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deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 64
बलदेव देवरानी के साथ अपने प्रेम के बारे में मित्रो को बताता है


देवरानी बलदेव के स्नान घर से बाहर जाते ही वह दरवाजा बंद कर लेती है

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देवरानी: (मन में-आज तो मैं बच गई नहीं तो बलदेव ने तो आज उसने मुझे इस हालत में पकड़ कर मसल ही देना था और अपनी सोच पर शर्मा जाती है ।


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फ़िर अपना आपको देख -"तू भी तो अपना हाल देख देवरानी, ऐसे हाल में तुझे देख कर कोई भी तुझे बिना मसले नहीं छोड़ेगा।"



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देवरानी नहा कर बाहर आती है तो देखती है बलदेव अब भी उसका इंतजार कर रहा है।



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देवरानी एक अदा से उसको देखती है।

"क्यू राजा बड़ी शिद्दत से इंतज़ार हो रहा है ।"



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ज्यों ही हे बलदेव की नज़र देवरानी पर पड़ती है तो उसकी आखे चौंधिया जाति है क्यू के देवरानी इस समय छोटे से तौलिये में अपने भारी शरीर को ढके हुए थी जिसमें से उसका आदे वक्ष साफ दिख रहे थे हुए उसका तौलिया उसके मांसल और चिकनी जंघो तक ही था।



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पहले से गरम बलदेव खड़ा होता है और अपना हाथ सीधा अपने तने हुए लौड़े पर ले जा कर लौड़ा मसलने लगता है।



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बलदेव: मां क्या माल लग रही हो ये तौलिया भी उतार फेंको।

देवरानी देखती है कि बलदेव का धोती तन कर तम्बू बन गयी है और उसका हाथ उसके लौड़े को मसल रहा है।




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देवरानी एक अदा से आह भरते हुए कहती है ।

"बलदेव तुम्हें शर्म नहीं आती मेरे सामने वह ऐसी हरकत करते हुए?"

"मां तुम्हें शर्म नहीं आती अपने बेटे के सामने आधी नंगी खड़े रहते हुए?"

बलदेव अब अपना लौड़ा पूरा ज़ोर से पकड़ आगे पीछे करने लगा!

देवरानी झेप जाती है और अपनी आंखे नीचे कर लेती है।

"मुझे क्या पता था तू यही होगा वैसे उसे ज्यादा अपने हाथ से मत तड़पाओ!"

बलदेव: इतनी दया आ रही है मेरे इस पर तो अपने हाथ से इसे शांत कर दो मेरी रानी!

देवरानी: धत्त बदमाश!

बलदेव: बस इतनी हे दया और प्रेम है मुझ पर?

देवरानी अब बलदेव के करीब आ जाती है।

"प्रेम तो इतना है मेरे राजा के मैं जान भी दे सकती हूँ।"




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बलदेव देवरानी को अपनी बाहों में भर लेता हूँ ।

"मेरी माँ...! "

"हा मेरे राजा ! "




HUG-HOT
बलदेव अपने होठ देवरानी की गर्दन पर रख कर चूमने लगता है ।

देवरानी: आआहह राजा!




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बलदेव: माँ तुम भीगी हुई बहुत सुंदर लगती हो।

देवरानी: हम्म! इसलिए मेरे कहने के बाद भी तू मुझे छोड़ स्नानागार से बाहर नहीं जा रहा था?



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बलदेव देवरानी को सहलते हुए अपने हाथ देवरानी को गांड पर ले जाता है । फिर तौलिए के ऊपर से वह उसकी गांड सहलाते हुए दबाता है।

"आआआह राजा आह उम्म्म्म!"




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"मां, तौलिये में तो तुम्हारी ये गांड तो पूरी गोलाई में दिख रही है।"

बलदेव: (मन में-ऐसा लग रहा है मेरी रानी नंगी ही मेरी बाहों में है ।)

बलदेव अब अपना एक हाथ से देवरानी के दूध को सहलाता है फिर धीरे-धीरे दबाता है।

" आह बलदेव धीरे करो!

"माँ एक बात पूछु?"

"हाँ पूछो मेरे राजा!"

"मां अगर मेरा कोई भाई बहन होता तो क्या आज हम ये सब कर पाते?"

"बेटा जब प्यार सच्चा हो तो भगवान जोड़ी मिला ही देता है।"




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" आहह उम्म्म्म आराम से करो!

बलदेव अब देवरानी को भींच कर बाहे में कस कर ले लेता है और अपने हाथो को देवरानी की दोनों उभरे नितम्बो पर रख ज़ोर-ज़ोर से मसलता है।

"मेरी रानी अगर वह बगावत करते हमारे विरुद्ध तो?"

"बेटा तो मैं इन्हे साफ-साफ कह देती कि तू मेरा प्रेमी है और तेरे भाई बहन को तुम्हें पिता कहने के लिए कहती..!."

"आह मेरी रानी! तुम सच में रति देवी हो।"

बलदेव देवरानी के होठों को चूमने लगता है।




54-6
"गैलप्प गैलप्प-गैलप्प स्लुरप्प गैलप्प-गैलप्प गैलप्प्प!"

देवरानी के होठों को चूस कर छोड़ता है।

"मां मैं बचपन में हमेशा सोचता था कि मेरे कोई भाई बहन नहीं है ।"

"बेटा तुम्हारे पिता जी गिन के 10 बार भी मेरे साथ सोये नहीं, तो मैं कैसे तुम्हारे भाई बहन को जन्म देती? और तुम्हारे जन्म के बाद तो एक बार भी मेरे साथ नहीं सोये!"

"मां ये भी सही हुआ, नहीं तो आज उन्हें भी समझना मुश्किल होता ।"




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the psalm of life
"हमममम!"

देवरानी अपना आप को थोड़ा उठा कर अपने होठ बलदेव की छाती पर रख कर चूमती है।

बलदेव अपनी माँ जो अपनी एड़ी को उठाये उसके साथ चिपकी थी, अपने दोनों हाथो से उसके बड़ी गांड को मसलने लगता है।




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"मां, क्या तुम्हारा कभी दिल नहीं हुआ कि तुम्हारे और बच्चे हो?"

"बेटा मेरा मन तो था कि मैं भी और बच्चे पेदा करू किसी भी औरत की तरह और खास कर मेरा सपना था कि मेरी एक राजकुमारी-सी बेटी भी हो!"

"क्या माँ आपका सपना-सपना ही रह गया।"

देवरानी अपना सर बलदेव के कंधे पर रख कहती है ।

"कोई बात नहीं है बेटा मेरा कोई सपना पूरा नहीं हुआ, ये भी नहीं हुआ तो क्या हुआ?"

"मां मेरी रानी एक बात कहू?"

"कहो मेरे राजा!"



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बलदेव अपनी माँ की गांड और कमर को सहलाते हुए बोला - "माँ अगर मैं तुम्हारे सपने को पूरा करूँ तो!"


देवरानी : "मतलब?"

बलदेव अब अपनी माँ के पेट को सहलाते हुए -"मां अगर मैं तुम्हारी इस कोख को भर दूं और तुम्हारा अधूरा सपना पूरा कर दूं तो!"

देवरानी अपना सर पीछे कर बलदेव को देखती है कि वह कही मजाक तो नहीं कर रहा था और देवरानी फिर से बलदेव के गले लग जाती है।




57-1
"माँ बोलो ना!"

"बेटा ये मुमकिन नहीं...!"

"मां मैं तुम्हारा हर वह सपना पूरा करना चाहता हूँ जो अधूरा रह गया है ।"

"बेटा इतना प्यार मत कर मुझसे। तू कहीं इस प्यार की आग में जल ना जाए. मुझे डर लगा रहता है।"

"माँ मैं जलने के लिए तय्यार हूँ अपने पहली और अंतिम प्रेमीका देवरानी के लिए।"

तभी बलदेव की नज़र पलंग पर रखे कुछ वस्त्रो की ओर जाती है।

"मां वह रंग बिरंगे वस्त्र क्या है?"

"बेटा वह अंतर वस्त्र है मल्लिकाजहाँ हुरिया ने दिया है वह इन्हे फ्रांस से लाई थी।"

"फ्रांस से पर इसे कहते क्या है माँ?"

"बेटा ये ब्रेज़ियर और जांघिया है।"




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देवरानी ये कह कर शर्मा कर एक मुक्का बलदेव की छाती पर मारती है।

"हाय मेरी माँ शर्मा रही है।"

बेटा ये महिला वस्त्र में नया शोध है । हमारे यहाँ तो सिर्फ एक वस्त्र की छोटी-सी पट्टी पहनी जाती है। जिसे कंचुकी कहते हैं । "

"माँ पर ये उन्होंने आपको क्यों दिए?"

"वो सब छोडो! ये सुल्तान मीर वाहिद और मल्लिका हूर ए जहाँ का राज आज पूरी दुनिया में है।"

"मां आधी धरती पर है पूरी पर नहीं !"

"बहुत बड़े सुल्तान हैं वो!"

"हाँ माँ उनका राज पारस से ले कर अरब और अरब से ले कर अफ्रीका और मैंने ये भी सुना हूँ फ्रांस तक सुल्तान मीर वाहिद ने कब्ज़ा कर लिया हैं।"



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rabindranath tagore poems with meaning

बलदेव देवरानी को फिर से अपनी बाहों में भरता है।

"मां ये उतार दो मुझे इसमें छुपे खजाने को देखना है।"

"बेटा जाओ खजाना रात भर तुम्हारे पास रहेगा मुझे हुरिया दीदी के पास जाना है अब मैं अपने कपड़े पहन लूं।"

बलदेव समझदारी दिखाते हुए देवरानी को अपनी बाहो की कैद से आज़ाद करता है और बाहर चला जाता है। वह देवरानी को कपडे पहन के लिए अकेली छोड़ देता है।

बलदेव बाहर र आकर एक सैनिक से कहता है ।



baldev
"सुनो!"

"जी हुजूर!"

"ये मेरे मित्र कहा है?"

"हुजूर वह बागीचे की तरफ गए हैं।"

बलदेव समझ जाता है और सैनिक के बताए हुए रास्ते की तरफ जाने लगता है ।

बलदेव देखता है श्याम और बद्री टहलते हुए आपस में बद्री बात कर रहे थे ।

बलदेव: अरे तुम लोग इधर हो मैं तुम दोनों को कब से ढूँढ रहा हूँ!

श्याम: आओ बलदेव!

बद्री: सच में हमें ढूँढ रहे थे या कहीं और व्यस्त थे?

बद्री को गुस्से में देख बलदेव पूछता है ।

बलदेव: तुम्हें क्या हुआ बद्री तुम पहले जैसा नहीं हो?

बद्री: पहला जैसा कौन नहीं रहा? अपने दिल से पूछो मैं झूठ नहीं कहता हूँ तुम्हारी तरह।




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बलदेव: सच कहूँ तो तुम दोनों को माँ की कक्षा से निकलने के बाद ढूँढ़ा पर तुम दोनों महल में दिखे नहीं।

बद्री: माँ ह्ह्ह!

बलदेव गुस्सा हो जाता है।

"बद्री तुम मेरे मित्र हो इसलिए कह रहे हो कभी माँ शब्द इस तरह उच्छरण मत करना।"

बद्री: मूर्ख मुझे मत सिखाओ माँ के शब्द की पवित्रता और श्याम! अब मुझे वह धर्म सिखाएंगे जो खुद अपनी माँ को ले कर सोते हैं।

बद्री भी गुस्से में आग बबुला हो कर अपनी भड़ास निकलता है ।

बलदेव ये सुन कर -"श्याम इसको समझा दो और बोलो अपनी जिह्वा को लगाम दे। सब बच्चे अपनी माँ के साथ सोते हैं इसमें गलत क्या है?"

बद्री: पर तुम तो वह करते हो जो एक पत्नी के साथ करना चाहिए।

बलदेव ये सुन कर अचंभित था कि बद्री ये कैसे जानता है?

"बेटा बलदेव तुम हमारे साथ बचपन से रहे हो और तुम्हारे अंदर बदलाव आना हमारे साथ कम समय व्यतीत करना। हमे इसी तरफ इशारा कर रहा था । मुझे तो शक बहुत पहले था कि तुम्हारे जीवन में कोई आ गया है ।"

श्याम: तुम दोनों झगड़ा मत करो। कोई सुन लेगा तो बदनामी हमारी ही होगी। एक तरफ चलो, हम बैठ कर समाधान निकालेंगे।

बद्री: हाँ! मैंने सोचा था कि किसी के साथ तो तुम्हारा टंका भिड़ा है पर तुमने तो अपनी माँ को ही अपनी वासना का शिकार बना लिया।

बलदेव का जैसा अंग-अंग गुस्से से लाल हो जाता है और वह अपनी दोनों मुट्ठी बंद करता है।

"बद्री अगर तुम मेरे मित्र न होते तो आज मैं तुम्हें इसी समय जिंदा ही इस धरती में गाड़ देता।"

"कैसी मित्रता तुमने हम से हर बात छुपाई है और अब तो तुम्हारे जीवन में तुम्हारी वासना की पूर्ति करने वाली भी आ गई है, तो मार दो हमें।"

"श्याम इस बद्री को समझाओ! अपनी सीमा में रहे!"

श्याम: तुम दोनों गरम दिमाग के हो! शांत रह के भी बात क्या जा सकती है। शांत हो जाओ तुम दोनों!



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श्याम: सुनो बात ये है कि हमने तुम्हें जंगल में मौसी के साथ तम्बू में...!


TENT-KIS1

श्याम अपना सर नीचे कर लेता है।

बद्री: बलदेव हमे तुम से ये उम्मीद नहीं थी। तुम तो सबको ज्ञान देते थे।

बलदेव: सुनो अपना कान खोल कर मेरा तथा देवरानी का प्रेम सच्चा है। इसे कभी भी वासना का नाम मत देना, मैं इस बात को मानता हूँ कि मुझे तुम दोनों को पहले ही सब बता देना चाहिए था । पर बता नहीं पाया । उसके लिए मुझे क्षमा कर दो पर मेरे प्यार को गलत शब्द मत देना।

ये कह कर बलदेव वहा से गुस्से में चला जाता है।


जारी रहेगी
 
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aamirhydkhan

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बहुत बढ़िया साथ ही PIC भी बिलकुल कहानी के अनुसार डाली हैं .
हिंदी लिपि में कहानी पढ़ने का अलग ही मजा है ..
 

deeppreeti

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महारानी देवरानी

अपडेट 65

पारस का बाज़ार

बलदेव अपनी माँ अपने प्यार के खिलाफ एक शब्द नहीं सुन सकता था और बद्री का बलदेव और देवरानी के प्रेम को वासना बताने भर से बलदेव का खून खोल गया था और बद्री और श्याम को चेतावनी दे कर चला जाता है।


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बद्री: श्याम देखा तुमने! इसे हमारी बात पर कितना गुस्सा आया था । उल्टा चोर कोतवाल को डांटे!

श्याम: मैं तुम्हारी हर बात समझ रहा हूँ मित्र, पर तुम भी परिस्थिति समझो! इस समय हम अपने देश से बहुत दूर हैं, पराए राज्य में हैं और वह भी मौसी देवरानी के भाई के राज्य में! अगर तुम्हारी बात को किसी ने सुन लिया तो ...?

बद्री: तो क्या होगा? श्याम ज्यादा ज्ञान मत दो। तुमने बलदेव का नहीं सुना कैसे मौसी को नाम ले कर कहता है वह जैसे कहीं का बड़ा महाराज हो। "मेरे और देवरानी के बीच वासना नहीं प्यार है।" इसकी को...!




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श्याम: शांत हो जाओ मित्र! अपनी बुद्धि का इश्तमाल करो! तुम तो जानते हो बलदेव का गुस्सा! वह लाल हो गया था पर वह मित्र समझ कर...!

बद्री: चुप कर श्याम मैं चूड़ियाँ पहन कर नहीं बैठा हुआ इसकी सब अकड़ मैं अकेले ही निकाल सकता हूँ।

उधर महल के अंदर तैयार हो कर देवरानी हुरिया के कक्ष में जाती है।




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देवरानी: दीदी मैं आ जाऊँ!

हुरिया: हाँ हाँ! आजाओ छोटी!

देवरानी कक्षा में आती है और अपने आप को छोटी कहे जाने से झूठा नखरा दिखाती हैं!

देवरानी: मैं कहाँ से छोटी हूँ दीदी!



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हुरिया: मोहतरमा तुम मेरे से तक़रीबन 10 साल छोटी हो!

देवरानी: हम्म! वह तो है! आप बड़ी हो, आप को मुझे मर्जी से जो चाहो सो बुलाऔ!

हुरिया: अरे! आओ बैठो!

देवरानी: जी! दीदी! बैठ रही हूँ। दीदी पर बुरा ना मानो तो एक बात कहू!

हुरिया: कहो ना!

देवरानी: आप हमेशा ये पहनती रहती हैं! दिन रात गर्मी नहीं लगती आपको?




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हुरिया: नहीं पगली! हिजाब की आदत हो गई है!

देवरानी: पर आप मुझे जब से आई हूँ तब सेआप को ऐसे ही इसे पहने हुए देख रही हूँ!

हुरिया: तुम कहना चाहती क्या है?


देवरानी: आप इतनी सुंदर हो! आप तो पूरी दुनिया की मल्लिका हैं। खूब सजी सवर कर रहो ना।

हुरिया: देवरानी तुम्हें पता है दुनिया वाले जो सोचे पर मैं कभी भी ऐसा महसुस नहीं कि मैं पूरी दुनिया की मल्लिका जहाँ हूँ।

देवरानी: आपको पता भी है कि आप के सुल्तान का कितने राज्यो में राज है।

हुरिया: मुझे नहीं पता वह भी बस इतना पता है कि पारस से ले कर अफ्रीका तक सुल्तान की सल्तनत है।

देवरानी: आपको जरा भी अकेलापन मेहसूस नहीं होता? इतने बड़े महल में आप अकेली रहती हैं।

हुरिया मुस्कुराती हुई!

हुरिया: अकेली...नहीं देवरानी हमारा खानदान बहुत बड़ा है।

देवरानी: तो सब कहाँ है।

हुरिया: अगर दो दिन पहले तुम आते तो सब से मिल लेती वह सब एक जलसे के लिए अरब गए हैं।

देवरानी: अच्छा कौन-कौन है आपके परिवार में?

हुरिया: सास, ससुर और मेरी तीन सौतन है, उनके बच्चे है। मेरी ननद है!

देवरानी: ओह तो सब यात्रा पर गए हैं!

हुरिया: हाँ! वह लोग कुछ दिनों बाद आएंगे और तुम्हारे खानदान में?



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देवरानी: दीदी हमारा छोटा परिवार है मेरी सास और एक सौतन है मेरे बलदेव के पिता हैं या मेरे पति ...!

देवरानी पति बोल रुक जाती है!

हुरिया: तो सौतन तुम्हारी भी है।

देवरानी: हाँ दीदी मेरी तो एक है या आपकी तीन-तीन हैं ।




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हुरिया: हाँ सुल्तान ने चार शादिया की है, पर बाकी की रनिया बहुत कम ही इस महल में रहती हैं । तुम्हारे वहा तो माने सुना है एक ही शादी का रिवाज है।

देवरानी: हाँ! दीदी, पर अब राजा तो राजा होता है कहीं का भी हो कई रानिया रख ही लेता है ।

हुरिया: हाँ बहन वैसे 4 बीवीओ के अलावा सुल्तान मीर वाहिद के हरम में 150 कनीज भी हैं।

देवरानी: हे भगवान ...150 स्त्रीया है सुल्तान के हरम में। बुरा मत मानना दीदी फिर तो बहुत रंगीन मिजाज के है आपके पति!

हुरिया: अब क्या कर सकती हूँ! बहन अब हम पहले जमाने वाली मोहब्बत कहा करता है कोई और खास कर अगर खासकर रानीया हो तो राजा चार जगह तो मुंह मरेगा ही ।

देवरानी: इस प्रकार तो मेरी हुरिया जहाँ दीदी जी, उनका प्यार बंट जाता होगा। फिर तो सुल्तान आपसे एक महीने में मिलते हैं या के 6 महीने में?



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देवरानी हसती हुई ताना मारती है ।

हुरिया: नहीं देवरानी! ऐसा नहीं है मैं खुश हूँ जैसा भी है। सुल्तान मेरी इज्जत और मुझे प्यार करता है। क्योंकि मैं उनकी सबसे पहली बीवी हूँ और रही बात प्यार की तो हफ्ते में एक बार तो मुझे सुल्तान याद करता ही है ।

देवरानी: इस मामले में मैं फंस गई हूँ क्यूकी में दूसरी पत्नी हूँ।



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ये बात सुन कर हुरिया हँस पड़ती है।

देवरानी: दीदी एक सप्ताह में प्यार मिलता है और फिर आप पूरा सप्ताह तड़पती रहती हैं तो आपको सुल्तान पर गुस्सा नहीं आता?

हुरिया: खुदा खैर करे! में उनपर गुस्सा होकर गुनाह क्यू कमाउ?

देवरानी: दीदी! आप ये झुब्बा उतार दो ना!

हुरिया मस्कुराते हुए कहती है ।

"तू नहीं मानेगी छोटी।"




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हुरिया अपना हिजाब उतार कर दूसरी तरफ रख देती है ।



RUKHSANA

हुरिया: बस खुश! देख ले अब इस बूढ़ी को!

देवरानी: वाह! आप तो बहुत सुंदर हो! आप का तो अंग-अंग सुंदरता से चमक रहा है।

हुरिया: अब इतनी भी नहीं हूँ... उमर हो गई अब मेरी!




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देवरानी: अरे! कहीं से आप बूढ़ी नहीं लगती। अगर आपका ये रूप देख ले तो आज भी कोई नौजवान युवराज आप पर जान दे दे।

हुरिया: अब आधे से ज्यादा जिंदगी गुजर गई पर्दे में । अब क्या सजना और दिखाना!

