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देशी बालक हैं ब्रो, यहाॅ जिगरे चलते है,
नही चलती कोई बकवास
ओर अपनी अकड़ ले कर आ जाइयो,
ईलाज है हमारे पास।
नही चलती कोई बकवास

ओर अपनी अकड़ ले कर आ जाइयो,
ईलाज है हमारे पास।

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शानदरजिन्दगी कशमकशे-इश्क के आगाज का नाम,
मौत अंजाम है इसी दर्द के अफसाने का।
(2)
जिस गम से दिल को राहत हो, उस गम का मुदावा क्या मानी?
जब फितरत तूफानी ठहरी, साहिल5 की तमन्ना क्या मानी?
बोहोत अच्छा.
एक मित्र के.... अनुरोध तो नही कहूँगा, पर हाँ उनके मार्गदर्शन पे यहाँ आया हूँ ... Xabhi आभार आपका
.
मै क्या लिखूँ, यही सोच रहा था...
ज्ञात हुआ की हालातो से बेहतर गुरु कौन हो सकता है...
तब अपनी हालात ही लिख डाले...
तुम्हारे लिए, तुम्हारे कारण
अरमान धरे रह गए, सपने धरे रह गए ।
अपने ख्वाइश सारे , अपनो से मेरे,
अपनो के परे रह गए ।
अल्फ़ाज़ भी नही मेरे पास आजकल, की मै अपना आलम तुझे बता सकूँ ।
क्या दोष दूँ उन लम्हो को, जिसमे मेरे फरिश्ते ही...
मेरे सीने पे खंजर धरे रह गये ।।
अब जिस्म से जान....
जैसे साँसो की एहशास भी बेदम होगयी....
हालातो ने बयां की है, की इस जिंदगी से मेरी आत्मा भी तंग होगयी ।।
-BHEEMA
Thanks so much
शानदर
![]()
always welcome कोमल जीThanks so much
अति-उत्तम(1) जिन्दगी कशमकशे-इश्क के आगाज का नाम,
मौत अंजाम है इसी दर्द के अफसाने का।
(2)
जिस गम से दिल को राहत हो, उस गम का मुदावा क्या मानी?
जब फितरत तूफानी ठहरी, साहिल की तमन्ना क्या मानी?
Inteha dard ko darshati, superb bhaiनमस्कार
.
एक मित्र के.... अनुरोध तो नही कहूँगा, पर हाँ उनके मार्गदर्शन पे यहाँ आया हूँ ... Xabhi आभार आपका
.
मै क्या लिखूँ, यही सोच रहा था...
ज्ञात हुआ की हालातो से बेहतर गुरु कौन हो सकता है...
तब अपनी हालात ही लिख डाले...
तुम्हारे लिए, तुम्हारे कारण
अरमान धरे रह गए, सपने धरे रह गए ।
अपने ख्वाइश सारे , अपनो से मेरे,
अपनो के परे रह गए ।
अल्फ़ाज़ भी नही मेरे पास आजकल, की मै अपना आलम तुझे बता सकूँ ।
क्या दोष दूँ उन लम्हो को, जिसमे मेरे फरिश्ते ही...
मेरे सीने पे खंजर धरे रह गये ।।
अब जिस्म से जान....
जैसे साँसो की एहशास भी बेदम होगयी....
हालातो ने बयां की है, की इस जिंदगी से मेरी आत्मा भी तंग होगयी ।।
-BHEEMA
Wah bhai sandarअर्ज किया हैं:
आदमी एक सवाल हैं साहब,
वक़्त उसका ज़बाब है साहब,
वो शराफत की बात करता हैं,
तों उस्की नीयत् ख़राब है साहब,
सैकड़ों ख़ून, डाके, राहजनी,
एक दिन का हिसाब हैं साहब,
जब चुभा कांटा कोई तों हुआ एहसास,
इस शहर मे भी कोई गुलाब हैं साहब। ।
राज् उर्फ़ (के के)
बहुत बहुत शुक्रियाअति-उत्तम![]()