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Romance ISHQ MUBARAK ( romantic love story)

gauravrani

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और इस मुलाक़ात में हुई बातें अभी भी उसके ज़ेहन में थी। मीर की ज़िन्दगी के बारे में वह बख़ूबी जानती थी। वह हैरान थी कि 24-25 साल की उम्र में मीर ने अपने सपने पूरे कर लिये और आज वह अपने सपनों को जी रहा है। वह इस सोच में थी कि कैसे लोग अपने सपनों को पूरा कर लेते हैं। उसके दिमाग़ में चल रहा था कि न जाने उसके जैसे लोग क्यों अपने सपनों के लिए लड़ नहीं पाते हैं और उन्हें अपनी आँखों के सामने टूटने देते हैं। मीर से मिलने के बाद साहिबा को ये मलाल तो था कि उसने कितनी आसानी से ख़ुद का रास्ता बदलकर परिवार का रास्ता चुन लिया, लेकिन उसे इस बात की ख़ुशी थी कि चलो मीर वहाँ पहुँचा जहाँ वो पहुँचना चाहता था। बुटीक पर बैठे-बैठे साहिबा ने मीर की इंस्टाग्राम प्रोफ़ाइल खोली और उसे फॉलो कर लिया। मीर के फ़ेसबुक पेज से वह पहले ही जुड़ी थी। मीर ने इंस्टाग्राम पर जो फ़ोटोज पोस्ट किये थे उन्हें कई बार साहिबा ने देखा और कुछ फ़ोटोज के स्क्रीनशॉट भी मोबाइल में सेव कर लिये। यूट्यूब पर मीर के कई वीडियोज उसने शाम तक देख डाले। इंस्टाग्राम पर मीर के सारे फ़ोटोज पर उसने लाइक बटन दबा दिया। बुटीक के बाद साहिबा घर पहुँची तो इंस्टाग्राम पर एक नोटिफ़िकेशन आया। साहिबा को इंस्टाग्राम पर मीर ने
 

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फॉलो किया था। मीर का फ़ॉलोबैक मिलना उसके लिए किसी तोहफ़े से कम नहीं था। मीर से मुलाकात का सारा वाक़या उसने घर पर भी बताया था और यह भी बताया कि इंस्टाग्राम पर दोनों एक-दूसरे को फ़ॉलो करने लगे हैं। ये बात साहिबा की सास और पति को थोड़ी नागवार गुज़री लेकिन साहिबा तो मीर की ख़ुमारी में थी, उसने ये सब समझने की कोशिश तक नहीं की। उसके मुँह से मीर के बारे में सुनकर पति और सास ने जिस तरह से मुँह बनाया था वह उसका मतलब जानबूझकर समझना नहीं चाहती थी। वह उठी और मुस्कुराती हुई अपने कमरे में चली गयी। कपड़े बदलकर उसने अपना सेलफोन उठाया और इंस्टाग्राम पर मीर को एक मैसेज टाइप किया- हेलो मीर साहब! कैसे हैं? चंद पल पहले ही मीर इंस्टाग्राम पर एक्टिव था। काफी देर तक वह उसके मैसेज का इंतज़ार करती रही और जब जवाब नहीं आया तो उसने फोन सिरहाने रखा और आँखें बंद कर लेट गयी। मीर मुम्बई के जूहू बीच पर लाइव कॉन्सर्ट कर होटल की तरफ़ लौट रहा था तभी उसने इंस्टाग्राम पर साहिबा का मैसेज देखा। साहिबा के मैसेज का जवाब लिखकर उसने भी फोन बंद कर दिया और कार की सीट
 

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पर अपना सिर टिकाकर आँखें बंद कर लीं। मुम्बई की ख़ाली सड़कों पर मीर की ब्लैक मर्सिडीज कार बहुत तेज दौड़ रही थी। दिल्ली में जहाँ कड़कड़ाती सर्दी थी, वहीं मुम्बई में मौसम सामान्य था।
 
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बचपन की दुनिया
छोटी-सी उम्र में यूपी के मेरठ के क़रीब एक छोटे-से गाँव के रहने वाले मीर ने जो मुक़ाम पाया था उसके क़िस्से अख़बारों से लेकर टीवी तक ख़ूब छपे और सुनाये गये। रेडियो पर मीर के गाने बजते तो उसके जीवन की उन काली रातों से भी परदा उठाया जाता जो अकेले और डर के साये में गुज़रीं। एक तरफ़ उसके गाने झूमने को मजबूर करते तो दूसरी तरफ़ उसके भूखे पेट से लेकर फटे कपड़ों और कच्चे टूटे-फूटे घर और मिट्टी के चूल्हे की कहानी कुछ कर गुज़रने की प्रेरणा देती थी। मीर घर में अकेला था। चार साल की उम्र में जब पापा की उँगली पकड़कर स्कूल जाने का वक़्त आया तो बीमारी से पिता की जान चली गयी। अब क्या था दु:खों का पहाड़ टूट पड़ा और एकमात्र घर की कमाई, जलेबी की दुकान भी बंद हो गयी। प्राइमरी स्कूल में मीर पढ़ने जाने लगा। माँ घर का काम करती। वो चाहतीं कि मीर को वह दुनिया की हर खुशी दें। दुनिया की हर माँ यही तो चाहती है। लेकिन
 

