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Romance I LOVE YOU (me tujse pyar karta hu)

gauravrani

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माँ की बातों में भी समझाने का भाव झलक रहा था। मैं भी ऐसा नहीं था कि शादी करना ही नहीं चाहता था... बस इस वक्त शादी की बात मुझे परेशान कर रही थी। माँ की बातों को समझकर उन्हें विश्वास दिलाया कि ऐसा कुछ नहीं है, शादी कर लूँगा। इसके बाद मैं अपने कमरे में चला गया। घर की सभी लाइटें बंद हो चुकी थीं। सब लोग अपने-अपने कमरे में जा चुके थे। कपड़े बदलकर बिस्तर पर लेटकर सबसे पहले स्नेहा को कॉल लगाया। ‘‘हैलो, स्नेहा, कैसे हो?’’ ‘‘मैं ठीक हूँ, तुम बताओ कैसे हो? घर पर सब ठीक है न।’’ ‘‘हाँ, सब ठीक है, तुम परेशान मत होना।’’ स्नेहा की बातों में एक चिंता झलक रही थी। शायद यह चिंता थी मेरी शादी की। दिनभर घर में क्या-क्या हुआ, किसने क्या कहा, सब स्नेहा को बताया। हम लोग रात तीन बजे तक बातें करते रहे। अगले दिन स्नेहा को ऑफिस जाना था। हम दोनों में से अगर कोई एक ऑफिस में नहीं होता था, तो दूसरे का मन नहीं लगता था। इसीलिए स्नेहा भी ऑफिस नहीं जाना चाहती थी। ‘‘यार ईशान, जल्दी आ जाओ न, मन ही नहीं लग रहा है तुम्हारे बिना।’’
 

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हाँ यार मंगलवार को आऊँगा न ऑफिस।’’ ‘‘तो मेरा सोमवार कैसे कटेगा मेरी जान, और याद है ना बुधवार को 14 तारीख है, मालविका का बर्थ-डे है।’’ ‘‘हाँ, मुझे अच्छे से याद है, मैंने बुधवार की छुट्टी ली है... मैं, तुम और मालविका दिनभर साथ रहेंगे और तुम टेंशन मत लो यार, बस कल की ही तो बात है।’’ ‘‘सुनिए, बुधवार शाम को घर पर बर्थ-डे पार्टी है; दिन में मैं और तुम मालविका को घुमाएँगे, शाम को तुम्हें घर आना है; मालविका से पहली मीटिंग होगी तुम्हारी जनाब।’’ ‘‘पक्का मालविका को घुमाने ले चलेंगे, पर शाम को मैं शायद नहीं आ पाऊँगा।’’ ‘‘अरे भई क्यूँ...?’’ ‘‘स्नेहा, इतनी जल्दी में तुम्हारे घर नहीं आ सकता हूँ।’’ ‘‘पहले तुम दिल्ली आओ फिर देखते हैं; चलो अब आराम कर लो, गुड नाइट।’’ ‘‘हम्म, गुड नाइट, आई लव यू।’’ ‘‘लव यू टू।’’ * * * वैसे तो पहाड़ों की सुबह बेहद खूबसूरत होती है, लेकिन ऋषिकेश की सुबह की बात ही अलग है। ठंडी-
 

