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Romance ISHQ MUBARAK ( romantic love story)

gauravrani

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इश्क़ आबाद करता है या बरबाद..
‘तू'... में इससे छोटा और इससे बड़ा शब्द कोई और नहीं। ये शब्द कितना छोटा है ये तो फ़ौरन पता चल जाता है, लेकिन कितना बड़ा है ये तब समझ में आता है जब इश्क़ सहराओं की ख़ाक उड़ा के, दरियाओं की वुसअत नाप के, कहकशाओं का तवाफ़ करके वापस एक अँधेरे बंद कमरे में लौटता है और मोबाइल फोन पर किसी की मुस्कराती हुई तस्वीर को बेतहाशा चूमते हुए दहाड़ें मार के रोता है। ख़ुदग़र्ज़ से ख़ुदग़र्ज़ तबीयत का इंसान, जिसने पूरी ज़िंदगी ‘मैं' से आगे कुछ नहीं सोचा, वो एक ‘तू' पे आकर इस क़दर मजबूर हो जाता है जैसे समंदर की कोख से निकले हुए सुनामी के आगे एक टूटी हुई कश्ती का मुसाफ़िर। इश्क़ आबाद करता है या बरबाद, क़ैद करता है या आज़ाद... इन सवालों के जवाब वो नहीं दे पाये जिन्होंने पहाड़ों का सीना चीर के दूध की नदियाँ बहा
 

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दीं या कच्चे घड़े पर तैर के चिनाब का दरिया पार करने निकल पड़े... तो मेरी हैसियत क्या... लेकिन इतना यक़ीन से कह सकता हूँ कि इश्क़ एक मुबारक चीज़ है। ये वो ज़हर है जिसे पीने वाला ‘वली’ हो जाता है; वो धोखा है, जिसे खाने वाला अगर ज़िंदा रह गया तो ण्ब्aहग् की गोलियाँ खा के भी नहीं मर सकता। इश्क़ बुज़दिलों की पनाह नहीं, शेरदिलों का मोर्चा है।
 

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फर्स्ट मीटिंग
सुबह के क़रीब 7:30 बज रहे थे। देश की राजधानी दिल्ली में सर्दी अपने पूरे जोश और जुनून पर थी। कोहरा इतना घना था कि हाथ भर दूर का आदमी नज़र नहीं आ रहा था। मीर जैसे-तैसे इन्दिरा गाँधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट पहुँचा था। 9:30 बजे की फ़्लाइट से उसे मुम्बई जाना था। मीर को हमेशा सफर में कॉर्नर वाली सीट चाहिए होती थी। उसे बादलों से प्यार था, वो उड़ता था तो गुनगुनाता था। वो किसी आजाद पंक्षी की तरह था जो मदमस्त चाल चलता है और ऊंचाइयों को पल में छू लेता है। वह चांद सितारों को देखकर गीतों की बात करता था। नदियों और पहाड़ों को देखकर ऊंचे-ऊंचे सुर लगाता था। समंदर की लहरें उसे किसी साज के जैसे नजर आती थीं। वह उनकी आवाज के साथ अपने गीतों का तालमेल बैठाता था। वो एक ऐसा इंसान था जो किसी की भी ज़िन्दगी में पल में रंग भर देता था।
 

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मीर मलिक यानी रॉकस्टार मीर... जिसके गानों की एलबम ‘‘इश्क़ मुबारक’’ ने तहलका मचाया हुआ था। युवाओं की ज़ुबां पर उसका ये गाना चढ़ा हुआ था। उसकी आवाज़ का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था। तमाम संघर्षों के बाद उसे ये मुक़ाम हासिल हुआ था। मुम्बई के लिए फ़्लाइट रवाना होने वाली थी और वह बाहर नीले आसमान से न जाने क्या बातें कर रहा था। ‘‘एक्सक्यूजमी! इज दिस योर बैग?’’- 25-26 साल की एक लड़की के इस सवाल ने मीर को सोच की मुद्रा से बाहर निकाला। मीर ने उसकी तरफ़ देखा। ठीक-ठाक हाइट वाली एक लड़की पीठ पर बैग टाँगे हुए थी। ब्लैक टॉप-जींस पहने हेडफोन लगाये हुए। मीर कुछ कहता तब तक फिर उसने कहा- ‘‘एक्चुयली दिस इज माय सीट... कैन यू प्लीज शि़फ्ट योर बैग।’’ ‘‘ओह सॉरी... यू प्लीज सिट।’’- मीर ने सीट से छोटा-सा बैग उठाते हुए कहा। ‘‘थैंक यू सो मच।’’- लड़की ये कहते हुए सीट पर बैठ गयी।
 

