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Incest MITHA PANI

अपनी राय बताए कहानी को लेकर

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Mitha pani 9

सुबह एक शुरुआत का नाम होती है। सुबह आंखें खुलते ही नई आशाएं जन्म लेती है। इन्हीं नई आशाओं के साथ सीता हर सुबह जल्दी उठ जाती है। सबसे पहला काम अपने बाल बनाने का करती है। लम्बे घने बाल जल्द ही जुड़े का रूप ले लेते है। फिर नित्य कर्म से निवृत् होती है। उसके बाद बुहारी से सफाई मे जुट जाती है। चलते समय उसके नितंब बड़ी मादकता से एक लय मे हिलते रहते है। इन्ही घरैलू व्यायामो के कारण एक सुडौल शरीर की स्वामिनी बन गयी है सीता।

चूल्हा जला दिया जाता है और एक पानी गरम करने का बर्तन उसपर रख दिया जाता है। सीता का विस्वास है की बर्तन हमेसा गर्म पानी से धोने चाहिए। पानी गर्म होने के बाद उसी पर चाय बना ली जाती है। चूल्हे की गर्मी से पसीना आने लगा तो पसीने के कारण पहले कमर पर खुजली आई,उसके बाद बाये नितंब पर। उस खुजली को मिटाना जरूरी था,तो सीता ने अपने थोड़े बढ़े नाखून से खुजाना शुरू किया जिसके लिए अपने सूट का पल्ला ऊपर उठाना पड़ा। संयोग ही कहिये की उसी समय शामु उठकर अपने कमरे से बाहर निकलकर चाय पीने बाहर आया। अपनी माँ को यू अपनी गाँड खुजाते देख कदम वही रुक गए। दो चार क्षण ही बीते पर इन थोड़े से क्षणों मे अपनी माँ के भारी नितंबो के दर्शन कर लिए, कही माँ देख ना ले इसलिए वापिस भी मुड़ गया। मन खुश हो गया की चलो उठते ही इतना प्यारा दृश्य दिख गया।

कदमो की आहट हुई तो सीता को भी आभाष हो गया की शामु उठ गया है।

चाय भी बनकर तयार हो गयी थी। दो कटोरियो मे डाली और निकल पड़ी अंदर की और।

माँ बेटे ने चाय खतम की और शामु बोला, "मै निकलता हु माँ। राकेश भी आ गया होगा। "

"ठीक है, वो सप्रे गोदाम मे रखी है। दोपहर को आ जाना खाना खाने। या मै ले आउ?"

"ना माँ, इतनी दूर तू मत आना, मै आ जाउगा"

"अच्छा ठीक है, जा अब"

"हूं" कहके शामु निकल पड़ा अपने खेत की और। और यहा घर पर सीता भी काम मे व्यस्त हो गयी। कुछ देर मे हरीश भी उठ गया। नहा धोकर नास्ता करने बैठा और नास्ते से निवर्त होकर अपनी दुकान पर चला गया।

इसी तरह की जिंदगी रोज जीते है अधिकतर परिवार इस गाँव मे। बस कुछ ही फर्क होता है। शामु और उसका चौथीया स्प्रे करने लगे और दोपहर तक एक तीहाई फसल मे कर दी। भूख जोर पकड़ने लगी तो शामु ने राकेश को बोला की वो खाना खाने जा रहा है। जब हाथ धोने ढाणि के पास आया तो देखा की पड़ोस वाले खेत जो की उसी के एक पड़ोसी रामप्रताप का है,मे रामप्रताप अपनी बेटी ममता के साथ खेत मे लगी बेल से सब्जी तोड़ रहा था। ममता झुकी हुई थी और खुले गले के सूट से हिमालय जैसी पहाड़ीया अपना सर उठाए जेसे शामु को चुनोती दे रही थी। शामु से रहा नही गया और उसकी नजरे वही ठहर गयी। जेसे चुची ना हो चुम्बक हो। ममता जब सिधी होकर आगे को बढी तो उसकी नजर शामु पर पड़ी जो उसे खा जाने वाली नजर से देख रहा था। जवान हो रही ममता के दिल मे भी कई दिनों से शामु के प्यार की आतिसबाजी हो रही थी। शामु की नजर जेसे ही ममता से मिली तो शामु ने मुस्कुराके देखा जिसका जवाब ममता ने भी मुस्कुराहट से दिया। उसके बाप का चहरा दूसरी तरफ था तो शामु ने हाथ हिलाकार अलविदा कहा और जवाब मे ममता ने भी वेसा ही किया। ममता का मन था की शामु से बात करे लेकिन अपने बाप के होते ये मुमकिन नही था। शायद कभी और मौका मिले।

अचानक शामु के फोन पर किसी नोटिफिकेशन की आवाज आई तो उसने फोन निकाला,जिस पर उसकी मा का मेसेज आया हुआ था की वो आकर खाना खाले।

शामु को देखकर अच्छा लगा की उसकी माँ उसकी बात मान रही है। उसने मेसेज के ज्वाब मे भेजा की अभी आता हु और साथ ही तीन इमोजी फ्लाइंग किस वाले भेज दिये। सीता ने जब इमोजी देखे तो शर्म से लाल हो गयी।

"मरजाने, ये क्या भेज रहा है?" सीता ने रिप्लाई भेजा।

शामु को पता था उसकी माँ नाराज नही है, तो उसने लाफीन्ग इमोजी भेज दिये।

"ये फ्लाइंग किस है माँ, तूने मेरी बात मानी इसलिए। " शामु ने रिप्लाई किया।

"अब घर आजा, खाना खाले"

"अभी आया माँ" कहकर शामु घर की और निकल पड़ा।
Superb update 👍👍👍
 

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W
Mitha pani 10
"माया ओ माया जरा यह तीनों बैग भी पैक कर दे"
"सुबह से पैक कर करके थक चुकी हूं मौसी अब आप ही कर लो मैं तो जा रही हूं नहाने" माया ने जवाब दिया
"अरे कुछ सीख ले इतना भी काम नहीं किया है थोड़े दिनों में तेरी भी शादी होगी ससुराल में बहुत काम करना पड़ेगा अभी से नखरे मत कर"
"जब होगी तब देखेंगे अभी तो मेरी खेलने कूदने की उम्र है" इतना बोलकर माया चली गई अपने कमरे की ओर । अपने भाई शामु की तरह ही माया बहुत जिद्दीस्वभाव की है। बचपन से अपने ननिहाल रह रही थी कभी-कभी हि अपने गांव जाती थी जब उसके मां-बाप उसे याद करने लग जाते थे अपने भाई शामु पर जान छिडकति है। पर उसकी नानी माया को बहुत प्यार करती है। और हरीश से कहकर बचपन से उसे अपने साथ रखा था। शामु का ननिहाल भरा पूरा परिवार है तीन मामा है एक मौसी और सबसे छोटी सीता। अपने ममेरे और मौसेरे भाई बहनों के साथ ही माया बड़ी हुई थी। 18 की उम्र में ही किसी बड़ी औरत की तरह शरीर बन गया है। छाती और पिछवाड़े का विकास शुरू हो चुका था और बहुत हि तीव्र गति से हो रहा था। अपने भाई की तरह ही लंबी थी। सीता से लंबी और हरीश के बराबर लंबाई की पढ़ने का शौक नहीं था पर सिलाई करती है। ननिहाल के सभी लोग माया को बहुत प्यार करते है और उसे अपने से अलग नहीं होने देते। जब कभी सीता शामु या हरीश को माया की याद आती तो वह उसे लेने आ जाते। 2 महीने बाद शामु के सबसे बड़े मामा प्रकाश की बेटी रचना की शादी है उसी की तैयारी चल रही है। अच्छी खासी जमीन जायदाद होने के कारण बड़ी शादी होने वाली है। ढेर सारे कपड़े ढेर सारे बर्तन ढेर सारा दहेज आदि की तैयारी चल रही है। शामु की मौसी यानी सीता की बड़ी बहन एक तलाकशुदा औरत है शादी के कुछ सालों बाद ही तलाक हो चुका था तो वह अपने पति को छोड़कर अपने बेटे के साथ अपनी पीहर में रहने आ गयी। रेखा के बेटे मोहन के साथ शामु की बहुत जचती है।
शामु के कुल तीन मामा है बड़े मामा प्रकाश मामी सीमा और उनकी बेटी रचना उसके बाद मौसी रेखाऔर उसका बेटा मोहन, फिर मामा सुभाष और मामी गोरी उनका बेटा विजय और बेटी रानी फिर तीसरे मामा राजेश मामी सुनीता और उनकी बेटी मंजु।नानी की उम्र काफी हो चुकी है और मरणा सन् अवस्था में चारपाई पर पड़ी रहती है। वह अपनी पोती रचना की शादी देखना चाहती थी इसीलिए जल्दी-जल्दी में रिश्ता किया गया और शादी तय कर दी गई । बहुत बड़ा घर है और सबके अपने-अपने कमरे हैं और सबके कमरों के साथ अटैच बाथरूम। माया अपने कमरे में गई और अपने कपड़े उठकर बाथरूम में घुस गई। फिर धीरे-धीरे अपने शरीर से अपने कपड़ों को जुदा कर दिया कपड़ों का मन भी उदास हो गया उस खूबसूरत जिस्म से अलग होते ही।सलवार कमीज के बाद माया लाल रंग की ब्रा और पेटी में खड़ी थी धीरे-धीरे उसने उसे भी उतार दी अब माया मादरजात नंगी थी। शरीर पर ठंडे पानी की बौछार होते ही एक शांति का अनुभव हुआ स्नान किया और बाहर जाकर कपड़े पहन लिए चुस्त सूट सलवार में माया किसी नव विवाहिता जैसी लग रही थी। बाल बनाए और थोड़ी सी लाली लगाई शीशे में अपने आप को निहारा और बाहर चल पड़ी।
दूसरी तरफ शामु ने कल अपने खेत में स्प्रे कर दी थी उसकी चिंता कुछ हद तक कम हुई थी। वह खेत में बने हुए अपने कमरे में बैठा मोबाइल चला रहा था अचानक उसे अपनी बहन माया की याद आती है काफी दिन हो गए थे उससे बात हुये। उसने सोचा क्यों ना अपने ननिहाल फोन लगाया जाए इसके साथ ही माया को अपने फोन के बारे में भी बताना चाहता था क्योंकि माया को उसके मामा ने बहुत पहले ही फोन लाकर दे दिया था और वह कभी-कभी अपने भाई को अपने फोन से चिडाती थी। ज्यादा पास ना रहने के कारण दोनों भाई बहन मे प्यार भी बहुत था। अब जब शामु के पास भी फोन था तो वह बताना चाहता था कि उसके पास भी अब फोन है उसने माया का नंबर लगाया। ईतनी बार हरीश के फोन से माया से बात की थी कि अब तक उसका नंबर याद हो गया था।
माया उस समय छत पर बैठी अपने नाखून काट रही थी जब उसके फोन की घंटी बजी अनजान नंबर देखकर एक बार तो माया ने काटना चाहा पर उत्सुकता वश उसने फोन उठा लिया
"हेल्लो"
शामु ने मजाक करने के लिए थोड़ी देर तक कुछ नहीं बोला जब दूसरी तरफ से कोई आवाज नहीं आई तो माया ने दोबारा हेलो कहा इस बार शामु ने जवाब दिया
"कैसी है मोटी?"
" भैया? कैसे हो? और यह किसका नंबर है?"
" तेरा भाई फोन ले आया और यह मेरा नंबर है बड़ा एटीट्यूड दिखाती थी अब देख मेरे पास भी फोन है"
" क्या बात है भैया यह तो कमाल ही हो गया पापा को कैसे मनाया?"
" तेरा भाई सारा दिन काम करता है इसी मेहनत से खुश होकर उन्होंने अपने आप कहा"शामु ने गर्व से बखान किया।
" चलो अच्छा ही हुआ अब मुझे मां से बात करने के लिए रात का इंतजार नहीं करना पड़ेगा" माया ने मुस्कुराते हुए कहा। उसने जान बूझकर शामु का नाम नहीं लिया। अपने भाई की प्रतिक्रिया देखना चाहती थी।
" अच्छा तुझे सिर्फ माँ से बात करनी होती है? मेरी याद नहीं आती तुझे?"
" नहीं तो आपकी याद मुझे क्यों आएगी?" माया मुस्कुरा रही थी। उसे अपने भाई को छेड़ने मे बड़ा मजा आता है।
"ठीक है तो फिर, रखता हुँ। गलती से कर दिया था फोन" शामु ने भी झूठा गुस्सा दीखाते हुए कहा। उसे पता था उसकी बहन मजाक कर रही है।
"अरे अरे, देखो तो, केसे गर्म हो रहे है। मैं तो मजाक कर रही हुँ भैया। आपकी याद तो सबसे ज्यादा आती है।"
"मुझे पता था, मैं कोनसा सच मे फोन काट रहा था।" कहके शामु हस दिया।
"ह्म्म्म, अब बताओ फोन की पार्टी कब दोगे ?"
"लो, गाँव बसा नही भिख़ारि पहले आ गए" शामु इतना कहके बहुत जोर से हसा।
"ठीक है तो फिर, मैं बात ही नही करुगी आपसे" माया ने झूठा गुस्सा दिखाते हुए कहा।
"मजाक था पागल। चल बता केसी पार्टी चाहिए मेरी लाडो को?" शामु ने बड़े प्यार से कहा। आखिर माया मे उसकी जान बसती थी।
"ह्म्म्म ये हुई न बात। परसो हम सारे शादी की शॉपिंग करने जा रहे है गंगानगर। आप आ जाओ वहा"
"मैं आ जाऊंगा पर पार्टी मैं सिर्फ तुझे दूंगा। सबको देकर मुझे कंगाल नही होना"
"ठीक है तो आप ही बनाओ कोई प्लान"
"एक काम करते है, मैं परसो पहुच जाऊंगा गंगानगर, वहां से तुझे कोई बहाना बनाकर ले जाऊंगा। तब तक वो अपनी शॉपिंग कर लेंगे ओर हम अपनी पार्टी"
" हां यह सही रहेगा भैया आप आ जाना"
अचानक शामु को पता नही क्या हुआ उसके मुंह से अचानक निकल गया
"ये बता पहनकर क्या आएगी?" शामु ने इस तरह कहा जैसे वह अपनी बहन से नहीं अपनी गर्लफ्रेंड से बात कर रहा हो। आज से पहले ऐसी कोई मांग शामु ने नही रखी थी अपनी बहन से। पर एक तो दोनों को चढ़ती जवानी, उपर से यूँ पहली बार बाहर मिलने की बात हुई, तो मन के कोने मे बेठे शैतान ने शामु के मूह से निकलवा दी ये बात। दोनों भाई बहन साल मे यही कोई आठ दस बार मिलते थे जब माया घर आती थी या जब शामु ननिहाल जाता था। पर जब भी मिलते थे तो पार्टी होती ज़रुर थी। फिर चाहे वो आइसक्रीम पार्टी हो या ड्यू कोका कोला की। इस आदत वश ही ये पार्टी का प्लान बना और इस भावावेष मे शामु के अन्तरमन ने अपनी भावना को आवाज का रूप दिया और उसने अपनी बहन से कपड़ो के बारे मे पूछ लिया।
"ये तो मैं भी सोच रही थी, कि परसो क्या पहनु"
"मैं बोलू वो पहन के आ"
माया ने जब ये सुना तो उसके गाल लाल हो गए। पर फिर भी वो बोल पड़ी
"ठीक है भैया, बताइये"
"तेरे पास वो ब्लैक चूड़ीदार सूट सलवार है ना,परसो वही पहन के आ"
"उसमे ऐसा क्या है भैया?"
"तू उसमे बहुत सुंदर लगती है लाडो"
ये सुनकर माया बहुत खुश हुई। उसके चेहरे की मुस्कुराहट फैल गयी।
"सच भैया? आप मेरे मजे तो नही ले रहे ना?"
"नही पागल, वो सूट तेरे गोरे रंग पर बहुत अच्छा लगता है"
"ठीक है तो फिर वही पहनुगी, और आप क्या पहन के आओगे?"
"तू ही बता क्या पहनु?"
"आपकी ब्लैक टी शर्ट और जींस"
"ठीक है लाडो वही पहन के आता हुँ मैं, अब रखता हुँ फोन, सबको राम राम कहना मेरी तरफ से"
"ठीक है भैया, मैं नंबर सेव कर लेती हुँ। परसो पहुच जाना टाइम से वरना खैर नही आपकी।"
"ठीक है लाडो। और सुन एक आखरी बात, माँ पापा को कुछ बता मत देना तू, वरना बहुत डांट पड़ेगी मुझे"
"मैं किसी को नही बताने वाली"
"ह्म्म्म, चल रखता हुँ, ख्याल रखना"
"जी भैया"
Wha bhi kya bhen bhai ka pyar likha hai👍👍
 

