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रहीं। फिर बहुत जल्दी हम अच्छे दोस्त बन गये। आज तक यह दोस्ती ज्यों की त्यों बरकरार थी। मैं उसके कमरे में पहुँचा वो कुछ लिखने में व्यस्त थी। ”हैल्लो।“ - मैं धीरे से बोला। ”हैल्लो“ - उसने सिर ऊपर उठाया और चहकती सी बोली -‘‘हल्लो विक्रांत प्लीज हैव ए सीट।’ ”नो थैंक्स मैं जरा जल्दी में हूँ।“ ‘‘कभी-कभार मेरे लिए भी वक्त निकाल लिया करो यार! वो कहावत नहीं सुनी चिड़ी चोंच भर ले गई, नदी ना घटियो नीर। मुझे वो चोंच भर ही दे दिया करो कभी।‘‘ ‘‘ताने दे रही हो?‘‘ ‘‘हां मगर तुम्हारी समझ में कहां आता है।‘‘ कहकर वो हंस पड़ी मैंने उसकी हंसी में पूरा साथ दिया। ”कहीं बाहर जा रहे हो।“ ”हाँ?“ ”कहाँ?“ मैंने बताया। ”किसी केस के सिलसिले में या फिर.....।“ ”मालूम नहीं।“ ”लेकिन जा रहे हो।“