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ठंडी हवा, चिड़ियों की चहचहाहट और गर्माहट देती सूरज की किरणें, स्वर्ग जैसी अनुभूति देती हैं। सुबह के सात बज चुके थे। सूरज की रोशनी से कमरा नहा चुका था। मैं रोशनी से छुपकर चादर के भीतर था। और माँ दरवाजे पर थीं। ‘‘ईशान, दरवाजा खोलो बेटा! सात बज गए हैं; चाय तैयार है।’’ ‘‘आ रहा हूँ माँ।’’- मैंने बेड से उठते हुए कहा। दरवाजा खोला तो माँ चाय का मग लेकर सामने ही खड़ी थीं। वो जानती थीं कि सुबह-सुबह मुझे कम-से-कम दो कप चाय चाहिए होती है; एक कप से मेरा भला नहीं होता है। मैंने चाय का मग लेने से पहले माँ को गले लगा लिया। ‘‘अरे-अरे! चाय फैल जाएगी।’’ ‘‘गुड मार्निंग मम्मा।’’ ‘‘गुड मार्निंग बेटा।’’ मैं और माँ छत पर ही घूम रहे थे। पापा भी न्यूजपेपर लेकर ऊपर ही आ गए थे। छत से बाकी पड़ोसियों की छत भी दिख रही थी। पापा और माँ मुझे बता रहे थे कि पड़ोस वाले लोगों के क्या हाल हैं। छत पर घूमते हुए ही एक दो अंकल और आंटी लोगों से नमस्ते हो गई थी। ‘‘और, आज कहाँ घूमने जाना है?’’- पापा ने पूछा।
 

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आज पहले सबके साथ नाश्ता और फिर पुराने दोस्तों के साथ घूमने जाऊँगा।’’ ‘‘तो बताओ नाश्ते में क्या खाओगे?’’ ‘‘गर्म जलेबी और समोसा।’’ ‘‘ठीक है, फिर मैं लेकर आता हूँ; तुम लोग नहाकर तैयार हो जाओ।’’- पापा इतना कहकर बाजार चल दिए। ‘‘तुम ईशान, नहाकर नीचे आ जाओ फिर!’’- माँ ने कहा। ‘‘ठीक है माँ, मैं आता हूँ।’’ अंदर रखा फोन रिंग कर रहा था। मुझे लगा स्नेहा इतनी जल्दी क्यों फोन कर रही है, उसे तो सोना चाहिए अभी... रात भी देर से सोई है। मैंने जैसे ही फोन हाथ में लिया, तो वो स्नेहा नहीं, बल्कि अनन्या थी। ‘हलो' ‘‘हाय ईशान! गुड मॉर्निंग।’’ ‘‘गुड मॉर्निंग अनन्या... इतनी जल्दी।’’ ‘‘जल्दी? साढ़े सात बजे हैं।’’ ‘‘ओके, तो कैसे हैं मौसी के यहाँ सब?’’ ‘‘सब अच्छे हैं... कल तुम आते तो अच्छा होता; मिलते सबसे।’’ ‘‘चलो फिर कभी आऊँगा; तुम तो अक्सर आती रहती हो न!’’
 

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हाँ, पक्का... अच्छा, तुम्हारे घर सब कैसे हैं?’’ ‘‘सब बहुत अच्छे हैं... माँ-पापा, भाई-बहन सब अच्छे हैं।’’ ‘‘गुड! अच्छा आज का क्या प्लान है तुम्हारा? घर पर ही या कहीं घूमने जाने का है?’’ ‘‘आज एक-दो दोस्तों के साथ रॉफ्टिंग पर जाऊँगा।’’ ‘‘वाओ! राफ्टिंग... आई लव राफ्टिंग; प्लीज मुझे भी ले चलो न।’’ ‘‘हाँ, चल सकते हो; पर मौसी के बच्चे लोग कहाँ गए? उनके साथ आना चाहिए तुम्हें।’’ ‘‘यार उन लोगों का स्कूल है आज... और मौसा जी ऑफिस जाएँगे; तो मैं अकेली रह जाऊँगी और घूम भी नहीं पाऊँगी।’’ ‘‘चलो फिर साथ चलते हैं; 11 बजे मैं आपको पिक करने आ जाऊँगा।’’ ‘‘ओके श्योर, मैं तैयार रहूँगी।’’ ‘‘चलो टेक केयर।’’- मैंने कहा और फोन रख दिया। अनन्या का फोन रखकर मैंने स्नेहा को फोन किया। आठ बज चुके थे और ये स्नेहा के उठने का वक्त था। ‘‘हैलो...गुड मॉर्निंग...!’’ ‘‘गुड मॉर्निंग मेरी जान...गुड मॉर्निंग।’’
 