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Mitha pani 11

"आप अपनी तरफ से कुछ मत कहना, वो लीला के लिए जो लाये लाने दो, लड़की का घर बसाना इतना भी आसान नही काकी" दोपहर मे जमना काकी और सीता बेठकर बाते कर रही है। कुछ दिनों बाद जमना काकी की लड़की लीला की सगाई का मौका निकला है। उसी की चर्चा हो रही है।

"मैं क्यू बोलने लगी कुछ, अगर लीला का बाप होता तो मुझे कुछ करने की जरूरत ही नही पड़ती।" जमना ने अपना दुखड़ा गाया। वेसे भी अकेली औरत के लिए लड़की को पालना और फिर उसकी शादी करना वो भी भारतीय समाज मे, बड़ा ओखा काम है। थोड़ी बहुत जमीन है जमना के पास, उसी को ठेके पर देकर काम चलता है बेचारी का। पर सीता इतने ऊँचे खानदान से होकर भी जमना को अपना मानती है।

"आप तो एसे कह रही है काकी जेसे हम आपके कुछ लगते ही नही। अरे शामु पूरी सगाई और फिर पूरी शादी आपके घर रहेगा। और माया के बिना लीला वेसे भी शादी नही करवाने वाली। मेरी तो बात ही खतम है, मैं तो हु ही आपके पास। आप ज्यादा चिंता ना कीजिए। भगवान सब सही करेगा।"

"तभी तो मैं नही करती चिंता। तेरे परिवार के रहते मुझे कोई डर नही है। फिर भी क्या करू। माँ हु ना। मन नही टिकता।"

तभी शामु अंदर से नहाकर तैयार होकर बाहर आया। सीता और जमना आंगन मे चारपाई पर बैठी बात कर रही थी जिसपर शामु की नजर पड़ी। सीता की पीठ शामु की तरफ थी। उसने आज घाघरा और उसपर एक कुर्ती पहन रखी थी। सर पर चुन्नी थी। एक तरफ से सीता की चिकनी कमर देखी जा सकती थी। वही शामु की नजर ठहर गयी। अचानक उसका ध्यान जमना पर गया। असली दुनिया मे वापस आया और बोला

"किसकी चिंता हो रही है मेरी दादी को?" बोलकर शामु पास पड़ी कुर्सी पर बेठ गया।

"कुछ नही, ये तो लीला की सगाई को लेकर परेशान हो रही है" सीता ने अपने बेटे को स्थिती से अवगत करवाया।

"हा बेटा शामु, तू बस संभाल लेना सब। अब तो तू ही है"

"आप चिन्ता छोड़ दो दादी, मै सब देख लूंगा। कहो तो साथ ही साथ आपके हाथ भी पीले करवा दु" ये सुनकर सीता को बहुत जोर से हसी आयी। जमना ने धीरे से शामु के हाथ पर चपत लगाई और बोली

"हाए राम, केसी बाते कर रहा है। मेरे नही बेटा तेरी बहन लीला के हाथ पीले करने है, बेशर्म"

"काकी वेसे शामु बात तो ठीक कह रहा है। तुम भी करवालो साथ ही।" सीता ने भी मजाक मे शामु का साथ दिया।

"है ना माँ? और वेसे भी काकी तो अभी जवान ही है" इस बात पर दोनों माँ बेटे फिर हँसे।

"हो गया तुम दोनों माँ बेटे का। अब सुन शामु कुछ दिन बाद सगाई करनी है लीला की। उसी की तैयारी के लिए आई थी मैं तेरी मा के पास। तू एक दिन समय निकाल के देखले बेटा"

"ठीक है दादी, अब खेत का भी इतना काम नही है। कल मुझे गंगानगर जाना है, उसके बाद आता हुँ मैं"

गंगानगर की बात सुनते ही सीता के कान खडे हो गए। उसने शामु की तरफ देखा और कहा

"अब ये गंगानगर मे क्या काम आ गया तुझे, अभी तो जाकर आया था"

"अरे कुछ नही माँ, वो शेरा थोड़ा ढाबे का सामान लाने जा रहा है। उसी के साथ जा रहा हुँ। साथ ही दादी के लिए कोई लड़का भी तो ढूंढना है कि नही" बोलकर शामु हस्ता हुआ भाग गया और घर से बाहर चला गया। पिछे दोनों को भी हसी आ गयी।

"ये नही सुधरेगा सीता। मेरी शादी करवाके ही मानेगा।" इस बात पर फिर दोनों हस पड़ी।

"इसका मतलब आपका भी मन है काकी। ध्यान रखना कही इस बूढापे मे खाट की जगह हड्डी ना टूट जाए।" सीता ने मजाक किया तो जमना भी कहा पिछे हटने वाली थी

"तुझे बड़ा पता है। तभी मैं कहु ये रात को चु चु की आवाज कहा से आती है।"

"क्या आवाज आएगी काकी अब। ये तो सो जाते है आते ही।" इस बात पर दोनों फिर हसी।

"तो कहु शामु को? कि मेरे साथ तेरा भी बंदोबस्त करदे" जमना ने धीरे से बोला, "और वेसे भी दादी से पहले माँ का हक है, क्यू सीता?" इस बार सीता शर्मा गयी।

दोनों को पता था की शामु ने मजाक मे जो कहा था वो यह था की जमना के लिए कोई और लड़का ढूंढ लेगा। इस तरह के मजाक वो सबके साथ कर लेता था। पर जब जमना ने सीता से कहा की दादी से पहले माँ का हक होता है तो सीता को भाव आया जेसे जमना किसी और लड़के के लिए नही शामु के लिए कह रही है। और इससे पहले जिस चु चु की मजाक जमना ने की थी कुछ उसका भी असर सीता पर हुआ। जब किसी स्त्री को महीनों से पुरुष स्पर्श ना मिला हो उसके लिए इतना मजाक काफि होता है। वो शामु के बारे मे इस तरह से पहली बार सोच के ही काँप उठी।

आखिर वो भी एक स्त्री है जिसके कुछ अरमान है, कुछ जरूरत है। पर इस तरह का जिकर आज पहली बार हुआ।

"धत्त काकी क्या आप भी बच्चे के साथ बच्ची बन गयी"

"ओहो, अब देखो तो केसे शर्मा रही है, पहले तो दोनों माँ बेटे मुझे छेड़ रहे थे। चल ठीक है, अब चलती हुँ, काम भी पड़ा है। लीला तो सारा दिन कपड़े ही सिती है।"

"ठीक है काकी। मै भी लगती हुँ काम मे।"

फिर जमना चली गयी अपने घर और सीता भी कामो मे व्यस्त हो गयी। उधर माया सूट सील रही थी जब उसके फोन पर लीला का फोन आया। बहुत कम मिलना होता था फिर भी जब भी माया अपने गाँव दयालपुर जाती तो सारा दिन लीला के पास रहती। सीलाई करना भी माया ने लीला से ही सिखा था। जमना भी शामु को अपना बेटा और माया को अपनी बेटी से बढ़कर मानती है।

"ओ, आज मैडम को याद आ ही गयी हमारी। मैने तो सोचा था जीजू के जीवन मे आने के बाद हमारी लीला हमे भूल ही जाएगी" माया ने मजाक किया।

"चुप कर कमीनी। तुझे भूलकर मुझे मरना है क्या। तू उपर बेठकर जान निकाल दे तो" लीला को हंसी आ गयी अपनी बात से।

"कमीनी, तू भी मुझे मोटी कह रही है। भैया तो बोलते ही है। मैं सच मे इतनी मोटी हुँ क्या?"

"अरे नही मेरी जान, मजाक कर रही हुँ। जितनी तू लम्बी है, उस हिसाब से तेरा फिगर एकदम सही है। अब मुझे ही देखले, तुझसे थोड़ी कम खूबसूरत हुँ पर लड़के मरते है मुझपर"

"ओये, मिस वर्ल्ड, अब कोई मरे या जिये, अब बस जीजू ही होने है तेरे खाते मे"

"हा यार बात तो तेरी सही है, अच्छा बता गाँव कब आएगी?"

"वो किस खुशी मे लीला जी?"

