• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Fantasy HAWELI (purani haweli, suspence, triller, mystry)

gauravrani

Active Member
910
1,312
123
”किसी ने मेरी जान लेने की कोशिश की थी, मजबूरन मुझे जवाबी फायर करना पड़ा।“ ”ली तो नहीं जान।“ ”मेरी किस्मत जो बच गया, मुझपर पर चलाई गयी तीन-तीन गोलियों के बाद भी बच गया।“ ”काफी अच्छी किस्मत पाई है तुमने नहीं?“ ”जी हाँ-जी हाँ।“ - मैं तनिक हड़बड़ा सा गया। जाने किस फिराक में था वह पुलिसिया। ”वो तुम्हारी जान क्यों लेना चाहते थे?“ ”मालूम नहीं।“ ”भई जासूस हो कोई अंदाजा ही बता दो।“ ”शायद वो मुझे लूटना चाहते थे।“ मेरी बात सुनकर वो हो-हो करके हँस पड़ा। ”क्या हुआ?“ मैं सकपका सा गया। ”भई अपने महकमे में एक सीनियर और काबिल इंस्पेक्टर समझा जाता है मुझे और इत्तेफाक से ये कोतवाली भी मेरे अंडर में ही है। जबकि तुम तो लगता है मुझे कोई घसियारा ही समझ बैठे हो।“ ”मैंने ऐसा कब कहा जनाब?“ ‘‘कसर भी क्या रह गई? भला लूटने का ये भी कोई तरीका होता है कि पहले अपने शिकार को गोली मार दो और बाद में उसका माल लेकर चम्पत हो जाओ।“
 

gauravrani

Active Member
910
1,312
123
”नहीं होता!“ ”हरगिज भी नहीं, अगर उनका इरादा तुम्हें लूटने का होता तो वे तुम्हें पहले धमकाते, बाद में न मानने पर यदि गोली चलाते तो बात कुछ समझ में आती। बजाय इसके उन लोगों ने सीधा तुम पर फायर झोंक दिया। इसके केवल दो ही अर्थ निकाले जा सकते हैं या तो हमलावर तुम्हें डराना चाहते थे या फिर तुम्हारी जान लेना चाहते थे।“ ”यूँ ही खामखाह।“ ”ये बात तुम मुझसे बेहतर समझते हो, जहाँ तक मेरा अनुमान है तुम्हे हवेली में रह रही उस दूसरी लड़की ने यहां बुलाया है, निश्चय वो तुम्हारी कोई जोड़ीदार है। हवेली में फैले अफवाहों को तुम कैसे दूर करते हो, कथित भूत-प्रेतों, नरकंकालों से कैसे निपटते हो मैं नहीं जानना चाहता। मगर इतनी चेतावनी जरूर देना चाहता हूँ कि उस पागल लड़की की बातों पर यकीन करके बेवजह शहर में इंक्वायरी करते मत फिरना, जो की यहां पहले से पहुंची तुम्हारी जोड़ीदार कर रही है। जो भी करना सोच-समझकर करना। इस इलाके का एक दस साल का बच्चा भी गोली चलाकर किसी की जान लेने कि हिम्मत रखता है। इसलिए सावधान रहना, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि किसी बाहर से आये हुए व्यक्ति के साथ यहाँ कोई हादसा घटित हो।“
 

gauravrani

Active Member
910
1,312
123
”आप मुझे डरा रहे हैं।“ ”नहीं! अपना भला-बुरा तुम खुद समझो।“ ”सलाह का शुक्रिया जनाब, अब आप बराय मेहरबानी मेरी रिवाल्वर मुझे वापस कर दीजिये।“ ”अरे हाँ“ - वो चौंकता हुआ बोला - ”उसे तो मैं भूल ही गया था।“ ”मगर मैं नहीं भूला था।“ ”रिवाल्वर तुम्हारी है।“ ”हाँ, इसका लाइसेंस भी मेरे पास है, अगर आप देखना चाहें तो.......।“ ”रहने दो मुझे तुम पर ऐतबार है।“ कहते हुए उसने मेरी रिवाल्वर मुझे वापस कर दी। ”शुक्रिया, क्या बंदा आपका नाम जानने की गुस्ताखी कर सकता है?“ ”जसवंत‘‘ - वह बोला - ‘‘इंस्पेक्टर जसवंत सिंह।“ मैं उठ खड़ा हुआ। ”जर्रानवाजी का बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब, अब बंदे को इजाजत दीजिए।“ ”जा रहे हो।“ ”जी हाँ।“ ”अगर तुम चाहो तो मैं किसी को लाल हवेली तक तुम्हारे साथ भेज दूँ।“
 

