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Update : 19
Part 1
सुबह होती है, कल थकान की वजह से सभी देरी से जागे थे, शालिनी जब बाहर आती है तब देखती है बाबुजी कसरत कर रहे हैं।
शालिनी : आज थोड़ी देर हो गई
बाबुजी : हाँ, आज मुझे भी देर हो गई, तुम नहा लो, तब तक में अपनी कसरत कर लूं।
शालिनी नहाने जाती है, और जब नहाकर आती है तब बाबुजी खटिया पर बैठे थे, शालिनी सीधा कमरे में जाती है और तैयार होने लगती है, अभी उसने एक टॉप और एक सलवार पहना ताकि उसे काम करने में आसानी हो, वो नास्ता बनाती है तब तक बाबुजी भी नहा कर तैयार हो गए थे और चाचाजी भी आ जाते हैं, बाबुजी नील को जगाकर ले आते हैं और सब साथ मे नास्ता करते हैं, फिर शालिनी पीठ करके नील को टॉप उठा कर स्तनपान करवाने लगती हैं।
नील को स्तनपान करवाने के बाद शालिनी सब काम करने लगती है,

काम करने से पसीने से उसका टॉप भीग गया था और उसके तने हुए निप्पल भी दिख रहे थे जब शालिनी जहा बाबुजी और चाचाजी नील को लेकर जिस खटिया पर बैठे थे वहां पौंछा करने आती है तब झुकने से उसके स्तन की दरार साफ दिखाई दे रही थी,

जब शालिनी सब काम निपटा कर खटिया पर आके बैठ जाती है और नैपकिन से चेहरा पोछने लगती है।

शालिनी: आज गर्मी बहुत लग रही है
बाबुजी : हा आज थोड़ी ज्यादा ही है।
शालिनी सरला को कॉल करके मार्केट साथ चलने को कहती है, पर सरला को सिलाई-कटाई का काम ज्यादा था इस लिए वो मना करती है पर वो शालिनी को गौशाला से घी लाने को कहती है और शालिनी कॉल काट देती है।
शालिनी : क्या आप मे से कोई मेरे साथ मार्किट चलेगा, मेने सरला को कहा पर उसे काम है और उसने गौशाला से घी मंगवाया है।
चाचाजी : हाँ, मार्केट गौशाला के पास ही लगती है।
शालिनी : कोई साथ आएगा तो अच्छा रहेगा क्युकी मेरा पहली बार है ना।
बाबुजी : बलवंत तुम चले जाओ, मे मुन्ने को सम्भालने के लिए घर पर रहूँगा, आज धूप ज्यादा है कहीं मुन्ना बीमार पड़ गया तो?
शालिनी : हाँ हाँ सही कह रहे हैं आप ,आज हमें इतनी गर्मी लग रही है तो नील को कितनी लगेगी,मे तैयार होकर आती हूं, चाचाजी आप भी तैयार हो जाए।
चाचाजी : ठीक है मे गाड़ी की चाबी ले आता हूं।
शालिनी एक बेकलैस ब्लाउज और साड़ी पहनती है

और क्रीम लगाकर आतीं है, तब तक चाचाजी भी चाबी लेकर आ जाते है ,शालिनी नील को स्तनपान करवा देती है ताकि उसे बाजार में दर्द ना हो और नील के खाने की चिंता ना रहे।
शालिनी : बाबुजी मेने नील को दूध पीला दिया है उसे अब दोपहर में थोड़ी दाल पीसकर पीला देना, और आपकी सब्जी बनाकर ही रखी है आप भी समय पर खाना खा लेना, हमारी राह मत देखना हम अपना कुछ कर लेंगे।
चाचाजी और शालिनी दोनों मोटरसाइकिल पर बाजार के लिए निकल जाते हैं, बाजार पहुंचकर चाचाजी अपनी मोटरसाईकिल एक जगह रखकर शालिनी के साथ बाजार में घूमने लगते है,

शालिनी देखती है कि बाज़ार में भी ज्यादातर महिलाए ही व्यापार कर रही थी यहा तक एक चाय की दुकान भी एक स्त्री संभालती थी,और एक मिठाई की दुकान पर भी महिला थी,

शालिनी को अच्छा लगा कि महिलाओं को इतना सम्मान मिलता था
शालिनी कुछ कपड़ा खरीदती है जिससे वो अपने लिए ब्लाउज बना सके और नील के लिए भी कुछ सूत के हल्के कपड़े लेती है ताकि उसे गर्मियों में कुछ राहत मिले,और फिर कुछ सब्जी और जरूरत की चीजें खरीदती है,

आखिर में उसे दादी मिलती है और उससे बाते कर के शालिनी बाजार से बाहर आती है।
शालिनी : यहां तो अच्छा बाजार लगता है, मेने सोचा नहीं था सब मिलेगा पर सब अच्छे दाम में मिल गया और मेने देखा सब आपको सम्मान देते थे अब चले,
चाचाजी : हा, चलो, तुम्हारी खरीदारी हो गई ना?
शालिनी : हा, सब ले लिया है, अब बस सरला के लिए घी लेना है, पर पहले कुछ पेट पूजा कर ले
दोनों फिर चाट पकौड़ी खाते हैं जिससे पेट की भूख मीट जाती हैं।
शालिनी : कितने दिनों बाद चाट पकौड़ी खाई मजा आ गया, अरे..वो गौशाला किधर है?
चाचाजी : ये यहां पास ही है, वो देखो वहां जो वो लोखंड का शेड दिख रहा है वही है।
शालिनी : चलिए ना, कुछ सोडा या ज्यूस पीते हैं, गर्मी कितनी है।
चाचाजी : आपको पीना हो तो चलो पर मे कुछ नहीं पिउंगा ,मुझे कुछ और पीना है।
चाचाजी नजरों से शालिनी के स्तनों की तरफ इशारा करते हैं।
शालिनी : वो तो मिलेगा ही आपको पर अभी ये पी लीजिए
चाचाजी : जब कोई अमृत चख ले उसे दूसरा कुछ पीने की ईच्छा नहीं होती
शालिनी : आप और आप की बाते, पर मुझे ज्यूस पीना है
शालिनी फिर ज्यूस पीती है

शालिनी : चलो चल के ही जाते हैं,
दोनों चलकर गौशाला पहुचते है वहां एक महिला सब गायों और गौशाला का ध्यान रखती थीं

