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Romance I LOVE YOU (me tujse pyar karta hu)

gauravrani

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नहीं अनन्या, घर पर सब इंत़जार कर रहे हैं; तुम्हारे सामने कितनी बार पापा फोन आ गया था न... फिर कभी आऊँगा।’’ ‘‘ओके...बॉय...ट्यूज्डे को मिलते हैं और मैसेज किया है तुम्हें अपना नंबर।’’- यह कहकर अनन्या ऑटो से उतर गई थी। ‘‘ओके...थैंक्स...टेक केयर।’’ अनन्या बॉय करते हुए घर में जा रही थी और ऑटो चल पड़ा था। एक बार मैंने मुड़कर पीछे ज़रूर देखा था उसे। अब, बस घर पहुँचने की बेसब्री थी बस। * * * डॉक्टर कॉलोनी से बाहर निकलकर ऑटो, रेलवे रोड पर दौड़ रहा था। मेरी ऩजर ऑटो से बाहर घर की तरफ ही लगी हुई थी। ऑटो में बैठे हुए ही पचास रुपये निकाले और ऑटो वाले भइया को दे दिए। ‘‘बस भइया, साइड में ही रोक देना।’’ फटाफट लगेज ले के उतरा, तो सामने पापा-मम्मी खड़े थे। बैग बाहर सड़क पर रखकर पापा और मम्मी के गले से लिपट गया। भाई और बहन दौड़कर अंदर से आए और लिपट गए मुझसे। ‘‘कितना कम़जोर हो गया है ईशान!’’- मम्मी ने कहा।
 

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कहाँ माँ, ठीक तो हूँ, आप हर बार यही कहती हैं।’’ ‘‘नहीं, फिट लग रहा है, तुम भी न; चलो बढ़िया नाश्ता बनाओ सबके लिए।’’- पापा। ‘‘हाँ, कपड़े चेंज करने दो इसे; चल तू फ्रेश हो जा।’’- माँ। ‘‘हाँ, मैं नहा लेता हूँ।’’ ‘‘हलो! स्नेहा...मैं पहुँच गया हूँ।’’- सेकेंड फ्लोर पर अपने कमरे में जाकर मैंने स्नेहा को फोन मिलाया। ‘‘ईशान...कब से वेट कर रही हूँ तुम्हारे फोन का... अब फोन कर रहे हो।’’- उसने नाराजगी में कहा था। ‘‘सॉरी बेबी डॉल...बस से उतरने पर लगेज था साथ में, तो घर आके ही कर पाया कॉल।’’ ‘‘इट्स ओके... कैसे हैं घर पर सब?’’ ‘‘सब बहुत अच्छे हैं और बहुत खुश हैं।’’ ‘‘ओके...तो क्या कर रहे हो?’’ ‘‘मैं अभी नहाने जा रहा हूँ, फिर नाश्ता।’’ ‘‘ठीक है, फ्रेश हो जाओ, फिर आराम से बात करना।’’ ‘‘ओके...अपना ध्यान रखना, आई लव यू।’’ ‘‘तुम भी ध्यान रखना; आई लव यू टू।’’- यह कहकर स्नेहा ने फोन रख दिया और मैं नहाने के लिए बाथरूम में चला गया।
 

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नहाकर मैंने सफेद रंग का लीनेन का कुर्ता-पजामा पहना था। लीनेन मेरा पसंदीदा फैब्रिक है और स्नेहा का भी... उसे भी लीनेन के कुर्ते और ट्राउजर खूब पसंद थे। पापा, छोटे भाई-बहन के साथ मैं ड्रॉइंग रूम में बैठकर माँ के हाथ की बनी दाल की कचौड़ियों का आनंद ले रहा था। सब लोग इतने दिनों बाद एक साथ बैठकर नाश्ता कर रहे थे। पापा और भाई-बहन दिल्ली के हालचाल पूछ रहे थे और मैं उनसे ऋषिकेश के हवा-पानी के बारे में बात कर रहा था। खूब ठहाके लग रहे थे। सबके चेहरे पर ़ग़जब की खुशी थी। ‘‘बेटा, खाने-पीने का ध्यान रखा करो अपना, कमजोर लग रहे हो''- माँ ने कहा। ‘‘अरे क्या मम्मी, सब ठीक तो है।’’ ‘‘कहाँ ठीक है; ध्यान रखा करो।’’ ‘‘अरे, तुम रहने दो; अब तुम्हारी बहू आएगी, वो ही इसका ध्यान रखेगी।’’- पापा ने माँ से कहा। ‘‘क्या पापा, आप भी, हर वक्त शादी-शादी... हो जाएगी शादी, इतनी जल्दी क्या है?’’ ‘‘देखो बेटा, अभी सही उम्र है तुम्हारी शादी के लिए; हमने कुछ लड़कियाँ देखी हैं, तस्वीरें तुम भी देख लो।’’ ‘‘पापा मुझे अभी शादी-वादी नहीं करनी है; मैं अभी अपना कॅरियर सेट कर रहा हूँ, थोड़ा वक्त चाहिए
 