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मीर ने बैग सामने वाली कुर्सी के नीचे रख दिया। इसमें वह एक डायरी रखता था जिसमें गाने लिखे होते थे। कंसर्ट की डेट के लिए एक दूसरी डायरी, एक दो किताबें, पेन और माँ की एक तस्वीर रखता था। केवल माँ की तस्वीर इसलिए क्योंकि पिताजी की कोई तस्वीर उसके पास थी ही नहीं। कुछ देर सामने देखने के बाद फिर वह विंडो से बाहर देखने लगा। फ़्लाइट में एयर होस्टेस सुरक्षा उपकरणों और दिशा-निर्देशों की जानकारी दे रही थी। तभी पास बैठी लड़की ने मीर की तरफ़ अपना चेहरा घुमाया। वो काफी देर तक मीर के चेहरे को देखती रही। मीर ने अपने लम्बे बालों को चेहरे पर आने से रोकने के लिये हाथ से बुना हुआ कैप लगाया हुआ था। ब्लैक टीशर्ट के ऊपर उसने लेदर जैकेट पहनी थी, साथ में घुटनों के पास से फटी हुई जींस। लड़की को ये चेहरा कुछ जाना-पहचाना सा लगा और काफी देर बाद उसे ये समझ आ गया कि वो जिस गाने को सुनती हुई फ़्लाइट में दाख़िल हुई थी वो दरअसल इसी इंसान ने गाया है। उसने एक झटके में हेडफोन निकाला और मीर की तरफ उँगली से चुटकी बजाते हुए कहा- ‘‘मीर... रॉकस्टार मीर।’’ योयो हनी
 

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की तरह मीर भी रॉकस्टार मीर के नाम से ही फ़ेमस हो रहा था। मीर ने जब अपना नाम सुना तो चेहरा घुमाया और लड़की को देखा। तब तक उसने फिर से कहा- ‘‘आप मीर हैं न जिन्होंने इश्क़ मुबारक गाना गाया है।’’ ‘‘यस’’- मीर ने कहा। ‘‘हाय! माय सेल्फ साहिबा... साहिबा नूर।’’- उस लड़की ने मीर की तरफ़ हाथ बढ़ाते हुए कहा। मीर ने हाथ मिलाया और पूछा- ‘‘कैसे पहचाना आपने मुझे?’’ ‘‘अरे सर आपको कौन नहीं पहचानता है, आप ही छाये हुए हैं आजकल, हर तरफ जलवा है और आप जब एक साल पहले नोएडा युनिवर्सिटी में आये थे न तो मैं आयी थी आपके कॉन्सर्ट में।’’ ‘‘रीयली?’’- मीर ने पूछा। ‘‘यस... तब पहली बार आपको लाइव सुना था; आपके सारे गाने मुझे पसंद हैं... वो गाना है न आपका ‘‘तेरी ज़ुल्फ़ें जैसे आसमां में काली घटा’’ मेरा फ़ेवरेट है।’’
 