वो चाचाजी को नमस्ते करती है, क्योंकि चाचाजी ने ही उसे वहां काम पर रखा था और उसे पैसे भी चाचाजी ही देते थे, दोनों इधर उधर की बाते करते है और हालचाल पूछते है, फिर चाचाजी उसका शालिनी से परिचय करवाते हैं
चाचाजी : हमें घी चाइये था तो 1 किलो दे दो।
वो महिला एक किलो घी देती है, तभी शालिनी गौशाला देखने को कहती है तब वो महिला और चाचाजी शालिनी को अंदर ले जाते है जहां गायों भैस को रखा गया था, वहां थोड़ी गोबर की गंध आ रही थी, पर सफाई होते रहने से ज्यादा नहीं आ रही थी।
शालिनी : चाचाजी हम भी दूध ले लेते हैं, ऐसा ताजा दूध कहा मिलेगा
चाचाजी : हाँ ठीक है, गाय का दूध लेते हैं ताकि मुन्ना भी पी सके।
महिला : चाचाजी एक काम कर सकते हैं, जरूरी है इस लिए वर्ना आपको तकलीफ नहीं देती।
चाचाजी : तकलीफ की बात नहीं है आप बताए।
महिला : वो आज बाजार लगा है ना इसलिए पड़ोस के गाव से मेरी सहेली आयी हैं तो उसके साथ बाजार में जाना था, मे चली जाऊँगी तो गाय भैस को चारा पानी देना था, मे जाने वाली थी तभी आप आ गए, और आप होंगे तो मुझे चिंता नहीं होगी।
चाचाजी : इतनी ही बात, ओह....कोई बात नही आप जाइए हम है इधर और अभी कोन सी गाय दूध देती है?मे निकाल लूँगा।
वो महिला एक गाय दिखाती हैं और वो बाजार के लिए निकल जाती है।
शालिनी : क्या गायों का भी समय होता है दुध देने का?
चाचाजी : हा, कोई भी गाय-भैंस अपने समय पर और अपने ही मालिक को दुध निकालने देती है।
शालिनी : आपको आता है दुध निकालना?
मेने आज तक किसी को गायों को दुध निकालते नहीं देखा ,शहर में तबेले में पहले से पन्नी रखते हैं ,इस लिए सीधा ले कर आ जाते हैं।
चाचाजी : मुझे दुध निकालने का बहुत अनुभव है, ये भी कला है, पहले थन को सहलाया जाता है धोया जाता है फिर हल्के से खींचना पड़ता है, गाय-भैंस को लगना चाहिए उसका बछड़ा दूध पी रहा है इससे वो ज्यादा और बढ़िया दुध देती हैं और मेने गाय-भैंस के अलावा किसी और का भी दुध निकाला है और पिया है
शालिनी समझ जाती हैं की चाचाजी किस के बारे में कह रहे हैं, ये बात सुनकर शर्मा जाती है।
शालिनी : बहुत हो गई आपकी बड़ी बाते, अभी दिखाये कैसे दूध निकालते हैं
एसा बोलकर शालिनी दो हाथों से दुध निकालने का इशारा करती है और मुस्करा देती है,

चाचाजी एक बर्तन लेते है और पहले गाय को चारा डालते है जिसे वो गाय खाने लगती है, चाचाजी नीचे बैठ कर थन के नीचे बर्तन रखेगे है, और शालिनी को गाय की पीठ सहलाने को कहते है, शालिनी पीठ सहलाती है और थोड़ा झुककर देखती है चाचाजी कैसे करते है, जिससे उसके स्तनों के बीच की गहराई चाचाजी के नजरों के सामने आ जाती हैं,चाचाजी से रहा नहीं जाता और वो उसे चूमने लगते है।

शालिनी : आपको अभी गाय का दुध निकालना है इस गाय का दुध आपको बाद में मिलेगा।
शालिनी चाचाजी के सिर पर टपली मारती है।
चाचाजी : हाँ सही कहा, एक बात अच्छी है इस गाय के दुध देने में पूरे दिन इंतजार नहीं करवाती, और ये गाय मारती भी नहीं ब्लकि प्यार करती है।
शालिनी : अभी थोड़ा जल्दी करेंगे तो हो सकता है इस गाय का दुध अभी मिल जाए।
चाचाजी : तो फिर देखो कैसे दुध निकालता हूं।
चाचाजी गाय के थन को पानी से धोकर साफ करके सहलाते है फिर उँगलियों से हल्के हल्के खींचने लगते है जिससे " चरररररर" की आवाज से दुध बर्तन में गिरता है, थोड़ी देर में बर्तन पूरा भर जाता है।

चाचाजी : तुमको दुध निकालना है?
शालिनी : हा
चाचाजी : बैठो।
चाचाजी शालिनी को अपनी जगह बिठाते है और वो उसके बग़ल में बैठते हैं, फिर वो शालिनी को थन को पकडना और खींचना सिखाते हैं, तभी शालिनी से उंगली फिसल जाती है और दुध की धार उसके चेहरे पर आती है, जिससे दोनों हसने लगते है।
शालिनी : ये मेरे बस का नहीं।
चाचाजी : एसा नहीं है, प्रयास करने से हो जाता है।
शालिनी : मेरा काम नहीं दुध निकालना
चाचाजी : सही कहा आपका काम दुध निकालना नहीं ब्लकि दुध देना है, निकालने का काम मेरा है।
शालिनी : अच्छा जी! बहुत बोलने लगे हो, बदमाश कहीं के।
शालिनी एक दो बार प्रयास करती है तब तक दुध खत्म हो जाता है,

फिर चाचाजी बर्तन ढककर रख देते हैं और वो दूसरी गाय-भैंस को चारा डालते है और पानी भर कर रख देते है। घास चारा एक कमरे में रखा था ,जिसे शालिनी देखने जाती है

