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”अच्छा, मैं तो समझा था तू चाँद पर है।“ ”मजाक मत करो प्लीज, गौर से मेरी बात सुनो।“ ”नहीं सुनता कोई जबरदस्ती है।“ ”ओफ-हो! विक्रांत।“ वह झुंझला सी उठी- ”कभी तो सीरियस हो जाया करो।“ उसकी झुंझलाहट में कुछ ऐसा था जिसे मैं नजरअंदाज नहीं कर सका, तत्काल संजीदा हुआ। ‘‘सुन रहे हो या मैं फोन रखूं।‘‘ वो मानों धमकाती हुई बोली। ”अरे-अरे तू तो नाराज हो गई, अच्छा बता क्या बात है, वहां सब खैरियत तो है।“ ”पता नहीं यार! यहां बड़े अजीबो-गरीब वाकयात सामने आ रहे हैं। कुछ समझ में नहीं आ रहा क्या करूं।‘‘ ”तू ठीक तो है।“ ”हाँ तुम सुनाओ क्या कर रहे हो?“ ”झख मार रहा हूँ।“ वह हँस पड़ी। क्या हंसती थी कम्बख्त, दिल के सारे तारों को एक साथ झनझनाकर रख देती थी। ”सोचता हूं जासूसी का धंधा बंद करके, मूँगफली बेचना शुरू कर दूँ।“ ”नॉट ए बैड आइडिया बॉस, लेकिन मूँगफली नहीं गोलगप्पे! सच्ची मुझे बहुत पसंद हैं।“