देवरानी: दीदी आप ऐसी बात मत कीजिए जीवन में जितना हो सके खुश रहिए! और आप सच्ची अपनी उम्र से कम लगती हैं।

हुरिया: अच्छा बाबा मान लिया।

देवरानी: आप सज सवर कर रहिए और देखिए सुल्तान आपके पास आपकी तीनो सौतनो को छोड़ रोज आपके पास आएंगे!

हुरिया: अच्छा जी!



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देवरानी: जी दीदी! फिर वह अपने हरम की किसी भी औरत को देखेंगे भी नहीं।

हुरिया: शुक्रिया! मेरी बहन मेरे बारे में इतना अच्छा सोचने के लिए पर तुझे देख कर मेरा मन कहता है तुम भी अपने शौहर से परेशान हो।

देवरानी: तुम भी मतलब! आप भी परेशान हो क्या?

हुरिया: नहीं नहीं!

देवरानी: मुझे अब कोई परेशानी नहीं है मुझे मेरा जीवन का उद्देश्य मिल गया है।

हुरिया: अच्छा वो! तो तुम्हारा शौहर साथ में नहीं है, इसी वजह से मैं कह रही थी।

देवरानी हसने लगती है।




MAHA1A
"दीदी वह थोड़े डरपोक है । उनके शत्रु उनकी हर तरफ है इसलिए नहीं आये!"

हुरिया: मैंने तो पहली बार तुम्हारे बेटे को ही तुम्हारा शौहर समझ लिया था, क्यू के देवराज ने कहा था के तुम शौहर के साथ आ रही हो।

देवरानी (मन में: तुम सही समझो दीदी!)

देवरानी: होता है दीदी! कोई बात नहीं!

हुरिया: और तुमने वह ब्रेज़ियर पहना या नहीं और हा उसमें जंघिया भी था मैं तुम्हे बताना भूल गई!

देवरानी शर्मा कर!

देवरानी: जी दीदी! अभी पहना है ।

हुरिया: इसलिये तुम्हारा सामान कम हिल ड़ुल रहा है ।

हुरिया ठहाके के साथ हसती है।

देवरानी: दीदी आप भी ना!

तभी दोनों के कानों में ढोल की आवाज गूंजती है।

"खामोश रहना देवरानी कुछ ऐलान हो रहा है।"

"सुनो सुनो सुनो! आज पारस में सुल्तान ने फनकारो की मंजलिस रखी है और पारस की मशहूर फनकार आज रात अपना हुनर दिखाएंगे! सुनो-सुनो सुनो!"

देवरानी: दीदी क्या कह रहे हैं?

हुरिया: आओ बाहर चले!

दोनों बाहर आकर अपने कान लगाकर सुनने लगती है।

"सुनो सुनो सुनो! ये जश्न महाराज देवराज जी की बहन के आने की खुशी में मनाया जा रहा है।"

तभी वहा से शमशेरा तेजी में चलते हुए आ रहा था और अपनी माँ को देख रुक जाता है ।

शमशेरा: अरे माँ आप और खाला देवरानी आप भी यहाँ है?

देवरानी: बेटा वह ऐलान सुनने आये थे ।

शमशेरा: खाला वह अब्बा हुजूर ने जश्न मनाने का एलान किया है।

हुरिया: अच्छा तो कौन-कौन फनकार आ रहा है शमशेरा!

शमशेरा: अम्मी आज की महफ़िल में पारस के जितने भी फनकार हैं शायर कव्वाल सब आ रहे हैं ।





DEVRANI-KHUSH

हुरिया ख़ुशी से झूम उठती है और उसके साथ ही उसका चेहरा भी खिल जाता है। जिसे गौर से देख रहा था शमशेरा।


देवरानी: (मन में: बड़ा खुश है और अपनी माँ को गौर से देख भी रहा है)

शमशेरा: मैं अभी आया अम्मी! थोड़ी जल्दी मैं हूँ।

हुरिया: कहा चले बेटा?

शमशेरा बिना कुछ बताए चल देता है।

देवरानी: कहाँ गये युवराज शमशेरा ?

हुरिया: कहा जायेंगे अपने पीने का बंदोबस्त करने गया होगा । दोनों बाप बेटे एक जैसे हैं ।

देवरानी: तो दीदी आप मना नहीं करतीं?

हुरिया: क्या मना करु बहन! मेरे मना करने से इसके बाप नहीं माने, ये कहाँ मान जाएगा।

फिर वह लोग वापस कमरे में जा कर बात चीत में लग जाती हैं।

इधर बलदेव गुस्सा हो कर अपने मामा को ढूँढते हुए शमशेरा से टकराता है।

बलदेव: आपने मामा को कहीं देखा है क्या?

शमशेरा: देखा तो है बराबर!

बलदेव: कहा है वो?

शमशेर: आगे तो सुनो पर मुझे नहीं पता है वह अभी कहा है!

बलदेव मज़ाक समझते हुए एक गुस्से की निगाह से देखता है।

शमशेरा: अरे बच्चा गुस्सा हो गया!

बलदेव: ये क्या बदतमीजी है!

शमशेरा: दोस्त मुआफ़ करना। वैसे मैं मज़ाक कर रहा था । मुझे क्या पता की इस समय मामा आपके कहाँ है! वैसे अगर कोई काम न हो तो चलो मेरे साथ।

बलदेव: कहाँ युवराज?




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शमशेरा: चलो भाई तुम्हें पारस के मशहूर बाज़ार में घुमा कर लाता हूँ।

बलदेव के पास कोई काम नहीं था वह भी शमशेरा के साथ अपना घोड़ा निकाल लेता है और दोनों बाज़ार की ओर चल देते हैं ।

कुछ दूर घुड़सावरी करने के बाद बाज़ार शुरू हो जाता है । भीड में भी शमशेरा अपना घोड़ा दौड़ाते हुए जा रहा था।

बलदेव: युवराज घोड़ा यहीं बाँध दीजिये, भीड़ में औरतें और बच्चे हैं, किसी को भी चोट लग नहीं लगनी चाहिए ।

शमशेरा: कैसी बात करते हो भाई मैं शमशेरा पारस का होने वाला सुल्तान हों और मैं जल्द ही पूरी दुनिया पर हुकूमत करने वाला हूँ।

शमशेरा: हट जाओ मेरे रास्ते से!

कह कर अपने घोड़े से रास्ता बनाता हुआ भीड़ को चीरता हुआ जाता रहता है और बाज़ार में हाहाकार मच जाती है।



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"हट जाओ सब! शहजादे हैं।"

या पूरी भीड़ छट जाती है बलदेव मजबूरन शमशेरा के पीछे अपने घोड़े को लिए जा रहा था।

आख़िर कर शमशेरा अपनी मंजिल में पहुँच कर घोड़े के लगाम को खींचता हुआ रुक जाता है।

वही पास दुकान वाले आवाज देते हैं।

दुकानवाला: शहजादे आइ! ए ये मेरी कालीन ले लीजिए इसका काम देखिए! इसकी खुबसूरती का कोई सानी नहीं है।

बलदेव: युवराज सही हैं में ये बहुत खूबसूरत कालीन है ।

शमशेरा: इसे छोडो बलदेव! अगर तुम्हें चाहिए होगा तो इसे हम महल बुला लेंगे। अभी चलो।

शमशेरा । सीढ़ियों से उतरकर वह एक अंधेरे से बड़े घर में पहुँचता है जहाँ पर अँधेरा था। लालटेन की रोशनी में ये पता चल रहा था कि ये बड़ा तहखाना था।

बलदेव: युवराज ये तो...!



SHAMSHERA0
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शमशेरा: शशश! और ये बार-बार युवराज कहना बंद करो । तुम मुझे नाम से पुकारो!

बलदेव: शमशेरा ये तो सही जगह नहीं है।

शमशेरा: तुम अभी बच्चे हो। अभी यहाँ पर हर किस्म की मदीरा मिलती है और इसके ऊपर माल!

बलदेव: कैसा माल?

शमशेरा हसता है।

शमशेरा पास रखे मिट्टी की सुराही में रखी मदीरा बेच रहे आदमी के पास जा कर कहता है ।

शमशेरा: इधर लाओ एक!

और कुछ सिक्के उसको दे देता है, फिर मदीरा गटकते हुए!

शमशेरा: तो सुनो माल के माने ये है कि यहाँ ऊपर कोठा है और पूरी दुनिया भर से यहाँ तवायफे आती है। यहाँ तुम्हे जर्मन, फ्रांसिसी, मिश्र, अरबी हर देश को सुंदर तवायफे मिलेगी।

बलदेव: शमशेरा! क्या बात कर रहे हो?

शमशेरा एक आँख मारता है।

शमशेरा: भाई यहाँ पर ऐश करने लोग दुनिया भर से आते हैं । तुम्हें चाहिए तो बोलो ।

बलदेव: नहीं, ये पाप है, तुम ये सब कैसे करते हो? सुल्तान को पता चला तो...!

शमशेरा: सुल्तान को बताएगा कौन? हाहाहा! मेरा जब मन करता है मैं मजे कर के जाता हूँ। तुम बच्चे ही रहोगे।

बलदेव: शमशेरा! नहीं ऐसी बात नहीं है, पर मैं किसी से प्रेम करता हूँ। उसे धोखा दे नहीं सकता ।

शमशेरा: भाई बड़े इमानदार हो। लगता है अपनी मेहबूबा को दिल से चाहते हो!

बलदेव: वो मेरे रोम-रोम में बसती है उसे धोखा देना अपने आप को धोखा देने जैसा होगा।

शमशेरा: अब बस करो! ज्यादा मजनू ना बनो। लो मदीरा तो पियो!

बलदेव: नहीं यार उसने मुझे मना किया है।

शमशेरा: भाई वह पारस में तुम्हें देखने थोड़ी आ रही है ।

बलदेव: नहीं, फिर भी!

शमशेरा: भाई तुम्हारी मेहबूबा कहाँ है? हिंद में है ।

बलदेव: हम्म!

शमशेरा: और तुम हो यहाँ पारस में हजारों मील दूर। क्या वहाँ तक उसको इसकी खुशबू आएगी? हाहाहाहा

बलदेव: ठीक है तो लाओ एक घूँट पी लू।

बलदेव भी दो घूंट पी लेता है।

शमशेरा: कैसा लगा इसका स्वाद? मजा आया?

बलदेव: अच्छा है।

बलदेव ने पहले भी मदीरा ही थी कई बार। इस बार उसे लगता है जैसे वह किसी और दुनिया में ही पहुँच गया हो!


जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 66

बादशाह की महफ़िल में मचलती हुई मोहब्बत

बलदेव धीरे-धीरे नशे में डूब रहा था और वैसा ही हाल शमशेरा का भी था।

शमशेरा: चलो यार, मैं एक माल को ठोक के आता हूँ



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बलदेव: नहीं शमशेरा घर चलो...मुझे कुछ ठीक नहीं लग रहा!


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शमशेरा: तुम सच में 18 साल के दूध पीते बच्चे हो, चलो!


बलदेव: शमशेरा ! तुमने मुझे बच्चा कहा!



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दोनों वहा से जाने लगते हैं तभी वहा पर एक सुंदर नचनिया सब नशेडीयो का मनोरंजन करते हुए नाचने लगती है, जिसे देख शमशेरा रुक जाता है।

शमशेरा: (मन में: ओह्ह अम्मी तुम कितनी खुबसूरत हो )




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शमशेरा को उस नचनिया को देख उसकी माँ हुरिया याद आ रही थी जिसके हुस्न को, दिन दहाड़े अपने बाप सुल्तान के हाथो को मसलते हुए उसने अपनी आंखों से देख लिया था।

शमशेरा: (मन में: माँ कसम! अम्मी मुझे एक बार मिल जाओ तो मैं तुम्हें अब्बा की तरह वैसे अधूरा नहीं छोड़ूंगा, जैसे उस दिन तुम मिन्नत करती रही और वह तुमसे दूर हो गए)

बलदेव: भाई चलो भी क्या सोचने लग गये?

शमशेरा: हाँ! हाँ! अब चलो बच्चे!

शमशेरा तथा बलदेव तहखाने में बने मयखाने से निकल कर सीढ़ियों से चढ़ ऊपर आते हैं और अपने घोड़ों की ओर चल देते हैं। शमशेरा ने इतनी पी ली थी की वह जहाँ भी देख रहा था उसे रह-रह के उसे अपनी माँ दिख रही थी और उसके दिमाग में यहीं गूंज रहा था "सुल्तान! नहीं! रुको! अभी मेरा नहीं हुआ!" और फिर आप अपनी माँ हुरिया को अपने बाप द्वारा चोदने के ख्याल से शमशेरा गरम हो जाता है।




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बलदेव चुपचाप उसने जो गलती उसने की है उस बारे में सोचते हुए घोड़े को भगा रहा था।

बलदेव: (मन मैं: देवरानी ने मना किया था और मैंने फिर भी मदिरा पी ली है । गरा उसको पता चल गया मैंने मदिरा पी है तो... अरे क्या हुआ? मैं मर्द हूँ, एक औरत के कहने से पियू नहीं क्या ...?

बलदेव नशे में धुत कभी अपनी गलती पर खेद करता । कभी नशे में सोच रहा था उसने कोई नशा नहीं किया । दोनों ऐसे ही महल पहुच जाते हैं।

जश्न का महौल जोरो शोरो से शुरू था। रात अपना अँधेरा फेलाए हुए थी और पारस को टिमटिमाते तारो की रोशनी से घेर लिया था और तारो की ख़ूबसूरत रोशनी जब पारस की ख़ूबसूरत महलो या दरबारो पर पड़ती तो महौल और भी ख़ूबसूरत हो जाता था ।


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दरबार में एक तरफ मर्द बैठे थे या वही बगल में एक परदा कर के महल की सब औरतें भी बैठ कर जश्न मना रही थी ।


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फनकार बारी-बारी से आकर अपना फन और हुनर दिखा रहे थे।

परदे के पीछे से जो बारीक-सा कपडे का था जिसका आरपार देखा जा सकता था सब औरतों में अपने सिंहासन पर मल्लिकाजहाँ भी बैठी हुई थी । उसके साथ देवरानी और हरम की 150 कनीज रानिया, जिन्हे सुल्तान मीर वाहिद ने अपने हरम में रखा था, सब के पीछे पारस के अलग-अलग कसबो और शहरो से आयी औरतें भी बैठी थी और पंखे का मजा ले रही थी ।



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देवरानी: दीदी ये बलदेव नहीं दिख रहा बहुत समय हो गया!

हुरिया: मुझे पता चला है वह शमशेरा के साथ गया था, फ़िकर ना करो!

देवरानी: मुझे डर लग रहा है एक बार उसको देख लेती हूँ ।

हुरिया अपने दोनों हाथों को ऊपर उठा के ताली बजाती है।

ताली की आवाज सुन कर वहा दासी आती है।

दासीःजी मल्लिकाजहाँ!



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हुरिया: सुनो बलदेव और शमशेरा का पता लगाओ । वह दोनों कहा है?

दासी: जो हुकम मल्लिका जहाँ!

हुरिया देवरानी की ओर देख कर मुस्कुराती है।

हुरिया: अब खुश मेरी रानी! तुम एक मिनट की चैन नहीं लेती बलदेव के बिना।

देवरानी शर्म से अपना सर नीचे कर लेती है ।

देवरानी: (मन में: अब कैसे बताऊ आपको हुरिया दीदी, बलदेव मेरे पति से भी बढ़ कर है और मैं उनसे कितना प्रेम करती हूँ।)

देवरानी हुरिया की मुस्कराहट का जवाब मस्कुरा कर देती है

देवरानी: धन्यवाद दीदी!

बलदेव और शमशेरा अपने घोड़ों को सैनिको को सौंप भागते हुए दरबार की ओर जाते हैं।

शमशेरा: हमें देरी हो गई! बलदेव, अगर सुल्तान ने मुझे देख लिया तो मेरी खैर नहीं।

बलदेव: तुम्हारे कारण से मुझे भी सुनना पड़ सकता है, मामा देवराज से!

डर के मारे दोनों का नशा थोड़ा कम हो गया था।

शमशेरा: बलदेव तुम महफ़िल में जाओ हम आते हैं।

बलदेव: तुम क्यू नहीं जाओगे फट रही है बाप के सामने जाने में ...बच्चू!

शमशेरा: तुम्हारा दिमाग तो ठीक है ना, मैं ये जो ले कर आया हूँ इसे अपने कक्ष में सही सलामत पहुँचा कर आता हूँ । रात में सोते वक्त दो घुट और पी लूंगा।

बलदेव: मुझे पता है, तुम कितने बड़े नशेडी हो, ! ठीक है यार, तुम जाओ

बलदेव महफ़िल में जाता है तो देखता है सब बैठ बहुत ध्यान से एक नचनिया का नाच देख रहे थे । बलदेव चुपके से जा कर सबसे पीछे देवराज और सुल्तान मीर वाहिद से छुप कर आसन पर बैठ जाता है।

देवराज की गिद्ध की आखें बलदेव को यू चुपके से आ के बैठा देख लेती है । देवराज अपने भांजे को एक मुस्कान दे कर इशारे में बैठने के लिए कहता है। उत्तर में बलदेव भी आँखों से, जी मामा! का इशारा करता है।

देवराज: (मन में-इसे शमशेरा ले कर गया था, इसे दूर रखना होगा उस शमशेरा से, नहीं तो ये भी बिगड जाएगा।)

पास बैठा सुल्तान मीर वाहिद भी बलदेव को देख....

" ये शमशेरा कहा रह गया? बलदेव तो आगया। '

शमशेरा अपने कमरे में जा कर मदिरा को छुपा देता है।

इधर देवरानी हुरिया से कहती है कि उसे भूख लगी है, अंदर कक्ष में चलें और हुरिया और देवरानी महल में अपने कक्ष में आजाते हैं ।

महल में लोगों का तांता लगा था और सैनिक गरीबों को कपड़ा, खाना इत्यादि बांट रहे थे।

सैनिक: ये लो तुम्हारा कपड़ा बुढ़िया! सुलान और पारस की सलामती की दुवा करो1

तभी ये सुन कर हुरिया रुक जाती है और सैनिक से पूछती है ।

हुरिया: क्या कहा तुमने?

सैनिक: मुआफ़ किजिये मल्लिकाजहाँ!

हुरिया: वो तुम्हारी माँ की उम्र है। तुम उसे बूढ़ी कह रहे हो । शरम नहीं आती तुम्हें?

सैनिक: मुआफ़ करदे मल्लिकाजहाँ!

हुरिया: हम गरीबों को दे रहे हैं, इसका मतलब ये नहीं-नहीं कि हम उनपर एहसान कर रहे हैं, बल्कि ये इसलिए है कि खुदा ने हमें सब कुछ दिया है ताकि हम सब को दे सके और पारस के एक गरीब का हक हमारी दौलत पर है।

हुरिया उस बूढ़ी औरत को देख कहती है ।

" हमें दुवाओ से नवाजे अम्मा!

बूढ़ी औरत: खुदा आपको हर ख़ुशी दे मल्लिकाजहाँ!

देवरानी ये देख खड़ी-खड़ी मुस्कुरा रही थी।

देवरानी: (मन में-मल्लिका हुरिया कितनी पाक दिल की है।)

वो दोनों अपनी कक्ष में जाने लगते हैं तभी शमशेरा अपने कक्ष से उनकी तरफ आ रहा था।




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शमशेरा: सलाम अम्मी, सलाम देवरानी खाला!

देवरानी: नमस्कार!

हुरिया: सलाम बेटा! कहाँ थे?

शमशेरा: वह बस बलदेव को पारस की सैर करवाने ले गया था ।

हुरिया: तुम देवरानी के लिए कुछ खाना मंगवाओ और अगर तुम्हारे अपने कक्ष में अगर खाना है तो खा लो।

देवरानी: बलदेव कहा है शमशेरा बेटा?

शमशेरा: वो महफिल में है ।

देवरानी ये सुन कर अपनी कक्ष की ओर जाने लगती है।

हुरिया गरीबों में कपड़े और खाना बांट रहे सैनिकों को रुक कर देख रही थी और पास खड़ा शमशेरा हुरिया को देख रहा था ।

देवरानी थोडा आगे जा कर पीछे मुड़ती है तो उसके होश उड़ जाते हैं वह देखती है शमशेरा अपनी अम्मी हुरिया की गांड को घूरे जा रहा था।

देवरानी: (मन में: हे भगवान ये भी।!)



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देवरानी देखती है शमशेरा अपनी माँ की गांड को खा जाने वाली नजरों से देख रहा था ।

शमशेरा: (मन में-अम्मी मैंने जब से आपको अब्बा से चुदाई करवाते हुए देखा है तब से आपके इस हुस्न का दीवाना हो गया हूँ ।)

देवरानी: दीदी...!

ये सुनते ही शमशेरा अपने ख्वाब से बाहर आता है और अपनी निगाहें अपनी माँ से हटा कर देवरानी को देखता है, जो मुस्कुरा कर हुरिया को कहती है

"दीदी आप भी आइए ना, मुझे अकेला जाना अच्छा नहीं लग रहा है।"



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हुरिया शमशेरा को देख कहती है ।

"अरे बेटा अभी तुम गये नहीं?"

"हाँ अम्मी मैं जा ही रहा था।"

और अपनी नज़रो को बचाता है।

हुरिया: जल्दी! महफ़िल में आ जाना! बेटा!

शमशेरा: जी अम्मी!

हुरिया तेज़ कदमो से अपने भारी भरकम बदन को हिजाब में लिए देवरानी की ओर से चलने लगती है।

देवरानी खड़ी-खड़ी अंदर से मुस्कुराती हुई शमशेरा की निगाहों को ही देख रही थी । जिन्हे देख लगता था को अपनी माँ के चलने पर उसकी भारी चूत को वह खा जाने वाली नजर से देख रहा था।

देवरानी के पास पहूच कर हुरिया बोलती है ।

"चलो देवरानी !"

देवरानी और हुरिया अंदर चले जाते हैंऔर शमशेरा महफ़िल में चला जाता है।

देवरानी: दीदी आपको दुर्गंध नहीं आयी?

