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deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 71

हाथ में अंगूठी

देवरानी बलदेव के पीछे भाग रही थी और बलदेव एक कक्ष में जा कर रुक छुपने की कोशिश करता है पर देवरानी भी उसके पीछे आ जाती है।

देवरानी: कमीने क्या सीखाता है तू उनको?

बलदेव: अब माँ अगर वह आपको भाभी नहीं कहेंगे तो क्या दादी कहेंगे!

देवरानी बलदेव पर झपट्टती हुए धीरे से उसके कंधों पर हाथ मारने लगती है।

बलदेव हसने लगता है।

बलदेव हसता जा रहा था और देवरानी उसे मार रही थी, आखिरकर देवरानी थक कर अपना हाथ पकड़ कर कहती है ।

"उफ़ तुम्हारा बदन है या पत्थर मेरा तो हाथ ही दुखने लगा।"

"हाहा मारो और मारो मुझे माँ! "

देवरानी ऐसे बलदेव के हंसने से खुद भी हंस देती है।

बलदेव देवरानी को अपनी बाहों में समेट लेता है।

"रानी तुझे वह मेरी मित्र, भाभी ही कहेगा चाहे तुझे आपत्ति हो या ना हो!"

देवरानी मुस्कुराती हुई शरम से बलदेव की बाहों में झूल जाती है।

देवरानी: "बेशरम!"

बलदेव: देवरानी मेरी रानी रिश्ता किया है तो निभाओ डरो मत!

बलदेव देवरानी को होठों की ओर जाता है ओर उसे चूमना शुरू कर देता है।

" गलप्प्प्प गैलप्प्प्प गप्प्प्प स्लुरप्प्प्प्प्प!

गैलप्पप्प गैलप्पप्प गैलप्प!

गैलप्पप्प गैलप्पप्प स्लरप्प उम्म्म अम्म्हा"

बलदेव देवरानी को आगे बढ़ा कर उसके चुतड मसल देता है।

देवरानी के कानो में लोगों की बातें की आवाज आती है और वह बलदेव को धक्का दे कर अलग करती है।

"चलो राजा हम देवगढ़ घूम ले और फिर हमे मंदिर और पास के बाज़ार भी घूमना है, कई वर्ष हो गए मुझे वह गए हुए ।"

"ठीक है जैसा मेरी रानी कहे।"

दोनों बहार आते हैं तो देखते हैं बद्री और श्याम, देवराज से मिल कर कुछ बातचीत कर रहे थे।

देवराज: आओ बहना कैसा लग रहा है अपने घर आ कर?

देवरानी: भैया बहुत ख़ुशी हो रही है इतनी की जिसको शब्दों में नहीं कह सकती, वैसे कुछ बदला-सा लग रहा है ना।

देवराज: आओ बैठो...दोनो...वैसे हमारा जो महल पहले था वह तो शत्रु के आक्रमण से उसे बुरी क्षति पहुची थी और इसे हमें तोड़ कर दुबारा बनाना पड़ा।

बलदेव या देवरानी अपना-अपना आसन ग्रहण करते हैं।

बद्री: महल तो है बहुत सुंदर मामा जी!

देवराज: हमारे देवगढ़ की सुंदरता भी पहले जैसी नहीं रही ।

देवरानी: भैया आप उदास ना हो । ये घर सुना हो गया है आपको विवाह कर लेना चाहिए था।

देवराज: बहना कैसे कर लेता मैं विवाह, जब मेरा राज्य या मेरे राज्य के लोगों कि जान खतरे में हो और ये खतरा भी है कि मेरा परिवार खत्म हो जाएगा । तो समझो तुम ऐसे में कैसे करता!

देवरानी की आखों में आसू आते है।

देवरानी: "भैया आपका परिवार नहीं हुआ ख़तम । हम सब हैं ना!"

बद्री: मुझे तो सुल्तान बहुत लालची लगता है वैसे भी मैंने सुना था बहुत अय्याश किस्म का इंसान है ...!

देवराज: वह जैसा भी हो पर मंगोलों से हमारे डूबते राज्य को उन्होंने ही बचाया है, बेटा बद्री, इसलिए मैं उनका नमक खा कर उनके विरुद्ध नहीं जा सकता।

बद्री: पर उनकी नज़र तो मैने सुना है कुबेरी राज्य पर है।

बलदेव: हाँ मामा जी राजा रतन सिंह के खजाने के पीछे हैं सब।

देवराज: बच्चो राजा रतन सिंह ने जो कारनामा किया है उसका उसे भोगना होगा । उसने छल कपट से मेरी बहन देवरानी का विवाह करवा दिया।

देवरानी: भैया जाने दीजिए जो हो गया वह हो गया।

बलदेव: नहीं मामा राजा रतन ने क्या नाना के ऊपर दबाव बना कर विवाह करवाया था? ये विवाह क्या उनको सहमती के बिना हुआ था?

देवराज: हाँ मेरे भांजे पर छोडो, उस बात को, जो बीत गई सो बीत गई. मेरी बहन वहा खुश है, इस से बढ़कर मुझे या क्या चाहिए!

देवरानी अंदर से ये सुन कर टूट कर रो कर भैया से कहना चाहती थी कि उसे कितना कष्ट हुआ पर वह मुस्कुरा कर अपना दर्द छुपाती है।

सब शाम तक वहीँ रुकते हैं, फिर शाम में वापिस निकल जाते हैं।

रास्ते में मंदिर के पास घोड़ा रुकवाते हुए देवरानी बोलती है ।

"भैया आगे थोड़ा ठहरे!"

सब रुकते हैं।

"क्या हुआ बहना? "

"भैया मुझे ये मंदिर गए मुझे बहुत बरस हुए, आज जाने की इच्छा है।"

देवराज मस्कुराता है ।

"तुम एक दम माँ पर गई हो बहना!"

देवरानी अपने घोड़े से उतरती है और फिर सब बारी-बारी से सीढ़ियों पर चढ़ने लगते है।

देवरानी बलदेव के पास आकर चलने लगती है।

देवरानी: ये भव्य मंदिर बहुत पुराना है बेटा, जब मैं छोटी थी तो माँ के साथ यहाँ रोज़ आती थी।

बलदेव: माँ मुझे राजा रतन की बात बताओ ।

देवरानी: चुप करो और अभी उसका ना सोचो । बात ये है की यहाँ पारस में पहले हमारे पुरवज़ो का राज था, पर आज सुल्तान ने कब्ज़ा किया हुआ है और वह भी तो सिर्फ राजा रतन के लालच के कारण से ऐसा हुआ है ।

बलदेव: हम्म्म!

सब मंदिर में पहुच कर हाथ जोड़ कर पूजा शुरू कर देते हैं।

देवरानी: बलदेव! माता से मांग लो जो भी मांगना है।

बलदेव अपना हाथ जोड़े खड़ा हो जाता है।

बलदेव मन में"माता मेरे जीवन में देवरानी दे दे, जीवन भर तेरा अहसान मंद रहूंगा ।"

फिर बलदेव घंटी बजा कर वापस सीढ़ियों से नीचे आता है।

देवरानी आख बंद किये हुए प्राथना कर रही थी ।

"माता रानी मेरा बलदेव को और भी शक्तिशाली बनाऔ! उसे धैर्य, शक्ति दे! मेरे राजा को हर शत्रु के युद्ध से बचाना, माता आपकी छाया में मेरा बलदेव हमेशा, ही हँसता खिलखिलाता रहे।"

और फिर देवरानी भी घंटी बजाती है।

सब वापस आकर अपने घोड़ों से निकल जाते हैं।

कुछ देर घोड़ों को भागाते हुए वे सब देवगढ़ के बाज़ार के पास से निकल रहे थे।

इस बार देवरानी अपना घोड़ा देवराज के सामने खड़ा कर देती है।

देवराज अचानक से अपने घोड़े को रोकता है।

देवराज: अब क्या हुआ बहना?

देवरानी: भैया, आपकी आज्ञा हो तो बाज़ार भी घूम ले!

देवराज मुस्कुराते हुए ठीक है बहना!

सब घोड़ा बाज़ार की ओर घुमा लेते हैं।

श्याम: वाह क्या सुंदर दृश्य है इस संध्या में बाज़ार का आकर्षण का क्या कहना है!

बद्री: मित्र तुम चुप नहीं रह सकते।

श्याम: तुम्हें कैसे चुप करना है अभी बताता हूँ।

श्याम अपना घोड़ा बद्री की ओर भागाता है।

फिर बद्री तेजी से बाज़ार की ओर घोडा भगाता हुया ले जा रहा था।

श्याम: क्यू डर गए क्या युवराज बद्री शेर की हुंकार से?

बद्री: शेर हाहा चूहा हो तुम! चूहा!

दोनो को ऐसे लड़ते हुए देख, सब हंसने लगे।

बाज़ार पहुछ कर सब रंग बिरंगी चीज़ो में खो जाते हैं, वहाँ श्याम खरीदारी करने लगते हैं।

देवरानी: भैया आप भी कुछ... ले लो!

देवराज: नहीं बहना तुम लोग लो जो भी आप को पसंद आये ।

तभी बाज़ार में आते जाते हुए लोग देवराज को मिल कर नमन करने लगते हैंऔर उनमे एक व्यक्ति प्रणाम कर कहता है ।

"महाराज, आप!"

"अरे! मेरे मित्र कैसे हो?"

देवराज: अच्छा तुम सब आगे घूम आओ, तब तक मैं अपने एक पुराने मित्र से बात कर लेता हूँ ।

देवरानी: ठीक है भैया।

श्याम और बद्री खरीददारी करते हुए आगे निकल जाते हैं, उनके पीछे बलदेव और देवरानी भी चल रहे थे।

तभी बलदेव की नज़र कहीं जाती है और वह उस दुकान पर खड़ा हो जाता है।

बलदेव: ये क्या भाव है?

दुकानदार: श्रीमान ये देवगढ़ के खास मोती है पर ये सिर्फ स्त्रीओ के लिए है।

फिर ये कह कर दुकानदार हसने लगता है, बलदेव को रुका देख देवरानी उसके पास आती है।

बलदेव: भैया ये अंगुठी मुझे चाहिए

पास में खड़े बद्री और श्याम भी वहाँ आ जाते हैं।

देवरानी: क्या हुआ भैया आप इनपे क्यू हस रह रहे हो?

दुकानवाला: आपकी बड़ी परेशानी हो गई है। मैं तो श्रीमान को बस ये कह रहा था कि ये अंगुठी जो है सब स्त्रीयो के लिए है, पर ये इन्हे खरीदने की जिद्द किये जा रहे है।

बद्री बात को समझ गया ।

बद्री: तुम्हें पता है तुम किस से बात कर रहे हो मुर्ख । जब अंगुठी उन्हें पसंद आई तो इसका मतलब ये नहीं कि वही इसे पहने। वह इसे भेट भी दे सकते हैं ।

दुकानदार डरते हुए कहता है ।

"जी श्री मान ये तो मैंने सोचा ही नहीं।"

बद्री: मुर्ख!

ये सुन कर सब हंसते हैं।

दुकंदर: तो दीजिये अंगूठी का दाम 50 सोने की सिक्के और ये अंगूठी ले लो ।

बलदेव अपनी जेब से सिक्के निकाल कर देते हुए कहता है।

दुकंदर: महाराज ये तो बहुत ज्यादा है। इसका मैंने सिर्फ 50 सिक्के मांगा था और आप 100 दे रहे हो।

बलदेव: जिसके लिए ले रहा हूँ उसके सामने ये कीमत कुछ भी कुछ नहीं है ।

देवरानी अपना सारा घुमा कर शर्मा कर इधर उधर देखने लगती हैऔर अपने भाई को दूर खड़ा हुआ देखती है जहाँ वह अपने मित्र से बात कर रहे थे ।

बद्री: वैसे मुर्ख! जो तुम्हारे सामने स्त्री खड़ी है ये अंगुठी उसके लिए ही है।

दूकानदार ये सुन कर देवरानी को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहता है ।

दूकानदार: मुझे ऐसा लगता है मैंने कहीं इन्हें देखा है।

देवरानी: बद्री तुम भी ना...!

बद्री: क्यू क्या हुआ भाभी माँ आपके लिए तो उसने लिया है मैं तो कहता हूँ इसे अभी पहन लीजिये ।

बलदेव: बद्री...!

दूकानदार: हाँ महाराज ये लीजिए अंगूठी इनके हाथो पर ये और भी सुंदर हो जाएगी ।

बलदेव सोच रहा था कहीं देवरानी इन सब बाते से कहीं यहीं पर तांडव ना कर दे।

देवरानी अपना सर झुकाए खड़ी थी।

दुकंदर: लगता है आप दोनों कहीं के राजा रानी है ।

बद्री: हाँ होने वाले हैं।

बलदेव अंगूठी लिए हुए खड़ा था और पास में खड़े लोग भी तब से इन लोगों की बात सुन हसे जा रहे थे और वह भी कहते हैं।

"भाई आज तो बाजी मार दो, बाज़ार है कोई नहीं देखेगा!"

बलदेव देवरानी की आंखों में दिखता है और अपने हाथ में अंगूठी को लिए आगे बढ़ता है।

देवरानी अपना हाथ जल्दी से आगे बढ़ाती है।

बलदेव: क्या आप हमारी बनोगी जीवन भर के लिए?

देवरानी: जी बनूंगी! फिर वह बलदेव की आँखें देखती हैं जिसमें उसे सिर्फ प्यार नज़र आता है।

बलदेव अंगूठी देवरानी की उंगली में पहन रहा था जिसे देख बद्री ताली मारने लगता है और उसके साथ सब ताली बजाने लगते हैं।

जैसे ही देवरानी अंगुठी पहनती है।

देवरानी: "अब चलो!"

और देवरानी अपने पैर देवराज की ओर घुमा कर चलने लगती है।

बलदेव: यार बद्री! वह नाराज़ हो जायेगी।

बद्री: तो तुम मना लेना।

बद्री मुस्कुराता है।

तीनो देवरानी के पीछे आते है।

देवरानी अपने भाई के पास पहुँच कर कहती है ।

"भैया आपके मित्र चले गये?"

"हाँ देवरानी! तुम लोगों की खरीददारी पूरी हो गई?"

"जी भैया!"

सब वहाँ पर पहुँच जाते हैं श्याम अपना सामान घोड़े पर लाद लेता है।

देवराज तभी देवरानी के हाथ में अंगुठी देख लेता है ।

"वाह देवरानी तुमने अंगुठी ली!"

"जी भैया वह दिल किया तो ले ली।"

बद्री ORश्याम के कान से धुंआ निकल रहा था । देवरानी अपने भैया से ये नहीं बताती है के ये बलदेव ने उसे दी है।

सब घोड़े पर सवार हो कर सुल्तान के महल पहुँचते हैं...।

जारी रहेगी
 

pie

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Are you planning to continue this story where original writer has left - more intense and erotic sexual duel of sham shera and hooriya, its a reader's demand to continue beyond that...
 

deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 72

रूठना मनाना प्यार मोहब्बत

सुल्तान के महल पहुँच कर सब आराम करने चले जाते हैं या रात हो जाती है सब धीरे-धीरे खाने की तैयारी शुरू कर देते हैं।

सब एक साथ बैठ कर भोजन कर रहे थे।


FOOD

हुरिया, देवरानी तुम्हारा देवगढ़ का सफर कैसा रहा?

