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एकांश को जैसे ही स्वरा का फोन आया और उसने उसका भेजा हुआ पता देखा वो थोड़ा चौका, वो पता देख उसे थोड़ी हैरानी हुई और साथ ही ये उम्मीद भी जागी की शायद कुछ तो पता चला है या फिर शायद... शायद वही वापिस आ गई हो,
जिसके बाद एकांश ने एक पल की भी देरी किए बगैर अपनी गाड़ी निकाली और इस पते की ओर चल पड़ा,
वो अक्षिता के ही घर का पता था और जब एकांश वहा पहुंचा तो स्वरा रोहन और अमर पहले ही वहा मौजूद थे और आगे क्या करना है इस बारे में बहस कर रहे थे और जैसे ही एकांश वहा पहुंचा अमर उसके पास आया,
"भाई तू सही टाइम पे आ गया है, मुझे ये प्लान समझ नही आ रहा, हम ऐसे चोरी से किसी के घर में कैसे घुस सकते है यार, और किसी ने देख लिया और हमको चोर समझ लिया फिर?" अमर ने अपनी परेशानी एकांश को बताई जो अब भी वहा सिचुएशन का जायजा ले रहा था
एकांश को स्वरा ने बस वहा आने कहा था इसके अलावा कुछ नही बताया था ऐसे में वो किसी भी प्लान के बारे के नही जानता था, ऊपर से वो पिछले कुछ दिनों के काफी ज्यादा चिड़चिड़ा हो गया था, अक्षिता को ढूंढते हुए उसके हाथ लगातार निराशा लगी थी ऐसे में जब स्वरा ने उसे यहा बुलाया तो उसे लगा शायद... शायद अक्षिता लौट आई थी लेकिन उसने यहा आकर देखा तो मामला ही अलग था..
एकांश कुछ नही बोला बस सुनता रहा, अब स्वरा भी उनके पास आ गई थी
"तुम्हारे पास कुछ अच्छा रास्ता हो तो वो बताओ वरना हो बता रही हु वो करो" स्वरा से अमर से कहा बदले में अमर ने बस उसे घूर के देखा और फिर वापिस एकांश को ओर मुड़ा
"तू कुछ बोलेगा या ऐसे ही सुनता रहेगा" अमर ने एकांश से कहा
"पहले बात पता कर लू अभी मुझे कुछ समझ नही आ रहा और कसम से अभी दिमाग बहुत घुमा है सुबह से घूम घूम के परेशान हु मैं तू मत शुरू हो अब" एकांश ने अमर से कहा और फिर स्वरा की ओर रुख किया, "तुम बताओगी क्या चल रहा है और इस वक्त यहां क्यों बुलाया है, देखी स्वरा अगर कुछ काम का नही हुआ तो मुझसे बुरा कोई नही होगा, क्युकी यहां का एड्रेस देख मुझे लगा था शायद वो लौट आई है" एकांश ने हल्के गुस्से में कहा वही रोहन बस चुप चाप सुन रहा था
एकांश की नजरे अब स्वरा की ओर थी लेकिन वो कुछ नही बोली और फिर एकांश को वापिस बोलना पड़ा
"अब बताओगी क्या पता चला है, क्या हुआ है" एकांश ने कहा
और स्वरा ने आगे बोलना शुरू किया
"ज्यादा कुछ पता नहीं चला है, मैं और रोहन हमे अक्षिता से जुड़े जितने लोगो का पता था हमने सबसे पूछ के देख लिया, लेकिन किसी को भी कुछ नही पता है लेकिन अभी कुछ देख पहले जब मैं घर पहुंची तब मुझे ऐसा कुछ मिला जिसके बारे में मैं भूल ही गई थी" और इतना बोल कर स्वरा ने अपने हाथ में एकांश को एक चाबी दिखाई लेकिन अब भी एकांश को कुछ नही समझा और वो सवालिया नजरो से उसे देखने लगा और फिर स्वरा आगे बोली
"ये अक्षिता के घर को चाबी है जिसके बारे में शायद वो भूल गई है के ये मेरे पास है, और मुझे लगता है हमे उसके घर में चल कर देखना चाहिए, शायद वो और उसका परिवार कहा गया है हमे ये बात पता चल जाए, वैसे तो बाहर कुछ भी पता नहीं चल रहा है, हैं ना?" स्वरा ने उम्मीद भरी नजरो से एकांश को देखा जो अब सोच में था
"सर मुझे लगता है हमे एक बार देख लेना चाहिए क्या पता वो जहा गए हो उसके बारे में ही किसी पता चले" इतनी देर से चुप रोहन बोला और एकांश ने उसको देखा
"मैं अब भी बोलूंगा के अगर किसी ने देख लिया और और चोर समझ तो बड़ा पंगा हो सकता" अमर ने चेताते हुए कहा लेकिन स्वरा ने उसकी बात सुन आंखे घुमा ली
"हमारे पास वक्त बहुत कम है और हम ऐसी हर संभावना को चेक करना चाहिए जहा से कुछ क्लू मिलने वाला हो और हम कम से कम कुछ कर तो रहे है तुमने क्या किया है" स्वरा ने कहा और अमर उसे गुस्से से घूरने लगा
वही एकांश कुछ सोच रहा था, आज शाम ही वो पुलिस स्टेशन से लौटा था, अपनी पहुंच से उसने पुलिस पर अक्षिता को ढूंढने का दबाव तो बना दिया था लेकिन पुलिस प्रशासन से कोई खासी मदद नही मिल रही थी ऐसा नहीं था के पुलिस कुछ नही कर रही थी लेकिन साथ ही ये बात भी उतनी ही सही थी के अक्षिता का पता नही लगा पाए थे, दूसरी ओर जिस डिटेक्टिव को अमर ने इस काम में लगाया था वहा से भी अक्षिता के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली थी, अक्षिता जैसी मानो हवा में गायब हो गई हो
और इसमें अब जरा भी दोराय नहीं थी के एकांश भी अपनी उम्मीद खो रहा था और रह रह कर उसका मन इस डर से घिर जाता था के कही अक्षिता को कुछ हो न गया और और अब वो दोबारा उससे कभी नही मिल पाएगा ना ही उसे कभी देख पाएगा
एक और जहा ये चल रहा था उसे ऑफिस भी देखना पड रहा था, वैसे तो उसने सभी काम अपने कर्मचारियों पर छोड़ रखा था लेकिन कुछ बाते उसके बगैर नहीं हो सकती थी और इन सब बातो में उसे स्वरा को बात के एक हल्की तो उम्मीद की रोशनी नजर आई थी के शायद.... शायद अक्षिता के मौजूदा ठिकाने का पता उसके पुराने घर में चल जाए, चाबी उनके पास पहले से थी बस इतना ध्यान रखना था के कोई उन्हें ऐसे चोरी से घुसते देख शोर या हंगामा ना करे क्युकी इस वक्त वो कोई नया झमेला नही चाहता था...
एकांश ने स्वरा को देखा और फिर अमर पर नजर डाली और बोला
"चलो देखते है हो सकता है कुछ पता चल जाए"
एकांश की हामी सुन स्वरा थोड़ी खुश हो गई और रोहन भी वही अमर ने एकांश को देखा और बोला
"तू sure है क्युकी मुझे नही लगता हमे कुछ मिलेगा"
"तेरे पास कोई और रास्ता है या कोई ऐसी बात जिससे मैं उस तक पहुंच सकू?? अमर, भाई मैं हर बीतते घंटे से साथ उम्मीद खोता जा रहा हु ऐसे में मैं हर वो चीज करुंगा जो मुझे लगता है मुझे उसके करीब ले जा सकती है" एकांश ने कहा और स्वरा के साथ से चाबी ली और अक्षिता के घर को ओर बढ़ गया
अमर के पास एकांश की बात का कोई जवाब नही था, बस वो थोड़ा ज्यादा दिमाग लगा रहा था और उसके मन में ये गिल्ट भी था के सबकुछ सही चलता हुआ उसकी जासूसी से बिगड़ा था और वो भी अक्षिता को खोजना चाहता था बस उसके घर में चोरी से घुसने का खयाल उसे नही जमा था और अब चुकी बाकी लोग आगे बढ़ गए थे वो भी उनके पीछे चला गया
एकांश ने उस चाबी से जो स्वरा ने उसे दी थी अक्षिता के घर का दरवाजा खोला और वो चारो घर में दाखिल हुए, घर पूरा अंधेरे में डूबा हुआ था और वहा मौत सा सन्नाटा पसरा हुआ था,
रोहन आगे बढ़ा और लाइट के स्विच ढूंढने लगा और उसे वो मिलते ही उसने घर में रोशनी कर दी,
रोशनी होते ही उनके सामने अक्षिता का खाली पड़ा घर था जिसका फर्नीचर अब भी वैसे का वैसा रखा हुआ था, एकांश आंखो में पानी जमा किए उस घर को देख रहा था वही अमर और रोहन ने बाकी के लाइट्स लगा दिए थे,
घर में सब कुछ वैसा ही था जैसा उसमे रहने वाले छोड़ गए थे जब वहा थोड़ी धूल जमी हुई थी, एकांश उस घर में घुसते ही थोड़े इमोशनल स्टेट में पहुंच गया था, अक्षिता की यादें वैसे ही उसे अक्सर घेरे रहती थी जो यह आने के बाद उसपर हावी हो गई थी और उसको यू देख रोहन और स्वरा ने उसे वैसा ही रहने दिया और खुद घर में किसी क्लू की तलाश करने लगे ताकि अक्षिता के बारे में कुछ पता लगा सके,
कुछ पलों बाद एकांश ने भी अपनी भावनाओं पर काबू पा लिया था और वो भी आ घर का कोना कोना देखने में लगा हुआ था, वो लोग घर का चप्पा चप्पा छानने में लगे हुए थे और जब थोड़ी देर की मेहनत के बाद एकांश को कुछ नही लिया तो उसने बाकियों से पूछा
"कुछ मिला?"
लेकिन बाकी लोगो ने भी ना में गर्दन हिला दी
"मुझे लगता है हमे ऊपर जाकर अक्षिता का रूम भी चेक करना चाहिए क्या पता वहा कुछ हो" स्वरा ने कहा
स्वरा को बात से सहमत होते हुए अमर और रोहन भी ऊपर के फ्लोर की ओर जाने लगे वही अक्षिता के कमरे में जाने के खयाल से एकांश का दिल जोर से धड़कने लगा था..