जहा बड़े बड़े घास के ढेर लगे थे,चाचाजी भी उसके पीछे पिछे आते हैं।
चाचाजी : यहां क्या देख रहे हों?
शालिनी: कुछ नहीं बस एसे ही देखने चली आयी।
चाचाजी : मुझे लगा मेरी गाय को भूख लगी है तो अपना चारा खाने आयी हो
शालिनी भी अपने को गाय कहलवाने से अच्छा लग रहा था, क्योंकि काफी दिनों बाद मज़ाक और छेड़खानी हो रही थी।
शालिनी : इस गाय को भूख तो लगी है इस लिए में यह गाय का दुध है वो पी लुंगी।
चाचाजी : थोड़ी भूख मुझे भी है पर मे वो नहीं इस गाय का दूध पाउंगा (शालिनी की ओर इशारा करते हैं)
शालिनी : (स्तन हल्के से दबाते हुए..)लगता है गाय के थन भर गए हैं
चाचाजी : वैसे भी वो महिला को आने में देर लगेगी, तो क्या अभी यही पीला सकती है?
शालिनी: ये घास के ढेर के पीछे पीला दूंगी
चाचाजी : पर अभी मुझे ईच्छा हुई है कि आप गाय बनकर नहीं नहीं भैंस बनकर दुध पिलाओ
शालिनी : क्या कहा भैंस?जाओ में आप से बात नहीं करती,मुझे भैंस क्यूँ कहा?क्या में काली हूं या मोटी हूं?
चाचाजी : अरे मुझे माफ कर दो ,मेरा ये मतलब बिल्कुल नहीं है, मैंने तुम्हें भैंस इस लिए कहा क्युकी भैंस का दुध गाढ़ा होता है और गाय के मुकाबले ज्यादा दुध देती है, और किसने कहा तुम काली हो? अरे तुम दूध जैसी ब्लकि उससे भी ज्यादा गोरी हो
मेरी सफेद भैंस! हाँ हाँ हाँ!
शालिनी : अच्छा ये मतलब था, तो फिर ठीक हैं,
चाचाजी : अब तो दूध दोगी ना?
शालिनी : हाँ! पर करना क्या है?
चाचाजी : पहले आप इस जगह पर आ जाए फिर झुककर चार पैरों की जैसे करना है, मानो जैसे गाय खड़ी हो ,फिर में आऊंगा और आपके स्तनों से दुध दोहन करूंगा।
शालिनी ये सुनकर काफी उत्तेजित होती है एसा करने के लिए,
शालिनी : में समझ गई अब चलिए भैंस का दुध नहीं निकालना?

शालिनी चार पैरों पर होने लगती है

चाचाजी: आपको ब्लाउज निकलना होगा।
शालिनी ब्लाउज निकाल देती हैं और चार पैरों पर खड़ी हो जाती हैं,

फिर चाचाजी आते है और एक बर्तन शालिनी के स्तनों के नीचे रख देते हैं ,फिर हल्के से स्तनों को छुते है और हल्के से दबाते है, बाद में धीरे से निप्पल को उँगलियों से मसल देते है ,जिससे शालिनी को हल्का दर्द होता है और उत्तेजना से निप्पल खड़े हो जाते हैं, फिर चाचाजी शालिनी के पीठ पर हाथ फिराते है ,
चाचाजी : मेरी प्यारी परी ! कैसी हो?कुछ तकलीफ तो नहीं?तुम मेरी बहुत खास हो, आज अपना दुध दो ताकि हमारा रिश्ता और गहरा बने।
शालिनी : परी ?
चाचाजी : हा, यहां सभी पशु के नाम रखे गए है, इसलिए तुम्हें भी एक नाम दिया, और तुम किसी परी से कम नहीं, मेरी जिन्दगी में खुशियो से भर दिया है।
चाचाजी शालिनी के लटकता स्तन अपनी मुट्ठी में भर लेते हैं और फिर दबाकर थन के जैसे खींचते है

जिससे शालिनी के स्तनों से दुध का फव्वारा होता है जिससे कुछ बूंदे बर्तन से बाहर गिरती है, चाचाजी दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों से दुहने लगते है, शालिनी ये नए अनुभव का आनंद लेती है, उसने सपने में भी नहीं सोचा था उसके स्तनों से एसे भी ईच्छा कोई पुरुष रख सकता है, शालिनी खुश थी क्युकी वो चाचाजी की ईच्छा पूरी कर रही थी,चाचाजी की खुशी उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रही थी।
चाचाजी शालिनी का ज्यादा दुध बर्बाद नहीं करना चाहते थे इसलिए वो दोहना बंध कर देते है।
शालिनी : (मन में..)चाचाजी रुक क्यूँ गए?मुजे अच्छा लग रहा था
चाचाजी शालिनी के चेहरे को देख उसकी सवालिया आँखों से समझ जाते हैं कि शालिनी क्या पूछना चाहती हैं।
चाचाजी : मे इसलिए रुक गया क्युकी इससे तुम्हारा अमृत जैसा दुध थोड़ा बर्बाद हो रहा है और में इसकी एक बूंद भी बर्बाद नहीं करना चाहता
शालिनी : फिर क्या आप मेरे साथ लेटकर पीना चाहते हैं या फिर गोदी में सिर रखकर?
चाचाजी : नहीं आप एसे ही रहो, जब आप मेरे लिए भैस बन गए हों तो मे बछड़ा बन ही सकता हूँ, अब मे बछड़े की तरह पाउंगा।
चाचाजी पीठ के बल लेटकर अपने सिर को शालिनी के स्तनों के नीचे ले आते हैं

और थोड़ी गर्दन उठाकर निप्पल मुँह में लेकर चूसने लगते है ,पर आधा मिनट हुआ कि चाचाजी की गर्दन दर्द करने लगी इसलिए उसका सिर नीचे हो गया और निप्पल मुँह से " पुच " की आवाज करके छुट गई,ये देख शालिनी हसने लगी।
शालिनी : लगता है मेरा बछड़ा कमजोर है।
शालिनी फिर थोड़ा नीचे झुकती है और निप्पल को चाचाजी के होंठ से लगा देती है, चाचाजी भी होंठ खोल कर निप्पल मुँह में लेकर चूसने लगते है, बारी-बारी से दोनों स्तनों को चूस कर लगभग खाली कर ही देने वाले थे इतने में शालिनी अचानक से निप्पल छुड़ाकर घुटनों के बल खड़ी हो जाती हैं।

चाचाजी : क्या हुआ?
शालिनी : मेरी कमर में दर्द होने लगा इसलिए,अभी आप एसे ही पी लीजिए।
शालिनी अपने शरीर को पिछे झुकाकर कमर सीधी करने का प्रयत्न करते हैं जिससे उसके दोनों दुग्ध कलश ओर ज्यादा तन जाते हैं, मानो कोई सपाट मैदान पर दो पर्वत खड़े हो,