देवरानी, दीदी बस ऐसी ख़ुशी मुझे कभी नहीं मिली जितनी मुझे देवगढ़ और यहाँ रह कर मिल रही है।

सुल्तान, देवराज जी आपने सैनिकों को खबरदार किया के नहीं, हमे दुश्मनों से हमले की उम्मीद है।

देवराज: जी सुल्तान मैंने सभी को और मंत्री जी सचेत कर दिया है कि आक्रमण हो सकता है और साथ ही उन्होंने आश्वासन दिया है कि देवगढ़ पर फिर हमला करने की अब मंगोलों की हिम्मत नहीं हैं ।


सुलतान: चलो अच्छी बात है।

सब खाना खा कर उठने लगते हैं फिर सोने के लिए अपने कक्ष में जाने लगते हैं।

अब सुल्तान और हुरिया बैठे बात कर रहे थे । उनको बलदेव भी बता रहा था कि उसको पारस घूम कर कितना मजा आया ।

देवरानी: बलदेव अगर तुम्हें नींद नहीं आती तो तुम पारस की बात करते रहो, मैं चली सोने।





H2
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ये देख सुन कर हुरिया हस देती है जो बलदेव की समझ नहीं आता।

सुल्तान: सोने का वक्त तो अब मेरा भी हो गया है...भाई बलदेव जाओ माँ का कहना मानो।

हुरिया इस बार ठहाका लगा कर जोर से हसती है फिर उसका चेहरा लाल पड़ जाता है तो सुल्तान उसे निहारने लगता है।


बलदेव उठ कर देवरानी के पीछे जाने लगता है।

हुरिया: सुल्तान आप भी जाएँ आराम कीजिये। मुझे भी नींद आ रही है ।

सुलतान: मल्लिका ए जहाँ आप जाएँ अपने होज़रे में हमारा इंतज़ार करें ।आज हम आ रहे हैं।




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ये सुन कर देवरानी पलट कर हुरिया को कंखिया से देख आख मार कर मुस्कुरा कर चली जाती है।



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जिसे देख हुरिया शर्म से सर नीचा कर लेती है ।

हुरिया: जी सुल्तान जैसी आपकी मर्जी!

हुरिया देवरान एवं बलदेव के पीछे चल रही थी, क्यू के उसका कक्ष भी देवरानी के कक्ष की बगल में था।

हुरिया को अपने पीछे आता देख देवरानी अपनी कक्ष के दरवाजे पर रुक जाती है, जिसे देख बलदेव कहता है ।


bal1

बलदेव: अब क्यू रुक गई माँ नींद नहीं आ रही क्या अब?

तब तक हुरिया देवरानी के पास मुस्कुरा कर आती है।

देवरानी: बेटा तुम जाओ मैं आती हूँ।

हुरिया: क्यू बहन आज बहुत जल्दी सोने चली तो तुम?

बलदेव: चलो ना माँ, अब क्या बाते बनाने लगी!

देवरानी: बोला ना जाओ बलदेव तुम जाओ! अपने वस्त्र बदलो, मैं आती हूँ, तुम हम औरतों की बात सुन क्या करोगे, मैं मलिका से कुछ बात कर के आती हूँ।

बलदेव ये सुन कर अंदर चला जाता है।




2WIVES
हुरिया: अरी रे वह चला गया! कैसी बात करती हो, वह नाराज़ हो गया लगता है।

देवरानी: और कैसी बात करूँ, उससे, आप भी ना दीदी!

हुरिया: प्यार से करो!

और फिर हुरिया मुस्कुराती है

देवरानी: वो तो ऐसे रोब दिखाता है जितना कभी मेरी पति भी ना दिखाए।

हुरिया: कमिनी तुम्हें प्यार तो पति का ही दे रहा है।

देवरानी: अभी बना नहीं है ना, और जो आप सोच रही हो, अभी तकवैसा कुछ नहीं हुआ है ।

हुरिया: अब तो तुम सोचो जो करना है करो, गुनहगार भी तुमको होना है।




devr1
देवरानी: अरे आप छोडो ये पाप पुण्य की बाते, जो होता है वह होने दो पर मेरी शादी कराओ तभी बात आगे बढ़ेगी।

हुरिया: (मन में-ए खुदा बचा ले इस मुसीबत से) छोडो ये सब! वापस कब जाना है?

देवरानी: आप चिंता न करें! हो सका तो हम कल ही निकल जाएंगे! क्यूकी बलदेव के पिता ने दो दिन में लौट आने के लिए कहा था। उन्हें अंदेशा है कि कही शमशेरा या दिल्ली का शहंशाह हमला ना कर दे, अपनी सेना ला कर घाटराष्ट्र या कुबेरी पर।




H5
हुरिया: मैं तो इन जंगो से आज आ चुकी हूँ, बहन। सुल्तान की भी अपनी पूरी उमर जंग में बीत गयी है ।

देवरानी: पर आज आपकी बारी है, लगता है आज सुल्तान का आखिर अपने डेढ़ सौ हरम की स्त्रीयो को छोड़ आप पर दिल आ गया।

हुरिया: चुप कर बदमाश! जा! अब कल बात करेंगे...भाई साहब तेरा इंतजार कर रहे होंगे।


देवरानी: कौन भाई साहब...? उफ्फ्फ!

फिर बात को समझ आने पर बोली ।

"दीदी तुम ना कम नहीं हो!"

हुरिया: अब तुम निकाह करने का सोच रही हो बलदेव से, तो वह मेरी बहनोई या जीजा ही तो होंगे ना, मेरी बहन!

देवरानी: सुश शह्ह्शह्ह! दीदी दिवारो का भी कान है! अब मैं जाती हूँ उनको ज्यादा प्रतीक्षा कराना ठीक नहीं।

मुस्कुराते हुए हल्की मयूसी से कहती है।

हुरिया: ओह , उनको , वाह जी वाह! हाँ-हाँ हाँ !


LAAJ

इस बात पर देवरानी ठहाका लगा कर अपनी कक्षा में घुसती है ओर हुरिया भी अपनी कक्षा में घुस कर अपने पलंग पर लेट जाती है।

हुरिया भी अपनी कक्ष में जा कर अपने शौहर सुल्तान मीर वाहिद का इंतज़ार करने लगती हैं।




WAIT


इधर देवरानी दरवाजा बंद करके अंदर आती है।

"क्यू हो गयी बात पूरी देवरानी! आज बहुत जल्दी आ गयी!"

"तुम ना बच्चो की तरह मत किया करो!"

"मैं बच्चो की तरह बर्ताव कर रहा हूँ या तुम?"




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"तुम थोड़ी देर रुक नहीं सकते, मेरे लिए! बात-बात पर तुम, अभी से इतना गुस्सा करते हो विवाह के बाद क्या करोगे?"

देवरानी हल्का गुस्सा हो कर कहती है।

"तुम्हें ऐसा लगता है कि मैं हमारे विवाह के बाद तुम्हें खुश नहीं रखूंगा तो ठीक है।"

ये कह कर बलदेव पलंग के कोने में अपना सर तकिये में घुसा कर उल्टा लेट जाता है।

देवरानी फुसफुसाती है।

"अब बत्ती भी मैं बुझाउ ये तो गया घोड़े की तरह!"

देवरानी कक्ष में जल रही सब बत्ती बुझाती है पर कुछ मोमबत्तियों को जलता छोड़ देती है।



WAIT2

देवरानी जा कर पलंग के एक कोने में लेट जाती है।

देवरानी लेटी हुई इंतजार कर रही थी कि अब बलदेव उसके साथ बोलेगा। देवरानी की नींद भाग गई थी


LET1



देवरानी: (मन मैं) शायद बलदेव सही में गुस्सा हो गया है पर इसको तो मेरी भी बात समझनी चाहिए ना।

थोड़ी देर बाद देवरानी अपनी जगह से उठती है और बलदेव के पीठ से लग के चिपक जाती है ।

देवरानी: मेरा राजा गुस्सा हो गया?

देवरानी बलदेव से पीछे से चिपक कर अपना हाथ उसके कंधों पर रखती है।

बलदेव: मुझे नींद आ रही है, सोने दो!



DEVRANI
देवरानी: राजा को नींद बिना रानी को बाहो में लिए हुए आ जाए ऐसा भी पहले कभी नहीं हुआ है?

बलदेव देवरानी का हाथ अपने कंधों से हटा कर झटका देता है।

माँ मुझे नींद आ रही है तंग मत करो!"

"मुझे पता है मेरे राजा को मेरी बात बुरी लगी है ।"

"बुरी नहीं तो क्या अच्छी लगेगी ! तुम्हें इतना प्यार करता हूं फिर भी तुम ऐसा कैसे सोच सकती हो?"

"अरी मेरी जान! मुझे क्षमा कर दो गलती से मुँह से निकल गया था ।"

"नहीं देवरानी ! मैं तो तुम्हें आज इतना तंग कर रहा हूं, तुम्हे लगता है मैं तुम्हें दुख देता हूं, तो विवाह के बाद और भी दुख दूंगा। जाओ सो जाओ! "

"नहीं मेरे राजा अगर मैं ऐसा सोचती तो तुम्हारे साथ इतने सपने नहीं देखती। तुम अपनी रानी को कभी भी दुःख नहीं दे सकते। बस कभी कभी ज़िद्दी हो जाते हो।"

"हां तो ढूंढ लो कोई और !"


CRY

देवरानी ये सुन कर उदास होते हुए बलदेव से दूर जाते हुए कहती है

"अगर दूसरा ही ढूँढना होता तो तुमसे क्यू प्रेम करती?"





CRY2


बलदेव देवरानी को पलट कर देखता है तो उसकी आँखों को आसुओं से भरी हुई पाता है। बलदेव झट से देवरानी को अपने गले से लगा लेता है।



emb-kis
देवरानी ज़ोर से बलदेव को भींच लेती है।

देवरानी अपने हाथ से बलदेव के पीठ पर मुकके से मारने लगती है।

"जान से मार दूंगी अगर तुमने कभी मुझे किसी और के पास जाने को कहा।"

"मां तुम्हारे बाहो में आए बिना नींद नहीं आती है ।तुमने उसने दीवाना बनाया है इसलिए मैंने जिद की थी ।"



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"बेटा! मुझे भी कौन सा नींद आयेगी । उससे पहले जब तक मैं तुम्हारी बहो में झूल ना लू। "

"मेरी रानी मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ।"


"आह मेरे राजा! "

बलदेव देवरानी के होठों को ले कर चूमने लगता है,




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“गलप्पप गलप्पप स्लरप्प आह उम गलप्प गलप्प उम्म्म आह गलप्पप गलप्प गलप्प! चुम्म्म पुच्च्च्च!



72-KIS0

गैलप्प गैलप्प आह गैलप स्लरप्प गैलप्प! "


72-KIS2


बलदेव देवरानी के मम्मे दबाते हुए उसे चूमना जारी रखता है ।

"आह माँ मुझे खुद से दूर मत रखो! "



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“गलप्पप गलप्पप स्लरप्प आह उम गलप्प गलप्प उम्म्म आह गलप्पप गलप्प गलप्प! चुम्म्म पुच्च्च्च!

गैलप्प गैलप्प आह गैलप स्लरप्प गैलप्प! "



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"उम्म्म्म आआह बेटा मुझ से नाराज़ भी मत होना, तुम जब तक मसलो नहीं, नींद नहीं आती है,"

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बलदेव देवरानी को खडी कर पलंग के पास उसकी गांड को मसलने लगता है।


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"आआह माँ क्या गांड है!"

“उम्म्म्म आह आआह मेरे रज्जा! "



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"आह माँ उह! "

"उफ्फ्फ राजा !"



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बलदेव धीरे-धीरे देवरानी को नंगी करने लगता है।



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नीचे बैठ बलदेव देवरानी की साड़ी को अपने दांतो से उसके नाभि के नीचे से खीचता है,


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फिर साड़ी को खीचता हुया खोल देता है।


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बलदेव खड़ा हो कर देवरानी के पीछे खड़े हो कर देवरानी का ब्लाउज भी उतार देता है।
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बलदेव: वाह ! तुम सुन्दरता की मूरत हो महारानी देवरानी!

इस बात से देवरानी फूली नहीं समाती।



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और बलदेव का हाथ अपने कमर पर रखती हैं।

देवरानी:ये सुंदरता की मूरत तुम्हारे सामने केवल जंघिया तथा ब्रेसियर में खड़ी है। लो प्यार करो!

बलदेव:आआह मेरी रानी!




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बलदेव अपना लौड़ा देवरानी की गांड पर दबाते हुए, अपना हाथ ब्रासियर के पीछे ले जा कर ब्रा को खोलता है।

"मां, मल्लिका से आपको बड़े रंग बिरंगे वस्त्र उपहार के रूप में मिले है "



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पीछे से बलदेव खोलता है और देवरानी इतराते हुए अपने दूध को आगे से आज़ाद करती है।

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"ले पी ले तुझे बड़ा शौक है ना।"


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"आह माँ कितने बड़े तरबूज़ हैं आपके।"


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" आआह नहीं! "


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"खा जा आह इन्हें लाल।"

"मां इंचे कच्चा चबा जाऊंगा।"





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"चलो माँ बिस्तर पर तुम्हारी बजाता हूँ।"

"रुक जा!"



72-KIS7


देवरानी अपने दोनों वक्षो हवा में लहराते हुए कुछ जल रही मोमबत्ती को बुझा देती है।

"माँ ये क्या?"

"मुझे शर्म आती है।"

"तुम्हारे दोनो गेंद बहुत हिल रहे है संभालो गिर ना जाए।"

"कमीना ! "

"आह आजा मेरी रानी !"


72-KIS8



बलदेव देवरानी को अपने ऊपर लिए पलंग पर लेट जाता है।

देवरानी की गांड को हाथ में थामे हुए बलदेव ज़ोर से भीखते हुए उसे अपने ऊपर ले लेता है।

"आराम से ना राजा !"

"नहीं माँ मेरी रानी, तुम्हारे अंदर इतनई कामुकता और कामोतेजना है कि ये बेटा आराम से कुछ नहीं कर सकता।"

"तू भी तो काम देव से काम नहीं मेरे राजा।"

देवरानी बलदेव के होठों को चूसने लगती है और उसकी गर्दन को सहलाने लगती है देवरानी की गांड को बलदेव जोर से भींच रहा था ।

"आआआह राआआज नहीं! "

बलदेव अपना लौड़ा अपने धोती के अंदर से ही महारानी की चूत पर धक्के मार रहा था।"

"ये ले मेरी रानी।"

"ना आआआह हाआ। ऐसे ही राजा! उह आम! "

"आआह माँ रानी मेरी महारानी! "

"आआहा राजा ।आआआआआआआआआआआआआ आआआआआआआआआआआआ\ अह्ह्ह्ह आआआआआआआआआआआआआआआआआआआ!