एकांश के चेहरे के भाव पढ़ते हुए स्वरा के सोचा के उसे कुछ देर अक्षिता के कमरे में अकेला रहने देना सही होगा और इसी खयाल के साथ वो बोली
"आप यहा देखी हम तब तक बाकी के कमरों में देखते है" जिसके बाद स्वरा रोहन और अमर बाकी कमरों की तलाशी लेने वहा से चले गए और एकांश ने जोरो से धड़कते दिल के साथ अक्षिता के कमरे का दरवाजा खोला और अंदर आया,
कमरे में एकांश का स्वागत अंधेरे ने ही किया, उसने अपनी उंगलियों से टटोल के लाइट का स्विच दबाया और कमरा रोशनी से नहा गया, एकांश ने एक नजर पूरे कमरे में घुमाई, अक्षिता का कमरा एकदम बढ़िया तरीके से जचाया हुए, है सामान उसकी जगह पर रखा था, बाकी घर की तरह ही यहां भी धूल थी लेकिन थोड़ी कम थी,
कमरे में एक अलमारी, डबल बेड पालन, एक डेस्क और चेयर रखे हुए थे, है चीज बढ़िया तरीके से जमी हुई थी, और अचानक उस कमरे में इस वक्त अक्षिता को इमेजिन करते हुए एकांश के चेहरे पर अनायास ही मुस्कान आ गई, डेस्क पर कोई बुक पढ़ते, बेड पर लेटे हुए, ड्रेसिंग टेबल पर खुद को तयार करते हुए उसे अक्षिता नजर आ रही थी
इन सब खयालों ने उसके दिमाग पर कब्जा कर लिया था वो भावनाओं पर से अपना कंट्रोल खो रहा था लेकिन जल्द ही उसने ये खयाल झटके और पूरे कमरे में कोई क्लू खोजने लगा, एकांश उस कमरे का कोना कोना तलाशने लगा के कही से तो कुछ तो सूरज मिले जिससे पता चले वो कहा गई है, कोई टिकट कोई पेपर कुसी लिखा हुआ लेकिन कुछ नही मिल रहा था सिवाय निराशा के
वो उसकी डेस्क के पास आया और वहा रखा अक्षिता का नोटपैड चेक किया के शायद उसमे कुछ लिखा हो लेकिन फिर से उसे खाली हाथ ही रहना पड़ा, कही से भी कुछ नही मिल रहा था, अलमारी ड्रावर्स सब देख लिया था और फिर एकांश को नजर एक दीवार पर पड़ी जो पूरी फोटो फ्रेम्स से ढकी हुई थी...
एकांश एक पल ठिठका और फिर धीरे धीरे चलते हुए उन तस्वीरों के पास पहुंच कर उन्हे गौर से देखने लगा
पहली फोटो अक्षिता की थी, शायद उसके बचपन की जिसमे को मुस्कुरा रही थी, दूसरी में उसके माता पिता था और तीसरी फोटो उनकी फैमिली फोटो थी, वैसे ही चौथी और पांचवी फोटो भी और फिर जब एकांश की नजर अगली फोटो पर गई एक बार फिर उसकी आंखे भरने लगी थी,
अगली फोटो एकांश की थी जो साइड से ली गई थी जिसका उसे पता भी नही था, एकांश किसी चीज को देख रहा था जब अक्षिता ने उसकी ये तस्वीर खींची थी,
अगली फोटो ने वो दोनो थे जो एकदूसरे की आंखो से देख रहे थे, मुस्कुरा रहे थे इसी फोटो की कॉपी एकांश के पास भी थी, और फिर एकांश ने आखरी फोटो को देखा जिसमे वोही था और ये फोटो अभी अभी खींचा गया था, एकांश के ऑफिस में जिसमे वो ब्लू सूट पहने लैपटॉप पर काम कर रहा था,
एकांश के चेहरे पर उस तस्वीर को देखते हुए मुस्कान आ गई ये सोच कर के अक्षिता को उससे छिपा कर ये फोटो लेने में कितनी मेहनत लगी होगी...
एकांश वहा से पलट कर जाने ही वहा था के बेड और साइड टेबल के बीच रखी किसी चीज ने उसका ध्यान खींचा, उसके इस चीज को हाथ में लिया तो पाया के वो एक डायरी थी
अक्षिता को डायरी
एकांश का दिल अब और जोर से धड़कने लगा जब उसने उस डायरी को खोला
अंदर सूखे गुलाब की पंखुड़ियां थी जिसे एकांश ने हटाया और वहा अक्षिता का नाम लिखा हुआ था साथ ही नीचे भी कुछ लाइन्स लिखी हुई थी
‘अगर किसी को किसी भी तरह मेरी ये डायरी मिले तो प्लीज इसे ना पढ़े, इसमें कुछ भी खास नही है सिवाय में उदास और डिप्रेस्ड खयालों के, और आप शायद किसी डिप्रेस्ड लड़की के बारे में नहीं पढ़ना चाहेंगे... ‘
एकांश ने ये पढ़ा, उसे समझ नही आ रहा था क्यां करे, उसका मन पढ़े या ना पढ़े इस दुविधा में था लेकिन साथ ही मन ये ये खयाल भी चल रहा था के शायद डायरी के उसका पता ठिकाना लिखा हो और उससे उसके बारे में पता चल पाए और इसी उम्मीद में एकांश ने डायरी का पन्ना बदला....
एकांश अपने केबिन मे बैठा काम कर रहा था के तभी अचानक अक्षिता धड़धड़ाते हुए उसके केबिन मे घुसी, बगैर नॉक कीये, अक्षिता बहुत ज्यादा गुस्से मे थी और उसे इस वक्त कुछ नहीं सूझ रहा था...
“मिस्टर रघुवंशी! आप अपने आप को समझते क्या है? आप कोई तोप है जो कुछ भी कर सकते है?” अक्षिता ने सीधा केबिन मे घुसते हुए एकांश पर धावा बोल दिया और सीधा उसे गुस्से से देखते हुए बोलने लगी
“मिस पांडे होश मे तो हो क्या बोल रही हो क्या कर रही हो? और तुममे इतनी भी समझ नहीं है क्या के कीसी के केबिन मे आने से पहले नॉक करना होता है?” एकांश भी उसपर गुर्राया
“मुझे जो सही लग रहा है वो मैं कर रही हु और मुझे नहीं लगता तुम इस वक्त कोई मैनर्स या रीस्पेक्ट डेसर्वे करते हो” अक्षिता वापिस चिल्लाई
“होश मे आओ मिस पांडे तुम अपने बॉस से बात कर रही हो”
“अच्छा... लेकिन बॉस के पास ये हक नहीं होता न के उसका एम्प्लोयी अपने पर्सनल जिंदगी मे क्या करता है उसपर नजर रखे उसे स्टॉक करे” अक्षिता ने कहा
“क्या?? मैं कीसी पर नजर नहीं रख रहा हु” एकांश अक्षिता की बात सुन शॉक था और वो अपने आप को डिफेंड करते हुए चिल्लाया
“झूठ मत बोलो...! मैं अभी इतने गुस्से मे हु के अभी कुछ उल्टा सीधा कर जाऊँगी” अक्षिता ने एकांश को उंगली दिखा कर धमकाते हुए कहा
“और क्या करोगी तुम?” एकांश ने अपनी भोहे उठा कर अक्षिता को चैलेंज किया
“कुछ भी जिससे तुम्हें पछताना पड़े”
“अब अपनी ये बकवास बंद करो और मुद्दे पर आओ मिस पांडे” एकांश ने कहा
“Stop. Stalking. Me.” अक्षिता ने दाँत पीसते हुए कहा
“अपने आप को इतना इम्पॉर्टन्स मत दो मिस पांडे मैं क्यू स्टॉक करूंगा तुम्हें?”
“मुझे क्या पता वो तो आपको पता होना ना”
“अबे यार!!” एकांश अब फ्रस्ट्रैट हो रहा था
“एक बात बताओ, तुमको कैसे पता के मैं तुम्हें स्टॉक कर रहा हु, तुमपे नजर रखे हु?” एकांश ने पूछा
“क्युकी आपका वो दोस्त मेरा पीछा कर रहा है, जहा भी मैं जाऊ घर, शॉपिंग रेस्टोरेंट हर जगह” अक्षिता का गुस्सा कम ही नहीं हो रहा था
“क्या? कौनसा दोस्त? किसका दोस्त?” एकांश अब कन्फ्यूज़ था
“पुछ तो ऐसे रहे हो जैसे इस सब के बारे मे कुछ पता ही नहीं है” अक्षिता ने कहा
“हा क्युकी मुझे सही मे कुछ नहीं पता है” एकांश ने जो सच था बता दिया
“लेकिन फिर तुम्हारा दोस्त मेरा पीछा क्यू करेगा जब तुमने उसे ये करने नहीं कहा तो?” अक्षिता मानने को ही तयार नहीं थी
“अबे यार तुम किस दोस्त की बात कर रही हो वो बताओ पहले?” एकांश अब साफ साफ इरिटैट हो रहा था इसीलिए उसने दाँत पीसते हुए बोला
“वही जो उस दिन ऑफिस आया था.. बर्थडे के दिन”
“क्या??”
“हा!”
“तो तुम्हारा ये कहना है के अमर तुमको स्टॉक कर रहा है?” अब इस नए खुलासे से एकांश थोड़ा चौका
“मुझे नाम नहीं पता लेकिन ये वही है जिससे मैं ऑफिस मे टकराई थी और वो आपका दोस्त है” अक्षिता भी इस सब से परेशान थी और एक ही बात रीपीट किए जा रही थी
“तो अब मुझसे क्या चाहती हो?’
“आपने अपने दोस्त को मुझे स्टॉक करने क्यू कहा?
“मैंने कीसी से कुछ नहीं कहा है मिस पांडे, लेकिन मैं पता लगाऊँगा के मैटर क्या है” इससे पहले अक्षिता कुछ बोलती एकांश ने साफ शब्दों मे कह दिया था के उसका इससे कोई लेना देना नहीं है
“ओके”
“अब जाओ यहा से और दोबारा मेरे केबिन मे ऐसे घुसने की हिम्मत मत करना” एकांश ने ऑडर छोड़ते हुए अक्षिता को जाने के लिए कहा
“अभी तो मैं जा रही हु मिस्टर रघुवंशी लेकिन अपने दोस्त को समझा देना के मुझसे दूर रहे मेरा पीछा करना बंद करे क्युकी दोबारा अगर वो मुझे मेरे आसपास या मेरे घर के आसपास दिखा तो जो होगा उसके लिए मुझे दोष मत देना” अक्षिता ने एकांश को जाते जाते वापिस उंगली दिखा कर धमकाया
“don’t you dare to warn me miss Pandey, तुम्हें याद दिलाना पड़ेगा क्या ये मेरा ऑफिस है और मैं बॉस हु?” एकांश ने अक्षिता की ओर बढ़ते हुए कहा और वो थोड़ा पीछे हटने लगी
और इससे पहले के एकांश और कुछ बोलता या करता उन्हे कीसी के गला साफ करने का आवाज आया और दोनों के चेहरे उस इंसान की ओर घूमे
केबिन मे एक खूबसूरत मॉडेल जैसी दिखने वाली लड़की हाथ बांधे एकांश के डेस्क पर बैठी थी और उन्ही लोगों को देख रही थी
अक्षिता भी उस लड़की को देख रही थी
‘ये कौन है? और ये अंदर कैसे आई? और मैंने इसे अंदर आते हुए कैसे नहीं देखा? ये कबसे यहा है? और इसने अब तक कुछ बोला क्यू नहीं? कही ये कोई भूत तो नहीं?”
अपने ही खयालों से अक्षिता थोड़ा चौकी और उस लड़की को थोड़े डर से देखने लगी
‘ये इतनी खूबसूरत भूतनी मुझे ऐसे क्यू देख रही है जैसे मैं कोई अजूबा हु?’
एक तरह यह अक्षिता के दिमाग मे ये सब बेतुके सवाल आ रहे थे ही एकांश ने मन ही मन अपने आप को लपड़िया दिया था क्युकी वो भूल चुका था के वो केबिन मे अकेला नहीं था
‘मैं ऐसी बेवकूफी कैसे कर सकता हु यार? मैं कैसे भूल सकता हु के मैं केबिन मे अकेला नहीं था वो मेरे साथ थी और इस बेवकूफ लड़की से उलझने मे मेरा ध्यान ही नहीं रहा... ये क्या सोच रही होगी अब मेरे मारे मे? हमारे बारे मे?’
इन लोगों के ऐसे क्लूलेस चेहरे देख वो लड़की हसने लगी थी...
