मिठा पानी 17
खाना खाने के बाद शामु अपने कमरे मे चला गया। सीता उसी पोशाक को पहनकर काम करती रही। शामु के कमरे का दरवाजा खुला था तो जब सीता कमरे के सामने से गुजरती तो शामु से नजर मिल जाती। नजर मिलते ही दोनों माँ बेटा मुस्कुरा उठते। दोपहर को सीता वापस पायदान बुनने लगी जब शामु ने उसे चाय का बोला। चाय बनाकर अपने और शामु के लिए दो कटोरियो मे डाली और शामु के कमरे मे चली गयी। शामु पैर पसारे बैठा था। सीता शामु के पैरो की तरफ बेठ गयी। दोनों माँ बेटे चाय पिते हुए बाते करने लगे। जब चाय खतम हुई तो सीता कटोरिया उठाकर चल पड़ी। एकबार तो शामु ने मोबाइल उठाया पर दूसरे ही पल उसने उसे वापिस रख दिया। उसका मन था अपनी माँ के साथ और बाते करने का। उसने सीता को आवाज लगाई
"हाँ बेटा"
"माँ थोड़ी देर और बैठो ना"
सीता ने हस्ते हुए कहा
"अब नही, तुझे जमना काकी के घर जाना है, सगाई के दिन ही कितने बचे है। जा और उनकी कुछ मदद कर"
शामु को भी लगा कि उसकी माँ सही कह रही है।
"ठीक है माँ जाता हुँ" बोलकर शामु खड़ा हुआ। जब सीता के पास से गुजर रहा था तो सीता ने उसे बाजू से पकड़ कर रोका और बोली
"अब सूट पहन लुं?"
शामु मुशकुरा उठा। उसने अपनी माँ के गाल पर हाथ रखा और बोला
"अब इसकी आदत डाल ले माँ, मेरे पास होने पर तुझे यही पहनना होगा"
"पर सारा दिन तो नही पहन सकती ना, कोई आ गया तो?"
"इसका भी इलाज है मेरे पास। अभी के लिए बदल ले" बोलकर शामु चला गया और सीता कपड़े बदल कर वापिस अपने कामो मे लग गयी।
लीला की सगाई को बस 5 दिन बचे थे। दोनों माँ बेटी से जितना हो सकता था वो कर रही थी। शामु के परिवार ने भी बहुत मदद की। सीता ने हरीश से कहकर जमना को पैसे की मदद करने की पेशकश की। पहले तो जमना ने मना किया पर समझाने पर मान गयी। वेसे भी शामु लीला को अपनी बहन मानता था। इसी क्रम मे आज शामु सगाई मे आने वाले मेहमानो के नाम लीला की मदद से लिख रहा था। जमना बाहर गयी हुई थी। नाम लिखने का कार्य पूर्ण होने के बाद लीला ने चाय बना ली। जब चाय पी रहे थे तो शामु बोला
"लीला, मुझे एक बात करनी है तुझसे"
"हाँ बोल, क्या बात है"
उसने लीला का हाथ अपने हाथ मे लिया और उसकी आँखो मे देखकर बोला
"देख, तू मेरी दुसरी बहन है। मैं अगर तुझे कुछ दु तो मना नही करेगी"
"नही करती बावले, पर ऐसा क्या हो जो तू पूछ रहा है"
"बात ही ऐसी है, देख, पापा ने दादी को पेसे दिये है। अब मैं अपनी तरफ से भी कुछ और पैसे तुझे देना चाह रहा हुँ। जो पैसे पापा ने दिये है उनसे सगाई मे मदद होगी। और जो मैं दूंगा उससे तू अपने लिए कुछ ले लेना" शामु दिल से बोल रहा था। उसकी सगी बहन हमेशा उसके पास नही रहती पर लीला ने कभी कमी महसूस नही होने दी। शामु की बात पर लीला को बहुत प्यार आया। उसने शामु के गाल पर हाथ रखा और बोली
"नही भाई, अब और नही, बहुत किया है तुम सबने पहले ही, और मैने अपने लिए जो लेना था ले लिया, किसी चीज की कमी नही है"
"नही, मेरो विनती है तुझसे, इतनी बात तो तुझे माननी ही पड़ेगी अपने भाई की"
"लेकिन मैं पैसो का करूँगी क्या ये तो बता, अपने लिए सारी शॉपिंग कर ली है भाई, फिर भी तेरी इतनी इच्छा है तो एक काम कर, जब मुझे जरूरत पड़ेगी तो मै मांग लुंगी तुझसे, ठीक है?"