"अच्छा हाँ तुझे पता ही नही है, तो सुन, दस दिन बाद सगाई है मेरी, शादी तो दो साल बाद ही होगी, पर मेरी सास अटकी है सगाई पर, और उस दिन तू मुझे यहां चाहिए" लीला ने माया को जानकारी दी। रिस्ता हुआ ये बात माया को सीता ने बता दी थी पर सगाई के बारे मे नही।

"वाह यार, क्या खबर दी है आज। तू टेंशन मत ले, मै भैया को फोन कर दुँगी। वो ले जाएंगे मुझे। अच्छा ये बता, क्या तोहफा चाहिए हमारी लीला को अपनी सगाई पर।"

"मुझे कुछ नही चाहिए, बस मेरी बहन चाहिए मुझे यहाँ"

"मैं वही रहूँगी तेरे पास, पर गिफ्ट तो मैं जरूर दूँगी, अब बता रही है या नही?"

"अच्छा बाबा, ठीक है, ला देना"

"बता तो सही क्या लाना है, या मैं अपनी पसंद से ले आउ?"

"हा ये सही रहेगा। लेकिन सुन, मेरे पास ब्रा पेंटि के सेट पुराने है सारे। तू मुझे वही लादे"

"अरे वाह, ये हुई ना बात, तो बता कोनसे ब्रांड के लाने है?"

"वो मुझे नही पता,मैं तो यही गाँव से ले लेती हुँ, उनमे क्या ब्रांड देखना"

लीला इन सब ब्रांडस वगैरह से अंजान थी। पर माया हमेसा महंगे ब्रांड ही पहनती थी।

"देखना पड़ता है मेरी जान, घटिया पहनने से बीमारिया हो जाती है"

"बड़े लोग बड़ी बाते, तू देख लेना यार, चल अब रखती हुँ, तू आ जाना जल्दी ही"

"ठीक है लीला जी, मुझे लगता है जीजू इंतजार कर रहे है"

"नौटंकी कही की, चल ठीक है"
Bhout bardiya nok jhok aur samvad. Kya sach honge?
 

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शाम हो चुकी थी। शामु दोपहर का गया हुआ अभी तक घर नही लौटा था। पशुओ को पानी पिलाकर सीता को एक बार थोडा समय मिला तो वापिस पायदान बुनने लगी। बुनते बुनते दिमाग मे जमना काकी की कही बात याद आई और उसी के साथ सीता को अपनी शादी के दिन याद आ गए। बुनाई मे हाथ इतने अभ्यस्त थे कि दिमाग मे विचार चलते रहते और हाथ अपना काम करते। सीता सोच रही थी की समय कितना तीव्र गति से चलता है। एक जमाना था जब वो एक कुआरी लड़की थी और आज दो शादी के लायक बच्चों की माँ है। माँ से याद आया की शामु और माया भी अब शादी के लायक है। शादी से याद आया की जेसे जमना काकी बुलावा देने आयी थी वेसे उसे भी बुलावा देने जाना पड़ेगा। शादी से एक और चीज याद आई के माया को भी अपना घर बसाना पड़ेगा जिसे अभी तक अपना बिस्तर बनाना भी नही आता। शादी से याद आया जब शामु की शादी हो जाएगी तो घर मे बहु आ जाएगी।
सीता का दिमाग रुकने का नाम ही नही ले रहा था। कहते है दिमाग के घोड़े जब दोडने लग जाए तो लौड़े लग जाते है। बहु से याद आया कि जो बेटा उसका हर एक कहना मानता है क्या वो बाद मे भी मानेगा। जेसे वो अब बाजार से कभी खाली हाथ नही लोटता, कभी उसके लिए नथनी, कभी कपड़े लत्ते, कभी मिठाई, कभी कोल्ड ड्रिंक कभी कुछ कभी कुछ लाता ही रहता है, शादी के बाद वो तो अपनी बीवी के लिए लायेगा। फिर कहा समय होगा उसके पास माँ के लिए। बीवी के लिए तो वो और भी बहुत कुछ लाएगा। हाये, ये तू क्या सोच रही है सीता। बीवी होगी उसकी,लाएगा तो लायेगा। तू भी तो मंगवाती थी उनसे। पर मेरा शामु तो बहुत भोला है।
हालांकि ये सीता का बस भ्रम था की शामु भोला है। उसे क्या पता की शामु ने ना जाने कितनी ही लोंडियो की नैया पार लगवाई है।
मेरा शामु तो बहुत भोला और अच्छा है, कह दूँगी बहु से ये सब चीज़े अपने आप ले आये बाजार से। पर नही, एसे कोन मना करता है। वो पत्नी होगी उसकी। तू भी तो है एक पत्नी। तेरी सास ने तुझे रोका था क्या। विश्वास ही नहीं होता कि मेरा शामु इतना बड़ा हो गया। पर नहीं वह मुझसे बहुत प्यार करता है। और हमेशा करता रहेगा। चाहे उसकी शादी हो या ना वह मेरा शामु है और हमेशा रहेगा। यह जमना काकी भी कभी-कभी पता नहीं कैसे मजाक कर देती है। दिमाग खराब करके रख दिया है। बावली केहती है मेरा बंदोबस्त शामु.......... हाय हाय सीता यह क्या सोच रही है।
खीज कर सीता ने पायदान एक तरफ रख दिया।
और यह अभी तक आया क्यों नहीं दोपहर से गया हुआ है। आज खैर नहीं उसकी। शामु की लापरवाही पर सीता गुस्सा करके बोली। सीता ने मोबाइल उठाया और मैसेज कर दिया।
" आज घर नहीं आना क्या?"
मैसेज पढ़ते ही शामु को तारे नजर आने लगे। उसे एहसास हुआ कि वह काफी देर से घर से बाहर है। उसे यह भी एहसास हुआ की उसकी माँ बहुत गुस्से में होगी। वह फौरन घर के लिए निकल पड़ा। जब घर पहुंचा तो सीता रसोई में खड़ी सब्जियां काट रही थी। वह धीरे से सीता के पास गया और उसे पीछे से धीरे से अपनी बाहों में भर ली। एक बार तो सीता डर गयी, पर जल्दी ही उसे एहसास हो गया की शामु है।
"बड़ी भूख लगी है मां खाना कब तक बनेगा?"
सीता वापिस सब्जिया काटने लगी। बिना शामु कि और देखे बोली
"अब तुझे भूख लगी है? पता है कितना वक्त हो गया तुझे बाहर गए हुए?" सीता का गुस्सा थोड़ा शांत हो गया था शामु के द्वारा यू प्यार से पुछने पर। ये पैंतरा कभी विफल नही होता था। जब भी शामु को लगता की उसकी माँ क्रोधित है, वो सीता को युं ही बाहों मे भरकर बात करता था।
"क्या बताउ माँ, बातो बातो मे पता ही नही चला" इसके साथ ही शामु ने अपनी माँ के दांये गाल पर हल्का सा चुम्बन अंकित कर दिया। चुम्बन का असर ऐसा हुआ कि जो सीता थोड़ी देर पहले बहुत गुस्सा थी, के चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गयी।
"बस बस, ज्यादा मक्खन की जरूरत नही है। थोड़ी देर मे बन जाएगा खाना"
शामु को भी हसी आ गयी। उसे पता चल गया उसकी माँ अब राजी है। उसने थोड़े जोर से सीता को भिंचा और बोला
"ठीक है माँ, मैं नहा लेता हुँ तब तक" बाहों के जोर से सीता को एक गुदगुदी हुई। शामु को तो पता नही चला पर सीता को यू लगने लगा की लड़का अब बड़ा हो गया है। इस तरह से बाहों मे लेना अब बंद करना चाहिए।
अच्छा, एक तो शादी के बाद वेसे भी बेटे बहुओं के हो जाते है, उसपर जो इतना सा प्यार जताते है वो भी बंद करवादे तू उससे। नही नही मैं नही रोकने वाली उसे किसी बात पर। जितना चाहे उतना प्यार करे। आखिर मैं उसकी माँ हुँ। माँ पर सबसे ज्यादा हक बेटे का होता है। इन्हीं विचारों के साथ सीता खाना बनाने लगी। पता नहीं पर कुछ तो बदलाव होने लगे थे घर में। बेटा जब तक छोटा होता हैं तब तक मां को यह एहसास नहीं होता पर जब उन्हें यह एहसास होता है कि उसका बेटा कुछ दिनों बाद किसी और का हो जाएगा तो जलन, प्यार, हक आदि एहसास मिलकर उसे अपने बेटे के लिए और भी प्रेम आने लगता है। सीता का भी वही हाल है।
शामु जल्द ही स्नान लेकर बाहर आ गया। जब वह बाहर आया तो उसके बाल गीले होने के कारण वह अपने बालों को झटक कर पानी सुखा रहा था। सीता को पता नहीं क्या हुआ वह शामु के चेहरे की ओर देखने लगी। जब उसने देखा कि उसकी मां लगातार उसे देख रही है तो उसने सीता की ओर देखकर मुस्कुराहट से अभिवादन किया।
" क्या देख रही हो मां?" पर सीता कुछ नहीं बोली और उसी तरह जड़वत होकर देखती रही। जब उसने देखा कि सीता कोई जवाब नहीं दे रही तो वह सीता के पास आया हो उसको दोनों हाथों से पकड़ कर हिलाया
" मां, क्या हुआ?"
सीता अपने विचारों से बाहर आई और मुस्कुराहट के साथ बोली
" कुछ नहीं बावले, बस सोच रही हूं तू कितना बड़ा हो गया है। थोड़े दिनों में तेरी भी शादी करनी पड़ेगी। पता नही क्यू शामु पर आज ये बाते मेरे दिमाग मे आ रही है।"
" मैं नहीं करूंगा शादी-वादी, वैसे भी अभी मेरी उम्र ही क्या है" शामु बच्चों की तरह बोला। सीता के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई।
"शादी तो करनी ही पड़ेगी बेटा, अब मुझसे काम नहीं होते" मजाक करते हुए सीता बोली," थोड़े दिनों में घुटनों में दर्द शुरू हो जाएगा फिर मेरी बहू ही तो काम करेगी"
" घुटनों में दर्द हो तेरे दुश्मनों के, यह अचानक आज शादी का विचार कैसे आ गया माँ?" शामु सर खुजाते हुए बोला।
" विचार तो आएंगे ही, देख अपने आप को सांड जैसा हो गया है, और मुझे भी तो दादी बनना है ना, अपने पोते पोतियो का चेहरा देखना है" सीता ने फिर मजाक किया।
" उसके लिए शादी की क्या जरूरत है वह तो मैं ऐसे ही कर दूंगा" यह बात शामु के मुँह से धीरे से निकल गई। जिसे सुन सीता का मुंह खुला रह गया।
"बदमाश, क्या क्या बोल देता है" शामु के कान खींचते हुए सीता ने कहा।
"अरे अरे अरे माँ, मैने कुछ नहीं बोला, आपके कान बज रहै है" शामु ने बोला तो सीता ने उसके कान को और मरोड़ कर बोला
" तेरी मां हुँ, सब सुनाई देता है"
"छोड़ माँ दर्द कर रहा है" सीता ने कान छोड़ दिया।
"बेठ अब, खाना खाले, खबरदार अगर अब बाहर गया तो"
शामु खाना खाने लगा। सीता रोटिया बेल रही थी। जेसे जेसे बेलन चलता, वेसे वेसे उसके नितंब थिरकन करते। शामु खाना खाते खाते उन लुभावने नितंबो को भी खा जाने वाली नजरो से देखने लगा। देखे भी क्यू ना, ऐसी दिल के आकार की गाँड़ बनी ही देखने के लिए होती है। उधर रोटी बनाते बनाते शामु द्वारा कहे गए शब्द सीता के कानो मे गूंजने लगे।
'वो तो मैं एसे ही कर दूंगा' बावला, एसे ही कर देगा, जेसे कोई पड़ी है अपनी टांगे फैलाके। हाए सीता, क्या हो गया है तेरी बुद्धि को। बावाला वो नही, तू हो गयी लगता है बेशर्म।
Behtreen update👍👍
 