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‘‘थैंक यू सो मच... लेकिन आपने मेरा नया गाना सुना ‘‘इश्क़ मुबारक’’। ‘‘सर आप यकीन नहीं करेंगे, अभी फ़्लाइट में आते वक्त वही गाना मैं सुन रही थी।’’ ‘‘दैट्स गुड यार, इट्स अ लव एंथम, बहुत मन से गाया है और बहुत प्यार मिला है इस गाने को।’’ ‘‘इसमें कोई शक नहीं है सर।’’ ‘‘वैसे आप मीर कह सकती हैं मुझे, सर बहुत फॉर्मल लगता है।’’ ‘‘अरे आप इतने बड़े आदमी हैंनाम लेना अच्छा नहीं लगता।’’ ‘‘ऐसा कुछ नहीं है, मैं बहुत साधारण आदमी हूँ, आप नाम लेंगी तो मुझे अच्छा लगेगा।’’ - मीर ने कहा। ‘‘ठीक है फिर ... मीर साहब।’’- लड़की ने हँसते हुए कहा और मीर के चेहरे पर भी थोड़ी मुस्कान आयी। विमान आसमान में उड़ने लगा था। दोनों एक-दूसरे से ख़ूब बातें कर रहे थे। साहिबा का तो जैसे आज जैकपॉट लग गया था। मीर जैसे सिंगर के साथ सीट मिल गयी थी जो उसने कभी सोचा तक नहीं था। मीर के
 

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सिंगर बनने की ये यात्रा कहाँ से और कैसे शुरू हुई साहिबा सब जान लेना चाहती थी। मीर न्यू ईयर की पार्टी में अपनी आवाज़ का जादू चलाने जा रहा था तो साहिबा अपने बुटीक के लिए कुछ अच्छे ब्रैंड्स के आउटफ़िट्स ऑर्डर करने मुम्बई जा रही थी। बीते चार-पाँच दिन से मीर ने किसी से बात नहीं की थी तो अब साहिबा से बात करके उसे भी थोड़ा हलका फ़ील हो रहा था। घर-परिवार और कामकाज की बातों में कब दो घण्टे निकल गये पता ही नहीं चला और विमान मुम्बई के छत्रपति शिवाजी हवाई अड्डे पर उतर गया। दोनों की ये यात्रा तो बेहद सुखद रही थी। अपना-अपना लगेज लेकर दोनों एयरपोर्ट के बाहर आये। साहिबा ने कैब बुक की थी तो मीर को लेने एक चमचमाती ब्लैक कलर की मर्सिडीज आयी थी। मीर ने साहिबा को साथ चलने का ऑफर भी दिया था लेकिन साहिबा फिर मिलने का वादा कर चली गयी। फ़्लाइट में साहिबा ने मीर को अपने बारे में सब कुछ बता दिया था। साहिबा बरेली की रहने वाली थी। उन्नीस साल की छोटी उम्र में ही शादी कर दी गयी और वह बरेली से पति के घर नोएडा आ गयी। दो जुड़वा बेटियाँ हैं और अब वह बुटीक चलाती है।
 

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जिस वक़्त शादी हुई थी उस समय साहिबा ने आँखों में तमाम सपने पाल रखे थे। वह डांस करती थी, वह गाना गाती थी और इसी क्षेत्र में अपनी पहचान बनाना चाहती थी; लेकिन क़िस्मत में कुछ और ही लिखा था। ये सच है कि इंसान के हाथ में मेहनत करना लिखा होता है न कि क़िस्मत बदलना। पति नूर मोहम्मद गृह-मंत्रालय में अधिकारी हैं। परिवार में सास हैं। सास और साहिबा बुटीक पर फ़ोकस करते हैं। चार साल पहले शुरू किये बुटीक से साहिबा ने पैसा तो ख़ूब कमाया लेकिन अपने सपनों का गला घोंटने की कसक अभी भी उसके दिल में है। पर क्या करे... अब सपने पूरा करने वाला वक़्त हाथ से फिसल चुका है। परिवार की ज़िम्मेदारी के अलावा एक बेटे की चाहत उसके साथ-साथ पूरे परिवार को है। दो जुड़वाँ बेटियाँ होने के बावजूद पूरे परिवार को लगता है कि वंश तो आगे बेटा ही चलाएगा। सास और पति ने जब तीसरे बच्चे के लिए दवाब डाला तो साहिबा बहुत मुश्किल से मानी थी। दो दिन बाद काम निपटाकर साहिबा दिल्ली वापस आ गयी थी लेकिन मीर से हुई मुलाक़ात
 
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