"पक्का?"
"हां पक्का" और शामु मुस्कुरा दिया जिसे देख लीला भी मुस्कुरा उठी।
"इधर आ तू" खुश होते हुए लीला ने शामु को बाहों मे भर लिया। शामु ने अपने हाथ उसकी कमर पर कस लिए और कस कर सिने मे भींच लिया। लीला को शामु की बाजुओ का जोर महसूस हुआ पर वो अपने भाई के प्रेम मे बंधी थी। कुछ देर और बाते करने के बाद लीला को याद आया की माया अभी तक नही आयी है।
"अच्छा शामु, ये माया नही आयी अभी तक। तू एक काम कर उसको ले आ"
"ह्म्म्म, ठीक है, मैं माँ को बोल देता हुँ, वह फोन कर देगी मामा को, अगर उनको कोई काम ना हुआ तो मुझे जाना ही नही पड़ेगा"
"हां जा फिर तू अभी, वरना वो कल ही आएगी फिर"
शामु घर आया और सीता को बता दिया की लीला ने माया को लाने का बोला है। सीता ने अपने भाई को फोन किया और उसे कहा की वो माया को छोड़ जाए। माया ने अपना सामान पेक किया और वो निकल पड़े। कुछ एक घंटो बाद माया दयालपुर पहूँच गयी। सीता ने अपने भाई को चाय बनाके पिलाई।
"भैया कंहा है माँ?" माया ने पूछा
"थोड़ी देर पहले तो यही था, फिर राकेश का फोन आ गया। वो स्प्रे कर रहा है आज"
"फिर मैं भी चलता हुं सीता, वरना लेट हो जाऊंगा" सुभाष ने कहा।
"रात को रुक जाते भैया। ये रात को ही आएंगे" सीता ने बोला
"अब तो मिलना होता रहेगा जीजा जी से, रचना की भी शादी आ रही है"
"ठीक है भैया, आराम से जाना"
और सुभाष निकल गया। माया पहले लीला से मिलने चली गयी। दोनों सहेलियो ने खूब बाते की। बातो मे कुछ नमकीन और जायकेदार बाते भी हुई। जिसमे लीला द्वारा माया के किसी संभावित आशिक जो कि अभी तक नही था की पूछताछ से लेकर लीला की होने वाली सुहागरात तक सभी प्रकार के सवाल जवाब थे। लीला ने माया को ये भी बताया की शामु ने पैसो की मदद करनी चाही थी उसकी शॉपिंग के लिए। और भी बहुत बाते हुई जब शामु का फोन आया
"हां भैया" माया बोली
"पहुँच गयी लाडो?"
"पहुँच भी गयी और लीला और मैने बहुत सारी बाते भी करली। आप घर कब आओगे?"
"आ रहा हुँ थोड़ी देर में। थोड़ा सा काम रहा है। आना तो अपने बुधराम को था पर उसका बेटा बीमार है। तू चल घर, मै आया बस"
"ठीक है भैया"
और फोन वापिस अपने पर्स मे डाल लिया।
"मैं चलती हुँ लीला, कल मिलते है"
"कल से तुझे यही रहना है, नींद ना आये तो घर जा सकती है वरना यही सुलाउगी तुझे" इस बात पर दोनों मुस्कुरा दी। फिर माया घर आ गयी। सीता पायदान बुन रही थी तो माया भी पास जाकर बेठ गयी। दोनों माँ बेटी बात करने लगी। कुछ देर बाद सीता बोली
"पशुओ को पानी पिलाने का समय हो गया है। मैं आती हुँ। तू चाय बना ले। शामु भी आने ही वाला है वो भी पी लेगा"
"आप भी पीके चले जाओ माँ"
"अभी पीके कटोरी रखी है। तुम दोनों पिलो" बोलकर सीता चली गयी। माया रसोई मे गयी और गैस पर पानी चढ़ा दिया। जेसे ही चाय डाली वेसे ही उसके कानो मे बुलेट की आवाज आई। चाय बनती हुई छोड़ कर वो गेट की तरफ गयी। शामु अंदर आया और गेट बंद कर दिया।
"आ गए भैया" बोलते हुए माया ने अपनी बांहै फैलायी और शामु से लिपट गयी। शामु ने उसकी कमर के चारो और बांहै लपेट दी और कसकर अपने से चिपका लिया। फिर उसे हवा मे उठाया और उठाए हुए ही अंदर जाने लगा। आन्गन मे पड़ी चारपाई के पास जाकर रुका। माया को जमीन पर उतार कर चारपाई पर बैठा और बेठकर माया की तरफ देखा तो माया उछल कर शामु की जांघो पर बेठ गयी। शामु ने एक हाथ से उसकी कमर थाम ली और दूसरा हाथ उसके गाल पर रख कर दूसरे गाल का एक प्यारा सा चुम्बन लिया और बोला
"कितने बजे पहुची लाडो?"