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Mitha pani 13
"पापा, कल गंगानगर जाना है" रात को जब हरीश खाना खा रहा था तो शामु पास बैठा बात कर रहा था।
"कोई काम है बेटा?" हरीश ने पूछा। जो वो कम ही पुछता है। क्यूकि शामु एक मेहनती लड़का है। सारी खेती संभाल रखी है। हरीश को तो समय ही नही मिलता दुकान से। पर कुछ दिन पहले ही शामु जाकर आया है इसीलिए पूछ रहा है हरीश।
"हां पापा, वो शेरा कुछ सामान लाने जा रहा है तो उसी के साथ जाना है"
"ठीक है चला जा। कार ले जाना, टायरो की अलाइनमेंट करवानी है"
शामु ने सोचा था अपनी बुलेट लेके जाएगा। पर ये और भी अच्छा हुआ। माया को धुप नही लगेगी ये सोचकर खुश हो गया।
"तो आप मोटरसाइकल ले जाना"
"ह्म्म्म, पैसे पड़े है अलमारी मे, कल लाया था, ले लेना"
"ठीक है पापा"
फिर हरीश उठ गया और कुल्ला करके बाहर चला गया। कभी कभी पड़ोसी महेंद्र के घर हुक्का पिने चला जाता है जब थकावट नही होती। सीता काम समेट रही थी। शामु अपने कमरे मे जाकर बैठ गया और मोबाइल चलाने लगा। कुछ देर में सीता ने सारा काम समेट लिया। हरीश भी वापस आ गया। सीता से थोड़ी बात की और सोने चला गया। सीता भी थोड़ी देर बाद कमरे में चली गई। कमरे की तरफ जाते हुए पता नहीं उसके अंतर मन में यह बात कैसे आई कि आज हरीश जल्दी नहीं सोएगा। आज वह कुछ बेचैन थी। कुछ अधूरा था जो उसके मन को चैन नहीं आने दे रहा था। पर कमरे में जाते ही उसकी उम्मीदें टूट गई। हरीश घोड़े बेचकर सो रहा था। सीता की आंखों से नींद कोसों दूर थी। वह भारी मन से बेड पर लेट गयी। नींद नहीं आ रही थी तो उसने सोचा क्यों ना मोबाइल के साथ दिमाग खपाया जाए। उसने मोबाइल उठाया और चलाने लगी। ना उसे कोई अनुभव था ना कोई खास रुचि थी पर समय काटने के लिए मोबाइल उठा लिया। जब कुछ खास करने को नहीं मिला तो उसने सोचा क्यों ना शामु को मेसेज किया जाए। क्या पता वह जाग रहा हो। तो उसने ऐसा ही किया
"सो गया?"
इस बार उसकी उम्मीद नहीं टूटी। शामु जाग रहा था। ओर ना ही उसने उत्तर देने मे कोई देरी की। क्योंकि आज से पहले कभी ऐसा हुआ भी नहीं था की इतनी रात को उसकी मां उससे बात करे।
"नही माँ, क्या हुआ?" शामु ने पूछा
"कुछ नही, नींद नही आ रही थी"
"पापा सो गए?"
"हां, खर्राण्टे बज रहे है उनके तो😂😂" सीता पहली बार इस तरह इमोजी का प्रयोग कर रही थी। शामु को अपनी माँ से इस तरह बात करना बहुत अच्छा लग रहा था।
"😂😂तो तुझे नींद आ जाती है क्या?"
" ईतने सालों में आदत हो जाती है"
"माँ, तेरे खर्राटे नहीं बजते क्या🤣?"
"बदमाश, नहीं, नहीं बजते" सीता बहुत खुश थी कि कोई तो है जिसे उसकी कदृ है।
"मैं कैसे मान लूं?"
"मुझे तो लगता है तेरे बजते है🤣"
" बिल्कुल भी नहीं माँ"
"अब मैं कैसे मानु बता?"
"आधी रात में मेरे कमरे में आकर सुन लेना बजे तो"
"ना बाबा ना मुझे तो डर लगता है रात को"
शामु को शरारत सूझी और उसने मजाक मे कहा
"तो फिर अपनी बहु से पूछ लेना"
इस बात से सीता की पीठ मे झुरझुरी हुई और साथ मे थोड़ी सी जलन का भाव भी आया जिसका भान सीता को नही हुआ, क्यूकि ये मजाक चल रहा था माँ बेटे के बीच मे।
" तु तो कह रहा था कि तू शादी ही नहीं करेगा"
"अब तुझे यकीन दिलाना है तो करनी तो पड़ेगी😃😃"
"ले, शादी कब हो और यकीन कब ये बता?"
शामु से रहा नही गया,थोड़ा हिम्मत करके बोला
"तो एक काम कर माँ, तू यही सो जा मेरे पास"
इस बात ने सीता को कंपकंपा दिया। जवान बेटा साथ मे सोने को कह रहा है। उसकी टांगे अपने आप ही आपस में रगड़ने लगी। गालों पर लाली आ गई और थोड़ा सा मुँह खुल गया, छाती तीव्र गति से ऊपर नीचे होने लग गयी। फिर भी उत्तर देना जरूरी था। सीता उनमे से नही थी जो मैदान छोड़ दे।
"अपनी बीवी को ही सुलाना अपने पास" इस बात पर शामु भी थोड़ा उत्तेजित हुआ। नाग ने फन उठाना शुरू कर दिया।
"लो माँ, खुद ही तो बोलती है शादी कब हो पता नही, फिर मत कहना मैने सबूत नही दिया"
सीता ने खुद को इस भावावेश से बाहर निकालने के लिए बात बदली
"मुझे नही चाहिये कोई सबूत, छोड़ ये सब, ये बता कल मेरे लिए क्या लेकर आएगा?"
"क्या चाहिए मेरी मां को?"
" मुझे नहीं पता अपनी पसंद से ले आना" नारी स्वभाव ने अपना स्थान ले लिया, और सीता एक नयी नवेली दुल्हन की तरह मांग करने लगी वो भी शर्माकर।
" अच्छा फिर सोचने दे"
"सोच सोच"
कुछ पल बाद शामु का मेसेज आया
"कुछ पहनने के लिए लादु?"
"क्या?"
शामु हिचकीचा रहा था, पर जवानी और उत्तेजना मे हिम्मत आ गयी
"घाघरा पहना है तूने कभी माँ?"
सीता के चेहरे पर मुस्कुराहट फैल गई। वह खुद को शामु द्वारा लाये गये घाघरा चोली में कल्पना कर रही थी। उसे पता था शामु ने सिर्फ घाघरा क्यू बोला और चोली क्यों नहीं , वह शर्मा रहा था। सीता उसकी शर्म ना बढ़ाकर सिर्फ इतना ही बोली
"ला देना, पर पहनने की उम्र गई मेरी"
" फिर क्या फायदा जब पहनना ही नहीं"
" बेटा समझा कर लोग क्या कहेंगे की देखो अब ये घाघरा चोली पहने घूम रही है, और तुझे लगता है तेरे पापा मुझे पहनने देंगे?"
सीता ने जब चोली शब्द लिखा तो शामु बहुत उत्तेजित हो गया। अब वह किसी भी हाल में सीता को मनाना चाहता था।
"पापा के सामने पहनने को कोन बोल रहा है?"
ये बात भी ठीक है। दुनिया के सामने ना सही घर मे तो पहन ही सकती है। अब जब बेटा इतना कह रहा है तो तू क्यू नखरे कर रही है। ये तो वेसे भी सारा दिन दुकान पर रहते है।
"तेरा सच मे मन है या एसे ही मेरा मन रखने की लिए बोल रहा है?" सीता ने आखिर बार पक्का करना चाहा।
"सच मे माँ, तू बहुर सुंदर लगेगी घाघरे चोली मे" इस बार कोई डर नही था। शामु को एहसास हो गया था कि उसकी माँ बुरा नही मानेगी। वेसे भी वह लगातार कल्पना कर रहा था कि वे दोनों अकेले है घर मे और सिता उसका लाया हुआ घाघर चोली पहने घर का काम कर रही है। उसके पके हुए आम अपनी छठा बिखेर रहे है।
बेटे द्वारा कहे गए शब्द सीता के कानो मे शहद घोल गए। वो बहुत कुछ कहना चाहती थी पर शायद कुछ रोके हुए था।
"सच मे?" सुंदर लगने की बात पर सीता ने पूछा।
"हां माँ, तेरे पास वो मोतियो वाली पायल है ना, वो भी पहन लेना उनके साथ, जब चलेगी का तो छन्न छन्न करेगी"
सीता फिदा ही हो गयी इस बात पर। अब केसे कोई रोक ले।
"तू ही पहना देना"
नाग देवता जाग चुके थे। उसे शांत करना जरुरी हो गया था। संयोग ही कहिये कि सीता को भी लगा कि अब सो जाना चाहिए।
"पहना दूंगा माँ, अपनी माँ को मैं अपने हाथो से पहनाऊँगा" क्या पहनाना होगा ये तो दोनों ही नही जानते थे अभी।
"मेरा बच्चा, अब सोजा, बहुत रात हो गयी है"
"ठीक है माँ, तू भी सोजा, बिना खर्राटे लिए😂😂"
"बदमाश"
Super duper update.
 

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Nice behan bhi chalu hai kya.?
 