देवरानी अपने आखे बंद के पीछे हो कर सीधा लेट जाती है ।और उसकी चूत से पानी की बौछार होने लगती है।

बलदेव नीचे झुक कर देवरानी के उखड़ी सांसो को संभालते हुए उसके जांघो को सहलाने लगता है

"आराम से मेरी रानी! "

देवरानी की चूत में जैसे चीटिया रेंगने लगती है जब बलदेव देवरानी के पानी छोड़ रही चूत पर झुक कर चुम लेता है।

"आआआह राजा! "



72-KIS3








72-KIS9




देवरानी तुरंत अपने आखे खोल देखती है और बलदेव को अपनी चूत पर झुका हुआ पाती है।

देवरानी: ( मन में ) ये बलदेव मुझे इतना झाड़ देता है जबकि कमला तो घंटो मेहनत करती थी तो भी मैं झड़ती नहीं थी ।जादू कर देता है बलदेव मुझ पर ।

फिर देवरानी अपनी सोच पर मुस्कुराती है।

"माँ क्या सोच रही हो आपका तो हो गया? "

फिर बलदेव झट से देवरानी का हाथ अपने लौड़े पर रखता है।

देवरानी के हाथ कांपने लगते हैं,, और वो अपना हाथ पीछे लेती हैं।

बलदेव देवरानी को देख कहता है।

"तू ऐसी नहीं मानेगी देवरानी! "

बलदेव खड़ा हो कर देवरानी की गांड पर अपना लंड टिकाए धक्का देता है देवरानी उसके आगे खड़ी आखे बंद कर कराहने लगती है ।

“आआह” राजा! ”

बलदेव झट से अपना एक हाथ देवरानी की जंघिया के ऊपर से ही अंदर महारानी देवरानी की चूत में घुमा कर फिरा देता है फिर एक उंगली उसकी चूत में घुसा देता है।

देवरानी को जैसे करंट लगता है ।

"आआआआआआआआआआआआआआआआआह राजा!"

"क्या हुआ माँ?"

"मरररर गई!"

बलदेव अपने हाथ पर कुछ गीला मेहसूस करता है।

"आज बेटा निकालो! बरसो बाद इसमें कुछ गया है! आआह मैं मर जाऊँगी!"

"आह माँ तुम्हारी चूत के बाल कितने मुलायम हैं,और चूत तो अन्दर पूरी गीली है! आआह! "

"आह! मैं कैसे इसे समझाऊँ ! ओह्ह्ह ! इस जालिम को! मैं मर रही हूं दर्द से, बेटा तू कुछ और कर! "

"तो मेरा मुँह में ले लो ! "

" छहि मैं नहीं जानती वो सब! "

"क्यों आपने कामसूत्र पुस्तक नहीं पढी ?"

"ऐसा नहीं है वो सब तो कहानी थी ।"

बलदेव अब अपनी छोटी उंगली चूत से निकलता है।

"फच " आवाज करती हुयी उंगली निकलती है ऐसे जैसे किसी बोतल की धक्कन खुला हो! इस बार बलदेव अपनी बीच की उंगली देवरानी की चूत में पेल देता है।

“आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआअ हे भगवानआआआआआं मैं मररर गयई!”

देवरानी की आंखो से आसु छलक जाते हैं।

देवरानी अपना हाथ बलदेव के हाथ पर मारती है, जिससे बलदेव समझ जाता है कि देवरानी अबऔर नहीं सह सकती है।देवरानी की आंखों में आसु देख फिर वो अपनी उंगली "फच की आवाज से चूत से बाहर निकलता है।

बलदेव जैसे ही हाथ उसके जंघिये से बाहर निकलता है देवरानी राहत की साँस लेती है।

बलदेव अपनी उंगली पर देखता है वो खून से लाल था।

"ये क्या माँ? मुझे लगा पानी है।"

"तुम्हें बस वैसे ही लगता है । इतने बरसों बाद कुछ गया है, योनि पूरी चिपक गई थी, रक्त तो निकलना ही था।"

"क्षमा कर दो माँ मैंने आपको दुख दे दिया !"

"कोई बात नहीं बेटा ,तू मेरा राजा है ,आज नहीं तो कल ।!।"

ये बोलते हुए शर्मा जाती है ।

"मा लज्जाना बंद करो , अब मेरा निकाल दो।"

बलदेव देवरानी को अपनी ओर खींच लिया बाहो में भर के उसके जंघिया में हाथ डाल अंदर तक उसके मासल चूतड को मसलने लगता है।

"माँ मेरा लौड़ा पकड़ो ना।"

देवरानी ना चाहते हुए बलदेव का लौड़ा अपने हाथ में ले लेती है ।

"आह राजा कितना बड़ा लिंग है।"

"लिंग नहीं मेरी जान ये आपके बुर के अंदर जाने वाला लौड़ा है। "

"धत्त्त ! बेशर्म ! "

"अहह ! मेरी रानी ! "

"आह राजा !"

देवरानी उत्तेज़ना से बलदेव का लौड़ा खूब मसलती है और लौड़े की हिलाती है।

फिर देवरानी अपने वक्ष को बलदेव के सीने पे खूब रगड़ती है पर बलदेव था की अपना पानी निकालने के लिए राजी नहीं था।

"बेटा मेरे हाथ दुख गए हिलाते हुए ! "

"माँ इसलिए कहा था मुँह में ले लो निकल जाएगा! "

देवरानी जोश में आकर नीचे बैठती है फिर बलदेव के लौड़े को लंगोट के ऊपर से ही अपनी जिभ से बलदेव के लौड़े के टोपे को चाटती है।

"ये ले तेरे माँ की जिभ तेरे लिंग तेरे लौड़े पे । "

ये सुन कर बलदेव उत्तेजना से कराहने लगता है ।

"आआआआआआआआआआआआआआआआ ! अह्ह्ह्ह ! हाईये !

आआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआआ करने का समय आ गया! ! हाईये !"

देवरानी एक बार अपनी जिभ लगा कर उठती है तो बलदेव उसको अपने ऊपर ले लेता है फिर उसकी चूत पर अपना लैंड रगड़ते हुए , देवरानी की जंघिये में हाथ डाल कर गांड को जोर से मसलने लगता है, थोड़ी देर ऐसे मसलने से बलदेव अपनी आंखें बंद कर लेंता है ।

"आआआह माआआ मैं गया हम्म आआआह! "

देवरानी कभी बलदेव के माथे को चूमती है, कभी उसके होठों को, कभी अपने बड़े पहाड़ जैसे वक्ष उसके सीने में दबाती है , फिर थोड़ी देर में बलदेव शांत होता है और हाँफते देवरानी को ढीला छोड़ता है।

"मज़ा आ गया ! माँ ! "




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देवरानी बलदेव के ऊपर हट कर बगल में लेटते हुए उसे चूमती है।

"यात्रा से थकी हुई थी तुम भी थके हुए थे और साथ में खून भी निकल आया था !"

दोनों एक दूसरे को देखते हैं फिर दोनों की हंसी छूट जाती है।




जारी रहेगी ।
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 73

आज मत जाओ

बलदेव और देवरानी अपने बिस्तर पर लेटे हुए थे और अभी-अभी कबड्डी से दोनों थक गए थे।

बलदेव: आपका खून निकल आया, आपको दुख नहीं हो रहा वाह!



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देवरानी बलदेव की ओर सरक के कहती है ।

"बेटा तेरे लिए तो ऐसा दुख कुछ भी नहीं है।"

"माँ मैं शायद जोश के आकर खुद को रोक ...!"

"चुप करो! ऐसा कभी मत कहना, तुम मुझे इतना चाहते हो कि तुम अपने आप को रोक नहीं पाते!"

"हम्म माँ!"

"मां के बच्चे अपनी उंगली साफ करो गंदा खून लगा है!"

"पागल हो क्या ये गंदा खून नहीं ये तो पवित्र रक्त है।"

पहले एक कपड़े के टुकड़े से अपनी चूत पर ले जा कर खून पूछती है, जो एक उसकी चूत के मुहाने पर लगा हुआ था। फिर देवरानी उठ कर अपना साड़ी पहनती है।



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तभी बलदेव अपना हाथ धो कर आता है।

दोनों को कक्ष के बाहर किसी को चलने की आहट सुनाई देती है।

देवरानी: (मन में-अब ये क्या परेशानी है अब यहाँ कौन हमारी जस्सूसी कर रहा है? देखना होगा।)

बलदेव: माँ कहा जा रही हो?

देवरानी: आती हु, देखु तो कौन है?

बलदेव: मां, आप वस्त्र तो पूरे पहन लो!

देवरानी: बस दरवाज़ा खोल कर देखती हूँ, बाहर नहीं जाऊँगी।




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देवरानी वैसे ही अपनी साड़ी को बाँधे हुए, बिना ब्लाउज़ के ही दरवाज़ा खोलती है तो उसे सामने वाले कक्ष से निकल कर सुल्तान जाता हुआ दीखता है।

देवरानी: (मन में-लगता है दीदी का काम हो गया, सुल्तान जा रहे हैं। क्या पूरी रात भी नहीं रुकते सुल्तान? देखु तो!)

देवरानी अपने बगल की कक्षा से कुछ आवाज सुनती है गौर करने पर उसे कराह सुनाई देती है ।

"आआह उह!"

देवरानी: हे भगवान ये तो दीदी की आवाज है । देखु तो!

देवरानी अपने बगल के कक्ष, जो की हुरिया का था वहा पर जाती है।

बलदेव: माँ!

देवरानी देखती है कि दरवाजा बंद नहीं है, बस सटाया हुआ था, शायद सुल्तान ने जाते हुए बंद किया था और द्वार को हुरिया ने उठ के बंद नहीं किया था।




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देवरानी दरवाजे के बीच में छोटे से छेद की जगह से अपनी आँख लगा कर अंदर देखती है।

देवरानी के पैरो के तले से जमीन खिसक जाती है।

"हे भगवान दीदी हस्तमैथून कर रही है।"




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हुरिया अपने दोनों टांगो को फेलाए अपने खूबसूरत चूत के अंदर उंगली अंदर बाहर कर रही थी और बीच-बीच में अपनी चूत के दाने से खेल रही थी।

देवरानी: (मन में-बहुत ज्ञान देती है दीदी पाप पुण्य का, नरक स्वर्ग का और क्या पति के रहते हुए ये खुद से ऐसा करना पाप नहीं है?)



SEMI-BOOBS

देवरानी मुस्कुराती है।

देवरानी: (मन में-इन्हे लगता है कि मैं नरक में जाऊंगी, आखिर जब सुल्तान इन्हें तड़पता छोड़ गया तो भूल गई ना धर्म, जात, सब कुछ! मल्लिका जी प्यासे को कुवा चाहिए होता है, मुझे तो बलदेव मिल गया, मल्लिका जी इस संसार में जब अपनी इच्छा पूर्ति की बात आती है तो मनुष्य जात पात और धर्म नियम और किसी का फायदा नुक्सान नहीं देखता, बस अपना मजा, अपनी इच्छा देखता है...करते रहो उंगली और जाओ स्वर्ग नर्क में।

देवरानी चुपके से वापस अपनी कक्ष में आती है।




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बलदेव: माँ आप ऐसे कैसे बाहर चली गयी?

देवरानी: क्यू मेरे पति को बुरा लगा?

बलदेव: हम्म!



EMBRACE
देवरानी: बेटा बाहर कोई नहीं है। चलो सो जाओ.।यात्रा से थक गए हो कल हमें फिर घाटराष्ट्र जाना है।

फिर एक दूसरे को बाहो में भर के बलदेव और देवरानी फिर सो जाते हैं ।

सुबह होती है बलदेव अपने रोज का व्यायाम करता है। देवरानी योग करती है, फिर पूजा कर सब को प्रसाद बांटती है बाहर बद्री और श्याम शमशेरा की तलवारबाजी देख रहे हैं।

सुबह-सुबह देवराज और सुल्तान चाय की चुस्की लेते हुए राजा रतन सिंह के कुबेरी के खजाने को कैसे पाया जाए उसपर अपना जाल बन रहे थे।

देवरानी बारी-बारी से सबको प्रसाद बांटती है।




kenchuki
देवरानी: भैया आज हम लोगों को वापस घाटराष्ट्र चलना होगा ।

सुल्तान: क्यू बहना इतनी जल्दी? हमारी महमानवाज़ी में कोई कमी रह गई क्या?

तभी वहा हुरिया आ जाती है।

हुरिया: बहन तुम चली जाओगी तो अच्छा नहीं लगेगा, मेरा तुमसे ऐसा वास्ता हो गया तो ऐसा लगा जैसे हम सदियो से एक दुसरे को जानते हो। काश सुल्तान की दूसरी बीवीया और बच्चे भी तुम से और बच्चो से मिल पाते।

देवरानी: कोई बात नहीं, दीदी वह तो अरब गए हैं अगली बार आऊंगी तो वह सब रहेंगे ना।



hur-1

हुरिया: जी बिलकुल!

तभी शमशेरा, बद्री और श्याम वहाँ आते हैं।

शमशेरा: सलाम अम्मी सलाम अब्बू!

हुरिया: सलाम!

श्याम बद्री: प्रणाम सुलतान, प्रणाम मल्लिका!

सुलतान मल्लीका: खुश रहो!

शमशेरा: क्या हुआ क्या गुफ़्तगू चल रही है खाला देवरानी के साथ?

तभी बलदेव अपने कक्ष से निकलता है।

बलदेव: प्रणाम-प्रणाम सुलतान, प्रणाम मल्लिका!

सुलतान मल्लीका: खुश रहो!



56-DEV
हुरिया: वह बेटा तेरी खाला देवरानी का जाने का वक्त आ गया है।

शमशेरा: मां इतनी जल्दी भला कौन वापिस भेजता है?

बलदेव: बात ये है हुरिया मौसी, वह पिता जी ने दो दिन के लिए ही आज्ञा दी थी।

हुरिया: हाँ तुम तो जैसे बड़े आज्ञाकारी हो गए अपने पिता के!

और देवरानी को देख कर मुस्कुराती है।




DEVRANI1
देवरानी भी बदले में मुस्कुरा देती है।

शमशेरा: देवरानी मौसी एक दिन और रुक जाओ ना!

देवरानी: बेटा शमशेरा परर...!

शमशेरा: आप आज रुक रही हो! आप आज मत जाओ, कल चली जाना!

देवराज: देवरानी एक दिन की तो बात है रुक जाओ ना जीजा जी को कह देना, मुझे रोक लिया था।

सुलतान: हान बहन रुक जाओ!

शमशेरा: यार बलदेव, तुम मेरे छोटे भाई हो, रुक जाओ आज तुम्हें रात का पारस दिखाते हैं।

श्याम: हाँ रुक जाते हैं।

बद्री: तू चुप कर श्याम!

देवरानी: बस भी करो सब...आज रुक जाते हैं कल पक्का निकल जायेंगे, कल हम वापस लौट जायेंगे।

श्याम खिलखिला के हस पड़ता है।

श्याम: देखा बद्री मेरी बात मान ली मौसी ने।

देवरानी पूजा का थाली ले कर चली जाती है।

फिर बाकी सब धीरे-धीरे चले जाते हैं।

शमशेरा: बलदेव आज शाम में चलेंगे!

श्याम: कहाँ जायेंगे?

शमशेरा: तुम गोलू मोलू भी चलना! आज तुम्हारी पारस यात्रा की आखिरी रात है इसे यादगार बनाना है।

बद्री: गोलू मोलू होंगे तुम...वैसे रात में बलदेव नहीं जाएगा।

शमशेरा: क्यू भला?

बद्री मुस्कुरा के -"क्यू के वह अपनी माँ के पल्लू से बंधा है और मौसी उसे कभी जाने नहीं देगी।"

शमशेरा: चुप करो बद्री, माना कि बलदेव मुझसे 7 साल छोटा है पर फिर वह अब 18 का हो गया है।

बद्री: तुम्हें लगता है कि वह जाएगा?




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बलदेव ये सुन कर भड़क जाता है।

बलदेव: ओ बद्री! मैं कोई दूध पीता बच्चा नहीं हूँ समझे!

बद्री: तो चलो हम सब चले । आज रात भर ऐश करेंगे।

शमशेरा: हाँ बलदेव चलोगे ना, चलो इन्हें झूठा साबित कर दो?

बलदेव: हाँ मैं जाऊंगा।

ऐसे वह दिन बीत जाता है और शाम में शमशेरा बलदेव श्याम और बद्री जाने की तैयारी करते हैं।




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शमशेरा एक सैनिक से बात करते हुए ...!