हुरिया: मतलब!

देवरानी: दीदी मतलब शमशेरा से कुछ नशा की महक आ रही थी ।

हुरिया: हाँ इसीलिए तो वह देर से आया है, मुझे पता है।

देवरानी: तो दीदी आप ने उसे कुछ कहा क्यू नहीं?

हुरियाँ: मैंने बहुत समझाया पर मेरी ये एक नहीं सुनता । बहन वह रोज पीता है ।

देवरानी: दीदी! ऐसे तो वह अपनी सेहत बर्बाद कर लेगा।

हुरियत: अब वह जाने! अब वह बच्चा नहीं रहा । वह अब 25 साल का समझदार मर्द हो गया है।

देवरानी: मेरा बलदेव तो अभी बस 18 साल का है पर मेरी हर बात मानता है।

दोनों अंदर जा कर खाने पीने लगती हैं।

बलदेव के पास जा कर शमशेरा भी बैठ जाता है पर सुल्तान उसे एक बार घूर कर देखते हैं जिसका मतलब था कि आगे जा कर, शमशेरा को डांट पड़ने वाली थी ।



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देवरानी और हुरिया अब वापस आकर महफ़िल में बैठ जाते हैं। अब कव्वाल अपनी कव्वाली सुना रहे थे, डफली और तबले की आवाज गूंज रही थी।

रात के 11 बज गए बलदेव के सोने का समय हो गया था और उसको उसके साथ अब कुछ समय से देवरानी को इस समय अपनी बाहो में रख रगड़ने की आदत हो गयी थी।

बलदेव: (मन में-अरे ये मुझे क्या हो रहा हूँ । मुझे अब मेरी जान देवरानी के साथ होना चाहिए था । पारस में हम देवरानी से दूर रहने के लिए आए हैं क्या?)

बलदेव के ऊपर से नशे की खुमारी अभी पूरी तरह से उतरी नहीं थी।

बलदेव अपने आसन से उठा कर जाने लगता है और पास लगे परदे के पास जा कर अपनी माँ को औरतों की हुजूम में ढूँढने लगता है, आखिर कर उसे हुरिया के साथ अपनी माँ दिखती है, वह उसके करीब जाता है और परदे के पास खड़ा हो कर इशारा करता है।

दासी: युवराज! आप यहाँ से चले जाएँ इस तरफ मर्दों को आना मना है।

बलदेव: अरे मैं उधर नहीं जा रहा हूँ। मेरी माँ को कहो मेरी ओर देखें!

दासी जा कर देवरानी को परदे के पीछे खड़े बलदेव को देखने के लिए कहती हैं।



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देवरानी इशारे से पूछती है।"क्या हुआ?"

बलदेव अपने दोनों हाथ जोड़ कर सोने का इशारा करता है।

पास बैठी हुरिया दोनों को इशारे करते हुए देख लेती है ।

हुरिया: क्या हुआ देवरानी बलदेव क्या कह रहा है?

देवरानी: उसको नींद आ रही है सोने के लिए कह रहा है।


जारी रहेगी ........
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 67

बलदेव बना रसिया

देवरानी बलदेव से जो परदे के पीछे खड़ा था उससे इशारे में बात कर रही थी और बलदेव देवरानी से सोने के लिए चलने की जिद कर रहा था। वही पर बैठी हुरिया उसे देख कर पूछ लेती है क्या हुआ तो देवरानी कहती है।

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देवरानी: दीदी वह सोने के लिए कह रहा है।

हुरिया: उसको इतनी भी क्या जल्दीबाज़ी है।

देवरानी: दीदी! वह आज सफर किया है इसलिए थक गया होगा। देखिये ना दीदी वह खड़ा हे। मैं जाऊँ! अब तो बहुत देख ली कव्वाली। आपसे इसकी कहानी मैं बाद में भी सुन सकती हूँ।


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हुरिया: वह देखो तुम्हारा बलदेव तुम्हारे चक्कर में परदे से झनक रहा है उसे मना करो! यहाँ बैठी औरते बुरा मान सकती है और तक गया है यो उसे बोलो कमरे में जा कर सो जाए. अगर सोना नहीं है तो यही रहो। वहा जा कर फनकारो का हुनर कैसे देखोगी।

देवरानी बलदेव को परदे में खड़ा देख अपने आसन से उठ कर उसके पास जा कर कहती है।

"बलदेव ये क्या है? बेटा यहाँ मर्दो को झाकना मना है।"

"माँ तुम आओ मैं जा रहा हूँ।"

और गुस्से से वहाँ से चला जाता है।


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देवरानी मुड़ कर हुरिया के पास आ कर बोलती है।

"दीदी वह नाराज हो गया है। मुझे सोने जाना होगा।"

हुरिया: ठीक है, जाओ!

हूरिया (मन में: ये तो ऐसी करती है जैसे बलदेव इसका शौहर हो। उस दिन भी उसको अपने पूरे दूध दिखा रही थी।)



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देवरानी जल्दीबाज़ी में महफ़िल में अपना घूँघट नीचे रखती है और दबे पाव तेजी से सबकी नज़र से बचती हुई अपने कक्ष में जाने लगती है।

बलदेव महल के अंदर खिसियाना-सा जा रहा था।

देवरानी: बलदेव!

बलदेव रुक जाता है और पीछे मुड़ कर देखता है।

"अब क्यों आई हो माँ? जाओ अपनी दीदी के पास जा कर महफ़िल में बैठो।"

"आज तुम, गुस्सा क्यू हो रहे हो?"

देवरानी बलदेव के पास आती है और उसकी नाक में दुर्गंध आती है।

"बलदेव ये कैसी दुर्गंध है, क्या तुमने पी रखी है?"




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देवरानी गुस्से से लाल हो जाती है।

बलदेव सोच में पड़ जाता है कि वह अब क्या बोले?


(मन में: इससे पहले देवरानी और भड़के मुझे कुछ करना होगा।)

देवरानी: तुम्हें मेरी पवाह जरा भी नहीं है। मैंने तुम्हें मना किया था ना की तुम पीयोगे नहीं फिर क्यों पि?

ये कह कर देवरानी थोड़ा उदास हो जाती है।

बलदेव बात को संभालते हुए कहता है।

"मेरी पत्नी, मेरी जान आज शमशेरा के कहने पर बस दो घुट पी ली है। जो मेरी गलती है। मुझे मुआफ कर दो मेरी माँ! आज के बाद नहीं पीऊंगा।"


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बलदेव अपने दोनों हाथो से कान पकड़ लेता है और माफ़ी मांगता है।


देवरानी दौड़ कर बलदेव के गले लग जाती है।


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"मेरे राजा मैं नहीं चाहती, तुम्हारा स्वस्थ ख़राब हो।"


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बलदेव देवरानी को ज़ोर से पकड़ लेता है।



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इधर हुरिया कुछ सोच कर महल आने लगती है और महल में घुस कर जैसे ही वह अपने कक्ष की ओर देखती है तो पाति है बलदेव और देवरानी एक दूसरे से गले लग रहे थे।



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हुरिया: (मन में-इन माँ बेटे में कितना प्यार है। इनसे कहती हूँ तुम दोनों सोने से पहले खाना तो खा लो।)

हुरिया अपने मन की बात पूछती उससे पहले उसने जो देखा उससे वह हैरान रह जाती है।




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देवरानी: छोडो ना, अन्दर तो चलो!

बलदेव देवरानी को कस लेता है और अपना हाथ उसकी गांड पर ले जा के जोर से मसल देता है।




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बलदेव: सब बाहर है माँ!


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हुरिया देवरानी के पीछे खड़ी देवरानी की गांड पर बलदेव के हाथ को देवरानी की गांड को मसलते हुए साफ-साफ देख लेती है और फिर हुरिया अपनी आंखे बंद कर लेती है।



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हुरिया (मन में-खुदा मुझे ये गुनाह क्यू दिखा रहा है मुझे मुआफ़ कर दे। ऐसा कैसा हो सकता है एक माँ के साथ उसका बेटा ऐसा कैसे कर सकता है। मेरे नज़रो को धोखा हुआ है।)



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तभी हुरिया अपनी आंखें खोलती है और देखती है-बलदेव अब अपनी माँ को गोद में उठाये और उसे किसी बच्चे की तरह, कक्ष में ले जाने लगता है। कक्ष में ले जा कर अपने पैर से दरवाजे पर एक लात मारता है और दरवाजा बंद कर देता है।



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हुरिया अपने आखो में आसू के लिए वही पर बैठ जाती है।

"खुदा इस गुनाह का अजब इस घर पर आने मत देना। ये दोनों हमारे मेहमान ना होते तो मैंइन्हे अभी धक्के मार के भगा देती।"



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हुरिया अपने दुपट्टे से अपना आसू पूंछती है और अपने कक्ष में जा कर लेट कर सोचने लगती है।

"क्या शैतान ज़माना आ गया है लोग मजे के लिए किस हद तक जा सकते हैं।"

इधर बलदेव अपनी माँ को गोद में उठाये दरवाजे की कुंडी लगा कर देवरानी को पलंग की ओर ले जाता है।



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देवरानी: बलदेव तुम नशे में हो इतना ज़ोर से क्यू दरवाजा बंद किया?

बलदेव: मुझे नशे में नहीं हुआ, मुझे तेरा नशा है देवरानी।

देवरानी: तुम्हारी आखे लाल है और जबान भी लड़खड़ा रही है।

बलदेव: चुप करो देवरानी! आज मुझे तुम्हें जी भर प्यार करने दे।

देवरानी समझ जाती है कि अभी बलदेव से उलझना बेकार है वह हल्के नशे में है।



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बलदेव: देवरानी मेरी पत्नी तुम्हारा नृत्य देखे हुए बहुत दिन हो गए. जरा अपनी गांड मटका दो।



देवरानी बलदेव के द्वारा इस तरह से बात करने से अटपटा मेहसूस करती है फिर ये सोच कर की बलदेव को उसपे पूरा हक है।

देवरानी (मन में: मुझे गुस्सा नहीं कर के पत्नी धर्म निभाना चाहिए, अगर मुझे नाचने के लिए कह रहा है तो बलदेव क्यू के उसके मुझपे पूरा हक है।)



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देवरानी मुस्कुरा कर गांड हिलाती हुई बिस्तर से दूर जाने लगती है। बलदेव बिस्तर पर बैठ जाता है और अपनी नशीली आंखों से देवरानी की हिलते चुतड देखने लगता है।

बलदेव: देवरानी, मेरी रानी! मेरी जान तुम्हारी इस चूत और हिलती हुई गांड ने मेरे दिल चुरा लिया है।

महफ़िल से ढोल और तबले की आवाज़ आ रही थी जो कव्वाली में बज रहे थे। उसकी ताल पर देवरानी भी अपने गांड मटका के नृत्य करने लगती है।


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"रानी अपने वस्त्र उतार के नाचो। मुझे तुम्हारे दूध और गांड को हिलते हुए देखना है।"

अच्छा जी! जो पीछले एक महीने से देख रहे हो उससे जी नहीं भरा? "

ये सुन कर बलदेव उठ खड़ा हो कर नाचती हुई देवरानी को पकड़ कर अपना चौड़ा सीना उसके वक्ष से दबाता है या देवरानी को अपनी बाहो में ले कर बलदेव अपना लंड देवरानी की गांड पर रगड़ता है।



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"आह राजा!"

बाहर ढोल डफली की आवाज आ रही थी जो देवरानी को थिरकाने के लिए काफी थी जो कि नृत्य कला पसंद करती थी।

बलदेव अब अपना हाथ देवरानी के होठ पर रख बोलता है।



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"हाय! मेरी रानी के ये लाल होठ!"

फ़िर वह हाथ देवरानी के सीने पर रख बोलता है ।

"हाय ये उभरे वक्ष मेरे रानी के!"



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फ़िर वह निचे देवरानी की चूत के ऊपर हाथ रख "हाय ये मेरी फुली चूत मेरी रानी मेरी पत्नी के!"

बलदेव जैसे हे पहली बार देवरानी की चूत पर अपना पूरा हथेली रख कर दबाता है देवरानी के मुँह से "आआआआह!"



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कर के उत्तज़ना भारी सिस्की निकलती है।

बलदेव वापस जा कर कुर्सी पर बैठ जाता है जो मेज के साथ लगी हुई थी और कहता है।

"जी तो तब तक नहीं भरेगा जब तक तुम्हारे इस भारी बदन को, ठोक-ठोक के फेला नहीं दूंगा ।"

देवरानी दूर खड़ी बलदेव के सामने अपने दूध और गांड मटका रही थी ।



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बलदेव देवरानी को अपने हाथ उठा कर उंगली से अपने पास आने का इशारा करता है और देवरानी उसके पास आती है और बलदेव की जांघ पर हल्का बैठ अपनी गांड को हिलाती हुई रगड़ने लगती है।

देवरानी की गर्दन पर हाथ रखे बलदेव मुस्कुरा रहा था।



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देवरानी अब दूसरे जांघ पर बैठ कर अपनी गांड मसलती है फिर बलदेव के सामने झुक कर बलदेव के तंबू बने धोती पर अपनी गांड को सहलाने लगती है

बलदेव अपनी आँख बंद किये कररहने लगता है।

"आह मेरी माँ!"

देवरानी जैसी दिखती है उसका बेटा होश खो रहा है वह तुरंत उसकी गोद से उठ कर दूर जाती है।

बलदेव जब तक अपना हाथ बढ़ा कर देवरानी को पकड़ता वह चुंगल से निकल जाती है।

"छमिया बहुत ललचा रही है अपनी गांड से!"

देवरानी दूर खड़े हो कर मुस्कुराए हुए बड़े दूध वाला अपना सीना निकाल कर इतराती है ।

"क्यू मेरे राजा को ये पसंद नहीं क्या?"


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वह अपने कसे हुए ब्लाउज के डोरी ढीली कर देती है। अब देवरानी ब्लाउज के अंदर एक लाल ब्रा, पहने जो उसे हुरिया ने दी थी उसमे अपने बड़े मोटे पपीतो को लीये अपने बेटे के सामने थी।

बलदेव झट से अपना हाथ अपना लौड़े पर ले जाता है।

"मां वह मुझे इतना पसंद है कि जीवन भर चुसु तो भी नहीं थकू।"

बलदेव को लौड़ा मसलते हुए देवरानी देख उत्तेजित हो जाती है।

देवरानी: मीठा देखा नहीं मधुमखी झूमने लगती है।

देवरानी अपने हुस्न पर इतराती हुई कहती है।

और अपना पल्लू अपने आधे नंगे दूध पर रख लेती है अनुर डोरी बाँध देती है ।

बलदेव देवरानी के पास आकर उसके कमर पर हाथ रख कर अपनी और खीचता है।

"देवरानी! मुझे आज तुम्हारी योनि का रस पीना है।"

देवरानी: छी गंदे!

बलदेव: छी मत कहो! तुम्हारी गांड इतनी मारूंगा के बाप-बाप चिल्लाओगी।

बलदेव अपना हाथ आगे बढ़ा कर देवरानी की गांड पकड़ कर मसलता है।

देवरानी नशे में धुत बलदेव को संभालते हुए उसके होठों पर उंगली रखती है।

"मेरे बेटे तुम होश में नहीं हो! तुम अपनी माँ को दुःख दोगे, दर्द दोगे!"

"मेरी देवरानी!"

बलदेव देवरानी के पीछे आकर अपना खड़ा लौड़ा देवरानी की गांड पर लगा कर.. "देवरानी तूने क्यू पल्लू रख दिया? ब्लाउज खोलो ना अपना! तुमने अंदर तो वही वस्त्र पहना है जो हुरिया खाला ने दिया है तुम्हे!"

"तुम मेरे वस्त्रो पर बहुत ध्यान देते हो!"

"मेरी रानी मैं तुम ध्यान नहीं दूंगा तो या कौन देगा? खोलो ना!"

"वैसे वह ब्रेज़ियर है तुम खुद देख लो।"

बलदेव अपने लंड को देवरानी की गांड पर लगाये देवरानी को हल्का झुकाये एक धक्का मारता है ।

"आहा राजा!"

बलदेव अपने दांतो में देवरानी के ब्लाउज की डोरी को पकड़ खींचता हैं । झुकी हुई देवरानी अपनी गांड बलदेव के लौड़े पर सहला रही थी।

बलदेव अब ब्लाउज को खोल चुका था या उसके आंखों के सामने ब्रेजियर की पट्टी थीजो देवरानी की पीठ पर बलदेव को बहुत उत्साहित कर रही थी । बलदेव अपना हाथ आगे बढ़ा कर देवरानी की ब्रेजियर को छूता है और उसकी पीठ को सहलाने लगता है।

बलदेव अब देवरानी के आगे आ जाता है और उसकी बगीचे पर चूमने लगता है।

"मां इसे निकालो ना मुझे आपको सिर्फ ब्रेज़ियर में देखना है।"

"आह बेटा हम्म्म!"

"मां तुम इतनी सुंदर हो की दिन रात तुम्हे झुका कर पेलने का दिल करता है।"

"पहले विवाह कर लो। फिर दिन रात जो करना हो कर लेना।"

देवरानी अब बलदेव के पीछे आ कर बलदेव के कान के नीचे से उसे मुँह में पकड़ कर चूसने लगती है।

देवरानी अब अपना ब्लाउज गिरा देती है और ब्रेज़ियर में कैद अपने बड़े दूध बलदेव की पीठ में रगड़ने लगती है।


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"आआह माँ!"

बलदेव आखे बंद कर आह भरता है।

देवरानी को अपने आगे खीच उसके बड़ी गांड पर हाथ लगाता है और उसके वक्ष को देखता है जो देवरानी के हिलने से हिचकोले मार कर ब्रा से बाहर आने को तड़प रहे थे।

"मां क्या मोटे और तने हुए दूध है और ये गांड कितनी बड़ी है पर..."

"आह मेरे लाल पर क्या? हाँ!"




50-6
"पर इस माल को सही हथौड़ा नहीं मिला । ये मोटी गांड को मैं चोद-चोद के फेला दूंगा। जो तुम्हारे पति नहीं कर पाये वह मैं करूँगा । इसलिए ये अभी भी ऐसे लगते हैं कि तुम अभी-अभी जवान हुयी हो ।"

"आह बलदेव! चल हट बदमाश!"

बलदेव देवरानी को अपने अघोश में लेते हुए उसके दूध देख कर आह भरता है!

"आह! ये दूध की जवानी और खुमारी जो राजपाल नहीं निकल पाया, वह मैं निकालूंगा। इसे चूस-चूस कर इसकी घुंडी को भी चौड़ी कर दूंगा।"

बलदेव पास रखी मेज़ पर देवरानी को लिय उसके वक्ष के उपरी हिससे को चूमते हुए उसे लिटाने लगता है।

देवरानी वही पर अख बंद क्यों बलदेव के साथ लेट जाती है। बलदेव अब अपना मुंह अपनी माँ के पेट पर रख कर चूमने लगता है।

"आह माँ मैं शादी भी करुंगा और तेरी इस कोख में अपना बीज डाल कर तुझे अपने बच्चो की माँ भी बनाउंगा।"

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67-5
देवरानी अपने आखे बंद किये आहे भर रही थी।

"आहह राजा!"

आह्ह आआह्ह्ह्ह ओह मेरे राजा! "

बलदेव के हाथो में अपने हाथ फंसा लेती है और देवरानी खूब मजे से आहे भरने लगती है।

67-6?"

"माँ यही कहेगा कि इसकी चूत चुदाई हुई है इसलिए पेट से है।"

और बलदेव देवरानी के पर्टिकोट के ऊपर से उसकी चूत पर हाथ रख देता है

"आआआआआआआआआआआआआआहह! मेरे राजा!"

देवरानी अपना हाथ नीचे ले जा कर बलदेव का हाथ पकड़ती है।

67-7

"राजा समाज क्या कहेगा जब मेरा पेट देखेगा तो
बलदेव देवरानी की चूत पर से हाथ हटा कर के देवरानी की दोनों मांसल जाँघे पकड़ लेता है।

"आह माँ ये जाँघें कितने मांसल और चौड़ी हैं।"

बलदेव नीचे झुक कर साडी को ऊपर उठाये देवरानी की जांघो पर चुम्मो की बरसात कर देता है।

"आहहह मेरे राजा!"

बलदेव देवरानी को खड़ी कर के उसके पेटीकोट का नारा खोल देता है। अब देवरानी सिर्फ एक जंघिया में थी जिसे देख बलदेव का दिल ज़ोरों से ढकने लगता है।

देवरानी को बलदेव जांघो से पकड़ कर फिर से ऊपर मेज पर बैठाता है।


67-8




"बलदेव! आराम से इतनी क्या जल्दी है?"

"माँ तुम इस जांघिये में देवलोक की अप्सरा लग रही हो । तुम्हारी चूत कितनी फूली हुई है इसे तो मैं चोद के भोसड़ा बना दूंगा।"

देवरानी एक अदा से अपने हुस्न पर इतराती हुई अपना एक पैर बलदेव के सीने पर रख कर बैठ जाती है।

"ज़रा तमीज़ से! मैं महारानी देवरानी हूँ।"

"हाँ वही महारानी देवरानी जो अभी महफ़िल में अपना पल्लू ढके हुए बैठी थी और अपने आशिक के बुलाने पर नहीं आ रही थी।"

"तुम्हें भगवान का अहसान मानना चाहिए! बलदेव जो स्त्री अपना पल्लू ढके घुमती है वह तुम्हारे सामने सिर्फ ब्रेज़ियर या जंघिये में है और तुम नशे में..."

"अरे मेरी रानी आआओ! अभी तुम्हें एक दम प्यार से मसलता हूँ।"


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बलदेव पास में रखे एक घोल को देवरानी की जांघो पर उड़ेल देता है। फिर उसकी जाँघो को सहलाने लगता है।

"आहह राजा!"