gauravrani

Active Member
910
1,312
123
”जी नहीं शुक्रिया।“ ”बाहर खड़ी कार तुम्हारी अपनी है।“ ”जी नहीं उधार की है।“ ”मजाक कर रहे हो।“ ”सच कह रहा हूँ।“ कहने के पश्चात मैं मुड़ा और उस अजीबो-गरीब बर्ताव करने वाले कोतवाली इंचार्ज को एक उंगली का सेल्यूट देकर मैं खुले दरवाजे से बाहर निकल गया। अजीब पुलिसिया था, सब ताड़े बैठा था, हैरानी थी कि शीला के बारे में भी उसे सब पता था। हालात अच्छे नहीं लग रहे थे। दस मिनट पश्चात मैं लाल हवेली के सामने खड़ा था, शीला ने उसका वर्णन ही कुछ यूं किया था कि उसे पहचानने में कोई भूल हो ही नहीं सकती थी। रिहायशी इलाके से अलग-थलग लाल हवेली आसमान में सिर उठाये खड़ी थी। लाल हवेली को देखकर बाहर से यह अंदाजा लगा पाना कठिन था कि उसके भीतर कोई रहता भी होगा। सामने लकड़ी का दो पल्लों वाला कम से कम बीस फीट ऊंचा खूब बड़ा दरवाजा था, जो कि बाउंडरी से थोड़ा ऊंचा उठा हुआ था। दाईं ओर वाले पल्ले में एक छोटा दरवाजा बना हुआ था, जो पैदल आने-जाने के इस्तेमाल में लाया जाता होगा, इस घड़ी वो दरवाजा
 

gauravrani

Active Member
910
1,312
123
भी बंद था। विशालकाय दरवाजों के दोनों तरफ पत्थरों को तराशकर बनाये गये दो शेर मुंह खोले खड़े थे, जिनके सफेद दांत दूर से ही चमक रहे थे। वहां के माहौल में मौत सा सन्नाटा पसरा हुआ था। कहना मुहाल था कि वहां के वाशिंदे उस खामोशी को, उस मनहूसियत को कैसे झेल पाते होंगे। सदर दरवाजे के नजदीक पहुँचकर मैंने लम्बा हार्न बजाया। तत्काल प्रतिक्रिया सामने आयी। दरवाजे में हिल-डुल हुई। ”चर्रररररररर की आवाज करता हुआ हवेली के विशाल फाटक का एक पल्ला खुलता चला गया। मैंने इधर-उधर निगाह दौड़ाई मगर दरवाजे के पल्लों को खोलते हाथों को देख पाने में कामयाब नहीं हो पाया। भीतर दाखिल होकर मैंने पुनः गेट खोलने वाले की तलाश में इधर-उधर निगाहें दौड़ाईं मगर कोई दिखाई नहीं दिया। मैं कार सहित भीतर प्रवेश कर गया। पूरी हवेली अंधकार में विलीन थी, कहीं से भी किसी प्रकार की रोशनी का आभास मुझे नहीं मिला। तकरीबन सौ मीटर लम्बे और बीस फुट चौड़े ड्राइवे से गुजर कर मैं इमारत की पोर्च में पहुँचा। पोर्च की हालत कदरन बढ़ियां थी। हाल-फिलहाल में वहां रंगरोदन होकर हटा महसूस हो
 