शमशेरा: भाई ये रेशमा आज कोठे पर आ रही है ना।

सैनिक: गुस्ताख़ी मुआफ़ हुज़ूर!

शमशेरा: बताओ भी, डरो मत मुझे पता है तुम भी जाते हो।

सैनिक: हुजूर सुना तो था किसी से आज का।

शमशेरा: चल जा यहाँ से!

शमशेरा उसको भगाते हुए मन में कहता है।

शमशेरा: आज तो उसको रगड़ दूँगा । मेरी प्यारी रेशमा।

सैनिक अपनी जान लिये वहाँ से जाता है।

अंदर बलदेव तैयार हो कर बाहर आ रहा था।




dev-bal
देवरानी: कहा चल दिए?

बलदेव: माँ शमशेरा के साथ थोड़ा पारस घूम म कर आ जाता हु। वैसे भी आज हमारे पारस दे दौरे का ये आखिरी दिन है।

देवरानी: ठीक है बेटा, पर थोड़ा संभल कर और रात में जल्दी वापिस आना में तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगी।

देवरानी मुस्कुराती हुई कहती है जिसका उत्तर बलदेव मुस्कुरा कर देता है।

बलदेव: पक्का रात से पहले आ जाऊंगा।

बलदेव बाहर निकलता है जहाँ श्याम बद्री शमशेरा के साथ बैठे इंतजार कर रहे थे।

शमशेरा: चलो मित्रो आज तुम लोगों को जन्नत की सैर करवाते हैं।




HORSES3
तीनो घोड़े पर बैठ चल देते हैं।

पास में खड़ा वही सैनिक मुस्कुरा के दूसरे सैनिक से कहता है।

"आज तो मेहमानों के भी मजे हो गए।"

तीनो घोड़े पर बैठ महखाने की ओर निकल जाते हैं।

महल में बैठी देवरानी को कुछ याद आता है और वह बाहर निकलती है।

देखती है वह लोग निकल गए तभी उसे दो सैनिक बात करते हुए नज़र आते हैं।

दुसरा सैनिक: भाई मेहमानो के मजे, मतलब समझ नहीं आया?

सैनिक: भाई बात ऐसी है शहजादे मुझसे रेशमा का पूछ रहे थे और आज वह उनको चौदे बिना नहीं आएंगे उनकी आदत है।

दूसरा सैनिक: भाई तो इसमें मेहमानों का क्या?

सैनिक: भाई जब शहजादे चूत मारेंगे तो ये तीनो थोड़ी मुँह उठा के देखेंगे। ये लोग भी कोठे पर चुदाई ही करेंगे। मैंने सुना है शहजादे शमशेरा के साथ कोठे पर जाने वाला बिना चुदाई किये वापस नहीं आता।

फिर दोनों सैनिक हंसने लगते हैं।

महल के मुख्य द्वार पर परदे के पीछे खड़ी देवरानी के हाथ पैर जम जाते है और वह अपने आप को कोसने लगती है के उसने क्यू बलदेव को जाने दिया।




praying-happy-face
indiana high school athletic association
देवरानी: हे भगवान मेरे बेटे से कोई पाप ना करवाना उसे भेजना मेरी ही गलती है।

मेरा बलदेव किसी या के साथ ...नहीं नहीं...!

गुस्से और अपने प्रेमी बलदेव के ऐसे कदम से वह किसी और को ना भोग ले इस भय से भगवान से प्रार्थना करती हुयी देवरानी अंदर चली जाती है।

इधर शमशेरा तीनो को ले कर उसकी जगह पहुँचता है जहाँ पिछली बार वह बलदेव को ले कर आया था।

बलदेव: देखो शमशेरा! में कोई मदीरा नहीं पीऊंगा इस बार और हो सके तो सोने के समय तक मुझे वापस जाना है।

बद्री: क्या भाई सोने के समय तक क्यों?

एक हंसी के साथ बद्री पूछता है ।

श्याम: हाहाहा!

शमशेरा: भाई आज जो चीज़ दिखाऊंगा उसे देख तुम सब भूल जाओगे, मदिरा भी।

तीनो तहखाने के रास्ते से एक कोठे पर पहुँचते हैं । जहाँ पर हर तरफ अलग राज्यो से आए हुए राजा और राजकुमार आसन पर बैठे हुए थे।

शमशेरा अपने साथ अपने साथियों को बैठा लेता है।

शमशेरा एक उंगली से इशारा करता है और आकर लोग सबके पास मदिरा रखते हैं।

बलदेव: इसे ले जाओ मुझे नहीं चाहिए।

बलदेव अपने पास रखा मदिरा उठा के बद्री के पास रख देता है।

शमशेरा, बद्री, बलदेव और श्याम शाम की चकाचौंध देख बहुत प्रभावित होते हैं।

तभी घुंघुरू की आवाज सब के कानों में बजती है।

श्याम: वो देखो वाह क्या माल है!

बद्री: ह्म्म अध्भुत!

रेशमा धीरे से चलते हुए बीच में आती है।

शमशेरा: वो देखो बलदेव मेरी जान रेशमा को!




ARABIC-dance
बलदेव देखता है रेशमा को जो अपने पैरो में घुंघरू बाँधे, चमकीली वस्त्र धारण किये हुए थी जिसमे उसके बदन का हर उभार छलक रहा था।

सब एक साथ कह रहे थे।

रेशमा...रेशमा...!

और फिर सब उसके फूल से बदन पर फुलो की बारिश कर देते हैं ।


जारी रहेगी ...
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 74

कोठे पर रेशमा और शमशेरा

शमशेरा के साथ कोठे पर बैठे बलदेव और उसके दोनों मित्र आख टिकाए रेशमा की जवानी को खा जाने वाली नजर से ताड़ रहे थे। वहाँ बैठे सब लोग रेशमा की तारीफों की पुल बाँधते हुए अपने हाथों से उसपे फूलो की बारिश कर रहे थे ।

रेशमा अब अपनी अदा से सब से रूबरू होती है।

शमशेरा: वाह! क्या चीज़ हो तुम?

बद्री: बहुत सुन्दर है।

रेशमा अपनी मुस्कुराहट बिखेरे सब को घायल करते हुए तबले की धुन पर अपनी कमर मटकाती है । सब उसको देख गरम हो रहे थे।

रेशमा अब अपने दूध को बारी-बारी से हिला रही थी जिसे देख सब उत्तेजित हो रेशमा की तारीफ कर रहे थे ।

"वाह क्या बात है!"

"बहुत खूब, वाह! प्यारी रेशमा और हिलाओ इन्हे!"

रेशमा कुछ देर में वहा आये अपने मेहमानों के पास जा कर अपने कला का प्रदर्शन करने लगती है।

कुछ आधा घंटा यू वह अपने जवानी का जलवा बिखरे जाने के बाद रेशमा सबको सलाम कर के अंदर चली जाती है।

सबलोग चिल्लाते हैं।

"रेशमा रुक जाओ!"

रेशमा के जाते हे वहाँ बहुत-सी और लड़कियाँ आ जाती है और वह भी नाचने लगती है।

बद्री: क्या भाई ये तो इतनी जल्दी चली गई?

शमशेरा: भाई ये कुछ वक्त के लिए वह आती है। बहुत नखरे है साली के ।

बद्री: हम्म्म!

शमशेरा: भाई तुम लोग इनमें से किसी को भी चुन लो और अपनी आज की रात रंगीन करो।

श्याम: शमशेरा नहीं यहाँ पर हिंद के बहुत से राजा है। उनमे से किसी ने हमे कहीं पहचान लिया तो...!

शमशेरा: तो क्या? तुम भी उनसे पूछ सकते हो कि वह यहाँ क्या कर रहे हैं? आगे तुम सब की मर्जी ।में चला रेशमा के पास उसकी लेने।

श्याम के साथ बद्री बलदेव भी एक साथ चौंक कर कहते हैं ।

"क्या?"

शमशेरा: हाँ भाईयो मैं जाता हूँ।

शमशेरा उठ के अंदर जाता है, जहाँ पर रेशमा अपने पैरो पर बंधे घुंघरू खोल रही थी और पास में उसका एक राजा था जो उससे बात कर रहा था।

रेशमा उस राजा से कह रही थी।

रेशमा: राजा जी आप कैसे अंदर आ गए? यहाँ आने की सबको इजाज़त नहीं है ।

राजा: रेशमा मुझे तुम्हारे साथ रात गुजारनी है चाहे तो तुम मुंह मांगी रकम ले लो।

रेशमा अपने घुंघरू खोल कर निकालती हुई मुस्कुराती है।

रेशमा: पहले तुम बताओ, क्या दोगे तुम रेशमा को?

राजा: मैं सोने के 100 सिक्के दूंगा।

शमशेरा: खबरदार!

राजा: तुम कौन?

रेशमा: तुम इन्हें नहीं जानते ये सुल्तान मीर वाहिद के शहजादे शमशेरा हैं...आइये शहजादे!

राजा: मुआफ करना शहजादे हमें आपको पहचान नहीं पाए!

शमशेरा: कोई बात नहीं!

राजा: पर मैं यहाँ पहले आया हूँ और आज के लिए रेशमा मेरी हुई।

शमशेरा: लगता है तुम ऐसे नहीं मानोगे...तुम सौ 100 सिक्के दोगे, पर में 500 सिक्के देता हूँ आज । अब रेशमा को फैसला करने दो।

रेशमा: रेशमा तो यहाँ उसके साथ ही जाएगी जो उसे सही कीमत दे।

राजा चुप हो जाता है।

शमशेरा: बोलो! अब मैं इसे 1000 सिक्के देता हूँ।

राजा: गुस्ताख़ी मुआफ़ हुज़ूर में भूल गया था कि मैं तो एक छोटा-सा ही राजा हूँ।

राजा ये कह कर वहाँ से चला जाता है।

शमशेरा: वाह रेशमा! वैसे आज कयामत ढा रही हो जानेमन!

रेशमा: अब आप जैसे बिगडे हुए शहजादे रेशमा की बोली इतना लगा दे, तो वह तो कयामत ही ढायेगी।

शमशेरा आगे बढ़ कर रेशमा को अपनी बाहों में भरने की कोशिश करता है।

"आज ओफ़्फ़्फ़ ओह्ह्ह! ए शहजादे इतनी भी क्या बेकरारी?"

शमशेरा वही पास में गद्दे पर बैठ जाता है और रेशमा ज़ाम बना कर शमशेरा को अपने हाथ से पिलाने लगती है।

ज़ाम का नशा शमशेरा का सर चढ़ बोल रहा था, वही बाहर बैठा बद्री और श्याम से रहा नहीं जाता है, फिर वह भी मदीरा मंगवा लेते हैं और पीने लगते हैं। बलदेव भी अब तक गरम हो गया था।

बलदेव: (मन में-मुझे माँ की बहुत याद आ रही है। इन सुंदरियों का नाच बहुत देख लिया अब तो माँ के सोने का समय भी हो गया होगा ।

बद्री: अरे बलदेव क्या सोच रहे हो आज हमारा आखिरी दिन है पारस में, मदीरा पियो!

बलदेव: नहीं नहीं...यार!

बद्री: क्यू भाभी ने मना कीया है? और ज़ोर से हंसता है । फिर श्याम भी बलदेव को देख हँसता है।

बलदेव: माँ को अगर पता...!

बद्री: भाई जब हम वापिस पहुँचेगे तब तक तो वह सो गई होगी, पी लो उन्हें पता नहीं चलेगा ।

श्याम बद्री बलदेव की ओर मदिरा बढ़ा देते है और बलदेव भी अपने आप को रोक नहीं पाता है और मदिरा पी लेता है।

अंदर रेशमा अपने कमर को बलखाते हुए नाचते हुए अपने वस्त्र शमशेरा के सामने खोल रही थी, फिर कुछ ही देर में वह धीरे-धीरे नग्न हो गयी और अब वह बिना किसी कपड़े के शमशेरा के सामने नाच रही थी ।

शमशेरा ज़ाम का घुट लेते हुए उसे देख रहा था। फिर रेशम आकर शमशेरा के गोद में बैठ जाती है, अब शमशेरा से रुका नहीं जाता, वह उसके भारी मम्मों को पकड़ मसलता है और अपना लंड रेशमा की गांड पर रगड़ते हुए अपने कपड़े भी निकलने लगते हैं।

कुछ देर में दोनों एक दूसरे को चूमने लगते हैं, शमशेरा रेशमा को लिटा कर उसपर चढ़ जाता है।

"आह रेशमा तुम्हारा बदन कितना गरम, चिकना और मुलायम है, तुम सच में बहुत खूबसूरत हो"

शमशेरा रेशमा के ओंठो को चूम रहा था और अपने बदन से रेशमा के नाज़ुक बदन को मसल रहा था । अब रेशमा अपना हाथ आगे बढ़ा कर शमशेरा का लौड़ा पकड़ लेती है। उसे लौड़ा बहुत गर्म लगता है ।

"इसे बहुत बुखार आता है मुझे देख के आ जाओ अब इसका बुखार निकालु।"

रेशमा लौड़ा पकड़ कर अपनी चूत के मुँह पर रखती है, फिर शमशेरा ज़ोर का धक्का मारता है तो उसका लौड़ा एक बार में ही पूरा जड़ तक चला जाता है।

"आआआआआह शहजादे! आप का बहुत बड़ा है आराम से!"

शमशेरा धक्के पर धक्का मारने लगता है।

"उहह आआहह! मेरी रेशमा तुम्हारी माखन चूत!"

"आआआह राजा ओह शहज़ादे! आराम से!"

ये ले रेशमा मेरा लौड़ा! "

"ये लौड़ा नहीं है लौडो का बाप है, मुझे इतना दर्द कोई नहीं देता शहजादे, जितना आप देते हो।"

ये सुन कर वह और जोश में आकर तेजी से चोदने लगता है।

कुछ देर यू हे चुदाई के बाद शमशेरा अब रेशमा की टाँगे उठा कर चोदने लगता है, इस वक्त रेशमा अपने आखे बंद किये हुए सिस्कीया ले रही थी।

अब शमशेरा का पानी निकलने के करीब था ।

"आआह शहजादे मेहरबानी कर आप मणि अंदर न निकाले, मैं माँ बन जाऊँगी !"

"आह आह!"

शमशेरा ज़ोर का धक्का देता है और जैसे वह शमशेरा की नज़र रेशमा पर जाती है उसे अपनी अम्मी जान मल्लिका हुरिया नज़र आती है।

"अम्मी जान !"

ये कह कर आगे बढ़ कर रेशमा दोनों दूध पकड़ कर दबाता है और अपनी आँख बंद करता है तो उसे अपनी अम्मी की कुछ ऐसी ही तसवीर उसके दिमाग में आती है।

शमशेरा-"आह अम्मी !"