अपनी उंगली से ले उसके नाभि में गोल-गोल घुमाता है फिर देवरानी के मुंह में वह उंगली डाल देता है।

"माँ देखो तुम्हारे ये सुंदर तन का स्वाद तुम खुद चखो भला में कैसे इन्हें चखे बिना कैसे रहु?"

बलदेव अब अपना हाथ आगे बढ़ा कर तेल का डिब्बा उठा लेता है और तेल अपनी माँ के कंधे पर गिराने लगता है । तेल फिसल कर कंधे से होते हुए देवरानी के वक्ष और फिर बाह तक आने लगता है।

बलदेव अपने हाथ से तेल का डिब्बा छोड़ देवरानी को मसलने लगता है।

"कितनी सुन्दर है माँ!"

"आह मेरे राजा!"

बलदेव अब अपने पास रखे फूलो में से पीली और काली फूलो में से पीली फूल उठा कर देवरानी के होठों पर घुमाता है।

देवरानी के मुंह में ऊँगली डाल कर उसकी जिभ को बराबर फिराता है और उसके बाद नीचे आकार देवरानी के मखमली पेट पर सहलाने लगता है।

"आह राजा गुदगुदी हो रही है।"

"गुदगुदी कहाँ हो रही है तेरी चूत में या तेरे पेट में देवरानी?"



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देवरानी उत्तेजना और हैरानी से बलदेव को देख रही थी, बलदेव देवरानी की दोनों पैरो को फैला देता है और खुद उनके बीच के खड़ा होता है और अपने हाथ से पीले फूलो को उठा कर देवरानी के जिस्म पर डालने लगता है।

"मां तुम जैसी माल को दिन रात चौदा जाये तो भी कम है।"

"आह राजा! ...हम्म बड़ा आया महारानी देवरानी के साथ ऐसी वैसी हरकत करने वाला!"

"मां राजपाल जैसा चुतीया नहीं हूँ मैं पेल-पेल के तुम्हारी गांड ही फाड़ दूंगा।"

इस बार देवरानी अपने आप को देखने लगती है।

देवरानी (मन में: "ये लड़का नशे में अभी पूरा धुत है इसको मैं कल बताउंगी।"

बलदेव अब अपने हाथों में काले फूलो को उठाता है।

"मां अपने गुलाब के पखुरियो जैसे होठों में इसको चूसो क्यू के फिर मेरा लौड़ा भी चूसना है तुम्हें।"

"नं ना मैं नहीं करूंगी वो!"

"तुम्हें करना पड़ेगा मेरी रानी! तुम्हें अपने पति की आज्ञा का पालन करना पड़ेगा!"

बलदेव देवरानी के कमर में हाथ डाल कर अपनी तरफ खीचता है और अपना लौड़े से देवरानी की छोटी-सी जंघिया में कैद चूत पर धक्का मारता है।



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"ये ले मेरा लौड़ा मेरी रानी!"

देवरानी अपने ऊपर ऐसे होते देख बलदेव के सीने पर अपना एक हाथ रख कर उसे पीछे करती है।

"आहह राजा!"

और फिर उत्तज़ना से अपनी आँखे बंद कर लेती है।

"तू नहीं मानेगी साली!"

नशे में धुत बलदेव हल्का गुस्सा हो कर देवरानी के कमर को और मज़बूती से पकड़ कर अपनी तरफ खींचता है तथा अपना लौड़ा अपनी माँ की चूत और फिर जंघिये के ऊपर से रख कर रगड़ देता है।

"आहह राजा!"

देवरानी उत्तेजना में आकर अपने दौनो हाथ बलदेव के कंधे पर रखती है।

"ये ले साली देवरानी! अपने चेहरे को पल्लू से ऐसे ढके बहुत गांड मटकाये फिरती है जैसे वासना शब्द भी ज्ञात नहीं हो पर तू है तो कामदेवी रति!"



50-3

बलदेव अपना बड़ा और मोटा लौड़ा देवरानी की चूत पर रगड़ने लगता है।

देवरानी अब ज़ोर से बलदेव के मजबूर कंधे को पकड़ भींच लेती है। फिर देवरानी अपने बेटे के बलिष्ठ छाती देख कराहती है ।

"बेटा तुम्हारा ये मर्दाना छाती कितनी आकर्षण है और कितने शक्तिशाली हो तुम!"

बलदेव: साली काम की पुजारीन! ये ले मेरे लौड़े के बारे में भी मुझसे बात करो!

बलदेव अब ज़ोर से देवरानी को अपनी तरफ खींचने लगता है।




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"आआआह! मेरे राजा तेरा लिंग तो तेरे बाप से दुगुना है! हाय दय्या!"

बलदेव अब देवरानी का हाथ खींच कर पलंग की तरफ ले जाता है।

"आजा छमिया! तुझे लिंग नहीं लौड़ा दिखाता हूँ!"

देवरानी बलदेव का हाथ छोड़ कर आगे भाग जाती है।

"नहीं बाबा मुझे नहीं देखना सांप, कहीं वह मेरे बिल में घुस गया तो!"

"तो क्या होगा रानी मज़ा आएगा!"

"मेरी जान ले लेगा वो!"

बलदेव देवरानी के पास जा कर खड़ा होता है या अपना लिंग उसके गांड पर सटा के पूछता है।

"क्यू पसंद नहीं आया अपने बेटे का लंड?"

"मेरे राज्जा अगर पसंद नहीं आता तो ये देवरानी जो दुनिया से घूँघट करती है, वह तुम्हारे सामने केवल जंघिये और ब्रेज़ियर में नहीं होती।"


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ये कह कर बलदेव का हाथ अपने मांसल पेट पर रख देती है।

"मां तुम्हारा ये तराशा हुआ हर एक अंग को मसल-मसल कर लाल कर देने का दिल चाहता है।"

"तो कर दो मेरे राजा मना किसने किया है।"

"उफ़ माँ! ये तुम्हारी फूली हुई चूत!"

बलदेव नीचे हाथ लेजा कर देवरानी की चूत पर जंघिया के ऊपर से हाथ फिराता है। देवरानी की चूत की लकीर ऊपर से ही फूली हुई दिख रही थी।

"आहह राजा!"

देवरानी बलदेव से छूट कर दूर जाती है और बलदेव को एक अदा से देख कर पीछे मुड जाती है या अपना एक पैर उठा कर मोड कर खड़ी हो जाती है।

"आह मेरी माँ जान ही ले लोगी, क्या आज?"

बलदेव देवरानी पर झपटता है और देवरानी फुर्ती से बिस्तर पर जा कर उल्टा लेट जाती है। बलदेव जैसा इसका ही इंतजार कर रहा था, वह अपने हाथों को देवरानी की गांड पर ले जा कर गांड मसल देता है।

"आह्ह्ह्ह रज्जा! मेरे राजा आराम से!"

बलदेव अब बिस्तर पर लेट जाता है और देवरानी को अपने ऊपर ले लेता है।

बलदेव अपना हाथ आगे बढ़ा कर जंघिया में क़ैद बड़े नितम्ब को ले कर खूब मसलता है।

बलदेव देवरानी को चित लिटा देता है और उसके पैर फेला कर अपना हाथ अपनी माँ की चूत पर रख रगड़ने लगता है।

"आहहह अम्म्म हम्म्म मेरे राजा!"

"माँ मुझे तुम्हारी ये चूत चाटनी है।"

"आह हम्म मेरे नहीं! हाय मेरे राजा!"

बलदेव देवरानी का एक हाथ ले कर अपनी धोती के ऊपर उठे लौड़े पर रख देता है।

देवरानी तुरेंट अपने आखे खोलती है।

"आआह ये क्या है?"

"माँ पकड़ो ना।"

देवरानी कुछ नहीं कहती।

बलदेव फिर अपने हाथ से देवरानी की हथेली को अपने लंड पर रख देता है।

"मां! मेरी रानी कृपया, इसका भी कुछ ख्याल करो!"

इस बार देवरानी अपना हाथ नहीं हटाती है और अपना हाथ बलदेव के 9 इंच के लौड़े पर रख कहती है ।

"ये बहुत बड़ा है मेरे राजा।"

"सिर्फ आपके लिए है मेरी रानी।"

"ये तो कहीं से इंसान का नहीं लगता!"

"ऐसे लौड़े को तेरे जैसी भारी माल की जरूरत है।"

"माँ सहलाओ ना मेरे लौड़े को।"

देवरानी धीरे-धीरे हाथ फेरने लगती है बलदेव अपने आखे बंद किये देवरानी की चूत मसल रहा था और देवरानी अपने बेटे का लौड़ा सहला रही थी।

बलदेव देवरानी का हाथ पकड़ कर इशारा करता है ।

"मां इसे ऐसे गोल बनाओ और आगे पीछे करो!"

"मुझे नहीं करना!"

"करो ना देवरानी! मेरी पत्नी नहीं हो!"

"अच्छा ठीक है।"

देवरानी अब बलदेव के लौड़े को मुठियाने लगती है।



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बलदेव: माँ साडि में आपकी ये गांड बहुत हिलती है। ज़रा हिलाओ ना!

देवरानी उठते हुए"मेरे राजा बेटा तुम्हे मेरे चूतड इतनी बार देकहे है, फिर भी तुम्हारा मन नहीं भरता! ये ले!"

देवरानी उठ अपनी छोटी-सी जंघिया में अपने दोनों भारी खरबूजे चुतडो को हिलाने लगती है।

"मां मैं अपने लौड़े से इन तरबूज़ो को फोड़ दूंगा।"

देवरानी मुस्कुरा देती है।

"अच्छा जी!"

और फिर लज्जा जाती है।

बलदेव देवरानी को अपने पास ले कर उसके चूत पर हाथ ले जा कर ज़ोर से थपकी देने लगता है।

"फट्ट फट" की आवाज पूरे कक्ष में गूंज रही थी । बाहर ढोल की आवाज होने के कारण ही दोनों ये कर पा रहे थे, नहीं तो इतने जोर से देवरानी की गांड पीटने से बाहर तक आवाज जा रही थी।

"आआआह राजा इतना ज़ोर से मत मारो!"

मां इतने भारी या बड़े तरबूज़ों को धीरे से रगड़ने से इनपर कुछ भी असर नहीं होगा। "

बलदेब देवरानी को उल्टा लिटा देता है और अपने दोनों हाथो से दोनों बड़े नितम्बो को पकड़ मसलता है ।



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"आआह राजा धीरे करो!"

"माँ क्या बड़े मज़बूत खरबूजे छुपा रखे हैं तुमने?"

"कहा छुपाये? आख़िरकार तुमने पा तो लिया है इन्हे!"

"मेरी जान देवरानी!"

"आआह राजा हम्म्म अगर किसी ने देख लिया मुझे तो?"

किस साले की हिम्मत जो मेरी महारानी देवरानी को आख उठा कर भी देख ले?

" और जिस दिन वह मेरी प्रेमिका मेरी पत्नी पर बुरी नजर डालेगा, देवरानी वह दिन उस मर्द का आखिरी दिन होगा।

बलदेव ज़ोर से गांड को मसलते हुए कहता है।

"बलदेव बाहर लोग क्या सोच रहे होंगे? भैया हुरिया दीदी और शमशेरा हमारे बारे में क्या सोचेंगे?"

"मां यही सोच रहे होंगे कि पति अपनी पत्नी को ले कर गया है सोने के लिए । सोने का समय हो गया है ।"

"बलदेव मजाक मत करो!"

"मां हम कब तक ऐसे छुपेंगे?"

"बेटा वैसे आज जब से पी कर आये हो, थोड़े चिंतित प्रतीत हो रहे हो! आह धीरे!"

"हम्म माँ! बात ही कुछ ऐसी है, पर तुमने कब या कैसे देख लिया मुझे चिंता करते हुए?"

"आह आराम से बेटा...मां हूँ तेरी और अब तो तू मुझे पत्नी भी कहता है तो भला मैं अपने पति के चेहरे को पढ़ नहीं सकती।"



TENT-KIS2
viet online

"हाँ माँ वह माँ बद्री और श्याम हमें जंगल में तंबू में देख लिये थे।"

"आआआह क्या बक रहे हो बलदेव?"

बलदेव देवरानी को सहलाते हुए- "हाँ माँ वह दोनों मुझे आज खरी खोटी सुना रहे थे की मैं चरित्रहीन हूँ जो अपनी माँ के साथ ये सब कर रहा हूँ।"

"तो बेटा तुमने क्या कहा?"

"मां मैंने तो कह दिया मेरे और देवरानी के बीच कोई आया तो उसके लिए अच्छा नहीं ...मैंने कहा अगर बद्री मेरा मित्र नहीं होता, तो मैं आज उसको फाड़ देता ।"

"ऐसा क्यू कहा बेटा तुमने वह दोस्त है ना तुम्हारा? आह्ह हम्म!"

बलदेव अब देवरानी के ऊपर अपना लौड़ा देवरानी की जंघिये के ऊपर से छूट उसकी योनि पर लगा कर लेट जाता है।


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"आहह आराम से बेटा मैं मर जाउंगी!"

"चुप करो इतनी हटटी कटटी घोड़ी हो! और माँ क्यूकी उन्होंने मेरे और तुम्हारे प्यार को वासना का नाम दिया, इसलिए!"

"बेटा हम दुनिया के रीति रिवाज़ के विपरीत जा कर ये प्रेम कर रहे हैं। हमें संयम से कम लेना चाहिए और वह तुम्हारे मित्र हैं, प्यार से समझाना उनको तुम।"

"वो नहीं मानेगे साले बद्री और श्याम दोनों हरामी है।"

बेटा ऐसा ना कहो उनके जगह पर तुम होते तो तुम्हें भी ऐसा ही लगता। उन दोनों को मैं बेटे जैसा मानती हूँ। उन्हें तो बुरा लगना ही था। तुम प्यार से अपने दिल की बात उनसे करो, मुझे भरोसा है वह मान जाएंगे हमारे रिश्ते के लिए। "

बलदेव आगे झुक कर माँ के होठ को अपने होठ में रख कर चूमता है और अपने हाथ से उसके वक्ष दबाता है।


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"आहह राजा!"

"माँ तुम कितनी बुद्धिमान हो अगर तुम मेरा कदम-कदम पर साथ दो तो मुझे और कुछ नहीं चाहिए।"

"अच्छा जी!"

"मां मैं तुम्हारे बिना अधूरा हूँ। तुम्हें पत्नी बनाने का मेरा निर्णय आज सही साबित हो रहा है।"

बलदेव देवरानी को चूमते हुए उसकी गांड पर अपना लौड़ा मसलते हुए झड़ जाता है।




LAP-KISGIF
देवरानी अपनी गांड पर गीला महसस कर समझ जाती है के बलदेव ने अपना पानी छोड़ दिया है ।

देवरानी उठने की कोशिश करती है पर बलदेव उसे झुकाए हुए वह अपनी उंगली उसकी चूत के दरार पर फेरते हुए उसे चुम कर बोलता है ।

"कहा चली मेरी रानी? में राजपाल नहीं जो तुम्हें अधूरा छोड़ दू।"



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"आआह मेरे राजा आआआ!"

बलदेव की उंगली अब देवरानी चूत के अंदर महसुस कर रही थी।

"आह मेरे राजा! आआआआह ओह्ह्ह आआआआआआआह। मैं गई मेरे राजा । नहींईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई।"

बलदेव आगे बढ़ कर देवरानी को जोर से चूमता है



और देवरानी आखे बंद किये झड़ती है। बलदेव अब अपना हाथ चूत से हटा कर देखता है तो हाथ भीगा हुआ था। वह अपने मुँह में ले कर चाटता है जिसे देख देवरानी मुस्कुरा रही थी।


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देवरानी वही बेसुध लेटी हुई थी और बलदेव भी बगल में लेटा हुआ अपनी आखे बंद कर नींद की आगोश में जाने लगता है। थोड़ी देर बाद अपनी सांसों पर काबू पा कर देवरानी उठती है और उसकी नजर अपनी चूत के हिस्से पर जाता है जिसे देख शर्मा जाती है उसका पूरा जंघिया चुत के पानी से भीगा हुआ था।


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देवरानी जा कर अपना वस्त्र बदलने लगती है, उधर बलदेव अब खर्राटे ले कर सोने लगा था।

देवरानी: (मन में-ये बलदेव भी ना पूरा रसिया है। अब मेरी हिम्मत नहीं बाहर जाने की और भोजन करने की पूरा शरीर, दर्द से ऐठ रहा है ।)


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देवरानी अपने वस्त्र बदल कर लेट जाती है । लेटते ही उसे मीठी नींद आ जाती है...।

जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 68

प्यार से समझाओ

बलदेव देवरानी प्यार का खेल-खेल कर थके सो रहे थे पर हूर-ए-जहाँ, उर्फ़ मल्लिका-ए-जहाँ हुरिया की आंखों से नींद कोसो दूर थी रह-रह के उसके दिमाग में बलदेव या देवरानी का वह दृश्य घूम रहा था जब वह अपनी माँ को बाहो में भर ले अपनी माँ की गांड को दबा रहा था ।


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हुरिया: (मन में-ऐ खुदा! क्या कयामत अब करीब है! लोग ऐसे कैसे हवस में आकर लज्जत पाने के लिए अपनी माँ के साथ ही छी! सोच कर हे घिन आ रही है... दो चार दिन की बात है फिर तो इसे वापस जाना ही है अगर सुल्तान को ये बात मालूम पड़ जाएगी तो दोनों का सर कलम करवा देंगे वह नहीं देखेंगे के ये मेहमान है या कौन है। मुझे कुछ करना होगा।

ये सब सोचते हुए हुरिया सोने की कोशिश कर रही थी


SLEEP1

उधर महफ़िल में बैठे शमशेरा और अन्य सभी लोग महफ़िल ख़तम होने के बाद खाना खाने बैठे हैं।

देवराज: युवराज शमशेरा! ये भांजा बलदेव नजर नहीं आ रहा है?

शमशेरा: हाँ वह शायद जा कर महल में सो गया है।

देवराज: ओह!

तभी वहा पर खड़ी दासी को

देवराज: ये बलदेव या देवरानी कहाँ है?


devraj0

दासी: महाराज उनका कक्ष तो बंद है दोनों काफी वक्त से सो रहे है ।

सुल्तान: अरे वह लोग थके हुए थे। वह बिना खाना खाये सो गये होंगे, हुरिया भी तो नहीं है।

दासी: गुस्ताखी मुआफ सुल्तान...वो भी सो गई हैं ।

शमशेरा: ए सुनो दासी जा कर देवराज जी के लिए खास शाकाहारी सब्जी लाओ!

दासी: जी शहजादे!

सुल्तान: अरे बद्री और श्याम आप दोनों चुप क्यू है? क्या आपको अच्छा नहीं लगा?

बद्री: नहीं सुलतान! बस हम खाते समय बात नहीं करते!



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सुल्तान: बहुत अच्छी परवरिश पाये हो!

श्याम: हम मेवाड़ी खाने की पूजा करते हैं। सुल्तान!

सुल्तान: क्या बात है छोटे युवराज! मुझे लगा शायद हमारे यहाँ का साग सब्जी आपको अच्छा नहीं लगा!

बद्री: आप ने ख़ास टॉयर पर हमारे लिए शाकाहारी खाना बनवाया, इस से हम बहुत प्रसन्न हुए सुल्तान!

देवराज: बद्री! पनीर तो देवरानी को भी बहुत पसंद है। पर वह सो गई है ।

बद्री: हाँ! लगता है मौसी तो सो गई है ।


(मन में: मौसी को पनीर की क्या ज़रूरत है जब वह अपने कक्षः में बंद हो बलदेव का केला खा रही है।)

सब ऐसे वह अपना खाना ख़तम कर के बारी-बारी से उठ के जाते हैं। बद्री और श्याम सब से पहले उठ कर अपनी कक्षा की ओर जाते हैं।

बद्री: देखो अब भी मौसी के कक्ष का दरवाज़ा बंद है।

श्याम: छोडो भी बद्री! बलदेव अपनी माँ के साथ मजे ले रहा है। हमें क्या! माता रानी देवरानी भी तो मजे ले रही होगी।

बद्री: ठीक है चलो हमें इससे क्या? हम सोते हैं!

श्याम: हाँ हम अपना-अपना लिंग हाथ में ले गुजरा करते है । बलदेव को तो पकड़ने वाली मिल गई है।

बद्री ये सुन कर मुस्कुरा देता है।

बद्री: चल कमीने! सोते हैं।

दोनों जा कर सो जाते हैं।

इधर सुल्तान मीर वाहिद अपनी कक्ष में जा कर आराम करते हैं और देवराज भी अपनी कक्ष में जा कर आराम करता हैं। शमशेरा अपनी कक्ष में आकार सबसे पहले अपने साथ लायी मदीरा को गटकता है ।

शमशेरा: आह मजा आ गया। ये पी कर अब जा कर एक बार अम्मी की भारी गांड और मोटे दूध देख लेता हूँ।

शमशेरा हुरिया की कक्षा के पास जा कर।

"अम्मी जान क्या मैं अंदर आ जाऊँ!"

दो तीन बार इजाजत लेने के बाद उसे कोई उत्तर नहीं मिलता तो वह दरवाजे पर हाथ लगाता है, तो वह पाटा है कि दरवाजा खुला हुआ था । वह दबे पांव जाता है देखता है और देखता है हुरिया बिस्तर पर लेटी हुई सो रही है।




SLEEP0

शमशेरा हुरिया के हुस्न को ऊपर से नीचे तक देखता है।

"खुदा ने सचमुच तुझे फुर्सत में बनाया है मेरी हुरिया बेगम! हूर ए जहाँ!"