एक-दो बार एसा करके वो चाचाजी के सामने दोनों हाथ सिर के पीछे ले जाकर स्तनों को तानकर स्तनों को चूसने का आमंत्रण देती है,

चाचाजी भी तुरत दोनों स्तनों को चूस कर खाली कर देते है,

फिर शालिनी अपना ब्लाउज और साड़ी ठीक करती है और चाचाजी के चेहरे पर का आनंद देख खुश होती हैं।
शालिनी : आपको खुशी हुई?क्या मेने आपकी ईच्छा अनुसार किया या कोई भूल हो गई?
चाचाजी : अरे नहीं..नहीं...मुझे बहुत खुशी हुई और जो सपना सविता ने पूरा ना किया वो तुमने पूरा किया ,तुम आज से मेरे लिए सबसे बढ़कर हो। आज तुमने एक बेहद ही खास स्थान बनाया है मेरे दिल में।
शालिनी : मुझे भी खुशी हुई कि मे आपका सपना पूरा करने में सफल रही, आगे भी कोई ईच्छा हो तो बेझिझक बता देना, मेरे से हो सके उतना में मदद करूंगी, क्योंकि आपने जो हमारे लिए किया है वो में नहीं भूल सकती।
चाचाजी : वो मेरा फर्ज था, पर मे सच बताऊ तो आज तुम हो ना...तुम हो ना...
चाचाजी का गला भर जाता है और वो शालिनी से गले लग जाते हैं, शालिनी भी उसके भाव को समझती थी, वो भी उसे सहारा देती हैं।

चाचाजी : आज तुम सविता से भी बढ़कर हो मेरे जीवन में, क्योंकि एसा मेने अपनी पत्नी के साथ भी नहीं किया था, जैसा तुम्हारे साथ किया, और तुमने मुझे इसमें सहयोग भी दिया।
शालिनी : नहीं में चाचीजी की जगह कभी नहीं ले सकती, और रही बात मेरी तो एसा मेने नीरव के साथ भी नहीं किया, ब्लकि नीरव एसा सोच भी नहीं सकेगा,पर अब आपसे एसा रिश्ता जुड़ गया है कि मे क्या बताऊँ?हमारे इस रिश्ते का कोई नाम तो नहीं पर जुड़ाव बहुत मजबूत है।
दोनो एकबार फिर गले लगते हैं।
शालिनी : मेने आपकी भूख तो मिटा दी पर मुझे थोड़ी भूख लगी है।
चाचाजी : तुम भी मेरी तरह दुध पी लो,
शालिनी एक लौटे में दुध भरकर पीने लगी तब लौटा ज्यादा झुकने से थोड़ा दुध उसके होठों से होते हुए उसके गले और ब्लाउज भिगा दिया और एक धार उसके स्तनों के बीच से होते हुए नाभि तक पहुंच गई,

तब चाचाजी उसके गले और स्तनों के उभार को चाटने लगते है

चाचाजी दुध की धार के पीछे पीछे नीचे की ओर आने लगते है जब स्तनों के उभार चाट कर जब वो नीचे झुके तब पारदर्शी साड़ी के पीछे गोल गहरी सुन्दर नाभि दिखाई देती हैं।
नाभि मानो कुआ हो और उसमे दुध की धार बहकर जा रही हो चाचाजी यह मनोहर दृश्य देखते हुए रुक जाते है, थोड़ी देर जब चाचाजी वैसे के वैसे ही रुके थे तब शालिनी उसके सिर को पकड़ कर नाभि से सटा लेती है

चाचाजी उसके पल्लू को बाजू करके नाभि में जीभ डाल कर दुध चाट लेते है और फिर नाभि और स्तनों के बीच जीभ से चाट कर साफ़ कर देते है, इस समय शालिनी थोड़े समय के लिए बहकने लगी थी, उसे चाचाजी का यू चाटने से अच्छा लगा, उसकी आँखें बंध थी, क्योंकि कितने महीने बाद किसी ने उसको एसे छुआ था, नीरव जब होता तब वो उसके गले को चाट लेता, इसलिए शालिनी ये एहसास मे खो गई, इसलिए तो उसने चाचाजी के सिर को अपने नाभि से चिपकाये था।
चाचाजी भी थोड़ी देर के लिए भूल गए थे कि वो किसके साथ है और क्या कर रहे हैं, मानो उसका शरीर अपने आप ये सब किए जा रहा है। जब शालिनी थोड़ा भान मे आती है तब वो चाचाजी का सिर अपने पेट से हटा देती है और पल्लू से नाभि ढक देती है और दो कदम पीछे हट जाती है,ये समय दोनों के लिए असहज था, दोनों अपने आप को ठीक करने मे लग जाते हैं और एकदूसरे से नजर मिलाने से बचते है, चाचाजी अपना मुँह धोने लगते है तभी गौशाला का दरवाजा खुलता है और वो महिला बाजर से वापिस आती हैं।
महिला: माफ करना ज्यादा समय लगा, ख़रीदारी करने में समय का पता नहीं चला।
चाचाजी : चेहरा पोछते हुए..)कोई बात नहीं, होता है,
महिला : बहुरानी बोर हो गई होगी।
शालिनी : नहीं एसी बात नहीं ,बल्कि मुझे बहुत मज़ा आया यहां आकर, और आज यहां मुझे जो अनुभव हुआ उसे में कभी नहीं भूल सकती और में चाहूँगी ये अनुभव मुझे और भी ज्यादा जीवन में मिले
यह बोलकर शालिनी चाचाजी के सामने हल्के से मुस्करा देती है, जिसे देख चाचाजी भी मुस्करा देते हैं और दोनों के बीच जो असहजता थी वो कम होती है।
वो महिला शालिनी को अपनी लायी हुई चीज़ दिखाती है, फिर वो शालिनी को लेकर एक गाय का दुध निकलने जाती है, उसे पता नहीं था कि चाचाजी ने उसे दुध दोहना सीखा चुके है और तो और खुद का दुध भी निकलवा चुकी है, पर शालिनी देखती है