करता हुआ रेशमा की चूत में ही झड़ने लगता है ।

कुछ देर झडने के बाद रेशमा चिल्लाती है ।

"हाय मैं मर गई, उतरो भी, मेरे ऊपर से, कितना पानी छूट गया, मेरी चूत पूरा भर गयी ।"

बाहर बद्री और श्याम ज़ाम का घुट भरते हुए मुजरा करती हुई एक लड़की को अपने पास बुला लेते हैं।

वो दोनों उसके अंग को छु कर सहला कर मजे ले रहे थे और वह भी बारी-बारी उन दोनों के गोद में बैठ कर बारी-बारी मजे ले रही थी ।

बलदेव: यार ये शमशेरा कहाँ रह गया, रात हो गयी है ।

बद्री: चुप चाप मजे लो आजाऔ हमारे साथ । देखो ये नर्तकी कितनी सुंदर है।

बलदेव: नहीं मुझे नहीं चाहिए ये, ये गलत है।

बलदेव ज़ाम का गिलास लिए वहाँ से दूर चला जाता है।

बद्री: (मन में-साला खुद तो माँ से मजे लेता हैं अगर हम कुछ करे तो गलत है।)

फिर बद्री वह नाचने वाली का दूध दबा देता है जिसे बलदेव देख लेता है। वह भी नशे में था, उसका लौड़ा खड़ा हो जाता है पर वह जान बुझकर इनसे दूर हट जाता है कि कही वह कुछ गलत ना कर बैठे ।

अंदर शमशेरा कुछ देर बाद फिर से रेशमा की चूत मारता है, फिर बहार आता है तो देखता है बद्री और श्याम भी मजे कर रहे हैं।

शमशेरा: अरे ये बलदेव किधर है भाईयो?

बद्री: वह मेरे पास नहीं है ।

शमशेरा: चलो चलें!

बद्री: अब हम चलते हैं ।

तो वह नाचने वाली कहती है।

"हुजूर हमारी बख्शीस!"

शमशेरा: वो मैं भेजवा दूंगा अपने आदमी के हाथ से महल से।

वो खामोश हो कर चली जाती है तीनो बलदेव के पास आते है जो गहरी सोच में था।

शमशेरा: क्या हुआ बलदेव तुम परेशान क्यू हो?

बलदेव: वो माँ ने कहा था जल्दी आ जाने के लिए, ऊपर से मैंने मदीरा भी चढ़ा ली है । अब कैसे उनका सामना करूंगा?

शमशेरा: कोई नहीं चलो अब! वैसे आज मैं जल्दी जा रहा हूँ नहीं तो सुबह ही वापिस जाता हूँ।

तीन बाहर निकल कर तहखाने के रास्ते से सीधे ऊपर आते हैं। आसमान में चांद पूरा था और ठंडी हवाएँ बढ़ गई थी, रास्ता सुनसान था और परिंदों की चहक से लग रहा था कि पहली सुबह हो गई थी और आधी रात से भी अधिक समय बीत गया है।

तीनो घोड़े पर बैठ तेजी से महल की ओर जा रहे थे। कुछ देर में तीनो महल तक पहुँच जाते हैं।

शमशेरा: भाईयो जा कर चुप के सो जाओ, किसी से कोई बात करने की जरूरत नहीं है ।

महल में आते हुए हर सैनिक इनको देख रहा था, जो रात की निगरानी कर रहे थे।

शमशेरा अंदर आकर अपनी कक्षा में घुस जाता है।

बद्री और श्याम भी अपने कक्ष में घुस जाते है।

बलदेव अपने कक्ष की ओर जाता है । वह दरवाजे को इस उम्मीद से खोलता है कि खुला होगा पर वह बंद था।

बलदेव: अब तो पक्का माँ को उठाना पड़ेगा।

बलदेव लड़खड़ा रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे?

बलदेव: माँ ओ माँ दरवाजा खोलो!

देवरानी बाहर समय तक बलदेव का राह देख रही थी और उसकी कुछ समय पहले ही झपकी लगी थी, इसलिए जैसे ही उसके कान में बलदेव की आवाज जाती है, वह उठ जाती है।

"खोलो दरवाजा! माँ!"

देवरानी: (मन में-मैं पूरी रात तड़पी हूँ, इसका इंतजार कीया है और ये गुलछर्रे उड़ा के आ रहा है ।आह देखती हूँ इसको !

देवरानी जान बुझ कर दरवाजा नहीं खोलती है और अपनी आखे बंद कर फिर लेट जाती है।

बलदेव अब ज़ोर से दरवाज़ा पीट रहा था । नशे की हालत में इतना शोर गुल सुन कर हुरिया की भी आँख खुल जाती है।

हुरिया: उफ़ ये बलदेव क्यू चिल्ला रहा है आधी रात को?

हुरिया कुछ देर में हालात समझने के बाद बाहर निकलती है।

हुरिया: अरे बेटा बलदेव तुम आ गये क्या?

बलदेव नशे में लड़खड़ते हुए बोलता है ।

बलदेव: जजिज्ज ववो माँ दरवाज़ा नहीं खोल रही।

हुरिया: तुमने कितनी पी राखी है बलदेव, तुम इस हाल में कैसे माँ के पास जाओगे, तुम बद्री और श्याम के कक्ष में रह सकते हो।

कुछ देर से देवरानी को बलदेव की आवाज ना आती देख वह उठ कर आती है और धीरे से दरवाजा खोलती है।

जैसे ही दरवाजा खुलता है बलदेव सामने ही खड़ा था और लड़खड़ाते हुए हुरिया से बात कर रहा था।

जिसे देख देवरानी का पारा चढ़ जाता है।

बलदेव दरवाजा खुलने पर आये रोशनी से उस तरफ देखता है । फिर अपनी माँ को खड़ा पा कर कहता है ।

"मां आप उठ गईं?"

देवरानी ने उसे गले लगा लिया ।

"जिसका बेटा इतना बड़ा शराबी हो, रात भर बाहर रंग रेलिया मनाये वह भला कैसे चेन की नींद सो सकती है?"

"मां आप गलत समझ रही हो।"

"चुप कर बलदेव गलत तो मैं हूँ, तुम तो सही पर ही रहते हो, मुझे सब पता है तुम रेशमा...! ।"

ये कहते हुए उसकी आंखो में आसु छलक जाते हैं।

हुरिया: आराम से बात करो बहन रात का समय है । अब सब सो जाओ सुबह बात करेंगे ।

देवरानी: मुझे इससे बात ही नहीं करनी । इसे बोलो जजन जाना है वहाँ जाए!

बलदेव: माँ मुझे नींद आई है ।सोने दो!

देवरानी: ये कोई कोठा नहीं है जो जब मर्जी आ जाए और जब मर्जी हो चले जाएँ!

देवरानी ये बात धीरे से अपनी आँखों में आसू के लिए कहती है और अंदर जाने लगती है।

बलदेव उसके पीछे जाता है पर तभी अंदर से देवरानी तकिया चादर के लिए आती है और बलदेव की और फेकती है जो सीधा बलदेव के मुंह पर जा कर लगता है।

"मां क्या कर रही हो?"

"मेरे पास सोने की ज़रूरत नहीं जाओ यहाँ से!"

हुरिया: देवरानी इतना भी क्या गुस्सा करना?

देवरानी: दीदी इसे समझा दो नहीं तो मैं कुछ गलत कर बैठूंगी। मुझे पता है आधी रात में नशे में धुत जब मर्द मुजरा देख कर आता है तो वह क्या कर के आया है । इसके शरीर से वही गंध आ रही है ।

ये कह के देवरानी वापस जाने लगती है बलदेव अपना सर झुकाए खड़ा था । उसके सामने तकिया और चादर ज़मीन पर गिरे हुए थे ।

देवरानी दरवाजा बंद करती है फिर खोल कर गुस्से में कहती है ।


"सुनो" ना तो मैं बाज़ारू हूँ या ना तो ये कोठा है जो जब चाहा मुँह उठा कर आये, मेरे दिल कि तुम कीमत नहीं लगा सकते बलदेव! "

ये कह फट से दरवाज़ा लगा लेती है।

ये सब सुन कर बलदेव का तो जैसा नशा ही उड़ जाता है और वह सोचता रह जाता है कि माँ हुरिया के सामने ऐसे कैसे ये सब बात कर रही है!

बलदेव अब हुरिया से भी आखे नहीं मिल पा रहा था!

हुरिया: बेटा उठा लो ये तकिया और चादर! आओ मेरे साथ।

बलदेव हुरियारे के पीछे जाता है।

हुरिया: बेटा ये शमशेरा तो अब नशे में दरवाजा खोलने से रहा, तुम ऐसा करो, आज मेरे ससुर के कमरे में सो जाओ!

बलदेव शर्मिन्दा होते हुए

"वो मौसी, मुझे मुआफ़ कर दो! मेरी वजह से इतना सब आपको देखना सुनना पड़ा"

हुरिया: अरे बेटा ...तुम्हें पता है शमशेरा रोज़ ही ऐसा करता है, पर उसने आज तक मुआफ़ी नहीं माँगी । उसने अगर तुम्हें लग रहा है कि तुमने गलत किया है तो यही काफ़ी है।

ये कह कर हुरिया चली जाती है और बलदेव जा कर सीधा बिस्तर पर लेट जाता है, उसे दरवाजा बंद करने का भी ख्याल नहीं रहा था।

बलदेव: (मन में-ये माँ ने ऐसा खुलेआम सब कुछ बक दीया पर मालिका ने मुझसे मेरे और उनके सम्बंध के बारे में कुछ नहीं पूछा...!)

सोचते हुए बलदेव गहरी नींद में चला जाता है।

जारी रहेगी
 

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महारानी देवरानी

अपडेट 74
कोठे पर रेशमा और शमशेरा

शमशेरा के साथ कोठे पर बैठे बलदेव और उसके दोनों मित्र आख टिकाए रेशमा की जवानी को खा जाने वाली नजर से ताड़ रहे थे। वहाँ बैठे सब लोग रेशमा की तारीफों की पुल बाँधते हुए अपने हाथों से उसपे फूलो की बारिश कर रहे थे ।


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रेशमा अब अपनी अदा से सब से रूबरू होती है।

शमशेरा: वाह! क्या चीज़ हो तुम?

बद्री: बहुत सुन्दर है।


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रेशमा अपनी मुस्कुराहट बिखेरे सब को घायल करते हुए तबले की धुन पर अपनी कमर मटकाती है । सब उसको देख गरम हो रहे थे।

रेशमा अब अपने दूध को बारी-बारी से हिला रही थी जिसे देख सब उत्तेजित हो रेशमा की तारीफ कर रहे थे ।

"वाह क्या बात है!"

"बहुत खूब, वाह! प्यारी रेशमा और हिलाओ इन्हे!"


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रेशमा कुछ देर में वहा आये अपने मेहमानों के पास जा कर अपने कला का प्रदर्शन करने लगती है।

कुछ आधा घंटा यू वह अपने जवानी का जलवा बिखरे जाने के बाद रेशमा सबको सलाम कर के अंदर चली जाती है।

सबलोग चिल्लाते हैं।

"रेशमा रुक जाओ!"



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रेशमा के जाते हे वहाँ बहुत-सी और लड़कियाँ आ जाती है और वह भी नाचने लगती है।

बद्री: क्या भाई ये तो इतनी जल्दी चली गई?

शमशेरा: भाई ये कुछ वक्त के लिए वह आती है। बहुत नखरे है साली के ।

बद्री: हम्म्म!

शमशेरा: भाई तुम लोग इनमें से किसी को भी चुन लो और अपनी आज की रात रंगीन करो।

श्याम: शमशेरा नहीं यहाँ पर हिंद के बहुत से राजा है। उनमे से किसी ने हमे कहीं पहचान लिया तो...!

शमशेरा: तो क्या? तुम भी उनसे पूछ सकते हो कि वह यहाँ क्या कर रहे हैं? आगे तुम सब की मर्जी ।में चला रेशमा के पास उसकी लेने।

श्याम के साथ बद्री बलदेव भी एक साथ चौंक कर कहते हैं ।

"क्या?"

शमशेरा: हाँ भाईयो मैं जाता हूँ।

शमशेरा उठ के अंदर जाता है, जहाँ पर रेशमा अपने पैरो पर बंधे घुंघरू खोल रही थी और पास में उसका एक राजा था जो उससे बात कर रहा था।


57-breathe

रेशमा उस राजा से कह रही थी।

रेशमा: राजा जी आप कैसे अंदर आ गए? यहाँ आने की सबको इजाज़त नहीं है ।

राजा: रेशमा मुझे तुम्हारे साथ रात गुजारनी है चाहे तो तुम मुंह मांगी रकम ले लो।

रेशमा अपने घुंघरू खोल कर निकालती हुई मुस्कुराती है।

रेशमा: पहले तुम बताओ, क्या दोगे तुम रेशमा को?



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राजा: मैं सोने के 100 सिक्के दूंगा।

शमशेरा: खबरदार!

राजा: तुम कौन?

रेशमा: तुम इन्हें नहीं जानते ये सुल्तान मीर वाहिद के शहजादे शमशेरा हैं...आइये शहजादे!

राजा: मुआफ करना शहजादे हमें आपको पहचान नहीं पाए!

शमशेरा: कोई बात नहीं!

राजा: पर मैं यहाँ पहले आया हूँ और आज के लिए रेशमा मेरी हुई।



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शमशेरा: लगता है तुम ऐसे नहीं मानोगे...तुम सौ 100 सिक्के दोगे, पर में 500 सिक्के देता हूँ आज । अब रेशमा को फैसला करने दो।

रेशमा: रेशमा तो यहाँ उसके साथ ही जाएगी जो उसे सही कीमत दे।

राजा चुप हो जाता है।

शमशेरा: बोलो! अब मैं इसे 1000 सिक्के देता हूँ।

राजा: गुस्ताख़ी मुआफ़ हुज़ूर में भूल गया था कि मैं तो एक छोटा-सा ही राजा हूँ।

राजा ये कह कर वहाँ से चला जाता है।

शमशेरा: वाह रेशमा! वैसे आज कयामत ढा रही हो जानेमन!

रेशमा: अब आप जैसे बिगडे हुए शहजादे रेशमा की बोली इतना लगा दे, तो वह तो कयामत ही ढायेगी।

शमशेरा आगे बढ़ कर रेशमा को अपनी बाहों में भरने की कोशिश करता है।



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"आज ओफ़्फ़्फ़ ओह्ह्ह! ए शहजादे इतनी भी क्या बेकरारी?"
शमशेरा वही पास में गद्दे पर बैठ जाता है और रेशमा ज़ाम बना कर शमशेरा को अपने हाथ से पिलाने लगती है।

ज़ाम का नशा शमशेरा का सर चढ़ बोल रहा था, वही बाहर बैठा बद्री और श्याम से रहा नहीं जाता है, फिर वह भी मदीरा मंगवा लेते हैं और पीने लगते हैं। बलदेव भी अब तक गरम हो गया था।

बलदेव: (मन में-मुझे माँ की बहुत याद आ रही है। इन सुंदरियों का नाच बहुत देख लिया अब तो माँ के सोने का समय भी हो गया होगा ।

बद्री: अरे बलदेव क्या सोच रहे हो आज हमारा आखिरी दिन है पारस में, मदीरा पियो!

बलदेव: नहीं नहीं...यार!

बद्री: क्यू भाभी ने मना कीया है? और ज़ोर से हंसता है । फिर श्याम भी बलदेव को देख हँसता है।

बलदेव: माँ को अगर पता...!