gauravrani

Active Member
910
1,312
123
रहा था। पेंट की मुश्क अभी भी वहां की फिजा में महसूस हो रही थी। कार रोकने के पश्चात मैंने डनहिल का पैकेट निकालकर एक सिगरेट सुलगा लिया और वहां के माहौल का जायजा लेने लगा। इस दौरान आदम जात के दर्शन मुझे नहीं हुए। पहले मैंने सोचा हार्न बजाऊं, फिर मैंने अपना इरादा मुल्तवी कर दिया। उम्मीद थी कि कार के इंजन की आवाज सुनकर कोई ना कोई अवश्य बाहर आएगा, मगर ऐसा नहीं हुआ। सिगरेट खत्म होते ही मैं कार से बाहर निकल आया, तभी दूर कहीं से उल्लू के बोलने की आवाज सुनाई दी और फड़फड़ाता हुआ एक चमगादड़ मेरे सिर के ऊपर से गुजर गया, बरबस ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए। सांय-सांय की आवाज करती हुई हवा और दूर कहीं कुत्ते की रोने की आवाज! इस हवेली के माहौल को और भी भयावह बनाये दे रही थी। कहीं से भी जीवन का कोई चिन्ह नजर नहीं आ रहा था, वह रिहायश कम और किसी हॉरर फिल्म का सेट ज्यादा नजर आ रहा था। मुझे यूं महसूस हो रहा था जैसे गलती से मैं किसी कब्रिस्तान में आ पहुँचा था। हर तरफ अजीब सी मनहूसियत फैली हुई थी। ऐसी वीरान जगह में तो भूत-प्रेतों के दखल के बिना भी इंसान का हार्ट फेल हो सकता था। मैंने दरवाजा
 

gauravrani

Active Member
910
1,312
123
खुलवाने का विचार मुल्तवी कर दिया और एक सिगरेट सुलगाकर टहलता हुआ वापस सदर दरवाजे की ओर बढ़ा। कुछ आगे जाने पर दरवाजा दूर से ही दिखाई देने लगा, जिसे की पुनः बंद किया जा चुका था। मगर उसके आस-पास आदम जात के दर्शन मुझे अभी नहीं हुए या फिर अंधेरे की गहनता के कारण मैं उन्हें नहीं देख नहीं पा रहा था। ‘‘अरे कोई है भाई यहां!‘‘ दरवाजे के कुछ और नजदीक जाकर आस-पास देखते हुए मैंने आवाज लगाई। जवाब नदारद। ‘‘कोई सुन रहा है भई?‘‘ इस बार मैं तनिक उच्च स्वर में बोला। ‘‘जी साहब जी।‘‘ मेरे पीछे भर्रायी सी आवाज गूंजी। मैं फौरन आवाज की दिशा में पलट गया। ”कहां जायेंगे?“-पुनः वही आवाज। सामने निगाह पड़ते ही मैं एक क्षण को भीतर तक कांप उठा, क्या करता नजारा ही कुछ ऐसा था। मेरे सामने एक नर कंकाल खड़ा था, मेरा दिल हुआ जोर-जोर से चीखना शुरू कर दूं। मगर दूसरे ही पल मैंने खुद को काबू कर लिया। मैंने रिवाल्वर निकालकर हाथ में ले लिया और सधे कदमों से उसकी ओर बढ़ा। मेरा दिल हरगिज भी यह
 