और फिर वो दुध और घी लेकर वहां से निकल जाते हैं।
Part 1
सुबह होती है, कल थकान की वजह से सभी देरी से जागे थे, शालिनी जब बाहर आती है तब देखती है बाबुजी कसरत कर रहे हैं।
शालिनी : आज थोड़ी देर हो गई
बाबुजी : हाँ, आज मुझे भी देर हो गई, तुम नहा लो, तब तक में अपनी कसरत कर लूं।
शालिनी नहाने जाती है, और जब नहाकर आती है तब बाबुजी खटिया पर बैठे थे, शालिनी सीधा कमरे में जाती है और तैयार होने लगती है, अभी उसने एक टॉप और एक सलवार पहना ताकि उसे काम करने में आसानी हो, वो नास्ता बनाती है तब तक बाबुजी भी नहा कर तैयार हो गए थे और चाचाजी भी आ जाते हैं, बाबुजी नील को जगाकर ले आते हैं और सब साथ मे नास्ता करते हैं, फिर शालिनी पीठ करके नील को टॉप उठा कर स्तनपान करवाने लगती हैं।
नील को स्तनपान करवाने के बाद शालिनी सब काम करने लगती है,

काम करने से पसीने से उसका टॉप भीग गया था और उसके तने हुए निप्पल भी दिख रहे थे जब शालिनी जहा बाबुजी और चाचाजी नील को लेकर जिस खटिया पर बैठे थे वहां पौंछा करने आती है तब झुकने से उसके स्तन की दरार साफ दिखाई दे रही थी,


जब शालिनी सब काम निपटा कर खटिया पर आके बैठ जाती है और नैपकिन से चेहरा पोछने लगती है।

शालिनी: आज गर्मी बहुत लग रही है
बाबुजी : हा आज थोड़ी ज्यादा ही है।
शालिनी सरला को कॉल करके मार्केट साथ चलने को कहती है, पर सरला को सिलाई-कटाई का काम ज्यादा था इस लिए वो मना करती है पर वो शालिनी को गौशाला से घी लाने को कहती है और शालिनी कॉल काट देती है।
शालिनी : क्या आप मे से कोई मेरे साथ मार्किट चलेगा, मेने सरला को कहा पर उसे काम है और उसने गौशाला से घी मंगवाया है।
चाचाजी : हाँ, मार्केट गौशाला के पास ही लगती है।
शालिनी : कोई साथ आएगा तो अच्छा रहेगा क्युकी मेरा पहली बार है ना।
बाबुजी : बलवंत तुम चले जाओ, मे मुन्ने को सम्भालने के लिए घर पर रहूँगा, आज धूप ज्यादा है कहीं मुन्ना बीमार पड़ गया तो?
शालिनी : हाँ हाँ सही कह रहे हैं आप ,आज हमें इतनी गर्मी लग रही है तो नील को कितनी लगेगी,मे तैयार होकर आती हूं, चाचाजी आप भी तैयार हो जाए।
चाचाजी : ठीक है मे गाड़ी की चाबी ले आता हूं।
शालिनी एक बेकलैस ब्लाउज और साड़ी पहनती है

और क्रीम लगाकर आतीं है, तब तक चाचाजी भी चाबी लेकर आ जाते है ,शालिनी नील को स्तनपान करवा देती है ताकि उसे बाजार में दर्द ना हो और नील के खाने की चिंता ना रहे।
शालिनी : बाबुजी मेने नील को दूध पीला दिया है उसे अब दोपहर में थोड़ी दाल पीसकर पीला देना, और आपकी सब्जी बनाकर ही रखी है आप भी समय पर खाना खा लेना, हमारी राह मत देखना हम अपना कुछ कर लेंगे।
चाचाजी और शालिनी दोनों मोटरसाइकिल पर बाजार के लिए निकल जाते हैं, बाजार पहुंचकर चाचाजी अपनी मोटरसाईकिल एक जगह रखकर शालिनी के साथ बाजार में घूमने लगते है,

शालिनी देखती है कि बाज़ार में भी ज्यादातर महिलाए ही व्यापार कर रही थी यहा तक एक चाय की दुकान भी एक स्त्री संभालती थी,और एक मिठाई की दुकान पर भी महिला थी,


शालिनी को अच्छा लगा कि महिलाओं को इतना सम्मान मिलता था
शालिनी कुछ कपड़ा खरीदती है जिससे वो अपने लिए ब्लाउज बना सके और नील के लिए भी कुछ सूत के हल्के कपड़े लेती है ताकि उसे गर्मियों में कुछ राहत मिले,और फिर कुछ सब्जी और जरूरत की चीजें खरीदती है,

आखिर में उसे दादी मिलती है और उससे बाते कर के शालिनी बाजार से बाहर आती है।
शालिनी : यहां तो अच्छा बाजार लगता है, मेने सोचा नहीं था सब मिलेगा पर सब अच्छे दाम में मिल गया और मेने देखा सब आपको सम्मान देते थे अब चले,
चाचाजी : हा, चलो, तुम्हारी खरीदारी हो गई ना?
शालिनी : हा, सब ले लिया है, अब बस सरला के लिए घी लेना है, पर पहले कुछ पेट पूजा कर ले
दोनों फिर चाट पकौड़ी खाते हैं जिससे पेट की भूख मीट जाती हैं।
शालिनी : कितने दिनों बाद चाट पकौड़ी खाई मजा आ गया, अरे..वो गौशाला किधर है?
चाचाजी : ये यहां पास ही है, वो देखो वहां जो वो लोखंड का शेड दिख रहा है वही है।
शालिनी : चलिए ना, कुछ सोडा या ज्यूस पीते हैं, गर्मी कितनी है।
चाचाजी : आपको पीना हो तो चलो पर मे कुछ नहीं पिउंगा ,मुझे कुछ और पीना है।
चाचाजी नजरों से शालिनी के स्तनों की तरफ इशारा करते हैं।
शालिनी : वो तो मिलेगा ही आपको पर अभी ये पी लीजिए
चाचाजी : जब कोई अमृत चख ले उसे दूसरा कुछ पीने की ईच्छा नहीं होती
शालिनी : आप और आप की बाते, पर मुझे ज्यूस पीना है
शालिनी फिर ज्यूस पीती है

शालिनी : चलो चल के ही जाते हैं,
दोनों चलकर गौशाला पहुचते है वहां एक महिला सब गायों और गौशाला का ध्यान रखती थीं