“आइ लाइक यू” जब हस कर हो गया तब वो लड़की अक्षिता से बोली
“हा?” और ये था अक्षिता का ब्रिलिएन्ट रीस्पान्स
“आइ रिएलि लाइक यू क्युकी मैंने कभी कीसी को एकांश रघुवंशी से ऐसे बात करते नहीं सुना है” उस लड़की ने मुसकुराते हुए अक्षिता को देख कहा और अक्षिता ने गर्दन नीचे झुका ली
अक्षिता ने एक नजर एकांश को देखा जो गुस्से से उसे ही घूर रहा था और वो उसे देख हस दी
“लेकिन मानना पड़ेगा के तुम न एकदम कमाल हो यार, मतलब तुमने वो कर दिया है जो कोई करने का सोचता भी नहीं है” उस लड़की ने अक्षिता की तारीफ की जो अब भी उसे कन्फ़्युशन मे देख रही थी
“अब ये सीन रोज रोज देखने नहीं मिलता न के कोई एकांश को उंगली दिखा कर धमकाए, उसपर इल्जाम लगाये उससे लड़े उसे चुप करा दे उसपर चिल्लाए और उसे एकदम इरिटैट करके रख दे मतलब एकदम कमाल हैना एकांश?” उस लड़की ने कहा
“हा हा ठीक है हो गया अब” एकांश ने इरिटैटेड टोन ने कहा और वो लड़की वापिस से हसने लगी वही अक्षिता बस नीचे देख रही थी
“ओके ओके, तो अब मुझे इस ब्रैव एण्ड ब्यूटीफुल लड़की से इन्ट्रोडूस तो कराओ” उस लड़की ने कहा
“ये अक्षिता पांडे है, मेरी पर्सनल अससिस्टेंट” एकांश ने कहा
“ओह नाइस टु मीट यू अक्षिता.... आइ एम श्रेया, श्रेया मेहता” श्रेया ने अक्षिता की ओर हाथ बढ़ाते हुए कहा
“नाइस टु मीट यू टू” अक्षिता ने भी मुसकुराते हुए श्रेया से हाथ मिलाया
तभी अक्षिता के फोन का अलार्म बीप बजाने लगा और एकांश और श्रेया दोनों ने सवालिया नजरों से अक्षिता को देखा
“सॉरी.... वो कुछ काम का रिमाइंडर है, जरूरी काम है मुझे जाना होगा” इतना बोल अक्षिता जाने के लिए पलटी
“अक्षिता रूकों” श्रेया ने अक्षिता को रोका और अक्षिता ने उसे देखा फिर फिर श्रेया आगे बोली
“आज मेरी एक पार्टी है होटल मे और मैं चाहती हु तुम भी आओ” श्रेया ने स्माइल के साथ कहा
“नहीं, सॉरी लेकिन मैं नहीं आ पाऊँगी, एक तो मुझे पार्टी करना उतना पसंद भी नहीं है” अक्षिता ने नर्वसली कहा
“प्लीज ऐसा मत कहो यार... तुम आओगी तो मुझे अच्छा लगेगा”
“लेकिन मैं वहा आकार क्या करूंगी मैं तो वहा कीसी को जानती भी नहीं हु” अक्षिता ने वापिस बहाना बनाना चाहा
“अरे मैं तो रहूँगी ही ना वहा और तुम चाहो तो अपने दोस्तों को भी लेकर आ सकती हो फिर तो कोई प्रॉब्लेम ही नहीं होगी” श्रेया ने कहा
“श्रेया तुम क्यू फोर्स कर रही हो, उसको नहीं आना तो ना आए ना” एकांश ने कहा
“एकांश रघुवंशी, तुम खुद तो कही आते जाते नहीं हो न पार्टी करते हो मैं तबसे तुम्हें मना रही हु लेकिन तुम माने? और अब मुझे औरों को भी इन्वाइट नहीं करने दे रहे” श्रेया ने कहा और उसे सुन एकांश वापिस अपनी जगह जाकर बैठ गया वो अब और बहस के मूड मे नहीं था
“तो आओगी ना?” श्रेया ने अक्षिता से पूछा
“हा मैं आ जाऊँगी” अक्षिता ने मुसकुराते हुए कहा और श्रेया ने खुश होकर उसे गले लगा लिया पहले तो अक्षिता थोड़ी चौकी फिर उसने भी श्रेया को गले लगाया
“तुम मुझे अपना नंबर दो मैं उसपर तुम्हें वेन्यू टेक्स्ट करती हु”
जिसके बाद अक्षिता ने श्रेया के साथ नंबर एक्सचेंज किया वही एकांश बस उन्हे देखर यहा था, कुछ देर मे अक्षिता अपने काम मे लग गई और श्रेया भी ऑफिस से चली गई वही एकांश अमर से कान्टैक्ट करने की कोशिश करने लगा जिसका फोन स्विच ऑफ बता रहा था, एकांश अमर की इस हरकत से बहुत ज्यादा गुस्से मे था और अगर अमर के पास इसका कोई खास कारण नहीं हुआ तो वो पिटेगा ये कन्फर्म था
काम खत्म करने के बाद अक्षिता स्वरा और रोहन साथ मे पार्किंग की ओर जा रहे थे
“गाइज आज एक पार्टी है और....” और इसके पहले के अक्षिता अपनी बात पूरी कर पाती
“पार्टी! कौनसी पार्टी.. कैसी पार्टी.. किसका बर्थडे है?” स्वरा ने सवालों की भडमार कर दी
“अरे पहले उसको बात तो पूरी करने दो” रोहन ने स्वरा को कहा
“अरे बस मुझे इन्विटैशन मिला है और हमे जाना है बस इतना समझ लो” अक्षिता ने कहा
“किसकी पार्टी है?” रोहन ने पूछा
“श्रेया मेहता की, मैं उससे आज ही मिली थी एकांश के केबिन मे उसी ने मुझे कहा है मैं दोस्तों के साथ भी आ सकती हु” अक्षिता ने बता
“ओके, लेकिन पार्टी है कहा?” इस बार स्वरा ने आराम से पूछा
“कोई फाइव स्टार होटल है शायद” अक्षिता ने श्रेया का भेजा मैसेज देखते हुए कहा
“क्या?”
“हा”
“वॉव यार, अब आएगा मजा” स्वरा ने एक्सईट होते हुए कहा
“कब जाना है?” रोहन ने पूछा
“आज रात”
“क्या!!!”
“अबे पागल औरत चिल्लाना बंद कर यार” रोहन ने स्वरा वो चुप कराया
“आज पार्टी मे जहा और मेरा क्या पहनना डिसाइड नहीं है शॉपिंग करनी होगी कितने काम है तयार होना है तुम लोग यहा टाइमपास कर रहे हो” स्वरा ने उलट उन दोनों को ही सुना दिया
“अबे बस पार्टी ही तो है इतना क्या लोड लेना जो है उसमे काम चलाओ, चलो मैं निकलता हु तुम लोग रेडी हो जाओ तो कॉल करना मैं दोनों को पिक कर लूँगा” इतना बोल के रोहन वहा से निकल और और उसके पीछे स्वरा और अक्षिता भी अपने अपने घरों की ओर निकल गए.....
“क्या बढ़िया जगह है यार ये” स्वरा ने पार्टी के वेन्यू पर पहुचते हुए कहा
“हम्म” अक्षिता भी इधर उधर देख ही रही थी
“अंदर चले या यही रुकना है फिर?” रोहन ने उन दोनों के पीछे से कहा और वो लोग अंदर आए और देखा तो वहा पहले ही कई लोग आ चुके थे पार्टी चल रही थी, एक ओर कुछ लोग डांस कर रहे थे वही दूसरी ओर ड्रिंक्स का भी बंदोबस्त था, कुछ लोग एक साइड खड़े बात रहे रहे थे कुछ महोल का मजा ले रहे थे
अक्षिता तो तभी ऐसा लगा के कोई उसे देख रहा था और जब अक्षिता ने उस ओर देखा तो वहा कोई नहीं था, अक्षिता ने इस बात को इग्नोर किया और वहा श्रेया को खोजने लगी
कुछ पल नजर इधर उधर घुमाने के बाद उसे श्रेया दिख गई जो एकदम कहर ढा रही थी और कुछ लोगों से बाते कर रही थी, अक्षिता स्वरा और रोहन के साथ श्रेया की ओर बढ़ने लगी और वो भी उन लोगों से इक्स्क्यूज़ लेकर इनके पास आई
“Akshita! I am glad you came” श्रेया ने कहा
“it’s my pleasure and you look gorgeous” अक्षिता ने मुसकुराते हुए कहा
“थैंक यू”
‘बाइ द वे ये मेरे दोस्त है, रोहन और स्वरा और गाइज ये है श्रेया मेहता, आज की होस्ट”
“hello guys, its nice to meet you two, hope you are enjoying the party” श्रेया ने स्वरा और रोहन को देखते हुए कहा
“यस, द पार्टी इस अमेजिंग एण्ड नाइस टु मीट यू टू” रोहन ने फॉर्मली कहा
"हैलो मिस श्रेया वंडरफुल पार्टी एंड थैंक यू फॉर इनवाइटिंग अस" स्वरा ने कहा
"प्लीज कॉल मि श्रेया, आई एम ग्लैड यू गाइज केम" श्रेया ने कहा
"वैसे मेरे दो सवाल है एक तो बगैर जान पहचान के मुझे बुलाना और इस शानदार पार्टी का रीजन तो बताओ" अक्षिता ने पूछा
"देखो मुझे मेरी ही पार्टी में किसी को इन्वाइट करने रीजन नही चाहिए और जैसे मैंने तुम्हे एकांश से बात करते देखा आई थॉट के हम अच्छे दोस्त बन सकते है रही बात पार्टी की तो मैं एक फैशन डिजाइनर की और मेरा अपना फैशन हाउस है और रिसेंटली मेरे डिजाइन्स पेरिस फैशन वीक में सेलेक्ट हुए है," श्रेया ने बताया
"ओह माई गॉड, कांग्रेटूलेशंस!" अक्षिता ने श्रेया को गले लगाते हुए कहा
"थैंक यू, गाइज एंजॉय द पार्टी, मुझे अभी जाना होगा कई लोगो से मिलना है," इतना बोल के श्रेया वहा से निकल गई
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पार्टी अपने पूरे रंग पे थी शानदार म्यूजिक बज रहा था, रोहन और स्वरा डांस का मजा ले रहे थे वही अक्षिता वहा से थोड़ी दूर एक कोने में बैठी थी, उसे पार्टी करना वैसे भी ज्यादा पसंद नही था और तभी अक्षिता को खुद पर किसी की नजरे महसूस हुई, वो जो लकड़ियों के पास एक्स्ट्रा सेंस होता है बस उससे ही अक्षिता को लगा के कोई उसे देख रहा था लेकिन उसने जब इधर उधर देखने की कोशिश की तो वैसा कुछ नही था
अक्षिता को वहा बैठे बैठे प्यास लग रही थी वो उठी और वहा सर्व हो रहे पानी जैसे ड्रिंक को पी लिया, अक्षिता वहा अब बोर हो रही थी और अब उसे बस घर जाकर सोना था..