शमशेरा सीधा हाथ अपने लंड पर ले जाता है और उसे मसलता है और फिर वापस मुड़ कर चुपके से दरवाजा बंद कर के सोने चला जाता है।

अगली सुबह चिड़िया की चहक के साथ पारस के खूबसूरत पहाड़ों के दरमियाँ से सूर्य उदय होता है।

पारस में सुबह-सुबह सैनिक बल अभ्यास कर रहे थे ।

सुल्तान उठते ही सैर पर निकल जाता है। शमशेरा उठ कर कुश्ती करने के लिए बाहर आता है और सैनिकों संग कुश्ती खेलने लगता है। हुरिया भी उठ जाती है और पाक साफ हो कर सुबह के नाश्ते का इंतज़ाम दासियो से कह कर कारवाने लगती है।

बद्री या श्याम भी उठ कर बाहर आते हैं और मैदान में चल रहे हैं सेना अभ्यास को देखने लगते हैं।

एक अंगड़ाई लेते हुए बलदेव उठता है तो पाता है उसकी माँ उसे उसकी बाहो में बाहे डाले बच्चे जैसी उसके साथ चिपक कर सो रही है। बलदेव अपनी माँ को देख मुस्कुराता है, फिर अपनी माँ को अपनी बाहो में समेट लेता है।



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बलदेव: मोटी मेरी बाहो में भी पूरी नहीं आ राही । जबकी में इतना लंबा हूँ!

चंचलता से मुस्कुराते हुए ये कह कर देवरानी को जकड़ लेता है और अपनी आंखें बंद कर लेता है।

बलदेव: (मन में-जब तक देवरानी नहीं उठती तब तक मैं भी सोता हूँ। अगर मैं उठा तो इसकी नींद टूट जाएगी और अपने हाथ से इसके सर को हटा देता है।)

बलदेव देवरानी को अपने कंधों पर बीती रात की बात सोच मुस्कुराता हुआ अपना किस्मत पर गर्व करता है।

बलदेव: (मन में-यथा सुंदर इतना मलाइदार माल, मुझे शायद ही मिल पाटा । देवरानी सच में अप्सरा है, मुझे यकीन नहीं होता आज माता देवरानी मेरी बाहों में है और मुझसे पट गई है, पर ये चोदने कब देगी । मैं कब इनको प्यारी मुनिया में, मेरा लिंग घुसाू पाऊँगा । ये तो बहुत संस्कारी बनती है, मुझे बिना विवाह के कुछ करने नहीं देगी। अब मैं क्या करु?)



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(देवरानी नींद में देख रही थी की एक राजकुमार उड़ते घोड़े पर आता है और वह महल की छत पर खड़ी है। वह राजकुमार अपना घोड़ा देवरानी के महल पर ला कर रोकता है और देवरानी के सामने घुटनों के बल बैठ जाता है ।)

"अप्सरा देवरानी चलो, मैं तुम्हें स्वर्ग लोक ले चलू ।" देवरानी उसको देख दंग हो जाती है क्यू के घुड़सवार और कोई नहीं, बलदेव ही था। जैसा वह नीचे देखती है तो एक 15 इंच का लंड उसके सामने था। उसे जिसे देख देवरानी डर जाती है और बलदेव उसे घोड़े पर बैठा लेता है । घोड़ा उड़ता है पर देवरानी जैसा हे घोड़े पर बैठती है उअसके डर के पसीने छूट रहे थे और वह कहती है। "हाय मैं मर जाऊँगी!")


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बलदेव देखता है देवरानी सो रही है पर उसके माथे पर पसीना आ रहा था और अचानक से देवरानी के मुँह से निकलता है ।

"हाय मैं मर जाऊंगी" और डर कर देवरानी सपने से हकीकत में आती है।

बलदेव: माँ क्या हुआ आप मेरे पास हो मेरी बाहो में डरो मत!

देवरानी अपने आप को बलदेव की बाहों में सिमटी हुई पाती है।




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बलदेव: डर मत मेरी रानी किसी की इतनी हिम्मत नहीं मेरी रानी को छू भी ले ।

देवरानी अपना सर शर्म से बलदेव के सीने में छुपा लेती है।

बलदेव: क्या हुआ, आपने कोई बुरा सपना देखा क्या?

देवरानी: (मन में-अब मैं कैसे बताउ इसे।)

देवरानी: बेटा बुरा भी अच्छा भी और अपने होठ अपने दांत से काट लेती है।

बलदेव: देवरानी तुम्हारी बात तुम्हें ही समझ आती है।

देवरानी: अच्छा मेरे राजा!


(मन में-तुम तो सपने में भी मुझे अपने बड़े लिंग से डराते हो!)


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और देवरानी मुस्कुराती है।

बलदेव: हाय मैं मर जाउ तेरी इस हंसी पर!

देवरानी: वो मैंने देखा तुम्हारी हरकत रात में और थोड़ा उदास होते हुए कहती हैं।

बलदेव देवरानी के पैर को सहलाते हुए कहता है।

"माता आपके चरण कहाँ है आप मुझे क्षमा कर दो।"

देवरानी: हुह सब मर्द ऐसे ही है।

"मां मुझे क्षमा कर दो कल रात शमशेरा ने जबदस्ती पिला दी और उस नशे में मैंने आपके साथ गलत सुलूक किया । गलतियाँ भी दी । आप मुझे क्षमा कर दो ना।"

बलदेव कान को हाथ लगा कर माफ़ी मांगता है


SORRY

"बलदेव...तुम मेरे पति से बढ़ कर हो। तुम मेरे हृदय हो। मैं नहीं चाहती तुम किसी भी बुरी आदत का शिकार हो जाओ । अपना शरीर खराब करो। जैसे तुम्हारे पिता ने मेरा जीवन खराब किया, तुम भी वैसा ही कुछ करो .!"

बलदेव: सुशश! मेरी मां...आगे एक शब्द नहीं, मैं वचन देता हूँ और अपने वचन को निभाने के लिए सर भी कटा दूंगा।

देवरानी: चुप कर, बड़ी-बड़ी बातें नहीं चाहिए मुझे। बस तू मेरा हो कर रह। मेरा कहा मानो। मेरे राजा! रही बात कल रात गलिया की तो आवेश में आ कर तुमने जो गालीया दी, जो नहीं देनी चाहिए थी, पर मुझे जरा भी बुरा नहीं लगा!

बलदेव: माँ, मेरी माँ! तुम जैसी कोई नहीं। बोलो कहाँ घुमने जाना है?



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देवरानी बिस्तर से उठ कर अपनी साडी ठीक करते हुए बोली ।

देवरानी: आज भैया के साथ तुम्हें मैं अपने जन्म स्थान घुमाने ले कर चलूंगी ।

बलदेव: माँ! मुझे तुम अपने जन्म स्थान तो जा रही हो। पर मेरे जन्म स्थान में जाने का शुभ घड़ी कब आएगी?

देवरानी मुस्कुराते हुए बलदेव की बात को समझते हुए साडी ठीक करते हुए कहती है।



"बलदेव कमीने...तुम्हें अपने जन्म स्थान पर जाने की अनुमती रीति रिवाजों के अनुरूप मिलेगी।"

"मां कैसी रीति रिवाज की बात कर रही हो?"

"इतनी आग लगी है तो जाओ मांग लो मेरे देवराज भैया से मेरा हाथ!"

देवरानी चुटकी लेते हुए मुस्कुराती है।

बलदेव चिढ़ कर उठ ता है और देवरानी की साडी को पकड़ कर खींचने लगता है।

"मां तुम्हारे भैया को ये भी बताऊंगा कि उसकी बहन रात भर मेरे से चिपक कर मजे में सिसक रही थी और मेरे लिंग से खेल रही थी अपने हाथो में लिए।"

अब शरमाने की बारी देवरानी की थी।

"चुप कर बदमाश!"




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"मां मुझे चुनौती पसंद है, मैं सच में जा कर अपने साले साहब से तुम्हारा हाथ मांग लूंगा ।"

"नहीं नहीं मेरे राजा धैर्य रखो!"

देवरानी फिर अपनी साडी बलदेव के हाथों से ले कर पहनती है।

"मां कितना धैर्य रखूं । जब विवाह कर के ही तुम मेरी बनोगी, तो कर लेते हैं ना यहीं कहीं।"

"बेटा भगवान पर विश्वास रखो और हाँ मुझे स्नान कर पूजा करनी है । तुम भी मुझे तंग मत करो, जाओ । अब योग करो! मैं भी योग कर लू फिर नहा धो के पूजा कर लू।"

बलदेव अपने आखे बंद किये हल्का गुस्सा हो के सर को झटकाता है और बाहर जाने लगता है।

"हाँ बेटा! बद्री और श्याम को प्यार से समझाना!"

"हाँ माँ ठीक है।"




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देवरानी स्नान करती है, योग करती है और अपने साथ लाए भगवान की मूर्ति को रख मंत्र उचारण करने लगती है।

फिर कुछ प्रसाद, जो अपने साथ में ले कर आई थी वह चढ़ा कर भगवान से कुछ देर अपने मन में बात करती है।

इधर हुरिया अपनी कक्षा में बैठी किताब पढ़ रही थी।

हुरिया: ये कौन सुबह-सुबह ऐसा कौन-सा मंत्र पढ़ रहा है ...?

हुरिया ताली मारती है।



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दासी: जी मल्लिका ए जहाँ!

हुरिया: ये सुबह-सुबह कौन शुरू हो गया?

दासी: गुस्ताखी मुआफ मल्लिका, महारानी देवरानी के कमरे से आवाज आ रही है, शायद वह पूजा कर रही हो!

हुरिया: ठीक है जाओ!

हुरिया: (मन में-बेग़ैरत रात में बेटे के साथ मजे लेती है या सुबह में खुदा को खुश करती है। जहन्नुमी!)

देवरानी पूजा संपन्न कर प्रसाद ले कर सब से पहले हुरिया की कक्षा में आती है।

देवरानी: शुभ प्रभात दीदी! ये लीजिए!

हुरिया: सुबह-सुबह तुम थी क्या?

देवरानी थोड़ी असमंजस की स्थिति में पूछती है ।

देवरानी: दीदी कहीं मेरी पूजा करने से आपको कोई आपत्ति तो नहीं?

हुरिया: नहीं आप हमारी मेहमान हैं और आप अपने खुदा की पूजा करें इससे हम कोई एतराज़ नहीं हैं।

देवरानी: धन्यवाद दीदी, मुझे लगा, कहीं आपको बुरा न लगे!

हुरिया: मुझे क्या पारस में किसी को बुरा नहीं लगेगा हम यहाँ सब मिल जल कर रहते हैं। हमारे लिए इंसानियत से बढ़कर कुछ नहीं, पर...!


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देवरानी: पर क्या दीदी!

हुरिया: इंसान को समझ होनी चाहिए कि धर्म में क्या मना है क्या नहीं? अपने मजे के लिए कुछ भी कर ले तो हमारे में जहन्नम में और ...!

देवरानी हुरिया को रोकते हुए देवरानी: और हमारे में बिना रुके सीधे नरक में जाते हैं और देवरानी मुस्कुराती है।

हुरिया को अंदर से बहुत गुस्सा आ रहा था।

हुरिया: वैसे बहुत देर से उठी आप देवरानी?

देवरानी: दीदी कल रात सफर के बाद हम बहुत वह थके हुए थे तो हम दोनों जल्दी सोए और आज सुबह उठ कर हमने योगा कीया।


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हुरिया: हम्म तो तुम कसरत करती हो इसलिए तंदुरुस्त हो!

देवरानी: जी दीदी मैं तो कहूंगी आप भी व्यायाम किया करो।

हुरिया: हाँ मैं मोटी हो गयी हूँ।

देवरानी: नहीं दीदी आप के बदन पर थोड़ी चर्बी बढ़ गयी है बस इसलिए बाहे, टाँगे पेट और आपकी छाती ज्यादा भारी हो गयी है पर आपकी लम्बाई पर ये ज्यादा खुबसूरत लगती है।




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हुरिया: हम्म शुक्रिया मेरी बहन!

(हूरिया (मन में-इसके अंदर हर बात अच्छी है, फिर ये कैसे अपने बेटे से फंस गई. बात करनी पड़ेगी, अब ये समझे कौन-सी मेरी रिश्तेदार है जो इसे कोई हिदायत दू, बस इसे समझा सकती हूँ कि सुल्तान या कोई और इसकी रंगरलिया ना देख ले। इसे सावधान रहने के लिए कहना होगा।)

देवरानी: क्या सोच में पड़ गई ये लीजिए प्रसाद!

हुरिया: हाँ लाओ.। और सुनो मैं तुमसे कुछ बात करना चाहती हूँ।

देवरानी: बोलिये ना दीदी!




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हुरिया: अभी जाओ हम इत्मिनान से बैठ कर गुफ़्तगू करेंगे।

देवरानी: ठीक है मैं प्रसाद सबको दे कर आती हूँ।

हुरिया: चलो मैं भी देखु बाहर। बावर्ची सही खाना बना रहे हैं के नहीं?

दोनों साथ में बाहर आते है तो सामने बलदेव आ गया।

बलदेव हुरिया को देख उसके चरण छू लेता है।

बलदेव: शुभ प्रभात मल्लिका मौसी!

हुरिया: अहा हा बेटा! खुश रहो!

बाहर कुश्ती का अभ्यास कर के दूसरी तरफ से शमशेरा देवराज और उनके साथ ही कुश्ती देखकर बद्री और श्याम भी महल के अन्दर आते हैं।

देवरानी: अच्छा हुआ तुम सब एक साथ आ गए!




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देवरानी: शुभ प्रभात भैया!

देवरानी देवराज के चरण छू लेती है।

देवरानी: ये लीजिए प्रसाद!

देवराज: जीते रहो मेरी बहन!

देवरानी इशारे से बलदेव को भी देवराज के चरण छूने के लिए कहती है।

बलदेव देवराज के चरण छूटे हुए प्रणाम करता है।

"शुभ प्रभात मामा जी!"

देवराज: जीते रहो बेटा!

हुरिया: बस केवल मामा के चरण छू रहे हो! माँ के चरण नहीं छूओगे?

बलदेव: वह मल्लिका मौसीमैंने सुबह में ही उनको छू कर आशीर्वाद ले लिया था।

देवरानी मुस्कुरा देती है।

बद्री: (मन में-चरण छुए थे या मौसी का कुछ और छुआ था। हरामी बलदेव!)

देवरानी: अरे तुम दोनों उधर क्यू खड़े हो इधर आओ श्याम और बद्री। प्रसाद लो!

श्याम देवरानी के चरण छू लेता है।

श्याम: माता रानी प्रणाम!

और फ़िर अपने हाथो में आखे बंद कर प्रसाद ले कर खाने लगता है।

बद्री: खाने में तो तू कभी पीछे नहीं रहता?

देवरानी: बद्री तुम भी लो!

बद्री भी देवरानी के चरण छू लेता है।

देवरानी: ये लो बेटा तुम भी खा लो! भगवान के प्रसाद को बाद के लिए नहीं रखते।

बद्री: जी मौसी!

शमशेरा: खाला मुझे प्रसाद नहीं दोगी? मैं भी तो आपका बेटा हूँ!

शमशेर की इस बात पर सब हसते है।

हुरिया: दे दो इस शैतान को भी प्रसाद!

देवरानी: ये लो बेटा शमशेरा!

शमशेरा: शुक्रिया खाला जान!

देवराज: के चरण छू लेता है आज जब मैंने तुम्हारी आवाज़ में प्राथना सुनी तो मुझे माँ याद आ गई. वह भी इसी तरह से सुबह सभी से पहले उठ कर भजन गाती थी और तुम्हारी आवाज़ भी उनसे मिलती है।

देवरानी: आखिर मैं मेरी अपनी माँ की ही अंश हूँ, है ना भैया!

बलदेव: मामा जी! माँ एक दिन भी पूजा करना नहीं भूलती, यात्रा में भी कभी नहीं भूलती और कभी-कभी तो अति कर देती है।



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देवरानी: तुम्हे क्या पता पूजा का महत्त्व! गधे, बलदेव!

देवराज: अरे झगड़ा बंद करो दोनो। आज हम हमारे गाँव जायेंगे!

बलदेव: सही है माँ को तो इस दिन का प्रतीक्षा बरसों से है।

देवराज: देवरानी बता देना कब निकलना है?

तभी उधर सुल्तान मीर वाहिद आते हैं।

सुल्तान: अरे वाह भाई! पूरा मजमा यहाँ इकट्ठा है। क्या माजरा है?

देवराज: आइए सुल्तान जी! सलाम वालेकुम!

सुलतान: वालेकुम अस्सलाम! देवराज जी!

देवराज: आज सोच रहा हूँ बहन और बच्चों को अपना राज्य और गाँव दिखा दूं।

सुल्तान: जरूर दिखाओ मेरी बहन देवरानी एक अर्शे के बाद अपनी माँ के वतन आई है।

सब वहा से जाने लगते हैं और देवराज और सुल्तान आपस में बातें करने लगते हैं।

बलदेव देखता है बद्री और श्याम पतली गली से उसे अनदेखा किये अपने कक्ष की ओर जा रहे थे।

बलदेव उन दोनों के पीछे जाता है।

बद्री और श्याम अपने कक्ष में आते हैं। बलदेव उनके कक्ष के अंदर आकर दरवाजा बंद करता है।

बद्री और श्याम घूम कर देखते हैं तो पाते हैं उसके कक्ष में बलदेव आया था।

बद्री: क्यू रे हमें मारने आया है क्या? बहुत गुस्सा आया है ना तुझे को कर हमला।

श्याम बद्री को देख रहा था। बलदेव मुस्कुराते हुए बद्री के पास जाता है।

"मेरे मित्र बद्री शांत हो जाओ!"

बद्री: कल तो कह रहे थे ना के अगर "हम मित्र ना होते तो हमे फाड़ देते"। तो दिखाओ अपनी मर्दानगी हम भी कोई चूड़िया नहीं पहनें हुए है।

बलदेव अपने गुस्से को शांत करते हुए फिर मुस्कुराता है।

बलदेव: मेरे मित्र तुम! हो लो जितना गुस्सा होना है। तुम्हारा हक है।

बद्री: तुम्हारी मर्दानगी सिर्फ तुम्हारी माँ पर चलती है क्या? और बद्री मुस्कुराता है।

बलदेव ये सुन कर आग बबुला हो जाता है पर अपना सर नीचे करता है।

श्याम: चुप कर बद्री तुम कहीं के महाराज नहीं हो, जो बलदेव की कल कहीं हुई बात, तुम्हें इतनी बुरी लग गई. तुम अब हद से ज्यादा बोल रहे हो।

बद्री को लगता है जैसा श्याम सही कह रहा है।

बद्री: तो मैं क्या करूँ? जो ये कर रहा है, इसके बाद भी इसकी पूजा करूँ क्या?

बलदेव सोचता है यही सही मौका है बात को संभालने का।

बलदेव: बद्री अगर तुमने मुझे कभी भी अपना सच्चा मित्र समझा होगा, तो मेरी बात सुनोगे।

श्याम: बैठ जाओ तुम दोनों!

श्याम और बलदेव एक कुर्सी पर बैठ जाते हैं।

बद्री पलंग पर अपने दोनों पैर लटकाये हुए बैठ जाता है।

बद्री: अब बको!

बलदेव पूरी कहानी बद्री और श्याम को सुनाता है कि कैसे देवरानी और बलदेव एक दूसरे से प्यार कर बैठे और पूरी कहानी शुरू से अंत तक सुना कर कहता है।

बलदेव: अब बोलो बद्री अगर मेरी माँ किसी पराए मर्द के पास जाए क्योंकि उसके पति ने, उसके ससुराल वाले ने उसे एक बहू का सम्मान नहीं दिया तो क्या ये ठीक होगा?

बद्री: पर मुझे यकीन नहीं होता कि मौसी तुमसे प्रेम करने लगी है। तुम कहीं कोई जबरदस्ती तो ...!

श्याम: क्यू नहीं यार? प्रेम अंधा होता है किसी से भी हो सकता है।

बलदेव: अगर तुम लोगों को लगता है कि मैं माँ से जबरदस्ती कर रहा हूँ तो तुम माँ से बात कर सकते हो।

बद्री: ठीक है।

बलदेव: अगर माँ ने कहा कि उसने मुझे चुना है तो? मित्र! फिर क्या तुम ये गुस्सा ख़तम कर पहले जैसे ...?

बद्री: पहली बात तो कर लू मौसी से!

श्याम: वह सब तो ठीक है बलदेव पर मेरा दिल इस बात से दुखा है कि तुम इतने दिनों से मौसी से सम्बंध बना रहे थे और हमें सच्चा मित्र बताते हो पर इस बारे में हमे कभी नहीं बताया।

बलदेव: मित्र मैं कैसे तुम सब को इस बारे में बताता?। ये तो अच्छा हुआ तुम्हे खुद ही पता लगा गया।



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श्याम: और इस बात का दुख बद्री को भी है, हम दोनों ने तुम्हारे विवाह के लिए क्या क्या सपने देखे थे।

बद्री अपना सर नीचे किये हुए सब सुन रहा था।

बलदेव: मित्रो इस बात को समझो कि मैंने और माँ ने कितना बड़ा कदम उठाया है और इन हालात में, मैं तुम दोनों से क्या कहता कि देखो मुझे अपनी माँ से प्रेम हो गया है और क्या तुम दोनों ख़ुशी-ख़ुशी मान जाते और रही बात विवाह की वह मैं नहीं करने वाला।

श्याम: क्यू भाई तुम एकलौते चिराग हो घटराष्ट्र के राजपरिवार के, विवाह नहीं करोगे तो आगे के वंश का क्या होगा और आगे कौन होगा जो घटराष्ट्र का राजवंश चलाएगा।

बलदेव अपनी आंखो में नमी लाते हुए

बलदेव: मित्रो मैंने प्रेम किया है तो निभाऊंगा। माँ को छोड़ किसी अन्य को देख भी नहीं सकता हूँ।

ये सुन कर बद्री की हसी छूट जाती है।

जिसे देख बलदेव और श्याम भी हसने लगते है।

श्याम: साले बलदेव! हमने क्या सोचा था कि हमारी भाभी आएगी बलदेव के विवाह में हम ये करेंगे वह करेंगे।

बलदेव: अब लो तुम दोनों ही चाहते थे भाभी ले आओ, जो तुम दोनों को पकवान बना के खिलाये तो मैने ढूँढ ली अपनी ऐसी अर्धांगनी।

इस बात पर बद्री मुस्कुराता है ।

बद्री: और खोजी भी ऐसी भाभी जिसे हमने भाभी भी नहीं कह सकते ।

बलदेव: दोनो इधर आओ.

