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deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 55

हाय बुढ़ापा !

बलदेव की गोदी में बैठी देवरानी इशारे से बलदेव को खतरे का इशारा कर देती है क्यू की देवरानी ने एक आहट अपनी कक्षा के बाहर सुन ली थी।

दोनों सोच में पड़े थे के आखिर कर कौन है जो उनकी जासुसी कर रहा है। आधी रात को सृष्टि वही खड़ी थी और अंदर का हाल जानने की कोशिश कर रही थी।


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शुरुष्टि। (मन में-ये दोनों को कहीं इस बात की भनक तो नहीं लग गई की मैं यहाँ हूँ। अभी कुछ देर पहले तो खूब उह आआह कर रहे थे दोनों माँ बेटा।

बलदेव देवरानी को इशारा करता है कि उठो । देवरानी बलदेव के गोद से उठ जाती है और फिर बलदेव भी खड़ा होता है।



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इधर शुरष्टि भी समझ गई थी कि अब यहाँ रुकना ठीक नहीं है। वह दबे पाव अपनी पायल की आवाज़ के बिना चलने की कोशिश करती है और अपने कक्ष की ओर जाने लगती है।

देवरानी बलदेव के कान में फुसफुसाती है।

"बेटा तुम रुको मैं देखती हूँ।"

अपनी माँ की बात समझ कर बलदेव रुक जाता है। देवरानी धीरे से उठ कर सबसे पहले एक ओढ़नी उठा कर अपने सीने पर डालती है। उसके स्तन जो छोटे से ब्लाउज में बाहर आने को तैयार थे और अपने अंग ओढ़नी में छुपा कर दरवाजा खोलती है। दोनों तरफ देखने पर उसे कुछ नहीं दिखता।

तभी देवरानी के कान में "खट्ट" से दरवाजा बंद करने की आवाज आती है। देवरानी आवाज का पीछा करती है। तो पाती है कि ये आवाज शुरष्टि के कक्ष से आई थी।




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देवरानी के होठों पर एक कातिल मुस्कान आती है ।

"रानी शुरष्टि तो तुम थी। तो तुमने मेरी और मेरे प्रेमी की आवाजे सुन ली। जल भुन गई होगी शुरष्टि तुम तो!"

देवरानी को मुस्कुराता देख बलदेव कमरे के दरवाजे पर आकर धीमी आवाज में पुकारता है ।

"माँ ओ माँ!"

देवरानी बलदेव की ओर देखती है।


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"क्या हुआ माँ इधर आओ।"

देवरानी फुसफुसाते हुए कहती है ।

"उधर ही रहो बलदेव मैं अभी आयी ।"

देवरानी दरवाजा लगा लेती है।

"मां मुस्कुरा क्यू रही हो?"

"बेटा बात वह कुछ ऐसी है।"

"कैसी बात है माँ?"

"यहाँ पर खड़ी हो कर सब सुन रही थी सृष्टि ।"




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बलदेव थोड़ा घबरा जाता है।

"क्या माँ?"

"हाँ बेटा वह कमिनी जीवन भर मेरे पीछे पड़ी रही है ।"

"पर माँ इसमें मुस्कुराने की क्या बात है?"

"बेटा मैं मुस्कुरा रही हूँ के आज मेरी खुशी देख के सृष्टि के बदन और सीने में सांप लौट रहे होंगे।"

"अच्छा माँ।"

और बलदेव भी मुस्कुरा देता है ।


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"बेटा अब तुम जाओ! सुबह हमें बद्री और श्याम का भी स्वागत करना है।"

"पर माँ मेरा मन नहीं करता तुम्हें छोड़ कर जाने का ।"

"पगले! मुझे छोड़ के तू जा भी नहीं सकता कभी। तू तो मेरे दिल में रहता है।"

"माँ! "

बलदेव देवरानी के गले लग जाता है।


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"ठीक है। माँ मुझे पता है । आप अपना ख्याल रखना ।"

बलदेव अपनी माँ से विदा ले कर ऊपर अपने कक्ष में चला जाता है और इधर सृष्टि आकर अपने बिस्तार पर लेटी हुई सोच रही थी और उसके कानो में अभी भी देवरानी की सिस्की आ रही थी।

कुछ देर में सृष्टि फिर से सोने की कोशिश कर रही थी पर जलन के कारण उसे नींद नहीं रुक आ रही थी।

सृष्टि (मन में-देवरानी कैसे मजे मार रही थी अपने बेटे के साथ एक मैं ही हू जो इस आग में जल रही हूँ ।



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सृष्टि अपना एक हाथ अपनी चूत पर ले जाती है। "आआह!"

शुरष्टि फिर उठती है।

अपनी कक्ष से बाहर निकल कर बाहर जाती है और कुछ देर चल के वह अब महाराज राजपाल के कक्ष के सामने थी।

"अब मैं क्या करूँ? क्या अभी राजपाल को जगाना ठीक होगा?"

सृष्टि एक धक्का दरवाजे पर देती है। तो वह खुला ही था। शुरष्टि अब सीधे ंद्र जाती है। कक्ष में राजपाल की खर्राटे की आवाज आ रही थी और राजपाल बेसुध सोया हुआ था।


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शुरुआत: (मन मैं) ये महराज किसी काम के नहीं है । अब तुम इस बुढ़ापे में खर्राटे मार रहे हो और तुम्हारी जवान पत्नी की कोई और मार रहा है। वैसे तो ये उन दोनों की मस्ती मारने की आखिरी रात होगी और शुरष्टि कुटिलता से मुस्कुराती है।

अब अपने बदन की कामग्नि से जल रही सृष्टि सोये हुए राजपाल के बगल में बैठ जाती है और राजपाल के सर को सहलाने लगती है और एक हाथ से उसका हाथ पकड़ कर अपने गोद में रख लेती है।

राजपाल नींद से जगते हुए पूछता है?

"कौन है?"

और उसके हाथ अपने पास राखी तलवार की तरफ हाथ बढ़ जाते हैं ।

"महाराज मैं हूँ आपकी पत्नी शुरष्टि।"


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"अरे महारानी! आप?"

"जी महाराज"

"आपने तो हमें तो डरा दिया था। महारानी!"

सृष्टि (मन में: महाराज जितना तुम अपने और अपने महल के लिए चौकसी करते हो, इतनी चौकसी अगर तुम देवरानी की करते तो देवरानी आज बलदेव के साथ मजे नहीं मार रही होती।)

"महारानी कहिए आधी रात में ऐसा क्या हो गया जो आपको हमने जगाना पड़ा?"



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"महाराज आपने दिन में कुछ कहा था।"

राजपाल को याद आता है कि दिन मैं उसने सृष्टि के पास आने का वादा किया था।

"हाँ क्षमा कर दो महारानी मेरी आँख लग गई थी।"

"परन्तु मैं आपकी प्रतीक्षा कर रही थी, आपको कोई दूसरी तो नहीं मिल गई महाराज।"

"अरे नहीं मेरी रानी। आपके सिवा हम किसी को देखते भी नहीं।"


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शुरष्टि (मन में: झूठे! राजा रतन के साथ उसके राज्य में तुम क्या-क्या कर के आते हो ये किसी से छुपा हुआ नहीं है, तुम दोनों का मन वैश्यो से भरता नहीं है ।)

सृष्टि जो बलदेव और देवरानी की कामुक आवाजे सुन कर गरम हो गई थी

राजपाल को सहलाने लगती है।



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"महाराज! मुझे प्यार कीजिये।"

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"आओ मेरी रानी!"

शुरष्टि राजपाल के उपर छा जाती है और राजपाल को सहलाने लगती है।

राजपाल की छाती को चुम कर ऊपर को आने लगती है।

फिर राजपाल के होठों से जोर से अपने होठों से चूमने लगती है।


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राजपाल अपना हाथ पीछे से सृष्टि की कमर पर रख कर सहलाता है। शुरष्टि अपना मध्यम आकार के वक्ष राजपाल की छाती पर खूब मसलने लगती है।

अब शुरष्टि राजपाल को चुमते हुए राजपाल की दोनों जांघो को सहलाने लगती है और राजपाल की धोती को अपने दोनों हाथों से खोल देती है।

राजपाल का मुरझाया लौड़ा देख शुरुआत के चेहरे की लाली खो जाती है। दो इंच का लंड मुरझाया हुआ था। मरती क्या न करती सृष्टि उसके लंड को सहलाते हुए मुठियाने लगती है।


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राजपाल ने अपने आँखे दिन बंद कर ली थी और अह्ह्ह ओह्ह्ह करता हुआ सिस्की ले रहा था।

"महाराज आपने कहा था। आप अपने लिए कोई औषधि लेंगे?"

"हाँ औषधि ली तो थी। पर वह खत्म हो गई है। उसका असर तब तक ही है जब तक हम उसका प्रयोग कर रहे हैं।"

शुरष्टि अब एक हाथ से राजपाल का लंड खड़ा कर रही थी दूसरे से उसके छोटे-छोटे सूखे हुए अंडकोषों को सहला रही थी।

राजपाल: क्या हुआ रानी आज बहुत गरम हो। ऐसा क्या हुआ रानी को। जो आज बुढ़ापे में आधी रात मेरे पास आना पड़ा?


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सृष्टि: चुप करो महाराज! अभी मेरी आयु 50 की भी नहीं हुई है परन्तु तुम बूढ़े हो गए बेशक अन्तिम चरण में है पर मेरी जवानी अब भी बाकी है।

राजपाल: वह तो तुम ठीक कह रही हो, अब मैं लगभाग 60 का हो गया हूँ ।

शुरष्टि (मन में: किसने कहा था। अपने से आधी आयी से भी कम आयु की कन्या से विवाह कर लो। तुम्हारी इसी हालत के कारण तुम्हारी जवान पत्नी देवरानी आज अपने बेटे के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है।)

कहीं ना कहीं सृष्टि को देवरानी और बलदेव से बहुत जलन हो रही थी, इसलिए उसके दिमाग में ये बात बार-बार आ रही थी।

सृष्टि ने अब देखा की राजपाल का । लौड़ा हल्का-सा उठा। रहा है। सृष्टि झट से अपना मुँह खोल उसे चुसने लगती है।




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"आह श्रुष्टि!"

बड़े तेजी से शुरू होते हुए सृष्टि अपने ब्लाउज खोल देती है और उसके दूध जो ना बड़े थे ना छोटे खुलते ही लटकने लगते हैं।

"इनहे मसलो महाराज।"

सृष्टि राजपाल का हाथ ले कर अपने दूध पर रख देती है।


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राजपाल उसके दूध को मसलने लगता है।

"आह मेरी महारानी श्रुष्टि!"


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शुरष्टि देखती है कि उसके दो इंची लौड़े ने अब अपना सर उठा लिया था और अब बड़ा होकर लगभग 4 इंच का हो गया था।

"महाराज जल्दी डाल दो महाराज!"

राजपाल शुरष्टि की गांड को सहलाते हुए लिटा देता है और उसके घाघरा को खोल कर उसके दोनों टाँगे उठा देता है।


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और अपना लौड़ा सृष्टि की बुर में एक बार में पेल डालता है।

"आह महाराज ज़ोर से पेल दीजिये!"


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राजपाल आगे बढ़ कर शुरुआत करता हैं। उसके दोनों वक्षो को मसलने लगता है। फिर राजपाल ज़ोर-ज़ोर से सृष्टि को चोदने लगता है।

शुरष्टि चुड़ते हुए आखे बंद किये हुए सिसक रही होती है।

राजपाल झटके मार-मार के पसीने से तरबतर हो गया था और वह अब धीरे-धीरे हिलने लगता है।

"महाराज ज़ोर से पेलो ना अपनी रानी को।"


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अभी 3 या 4 मिनट की चुदाई ही हुई थी की राजपाल हांफने लगता है। शुरष्टि समझ जाती है कि महाराज से अब और ना हो पायेगा क्यूकी उन्होंने औषधि या जड़ी बूटी भी नहीं ली है।


"ओह्ह! सृष्टि मेरा अब निकलने वाला है।"

"महाराज नहीं अभी नहीं! महाराज! थोड़ी देर और!"



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"आह! श्रुष्टि!"

राजपाल दो धक्के मारता है और अपनी आखे बंद कर लेता है। "

"महाराज अपने आप पर काबू पाएँ! रुके! अभी पानी मत छोड़िये!"


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राजपाल एक और धक्का मारता है।

" आआआ सृष्टि! और आखे बंद किये हुए कांपते हुए झड़ने लगता है।


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सृष्टि उदास हो कर राजपाल को ही देख रही थी। राजपाल जब पूरा झड़ जाता है। तो सृष्टि के ऊपर से हट कर उसकी बगल में लेट जाता है और ज़ोर-ज़ोर से सांस लेने लगता है। अपना आख बंद किये हुए सृष्टि की आखो में आसु आ जाते है। पर वह अपना आसु छुपा महराज से चिपक कर लेटी रहती है।


थोड़ी देर बाद राजपाल अपने सांसो पर काबू पाता है। तो सृष्टि का बुझी-बुझी देखता है तो बेबसी से उसकी नज़र नीचे झुक जाती है।

"महाराज आपका तो हो गया पर मेरा?"

"मुझे क्षमा कर महारानी ने आपका साथ नहीं दे पाया और समय से पहले स्खलित हो गया । मुझसे आज फिर गलती हो गई !"

राजपाल अपना धोती उठा। कर शौचालय में घुस जाता है और अपने वस्त्र बदल कर वापस बिस्तर पर आता है।

सृष्टि अब भी वही पर लेटी थी।


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"महरानी सृष्टि! क्या हुआ कपडे पहन लो अपने!"

"महाराज मैं अपने कक्ष में जाती हूं"

राजपाल समझ जाता है के शुरष्टि संतुष्ट नहीं हुई है और दुखी है।

"ठीक है। जैसी आपकी इच्छा महारानी!"

शुरष्टि अपने ब्लाउज और घाघरा पहन कर अपनी पोशाक पहन लेती है और बाहर चली जाती है। "



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अपने कक्ष में आकर फिर से अपने वस्त्र उतार कर फेंक देती है और अपने गरम शरीर को अपने हाथों से सहलाने लगती है और अपनी योनि में उंगली कर उत्तेज़ना से सिसकने लगती है।

कुछ देर यू वह अपने अंग से खेल कर अपनी योनि का पानी निकालती है। अपने आपको शांत कर वह भी नींद की आगोश में चली जाती है।




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शुरष्टि उठती है। उसका बदन बहुत ज़ोर से दर्द कर रहा था। वह नहा धो कर बाहर आती है।

"कमला ओ कमला आई नहीं अब तक?"

कमला और राधा सुबह-सुबह अपने काम में रसोई में लगी हुई थी।


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कमलाः जी महारानी शुरष्टि आज्ञा दीजिये!

शुरष्टि: कुछ जल्दी बनाओ, सारा बदन टूट रहा है , बहुत भूख लगी है ।

राधा: क्या हुआ महारानी क्या राज है इस भूख और थकान का?

कमला: मैं कुछ बनाती हूँ!

राजपाल सवेरे उठ कर अपने महल के चारो ओर रोज की तरह घूमने लगता है।

राजपाल को तभी सामने से दो घोड़ों पर सवार दो लोग आते हुए दिखते हैं।

राजपाल गौर से देखने के बाद समझ आया की ये तो बलदेव के मित्र श्याम और बद्री है।

श्याम और बद्री राजपाल के पास आकर घोड़े को रोक घोड़े से उतर जाते हैं।

श्याम और बद्री एक स्वर में: प्रणाम महाराज!

दोनों महराज के सामने अपने हाथ जोड़े खड़े हुए थे।




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राजपाल: प्रणाम स्वागत है। तुम्हारा राजकुमारो!

श्याम और बद्री अपने स्वागत किये जाने से खुश हो कर महाराज के चरण छू लेते हैं।

राजपाल: राजकुमारों आप ये क्या कर रहे हो?

श्याम और बद्री: महाराज! आप हमारे पिता समान हैं।

राजपाल एक मुस्कुराहट के साथ !

राजपाल: आयुष्मान भवः!

राजपाल ताली बजाता है।

भागता हुआ एक सैनिक उसके पास आता है।


"आज्ञा ! महाराज"

"सुनो इन्हें ले कर जाओ ये हमारे मेहमान हैं। इन के आदर सत्कार में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं होनी चाहिए! "




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सैनिक: जो आज्ञा महाराज।

राजपाल: और सुनो सेनापति सोमनाथ को भेजो ।


जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 56-A

पारस जाने की तयारी और यात्रा की शुरुआत


श्याम और बद्री सैनिक के साथ महल के मुख्य दुवार की ओर जाने लगते हैं। रास्ते में वह उन दोनों की नजर कसरत करते हुए बलदेव पर पड़ती है जो अपने ही धुन में कसरत करने में मग्न था।


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सैनिक: युवराज आपके मित्र आये हैं।

बलदेव: क्या सच में?


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बलदेव पलट कर देखता है। तो सामने श्याम और बद्री मुस्कुराते हुए खड़े हुए थे।

बलदेव: अरे मित्रो! तुम दोनों का स्वागत है।

बलदेव खुला नग्न शरीर लिए हुए, उनका स्वागत करने के लिए, अपने मित्रो के पास जाता है।





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बद्री: बलदेव तुम्हारा शरीर अब हम जैसा नहीं रहा हे तुम पत्थर के समान हो गए हो।

श्याम: हाँ भाई. आज कल भाई बहुत ज़्यादा मेहनत कर रहे हैं।

बलदेव मुस्कुराता हुआ सैनिक को आज्ञा देता है ।



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"जरा मेरा परिधान लाना!"

"जी युवराज !"

बलदेव: वह सब छोडो! तुम दोनों इतनी सवेरे कैसे पहुँच गए?

बद्री: भाई! हम रात में ही तुम्हारे क्षेत्र में आ गए थे और हम पास के एक राज्य में रुक गए थे।


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शयाम: हाँ और सुबह होते हे हम वहाँ से चल दिए, इसलिए सुबह सवेरे ही पहुच गए।



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बलदेव: मेरी मन रखने के लिए मित्रो, तुम दोनों का धन्यवाद!

बद्री: भाई. हम मित्र हैं। अगर हम एक दूसरे का साथ नहीं देंगे तो कौन देगा?

श्याम: मित्र तुम्हारे लिए तो हम जान भी दे सकते हैं। जब हम आचार्य जी पास शिक्षा ग्रहण कर रहे थे तब तुमने भी तो हमारे लिए बहुत कुछ किया है।

तीनो चल कर अब महल के मुख्य द्वार पर पहुँच गये थे।



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बद्री: श्याम सही कह रहा है। बलदेव हम वह दिन भूल नहीं सकते जब तुमने हम सब की गलती की सजा अपने सर ले ली थी। बलदेव बात काटते हुए-

"मित्रो! अब छोड़ो भी जो हुआ सो हुआ। तुम दोनों मेरे मित्र हो तुम्हारे लिए तो मैं अपनी जान की परवाह कभी भी नहीं परवा नहीं करूंगा।"



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श्याम: ओ भाई! मुझे तो बहुत भूख लगी है और मैं तो घातराष्ट्र आता ही हूँ मौसी के हाथों बने पकवान खाने के लिए ।

बलदेव: श्याम चलो आज तुम्हें हम बहुत बढ़िया पकवान खिलाएंगे!

श्याम: मुझे तो मौसी के हाथ का खाना है।

बलदेव: हाँ मैं माँ से कह कर तुम्हारे लिए विशेष भोजन बनवा दूंगा।

बद्री: तुम तो अब भी बच्चे ही हो। आये नहीं कि शुरू हो गये। पेटू कही के ।



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बलदेव: अरी ऐसा नहीं है। बद्री श्याम को इसका पूरा हक है। "तुम दोनों झगड़ा बंद करो और चलो मेरे साथ।"

तीनो महल में घुस जाते है। देवरानी अपनी कक्ष में व्यायाम करने के बाद स्नान कर सुबह की जड़ी बूटी खा रही थी फिर उसके कानो में बलदेव और किसी की बातें सुनाई देती हैं ।

देवरानी अपना घूंघट कर अपने कमरे से बाहर आती है और देखती है सामने बलदेव के साथ उनके दोनों मित्र थे।



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बलदेव देखता है कि माँ घूंघट ताने दूसरी ओर मुंह किये हुए पहचानने की कोशिश कर रही थी की आख़िर बलदेव के साथ कौन आये है।

बलदेव: अरे माँ इधर आओ! ये मेरे मित्र श्याम और बद्री हैं।

अब तक तो देवरानी ने भी चोर नजरों से देख पता लगा लिया था के बद्री और श्याम आये हैं।



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देवरानी उनके पास चली जाती है और अपना घूँघट किया हुआ पल्लू हटाती है।

बद्री और श्याम देवरानी को हो देखते ही उसके चरण स्पर्श करते हैं।



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बद्री और श्याम: मौसी आप को बहुत दिन बाद देख बहुत अच्छा लगा हमें। आशीर्वाद दीजिये।

देवरानी: अरे मेरे बेटे मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है। देवरानी दोनों को सर पर हाथ फेरती है। फिर देवरानी उन्हें आयुष्मान होने का आशीर्वाद देती है ।

फिर दोनों खड़े होते हैं।



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ये सब देख बलदेव मुस्कुरा रहा था।

देवरानी: बलदेव इन दोनों को अपने कक्ष में ले कर जाओ, अभी पूजा नहीं हुई है।



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श्याम: मौसी मुझे प्रसाद चाहिए।

बद्री: श्याम तू बस खाने के जुगाड़ में रहना बच्चे, मौसी आपको पूजा करने की क्या आव्वश्यकता है आप तो खुद देवी लगती हो और देवी जैसी पवित्रा हो।



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देवरानी ये सुन कर मुस्कुरा देती है।

बलदेव: बद्री तुम कह रहे थे ना के मेरे गठीले शरीर का राज क्या है। ये राज ये है कि मैं इसी देवी की पूजा करता हूँ।

ये बोल कर बलदेव देवरानी की ओर देख आख मार देता है।



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देवरानी अपना घूँघट फिर से डाले अपने कमरे में जाने लगती है। देवरानी बलदेव के मित्रो की बात सुन लज्जा के साथ अपने ऊपर गर्व भी कर रही थी।

बद्री: पूजा भर से ये कैसे हुआ, मित्र?

बलदेव: भाई. माँ मेरे खाने पीने सब कुछ का हिसाब रखती है।

तीनो सीढ़ियों से होते हुए बलदेव के कक्ष तक पहुँच जाते है।

बद्री: भाई से। बलदेव पारस कब निकलने का इरादा है।

बलदेव: जब तुम कहो?

श्याम: हाँ! हमें वहा खूब प्राचीन चीजे देखने को मिलेगी और मैंने सुना है वहाँ के पकवान भी बहुत स्वादिष्ट होते है।



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बद्री: श्याम अब तुम बच्चे नहीं हो! कुछ और भी सोचो खाने से हट कर, मूर्ख!

श्याम: तुमने मुझे मूर्ख कैसे कहा? मैं मेवाड़ का युवराज हूँ अभी तुम्हारे उज्जैनी जिभ को खींच लूंगा, कालू राम!

श्याम बद्री को देख कर जोर से हसता है। जिस से बलदेव की भी हंसी छूट जाती है।

बद्री श्याम की गर्दन को हाथ में ले कर पीछे से दबा कर बोलता है ।

"श्याम अपने गोरे रंग पर इतना अहंकार मत करो!"

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे मुर्ख कहने की? बद्री काले बादल!"

बद्री: इसकी तो मैं जान ले लूंगा!

बलदेव: छोडो भी बद्री इसको! तुम दोनों बच्चो को तरह लड़ना कब बंद करोगे! फिर बलदेव दोनों को अलग करता है।

बलदेव: अब हम बारी-बारी से स्नान कर लेते हैं।

तभी तीनो के कानों में ढोल की आवाज आती है।


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बद्री: कोई ढिंढोरा पीट रहा है।

तभी तीनो कान लगा कर ढिंढोरे की आवाज के साथ कोई सन्देह राज्य में सुनाया जा रहा था। वह सुनने लगे।

"सुनो सुनो सुनो...सुनो सुनो घटराष्ट्र वासिओ! महाराज राजपाल सिंह ने आज अभी-अभी सभा बुलाई है। कृपा कर के सब पहुचे! महाराज कोई महवपूर्ण निर्णय लेना हैं। सुनो-सुनो घटराष्ट्र वासिओ!"

बलदेव: अब तो समय व्यर्थ करना ठीक नहीं होगा, मैं जल्द ही स्नान कर के आया।

बद्री और श्याम समझ जाते हैं और अपने साथ लाया हुआ समान सैनिक को कह कर कक्ष में रखवाते है और पहनने के लिए अपने साथ लाये वस्त्र का चुनाव करने लगते हैं।



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थोड़ी देर में बलदेव स्नान कर के आ जाता है और बारी-बारी से सभी स्नान कर लेते हैं और अपने राजसी परिधान पहन लेते हैं।

देवरानी इधर आकर अपनी कक्ष में पहले अगरबत्ती जलाती है और कुछ प्रसाद का चढ़ावा लगा कर रोज़ की तरह अपना पाठ पढ़ रही थी, कुछ देर पाठ पढ़ने के बाद पूजा ख़तम होती है और देवरानी अपने और बलदेव के लिए कामना करती है।

"भगवान धन्यवाद तूने मेरी हृदय की बात सुन ली और इतने बरसो बाद मैं अपने मायके पारस जा रही हूँ । हम सब दूर की यात्रा करने जा रहे हैं। हम सब पर अपनी कृपा रखना । भगवान!"



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देवरानी दोनों हाथो जोड़े खड़ी भगवान से उनकी कृपा मांग रही थी। उसने मंदिर में दीया जला कर पूजा की थी। वह पूजा की थाली ले कर बलदेव के कक्ष की ओर जाती है।

देवरानी देखती है। तीनो त्यार हो कर बैठे हुए थे।

देवरानी: लो बच्चो तुम सब के लिए पूजा का प्रसाद!



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बद्री और श्याम झट से अपना सारा झुक कर अपना हाथ आगे बढ़ा कर प्रसाद ले लेते हैं। पर बलदेव नहीं लेता।

देवरानी: अरे बलदेव तुम भी लो बेटा।

बलदेव सर निचे कर के बोलता है ।

"मां मैं बाद में ले लूंगा" और देवरानी को एक अंदाज़ से देखता है।

श्याम: मौसी! महराज ने अभी सभा क्यू बुलायी है?

देवरानी: सभा बुलाने के बारे में तो मैंने नहीं सुना और तुम मुझे मौसी कहते हो और उनको महाराज । ऐसा क्यों?



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श्याम: क्यू के मौसी महाराज राजपाल खड्डूस है। इसलिए उन्हें मौसा नहीं कहता और आप एक दम अपनी-सी लगती हो तो आपको महारानी नहीं कह सकता । आपको मौसी कहना ही अच्छा लगता है।

देवरानी श्याम की बात पर मुस्कुराती है।

बद्री: मुर्ख श्याम चुप रहो! वैसे मौसी अभी थोड़ी देर पहले हमने ढिंढोरा सुना, सभा के बारे में! उस समय शायद आप पूजा कर रही होंगी।

देवरानी: हाँ मैं पूजा कर रही थी।



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बद्री: आप तो देवी हैं। मौसी! आपने तो सच में कुछ नहीं सुना जबकि पूरे घटराष्ट्र ने सुन लिया, सच कहु आप की भक्ति को मेरा नमन है ।

देवरानी: अरे बस भगवान की कृपा है। मेरे जैसी पुजारिने तो करोड़ो होंगी ।

बद्री: मौसी इस श्याम को भी कुछ सिखा दो। इसे कुछ नहीं आता।

श्याम: हाँ जैसे तुम बहुत ने बड़े भक्त हो और साक्षात शिव जी से वार्तालाप करते हो।

ये सुन कर सब हसने लगते है।



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देवरानी: अगर ऐसा है। तो तुम लोग जाओ. हम सबको प्रसाद दे कर आते हैं।

देवरानी प्रसाद की थाली ले कर चली जाती है और बलदेव अपने मित्रो को ले कर महल के बाहर निकल सभा स्थल की और जाने लगता है।

देवरानी सबसे पहले सृष्टि के कक्ष की और जाती है।

"दीदी श्रुष्टि!"