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देना जरा वो तस्वीरें!’’- पापा ने माँ से एक लिफाफे की तरफ इशारा करते हुए कहा। ‘‘ये लो... कुछ लड़कियों की तस्वीरें हैं, देख लो; हम लोगों को यह पसंद हैं।’’ ‘‘रख दीजिए, देख लूँगा मैं... माँ बहुत भूख लगी है, खाना बनाइये प्लीज।’’ ‘‘हाँ, अब खाना-पीना खाओ, ये बातें बाद में करना।’’- माँ। ‘‘देखो बेटा, हम तुम्हारे बारे में अच्छा ही सोचेंगे... जैसा हम कर रहे हैं उसे मानो।’’- पापा ने कहा। ‘‘पापा, बाद में बात करते हैं इस बारे में।’’ माँ रसोई में खाना बना रही थीं। पापा और बाकी लोग ड्रॉइंग रूम में बैठे थे। मैं सबके बीच से उठकर अपने फोन के साथ ऊपर अपने कमरे में आ गया था। मुझे पता था कि घर जाऊँगा तो शादी की बात आएगी ही। पापा और माँ अब तक पचास से ज्यादा लड़कियों की तस्वीर दिखा चुके थे। मैं हर बार कोई-न-कोई कमी निकालकर सबके लिए मना कर देता था। डरता था मैं ऐसी शादी से, जहाँ लड़की को जानता भी नही हूँ। दूसरी तरफ स्नेहा का ख़याल मन में आता था। जानता था, स्नेहा से शादी नहीं हो सकती है, फिर भी मैं उसे धोखा देना नहीं चाहता था।
 

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मैं स्नेहा के सामने जब भी अपनी शादी की बात करता, हमेशा उसका चेहरा उतर जाता था। वो हमेशा कहती थी... इतनी जल्दी क्या है तुम्हें शादी की, अभी तो बच्चे हो तुम; आराम से करना शादी। कमरे में पहुँचा ही था, कि स्नेहा की कॉल फिर से आ गई थी। ‘‘हैलो, कैसे हो? क्या हो रहा है घर पर?’’- उसने फोन उठाते ही पूछा। ‘‘कुछ नहीं स्नेहा, बहुत मूड खराब है।’’ ‘‘अरे! क्या हुआ माई हीरो।’’ ‘‘कुछ नहीं यार... वही शादी, शादी, शादी...।’’ ‘‘क्या? शादी! यार ईशान, मजाक मत करो।’’ ‘‘मजाक नहीं कर रहा हूँ स्नेहा, सच कह रहा हूँ; सब लोग शादी की ही बात कर रहे हैं।’’ ‘‘ईशान, तुम जानते हो न, जिस दिन तुम शादी कर लोगे, उस दिन से हम एक-दूसरे की जिंदगी में नहीं होंगे और मैं इतनी जल्दी तुम्हें खोना नहीं चाहती हूँ।’’ ‘‘स्नेहा, मैं बहुत प्यार करता हूँ तुमसे और तुम भी मुझसे बहुत प्यार करती हो; पर मैं क्या करूँ यार, मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा है।’’- मैंने कहा। ‘‘ईशान, प्लीज वापस आ जाओ यार, मैं बहुत मिस कर रही हूँ तुम्हें।’’
 

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आऊँगा कल के बाद। चलो, माँ खाना बना रही हैं, मैं जा रहा हूँ नीचे; तुम अपना ध्यान रखना और परेशान मत होना।’’ ‘‘ओके... तुम भी अपना ध्यान रखना और जल्दी आना।’’- उसने इतना कहकर फोन रख दिया। मैं भी फोन साइड में रखकर बेड पर आँखें बंद कर लेट गया। दिमाग में बस स्नेहा की तस्वीर थी। दिल भी उसके अलावा कुछ और न सोच पा रहा था और न ही कुछ सोचना चाहता था। घर पहुँचे हुए अभी चार घंटे ही हुए थे, लेकिन मेरा मन कर रहा था कि भाग चलूँ दिल्ली वापस। ‘‘बेटा, नीचे आओ, खाना तैयार है!’’- माँ ने आवाज दी। ‘‘आ रहा हूँ माँ।’’- मैंने ऊपर से ही कह दिया। नीचे पहुँचा, तो सब टेबल पर मेरा इंतजार कर रहे थे। मैं भी बैठ गया। माँ ने पूरी, भिंडी की सब्जी, मटर-पनीर, रायता और जीरे वाले चावल बनाए थे। बहुत जोर से भूख लगी थी। मैं बिना किसी से बात किए चुपचाप खाना खा रहा था। माँ की बातों का जवाब जरूर दे रहा था। पापा समझ रहे थे कि मैं क्यों बात नहीं कर रहा हूँ, इसलिए बीच-बीच में वो मुझे समझाने की कोशिश कर रहे थे। मैं बस उनकी बातें सुन रहा था।
 