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अरे भाई उठिए...ऑफिस नहीं जाना है क्या?’’ ‘‘मेरी जान, तुम्हारे बिना नहीं जाना मुझे ऑफिस।’’ ‘‘अरे...ऐसे थोड़ी होता है, चलिए उठिए...'' ‘‘हम्म...और आज का क्या प्लान है?’’ ‘‘बस नाश्ते के बाद दोस्तों के साथ रॉफ्टिंग पर जाना है; पापा अभी नाश्ता लेने गए हैं।’’ ‘‘ओके...कूल; एनज्वॉय रॉफ्टिंग।’’ ‘‘चलो फिर तुम तैयार हो जाओ।’’ ‘‘हाँ, तुम अपना ध्यान रखना मेरी जान।’’ ‘‘हाँ, तुम भी।’’ पापा नाश्ता लेकर आ चुके थे। रेलवे रोड वाले पंडित हलवाई के यहाँ की गर्मागर्म जलेबियों के बारे में सोचकर ही मेरे मुँह में पानी आ जाता था। जब पापा हम बच्चों को स्कूल छोड़ने जाते थे, तो रास्ते में यह दुकान पड़ती थी। हम तीनों भाई-बहन रोज जलेबी खाते थे। आज जब भी मैं ऋषिकेश आता हूँ, तो जलेबियाँ खाना नहीं भूलता। आज भी जलेबी और समोसे की खुशबू नीचे से मुझे बुला रही थी। माँ भी आवाज लगा चुकी थीं। बस देर क्या करनी। मैं भी फटाफट नहाने चला गया। नीचे पहुँचा, तो माँ ने पूरा नाश्ता टेबल पर सजा रखा था और सब लोग मुँह में पानी लिए बैठकर मेरा इंतजार कर रहे थे। मैं जैसे ही पहुँचा, तो माँ ने एक प्लेट में जलेबी,
 

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ब्रेड और समोसा निकालकर मुझे दिया। इसके बाद क्या था... पापा, भाई और बहन टूट पड़े नाश्ते पर। अगर शादी की बात न हो, तो हमारे घर में बहुत खुशनुमा माहौल रहता था। एक शादी ही थी, जिसका जिक्र आते ही मुझे टेंशन हो जाती थी। पापा को ऑफिस जाना था, तो वो उठ चुके थे। ‘‘ठीक है भाई, तुम एनज्वॉय करो, हम चले ऑफिस; शाम को मिलते हैं।’’ ‘‘ओके पापा, बॉय-बॉय।’’ मेरे कंधे पर एक थपकी देकर पापा ऑफिस चले गए और भाई-बहन कॉलेज। बाहर नमित, श्वेता और शिवांग आ चुके थे। ‘‘आ जाओ, अंदर आ जाओ।’’ ‘‘नमस्ते आंटी...हाय ईशान!’’- तीनों ने अंदर आते हुए कहा। ‘‘हाय...कैसे हो तुम लोग! आओ नाश्ता करो।’’- मैंने उठकर गले मिलते हुए कहा। ‘‘अरे वाह...जलेबी! नाश्ता तो हम लोग करके आए हैं, पर जलेबी खाएँगे।’’- श्वेता ने मुस्कराते हुए कहा। ‘‘अरे, लो न यार...खाओ।’’
 

