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Horror Kala saya. (murder mystry)

gauravrani

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इसके बाद पुलिस को किसी और उत्प्रेरक की जरूरत नहीं थी। पुलिस जी-जान से केस की जांच में जुट गई। जब तक पुलिस इसे सुसाइड समझ रही थी, तब तक इन्वेस्टिगेशन भी ढीली थी लेकिन हत्या और चोरी का खुलासा होने के बाद पुलिस ने उसी स्तर की जांच भी आरम्भ कर दी। कई संदिग्धों को हिरासत में लिया गया, पूछताछ की गई। अब तक तो गिरिराज वर्मा के परिजनों, परिचितों से ही पूछताछ की जा रही थी लेकिन अब पुलिस ने उस पूरे इलाके के लोगों से पूछताछ आरम्भ कर दी। क्या किसी ने गिरिराज वर्मा को किसी युवती के साथ घूमते देखा था? क्या उनके घर किसी युवती का आना-जाना था? जवाब था-हां। वहां आसपास रहने वाले लोगों के माध्यम से पुलिस को पता चला कि करीब साल भर से एक नौजवान युवती गिरिराज वर्मा के घर में रह रही थी। वो एक बेहद पॉश इलाका था, जिसमें कई घर नए बने थे। अपने पड़ोसियों के साथ गिरिराज वर्मा का कोई विशेष उठना-बैठना नहीं था, जिसके चलते उस इलाके में उनका घर होते हुए भी
घर के अंदर क्या हो रहा है, इसकी जानकारी किसी को नहीं थी। वैसे भी परिवार के नाम पर भी उनके यहां कोई नहीं था और करीब साल भर से गिरिराज वर्मा ने लोगों के यहां आना-जाना भी बेहद कम कर दिया था, जो किसी तरह के फैमिली गेट-टुगेदर में ही लोगों के बीच उठना-बैठना होता, जान-पहचान बनती। यहां तक कि किसी घर में होने वाले फंक्शन आदि के लिए भी उनको बुलावा आता था तो वे तबीयत खराब होने या कोई अन्य जरूरी काम होने का बहाना बना कर टाल जाते थे। ऐसे पॉश इलाकों में वैसे भी आस-पड़ोस में जान-पहचान न होना एक सामान्य-सी बात ही समझी जाती है। लोग सोशल मीडिया पर हजारों किलोमीटर दूर बैठे लोगों को दोस्त बना लेते हैं लेकिन उन्हें ये पता नहीं होता कि उनके पड़ोस में कौन रह रहा होता है? गिरिराज वर्मा के ‘आस-पड़ोस’ के मामले में भी कुछ ऐसा ही था। लेकिन ये नियम घर में काम करने वालों, दूध वाले, अखबार वालों आदि पर लागू नहीं होता है। अमीर लोग जहां अपनी दौलत से संतुष्ट होकर अपने-आप में सीमित होने की कोशिश करते हैं, नई जान-पहचान बनाने में सावधानी बरतते हैं और अपनी रिश्तेदारी और जितनी जान-पहचान होती है, उसी में संतुष्ट रहते हैं, वहीं गरीब लोगों के लिए ये जान-पहचान ही उनकी दौलत होती है।
 