बद्री: भाई जब हम वापिस पहुँचेगे तब तक तो वह सो गई होगी, पी लो उन्हें पता नहीं चलेगा ।

श्याम बद्री बलदेव की ओर मदिरा बढ़ा देते है और बलदेव भी अपने आप को रोक नहीं पाता है और मदिरा पी लेता है।

अंदर रेशमा अपने कमर को बलखाते हुए नाचते हुए अपने वस्त्र शमशेरा के सामने खोल रही थी, फिर कुछ ही देर में वह धीरे-धीरे नग्न हो गयी और अब वह बिना किसी कपड़े के शमशेरा के सामने नाच रही थी ।

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शमशेरा ज़ाम का घुट लेते हुए उसे देख रहा था। फिर रेशम आकर शमशेरा के गोद में बैठ जाती है, अब शमशेरा से रुका नहीं जाता, वह उसके भारी मम्मों को पकड़ मसलता है और अपना लंड रेशमा की गांड पर रगड़ते हुए अपने कपड़े भी निकलने लगते हैं।

कुछ देर में दोनों एक दूसरे को चूमने लगते हैं, शमशेरा रेशमा को लिटा कर उसपर चढ़ जाता है।




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"आह रेशमा तुम्हारा बदन कितना गरम, चिकना और मुलायम है, तुम सच में बहुत खूबसूरत हो"

शमशेरा रेशमा के ओंठो को चूम रहा था और अपने बदन से रेशमा के नाज़ुक बदन को मसल रहा था । अब रेशमा अपना हाथ आगे बढ़ा कर शमशेरा का लौड़ा पकड़ लेती है। उसे लौड़ा बहुत गर्म लगता है ।

"इसे बहुत बुखार आता है मुझे देख के आ जाओ अब इसका बुखार निकालु।"

रेशमा लौड़ा पकड़ कर अपनी चूत के मुँह पर रखती है, फिर शमशेरा ज़ोर का धक्का मारता है तो उसका लौड़ा एक बार में ही पूरा जड़ तक चला जाता है।

"आआआआआह शहजादे! आप का बहुत बड़ा है आराम से!"

शमशेरा धक्के पर धक्का मारने लगता है।


74-r5

"उहह आआहह! मेरी रेशमा तुम्हारी माखन चूत!"

"आआआह राजा ओह शहज़ादे! आराम से!"

ये ले रेशमा मेरा लौड़ा! "



"ये लौड़ा नहीं है लौडो का बाप है, मुझे इतना दर्द कोई नहीं देता शहजादे, जितना आप देते हो।"

ये सुन कर वह और जोश में आकर तेजी से चोदने लगता है।


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कुछ देर यू हे चुदाई के बाद शमशेरा अब रेशमा की टाँगे उठा कर चोदने लगता है, इस वक्त रेशमा अपने आखे बंद किये हुए सिस्कीया ले रही थी।

अब शमशेरा का पानी निकलने के करीब था ।

"आआह शहजादे मेहरबानी कर आप मणि अंदर न निकाले, मैं माँ बन जाऊँगी !"

"आह आह!"



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शमशेरा ज़ोर का धक्का देता है और जैसे वह शमशेरा की नज़र रेशमा पर जाती है उसे अपनी अम्मी जान मल्लिका हुरिया नज़र आती है।

"अम्मी जान !"

ये कह कर आगे बढ़ कर रेशमा दोनों दूध पकड़ कर दबाता है और अपनी आँख बंद करता है तो उसे अपनी अम्मी की कुछ ऐसी ही तसवीर उसके दिमाग में आती है।

शमशेरा-"आह अम्मी !"

करता हुआ रेशमा की चूत में ही झड़ने लगता है ।



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कुछ देर झडने के बाद रेशमा चिल्लाती है ।

"हाय मैं मर गई, उतरो भी, मेरे ऊपर से, कितना पानी छूट गया, मेरी चूत पूरा भर गयी ।"

बाहर बद्री और श्याम ज़ाम का घुट भरते हुए मुजरा करती हुई एक लड़की को अपने पास बुला लेते हैं।

वो दोनों उसके अंग को छु कर सहला कर मजे ले रहे थे और वह भी बारी-बारी उन दोनों के गोद में बैठ कर बारी-बारी मजे ले रही थी ।

बलदेव: यार ये शमशेरा कहाँ रह गया, रात हो गयी है ।

बद्री: चुप चाप मजे लो आजाऔ हमारे साथ । देखो ये नर्तकी कितनी सुंदर है।



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बलदेव: नहीं मुझे नहीं चाहिए ये, ये गलत है।

बलदेव ज़ाम का गिलास लिए वहाँ से दूर चला जाता है।

बद्री: (मन में-साला खुद तो माँ से मजे लेता हैं अगर हम कुछ करे तो गलत है।)

फिर बद्री वह नाचने वाली का दूध दबा देता है जिसे बलदेव देख लेता है। वह भी नशे में था, उसका लौड़ा खड़ा हो जाता है पर वह जान बुझकर इनसे दूर हट जाता है कि कही वह कुछ गलत ना कर बैठे ।

अंदर शमशेरा कुछ देर बाद फिर से रेशमा की चूत मारता है, फिर बहार आता है तो देखता है बद्री और श्याम भी मजे कर रहे हैं।

शमशेरा: अरे ये बलदेव किधर है भाईयो?

बद्री: वह मेरे पास नहीं है ।

शमशेरा: चलो चलें!

बद्री: अब हम चलते हैं ।

तो वह नाचने वाली कहती है।



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"हुजूर हमारी बख्शीस!"

शमशेरा: वो मैं भेजवा दूंगा अपने आदमी के हाथ से महल से।

वो खामोश हो कर चली जाती है तीनो बलदेव के पास आते है जो गहरी सोच में था।

शमशेरा: क्या हुआ बलदेव तुम परेशान क्यू हो?

बलदेव: वो माँ ने कहा था जल्दी आ जाने के लिए, ऊपर से मैंने मदीरा भी चढ़ा ली है । अब कैसे उनका सामना करूंगा?

शमशेरा: कोई नहीं चलो अब! वैसे आज मैं जल्दी जा रहा हूँ नहीं तो सुबह ही वापिस जाता हूँ।

तीन बाहर निकल कर तहखाने के रास्ते से सीधे ऊपर आते हैं। आसमान में चांद पूरा था और ठंडी हवाएँ बढ़ गई थी, रास्ता सुनसान था और परिंदों की चहक से लग रहा था कि पहली सुबह हो गई थी और आधी रात से भी अधिक समय बीत गया है।

तीनो घोड़े पर बैठ तेजी से महल की ओर जा रहे थे। कुछ देर में तीनो महल तक पहुँच जाते हैं।

शमशेरा: भाईयो जा कर चुप के सो जाओ, किसी से कोई बात करने की जरूरत नहीं है ।

महल में आते हुए हर सैनिक इनको देख रहा था, जो रात की निगरानी कर रहे थे।



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शमशेरा अंदर आकर अपनी कक्षा में घुस जाता है।

बद्री और श्याम भी अपने कक्ष में घुस जाते है।

बलदेव अपने कक्ष की ओर जाता है । वह दरवाजे को इस उम्मीद से खोलता है कि खुला होगा पर वह बंद था।

बलदेव: अब तो पक्का माँ को उठाना पड़ेगा।

बलदेव लड़खड़ा रहा था, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अब क्या करे?

बलदेव: माँ ओ माँ दरवाजा खोलो!


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देवरानी बाहर समय तक बलदेव का राह देख रही थी और उसकी कुछ समय पहले ही झपकी लगी थी, इसलिए जैसे ही उसके कान में बलदेव की आवाज जाती है, वह उठ जाती है।


"खोलो दरवाजा! माँ!"

देवरानी: (मन में-मैं पूरी रात तड़पी हूँ, इसका इंतजार कीया है और ये गुलछर्रे उड़ा के आ रहा है ।आह देखती हूँ इसको !

देवरानी जान बुझ कर दरवाजा नहीं खोलती है और अपनी आखे बंद कर फिर लेट जाती है।

बलदेव अब ज़ोर से दरवाज़ा पीट रहा था । नशे की हालत में इतना शोर गुल सुन कर हुरिया की भी आँख खुल जाती है।


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हुरिया: उफ़ ये बलदेव क्यू चिल्ला रहा है आधी रात को?

हुरिया कुछ देर में हालात समझने के बाद बाहर निकलती है।

हुरिया: अरे बेटा बलदेव तुम आ गये क्या?



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बलदेव नशे में लड़खड़ते हुए बोलता है ।

बलदेव: जजिज्ज ववो माँ दरवाज़ा नहीं खोल रही।

हुरिया: तुमने कितनी पी रखी है बलदेव, तुम इस हाल में कैसे माँ के पास जाओगे, तुम बद्री और श्याम के कक्ष में रह सकते हो।

कुछ देर से देवरानी को बलदेव की आवाज ना आती देख वह उठ कर आती है और धीरे से दरवाजा खोलती है।

जैसे ही दरवाजा खुलता है बलदेव सामने ही खड़ा था और लड़खड़ाते हुए हुरिया से बात कर रहा था।

जिसे देख देवरानी का पारा चढ़ जाता है।



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बलदेव दरवाजा खुलने पर आये रोशनी से उस तरफ देखता है । फिर अपनी माँ को खड़ा पा कर कहता है ।

"मां आप उठ गईं?"

देवरानी ने उसे गले लगा लिया ।

"जिसका बेटा इतना बड़ा शराबी हो, रात भर बाहर रंग रेलिया मनाये वह भला कैसे चेन की नींद सो सकती है?"

"मां आप गलत समझ रही हो।"

"चुप कर बलदेव गलत तो मैं हूँ, तुम तो सही पर ही रहते हो, मुझे सब पता है तुम रेशमा...! ।"

ये कहते हुए उसकी आंखो में आसु छलक जाते हैं।

हुरिया: आराम से बात करो बहन रात का समय है । अब सब सो जाओ सुबह बात करेंगे ।



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देवरानी: मुझे इससे बात ही नहीं करनी । इसे बोलो जहाँ जाना है वहाँ जाए!

बलदेव: माँ मुझे नींद आई है ।सोने दो!

देवरानी: ये कोई कोठा नहीं है जो जब मर्जी आ जाए और जब मर्जी हो चले जाएँ!

देवरानी ये बात धीरे से अपनी आँखों में आसू के लिए कहती है और अंदर जाने लगती है।




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बलदेव उसके पीछे जाता है पर तभी अंदर से देवरानी तकिया चादर के लिए आती है और बलदेव की और फेकती है जो सीधा बलदेव के मुंह पर जा कर लगता है।

"मां क्या कर रही हो?"

"मेरे पास सोने की ज़रूरत नहीं जाओ यहाँ से!"

हुरिया: देवरानी इतना भी क्या गुस्सा करना?

देवरानी: दीदी इसे समझा दो नहीं तो मैं कुछ गलत कर बैठूंगी। मुझे पता है आधी रात में नशे में धुत जब मर्द मुजरा देख कर आता है तो वह क्या कर के आया है । इसके शरीर से वही गंध आ रही है ।

ये कह के देवरानी वापस जाने लगती है बलदेव अपना सर झुकाए खड़ा था । उसके सामने तकिया और चादर ज़मीन पर गिरे हुए थे ।

देवरानी दरवाजा बंद करती है फिर खोल कर गुस्से में कहती है ।



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"सुनो" ना तो मैं बाज़ारू हूँ या ना तो ये कोठा है जो जब चाहा मुँह उठा कर आये, मेरे दिल कि तुम कीमत नहीं लगा सकते बलदेव! "

ये कह फट से दरवाज़ा लगा लेती है।

ये सब सुन कर बलदेव का तो जैसा नशा ही उड़ जाता है और वह सोचता रह जाता है कि माँ हुरिया के सामने ऐसे कैसे ये सब बात कर रही है!

बलदेव अब हुरिया से भी आखे नहीं मिल पा रहा था!



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हुरिया: बेटा उठा लो ये तकिया और चादर! आओ मेरे साथ।

बलदेव हुरियारे के पीछे जाता है।

हुरिया: बेटा ये शमशेरा तो अब नशे में दरवाजा खोलने से रहा, तुम ऐसा करो, आज मेरे ससुर के कमरे में सो जाओ!

बलदेव शर्मिन्दा होते हुए

"वो मौसी, मुझे मुआफ़ कर दो! मेरी वजह से इतना सब आपको देखना सुनना पड़ा"

हुरिया: अरे बेटा ...तुम्हें पता है शमशेरा रोज़ ही ऐसा करता है, पर उसने आज तक मुआफ़ी नहीं माँगी । उसने अगर तुम्हें लग रहा है कि तुमने गलत किया है तो यही काफ़ी है।

ये कह कर हुरिया चली जाती है और बलदेव जा कर सीधा बिस्तर पर लेट जाता है, उसे दरवाजा बंद करने का भी ख्याल नहीं रहा था।


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बलदेव: (मन में-ये माँ ने ऐसा खुलेआम सब कुछ बक दीया पर मालिका ने मुझसे मेरे और उनके सम्बंध के बारे में कुछ नहीं पूछा...!)

सोचते हुए बलदेव गहरी नींद में चला जाता है।

जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

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अलविदा सुलतान , मल्लिका शमशेरा, मामा और पारस!


घटराष्ट्र

रात के अँधेरे में कोई देवरानी के कक्ष में घुसता है या उसके कक्ष की पड़ताल शुरू करता है वह शख्स उस कक्ष के हर एक कोने में जाँच करता है, ये शख्स और कोई नहीं बल्कि महारानी श्रुष्टि ही थी जो रात के अँधेरे में देवरानी के कक्ष में आयी थी।


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उसका कुछ किताबों पर ध्यान जाता है, श्रुष्टि उन को खोल कर देखती है, तो वह कामसूत्र की पुस्तक निकलती है।
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शुरुष्टि : (मन में-ओह तो देवरानी इतना आगे निकल गई, ये पढ़ के अपने बेटे से रंगरलिया मनाती है ।)



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ये पढ़ के पुस्तक को रखती है तभी उस पुस्तक में से एक कागज़ नीचे गिरता है जिसे शुरुष्टि उठा कर पढ़ती है या शुरष्टि के पैर कांपने लगते है।


KS04
शुरष्टि: (मन में-"हे भगवान प्रेम पत्र, वह भी माँ बेटे का, अब मजा आएगा बस देवरानी और बलदेव वापस आ जाए. अब दोनों मेरे वार से बच नहीं पाओगे! हाहाहाहा! अब क्या करोगी देवरानी जब मैं ये पत्र महाराज को दे दूंगी! हाहाहाहा!")



KS-RARE0


शुरष्टि ये पढ़ के धीरे-धीरे बलदेव के वह हर प्रेम पत्र जो देवरानी के पास था उसको अपने पास रख लेती है और फिर चुपचाप बलदेव की कक्ष में जा कर भी तलाशी कर के देवरानी के लिखे हुए पत्र ढूँढ कर अपनी कक्ष में आकार छुपा कर रख देती है।

"देवरानी और बलदेव ये सब तुम दोनों की मृत्यु का कारण बनेंगे । देवरानी को मैं कभी इस राज्य की महारानी नहीं बनने दूंगी।"



LETTER1
शुरष्टि ऐसे ही अपने ख्वाबो को सजाये अपने कक्ष के बिस्तर पर लेट कर सो जाती है।

घटराष्ट्र की सुबह बहुत ही शोर गुल से शुरू होती है जहाँ घटराष्ट्र के लोग हल्ला मचा रहे थे।

महाराजा राजपाल अपनी कक्ष से निकलते हैं।

राजपाल: ये क्या शोर है?

राजपाल चलते हुए महल से बाहर निकलते हैं।

चुकी महल के अंदर सिर्फ काम करने वाली नौकरानीयो के अतिरिक्त किसी भी बिना काम के सैनिको का जाना वर्जित था इसलिए महाराज स्वयं ही बाहर निक आये थे ।



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राजपाल: सेनापति सोमनाथ ये क्या शोरगुल मचा हुआ है?

सोमनाथ: महाराज आपके मित्र कुबेरी के महाराज आ रहे हैं।

राजपाल: क्या राजा रतन सिंह आ रहे हैं?



SENAPATI1
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सोमनाथ: जी महाराज!

