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”किसी ने मेरी जान लेने की कोशिश की थी, मजबूरन मुझे जवाबी फायर करना पड़ा।“ ”ली तो नहीं जान।“ ”मेरी किस्मत जो बच गया, मुझपर पर चलाई गयी तीन-तीन गोलियों के बाद भी बच गया।“ ”काफी अच्छी किस्मत पाई है तुमने नहीं?“ ”जी हाँ-जी हाँ।“ - मैं तनिक हड़बड़ा सा गया। जाने किस फिराक में था वह पुलिसिया। ”वो तुम्हारी जान क्यों लेना चाहते थे?“ ”मालूम नहीं।“ ”भई जासूस हो कोई अंदाजा ही बता दो।“ ”शायद वो मुझे लूटना चाहते थे।“ मेरी बात सुनकर वो हो-हो करके हँस पड़ा। ”क्या हुआ?“ मैं सकपका सा गया। ”भई अपने महकमे में एक सीनियर और काबिल इंस्पेक्टर समझा जाता है मुझे और इत्तेफाक से ये कोतवाली भी मेरे अंडर में ही है। जबकि तुम तो लगता है मुझे कोई घसियारा ही समझ बैठे हो।“ ”मैंने ऐसा कब कहा जनाब?“ ‘‘कसर भी क्या रह गई? भला लूटने का ये भी कोई तरीका होता है कि पहले अपने शिकार को गोली मार दो और बाद में उसका माल लेकर चम्पत हो जाओ।“