वो चाचाजी को नमस्ते करती है, क्योंकि चाचाजी ने ही उसे वहां काम पर रखा था और उसे पैसे भी चाचाजी ही देते थे, दोनों इधर उधर की बाते करते है और हालचाल पूछते है, फिर चाचाजी उसका शालिनी से परिचय करवाते हैं
चाचाजी : हमें घी चाइये था तो 1 किलो दे दो।
वो महिला एक किलो घी देती है, तभी शालिनी गौशाला देखने को कहती है तब वो महिला और चाचाजी शालिनी को अंदर ले जाते है जहां गायों भैस को रखा गया था, वहां थोड़ी गोबर की गंध आ रही थी, पर सफाई होते रहने से ज्यादा नहीं आ रही थी।
शालिनी : चाचाजी हम भी दूध ले लेते हैं, ऐसा ताजा दूध कहा मिलेगा
चाचाजी : हाँ ठीक है, गाय का दूध लेते हैं ताकि मुन्ना भी पी सके।
महिला : चाचाजी एक काम कर सकते हैं, जरूरी है इस लिए वर्ना आपको तकलीफ नहीं देती।
चाचाजी : तकलीफ की बात नहीं है आप बताए।
महिला : वो आज बाजार लगा है ना इसलिए पड़ोस के गाव से मेरी सहेली आयी हैं तो उसके साथ बाजार में जाना था, मे चली जाऊँगी तो गाय भैस को चारा पानी देना था, मे जाने वाली थी तभी आप आ गए, और आप होंगे तो मुझे चिंता नहीं होगी।
चाचाजी : इतनी ही बात, ओह....कोई बात नही आप जाइए हम है इधर और अभी कोन सी गाय दूध देती है?मे निकाल लूँगा।
वो महिला एक गाय दिखाती हैं और वो बाजार के लिए निकल जाती है।
शालिनी : क्या गायों का भी समय होता है दुध देने का?
चाचाजी : हा, कोई भी गाय-भैंस अपने समय पर और अपने ही मालिक को दुध निकालने देती है।
शालिनी : आपको आता है दुध निकालना?
मेने आज तक किसी को गायों को दुध निकालते नहीं देखा ,शहर में तबेले में पहले से पन्नी रखते हैं ,इस लिए सीधा ले कर आ जाते हैं।
चाचाजी : मुझे दुध निकालने का बहुत अनुभव है, ये भी कला है, पहले थन को सहलाया जाता है धोया जाता है फिर हल्के से खींचना पड़ता है, गाय-भैंस को लगना चाहिए उसका बछड़ा दूध पी रहा है इससे वो ज्यादा और बढ़िया दुध देती हैं और मेने गाय-भैंस के अलावा किसी और का भी दुध निकाला है और पिया है
शालिनी समझ जाती हैं की चाचाजी किस के बारे में कह रहे हैं, ये बात सुनकर शर्मा जाती है।
शालिनी : बहुत हो गई आपकी बड़ी बाते, अभी दिखाये कैसे दूध निकालते हैं
एसा बोलकर शालिनी दो हाथों से दुध निकालने का इशारा करती है और मुस्करा देती है,

चाचाजी एक बर्तन लेते है और पहले गाय को चारा डालते है जिसे वो गाय खाने लगती है, चाचाजी नीचे बैठ कर थन के नीचे बर्तन रखेगे है, और शालिनी को गाय की पीठ सहलाने को कहते है, शालिनी पीठ सहलाती है और थोड़ा झुककर देखती है चाचाजी कैसे करते है, जिससे उसके स्तनों के बीच की गहराई चाचाजी के नजरों के सामने आ जाती हैं,चाचाजी से रहा नहीं जाता और वो उसे चूमने लगते है।

शालिनी : आपको अभी गाय का दुध निकालना है इस गाय का दुध आपको बाद में मिलेगा।
शालिनी चाचाजी के सिर पर टपली मारती है।
चाचाजी : हाँ सही कहा, एक बात अच्छी है इस गाय के दुध देने में पूरे दिन इंतजार नहीं करवाती, और ये गाय मारती भी नहीं ब्लकि प्यार करती है।
शालिनी : अभी थोड़ा जल्दी करेंगे तो हो सकता है इस गाय का दुध अभी मिल जाए।
चाचाजी : तो फिर देखो कैसे दुध निकालता हूं।
चाचाजी गाय के थन को पानी से धोकर साफ करके सहलाते है फिर उँगलियों से हल्के हल्के खींचने लगते है जिससे " चरररररर" की आवाज से दुध बर्तन में गिरता है, थोड़ी देर में बर्तन पूरा भर जाता है।

चाचाजी : तुमको दुध निकालना है?
शालिनी : हा
चाचाजी : बैठो।
चाचाजी शालिनी को अपनी जगह बिठाते है और वो उसके बग़ल में बैठते हैं, फिर वो शालिनी को थन को पकडना और खींचना सिखाते हैं, तभी शालिनी से उंगली फिसल जाती है और दुध की धार उसके चेहरे पर आती है, जिससे दोनों हसने लगते है।
शालिनी : ये मेरे बस का नहीं।
चाचाजी : एसा नहीं है, प्रयास करने से हो जाता है।
शालिनी : मेरा काम नहीं दुध निकालना
चाचाजी : सही कहा आपका काम दुध निकालना नहीं ब्लकि दुध देना है, निकालने का काम मेरा है।
शालिनी : अच्छा जी! बहुत बोलने लगे हो, बदमाश कहीं के।
शालिनी एक दो बार प्रयास करती है तब तक दुध खत्म हो जाता है,

फिर चाचाजी बर्तन ढककर रख देते हैं और वो दूसरी गाय-भैंस को चारा डालते है और पानी भर कर रख देते है। घास चारा एक कमरे में रखा था ,जिसे शालिनी देखने जाती है