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मीठा पानी 16
इस दुनिया मे सबको नींद नही आती। बस थकावट की वजह से कुछ देर शान्त हो जाते है लोग। उनके चेहरे चिंताओ से भरे होते है, क्यूँकि कुछ न कुछ गलत करते रहते है। पर प्यार गलत नही हो सकता। प्यार तो 'सही' का दूसरा नाम है और प्यार और हवस का बड़ा गहरा नाता होता है। जिस इंसान मे बस प्यार है, वह सो नही पाता। पर जिस इंसान मे प्यार के साथ हवस भी है, वो चैन की नींद सोता है। अब शामु को ही देख लीजिए सूरज चढ़ आया है और महाराज घोड़े बेचकर सो रहे है। रात को देर से सोया था तो नींद जल्दी नही खुली। हरीश दुकान पर चला गया था।
दूसरी तरफ सीता ने सुबह सुबह का सारा काम निपटा लिया था बस शामु और अपने लिए रोटिया बनानी बाकी थी। वह बहुत खुश थी और बार बार शरमा रही थी। उसे पता था शामु उठते ही उसे घाघरे चोली मे देखना चाहेगा तो उसने सोचा नहा लिया जाए। उसने पहले शामु के लिए चाय बनाई और थरमस मे डाल कर रख दी। फिर नहाने चली गयी। नहाकर उसने बड़े प्यार से उस घाघरा चोली को पहना। गले मे मंगलसूत्र था और हाथ चूड़ियों से भरे हुए थे। माथे पर छोटी सी लाल बिन्दी लगाई।हालांकि उस चोली का बस नाम ही चोली है, उतनी छोटी नही, पर आधे मम्मे नुमाया थे। घाघरा घुटनो से उपर था और थोड़ी थोड़ी जांघे दिख रही थी। एसी चीकनी जांघे कि हाथ फिसल जाए अगर पकड़ने की कोशीश करो। सीता को इस बात से कोई समस्या नही थी। अपने बेटे कि इच्छा पूरी करनी थी तो थोड़ा बहुत तो चलता है। सूरज उगने से पहले उसने वह पायल और तगड़ी शामु के सिरहाने रख दी थी। उसे बस एक ही चिंता थी कि कोई आ ना जाए घर मे। हालांकि अगर शामु होगा तो किसी के आने पर वह छुप सकती है और शामु कोई बहाना बना सकता है। पर अभी वह उठा नही था। वह तैयार थी अपने बेटे की पसंद के अनुसार। और कुछ काम था नही तो उसने सोचा रोटिया बना ली जाए। वह रसोई मे आ गयी।
कुछ देर बाद शामु भी उठ गया। उसने देखा कि वह बहुत देर से उठा है। नित्य कर्म से निवर्त होकर मुँह धोया जब उसके जेहन मे खयाल आया की आज उसकी माँ उसकी लायी पोषाक पहनने वाली थी। सोच कर उसने अपने कमरे में नजर दोड़ाइ। पायल और तगड़ी दोनों उसके सिरहाने पड़ी थी। उसका मन खिल उठा। उसने उन्हें उठाया और अपनी जेब में डाल लिया। जब अपने कमरे से बाहर आया तो देखा कि सीता रसोई में खाना बना रही थी उसके द्वारा लाये गए घाघरा और चोली को पहनकर। सर पर सितारों से सजी चुनरी ओढ़ रखी थी। वह सच मे 'चोली के पिछे क्या है' गाने वाली हीरोइन जैसी लग रही थी। चुनरी पूरी तरह फेला नही रखी थी इसलिए दोनों तरफ से पीठ नुमांया थी। उसने देखा कि उसकी माँ की चिकनी कमर खाली थी। पैर भी खाली थे जो उसे कचोट कर कह रहे थे कि हमारी पायल कहां है। पहले कमर को सजा दिया जाए उसके बाद तुम्हारी बारी होगी। शामु आगे बढ़ा और अपनी माँ के पास जाकर रुका।
"उठ गया?" बिना शामु की और देखे, बेलन चलाते हुए, चेहरे पर मुस्कुराहट लिए सीता बोली। उसे पता था शामु उसे निहार रहा है।
"हाँ माँ" कहने के साथ ही अपने दोनों हाथ अपनी माँ की कमर पर स्थापित कर दिये। नंगी कमर पर बेटे के हाथ लगते ही सीता का रोम रोम खिल उठा। साँसे तेज हुई। कमर को हल्का सा दबाकर शामु ने अपनी माँ के शरीर मे हो रही हलचल महसूस की। फीर आगे होकर अपने हाथ अपनी माँ के पेट पर बाँध लिए। दांये हाथ की पहली उंगली को नाभि मे जगह मिल गयी। फिर अपने होठ सीता के कान के पास लाकर कहने लगा
"माँ, तू बहुत सुंदर लग रही है" कहने के साथ ही गाल को चूम लिया।
"रहने दे, बस मेरा मन रखने के लिए बोल रहा है" सीता ने नखरा दीखाया।
"सच माँ, आज तू एक परी जैसी लग रही है" सीता के चेहरे की मुशकुराहट फैल गयी। उसे पता था उसका बेटा दिल से बोल रहा है।
"पर अभी कमी है माँ" शामु अपनी माँ का पेट सहलाने लगा।
"अब क्या कमी रह गयी। पहन तो लिया मैने तेरा ये घाघरा और चोली" सीता की मुशकुराट नटखट थी। पर शामु ने कोई जवाब देने की बजाय अपनी जेब से तगड़ी निकली। उसके मनको की आवाज घर मे फैल गयी। फिर शामु ने तगड़ी के दोनों छोर पकडे और फैलाकर अपनी माँ की कमर पर बाँध दी। दोनों छोर मिलते ही शामु ने अपनी उंगली से तगड़ी की लंबाई नापी जिसमे तगड़ी के साथ साथ उसकी उंगली सीता के पूरे पेट और कमर पर फिर गयी। सीता के शरीर मे झुरझुराहट उत्पन्न हुई। उसका मन नये नये अरमान पैदा कर रहा था। जेसे उसने अपने आपको अपने बेटे के नाम कर दिया हो। जेसे उसका बेटा ही अब उसका मालिक बन गया हो।
पर फिर भी वह रोटिया बनाती रही। हालांकि इस पूरी प्रक्रिया मे उसकी रोटीयों की आकृति बिगड़ रही थी। जब शामु ने देखा कि उसकी माँ अभी भी अपने काम मे लगी हुई है तो उसने गैस बंद कर दी।
"क्या कर रहा है? बहुत काम पड़ा है"
"काम होता रहेगा माँ, तू आ मेरे साथ" और सीता का हाथ पकड़ कर अपने कमरे मे ले गया। फिर अपने कमरे मे लगे आदमकद शिशे के सामने सीता को खड़ा कर दिया और खुद सीता के पिछे उसी अवस्था मे खड़ा हो गया जेसे अभी रसोई मे खड़ा था।
"देख माँ, मैं ना कहता हुँ तू परी जैसी लग रही है" सीता लगातार मुशकुरा रही थी।
"हर बेटे को अपनी माँ खूबसूरत लगती है बावले"
"पर तू सबसे सुंदर है माँ, ये तगड़ी देख, कितनी किस्मत वाली है" शामु ने तगड़ी के मनकों को छेड़ते हुए कहा।
"वो क्यू भला?" सीता ने शामु के हाथ को थामा और अपने हाथ को शामु के हाथ के साथ मनकों पर चलाने लगी।
"तेरी कमर पर बंधी है इसलिए" सीता शर्मा गयी।
" बस कर, और कितनी तारीफ करेगा रे"
"एक कमी रह गयी है अभी माँ"
"अब क्या रह गया?" सीता को पता था शामु पायल की बात कर रहा है, पर आज वह उसके अनुसार ही चल रही थी।
"तेरे पैर सुने है माँ" बोलकर शामु ने पायल निकाली और जमीन पर एक घुटने के बल बैठा और एक घुटना अपनी माँ के सामने कर दिया। सीता फिर से मुशकुरा उठी। किसी काले जादू की तरह उसका पाँव अपने आप उठा और शामु के घुटने पर टिक गया। घाघरा, पैर उठने के कारन थोड़ा और उपर खिसक गया और आधी जांघ दिखने लगी। शामु ने कोई जल्दी नही की। सीता भी बस मुशकुरा रही थी। उसे कोई समस्या नही थी कि उसका अपना बेटा उसकी नंगी जांघ देख सकता था। शामु ने घाघरे के अंतिम छोर से अपने हाथ से अपनी माँ का पैर सहलाके देखा और फिर सीता के घुटने पर चूम लिया। सीता को हसी आयी।
"बावाला"
फिर शामु ने पायल दोनों हाथो से पकडी और पहना दी। पायल पहनाने के बाद उसने सीता के पैर के तलवे के निचे हाथ लगाकर उसे उपर उठाया और पैर चूम लिए। सीता से रहा नही गया और उसने शामु को दोनों बाजुओ से पकड़ कर उपर उठाया। फिर उसकी बांहो मे समा गयी। सीता की बांहै शामु के कंधो से होकर जा रही थी और शामु ने अपनी माँ को कमर से कस रखा था। दोनों के बीच हवा की भी दूरी नही थी। सीता का चेहरा शामु के सिने पर था और शामु के होठ अपनी माँ के सर पर टिके हुए थे। गले लगे लगे ही सीता बोली
"तू मुझे एसे ही प्यार करना हमेसा"
शामु ने दोनों हाथो से सीता का चेहरा थामा और उसकी आँखो मे देखकर बोला
"माँ, तू तो मेरा सब कुछ है, मैं तुझे हमेसा एसे ही प्यार करूँगा"
सीता ने खुशी मे शामु का चेहरा अपने हाथो मे लिया और अपने सुर्ख होठो से उसके गाल चूम लिए। फिर शामु ने भी अपनी माँ के बांये गाल पर चुंबन रशीद कीया और जब दांये गाल की बारी आयी तो उस फुले हुए गाल को अपने मुँह मे भर लिया और 'पक' की आवाज के साथ छोड़ा। कमरे मे सीता की हंसी गूंज उठी।
Gajab ka romantic update diya bhai aapne. Mast likh rahe ho aap.
 

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मिठा पानी 17

खाना खाने के बाद शामु अपने कमरे मे चला गया। सीता उसी पोशाक को पहनकर काम करती रही। शामु के कमरे का दरवाजा खुला था तो जब सीता कमरे के सामने से गुजरती तो शामु से नजर मिल जाती। नजर मिलते ही दोनों माँ बेटा मुस्कुरा उठते। दोपहर को सीता वापस पायदान बुनने लगी जब शामु ने उसे चाय का बोला। चाय बनाकर अपने और शामु के लिए दो कटोरियो मे डाली और शामु के कमरे मे चली गयी। शामु पैर पसारे बैठा था। सीता शामु के पैरो की तरफ बेठ गयी। दोनों माँ बेटे चाय पिते हुए बाते करने लगे। जब चाय खतम हुई तो सीता कटोरिया उठाकर चल पड़ी। एकबार तो शामु ने मोबाइल उठाया पर दूसरे ही पल उसने उसे वापिस रख दिया। उसका मन था अपनी माँ के साथ और बाते करने का। उसने सीता को आवाज लगाई

"हाँ बेटा"

"माँ थोड़ी देर और बैठो ना"

सीता ने हस्ते हुए कहा

"अब नही, तुझे जमना काकी के घर जाना है, सगाई के दिन ही कितने बचे है। जा और उनकी कुछ मदद कर"

शामु को भी लगा कि उसकी माँ सही कह रही है।

"ठीक है माँ जाता हुँ" बोलकर शामु खड़ा हुआ। जब सीता के पास से गुजर रहा था तो सीता ने उसे बाजू से पकड़ कर रोका और बोली

"अब सूट पहन लुं?"

शामु मुशकुरा उठा। उसने अपनी माँ के गाल पर हाथ रखा और बोला

"अब इसकी आदत डाल ले माँ, मेरे पास होने पर तुझे यही पहनना होगा"

"पर सारा दिन तो नही पहन सकती ना, कोई आ गया तो?"

"इसका भी इलाज है मेरे पास। अभी के लिए बदल ले" बोलकर शामु चला गया और सीता कपड़े बदल कर वापिस अपने कामो मे लग गयी।

लीला की सगाई को बस 5 दिन बचे थे। दोनों माँ बेटी से जितना हो सकता था वो कर रही थी। शामु के परिवार ने भी बहुत मदद की। सीता ने हरीश से कहकर जमना को पैसे की मदद करने की पेशकश की। पहले तो जमना ने मना किया पर समझाने पर मान गयी। वेसे भी शामु लीला को अपनी बहन मानता था। इसी क्रम मे आज शामु सगाई मे आने वाले मेहमानो के नाम लीला की मदद से लिख रहा था। जमना बाहर गयी हुई थी। नाम लिखने का कार्य पूर्ण होने के बाद लीला ने चाय बना ली। जब चाय पी रहे थे तो शामु बोला

"लीला, मुझे एक बात करनी है तुझसे"

"हाँ बोल, क्या बात है"

उसने लीला का हाथ अपने हाथ मे लिया और उसकी आँखो मे देखकर बोला

"देख, तू मेरी दुसरी बहन है। मैं अगर तुझे कुछ दु तो मना नही करेगी"

"नही करती बावले, पर ऐसा क्या हो जो तू पूछ रहा है"

"बात ही ऐसी है, देख, पापा ने दादी को पेसे दिये है। अब मैं अपनी तरफ से भी कुछ और पैसे तुझे देना चाह रहा हुँ। जो पैसे पापा ने दिये है उनसे सगाई मे मदद होगी। और जो मैं दूंगा उससे तू अपने लिए कुछ ले लेना" शामु दिल से बोल रहा था। उसकी सगी बहन हमेशा उसके पास नही रहती पर लीला ने कभी कमी महसूस नही होने दी। शामु की बात पर लीला को बहुत प्यार आया। उसने शामु के गाल पर हाथ रखा और बोली

"नही भाई, अब और नही, बहुत किया है तुम सबने पहले ही, और मैने अपने लिए जो लेना था ले लिया, किसी चीज की कमी नही है"

"नही, मेरो विनती है तुझसे, इतनी बात तो तुझे माननी ही पड़ेगी अपने भाई की"

"लेकिन मैं पैसो का करूँगी क्या ये तो बता, अपने लिए सारी शॉपिंग कर ली है भाई, फिर भी तेरी इतनी इच्छा है तो एक काम कर, जब मुझे जरूरत पड़ेगी तो मै मांग लुंगी तुझसे, ठीक है?"

"पक्का?"

"हां पक्का" और शामु मुस्कुरा दिया जिसे देख लीला भी मुस्कुरा उठी।

"इधर आ तू" खुश होते हुए लीला ने शामु को बाहों मे भर लिया। शामु ने अपने हाथ उसकी कमर पर कस लिए और कस कर सिने मे भींच लिया। लीला को शामु की बाजुओ का जोर महसूस हुआ पर वो अपने भाई के प्रेम मे बंधी थी। कुछ देर और बाते करने के बाद लीला को याद आया की माया अभी तक नही आयी है।

"अच्छा शामु, ये माया नही आयी अभी तक। तू एक काम कर उसको ले आ"

"ह्म्म्म, ठीक है, मैं माँ को बोल देता हुँ, वह फोन कर देगी मामा को, अगर उनको कोई काम ना हुआ तो मुझे जाना ही नही पड़ेगा"

"हां जा फिर तू अभी, वरना वो कल ही आएगी फिर"

शामु घर आया और सीता को बता दिया की लीला ने माया को लाने का बोला है। सीता ने अपने भाई को फोन किया और उसे कहा की वो माया को छोड़ जाए। माया ने अपना सामान पेक किया और वो निकल पड़े। कुछ एक घंटो बाद माया दयालपुर पहूँच गयी। सीता ने अपने भाई को चाय बनाके पिलाई।

"भैया कंहा है माँ?" माया ने पूछा

"थोड़ी देर पहले तो यही था, फिर राकेश का फोन आ गया। वो स्प्रे कर रहा है आज"

"फिर मैं भी चलता हुं सीता, वरना लेट हो जाऊंगा" सुभाष ने कहा।

"रात को रुक जाते भैया। ये रात को ही आएंगे" सीता ने बोला

"अब तो मिलना होता रहेगा जीजा जी से, रचना की भी शादी आ रही है"

"ठीक है भैया, आराम से जाना"

और सुभाष निकल गया। माया पहले लीला से मिलने चली गयी। दोनों सहेलियो ने खूब बाते की। बातो मे कुछ नमकीन और जायकेदार बाते भी हुई। जिसमे लीला द्वारा माया के किसी संभावित आशिक जो कि अभी तक नही था की पूछताछ से लेकर लीला की होने वाली सुहागरात तक सभी प्रकार के सवाल जवाब थे। लीला ने माया को ये भी बताया की शामु ने पैसो की मदद करनी चाही थी उसकी शॉपिंग के लिए। और भी बहुत बाते हुई जब शामु का फोन आया

"हां भैया" माया बोली

"पहुँच गयी लाडो?"