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gauravrani

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घरेलू नौकर, माली, हॉकर आदि श्रमजीवी कम आय वर्ग के लोग एक-दूसरे से पहचान बना कर रखते हैं, जिससे वक्त-जरूरत पर एक-दूसरे के काम आ सकें। गिरिराज वर्मा के घर के आसपास स्थित घरों में निवासरत लोगों से पूछताछ करने में पुलिस को काफी परेशानी हुई क्योंकि वे सभी काफी ऊंची पहुंच वाले, प्रभावशाली किस्म के लोग थे। यहां तक कि दो घर दूर पर तो एक विधायक का भी बंगला था। ऊपर से इन बड़े लोगों से पूछताछ में पुलिस को कोई महत्त्वपूर्ण जानकारी भी नहीं मिल सकी क्योंकि उनमें से कई तो जानते ही नहीं थे कि उस घर में गिरिराज वर्मा नाम का कोई शख्स रहता भी था। जो जानते थे, वो भी इससे ज्यादा कुछ नहीं जानते थे कि उस घर में गिरिराज वर्मा रहते थे। लेकिन उन घरों के नौकरों, माली, दूध वालों, अखबार बांटने आने वालों हॉकरों से जब पुलिस ने पूछताछ की तो कुछ अहम जानकारी पुलिस के हाथ लगी। उन्हीं लोगों ने पुलिस को बताया कि काफी समय से गिरिराज वर्मा के घर में एक युवती रह रही थी। लेकिन यहां मामला और भी उलझ गया।
इलाके के ज्यादातर लोगों ने तो किसी सनाया गौतम-या गिरिराज वर्मा के घर में वो जो भी लडक़ी रह रही थी-उसे देखा तक नहीं था। और जिन्होंने देखा था, उन्हें उसके लडक़ी होने पर ही विश्वास नहीं था। लडक़ी क्या इंसान होने पर ही भरोसा नहीं था। उन लोगों को मानना था कि गिरिराज वर्मा के घर पर किसी चुड़ैल का काला साया था। सनाया गौतम के नाम से गिरिराज वर्मा के घर जो लडक़ी रह रही थी, वो कोई जीवित इंसान नहीं बल्कि एक चुड़ैल थी। उसी के असर के कारण गिरिराज वर्मा ने घर से बाहर आना-जाना तक छोड़ दिया था, दोस्तों से मिलना-जुलना तक बंद कर दिया था। जिन लोगों ने उस लडक़ी को एकाध बार देखा था, जो पुलिस को गवाही दे सकते थे, वो सनाया गौतम का नाम सुनकर ही कांप जाते थे और ईश्वर का नाम जपने लगते थे। पुलिस के लिए ये काफी परेशानी वाली बात थी। पुलिस को बार-बार उन गवाहों को समझाना पड़ता था कि भूत-प्रेत कुछ नहीं होता। उन्होंने अगर किसी लडक़ी को देखा था तो वो लडक़ी ही थी, कोई भूत या चुड़ैल नहीं।
 
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लेकिन लोग पुलिस की बात मानने के लिए तैयार ही नहीं होते थे। उनके पास अपनी दलीलें थीं। जैसे वो लडक़ी छिपकर क्यों रहती थी? वो दिन के समय घर से बाहर क्यों नहीं निकलती थी? वो इतने कम लोगों को ही क्यों दिखाई देती थी? पहले तो गिरिराज वर्मा के घर में और कोई था ही नहीं।फिर वो लड़की अचानक कहां से आ गई? और आई तो इतने गुपचुप तरीके से कैसे कि किसी को भनक तक नहीं लगी? जैसे-जैसे पुलिस आगे जांच करती रही, वैसे-वैसे पुलिस के सामने ये बात साफ होती गई कि सनाया गौतम के चुड़ैल होने की वो अफवाह कोई एकदम से नहीं उड़ी थी। वो घर काफी समय से वीरान पड़ा था और ऐसे घरों को लोग आम तौर पर भूत-बंगले का तमगा दे दिया करते हैं। कई सालों से खाली पड़े उस घर को करीब साल भर पहले ही गिरिराज वर्मा ने खरीदा था लेकिन जिस प्रकार वे रहस्यमयी ढंग से उस घर में रहते रहे, उससे उस घर से जुड़ी भूत-प्रेत, चुड़ैल सम्बंधी अफवाहें लोगों को और भी ज्यादा विश्वसनीय लगने लगीं। खास तौर पर उस लडक़ी
को लोग काफी रहस्यमयी मानते थे, जो कि उस घर में गिरिराज वर्मा के साथ रहती तो थी लेकिन बहुत कम ही दिखाई देती थी। न घर से बाहर निकलती थी, न कहीं आती-जाती थी। कभी-कभार ही दिखने वाली उस लडक़ी को लेकर लोगों ने तरह-तरह की कहानियां बनानीं भी शुरू कर दी थीं लेकिन वो कहानियां अंधविश्वास पर ही आधारित थीं। गिरिराज वर्मा के कत्ल से भी काफी पहले से कॉलोनी में उस तरह की चर्चाएं होने लगीं थीं। रात के समय लोग उस घर की ओर जाना भी पसंद नहीं करते थे। हालांकि सभी लोगों के साथ ऐसा नहीं था। कई लोग तो इस तरह की अफवाह से बिल्कुल ही अनजान थे। बिल्कुल उसी तरह, जिस तरह वे इस बात से अनजान थे कि गिरिराज वर्मा के घर में उनके साथ कोई लडक़ी भी रहती थी। लेकिन उन बंगलों में काम करने वाले लोगों में से बहुत से लोग उस चुड़ैल वाली बात पर यकीन करते थेे। लेकिन पुलिस को गिरिराज वर्मा के कातिल को गिरफ्तार करना था। किसी चुड़ैल को बोतल में बंद नहीं करवाना था। उस अंधविश्वास, अफवाहों के बीच पुलिस ने अपनी जांच जारी रखी। जांच में पता चला कि कुछेक ने गिरिराज वर्मा को कभी-कभार उस युवती को ‘सनाया’ नाम से पुकारते
 