जहा बड़े बड़े घास के ढेर लगे थे,चाचाजी भी उसके पीछे पिछे आते हैं।
चाचाजी : यहां क्या देख रहे हों?
शालिनी: कुछ नहीं बस एसे ही देखने चली आयी।
चाचाजी : मुझे लगा मेरी गाय को भूख लगी है तो अपना चारा खाने आयी हो
शालिनी भी अपने को गाय कहलवाने से अच्छा लग रहा था, क्योंकि काफी दिनों बाद मज़ाक और छेड़खानी हो रही थी।
शालिनी : इस गाय को भूख तो लगी है इस लिए में यह गाय का दुध है वो पी लुंगी।
चाचाजी : थोड़ी भूख मुझे भी है पर मे वो नहीं इस गाय का दूध पाउंगा (शालिनी की ओर इशारा करते हैं)
शालिनी : (स्तन हल्के से दबाते हुए..)लगता है गाय के थन भर गए हैं
चाचाजी : वैसे भी वो महिला को आने में देर लगेगी, तो क्या अभी यही पीला सकती है?
शालिनी: ये घास के ढेर के पीछे पीला दूंगी
चाचाजी : पर अभी मुझे ईच्छा हुई है कि आप गाय बनकर नहीं नहीं भैंस बनकर दुध पिलाओ
शालिनी : क्या कहा भैंस?जाओ में आप से बात नहीं करती,मुझे भैंस क्यूँ कहा?क्या में काली हूं या मोटी हूं?
चाचाजी : अरे मुझे माफ कर दो ,मेरा ये मतलब बिल्कुल नहीं है, मैंने तुम्हें भैंस इस लिए कहा क्युकी भैंस का दुध गाढ़ा होता है और गाय के मुकाबले ज्यादा दुध देती है, और किसने कहा तुम काली हो? अरे तुम दूध जैसी ब्लकि उससे भी ज्यादा गोरी हो
मेरी सफेद भैंस! हाँ हाँ हाँ!
शालिनी : अच्छा ये मतलब था, तो फिर ठीक हैं,
चाचाजी : अब तो दूध दोगी ना?
शालिनी : हाँ! पर करना क्या है?
चाचाजी : पहले आप इस जगह पर आ जाए फिर झुककर चार पैरों की जैसे करना है, मानो जैसे गाय खड़ी हो ,फिर में आऊंगा और आपके स्तनों से दुध दोहन करूंगा।
शालिनी ये सुनकर काफी उत्तेजित होती है एसा करने के लिए,
शालिनी : में समझ गई अब चलिए भैंस का दुध नहीं निकालना?

शालिनी चार पैरों पर होने लगती है

चाचाजी: आपको ब्लाउज निकलना होगा।
शालिनी ब्लाउज निकाल देती हैं और चार पैरों पर खड़ी हो जाती हैं,


फिर चाचाजी आते है और एक बर्तन शालिनी के स्तनों के नीचे रख देते हैं ,फिर हल्के से स्तनों को छुते है और हल्के से दबाते है, बाद में धीरे से निप्पल को उँगलियों से मसल देते है ,जिससे शालिनी को हल्का दर्द होता है और उत्तेजना से निप्पल खड़े हो जाते हैं, फिर चाचाजी शालिनी के पीठ पर हाथ फिराते है ,
चाचाजी : मेरी प्यारी परी ! कैसी हो?कुछ तकलीफ तो नहीं?तुम मेरी बहुत खास हो, आज अपना दुध दो ताकि हमारा रिश्ता और गहरा बने।
शालिनी : परी ?
चाचाजी : हा, यहां सभी पशु के नाम रखे गए है, इसलिए तुम्हें भी एक नाम दिया, और तुम किसी परी से कम नहीं, मेरी जिन्दगी में खुशियो से भर दिया है।
चाचाजी शालिनी के लटकता स्तन अपनी मुट्ठी में भर लेते हैं और फिर दबाकर थन के जैसे खींचते है

जिससे शालिनी के स्तनों से दुध का फव्वारा होता है जिससे कुछ बूंदे बर्तन से बाहर गिरती है, चाचाजी दोनों स्तनों को अपने दोनों हाथों से दुहने लगते है, शालिनी ये नए अनुभव का आनंद लेती है, उसने सपने में भी नहीं सोचा था उसके स्तनों से एसे भी ईच्छा कोई पुरुष रख सकता है, शालिनी खुश थी क्युकी वो चाचाजी की ईच्छा पूरी कर रही थी,चाचाजी की खुशी उसके चेहरे पर साफ़ दिखाई दे रही थी।
चाचाजी शालिनी का ज्यादा दुध बर्बाद नहीं करना चाहते थे इसलिए वो दोहना बंध कर देते है।
शालिनी : (मन में..)चाचाजी रुक क्यूँ गए?मुजे अच्छा लग रहा था
चाचाजी शालिनी के चेहरे को देख उसकी सवालिया आँखों से समझ जाते हैं कि शालिनी क्या पूछना चाहती हैं।
चाचाजी : मे इसलिए रुक गया क्युकी इससे तुम्हारा अमृत जैसा दुध थोड़ा बर्बाद हो रहा है और में इसकी एक बूंद भी बर्बाद नहीं करना चाहता
शालिनी : फिर क्या आप मेरे साथ लेटकर पीना चाहते हैं या फिर गोदी में सिर रखकर?
चाचाजी : नहीं आप एसे ही रहो, जब आप मेरे लिए भैस बन गए हों तो मे बछड़ा बन ही सकता हूँ, अब मे बछड़े की तरह पाउंगा।
चाचाजी पीठ के बल लेटकर अपने सिर को शालिनी के स्तनों के नीचे ले आते हैं

और थोड़ी गर्दन उठाकर निप्पल मुँह में लेकर चूसने लगते है ,पर आधा मिनट हुआ कि चाचाजी की गर्दन दर्द करने लगी इसलिए उसका सिर नीचे हो गया और निप्पल मुँह से " पुच " की आवाज करके छुट गई,ये देख शालिनी हसने लगी।
शालिनी : लगता है मेरा बछड़ा कमजोर है।
शालिनी फिर थोड़ा नीचे झुकती है और निप्पल को चाचाजी के होंठ से लगा देती है, चाचाजी भी होंठ खोल कर निप्पल मुँह में लेकर चूसने लगते है, बारी-बारी से दोनों स्तनों को चूस कर लगभग खाली कर ही देने वाले थे इतने में शालिनी अचानक से निप्पल छुड़ाकर घुटनों के बल खड़ी हो जाती हैं।

चाचाजी : क्या हुआ?
शालिनी : मेरी कमर में दर्द होने लगा इसलिए,अभी आप एसे ही पी लीजिए।
शालिनी अपने शरीर को पिछे झुकाकर कमर सीधी करने का प्रयत्न करते हैं जिससे उसके दोनों दुग्ध कलश ओर ज्यादा तन जाते हैं, मानो कोई सपाट मैदान पर दो पर्वत खड़े हो,