श्याम और बद्री दोनों खड़े हो बलदेव के दोनों बगल में खड़े हो जाते हैं।



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बलदेव: तुम दोनों मेरे बचपन के मित्र हो । तुम समझो मेरी मजबूरी थी जो मैंने ये बात छुपाई । मुझे क्षमा कर दो!

बलदेव की आखे आसू से नम हो जाती है।

बलदेव अपने बाहे बद्री और श्याम के गले में डाल देता है।

बद्री और श्याम दोनों बलदेव को टूट गया देख अपने गले से लगा लेते हैं।

बद्री: रो मत बलदेव, मेरे तुम हमारी जान हो!

बलदेव: कभी दोबारा मत कहना के तुम दोनों मुझे छोड़ कर चले जाओगे हमारी मित्रता इतनी कमजोर नहीं है ।

श्याम: हम हैं ना हम लड़ेंगे तुम्हारे लिए । कोई बात नहीं अगर तुमने ये रिश्ता मौसी की जीवन सवारने के लिए किया । अगर उनकी भी खुशी भी इसी में है तो हमें इसमें भला क्या आपत्ती होगी?

बद्री: रोना मत मित्र, नहीं तो मैं भी रो दूंगा और मुझे भी क्षमा कर दो मैंने गलत शब्दो का प्रयोग किया।

बलदेव: नहीं मेरे मित्र, मैं समझ सकता हूँ तुम दोनों पर क्या बीती होगी!

बद्री: पर मैं मौसी से एक बार तो पूछूंगा

श्याम: अब माता रानी को मौसी बोलोगे हाँ...?

बलदेव बात को समझते हुए मुस्कुराता है।

बलदेव: हाहा वह तुम दोनों की भाभी लगेगी। मेरी तरफ से पूरी छूट है। बाकी तुम दोनों की मर्जी और तो और श्याम तुम्हें तो उनके हाथ का पकवान भी बहुत पसंद है।

श्याम: हाहा! अब तो मैं हक से उनसे पकवान बनवा कर खाऊंगा।

बद्री: चुप कर पेटू!

श्याम: पर हम उन्हें क्या कह कर पुकारेंगे?

बलदेव: अब तुम दोनों पहले उन्हें मौसी या माँ या माता रानी कहते थे तो ऐसा करो, अब तुम दोनों भाभी माँ बोलो।

इस बात पर बद्री ज़ोर से हँसा।

बद्री: है-है है! बलदेव तू इतना दिमाग कैसे लगाता है? ऐसी सोच लाता कहा से है?

बलदेव: देखो वह भाभी की भाभी रहेगी और वह तुम दोनों के लिए माँ की माँ भी रहेगी ।

श्याम: बड़ा सोच कर शब्द चुना है भाभी माँ!

बलदेव हसता है

बलदेव: वैसे आज माँ के साथ तुम दोनों भी चलो हमारे साथ नानी के घर!

बद्री: ठीक है हम भी चलेंगे!

श्याम: हाँ मजा आएगा घुमने में!

बलदेव: चलो मित्रो तैयार हो जाओ!

बलदेव चला जाता है।

श्याम: अब तो खुश हो ना बद्री?

बद्री: अब छोडो बलदेव मेरा मित्र पहले है, जब उसका दिल आया है उसको प्रेम हो गया है तो मैं क्या कहूँ?

श्याम: चलो भगवान की कृपा है तुम गुस्से से बाहर तो निकले!

श्याम: भाई मैं थोड़ा सो लेता हूँ फिर उठ कर खाऊंगा।

बद्री: तुम्हारा तो यही है सोना फिर खाना फिर सोना!

बद्री बाहर निकलता है तो देखता है देवरानी दासियो से खाना बनवा रही थी




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देवरानी: अरे बद्री तुम भूख लग गई क्या थोड़ा समय और दो।

तभी वाह बलदेव आजा ता है देखता है बद्री देवरानी के सामने खड़ा हो कर कुछ बोलने की हिम्मत जुटा रहा था।

बलदेव: माँ मैं अपना चूरन जड़ी बूटी खाना भूल गया वह खा कर आता हूँ।

देवरानी: हाँ मैंने वह अपने कक्ष में रखी है ले लोगे ना!

बलदेव: हाँ मैं ले लूंगा!

और मुस्कुरा के बद्री को दिखा के देवरानी को इशारा करता है।

बलदेव: बद्री माँ तुम दोनों बात करो! मैं आता हूँ।

देवरानी: (मन में-लगता है बद्री को बलदेव ने समझा दिया है और वह उसका विषय है पर वह मुझे कुछ कहना चाहता है।)

बद्री: मौसी वो...!



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देवरानी मुस्कुराते हुए कहती है ।

देवरानी: कहो बेटा शर्माओ मत!

बद्री: वो कुछ... बलदेव से कहानी सुनी ।

देवरानी थोडा मायुस होते हुए कहती है ।

देवरानी: बस मैं समझ गई बेटा तुम कहना क्या चाहते हो? तो सुनो तुम्हे और श्याम को मैंने बचपन से अपने बलदेव जैसा ही प्यार दिया और अपना बेटा समझा। तो मैं समझती हूँ तुम भी मेरी बात समझोगे।

बद्री: हाँ मौसी.।हिचकिचाते हुए कहता है।



देवरानी: तो सुनो मेरे ससुराल वाले वर्षो से मुझे मारने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने मुझे हर तरह का दुख दिए जिस से मैं मर जाउ और तुमने स्वयं देखा ही है कैसे हमारे ऊपर हमला हुआ और मेरे झोले से सांप का निकला ।

बद्री: हम्म्म! वह तो है कोई आप की जान के पीछे है।

देवरानी: कोई क्या होगा बेटा! मेरे अपने ही मेरे अपने नहीं है । जब बलदेव तुम दोनों के साथ आचार्य जी के पास थे तब मैं कई बार सोचती थी की मैं खुद अपनी जान ले लू पर...!

बद्री: पर क्या मौसी?

देवरानी: आज मैं तुम्हें ये बात बता रही हूँ वह कभी बलदेव को ना कहना क्यू के मेरी जान ले कर भी ये लोग खुश नहीं होंगे। वह सब मेरे बलदेव की जान के पीछे भी है जिसे बलदेव नहीं देख पा रहा है ।

बद्री ये सुन कर कांप जाता है।

देवरानी: हा बेटा अगर मैं आत्महत्या कर भी लेती पर फिर मेरे बलदेव के साथ जो होता वह सोच मैंने निर्णय किया कि मैं बलदेव का कवच बन कर रहूंगी भले ही मुझे कितनी ही पीड़ा को सहना पड़े।

बद्री: पर मौसी सब आप दोनों की जान क्यों लेना चाहते हैं?

देवरानी: बेटा क्यू के वह नहीं चाहते घटराष्ट्र का महाराज बलदेव बने। यहाँ तक की रानी शुरष्टि क्यू के खुद के बच्चे को जन्म नहीं दे सकी, जो महाराज बने

इसलिए मुझे मेरा शक है की वह घटराष्ट्र को हड़पने के लिए हम दोनों को रास्ते से हटाना चाहती हैं।


बद्री: पर मौसी बलदेव से ये सब...?

देवरानी: बेटा मैंने सच्चे मन से उसे अपना सब कुछ स्वीकार किया है और मैं नहीं चाहती कि कोई भी षड्यंत्र मेरे बेटे को छू भी ले इसलिए मैं उसकी कवच बानी इसी प्रकार रहूंगी।

बलदेव: पर धर्म में?

देवरानी: मुझे बस खुश रहना है, अब तुम अपनी मौसी को दुखी देखना पसंद करोगे जो बरसों से दुखी है या खुश देखना पसंद करोगे?

बद्री एक मुस्कुराहट के साथ देवरानी के मुरझाये चेहरे को देखता है।

बद्री: हमे बस आपको खुश देखना है ।

देवरानी अब मुस्कुराती है।

देवरानी: और कुछ पूछना है?

बद्री: नहीं मौसी मुझे मेरा उत्तर मिल गया।

या बलदेव वापस अपनी कक्ष में जाने लगता है

देवरानी: थोड़े देर में आ जाना । मैं खाना लगवाती हूँ।

बद्री मुड़ कर मुस्कुरा कर।

"जी मौसी"

बद्री अपने कक्ष में चला जाता है और देवरानी अपने काम में लग जाती है।

दोपहर का भोजन का समय हो जाता है और सब बारी-बारी से खाना खाने बैठ जाते हैं बद्री और श्याम बार-बार मुस्कुरा कर कभी देवरानी को तो कभी बलदेव को देखते हैं।

अपने आप को बार-बार देखे जाने से देवरानी शर्मा जाती है वह समझ रही थी दोनों मउसे क्यू ऐसे देख रहे हैं।

बद्री: मौसी वह सब्जी देना।

देवरानी: ये लीजिये बद्री!

श्याम अपने आखे बड़ी कर


(मन में-बद्री को इतनी इज्जत मौसी लीजिये कह रही है आज तक तो कभी नहीं ऐसे कहा?) तभी श्याम कुछ सोच कर

श्याम: माता रानी मुझे भी सब्जी चाहिए.

देवरानी: ये लीजिए श्याम आपकी पसंददीदा सब्जी.

इस बार बद्री के कान खड़े होते हैं।

बद्री: (मन में-ये मौसी हम दोनों को इतनी इज्जत से क्यू बोल रही है।)

श्याम: (मन में-ये मौसी को क्या हुआ आज?)

बलदेव दोनों को देख समझ जाता है उसके मित्रो के दिल में क्या चल रहा है।

बलदेव दोनों को देख मुस्कुराता है

बलदेव: (मन में ये दोनों बुधू ही है।)

सब धीरे-धीरे खाना खा कर उठ जाते हैं और आखिर में देवरानी भी जाने लगती है।

हुरिया, देवरानी सुनो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।

देवरानी: हाँ आप सुबह से कहना चाह रही हैं बोलिए ना!

हुरिया: चलो मेरे होज़रे (कक्ष) में चलते हैं ।

हुरिया देवरानी को ले जा कर अपने कमरे में बंद करती है।

देवरानी: ऐसी भी क्या बात है दीदी?

हुरिया गुस्से से आखे लाल करते हुए कहती है ।

"देवरानी आप हमारी मेहमान हैं या आप हिंद की महारानी हैं। इतनी अक्ल मंद और ईमान वाली है आप। क्या आप पर ये शोभा देता है।"

"क्या दीदी मैं समझी नहीं"

"देखिए देवरानी, आपसे बात इतनी जल्दी और बिना वक्त गवाए करने का राज ये है कि मैं आपको आगे मुसीबत त में नहीं देखना चाहती।"

"दीदी आप क्या कह रही हैं कैसी मुसीबत कौन-सा राज़ मुझे मतलब नहीं समझ में आ रहा है।"

"महारानी साहिबा आप इतने नेक दिल हैं आपके दिल में कोई छल कपट नहीं है । आप दिन रात खुदा को याद करती हो फिर कैसे तुमने गलत कदम उठा लिया?"

देवरानी को अब हल्का मेहसूस हो जाता है कि बात किस ओर जा रही है पर वह ये सोच कर की बात कुछ या भी हो सकती है मल्लिका से कहती है ।

"दीदी मैंने ऐसा क्या पाप कर दिया? मल्लिका ए जहाँ!"

"तुम वह जहन्नुमी हो देवरानी जिसने अपने बेटे से रिश्ता कायम किया है।"

ये सुन कर देवरानी की धड़कन बढ़ जाती है और वह कांपने लगती है।

"देवरानी तुम्हें पता है इसकी सजा पारस में क्या है और तुम्हारे भाई को ये बात पता चली तो तुम्हें जिंदा दीवारों में चुनवा देंगे?"

"दीदी आप गलत समझ रही हैं।"

"चुप कर बदज़ात औरत! मुझे तो तुझ जैसे गुनहगार से तो बात ही नहीं करनी है, पर मैं तुम्हें बता दूं कि अपना ये घटिया काम चोरी छुपे करना। मैं नहीं चाहती की मेरे मेहमान को कल घिनौने जुर्म में फांसी की सजा ही जाए."

देवरानी ने आगे बढ़ कर हुरिया को गले लगा लिया



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"दीईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई"

"अगर आप मल्लिका हैं तो मैं भी एक राजपूतनी हूँ। मेरे सामने इतना चिल्ला कर बात ना करे। हम धीरे से बात करते हैं, इसका मतलब ये नहीं कि हम चिल्ला नहीं सकते।"




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हुरिया: तुम्हारे पास क्या है कहने के लिए?

देवरानी: तो सुनो दीदी आप भी एक रानी हो अगर आपका पति 18-20 साल तक आपको अपनी पत्नी न समझे और आपको आपका हक नहीं दे और शरीरिक सुख भी ना दे तो आपको कैसा लगेगा?

हुरिया: बुरा लगेगा ही पर ...

"आप बस सुनिए जो मैं कह रही हूँ मल्लिका ए जहाँ जी । उसके बाद आप चाहे मुझे फांसी पर लटका देना, पर एक राजपूतनी को कभी धमकी मत देना।"

देवरानी खूब गुस्से से चिल्ला कर कहती है ।

हुरिया: चुप कर देवरानी मैं सुन रही हूँ। पर आवाज कमकरो । दिवारो के भी कान हो सकते हैं बस तुम्हारे अच्छे के लिए कह रही हूँ बाकी तुम्हारी मर्जी.

देवरानी: दीदी मेरा विवाह मुझसे बिना पूछे कम आयु में करवा दिया गया । मेरा बलदेव पैदा भी नहीं हुआ था कि मेरे पति ने मेरे साथ सोना छोड़ दिया।

"दीदी! पिछले 18 साल से मेरे ऊपर अत्याचार हुआ। किसी ने मेरा साथ नहीं दिया । ना भाई था ना बाप ना पति ना बेटा। में अकेली हर दुख का जहर पिया है। मैंने तो जीना छोड़ दिया था, दीदी! पर मेरे बलदेव ने मुझे जीने का कारण दिया वही है जिसने मुझे मेरे जीवन में हर घड़ी मेरा साथ निभाया और उसको मुझसे प्रेम हो गया । वह मेरे लाख मना करने के बाद भी नहीं माना और वह मेरे पीछे था तो दीदी मैं अपने जीवन की जल रहे एक ज्योति को भला कैसे खुद से बुझाती। फिर मैंने भी बलदेव को स्वीकार कर लिया तो धीरे-धीरे मुझे भी महसूस हुआ कि प्रेम क्या होता है । ये कड़वा सच है जो मेरे हृदय में पहले प्रेम की ज्योति किसी ने जलाई वह बलदेव है और सिर्फ बलदेव ही है ।"

हुरिया: बड़ी साधु बन रही हो, ये मजहब में किसी ने लिखा नहीं की ऐसा करो।




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देवरानी: " दीदी मज़हब धर्म आप से कह दूं बस अपने मन की शांति के लिए है । मैं मानती हूँ और जीवन भर मानूंगी । आप मुझे ये बताएँ ये कौन से धर्म में लिखा है कि पति अपनी पत्नी को बरसो तक उसे पति सुख नहीं दे?

कौन से ग्रंथ में लिखा है के पति 10 पत्नी कर ले और पत्नी अपने पति की मृत्यु के बाद भी सती बनी रहे?

ये क्या मजहब है कि दीदी की आपकी पति सुल्तान मीर वाहिद 150 लौंडिया अपने हरम में रखे और उन सबको भोगे और खुद 4 पत्निया रखे और उनको भी भोगे और आपको एक हफ्ते में एक बार ही ये मौका मिले? "

हुरिया: चुप करो इसमें सुल्तान की ज़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं!

देवरानी: जरूरी है दीदी आप अपनी आंखे खोलिए हर छूट हर ऐश सिर्फ मर्द को है, पुरुष को सब माफ़ है । स्त्री तो दासी है जो अपने आदमी से कुछ नहीं कह सकती... आपको लगी ना बुरी बात जब मैंने कहा कि सुल्तान के कितने मजे हैं और आप सप्ताह मैं एक बार खुश हो सकती हो । तो सोचो जब आपको सप्ताह में एक बार खुशी मिलती है तो भी आप दुखी हो तो मैं तो पति सुख के लिए सालो साल तड़पी हूँ, क्या ये सही है मेरा पति राजपाल वैश्यो से खूब मजे करे । अपनी दूसरी पत्नी को सुख दे पर मेरा पति मुझे तो नौकरानी ही समझे और राजा रतन की कुबेरी में जा कर रंगरेलिया मनाये ।

देवरानी अब चुप हो जाती है और वही पलंग पर बैठ कर सुबुक कर रोने लगती है।


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हुरिया का दिल पसीज जाता है और वह जा कर जग से गिलास में पानी डाल कर देवरानी के पास आ कर कहती है ।

"ये लो पानी पीयो, तुम तो घायल शेरनी की तरह बरस पड़ी।"

देवरानी ग्लास का पानी पीती हैऔर ग्लास रख कर खड़ी हुई हुरिया के पैरों पर गिर जाती है।

हुरिया: अरी देवरानी! ये क्या कर रही हो और उसे अपने हाथों से ऊपर उठाती है।

"दीदी हो आप मेरी बड़ी हो हमारे धर्म में बड़ो के चरणों में पड़ते हैं।"

ये सुन कर हुरिया की आंखो में भी आसू आजाते है और वह देवरानी को गले लगा लेती है।

"देवरानी तुम इतनी अच्छी हो, के मैं तुम्हे कहना नहीं चाहती थी, कुछ भीकरो पर मैं बस तुम्हे बस होशियार करना चाहती थी के अगर तुम यहाँ पकड़ी गई तो तुम दोनों खामखा मारे जाओगे!"

"दीदी मैं अबतक बहुत सह लीया । मुझे अब मरने की कोई परवाह नहीं। अगर दुनिया यहीं चाहती है, तो अब हम दोनों मर जाएंगे।"

"चुप कर पगली मैंने तुम्हारी हर बात सुनी और समझ गयी तुमने पूरी जिंदगी मुसीबत उठाई और अब मर जाओगी। भले ही मैं तुम्हारे इस रिश्ते के खिलाफ हूँ और कभी-कभी इस बात को अच्छा नहीं मान सकती, जो इतना बड़ा गुनाह है पर तुम ही अगर गुनाह में डूबना चाहती हो और तुम्हें लगता है इससे, तुम खुश हो तो तुम्हारी मर्जी."

"दीदी अगर मैं एक बात गलत कहूँ तो बताइये जब ये राजा महाराजा सबको प्यार नहीं दे सकते तो क्यू करते हैं इतने विवाह? इनके शरीर की इच्छा पूरी करने के लिए एक पत्नी भी क्या कम है?"

"देवरानी अब हम क्या कर सकते हैं? यहा शुरू से ऐसा ही है होते आ रहा है। हम उसे बदल नहीं सकते।"

"दीदी मर्द चार शादी कर ले या हम औरतें एक ही । हम जीवन भर तड़पे, ये कैसा नियम है और तो और हमारे यहाँ तो जिसके पति की मृत्यु हो जाये वह भले हे 18 साल की स्त्री हो वह जीवन भर बिधवा का जीवन जीती है।"

हुरिया देवरानी को ले कर बिस्तर पर बैठाती है और खुद भी बैठती है।

"देवरानी मैं इस गुनाह को गुनाह ही मानुगी पर जब तुम दोनों सच में इश्क करते हो तो थोड़ा चुपचाप और छुप कर करो।"

"छुप कर क्यू करे दीदी क्या आपके पति सुल्तान मीर वाहिद अपने हरम में 150 रखेल छुपा कर रखे हुए हैं?"

हुरिया मायुस होते हुए: नहीं!

देवरानी: क्या प्रजा को पता नहीं कि सुल्तान की चार बिविया और 150 लौंडिया है जिसका साथ उनके शरीरिक सम्बंध है?

हुरिया: पता है सबको।



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देवरानी: तो आपको बुरा नहीं लगता, आपका पति इतने महिलाओं से सम्बंध बना रहा है क्या ये दुनिया वाले को ये सब सही लगता है।

हुरियारे आखे भर आती हैं।

"चुप करो देवरानी ये सब बात मत करो!"

देवरानी: क्यू ना करु मल्लिका ए जहाँ आपके नाम का मल्लिका ए जहाँ है। मैं नाम की रानी बनी पर हमारे पति अपने रंगरलिया मनाते हैं जो गलत है और मैं बोलू भी नहीं यहीं कमी है हम औरतों में मर्द की बात आते ही हम चुपपी मार लेते हैं।

हुरिया: तो मैं करू लडू सुल्तान से ।

देवरानी: मर्द तो हमारी गलती निकाल कर हमारे लिए नियम कानून निकाल देते हैं और हम औरतें चुप रह कर अपने आदमी ने हमारे लिए जो नियम बना दिए हैं उनका भुगतान करती हैं ।

हुरिया: हम्म्म देवरानी!

देवरानी: हा दीदी लड़िये अपने हक के लिए! अपने सम्मान के लिए और मर्दो के नियम में हम क्यू माने, जब ये हमारे नियम नहीं मानते और ना ही समाज ने हमें नियम बनाने का अधिकार दिया है ।

हुरिया: छोडो मेरी बात1 मैं कभी इस बात से इत्तेफाक नहीं रख सकती, कभी भी नहीं । रही मेरे शौहर की बात तो उसका इंसाफ खुदा करेगा!

देवदानी हुरिया को देख रही थी।

देवरानी: ठीक है दीदी पर मैं बलदेव से अपनी जान से ज्यादा प्रेम करती हूँ।

हुरिया: ठीक है पर ये बात इस घर में किसी को पता ना चले। अच्छा हुआ मेरे सांस ससुर और बाकी लोग पारस में नहीं हैं । नहीं तो...!



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देवरानी: ठीक है दीदी मैं इस बात का ध्यान रखूंगी!