gauravrani

Active Member
910
1,312
123
मानकर राजी नहीं था कि एक कंकाल मुझसे बातें कर रहा है। मैंने अभी पहला कदम ही उसकी ओर बढ़ाया था कि अचानक जैसे आसमान टूट पड़ा। मेरे सिर के पृष्ठ भाग पर किसी वजनी चीज से प्रहार किया गया, मेरे हलक से दर्दनाक चीख निकली और मेरी चेतना लुप्त होने लगी। तभी उस नरकंकाल के दाहिने हाथ की हड्डी मेरी तरफ बढ़ी मुझे लगा वो मेरा गला दबाना चाहता है, मैंने अपने शरीर की रही-सही शक्ति समेटकर हाथ से छूट चुकी रिवाल्वर की तलाश में इधर-उधर हाथ मारना शुरू किया तभी फिर से किसी ने मेरे सिर पर वार दिया, इस बार मैं खुद को बेहोश होने से नहीं रोक पाया। दोबारा जब मुझे होश आया तो मैंने खुद को एक बड़े कमरे में लम्बे-चौड़े पलंग पर लेटा हुआ पाया, बेहोशी से पूर्व की घटना को याद करके मैं फौरन उठकर बैठकर गया। तभी मुझे अपने सिर से उठती टीसों का अहसास हुआ, स्वतः ही मेरा हाथ पहले सिर के पीछे फिर माथे तक जा पहुँचा। मैंने टटोलकर देखा अब वहाँ पट्टियाँ लिपटी हुई थीं। शायद बेहोशी के दौरान ही किसी ने मेरे घावों पर बेन्डेज कर दिया था, मगर किसने?
 
  • Like
Reactions: Obaid Khan

gauravrani

Active Member
910
1,312
123
शायद उसी नर कंकाल ने, सोचते हुए उस हालत में भी मैं खुद को मुस्कराने से नहीं रोक पाया। उसी क्षण दरवाजा खुलने की आहट हुई। मैंने सिर उठाकर देखा मेरे सामने एक बला की खूबसूरत युवती खड़ी थी। औसत से तनिक ऊँचा कद, गोरा रंग, कमर तक पहुँचते लम्बे-काले बाल, बड़ी-बड़ी कजरारी आंखें, सुतवां नाक, साफ-सुथरे नयन-नक्स, वाली वो युवती इस वक्त बिना दुपट्टे के सादा सलवार कुर्ता पहने थी। अपने इस परिधान में वो निहायत कमसिन और हसीन लग रही थी। बह सधे कदमों से चलती हुई मेरे समीप आकर खड़ी हो गई। ”हैल्लो विक्रांत“ - वह पास आकर बोली तब जाकर मुझे उसके चेहरे पर फैला पीलापन और आंखों में छाई निरीहता दिखाई दी- ”हाऊ आर यू नाऊ?“ ”फाईन, तुम शायद जूही हो।“ ”कैसे पहचाना?“ ”शीला ने कहा था कि - जब मुझे लगे कि कोई आसमानी परी मेरे सामने आ खड़ी हुई है, तो समझ जाऊं कि मैं जूही से रू-ब-रू हूं।‘‘ ‘‘ओ माई गॉड‘‘-उसने हंसते हुए शरमाकर अपना चेहरा दोनों हथेलियों के बीच छुपा लिया, ‘‘कमाल की बातें करते हो तुम।‘‘
 

gauravrani

Active Member
910
1,312
123
बेशक! तुम हो ही तारीफ के काबिल, और चेहरा मत ढको, नजर लगनी होगी तो अब तक लग चुकी होगी।‘‘ ‘‘क्या..... अरे नहीं!‘‘ उसने अपने चेहरे को हथेलियों की गिरफ्त से आजाद कर दिया और एक बार फिर कमरा उसकी खिलखिलाहट से गूंज उठा। ”रात को हुआ क्या था?“ वह अपनी हंसी को ब्रेक लगाते हुए बोली। ”कुछ नहीं अंधेरे में ठोकर लग गई, मैं नीचे गिर पड़ा, मेरा सिर शायद किसी पत्थर से टकरा गया था, इसलिए मैं बेहोश हो गया।“ ”अच्छा! वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं कि उस वक्त मैं और शीला पहली मंजिल की बॉलकनी में ही थे।“ ”किस वक्त?‘‘ मैं हड़बड़ाया। ‘‘जब तुम्हें अंधेरे में ठोकर लगी और और तुम्हारा सिर पत्थर से टकराया।‘‘ मैं हकबकाया सा उसका मुंह ताकने लगा। ‘‘क्या हुआ, ये असेप्ट करते हुए तुम्हारा ईगो हर्ट होता है कि तुम हवेली में घूमते कंकालों का शिकार बन गये।‘
 
Top