- 3,835
- 15,384
- 144
system ka is kahani se koi lena dena ni hai.... bs iske baad jo kahani aaygi uski shuruwaat ke liya haiMind blowing update and superb startedab is kahani me bhi system ghusa diya to kya bole? Itne character hai ki sala yaad bhi nahi rahenge
baaki sid ki to moj hai aate hi lugaai mil gayi use, dekhte hai aage kya hota hai?
Nice update![]()
okay bhai ... next update se Hinglish spoiler main add kar dunga...Is story hinglish ma ni write kaar sakty ho.app
Aaj raat yaa toh kal subah ... Stay tunnedBhaii ji next scene,,,
intezaar rahega Ghost Rider ❣️ bhai....Aaj raat yaa toh kal subah ... Stay tunned
Dhasu update,अध्याय - 2 एक छोटा कदमतभी आस्था एक जोरदार तमाचा मारती है आलोक को और कहती है ,"माफ करना काव्या मेरा भाई पागल है तू खुश हो जा देख तेरा सुहाग आ गया है तेरी मांग का सिंदूर तुझे मिल गया।"
वही ये सुन कर सीड कहता है," क्या बकवास है ये मां की चूत।"
अब आगे ---
काव्या सिद्धार्थ की बात सुन कर आंखे उठा कर देखती है और सिद्धार्थ धीरे से हस्ते हुए कहता है ,"ही ही ही! वो तो मैं सोच रहा था की देखो मेरी कितनी प्यारी वाइफ है , मासूम सी"
वही ये सब सुन कर आलोक धीरे से पीछे हट जाता है और मन में कहता है ," सिद्धार्थ तेरी तो मेरे से बुरे लगे है भाई , तेरी बीबी तेरी हो चुकी बेटी निकली"
इन सब से दूर अभी सिद्धार्थ खुश था कम से कम उसके पास उसकी बेटी थी, बेशक यहा पर उसकी बेटी उसके बीबी के रूप में थी लेकिन उसके पास थी तो और बाकी सारी बात तो बाद में बाद मै देख लूंगा।
सिद्धार्थ बस अपनी नज़र काव्या पर बनाए हुए था, और प्यार से उसको देखता है और पहचान जाता है , पूरी की पूरी तनु पर गई है। वैसे ही तीखे नैन नक्श , वैसे ही कयामत जैसी आंखें वैसे ही मासूम चहरा और प्यारी सी छोटी सी नाक ही ही मेरी काव्या तो बड़ी हो कर और भी प्यारी हो गई है।
वही काव्या जो देख रही थी की सिद्धार्थ उसको ऐसे सब के सामने घूर रहा था तो उसके गाल ही थोड़े लाल हो गए और वो अपने मन में धीरे से कहती है," ये आप क्या कर रहे है कम से कम सकुशल तो है, ये इतने दिन से नही आए तो हम सब डर गए थे, हम सब को लगा की आप अब नही रहे।"
ये कहते हुए काव्या की आंखो से पानी की कुछ बूंदे झलक गई।
इधर सिद्धार्थ काव्या की आखों में आसू देखता है तो उसके आसू अपने हाथों से पोछता है और काव्या कहती है तब ,"चलिए अब घर चलते है स्वामी , बहुत सालो से आप नही आए थक गया होंगे।"
उसकी बात सुन कर धीरे से सिद्धार्थ अपने मन में सोचता है,"अरे बाप अब ये घर पर इतनी सुंदर सुंदर बन के बैठेगी , नही नही मुझे ये याद रखना है ये मेरी बेटी है , तनु की हमसकल से पहले ये मेरी बेटी है जो मेरी बाहों में चिपक कर सोना पसंद करती थी"
"चले चलो चलते है।", सिद्धार्थ ने काव्या को और आलोक को देखते हुए जवाब दिया और अब काव्या के चहरे पर अजीब सी चमक थी और वो तिरछी नज़र से सिद्धार्थ को घूरती है जैसे अब उसको दुनिया का सबसे हसीन इंसान मिल गया हो।
इधर काव्या और सिद्धार्थ आगे चले जा रहे थे और आलोक और आस्था पीछे पीछे आ रहे थे और आस्था बढ़ जाती है और आलोक उसके पीछे पीछे चलने लगता है l
तभी आस्था को अहसास होता है की कोई उसे घूर रहा है तो वो अपना सर घुमा कर देखती है तो आलोक को उसके पिछवाड़े को घूरती हुई पाती है तो वो उसके पास आ जाती है और उसको अपने साथ चलता देख आलोक धीरे से कहता है ,"अरे आगे जाओ ना"
"नही जाना मुझे कही भी? अपनी ही बहन के साथ ऐसा करते हुए तुम्हे तनिक भी लज्जा नही आती।"
"क्या और क्यों आयेगी हमे लज्जा अपनी चांद जैसी बहन को देखना को खराब है क्या ?"