राजपाल: जाओ अंदर महल में और कह दो के वह महल में वह रुकेगे, अतिथि गृह में नहीं! वह हमारे परिवार का अंग है उनके लिए विशेष पकवान बनाये जाए!

सोमनाथ: जो आज्ञा महाराज!

सोमनाथ महल के अंदर आकर दसियों को ढूँढ रहा था, उसे सामने से महारानी शुरष्टि आती हुई दिखती है।


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सोमनाथ महारानी श्रुष्टि के मोटे लटकते वक्ष और उसकी गहरे नाभि को घूर रहा था। महारानी श्रुष्टि सोमनाथ के पास आकर उसे टोकती है ।


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शुरुष्टि: सोमनाथ तुम होश में तो हो?

सोमनाथ: क्यू महारानी मैंने क्या पाप कर दिया?

शुरुष्टि: तुम अंदर कैसे आये?

सोमनाथ से रहा नहीं जाता है और वह शुरष्टि को अपने बाहो में भर पास के कक्ष में घुस जाता है।



SARI5
"छोडो मुझे कमीने दुष्ट सेनापति!"


75-3

"ओह महारानी! जब मेरा लौड़ा तुम्हारी चूत में घुस सकता है तो क्या मैं महल में भी नहीं आ सकता।"


75-4

सोमनाथ शुरष्टि के दोनों हाथों को अपने हाथों में थाम दीवार पर सृष्टि को चिपका देता है और सृष्टि के गले पर चुमता है।



74-r2

"उम्म्म्हा!"
75-7

"छोडो मुझे सेनापति!"

75-8



सोमनाथ अब शुरष्टि के होठों को अपने होठों में ले लेता है और उन्हें चूसने लगता है। सृष्टि अपने होठों को जोर से दबाये हुई थी और मुंह खोलने का नाम नहीं ले रही थी।

75-9\\


सेनापति अब सृष्टि के कमर के चारो और बाहो में कस के अपना खड़ा लंड महारानी श्रुति की चूत पर रगड़ते हुए चूम रहा था।


75-10


"छोडो सेनापति कोई देख लेगा तो, तुम्हें पता नहीं आज के दिन ही जान देनी पड़ेगी तुमको !"


75-16


"महारानी मैं तुम्हारे शरीर के लिए पागल हो गया हूँ । अगर इसके लिए इस पल ही मैं मर जाउ तो मुझे कोई अफ़सोस नहीं होगा।"


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सोमनाथ अब अपने एक हाथ से शुरष्टि के दूध को दबाने लगता है और दूसरे हाथ से उसके गांड को दबाता है ...।

75-12

"उम्म्म्हा!"

75-13

"महारानी तुम इस घाघरा चोली में बहुत सुंदर लगती हो।"
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"आआह उह नहीं बस्स करो! अब जाने भी दो।"


75-15



सोमनाथ एक बार फिर शुरष्टि के होठों पर टूट पड़ता है । एक गहरा चुम्बन ले कर उसे छोड़ता है।


KIS2
"ठीक है महारानी जैसी आपकी आज्ञा! जाने दिया ।"



75-2

"कमीने तुम मुझे इस तरह से प्रयोग करोगे! मैंने ऐसा सोचा नहीं था।"



75-1

सोमनाथ मुस्कुराता हुआ वहा से निकल कर महल के दासियो को महाराज की आज्ञा समझा कर चला जाता है।

कुछ देर बाद सभा लगाई जाती है और राजा रतन भी समय पर पहुँच जाते हैं, उनके स्वागत के बाद राजा रतन सिंह को महाराज राजपाल अपने घर यानी राजमहल में रुकने को कहते हैं।



पारस

पारस में सुबह हमेशा की तरह चहल पहल से होती है। चहल पहल से पूरा पारस का बाज़ार भरा हुआ था । जहाँ पूरी दुनिया के व्यापारी अपने व्यापार के लिए आते थे और पूरी दुनिया के राजा अपने मजे के लिए आये हुए थे ।

पारस के सुल्तान मीर वाहिद महल में आराम कर रहे थे, तभी वहा पर एक सिपाही आकर शिकायत करता है।


SULTAN-1
"गुस्ताख़ी मुआफ़ सुल्तान पर कल रात शमशेरा फ़िर से कोठे पर गये थे और...!"

"अब हमने उसे कई मर्तबा कहा कि तुम्हारी शादी कर देते हैं पर वह है कि मानता नहीं । अब हम क्या करें! हम भी किसी जमाने में शमशेरा जैसे ही थे।"

ये बात सुन कर सिपाही खामोश हो जाता है।

इधर बद्री और श्याम उठ कर जाने की तयारी कर रहे थे । बलदेव की आख खुलती है, उठने के बाद देवरानी भी तैयार होने लगती है।


SEMI3

कुछ देर में सब नाश्ता खाने के लिए एक साथ बैठेते है। देवरानी बलदेव की ओर देख भी नहीं रही थी जिसे सब महसूस कर रहे थे।

देवराज: तो बच्चो! कब निकलोगे घटराष्ट्र के लिए?

देवरानी: कभी पधारे हमारे राज्य सुल्तान! हमें भी अतिथि का मान सम्मान करने के लिए जाना जाता है।

सुल्तान: हाँ! बहन हिंद देखने की ख्वाहिश तो मुझे भी है पर जा नहीं पाता!



देवरानी: सुलतान हमे भी आपका आतिथ्य और मान सम्मान करने का मौका दीजिये!


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सुलतान: बेशक! बहन!

बद्री: हमारी पूरी तैयारी हो गई है । हम निकलेंगे दोपहर तक!

सब खा कर उठ कर चले जाते हैं।

वहा पर देवरानी और हुरिया थी और बलदेव भी बैठा हुरिया के जाने का इंतजार कर रहा था पर वह नहीं जाती तो हार कर बलदेव देवरानी को पुकारता है ।

बलदेव: माँ!

देवरानी बलदेव की पुकार अनुसुना कर देती है।



75-17

बलदेव: माँ क्या हुआ? बताओ तो मेरी गलती क्या है?

देवरानी: दीदी इसे कह दीजिए मुझसे बात ना करे।





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हुरिया: देवरानी कब तक गुस्सा करोगी?

देवरानी: मुझे ऐसे चरित्रहीन व्यक्ति से कोई बात नहीं करनी!

ये सुन कर बलदेव वहा से उठ कर चला जाता है। ये सोच कर अगर माँ ने गुस्से में कुछ और बोल दीया तो हुरिया के सामने इनके प्रेम का भांडा फूट जाएगा तो उनका हुरिया के सामने मान समान सब खत्म हो जाएगा!




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बलदेव बाहर आता है और उदास हो कर बैठ जाता है। पास ही में अपने घोड़ों को चारा दे कर उन्हें तैयार कर रहे, बद्री की नज़र बलदेव पर पड़ती है और उसे यू दुखी देख कर बद्री उसके पास जाता है ।

बद्री: मित्र तुम उदास क्यू हो?

बलदेव: सब तुम लोग ठीक हो!

बद्री: क्या कह रहे हो।

बलदेव: हाँ कल मैं तुम लोग के साथ रहा और नशे में धुत हो कर आया तो माँ मुझपे गुस्सा हो गयी है और बात नहीं कर रही है ।

बद्री: पहली बात इसमें हमारा क्या दोष और दूसरी बात तुम दोनों प्रेमी प्रेमिका के बीच मैं नहीं पडूंगा। बस यही कहूंगा तुम उन्हें मना लो!


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बलदेव: पर बात ऐसी है कि वह समझ रही है कि चरित्रहीन हूँ और मैंने उसे धोखा दिया है । मैंने रात रेशमा के साथ गुजारी है।

बद्री: ओह तो ये बात है, अब भाभी तुम्हें किसी और के साथ नहीं देख सकती, पर उनको कैसे पता चला की हम रात को रेशमा के कोठे पर गए थे?

बलदेव: अब ये मुझे नहीं पता की उन हे कैसे पता चला, परन्तु मेरे मित्र कुछ करो, मुझे तो समझ नहीं आ रहा की मैं कैसे समझाऊँ माँ को? क्यू की अगर मैं ये कहूँ भी कि तुम सब ने मजे किये पर मैंने नहीं तो भी मानेगी नहीं वो।

बद्री: मैं कुछ करता हूँ जाओ! तुम वापस चलने की तैयारी करो।

बद्री कुछ सोचता हुआ अपने काम में लग जाता है।



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थोड़ी देर बाद देवरानी के कक्ष के पास खड़ा हो कर पुकारता है ।

"मौसी मैं बद्री!"

"हाँ आ जाओ बेटा!"

"बलदेव कहा है?"

"वो बाहर ही होगा। क्यू?"

"वो ऐसे ही...तो वापस घत्रराष्ट्र जाने के लिए आप तैयार हो ना?"

"हाँ बेटा बद्री!"


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"मौसी आप बुरा ना माने पर आप उदास लग रही हो!"

"नहीं तो मैं क्यों उदास रहूंगी भला?"

"बात ऐसी है कि बलदेव ने कहा है, आप उसपर गुस्सा हो, कल रात की बात को ले कर।"

देवरानी ये सुन कर गुस्सा हो जाती है।

"बद्री जब तुमने बात निकली है तो कहो क्या जो तुम लोगों ने रात में किया वह ठीक था? क्या रेशमा की वहा जा कर जो किया वह ठीक था?"

"नहीं मौसी ग़लत था!"

"तुम लोग कैसे दोस्त हो, शमशेरा उसे नहीं जानता, तुम दोनों तो उसे जानते हो! तुम दोनों तो ऐसी गंदी जगह जाने से रोक सकते थे बलदेव को?"


"हान पर!"

"बद्री तुम दोनों को तो पता है, हम एक दूजे को कितना प्रेम करते हैं और मेरा प्रेमी किसी अन्य स्त्री के साथ रात में था, मुझे तो ये सोच के घिन आ रही है।"

"मौसी आप को हम बचपन से अपनी मां-सा समझते हैं, मैं आप से जो बोलूंगा सत्य ही कहूंगा।"

"अब कहने को बचा ही क्या है बद्री?"

"देवरानी मौसी ने अपनी माँ की कसम खा कर कहता हूँ हम रेशमा के कोठे पर जरूर गए थे, पर बलदेव ने किसी भी स्त्री को छुआ भी नहीं।"


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देवरानी चौकते हुए "ये क्या कह रहे हो? कैसे?"

"हाँ मौसी शमशेरा में और श्याम बहक गए थे, हमारे बहुत कहने पर बलदेव पूरी रात पीता तो रहा पर उसने किसी को हाथ तक नहीं लगया, इतने नशे में भी वह बार-बार आपका ही नाम ले रहा था।"




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ये कह कर बद्री अपने किये पर शर्मिंदा-सा होते हुए अपना सर झुका कर खड़ा हो जाता है।


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देवरानी ये सुन कर खुश हो जाती है।

"बेटा जवानी में कदम फ़िसल ही जाते हैं लोग, तुम्हें सर झुकाने की ज़रूरत नहीं और धन्यवाद बेटा मेरेमन की शंका तो तुमने दूर कर दिया, मुझे अब विश्वास हो गया है कि मेरा बलदेव कभी मुझे धोखा नहीं दे सकता।"

ये कह कर देवरानी मुस्कुराती है।




DEVRANI-SIT
"धन्यवाद मौसी हमें समझाने के लिए और आज के बाद मैं भी कभी नहीं जाऊंगा। आप हमे क्षमा कर दे।"

"ठीक है बद्री जाओ अब चलने की तैयारी करो।"

बद्री दरवाजे के पास जाता है और मुड़ के कहता है ।

"वैसे भाभी आप आज्ञा दो तो अब बलदेव को अपना सामान लेने के लिए आपके पास भेज दू।"

देवरानी एक बार तो गुस्साती है, शर्मा कर, फिर मुस्कुरा के कहती है ।



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"ठीक है देवर जी!"

ये कह कर अपना सर नीचे झुका लेती है।

देखते देखते दुपहर हो जाती है।

देवरानी देखती है बलदेव समान ले जाने के लिए कक्ष में आता है।

देवरानी: बलदेव!

बलदेव जैसे ही अपनी माँ के मुँह से अपना नाम सुना वह माँ की तरफ पलट जाता है ।

देवरानी अपने हाथ में दूध का गिलास लिए हुए खड़ी थी।

देवरानी: ये लीजिए आप कल रात दूध नहीं पी पाएँ।

बलदेव देवरानी से दूध ले कर पी लेता है।

बलदेव: माँ मुझे क्षमा कर दे!

देवरानी झट से बलदेव के गले लग जाती है।




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"मेरे राजा मुझे तुम पर शक नहीं करना चाहिए था । मुझे बद्री ने सब बता दिया मेरे राजा।"

बलदेव देवरानी को अपनी बाहों में भर लेता है ।

"मेरी रानी में जान दे देना पसंद करूंगा। पर किसी गैर महिला को नज़र उठा के देखूंगा भी नहीं। मेरा पहली प्रेम हो तुम देवरानी।"

दोनों कुछ देर बैठ कर बात करते हैं फिर अपना सामान बाहर ला कर घोड़े लाद देते हैं।

देवरानी सब से मिलती है।

हुरिया: (देवरानी के कान में फुसफुसाती है) अरे वाह जाने की खुशी में गुस्सा भूल गई? क्या उनको मुआफ कर दिया?


HUR-DEV

देवरानी: नहीं दीदी उनकी कोई ग़लती नहीं है। मुझे सब कुछ पता चल गया है ।

दोनों मस्कुराती है।

हुरिया: दोबारा आना देवरानी! तुमसे मिल कर ऐसा लगा जैसे हम सदियों से एकदूसरे को जानते हैं।

देवरानी: दीदी आप मेरी तरह ही हो! आपको एक बात कहु, कृपा करके बुरा मत मानना!

हुरिया: बोलो मेरी बहन!

देवरानी: मुझे नहीं लगता दीदी आप खुश हैं। देखिए आज मैं बलदेव की वजह से कितना खुश हूँ और मेरा बलदेव मुझे कितना चाहता है। मुझे लगता है आप भी इतना खुश रह सकती हैं... अगर...!

हुरिया: अगर क्या बहन?

देवरानी: मुझे लगता है शमशेरा भी बलदेव की तरह खुश रह सकता है...!

हुरिया: तौबा...जाते वक्त ऐसी बात...मुझे जहन्नमी नहीं होना है बहन...और मुझे जितना मिला है मैं उसी में मैं खुश हूँ। आप अपनी जिंदगी को जियो । पर हमारे मजहब में...!

देवरानी: बस-बस मल्लिका ए जहाँ हुरिया जी! एक बार आपके साथ पूरी दुनिया घुमने की इच्छा है।

हुरिया: क्यू नहीं देवरानी! बस अगर ये फ़िज़ूल की बाते छोड़ दो तो तुम्हारा दिल सोने का है और तुम्हारी इस ख्वाहिश के लिए हम ज़रूर कुछ करेंगे। आखिर आधी दुनिया पर हमारी हुकुमत है।

देवरानी: अलबिदा दीदी!

हुरिया: सलामत रहो मेरी बच्ची कह उसे गले लगाती है।

देवरानी हुरिया की पैर छू कर बाहर आती है।

देवरानी देवराज की चरण छू गले लगती है।

देवराज: मैं जल्द ही आऊंगा मेरी बहन! और अब तुम से मिलता रहूंगा।

देवराज और सुलतान देवरानी और बलदेब को कुछ उपहार भेंट करते है ।

देवराज और शमशेर बद्री श्याम को भी उपहार देते है ।

बद्री: आइए आप लोग भी हिंद!