"आओ देवरानी।"



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"दीदी ये लीजिए भगवान का प्रसाद।"

"अरे वाह देवरानी इतनी सवेरे तुमने पूजा पाठ भी कर लीया ।"

"हाँ दीदी! वैसे आज आप उदास-सी लग रही हो। क्या हुआ आप की तबीयत तो ठीक है ना?"

शुरुष्टि अंदर से जल भुन जाती है।

"क्यू? ऐसा क्यू कह रही हो देवरानी में ठीक तो हूँ।"

"दीदी वह मैं रात में उठी तो मैंने देखा था आप अपने कक्ष में जा रही थी और जब तक मैं आवाज देती आप ने दरवाजा बंद कर लिया था।"


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"श्रुष्टि दीदी लगता है। आपकी नींद पूरी नहीं हो पाई है।"

शुरष्टि को इतना गुस्सा आया की वह अब देवरानी के गालो पर रख कर दे पर वह अपने आप पर काबू रख बोलती है ।

शुरुष्टि: (मन में-कामिनी तू रंडीनाच कर ले जितना करना है बस आगे आने वाले दो दिन में तेरे चिता में आग मैं ही दूंगी।)

देवरानी: क्या सोचने लगी आप? ये लीजिए प्रसाद, भगवान मनुष्य को शक्ति वह उतनी ही देता है। जितने की अवश्यक्ता होती है। इसलिए हमें अपनी शक्ति का कभी भी गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। जो भगवान शक्ति देता है वही गलत इतेमाल करने पर उसे छीन भी लेता है।

सृष्टि हाथ आगे बढ़ा कर अपने मन को मार कर प्रसाद देवरानी के हाथों से लेती है।



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शुरष्टि: (मन में-रंडी बड़ा ज्ञान दे रही है। देवी बनने कि कोशिश कर के शुरू से ही तुमने सोचा था घर पर अपना सिक्का जमाने का। पर आज तक तुम सब के पैरो की धूल ही हो, एक दो दिन अपने बेटे पर इतरा लो । फिर तो मैं तुम से स्वर्ग लोक में मिलूंगी, कमिनी वही पर अपने बेटे से प्रेम का खेल खेलना...देवरानी! उह्ह्ह! बड़ी आयी है देवी माँ!

सृष्टि के चेहरे पर एक बड़ी कुटिलता भरी मुस्कान आ जाती। जिसे देवरानी देख लेती है।

देवरानी: क्या बात है। दीदी बेवजह मुस्कुरा रही हो! कहीं रात की महाराज की कोई बात तो याद नहीं आ गई?



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शुरष्टि: तुम कहना क्या चाहती हो देवरानी?

देवरानी: यहीं जब मैं पानी पीने उठी थी तब मैंने आपको महाराज के कक्ष से निकलते हुए देखा था ।

सृष्टि चुप चाप बूत बनी देवरानी की बात सुन रही थी । उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या कहे?

देवरानी: वैसे लगता है कल रात आपने खूब आनंद लिया, इसलिए आप अब तक मुस्कुरा रही हो।

शुरष्टि के लगा जैसे देवरानी ने उसके जले पर नमक छिड़क दिया हो । महाराज ने तो असल में शुरुष्टि को असंतुष्ट, तड़पती हुई प्यासी और खुमारी में छौड दिया था। वह प्यास और खुमार सृष्टि अब तक महसुस कर रही थी।


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शुरष्टि: (मन में-देवरानी की बच्ची मेरा मज़ाक उड़ा रही है। पर इसे कैसे पता राजपाल ने मुझे प्यासी छोड़ देता है। , हाँ इसने भी तो राजपाल का लिंग लीया है। भले ही ये आज से 17 साल पहले ही चुदी थी पर जानती है कि बूढ़े महाराज के 4 इंच के लौड़े से क्या होता है।)

देवरानी: (मन में-अब तुम उस बूढ़े के छोटे से लिंग को खड़ा करती रहना जीवन भर और तीन धक्के में ही खुश रहना, भले ये कद की नाटी है पर चालबाज़ी तो भरपूर है कमीनी।)

सृष्टि: नहीं, नहीं देवरानी। ये क्या बकवास कर रही हो तुम, अब मैं 48 साल की हो गई हूँ, अब मेरा दिल नहीं करता, वह सब का करने का ।



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देवरानी: (मन में-वह तो तेरा दिल जानता हैै । शुरुष्टि)

देवरानी: ऐसा क्या! दीदी मुझे तो पता नहीं था।

शुरष्टि: हाँ अब बकवास तुम्हारी ख़तम हो गई हो तो जाओ. मुझे कुछ काम है।

देवरानी को गुस्सा आता है। पर ये बदला लेने का सही समय नहीं था । इसलिए वह वहाँ से चल देती है।

देवरानी जीविका के ओर चल देती है।


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"माँ जी कहा हो आप?"

जीविका अपनी कक्षा से बाहर आते हुए-"हाँ बहु कहो!"

और गुस्से से देखते हुए देवरानी से पूछती है।

"वो माँ जी आपके लिए प्रसाद लायी थी।"

जीविका को उस रात का दृश्य याद आता है जब बलदेव देवरानी के कुल्हो को हाथ से दबा कर देवरानी को गोद में ले रसोई से ले जा रहा था।


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जीविका अपने मन में "देवरानी तू कितनी बड़ी पापिन है। मैंने कभी नहीं सोचा था तुम ऐसा कुछ करोगी। मुझे शर्म आती है अपने ऊपर अब!"

"माँ जी क्या सोच रही हैं। मुझे आशीर्वाद दीजिए । मैं कई वर्षों बाद अपने मायके पारस जा रही हूँ ।"

देवरानी जीविका के पाँव छू लेती है।

जीविका नहीं चाहते हुए भी आशीर्वाद देती है ।

"हाँ हाँ जीती रहो!"



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देवरानी एक कातिल मुस्कान के साथ जीविका की परिस्तिथि समझते हुई खड़ी होती है और जीविका को देखती है। जिसका चेहरा उतरा हुआ था।

देवरानी को जीविका का चेहरा देख कर बहुत ख़ुशी होती है।

जीविका (मन में "मुझे इन दोनों को पाप करने से कैसे रोकना चाहिए, राजपाल को कैसे बतायू की उसकी पत्नी और उसका बेटा अवैध सम्बंध बना रहे हैं।")

देवरानी सबको प्रसाद बांटती है और फिर कमला को थाली दे कर बोलती है ।

देवरानी: कमला इसे बांट दो!

कमला: क्या बात है। आज बहुत खिल रही हो?



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देवरानी: क्यू क्या मैं रोज़ अच्छी नहीं लगती?

कमला: नहीं महारानी आज ऐसा खिल रही हो जैसे युवराज ने खूब अंदर तक अपने काले से मालिश कर दी हो।

देवरानी: चुप कर पगली...ऐसा कुछ नहीं हुआ।

कमला: तो कैसा हुआ?

देवरानी: बस तुझे तो बताया तो था। बस वहा तक । बिना विवाह के और आगे नहीं जाना ...डर लगता है। कहीं कुछ...?



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कमला: देवरानी कहीं ये डर तो नहीं है कि के कहि युवराज आप को पेट से कर के छोड़ नहीं दे। (तो फिर तुम ना घर की रहोगी ना घाट की) इसलिए पहले उसे बंधन में बाँधना चाहती हो।

देवरानी शर्मा जाती है।

देवरानी: कमला! तू छिनाल है। ...मुझे बलदेव पर पूरा भरोसा है। ...

कमला अरो डरो मत मेरी बहना! बलदेव तुमसे सच्चा प्यार करता है। उसके सामने कोई हूर या परी भी आ जाए तो वह आपको छोड़ उसको देखेगा भी नहीं!

देवरानी: पहले मैं ...!




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कमला: मैं समझ रही हूँ महारानी आप सोच रही हो कहीं आगे जा कर उसका मन बदल जाए किसी कुंवारी दुल्हन के लिए और वह विवाह कर ले...पर ऐसा नहीं होगा।

देवरानी: भगवान न करे ऐसा हो, ठीक है। अब मैं चलती हूँ मुझे जरूरो काम है।

देवरानी अपने कक्ष में जाती है और सभा में जाने की तयारी करने लगती है।

धीरे-धीरे सब सभा में पहुँचते हैं और महराजा, महारानी और युवराज सबका जय जयकार से स्वागत होता है।




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राजपाल: सेनापति सोमनाथ खड़े हो कर जनता को बताओ!

सेनापति सोमनाथ: देवियो और सज्जनो और घाटराष्ट्र के 20 गांवों से आए हुए हमारे गाँव के सम्मानित मुखिया जनो आप सभी का घाटराष्ट्र के महाराज राजपाल और सेना स्वागत करते हैं। , महाराज ने एक निर्णय लिया है जिस में र आप सबका योगदान जरूरी है। ,

महाराज को घटराष्ट्र के ऊपर आक्रमण होने की आशंका है और इस बात का डर मुझे भी है। राष्ट्र का सेनापति होना मेरे लिए भी सौभाग्य की बात है। पर आप सब जानते हैं। की हम आयत निर्यात में पीछे हैं और घाटराष्ट्र का खजाना भी अब कुछ खास बचा नहीं है और हमें आशंका है दिल्ली से शाहजेब हम परआक्रमण कर सकते हैं और हमे सुचना मिली है कि उनकी सेना उत्तर की ओर निकल गई है। मैं आप सब से निवेदन करता हूँ कि आप सब सेना में शामिल हों क्यू के बादशाह शाहजेब के सैनिक 25000 से कम नहीं है।

क्या आप सब अपने बच्चों को हमारी सेना में घाटराष्ट्र बचाने के लिए भेजेंगे?




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पुरी सभा में लोग एक स्वर में बोलते हैं ।

"हाँ हम अपने बच्चे भेजेंगे और हमारी माँ घाटराष्ट्र की धरती को आक्रमण करने वालो से बचाएंगे ।"

सेनापति: और एक मदद और चाहिए आप सब अपने घर पर जो भी हथियार या लोहा हो आप उसे हमारे हवाले कर दे। हम उन्हें गला कर हमारे सैनिकों के लिए हथियार बनायेंगे।

सेनापति: क्या आप सब हमारा साथ देंगे?

भीड़ में से एक दस वर्ष का बालक आगे अत है और कहता है।

"सेनापति जी मैं एक लोहार का बेटा हूँ और मैं अपने राज्य को बचाने के लिए अपनी आखिरी सांस तक लड़ूंगा! "



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भीड़ में सब एक साथ कहते है।

"जियो लाल !"

"जब राज्य के लिए ये बालक आगे आ सकता है तो हम सब क्यू नहीं?"

वो दस वर्षीय बालक अपने झोले में हाथ डाल कर एक हथोड़ी निकालता है।

"सेनापति जी मेरे पिता लोहार हैं और उनकी ये हथोड़ी में राज को दान करता हूं। "

सेनापति सोमनाथ अत्यंत खुश होते हैं और बालक के पास आकर बोलते हैं ।

सेनापति: इस घाटराष्ट्र के लाल का दान में स्वीकार करता हूँ। लाओ मेरे बच्चे! सेनापति उसके सर पर हाथ फेर कर उसकी हथोड़ी ले लेता है।

सेनापति: आप सब सचेत रहिए अपने-अपने गाँव में । हम सब मिल कर सीमा को चारो ओर से घेर लेंगे।



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सेनापति सोमनाथ: महाराज आप कुछ कहना चाहेंगे।

राजपाल: आज अगर पिता श्री जीवित होते तो वह बहुत प्रसन्न होते। आप सबका धन्यवाद घाटराष्ट्र वासियों और मैं आप सब की और से हमारे अतिथि राजकुमार बद्री जो उज्जैन के युवराज हैं और राजकुमार श्याम जो मेवाड़ से आये है उनका स्वागत करता हूँ।

पूरी भीड कहती है।

"स्वागत है। आप दोनों का अतिथियो!"

बद्री और श्याम, बलदेव और देवरानी की ओर देख मुस्कुराते है।

राजपाल: एक बात और कहना चाहूंगा आज रानी देवरानी अपनी माँ के यहाँ पारस जाने वाली है।

भीड में से एक व्यक्ति उठ कर बोलता है ।

"महाराज क्षमा करें क्या इस परिस्थिति में हमारे सैनिकों को बाहर जाना ठीक है।"

राजपाल देखिये हम इस बात को भली-भाति समझते हैं। इसलिए देवरानी के साथ केवल बलदेव, श्याम और बद्री ही जाएंगे।



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व्यक्ति: महाराज की जय हो!

सबलोग पीछे से कहते हैं। महाराज की जय हो!

सेनापति: महाराज क्या आपको कुछऔर कहना है।

राजपाल: नहीं सभा ख़तम की जाए ।

सेनापति: घटराष्ट्र वासियो सभा खतम की जाती है और अभी से जिनको सेना में शामिल होना है। वह सेना शिविर के मैदान में रुक सकते है।

जय घटराष्ट्र!

पूरी भीड एक साथ कहती है।

"जय घटराष्ट्र !"

धीरे-धीरे जनता जाने लगती हैं और राजपरिवार के सब लोग अपने आसन से उठ कर महल में जाने लगते हैं।

बलदेव के साथ श्याम और बद्री भी जाने लगते हैं। देवरानी भी अपने कमरे में जा चुकी थी।

बलदेव: मित्रो तुम दोनों ऊपर जाओ। मैं माँ को कह दूं तुम दोनों के खाने के लिए कुछ विशेष बनाये।

श्याम: हाँ ठीक है!

श्याम और बद्री ऊपर चले जाते हैं।

बलदेव अपनी माँ के कक्ष में घुस जाता है। देवरानी अपने सामान को जो उसे अपने साथ पारस ले कर जाना था उसे इकट्ठा कर रही थी।




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"मां चलने की तय्यारी शुरू हो गई"

"अरे आओ बलदेव!"

बलदेव देवरानी के रूप को निहारते हुए!

"मां तुम बला की सुंदर लग रही हो"

"अच्छा मेरे राजा!"

बलदेव देवरानी को बाहो में भर लेता है।

देवरानी: जाओ मुझसे बात मत करो!

बलदेव: क्यू माँ क्या हुआ?

देवरानी: मुझे गुस्सा आया है तुम से।

बलदेव: क्यू गुस्सा है। मेरी रानी?

देवरानी: जब मैंने दिया तो तुमने प्रसाद क्यू नहीं खाया?



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बलदेव हसते हुए बोला "ओह तो ये बात है। मेरी रानी।"

बलदेव: देखो माँ मैंने प्रसाद नहीं लिया क्यू के तुम मेरी देवी हो और मेरा मनपसंद प्रसाद लेना मुझे आता है।

बलदेव आगे बढ़ कर देवरानी के होठों को अपने होठों में दबा कर चूसने लगता है।

"उम्म्हा एगललोप्प स्लर्प गलप्प-गलप्प उम्म्म स्लरप्प गैलप्प गैलप उम्म्म्हा रप्प!"




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ऐसे अचानक हमले से देवरानी संभल नहीं पाती और लंबी सांस लेने लगती है।

एक लम्बी चुम्बन के बाद बलदेव देवरानी के होठ को हल्का काट लेता है। फिर देवरानी के होठ छोड़ता है।



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देवरानी: उफ़ बलदेव ये क्या हरकत है।

बलदेव: माँ प्रसाद देते हुए तुमने मुझे बच्चा कहा था। ये उसकी सजा है।

देवरानी: अच्छा तो इस बात से मुंह गिराए हुए थे तुम और तुमने ये कर के साबित कर दिया की तुम अभी भी बच्चे ही हो।



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बलदेव देवरानी को ले कर दीवार से चिपका देता है और उसकी गर्दन को अपने बड़े हथेली से पकड़ लेता है ।

बलदेव: माँ वह तो मैं तुम्हें बताऊंगा की मैं कैसा बच्चा हूँ!

देवरानी हल्का खासी करते हुए .... !

देवराणु: जान से ही मार दोगे मुझे क्या?

बलदेव अपना हाथ देवरानी की गर्दन से हटा कर देवरानी की बड़ी गांड पर रख कर दबाता है।



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बलदेव: जान से तो नहीं पर किसी और चीज़ से मारूंगा ये!

और बलदेव देवरानी की गांड पर एक थपकी मारता है।

देवरानी लज्जा कर सरा झुका लेती है।

देवरानी: मेरे प्रेमी क्यू गुस्सा हो रहे हो । अगर मैं तुम्हें बच्चा समझती हूँ तो मैं तुम पर भरोसा कर तुम्हें अपना जीवन साथी नहीं चुनती।

बलदेव को अपनी माँ पर प्यार का साथ दया आजाती है।

"मां, मैं आपके इस निर्णय को कभी गलत साबित नहीं होने दूंगा।"

तभी राजपाल आवाज देता है।

"देवरानी ओ देवरानी!"

देवरानी: जी महाराज!

बलदेव अपने हाथ से देवरानी की गांड को पूरी ताकत से दबाता है।

देवरानी: आआआआह!

देवरानी की जोर की आह सुन कर राजपाल देवरानी के कक्ष की ओर आता है।

देवरानी: छोडो बलदेव! राजपाल आरहा है।

देवरानी आकर दरवाजे पर खड़ी हो जाती है और राजपाल वहा से तेजी से चलता हुआ उधर आ गया था पर देवरानी को देख रुक जाता है।




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राजपाल: क्या हुआ ऐसे क्यों चीखी?

देवरानी: महाराज वह मेरे पैर पर ठोकर लग गई थी।

राजपाल: बताओ कहा पर लगी चोट?

तभी बलदेव सोचता है कि अब छुपना बेकार है और दरवाजे के पीछे से निकल कर सामने आता है।

राजपाल: बलदेव तुम यहाँ...क्या कर रहे हो?

बलदेव: पिता जी पारस जाने की तैयारी में माता का हाथ बटा रहा था।

राजपाल: अच्छा बेटा!

बलदेव: अच्छा तो मुझे आज्ञा दीजिये! सामान बाँधना है।

बलदेव वापस दरवाजे के पीछे चला जाता है और राजपाल की आँखों से ओझल हो जाता है।

राजपाल अभी भी अपनी पत्नी देवरानी के दरवाजे के सामने खड़ा होकर बात कर रहा था, जो के दरवाजे और देवरानी से 4 हाथ की दूरी पर था।

राजपाल: सुनो देवरानी श्याम और बद्री को कुछ खिलाया पिलाया की नहीं?

देवरानी दरवाजे पर खड़ी-खड़ी बोलती है ।

"महाराज अभी कुछ देर में ही भोजन बन जाएगा कमला और राधा पकवान बना रही हैं।"



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दरवाजे के पीछे छिपे बलदेव को शरारत सूझती है और वह किवाड़ के पट से सट कर खड़ी देवरानी की उभरी गांड को देखता है और उसकी गांड को अपने हाथो से सहलाने लगता है। जिसका असर देवरानी के चेहरे पर साफ दिख रहा था और उसके आख बीच-बीच में बंद हो जाती थी ।

राजपाल: और सुनो जितना हो सके तुमको जल्दी वापिस आना है और देवराज को मेरा प्रणाम कहना और मेरी और से साले साहेब से क्षमा मांगना ।

बलदेव देवरानी की गांड सहलाते हुए दबोच कर ज़ोर से मसलता है।

देवरानी: "आआआह" उह!

राजपाल: अब क्या हुआ?

देवरानी: कुछ नहीं वह खड़ी हूँ ना कब से तो मोच दुख रही है।



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राजपाल: ठीक है। जाओ आराम करो!

राजपाल घूम कर जाने लगता है।


जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 56-B

पारस जाने की तयारी और यात्रा की शुरुआत



बलदेव गांड पर एक थप्पड़ मारता है और इस बार देवरानी ज़ोर से !


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"आआआह!" करती है, जो जाते हुए राजपाल को भी सुनाई देती है।

राजपाल मन में "ये देवरानी पूरी पागल है।"

जैसे ही राजपाल देवरानी की आंखो से ओझल होता है। देवरानी वापस अपने कक्ष में आती है और देखती है कि बलदेव बिस्तर पर लेटा हुआ मुस्कुरा रहा था।

"बलदेव ये क्या बेवकूफी है। अगर राजपाल देख लेता तो?"

"माँ बस मेरा मन था, मैंने कर दिया।"


"किसी दिन जान चली जाएगी तुम्हारे इस मन के चक्कर में !"

"मां क्यों परेशान हो रही हो? अच्छा बोलो तुम्हें मजा आया या नहीं जब मैंने तुम्हारे पति के सामने तुम्हें मसला तो?"



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देवरानी ये सुन कर लज्जा जाती है। क्यू के अपने बेटे द्वारा अपने पति के सामने ऐसे मसले जाने पर उसे एक अलग, उत्तेज़ना का एहसास हुआ था।

"पर बलदेव !"

"पर वर कुछ नहीं माँ उसकी पत्नी नहीं हो अब तुम और उस बुधु राजपाल को बताना है कि तुम अब मेरी हो उसकी नहीं।"

"बड़े आया मजनू कहीं का! "

"अरी रे मेरी छमिया! वह तो मैं बताऊंगा तुम्हें, कि ये मजनू अपनी लैला को कैसे प्यार करता है।"

"देखूंगी कि ये बादल गरजने वाले हैं या फिर सच में या बरसने वाले हैं..."

बलदेव ये सुन कर देवरानी पर झपट्टता है। देवरानी उससे बच निकलती है।

देवरानी: बेटा संयम रखो! ज्यादा प्रेम दिखागे तो हमारी यात्रा अभी खत्म हो जायेगी।

बलदेव: हम्म्म माँ संयम और नहीं रख पा रहा हूँ!



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देवरानी: चलो जाओ और अपने मित्रो को बुला लाओ ।

बलदेव: क्या कहु...मौसी ने बुलाया है। या भाभी ने?

देवरानी: पागल हो तुम...!

बलदेव: हाँ वह तो हूँ तुम्हारे प्यार में और वैसे भी वह दोनों मेरे दोस्त हैं। श्याम और बद्री तुम्हें आज नहीं तो कल तो तुम्हे भाभी ही कहेंगे।

देवरानी: भाभी नहीं मौसी कहो

बलदेव: तो तुम क्या चाहते हो मुझे वह मौसा कहे!

और बलदेव हसने लगता है।

देवरानी: चुप कर कमीने बातो में तुम से भला कौन जीत सकता है।

बलदेव: माँ वह मेरे मित्र पहले है। बाद में तुम उनकी मौसी हो । मुझे तो पक्का यकीन है वह लोग तुम्हें मौसी नहीं कहेंगे।



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देवरानी: तुम्हें ऐसा लगता है तो ऐसा ही होना चाहिए पर बलदेव ये भी हो सकता है। के सच जानने के बाद वह हमारा मुँह भी देखना पसंद न करे।

बलदेव: तो ना करे मुझे किसी का परवाह नहीं जो हमें स्वीकार करे तो ठीक, नहीं करे तो वह मेरा कोई नहीं।


देवरानी: चल जा बाद में बड़ी-बड़ी बात करना । अभी जा कर मित्रो को खिलाओ कुछ।

बलदेव निकल कर अपनी कक्ष में जाता है और कमला से कह कर नाश्ता ऊपर ही मंगवा लेता है। फिर तीनो मित्र मिल कर खाने लगते है।

बलदेव: तो कहो बद्री आज ही पारस के लिए निकले या कल सवेरे?

बद्री: वैसे बलदेव आज ही जाना सही होगा क्यू के महाराज ने कहा है के हमे जल्दी वापस आना है। अन्यथा घाटराष्ट्र के लोग सोचेंगे कि उन्हें लड़ने के लिए कह दिया गया है और खुद अपने परिवार को चुपचाप पारस भेज दिया गया है घुमने के लिए।



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बलदेव: हम्म सही कह रहे हो बद्री!

श्याम: भाई. इसका मतलब इन हालात में हम ज्यादा दिन पारस नहीं रुक पाएंगे।

बद्री: 2 से 3 दिन श्याम उससे ज्यादा नहीं।

श्याम: इतने दिन में हम पूरा पारस कहाँ घूम पाएंगे

बद्री: श्याम तुम्हें बस घुमना और खाना सूझता है। यहाँ राष्ट्र पर आक्रमण की आशंका है।

बलदेव: श्याम चिंता मत करो फिर कभी हम जाएंगे तो घूम आएंगे वैसे भी पारस तो मेरा ननिहाल है।


(मन मैं: और अब तो ससुराल भी पारस ही है।)

और मुस्कुराता है।

ऐसे ही दोपहर का समय हो जाता है । चारो अपनी यात्रा पर साथ ले जाने वाला हर समान अच्छे से त्यार कर एक जगह रखने लगते हैं और फिर दोपहर के भोजन का समय हो जाता है।



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श्याम, बद्री, राजपाल, जीविका, सृष्टि, और बलदेव सब आसन पर बैठ भोजन की प्रतीक्षा कर रहे थे। देवरानी कमला और राधा मिल कर हर तरह के व्यंजन परोसती है।

श्याम: मुझसे तो रहा नहीं जा रहा! देवरानी मौसी के हाथों का व्यंजन खाने के लिए बहुत भूख लग रही है!

बलदेव: माँ सबसे पहले श्याम को दो इसे बहुत भूख लगी है।

देवरानी कमला से पनीर की सब्जी ले कर श्याम के थाली में रखती है और फिर बलदेव को पूछती है।

"खाओगे क्या पनीर"

देवरानी का पल्लू सरक जाता है और उसके दूध साफ दिखने लगते हैं।




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बलदेव जैसे देवरानी के स्तनी के बीच की गहरी घाटी में खो जाता है।

बलदेव देवरानी के वक्ष को देखते हुए कहता है ।

"दो ना माँ मुझे खाना है।"

देवरानी पनीर की सब्जी रख देती है उसकी थाली में और एक अदा से मुस्कुराती है और फिर सबको बांटने लगती है।

बद्री जो बगल में बैठा भोजन कर रहा था। अपने चतुराई से दोनों का नैन मटक्का देख लेता है और सोच में डूब जाता है।



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बलदेव: पिता जी हमें तय किया है। के हम अभी भोजन के तुरंत बाद पारस के लिए यात्रा पर निकल जाएंगे।

राजपाल: हाँ ठीक है। जाओ पर जल्दी वापिस आना है। इस बात का भी ध्यान रखना बलदेव की इस समय राष्ट्र पर आक्रमण की आशंका है ।

जीविका खाने की कोशिश कर रही थी पर उसके हलक से खाना अंदर नहीं जा रहा था।

जीविका: (मन में-बता दू क्या राजपाल को ...पर कैसे बताऊ?

देवरानी: आप चिंता मत करें महाराज हम सही समय पर लौट आएंगे!



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जीविका: बहु तुम्हें कब से सही गलत की पहचान हो गई और एक घूरती हुई नजर से बलदेव की ओर देखती है।

बलदेव को समझ में नहीं आता है। के दादी क्यों अंदर से इतना गुस्सा है।

बलदेव: दादी मैंने वह बात माँ को बताई है जो आपने मुझे सिखायी थी।

जीविका: क्या?