"टाइम तो याद नही भैया। दो तीन घंटे हो गए"
"और आते ही अपनी सहेली के पास चली गयी"
"वो सब छोड़ो भैया, ये बताओ, उस दिन कोई दिक्कत तो नही हुई थी घर पहुँच के?"
"मुझे क्या दिक्कत होनी थी, मैं तो सोच रहा था कही तू ना पकडी जाए" दोनों भाई बहन हस पड़े।
"अरे बाप रे" बोलते हुए माया भागी । वह चाय चढ़ाकर भूल गयी थी। फिर अपने और अपने भाई के लिए चाय डालकर उसके पास आकर बेठ गयी। दोनों ने चाय खत्म की।
"माँ कहा गयी लाडो?" सीता को आसपास ना देखकर शामु ने पूछा।
"पशुओ को पानी पिला रही है"
"हम्म, चल तू बेठ, मैं आया अभी, माँ से थोड़ी बात करनी है" शामु ने कहा। उसे चिंता थी कि कही माया और उसके मामा ने सीता को घाघरा चोली पहने हुए तो नही देख लिया।
शामु पशुओ की तरफ चला गया और माया के पास कुछ करने को खास था नही तो वो शामु के कमरे की तरफ चली गयी। जब शामु सीता के पास पहुंचा तो उसने देखा कि उसकी माँ ने सूट पहन रखा था। उसकी चिंता दूर हुई। दूसरी तरफ माया लगी शामु के कमरे की छानबीन करने। जिसमे ऐसा कुछ खास नही था बस वही एक बेड, एक शीशा, एक अलमारी, कुछ लाइटे जिसका प्रयोग शामु कमरे मे रंग भरने के लिए करता था और अंत मे एक छोटी सी संदूक। माया ने अलमारी खोली तो उसमे ढेर सारे कपड़े रखे थे शामु के। अलमारी के बीच मे एक छोटी स्लेप बनी हुई थी जिसका ढक्कन उठाया जा सकता था। वह किसी गुप्त स्थान जैसा था। पर उस पर ताला लगा हुआ था। माया ने चाबी ढूंढने की कोशिश की तो कपड़ो के निचे मिल गयी। उसने उस ताले को खोला और ढक्कन उठा दिया। अंदर देखा तो 500 के नोटो की कुछ गड्डिया रखी थी। उनके पास ही एक एल्बम था जो उनके परिवार का था जिसे माया पहले भी बहुत बार देख चुकी थी। कुछ एक सामान और भी था। इन सबके साथ एक पैकेट पड़ा था। माया का ध्यान उस पैकेट की और गया। जिसे देखते ही उसने पहचान लिया। वह एक ब्रा पेंटी का पैकेट था और नया लग रहा था। माया सोच मे पड़ गयी और फिर उसके चेहरे पर मुशकुराहट आ गयी। उसने सोचा जरूर ये उसके भाई ने अपनी किसी महिला मित्र के लिए खरीदी होगी। माया को ये बिल्कुल भी अजीब नही लगा। आखिर वह भी जवान थी और समझती थी कि लड़कीया क्या क्या करवा सकती है अपने आशिक से। माया को महसूस हुआ कि वह अपने भाई की निजी जिंदगी से जुड़ी चीजों को देख रही है तो उसने वहा से जाना ठीक समझा। उसी वक्त कमरे के गेट की तरफ से किसी की मौजूदगी का अहसास हुआ। जब मुड़ी तो देखा शामु दरवाजे पर खड़ा उसे ही देखे जा रहा था।
"मोटी, क्या जासूसी चल रही है?"