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gauravrani

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भी सुना था। गिरिराज वर्मा का अपना कोई निजी नौकर तो नहीं था लेकिन आसपास के अन्य लोगों से पुलिस को इस सिलसिले में जो भी जानकारी मिली, वो पुलिस के लिए काफी महत्त्वपूर्ण थी। सनाया नाम की वो युवती करीब साल भर से वकील साहब यानि गिरिराज वर्मा के साथ में उन्हीं के घर में रह रही थी। लोगों ने यदा-कदा ही उन्हें घर से बाहर निकलते देखा था। और जब निकलते भी थे तो भी दोनों को कभी एक साथ निकलते शायद ही किसी ने देखा हो। लोगों के बयान के अनुसार कभी-कभी तो हफ्ते-दो हफ्ते उस घर से कोई आते-जाते नहीं दिखता था तो वे समझने लगते थे कि घरवाले-यानी वकील साहब और वो युवती-घूमने के लिए कहीं बाहर गए हुए थे। वो लडक़ी वकील साहब की कौन थी, ये भी लोगों के लिए आश्चर्य का विषय था क्योंकि वे लोग जानते थे कि वकील साहब के परिवार में केवल एक बेटा और बेटी ही हैं, जिनमें बेटा विदेश में काम करता है और बेटी विवाहित है। अपने पति के साथ रहती है। फिर वो युवती कौन थी? कौन थी सनाया गौतम? युवती के सरनेम की पुष्टि पुलिस आसपास के लोगों से पूछताछ में नहीं कर सकी लेकिन गिरिराज वर्मा द्वारा एक-
दो बार उसे सनाया के नाम से बुलाए जाने का पता चलने पर पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंची कि वो सनाया ही सनाया गौतम थी, जिसका जिक्र गिरिराज वर्मा की वसीयत में अपने वारिस के रूप में किया गया था। नामी वकील गिरिराज वर्मा पिछले एक साल से सामाजिक जीवन से कट कर इस तरह अकेले घर में एक युवती के साथ रह रहा था, इतने रहस्यमयी ढंग से मारा गया, मरने से पहले उसने अपनी जायदाद भी अपने बेटे-बेटी या दामाद के नाम पर करने के स्थान पर उस रहस्यमयी युवती के नाम पर कर दी-जो कि इस केस में पुलिस को ही नहीं बल्कि उसके परिजनों को भी आसमान से टपकी हुई लग रही थी-पूरी की पूरी जायदाद उसके नाम पर कर दी, एक सिक्का-कौड़ी तक अपने परिवार के किसी और सदस्य के नाम पर करने की जहमत मकतूल ने नहीं उठाई और वकील गिरिराज वर्मा की उस बेहद रहस्यमयी मृत्यु के बाद उसकी करोड़ों रूपए की प्रॉपर्टी की वारिस सनाया गौतम भी इस तरह गायब हो गई, जैसे कभी वहां थी ही नहीं। पुलिस के लिए ये केस किसी पिछले तीन महीने से बड़ा सिरदर्द साबित हो रहा था।
 