कुछ पल और रुक कर अक्षिता अपने दोस्तो के पास जा ही रही थी के वो किसी से टकरा गई और जब उसने ऊपर देखा
"तुम!!!" अक्षिता ने गुस्से में कहा
"यप "
"तुम मेरा पीछा करते हुए यहा तक आ गए?" अक्षिता ने इस बंदे को गुस्से में घूरते हुए कहा
"जी नही, मैं यहा अपने दोस्त की पार्टी अटेंड करने आया हु" उस बंदे से सरेंडर की मुद्रा में अपने हाथ ऊपर उठाते हुए कहा
"तुम मेरा पीछा क्यों कर रहे हो, why are you stalking me?" अक्षिता ने हाथ बांधे पूछा
"मैं कोई तुम्हारा पीछा नही कर रहा ही, मैं बस थोड़ा सा क्यूरियस हु"
"क्यूरियस?"
"हा, तुम्हारे बारे में थोड़ा और जानने के लिए" वो बंदा बोला
अक्षिता ने ना में अपना सर हिलाया और अपने दोस्तो को खोजने लगी
"किसे ढूंढ रही हो?" उस बंदे में पूछा लेकिन बदले में अक्षिता ने बस उसे आंखे बारीक करके घूरा
"चिंता मत करो जल्दी ही उससे मिल लोगो वो श्रेया से मिलने गया है" वो बंदा बोला
"कौन?" अक्षिता ने थोड़ा कंफ्यूज टोन में पूछा लेकिन बदले में वो शक्स बस मुस्कुराया और अक्षिता वहा से जाने लगी और वो बंदा उसके पीछे हो लिया
"तुम यहा क्या कर रही हो?" तभी उनलोगो को ये आवाज सुनाई दी, पलट कर देखा तो वहा एकांश खड़ा था, "अमर, तुम मिस पांडे के साथ क्या कर रहे हो?" एकांश ने थोड़े गुस्से में अमर से पूछा
"कुछ नही भाई बस टकरा गए थे तो थोड़ी बात कर ली " अमर में बात झटकते हुए कहा
"तू हमेशा इससे ही क्यों टकराता है बे" एकांश अमर से बोला वही अक्षिता वहा से निकल गई थी...
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पार्टी अपने पूरे जोर पर थी और इस पार्टी में ना तो एकांश को उतना इंटरेस्ट था और ना ही अक्षिता को वही रोहन और स्वरा पार्टी का पूरा मजा ले रहे थे, वही अक्षिता की प्यास ही नही बुझ रही थी जबकि वो अब तक वहा सर्व होते ड्रिंक्स के कई ग्लास गटक चुकी थी और वही एकांश बता नही रहा था लेकिन अक्षिता पर उसका पूरा ध्यान था तभी एकांश ने देखा के अक्षिता थोड़ा अलग बिहैव कर रही है और उस ओर चल पड़ा
“उठो”
“नहीं”
“मैंने कहा उठो वहा से”
“नो”
“मूव”
“नहीं”
एकांश अक्षिता के पास पहुचा जो जमिन पर बैठे मुस्कुरा रही थी और एकांश उसे वहा से उठाने की कोशिश कर रहा था
“तुम वहा नीचे बैठ कर क्या कर रही हो?” एकांश ने इरिटैटेड टोन मे अक्षिता से पूछा
“मैं कुछ ढूंढ रही हु डिस्टर्ब मत करो” अक्षिता ने कहा
“क्या ढूंढ रही हो?”
“मेरे दोस्तों को ढूंढ रही हु” अक्षिता ने सीरीअसली जवाब दिया और अब एकांश के मैटर ध्यान मे आ गया
“अक्षिता तुमने शराब पी है?” एकांश ने आराम से पूछा
“नहीं तो मैंने तो पानी पिया है और कुछ शर्बत”
“पानी पीने से कीसी को नशा नहीं होता है” एकांश गुस्से मे चिल्लाया वही अक्षिता की शक्ल ऐसी हो गई थी मानो अभी रो देगी
“ये लो ये पिलाओ उसे थोड़ा ठीक लगेगा” अमर भी अब तक वहा आ गया था और उसे मैटर समझ आते हो वो बारटेन्डर से थोड़ा नींबू मिला पानी ले आया था
“ये लो ये पीओ ठीक लगेगा” एकांश ने वो ग्लास अक्षिता की ओर बढ़ाया
“नहीं, मैं ये नहीं पियूँगी” अक्षिता ने कहा
“पी लो बस नींबूपानी है” एकांश ने उसे समझाते हूएं कहा
“नहीं,” और इतना बोल के अक्षिता अपने दोस्तों के नाम से चिल्लाने लगी, वहा का महोल लाउड म्यूजिक सब कुछ अक्षिता के नशे हो हल्का हल्का बढ़ा रहे थे, उसने गलती वहा सर्व होती वोडका पी ली थी और वोडका के साथ एक चीज ये भी है के वो अगर ज्यादा देर हवा से इक्स्पोज़ हो जाए हो उसका टेस्ट पानी जैसा हो जाता है, इसीलिए अक्षिता ये जान ही नहीं पाई के वो पानी नहीं था.. और अब अक्षिता पूरे वोडका के असर मे थी
“रोहन स्वरा.... कहा हो तुम लोग” अक्षिता जोर से चीख रही थी और अब वहा अगल बगल वालों का ध्यान उस ओर जा रहा था...
“शट अप” एकांश ने कहा और अक्षिता चुप हुई और तभी स्वरा और रोहन वहा आ गए थे
“हे भगवान अक्षु तुम ऐसे जमीन पर क्या कर रही हो?” स्वरा ने अक्षिता के पास घुटनों पर बैठते हुए पूछा
“मैं तुम लोगों को ढूंढ रही थी”
“ऐसे जमीन पर बैठ कर?” स्वरा ने पूछा
“हा!” अक्षिता ने हसते हुए कहा वही अमर ये साथ मैटर देख कर अपने आप को हसने से रोक रहा था
“अक्षिता, तुमने शराब पी है?” रोहन ने चिंतित स्वर मे पूछा
“उसने भी यही पूछा तुम भी यही पपुछ रहे हो” अक्षिता ने एकांश की ओर उंगली दिखते हुए कहा
“अक्षु तुम जानती हो ना तुम शराब नहीं पीनी चाहिए, तुम शराब को छु भी नहीं सकती तुमको allowed ही नहीं है” रोहन ने सीरीअसली कहा और अक्षिता को खड़ा किया वही उसकी बात सुन एकांश के कान खड़े हो गए क्युकी रोहन काफी ज्यादा सीरीअस लग रहा था
“क्यू?” रोहन की बात पे अमर ने सवाल किया लेकिन जैसे ही स्वरा ने उसे घूर के देखा वो चुप हो गया
“हा हा पता है मैंने बस थोड़ा पानी पिया था” अक्षिता ने कहा
“चलो घर चलो” रोहन ने कहा
“नहीं, मुझे कही नहीं जाना” और इतना बोल के अक्षिता ने वह खड़े एकांश को पकड़ लिया जो बस उसे देख रहा था
अक्षिता ने एकांश को देखा और उसे देख मुस्कुराने लगी, और तभी उसका बैलन्स बिगड़ा और वो गिरने ही वाली थी के एकांश ने उसे संभाल लिया
“अंश, कितने क्यूट लग रहे हो तुम” अक्षिता ने एकांश को मुसकुराते हुए देख कहा, और एकांश थोड़ा चौका, उसके और अक्षिता के बारे मे कीसी को पता नहीं था के उसका पास्ट क्या था ऐसे मे अक्षिता का उसे अंश कह कर बुलाना कई सवालों को डावात देने जैसा था और ये एकांश बिल्कुल नहीं चाहता था
वही अक्षिता अब एकांश को छोड़ने को तयार ही नहीं था वो उसे कस कर पकड़ी हई थी, स्वरा भी अक्षिता का एकांश के लिए बिहैव्यर देख थोड़ी हैरान थी लेकिन ये वक्त सवाल पूछने का नहीं था
रोहन और स्वरा दोनों को ही टेंशन हो रही थी
“अक्षु चलो, घर चलो” स्वरा ने कहा
“नहीं मैं अंश को छोड़ के कही नहीं जा रही” अक्षिता ने कहा
वो लोग अब पार्किंग मे आ चुके थे
“डोन्ट वरी मिस स्वरा, मैं उसे घर छोड़ दूंगा” अक्षिता उसे छोड़ ही नहीं रही थी इसीलिए एकांश स्वरा से बोला
“नहीं!” रोहन और स्वरा ने एकसाथ कहा और एकांश ने सवालिया नजरों से उसे देखा
“सर मैं उसे मेरे घर लेकर जा रही हु, ऐसी हालत मे वो घर नहीं जा सकती उसके पेरेंट्स को टेंशन होगी” स्वरा ने कहा
“ठीक है फिर मैं तुम दोनों को ड्रॉप कर देता हु, मिस्टर रोहन आप जाइए, अमर हम तीनों को ड्रॉप कर देता” एकांश ने कहा और रोहन ने भी उसकी बात ठीक समझी
अक्षिता से सब चला भी नहीं जा रहा था, और नशे से आंखे भी भारी होने लगी थी लेकिन फिर भी वो एकांश को नहीं छोड़ रही थी और एकांश उसे गोदी मे उठाया और कार की ओर बढ़ गया वही अक्षिता भी उससे चिपकी हुई थी और उसे ऐसे देख स्वरा और रोहन काफी शॉक थे,
एकांश ने अक्षिता को पीछे की सीट पर बिठाया और खुद भी उसके बाजू मे बैठ गया वही स्वरा अमर के बाजू मे आगे पैसेंजर सीट पर बैठी थी, स्वरा ने पीछे पलट कर देखा तो वो थोड़ा और चौकी, अक्षिता एकांश के सिने से लग कर सोई हुई थी स्वरा ने उसे ठीक से बैठने कहा भी लेकिन अक्षिता सुनने की हालत मे थी ही कहा वही एकांश भले ही अपने चेहरे पर जाहीर नहीं होने दे रहा था लेकिन अक्षिता को अपने इतना पास पाकर मन ही मन वो भी काफी खुश था
घर पहुचने पर भी एकांश को उसे गोद मे उठा कर बेडरूम मे सुलाना पड़ा
“टेक केयर ऑफ हर, कल सुबह भारी हैंगओवर होने वाला है उसे” एकांश ने स्वरा से कहा जिसने उसे पानी का ग्लास पकड़ाया जिसपर स्वरा ने हा मे गर्दन हिला दी
जिसके बाद एकांश अमर के साथ वहा से जाने के लिए निकला
“सर” स्वरा ने उसे आवाज दी और एकांश पलटा, स्वरा की आँखों मे थोड़ा पानी था और वो कुछ बोलना चाहती थी लेकिन बोल नहीं पा रही थी
“यस?”
“नथिंग, टेक केयर”
“यू टू” इतना बोल के एकांश अमर के साथ वहा से निकल गया दिमाग मे कई सारे सवाल लिए....