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बलदेव: हाँ दादी आप ने बहुत दुनिया देखी है और आपने समझाया था।की जब दिल और दिमाग में द्वन्द हो तो अपनी खुशी के लिए हमे हमेशा अपने दिल की सुननी चाहिए ...अब जब भी मुझे निर्णय लेना होता है तो मैं हमेशा अपने दिल की सुनता हूँ। आपका धन्यवाद दादी।

जीविका को अपनी कही हुई बात याद आती है और कहीं ना कहीं उसका दिल अपने पोते, जिसको वह जान से ज्यादा चाहती थी उसकी बात मानने लगता है ।

बलदेव आदि आज अब आप चल कर आकर हमारे साथ भोजन कर रही हैं तो मैं बहुत खुश हूँ।

जीविका: (मन में-बलदेव सही तो कह रहा है। आज बलदेव के कारण से ही मेरे पैर थोड़े ठीक हुए हैं नहीं तो बलदेव के आने से पहले मुझे कोई पूछता भी नहीं था और मैं एक जगह अकेली चुपचाप सोयी रहती थी।

जीविका बहुत कठिन परिस्थिति का अनुभव कर रही थी । एक तरफ उसके बेटे राजपाल का घर उजड़ रहा था। दूसरे ओर उसके पोते का घर बस रहा था।

जीविका एक बार राजपाल को देखती है। फ़िर बलदेव को देखती है। बलदेव के आखो में उसे देवरानी के लिए बेशुमार प्यार दिखता है।



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जीविका देवरानी को देखती है। देवरानी अपना सारा झुकाये दुखी मन के साथ बैठी थी । उसकी आँखों में आसु भरे हुए थे और जैसे जीविका को कह रहे हो के "कृपया कर के हमारा साथ दीजिए. मैं बहुत दुखी हूँ।"

बलदेव चुप्पी तोड़ते हुए बोलता है

बलदेव: दादी खुशी पाने के लिए कभी-कभी कठिनाईयों का भी सामना करना पड़ता है।

जीविका फिर देवरानी की ओर देखती है। जो अपने आखो में आसु भरे हुए जीविका की ओर एक आस से देख रही थी।

देवरानी: बलदेव तुम्हारे पास तो दादी थी जो तुम्हें ज्ञान दे रही थी पर मेरे पास ना दादी थी ना माँ बाप जिन्होंने मेरी परवरिश की उनका भी देहांत हो गया था ।

जीविका को ये बात सुई की तरह चुभती है।

जीविका का दिमाग दुखने लगता है के आखिर वह किस मोड़ पर फंस गई है। वह अपना सर नीचे कर के खाने लगती है।

सब भोजन समाप्त कर के उठते है।

जीविका अपनी कक्ष में जाने लगती है।

बलदेव: रुको दादी हम अब निकलेंगे आशीर्वाद नहीं दोगी?



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बलदेव और देवरानी दोनों साथ में जीविका के पैर पकड़ कर आशीर्वाद लेते हैं।



जीविका को ना चाहते हुए भी आशीर्वाद देना पड़ता है।

"सदा ख़ुश रहो!"

जीविका अपना बैसाखी को लिए अपने आंखो में आसु के लिए अपने कक्ष में चली जाती है।

जीविका अपने कक्ष में जा कर

"हे भगवान ये कैसी स्थिति है। मैं अपने बेटे का साथ नहीं दे सकती हूँ कहीं ये देवरानी को जो जीवन भर दुख हुआ है वह तो नहीं रोक रहा मुझे।"

और उसके आँखों से आसु गिरने लगते हैं।

सेनापति सोमनाथ चार घोड़ों को तैयार कर चारो पर सैनिकों से सामान बंधवा रहा था। अंदर बलदेव देवरानी और श्याम और बद्री त्यार र हो रहे थे।




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शुरष्टि अपने कक्ष में आकर अपना रखा पिटारा खोलती है। तो उसमे अब भी सांप अपने जहर के साथ मौजुद था।

सृष्टि: देवरानी तेरी ये अंतिम यात्रा होगी और उसके बाद मैं तेरे बेटे को भी मारवा दूंगी। हाहाहाहा!

सृष्टि त बड़ी चालाकी से पीटारी छुपाये बाहर आती है। तो देखती है। दो सैनिक और सेनापति सोमनाथ घोड़े पर समान बाँध रहे थे और घोड़े को उसका चारा दे रहे थे।

शुरुष्टि: उफ़ अब क्या करु

फिर कुछ सोचते हुए

शुरुष्टि: सेनापति सोमनाथ!

सेनापति सोमनाथ: जी महारानी

शुरष्टि: आपको महाराज ने बुलाया है। कुछ काम से!

सेनापति सोमनाथ: जी महारानी

सोमनाथ अपना काम छोड़ महल के अंदर चला जाता है।

शुरुष्टि: सैनिको ये किस किसके घोड़े है।



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सैनिक: महारानी ये भूरा वाला युवराज श्याम का है। ये काला घोड़ा पर युवराज बलदेव जायेंगे और ये वाले काले घोड़े पर युवराज बद्री

शुरष्टि आर ये सफ़ेद घोड़े पे?

सैनिक: महारानी ये सफ़ेद घोड़े पर रानी देवरानी जायेंगी।

सृष्टि एक कातिल मुस्कान देते हुए

शुरुष्टि: आह! मेरा गला सुख रहा है। सैनिको जरा पानी लाना।

सैनिक पहला: तुम जाओ ले आओ पानी!

सैनिक दूसरा: नहीं मेरा काम अब होने वाला है। तुम ले आओ!

शुरष्टि: गधो दोनों जाओ एक साथ और पानी लाओ अन्यथा।


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दोनों सैनिक डर जाते है और भागने लगते हैं। श्रुष्टि मौका देख पीटारा खोल सांप को देवरानी के घोड़े पर बंधे झोले में रख देती ह और पीटारा छुपा लेती है।



दोनों सैनिक भाग कर पानी लाते हैं।

सैनिक: ये लीजिये महारानी पानी

सृष्टि: तुम दोनों ने इतनी देर कर दी की मेरी प्यास ही ख़त्म हो गई

और सृष्टि वापस महल में जाने लगती है।

सैनिक: अरे इतनी जल्दी तो ले आये फिर भी महारानी के नखरे देखो!

दोनों सैनिक एक दूसरे का मुंह देख अपना बाकी का काम करने लगते हैं।

सब तैयार हो कर महल के बाहर आते हैं। जहाँ पर उनका घोड़ा त्यार खड़ा था। देवरानी सब से विदा लेती है।

सृष्टि हल्का रोने का नाटक करती है।

"देवरानी अपना ख्याल रखना।"

सृष्टि: (मन में: वापस मत आना कलमुही देवरानी)

देवरानी: हाँ दीदी आप भी अपना ध्यान रखना।




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राजपाल: देवरानी साले साहब से मेरा प्रणाम कहना मत भूलना।

देवरानी (मन में असल जीजा को तो मैं साथ ले जा रही हूँ तुम्हारे प्रणाम का क्या करूं।)

सृष्टि (मन में: बुधु राजपाल देवरानी ने देवराज का जीजा ही बदल दिया है। अब भी भ्रम में हो तो रहो ।)

कमला: महारानी अपना ख्याल रखना!

देवरानी: तुम भी अपना ख्याल रखना!



raj-dev-bal

बलदेव अपने पिता के चरण छू कर आशीर्वाद लेता है और फिर सब बारी अपने घोड़े पर बैठने लगते हैं और सब अपने घोड़े को लगाम खींचते हैं।

राजपाल और श्रुष्टि अंदर चले आते है।

शुरष्टि: आख़िर बला टली!

राजपाल: पर मुझे तो अब भी उनके ऊपर हमारे शत्रु के हमले का डर है।

शुरुआत: तो मर जाने दो माँ बेटे को वह कौन-सा आपकी बात माने!

राजपाल: तुम सही कह रही हो सृष्टि वह मुझे नहीं समझती तो मैं क्यू उसके बारे में सोचु!

इधर बलदेव अपनी माँ और मित्रो के साथ तेज गति से घोड़े पर सवार होकर देश की सीमा पार कर लेता है। घोड़े को दौड़ाते हुए शाम हो जाती है।



HORSE-RIDE3

बलदेव अपना हाथ दिखा कर सबको धीरे होने का इशारा देता है। सब रुक जाते हैं।

बलदेव: बद्री अँधेरा हो गया है। अब हमें मशाल जला लेनी चाहिए

बद्री: ठीक है। बलदेव

बद्री मशाल जलाने लगता है।

बलदेव: अब हम सब आगे पीछे चलेंगे । सबसे आगे बद्री मशाल के लिए चलेगा उसके पीछे श्याम उसके पीछे माँ और उसके पीछे मैं!

देवरानी घोड़े पर बैठी अपने बेटे की बुद्धिमानी पर गर्व महसुस कर रही थी।

बद्री मशाल जला कर आगे आता है।

बलदेव: ध्यान रहे हम दिल्ली के पास हैं। हमें आबादी से बच कर जंगल से हो कर आगे बढ़ना है और ये पूरे चंद्रमा की रोशनी भी आज हमारे साथ है।

अब बद्री हाथ में मशाल लीए हुए था घोड़े की लगाम उसके दूसरे हाथ से थी। वह घोड़े को भगाता है। उसके पीछे श्याम उसके पीछे देवरानी और बलदेव अपने घोड़ो को दौड़ा देते हैं ।




HORSE-FAST
रात 10 बजे बलदेव की आवाज से बद्री अपना घोड़ा रोकता है।

बलदेव: बद्री आधी रात होने को है। हमें अब कुछ खा कर आराम करना चाहिए.

श्याम: हाँ मैं भी थक गया । अब कुछ खाना चाहिए.

बलदेव: क्या कहती हो माँ?

देवरानी एक मुस्कान के साथ "खिला दो मुझे भी।"

बद्री: महल में भी मौसी कुछ अलग अंदाज से बलदेव को अपना पल्लू हटा कर दिखा रही थी और मुस्कुरा रही थी और अब भी । क्या मैं जो सोच रहा हूँ वह सही है?

बद्री: मौसी खाने का झोला मेरे पास है। आ जाओ सब भोजन करते हैं।

बलदेव: यहाँ पास ही झरना है और हम किसी गांव् के करीब हैं। तुम सब गौर से देखो खेत के उस पार द्वारा पर दिये जल रहे हैं।

देवरानी: हाँ यहाँ ठण्ड भी बहुत अधिक है।

बलदेव: बद्री यही अपना रात का पसंदीदा शिविर घर बनाया जाए

बद्री: हाँ क्यू नहीं!

देवरानी: शिविर घर और यहाँ क्या क रहे हो तुम लोग?



TENT1
hey google roll a dice

बद्री: हम दो शिविर बना सकते हैं।

बद्री हथौड़ी निकाल कर अपने हाथ से तम्बू बनाने लगता है।

अब सब समझ जाते हैं। के उनको क्या करना है और देवरानी भी हाथ बटाने लगती है। और देखते ही देखते दो तंबू बन के तैयार हो जाते हैं।

देवरानी: वाह ये शिविर तो हुबहू घर जैसा बन गया।

बद्री: मौसी ये सब हमारे गुरु ने सिखाया है।

फ़िर सब वही बैठ कर चटाई पर खाना खाते है और घोड़ो को भी चारा देते हैं और छोटा-सा लालटेन जला कर दोनों तंबू में रख लेते हैं।

खाना खाने के बाद सब इधर उधर की बातें करने लगते हैं।



CAMP-FIRE

बलदेव पास के एक वृक्ष से सूखी लकड़ीया तोड़ लेता है और उसे जला देता है।

बलदेव: अब इनसे हमें गर्मी महसूस होगी और रात में जानवरों से भी बचाव होगा

ये सब करते हुए 11 बज जाते है।

देवरानी: मेरा बदन टूट रहा है। वर्षो बड़ी घुड़सावरी की है मुझे सोना है और बलदेव की और देखती है।

बलदेव समझते हुए

तो मित्रो अब हमें सोना चाहिए फिर हमें भौर होते ही फिर पारस की ओर जाना है।

बद्री: हाँ सो जाते हैं। भाई. अब दो तंबू है। पर दोनों छोटे हैं। , मौसी एक तंबू में सो जाएगी और हम तीनो एक तंबू में सो जाते हैं। ऐसे भी हम आचार्य जी के वहाँ भी साथ ही सोते थे।

देवरानी ये सुन कर बलदेव की ओर निराशा से देखती है।

बलदेव: बद्री बात ये है। ना मित्र के माँ को अकेला डर लगेगा अकेले में । तो मैं माँ के पास सो जाता हूँ।

बद्री (मन में: कुछ तो गड़बड़ है।)

श्याम: हाँ चलेगा मैं और बद्री इस तंबू में सो जाते हैं।

देवरानी: हाँ मैं बलदेव के साथ सो जाती हूँ।

बद्री: ठीक है। ठीक है।



KIS-FRENCH

सब अपने घोड़े को अच्छे से बाँध कर बिस्तर लगा कर तंबू में घुस कर परदे से तंबू बंद कर लेते हैं।

श्याम और बद्री अपने राज्य की कहानी बता रहे थे वही देवरानी के बगल में बलदेव ऊपर की तरफ देख रहा था।

"बलदेव क्या सोच रहे हो राजा?"

"मां मैं यही सोच रहा हूँ कि कभी सोचा नहीं था। तुम मेरी हो जाओगी आज ऐसा लग रहा है जैसे कि हम दुनिया से दूर हैं। आजाद बिना किसी बंधन के!"

"हाँ बलदेव मुझे भी वर्षों बाद सुकून मिल रहा है।"

बलदेव और देवरानी अपने अतीत से जुड़ी हर बात कर रहे थे

आधे घंटे बाद

"बलदेव क्या हुआ आज मौका है। तो हाथ नहीं मारोगे"

बलदेव तंबू से बाहर आता है और देखता है। बद्री और श्याम सो रहे




TENT-KISS
बलदेव फिर तंबू में आकर देवरानी से चिपक जाता है।

"महारानी देवरानी बोलो ना मेरी पत्नी बनोगी?"

"बना पाओगे तो मेरी हाँ है। मैं इस चंद्रमा को साक्षी मान कर कह रही हूँ।"

बलदेव की आंखो में दिखती है।

बलदेव उसको आलिंगन में लेते हुए देवरानी के होठों पर चूमता है।

बद्री जिसके दिमाग में शक हो गया था। उसने बलदेव की आहट सुन लिया था और जब बलदेव आया था। तो नकली खर्राटे लेने लगा था।



TENT-KIS2
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बद्री श्याम को सोता हुआ छोड़ बाहर निकलता है और जैसा वह देवरानी के तंबू की ओर देखता है। उसके पैरो से ज़मीन निकल जाती है। लालटेन की रोशनी से परछाई बनी हुई साफ़ दिख रहा था कि बलदेव और देवरानी क्या कर रहे हैं।


TENT-KIS1

परछाई से साफ़ पता चल रहा था को दोनों एक दूसरे को चूम रहे हैं। बद्री का दिमाग कम करना बंद करने लगता है और वही बूत बना खड़ा उन्हें चुंबन करते देख रहा था...
जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 57

असंभव नहीं सत्य

बद्री बूत बना खड़ा सामने उनकी परछाईया देख रहा था। अंदर जो खेल खेला जा रहा था उसका तंबू में उनकी परछाई से साफ पता चल रहा था। वह एक माँ बेटे के बीच नहीं खेलना जाना चाहिए था इसलिए बद्री गुस्से से लाल हो जाता है।


57-0

बद्री (मन में: अभी पूछता हूँ बलदेव को, ये सब करने के लिए उसे मौसी ही मिली थी और मौसी भी तो सावित्री बनती थी, मुझे अब घृणा हो रही है।)


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किसी तरह बद्री गुस्से को काबू किये हुआ खड़ा था। फिर कुछ सोच के वापस तंबू में जाता है और अपना सामान एकत्रित करने लगता है और इस आवाज़ से श्याम जग जाता है।

"क्या हुआ बद्री इतनी रातें गए तुम क्या कर रहे हो?"



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"श्याम मैं वापस जा रहा हूँ। मैं और आगे नहीं जा सकता मित्र!"

"बद्री क्या हुआ भाई? ऐसा क्या हुआ जो आधी रात तुम वापिस जाने की बात करने लगे?"

ये सुन कर बद्री श्याम का हाथ पकड़ कर तंबू को बाहर लाता है।



TENT1


"ये देखो इस अधर्मी बलदेव को क्या कर रहा है! मुझे तो इसे अब मेरा मित्र कहते हुए भी घृणा हो रही है।"


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श्याम तंबू की परछाई को देखता है और वह भी चौक जाता है और उसके मुँह से निकलता है।


TENT-KISS

"असंभव!"



TENT-KIS1
"असंभव नहीं है। श्याम ये जो देख रहे हो तुम! वही सत्य है।"

ये कह कर गुस्से में बद्री वापस तंबू में आ जाता है।

बद्री को गुस्से में देख श्याम उसके पीछे आता है।

श्याम: सुनो भाई. इतनी रात गए तुम अकेले कहा जाओगे?

बद्री: हे भगवान मैंने क्या पाप किया था। जो मुझे आज ये सब देखना पड़ रहा है।

श्याम: होश में आओ बद्री, तुम कहीं नहीं जाओगे!

बद्री: श्याम तुम्हें यकीन हो रहा है। इतनी सती सावित्री और पतिव्रता महिला ऐसा भी कर सकती है। जरूर उनके साथ ये ठरकी बलदेव जबरदस्ती कर रहा होगा

श्याम: पागल हो तुम अगर मौसी के साथ ज़ोर से जबरदस्ती करता बलदेव तो इतना चुप चाप नहीं रहती मौसी?




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बद्री: तुम समझ नहीं रहे श्याम हमारे माँ जैसी थी वो!

श्याम: देखो हम जंगल में हैं और हमारे दुश्मनों के करीब भी। अगर तुम अभी कोई भी कदम उठाओगे, तो सोच लो नुक्सान तुम्हारा ही होगा और लाभ कोई नहीं!



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बद्री: मुझे डराओ मत! श्याम! मुझे अपनी जान की परवाह नहीं है पर मैं इस पाप को अपने सामने सहन नहीं कर सकता ।

श्याम: तू ज़िद्दी है। ऐसा नहीं मानेगा, तुझे हमारी दोस्ती की कसम है। अगर तू यहाँ से गया तो हमारी दोस्ती खत्म!

बद्री: तू पागल है। क्या श्याम?

श्याम: चल अपना झोला रख और सो जा अभी । और अगर मौसी और बलदेव अवैध सम्बंध बना रहे हैं। तो आपसी सहमति से ही बना रहे है। ऐसा मुझे लग रहा है।

बद्री: हाँ! मैंने भी इनके इशारे और नैन मटक्का महल में भोजन करते समय देखा था।




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श्याम बद्री के कंधों पर हाथ रख कर उसको पानी पीने के लिए देता है।

श्याम: देखो बद्री! अगर तुमको इतना दुख है इस बात का, तो कल सुबह बलदेव से इस बारे में पूछ लेंगे। मुझे भी कोई अच्छा नहीं लगा ये सब देख के. फिर आगे का निर्णय लेते हैं ।

बद्री: हाँ तुम सही कह रहे हो मैं तो बलदेव से इसका उत्तर ले कर रहूंगा।

श्याम: हाँ तो अब सो जाते हैं।

फिर दोनों-दोनों सोने की तय्यारी करने लगते है ।

श्याम: तुझे याद है। हम घरेलू और पारिवारिक चुदाई की कहानियो की पुस्तके पढ़ते थे।


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बद्री: हाँ! श्याम!

श्याम और हमने बलदेव को वह पढ़ने के लिए पुस्तक दी थी।

बद्री: तुम कहना क्या चाहते हो?

श्याम: कही ये उसका ही तो असर नहीं है।

बद्री: हम तो कहानिया मजे के लिए पढ़ते थे, पर बलदेव ने तो इतिहास रच दिया।

श्याम: हाँ! मुझे भी यही लगता है कि एक बार बलदेव जो हम से भी समझदार है। ये जानना जरूरी है कि उसकी सोच क्या है ये सब के पीछे, बलदेव ने तो उन कहानीयो को जैसे जीवन दे दिया हो। जब कहानी में इतना मजा आता था। तो उसको वास्तव में कितना मज़ा आ रहा होगा।

बद्री: चुप कर और सो जा!



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तभी दोनों के कानों में चप-चप चू चू की आवाज आती है। दोनों को लगता है कही आसपास कोई जानवर तो नहीं। फिर दोनों खामोशी से आवाज की दिशा में देखते है तो ये आवाज है बलदेव और देवरानी के तंबू से शुरू हो रही थी जो निश्चित तौर पर एक दूसरे को चूमने की ही थी।

ये दोनों समझ जाते हैं और श्याम बद्री की ओर देख एक मुस्कान देता है और इशारे से कहता हैं। सो जाओ!

बद्री गुस्से से अपना मुँह दूसरी तरफ घुमा लेता है और दोनों सोने की कोशिश करने लगते है।

इधर दूसरे तंबू में बलदेव इस सब से बेख़कर देवरानी को बेतहाशा चूमे जा रहा था।



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flip a dice

"गैल्पप्प गैलप्प स्लरप्प"

"आह मेरे राजा!"

"उम्म्मह गल्प!"

"मेरी रानी! "




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"गलप्पप्पप्प गलप्पप्प-गलप्पप्प गलप्पप्प गलप्पप्प गैल्प्प गैल्प्प्प्प गैल्प्प्प्प!"

"देवरानी मेरी रानी! तू बनेगी मेरी पत्नी?"

"हाँ! मेरे राजा बनूंगी तेरी पत्नी नहीं धर्म पत्नी!"



54-6

बलदेव देवरानी को खूब चूम और चूस रहा था और देवरानी भी उसका खूब साथ दे रही थी।

देवरानी अब उसके ओंठ छोडती है। उसकी सांस फूलने लगी थी ।

"राजा आराम से कहीं वह दोनों सुन ना ले" !



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देवरानी की चुन्नी हट जाने से उसके दोनों बड़े वक्ष उसके सांसो के साथ ऊपर होते नीचे होते हुए साफ़ दिख रहे थे।


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बलदेव हाथ पकड़ कर "इधर आ मेरी जान!"

उसके दोनों वक्षो को ऊपर नीचे होते हुए देखता है ।


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और अपने दोनों हाथ बढ़ा कर उन्हें महसूस करता है।



CARESS


"माँ क्या पपीते है। तेरे आह मजा आ गया!"


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उसके दोनों स्तनों को खूब दबाने लगता है।


57-2
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"आह राजा!" देवरानी अपने स्तनों को सहलाने से आनंदित होती है और बलदेव को सहलाने लगती है।

"देवरानी इधर आ मेरे पास!"

"हा मेरे राजा!"



50-4

बलदेव: "आ ना मेरे रानी! मेरी गोद में बैठ ना!"

देवरानी इशारा समझ जाती है और बलदेव की तरफ अपना बड़ी गांड करती है।




57-3

"हाँ लाना ये तरबूज़ जैसी गांड में गन्ना डाल दू और अपना रस छौड दू इसमें!"

"गंदा बलदेव!"

"अभी बताता हूँ कितना गंदा हूँ मेरी रानी!"



57-4
बलदेव देवरानी की गांड पर अपना लंड लगा देता है और देवरानी अपनी गांड पीछे कर मजा कर रही थी बलदेव खूब मन से अपना लौड़ा उसके नितम्बो की दरार में मसल रहा था।

देवरानी को अब हल्का झुका कर बलदेव अपने दोनों हाथ आगे ले वक्षो के बीच ले जाता है।

"आह रानी! तुम्हारे ये दोनों तरबूज़ो का रस पीना है। ...पिलाओगी ना"




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बलदेव खूब अच्छे से दोनों भारी स्तनों का मर्दन कर रहा था।

"अई हा! मैं मर गई! उफ़ हे भगवान!"

"आह माँ!"

"हाय दय्या मेरे दूध उफ़ आह!"



57-b2

"बोलो ना दोगी ना! इस का दूध पीने अपने पति को! अपने बेटे बलदेव को?"

"हाय मेरे पति ही नहीं तुम मेरे पति परमेश्वर हो । सब कुछ ले लो। जो चाहो वह कर लो!"

"समय आने दो!"

"हाँ मुझसे विवाह कर लो ना, बलदेव मुझे अपनी बना लो!"


57-5

"बना लूंगा! तुझे अपनी पत्नी जरूर बना लूँगा! मेरी जान भरोसा रखो!"

"बलदेव! तुम्हारे ही तो भरोसा है अब! मुझे और नहीं रहा जाता है। मेरे राजा आह!"

बलदेव अब भी खूब अच्छे से दूध दबाये जा रहा था और साथ में देवरानी की झुकी हुई गांड की दरार में अपना खड़ा कड़ा लंड रगड़ रहा था।


57-7

"आहह राजा ऐसे ही, करो! करते रहो!"

"मुझे पत्नी बना लो रोज़ भूल दूंगी इससे भी ज़्यादा"

"मुझे पता है। मेरी माँ के तुम डालने नहीं दोगी बिना विवाह किये!"

बलदेव अब ज़ोर-ज़ोर से अपना लंड रगड़ रहा था। फिर देवरानी की गांड को बलदेव एक हाथ पकड़, अपना लंड दुसरे हाथ से पकड़ कर देवरानी की गांड से सीधा अपना लंड उसकी चूत पर सटा देता है।


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"आह राजा ये लोहे-सा गरम है।"

"तुम्हारा चूल्हा भी भट्टी बना पड़ा है।"

"आह राजा!"

बलदेव की ऐसी चुत पर लंड रगड़ने से देवरानी का पानी चुत से बाहर आ जाता है।

"आआआआआह बलदेव" देवरानी इस बार अपने आप को रोक नहीं पाती और चिल्ला देती है।


57-n1
बलदेव देवरानी को चिल्लाता देख सीधा अपना लौड़ा उसकी चूत के छेद पर रख वस्त्र के ऊपर से ही घुसाने की कोशिश करता है।

"आह मैं तुम्हें पत्नी बना कर ऐसे ही भोगूंगा! और तुम ऐसे ही चिल्लाओगी!"

अब बलदेव का लौड़ा भी खूब पानी छोड़ने वाला था।

"भोग लेना बेटा!"



50-6

बलदेव देवरानी के दोनों बड़े पपीतो को दबाते हुए फिर उसके चेहरे पर, फिर उसकी गर्दन पर चुम्मो की बरसात कर देता है। "

"आह्ह्ह्ह देवरानी, मेरी पत्नी, मेरी रानी, मेरी जान!"

और बलदेव अपना आख बंद कर देवरानी गले लग जाता है और उसका लंड बड़ी जोर की पिचकारी उसकी धोती पर मारता है।

बलदेव निढाल हो कर देवरानी के बगल में लेट जाता है।

देवरानी: क्यू थक गये मेरे राजा?



54-5

बलदेव अपना हाथ आगे बढ़ा कर देवरानी की एक चुची पकड़ कर मसलने लगता है।

"मां तुम्हें प्यार कर के मैं कभी थक नहीं सकता!"

"चल जाओ बहुत देखे है, तुम्हारे जैसे।"

"मां सुबह हमे जल्दी निकलना है और अँधेरा छटते ही पारस की ओर निकल जाना है।"

देवरानी भी अब सीधा लेटा रहता है ।

"मेरे राजा! आज चाँद के नीचे खुले में तुमसे प्यार कर के बहुत मज़ा आया।"

ऐसा है तो बस हमारी शादी विवाह हो जाने दो फिर तुमको बताओ चाँद के नीचे प्यार करना किसे कहते है। मेरी रानी! "



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"क्यों ऐसा क्या करेगा तू?"

"तेरे पिछवाड़े में अपना डंडा डाल के तुझे ठोकूंगा । मेरी पत्नी तो बनो, फिर देखना!"

देवरानी शर्म और लाज से अपना सर झुका कर नज़रे बचाने लगती है।

"चल हट गंदे कमीने!"