माया को हसी आ गयी। उसे पता था शामु गुस्सा नही था।
"कुछ नही भैया, बस देख रही थी"
शामु कमरे के अंदर आया तो उसने देखा की उसकी गुप्त जगह का ताला खुला हुआ था और माया अपने चेहरे को ढककर मुस्कुरा रही थी। शामु के चेहरे पर भी मुशकुराहट आ गयी। उसने माया के चेहरे पर से उसके हाथ हटाये। माया ने शरारत से आँखो को घूमाकर बिना बोले पूछा कि ये ब्रा पैंटी किसकी है। शामु और भी मुस्कुराकर बोला
"तो तुने देख ही लिए"
"हाँ, आप तो बताने वाले थे नही, ये तो मेरा टाइम पास नही हो रहा था तो मैं आपके कमरे मे आ गयी। अब बताओ भैया, कोन है वो?"
"अभी नही, माँ घर पर है, रात को वो जमना दादी के घर जाएगी सगाई के गीत गाने, तब बताऊंगा"
"ठीक है भैया"
तभी शामु के मोबाइल की घंटी बजी। बुधराम का फोन था। शामु फोन उठाकर बाहर की तरफ चल पड़ा और माया छत पर हवा खाने चल पड़ी।
"हां बुधराम"
"राम राम भाई जी"
"राम राम भाई, केसा है? तेरा बेटा केसा है?"
"अब कुछ ठीक है भाई जी, ड्रिप लगा रखी है, डेंगू हो गया है"
"पैसे वेसे की जरूरत पड़े तो बता देना भाई"
"अभी तो नही है, होगी तो कह दूँगा भाई जी"
"ह्म्म्म, अच्छा ये राकेश कह रहा था खेतों मे पशु आ रहे है रात मे"
"हां भाई जी, मेंने इसी लिए फोन किया है। मुझसे तो दो चार दिन नही जाया जाएगा, आप रखवाली करलो तब तक"
"चल मैं देखता हुँ, तू तेरे बेटे का ध्यान रख भाई, कोई जरूरत हो तो फोन कर देना"
"ठीक है भाई जी, ढाणी मे पानी रख कर आया था, आप मत लेके जाना"
"ठीक है भाई, रखता हुँ" और शामु ने फोन काट दिया। उसे अपनी फसल की चिन्ता हो गयी थी। वह गोदाम के पास खड़ा खड़ा सोचने लगा। लीला की सगाई का काम भी जरूरी था। पर खेत मे तो रात को ही रुकना है। यहा सारे काम तो वेसे भी दिन मे होने थे। इसी के साथ एक और विचार आया कि क्यू ना माया को भी अपने साथ खेत मे ले जाये रात को। रखवाली भी हो जाएगी और कोई तो होगा उसके साथ बात करने के लिए, वह भी घूम लेगी खेत मे जब तक यहा है।
शामु जल्दी जल्दी छत की तरफ भागा। जब उपर पहुंचा तो माया मुंडेर के पास खड़ी गाँव को देख रही थी। वह उसके नजदीक जाकर बोला
"क्या देख रही है लाडो?"
"देख रही हुँ गाँव कितना बदल रहा है भैया। लोगो ने कितने बड़े बड़े घर बना लिए है। कुछ तो जेसे शहर के हो"
"अगले साल हम भी बनवायेगे लाडो, अपना ये घर तो दादाजी के समय बना था"
"मैं भी सोच रही हुँ अब यही रहने का, आप सब की याद आती है"
शामु ने मुशकुराकर माया के कंधे पर हाथ रखा और बोला
"चल फिर तुझे एक और याद देता हुँ आज, मुझे दो चार रातो को खेत मे रहना पड़ेगा, मैं सोच रहा हुँ तू भी चल लेती मेरे साथ"
माया खुश होते हुए बोली
"हां भैया, क्यू नही, चलते है, पर माँ से पूछा?"