अक्षिता जब अगले दिन नींद से जागी तो सर दर्द के साथ ही, उसका सर भारी था और वो अपनी आंखे मलते हुए पलंग पर उठ बैठी थी,
अक्षिता ने अपनी आंखे खोल कर इधर उधर देखा तो अपने आप को अपने रूम मे ना पाकर वो थोड़ा चौकी और फिर जब उसकी नजर कमरे के दरवाजे पर गई तो उसने देखा के स्वरा दरवाजे पर खादी हाथ बांधे उसे देख रही थी और इस वक्त स्वरा काफी सीरीअस लग रही थी
“स्वरा, मैं तुम्हारे कमरे मे क्यू हु?” अक्षिता ने सर पर हाथ रखते हुए पूछा लेकिन स्वरा कुछ नहीं बोली
“स्वरा बता ना, और तुम ऐसे मुझे घूर क्यू रही हो?” अक्षिता ने वापिस पूछा लेकिन कोई जवाब नहीं आया
“स्वरा”
“तुम्हें होश भी है क्या कर रही हो क्या चाहती हो?” स्वरा ने सीरीअसली कहा वही अक्षिता थोड़ा कन्फ्यूज़ थी
“कुछ याद है कल क्या हुआ? तुमने क्या किया? तुम जानती हो ना तुम्हें ऐसी चीजों से दूर रहना है वरना सही नहीं होगा” स्वरा ने थोड़ा गुस्से मे कहा
“अरे पर मैंने किया क्या है” अक्षिता ने पूछा
“तुम कल रात शराब के नशे मे धुत थी पूरी”
“क्या!!!” अक्षिता थोड़ा चौकी
“हा।“
“लेकिन मैंने तो कल ऐसा कुछ नहीं पिया” अक्षिता ने याद करते हुए कहा
“ओके टी अब मुझे ये बताओ के कल इतना क्या पी लिया था के अपन नशे मे है इसका भी तुमको ध्यान नहीं है”
“मैंने बस थोड़ा कोल्डड्रिंक और पानी पिया था और कुछ नहीं” अक्षिता ने कहा, “ओह शीट, वो शायद कुछ और ही था,” अक्षिता ने याद करते हुए कहा, वो सब याद करने की कोशिश कर रही थी
“वो जो भी हो अक्षु तुम जानती हो न ये तुम्हारे किए कितना खतरनाक हो सकता है, तुम्हें कुछ भी हो सकता था” स्वरा ने धीमे से कहा
“सॉरी यार पर मैंने जान बुझ कर नहीं किया है कुछ”
“जाने दो जो हुआ, अब तुम आराम करो, मैंने आंटी को बता ददिया है तुम यहा हो और मैं अब ऑफिस के लिए निकल रही हु” स्वरा ने कहा
“ओह शीट! ऑफिस के बारे मे तो मैं भूल ही गई थी” अक्षिता ने पलंग से उतरते हुए कहा
“अरे आराम से आज वैसे भी छुट्टी है तुम्हारी सो डोन्ट वरी” स्वरा ने अपना हैन्ड्बैग लेते हुए कहा
“छुट्टी?”
“एकांश की मेहरबानी है तुमपे, उसने की दी है”
“क्यू?”
“क्युकी अक्षु डिअर हमारा बॉस जानता था के तुमको हैंगओवर होने वाला है बस इसीलिए”
“लेकिन उसको कैसे पता चला के मैंने पी रखी थी?”
“उसे कैसे पता नहीं चलता वही तो तुम्हें यहा छोड़ कर गया है,” स्वरा ने कहा
“क्या??”
“तुम्हें सही मे कुछ याद नहीं क्या?” स्वरा ने हसते हुए कहा
“बस इतना बता मैंने कुछ उलटी सीधी हरकत तो नहीं की ना?”
“अक्षु बेबी आज छुट्टी है ना तो दिमाग पे जोर दलों सब याद आ जाएगा मुझे लेट मत कराओ” स्वरा ने जाते हुए कहा
“हा हा ठीक है, वैसे ही जो भी किया होगा तुम्हारे और रोहन के सामने ही किया होगा” अक्षिता ने वापिस दिमाग पे जोर डाला
“ना, वहा सब से खास कर अपने बॉस और उसका दोस्त” स्वरा मे मुसकुराते हुए कहा और अक्षिता ने अपने सर पे हाथ मार लिया
“मैंने क्या किया?”
“कुछ नहीं शाम हो बताऊँगी अभी लेट हो जाएगा मुझे”
“अच्छा इतना तो बता दे जब रोहन हमारे साथ था तो एकांश ने मुझे यहा क्यू छोड़ा? अक्षिता ने याद करते हुए कहा क्युकी वो और स्वरा रोहन के साथ उसकी कार मे गए थे
अब स्वरा रुकी
“रोहन तो हमे छोड़ देता लेकिन तुम एकांश को छोड़ ही नहीं रही थी, उसे अपने से दूर ही नहीं जाने दे रही थी एकदम चिपकी हुई थी उससे, वैसे अक्षु एक बात बता तू एकांश सर को अंश कहकर क्यू बुला रही थी?”
स्वरा का सवाल सुन कर अक्षिता थोड़ा चौकी, उसे ध्यान मे आ गया था के उससे नशे मे गलती तो हुई है,
“अब लेट नहीं हो रहा था तुझे?”
“अरे वो देखा जाएगा तुम पहले ये बताओ तुम एकांश को अंश कह कर क्यू बुला रही थी लग रहा था तुम जानती हो उसे”
“ऐसा कुछ नहीं है मैं.... मैं नशे मे थी ना तो बस अब जाओ तुम” अक्षिता ने जैसे तैसे बात टाली
“अच्छा ठीक है मैं ऑफिस के लिए निकल रही हु, ये दवाई लो तुम्हें ठीक लगेगा, किचन मे नाश्ता और नींबुपानी बना के रखा है ले लेना आउए आराम करना” स्वरा ने अक्षिता को दवाई पकड़ाते हुए कहा अक्षिता ने भी दवाई ले ली और स्वरा को बाय करके कल रात के बारे मे सोचने लगी,
कुछ समय बाद जब अक्षिता का सर दर्द कम हुआ तो दिमाग पे थोड़ा जोर डालने के बाद अक्षिता को कल रात का पूरा सीन याद आ गया था, उसे याद आ गया था के वो कैसे एकांश की गॉड मे उसकी बाहों मे थी, उससे चिपकी हुई थी, और इस वक्त अक्षिता के दिमाग मे कई सवाल चल रहे
‘ये क्या कर दिया मैंने’
‘पता नहीं एकांश क्या सोच रहा होगा’
‘इतने लोगों मे मुझे उससे ही भिड़ना था क्या’
‘और मुझे शराब का पता कैसे नहीं चला यार’
‘नहीं ये मैं नहीं होने दे सकती मैं अपने ही डिसिशन के खिलाफ हो रही हु ऐसे तो उससे दूर जाने के मेरे फैसले पर असर पड़ेगा’
‘मैं ये नहीं होने दे सकती’
‘मेरा उससे दूर रहना ही बेहतर होगा’
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दूसरी तरफ एकांश इस वक्त अपने ऑफिस मे था और वो थोड़ा डिस्टर्ब लग रहा था, उसके दिमाग मे कल रात की घटनाए चल रही थी के कैसे अक्षिता उसे उससे दूर नहीं होने दे रही थी, उसे कल नशे मे धुत अक्षिता का बिहैव्यर थोड़ा अलग लगा था
एकांश ने अक्षिता के आंखो में डर इनसिक्योरिटी महसूस की थी, ऐसा लग रहा था कुछ कहना था उसे लेकिन वो अपने आप को रोक रही थी, स्वरा भी एकांश से कुछ कहना चाहती थी लेकिन कह नही पाई थी और यही सब बाते इस वक्त एकांश के दिमाग में घूम रही थी और एकांश के इन खयालों को रोका उसके दरवाजे पर हुए नॉक ने
"कम इन"
दरवाजा खुला और एकांश ने उस ओर देखा तो वहा अमर खड़ा था जो अपने हमेशा वाले मजाकिया अंदाज में नही लग रहा था
"एकांश मुझे तुमसे कुछ जरूरी बात करनी है" अमर ने सीरियस टोन में कहा और उसे ऐसे गंभीर देख एकांश को भी कुछ अलग लगा
"आजा बैठ, मुझे भी तुझसे कुछ बात करनी है" एकांश ने अपना लैपटॉप और फाइल्स बंद करते हुए कहा
"पहले मुझे ये बता तू अक्षिता को स्टॉक क्यों कर रहा था?" इससे पहले के अमर कुछ बोलता एकांश ने सवाल दाग दिया
"मैं भी इसी बारे में बात करने आया हु और तुझे इस बारे में कैसे पता चला" अमर बोला
"मतलब सच है ये, हैना?"
"मैं उसे कोई स्टॉक नही कर रहा था बस कुछ जगह पीछा किया था उसका"
"वही तो जानना है मुझे क्यों किया था?"
"उसकी जिंदगी के बारे में जानने के लिए" अमर ने आराम से कहा
"और तू उसके बारे में क्यों जानना चाहता है?" एकांश को हल्का हल्का गुस्सा आ रहा था
"मुझे लगता है वो कुछ छुपा रही है जो हमे नही पता जो तुझे जुड़ा है बस इसीलिए"
"मतलब?" एकांश थोड़ा अब कंफ्यूज था
"मैं जो पुछु बस तू उसका जवाब दे, मुझे बता तुम दोनो अलग क्यों हुए थे" अमर ने पूछा
"तू सब जानता है अमर" एकांश ने मुट्ठियां भींचते हुए कहा
"तू बता यार"
"वो प्यार नही करती मुझसे इसीलिए"
"और ये किसने कहा"
"तू नशा करके आया है क्या, उसने खुद ने और कौन बोलेगा"
"ये कब बोला उसका और क्यों बोला?"
"जब मैने उसे बताया के मैंने हमारे बारे में घर पर बता दिया है और मेरी मां उससे मिलना चाहती है तब उसने कहा था के वो कोई कमिटमेंट नही चाहती है, सेटल होना नही चाहती है और जब मैने उससे कहा के हम प्यार करते है एकदूसरे से तब इसमें प्रॉब्लम क्या है रिश्ते को आगे लेजाने में क्या दिक्कत है तब उसने कहा के वो मुझसे प्यार नही करती उसे बस मेरा अटेंशन मेरा पैसा प्यारा था मैं नही" एकांश ने पूरी कहानी के सुनाई वही अमर अपने ही खयालों में था
"फिर क्या हुआ?" अमर ने आराम से पूछा
"फिर क्या होना I argued के वो झूठ बोल रही है हमारा रिश्ता कैसा था वगैरा लेकिन वो नहीं मानी, मैंने उससे कहा के मेरी आंखों में देख के कहे के वो मुझसे प्यार नही करती और उसने वो कह दिया, बगैर किसी इमोशन के सीधा मेरी आंखों में देखते हुए" एकांश ने अपनी भावनाओं पे कंट्रोल करते हुए कहा
"फिर तूने क्या किया?"
"करना क्या था मैं एक लड़की के सामने अपने आपको एक लड़की के सामने कमजोर दिखाना नही चाहता था मैं वहा से और उसकी जिंदगी से निकल गया"
"उस इंसीडेंट के बाद कभी अक्षिता ने या तूने एकदूसरे से कॉन्टैक्ट करने को कोशिश की?"
"नही, वो मानो मेरी जिंदगी से गायब सी हो गई थी और उसके बाद मैंने उसे यही इसी ऑफिस में 1.5 साल बाद देखा और मेरा यहा इस ऑफिस में होना उसे नही जम रहा था और उसके बिहेवियर से वो मेरे आसपास नही रहना चाहती ये साफ था" एकांश सब बता रहा था और अमर सारी इन्फो ले रहा था
"लेकिन आज तू ये सब क्यों पूछ रहा है?" एकांश ने पूछा
“एकांश देख, शायद मेरी बात तुक ना बनाए लेकिन सच कुछ अलग है, तुझे ये सब अजीब नहीं लगता? बहुत कुछ है जो तुझे नहीं पता” अमर ने कहा
“क्या??”
“हा, तूने जो बोला जो कुछ तुझे पता है जो हुआ सब अधूरा है”
“तू साफ साफ बताएगा क्या कहना चाहता है?”