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ईशान, तेरे सारे दोस्तों की शादी हो गई है और अब रोज शादी वाले आ रहे हैं... आस-पास के लोग भी कहने लगे हैं कि शादी कर लो अब ईशान की।’’- माँ ने कहा। ‘‘अरे माँ, सब टाइम पर होगा न, जल्दबाजी क्यों करनी।’’ ‘‘हम जल्दबाजी नहीं कर रहे हैं, पर अब कर लेनी चाहिए शादी। अच्छा तुम ही बताओ, कैसी लड़की चाहिए तुम्हें?’’- पापा ने कहा। ‘‘पापा, लड़की अच्छी हो बस... जो आप लोग तस्वीर दिखा रहे हैं उनमें से कोई पसंद नहीं है मुझे।’’ ‘‘तो इन सबको मना कर दें?’’- पापा ने खाने की प्लेट छोड़कर मेरी तरफ देखा और पूछा। ‘‘हाँ, फिलहाल तो आप मना ही कर दीजिए।’’ ‘‘ठीक है, हम मना कर देंगे; अब तुम ही कर लेना शादी फिर।’’- ये कहकर पापा ़गुस्से में अपने कमरे में चले गए। पापा कई बार पूछ चुके थे कि अगर कोई लड़की तुम्हें पसंद है तो बताओ; लेकिन मैं उन्हें कैसे बता सकता था कि जिस लड़की को मैं पसंद करता हूँ, उसकी एक पाँच साल की बेटी है। मेरे परिवार के लोग इस रिश्ते को किसी कीमत पर मानने वाले नहीं थे। हाँ, मैं मनाने की
 

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कोशिश कर सकता था, लेकिन हम दोनों भी तो एक-दूसरे से शादी करने के लिए तैयार नहीं थे। स्नेहा तो हमेशा कहती थीं कि तुम छोटे हो मुझसे और मैं एक बेटी की माँ भी हूँ, ऐसे में कोई क्या कहेगा... लोग मुझसे कहेंगे कि ईशान तो छोटा था, पर तुम तो समझदार थीं... उसकी जिंदगी क्यों बर्बाद की? खैर, अभी दिमाग नहीं चल रहा था। खाना हो चुका था। कुछ देर वहीं बैठकर माँ से और छोटे भाई-बहन से इधर-उधर और पढ़ाई-लिखाई की बातें कीं। इसके बाद मैं अपने कमरे में जाकर सो गया। शाम के पाँच बज चुके थे। माँ ने कमरे का दरवाजा खटखटाया। चाय के लिए बुला रही थीं माँ। मैं नहाकर नीचे पहुँचा और सबके साथ बैठकर चाय पी। इस बीच किसी ने भी शादी की कोई बात नहीं की। भाई-बहन ने घूमने का प्लान बना रखा था, तो शाम उनके साथ बितानी थी। हम लोग चाय के बाद घूमने निकले। पहले परमार्थ-निकेतन घूमे... फिर लक्ष्मण झूला से मछलियों को दाना खिलाया। भाई-बहन के साथ गोलगप्पे और आलू टिक्की खाकर मैं सारी टेंशन भूल गया।
 

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इस बीच एक पावभाजी की दुकान पर नजर पड़ी, तो मैंने उन लोगों से पूछा- ‘‘पावभाजी खाओगे?’’ ‘‘हाँ भाई, खाएँगे।’’ पावभाजी स्नेहा को बेहद पसंद थी। शायद यही वजह थी कि मैंने उन दोनों को पावभाजी के लिए बोला था। पावभाजी खाते-खाते स्नेहा के साथ हल्दीराम में पावभाजी खाने वाले पल ताजा हो गए थे। जब भी मैं उसे सुबह घर से रिसीव करता था, या शाम को घर छोड़ता था, तो उसे वहीं पावभाजी खिलाता था। हाँ, कभी-कभी छोले-भठूरे भी खाते थे। गंगा किनारे पत्थरों पर बैठे-बैठे, कब रात के दस बज गए, पता ही नहीं चला। इस बीच स्नेहा दो बार कॉल कर चुकी थी। पावभाजी की प्लेट हाथ में लेते ही उसका कॉल आ गया था और अब फोन आया था, ये पूछने के लिए कि घर पहुँचे या नहीं। यही पूछने के लिए पापा भी फोन कर चुके थे। अब हम लोग निकल चुके थे घर के लिए। हम लोग घर पहुँचे, तो माँ-पापा खाना खा रहे थे। हम लोग साथ बैठकर अपने सैर-सपाटे के बारे में उन्हें बताने लगे। खाने के बाद पापा टीवी देखने ड्राइंग रूम में चले गए और मैं और माँ वहीं बैठकर बातें करने लगे।
 
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