और फिर दोनों सो जाते है।

इधर घटराष्ट्र में दोपहर से सोच में डूबा हुआ था सेनापति सोमनाथ।

सेनापति सोमनाथ: "क्या करूं मैं ये गुत्थी सुलझाने के लिए कहा जाऊँ? आखिर ये सब करने की वजह क्या हो सकती है।"

महल के सामने सेना के लिए उद्यान और वही पास में सेना गृह था। जहाँ पर सेनापति के लिए खास कक्ष था।

सोच में डूबा हुआ सोमनाथ बाहर निकल कर अपना अश्व पर बैठ घाटराष्ट्र के मुख्य बाज़ार की ओर चल देता है।




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सोमनाथ ने कहा, "आखिर ये कौन था। जो महारानी श्रुष्टि से मिलने आया था। उसका रानी देवरानी को मारने की साजिश में उसका ही हाथ है...? ।"

"पर महारानी श्रुष्टि रानी देवरानी को क्यू मारना चाहती है।"

सोमनाथ मुख्य बाज़ार में ले जा कर अपना घोड़ा एक ओर बाँध देता है।

बाज़ार में शौर था। हर तरफ दुकान थी दौड़-दौड़ कर लोग अपनी खरीददारी करने आये थे।

सोमनाथ: अब उस दिन जो आदमी रानी सृष्टि से मिलने आया था वही असली बात बता सकता है पर उसको ढूँढू कैसे?

सोमनाथ बीच बाज़ार में खड़ा सोच रहा था। उसे बाज़ार में हर फल वाले और सब्जी वाले खरीददारी करने के लिए अपनी तरफ बुला रहे थे ।

तभी सोमनाथ के कान में डमरू की आवाज आती है और वह उस ओर देखता है जहाँ पर तमाशे वाला अपना तमाशा दिखा रहा था।

सोमनाथ: (मन में-सांप का राज तो ये सपेरा ही खोलेगा)


जारी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 58

राज की बात

बाज़ार में अपनी जांच पडताल करता हुआ सेनापति सोमनाथ तमाशे वाले की ओर बढ़ रहा था।


MADARI

सोमनाथ: (मन में-मैंने सांप को महारानी शुश्रुष्टि के हाथ में तो देखा और वह उसे देवरानी के घोड़े पर लादे हुए सामान में रखते हुए भी मैंने देखा था पर जो आदमी महारानी से मिलने आया था, उसका पता मिले तो काम बन जाएगा ।

बाजार में बड़ा-सा घेरा बना कर लोग तमाशे वाले का तमाशा देख रहे थे।




MADARI2
spaghetti smileys
"आपने देखा कैसे हमने ये गायब कर दिया । अब हम आप सब को सांप का नाच दिखाएंगे।"

सेनापति सोमनाथ भीड़ को चीरता हुआ आगे जाने लगता है।

"देवियो और सज्जनों डरने की ज़रूरत नहीं ये सांप जंगली तो है। पर मुझे काटेगा नहीं और मेरे रहते हुए ये किसी और को भी नहीं काटेगा।"



SANPERA

"ए बच्चो तुम थोड़ा दूर हो जाओ! "

भीड़ में भी लोग कहते है ।

"बच्चो दूर रहो!"



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अब तमाशा वाला अपना पेटारा खोलता है और सांप को कहता है।

"नाच मेरे राजा तुझे सिक्का मिलेगा!"

सांप अपना सर उठाये सर को हवा में चारो और घुमाता है।

चारो और खड़ी भीड़ ताली बजाती है।



SNAKE
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सोमनाथ अब सबसे आगे आकर खड़ा हो जाता है।

सोमनाथ (मन में-"ये तो वह नहीं है जो महल में आया था।)"

थोड़े देर बाद वह खेल दिखा कर तमाशे वाला अपने पेटरे को ले कर सब के पास जाने लगता है।

"भाईओ और बहनो आप सब ख़ुशी से जो भी देंगे ये संपेरा उसे रख लेगा।"

धीरे-धीरे भीड़ छंटनी शुरू ही जाती है।

और तमाशे वाला सपेरा अपने पेटारी में लोगों द्वारा दिए गए सिक्को को निकल कर गमछे में बाँधने लगता है।

तभी उसकी नज़र सामने खड़े सोमनाथ पर पड़ती है ।

तमाशे वाला: उस्ताद आप क्यू खड़े हैं। खेल तो ख़तम हो गया है।



SENAPTI

सोमनाथ: अरे! खेल तो अब शुरू हुआ है, मैं सेनापति सोमनाथ हूँ इधर आओ।

तमाशे वाला डर के पास आता है।

"श्रीमान मैं कभी-कभी ही यहाँ पर अपना खेल दिखाता हूँ अगर आपको चाहिए तो आज की कमाई आप रख लो।"

डरते हुए सवेरा सोमनाथ से कहता हैं।

सोमनाथ: मूर्ख तुम्हे मेरे बारे में पता नहीं है ।

डरते हुए तमाशे वाला सोमनाथ के समीप आकर उन्हें प्रणाम करता है और कहता है ।

तमाशेवाला: श्रीमान कुछ सैनिक आते हैं और हम से सिक्को की मांग करते हैं और नहीं देने पर कहते हैं कि वह हमें यहाँ काम नहीं करने देंगे। मैंने सोचा आप भी इसीलिए आये हैं । इसलिए ऐसा कहा। क्षमा करे। मुझे!

सोमनाथ का मस्कुराते हुए बोलता है "ठीक है । डरो मत! तुम्हारा नाम क्या है तमाशे वाले?"

"सरकार हमारा नाम दुर्जन है।"



CHARMER

सोमनाथ: देखो दुर्जन! अगर मैं चाहूँ तो तुम से जो कर वसूला जाता है, सैनिको द्वारा, वह इस बाज़ार में तुमसे जीवन भर नहीं वसुला जाएगा ।

दुर्जन: सही में महाराज!

सोमनाथ: पर उसके लिए तुम्हें मेरा एक काम करना पड़ेगा।

दुर्जन: मेरा जैसा तुच्छ! भला आपके क्या काम आएगा! श्रीमान!

सोमनाथ! देखो दुर्जन मुझे जितने भी संपेरे है। उनसब से मिलना है।

दुर्जन: श्रीमान् किसलिए?



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सोमनाथ: मुझसे प्रश्न मत करो! जो कहता हूँ वह करते जाओ!

दुर्जन: तो सरकार हमारी बस्ती यहाँ से 4 कोस दूर है। आप चाहे तो चले हमारे साथ।

सोमनाथ: चलो!

सेनापति दुर्जन को ले कर उस सपेरे- (जिसे उसने महल में देखा था) की खोज में निकल जाता है। सेनापति और दुर्जन दोनों संपेरो की बस्ती में पहुँचते है।

सोमनाथ: गाँव में ढिंढोरा पीट दो के जितने तमाशे वाले पुरुष हैं। उन्हें बाहर आना है।

दुर्जन: कौन पीटेगा ढिंढोरा ?

सोमनाथ: तुम! ये कोई बड़ी बस्ती नहीं हो। तुम हर घर जा कर सबको बाहर बुलाओ!

दुर्जन: ठीक है! सरकार!

दुर्जन जा कर हर घर में कह देता है कि सेनापति आप सब से मिलना चाहते हैं।

देखते देखते कुल मिला कर 35 से 40 लोग इकट्ठा हो जाते हैं।

सोमनाथ: दुर्जन कोई रह तो नहीं गया?

दुर्जन: नहीं सरकार सभी आगये हैं।!

सोमनाथ एक-एक को बड़े गौर से देखता है पर उनसे कोई भी वह नहीं था जो उस दिन महल में आया था।

तभी सोमनाथ की नज़र एक अधेड़ उम्र की व्यक्ति पर पड़ती है।




ALOK
दुर्जन: श्रीमान ये हमारे सरदार हैं। आलोक!

सोमनाथ एक मुस्कान के साथ -"सुनो! सिर्फ आलोक का छोड कर, तुम सब जा सकते हो"

आलोक जैसे वह भीड छटते हुए देखता है और सेनापति को अपनी ओर आये हुए देखता है और उलटा हो भागने लगता है।

सेनापति उसके पीछे दौड़ने लगता हैं।

दुर्जन: ई का हो रहा है?

"रुक जाओ आलोक!"

आलोक भागा ही जा रहा था और गाँव की गलियों से दूर निकल जाता है। सोमनाथ उसका पीछा नहीं छोड़ता आख़िर कर थोड़ा दौड़ने के बाद आलोक हाफने लगता है और सोमनाथ उसे दबोच लेता है।

सोमनाथ: सोमनाथ की चुंगल से बच नहीं पाओगे। आलोक!



ALOK1

आलोक: आप मुझे क्यों पकड़ रहे हो? मैंने कुछ नहीं किया1

सोमनाथ दुर्जन मेरा घोड़ा खोल कर लाओ!

दुर्जन घोड़ा खोल कर लाता है।

सोमनाथ ने आलोक की गर्दन को पकड़ कर रखा था और आलोक छूट भागने का अपना प्रयास कर रहा था।

भीड जो लौट रही थी वही रुक जाती है और कुछ घरो से बच्चे और औरतें भी बाहर आ जाती है।

भीड़ से एक संपेरा पूछता है- "महाराज इनहोने क्या किया है जो आप इन्हें पकड़ रहे हैं? ये हमारे सरदार हैं।"

"ऐ हम तुम्हारी जिभ पकड़ कर खींच लेंगे। हम सेनापति सोमनाथ हैं और राष्ट्रहित में ये काम किया जा रहा है। अगर ज्यादा चतुराई दिखाई देगी। तो ये तुम सब के लिए अच्छा नहीं होगा ।"

सब डर जाते हैं।

सोमनाथ दुर्जन! आलोक के बदले में तुम्हें तुम्हारा उपहार मिल जाएगा ।

आलोक: मुझे छोड़ दो महाराज! मैंने कुछ नहीं किया!

सोमनाथ आलोक को बाँध कर घोड़े पर लाद देता है और उसको लिए हुए महल की ओर जाने लगता है।

सोमनाथ: (मन में-आलोक तुम मेरे घटराष्ट्र का राजा बनने के बरसों के सपने, की कुंजी हो! अब राजपाल से राजगद्दी छीनने का सही समय आ गया है ।)

सोमनाथ आलोक को अपने कक्ष में ला कर रस्सी से बाँध देता है।

सोमनाथ: बोलो आलोक तुम उस दिन महारानी श्रुष्टि से मिलने क्यों आये थे?

आलोक: मैं तो बस कुछ समान पहुँचाने आया था।

सोमनाथ पास रखा कौड़ा उठा कर खीच कर एक बार कौड़ा आलोक को मारता है।

आलोक अह्ह्ह! मर गया!

सोमनाथ: बताएगा नहीं तो तुझे आज मैं जान से मार दूंगा। आलोक मुझे झूठ नहीं सुनना !

आलोक: महाराज आप महारानी श्रुष्टि से ही पूछ लीजिये मैं किस काम से आया था।

सोमनाथ: तेज़ बनने की कोशिश! वह भी सोमनाथ के सामने!

और फिर सोमनाथ बंधे हुए आलोक पर कौडों की बारिश कर देता है पर आलोक कुछ भी उगलने के लिए तैयार नहीं था।

सोमनाथ अपनी तलवार निकालता है।

"आलोक मुझे जो जानना है वह तो मैं जान ही लूंगा, मुझे जानन है कि तुम महारानी शुष्टि के साथ क्या षड़यंत्र कर रहे हो और तुमने महारानी को विषधर सांप क्यों दिया है ।"

ये सुन कर आलोक की आखे फटी की फटी रह जाती है।

"क्यू आलोक तुम्हारे आँखे क्यों फट गई?"

"देखो आलोक अगर मैं तुम्हें छोड़ देता हूँ, तो भी राज्य में षड्यंत करने के जुर्म में तुम आज नहीं तो कल फांसी पर चढ़ा दिए जाओगे उससे अच्छा है मैं तुम्हे आज ही मार देता हूँ।"

अब आलोक डर जाता है कहीं वह उसे मार ही ना दे।

"नहीं महाराज!"

सोमनाथ अपना तलवार उठा कर अपनी एक उंगली तलवार पर फेरता है।

"एक झटके में ही तुम्हारा सर धड से अलग होगा।"





SWORD
सोमनाथ जैसे ही तलवार को ऊपर उठाता है।

आलोक अपना आँखे बंद कर लेता है।

"महाराज मत मारो मुझे । मैं सब बताता हूँ।"

सोमनाथ मुस्कुराते हुए अपनी तलवार नीचे करता है और कहता है।

"तो शुरू हो जाओ आलोक!"



SLEEP0
रात में उस बंद कमरे में इधर सोमनाथ आलोक से पूरा षड्यंत्र जान रहा था। उधर दिल्ली के पास देवरानी बलदेव के साथ तंबू में सोई हुई थी।

कुछ 4 बजे बलदेव की नींद टूट गई है तो वह देखता हैकी देवरानी उसके कांधे पर सर रखे सोई हुई है।

बलदेव (मन में: कितनी मासूम लग रही है माँ देवरानी सोते हुए. मैंने माँ को इतने चैन से सोते हुए कभी नहीं देखा हैं ।

बलदेव अपना हाथ आगे बढ़ा का देवरानी के बाल जो उसके चेहरे पर आ गए थे उनको सवारता है और देवरानी के सर पर सहलाने लगता है।

थोडे देर ऐसे ही सहलाने से देवरानी की भी आँख खुलती है और वह पाती है कि बलदेव उसे देख रहा था और उसे प्यार से सहला रहा था।


TOUCH

"उठ जाऔ मेरी रानी! हमें जाना भी है।"

"सोने दो ना बलदेव!"

बलदेव देवरानी के सर को सहला रहा था। देवरानी फिर आखे बंद कर लेती है।

दस मिनट बाद।

"उठ जाओ मेरी माँ! हमें चलना है।"

"बलदेव तुम्हारे बाहो में मुझे थोड़ी देर और सोने दो!"

"मां तुम्हारे नखरे बढ़ते हे जा रहे हैं।"

"हाँ तो और कौन करेगा मेरे नखरे बर्दाश्त, बड़ी-बड़ी बातें करते हो कि पत्नी बनाऊंगा ये वो!"




dev-bal
देवरानी की बात सुन कर बलदेव मुस्कुराता है।

"मां अभी बनी तो नहीं हो ना और अभी से हक जता रही हो।"

"और तूने जो रात भर मेरे साथ किया है। तू भी तो मेरा पति नहीं है। ना!"

देवरानी धीमी आवाज में कहती है।

"अरी मेरी रानी!"

बलदेव देवरानी को अपने से चिपका लेता है।



BAL-DEV1

"महारानी जी उठो! हमें जाना है। समय रहते हमे शत्रु की क्षेत्र से निकलना है।"

"हाँ तो अगली बार मत कहना कि मैं हक जता रही हूँ।"

"बिल्कुल नहीं मेरी रानी! मेरा सब कुछ आपका ही है। मैं तो ऐसे ही बोल रहा था।"

देवरानी मुस्कुराती हुई।

"मुझे पता है। मेरा राजा! कभी मेरे से तंग नहीं आ सकता, मैं भी मज़ाक कर रही थी मेरे रोम-रोम पर सिर्फ मेरे बलदेव का हक है।"

देवरानी उठ खड़ी होती है।

"बेटा तुम बाहर जाओ मुझे कुछ काम है।"



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"क्या काम है। माँ आप मेरे सामने कर लो ना! "

"नहीं बेटा वह मुझे कपड़े बदलने है।"

"क्यू माँ ये जो आपने अभी पहने हुए है वह अच्छे भले तो है ।"

"वो बेटा! गंदे... हो ..।."

देवरानी अपना सर नीचे झुका लेती है।

बलदेव की नज़र देवरानी के घाघरे पर जाती हैऔर देवरानी की चूत के ठीक ऊपर उसे एक धब्बा दिखता है।

बलदेव अंजान बनते हुए।

"माँ मुझे समझ नहीं आया।"


देवरानी फिर बलदेव को देखते हुए-"पगले वह रात में मेरा घाघरा भीग गया था।"




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ये कह कर अपने आँखे तरेर कर बलदेव को देखती है और अपने पैरो की उंगली से जमींन कुरेदने लगती है।

माँ की बात सुन और उसे शर्माता देख बलदेव मुस्कुरा देता है।

"तो माँ आप इन्हे पारस जा कर भी बदल सकती हैं।"

"पर बेटा सुबह होने को है और मैं पूजा कर के ही निकलूंगी यहाँ से और ऐसे गंदे वस्त्र में आगे नहीं जा सकती ..।."

देवरानी अब पानी-पानी हो गई थी वह अपने बेटे को कैसे बताये की उसकी चूत के पानी ने उसका घाघरा खराब कर दिया है।



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"हम्म माँ! तो बदल लो।"

"और वैसे बेटा दिन में अगर कहीं गलती से बद्री या श्याम की नज़र इस पर पड़ी तो वह क्या सोचेंगे"

"क्या सोचेंगे माँ यही सोचेंगे कुछ गिर गया होगा और वैसे भी समझ गए तो आपको तो कुछ नहीं बोलेंगे ।"

"पर वह दोनों मुझे माँ जैसी समझते है और इसीलिए मौसी कहते है और मैं भी उनको अपना बेटे जैसा प्यार देती हूँ।"

"देवरानी जी तो कह देना अपनी बेटो से कि ये दाग तुम्हारे होने वाले पति के कारण है।"

देवरानी: हट बदमाश कमीने!

"अगर तुम नहीं कहोगी तो मैं अपने मित्रो से कहूंगा कि मित्रो! तुम दोनों की भाभी देवरानी ही है।"

और बलदेव हसता है।

"तू सुधरेगा नहीं बलदेव!"

"तुम्हारे जवानी ने मुझे बिगाड़ दिया है। मेरी रानी!"

"अब जाओ ना बाहर और तुम भी अपनी धोती बदल लो।"

और देवरानी भी हसती है।

" मां तुम मेरे सामने नहीं बदल सकती हो, कहती है पत्नी बनूंगी! और झूठा गुस्सा दिखाते हुए बलदेव बाहर जाता है।


इधर बद्री और श्याम भी उठ जाते हैं। बलदेव देखता है। दोनों बैठ कर दातुन कर रहे थे।

बलदेव: शुभ प्रभात भाईयो! उठ गये तुम लोग!

दोनो चुप रहते है । कोई कुछ नहीं कहता।

"मैं माँ के लिए भी दातून बना देता हूँ।"

बद्री और श्याम की नज़र बलदेव की धोती पर लगे दाग पर जाती है और वह समझ जाते हैं दाग किस चीज का है और कैसे लगा।

कुछ देर बाद बलदेव दतुन ला कर माँ को देता है। धीरे-धीरे सब तैयार होते हैं।

देवरानी तैयार हो कर अपने साथ लाए छोटी-सी मूर्ति की पूजा करती है।

बलदेव: माँ आपकी पूजा हो गई हो तो बाहर आ जाओ हमेंआगे जाना है। बहुत सफर बाकी है ।

बद्री (मन में-सुबह सुबह पूजा कर रही है और रात में क्या कर रही थी। कैसे लोग होते हैं।)

देवरानी बाहर आती है।

बलदेव अब तंबू में जा कर अपनी धोती बदल लेता है और सब मिल कर सब समान इकट्ठा कर घोड़े पर बाँध देते हैं।

बलदेव: अरे तुम दोनों चुप क्यू हो सांप सूंघ गया क्या?




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बद्री और श्याम चाहते थे के वह बलदेव से पूछे, पर देवरानी के सामने उनकी बोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

बद्री हिम्मत कर के बोलता है ।

"सुनो बलदेव!"

बद्री बलदेव को ले कर देवरानी से दूर जाता है।

"बलदेव मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी थी।"

"हाँ कहो बद्री!"

"बलदेव हम तुम्हारे साथ और आगे नहीं जा सकते।"



ARMY

तभी बलदेव देखता है कि बद्री के पीछे कुछ घुड़सावर आ रहे थे और उनमें से एक ने अपने धनुष से तीर खींच दिया था ।

फिर बलदेव देखता है के तीर बद्री की ओर तेजी से आ रहा है।

"बद्री बचो!"

बलदेव बद्री को ले कर नीचे गिर जाता है।

श्याम और देवरानी घोड़ों के पास खड़े थे।




HORSE-ARMY
बलदेव: भागो शत्रु हमारे पीछे आ गया है।


HORSE-DEV

श्याम जल्दी से सब घोड़े खोल देता है और चारों अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो कर भागने लगते हैं और उनके पीछे कुछ 10-15 घुड़सवार तलवार और धनुष लिये उनका पीछा कर रहे थे।



HORSES3
जारी रहेगी ...
 
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महारानी देवरानी

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बला टली

बलदेव: भागो शत्रु हमारे पीछे आ गया है।

श्याम जल्दी से सब घोड़े खोल देता है और चारों अपने-अपने घोड़ों पर सवार हो कर भागने लगते हैं और उनके पीछे कुछ 10-15 घुड़सवार तलवार और धनुष लिये उनका पीछा कर रहे थे।



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बलदेव, देवरानी, श्याम और बद्री इतने सुबह अपने ऊपर अचानक हुए इस हमले से अपनी जान ले कर भागना उचित समझते हैं। बद्री भी अचानक हुए हमले से हर बात भूल कर बलदेव के साथ भागने लगता है।

बलदेव: और तेज़ भागो, पता नहीं इन्हें हमारी खबर कैसे मिल गई?

बद्री: वह अभी भी हमारे पीछे है। बलदेव!



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बलदेव: सब अपनी-अपनी तलवार निकाल लो।

"खच्च" से खीच कर बलदेव अपनी तलवार निकाल लेता है।

कुछ देर भागने के बाद।

श्याम: बद्री वह लोग हमारे पीछे नहीं हैं।

देवरानी: जान बची भगवान का शुक्र है । बला टली!

तबहि बलदेव देखता है के उसके सामने से वह घुड़सवार आ रहे थे ।

बलदेव: बला अभी टली नहीं है । सामने देखो!



58-1

देवरानी: ये तो यहीं के वासी लगते हैं इसीलिए इन्हें इस जंगल का चप्पा-चप्पा पता है। पर ये सब अपने चेहरे को ढके हुए क्यू है।

बद्री: चलो अब हो जाए दो-दो हाथ दोस्तो!

बलदेव: हाँ चलो और माँ आप यहीं रहें!

देवरानी: अपनी मर्यादा में रहो तुम सब। मैं महारानी देवरानी हूँ एक राजपूतानी। इन सबको सबक सिखाने का पहला हक मेरा है।

बलदेव: पर मौसी!

श्याम: रानी माँ आप को अगर आंच भी आ गयी तो हम महाराज को क्या मुँह दिखाएंगे।




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बद्री: श्याम सही कह रहा है। मौसी!

बलदेव: बस करो! ये समय बात करने का नहीं मित्रो काम करने का है। बद्री तुम नीचे उतरो और वह पेड़ को काट सामने से बंद कर दो।

श्याम और मैं आगे जायेंगे । माँ तुम यहाँ पर रहना और तीरो से उनको धूल चटा देना।

देवरानी: मेरे पास आये तो मेरी तलवार उनका खून पीयेगी ।

बद्री झट से घोड़े से उतर एक पेड़ काट कर गिरा देता है और उसे रास्ते में बिछा कर अवरोध बना रास्ते को बंद कर देता है। बलदेव और श्याम अभी भी सामने से आ रहे हैं घुड़सवारो की ओर बढ़ रहे थे ।

बलदेव: जैसा ही मैं इशारा करू उन पर तीरो की बरसात कर देना।




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बलदेव और श्याम धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे, देवरानी अपना धनुष ताने खड़ी थी और बद्री पीछे धनुष ताने बलदेव के इशारे का इंतजार कर रहा था।

बलदेव: सब तैयार!

जैसे जैसे वह करीब आ रहे थे बलदेव उनके हर कदम को गिन रहा था और फ़िर इशारा करता है ।

बलदेव: आक्रमण!


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घोड़े पर बैठी देवरानी अपने कमान से तीर छोड़ने लगती है और बद्री भी तेजी से तीर छोड़ रहा था।

तीर कुछ घोड़े को घायल कर रहा था। कुछ तीर घुड़सवारो को भी लगे!

और तभी एक बद्री का तीर एक घुड़सावर के सीने में लगा ।


"आआआआह!"



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और वह ढेर हो गया।

दूसरा तीर देवरानी ने निशाना लगा कर मारा और अबकी देवरानी ने एक घुड़सवार को मार गिराया।

बलदेव: बहुत खूब, अब वह हमारे बिल्कुल पास है। तलवार से हमला करना बद्री!

श्याम: जय भवानी!

बलदेव: जय भवानी!

बद्री भी अपने घोड़े पर चढ़ तलवार निकाल कर तेज़ी से घोडा दौड़ाने लगता है। बलदेव और श्याम भी उतने में हमला करते है । दोनों गुटों की टक्कर होती है।

बलदेव अपने दूसरे हाथ में एक और तलवार ले लेता है।




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बलदेव उनकी बीच पहुँच हमला करते हुए उन घुड़सवारों की तलवार पर अपनी तलवार मारता है। घुड़सवार दोनों तरफ से बलदेव के सर पर तलवार चलाते है। बलदेव झुक कर अपनी दोनों तलवारो से दोनों घुड़सवारों पर एक तेज प्रहार करता है और दोनों घुड़सवार गिर जाते है।

देवरानी के पास चार घुड़सावर आते हैं। जिसमें से दो नीचे बिछे पेड़ से टकरा कर गिर जाते है और अन्य दो को अपने तीर से देवरानी मार गिरा देती है।




58-2
देवरानी: अपना घोड़ा भगा कर घोड़े से गिरे दोनों व्यक्ति को अपने घोड़े से कुचलती है। फिर अपने तलवार के वार से-से उनके सर को अलग कर देती है ।

देवरानी: जय भवानी!

बलदेव श्याम और बद्री बचे हुए घुड़सवारों के साथ तलवार से लड़ रहे थे।




58-1
बलदेव फिर से दो लोगों को अपनी तलवार से मार गिराता है।

बद्री और श्याम एक से लड़ते हुए जा रहे थे बद्री अपने तलवार से उसका सर धढ़ से अलग कर देता है।

अब बस एक घुड़सवार ही बच गया था।

देवरानी बद्री श्याम बलदेव के पास आ जाते है।

वो व्यक्ति अपने आप को अकेला जिंदा देख डर जाता है और उसके हाथ से तलवार छूट जाती है।

श्याम: क्यू बहादुर फट गई? तलवारबाजी में तुम हम से कभी जीत नहीं सकते, चाहो तो अपने राजा शाहजेब से पूछ लो ।



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बलदेव: श्याम रुको उसे मारना मत!

श्याम तलवार का एक वार उस घुड़सवार के हाथ पर देता है। वह घुड़सावर नीचे गिर जाता है।

"महरबानी कर के मुझे जाने दो!"

बलदेव बद्री देवरानी अपने घोड़ों से उतर कर हमें व्यक्ति के पास ले जाते है।

बलदेव: हमलावार अपनी पहचान बताऔ! कौन हो तुम?

देवरानी: कही तुम शाहजेब दुवारा तो नहीं भेजे गए हो?

श्याम घोड़े से उतरता हुआ।



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"इसका पता ये खुद कहेगा । क्यू के मरना तो शायद इसे भी पसंद नहीं हो।"

श्याम उतार कर वह व्यक्ति जो अपना हाथ जोड़े पीछे खिसक रहा था, उसके पास जाता है।

बलदेव: बताओ किसने भेजा है, तुम्हे?

हमलावार: नहीं नहीं!

बद्री अपनी तलवार के लिए उसके पास जाता है और चिल्ला कर!