“मेरे भाई ऐसा है शायद अक्षिता ने तुझसे झूठ बोला है के वो तुझसे प्यार नहीं करती, तेरी बातों से ऐसा लगता है के उस सिचूऐशन मे कीसी बात ने अक्षिता को वो सब कहने फोर्स किया है, वो कुछ तो छिपा रही है, अब अक्षिता के पास उसके अपने रीज़न हो सकते है, शायद वो तुझसे प्यार करती हो लेकिन कह ना पा रही हो” अमर ने एकांश को पूरा मैटर समझाते हुए कहा
“तू समझ रहा है ना तू क्या कह रहा है? सब बकवास है ये, उसने दिल तोड़ा है मेरा, टु अच्छी तरह जानता है मैंने उसकी वजह से कितना सहा है? और अब तू कह रहा है वो प्यार करती है मुझसे... तू पागल हो गया है क्या?” एकांश ने थोड़ा गुस्से मे कहा, उसकी आंखे भी लाल हो रही थी
“जानता हु भाई सब जानता हु और इसीलिए इस मैटर की गहराई मे जाना चाहता हु, मैंने ऐसे ही उसका पीछा नहीं किया है, मैंने उसके बारे मे उसकी जिंदगी के बारे मे उसके कैरेक्टर के बारे मे जानने के लिए किया और मेरे भाई मैं दावे के साथ कह सकता हु के वो थोड़े अटेन्शन और फेम के लिए कीसी को धोका देने वालों मे से तो नहीं है” अमर एक सास मे बोल गया वही एकांश बस सुन रहा था
“तू खुद सोच तुझे ये सब अजीब नहीं लगता अगर उसे फेम और अटेन्शन ही चाहिए था तो वो तो तेरे साथ रहके भी आसानी से मिल सकता था, वो आंटी से मिल लेती तुम्हारी शादी हो जाती और ये सब आसानी से उसका होता, रघुवंशी परिवार की बहु बनने से कौनसी लड़की मना करेगी, उसकी जगह कोई और लड़की होती तो खुशी खुशी तेरेसे शादी कर लेती लेकिन उसने तुझे रिजेक्ट कर दिया, इसमे कुछ गड़बड़ है ऐसा नहीं लगता तुझे? मतलब अगर उसे पैसा अटेन्शन ही चाहिए था तो ये सब तेरे पास भी था फिर उसने तुझे रिजेक्ट क्यू किया, अगर उसे सच मे तुझे धोका देना होता तो ये तो वो तुझसे शादी करके कर लेती, पैसा मिलता वो अलग लेकिन उसने ये नहीं किया, कुछ तो है जो हमे नहीं पता और वो छिपाने मे माहिर है और अब हमे असल रीज़न पता करना है” इसीके साथ अमर ने अपनी बात खत्म की
अमर की बातों ने एकांश को सोचने पे मजबूर कर दिया था, अमर की बाते एकदम सही थी और ये सवाल तो उसने भी कई बार खुद से किया था के जिस लड़की को उसने इतना चाहा था वो उसे धोका कैसे दे सकती थी
“ठीक है, समझ गया और सच कहू तो मैंने भी सोचा था इस बारे मे लेकिन कभी कुछ जवाब नहीं मिला, ऐसा क्या रीज़न होगा के उसे ये करना पड़ा” अब एकांश भी अपनी सोच मे डूबा हुआ था
“मेरे दिमाग मे एक बात है लेकिन....” अमर बोलते हुए रुका
“क्या बात है बता...”
“तुझे याद है मैंने कहा था के मैंने इसे कही देखा है?” अमर अब भी दुविधा मे था के बताए या नहीं
“हा और अब प्लीज साफ साफ बात”
“मैंने उसे 1.5 साल पहले एक मॉल के बाहर कीसी से बात करते देखा था, इन्फैक्ट वो बात करते हुए रो रही थी” अमर ने कहा और एकांश को देखा
“कौन था वो?” एकांश ने पूछा और अब जो अमर बताने वाला था उसे सुन शायद एकांश को एक काफी बड़ा झटका मिलने वाला था
“मैंने उसे 1.5 साल पहले एक मॉल के बाहर कीसी से बात करते देखा था, इन्फैक्ट वो बात करते हुए रो रही थी” अमर ने कहा और एकांश को देखा
“कौन था वो?” एकांश ने पूछा और अब जो अमर बताने वाला था उसे सुन शायद एकांश को एक काफी बड़ा झटका मिलने वाला था
“तुम्हारी मा.....”
“तू समझ रहा है ना तू क्या बोल रहा है तो?” एकांश को अमर की बात पर यकीन ही नहीं हो रहा था जो स्वाभाविक भी था, अक्षिता के उससे दूर जाने के पीछे उसकी मा होगी ये उसने सोचा भी नहीं था
“मैं जानता हु यकीन करना मुश्किल है लेकिन मैं बहुत सोच के बोल रहा हु एकांश, करीब डेढ़ साल पहले की बात है मैं सिटी मॉल जा रहा था तब मैंने वहा आंटी को देखा था जो शायद कीसी को ढूंढ रही थी, आंटी को वहा देख मैंने गाड़ी पार्क की और उनके पास जाने लगा लेकिन तब तक मैंने देखा के वहा एक लड़की भी आ गई थी जिसे लेकर आंटी थोड़ा साइड मे एक कॉर्नर मे चली गई, वो लड़की उनसे बात कर रही थी और बात करते करते वो लड़की रोने लगी थी और फिर उसने आंटी से कुछ कहा और वहा से चली गई,” अमर ने एकांश को पूरी बात बताई और ये सब सुन के एकांश के चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था, अमर ने आगे बोलना शुरू किया
“एकांश सुन, मैं बस वो बता रहा हु जो मैंने उस दिन देखा था और पूरा सच क्या है मुझे भी नहीं पता, बात कुछ और भी जो सकती है और यही जानने के लिए मैं अक्षिता का पीछा कर रहा था, सिम्पल लड़की है यार और उसके मा बाप भी ऐसे नहीं है के वो उसे कीसी बात के लिए रोकते हो, उसे शायद पता चल गया था के मैं उसका पीछा कर रहा हु इसीलिए सतर्क हो गई वो, वो बाते छिपाने मे माहिर है भाई इसीलिए असल सच पता ही नहीं चल पाया” अमर ने एकांश के कंधे पे हाथ रखते हुए कहा
“क्या अक्षिता का मुझे धोका देने के पीछे मा का हाथ हो सकता है?” एकांश ने अमर से पूछा और पूछते हुए उसकी आवाज कांप रही थी
“शायद, या शायद नहीं भी लेकिन अब यही तो हमे पता लगाना है” अमर ने कहा
“पता क्या लगाना है मैं अभी सीधा जाकर मॉम से इस बारे मे बात करता हु” एकांश ने अपनी जगह से उठते हुए कहा
“नहीं!! फिलहाल तो ऐसा बिल्कुल नहीं करना है, अगर इस सब मे उनकी कोई गलती नहीं हुई तो उन्हे हर्ट होगा और अगर उनकी गलती रही तो वो शायद इस बात से अभी अग्री ही नहीं करेंगी” अमर ने एकांश को रोका
“तो अब क्या करे तू ही बता?” एकांश ने चिल्ला के पूछा
“देखा आंटी से पुछ के भी तुझे पूरा सच पता चलेगा इसकी कोई गारेंटि नहीं है, हम तो ये भी नहीं जानते के हमारे अनुमान कितने सही है और इतने गलत है और इस सब की वजह से कीसी अपने को हर्ट हो खास कर आंटी को तो ये बिल्कुल सही नहीं होगा” अमर ने अपनी बात आराम से कही
“हम्म, पहले अक्षिता के बारे अपने मे जो अपने अनुमान है उनको देखते है सही है या गलत, कल रात के बाद मैं इतना तो शुवर हु के कनेक्शन तो अब भी है” एकांश ने शांत होते हुए कहा, वो वापिस अपनी जगह पर बैठ गया था
"करेक्ट, और कुछ तो बड़ा रीजन है जो हमको पता लगाना है" अमर ने कहा
"हम्म, लेकिन कैसे पता करेंगे?"
"पहले तो ये देखते है उसके मन में तेरे लिए फीलिंग्स है या नही इस और से कन्फर्म होना सही रहेगा"
"और ये कैसे करेंगे?"
"अबे तू ढक्कन है क्या, इतनी बड़ी कंपनी संभालता है और इतनी समझ नही है, तूने प्यार किया है उससे भाई, तुझे तो अच्छे से पता होना चाहिए उसके बारे में उसके नेचर के बारे में कौनसी बात उसे सबसे ज्यादा एफेक्ट करती है इस बारे में"
"हा हा पता है"
"पता है तो बता फिर"
"अक्षिता न सिंपल लड़की है, वो बस दिखने मे सरल है लेकिन है काफी चुलबुली, छोटी छोटी बातों मे खुश हो जाती है और छोटी छोटी बातों मे नाराज भी, हम जब रीलेशनशीप मे थे तब उसका पोस्ट ग्रैजवैशन चल रहा था फिर भी हम लगातार मिलते है, पार्क हमारे मिलने का ठिकाना था, अगर कभी मुझे देर हो जाए या मैं कीसी काम मे हु और उसका फोन ना उठाऊ तो पैनिक कर देती थी वो, और अगर कभी मेरी तबीयत खराब हो जाए तो आँसू उसकी आँखों से निकलते थे, वो मुझे तकलीफ मे नहीं देख सकती थी और अगर गलती से कोई लड़की मेरे से बात कर ले या आसपास भी आ जाए तो उसे जलन भी होने लगती थी, मैंने उसको कई गिफ्ट दिए थे लेकिन उसके बर्थडे पर मैंने उसे एक लॉकेट दिया था जो उसे बेहद पसंद था और वो जहा भी रहे कुछ भी करे वो लॉकेट हमेशा उसके गले मे रहता था, कहती थी मुझपर ब्लू कलर सूट करता है इसीलिए उसने मुझे ब्लू शर्ट भी गिफ्ट किया था....” एकांश बोल रहा था पुरानी यादे अमर को बता रहा था और अमर सब सुन रहा था
एकांश के चेहरे पर इस वक्त कई सारे ईमोशन बह रहे थे और अमर चुप चाप उसे देख रहा था, अक्षिता के बारे मे बात करते हुए एकांश की आँखों मे एक अलग ही चमक थी जो अमर से छिपी हुई नहीं थी, एकांश ने अमर को देखा जो उसे ही देख रहा था
“तू अब भी उसे उतना ही चाहता है, हैना?” अमर ने एकांश के चेहरे पर आते भावों को देख पूछा
“क.. क्या... नहीं!! पुरानी बाते है अब वो” एकांश ने कहा लेकिन अमर उसकी बात कहा मानने वाला था
“जब कुछ है ही नहीं भोसडीके तो हम यहा पापड़ बना रहे है क्या,”
“नहीं, मैं बस ये जानना चाहता हु के उसने मुझे क्यू छोड़ा, बस।“
“ठीक है मत बता, लेकिन अब पुरानी बातों मे घूम के समझ आया आगे क्या करना है या वो भी मैं ही बताऊ?”