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इस दुनिया में ख़ुशियाँ पैसे से मिलती हैं न कि चाहने से। दौलतमंद हैं तो हर ख़ुशी आपको नसीब हो सकती है वरना तो मन मारने के अलावा कोई दूसरा रास्ता न किसी माँ के पास होता है और न बेटे के पास। छोटे होते हैं तो ख़ुशियाँ पूरी न होने पर रो लेते हैं और बड़े हो जाते हैं तो मजबूरियाँ समझने लगते हैं। मीर के साथ भी ऐसा ही था। वो भी चाहता था कि उसके प्राइमरी स्कूल के सामने जो आलीशान बिल्डिंग में स्कूल है वो वहाँ जाये क्योंकि उसकी यूनिफ़ॉर्म उसे बड़ी पसंद थी। ख़ाकी नेकर और सफ़ेद शर्ट उसे बुरी लगती थी, उसे तो लाल नेकर और चेक वाली शर्ट के साथ टाई लगानी थी। माँ मजबूरियाँ गिनातीं तो वो रो लेता था, रूठ जाता था, खाना छोड़ देता था। बाद में बेबस माँ बस उसे अपनी गोदी की गरमाहट ही दे पाती। वो बेचारी करती भी क्या, इस गोदी की गरमाहट और ममता के अलावा उसके पास था ही क्या। मीर के माथे को सहलाते हुए न जाने कितनी बार वह उसके पिता को याद कर रो पड़ती। कई बार ग़ुस्सा भी होती कि इतनी जल्दी क्यों चले गये उन्हें इस हाल में छोड़कर। भगवान पर चिल्लाती कि तुझे भी तरस नहीं आया हमारी हालत पर। वो जानकर भी अंजान थी कि नियति कब कहाँ किसी के लिए बदलती है, जो होना है वो
 
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होगा ये प्रकृति का नियम है। भगवान की नज़र में तो सब सही होता है, इंसान अपने हित के हिसाब से उसे सही और ग़लत मान लेता है। कभी माँ की गोदी तो कभी जमीन का बिस्तर, कभी आधी रोटी तो कभी मट्ठा और गुड़ यही मीर की ज़िन्दगी बन गये थे। अपनी ऱफ्तार से ज़िन्दगी चलती जा रही थी। माँ की उम्र ढल रही थी, मीर की उम्र बढ़ रही थी... बस कुछ नहीं बदल रहे थे, वो थे हालात। रात ‘‘साहिबा, शायद तुम सो चुकी होगी; जिस वक़्त ये मैसेज तुम्हें मिलेगा सवेरा हो चुका होगा इसलिए गुड मॉर्निंग। मैं बहुत अच्छा हूँ और उम्मीद करता हूँ तुम भी अच्छी होगी। शाम को दिल्ली लौट रहा हूँ।’’- साहिबा के इंस्टाग्राम पर मीर ने यही मैसेज छोड़ा था। 7:30 बजे के क़रीब साहिबा की आँख खुली तो सबसे पहले उसने सिरहाने रखे फोन को देखा। उसे मीर के जवाब का इंतज़ार था। उसने इंस्टाग्राम खोला और पाया कि मीर ने उसे रिप्लाई किया है। मीर के जवाब ने उसे इतना तरोताज़ा एहसास कराया जैसे सुबह की
 
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पहली चाय या पहली कॉफी कराती है। साहिबा जवाब पाकर किसी फूल की तरह खिल गयी थी। उसने बेड के सिरहाने पर कमर लगायी और बैठ गयी। फोन की स्क्रीन पर उँगलियाँ फिरायीं और लिखा- ‘‘गुड मॉर्निंग... यकीन नहीं कर पा रही हूँ कि एक रॉकस्टार ने मुझे जवाब दिया है। किसी सेलिब्रिटी से यूँ बात करना कितनी ख़ुशी देता है ये मैं महसूस कर सकती हूँ। दिल्ली में आपका इंतज़ार है... दोबारा मिलना चाहती हूँ जल्दी आइए।’’ साहिबा उठी और उसने दोनों हाथ ऊपर कर एक अँगड़ाई ली। उसके चेहरे पर अजीब-सी मुस्कान थी जो ख़ुद-ब-ख़ुद आ गयी थी। बेड से उठकर उसने विण्डो का परदा एक झटके में खोल दिया। बाहर से आती सूरज की नवजात किरणों ने उसके चेहरे को छुआ तो आधी खुली उसकी आँखों में चमक आ गयी। बाहर मौसम काफी ठंडा था लेकिन मीर के एहसास ने उसके शरीर में गरमाहट भर दी थी। उसने दोनों बेटियों को स्कूल के लिए तैयार किया, पति भी नाश्ता कर ऑफ़िस निकल चुके थे और सास बुटीक के लिए रवाना हो गयी थीं। घर में साहिबा अकेली ही थी। सुबह के सारे काम से फ्री होकर जब
 