एक-दो बार एसा करके वो चाचाजी के सामने दोनों हाथ सिर के पीछे ले जाकर स्तनों को तानकर स्तनों को चूसने का आमंत्रण देती है,

चाचाजी भी तुरत दोनों स्तनों को चूस कर खाली कर देते है,

फिर शालिनी अपना ब्लाउज और साड़ी ठीक करती है और चाचाजी के चेहरे पर का आनंद देख खुश होती हैं।
शालिनी : आपको खुशी हुई?क्या मेने आपकी ईच्छा अनुसार किया या कोई भूल हो गई?
चाचाजी : अरे नहीं..नहीं...मुझे बहुत खुशी हुई और जो सपना सविता ने पूरा ना किया वो तुमने पूरा किया ,तुम आज से मेरे लिए सबसे बढ़कर हो। आज तुमने एक बेहद ही खास स्थान बनाया है मेरे दिल में।
शालिनी : मुझे भी खुशी हुई कि मे आपका सपना पूरा करने में सफल रही, आगे भी कोई ईच्छा हो तो बेझिझक बता देना, मेरे से हो सके उतना में मदद करूंगी, क्योंकि आपने जो हमारे लिए किया है वो में नहीं भूल सकती।
चाचाजी : वो मेरा फर्ज था, पर मे सच बताऊ तो आज तुम हो ना...तुम हो ना...
चाचाजी का गला भर जाता है और वो शालिनी से गले लग जाते हैं, शालिनी भी उसके भाव को समझती थी, वो भी उसे सहारा देती हैं।

चाचाजी : आज तुम सविता से भी बढ़कर हो मेरे जीवन में, क्योंकि एसा मेने अपनी पत्नी के साथ भी नहीं किया था, जैसा तुम्हारे साथ किया, और तुमने मुझे इसमें सहयोग भी दिया।
शालिनी : नहीं में चाचीजी की जगह कभी नहीं ले सकती, और रही बात मेरी तो एसा मेने नीरव के साथ भी नहीं किया, ब्लकि नीरव एसा सोच भी नहीं सकेगा,पर अब आपसे एसा रिश्ता जुड़ गया है कि मे क्या बताऊँ?हमारे इस रिश्ते का कोई नाम तो नहीं पर जुड़ाव बहुत मजबूत है।
दोनो एकबार फिर गले लगते हैं।
शालिनी : मेने आपकी भूख तो मिटा दी पर मुझे थोड़ी भूख लगी है।
चाचाजी : तुम भी मेरी तरह दुध पी लो,
शालिनी एक लौटे में दुध भरकर पीने लगी तब लौटा ज्यादा झुकने से थोड़ा दुध उसके होठों से होते हुए उसके गले और ब्लाउज भिगा दिया और एक धार उसके स्तनों के बीच से होते हुए नाभि तक पहुंच गई,

तब चाचाजी उसके गले और स्तनों के उभार को चाटने लगते है

चाचाजी दुध की धार के पीछे पीछे नीचे की ओर आने लगते है जब स्तनों के उभार चाट कर जब वो नीचे झुके तब पारदर्शी साड़ी के पीछे गोल गहरी सुन्दर नाभि दिखाई देती हैं।
नाभि मानो कुआ हो और उसमे दुध की धार बहकर जा रही हो चाचाजी यह मनोहर दृश्य देखते हुए रुक जाते है, थोड़ी देर जब चाचाजी वैसे के वैसे ही रुके थे तब शालिनी उसके सिर को पकड़ कर नाभि से सटा लेती है

चाचाजी उसके पल्लू को बाजू करके नाभि में जीभ डाल कर दुध चाट लेते है और फिर नाभि और स्तनों के बीच जीभ से चाट कर साफ़ कर देते है, इस समय शालिनी थोड़े समय के लिए बहकने लगी थी, उसे चाचाजी का यू चाटने से अच्छा लगा, उसकी आँखें बंध थी, क्योंकि कितने महीने बाद किसी ने उसको एसे छुआ था, नीरव जब होता तब वो उसके गले को चाट लेता, इसलिए शालिनी ये एहसास मे खो गई, इसलिए तो उसने चाचाजी के सिर को अपने नाभि से चिपकाये था।
चाचाजी भी थोड़ी देर के लिए भूल गए थे कि वो किसके साथ है और क्या कर रहे हैं, मानो उसका शरीर अपने आप ये सब किए जा रहा है। जब शालिनी थोड़ा भान मे आती है तब वो चाचाजी का सिर अपने पेट से हटा देती है और पल्लू से नाभि ढक देती है और दो कदम पीछे हट जाती है,ये समय दोनों के लिए असहज था, दोनों अपने आप को ठीक करने मे लग जाते हैं और एकदूसरे से नजर मिलाने से बचते है, चाचाजी अपना मुँह धोने लगते है तभी गौशाला का दरवाजा खुलता है और वो महिला बाजर से वापिस आती हैं।
महिला: माफ करना ज्यादा समय लगा, ख़रीदारी करने में समय का पता नहीं चला।
चाचाजी : चेहरा पोछते हुए..)कोई बात नहीं, होता है,
महिला : बहुरानी बोर हो गई होगी।
शालिनी : नहीं एसी बात नहीं ,बल्कि मुझे बहुत मज़ा आया यहां आकर, और आज यहां मुझे जो अनुभव हुआ उसे में कभी नहीं भूल सकती और में चाहूँगी ये अनुभव मुझे और भी ज्यादा जीवन में मिले
यह बोलकर शालिनी चाचाजी के सामने हल्के से मुस्करा देती है, जिसे देख चाचाजी भी मुस्करा देते हैं और दोनों के बीच जो असहजता थी वो कम होती है।
वो महिला शालिनी को अपनी लायी हुई चीज़ दिखाती है, फिर वो शालिनी को लेकर एक गाय का दुध निकलने जाती है, उसे पता नहीं था कि चाचाजी ने उसे दुध दोहना सीखा चुके है और तो और खुद का दुध भी निकलवा चुकी है, पर शालिनी देखती है

और फिर वो दुध और घी लेकर वहां से निकल जाते हैं।