“समझ गया, देखते है उसके मन मे मेरे लिए क्या है तो”
“गुड, कल की तयारी करो फिर चल मैं निकलता हु” इतना बोल के अमर वहा से निकल गया
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अगले दिन
अक्षिता अगले दिन हमेशा को तरह ऑफिस पहुंच चुकी थी लेकिन हमेशा वाले जॉली मूड में नहीं थी बल्कि उसके चेहरे पर एक उदासी थी, पार्टी को बात तो उसके दिमाग से एकदम ही निकल गई थी, उसके जगह कई और खयाल इसके दिमाग में घूम रहे थे
अक्षिता ने एक लंबी सास छोड़ी और हाथ में एकांश को कॉफी का कप लिए उसके केबिन का दरवाजा खटखटाया
"कम इन"
अंदर से आवाज आया जिसे सुन अक्षिता थोड़ा चौकी, आज एकानशंका आवाज कुछ अलग था, उसका आवाज हमेशा को तरह सर्द नहीं था बल्कि उसके आवाज में थोड़ी एक्साइटमेंट थी
अक्षिता ने दरवाजा खोला और अंदर आई
"सर आपकी कॉफी" अक्षिता ने कॉफी टेबल पर रखते हुए कहा
"थैंक यू" एकांश ने कॉफी का कप उठाते हुए मुस्कुराते हुए कहा और अब तो अक्षिता काफी हैरान थी एक तो एकांश उसे थैंक यू बोला था ऊपर से उसको देख मुस्कुराया भी था
"Take your seat miss Pandey" एकांश ने कहा और अब ये अक्षिता के लिए दूसरा झटका था के काम के बीच एकांश उसे बैठने के लिए कहे, वो जब बेहोश हुई थी तब के अलावा एकांश ने उसे कभी ऐसे बैठने नहीं कहा था बल्कि वो तो हमेशा उसका काम बढ़ाता था, खैर अक्षिता वहा बैठ गई
"तो, अब कैसी है आप?" एकांश ने पूछा एकांश ने और अक्षिता थोड़ी हैरत के साथ उसे देखने लगी
‘इसको क्या हो गया अचानक, ये आज पुराना एकांश कैसे बन गया’
"सर आप ठीक है ना?" अक्षिता के मुंह से अचानक निकला
"हा, हा मैं एकदम ठीक हु, थैंक यू फॉर आस्किंग" एकांश ने वापिस मुस्कुराते हुए जवाब दिया
और अब बस अक्षिता ने एक पल उसे देखा और फिर सीधा उसके केबिन से बाहर निकल गई और बाहर जाकर सीधा सीढ़ियों के पास रुकी और एकांश के केबिन के बंद दरवाजे को देख सोचने लगी
‘इसको अचानक क्या हो गया? ये इतनी मीठी तरह से बात क्यू कर रहा है? ये डेफ़िनटेली एकांश नहीं है, ये वो खडूस है हि नहीं’
और यही सब सोचते हुए अक्षिता वहा से निकल कर अपने फ्लोर पर अपनी डेस्क कर आकार अपने काम मे लग गई वही एकांश अपने केबिन मे बैठा अक्षिता को वहा से जाते देखता रहा
‘इसको क्या हो गया अचानक?’
‘ये ऐसे भाग क्यू गई?’
‘शीट! कही मेरे बदले हुए बिहैव्यर ने डरा तो नहीं दिया इसको?”
‘लेकिन मैं भी क्या करू जब से पता चला है के शायद अक्षिता ने मुझे धोका नहीं दिया है मैं खुद को रोक ही नहीं पाया’
एकांश के मन मे यही सब खयाल चल रहे थे का तभी उसने दरवाले पर नॉक सुना और अमर अंदर आया
“यो एकांश क्या हुआ? बात बनी?” अमर ने आते साथ ही पूछा
“वो भाग गई”
“क्या?? कैसे?? क्या किया तूने?” अमर ने एकांश के सामने की खुर्ची पर बैठते हुए पूछा
“मैंने बस उसको कॉफी के लिए शुक्रिया बोला था और थोड़ा हस के बात कर ली थी और कुछ नहीं और वो ऐसे भागी जैसे कोई भूत देखा हो” एकांश ने कहा और अमर उसकी बात सुन हसने लगा
“तूने उसको हस के देखा फिर थैंक यू बोला और तू कह रहा है तूने कुछ नहीं किया, अबे चूतिये एकांश रघुवंशी है तू, ऐरगन्ट है अकड़ू है अपने खुद का बत्राव याद कर पिछले कुछ समय का खासतौर पर कंपनी टेकओवर के बाद का और फिर तुम अक्षिता से उम्मीद करते हो के वो डरे ना, वाह बीसी” अमर ने हसते हुए कहा
“सही मे ऐसा है क्या”
“हा, अब लगता है उसकी फीलिंगस बाहर लाने कोई तिकड़म लगाना पड़ेगा”
“तो क्या करे?”
“उसको बुला यह”
जिसके बाद तुरंत ही एकांश ने अक्षिता को अपने केबिन मे आने को कहा
“गुड अब मैं बताता हु वैसा करना”
वही दूसरी तरह अक्षिता एकांश के केबिन मे नहीं जाना चाहती थी फिर भी बॉस का हुकूम था तो करना ही था उसने केबिन का दरवाजा खटखटाया और कम इन का आवाज आते ही अंदर गई उसने देखा के एकांश अपनी खुर्ची पर बैठा था और उसके पास एक बंदा खड़ा था
“सर आपने बुलाया मुझे?’ अक्षिता ने अंदर आते कहा
और फिर अक्षिता ने देखा के वो बंदा अमर था और वो एकांश के पास से दूर हट रहा था और अक्षिता ने जैसे ही एकांश को देखा उसके चेहरे पर डर की लकिरे उभर आई
“अंश” अक्षिता चिल्लाई और दौड़ के एकांश के पास पहुची
एकांश के हाथ से खून बह रहा था और अक्षिता ने उसका वो हाथ अपने हाथ मे लिया और अपने दुपट्टे से उसके हाथ से बहता खून सायद कर खून रोकने की कोशिश करने लगी, वही एकांश तो अपने लिए अक्षिता के मुह से अंश सुन कर ही खुश हो रहा था, बस वही थी जो उसे अंश कह कर बुलाती थी और ये हक कीसी के पास नहीं था
“ये खून, ये कैसे हुआ?” अकसीता ने पूछा, उसकी आँख से आँसू की एक बंद टपकी
“टेबल पर रखा पानी का ग्लास टूट गया और टूटे कांच से चोट लगी है” अमर ने अक्षिता के रोते चेहरे को देख कहा, एकांश ने सही कहा था वो उसे दर्द मे नहीं देख सकती थी
“तो तुम यह बुत की तरह क्या खड़े को देख नहीं रहे अंश को चोट लगी है जाओ जाकर फर्स्ट ऐड लेकर आओ, वो वहा कैबिनेट मे रखा है” अक्षिता ने अमर से चीखते हुए कहा वही एकांश के चेहरे पर स्माइल थी
“और तुम, तुम क्यू मुस्कुरा रहे हो, चोट लगी है और तुमको हसी आ रही है, मैंने कोई जोक सुनाया क्या? तुम इतने लापरवाह क्यू हो देखा चोट लग गई ना” अक्षिता ने लगे हाथ एकांश को भी चार बाते सुना दी
अमर ने फर्स्ट ऐड लाकर अक्षिता को थमाया और वो एकांश की पट्टी करने लगी वही एकांश बस उसे देख रहा था, अक्षिता की नजर जब उसपर पड़ी तो एकांश की आखों मे उमड़ते भाव उसे डराने लगे थे
अक्षिता ने वहा खड़े अमर को देखा जो उन दोनों को देख मुस्कुरा रहा था
“सुनो” अक्षिता ने अपनी आंखे पोंछते हुए अमर से कहा
“मैं?”
“हा तुम ही और कोई है क्या यहा, इसे अस्पताल ले जाओ और अच्छे से पट्टी करवा देना और वो दवाईया डॉक्टर दे वो देना” अक्षिता ने अमर को ऑर्डर दे डाला लेकिन अमर वैसे ही खड़ा रहा
“अब खड़े खड़े क्या देख रहे हो... जाओ” जब अमर अपनी जगह से नहीं हिला तब अक्षिता ने वापिस कहा
जिसके बाद अक्षिता एकांश को ओर मुड़ी
"और तुम हॉस्पिटल से सीधा घर जाकर आराम करोगे, तब तक मैं यहा का देखती हु" अक्षिता ने कहा और एकांश ने बगैर कुछ बोले हा में गर्दन हिला दी
अमर एकांश को लेकर हॉस्पिटल के लिए निकल गया था
"साले तेरी वजह से उसने मुझे भी डाटा" अमर बोला
"हा तो चोट भी तो तूने ही दी गई"
"वाह बेटे एक तो मदद करो और फिर बाते भी सुनो, चल अब"
"वैसे इस सब में मुझे एक बात तो पता चल ही गई है, फीलिंग तो अब भी है वो मेरी केयर तो अब भी करती है" एकांश बोला
"केयर, अंधा है क्या, जैसे वो रो रही थी मुझे ऑर्डर दे रही थी के बस केयर नही है भाई ये उससे कुछ ज्यादा है, और अब तो मैं श्योर हु के सच्चाई कुछ और ही है"
अगले दिन अक्षिता का ऑफिस जाने का बिल्कुल मन नहीं था वो ये सोच रही थी के आज क्या देखने मिलेगा, एकांश का कल उसके प्रति बदला हुआ बर्ताव उसे डरा रहा था और वो ये सोचने मे लगी हुई थी के एकांश को अचानक क्या हो गया है, वो अचानक उससे अच्छे से बात करने लग गया था ऊपर से उसे देख स्माइल भी कर रहा था और अब अक्षिता को अचानक आए इस बदलाव का रीज़न समझ नहीं आ रहा था
कल ऑफिस से आने के बाद भी अक्षिता खुद से ही खफा थी, उसे एकांश को चोटिल देख इम्पल्सिव नहीं होना चाहिए था लेकिन वो एकांश को दर्द मे भी नहीं देख सकती थी और एकांश के हाथ से बहता खून देख वो पैनिक हो गई थी और कब रोने लगी उसे भी पता नहीं चला
इन्ही सब खयालों मे अक्षिता रात भर ठीक तरह से सो नहीं पाई थी वही वो इतना तो समझ चुकी थी के एकांश के इस बदले हुए बर्ताव के पीछे हो न हो अमर का हाथ जरूर है
खैर अक्षिता ऑफिस पहुच चुकी थी और अपने दिमाग मे चल रहे इन सब खयालों को बाजू करके उसने बस अपने काम पे फोकस करने का फैसला किया था
जैसे ही वो अपने ऑफिस फ्लोर पर पहुची तो आज वहा का महोल थोड़ा अलग था, अक्षिता के ऑफिस का फ्लोर एकदम शांत था, कोई कुछ नहीं बोल रहा था और लगभग लोगों के चेहरे पर कन्फ़्युशन और शॉक के भाव थे
अक्षिता अपने डेस्क पर पहुची, अब क्या हुआ है इसनी शांति क्यू है के जानने की उसे भी उत्सुकता थी, उसने रोहन और स्वरा को देखा जिनके चेहरे भी बाकियों जैसे ही कन्फ्यूज़ थे
“गाइज क्या हुआ है?” अक्षिता ने पूछा
उनलगो के अक्षिता को देखा
“तुझे यकीन नहीं होगा अभी क्या हुआ है” रोहन ने कहा
“क्या हो गया?”
“एकांश रघुवंशी मुसकुराते हुए ऑफिस मे घुसे, और स्माइल के साथ हम सभी को ग्रीट किया, आज पहली बार बॉस को ऐसे मूड मे देखा है सबने तो बस थोड़े कन्फ्यूज़ है वरना तो वो बंदा बस काम की ही बात करता है बाकी तो कीसी से बोलते भी नहीं सुना उसे और आज वो बंद उछलते हुए चल रहा था जैसे कीसी बच्चे को मनचाही चीज मिल गई हो अब ये थोड़ा शॉकिंग तो है ना“ स्वरा ने पूरा सीन अक्षिता को बताया जिसे सुन के अक्षिता भी थोड़ा हैरान तो हुई
“तुम्हें बॉस को देखना चाहिए था अक्षु, ऐसा लग रहा था ये कोई अलग ही बंदा है” रोहन ने कहा
‘इसको अचानक हो क्या गया है?’