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वह वापस कमरे में पहुँची तो फोन की स्क्रीन पर मीर का इंस्टाग्राम मैसेज आया हुआ था। ‘‘ज़रूर मिलेंगे... आज शाम ही दिल्ली पहुँच जाउँगा उसके बाद जब आप कहें हम हाज़िर हो जाएँगे।’’ मीर का बात करने का ये अंदाज़ साहिबा को भा गया था। साहिबा के परिवार में ऐसे ही बात करने का चलन था। साहिबा ने रिप्लाई किया- ‘‘तो कल मिल सकते हैं हम?’’ मीर ऑनलाइन ही था। उसने लिखा- ‘‘ठीक है कल मिलते हैं।’’ ‘‘आप कहाँ रहते हैं?’’-साहिबा। ‘‘साकेत’’ ‘‘ओके... तो कहाँ मिलना है?’’ ‘‘कॉफी पर चलें?’’- मीर। ‘‘पक्का... चलो बॉय... विल टॉक इन ईवनिंग। मैसेज मी वेन लीव फ्रॉम मुम्बई।’’- ये मैसेज करने के बाद साहिबा ने ख़ुद सोचा था कि क्यों किया ये मैसेज। मीर ने भी कुछ पल रुककर मैसेज किया था- ‘‘फ़ाइन... टेक केयर।’’
 
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फोन रखकर साहिबा तैयार होने चली गयी। उसे बस इंतज़ार था कि आज का दिन जल्दी गुज़रे तो कल मीर से मुलाक़ात का वक़्त आये। कभी किताबों में पढ़ा था कि जब दिल ख़ुश होता है तो लगता है जैसे हवाएँ रागिनी गा रही हैं, फ़िज़ाएँ मुस्कुरा रही हैं। आज साहिबा ये सब महसूस कर पा रही थीं। जैसी ज़िन्दगी वह छह साल पहले चाहती थी, उसे अब लग रहा था कि वह उस रास्ते पर चलने लगी है। पहली मुलाक़ात में ज़िन्दगी के आख़िरी पल तक के ख़्वाब केवल प्यार में ही बुने जाते हैं। इस वक़्त साहिबा के साथ क्या हो रहा था वह ख़ुद अभी ये नहीं जानती थी... बस बाथरूम में शॉवर के नीचे ठुमकते हुए आँखों में मीर और ज़ुबां पर गाना था- ‘‘प्यार दीवाना होता है मस्ताना होता है, हर ख़ुशी से हर ग़म से बेगाना होता है।’’ * * * शाम के छह बजे मीर ने साहिबा को इंस्टाग्राम पर मैसेज किया- ‘‘मैं निकल चुका हूँ रात तक दिल्ली पहुँच जाऊँगा।’’
 
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इस मैसेज के साथ मीर ने अपना नम्बर भी भेजा था। जैसे ही ये मैसेज साहिबा को दिखा उसने बिना कुछ सोचे-समझे नम्बर डायल कर दिया। मीर जहाज़ में था और नम्बर अभी बंद था। ‘‘शिट यार!वो तो फ्लाइट में होगा न।’’- साहिबा ने ये कहते हुए ख़ुद के सिर पर एक हलकी-सी थपकी मारी और मुस्कुरा दी। साहिबा की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, वो जल्द से जल्द मीर से मिलना चाहती थी। सुबह के बाद से उसकी मीर से बात नहीं हुई थी लेकिन अब जब नम्बर मिल गया था तो वह जल्द से जल्द उसकी आवाज़ सुनना चाहती थी। मीर की आवाज़ में अजीब-सी कसक थी जो सुनने वाले को नशे और सुरूर में ले जाती थी। उसकी आवाज़ में ही दीवानगी थी। खाने का वक़्त हो चला था। साहिबा को मीर का इंतज़ार खल रहा था तो उसने दिमाग़ को रसोई में लगा लिया। मेड के साथ वह खाना बनाने लगी थी। पति और सास भी आ चुके थे। दोनों बेटियों के साथ पूरा परिवार डाइनिंग टेबल पर बैठ गया था लेकिन साहिबा की नज़र घड़ी की सूई पर थी। सभी डिनर कर रहे थे। जैसे ही नौ बजे साहिबा खाने की टेबल से उठी और चुपचाप अपने कमरे में चली गयी। आज उसने किसी को महसूस नहीं होने दिया
 
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