"पहुँच भी गयी और लीला और मैने बहुत सारी बाते भी करली। आप घर कब आओगे?"

"आ रहा हुँ थोड़ी देर में। थोड़ा सा काम रहा है। आना तो अपने बुधराम को था पर उसका बेटा बीमार है। तू चल घर, मै आया बस"

"ठीक है भैया"

और फोन वापिस अपने पर्स मे डाल लिया।

"मैं चलती हुँ लीला, कल मिलते है"

"कल से तुझे यही रहना है, नींद ना आये तो घर जा सकती है वरना यही सुलाउगी तुझे" इस बात पर दोनों मुस्कुरा दी। फिर माया घर आ गयी। सीता पायदान बुन रही थी तो माया भी पास जाकर बेठ गयी। दोनों माँ बेटी बात करने लगी। कुछ देर बाद सीता बोली

"पशुओ को पानी पिलाने का समय हो गया है। मैं आती हुँ। तू चाय बना ले। शामु भी आने ही वाला है वो भी पी लेगा"

"आप भी पीके चले जाओ माँ"

"अभी पीके कटोरी रखी है। तुम दोनों पिलो" बोलकर सीता चली गयी। माया रसोई मे गयी और गैस पर पानी चढ़ा दिया। जेसे ही चाय डाली वेसे ही उसके कानो मे बुलेट की आवाज आई। चाय बनती हुई छोड़ कर वो गेट की तरफ गयी। शामु अंदर आया और गेट बंद कर दिया।

"आ गए भैया" बोलते हुए माया ने अपनी बांहै फैलायी और शामु से लिपट गयी। शामु ने उसकी कमर के चारो और बांहै लपेट दी और कसकर अपने से चिपका लिया। फिर उसे हवा मे उठाया और उठाए हुए ही अंदर जाने लगा। आन्गन मे पड़ी चारपाई के पास जाकर रुका। माया को जमीन पर उतार कर चारपाई पर बैठा और बेठकर माया की तरफ देखा तो माया उछल कर शामु की जांघो पर बेठ गयी। शामु ने एक हाथ से उसकी कमर थाम ली और दूसरा हाथ उसके गाल पर रख कर दूसरे गाल का एक प्यारा सा चुम्बन लिया और बोला

"कितने बजे पहुची लाडो?"

"टाइम तो याद नही भैया। दो तीन घंटे हो गए"

"और आते ही अपनी सहेली के पास चली गयी"

"वो सब छोड़ो भैया, ये बताओ, उस दिन कोई दिक्कत तो नही हुई थी घर पहुँच के?"

"मुझे क्या दिक्कत होनी थी, मैं तो सोच रहा था कही तू ना पकडी जाए" दोनों भाई बहन हस पड़े।

"अरे बाप रे" बोलते हुए माया भागी । वह चाय चढ़ाकर भूल गयी थी। फिर अपने और अपने भाई के लिए चाय डालकर उसके पास आकर बेठ गयी। दोनों ने चाय खत्म की।

"माँ कहा गयी लाडो?" सीता को आसपास ना देखकर शामु ने पूछा।

"पशुओ को पानी पिला रही है"

"हम्म, चल तू बेठ, मैं आया अभी, माँ से थोड़ी बात करनी है" शामु ने कहा। उसे चिंता थी कि कही माया और उसके मामा ने सीता को घाघरा चोली पहने हुए तो नही देख लिया।

शामु पशुओ की तरफ चला गया और माया के पास कुछ करने को खास था नही तो वो शामु के कमरे की तरफ चली गयी। जब शामु सीता के पास पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी माँ ने सूट पहन रखा था। उसकी चिंता दूर हुई। दूसरी तरफ माया लगी शामु के कमरे की छानबीन करने। जिसमे ऐसा कुछ खास नही था बस वही एक बेड, एक शीशा, एक अलमारी, कुछ लाइटे जिसका प्रयोग शामु कमरे मे रंग भरने के लिए करता था और अंत मे एक छोटी सी संदूक। माया ने अलमारी खोली तो उसमे ढेर सारे कपड़े रखे थे शामु के। अलमारी के बीच मे एक छोटी स्लेप बनी हुई थी जिसका ढक्कन उठाया जा सकता था। वह किसी गुप्त स्थान जैसा था। पर उस पर ताला लगा हुआ था। माया ने चाबी ढूंढने की कोशिश की तो कपड़ो के निचे मिल गयी। उसने उस ताले को खोला और ढक्कन उठा दिया। अंदर देखा तो 500 के नोटो की कुछ गड्डिया रखी थी। उनके पास ही एक एल्बम था जो उनके परिवार का था जिसे माया पहले भी बहुत बार देख चुकी थी। कुछ एक सामान और भी था। इन सबके साथ एक पैकेट पड़ा था। माया का ध्यान उस पैकेट की और गया। जिसे देखते ही उसने पहचान लिया। वह एक ब्रा पेंटी का पैकेट था और नया लग रहा था। माया सोच मे पड़ गयी और फिर उसके चेहरे पर मुशकुराहट आ गयी। उसने सोचा जरूर ये उसके भाई ने अपनी किसी महिला मित्र के लिए खरीदी होगी। माया को ये बिल्कुल भी अजीब नही लगा। आखिर वह भी जवान थी और समझती थी कि लड़कीया क्या क्या करवा सकती है अपने आशिक से। माया को महसूस हुआ कि वह अपने भाई की निजी जिंदगी से जुड़ी चीजों को देख रही है तो उसने वहा से जाना ठीक समझा। उसी वक्त कमरे के गेट की तरफ से किसी की मौजूदगी का अहसास हुआ। जब मुड़ी तो देखा शामु दरवाजे पर खड़ा उसे ही देखे जा रहा था।

"मोटी, क्या जासूसी चल रही है?"

माया को हसी आ गयी। उसे पता था शामु गुस्सा नही था।

"कुछ नही भैया, बस देख रही थी"

शामु कमरे के अंदर आया तो उसने देखा की उसकी गुप्त जगह का ताला खुला हुआ था और माया अपने चेहरे को ढककर मुस्कुरा रही थी। शामु के चेहरे पर भी मुशकुराहट आ गयी। उसने माया के चेहरे पर से उसके हाथ हटाये। माया ने शरारत से आँखो को घूमाकर बिना बोले पूछा कि ये ब्रा पैंटी किसकी है। शामु और भी मुस्कुराकर बोला

"तो तुने देख ही लिए"

"हाँ, आप तो बताने वाले थे नही, ये तो मेरा टाइम पास नही हो रहा था तो मैं आपके कमरे मे आ गयी। अब बताओ भैया, कोन है वो?"

"अभी नही, माँ घर पर है, रात को वो जमना दादी के घर जाएगी सगाई के गीत गाने, तब बताऊंगा"

"ठीक है भैया"

तभी शामु के मोबाइल की घंटी बजी। बुधराम का फोन था। शामु फोन उठाकर बाहर की तरफ चल पड़ा और माया छत पर हवा खाने चल पड़ी।

"हां बुधराम"

"राम राम भाई जी"

"राम राम भाई, केसा है? तेरा बेटा केसा है?"

"अब कुछ ठीक है भाई जी, ड्रिप लगा रखी है, डेंगू हो गया है"

"पैसे वेसे की जरूरत पड़े तो बता देना भाई"

"अभी तो नही है, होगी तो कह दूँगा भाई जी"

"ह्म्म्म, अच्छा ये राकेश कह रहा था खेतों मे पशु आ रहे है रात मे"

"हां भाई जी, मेंने इसी लिए फोन किया है। मुझसे तो दो चार दिन नही जाया जाएगा, आप रखवाली करलो तब तक"

"चल मैं देखता हुँ, तू तेरे बेटे का ध्यान रख भाई, कोई जरूरत हो तो फोन कर देना"

"ठीक है भाई जी, ढाणी मे पानी रख कर आया था, आप मत लेके जाना"

"ठीक है भाई, रखता हुँ" और शामु ने फोन काट दिया। उसे अपनी फसल की चिन्ता हो गयी थी। वह गोदाम के पास खड़ा खड़ा सोचने लगा। लीला की सगाई का काम भी जरूरी था। पर खेत मे तो रात को ही रुकना है। यहा सारे काम तो वेसे भी दिन मे होने थे। इसी के साथ एक और विचार आया कि क्यू ना माया को भी अपने साथ खेत मे ले जाये रात को। रखवाली भी हो जाएगी और कोई तो होगा उसके साथ बात करने के लिए, वह भी घूम लेगी खेत मे जब तक यहा है।

शामु जल्दी जल्दी छत की तरफ भागा। जब उपर पहुंचा तो माया मुंडेर के पास खड़ी गाँव को देख रही थी। वह उसके नजदीक जाकर बोला

"क्या देख रही है लाडो?"

"देख रही हुँ गाँव कितना बदल रहा है भैया। लोगो ने कितने बड़े बड़े घर बना लिए है। कुछ तो जेसे शहर के हो"

"अगले साल हम भी बनवायेगे लाडो, अपना ये घर तो दादाजी के समय बना था"

"मैं भी सोच रही हुँ अब यही रहने का, आप सब की याद आती है"

शामु ने मुशकुराकर माया के कंधे पर हाथ रखा और बोला

"चल फिर तुझे एक और याद देता हुँ आज, मुझे दो चार रातो को खेत मे रहना पड़ेगा, मैं सोच रहा हुँ तू भी चल लेती मेरे साथ"

माया खुश होते हुए बोली

"हां भैया, क्यू नही, चलते है, पर माँ से पूछा?"

"पूछ लूंगा, पापा को भी फोन करना पड़ेगा जल्दी आने के लिए"

"आप माँ से पूछ लीजिए पापा को मैं फोन करती हुँ"

"ठीक है, कर फिर" बोलकर शामु निचे आया। सीता अभी भी जानवरो की तरफ थी। उसने आवाज दी तो सीता अपने हाथ मे बालटी उठाए अंदर आयी

"हां, क्या हुआ?"

और शामु ने सारी बात बता दी। सीता सुनकर बोली

"लेजा तो, पर तेरे पापा से पुछले पहले, और साथ मे कुछ खाने को ले जाना, उसे भूख बहुत लगती है"

"ठीक है माँ, और पापा से माया पूछ रही है"

"ह्म्म्म, ढाणी मे ओढ़ने को है कुछ?" सीता ने पूछा तो शामु बोला

"कम्बल पड़े है माँ, वेसे भी गर्मी है तो कोई जरूरत नही पड़ने वाली"

तब तक माया ने भी हरीश से बात करली और उसे बता दिया की तीन चार रात वह और शामु रखवाली करने जाएंगे। शाम हो गयी थी। खाना तैयार था।

"माया, जा शामु को खाने का बोल दे" सीता बोली

माया शामु के कमरे मे गयी तो शामु सुबह का अखबार अब पढ़ रहा था।

"भैया, खाना बन गया है। खा लीजिए, फिर हमे चलना भी है"

शामु ने अखबार समेटा तो माया जाने लगी

"लाडो"

"हां भैया"

"इधर आ"

माया पास जाकर बेठ गयी। शामु पालथी मारकर बैठा था।

"ह्म्म्म, क्या हुआ भैया?"

"होना क्या है, पूरी रात जागना पड़ेगा, तो मैं ये सोच रहा था कि बियर ले चलते है"

शामु की बात सुनकर माया बहुत खुश हुई। बियर पीने के लिए वह हमेशा तैयार रहती है। और शामु का विचार बुरा भी नही था। जब जागना ही है तो क्यू ना थोड़ी मोज मस्ती भी करलें।

"वाह भैया, कमाल ही कर दिया आपने तो, हमेशा मैं बोलती हुँ,इस बार आप बोले हो"

"वो सब ठीक है अब ये बता लेके आनी है क्या?"