"मौन रहो , वर्ना हम तुम्हारी आंखे नोच लेंगे चलो घर।"
तभी वो लोग अपने घर में आ जाते है और काव्या और आस्था दोनो एक साथ एक झोपड़ी को देखते है तो उसके आस पास कुछ लड़के खड़े थे।
तभी आलोक आगे आता है और धीरे से उनकी तरफ देखती है और कहता है ,"जल्दी बताओ हमारी कुटिया कौन सी है हमे थकान हो रही है और रात्रि से पहले थोड़ा आराम करना है,"
उन लडको के कान में जैसे ही आलोक की आवाज़ जाती है तो वो धीरे से कहते है "क्या आस्था तेरा भाई आ गया तो हम चले जायेंगे क्या , हमे हमारी मुद्रा चाहिए जो तूने ब्याज पर ली थी और अब तो तेरे मिट्टी के बर्तन चलने लगे है अब दे हमारी मोहरे वर्ना हम तुम दोनो के आसियाने को ले लेंगे।
तभी सिद्धार्थ आगे आता है और काव्या जो थोड़ा सीरियस हो कर कुछ बोलने वाली थी उसके पास आ कर कहता है," हमारी कुटिया कौन सी है?"
काव्या धीरे से कहती है ,"वो वाली जहा 2 बैल है, वही हमारी कुटिया है और"
काव्या कुछ कहती उसके पहले ही सिद्धार्थ काव्या का हाथ पकड़ कर उसको ले कर कुटिया में चल देता है और आलोक को इशारा करता है की वो भी अपनी कुटिया में चले जो उसकी कुटिया के पास मै थी।
"खबरदार! सिद्धार्थ अगर कुटिया में जाने की कोशिश की तो देख भाया ये पहले ही तय हो चुका था, अब ये कुटिया हमारी है वैसे भी तुम भूल रहे हो! हा हा हा हा चुप चाप कहता हूं चले जाओ अब यह से"
वो आदमी कुछ और कहता उसके पहले ही सिद्धार्थ कहता है," ठीक है जाओ घर जाओ , आज हमारा दिमाग अच्छा है रात को आ कर अपनी मोहरे ले जाना"
ये कह कर सिद्धार्थ आगे बढ़ जाता है और सिद्धार्थ को आगे बढ़ता देख वो आदमी कहता है ," बस अब बहुत हुआ सिद्धार्थ"
जैसे ही वो आगे बढ़ता है, आलोक उसकी गर्दन पकड़ कर दबा देता है और पेड़ से सटा कर उसका गला दबाने लगता है जिससे उसकी आवाज़ आनी बंद हो गई और आस्था अब गर्व भरी नजरो से अपने भाई को देख रही थी।
तभी सिद्धार्थ आगे आता है और आलोक को उसको छोड़ने को कहता है और उस आदमी के पास आ कर कहता है.
"एक बार जो बोला जाए उतना सुना करो! गरम हम केवल सिर्फ स्त्री और चाय लेते है किसी के तेवर नही!, इस बार छोड़ रहे है अगली बार जिंदा नही बचोगे।"
"सिद्धार्थ इतना अहंकार - "
वो आदमी कुछ और बोलता उसके पहले ही जोर दार चीख पूरे मोहाल में फैल जाती है।
वही ये नज़ारा देख कर काव्या और आस्था पूरी तरह से हिल जाती है।
आस्था काप जाती है काव्या को पकड़ लेती है और आलोक हस्ते हुए कहता है ," बहन चोद को समझा रहा था! चला जा चला जा लेकिन इसकी गांड में चुन्ना काट रहा था!"
"आआआह्हह मेरी आंख, मेरी आंख, मेरी आंख!"
वही सिद्धार्थ अपनी चाकू उसकी आंख मैं डाले चाकू घुमा रहा था और धीरे से कहता है ,"क्या समझें"
"य य य यही की एक बार मैं बात सुन लेनी चाहिए , मुझे जिंदा छोर दो , मुझे माफ कर दो?"
