तीसरे अध्याय का सातवां भाग
बहुत ही बेहतरीन महोदय,
साक्षी बेहोश है और कुछ पुरानी यादें उसके मन मस्तिष्क में यश और उसकी चल रही है। होश में आने पर वो क़ातिल की आंखों के बारे मे सोच रही है जो अक्ष से मिलती जुलती हैं, लेकिन इस समय उसे अक्ष के जान की परवाह है इसलिए वो इसपर ज्यादा ध्यान नहीं देती।। अनंत के दिमाग में जरूर कुछ न कुछ खिचड़ी पक रही है। तभी तो सबकुछ जानते बुझते उसने साक्षी को सीबीआई में भर्ती किया और उसे अक्ष के बारे में कुछ न बताकर क़ातिल को पकड़ने का जिम्मा सौंपा दिया।।
राणा को आखिरी चोट देने की फिराक में है अक्ष और उसके समूह के लोग। राणा के लगभग 100 करोड़ रुपये और 900 करोड़ का माल अक्ष ने साफ कर दिया।। फैक्ट्री उड़ा दी। राणा इस बात का शोक मनाने अपने घर गया तो अक्ष से उसका सामना हो गया।। यहां अक्ष को राणा के ऊपर हमदर्दी नहीं करनी चाहिए थी। मौका मिला था तो गोली मार देनी चाहिए थी।। चोट खाये दुश्मन को कभी जिंदा नहीं छोड़ना चाहिए था। नील को क्यों मारा अक्ष ने। मारना ही था तो अनंत को मारता। बेचारे नील का क्या कसूर इन सब में।।