"क्या भैया, आपको लगता है मैं ना करूँगी"

"तो बावाली तू समझ नही रही है। खाना खा लेंगे तो पियेंगे केसे? तू एक काम कर माँ को बोल कि वो खाना टिफिन मे डाल दे। वही खा लेंगे"

"अभी बोलती हुँ"

माया ने सीता को बोल दिया और सीता ने भी ज्यादा सवाल ना पुछते हुए टिफिन तैयार कर दिया। थोड़ी देर बाद हरीश भी आ गया। सीता को भी जमना काकी के यहाँ लीला की सगाई के गीत गाने जाना था। आज हरीश घर मे अकेला रहने वाला था। माया ने लीला को फोन करके रात को उसके यहाँ ना आने का कारण बता दिया। शामु और माया गाड़ी लेकर निकल पड़े खेत की और। शामु के खेत के रास्ते मे ही उसके दोस्त शेरा का ढाबा पड़ता था तो शामु ने ढाबे के पास गाड़ी रोकी और अंदर गया।

"और भाई शेरा"

"बढीया भाई शामु, क्या नयी ताजा है बता"

"सब बढीया है भाई, सुन, मैं दो तीन रात खेत मे रखवाली करुगा, तो बियर का स्टॉक फ़ुल रखना, हो सकता है लेट रात को भी आउ"

"क्या भाई शामु, कभी भी आ जा तेरा ही ढाबा है भाई, अभी कितनी दूँ?"

"अभी तीन देदे, और वो कूलर बॉक्स भी देदे, ठंडी पड़ी रहेगी"

शेरा ने सब इंतजाम करवा दिया, चखना, सिगरेट, चाट मसाला और अपने लड़के को बोलकर सारा सामान गाड़ी मे रखवा दिया। ऐसा लग रहा था जेसे शामु रखवाली करने नही, किसी टूर पर जा रहा हो। शेरा बोला

"और बता शामु कुछ और रखवाउ गाड़ी मे?"

"अभी के लिए बहुत है भाई, कुछ जरूरत पड़ी तो मैं आ जाऊंगा"

"कोई ना भाई, अच्छा ये बता, अकेला कर रहा है पार्टी या कोई माल है साथ मे?"

शेरा ने जब माल बोला, तो शामु के जेहन मे माया का ख्याल आया। उसे गुस्सा नही आया, पर अच्छा भी नही लगा। वह बात को ज्यादा खींचना नही चाहता था। उसे पता था शेरा काले शिशो के कारण माया को नही देख पाया होगा।

"है भाई एक" शामु के मुंह से निकल गया,"चल मिलते है बाद मे"

बोलकर शामु गाड़ी मे आकर बेठ गया। कुछ समय बाद वे दोनों खेत पहुँच गए। शामु ने गाड़ी शेड के निचे खड़ी की और गाड़ी से सामान निकाल कर अंदर की तरफ चले गए
Wha bhai mast rakhwali ho rahi hai
 

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किसी समय हरीश के बाप यानी शामु के दादा ने खेत मे ये ढाणी बनवाई थी। उनका मन था कि उनका सारा परिवार खेत मे रहे। इसीलिए इस ढाणी को किसी बड़े घर की तरह ही बनवाया था। खेत के बीचो बीच बने इस घर मे 4 कमरे और एक गोदाम है। एक टॉयलेट और बाथरूम भी बना हुआ है। ढाणी के पिछे टिन का शेड बना हुआ है जिसके निचे ट्रैक्टर, गाड़ी, खेत के यन्त्र आदि रखे जा सकते है। शेड के आगे थोड़ी जगह साफ करके रखी गयी है ताकि रात मे बाहर सोया जा सके। मच्छर नहीं है तो बाहर सोने का आनंद लिया जा सकता है. पास ही पड़े मटके मे ठंडा पानी रखा गया है. कुल मिलाकर एक घर मे जितनी सुविधाएं होनी चाहिए वे सब है.
अंधेरा होने लगा था तो शामू एक मेज जो कि अंदर पड़ा हुआ था, को उठा लाया. और एक चारपाई रख दी. माया खेत देख रही थी. बढ़ी हुई फसल मे घूम रही थी. शामु ने फ़ूड कूलर को उठाकर बाहर चारपाई के पास रख दिया जिसमे बियर ठंडी हो रही थी. चारो और फसल होने के कारण कोई भी नहीं देख सकता के अंदर क्या हो रहा है. बाहर बैठने का एक फायदा यह भी था कि अगर कोई पशु आया तो उन्हें आवाज आ जाएगी.

दूसरी तरफ जमुना काकी के घर औरते इकट्ठा होना शुरू हो गई थी. जब तक सगाई होगी, रोज गीत गाये जायेंगे, राजस्थान मे हर समारोह के लिए लोक गीतों का भंडार है. लीला को अपनी सहेली माया कि कमी जरूर महसूस हो रही थी. पर वह जानती थी कि अगर कोई जरूरी काम ना होता तो वो जरूर आती. सीता भी बन ठन के शामू द्वारा दी गयी नथनी, और राजपूती लेहंगा पहनकर आयी थी. जमना, जो हमेसा सादे कपड़े पहनती है, वह भी आज नया सुट पहनकर बैठी थी. गीत सुरु हो गए थे और एक औरत लीला को मेहंदी लगा रही थी.
माया खेत घूमकर आ गयी थी और आकर चारपाई पर बैठी थी और मोबाइल चला रही थी. शामू वहाँ नहीं था. वह बैठने से पहले पक्का कर लेना चाहता था कि उनके आस पास कोई व्यक्ति या खेत मे कोई पशु नहीं है. जब उसे यकीन हो गया कि कोई नहीं है तो वह वापस आकर माया के साथ बैठ गया.
"कहा गए थे भैया?"
"देख के आया हूँ कही कोई है तो नहीं"
"फिर?"
"कोई नहीं है"
"एक बात बताओ भैया" माया ने पूछा
"पूछ"
"कोई आ जाये और हम पार्टी कर रहे हो तो क्या होगा"
"होगा क्या, पापा को पता चल जायेगा" बोलकर शामु जोर से हँसा
"भैया, मजाक मत करो, सच बताओ, मुझे डर लग रहा है"
"तू क्यों टेंसन ले रही है,मैं हूँ ना, तू बस एन्जॉय कर"
"हम्म, फिर ठीक है "
"रुक लाडो, कमरे मे हुक्का पड़ा है, मैं भर लेता हूँ"
"सिगरेट नहीं लाये?"
"लाया हूँ ना, चल फिर वही पीते है, मन किया तो बाद मे भर लूंगा"
"निकालो फिर बोतल"माया ने हसकर बोला. शामू को भी हसीं आ गयी.
"अभी देख " बोलकर शामू ने कूलर का ढक्कन खोला और एक बोतल निकाल ली.
"लाडो, अंदर कमरे मे कांच के गिलास पड़े है वो ले आ"
माया उठी और गिलास लेकर का गयी. उसने उन्हें पहले पानी मारकर धोया और फिर वापिस चारपाई पर बैठ गयी.
"लाओ भैया, आज मैं बनाती हूँ"
"क्या बात है, आज तो कमाल ही हो गया" शामू ने मुस्कुराते हुए बोतल माया को देदी. माया ने बोतल का ढक्कन उखाड़ा और दोनों गिलास भर दिए. चियर्स करते हुए दोनों ने गिलास खाली कर दिया. साथ मे चखना चलने लगा. दोनों बाते करने लगे और थोड़ी देर बाद दुसरा पेग्ग भी ख़त्म हुआ. इसी क्रम मे उन्होंने चार पेग लगा लिए.
दोनों को नशा चढ़ चूका था थोड़ा थोड़ा और अब बातो मे हसीं घुल गयी थी.
"आज वही बैठेगी?" शामू ने चेहरे पर मुस्कुराहट लेकर पूछा तो माया भी मुस्कुरा पड़ी. फिर वहा से उठी और शामू कि और आई. शाम पालथी मारकर बैठा था. जब माया उसके पास आई तो शामू ने अपनी दोनों टांगे फैला ली और माया दोनों टांगो के बीच बैठ गयी. पहाड़ जैसे भाई के आँचल मे उसकी बहन किसी बच्ची जैसी लग रही थी.
"अब ठीक है"शामू ने कहा और उसके पेट पर अपना एक हाथ रख दिया.
"भैया सिगरेट जलाओ" माया ने बोला तो शामू ने पैकेट मे से एक निकाल कर उसे माया के होठों पर लगाया तो माया ने उसकी तरफ देखा.
"आज इसकी शुरुआत भी तू ही कर" शामू बोला तो माया ने अपने होंठ खोल दिए. उसके हलकी लाली लगे होंठ बहुत ही कामुक लग रहे थे. महिलाओ के होंठ शामू की कमज़ोरी थी. उसकी दोनों अंगुलिया माया के होठों को छू रही थी जिससे उसने सिगरेट पकड़ रखी थी.
शामू ने लाइटर निकला और माया ने सिगरेट को होठों मे जकड लिया. लाइटर जलते ही माया ने सिगरेट जला ली और शामु के हाथ से ही पिने लगी. माया ने दो तीन कस मारकर सिगरेट को आजाद किया जिस पर थोड़ा सा माया का थूक लग गया था. अब शामू ने दो तीन कस मारकर वापिस अपनी बहन के होठों पर लगा दी. माया ने एक कस मारा और फिर धुंआ उड़ाकर दूसरा कस मारा पर इस बार उसने धुंआ मुंह मे ही रखा. धुंआ मुंह मे रखकर उसने ऊपर शामू के चेहरे की तरफ देखा तो शामू ने निचे माया के चेहरे की तरफ देखकर अपना मुंह खोल दिया. माया ने फिर सारा धुंआ अपने भाई के मुंह मे छोड़ दिया जिसका आंनद ये दोनों ऐसे ही लेते है. बारी बारी से उन दोनों ने कस भरा और एक दूसरे के मुंह मे छोड़ दिया. सिगरेट ख़तम हुई तो माया ने पांचवा पेग्ग बना लिया. अब पेग्ग एक ही बार मे ना पीकर दोनों सिप सिप करते हुए पी रहे थे. दोनों सुरूर मे झूम रहे थे. थोड़ी थोड़ी हिचकी आ रही थी. माया पेग्ग पीते हुए थोड़ी सी उठी और चारपाई पर शामू के पेरो के बीच मे घुटनो के बल खड़ी हो गयी. फिर वह शामू की और घूम गयी और अपने दोनों हाथ शामू के कंधो पर रख दिए. उसका गिलास खाली हो चुका था और शामू ने भी अपना गिलास खाली कर दिया और निचे रख दिया. फिर अपने हाथो से अपनी बहन की कमर पकड़ ली. माया का चेहरा शामू के चेहरे से यही कोई दो तीन इंच की दुरी पर था.
"अब बताओ भैया, कौन है वो जिसके लिए वो गिफ्ट रखा है आपने अपनी अलमारी मे?" माया के चेहरे पर मुस्कुराहट खेलने लगी.
"कोनसा गिफ्ट? याद ही नहीं आ रहा" शामू ने माया की कमर को थोड़ा सा भींच कर कहा और कहते हुए थोड़ा सा हस दिया. हालांकि उसे सब याद था.
"अच्छा, भूल गए?"माया को भी पता था शामू मजाक मे कह रहा है.
"हाँ, कोनसा गिफ्ट, बता ना"
"अब बताते हो या नहीं" माया ने शामू का कान थोड़ा सा मरोड़ कर कहा.
शामू ने माया को अपने करीब किया और बोला
"क्या था वो गिफ्ट लाडो? बता ना"
माया के गाल लाल हो गए पर नशा चढ़ चूका था. और अपने भाई के इतना करीब होने से उत्तेजना चरम पर थी.
"ब्रा और पैंटी भैया. आपकी अलमारी मे"
शामू ने दुबारा अपनी बहन की कमर को भींचा और फिर एक हाथ निचे सरका कर उसके भारी नितम्ब पर रख दिया. माया को इससे कोई समस्या नहीं थी.
"है एक लाडो, अच्छी दोस्त है"
"सिर्फ दोस्त है?" माया का एक हाथ अब शामू के गाल पर था.
"अभी तक तो बस दोस्त ही है"
"और आगे?" माया की आवाज धिमी थी. थोड़ी थोड़ी हवा से उसके बाल उड़कर उसके चेहरे पर आ रहे थे और शामू एक हाथ से उन्हें हटा रहा था. उसका दूसरा हाथ अब अपनी बहन के नितम्बो पर फिर रहा था.
"तू बता, आगे बढू या छोड़ दू उसे?"
"दोस्त तक ठीक है, उससे आगे नहीं" और माया ने शामू का गाल चुम लिया.
"नहीं बढ़ता, फीर वो गिफ्ट देना है उसे या नहीं?" शामु ने पूछा और अब उसका हाथ अपनी बहन के नितम्ब को थोड़ा थोड़ा सहला रहा था.
"नहीं देना, ऐसा कोई भी गिफ्ट किसी को नहीं देना आगे से "
"और तुझे?" शामू ने माया को अपने से लगा लिया था. माया के स्तन अपने भाई के सीने मे जा धसे.
"हाँ, बस मुझे ही दोगे अब से हर गिफ्ट "
शामु ने माया का गाल चूमा और फिर गले पर एक चुम्बन अंकित कर दिया. माया के शरीर मे सिहरन दौड़ गयी. फिर शामू ने चेहरा ऊपर किया और माया की आँखों मे देखा जो उसे ही देख रही थी.
"और मेरा गिफ्ट लाडो?" बोलते हुए शामू ने माया के नितम्बो को अपने दोनों हाथो मे भरा, नितम्बो के दोनों पाटो को विपरीत दिशा मे खिंचा. माया ने शामू की आँखों मे देखते हुए अपने रसीले होठों को अपने भाई के होठों से चिपका दिया.
Mast update.
 