सिद्धार्थ उसकी दूसरी आंख से अपना चाकू केवल 1 इंच दूर रखता है और हस्ते हुए कहता है," अगर दूसरी आंख सलामत चाहीए तो एक चीज याद रखना मेरी काव्या के ऊपर एक नज़र भी मत डालना , काव्या पर उठने वाली कोई भी नज़र बर्दास्त नही की जाएगी, फिर वो कोई भी हो, और सिर्फ़ काव्या ही नही मेरी कोई भी रानी , गांव की कोई भी लड़की के ऊपर अब तू नज़र डालने से पहले 100 बार सोचना!, अब जा यहा से इसके पहले हमारा मन बदल जाए"
ये कहते हुए सिद्धार्थ काव्या के पास आता है और कहता है "चले बेगम"
तभी काव्या और आस्था अंदर चली जाती है।
आस पास लगी भीड़ बातें करने लग जाती है।
"अरे भाया देखा तुमने, सूबेदार के चाहते और इस रियासत के मालिक के इकलौते बेटे की आंख फोड़ दी और अब इसका क्या होगा"
"अरे होगा क्या देखो जो होता है , लेकिन आलोक की आंखो में डर का एक कतरा नही नज़र आ रहा और सिद्धार्थ तो मज़ा हुआ खिलाड़ी लग रहा है!"
"अरे आप लोग देखो और अपने अपने हाथों में चूड़ी पहन लो, अपनी अपनी स्त्रीयो के मान की रक्षा तो कर नही सके तुम सब और उन्हें देखो आते ही अपनी बीबी की मान की कैसे रक्षा की"-
"ए लक्ष्मण तुम अंदर जा , ये औरतों का खेल नही है जहा तू कुछ भी बोल रही है, जानती है ना यहा की रियासत किसके पास है और ऊपर से डाकू का हमला और लूट हम इस स्थिति में नहीं है कितना युद्ध कर सके , हमारे पास इतना मौका नही है और राजा इस समय युद्ध में परेशान है तो युद्ध खत्म होने का इंतजार करो, अगर युद्ध नही होता तो अभी तक सब सही होता और आज शायद डाकू भी आए"
"वही ये सब दूर से बैठा लड़का ये सारी हरक़त देख कर दूर से ही सिद्धार्थ को घूर रहा था"
तभी सिद्धार्थ चुप चाप बात सुनता है जो लोग कह रहा है था और धीरे से हस्ता है और कहता है," आप सब को कुछ करने की जरूरूत नही , ना ही मैं कुछ चाहता हूं बस मेरे इस कदम से आप सब की मदद हुई ये बहुत है जाइए आराम से और सो जाइए बाकी हम सब देख लेंगे"-
उनमें से एक लड़का कहता है," तुम ये मत समझना की हम कायर है , हम बस हर चीज से हार चुका है ना ही साधन है ना ही कुछ, और ना ही जल फसल के लिए इसलिए थोड़ा डरे हुआ हैं"
"डरना तो संसार का नियम है, भाया और हमने कहा ना हम सब देख लेंगे तुम बस आराम करो वक्त आने पर हम साधन भी उपलब्ध करा देंगे"
तभी सिद्धार्थ की नज़र दूर पड़े एक लड़के पर पड़ती है और वो लड़का कूद कर चला जाता है जिसके हाथ में धनुष था और सिद्धार्थ हसने लगता है और आलोक उसके पास आ कर कहता है अब मुझे समझाओ तुम्हारा इन सब से क्या क्या मतलब था।
"आलोक अगर तुम्हे ऊपर जाना होता है तो क्या करता हो?"
आलोक गुस्सा में कहता है,"सीढ़ी चढ़ता हूं"
"तो एक एक सीढ़ी चढ़ते हो ना? या सीधे ऊपर चढ़ जाते हो ये इस रियासत की प्रजा है इनका विश्वास जीतना है और इन्हें खुस करना है बस, ताकि वक्त आने पर ये हमारे लिए लॉयल रहे"
सिद्धार्थ आलोक की तरफ देखता है और कहता है-
"तुम्हारा बस एक काम है, लोगो का विश्वास जीतो और थोड़ा समय परिवार पर दो, लोगो का विश्वास जीतो और जिनका कोई ना हो अनाथ हो और जो योद्धा हो उन्हे अपने लिया काम पर लगाओ, और इस पूरी रियासत के बारे में पता करो और काम पर लगाने के पहले बस उनका विश्वास जीतो और हा बस विश्वास जीतो जो गरीब हो उनकी मदद करो बस विश्वास जीतना है!"