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तो आंटा,r साहब आ ही गए तीन महीने बाद। डाँटा नहीं आपने। इतने दिन बाद आए हैं ये।’’- श्वेता ने माँ से कहा। ‘‘अब दो दिन के लिए आया है श्वेता ये, क्या डाँटें।’’ ‘‘हाँ आँटी, आप सही कह रही हैं; चलो फिर फटाफट।’’ मैं और श्वेता छठवीं क्लास से लेकर बारहवीं तक एक ही क्लास में थे और नमित और शिवांग दूसरे सेक्शन में थे... पर हम तीनों बहुत पक्के दोस्त थे। नमित और शिवांग, टेलीकॉम कंपनी में इंजीनियर थे और श्वेता, ऋषिकेश में ही बैंक में एक्जीक्यूटिव थी। आज तीनों ने मेरी वजह से अपने-अपने ऑफिस से छुट्टी ली थी। नमित की कार से हम चारों रॉफ्टिंग के लिए निकल चुके थे। ‘‘नमित, मैं ड्राइव करूँगा!’’- मैंने कहा। ‘‘ओके...ये पकड़ चाबी।’’- नमित ने चाबी मेरी तरफ फेंकते हुए कहा। ‘‘और तुम तीनों पीछे बैठ जाओ... प्रâंट सीट खाली रखना।’’ ओए क्यों?’’- तीनों ने एक साथ कहा। ‘‘अरे कह रहा हूँ न यार; किसी को पिक करना है रास्ते से।’’
 

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किसी को...मतलब कोई और भी चलेगा साथ?’’- नमित। ‘हाँ।' ‘‘और वो लड़की है?’’- श्वेता। ‘हाँ।' ‘‘ऐसा करो तुम ही चले जाओ, मैं जा रही हूँ।’’- श्वेता। ‘‘अरे, सुन न श्वेता, तू भी न यार... अरे दोस्त है ऐसे ही; मेरी गर्लफ्रेंड नहीं है वो।’’ ‘‘तो तुम कैसे जानते हो उसे और गर्लफ्रेंड नहीं है, तो साथ रॉफ्टिंग पर क्यूँ ले जा रहे हो और कहाँ मिले तुम?’’- श्वेता ने कहा। ‘‘अरे यार, दिल्ली से है; आते हुए बस में मिल गई थी... अब ज्यादा तीन-पाँच मत करो, मिलवाता हूँ।’’ श्वेता का मूड ऑफ हो चुका था। दसवीं क्लास में कल्चरल फेस्ट के बाद से श्वेता मुझे पसंद करने लगी थी। वो मेरे गाने से इंप्रेस हुई थी, पर कभी कह नहीं पाई। मेरा उसमें कोई इंटरेस्ट नहीं था... बस अच्छी दोस्त थी। तीनों, पीछे वाली सीट पर बैठ गए थे और मैंने कार डॉक्टर कॉलोनी की तरफ अनन्या को पिक अप करने के लिए बढ़ा दी।
 

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हेलो अनन्या...बाहर आओ घर के, हम बस पहुँचने वाले हैं।’’ ‘‘ओके ईशान।’’ ‘‘तो अनन्या है उसका नाम?’’- श्वेता ने कहा। ‘‘अरे मेरी माँ, मिलवाऊँगा...दो मिनट रुको तो।’’ ‘‘तो नाम ही तो पूछा है।’’ ‘‘हाँ, अनन्या नाम है उसका...और हम आ गए हैं उसके घर।’’ डॉक्टर कॉलोनी पहुँचे, तो अनन्या अपने घर के गेट पर ही खड़ी थी। मैंने हॉर्न दिया, तो उसने कार की तरफ देखकर हाथ हिलाया। ‘‘ओहो। तो ये हैं मैडम अनन्या।’’- श्वेता ने कहा। ‘‘श्वेता...चुप हो जाओ यार; बंद करोगी ताना मारना तुम?’’ ‘‘हाय अनन्या!’’- मैंने कार का शीशा उतारकर कहा। ‘हाय!' मैं कार से उतरा और अनन्या को कार में बिठाया। कार में बैठते ही अनन्या ने पीछे वाली सीट पर बैठे तीनों लोगों को हाय बोला। श्वेता को छोड़कर बाकी दोनों ने अनन्या को बहुत अच्छे से हाय बोला।
 
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