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किसी समय हरीश के बाप यानी शामु के दादा ने खेत मे ये ढाणी बनवाई थी। उनका मन था कि उनका सारा परिवार खेत मे रहे। इसीलिए इस ढाणी को किसी बड़े घर की तरह ही बनवाया था। खेत के बीचो बीच बने इस घर मे 4 कमरे और एक गोदाम है। एक टॉयलेट और बाथरूम भी बना हुआ है। ढाणी के पिछे टिन का शेड बना हुआ है जिसके निचे ट्रैक्टर, गाड़ी, खेत के यन्त्र आदि रखे जा सकते है। शेड के आगे थोड़ी जगह साफ करके रखी गयी है ताकि रात मे बाहर सोया जा सके। मच्छर नहीं है तो बाहर सोने का आनंद लिया जा सकता है. पास ही पड़े मटके मे ठंडा पानी रखा गया है. कुल मिलाकर एक घर मे जितनी सुविधाएं होनी चाहिए वे सब है.
अंधेरा होने लगा था तो शामू एक मेज जो कि अंदर पड़ा हुआ था, को उठा लाया. और एक चारपाई रख दी. माया खेत देख रही थी. बढ़ी हुई फसल मे घूम रही थी. शामु ने फ़ूड कूलर को उठाकर बाहर चारपाई के पास रख दिया जिसमे बियर ठंडी हो रही थी. चारो और फसल होने के कारण कोई भी नहीं देख सकता के अंदर क्या हो रहा है. बाहर बैठने का एक फायदा यह भी था कि अगर कोई पशु आया तो उन्हें आवाज आ जाएगी.

दूसरी तरफ जमुना काकी के घर औरते इकट्ठा होना शुरू हो गई थी. जब तक सगाई होगी, रोज गीत गाये जायेंगे, राजस्थान मे हर समारोह के लिए लोक गीतों का भंडार है. लीला को अपनी सहेली माया कि कमी जरूर महसूस हो रही थी. पर वह जानती थी कि अगर कोई जरूरी काम ना होता तो वो जरूर आती. सीता भी बन ठन के शामू द्वारा दी गयी नथनी, और राजपूती लेहंगा पहनकर आयी थी. जमना, जो हमेसा सादे कपड़े पहनती है, वह भी आज नया सुट पहनकर बैठी थी. गीत सुरु हो गए थे और एक औरत लीला को मेहंदी लगा रही थी.
माया खेत घूमकर आ गयी थी और आकर चारपाई पर बैठी थी और मोबाइल चला रही थी. शामू वहाँ नहीं था. वह बैठने से पहले पक्का कर लेना चाहता था कि उनके आस पास कोई व्यक्ति या खेत मे कोई पशु नहीं है. जब उसे यकीन हो गया कि कोई नहीं है तो वह वापस आकर माया के साथ बैठ गया.
"कहा गए थे भैया?"
"देख के आया हूँ कही कोई है तो नहीं"
"फिर?"
"कोई नहीं है"
"एक बात बताओ भैया" माया ने पूछा
"पूछ"
"कोई आ जाये और हम पार्टी कर रहे हो तो क्या होगा"
"होगा क्या, पापा को पता चल जायेगा" बोलकर शामु जोर से हँसा
"भैया, मजाक मत करो, सच बताओ, मुझे डर लग रहा है"
"तू क्यों टेंसन ले रही है,मैं हूँ ना, तू बस एन्जॉय कर"
"हम्म, फिर ठीक है "
"रुक लाडो, कमरे मे हुक्का पड़ा है, मैं भर लेता हूँ"
"सिगरेट नहीं लाये?"
"लाया हूँ ना, चल फिर वही पीते है, मन किया तो बाद मे भर लूंगा"
"निकालो फिर बोतल"माया ने हसकर बोला. शामू को भी हसीं आ गयी.
"अभी देख " बोलकर शामू ने कूलर का ढक्कन खोला और एक बोतल निकाल ली.
"लाडो, अंदर कमरे मे कांच के गिलास पड़े है वो ले आ"
माया उठी और गिलास लेकर का गयी. उसने उन्हें पहले पानी मारकर धोया और फिर वापिस चारपाई पर बैठ गयी.
"लाओ भैया, आज मैं बनाती हूँ"
"क्या बात है, आज तो कमाल ही हो गया" शामू ने मुस्कुराते हुए बोतल माया को देदी. माया ने बोतल का ढक्कन उखाड़ा और दोनों गिलास भर दिए. चियर्स करते हुए दोनों ने गिलास खाली कर दिया. साथ मे चखना चलने लगा. दोनों बाते करने लगे और थोड़ी देर बाद दुसरा पेग्ग भी ख़त्म हुआ. इसी क्रम मे उन्होंने चार पेग लगा लिए.
दोनों को नशा चढ़ चूका था थोड़ा थोड़ा और अब बातो मे हसीं घुल गयी थी.
"आज वही बैठेगी?" शामू ने चेहरे पर मुस्कुराहट लेकर पूछा तो माया भी मुस्कुरा पड़ी. फिर वहा से उठी और शामू कि और आई. शाम पालथी मारकर बैठा था. जब माया उसके पास आई तो शामू ने अपनी दोनों टांगे फैला ली और माया दोनों टांगो के बीच बैठ गयी. पहाड़ जैसे भाई के आँचल मे उसकी बहन किसी बच्ची जैसी लग रही थी.
"अब ठीक है"शामू ने कहा और उसके पेट पर अपना एक हाथ रख दिया.
"भैया सिगरेट जलाओ" माया ने बोला तो शामू ने पैकेट मे से एक निकाल कर उसे माया के होठों पर लगाया तो माया ने उसकी तरफ देखा.
"आज इसकी शुरुआत भी तू ही कर" शामू बोला तो माया ने अपने होंठ खोल दिए. उसके हलकी लाली लगे होंठ बहुत ही कामुक लग रहे थे. महिलाओ के होंठ शामू की कमज़ोरी थी. उसकी दोनों अंगुलिया माया के होठों को छू रही थी जिससे उसने सिगरेट पकड़ रखी थी.
शामू ने लाइटर निकला और माया ने सिगरेट को होठों मे जकड लिया. लाइटर जलते ही माया ने सिगरेट जला ली और शामु के हाथ से ही पिने लगी. माया ने दो तीन कस मारकर सिगरेट को आजाद किया जिस पर थोड़ा सा माया का थूक लग गया था. अब शामू ने दो तीन कस मारकर वापिस अपनी बहन के होठों पर लगा दी. माया ने एक कस मारा और फिर धुंआ उड़ाकर दूसरा कस मारा पर इस बार उसने धुंआ मुंह मे ही रखा. धुंआ मुंह मे रखकर उसने ऊपर शामू के चेहरे की तरफ देखा तो शामू ने निचे माया के चेहरे की तरफ देखकर अपना मुंह खोल दिया. माया ने फिर सारा धुंआ अपने भाई के मुंह मे छोड़ दिया जिसका आंनद ये दोनों ऐसे ही लेते है. बारी बारी से उन दोनों ने कस भरा और एक दूसरे के मुंह मे छोड़ दिया. सिगरेट ख़तम हुई तो माया ने पांचवा पेग्ग बना लिया. अब पेग्ग एक ही बार मे ना पीकर दोनों सिप सिप करते हुए पी रहे थे. दोनों सुरूर मे झूम रहे थे. थोड़ी थोड़ी हिचकी आ रही थी. माया पेग्ग पीते हुए थोड़ी सी उठी और चारपाई पर शामू के पेरो के बीच मे घुटनो के बल खड़ी हो गयी. फिर वह शामू की और घूम गयी और अपने दोनों हाथ शामू के कंधो पर रख दिए. उसका गिलास खाली हो चुका था और शामू ने भी अपना गिलास खाली कर दिया और निचे रख दिया. फिर अपने हाथो से अपनी बहन की कमर पकड़ ली. माया का चेहरा शामू के चेहरे से यही कोई दो तीन इंच की दुरी पर था.
"अब बताओ भैया, कौन है वो जिसके लिए वो गिफ्ट रखा है आपने अपनी अलमारी मे?" माया के चेहरे पर मुस्कुराहट खेलने लगी.
"कोनसा गिफ्ट? याद ही नहीं आ रहा" शामू ने माया की कमर को थोड़ा सा भींच कर कहा और कहते हुए थोड़ा सा हस दिया. हालांकि उसे सब याद था.
"अच्छा, भूल गए?"माया को भी पता था शामू मजाक मे कह रहा है.
"हाँ, कोनसा गिफ्ट, बता ना"
"अब बताते हो या नहीं" माया ने शामू का कान थोड़ा सा मरोड़ कर कहा.
शामू ने माया को अपने करीब किया और बोला
"क्या था वो गिफ्ट लाडो? बता ना"
माया के गाल लाल हो गए पर नशा चढ़ चूका था. और अपने भाई के इतना करीब होने से उत्तेजना चरम पर थी.
"ब्रा और पैंटी भैया. आपकी अलमारी मे"
शामू ने दुबारा अपनी बहन की कमर को भींचा और फिर एक हाथ निचे सरका कर उसके भारी नितम्ब पर रख दिया. माया को इससे कोई समस्या नहीं थी.
"है एक लाडो, अच्छी दोस्त है"
"सिर्फ दोस्त है?" माया का एक हाथ अब शामू के गाल पर था.
"अभी तक तो बस दोस्त ही है"
"और आगे?" माया की आवाज धिमी थी. थोड़ी थोड़ी हवा से उसके बाल उड़कर उसके चेहरे पर आ रहे थे और शामू एक हाथ से उन्हें हटा रहा था. उसका दूसरा हाथ अब अपनी बहन के नितम्बो पर फिर रहा था.
"तू बता, आगे बढू या छोड़ दू उसे?"
"दोस्त तक ठीक है, उससे आगे नहीं" और माया ने शामू का गाल चुम लिया.
"नहीं बढ़ता, फीर वो गिफ्ट देना है उसे या नहीं?" शामु ने पूछा और अब उसका हाथ अपनी बहन के नितम्ब को थोड़ा थोड़ा सहला रहा था.
"नहीं देना, ऐसा कोई भी गिफ्ट किसी को नहीं देना आगे से "
"और तुझे?" शामू ने माया को अपने से लगा लिया था. माया के स्तन अपने भाई के सीने मे जा धसे.
"हाँ, बस मुझे ही दोगे अब से हर गिफ्ट "
शामु ने माया का गाल चूमा और फिर गले पर एक चुम्बन अंकित कर दिया. माया के शरीर मे सिहरन दौड़ गयी. फिर शामू ने चेहरा ऊपर किया और माया की आँखों मे देखा जो उसे ही देख रही थी.
"और मेरा गिफ्ट लाडो?" बोलते हुए शामू ने माया के नितम्बो को अपने दोनों हाथो मे भरा, नितम्बो के दोनों पाटो को विपरीत दिशा मे खिंचा. माया ने शामू की आँखों मे देखते हुए अपने रसीले होठों को अपने भाई के होठों से चिपका दिया.
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