रखा और उसे अपने पास खींच लिया, अक्षिता ने उसे चौक कर देखा लेकिन एकांश उस लड़के को ही घूर रहा था
अब एकांश पर नजर जाते ही वो लड़का डर कर दूसरी तरफ देखने लगा लेकिन एकांश ने अपना हाथ नहीं हटाया, अक्षिता को भी एकांश का यू हक जताना अच्छा लगा था,एकांश ने उसकी तरफ देखा जो खिड़की से बाहर देख कर मुस्कुरा रही थी
एकांश के चेहरे पर भी स्माइल थी क्योंकि उसने उसके कंधे पर हाथ रखने का विरोध नहीं किया था और जब उनका स्टॉप आने लगा तो अक्षिता अपनी सीट से उठ गई जबकि एकांश उसे हैरान होकर देख रहा था
"अगला स्टॉप हमारा है" अक्षिता ने कहा
एकांश भी अपनी सीट से उठ गया था और अक्षिता के पास खड़ा था, पहले तो वो बस मे बैठने को ही तयार नहीं था लेकिन अब उसे ऐसा लग रहा था के ये सफर चलता रहे, अक्षिता जो उसके पास थी, बस से उतरकर वो ऑफिस की ओर चल पड़े और वहा पहुचते ही अक्षिता बोली
"देखा कहा था ना टाइम पर पहुच जाएंगे"
"थैंक्स"
"चलो देन बाय!" अक्षिता ने वापिस जाने के लिए मुड़ते हुए कहा
"रुको! तुम जाओगी कैसे?"
"जैसे अभी आए है, बस से"
तभी एकांश को याद आया कि कैसे वो लड़का अक्षिता को घूर रहा था उसे लगा कि उसका अकेले जाना ठीक नहीं (over possessive )
"नहीं, चलो ऑफिस मे चलो”
"क्या? क्यों?"
"मेरी कार एक घंटे में आजाएगी तो मेरा ड्राइवर तुम्हें घर छोड़ देगा" एकांश ने ऑफिस में जाते हुए कहा
"मैं अकेले चली जाऊंगी" अक्षिता ने वापिस वहा से जाते हुए कहा
"तुम अकेले नहीं जाओगी" एकांश ने सख्ती से कहा
“तुम मुझे ऑर्डर नहीं दे सकते, मैं अब तुम्हारी एम्प्लोयी नहीं हु" अक्षिता ने कहा और एकांश भी आके कुछ कहना चाहता था लेकिन उसने आसपास देखा तो पाया के कुछ लोग उन्हे ही देख रहे थे क्युकी बोलते हुए दोनों का ही आवाज ऊंचा हो गया था तभी एकांश का एक एम्प्लोयी वहा आया
"सर, मीटिंग का वक्त हो रहा है क्या हम एक बार फिर प्रेजेंटेशन चेक कर लें?" स्टाफ के बंदे ने कहा
"हाँ और इन मैडम मेरे केबिन में बैठाओ" एकांश ने अक्षिता की ओर इशारा करते हुए कहा
"ओके सर"
"नहीं! मैं घर जा रही हूँ।" अक्षिता ने कहा और जाने के लिए मुड़ी
लेकिन एकांश ने उसका हाथ पकड़कर उसे अपनी ओर खींचा
"क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे" अक्षिता ने हाथ छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा
"जब तक तुम रुक नहीं जाती तब तक नहीं।" एकांश ने कहा
"नहीं."
"मान जाओ अक्षिता" एकांश ने कहा और अक्षिता ने भी कुछ पलों तक उसे देखा
"अच्छा ठीक है” आखिर मे अक्षिता ने एकांश के आगे हथयार डालते हुए कहा
"गुड! जाओ और मेरे केबिन में इंतज़ार करो" एकांश ने अक्षिता का हाथ छोड़ा और अपने स्टाफ को देखते हुए बोला
"मैडम के लिए बढ़िया खाने का इंतजाम करो और उन्हे मेरी कैबिन से बाहर मत आने देना" एकांश ने कहा और मीटिंग रूम ही ओर बढ़ गया वही अक्षिता पैर पटकते हुए उसके कैबिन मे जा बैठी
******
मीटिंग के बाद जब दोनों साथ घर आ रहे थे तब अक्षिता पूरे रास्ते बड़बड़ा रही थी वही एकांश उसकी बड़बड़ को इग्नोर किए जा रहा था जिससे अक्षिता और भी ज्यादा चिढ़ रही थी वही एकांश को उसे यू चिढ़ाने मे मजा आ रहा था, आज काफी समय बाद दोनों ने कुछ समय साथ बिताया था भले ही थोड़े समय के लिए हो लेकिन दोनों ने एक दूसरे की मौजूदगी का आनंद लिया था
घर पहुच कर दोनों ही सरिताजि के पास पहुचे जो दइनिंग टेबल पर खाना लगा रही थी और दोनों ही उनके पास बच्चों की तरह शिकायाते करने लगे एकांश ने ये शिकायत की के अक्षिता ने उसे बस मे सफर करवाया वही अक्षिता ने भी उसकी हरकतों की शिकायत की
"तुमने उसे लोकल बस में ऑफिस भेजा!" सरिताजी ने अक्षिता को घूर कर देखा वही अक्षिता ने अपनी माँ को देखकर मुंह बनाया और एकांश उसे देखकर मुस्कुरा दिया
"माँ, लेकिन उसके बारे में मेरी शिकायत का क्या होगा?" अक्षिता ने बड़बड़ाते हुए कहा
"उसने तुम्हारा इतना ख्याल रखा कि तुम अकेली घर नहीं आओगी इसमें शिकायत की क्या बात है?"
"लेकिन माँ, इसने मुझे वहा रहने के लिए मजबूर किया" अक्षिता ने एकांश की ओर देखते हुए कहा
"हाँ, लेकिन मैंने ऐसा इसकी सैफ्टी के लिए किया आंटी" एकांश ने मासूमियत से सरिताजी से कहा जिसके बाद सरिताजी ने अक्षिता को ही दो बाते सुना ही और किचन मे चली गई वही एकांश अक्षिता को देख हसने लगा
"चुप करो!” अक्षिता ने जोर से कहा के तभी
"अक्षिता!" किचन से उसकी माँ की चेतावनी भरी आवाज़ आई जिससे उसका मुँह बंद हो गया
वही एकांश चुपचाप हंसने लगा और अक्षिता उसे घूरकर देखने लगी
"अब तुम दोनों लड़ना बंद करो और अपना खाना खाना शुरू करो।" सरिताजी ने उनकी प्लेटों में खाना परोसते हुए कहा और यूही नोकझोंक करते हुए हसते हुए वो खाने का मजा लेने लगे