"आआआआआह" अपनी तलवार के वार से उसकी गर्दन को अलग कर देता है।

बलदेव: ये क्या किया बद्री? वह हमे बता सकता था कि उसको किसने भेजा था ।

बद्री चुप चाप अपना तलवार में लगे खून को अपने अंगुठे से पूछते हुए बोलता है ।

"श्याम चलो हम अपने तलवारे पास वाली नदी में साफ कर आएं!"

बद्री और श्याम पास ही नदी के किनारे पर जाने लगते हैं।

बलदेव: श्याम सुनो ये हमारे भी तलवार धो लाओ!

श्याम कुछ नहीं बोलता और उनकी तलवार ले कर जाने लगता है।

श्याम और बद्री नदी पर अपने तलवार धो कर साफ़ कर रहे थे।

बलदेव देवरानी के पास जाता है ।

बलदेव: कही तुम्हें चोट तो नहीं आई ना, मां!

देवरानी देखती है। बलदेव उसकी कितनी चिंता कर रहा है।

देवरानी: जब मेरे पास इतना बुद्धिमान और इतना वीर बेटा है तो नुझे कैसे खरोच आ सकती है।




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देवरानी आ कर बलदेव से गले लग जाती है।

बलदेव धीमे स्वर में: देवरानी!

बलदेव: बला टली!

देवरानी: हाँ मेरे राजा! बला टली!

देवरानी फुसफुसाते हुए बलदेव को भींच कर पकड़ती है।

देवरानी: बेटा तुम्हें तो नहीं लगी ना, मुझे तो डर लग रहा था, कहीं मेरे राजा बेटे को कुछ नहीं हो जाए.!

बलदेव: जब तक आप मेरे साथ हो मुझे कुछ नहीं हो सकता। माता! वैसे आपने भी अच्छी युद्ध कला दिखायी।

देवरानी अपनी प्रशंसा सुन मुस्कुराती है।



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नदी तट पर बैठे श्याम से बद्री बोलता है ।

बद्री: देखो इन बेशर्मो को फिर से चालू हो गए!

श्याम: हाँ पर अब हमें क्या करना चाहिए मुझे समझ नहीं आ रहा है ।

दोनों तलवारे साफ़ कर नदी से वापस आते हैं।

बलदेव: अच्छा हुआ तुम लौट आये! हमें अब चलना चाहिए!

बद्री: सुनो बलदेव!

बलदेव: हाँ बोलो मित्र आज तुम दोनों ने बहुत अच्छा युद्ध किया । आज अगर आचार्य जी होते तो बहुत खुश होते।

बद्री: (मन में-अब कैसे बोलू इसको?)

बद्री: भाई. मुझे वापस जाना है।

बलदेव को जैसे झटका लगता है।

बलदेव: पर तुम इतने दूर हो और दुश्मनो से घिरे हुए हो।




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देवरानी: बेटा बद्री अकेले कही जाओगे तुम? तुम्हारा ऐसे अकेले जाना खतरे से खाली नहीं है ।

बलदेव: हमने इन सभी को मौत के घाट उतार दिया है पर जिसने इन्हें भेजा है उसे हमारे बारे में सब पता है और वह फिर से हमला कर सकता है।

श्याम: (मन में-बात तो बलदेव की ठीक है।

बद्री: नहीं मुझे कुछ नहीं सुनना।

बलदेव: बद्री ! सुनो तुम्हें क्या परेशानी है? बोलो तो! तुम्हें अगर सही में घर जाना है। तो पहले हमारे साथ पारस चलो, हम आते समय तुम्हें तुम्हारे राज्य में छोड़ देंगे।

देवरानी: हाँ बद्री बेटा! बलदेव सही कह रहा है । अकेले जाने में खतरा है।

बद्री: पर मौसी (झुझलाते हुए!) ... !

श्याम: बलदेव ठीक कह रहा है। अकेले जाने में तुम्हारी जान को खतरा है। अकेला जाना वैसे भी उचित नहीं है और हम दोनों जे महाराज को वचन दिया है माता देवरानी को सुरक्षित घाटराष्ट्र वापिस पहुँचाने का।

बद्री: पर...!

श्याम: पर वर कुछ नहीं। हमारे साथ चलो! नहीं तो कल महाराज को क्या मुंह दिखाओगे और तुम्हारी जो भी दुविधा है उसपर हम बात करेंगे।

श्याम आश्वासन देते हुए कहता हैं।



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बद्री भी सब कुछ समझते हुए और खतरे का आकलन करने के बाद बलदेव के साथ जाने को तैयार हो जाता है और चारो अपने-अपने घोड़ो पर बैठ जाने लगते है।

श्याम: मौसी! ये धनुष बाण आप अपने झोले में रख दीजिए.

देवरानी: ठीक है। बेटा लाओ!

श्याम और बद्री अपने घोड़ो पर बैठ जाते हैं।

बलदेव देवरानी के पास खड़ा था।




SNAKE
देवरानी धनुष बाण अपने घोड़े पर लगे हुए झोले में रखने जाती है।

देवरानी: अरे ये तो सामान से भरा है।

श्याम: तो मौसी कुछ जगह बना लो।

देवरानी ऊपर के सामान को निकलने की कोशिश करती है और अपना दाया हाथ अंदर डालती है और वह सामान जो ओढ़ने के लिए था उसे बाहर निकल ही रही थी के देवरानी की नज़र उसके हाथ के पास अपना फैन उठाये सांप पर जाती है और वह सांप उड़के एक डंक मारता है। देवरानी का हाथ थोड़ा-सा उठ जाता है और सांप का डंक घोड़े की पीठ पर लग जाता है।

"आआआहह बलदेव!"

बलदेव भागती हुआ देवरानी के पास आता है। देवरानी सांप को देख अपने आप को संभाल नहीं पाती और गिरने लगती है। बलदेव आकर पीछे से उसे पकड़ लेता है।

देवरानी इशारे काले रंग सांप दिखाती है को झोले से निकल कर जा रहा था।

देवरानी को सीधा खड़ा कर बलदेव अपनी तलवार निकाल कर सांप की तरफ जाता है।

ये सब देख बद्री और श्याम भी आ जाते हैं।

देवरानी: छौड दो उसे ।



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बलदेव: इस सांप ने मेरी माँ पर हमला किया है । इसकी तो...!

पर सांप तेजी से पास के जंगल में भाग जाता है।

बलदेव वापिस आता है और देवरानी उसके गले लग जाती है।

देवरानी: बलदेव ये क्या था। कौन हमारे पीछे पड़ा है।

बलदेव: जो भी है। उसको इसका उत्तर मैं दूंगा।

श्याम: ये जंगली सांप नहीं पालतू था।

तभी धप्प की आवाज आती है। सबकी नज़र उधर जाती है।

घोड़ा गिर गया था।

और थोड़े देर में वह उसकी जीभ बाहर आ जाती है मुँह से झाग निकलती है और घोड़ा मर जाता है।

देवरानी बलदेव के बाहो में सुरक्षित थी ।

"बलदेव अगर आज ये मुझे काट लेता तो।"

"ऐसा नहीं हुआ । घबराओ मत! हमने किसी का कुछ नहीं बिगाड़ा है। जो भगवान हमारे साथ कभी ऐसा कुछ करेगा।"

"भगवान ने मेरी जान बचा ली बलदेव अगर मैं घोड़े पर बैठी होती तो ...?"

बलदेव: बस माँ! शुभ-शुभ बोलो! तुम खुद कहती हो शुभ-शुभ बोलना चाहिए!

बद्री ये सब घूर-घूर के देख रहा था।

बद्री: वह सब तो ठीक है। आगे जाने के लिए मौसी के लिए घोड़ा कहा से लाये?

बलदेव: आपकी मौसी मेरे घोड़े पर बैठेगी!




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बलदेव: क्यू रानी माँ बैठोगी?

देवरानी: हाँ बैठूंगी!

देवरानी लज्जा रही थी।

श्याम और बद्री जो दोनों का खेल जान गए थे पर अंजान बने हुए थे और दोनों के बातचीत को भली भांति समझ रहे थे।

बद्री: तो चलो हमें जल्दी निकलना चाहिए।

बलदेव माहौल को थोड़ा ठीक करते हुए कहता है ।

"मां अब ये मत कहना के भगवान ने जान बचा ली, तो एक बार यहाँ भी पूजा करनी है।"

श्याम: वैसे वह सुबह की पूजा के वजह से हम पहले ही देरी से निकले थे।

देवरानी: तुम लोगों को क्या पता? हो सकता है, भगवान ने मेरी भक्ति देख मेरी जान बक्श दी है आज और मेरी पूजा से ही हम सब आज सुरक्षित हैं।




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बलदेव: हाँ माँ! तुम ठीक कह रही हो।

देवरानी: इसलिये भगवान को कभी भूलना नहीं चाहिए, वही जीवन देता है, वही मृत्यु!

बद्री (मन में: अभी ज्यादा पूजा कर रही हो मौसी! संसार को इस बात का क्या पता तुम असल में कितनेी संस्कारी हो?)

श्याम: देवी माँ! अब चलो भी। यहाँ पर पूजा पाठ शुरू मत कर देना।

श्याम और बद्री वापस अपने घोड़ों पर बैठ जाते हैं।

बलदेव मरे हुए घोड़े से बंधा सामान निकाल कर अपने घोड़े पर और कुछ श्याम के घोड़े पर लाद देता है।

बलदेव: माँ आप बैठो घोड़े पर!



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देवरानी: अब क्या करू मुझे इस पर ही बैठना पड़ेगा।

बलदेव: हाँ! अब हमारे पास दूसरा कोई चारा भी नहीं है ।

देवरानी झट से अपने दोनों लम्बी टाँगे उठा कर घोड़े के पीठ पर बैठ जाती है और उसके बाद बलदेव भी उसके पीछे बैठ जाता है।

बलदेव: माँ थोड़ा पीछे आओ!

देवरानी मुस्कुराते हुए पीछे आती है।

बलदेव: माँ अब थोड़ा उठो और फिर बैठो!

बलदेव अपने बाये हाथ से घोड़े की लगाम पकड़े थे और बाएँ हाथ से अपनी धोती में अपने लौड़े को सही करते हुए कहता हैं।

देवरानी सब कुछ समझ रही थी और एक मादक मुस्कान के साथ बैठ जाती है।

देवरानी को अपने पिछवाड़े में हथोड़े जैसा महसूस होता है और वह उचक जाति है।

हे भगवान! "



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"मां बैठो ना क्या हुआ?"

"बेटा मेरे ध्यान में सांप आ गया था।"

और अपने बेटे को पीछे मुड़ कर देखती है।

देवरानी: (मन में;-अगर बद्री और श्याम नहीं होते तो ये सांप मेरे अंदर चला जाता में कोई बच्ची नहीं हूँ जो ये सब न समझू।!

बलदेव: (मन में-कितनी गरम और गद्देदार गांड है माँ की!)

बलदेव अपना दोनों हाथ आगे ले जा कर देवरानी के पेट पर रख कर उसे अपनी और खीचता है।


देवरानी हल्की सिस्की छौड देती है ।

"आह!"

बलदेव: म्मह!

"अच्छे से बैठो नहीं तो गिर जाओगी माँ!"

और फिर हिम्मत कर के देवरानी अपनी भारी भरकम गांड बलदेब के लंड पर टिका कर बैठ जाती है।

बलदेव: आह! ...चलो साथियो पारस की ओर चले!

देवरानी के नरम और अंदर से कठौर चूतडो के बीच लंड फसते ही उसकी आह निकल जाती है।

श्याम: हाँ चले दोस्तो हमें सूर्योदय से पहले पारस की सीमा तक पहुँचना है।



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बद्री: हाँ चलो रास्ता मुश्किल है और हमने पहले ही समय बर्बाद कर दिया है।

सब घोड़ों को पारस की ओर भगाने लगते हैं।

जारी रहेगी ...
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 60

राज के साझेदार



बलदेव और देवरानी, बद्री और श्याम के साथ अपने घोड़ों से पारस की ओर तेजी से भागते हुए चले जा रहे थे।


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देवरानी देखती है। उसे पहाड़ों के बीच से सूर्य उदय होता हुआ दिखाई देता ता है। वह उगते सूरज को देख बहुत खुश होती है।


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देवरानी: (मन में-इतना सुन्दर सूर्योदय मेरे देश पारस का ही है।)


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आसपास का नजारा बहुत सुंदर था जिसमे खूबसूरत हरे भरे मैदान, नदियों और छोटे बड़े जंगलो और पहाड़ो को पार करते हुए वह चारो तेजी से आगे अपनी मंजिल पारस देश की और बढ़ रहे थे ।



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बलदेव तेजी से घोड़े को भगाये जा रहा था और देवरानी अपने राज्य जाने की ख़ुशी में फूले नहीं समा रही थी।



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तभी घोड़ा एक लंबी छलांग मारता है। सामने गधा आ जाने की वजह से देवरानी थोड़ा उछल जाती है और अपने ख्याल से वापस निकलती है।

देवरानी: अय माँ!

देवरानी ऊपर को हो कर बैठती है।




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बलदेव: हह!

हुआ ये था कि अचानक से उचक जाने से और फिर तेज़ी से बैठने से बलदेव की गोदी में जैसे ही देवरानी फिर बैठती है, उसकी भारी गांड बलदेव के लंड को दबा देती है और उसके और दबने से बलदेव दर्द से आह भरता है।

देवरानी को जैसा ही समझ आता है।



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"ओह राजा मेरे वजह से तुम्हे दर्द हुआ माफ़ करना!"

"मां थोड़ा ऊपर हो कर बैठो...कोई बात नहीं!"

देवरानी लज्जा कर फिर अपनी गांड हल्की-सी उठाती है और फिर बैठ जाती है।

देवरानी को इस बार लोहे जैसा लंड उसकी गांड में महसुस होता है।

"उफ़ भगवान!"

बलदेव घोड़ा ज़ोर से भगाने लगता है।

"माँ क्या हुआ?"

"तुझे नहीं पता क्या हुआ!"

बलदेव जल्दबाजी में बोला "दर्द तो नहीं हो रहा ना ।"

"आह! चुप करो और चलते रहो।"



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"मां अभी से मुंह बना रही हो पारस पहुँचने तक तुमको ऐसे ही बैठना है।"

"ह्म्म्म बलदेव!"

"डर गई क्या माँ? बस हो गयी इतनी जल्दी!"

"डरे मेरी जूती! बलदेव!"

"अच्छा तो कैसा लग रहा है। गोद में बैठ के जा रही हो मायके!"

देवरानी शर्मा जाती है।

"अच्छा आहह!"

बलदेव देवरानी के दोनों हिलते हुए वक्ष देख रहा था।

"मां ये बहुत हिल रहे हैं।"

"हाँ तो इतनी तेजी से घोड़ा जो दौड़ रहा है।"

"मां फिर तो जब मेरा घोड़ा आपकी गुफा में घूमेगा तो ये दोनों और भी ज्यादा हिलेंगे!"

"मतलब बलदेव?"




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देवरानी अब उत्तेजना और लज्जा से भारी अपनी आंखे बंद कर लेती है।

बलदेव: अरी मेरी रानी नादान मत बनो!

देवरानी शर्माने लगती है।

ऐसे ही मस्ती करते आसपास के नजारो को देखते हुए वह चारो तेजी से अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहे थे।

घाटराष्ट्र

इधर घाटराष्ट्र में सेनापति सोमनाथ रात में आलोक की कुटाई कर उससे सब कुछ उगलवा लेता है और सुबह होते ही वह उठ कर सबसे पहले आलोक को सोया हुआ देखता है।




SENAPTI
सोमनाथ आलोक को रस्सी को मजबूती से फिर से बाँधता है और कपडे से उसका मुँह बाँध देता है।

सोमनाथ: अब आलोक मेरे सपने को पूरा करने में तुम मेरी मदद करोगे, मैं इस महल के हर दीवार को तोड़ दूंगा और जैसे वह सब टूट जाएंगे मैं इस घाटराष्ट्र का राजा बन जाऊंगा।

सेनापति सोमनाथ अपनी कक्ष से निकल कर बाहर आता है तो सामने से उसे रें कमला गुनगुनाते हुए चली आती हुई दिखाई देति है।

सेनापति: कमला बड़ा सवेरे आ गयी तुम?

कमला: हाँ अभी-अभी आई हूँ सेनापति जी. प्रणाम!

कमला (मन में-क्या बात है। आज ये सेनापति मुझसे क्यों बात कर रहा है। आज से पहले तो मुझे पूछता भी नहीं था।)

सेनापति: कमला एक बताओ!

कमला: कहिये सेनापति जी!



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सेनापति: ये महारानी श्रुष्टि कहाँ होगी इस समय?

कमला: प्रश्न आपको उनसे क्या काम है, अभी-अभी जगी होंगी।

सेनापति मुस्कुराते हुए कहता है ।

सेनापति: अरे वह तो बस ऐसे ही...मुझे भला उनसे क्या काम रहेगा। वह तो तुम्हे देख ख्याल आया तो ऐसे ही पूछ लिया!

कमला: सेनापति सोमनाथ तू वह कुत्ता है, जो बिना हड्डी के पूँछ नहीं हिलाता तू जरूर कुछ न कुछ करने के चक्र में है।



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सेनापति: चलो जाओ कमला बस यहीं पूछना था।

सेनापति हल्का गुस्सा होते हुए कहता है और चला जाता है।

कमला: अजीब प्राणी है। , खुद को काम है। मुझे रुकवाया और अब खुदमेरे पर बेकार में गुस्सा हो रहा है।

कमला फ़िर से गुनगुनाते हुए चलने लगती है और सीधा जा कर अतिथि गृह में जहाँ वैध जी का कक्ष था वहा पर रुक जाती है।



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कमला: हे वैध जी!

अंदर से कोई आवाज़ नहीं आने पर फिर बोलती है ।

कमला: आर्य! ओ वैध जी उठ भी जाइये! सुबह हो गयी!

कमला थोड़े देर चिल्लाती रही!

उतने में दरवाजा खुलता है और वैध जी अपनी बड़ी दादी को सहलाते हुए निकलते हैं।

वैध: री कमला! क्यू सुबह-सुबह हंगामा मचा रही हो?

कमला: वैध जी वह राजमाता रानी जीविका का पेट ठीक नहीं है। कोई औषधि हो तो दे दो।


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वैध: आओ अंदर।

कमला: मैं नहीं आती अंदर, मुझे पता है। अंदर जाने का मतलब है। एक घंटा लगना है।

वैध: मुस्कुरा कर "क्यू रोज-रोज तंग करती हो ।"

कमला: कहा तंग कीया आपको?

वैध: अब बोलो भी क्या चाहिए?

कमला: मुझे आज अपने पति देव जी से साडी चाहिए ।

वैध: तुम्हें कल तक मिल जाएगी।



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कमला मुस्कुराती हुई अंदर आती है।

वैध जी झट से दरवाजा बंद कर देते हैं।

वैध: कमला तुम बिना कुछ लिए देती नहीं हो।

कमला: जब आप मेरे बराबर है। तो मेरा भी तो आप पर कुछ हक बनता है।

वैध: उच्च क्यों तुम्हारा तो पूरा हक बनता है। इसलिए तुम जब जो मांग करती हो मैं वही करता हूँ।

कमला: करना ही पड़ेगा वैधजी । आखिर इस उमर में तुम्हें कमला जैसी जवानी देखने को मिल रही है।



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वैध जी आगे बढ़ कर कमला को पकड लेते हैं।

कमला: वैध जी जल्दी से राजमाता रानी जीविका के लिए औषधि दे दो!

वैध: महारानी जीविका की औषधि बाद में दूंगा पहले तुम्हे तुम्हारी औषधि तो खिला दू तुमको।

कमला मुस्कुराती है।

कमला: बस पाप करते रहो और मुझसे भी करवाते रहो पर विवाह नहीं करोगे हमसे। अगर कहीं हम पेट से हो गए तो?


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वैध जी कमला को पकड कर मसलने लगते हैं।

वैध: अरे मेरी कमला तुम्हें तो पता है। के तुम एक विधवा हो और समाज कभी इस बात को नहीं मानेगा की विधवा का विवाह फिर से हो।

कमलाः विधवा ही हु तो क्या हुआ र मेरी भी इच्छाये है।

वैध कमला को पकड कर अपनी गोद में उठा लेता है।




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"बहुत भारी हो गई हो कमला"

तुमने ही किया है वैध ... महाराज ! "

"अरे वैध जी से वैध?"

"हाँ क्यू नहीं कहू जब तुम मुझे कमला कह सकते हो बिना जी लगाए, तो मैं क्यू ना कहू, हमारे राज्य में स्त्री पुरुष दोनों एक समान होते है।"

"बात तो सही कह रही हो मेरी कमला जी ।"




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वैध कमला को पलंग पर पटक देता है।

कमला की टांगो और पैरो को चूमते हुए ऊपर बढ़ने लगता है।

"कमला युवराज पारस चले गए और जाने से पहले मुझसे मिले भी नहीं।"

"वैध जी आप जंगल गए हुए थे इसलिए आप से मिल नहीं पाए वह आपकी औषधिया ले कर गए हैं।"

वैध जी कमला की साडी को ऊपर खसका कर उसके घुटनों को चूम रहे थे और अपने हाथों से कमला के गठीले बदन को सहला रहे थे।

कमला: आह उहह! वैध जी!


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"कमला तुम्हारी ये जाँघे कितनी मांसल है।"

वैध जी कमला के जाँघ को सहला के खूब चूम रहे थे।

थोड़े देर चूमने के बाद साडी को पेरिकोट के साथ ऊपर कर देते हैं और कमला अपना हाथ अपने बालो से भरी चूत पर रख देती है।

वैध: क्यू शर्मा रही हो प्यारी कमला! अपनी चूत तो दिखाओ।

कमला: चुप करो मैंने वहाँ के बाल साफ नहीं किये है। मुझे शर्म आती है।



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वैध: अरे मैंने कितनी बार उसने इस चूत को मसल कर पेला है। मुझसे क्या शर्माना और वैसे भी अगर तुम्हारी चूत पर बाल है। तो और ज्यादा मजा आएगा।


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वैध धीरे से कमला के हाथ को हटा कर देखता है। चूत बड़े घने बालो से ढकी हुई थी।

वैध खूब अच्छे से छूट के बालो को सहलाते हुए छूट का छेद ढूँढ लेता है और अपनी एक उंगली अंदर डाल देता है।

कमला: उफ्फ्फ हाये!

कमला अपनी आँख बंद कर लेती है।


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धीरे धीरे चूत को खूब उंगली करते हुए वैध जी ऊपर को आते हैं और कमला के मांसल पेट से उसके साडी और पेटीकोट को निकल फेकते है और कमला के पेट पर चुम्मो की बरसात कर देते हैं।

वैध ने अब अपना एक हाथ कमला की चूत में डाला हुआ था और दूसरे हाथ से कमला के ब्लाउज का हुक खोल दिया। फिर कमला का बड़ा दूध को देख क्र बोलता है ।

वैध: आह कमला इनमे दूध कब भरेंगा?


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कमला: आआह जब तुम मुझसे विवाह करोगे और बच्चा होगा पर तुम मुझसे क्यू विवाह करोगे?

वैध: चुप कर कमला तू तो मेरी जान है।

कमला की चूत से उंगली निकाल कर दोनों हाथो से उसके बड़े दूध को पकड़ कर मसलने लगता है।

"आआह वैध जी धीरे उह आआह!"

"कमला क्या दूध है तुम्हारे!"

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दूध को खूब मसलते हुए वैध जी बीच-बीच में कमला को होठो को चूम और चूस रहे थे।

वैध: कमला तुमने मुझे अभी तक मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया?

"आह! उह कौन-सा प्रश्न वैध जी?"

"यहीं कि जब मैंने कोई पत्र दिया ही नहीं था तो तुमने महाराज से क्यू कहा था कि मैंने युवराज बलदेव के लिए पत्र दिया है?"

"वैध जी इस बारे में मेरा उत्तर यहीं है कि सही समय आने पर आपको उस पत्र का राज़ भी पता चल जाएगा।"

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वैध जी गुस्सा हो कर कमला को देखते हैं। फिर उसको छोड़ कर बैठ जाते हैं। "

"क्या हुआ वैध जी रुक क्यों गए?"

"तुम मुझे अपना पति कहती हो और मुझ पर रत्ती भर भरोसा नहीं है।"

"वैध जी ऐसा नहीं है पर वह राज़ घटराष्ट्र की प्रतिष्ठा से सम्बंधित है।"

"मुझे कुछ नहीं पता कमला मुझे बताओ!"

"छोड़ोगे नहीं अपनी कमला को।"

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"नहीं जब तक तुम बताओगी तब तक नहीं! "

कमला: उफ़ तो खाओ मेरी कसम तुम बिना मेरे जानकारी के किसी को नहीं बताओगे।

वैध: मैं तुम्हारी कसम खाता हूँ।

कमला: अरे बुड्ढे में बताती हूँ तुम्हे ये राज! अपना काम चालू करो । मैं बता रही हूँ।




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वैध जी फ़िर से कमला के दूध को पकड़ कर चूसने लगता है।

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कमला: तो सुनो वह पत्र महारानी देवरानी के लिए बलदेव ने लिखा था। जिसे महाराज राजपाल ने देख लिया था।


वैध जी अब अपनी धोती को खोल अपने लौड़े को कमला की चूत पर मारते हैं और अपने लौड़े को एक झटके में कमला की चूत में पेल देते हैं ।

"हाय! आआह वैध जी!"

अब तेज झटके लगाते हुए।




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वैध जी: कमला आह! पर बलदेव ने तो अपनी माँ को पत्र लिखा था उसे अपने पिता से छुपाने की क्या आवश्यकता हो गयी?

कमला: आह आआह वैध जी क्यू के वह बलदेव का प्रेम पत्र था। जिसमें बलदेव ने देवरानी के लिए अपना प्रेम पन्नो पर लिख भेजा था।

वैध जी ये सुन कर सकपका का रुक जाते हैं।

वैध: क्या बक रही हो कमला?


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कमला:-आह तुम चोदो वैध आआह! चोदो! चोदना जारी रखो!

वैध जी फिर झटका मारने लगते हैं।

वैध जी (मन में उफ़! कैसे एक माँ को बेटा प्रेम पत्र लिख सकता है और उस दिन तो देवरानी भी सामने थी तो इसका मतलब है कि देवरानी जानती थी कि उसके बेटे ने पत्र में क्या लिखा है।

वैध: क्या मैं जो सोच रहा हूँ वह सही है, कमला?

एक झटका मार कर वैध जी बोलते हैं।


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कमला: हाँ वैध जी दोनों माँ बेटा एक दूसरे से बहुत प्रेम करते है। आआह और पेलो! चोदो! जोर से! आह!

वैध: पर ये तो...।



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कमला: अब मैंने सब तुम्हे बता दिया अब तुम इस बात को दुहराओ मत!

वैध: अच्छा-अच्छा ...इसीलिए बलदेव और देवरानी जाने के जल्दी में थे ।

असंभव हे भगवान! घोर पाप!

कमला: तुम 60 साल के बूढ़े मुझ गदराई विधवा को चोद रहे हो, तो ये संभव है। ये पाप नहीं है?

वैध: पर माँ बेटा?

कमला: जैसी माँ बेटे का अवैध सम्बंध तुम्हें पाप लग रहा है। वैसे वह हम दोनों का सम्बंध भी पाप ही है। कोई पुण्य नहीं है ।





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वैध एक ज़ौर का झटका मारता है। उसका लौड़ा माँ बेटे की कहानी सुन ज़ोर से झड जाता है।

वैध आख बंद किये हुए "पर कमला!"