सुलतान: आप सब को कहीं भी रस्ते में कोई पेशानी पेश आए तो हमें याद कर ले और कोई मदद चाहिए तो रास्ते में लोगों से कह दे की आप सुलतान मीर वाहिद के मेहमान है आपको पूरी मदद मिलेगी ।

बलदेव: जरूर सुलतान!


सुलतान: अलविदा बच्चो!

बलदेव: नमस्कार सुलतान और मल्लिका!

बलदेव देवराज के चरण छु कर नमस्कार करता है ।

बलदेव मामा प्रणाम! माँ आप जल्दी हमारे यहाँ पधारना!

देवराज: आयुष्याम भव: पुत्र!

देवराज बलदेव को आशीर्वाद दे कर गले लगा लेता है।

बलदेव शमशेर के गले मिल, बिदा लेता है और कहता है मित्र पाना ख्याल रखना ।



DEV-HORSE



सब से मिल कर बद्री श्याम और देवरानी अपने घोड़े पर बैठ जाते है।

शमशेरा: खाला और बलदेव तुम भी अपना ख्याल रखना!

बद्री और श्याम: तुम भी अपना ध्यान रखना । अच्छा लगा तुम लोगों से मिल कर ।

बद्री श्याम और बलदेव: शमशेरा हम मिलते रहेंगे!

शमशेरा: ज़रूर दोस्तो!

शमशेरा: अलविदा!

बद्री श्याम , देवरानी और बलदेव : अलविदा सुलतान , मल्लिका शमशेरा, मामा और पारस!




HORSES3
बलदेव सबसे पहले घोड़े को दौड़ाता है, उसके बाद देवरानी फिर उसके पीछे उसके पीछे श्याम और उसके पीछे बद्री के घोड़े दौड़ने लगते हैं।

HORSE-ARMY

महल के सामने सुल्तान के साथ सब खड़े उन्हें दूर तक जाते हुए देख रहे थे...।

जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 76

मक्कार राजा रतन सिंह देवरानी पर मोहित हुआ


घटराष्ट्र

महल में जहाँ राजपाल अपने मित्र राजा रतन सिंह के आने से खुश थे वही महारानी श्रुति बलदेव और देवरानी के प्रेम पत्र हाथ लग जाने से देवरानी को जान से मारने की अपनी चाल कामयाब नजर होती आ रही थी।



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शुरष्टि मौके की तलाश में थी, के कब वह राजा राजपाल से बात कर के, देवरानी और बलदेव के प्रेम पत्र उसे दिखा दे, पर राजपाल अपने मित्र के साथ समय बिता रहा था और शुरष्टि मन मसोस के रह जाती है।

आज बलदेव, बड़ी और श्याम तर्था देवरानी को पारस से निकले दो दिन हो गए थे और महल में राजा रतन और राजा राजपाल मदिरा के चुस्की लेते हुए कहता है ।

रतन: मित्र राजपाल लगता है हमारे शत्रु हमसे डर के भाग गए, अब तक उन्होंने कोई आक्रमण ही नहीं किया?




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राजपाल: महाराज अभी कुछ नहीं कहा जा सकता! मेरी राय में खतरा अभी टला नहीं है।

रतन नशे के हाल में कहता है ..

रतन: राजपाल जी आने दो, उनके खून से होली खेलेंगे हम!




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राजपाल: हाँ जरूर वैसे हमारे घटराष्ट्र की मदिरा आपको कैसी लगी?

रतन: अब हमारे कुबेरी जैसा नशा तो नहीं इसमें पर घटराष्ट्र की मदिरा भी कम नहीं है ।

राजपाल: हम्म या परिवार में सब कैसे हैं?




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अलीज़ा

रतन: राजपाल परिवार की पूछ रहे हो या मेरी अंग्रेज़ पत्नी अलीज़ा के बारे में पूछ रहे हो?

राजपाल शर्मा जाता है।

राजपाल: सब का महाराज!

रतन: हम्म्म! जब से तुमने उसे मजा दिया है। वह तुम्हे याद करती रहती है । मेरी पत्नी अलीज़ा कह रही थी के तुम अच्छे पेलू हो।

राजपाल: अरे कहा? वह तो अब पहले जैसा काम नहीं करता, परंतु तुम्हारी पत्नी की गोरी चमड़ी ने ऐसा असर क्या किया ...!

फिर दोनों हसने लगते है।


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शुरष्टि अपने कक्ष में सोच रही थी ।

"ये महाराज के पास तो मेरे लिए समय ही नहीं है अब उनको राजा रतन सिंह के सामने कैसे ये सब बताउ?"

देखते ही देखते शाम होने लगती है।

महल के आगे सैनिक खड़े पहरेदारी कर रहे थे।

सैनिक: वो देखो रानी देवरानी या युवराज आ रहे हैं।


HORSE-DEV
दुसरा सैनिक: हा! रानी देवरानी की जय हो युवराज की जय हो!


HORSES3

सैनिक: हे कमला हे राधा!

कमला और राधा महल से बाहर आती है और दरवाज़े पर खड़े दोनों सैनिकों से पूछती हैं ।

"क्यू चिल्ला रहे हो?"

सैनिक: वो देखो युवराज बलदेव वापस आ गये पारस से।



KAMLA-MAID

कमला

कमला को जहाँ खुशी होती है वही राधा चुपचाप अंदर अपनी महारानी श्रुष्टि के पास जा कर उसे सुचना देती है ।




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राधा

राधा: महारानी शुरष्टि वह लोग पारस से वापस आ गए!



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शुरष्टि: ठीक है आने दो । (मन में-अब उन्हें इस दुनिया से दूर भेजना बाकी रह गया है।)

और हँसने लगती है जिसे देख राधा भी मुस्कुराती है।

सूर्यस्त हो चूका था बलदेव देवरानी घोड़े से उतारते हैं देवरानी उतारते साथ ही वह अपने ससुराल के सम्मान में अपना पल्लू अपने मुंह पर ढक लेती है।

सामने मुख्य द्वार देवरानी की सास महारानी जीविका, के साथ महारानी शुरष्टि और साथ ही कमला और राधा भी खड़ी थी ।




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शुरष्टि: आओ देवरानी! घटराष्ट्र में वापिसी पर, आप सबका स्वागत है।

देवरानी आकर सबसे पहले महारानी जीविका अपनी सास के चरण स्पर्श करती है ोे आशीर्वाद लेती है और फिर सृष्टि के पैर पड़ती है सृष्टि देवरानी को पकड़ गले लगा लेती है।

"देवरानी तुम मेरी सौतन नहीं तुम तो मेरी छोटी बहन हो ।"

कमला: आप लोगों को सुरक्षित देख बहुत खुशी हो रही है।

बलदेव आगे आता है।



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दादी की चरण स्पर्श कर प्रणाम करता है

"दादी आप ठीक तो हैं ना? "

"हाँ पुत्र! जीते रहो! "

बलदेव फिर अपनी बड़ी माँ के पैर छूता है।

"बड़ी माँ, प्रणाम!"

"जीते रहो मेरे लाल!"

बद्री या श्याम भी सबके चरण छू प्रणाम करते हैं ।

बलदेव: बड़ी माँ पिता जी कहाँ है?



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शुरष्टि: कुबेरी के राजा रतन जी आए हैं। वह उनके साथ बैठे हैं, उनको तुम लोगों के वापिस आने की खबर मिल गई है आते होंगे।

तभी नशे में धुत राजपाल आता है।

राजपाल: सब बाहर ही खड़े रहोगे क्या? अंदर आओ!

सब अंदर आते हैं बलदेव अपने पिता के पैर छू कर आशीर्वाद लेता है।

राजपाल: कैसा रहा तुम सब का सफर?



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देवरानी: जी अच्छा था महाराज!

ये सुन कमला मंद-मंद मुस्कुराती है।

राजपाल: मेरे साले देवराज ने मुझे याद किया कि नहीं?

देवरानी: जी पूछ रहे थे तो मैंने बता दिया कि वह नहीं आ सके. उन्होंने आपके लिए भेट भेजी है ।

राजपाल: चलो! अब तुम सब आराम करो इन सब के खाने और विश्राम का प्रबंध करो, रात होने वाली है।

बलदेव बद्री और श्याम को ले कर चला जाता है। कमला देवरानी को ले कर उसके कक्ष में जाती है ।



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कमला: महारानी बहुत खिल रही हो! लगता है खूब रंग रलिया मनाई हो ।

देवरानी: पागल ऐसा कुछ नहीं है।

कमला: अब ना बताओ अपने मुँह से, पर मुँह गोल हो गया है और बदन भी, जैसे खूब महनत हुई हो!

देवरानी: चुप करो और जा कर अपना काम करो, मेरा खाना यहीं ले आओ । मैं थक रही हूँ और मुझे नींद आ रही है।

देवरानी अपने बिस्तर पर जैसे ही लेटती है उसे कुछ एहसास होता है।


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देवरानी: (मन में-मुझे ऐसा लग रहा है कि यहाँ कोई आया था और मेरी अनुपस्थिति में मेरा सब सामान भी सब सही जगह पर नहीं है।)

देवरानी थकी हुई थी इसलिए फिलहाल सब नजरअंदाज कर आखे बंद कर लेटी रहती है।



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इधर बलदेव तथा श्याम और बद्री बैठे बातें कर रहे थे।

बद्री: ये कुबेरी के राजा रतन सिंह नहीं दिख रहे?

बलदेव: नशे में होगा वो!

श्याम: भाई ये राजा रतन सिंह को घर में, मेरा मतलब है महल में क्यू रखा? बाहर अतिथि गृह में उन्हें ठहरने की व्यवस्था क्यू नहीं की गयी?

बलदेव: अब वह मेरे पिता के लिए खास मित्र है इसीलिए बरना हम किसी गैर मर्द को महल के अंदर नहीं आने देंते, भले ही वह कोई भी क्यों न हो और सैनिक भी बिना वजह के महल में नहीं आ सकते ।

तीन बात करते रहते हैं फिर कमला खाना ले कर आ जाती है।




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कमला: ये लीजिए युवराज आप सबका खाना।

बलदेव: वो माँ ने खा लीया?

कमला मुस्कुरा के कहती है ।

"मां की बड़ी चिंता हो रही है, मैं उन्हें खिला दूंगी।"

ये सुन कर बद्री और श्याम चुटकी लेते हुए हंसने लगते हैं।



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बलदेव चिढ कर उन पर तकिया फेक कर मारता है।

बद्री और श्याम भागते हैं आओर बलदेव तकिए से उन्हें मारता है।

कमला: बच्चो तुम सब खा लेना, मैं चली, मुझे महारानी देवरानी को खाना देना है ।

कमला देवरानी को खिला कर अपने घर लौट जाती है।

बद्री और श्याम भी खाना खाते हैं।

बद्री: कल सुबह हम भी वापिस अपने देश चलेंगे श्याम!

श्याम: ठीक है।

बलदेव: कुछ दिन रुक जाते मित्रो!

बद्री: समझो बलदेव, हमें हमारे परिवार से भी मिलना है । हम फिर कभी आएंगे।

तीनो अपनी पुरानी बात करते हुए सो जाते हैं।

रात बीतती है सुबह सवेरे सबसे पहले देवरानी की आख खुलती है वह उठ कर कहती है ।

"हे भगवान!"

सबसे पहले वह पूजा करती है फिर योग करती है और महल से बाहर बगीचे में घूमती है।



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बाग में टहल रही देवरानी इस बात से अंजान थी कि कोई उसे देख रहा है।

सुबह रतन सिंह भी उठ गया था या जैसे ही वह महल से बाग की ओर जा रहा था उसके आखे सुंदर देवरानी को देख कर जम जाती है वह बस देखता रह जाता है।

राजा रतन: सैनिको सुनो!

सैनिक: जी महाराज!



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राजा रतन: ये सामने कौन स्त्री टहल रही है?

सैनिक: महाराज उन्हें घूंघट नहीं क्या है इसलिए हम उनकी तरफ नहीं देख सकते। आप भी नहीं देख सकते, क्यू के वह महाराज की पत्नी रानी देवरानी है। उनको पता चल गया तो...!

राजा रतन सिंह मुस्कुराता है।

"चल हट!"

राजा रतन सैनिक को धक्का दे कर दूर करता है।

रतन सिंह: (मन में-इसे तो देख कर हे मेरा लैंड खड़ा हो गया, भाग्य से ये देवरानी निकली, राजपाल की पत्नी, जिसका विवाह मैंने ही करवाया था, तब तो ये पतली दुबली थी और अब ऐसी भरपूर माल हो जाएगी ये मैं कभी सोचा ना था। इसे तो मैं पेल के रहूंगा। अरे! वाह! कितना मजा आएगा...!

रतन सिंह वापस महल में आ जाता है अभी भी सब सो रहे थे।

कुछ देर टहल के रानी देवरानी महल में आती है और जैसे ही अपने कक्ष में घुसने को होती है उसे आवाज सुनाई देती है ।



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रतन सिंह: देवरानी जी!

देवरानी मुड़ कर देखती है और राजा रतन को पहचान लेती है।

"अरे आप महाराज रतन जी!"

"आप कैसी हो देवरानी जी?"

"जी! मैं ठीक हूँ।"

"तुम ठीक नहीं अति सुंदर हो।"



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और ये कह कर राजा रतन देवरानी के करीब आता है।

"ये क्या बात कर रहे हैं आप?"

"सही कह रहा हूँ देवरानी जी, मुझे पता नहीं था आप इतनी सुंदर हो जाओगी?"

"महाराज आप हमारे पिता की आयु के हैं। ऐसी बात आपको शोभा नहीं देती!"

फिर देवरानी अपनी कक्ष में जाने लगती है पर राजा रतन सिंह देवरानी का हाथ पकड़ लेता है।




50-4
आप छोड़िये हमें, हम महाराज को कह देंगे! "

"वो राजपाल जिसने खुद मेरे साथ जीवन भर अय्याशी की है वह क्या करेगा? तुम्हें पता नहीं राजपाल कितना मजे करता है,"

फिर वह देवरानी को खीचता है और उसका एक हाथ को ज़ोर से पकड़ कर कहता है।

तुम भी मजे करना चाहो तो मैं हूँ!

देवरानी ऐसे खुले में राजा रतन की ऐसी बेशर्मी से गुस्सा हो जाती है

"तुम्हारी इतनी हिम्मत?"




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"फट्ट" कर के एक तमाचा रतन सिंह के गाल पर रख देती है।

"राजा रतन तुम्हें मैं अपने पिता समान मानती तो और तुम इतने घिनौने निकले! तुम एक राजपूतनी पर हाथ डालने का मतलब नहीं जानते क्या? भला हुआ की हमारे हाथ में तलवार नहीं थी तो हम अभी तुम्हारे सर धर से अलग कर देती! नीच व्यक्ति!"

राजा रतन सिंह अब देवरानी से दूर खड़े हो जाता है और एक हाथ उसके लाल हुए गाल पर था।

देवरानी अपनी कक्ष में घुस कर दरवाजा बंद कर लेती है।

राजा रतन सिंह वही खड़ा सोचने लगता है।

"मेरी जान देवरानी! तुम्हें तो उल्टा कर के चोदूंगा। देखता हूँ तुम्हें कौन बचाता है और ये राजपाल मेरा कुछ नहीं करेगा क्योंकि उसपे मेरा पहले से उधार बाकी है । राजपाल तो अब तुम्हें मुझे सौप कर अपना उधार चूकता करेगा मेरी रानी!"

फिर राजा रतन सिंह मक्कारी के साथ मुस्कुराता है...


जारी रहेगी

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