हुरिया: जाओ बहन तुम्हें अपने जन्मस्थान पर भी जाना है ना घुमने, जाओ जल्दी निकलो शाम तक वापस आजाना।

देवरानी उठ कर जाने लगती है और रुक कर कहती है ।

"धन्यवाद दीदी शाम में मिलते हैं।"

हुरिया: मुस्कुरा कर "जाओ मेरे बच्ची!"


जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

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देवगढ़ राज्य जाने की तय्यारी

हुरिया के कक्ष से निकल कर देवरानी खुशी-खुशी जा रही थी।

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देवरानी: (मन में: दीदी हुरिया को अभी ये नहीं पता नहीं की उनका बेटा शमशेरा उन्हें कैसे निगाह से देखता है अगर मैं उन्हें आज बोल देती तो उनका मुंह ही बंद हो जाता पर मुझे क्या? मुझे तो दो दिन में वापस जाना है।)

देवरानी अपने कक्ष में पहुँच कर जाने की तयारी करने लगती है।

देवरानी: (मन में: आज पता नहीं मेरे अंदर इतनी ऊर्जा कहाँ से आई है । ये सब बलदेव की ही देंन है।)




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बाहर देवराज अपने घोड़ों को चारा दे रहा था ।

देवराज: सैनिको सुनो जा कर अंदर सबको कह दो, हमारे छोटे से प्यारे गाँव हमारे राज्य देवगढ़ जाने की तय्यारी करे।

सैनिक आकर बद्री बलदेव को बोलता है के सब तैयार हो जाये

बद्री बलदेव या श्याम तीनो बैठ बाते कर रहे थे ।

श्याम: आज तो मजा आने वाला है।

बद्री: भाई हमें क्या मजा आएगा मजा तो बलदेव के है।

बलदेव ये बात समझ के मुस्कुराता है।




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बद्री: साले तू सच में बहुत प्यार करने लगा है क्या?

बलदेव: हाँ दिल चीर के देखो उसका ही नाम होगा।

श्याम: वाह क्या प्रेम कहानी है!

बद्री: पर तूने पटाया कैसे मौसी को?

तभी देवरानी दरवाजा खोलती है और बलदेव की ओर देख अपनी आंखे झपकते हुए आने का इशारा करती है।


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श्याम: शायद वह तुम्हे इशारे से बुला रही है।

बद्री: इतनी तेज़ तर्रार अनुसासन से भरी मौसी फिर भी तुझ जैसे बदमाश से कैसे पट गई?

बलदेव: मौसी नहीं भाभी है वह तुम्हारी । मैंने बहुत मेहनत की है इसको पटाने में। भाई अब जाता हूँ और मेहनत का फल खा के आता हूँ।

बद्री: हाँ जाओ-जाओ मौसी.।नहीं भाभी माँ के पास।

श्याम: भाभी माँ को दुख मत देना नहीं तो हम तुम्हें छोड़ेंगे नहीं।

श्याम मजाक करते हुए कहता हैं।

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बलदेव मुस्कुराता हुआ देवरानी की कक्षा में घुस कर दरवाजे को फट से बंद कर देता है और बद्री तथा श्याम उसे आँखे फाड़े अंत तक देख रहे थे।

अंदर देवरानी उल्हना देती है ।

"क्यू बलदेव बहुत बात चीत हो रही है बद्री श्याम से, तुम देवरानी को तो भूल गए!"

"मां देवरानी को बलदेव भूल जाए, ऐसा कोई पल नहीं हो सकता।"

"क्या कह रहे थे वह दोनों?"

"मां यही कह रहे थे कि इतनी कड़क माल तुमने पटा कैसे ली?"

"तो तुमने क्या कहा?"

"मैंने कहा बहुत मेहनत की है पर अभी तक फल नहीं मिला"


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देवरानी बलदेव की और घूम कर एकदम से उसके साथ चिपक जाती है और बलदेव के मुंह पर चुम्मो की बरसात कर देती है। "पुच पूच्च्च गैलप्प्प्प गैल्प्प् उम्म्ह स्लर्पी आह गैल्प्प्प्प!"

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"गल्लप्पप्प हुम्म्म माआ ...!"

"क्या फल चाहिए मेरे बेटे को?"

"आपके ये दोनों बड़े-बड़े पपीते खाने हैं मुझे! "


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देवरानी दो कदम पीछे हटती है तो उसके भारी वज़न से उसके दूध एक ताल से हिलते हैं।


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"चल हट बड़ा आया महारानी देवरानी के वक्षो को पाना इतना आसान नहीं है ।"

"वो तो अभी पता चल जाएगा मेरी रानी।"

बलदेव देवरानी को चूमने लगता है।




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कभी देवरानी की गांड को मसलता है कभी गोद में उठा लेता है कभी दूध पर चूमता है।

"हाय बेटा आराम से, तुम तो तीर की तेज़ी से शुरू हो जाते हो।"

"जब माँ हिरनी-सी तेजी दिखाती है तो बेटे का लौड़ा पकड़ने में तो शेर की दहाड़ लगाएगा ही ।"




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बलदेव देवरानी को लिटा देता है और फिर देवरानी को बेटाहाशा चूमने लगता है।

"आह बेटा मैं कहीं भागी नहीं जा रही । उम्म आह आराम से करो। और क्या बोले बद्री और श्याम?"

"उम्हाआ मेरी जान देवरानी को उन दोनों ने आपको भाभी मान लिया है"

"चल हट मैं नहीं बनूंगी भाभी, किसी की। वह दोनों मेरे बेटे जैसे हैं । वह मुझे मौसी ही कहेंगे।"


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"बड़ी आई मौसी कहलाने वाली । मेरा लौड़ा लेगी तो मेरे मित्र सबके सामने तुझे मौसी माँ ही कहेंगे, वैसे वह तो भाभी ही कहेंगे।"

"कितना अजीब लगेगा ना बलदेव!"

"गल्पप्प आआआह बलदेव!"

"तुझे जब मैं दिन रात चोदूंगा तो अजीब नहीं लगेगा, मेरी रानी?"





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ये बोलता हुआ बलदेव देवरानी के बदन और नितम्बो पर हाथ फेर रहा था ।

बलदेव देवरानी को खड़ी कर उसे सहलाते हुए चूमने लगता है

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देवरानी ये सुन कर आखे बंद करे अपना मुँह लज्जा से फेर लेती है।

"वैसे देवरानी जी मैंने उन्हें कह दिया है कि आपको वह भाभी माँ कहे जिससे माँ और भाभी दोनों आ जाए।"



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"बड़े तेज़ हो!"

"आख़िर बेटा आपका ही हूँ । वैसे बहुत तेज़ तो तुम भी हो ना! मेरी रानी मुझे ये पपीते खाने है।"

"मान जाओ! जिद मत करो"

"नहीं मनना माँ!"

"बाहर बद्री है।"



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"मुझे फर्क नहीं पड़ता देवरानी!"

"धीरे! बाहर बद्री है, श्याम है वह लोग सुन लेंगे!"

"सुनने दो, उन्हें पता है मैं यहाँ पर अपनी माँ को पटाकर प्यार करने आया हूँ।"

"बलदेव बाहर तुम्हारे मामा देवराज भीआस पास ही हैं उनको पता चल गया तो?"

"सुनने दो मेरे मामा या मेरे होने वाला साले साहब को भी। आज उसकी बहन के ऊपर असली मर्द चढ़ा है। उसे भी समझ आ जाएगा ये उसकी ही गलती थी की उसने तुम्हारे विवाह राजपाल से होने दिया ।"



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"उस राजपाल का नाम न लो!"

"आह माँ तुम्हारे ये बड़े पपीते!"




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बलदेव देवरानी के स्तन सहलाते हुआ उन्हें दबाता है


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फिर देवरानी का ब्लाउज खोल देता है और फिर ब्रेज़ियर खोलने लगता है ।


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"आह रुको बेटा!"

देवरानी उठती है और धीरे-धीरे बोलती है ।


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"" ये पपीते बास मेरे बेटे के लिए हैं। "

देवरानी खड़ी मुस्कुरा रही थी।

"मां क्या देख रही है?"

"मां इन दोनों ने हिल-हिल कर मुझे बहुत तड़पाया है । अब इनसे बदला लेने की और इन्हें तड़पाने की बारी मेरी है"

"ले लो बदला मेरे राजा, रोका किसने है?"


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बलदेव देवरानी को अपने बाहो के भर के लेता देता है और अपना दोनों बड़े पंजो से देवरानी के बड़े वक्षो को ज़ोर से दबा देता है।

"आआह्ह्ह्ह आआआ बलदेव नहींईईईईइ इतना ज़ोर से नहीं उम्म्म!"

"आह! क्या गरम दूध है माँ, ये तो मेरे हाथ में भी नहीं आ रहे है। हा आआआहह माँ!"

बलदेव अब बारी-बारी से देवरानी के वक्षो को चूसने लगता है।

"स्लर्प गलप्प्प गप्प उम्म्म्म क्या दूध है।"

देवरानी: आहह मैं मर गयी!





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बलदेव देवरानी के होठों को चूस रहा था कभी उसके भारी मम्मों को दबा के चूस रहा था।

बाहर बद्री और श्याम अब भी बैठे हुए थे उतने में देवराज महल में आता है।

देवराज: अरे तुम दोनों इधर हो बलदेव और देवरानी कहा है?

बद्री और श्याम को ये सुन कर मानो सांप सूंघ जाता है उन्हें समझ नहीं आता क्या उत्तर दे!

बद्री: वह तय्यर हो रहे हैं शायद!

देवराज: अच्छा कक्ष में है क्या?

फिर देवराज मुस्कुराता हुआ उनके कमरे की तरफ जाता है।

श्याम और बद्री एक दूसरे का मुँह देख रहे थे की अब क्या होगा?

देवराज दरवाजे को ठक ठका के बोलता है ।



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"देवरानी ओ बहना देवरानी!"

बलदेव अंदर देवरानी के बड़े वक्ष को चूस रहा था और होठ चूम रहा था।

देवरानी: रुको बलदेव! भैया आये हैं!

बलदेव: मैं नहीं रुकने वाला।तुम्हें जो बोलना है उन्हें बोल दो।

देवरानी: क्या बोलू आह्ह्ह उम्म!

बलदेव: केह दो साले साहब से की उनका जीजा उनकी बहन के स्तनों की मालिश कर रहा है।

देवरानी: आह्ह उम्म शैतान!

देवरानी जोर से बोलती है।

"भैया हम दोनों तैयार हो कर आएंगे। थोड़ा समय लगेगा आह!"



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देवराज: क्या हुआ देवरानी तुम ठीक तो हो।

देवरानी: आअहह हन मैं ठीक हूँ। झुमका डाला था कानो में।

देवराज: और बलदेव।

देवरानी: आह उम्म आप जाओ ना भैया! बलदेव भी अपने काम में लगा हुआ है। हम आते हैं तैयार हो कर।


ये सुन कर देवराज चला जाता है और ये सब देख कर बद्री और श्याम मन-मन मुस्कुरा रहे थे।

इधर बलदेव रुकने का नाम नहीं ले रहा था।

"आआह! माँ अच्छा किया जो तुमने अपने भाई को भगा दिया। साला अपनी बहन के वक्षो की अच्छे से मालिश भी नहीं करने देता।"

"आह्ह्ह अम्म्म्म! बहुत बड़ी बड़ी बाते कर रहे हो, हिम्मत है तो मेरे भाई के सामने उसे साला कह कर देखना।"




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बलदेव देवरानी के दूध बारी-बारी से मुँह में ले कर चूसते हुए बोलता है ।

"मां आह! एक ना एक दिन तो हिम्मत करनी पड़ेगी उनको साला तो जरूर बनाउंगा और मामा भी बनाऊंगा ।"

"आह्ह्ह मेरे राजा ये मामाँ बनाने वाली बात हजम नहीं हुई! माँ तो वह तुम्हारा अभी भी है ।"

"जब मेरा लौड़ा हजम कर लोगी तो अपने आप ही देवराज हमारे बच्चे का मामा बन जाएगा!"

"आह हाय दय्या बस कर ना, मेरे दूध दुखने लगे हैं।"





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बलदेव देवरानी के गले को चूमते हुए देवरानी के बड़े वक्षो को बारी-बारी से बेरहमी से दबा रहा था।


"आआआआआहह माँ, हे भगवान इस्स्ह्ह राजा!"

"हाय दय्या इतना ना चिल्लाओ! आराम से करो हाय मैं मर गई!"

"बरसो बाद इन वक्षो को इनका साथी मिला है, माँ इन्हें मजे तो करने दो।"

"आश आआह बेटा नहीं उम्म्म्म हम्म बस्स!"



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बलदेव था के मानने और रुकने का नाम नहीं ले रहा था और वक्ष दबाता हुआ दूध चूस जा रहा था। "

"उम्म्म माँ जब ये दूध ले कर तुम ब्लाउज से थोड़ा दिखा कर ललचाती थी तब मैं ऐसे तड़पता था। आह अब मैं इन्हें खा जाऊंगा।"

"बेटा अब तो ये तुम्हारे ही है जितना चाहे बदला ले लेना इनसे।"




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"आहह मा उम्म्म्म गलप्पप्प आह्ह स्लरप्प!"

"बहुत स्वाद है इस दूध में, उम्म्म्म आह माँ!"

"उउउयी अहह! धीरे करो" !

देवरानी आज ऐसे बलदेव के द्वारा प्यार किये जाने से ऐसा महसुस कर रही थी जैसे स्वर्ग में हो। वह बलदेव को अपनी ओर खींचती है।

"आह मेरे राजा इधर आऔ, मेरी बाहो में!"

"मां तुमरी गांड इस कच्छी में बहुत सुंदर लग रही है।"

बलदेव झुक कर देवरानी को चूमता है।


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"गैलप्पप गैलप्पप स्लरप्पप हम्मम!"

"आह राजा! ऐसे ही प्यार करते रहो अपनी माँ को!"

देवरानी बलदेव को खूब अच्छे से सहलाती है ।

बलदेव देवरानी के स्तनों को खूब दबाता है जिससे उसे दर्द सहना पड़ता है।


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"बेटा अब मैं तुझे बताती हूँ तू नीचे लेट, फिर देवरानी बलदेव के ऊपर चढ़ कर अपने बड़े मम्मों को उसकी छाती पर मसलते हुए उसे चूमती है।"

बलदेव देवरानी की गांड और जांघ मसलने लगता है।

"आआह माँ तुम देवी रति से कम नहीं हो आआह!"

"आह! ये ले आज मेरा पूरा दूध पी जा !"

अब तक बद्री और श्याम जा कर अपने कक्ष में तैयार हो जाते हैं और देवराज भी तैयार हो जाता हैं।

देवराज वापस आकर देखता है बलदेव और देवरानी के कक्ष का द्वार अभी भी बंद है।

देवराज: (मन में:-ये दोनों आधे घंटे से कमरे में बंद है कितना तैयार हो रहे हैं?)

देवराज आवाज़ लगाता है।

"बलदेव...देवरानी हमें देरी हो रही है।"



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बलदेव देवरानी का दूध मसल कर उसके होठों को चूस रहा था।

"उम्म्म म्म्म्हहबमा!"

"आह बेटा लगता है भैया वापस आ गए हैं ।"

बलदेव नीचे खसकते हुए देवरानी के दूध की घुंडी अपने दांतों में फसा कर चबाने लगता है।

"आहह हाय! आई भैया! "

देवराज की आवाज़ सुन कर बद्री या श्याम भी देवराज के पास आ जाते हैं।

देवराज: आज चलना भी है या नहीं?

देवरानी: छोड़ो इसको! लगता है भैया गुस्सा हो गये हैं।

बलदेव: तो अभी इस हाल में दरवाजा कैसे खोलोगी?

देवराज: दरवाज़ा खोलो!

देवरानी अपना दूध बलदेव के मुँह से निकाल के जल्दीबाजी में साडी पहनने लगती है।



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ओर्र बलदेव लेटा हुआ देवरानी के हिलते चुतड और दूध को देख अपने लंड पर हाथ फेर रहा था।

देवरानी जल्दीबाजी में अपना जंघिया के ऊपर से ही साडी बाँध लेती है।

जिसे देख बलदेव मुस्कुराता है ।

"मां पीछे से जंघिया में फंसीआपके सुंदर गांड पूरी दिख रही है।"

फिर बलदेव देवरानी को ऐसी हाल में देख लंड हिलाने लगता है।




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"आह क्या माल है!"

देवरानी तुनक कर पलटती है।

"तुम्हें तो हर घड़ी एक ही बात सूझती है अब भैया के सामने जाना होगा।"

देवरानी जैसे ही पलटी बलदेव उसे देख कहता है ।

"हाहाहा माँ आपके पपीतो की घुंडी भी साफ दिख रही है।"

और अपने लौड़े को ज़ोर से मसलने लगता है।

देवरानी: हट कमीने! अब मुझे ऐसी हाल में दरवाजा खोलना पड़ेगा भगवान बचा लेना!

देवरानी: बेटा तुम चादर ओढ़ लो कहीं वह अंदर आ गए तो!

देवराज: देवरानी...!

तभी ठक्क से देवरानी दरवाजा खोल देती है।

देवरानी: जी भैया!

देवराज के सामने मुस्कुराती हुई उसकी बहना खड़ी थी।



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देवराज ऊपर से नीचे तक देवरानी को देखता है तो पाता है कि उसके अंग दिख रहे थे ।

देवराज अपना सर नीचे कर लेता है।

देवराज: क्षमा करना बहना, शायद तुम अभी तयार नहीं हुुइ हो!

देवरानी: भैया वह बलदेव को बुखार चढ़ गया था तो उसे पट्टी कर रही थी। अब वह ठीक हो गया है। मैं बस अभी त्यार हो कर अभी आई।

देवराज के पीछे खड़े बद्री और श्याम को देवरानी मुस्कुराते हुये पाती है और फिर वह भी सरा झुका कर मुस्कुराने लगती है।

देवराज: ठीक है आराम से तैयार हो जाओ!

देवरानी ये सुनते हे फटाक की आवाज से दरवाजा बंद कर देती है।

"आआह भगवानआज बचा लिया तूमने! शुक्रिया बहुत बहुत!"

जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 70

मामा के गाँव में

देवरानी अपने भैया देवराज को बलदेव के बुखार होने का बहाना बना कर फट से दरवाजा बंद करती है और अपने कक्ष में बलदेव की ओर आ कर उल्हाना देती है ।

देवरानी: तुम ना एक ना एक दिन मरवा के रहोगे!



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बलदेव पलंग पर लेटा हुआ अपनी माँ के हिलते दूध देख कर मस्ती करता है ।

बलदेव: माँ मरवाना तो राजपाल को है मैं तो एक दिन मार के रहूंगा।

देवरानी: उफ़्फ़!

बलदेव बात को संभालते हुए कहता है ।



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बलदेव: क्या हुआ क्या कह रहे थे मामा जी?

देवरानी: भैया को लगा मैं इतनी देर से तैयार क्यू नहीं हुई इसलिए मैंने बता दिया कि तुमको बुखारआ गया था इसलिए नहीं हो पाई तय्यार!

बलदेव: तुम तो बड़ी तेज़ हो देवरानी अपने भैया को अच्छा बेवकूफ बनाया।

देवरानी: जाओ अभी तैयार हो जाओ मुझे भी तैयार होना है।

बलदेव: पर माँ तुम्हे ऐसे देख के मेरा जाने का दिल नहीं कर रहा है ।

देवरानी बलदेव के पास जा कर उसको धक्का दे कर स्नान घर में ढकेलती है।

थोड़ी देर में बलदेव सना इत्यादि कर त्यार हो कर आ जाता है।



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देवरानी: जाओ बाहर में आती हूँ!

बलदेव: क्यू मेरे सामने तैयार नहीं हो सकती क्या?

देवरानी: उफ़ बलदेव जाओ ना बहुत सताते हो!

बलदेव: क्यू मुझे अपना पति नहीं मानती?

देवरानी: उफ़ हो! मानती हूँ पर हू तो एक स्त्री ही ना! मुझे शर्म आती है।




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देवरानी बलदेव का हाथ पकड़ के दरवाजे के पास ले जाती है और दरवाजा खोल के बाहर धक्का देते हुए सामने बैठे बद्री या श्याम को कहती है ।

देवरानी: संभालो अपने मित्र को!

फिर देवरानी एक धक्का मार के बलदेव को कक्ष से बाहर कर देती है।

श्याम और बद्री एक साथ हसने लगते है।

बलदेव श्याम और बद्री के पास आते हुए कहता है ।

बलदेव: अरे तुम लोग तैयार हो गए!

बद्री: हाँ भाई. हम तो बस तुम दोनों प्रीमियो का इंतजार ही कर रहे हैं ।

श्याम, मित्र! भाभी माँ को ज्यादा तंग मत करो! नहीं तो, आज धक्का ही दीया है कल झाड़ू से मारेगी!

ये बात पर बद्री है देता है और उसका साथ श्याम भी देता है। बलदेव का मुँह छोटा-सा हो जाता है ।

बलदेव का छोटा-सा मुँह देख दोनों फिर से हंसने लगते हैं।



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बलदेव: अरे रे! बना लो मज़ाक जितना बनाना है, प्रेमी को अपने प्रेमीका से मार खानी ही पड़ती है चाहे वह कितना ही बड़ा वीर योद्धा हो!

श्याम: अरे हम तो मजाक कर रहे हैं, आज हम देवगढ़ जा रहे हैं। सुना है वहा का बाज़ार बहुत बड़ा है।

बद्री: हाँ, बलदेव हम वह खरीददारी भी करेंगे।

बलदेवःहाँ आवश्य मित्रो आवश्य करना! ये मामा कहा गये?

बद्री: वह तुम दोनों का इंतजार कर केआखिर में थक के बाहर चले गए ।

थोड़ी देर बाद वहाँ देवराज आ जाता है।

देवराज: बच्चो आज बाते ही करोगे या चलोगे भी? हमें आज ही वहा से वापस भी आना है।

बलदेव: हाँ जा मामा अब हमें निकलना चाहिए ।

देवराज: तुम्हारी तबीयत अब कैसी है भांजे?