"पर वर क्या? वह दोनों एक दूसरे से सच्चा प्रेम करते हैं और बलदेव अपनी माँ के जीवन भर के दुख को खुशहाली में बदल रहा है और इससे अधिक क्या पुण्य करेगा बेचारा ।"

वैध अपना लौड़ा कमला की चूत से निकलता है।




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कमला अपनी चूत कपडे से पूछती है।

"वैसे वैध जी हमारे बारे में भी देवरानी को पता है और उन्हें कोई आपत्ति नहीं ।"

पहले ये बात सुन कर वैध घबरा जाता है। फिर देवरानी को आपति नहीं है ये सुन कर उसको सांसों में सांस आती है।

कमला: जैसे उन्हें हम दोनों के सम्बंध से आपत्ति नहीं है और वैसे ही हमें उनके सम्बंध से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

वैध: हम्म बात तो ठीक कर रही हो मेरी जान!

कमला वैसे आपको धन्यवाद! उस दिन अगर आप हमारा साथ नहीं देते तो पता नहीं क्या होता । उस पत्र को देख महाराज को शक हुआ था और उस दिन वह पकड़े जाते।

कमला फ़िर अपने वस्त्र पहनने लगती है।

वैध: ठीक है। कमला पर ये सब शुरू कैसे हुआ?

कमला: वैध जी अभी मेरे पास पूरी बात कहने का समय नहीं है इस बात का उत्तर आपको जल्द ही मिल जाएगा। अभी मुझे महल मैं बहुत काम है । आप औषधि दो मुझे, मैं निकलू।

वैध औषधि देता है और कमला औषधि ले कर निकल जाती है।



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इधर सोमनाथ महल में घुस जाता है और शुरष्टि के कक्ष को पहचान कर देखता है कि उसका दरवाजा खुला हुआ है तो वह अंदर घुस जाता है।

अंदर उसके सामने सृष्टि थी जो अभी स्नान कर के बाहर आई थी । सृष्टि के बदन को एक झीने से कपडे में लिपटा देख सोमनाथ को आखे वही ठहर जाती है।



जैसे ही सृष्टि को आभास होता है कोई उसके कक्ष में है। वह उसे सामने खड़ा हुआ देखती है।

सृष्टि सोमनाथ को अपने सामने देख गुस्से से आग बबूला हो जाती है।


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"सेनापति सोमनाथ तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई बिना अनुमती के हमारे महल में घुसने की?"

सोमनाथ: महारानी वो...!

सृष्टि तेजी से उसके पास आकर उसके चेहरे पर एक तमाचा मारती है।

सोमनाथ अपना गाल पकड़े खड़ा हुआ था।

शुरष्टि: तुम्हे नियम नहीं पता? महल में दासियो के सिवा बाहर का कोई पुरुष नहीं आना चाहिए और युद्ध की स्थिति में सैनिक सिर्फ महाराज की अनुमति से अंदर आते हैं।

सोमनाथ इस तरह से थप्पड़ खा कर खड़ा हुआ था।

सोमनाथ: मेरी बात सुनिए महारानी ।




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शुरष्टि: बदतमीज़ मेरे से ज़ुबान लड़ाता है। मेरे कक्ष में घुसने के नियम तोड़ने की सज़ा फासणी है। मैं चाहूँ तो आज ही तुम्हे फांसी हो जाएगी।

सोमनाथ गुस्सा होते हुए "सृष्टि! चुप रहो और मुझे ज्यादा नियम सिखाने की कोशिश मत करो!"

सृष्टि: तुम हद पार कर रहे हो सोमनाथ!

सोमनाथ: अच्छा तो क्या कहू महारानी शुरष्टि...-हाहाहा सुनो तुम्हारी साजिश का कच्चा चिट्ठा खुल गया है। आलोक मेरे हीरासत में है।

स्तब्ध सृष्टि ये सुन कर चुप हो जाती



"कौन आलो...


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आलोक में नहीं जानती"

सोमनाथ सृष्टि को ऊपर से नीचे देख कर मुस्कुरा कर बोलता है।

"वही आलोक जिसने तुम्हें जहरीला सांप दिया था।"

"क्या बक रहे हो?"

"हाँ वही सांप जिसको तुमने रानी देवरानी को मारने के लिए उसके अश्व पर टंगे हुए थैले में रखा था।"

शुरष्टि की आखे बाहर आ जाती है।




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"क्यू महारानी श्रुष्टि सांप सुंघ गया ना! "

मैं ऐसे ही सेनापति नहीं हूँ और तुम मुझे आकर कहोगी कि मुझे राजा ने बुलाया है और मैं चला जाऊंगा। "

सृष्टि स्तब्ध ही कर अपने दोनों आखे फाड़े हुए खड़ी थी।

"मूर्ख महारानी सृष्टि, फिर मैंने देखा की किस चतुराई से तुमने सैनिकों को भी भगाया था। फिर मैंने तुम्हे साँप रखते हुए देख लिया था। मैं वही छुप कर सब देख रहा था।"

अब सृष्टि के ऊपर जैसे आसमान गिर पड़ा हो।

"महारानी श्रुष्टि आपकी मालूम नहीं था के में महाराज से मिल कर ही आया था और उस समय उनके निर्देशसे ही अपना कार्य कर रहा था। हाहाहाहाहा"

शुरुष्टि: तुमको क्या चाहिए सोमनाथ? सृष्टि दांत पीसते हुए बोली ।

सोमनाथ: जब तक मैं जिंदा हूँ तुम्हारा राज छुपा रहेगा। इसलिए भूल से भी मेरे विरुद्ध कोई षड्यंत्र किया तो उससे पहले अपना अंजाम सोच लेना।

शुरष्टि: तुम आलोक को छोड़ दो!


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सोमनाथ: उसका क्या करना है। वह मैं बाद में बताउंगा। महारानी श्रुष्टि अभी में चला । हाहाहाहा! वैसे आपकी जो गलती है। उससे तो नियम अनुसार आपको अभी फांसी की सजा हो जाएगी। हाहाहा।

सृष्टि गुस्से से और अपनी बेबसी पर हाथ मलती है और उस दिन को कोसने लगती है।

शुरुष्टि: ये तो बहुत बुरा हुआ! अब क्या करू...?


जारी रहेगी


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महारानी देवरानी

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इधर सेनापति की खोटी नियत उधर पारस में ख़ुशामदीद बहना


शुरष्टि सोच ही रही थी कि सेनापति से बचने के लिए वह आगे क्या करे!

उतने में राधा वहाँ आ जाती है।



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राधा: क्या हुआ महारानी ये सेनापति इतना सवेरे यहाँ क्यों आया था?

शुरष्टि: वो राज्य के लोगों के बीच में बढ़ रहे डर के बारे में बताने आया था ।

राधा: कैसा डर महारानी?

शुरष्टि अपनी बात को छुपाते हुए चतुराई से राधा को दूसरी बात बताने लगती है।

शुरष्टि: अरे! वही दिल्ली के बादशाह शाहजेब का डर के कहीं वह राज्य पर आक्रमण न कर दे।

राधा: महारानी तो इसलिए आप भी बहुत डरी हुई लग रही हैं, वैसे डरने की बात भी है बादशाह शाहजेब बहुत निर्दय और ठरकी राजा हैं।

शुरुष्टि: तुम्हें कैसे मालूम?

राधा: महारानी पूरे जग को मालूम है कि उसने 9 पत्निया रखी है और उसने अपने हरम में तो ना जाने कितनी महिलाओं को रखा है।

शुरष्टि: क्या बात कर रही हो राधा?

राधा: जी महारानी वह जिस राज्य पर भी आक्रमण करता है वहाँ की रानियों को अपनी रानी बना लेता है और उनके जिस्म को रौंद देता है।

शुरुआत: उफ़! कितना नीच राजा है शाहजेब।

राधा: हाँ महारानी मैंने सुना है कि एक राज्य में उसने खूब लूटपाट मचाई थी और वहा की रानी के साथ जबरदस्ती सम्बन्ध बनाये जिस से रानी की जान चली गई, कद काठी में वह हमारे युवराज बलदेव से कम नहीं है । उनसे भी ऊंचे है।

शुरष्टि: (मन में: ये तो पूरी कहानी बताने लगी । मैं मेरी समस्या इसे तो नहीं बता सकती। पता नहीं कहाँ गा दे।)

शुरष्टि: अच्छा राधा तो तुम जा कर कुछ भोजन बना लो मुझे भूख लगी है। इस विषय पर हम फिर कभी बात करेंगे।



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शुरष्टि सोच में पड़ी थी कि आगे कैसे खेलें क्या करे?

शुरष्टि: (मन में-उस बुधु आलोक को मैंने कह दिया था कि राज्य छोड़ कर चला जाए, पर मुर्ख ने अपने साथ-साथ मेरी भी जान जोकिम में डाल दी है ।

शुरष्टि अपने वस्त्र पहन कर बाहर आती है और कमला और राधा से कह कर खाना बनवाती है। फिर सब आकर बारी-बारी से सुबह का नाश्ता करते है।

शुरष्टि (मन में-बाहर जा कर देखती हूँ लगता है सोमनाथ से बात किये बिना कोई बात नहीं बनेगी।)




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शुरष्टि बाहर आती है तो देखती है सेना गृह के पास बहुत सारे लोग, खास कर युवा इकट्ठे हो गए हैं और सेनापति सोमनाथ सबको तलवारबाजी सिखा रहा है।

सोमनाथ: ए युवक! तलवार को टेढ़ा पकड़ो!

"सुनो तुम सब कुछ दिन में तैयार हो जाओगे युद्ध के लिए!"

शुरष्टि दूर खड़ी सेनापति को युद्ध कला सिखाते हुए देख रही थी ।

तभी सेनापति सोमनाथ की नजर शुरष्टिपर जाती है सोमनाथ का हाथ एक बार अपने गाल पर चला जाता हैं और वह शुरष्टि की थप्पड याद करते हुए मुस्कुराता है।

सेनापति शुरष्टि के पास आकर बोलता है ।



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सेनापति: आइये महारानी श्रुष्टि!

शुरुष्टि: तुम ज्यादा व्यस्त तो नहीं हो सेनापति ।

सेनापति: जीवन में पहली बार आप खुद चल के हमारे पास आए हैं ऐसे में भला मेरा व्यस्त रहना किस काम का ।

सेनापति मुस्कुराता है जो शुरष्टि को कांटे की तरह चुभता है।

शुरुआत: मुझे तुमसे बात करनी है। सेनापति सोमनाथ!

सेनापति: हम बात ही तो कर रहे हैं महारानी, कहिए क्या कहना है?

शुरष्टि आँखे तरेर कर देखती है।

"सेनापति ज्यादा बनो मत! हम एकांत में बात करना चाहते हैं"

"चलिए महारानी अगर आपको बुरा ना लगे तो मेरे कक्ष में चलिए! आपको हमारे मेहमान आलोक से भी मिलवाता हूँ ।"

शुरष्टि चुपचाप सोमनाथ के पीछे चलने लगती है।




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सोमनाथ सेनागृह के एक कक्ष का दरवाजा खोलता है। सामने रोशनदान से हल्की धूप आ रही थी और धूल उड़ती है।

शुरष्टि: आहा-आहा खांसते हुए"कितनी धूल है यहाँ।"

सेनापति: महारानी! ये महल नहीं है, सेनागृह है। यहाँ लड़ाकू सेना रहती है जिसकी मौत कब आएगी। उसे पता नहीं, फिर उसे धूल में ही मिट जाना है।

शुरष्टि अंदर आती है देखती है सामने कुर्सी पर आलोक बंधा हुआ है और उसका मुंह भी बंधा है।

शुरुष्टि: क्या हाल कर दिया है तुमने इसका!

सेनापति: ओह तो महारानी को दर्द हो रहा है अपने विश्वस्नीय आलोक की दशा देख कर ।

नींद से जागता हुआ आलोक देखता है महारानी शुरष्टि उसके सामने खड़ी है।

वो इशारे से कहता है मुझे खोल दो।

शुरष्टिजा कर उसका मुँह खोल देती है और मुँह में फसे कपड़े को हटा देती है।

सेनापति ये खड़ा-खड़ा देख रहा था और मुस्कुरा रहा था।

आलोक: महारानी मुझे बचा लो! कृपा कर के मुझे बचा लो! ये मेरी जान ले लेगा और आलोक रोने लगता है।

शुरष्टि: तुमने तो इसके साथ जानवर से भी बदतर सुलूक किया है। सेनापति! तुम मनुष्य नहीं हो सोमनाथ।

सेनापति: महारानी अब जो अपनी सौतन की जान लेने पर लगी है, वह मुझे बताएगी कि मनुष्यता क्या है।

शुरष्टि: चुप करो सेनापति मेरे हाल खराब है, पर मैं हु तो महारानी! में चाहु तो तुम्हारे खाल निकलवा...!

सेनापति: आहा चुप हो जाओ महारानी जी!

सेनापति सामने से एक पन्ना निकलता है जिसपर आलोक ने अपना जुर्म कबूल किया है और हस्ताक्षर किये है।

सेनापति वह पन्ना उठा कर।

"ये देखिये महारानी आलोक ने हस्ताक्षर है। उसने माना है की उसने आपके साथ मिल कर रानी देवरानी को मारने की साजिश की सजा की है और आपको सांप दिया है जिसके विष से उनके एक घड़ी में प्राण चले जाएंगे ।"

शुरष्टि गुस्से में थी पर चुपचाप खड़ी सुन रही थी।



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सेनापति: और महारानी आपने बलदेव को मारने के लिए भी अपने आदमियों को बलदेव और देवरानी के पीछे भेजा है।

शुरष्टि आलोक की ओर देखती है आलोक अपना सर नीचे कर लेती है और बलदेव तो राज्य का युवराज और महाराज का एकमात्र उत्तराधिकारी है ।

सेनापति: तो कुल मिला कर आपने रानी देवरानी और युवराज को मारने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है ।

शुरष्टि: तुम्हें क्या चाहिए, जो चाहिए मांग लो। हम तुम्हारा कक्ष सोने चांदी से भरवा देंगे, सोमनाथ!

सेनापति: महारानी अगर ये बात मैंने घाटराष्ट्र वासियो में फेला दी तो वह लोग आपकी फांसी की सजा देने की मांग करेंगे वह अन्यथा ये भी हो सकता है के यहाँ के लोग आपको खुद सजा दे दे।

ये सुन कर शुरष्टि का दिल पहली बार दहल गया और अपने भविष्य के बारे में सोच कर उसकी आँखों में आँसू भर गये।



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सेनापति: (मन में-महारानी शुरष्टि! तुमने सेनापति सोमनाथ को थप्पड मारा था । उसकी कीमत सोना या चांदी नहीं है ।)

शुरष्टि: तुम आलोक को छोड़ दो मैं तुमसे मुँह माँगा इनाम दूँगी।

सेनापति: मैं इसे छोड़ दूंगा पर अगर आपने कोई चाल चली तो मैं ये पत्र महाराज को भारी सभा में पढ़ के सुना दूंगा और उसके बाद आपकी फासी पक्की । हाहाहा!

शुरुष्टि: तुम इसे खोलो!

सेनापति आलोक को खोला जाता है आलोक आज़ाद होते हैं वह शुरष्टि के पैरो में गिर जाता है।

"महारानी! मेरी जान बचाने के लिये, बहुत-बहुत धन्यवाद!"

शुरष्टि: मूर्ख! मैंने तुम्हें कहा था कि घाटराष्ट्र छोड़ कर चले जाओ ।दुबारा घाटराष्ट्र में अपना चेहरा मत दिखाना ।

आलोक अपनी जान बचाये भाग जाता है।


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सेनापति: महारानी शुरष्टि को देख मुस्कुराता है ।

शुरष्टि: बोलो क्या चाहिए हम मुँह माँगी कीमत देंगे।

सेनापति सोमनाथ शुरष्टि के चारो ओर घूम कर शुरष्टि को निहारता है।

सेनापति: महारानी आपके जान बचाने की कीमत सोने चांदी से नहीं होगी।

श्रुष्टि: फिर?

सेनापति शुरष्टि के करीब आकर उसका हाथ पकड़ कर बोलता है ।

"मुझे आपका साथ सोना है महारानी श्रुष्टि!"

शुरष्टि सेनापति का हाथ झटका कर।

"खबरदार मुझे छूने की भी कोशिश की तो तुम्हारा सर तुम्हारे धड से अलग कर दूंगी। सेनापति सोमनाथ अपनी हद मत भूलो।"

सेनापति मुस्कुराते हुए ।

"देखिए महारानी अगर आप चाहती हैं कि मैं आपका राज महाराज या घाटराष्ट्र की सभा में सबके सामने नहीं खोलूं तो मेरी बात तो आपको माननी पड़ेगी । अन्यथा ...!"

"होश में आओ सेनापति! महाराज ने तुम जैसे दो टके के सैनिक को सेनापति बना दिया नहीं तो तुम भी आज अपने बाप के साथ लोहार बने लोहा पीट रहे होते या कहीं पर लोहा काट रहे होते। नीच आदमी! सोच नीच!"

"महारानी मुझे नीचे कहो पर हर लोहार नीचे नहीं होते! मेहनत करते है। तुम जैसी ऊंची जाति के लोग, राजा सिर्फ हमारे बलिदानों से बने हैं।"

शुरष्टि कक्ष से बाहर जाने लगती है।

सेनापति: अगर तुम आज शाम में मेरे कक्ष में नहीं आई और अपने आपको मुझे नहीं सौंपा तो महारानी शुरष्टि कल की सुबह आपकी आखिरी सुबह होगी!

और सोमनाथ कुटिलता पूर्वक मुस्कुराता है ।



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शुरष्टि गुस्से से पाँव पटकती हुई कक्ष से बाहर जाने लगती है

"सेनापति तुम सपने में भी मुझे भोग नहीं सकते!"

सेनापति: ये मत सोचो कि मैंने आलोक को छोड़ दिया तो तुम महाराज के सामने मुझे झूठा साबित कर दोगी, मैं जब चाहूँ उसे फिर से उसे क़ैद कर सभा के सामने प्रस्तुत कर दूँगा।

शुरुआत सोमनाथ को एकटक देखती रह जाती है।

सोमनाथ: आपको आज शाम तक का समय देता हूँ।

शुरष्टि चली जाती है।

सोमनाथ वही अपने बिस्तर पर लेट जाता है और अपना लंड सहलाता है ।

सोमनाथ: (मन में) रानी इसी धूल वाले बिस्तर पर तुम्हारे जिस्म को नोच-नोच कर खाऊंगा । शुरष्टि तुम्हारे थप्पड़ का उत्तर देगा ये सोमनाथ तुम्हें!



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दोपहर का समय हो गया था और पारस की ओर तेजी से जा रहे थे बलदेव देवरानी श्याम और बद्री के साथ अपने अश्वो पर ।

श्याम: बद्री यार मुझे भूख सताए जा रही है। ये पारस कब आएगा?

बद्री: धीरज रखो हम पहुँचने ही वाले हैं।

तभी बलदेव को दूर एक बाज़ार नज़र आता है।

बलदेव: माँ देखो वहाँ बस्ती है और बाज़ार भी है ।

ये सुन कर देवरानी की खुशी का ठिकाना नहीं था।

देवरानी: हाँ बलदेव हम पारस पहुच गए हैं।

श्याम: हाँ! मौसी हम पहुच गए।



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बलदेव श्याम और बद्री अपने घोड़े को तेजी से बाज़ार की तरफ बढ़ाते है और वहाँ पर अपने घोड़े रोक देते हैं ।

श्याम: कितना सुंदर बाज़ार है।

सब घोड़े से उतरते हैं। देवरानी उतर कर अपने वस्त्र ठीक करती है। बलदेव देखता है देवरानी अपनी गांड को सहलते हुए अपने वस्त्र ठीक कर रही थी । बाज़ार में बहुत शोर था।

पास में एक बूढ़ा व्यक्ति कुछ बेच रहा था । बलदेव उसके पास जाता है।

ग्राहक: ये अंजीर कितने सिक्के के दिए ।

दुकानदार: 10 सिक्के के।

बलदेव अंजीर ले कर सिक्के देता है और बलदेव दुकानदार से पूछता है ।

"श्रीमान ये कौन-सा बाज़ार है?"

"लगता है मुसाफिर हो । तुम पारस में हो बच्चे!"

तभी वहा पर श्याम बद्री तथा देवरानी भी आजाते हैं और सब ये सुन कर खुश हो जाते हैं।

बद्री: श्रीमान हमें महल जाना है।



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दुकंदर: बेटा यहाँ बहुत महल है।

देवरानी: हमे सुल्तान मीर वाहिद के महल जाना है।

ये सुन कर दुकानदार और आसपास खड़े ग्राहक डर के देवरानी को देखने लगते हैं।

बलदेव: या फिर आप के महाराज देवराज के महल ।

ग्राहक: लगता है आप लोग सुल्तान के करीबी हो। वैसे सुल्तान का महल, जहाँ वह रहते हैं यहाँ से जुनूब में है और महाराज देवराज का महल सोमल में है ।

देवरानी: नहीं आप हमें सुल्तान के यहाँ जाने का रास्ता बताएँ।

बलदेव: आप कहें हमे सुल्तान के महल जाने के लिए कौन-सी दिशा में जाना है।

दुकन्दर: यहाँ से सीधा चले जाओ।

बलदेव दिशा समझ कर अपने घोड़े पर बैठता है और अपनी माँ को भी सहारा दे कर बैठाता है।

बद्री और श्याम भी अपने-अपने घोड़ों पर बैठ जाते हैं । फिर उस दिशा में घोड़े दौड़ने लगते हैं।

कुछ देर भगाने के बाद गाँव और घर दिखाई देने लगते हैऔर हर तरफ सेना दिखने लगती है । तभी सामने से दो घुड़सावर आकर उन्हें रोकते हैं ।

"ए तुम लोग कौन हो? और महल की ओर जाने की वजह क्या है?"


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बलदेव समझ जाता है कि ये पारस के सुरक्षा कर्मी है।

देवरानी: मैं देवरानी हूँ! सुल्तान की खास मित्र की देवराज की बहन!

सैनिक: माफ़ करना मोहतरमा, आप सबका ख़ुश आमदीद!

सैनिक चिल्ला कर-"ए लोगों रास्ता सुरक्षित करो। हिंद से हमारे मेहमान आये हैं।"


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बलदेव देवरानी आगे बढ़ते है और देखते हैं सामने बहुत बड़ा महल दिखता है।

देवरानी: कितना विशाल और सुंदर महल है।



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श्याम: ओह क्या चमत्कारी महल है।

बद्री: अधभुत!

बलदेवःअति सुन्दर!

सब अपने घोड़े को धीरे-धीरे ले जा रहे थे या । जैसे-जैसे घोड़े महल के करीब जा रहा थे वह चारो महल की ख़ूबसूरती में डूब जाते हैं।

महल के रास्ते में दोनों तरफ से कतार में खड़े सैनिक थे। बलदेव धीरे-धीरे घोड़ा आगे बढ़ रहा था। उसके पीछे श्याम या उसके पीछे बद्री था ।

सामने दो सैनिक आकर खड़े हो जाते हैं।

"बहोशियार हिन्द के महाराजा राजपाल और महारानी देवरानी महल में तशरीफ़ ला रहे हैं।"

बद्री देखता है सामने से राजसी पोषक पहने एक बूढ़ा पर हट्टा कट्टा व्यक्ति कुछ सैनिकों के साथ आ रहा था।



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"खैरमकदम मेरी बहन देवरानी आओ!"

देवरानी देखती है ये तो मेरा भाई नहीं है फिर कौन है?

बलदेव सैनिक के कहे अनुसार घोड़े को एक तरफ ले जाता है, फिर देवरानी को पहले उतारता है फिर खुद उतारता है।

सैनिक: आइए आपका स्वागत करने खुद सुल्तान करने आए हैं।

देवरानी: (मन में:-ओह! तो ये है सुल्तान मीर वाहिद!)

देवरानी अपने हाथ जोड़ कर प्रणाम करती है और फिर बारी-बारी सब प्रणाम करते है।

सुलतान: आइए! आप सबको महल ढूँढने में कोई परेशानी तो पेश नहीं आई!

बलदेव देवरानी के साथ चलता हैं ।

"नहीं सुल्तान !"

सब चल कर महल के द्वार पर आते हैं।



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सुलतान: सुनो जा कर सब से कह दो के हमारे मेहमान आ गए हैं ।

सैनिक: जी सुल्तान !

सुल्तान के बाए बलदेव और गाते हाथ देवरानी चल रही थी।

उनके पीछे श्यामऔर बद्री चल रहे थे। इन चारो को ले कर सुल्तान सभा में पहुँच जाते जहाँ पर दोनों तरफ से बड़े कुर्सी सोफ़े पर मंत्री बैठे थे सुल्तान को आता देख पूरी सभा में मौजूद सभी खड़े हो जाते है।

और दोनों तरफ से लोग बलदेव देवरानी के ऊपर फुलो की बारिश कर देते हैं ।

"ख़ुशामदीद ख़ुशामदीद!"



61-SULTAN

श्याम और बद्री अपना स्वागत देख गदगद हो जाते हैं।

सुल्तान जा कर अपने आसन पर बैठ जाते हैं।

सुलतान: आप यहाँ बैठिए राजा राजपाल जी! और देवरानी बहन आप यहाँ पर बैठें।

बद्री: (मन में:-ये बूढ़ा बलदेव को राजपाल बुला रहा है।)

जगह देख कर बद्री और श्याम भी बैठ जाते हैं ।

बलदेव: सुल्तान वह मैं वह नहीं...।

सुलतान: अरे हमारी आँखे आप दोनों को घोड़े पर बैठे देख ही समझ गई थी के आप ही देवराज के जीजा राजपाल और ये हमारी बहना देवरानी है।

ये सुन कर देवरानी शर्मा जाती है और बलदेव को भी अंदर से अच्छा लगता है। पर लोगों को दिखाने के लिए झूठा नाटक करता है।

बलदेव: नहीं सुलतान!

देवरानी: आप से भूल हुई ये मेरा बेटा है!

सुल्तान को जैसा एक झटका लगता है।



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"मुआफ़ करना बहना!"

देवरानी: अरे कोई बात नहीं सुल्तान आप पहली बार ही तो मिले हैं। वैसे मेरे पति कोई कारणवश मेरे साथ नहीं आ सके।

देवरानी: (मन में:-जब मेरा असली पति यहीं है तो लगेंगे ही हम पति पत्नी ।)

और उसके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है जिसे बलदेव देख लेता है तो वह भी मुस्कुराता है।

बलदेव: (मन में;-माँ बस मेरी पत्नी कहलाकर इतना खुश है, सच में बना लूंगा तो कितनी खुश होगी।)

देवरानी: सुल्तान...भैया देवराज कहा रह गए?

सुल्तान: देवराज शहजादे शमशेरा के साथ शिकार पर गए हैं हमने खबर भेजवा दी है।

सुलतान: दोस्तो ये हिंद से आए हमारे मेहमान है मैं चाहता हूँ कि इनको पारस में किसी भी चीज़ की तकलीफ़ न हो ।

सुल्तान: बहन देवरानी! आप सब अंदर जाएँ! देवराज को आने में समय लग सकता है।

सुलतान: सुनो!

सैनिक: जी जहाँ पनाह!

सुल्तान: सबके रहने और खाने का बंदोबस्त करो। इनसब की मल्लिका जहाँ से मुलाकात करवाओ!