"हा हा हा सिद्धार्थ ये काम हो जाएगा इसमें तो मैं माहिर हूं, लेकिन हमे सिंध के राजा जयराज से मदद चाहिए होगी"
"वो मेरा काम है आलोक तुम टेंशन मत लो, लेकिन अभी बस हमे जरूरत है विश्वास की "-
आलोक सिध्दार्थ को देखता है और कहता है,"अब मुझे समझ आया तू हमेशा हिस्ट्री में टॉप पर क्यों था!"
तभी सिध्दार्थ अंदर अपनी झोपड़ी में आता है और सामने काव्या को देखता है जो अंधेरा होने की वजह से लालटेन जला रही थी और इस समय उसने अपना पल्लू हटाया हुआ था, उसके हल्के टपकते हुआ पसीना और उसका कसा हुआ बदन देख एक बार को सिद्धार्थ की नज़र ही रुक गई और सास थम गई और तभी काव्या को अहसास होता है की कोई आया है तो वो धीरे से कहती है,"अरे आप आ गए, आप आंगन में चलिए हम आपका जल से मुंह धुलवा दे"
तभी सिद्धार्थ को दरवाज़ा बंद होने की आवाज़ आती है तो वो देखता है की दरवाज़ा काव्या ने बंद कर दिया और पानी ले कर उसकी तरफ़ आती है और धीरे से कहती है ," जल ये रहा चलिए! मुंह धूल लीजिए"
तभी सिद्धार्थ की आंख उसकी कमर पर टिक जाती है और धीरे से वो उसके उभारों को देखने लगता है और धीरे से कहता है,"आप ऐसे खुले केश मैं अच्छी लगती है!"
"हा! तभी हमे छोर कर चले गए, शादी के तुरंत बाद ना , क्युकी हम बहुत अच्छे थे।", ये कहते हुए काव्या के आंखो से आसू टपकने लगते है और वो ना चाहते हुए भी उसको अपने सीने से लगा लेता है।
और काव्या जो रो रही थी वो उसकी सांसें अटक जाती है और वो एक पल को डर जाती है और उसका पूरा बदन काप गया और सिद्धार्थ जो काव्या को अपनी बाहों में भरे हुआ था, उसको अपने सीने में गर्म गर्म सास महसूस होने लगती है जिससे उसकी सासें भारी होने लगती है।
तभी उसके दिमाग में उसकी और काव्या की शादी की पूरी यादें आनी लगती है और वो उस समय वो भूल गया की उसने काव्या को अपनी बाहों के भर रखा है। सिद्धार्थ उन यादों में देखता है उसकी शादी काव्या से हुई और कैसे हुई, और शादी के तुरन्त बाद सिद्धार्थ कही गया और सीधा पहाड़ी पर उठा।
तभी सिद्धार्थ को कुछ सुनाई पड़ता है।
"आआआह्हह्ह!"
तभी सिद्धार्थ होश में आता है और उसको अहसास होता है की वो उसने अभी काव्या को हग कर रखा है तो वो काव्या को देखता है जिसकी आंखे बंद होती है और तेज तेज चलती सासों से उसके सीने ऊपर नीचे हो रहा था।
"काव्या"
"हम्मन! केकेकेके कहिए?"
"मैने जो भी किया उसके लिए माफ कर दो? तुम हमेसा से मेरे लिया बहुत खास हो और हमेशा खास रहोगी मेरी पत्नी हो तुम कृपया हमे माफ करोगी हम अब आपको छोर कर कही नही जाएंगे बिना बताए!"
ये कहते हुआ सिद्धार्थ के हाथ काव्या की कमर पर कसने लगते है और उसके पीठ पर खुले हिस्सा पर चलने लगते है और इस समय सिद्धार्थ की सास इतनी तेज थी वो किसी भी समय सब भूल सकता है और उसके पकड़ इतनी तेज थी की काव्या की आह पूरे आंगन में फैल रही थी।
"केकेके कोई बात नन नहीं ,आप मेरे सब कुछ है!"