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बलदेव: अब ठीक है!

देवराज: देवरानी कह रही थी कि तुम्हें बुखार होने के कारण समय लग गया और वह त्यार नहीं हो पाई ।

ये बात सुन के दोनों बद्री और श्याम अपना सर नीचे कर के मुस्कुराने लगे और किसिस प्रकार अपनी हंसी उन्होंने रोक ली।

बलदेव श्याम और बद्री को अपने आखे दिखाते हुए उन्हे इशारा करता है कि वह ऐसी कोई हरकत ना करे।

तभी सामने से दरवाजा खुलता है और देवरानी सजी धजी बाहर आती है ।




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चारो मर्द वहा खड़े खड़े सिर्फ देवरानी को निहारने लगे।

देवरानी: क्या हुआ सब बूत बने क्यू खड़े हो? अब चलो भी ।



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देवराज: चलो बहना । बुखार के लिए बलदेव को औषधि की आवश्यकता तो नहीं है ?

देवरानी एक कातिल मुस्कुराहट के साथ।

देवरानी: भैया वह मैंने इसे आज का ख़ुराक दे दी है।

बलदेव् देवरानी के दूध की ओर देख कहता है ।

बलदेव: हाँ मामा! औषधि बहुत मीठी थी।




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बलदेव की नज़र भांप कर देवरानी अपनी साडी से अपने वक्ष को छुपाने की कोशिश करती है और लज्जा कर, मुस्कान के साथ अपना मुँह दूसरी ओर घुमा के कहती है ।

देवरानी: चलिए भैया हमें जाना चाहिए!

चारो बाहर निकलते हैं।

बाहर शमशेरा अपनी तलवार से खेल रहा था।

शमशेरा: पूरी हिंद की फौज कहा जा रही है?

देवराज: सोचा आज बहना को देवगढ़ घुमा लाये!

शमशेरा: ठीक है देवराज जी शाम तक वापस आ जाईयेगा ।

देवरानी: ठीक है बेटा!

शमशेरा: ख़ुदा हाफ़िज़ ख़ाला!

सब अपने-अपने घोड़े पर बैठ जाते हैं और देवराज सबसे आगे अपने घोड़े को भगाना शुरू करता हैं,
और उसके पीछे-पीछे सब अपने-अपने घोड़े से देवराज के पीछे जाने लगते हैं।




58-HORSE
चारो जंगल और फिर कई बस्ती के बीच से होते हुए, एक छोटे से महल पर जा कर अपने घोड़े को रोकते हैं।

देवरानी अपने घर को देख बहुत खुश थी, उसकी आँखों से आसु टपकते हैं।

देवरानी अपने घोड़े को बद्री को बाँधने के लिए कहती है ओर वह सीधा अपने घर में जाती है।

देवरानी: बलदेव यहीं वह घर है यहीं वह गाँव है जहाँ हम पले बढ़े हैं, यहाँ की मिट्टी की सुगंध ही निराली है बेटा!

देवराज: चलो बहना दरबार में चले!

देवराज दरबार की ओर जाता है अनेको सैनिको की आवाज लगती है और सब आकर देवराज की जय जयकार करने लगते हैं।



56-DEV

अनेक मंत्री आकर देवराज से बात करते हैं और देवराज सब से बात चीत करने लगते हैं ।

देवराज, उनके सेनापति और मंत्री अपने सिंहासन पर जा कर बैठ गए ।

"महाराज देवराज की जय हो"

देवराज के आसन के बगल में देवरानी और उसके साथ बलदेव बैठता है ।

देवराज के बायी तरफ बद्री तथा श्याम बैठते है।

देवराज: प्रिया देवगढ़ वासियो! आज बरसो बाद हमारी बहन देवरानी और भांजा बलदेव आये है।

देवराज उनकी और इशारा कर के बताता है और ये हैं मेरे भांजे के मित्र राजकुमार बद्री और श्याम!

मंत्री: देवगढ़ में आप सब का स्वागत है!

सब उपस्थित जान उत्साह से जयजयकार करते हैं ।





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"रानी देवरानी की जय हो।"

' राजकुमार बलदेव की जय हो! "

' राजकुमार बद्री की जय हो! "

' राजकुमार श्याम की जय हो! "

मंत्री: महाराज, मैं तो रानी को पहचान हीं नहीं पाया!

देवराज: इतने बरसो बाद आई है ना!

मंत्री: सैनिको इन सब के लिए जलपान का इंतज़ाम करो!

देवराज: मंत्री जी हम आज ही लौट जायेंगे! देवरानी और बच्चे एक दिन से सुल्तान के महल में ही रुके हुए हैं।

मंत्री: ये क्या बात हुई महाराज आज रानी साहिबा आयी और आज ही ...!

देवराज: तुम्हें तो पता है ना यहाँ सिर्फ मैं हूँ हमारा कोई नहीं, कोई परिवार नहीं! तो देवरानी यहाँ कैसे रह पायेगी वहा पर सुल्तान का परिवार है!

देवराज ये कहते हुए आखे नम हो जाती है।

मंत्री: ऐसा कह के हमें पराया ना करे महाराज! देवगढ़ का हर एक सैनिक हर एक व्यक्ति आपके साथ था और सदा रहेगा!




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देवरानी: मैं हूँ ना आपका परिवार भैया!

मंत्री: महाराज, क्या हुआ युद्ध टला नहीं?

देवराज: तुम सुल्तान को तो जानते हो और हम उनकी सुरक्षा में ही हैं और मुझे ना चाहते हुए भी अपने राज्य के लोगों की सुरक्षा के लिए युद्ध करना पड़ता है।



ANKITADAVE-8

देवरानी: भैया आप बात कीजिए, मैं बच्चों को महल दिखा देती हूँ ।

देवरानी उठती है । उसके साथ बद्री और श्याम भी उठ कर देवरानी के पीछे आने लगते हैं।

देवरानी: कैसा लगा बलदेव हमारा घर, तुम्हारे नाना का घर?

बलदेव: सुन्दर मा, बहुत सुंदर!

बद्री: भाभी मां! पर मामा सुल्तान का साथ देते हैं!

देवरानी ये सुन कर अपनी भो ऊपर कर के बद्री को एक टक देखने लगती है।

बलदेव मस्कुराते हुए कहता है ।

बलदेव: घबराओ नहीं माँ मैंने कहा था ।

देवरानी गुस्से से -"क्यू मैंने मना किया था ना ऐसे बोलने के लिए!"

बलदेव: माँ वो...!




DR0
देवरानी: बद्री मुझे माँ या मौसी ही बोलो!

बलदेव: नहीं वह भाभी, ही कहेगा मेरा भाई है वो!

ये सुन कर श्याम और बद्री हंसते हैं, देवरानी चिड़ के बलदेव पर झपटती है।

बलदेव भागता है तो देवरानी उसके पीछे भागने लगती है।

बलदेव आख़िर कर एक कमरे में घुस जाता है देवरानी भी उसके पीछे वहाँ जाती है ।




ZEEN1
"आज तुम्हें छोड़ूंगी नहीं!"

जारी रहेगी
 
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महारानी देवरानी

अपडेट 71

हाथ में अंगूठी

देवरानी बलदेव के पीछे भाग रही थी और बलदेव एक कक्ष में जा कर रुक छुपने की कोशिश करता है पर देवरानी भी उसके पीछे आ जाती है।

देवरानी: कमीने क्या सीखाता है तू उनको?




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lifecare alliance
बलदेव: अब माँ अगर वह आपको भाभी नहीं कहेंगे तो क्या दादी कहेंगे!

देवरानी बलदेव पर झपट्टती हुए धीरे से उसके कंधों पर हाथ मारने लगती है।

बलदेव हसने लगता है।

बलदेव हसता जा रहा था और देवरानी उसे मार रही थी, आखिरकर देवरानी थक कर अपना हाथ पकड़ कर कहती है ।




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"उफ़ तुम्हारा बदन है या पत्थर मेरा तो हाथ ही दुखने लगा।"

"हाहा मारो और मारो मुझे माँ! "

देवरानी ऐसे बलदेव के हंसने से खुद भी हंस देती है।

बलदेव देवरानी को अपनी बाहों में समेट लेता है।




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"रानी तुझे वह मेरी मित्र, भाभी ही कहेगा चाहे तुझे आपत्ति हो या ना हो!"

देवरानी मुस्कुराती हुई शरम से बलदेव की बाहों में झूल जाती है।

देवरानी: "बेशरम!"

बलदेव: देवरानी मेरी रानी रिश्ता किया है तो निभाओ डरो मत!




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बलदेव देवरानी को होठों की ओर जाता है ओर उसे चूमना शुरू कर देता है।

" गलप्प्प्प गैलप्प्प्प गप्प्प्प स्लुरप्प्प्प्प्प!


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उम्म्म उम्म्म उम्म्म उम्म्म !
गैलप्पप्प गैलप्पप्प गैलप्प!

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गैलप्पप्प गैलप्पप्प स्लरप्प उम्म्म अम्म्हा"

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देवरानी के कानो में लोगों की बातें की आवाज आती है और वह बलदेव को धक्का दे कर अलग करती है।


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बलदेव देवरानी को आगे बढ़ा कर उसके चुतड मसल देता है।
"चलो राजा हम देवगढ़ घूम ले और फिर हमे मंदिर और पास के बाज़ार भी घूमना है, कई वर्ष हो गए मुझे वह गए हुए ।"

"ठीक है जैसा मेरी रानी कहे।"

दोनों बाहर आते हैं तो देखते हैं बद्री और श्याम, देवराज से मिल कर कुछ बातचीत कर रहे थे।




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देवराज: आओ बहना कैसा लग रहा है अपने घर आ कर?

देवरानी: भैया बहुत ख़ुशी हो रही है इतनी की जिसको शब्दों में नहीं कह सकती, वैसे कुछ बदला-सा लग रहा है ना।

देवराज: आओ बैठो...दोनो...वैसे हमारा जो महल पहले था वह तो शत्रु के आक्रमण से उसे बुरी क्षति पहुची थी और इसे हमें तोड़ कर दुबारा बनाना पड़ा।



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बलदेव या देवरानी अपना-अपना आसन ग्रहण करते हैं।

बद्री: महल तो है बहुत सुंदर मामा जी!

देवराज: हमारे देवगढ़ की सुंदरता भी पहले जैसी नहीं रही ।

देवरानी: भैया आप उदास ना हो । ये घर सुना हो गया है आपको विवाह कर लेना चाहिए था।

देवराज: बहना कैसे कर लेता मैं विवाह, जब मेरा राज्य या मेरे राज्य के लोगों कि जान खतरे में हो और ये खतरा भी है कि मेरा परिवार खत्म हो जाएगा । तो समझो तुम ऐसे में कैसे करता!




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देवरानी की आखों में आसू आते है।

देवरानी: "भैया आपका परिवार नहीं हुआ ख़तम । हम सब हैं ना!"

बद्री: मुझे तो सुल्तान बहुत लालची लगता है वैसे भी मैंने सुना था बहुत अय्याश किस्म का इंसान है ...!

देवराज: वह जैसा भी हो पर मंगोलों से हमारे डूबते राज्य को उन्होंने ही बचाया है, बेटा बद्री, इसलिए मैं उनका नमक खा कर उनके विरुद्ध नहीं जा सकता।





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बद्री: पर उनकी नज़र तो मैने सुना है कुबेरी राज्य पर है।

बलदेव: हाँ मामा जी राजा रतन सिंह के खजाने के पीछे हैं सब।

देवराज: बच्चो राजा रतन सिंह ने जो कारनामा किया है उसका उसे भोगना होगा । उसने छल कपट से मेरी बहन देवरानी का विवाह करवा दिया।

देवरानी: भैया जाने दीजिए जो हो गया वह हो गया।



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बलदेव: नहीं मामा राजा रतन ने क्या नाना के ऊपर दबाव बना कर विवाह करवाया था? ये विवाह क्या उनको सहमती के बिना हुआ था?

देवराज: हाँ मेरे भांजे पर छोडो, उस बात को, जो बीत गई सो बीत गई. मेरी बहन वहा खुश है, इस से बढ़कर मुझे या क्या चाहिए!

देवरानी अंदर से ये सुन कर टूट कर रो कर भैया से कहना चाहती थी कि उसे कितना कष्ट हुआ पर वह मुस्कुरा कर अपना दर्द छुपाती है।

सब शाम तक वहीँ रुकते हैं, फिर शाम में वापिस निकल जाते हैं।




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रास्ते में मंदिर के पास घोड़ा रुकवाते हुए देवरानी बोलती है ।

"भैया आगे थोड़ा ठहरे!"

सब रुकते हैं।

"क्या हुआ बहना? "

"भैया मुझे ये मंदिर गए मुझे बहुत बरस हुए, आज जाने की इच्छा है।"

देवराज मस्कुराता है ।

"तुम एकदम माँ पर गई हो बहना!"

देवरानी अपने घोड़े से उतरती है और फिर सब बारी-बारी से सीढ़ियों पर चढ़ने लगते है।

देवरानी बलदेव के पास आकर चलने लगती है।




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देवरानी: ये भव्य मंदिर बहुत पुराना है बेटा, जब मैं छोटी थी तो माँ के साथ यहाँ रोज़ आती थी।

बलदेव: माँ मुझे राजा रतन की बात बताओ ।

देवरानी: चुप करो और अभी उसका ना सोचो । बात ये है की यहाँ पारस में पहले हमारे पुरवज़ो का राज था, पर आज सुल्तान ने कब्ज़ा किया हुआ है और वह भी तो सिर्फ राजा रतन के लालच के कारण से ऐसा हुआ है ।

बलदेव: हम्म्म!

सब मंदिर में पहुच कर हाथ जोड़ कर पूजा शुरू कर देते हैं।

देवरानी: बलदेव! माता से मांग लो जो भी मांगना है।




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बलदेव अपना हाथ जोड़े खड़ा हो जाता है।

बलदेव मन में"माता मेरे जीवन में देवरानी दे दे, जीवन भर तेरा अहसान मंद रहूंगा ।"

फिर बलदेव घंटी बजा कर वापस सीढ़ियों से नीचे आता है।

देवरानी आख बंद किये हुए प्राथना कर रही थी ।

"माता रानी मेरा बलदेव को और भी शक्तिशाली बनाऔ! उसे धैर्य, शक्ति दे! मेरे राजा को हर शत्रु के युद्ध से बचाना, माता आपकी छाया में मेरा बलदेव हमेशा, ही हँसता खिलखिलाता रहे।"

और फिर देवरानी भी घंटी बजाती है।



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सब वापस आकर अपने घोड़ों से निकल जाते हैं।

कुछ देर घोड़ों को भागाते हुए वे सब देवगढ़ के बाज़ार के पास से निकल रहे थे।

इस बार देवरानी अपना घोड़ा देवराज के सामने खड़ा कर देती है।

देवराज अचानक से अपने घोड़े को रोकता है।

देवराज: अब क्या हुआ बहना?

देवरानी: भैया, आपकी आज्ञा हो तो बाज़ार भी घूम ले!

देवराज मुस्कुराते हुए ठीक है बहना!

सब घोड़ा बाज़ार की ओर घुमा लेते हैं।




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श्याम: वाह क्या सुंदर दृश्य है इस संध्या में बाज़ार का आकर्षण का क्या कहना है!

बद्री: मित्र तुम चुप नहीं रह सकते।

श्याम: तुम्हें कैसे चुप करना है अभी बताता हूँ।

श्याम अपना घोड़ा बद्री की ओर भागाता है।

फिर बद्री तेजी से बाज़ार की ओर घोडा भगाता हुया ले जा रहा था।

श्याम: क्यू डर गए क्या युवराज बद्री शेर की हुंकार से?

बद्री: शेर हाहा चूहा हो तुम! चूहा!

दोनो को ऐसे लड़ते हुए देख, सब हंसने लगे।

बाज़ार पहुछ कर सब रंग बिरंगी चीज़ो में खो जाते हैं, वहाँ श्याम खरीदारी करने लगते हैं।




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देवरानी: भैया आप भी कुछ... ले लो!

देवराज: नहीं बहना तुम लोग लो जो भी आप को पसंद आये ।

तभी बाज़ार में आते जाते हुए लोग देवराज को मिल कर नमन करने लगते हैंऔर उनमे एक व्यक्ति प्रणाम कर कहता है ।

"महाराज, आप!"

"अरे! मेरे मित्र कैसे हो?"

देवराज: अच्छा तुम सब आगे घूम आओ, तब तक मैं अपने एक पुराने मित्र से बात कर लेता हूँ ।

देवरानी: ठीक है भैया।

श्याम और बद्री खरीददारी करते हुए आगे निकल जाते हैं, उनके पीछे बलदेव और देवरानी भी चल रहे थे।



तभी बलदेव की नज़र कहीं जाती है और वह उस दुकान पर खड़ा हो जाता है।

बलदेव: ये क्या भाव है?




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दुकानदार: श्रीमान ये देवगढ़ के खास मोती है पर ये सिर्फ स्त्रीओ के लिए है।

फिर ये कह कर दुकानदार हसने लगता है, बलदेव को रुका देख देवरानी उसके पास आती है।

बलदेव: भैया ये अंगुठी मुझे चाहिए

पास में खड़े बद्री और श्याम भी वहाँ आ जाते हैं।

देवरानी: क्या हुआ भैया आप इनपे क्यू हस रह रहे हो?

दुकानवाला: आपकी बड़ी परेशानी हो गई है। मैं तो श्रीमान को बस ये कह रहा था कि ये अंगुठी जो है सब स्त्रीयो के लिए है, पर ये इन्हे खरीदने की जिद्द किये जा रहे है।

बद्री बात को समझ गया ।



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बद्री: तुम्हें पता है तुम किस से बात कर रहे हो मुर्ख । जब अंगुठी उन्हें पसंद आई तो इसका मतलब ये नहीं कि वही इसे पहने। वह इसे भेट भी दे सकते हैं ।

दुकानदार डरते हुए कहता है ।

"जी श्री मान ये तो मैंने सोचा ही नहीं।"

बद्री: मुर्ख!

ये सुन कर सब हंसते हैं।

दूकानदार: तो दीजिये अंगूठी का दाम 50 सोने की सिक्के और ये अंगूठी ले लो ।

बलदेव अपनी जेब से सिक्के निकाल कर देते हुए कहता है।

दूकानदार: महाराज ये तो बहुत ज्यादा है। इसका मैंने सिर्फ 50 सिक्के मांगा था और आप 100 दे रहे हो।

बलदेव: जिसके लिए ले रहा हूँ उसके सामने ये कीमत कुछ भी कुछ नहीं है ।

देवरानी अपना सारा घुमा कर शर्मा कर इधर उधर देखने लगती हैऔर अपने भाई को दूर खड़ा हुआ देखती है जहाँ वह अपने मित्र से बात कर रहे थे ।

बद्री: वैसे मुर्ख! जो तुम्हारे सामने स्त्री खड़ी है ये अंगुठी उसके लिए ही है।

दूकानदार ये सुन कर देवरानी को ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहता है ।

दूकानदार: मुझे ऐसा लगता है मैंने कहीं इन्हें देखा है।

देवरानी: बद्री तुम भी ना...!

बद्री: क्यू क्या हुआ भाभी माँ आपके लिए तो उसने लिया है मैं तो कहता हूँ इसे अभी पहन लीजिये ।

बलदेव: बद्री...!

दूकानदार: हाँ महाराज ये लीजिए अंगूठी इनके हाथो पर ये और भी सुंदर हो जाएगी ।

बलदेव सोच रहा था कहीं देवरानी इन सब बाते से कहीं यहीं पर तांडव ना कर दे।




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देवरानी अपना सर झुकाए खड़ी थी।

दुकंदर: लगता है आप दोनों कहीं के राजा रानी है ।

बद्री: हाँ होने वाले हैं।

बलदेव अंगूठी लिए हुए खड़ा था और पास में खड़े लोग भी तब से इन लोगों की बात सुन हसे जा रहे थे और वह भी कहते हैं।

"भाई आज तो बाजी मार दो, बाज़ार है कोई नहीं देखेगा!"

बलदेव देवरानी की आंखों में दिखता है और अपने हाथ में अंगूठी को लिए आगे बढ़ता है।



71

देवरानी अपना हाथ जल्दी से आगे बढ़ाती है।

बलदेव: क्या आप हमारी बनोगी जीवन भर के लिए?

देवरानी: जी बनूंगी! फिर वह बलदेव की आँखें देखती हैं जिसमें उसे सिर्फ प्यार नज़र आता है।

बलदेव अंगूठी देवरानी की उंगली में पहन रहा था जिसे देख बद्री ताली मारने लगता है और उसके साथ सब ताली बजाने लगते हैं।

जैसे ही देवरानी अंगुठी पहनती है।




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देवरानी: "अब चलो!"

और देवरानी अपने पैर देवराज की ओर घुमा कर चलने लगती है।

बलदेव: यार बद्री! वह नाराज़ हो जायेगी।

बद्री: तो तुम मना लेना।

बद्री मुस्कुराता है।

तीनो देवरानी के पीछे आते है।

देवरानी अपने भाई के पास पहुँच कर कहती है ।




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"भैया आपके मित्र चले गये?"

"हाँ देवरानी! तुम लोगों की खरीददारी पूरी हो गई?"

"जी भैया!"

सब वहाँ पर पहुँच जाते हैं श्याम अपना सामान घोड़े पर लाद लेता है।

देवराज तभी देवरानी के हाथ में अंगुठी देख लेता है ।

"वाह देवरानी तुमने अंगुठी ली!"

"जी भैया वह दिल किया तो ले ली।"

बद्री, श्याम के कान से धुंआ निकल रहा था । देवरानी अपने भैया से ये नहीं बताती है के ये बलदेव ने उसे दी है।


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सब घोड़े पर सवार हो कर सुल्तान के महल पहुँचते हैं...।

जारी रहेगी
 
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