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हलचल के बैठी रही तो मीर उसका हाथ अपने हाथों में थामे उसके जवाब का इंतज़ार कर रहा था। कुछ पल बाद मीर ने साहिबा के हाथ को सहलाते हुए पूछा- ‘‘बताइए साहिबा जो हमने अभी कहा वो सच है न!’’ साहिबा ने एक गहरी साँस ली और कँपकपाते होठों से हाँ में सिर हिला दिया। ‘‘देखो हमने सच कहा था न... ठीक है अब नहीं जाऊँगा में कहीं खुश ना?’’ - मीर ने साहिबा का हाथ छोड़ते हुए कहा। मीर की गिऱफ्त से जैसे ही साहिबा का हाथ बाहर आया तो उसकी धड़कनें सामान्य हुईं। टेबल पर रखा पानी का गिलास उठाकर साहिबा ने एक साँस में उसे आधा कर दिया। ‘‘मीर देखो तुम्हारे अंदर की ख़ूबियों ने मुझे तुम्हारे क़रीब ला दिया है। जब से हम मिले ऐसा एक पल नहीं है जब तुम मेरे ख़याल में न रहे हो। जब मेरा निकाह नहीं हुआ था तो कई सारे सपने मेरी आँखों में पलते थे जो सब ख़त्म हो गये। तुमसे मिली तो पता नहीं क्यों ऐसा लगा जैसे जो मैं करना चाहती थी वो तुमने कर दिखाया। तुम मेरी ज़िन्दगी में एक अलग-सी उम्मीद लेकर आये हो। ऐसा नहीं कि मैं अपनी ज़िन्दगी में खुश नहीं हूँ; सब कुछ है