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खेदपूर्ण मुस्कान के साथ कस्टम ऑफिसर की ओर देखा, जो अपने आपको संयत करने की कोशिश कर रहा था। फिर मोहित भी अपना लगेज लेकर वहां से बाहर निकल गया। मोहित वेटिंग लाउंज में पहुंचा। वहां उसकी बड़ी बहन मानसी उसका इंतजार कर रही थी। मोहित को आते देख कर वो सीट पर से उठकर खड़ी हो गई। मोहित उसके पास पहुंचा तो उसने आगे बढक़र मोहित को गले से लगा लिया। ‘‘ठीक हो न, भाई।’’-वो उसकी पीठ थपथपाते हुए बोली। ‘‘हां’’-मोहित बोला-‘‘ठीक ही तो हूं। मुझे क्या होना है भला?’’ ‘‘खाक ठीक हो?’’-वो उससे अलग होते हुए थोड़े नाराजगी भरे स्वर में बोली-‘‘दाढ़ी बढ़ा रखी है। चेहरा भी उड़ा-उड़ा लग रहा है। अमेरिका में खाना-पानी नहीं मिलता क्या?’’ ‘‘ये’’-मोहित ने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा-‘‘ये तो कुछ नहीं है। आजकल तो दाढ़ी रखने का फैशन चल निकला है न।’’ ‘‘हां। और जैसे मुझे पता नहीं कि मेरा भाई कितना फैशन पसंद है। तुम्हें तो अगर कोई दाढ़ी रखने के लिए एक लाख रूपए दे तो भी तुम दाढ़ी न रखो।’’ मोहित मुस्कुराया। असल बात यही थी कि तीन महीने पहले हुई घटना के बाद से उसकी दिनचर्या काफी गड़बड़ाई हुई थी। मोहित ने कुछ देर इंतजार किया। लेकिन मानसी को वहां से चलने का उपक्रम नहीं करते देख कर उसे हैरानी हुई। ‘‘अब क्या हुआ?’’-उसने पूछा। ‘‘वैशाली का इंतजार कर रही हूं।’’-मानसी बोली। ‘‘वैशाली?’’ ‘‘मेरी ननद। तुम्हारे जीजा की बहन।’’ मोहित ने वैशाली का नाम सुना था। लेकिन उसे कभी देखा नहीं था। उसे बस इतना पता था कि वो अमेरिका में स्टडी कर रही थी। ‘‘लो आ गई वो’’-अचानक मानसी प्रफुल्लित स्वर मे बोली-‘‘वैशाली।’’-फिर उसने ध्यानाकर्षित करने के लिए हाथ हिलाते हुए आवाज लगाई। मोहित ने उसके हाथ हिलाने की दिशा में देखा। उधर से वही युवती ट्रॉली पर अपना सामान लिए उनकी ओर आ रही थी, जिसे मोहित ने अभी कुछ ही देर पहले चैकिंग रूम में देखा था। जो कस्टम ऑफिसर को बता रही थी कि कोरोना वायरस कहां था। ‘‘ओ माई गॉड।’’-मोहित के मुंह से निकल गया।
nice update bhai
 

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Nice story brother
mind blowing update

my story
 

gauravrani

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पहले केस में पुलिस के पास कोई सुराग नहीं थे। क्योंकि पुलिस ने सुराग ढूंढने की उतनी जरूरत ही नहीं समझी थी। क्योंकि तब वो पुलिस को आत्महत्या का केस लग रहा था। फिर सनाया गौतम का नाम सामने आने के बाद हत्या का मामला लगने पर नए सिरे से जांच करने पर पुलिस को कई सबूत मिले, उस सनाया गौतम के बारे में पता चला, जिसका पहले कोई अस्तित्त्व ही नहीं लग रहा था, जो मकतूल की करोड़ों की प्रॉपर्टी की वारिस बन बैठी थी। लेकिन सनाया गौतम के मामले में पुलिस एक बार फिर 'नौ दिन चले अढ़ाई कोस' वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए सबूतों के अभाव वाली जगह पर आ गई थी। अब पुलिस को ये तो पता था कि कोई सनाया गौतम थी, जो गिरिराज वर्मा के साथ रहती थी लेकिन पुलिस को ये नहीं पता था कि वो कौन थी, कहां से आई थी और कहां चली गई थी? उसके इस तरह से रहस्यमयी ढंग से गायब हो जाने का एक ही मतलब समझ में आता था।
 