अक्षिता ने मन ही मन सोचा खैर एकांश मे आया हुआ ये बदलाव तो वो कल से देख रही थी इसीलिए उसने ज्यादा नहीं सोचा, उसने घड़ी को देखा तो वो 10 मिनट लेट थी, उसने कैन्टीन मे जाकर झट से एकांश की कॉफी ली और उसके केबिन की ओर चल पड़ी और वहा पहुच कर दरवाजा खटखटाया
“कम इन” अंदर से एकांश ने आराम से कहा और अक्षिता अंदर गई
“सर, आपकी कॉफी, सॉरी सर वो थोड़ा लेट हो गया” अक्षिता ने कॉफी टेबल पर रखते हुए एकांश को देख कहा
“नो प्रॉब्लेम, मिस पांडे” एकांश ने अक्षिता को स्माइल देते हुए कहा
“आपको हुआ क्या.....” अक्षिता कुछ बोलने ही वाली थी के उसने अपने आप को रोक लिया और वो एकांश को शॉक होकर देख रही थी और चुप हो गई ये देख एकांश बोला
“क्या हुआ कुछ कह रही थी?” एकांश ने कन्फ्यूज़ बनते हुए कहा
अक्षिता एकांश को देखते हुए अपनी जगह जम गई थी, उसने देखा के एकांश ने उसके फेवरेट कलर की शर्ट पहनी हुई थी और उसमे भी वो शर्ट जो उसने ही उसे गिफ्ट करी थी, और अक्षिता को वो शर्ट अच्छे से याद थी क्युकी काफी यूनीक डिजाइन की शर्ट थी जिसे ढूँढने मे भी उसका काफी वक्त गया था
और इस बात मे कोई दोराय नहीं थी के एकांश पर वो शर्ट काफी जच रही थी उसपे जो उसने ब्लैज़र पहना था वो भी परफेक्टली मैच कर रहा था और एकांश पर से उसकी नजर नहीं हट रही थी
अक्षिता के दिल की धड़कने बढ़ रही थी उसने एक लंबी सास ली और अपनी बढ़ती हुई धड़कनों को काबू किया वही एकांश बस अक्षिता के चेहरे पर आते अलग अलग ईमोशनस् को समझने की कोशिश कर रहा था
“आप ठीक है मिस पांडे?” एकांश ने पूछा, वो समझ गया था के अक्षिता उस शर्ट को पहचान चुकी थी
“हम्म...” अक्षिता ने कहा, वो अब और वहा नहीं रुकना चाहती थी उसे वहा सास लेना भी मुश्किल लग रहा था पुरानी यादे वापिस से उसके दिमाग मे जमने लगी थी और उन्ही यादों के चलते उसकी आंखे भर आ रही थी, उसने कस के अपनी आंखे बस की अपना गला साफ किया और आंखे खोल एकांश को देखा
“सर, अगले एक घंटे मे आपकी एक मीटिंग है मुझे वप ऑर्गनाइज़ करनी है प्लीज इक्स्क्यूज़ मी” अक्षिता ने कहा और वहा से निकल गई
अक्षिता वहा से निकल कर सीधा वाशरूम मे गई और दरवाजा बंद कर उससे टिक कर अपनी आंखे बंद कर ली
‘क्यू एकांश ये सब क्यू कर रहे हो?’
‘चाहता क्या है ये, इसे ये सब करके क्या मिल जाएगा?’
‘इसने वो शर्ट क्यू पहनी है जो मैंने इसे गिफ्ट की थी?’
‘इसे तो मुझसे नफरत करनी चाहिए’
‘या ये यह सब इसलिए कर रहा है ताकि मुझे तकलीफ पहुचा सके’
‘एकांश तुम मेरे लिए सिचूऐशन और मुश्किल बना रहे हो’
यही सब सोचते हुए अक्षिता की आँखों से आँसू की बंद गिरी, उसने अपने आप को ठीक किया मुह पर पानी मारा और अपने आप को काम के लिए रेडी किया
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“हा बोल इतना अर्जन्ट क्यू बुलाया” अमर एकांश के सामने वाली खुरची पर बैठता हुआ बोला
“कुछ नहीं हुआ” एकांश ने कहा
“क्या!”
“हा, तू ही बोला था न वो शर्ट पहनने जो उसने गिफ्ट की थी और फिर बोला था के वो कुछ रीऐक्ट करेगी”
“हा तो”
“तो उसने कुछ रीऐक्ट नहीं किया, उसने बस मुझे देखा फिर शर्ट को देखा फिर मुझे मेरी मीटिंग के बारे मे बताया और चली गई” एकांश ने कहा
“ओह”
“ओह, बस यही बोलेगा तू इसपर” एकांश को अब थोड़ा गुस्सा आ रहा था
“तो और क्या बोलू, मुझे लगा ये काम करेगा, देख फीलिंग तो है बस डबल शुवर होना है और भाई वो फीलिंगस् छिपाने मे बहुत माहिर है”
“तो अब क्या करना है?’
“डोन्ट वरी एक और प्लान है अपने पे फिर सब एकदम क्लियर हो जाएगा” अमर ने कहा
“अब बोल बचन कम दे और करना क्या है वो बता” एकांश ने कहा
“देख तूने कहा था के तूने उसे एक लॉकेट गिफ्ट किया था बराबर, और वो लॉकेट उसे काफी पसंद है मतलब उसके दिल के एकदम करीब है और वो उसे यही भी जाए कुछ भी हो अपने से अलग नहीं करती बराबर, तो अब हमे यही देखना है के वो लॉकेट अब भी उसके गले मे है या नहीं, अगर लॉकेट रहा तो समझ लियो के उसने धोका नहीं दिया था दिलवाया गया था, तो अब तू उसे पहले फोन करके यह बुला” अमर ने कहा
“और फिर?”
“फिर मैं उसके रास्ते मे टांग डाल के उसे गिराने की कोशिश करूंगा”
“और मैं तेरा मुह तोड़ दूंगा”
“अबे यार तू आराम से बात तो सुन पहले, और कोई रास्ता नहीं है” अमर ने कहा
“लेकिन उसको ऐसे गिरने नहीं दे सकता”
“तो तेरे पास कोई और आइडीया है?”
“कुछ दूसरा सोचने ले भाई”
“टाइम नहीं है और डायरेक्ट जाकर लॉकेट के बारे मे पुछ नहीं सकते तो बस यही एक ऑप्शन है” अमर ने अपनी बात पूरी करते हुए कहा
“ठीक है लेकिन संभाल कर”
“हा हा वो देखेंगे अब सुन, वो आएगी, मैं टांग अड़ा कर उसे गिराऊँगा वो वो नीचे की ओर झुकेगी तो तू उतने मे देख लियो के उसके गले मे लॉकेट है या नहीं, और वैसे भी तू भी यही है तू उसे गिरने थोड़ी देगा” आइडीया काफी ज्यादा क्रिन्ज था लेकिन एकांश ने हामी भर दी
“ओके”
“बस इतना ध्यान मे रखियों के उसके लॉकेट को छिपाने के पहले टु देख ले के उसके वो पहना है” अमर ने कहा
“और अगर तेरा ये प्लान उलट फिर गया तब?’
“तो वापिस सैम प्रोसेस रीपीट”
“नहीं, इंसान है वो खिलौना नहीं है चूतिये ऊपर से वो लड़की है उसे हम ऐसे हर्ट नहीं कर सकते बेटर ये प्लान एक बारी मे ही काम करे”
“ठीक है भाई, उसे हर्ट नहीं होगा इसका ध्यान रखेंगे अब बुलाया उसको”
“ओके”
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अक्षिता आज के मीटिंग की रिपोर्ट बना रही थी के तभी एकांश ने उसे कॉल करके कुछ फाइलस् लाने कहा और उसने भी ऑर्डर फॉलो करते हुए फाइलस् उठाई और एकांश के केबिन की ओर बढ़ गई, कम इन का आवाज सुनते ही वो केबिन मे आई तो वहा उसके स्वागत के लिए अमर अपनी बत्तीसी दिखते खड़ा था वही एकांश थोड़ा नर्वस था,
अमर वो वहा देखते ही अक्षिता ये तो समझ गई थी के दाल मे कुछ तो काल है और अब आगे क्या होगा ये वो सोचने लगी
अक्षिता उन लोगों की ओर बढ़ी, अमर एक एक नजर एकांश को देखा और अब अक्षिता अमर को पास करने की वाली थी के अमर ने उसके रास्ते मे अपनी एक टांग आगे बढ़ा दी
लेकिन अक्षिता जिसे क्या हो रहा है इसका कुछ आइडीया नहीं था वो अमर ने पैर कर पैर देकर आगे बढ़ गई और अक्षिता की पैरों की हील से अमर के ही पैर मे दर्द उठ गया
अक्षिता की हील पैर मे घुसते ही अमर के मुह से एक हल्की चीख निकली
“क्या हुआ?” अक्षिता ने अमर की चीख सुन उसके पास जाते हुए पूछा
“तुमने तुम्हारी हील मेरे पैर मे घुसेड़ दी ये हुआ” अमर ने दर्द मे बिलबिलाते हुए कहा
“तो तुम ऐसे पैर निकाल कर क्यू बैठे थे?”
“ऐसे ही मेरी मर्जी” अमर ने कहा
“सॉरी” अक्षिता ने कहा, वो बहस के बिल्कुल मूड मे नहीं थी उसने एकांश को देखा जो अमर को ही घूर रहा था
“सर ये फाइलस् जो आपने मँगवाई थी” और उसने वो फाइलस् एकांश को पकड़ा दी
“थैंक यू” एकांश ने फाइलस् लेते हुए कहा
अक्षिता ने भी हा मे गर्दन हिलाई और जाने के लिए मुड़ी ही थी के नीचे फ्लोर पर गिरे कुछ कागजों पर से उसका पैर फिसला और वो गिरने की वाली थी के एकांश ने उसे कमर से पकड़ कर गिरने से बचा लिय, अब सीन कुछ ऐसा था के एकांश ने एक हाथ मे फाइलस् पकड़ी थी वही उसका दूसरा हाथ अक्षिता की कमर कर था और अक्षिता झुकी हुई थी उसके बाल उसके चेहरे पर आ रहे थे वही दूसरी तरफ अमर अपने पैर को सहलाते हुए नीचे की ओर झुका हुआ था, जैसे ही एकांश ने अक्षिता को गिरने से बचाया वैसे ही अमर से अक्षिता के बाली के बीच से उसकी गर्दन पर लटक रही चैन और उसमे लगे लॉकेट को देखा
और ये सब बस कुछ ही पलों मे हुआ, अक्षिता ने अपने आप को संभाला सही से खड़े होकर अपने बाल सही करके एकांश को थैंक यू कह कर जल्दी से वहा से निकल गई और उसके जाते ही एकांश ने अमर को देखा जो नीचे की ओर देख रहा था
“अमर” एकांश ने आराम से अमर को पुकारा
अमर ने एकांश को देखा, उसके चेहरे के इक्स्प्रेशन देख के एकांश थोड़ा डर रहा था, अमर ने एकांश को देखा और डिसअपॉइन्ट्मन्ट मे अपना सर हिलाने लगा