सैनिक चारो को अंदर ले जाते हैं।

बद्री श्याम के कान में।

"ये क्या नौटंकी है? तुम जाओ उन दोनों के साथ, मैं यहीं रुक रहा हूँ।"

"हाँ यार बद्री मुझे भी प्यास लगी है।"

बद्री: सुनो हमें पानी पीना है।

एक सैनिक बद्री और श्याम को पानी पिलाने ले जाता है, बाकी सैनिक बलदेव और देवरानी के साथ चल रहे थे।

मल्लिका जहाँ के कक्ष के पास रुक कर सैनिक बोलता है ।



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सैनिक: गुस्ताख़ी मुआफ़ हो! मल्लिका जहाँ! हमारे मेहमान आपसे मिलने आये हैं।

मल्लिका जहाँ: इजाज़त है।

बलदेव और देवरानी सैनिकों के इशारे पर अंदर आते हैं। सैनिक वही रुक जाते हैं । एक बड़ा-सा कक्ष था जिसमें जड़े हीरे सोने जवाहरात चमक रहे थे । कक्ष के बीचो बीच में पलंग था जिसपर मखमली बिस्तर लगा हुआ था । सामने नकाब में खड़ी थी मल्लिका जहाँ।

बलदेव और देवरानी दोनों हाथ जोड़ कर मलिका का इस्तकबाल करते हैं ।

"प्रणाम मल्लिका जहाँ!"

मल्लिका जहाँ भी उनका स्वागत करती है ।

"सलाम आप दोनों को!"

मल्लिकाजहाँ: तुम दोनों की जोड़ी बेहद खूबसूरत है।

देवरानी: मुआफ़ कीजिए! पर क्या आप सुल्तान मीर वाहिद की मल्लिका है?

मल्लिकाजहाँ: जी हा मैं उनकी बीवी हूर-ए-जहाँ हू। प्यार से मुझे हुरिया भी कहते हैं।

देवरानी: आप भी हम दोनों को गलत समझ रही हैं। मल्लिका जी!

मल्लिकाजहाँ: मतलब?

देवरानी: मतलब ये मेरे पति नहीं है।

मल्लिकाजहाँ: यानी तुम कह रही हो कि ये आप शौहर नहीं है तो फिर कौन है?

देवरानी: ये मेरा बेटा है।

मल्लिकाजहाँ: तौबा तौबा! मुआफ़ करना! मेरी बहन । तुम दोनों की जोड़ी देख कोई भी धोखा खा सकता है।

देवरानी: कोई बात नहीं दीदी, तो क्या आप हमेशा अपने चेहरे को ढके रहती हैं?

मल्लिकाजहाँ: नहीं मेरी बहन। में सिर्फ गैर मर्द से, भले से वह रिश्तेदार ही हो उनसे पर्दा करती हूँ।

देवरानी: तो क्या, आपको देखने के लिए बलदेव को बाहर भेजना होगा?



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मल्लिकाजहाँ: नहीं, नहीं, ये तुम्हारा बेटा है, तो फिर मेरे भी बेटा जैसा ही है, सिर्फ ये मेरा चेहरा देख ले, तो कोई हर्ज़ नहीं।

मल्लिकाजहाँ उर्फ हूर-ए-जहाँ हुरिया अपना नकाब अपने चेहरे से हटाती है तो देवरानी और बलदेव उसे देखते रह जाते हैं।

देवरानी: वाह! क्या सुंदरता है! आपका नाम हूर-ए-जहाँ बिलकुल सही रखा गया है । आप हूर से कम नहीं हैं ।

हुरिया: देवरानी शुक्रिया मेरी बहन! तुम भी कोई कम सुंदर नहीं ही । लगता ही नहीं के हिंद की हो।

देवरानी: दीदी! मैं पारस में ही पेदा और पली बड़ी हुई हूँ। इसीलिए आपको ऐसा लगा।

बलदेव देख रहा था कि दोनों बहुत जल्दी घुल मिल गई थी।

हुरिया: बेटा तुम क्यू चुप चाप हो?

बलदेव (मन में: बेटा तुम यहाँ से निकलो ही लो। दो औरतें के बीच में फ़सना ठीक नहीं ।)

बलदेव: मल्लिका जहाँ मैं आपको मौसी बुलाऊँ तो चलेगा ना।

हुरिया: हाँ बेटा तुम बहन देवरानी के बेटे हो इसलिए मुझे खाला (मौसी) बुला सकते हो, बड़ा शरीफ बेटा है आपकी बहन देवरानी।

देवरानी बलदेव की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए बोली -"बहुत नटखट है।"

बलदेव: मैं ये बद्री और श्याम को देखता हूँ, कहाँ रह गए । आप लोग बात करो।

हुरिया: आओ बैठो देवरानी खड़ी क्यों हो।

बलदेव वहा से बाहर आ जाता है और देवरानी वहाँ एक सोफे पर बैठ जाती है।

जारी रहेगी ।
 
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महारानी देवरानी

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मिलन - भाई बहन, सेनापति महारानी सृष्टि का


बलदेव अपनी माँ को छोड़ कर बाहर आता है तो देखता है बद्री, श्याम बैठे एक दूसरे से बात कर रहे हैं।

बलदेव: तुम दोनों बाहर वह क्यू रुक गए, मल्लिका जहाँ से मिलने क्यू नहीं आए?



FRIEND

श्याम: वो बस प्यास लग गई थी तो पानी पीने के लिए रुक गए थे ।

बलदेव: ठीक है चलो मेरे साथ उन से मिलवाता हूँ ।

बद्री: रहने दो बलदेव अभी हम थके हुए हैं बाद में मिल लेंगे वैसे भी हम कुछ दिन तक यहीं हैं ।

बद्री का स्पाट जवाब सुनने के बाद जो बद्री ने बिना बलदेव को देखा हुआ कहा था बलदेव सोचने लगा ।

बलदेव (मन में: मेरी हर बात मानने वाला बद्री आज कल मुझ से यु चिढ़ा क्यू रहता है और बीच रास्ते में कह रहा था इसे वापिस जाना है, पता नहीं क्या चल रहा है इसके दिमाग में!)



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बलदेव: ठीक है श्याम, बद्री! तुम दोनों हाथ मुह धो लो।

सैनिक: आप सब कक्ष के पास के गुसलखाने को इश्तमाल में ले सकते हैं।

बलदेव: धन्यवाद!



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तीनो हाथ मुँह धोने चले जाते हैं। इधर देवरानी के साथ बैठी हुरिया गप्पे लगा रही थी।

हुरिया: अच्छा जी तो तुम पारसी हो वैसे मैं मिश्र की हूँ।


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देवरानी: वाह मिश्र तो बहुत बड़ा राष्ट्र है।

हुरिया: देखो तुम इतने सालो बाद आई हो और शमशेरा को भी आज ही देवराज जी को ले कर जाना था।

देवरानी: आरी दीदी इसमें बेचारे युवराज शमशेरा की क्या गलती ।

हुरिया: बेचारा ...शैतान है एक नंबर का!


तभी सैनिक आता है।

"मल्लिकाजहाँ शहजादे शमशेरा राजा देवराज जी के साथ वापस आ गए हैं।"

हुरिया एक मुस्कान से

"देखा देवरानी नाम लेते ही शैतान हाज़िर।"





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देवरानी


देवरानी: हेहेहे दीदी । उम्र लम्बी है युवराज और मेरे भाई की ।

हुरिया: जाओ अपने भाई से मिल लो।

देवरानी का मुंह अपने भाई के आने के आभास से ही दिल की धड़कन बढ़ जाती है और फिर खुशी के मारे उसके लिए एक पल भी गुजारना मुश्किल था।

देवरानी उठ के जाने लगती है तभी उसके कानों में आवाज आती है।

सैनिक: होशियार सुल्तान मीर वाहिद तशरीफ़ ला रहे हैं।




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हुरिया: रुक जाओ देवरानी लगती है वह सब यहीं आ रहे हैं।

हुरिया की कक्षा के आगे खड़ा सैनिक -"मल्लिका जहाँ बाहर सुल्तान के साथ राजा देवराज आये है।"

हुरिया झट से अपने नकाबसे फिर से अपने चेहरे पर ढक लेती है।

हुरिया: आजाए सुलतान।

देवरानी उठ खड़ी होती है।

सामने से लम्बे चौड़ी कद काठी का देवराज जिसके चेहरे पर आधी सफ़ेद आधी काली दाढ़ी थी सुलतान के साथ आ रहा था




DEVRAJ1
देवराज देखता है लम्बे चौड़े बदन की मालकिन। सफेद गोरा रंग की अपनी बहन को आज 18 साल बाद देख उसकी आँखों से आसु छलक जाते हैं।

"देवरानी मेरी बहना।!"

देवरानी अपने भाई की आँखों में आसू देख के उसकी आँखों से भी धडा-धड आसू बहने लगते है।

"भैयाआ।"

देवरानी अपने भाई के पास जा कर सबसे पहले उसके चरण स्पर्श करती है।

"उठ जाओ मेरी बहन।"

देवराज उसकी बाहे पकड़ कर उसे उठाता है ।

देवराज देवरानी के सर पर हाथ फेर कर उसके सर को अपने सीने पर रख देता है।

"मुझे क्षमा कर दो! मेरी बहन मुझे! इतने वर्षों से मैं तुमसे मिल नहीं सका।"

"भैया एक आप तो हैं मेरे इस दुनिया में।"



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"बहन क्षमा कर दे मुझे! मैं राखी का लाज रख ना सका।"

देवरानी फूट-फूट के रो पड़ती है।

देवराज अपनी बहन के आसु पूछते हुए कहता है ।

"अब हम मिल गए हैं ना, अब मैं अपनी बहन के ऊपर कोई दुख नहीं आने दूंगा।"

उतने में बलदेव आजाता है।

देवरानी अपना आसू पूछती है।

"खड़े क्यू हो बलदेव! आकर चरण छूओ मामा के."

बलदेव आकर माँ के चरण स्पर्श करता है। प्रणाम मामा !

"जीते रहो भांजे!"

"ये तो मेरे से भी ज्यादा लंबा हो गया देवरानी।"

"हा भैया आप पर ही गया है।"

सुल्तान: देवराज जी! शाम होने आई चलो पहले इन सब को खाना खिलवाए!

देवराज: जी सुल्तान!

वहा से सब खाने के लिए निकल जाते हैं।





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"घाटराष्ट्र"

महारानी श्रुष्टि तेजी से चल कर बाहर आती है और महल में घुस कर अपने कक्ष में जा कर लेट जाती है। आज कई वर्षों बाद श्रुष्टि इतना परेशान थी । पलंग पर आकर लेटी हुई शुश्ष्टि अपने बेबसी से परेशान थी। उसके आखो में आसु थे जिसे वह ना छुपा पा रही थी ना किसी को दिखा पा रही थी क्यू के एक स्त्री कितनी भी बुरी हो ख़ुशी से अपने शरीर का सौदा नहीं कर सकती।




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शुरुष्टि: राधा! पानी लाना।

राधा: लाई महारानी।

शुरष्टि: (मन में-क्या करूं मैं इस कमीने सेनापति ने तो मुझे बड़े असमंजस की स्थिति में डाल दिया है । मैं किसी की मदद भी नहीं ले सकती, महाराज को बोलू! ...नहीं नहीं वह पूछेंगे के तुम ऐसा क्यू किया? महाराज और घाटराष्ट्र वासियों को पता चला की मैं बलदेव को मरवाना चाह रही हूँ तो वह सब मेरे लिए फांसी की सजा की मांग जरूर करेंगे ।)



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राधा: महारानी पानी!

शुरुष्टि: हाँ लाओ!

राधा: क्या हुआ? आप चिंतित प्रतीत होती हैं।

शुरष्टि: नहीं राधा ऐसी बात नहीं है ।




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राधा: तो फिर आपके माथे पर पसीना क्यों है ।

शुरष्टि: वो...वो तो बस बाहर से आई थी इसलिए ।

राधा: आपने दोपहर का भोजन भी नहीं किया।

शुरुआत: मेरे खाने का मन नहीं है। अभी तुम जाओ ।




SLEEP
राधा सोचते हुए चली जाती है की महारानी जरूर कुछ छुपा रही है।

शुरष्टि मन में: क्या करु अपनी इज्जत बचाने के लिए भाग जाउ।, यहाँ से। पर कहाँ जाउ, कुछ समझ नहीं आ रहा ।


सोचते सोचते शुरुआत की आँख लग जाती है, जब उठती है तो शाम हो गई थी।

शुरष्टि जा कर स्नान करती है। फिर अपने वस्त्र बदल कर बाहर आती है।




62-BATH
शुरष्टि महल से बाहर निकल कर -"सैनिको महाराज कहाँ है?"




सैनिक: महारानी वह सीमा पर गए हैं ।




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शुरष्टि धड़कते दिल के साथ ये सुन और रास्ता साफ देख कर सेना गृह की ओर चल देती है। उसका हर कदम लड़खड़ाहट से साथ आगे बढ़ रहा था।

शुरष्टि: (मन में-भगवान क्षमा करना मेरे पास अपनी जान बचाने का कोई चारा नहीं है । क्षमा करना महाराज राजपाल मुझे।)



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चलते हुए शूरुष्टि सेनापति सोमनाथ की कक्ष के द्वार पर पहुचती है।

शूरुष्टि रुक जाती है उसका शरीर कांपने लगता है । हिम्मत कर के शूरुष्टि अपने हाथ से दरवाजे पर ठक-ठक करती है। थोड़ी देर बाद अंदर से सेनापति सोमनाथ दरवाजा खोलता है।


जैसे ही शूरुष्टि की नज़र सेनापति पर पड़ती है, शुरष्टि अपने सर नीचे झुका लेती है।

सेनापति: स्वागत है राजपूतानी महारानी श्रुष्टि का! पधारिये महारानी।

शुरुआत दबे पांव अंदर आती है और सेनापति फुर्ती से दरवाजे को बंद करता है।

सेनापति: शर्मा क्यू रही हो महारानी? अपना खुबसूरत चेहरा तो ऊपर उठाएँ!


शुरष्टि शर्माती हुई अपना सर ऊपर उठाती है।

सेनापति: अच्छा हुआ आप आगयी क्यू के अगर आप कुछ पल और देरी कर देती तो मैं अभी बाहर जा कर घाटराष्ट्र की प्रजा के सामने आपका कच्चा चिट्ठा रख देता

शुरुष्टि दुःख और गुस्से के साथ बोलती है ।


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"तुम्हे! एक स्त्री की इज्जत से खेलने का पाप लगेगा तुम देखना ये तुम्हारे लिए अच्छा नहीं होगा ।"

सेनापति: वैसे तुम पर किसी को जान से मारने का तो कोई पाप नहीं लगेगा क्यों रानी साहिबा?

शुरुष्टि आँखे तरेरती है पर चुप रहती है ।


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सेनापति: रानी ! तुम पर ऐसे ही तेवर शोभा देते है । रस्सी जल गई पर तेवर वही है। हाहा! आखिर रानी हो!

सेनापति शुरुष्टि के हाथ पकड़ कर बिस्तर की ओर ले जाता है। शुरुष्टि सोमनाथ का हाथ झटक देती है।

"अरे मेरी रानी! आ तो गयी हो फिर क्यों लज्जा रही हो?"



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सेनापति फिर शुरुष्टि के खुबसूरत हाथ को पकड़ के सहला रहा था।

"क्या सुंदर है आपके हाथ महारानी। ये सुंदर हाथ किसी की जान भी ले सकते है मैंने ऐसा सोचा नहीं था।"

जो करना है जल्दी करो! नहीं तो इसी से ही तुम्हारा गला दबा दूंगी। "

"हम तो पहले ही मर मिटें तैयार हैं आपकी सुन्दरता पर महारानी।"

सेनापति झुक कर शुरुआत के हाथ पर चुमता है।




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"उम्म्म्ह्ह्हआआ!"

श्रुष्टि: आह!

सेनापति: क्षमा कीजिए महारानी पर इस कक्ष के बिस्तर पर धूल है। ये कक्ष और बिस्तर आपके महल के जितने साफ नहीं है ।

शुरष्टि अपना मुंह दूसरी ओर फेर लेती है।




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सेनापति सोमनाथ श्रुष्टि को बाहो में भर लेता है शुरष्टि अपना मुंह दूसरी तरफ लेती है।

सेनापति श्रुष्टि को अपनी बाहों में भर कर बोलता है "वाह! क्या ख़ुशबू है महारानी आपके बदन में, कितनी मुलायम हो आप!"





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सेनापति का हाथ शुरष्टि के पीठ पर था और फिर शुरष्टि को लिए हुए सेनापति बिस्तर पर लेट जाता है।

शुरष्टि अपनी आंखे बंद कर लेती है

शुरष्टि: (मन में-छी! इस नीच के बिस्तर से कैसी दुर्गंध आ रही है।)




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सेनापति अब शुरष्टि की टांगो के नीचे बैठ शुरष्टि की पैर के अंगूठो को चूमता है।

"उम्माहा"



GAGHRA


"क्या रसगुल्ले जैसी पैर है महारानी!"

सेनापति पैरो को पहले चूमता है फिर चाटने लगता है और शुरष्टि के अंगुठे को अपने मुंह में ले लेता है।

"आह!" शुरूष्टि सिसकती है



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सेनापति अब खूब अच्छे से शुरष्टि का अंगूठा चूसने लगता है।

शुरुष्टि: आआह उह!

सेनापति अब पिंडिलियों को चूमते हुए ऊपर बढ़ने लगता है और अपने होठों और जिभ से शुरष्टि की टांगो को गीला कर के चूमने लगता है।



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शुरुष्टि: आआह आह उम्म! शुरष्टि आँखे ज़ोर से बंद कर लेती है।

सेनापति अब धीरे से महारानी का घाघरा ऊपर उठाने लगता है और उसके घुटने को चटने लगता है।

सेनापति: ह्म्म्म उम्म्म क्या चिकनी टाँगे है।




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अब शुरष्टि का घाघरा घुटनो तक था। सेनापति घुटने पर चुम घाघरा ऊपर करता है जिसे शुरष्टि की चिकनी दूधिया जाँघे सामने आ जाती है।

सेनापति अपना हाथ जांघो पर रख हाथ जांघो पर फिराता है।

शूरश्री: आआआआआह!

सेनापति अब ज़ोर से जांघ को दबा कर जाँघे दबाता है

श्रुष्टि: आआआआह ओह्ह्ह!



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सेनापति बारी-बारी से दोनों जांघो को चूमता है, चाटता है।

सेनापति अब शुरष्टि के दोनों टांगो को मोड़ कर शुरष्टि की टांगो की बीच में बैठ जाता है और शुरष्टि के घाघरे को कमर तक उठा देता है।

शुरष्टि की झाटो से भरी चूत देख सेनापति की आखे फटी रह जाती है।



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सेनापति: हाय महारानी! असली खजाना तो महाराज ने यहाँ छुपा रखा है और वह पूरा संसार खजाना खोजने के लिए घुमते रहते हैं।

शुरुआत: चुप कर और जल्दी करो जो भी करना है।

सेनापति घाघरा पकड़ कर निकाल देता है और अपनी धोती खोल शुरष्टि के ऊपर लेट जाता है।




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सेनापति एक कट्टाकट्टा मर्द था और 5.5 की 48 वर्ष आयु की महारानी के ऊपर लेट गया, जिस से महारानी श्रुष्टि को लगा उसका शरीर अब टूट जाएगा।

सेनापति 5.10 लंबाई का तगड़ा मर्द, आज महारानी के लिए बहुत भारी था क्यूकी राजपाल भी महारानी शुरष्टि से कुछ एक इंच ही ऊंचा था।


शुरष्टि: आआआह मार डाला रे!

सेनापति: अभी कहा मारा। अभी तो मारूंगा। सेनापति अपना लौड़ा देवरानी की झाटो से भरी चूत पर रख कर रगड़ता है।

श्रुष्टि: आआआह!

सेनापति देखता है कि धीरे-धीरे महारानी अब गरम हो रही है।



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सेनापति चोली के ऊपर से वह शुरष्टि मध्यम आकर के वक्ष को अपने हाथ से सहलाते हुए दोनों को ज़ोर से दबा लेता है।

श्रुष्टि: आआआआह! सेनापति तुम्हारी इतनी जुर्रत!

सेनापति: आह! कितने मुलायम मखमली वक्ष हैं। महारानी जी आपके!




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सेनापति झट से उसकी चोली खोलने लगता है। जिससे महारानी के दोनों वक्ष कूद कर बाहर आते हैं, जिसे देख सेनापति सोमनाथ अपने होठ पर अपनी जिभ फेरता है।

अब श्रुष्टि अपने आप को पूरा नंगा देख अपना हाथ अपने चेहरे पर रख लेती है।

सेनापति: शर्मा रही है महारानी! रानी तुम तो पूरी छमिया लग रही हो।

सेनापति आगे बढ़ कर दोनों वक्षो को हाथ में ले कर मरोड़ने लगता है। उसको दबाने लगता है और फिर निचोड़ते हुए अपना लौड़ा श्रुष्टि की बुर पर रगड़ रहा था।




शुरुष्टि: आआह नहीं!

सेनापति बारी-बारी से वक्षो को मुँह में ले कर चूसता है।

"गलप्प्प्प उम्म्ह आआआह!"

श्रुष्टि शर्म से अपने चेहरे को ढक लेती है।

सेनापति श्रुष्टि के हाथ हटा कर उसके चेहरे की तरफ अपना मुँह ले जाता है और अपने ओंठ श्रुष्टि के ओंठो की तरफ बढ़ाता है।


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श्रुष्टि हाथ खोलती है और अपना हाथ से सीधे सोमनाथ की गर्दन को दबाती है।

सेनापति: क्या हुआ महारानी, आपको! अपने गुलाबी होठ चूसने दो!

श्रुष्टि: नहीं!

सेनापति: क्यू? क्या इस लोहार के ओंठ चूसने से राजपूतनी महारानी अपवित्र हो जाएगी?

शुरष्टि: तुम्हारी तो... !

राजपूतनी महारानी श्रुष्टि ज़ोर से सेनापति के गर्दन को दबाती है।


सेनापति अपना हाथ ज़ोर से शुरष्टि के वक्षो पर रगड़ता और वक्षो को दबाता है और अपना लौड़ा शुरष्टि की झाटों से भारी चूत पर रगड़ता है।

शुरष्टि हाथ से सेनापति सोमनाथ की गर्दन को छोड़ देती है और शुरष्टि की आँखे कामोतेजना से बंद हो जाती है।

सेनापति सोमनाथ: क्यों वैश्याओं जैसी हरकत कर रही हो, खुद भी भूल जाओ और मजे लो और मुझे भी मजे लेने दो।




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सेनापति अपने होठ आगे बढ़ा शुरुआत के ओंठो को अपने मुँह में भर लेता है और उन्हें चूम कर चूसने लगता है।

"गैलल्लप्प गैलप्पप्प गैलप्पप्प! गैलप्पप गैलप्प-गैलप्प उम्म्म्ह स्लरप्प!"

साथ में सेनापति नीचे से शुरष्टि की चूत पर अपना 7 इंच का लौड़ा भी रगड़ रहा था और शुरष्टि के दोनों वक्ष को सेनापति निरंतर अपने हाथ से रगड़ रहा था।

सेनापति ओंठ छोड़ कर शुरष्टि के गाल को अपने दांत से पकड़ लेता है और गाल चुसने लगता है।

"उम्हहा गलप्प!"

शुरष्टि: आअहह आह ओह्ह!

सेनापति अपना दांत शुरष्टि के गाल पर लगा देता है।

शुरष्टि: आह दांत मत लगाओ, निशान पड़ जाएगा!

सेनापति अब सृष्टि को चुमता हुआ उसकी नाभि पर आकर अपनी जीभ से चाटने लगता है।

शुरष्टि: जल्दी करो महाराज आ जायगे।

सेनापति: महारानी वह रात से पहले नहीं आने वाले थे मैंने उन्हें आज दूर की सीमा पर भेजा है और शुरष्टि: को देख आख मार देता है।

शुरुष्टि: कामिने हो तुम!

सेनापति: अब क्या करे! हमारी तो हमेशा से चाहत थी कि कभी किसी महारानी को जरूर चोदूंगा। आज तुम मिल गई तो महाराज को दूर भेजना तो बनता ही था।





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शुरुष्टि: हवसि कामिने!

सेनापति: महारानी! अब हम सेनापति बचपन से आपके राज्य को आगे बढ़ाने के लिए, अपना दिन रात एक करते हैं, युद्ध करते हैं। बदले में हमे क्या मिलता है? सूखी रोटी, सूखी चूत!

शुरष्टि: छी! क्या गंदी बात कर रहे हो?

सेनापति: आज! आपको चोद के मेरा सालो से महाराज के पीछे कुत्ते की तरह घूमना, सफल हो जाएगा।

सेनापति नाभि को चूमते हुए शुरष्टि: की टांगो के बीच जाकर उसकी टांगो को उठा देता है और उसकी झांटोदार चूत को सहलाते हुए चूत का छेद देखने लगता है और दो उंगली से चूत का दाना सहलाते हुए एक उंगली चूत में घुसा देता है।



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श्रुष्टि: आआआआह!

उंगली चुत के अंदर बाहर करते हुए सेनापति शुरष्टि की चुत पर झुक कर अपने होंठ चुत पर रख चूमता है।

"उम्हहाआ! क्या प्यारी चूत है। महारानी!"

अब तेजी से उंगली अंदर बाहर करते हुए सेनापति शुरष्टि की चूत के ऊपर से बाहर चाटता है और फिर ऐसे ही चूत को चारो ओर से चाटने लगता है। अब सेनापति की उंगली पर गीला मेहसूस होता है वह अपनी उंगली से बाहर निकालता है और अपनी जीभ अंदर डाल कर अपने होठों से उसकी चूत को चूसना शुरू करता है ।


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"उम्म्म आहा सेनापति नहीं!"

शुरष्टि की चुत से बहता पानी रुकने का नाम नहीं ले रहा था और सेनापति हर बहता हुआ पानी पीने लग जाता है। अब फिर से उंगली रख चुत में घुसा देता है और चुत के दाने पर अपनई जीभ रख कर चाटने लगता है।

शुरष्टि: आआआआआआह! हाये मैं मर गई!




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"उह्ह्ह आआआआआह सेनापतिइइइइइइओना आआआआह सेनापतिईईईईईईई।" महारानी अब कराह रही थी ।

सेनापती देखता है कि शुरष्टि का शरीर अब गरम है या चूत आग की भट्टी-सी गयी है। फिर वह घुटनों के बल बैठ शुरुआत का हाथ ले कर अपने लौड़े पर रख देता है।

शुरुआत एकझटके के साथ अपना हाथ पीछे खींच लेती है।

शुरष्टि अपना आख खोलती तो देखती है कि सेनापति का लौड़ा आसमान को सर उठाये खड़ा था ।

शुरष्टि: (मन में-उफ़! कितना काला और बड़ा लिंग है। ये तो महाराज से भी बड़ा है और दमदार है। हाय! मैं ये क्या सोच रही हूँ।)




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सेनापति फिर से शुरष्टि का हाथ ले जा कर अपने लौड़े पर रखता है । फिर सृष्टि इस बार लौड़े को अपनी मुट्ठी में भर लेती है।

सेनापति: लगता है इतना बड़ा लौड़ा कभी नहीं देखा । डर रही हो क्या महारानी?

शुरष्टि लौड़े को हाथ में पकडे मेहसुस कर रही थी।

सेनापति: इसे मुँह में लो महारानी!

शुरुआत एक चपत लौड़े पर मारती है और लौड़ा छोड़ देती है।

सेनापति मुस्कुराते हुए "अच्छा मुझे मत लो पर थोड़ा सहलाओ तो ।"

इस बार शुरष्टि खुद अपना हाथ आगे ले जा कर सेनापति के लौड़े को पकड़ कर आगे पीछे करने लगती है।

सेनापति: ये हुई ना बात!