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लम्बी-जांच पड़ताल के पश्चात पुलिस इस निष्कर्ष पर पहुंची कि घर में सेफ से हुई लूट की घटना के सीसीटीवी फुटेज में दिख रही युवती सनाया गौतम ही थी। और गिरिराज वर्मा ने भी आत्महत्या नहीं की थी। उनकी हत्या की गई थी। गिरिराज वर्मा की हत्या के बाद सेफ से लाखों रूपए लूट कर भाग निकलने वाली वो लडक़ी-सनाया गौतम-ही उनकी कातिल हो सकती थी। इसके पीछे पुलिस की थ्योरी ये थी कि गिरिराज वर्मा समाज में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे और वैसे ही लोगों के बीच उनका उठना बैठना था। गिरिराज वर्मा के खुद के जवान बेटा-बेटी थे। ऐसे में उम्र की इस ढलान पर वे किसी नौजवान युवती के साथ रास रचाते अच्छे नहीं लगते। वो चीज समाज में उनकी पूरी प्रतिष्ठा धूमिल होने का कारण बन सकती थी। लेकिन उस युवती-उस सनाया गौतम ने-उन पर कुछ ऐसा जादू चलाया कि वो सब कुछ दांव पर लगाने के लिए तैयार हो गए। अपनी मान-मर्यादा, प्रतिष्ठा, सब कुछ। लेकिन वर्षों की मेहनत और तपस्या से कमाया मान-सम्मान गंवाना आदमी के लिए इतना आसान नहीं होता।
 
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gauravrani

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इसीलिए गिरिराज वर्मा खुल्लमखुल्ला उस लडक़ी के साथ रास रचाते नजर नहीं आए। उन्होंने बड़ी होशियारी से, योजनाबद्ध ढंग से समाज से दूरी बनानी शुरू की। पहले सामाजिक कार्यक्रमों में जाना कम किया, यार-दोस्तों, परिचितों के बीच उठना-बैठना कम किया और धीरे-धीरे उस मुकाम पर पहुंच गए, जहां वो जाना चाहते थे। एकांतवास में। जो कि वास्तव में एकांतवास था भी नहीं। उन्होंने तो उस घर को अपना ‘लव नैस्ट’ बना लिया था, जहां वे दुनिया की नजरों से दूर, बेफिकर होकर मनमाने ढंग से जिंदगी जी सकें और किसी बदनामी की भी चिंता न हो। करीब साल भर तक उस घर में गिरिराज वर्मा के साथ रही उस लडक़ी-उस सनाया गौतम ने-गिरिराज वर्मा पर अपना रंग इतना पक्का कर लिया कि उन्होंने अपनी पूरी जायदाद ही उसके नाम कर दी। गिरिराज वर्मा की नई वसीयत कुछ ही दिन पुरानी थी, जिससे साफ जाहिर था कि प्रॉपर्टी अपने नाम कराने के बाद गिरिराज वर्मा सनाया गौतम के किसी काम के नहीं थे।
 
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तो उसने भी उन्हें अपने रास्ते से हटाने में ज्यादा देर नहीं लगाई। ये था नैनीताल का इस साल का बहुचर्चित हत्याकाण्ड। बाहर बारिश तेज हो गई थी। इंस्पेक्टर वैभव केस के बारे में इतनी जानकारी देने के बाद खामोश हो गया था। अरविंद भी कमरे में आ गया था और उन्हीं के साथ सोफे पर बैठकर पूरी बात सुन रहा था। ‘‘मर्डर के बारे में कैसे पता चला?’’-मोहित ने मौन तोड़ा। ‘‘क्या?’’-इंस्पेक्टर वैभव ने कहा। ‘‘पापा सुसाइड तो नहीं कर सकते थे। लेकिन आपने बताया नहीं कि पुलिस को कैसे पता चला कि ये सुसाइड नहीं मर्डर था?’’
 
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