काव्या के मुंह से अल्फाज़ बड़ी मुस्कील से निकल रहे थे वो भी टूटे हुए।
तभी काव्या को अपनी अपनी नाभि पर कुछ चुभता हुआ महसूस हुआ तो वो और ज्यादा कापकपा गई और उसको ऐसे कपकपता देख सिद्धार्थ उसको और टाइट हग कर देता है जिससे वो गिरे नही और इतना टाइट हग होने से काव्या के दोनो उभार सिद्धार्थ के सीने में धस जाते है।
तभी सिद्धार्थ अपना मुंह काव्या के गले पर लाता है जहा पसीने की कुछ बूंदे थी और वो उन्हे चूम लेता है और धीरे से अपना हाथ काव्या की नाजुक कमर पर फिराता है जिससे काव्या की आहे और तेज सीत्कार के साथ फूट पड़ती है।
*थक थक थक*
*थक थक थक*
"अरे काव्या सुनती हो?"
जैसे ही ये आवाज़ आती है काव्या बहुत धीरे से कहती है.
"केकेके कोई आया है!"
और आवाज़ सुन कर काव्या को सिद्धार्थ छोड़ देता है और गुस्सा में दरवाज़ा को देखता है।
और काव्या जो बहुत बुरी तरह काप रही थी और सिद्धार्थ उसको सभलता है और धीरे से कहता है ," हमे माफ करे काव्या हमे आपको ऐसे नही पकड़ना था, हमे माफ करे हमे लगा की ऐसे आप चुप हो जाएंगी लेकिन हम माफ चाहते है"
काव्या जो बुरी तरह काप रही थी वो कापते हुए आगे चली जाती है तभी सिद्धार्थ उसको पकड़ लेता है और उसका पल्लू सही करता है और उसके पीठ पर अंचल डालता है और फिर उससे माफी लगता है। और सिद्धार्थ अपने मन मैं कहता है,"तुम मेरी अमानत हो, वादा रहा किसी को भी तुम्हारी इस मासूमियत का फायदा नही उठाने दूंगा, पता नही कैसे मैं बहक गया, मैं मेरा वो मतलब नही था मैं तो तुम्हे देखते ही तुम्हारे प्रेम में पड़ गया हूं काव्या तुम्हारा, कैसे माफी मागु। मेरा मतलब तुम्हे रुलाना और डरना नही था, मैं"
वही ये सब सिद्धार्थ जो मन मैं सोच रहा था लेकिन गलती से ये सब उसके मुंह से बाहर आ गया और हर एक बात काव्या के कानो में पड़ी और वो धीरे से कापते हुए हाथो से सिद्धार्थ का हाथ थामती है।
तभी काव्या उठ कर एक छोटी सी डीबी लाती है और उसमें सिंदूर होता है और वो धीरे से कहती है ," मैं मैं चाहती हूं की मेरी मांग हमेशा आप भरे"
तभी सिद्धार्थ उसकी मांग भर देता है और वो तेजी से भाग जाती है।
तभी दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आती है।
"क्या रे बावली पति के मिलते ही हमे भूल गई, हम वो कंदमूल लेने आए है चल दे"
आस्था धीरे से कहती है तभी वो काव्या को देखती है जिसकी आंखे गुस्सा से लाल हुई पड़ी थी और पूरे बाल बिखरे पड़े थे गर्दन पर दात के निशान था।
"ललल लगता है हम गलत वक्त पर आ गया, अच्छा हम जा रहे है किसी और चीज की सब्जी बना लेंगे?"
मोहनजो- दरों - सिंध राज्य की राजधानी
महल~
"महाराज की जय हो, राजकुमारी साक्षी महल में नही है?"
"और महाराजा एक लड़का आज राजकुमारी साक्षी आज एक लड़के से मिली काया ने बताया और उससे मिलने के बाद राजकुमारी की काफी खिली खिली लग रही थी आपको इस सिलसिले में वैद जी बात करना
चहिए और राजकुमारी यशस्वी कल सुबह महल में आ रही है, जो राखीगढ़ी रियासत मैं हुए विद्रोह को शांत करने गई थी हम बहुत बुरी हालत में है महाराज "
..
...
....
....
to be continued well well Guysss update posted .... like thok do... aur review dena ka.... dhere dhere sid apna kadam badha rha hai.... .... see you saioyonara!!!! Next update dusri Story par kal....