सेनापति का लौड़ा अब शुरष्टि के पेट पर था । वह अपने दोनों टांगो को दोनों तरफ रखे हुआ था और शुरष्टि उसके लौड़े को हाथ से मुठिया रही थी ।

सेनापति शुरष्टि दोनों वक्षो को दबाने लगता है और शुरष्टि के हाथ को अपने लौड़े से छूटा कर दोनों वक्षो को अपने हाथों से पकड़ कर अपना काला लौड़ा महारानी के वक्षो के बीच में घुसाता है और आगे पीछे ढकेलने लगता है।


शुरष्टि आख फाडे देख रही थी।

"ये क्या है सेनापति?"

"महारानी मुझे लगता है महाराज ने कभी आपको ढंग से नहीं चौदा और भोगा!"

शुरष्टि उन पलो को ही याद कर रही थी की कैसे उसे तड़पता छोड़ राजपाल दो पांच झटको में वह पानी छोड़ देता है।

ये बात सुन कर शुरष्टि शर्मा कर अपने आखे नीचे कर लेती है।





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अब सेनापति अपना लौड़ा वक्षो से निकल कर शुरष्टिके ऊपर लेट जाता है और उसको अपनी बाहों में भर कर उसकी गर्दन पर और उसके होठों को चूमने लगता है । फिर बिस्तर पर पलटने लगता है, कभी शुरुआत को अपने ऊपर लेता है और कभी खुद ऊपर आता है और फिर उसे ऊपर ले उसकी गांड को मसलने लगता है।

"आह महारानी श्रुष्टि, आपकी गांड को मैंने कई बार मटकते देखा है। मैं जब से अपने पिता के साथ सेना में भरती हुआ था तब से आपको पसंद करता हूँ।"

सेनापति अपने ऊपर लिए हुए शुरुआत की गांड को खूब दबाता है और अपना लौड़ा चूत पर रख रगड़ता है।



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अब शुरुष्टि को सीधा लेटा कर उसकी टांगो को घुटनों से मोड़ कर फिर अपना काला लौड़ा शुरुष्टि की चूत पर रख सहलाता है। वह फिर शुरुष्टि की ओर देखता है तो सृष्टि आँखे भीचे लेटी हुई थी, सेनापति अपने लौड़ा चूत के मुहाने पर रख एक तगड़ा झटका मारता है।

शुरष्टि: आआआआआआह्ह्हह्ह्ह्ह!



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लौड़ा चूत को फाड़ते हुए आधा अंदर चला गया था ।

सेनापति: आह! आज भी महारानी आपकी चूत कितनी कसी हुई है ।!

सेनापति ने एक और झटका मारा । इस बार सेनापति का पूरा लौड़ा महारानी शुरष्टि की चूत में गायब हो गया।



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सृष्टि अब अपनी आँखों को फाड़कर ऊपर की ओर देख कर कराह रही है।

"आआह हे भगवान!"

सेनापति अब अपनी कमर हिलाते हुए ज़ोर-ज़ोर से चोदने लगता है।

"आआआअहह सेनापति नहीं अह्ह्ह्ह ओह्ह!"




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"ये ले सेनापति का लौड़ा मेरी महारानी।"

फत्त पछ-पछ की आवाज के साथ लौड़ा तेजी से अंदर बाहर होने लगा।

"आह नहीं सेनापति तुम्हारा लिंग निकालो! बहुत बड़ा है।"

"ये ले लोहार का लौड़ा। महारानी!"

"गहप घपल्प घपल्प! "

"आह सेनापति!"





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घप्प घप्प घपघप्प घपल सेनापति अब सृष्टि को घुमा कर घोड़ी बना कर पीछे से लंड पेलने लगता है।

"आहहह नहीं ओहह आआह सेनापति!"

शुरष्टि अपने हाथ से बिस्तर पर चादर को पकड़ लेती है जोर के झटके से कभी शुरष्टि की आख बंद होइ जाती थी और कभी झटके से आख खुल जाती थी ।

अब सेनापति अपने बिस्तर से उतरता है और सृष्टि को पलंग के किनारे ला कर उसकी टांगो को फेला कर चूत में फिर से गलप से लैंड पेल देता है।



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"आआआआह नहीं सेनापति!"

सेनापति अब तेज धक्को की बरसात कर देता है।

फिर एक सुर से धक्के लगाने लगता है सृष्टि को चीखे अब उत्तेजना भरी कराहो और सिस्कीयो में बदल गयी थी और वह आनंदित हुई सेनापति से चुदती रहती है।

कोई आधा घंटा चोदने पर भी श्रुष्टि सेनापति को लौड़ा निकालने के लिए नहीं कहती ।

इसी बीच वह तीन चार बार झड़ गई थी, आखिरकार सेनापति सोमनाथ भी अपने पानी की एक-एक बूंद चुत में उड़ेल देता है।



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सृष्टि अपनी आँखे बंद किए हुए अपने बरसों बाद अपनी चुत में आये इस सैलाब से बहुत खुश थी।

उसके चेहरे पर सेनापति असीम आनंद देखता है।

"मजा आया के नहीं महारानी?"

शुरष्टि सेनापति देख के बोलती है ।

"अब अपना ये निकलो!"

सेनापति "गल्प" की आवाज से अपना लौड़ा बाहर खींचता है।




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सृष्टि खड़ी होती है। उसकी चूत से गाढ़ा सफेद पानी उसके जांघो तक बह रहा था।

वो गुस्से में सोमनाथ को देखते हुए उसकी धोती उठा कर अपनी चूत को पूंछती और अपनी जाँघ साफ कर अपना घाघरा चोली पहन कर बाहर जाने लगती है।

सेनापति सोमनाथ वही मुस्कुराते हुए पलंग पर अपने लौड़े को देखते हुए लेट जाता हैं।

शुरष्टि अपने अस्त व्यस्त कपडे को देखते हुए ठीक करने लगती है और फिर अपने बाल बाँधते हुए सेना गृह से बाहर निकलती है तो शाम के समय अपना काम ख़तम कर के कामला अपने गाँव गाजा रही थी। तभी उसकी नज़र शुरष्टि पर पड़ती है।

कमला: अँधेरा हो गया और सृष्टि अब सेना गृह से क्यू आ रही है।

सृष्टि अपना पल्लू ठीक से करते हुए हल्का घूंघट कर लेती है।




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शुरष्टि: (मन में-हे भगवान अच्छा हुआ अँधेरा हो गया है दिन ढल गया। दिन में तो सब यहाँ पर मुझे देख लेते पता नहीं महाराज अगर आ गए होंगे तो मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे और घरवाले भी सोच रहे होंगे के मैं शाम को कहाँ चली गयी?)



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कमला देखती है सेनागृह से सृष्टि निकलती है और छुपती हुई-सी महल में घुस जाती है। कमला से रहा नहीं जाता है वह सेनागृह में जाती है और उसे सेनापति के कक्ष का दरवाज़ा खुला दिखता है, जिसे शुरुआत जल्दबाजी में खोल कर चली गई थी।

कमला दबे पांव आकर सेनापति की खिड़की की दरार से अंदर देखती है तो पाती है की सेनापति नंगा है अपने हाथ में लौड़ा लिए सहला रहा है या उसके लौड़े पर पानी चमक रहा है। खेली खाई कमला समझ जाती है कि ऐसा हाल तो चुदाई के बाद होता है-है । कमला लौड़े का कमाल समझ जाती है। बिस्तर की भी दशा ठीक नहीं थी और कपडे भी इधर उधर फेंके हुए थे ।

कमला: (मन में-तो महारानी सृष्टि अपनी प्यास तुम यहाँ बुझा रही हो!)

और कमला एक मुस्कान के साथ दबे पाँव वहाँ से निकल अपने घर चली जाती है।


जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 63

अपनी जन्म भूमि


सेनापति से चुद के महारानी शुरष्टि चारो ओर अपने नजर दौड़ा कर अपने बाल को बाँधते हुए अपने महल में घुस जाती है।

शुरष्टि घर में महौल ठीक देख राहत की सांस लेते हुए अपने कक्ष में जा ही रही थी की राधा उसे देख पूछती है।



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राधा: क्या हुआ महारानी आप इतना पसीना-पसीना क्यू हो?

शुरुष्टि: वह बस तेज़ चलने के कारण से हूँ।

राधा: महाराज आये हैं वह बहुत समय से राज माता रानी जीविका की कक्षा में आप का इंतजार कर रहे हैं।


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ये कह कर राधा चली जाती है।

शुरष्टि: (मन में:-अब क्या जवाब दूंगी। हे भगवान बच्चा ले! शुरष्टि चुदाई के बाद से हुए अपने अस्त व्यस्त घाघरा चोली को ठीक करते हुए, न चाहते हुए भी अपनी सास राजमाता जीविका के कक्ष में चली जाती है।

शुरुष्टि: सांसु माँ!



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जीविका: आओ बहु अंदर आ जाओ!

अंदर जीविका लेटी गई थी और राजपाल पलंग के किनारे बैठा हुआ था।

जीविका: कहा थी बहू?



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शुरुष्टि: वह माँ जी वैध जी ने कहा है शाम को चलने के लिए।

राजपाल: महारानी हम सब आपके लिए चिंतित थे और ये आपके माथे पर पसीना क्यू है?



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शुरुष्टि झट से बिना देरी के अपना माथा अपने हाथ से पूछ लेती है।

राजपाल: वैसे कहा थी आप 1 घंटे से?

शुरष्टि: वह चलते हुए नदी किनारे चली गई थी।

जीविका: ठीक है बहू पर भरी अकेली शाम मत निकला करो। किसकी नज़र कैसी रहती है हम बता नहीं सकते।

शुरष्टि: जी सासु मां, अब मैं चलती हूँ।


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शुरष्टि आकर अपने कक्ष में बिस्तर पर आकर पट लेट जाती है और हाफने लगती है और जैसे ही वह आँखे बंद करती है तो शुरुष्टि को अपनी जोरदार चुदाई याद आती है। शुरुष्टि का अंग-अंग दुख रहा था। नस्स-नस्स फट रही थी फिर आँखे बंद कये शुरष्टि सो जाती है।


थोड़े समय बाद राधा आती है।

राधा: महारानी! "हे महारानी" "महारानी इतनी जल्दी सो गई"

कुछ देर आवाज देने पर सृष्टि एक आँख खोलती है।



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राधा: महारानी खाना खा लो!

शुरुआत का शरीर टूट रहा था वह बस अपने हाथ से इशारा करती है कि उसे सोने दो। उसे खाना नहीं खाना।

राधा: (मन में:-ऐसा क्या हो गया जो महारानी आज इतनी जल्दी सो गयी। खाना भी नहीं खाना।)

सृष्टि फिर से आखे बंद कर सो जाती है।



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पारस मैं

सुल्तान मीर वाहिद के कहे अनुसर देवराज अपनी बहन तथा भांजे को खाना खिलाने के लिए-लिए एक बड़े कमरे में ले जाते हैं जहाँ पर बहुत बड़ी मेज और बहुत-सी कुर्सीया लगी हुई थी।

देवराज: बैठो भांजे!

सुल्तान: आप लोग बैठिये।

तभी वहा पर बद्री या श्याम आजाते हैं जिन्हे शमशेरा अपने साथ ले कर आया था।

देवरानी शमशेरा को देख मुस्कुराती है।




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सुल्तान: बेटा शमशेरा महारानी देवरानी से मिलो और ये इनके बेटा बलदेव1

शमशेरा एक टक दोनों की ओर देख मुस्कुराता है।

"अब्बा हुजूर इनसे मेरी मुलाकात पहले भी हुई है।"

सुलतान: कब हुई?

शमशेरा: बस जब हम घटराष्ट्र गए थे।

सुलतान: तो क्या हुआ इन्हे सलाम करो। ये आपकी माँ जैसी है। इन्हें सलाम करो शहजादे!



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शमशेरा: सलाम खाला जान!

देवरानी: प्रणाम बेटा!



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और दोनों मस्कुराते है।

देवरानी: सुल्तान जी बात ऐसी है सिर्फ शमशेरा की वजह से आज मैं मेरे अपने भाई से इतने दोनों बाद मिली हूँ। वह मुझे घाटराष्ट्र में मिले थे और देवराज भैया के बारे में बताया था।

सुल्तान: तब तो मुझे आप दोनों का तारूफ भी नहीं करवाना चाहिए था और सुलतान हसने लगते है।

सुल्तान को देख सब हसने लगते हैं।

देवरानी: शमशेरा बेटा तुम बद्री या श्याम से मिले के नहीं।

शमशेरा: हाँ मिल लिया खाला!

देवरानी: हाँ ये बलदेव के बचपन के साथी हैं और गुरुकुल में भी बलदेव के साथ थे।


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शमशेरा: सब से तो मिल गए पर बलदेव जी आप चुप क्यू है कहीं आपको ज्यादा भूख तो नहीं लगी?

बलदेव: नहीं शमशेरा भाई मैं बस अपनी बारी का इंतजार कर रहा था और वैसे भी जब बड़े बात कर रहे हो तो छोटो का बोलना उचित्त नहीं होता है।

शमशेरा: वाह भाई आप तो बहुत नेक हो। सब खाला की हिदायत का कमाल है। है ना देवरानी खाला?



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देवरानी मुस्कुरा देती है।

बलदेव: वैसे आपका धन्यवाद हमें अपनी मामा और माँ को उनके भाई से मिलवाने के लिए. माँ हमेशा माँ की बात करती थी।

शमशेरा: भाई हम धन्यवाद भर से काम नहीं चलते बदले में कुछ तो हमारी भी मानियेगा।

देवराज: कर दी ना राजाओ वाली बात!

शमशेरा: मेरे अब्बा पूरी दुनिया पर हुकूमत ऐसे ही नहीं कर रहे हैं थोड़ी बहुत लेन देन तो हम भी जानते हैं। आखिर हममे भी खून है शहंशाह का।

सुल्तान: आप सब खाना खाइये!


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मेज़ पर हजारो किस्म के फल या खाना सजा हुआ था।

श्याम बद्री देवराज एक कुर्सी पकड़ कर बैठ जाते हैं।

देवराज: बहन देवरानी आप अंदर जा कर मल्लिका जहाँ के साथ भोजन कर लीजिये।

सुल्तान बीच वाली बड़ी कुर्सी पर बैठते हुए.

"हाँ बहना आप अंदर चले जाएँ!"

बलदेव: मामा!

देवराज: बोलो भांजे!

बलदेव: मामा मैं कुर्सी पर बैठ कर नहीं खा सकता मुझे नीचे आसन पर बैठ कर खाना है।

सुल्तान: तो ऐसा कीजिए बलदेव, आप भी मल्लिका-जहाँ हुरिया के कमरे में जा कर खा लीजिए.

सब खाने लगते हैं बलदेव और देवरानी उठ कर मल्लिका-जहाँ हुरिया के कक्ष की ओर आ जाते हैं और दरवाजे पर खड़े हो कर मलिका को पुकारते हैं।



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"मल्लिका जहाँ!"

"कौन?"

"मैं देवरानी!"

"अरे आओ बहना!"

देवरानी अन्दर आती है।

"वो बलदेव भी है।"

"बुला लो उसको भी देवरानी!"

देवरानी: बलदेव अन्दर आजाओ!

हुरिया: आरी देवरानी आप मुझे दीदी या आपा कहो मल्लिकाजहाँ तो सब कहते हैं।

देवरानी: ठीक है दीदी हेहे!

बलदेव: हुरिया खाला! मुझे बहुत भूख लगी है!

हुरिया: तो वाहा सब खाने गए थे तो उनके साथ क्यू नहीं खाया?

देवरानी: दीदी! वह बलदेव कह रहा था कि उसे नीचे बैठ कर खाना है!

हुरिया: हा हन समझ गई! आओ मेरे साथ!

हुरिया उन दोनों को पास में एक कक्ष में ले जाती है।

"देवरानी तुम दोनों इस दस्तरखान पर खा सकते हो। हमने इसे खास कर नीचे बैठ कर खाने के लिए बनाया है।"

देवरानी: ठीक है दीदी!



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हुरिया दो बार ताली बजाती है।

या एक दासी उसके पास आकर बोलती है।

"जी मलिका जहाँ!"

"इन दोनों के लिए खाना यहाँ लगा दो!"

हुरिया वहा से चली जाती है।

दोनों का खाना आता है या दोनों बैठ कर खाने लगते हैं

बलदेव: खुश तो हो मेरी जान!


देवरानी: बहुत खुश, मेरे राजा! तुमने मुझे वह खुशी दी है जिसका कर्ज मैं जीवन भर, नहीं चुका सकती।

बलदेव: माँ तुम्हारे लिए मैं अपनी जान दे दूं तो भी तुम्हें नहीं कहूंगा कर्ज चुकाने के लिए। ये तो मामुली-सी बात है।

देवरानी: हाँ अब खाना खाओ मजनू मत बनो।

बलदेव: अपने हाथो से खिलाओ!




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देवरानी मुस्कुराते हुए अपने हाथों से निवाला तोड़ कर खिलाने लगती है। हर बार बलदेव निवाले के साथ देवरानी की उंगली भी चाट लेता है।

"बदमाश!"

"तुमने ही बनाया है।"



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बलदेव भी देवरानी को निवाला खिलाता है

हुरिया आकर अपने कक्ष में बैठती है।

हुरिया: देखती हूँ दोनों को किसी चीज की कमी तो नहीं हुई-फिर कुछ सोचते हुए वापस उस कक्ष में लौट जाती है जो हुरिया के कक्ष की ठीक बगल में था।

हुरिया आकार दरवाजे पर खड़ी होती है देखती है देवरानी अपने हाथों से अपने बेटे को खिला रही है।

हुरिया: इतना बड़ा हो गया फिर भी अपने हाथों से नहीं खाता क्या...?

बलदेव के मुंह में तभी मिर्ची चली जाती है और चिल्लाता है।

बलदेव: आह! मिर्ची खा लि माँ पानी दो।


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देवरानी पास राखे पानी के जग से पानी डाल कर पानी बलदेव को देती है।

जैसे वह झुकती है उसके आधे से ज्यादा वक्ष ब्लाउज से बाहर आने को थे ।

ये दृश्य देख हुरिया हेरान थी।

क्यूके पानी पीते हुए बलदेव भी तिरछी नजरों से अपनी माँ के बड़े दूध घूर रहा था।

हुरिया 9 मन में-ये लड़की कैसे कपडे पहनती है। जवान बेटे के सामने ऐसा पहनेगी तो वह देखेगा ही। मैं इसको समझाती हूँ।



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हुरिया: खाने के बाद देवरानी मेरे कक्ष में आओ!

भोजन करने के बाद और फिर कुछ देर बातें करने के बाद देवरानी बलदेव की छोड हुरिया के पास जाती है।

"आओ बैठो देवरानी!"

हुरिया: कैसा लगा खाना! किसी चीज़ की कमी तो नहीं हुई ना।

देवरानी: धन्यवाद दीदी! ये सब के लिए! मैं शमशेरा से मिली और भाई देवराज से भी ।

हुरिया: मेरे बच्चे ने शैतानी तो नहीं की।

देवरानी: नहीं दीदी आज उसके कारण से ही मैं यहाँ हूँ।

हुरिया: हाँ शमशेरा 25 का हो गया पर अभी मुंह फट हो गया है । पर जैसी बलदेव के पास है वैसी होशमंदी नहीं है उसके पास।

देवरानी: ऐसा नहीं है दीदी वह नटखट जरूर है पर दिमाग या बुद्धि में किसी से कम नहीं है । रही बात बलदेव की तो वह बचपन से ही कड़े अनुशासन में रह रहा है।

हुरिया: वैसे कितने साल का है वो।

देवरानी: बलदेव तो सिर्फ 18 साल का है पर परिपक्व हो गया है।

हुरिया: ये तो है उसके उमर के हिसाब से करोड़ो से बहुत आगे है। देखने में तो लगता है ही नहीं 18 का। ऐसा लगता है 28...30 का होगा। वो तुमसे भी बड़ा लगता है देवरानी!



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देवरानी: वो उसने व्यायाम कर के अपना शरीर बढ़ा लिया है दीदी इसलिए ऐसा लगता है वैसे आपकी उमर कम ही है।

हुरिया: मैं भी 44...45 की हूँ या तुम देवरानी?

देवरानी: मैं 35 वर्षीय हू।

हुरिया: लगती तो हो कम उमर की पर इतनी कम उमर में 18 साल का बेटा।

देवरानी: ये बलदेव तो मेरा 18 लगते ही पैदा हो गया था । दीदी मेरा विवाह जल्दी करवा दिया गया था ।

हुरिया: शमशेरा तो तब पैदा हुआ जब मैं 20 की थी वैसे एक बात पूछनी थी अगर बुरा मत मानो !

देवरानी: आप बड़ी बहन हो। बहन भी कहती हो या पूछती भी हो।



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हुरिया: तुम अपने ब्लाउज में कुछ पहनती हो की नहीं?

देवरानी: नहीं दीदी अंतर्वस्त्र ब्लाउज के साथ पहनना मुश्किल होता है। हमारे यहाँ उसको नहीं पहनते।

हुरिया: ब्रेज़ियर पेहना करो ।

देवरानी: लेकिन आप ऐसा क्यू पूछ रही हो?

हुरिया: बुरा मत मानना पर जब तुम अपने बेटे को खाना खिला रही थी तो तुम्हारा ऊपरी हिस्सा दिख रहा था। जवान बेटे के सामने ऐसे हाल में रहना ठीक नहीं है।


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देवरानी: हम्म्म!

हुरिया: और इससे घर की बरकत ख़तम होती है। इसलिए जितना हो सके अपने आप को ढक कर रखो!

देवरानी: दीदी मैं भी पारसी हूँ, घर पर किसी अंजन के सामने अपना घूंघट तक नहीं उठाती ।

हुरिया: दूसरो के सामने जैसे घूंघट करती हो वैसा घूंघट मत करो। पर कम से कम अपने बदन को छुपा के रखो । वैसे ये हो सकता है कि कभी-कभी गलती हो जाती है।

देवरानी: खैर मैं अब से ध्यान दूंगी दीदी! वैसे ये ब्रेज़ियर क्या होता है?


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हुरिया: तुम्हें तो पता ही नहीं है । चलो मेरे साथ आज मैं तुम्हे देती हूँ।

हुरिया अपना अलमीरा खोल कर अपने कपड़े हटाने लगती है और कुछ 6 7 जोड़ी ब्रेज़ियर निकाल कर देवरानी को देती है ।

"ये लो देवरानी आज से तुम इन्हे रख लो।"

देवरानी: पर दीदी!


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हुरिया: रख लो! ये बहुत कीमती है। हम जब फ्रांस गए थे तो हमने लिए थे । इन्हे मैंने एक बार भी नहीं पेहना है और इसमें जंघिया भी है।

देवरानी: अब पता नहीं ये कैसा होता है, हम तो बस एक वस्त्र का पट्टी बना कर पहन लेते हैं, अपने वक्ष को आकार में रखने के लिए.

हुरिया: ये तुम पहनो के देखो इसमें तुम और सुंदर लगोगी । ये कुछ दिनो पहले ही ब्रिटेन की महारानी ने पहनना शुरू किये है । तो कुछ दर्जी अब सिल कर बड़े भुगतान पर फ्रांस में बेचते है। बहुत कम लोग इनके बारे में जानते हैं।

देवरानी: मैं भी पहली बार देख रही हूँ।

हुरिया: तो चलो मैं तुम्हारे कमरे तक छोड़ दूं!

देवरानी हुरिया का दिया हुआ सामान एक कपड़े से ढक कर उसके साथ जाने लगती है।


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हुरिया: बड़ी शर्मीली हो!

देवरानी: हेहे!

तभी सामने से देवराज के साथ बद्री या श्याम आ जाते हैं।

देवराज: बहन देवरानी तुम मल्लिका जहाँ के बगल वाले कक्ष में रहो और बलदेव बद्री तथा श्याम मेरे बगल में अतिथि घर में रुक जायेंगे।

देवरानी: पर भैया तीन लोग एक कमरे में, बलदेव को मेरे साथ सोने दो ना भैया!

हुरियाःपर देवरानी!

देवराज: ये क्या कह रही हो बहना बलदेव अब बच्चा नहीं रहा, जो अब भी तुम्हारे पल्लू में बंधा रहे।

देवरानी: (मन में-वह जवान हो गया है भैया इसलिए तो कह रही हूँ की मेरे साथ सोए और कहीं और जा कर अपना जवानी व्यर्थ नहीं करे।

बद्री: (मन में-सोने दो मामा दोनों चोदा चोदी खेलेंगे।)

बलदेव: मामा! बात ये है ना के माँ आज कल डर जाती है रात में, इसलिए कुछ दिनों से मैं उनके पास सो रहा हूँ।

ये सुन कर श्याम बलदेव को आश्चर्य से देख रहा था।

देवरानी: हाँ माँ या नई जगह है तो रात में पक्का डरूंगी।

देवराज: ठीक है ठीक है तो फिर सो जाओ बलदेव के साथ।

बद्री: (मन में-क्या भयानक युग है भाई खुद कह रहा है, अपनी बहन से, जाओ चुद आओ अपने बेटे से!)

हुरिया: आप सब आराम करो मैं चलती हूँ।

देवरानी: लंबी यात्रा से मैं भी थक गई हूँ ।



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देवरानी भी हुरिया के पीछे जाने लगती है । उसके साथ बलदेव भी मुड़ता है

देवराज: बलदेव तुम कहा जा रहे हो?

बलदेव: मैं भी थक गया हूँ माँ के साथ जा कर सो जाता हूँ।

ये सुन देवरानी अंदर से लज्जा जाती है और मुस्कुरा देती है।

देवरानी (मन में: "बहुत जल्दी है मेरे सैया राजा को मेरे साथ सोने की।")

देवराज: तुम रुको बलदेव हम तुम्हें बद्री और श्याम के साथ महल घुमाते हैं।



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बलदेव का चेहरा उतर जाता है।

जिसे देख देवरानी मुस्कुरा देती है और मन में कहती है । "बदमाश! "

देवरानी जाते हुए-"बेटा जाओ अपने मामा के साथ तब तक मैं बिस्तर पर रहूंगी ।तुम आओगे फिर सोएंगे! ।"

बलदेव मतलब समझ कर मुस्कुराता है। बलदेव ख़ुशी-ख़ुशी अपने मामा के साथ जाता है और कुछ देर घुमने के बाद अपने कक्ष में जहाँ उसे उसकी माँ के साथ रहना था वहा आता है।

"माँ किधर हो?" "मेरी जान किधर हो?"


"माँ"

कमरे में घुस कर बलदेव आवाज लगा रहा था तब भी वह देखता है सँघड़ से कुछ आवाज आती है और दरवाजा खुला हुआ था । वह अंदर जैसा जाता है अंदर का दृश्य देख उसके आखे वही जम जाती है और उसकी सांसें लगभग बंद हो जाती है।




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देवरानी एक झीने-सी कपडे से अपने बड़े वक्ष को छुपाने की कोशिश कर रही थी और जैसे ही बलदेव पर नजर पड़ती है । वह अपनी नजर नीचे कर कहती है ।

"बलदेव! में नहा रही हूँ तुम जाओ ना यहाँ से"

बलदेव एक टक देवरानी के बड़े-बड़े पपीतो जैसे वक्षो को घूर रहा था । उसके वक्ष पर घुंडी भी साफ नजर आ रही थी जो किसी के सिक्के के गोलाई जैसी थी।


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बलदेव देख कर अपना होठ दबाता है।

देवरानी: जाओ ना बलदेव मुझे शर्म आ रही है

बलदेव: क्यू अपने होने वाली पति से क्यू शर्मा रही हो!

देवरानी अब और शर्मा जाती है

बलदेव: क्या ख़ूबसूरत वक्ष है मेरी रानी मेरी पत्नी के!




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देवरानी: तुम्हें मेरी कसम मेरे सैंया जाओ!

बलदेव हड़बड़ी में बाहर निकलता है या फिर कक्ष का दरवाजा बंद कर देता है...

जारी रहेगी
 
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