"पूछ लूंगा, पापा को भी फोन करना पड़ेगा जल्दी आने के लिए"
"आप माँ से पूछ लीजिए पापा को मैं फोन करती हुँ"
"ठीक है, कर फिर" बोलकर शामु निचे आया। सीता अभी भी जानवरो की तरफ थी। उसने आवाज दी तो सीता अपने हाथ मे बालटी उठाए अंदर आयी
"हां, क्या हुआ?"
और शामु ने सारी बात बता दी। सीता सुनकर बोली
"लेजा तो, पर तेरे पापा से पुछले पहले, और साथ मे कुछ खाने को ले जाना, उसे भूख बहुत लगती है"
"ठीक है माँ, और पापा से माया पूछ रही है"
"ह्म्म्म, ढाणी मे ओढ़ने को है कुछ?" सीता ने पूछा तो शामु बोला
"कम्बल पड़े है माँ, वेसे भी गर्मी है तो कोई जरूरत नही पड़ने वाली"
तब तक माया ने भी हरीश से बात करली और उसे बता दिया की तीन चार रात वह और शामु रखवाली करने जाएंगे। शाम हो गयी थी। खाना तैयार था।
"माया, जा शामु को खाने का बोल दे" सीता बोली
माया शामु के कमरे मे गयी तो शामु सुबह का अखबार अब पढ़ रहा था।
"भैया, खाना बन गया है। खा लीजिए, फिर हमे चलना भी है"
शामु ने अखबार समेटा तो माया जाने लगी
"लाडो"
"हां भैया"
"इधर आ"
माया पास जाकर बेठ गयी। शामु पालथी मारकर बैठा था।
"ह्म्म्म, क्या हुआ भैया?"
"होना क्या है, पूरी रात जागना पड़ेगा, तो मैं ये सोच रहा था कि बियर ले चलते है"
शामु की बात सुनकर माया बहुत खुश हुई। बियर पीने के लिए वह हमेशा तैयार रहती है। और शामु का विचार बुरा भी नही था। जब जागना ही है तो क्यू ना थोड़ी मोज मस्ती भी करलें।
"वाह भैया, कमाल ही कर दिया आपने तो, हमेशा मैं बोलती हुँ,इस बार आप बोले हो"
"वो सब ठीक है अब ये बता लेके आनी है क्या?"
"क्या भैया, आपको लगता है मैं ना करूँगी"
"तो बावाली तू समझ नही रही है। खाना खा लेंगे तो पियेंगे केसे? तू एक काम कर माँ को बोल कि वो खाना टिफिन मे डाल दे। वही खा लेंगे"
"अभी बोलती हुँ"
माया ने सीता को बोल दिया और सीता ने भी ज्यादा सवाल ना पुछते हुए टिफिन तैयार कर दिया। थोड़ी देर बाद हरीश भी आ गया। सीता को भी जमना काकी के यहाँ लीला की सगाई के गीत गाने जाना था। आज हरीश घर मे अकेला रहने वाला था। माया ने लीला को फोन करके रात को उसके यहाँ ना आने का कारण बता दिया। शामु और माया गाड़ी लेकर निकल पड़े खेत की और। शामु के खेत के रास्ते मे ही उसके दोस्त शेरा का ढाबा पड़ता था तो शामु ने ढाबे के पास गाड़ी रोकी और अंदर गया।
"और भाई शेरा"
"बढीया भाई शामु, क्या नयी ताजा है बता"
"सब बढीया है भाई, सुन, मैं दो तीन रात खेत मे रखवाली करुगा, तो बियर का स्टॉक फ़ुल रखना, हो सकता है लेट रात को भी आउ"
"क्या भाई शामु, कभी भी आ जा तेरा ही ढाबा है भाई, अभी कितनी दूँ?"
"अभी तीन देदे, और वो कूलर बॉक्स भी देदे, ठंडी पड़ी रहेगी"
शेरा ने सब इंतजाम करवा दिया, चखना, सिगरेट, चाट मसाला और अपने लड़के को बोलकर सारा सामान गाड़ी मे रखवा दिया। ऐसा लग रहा था जेसे शामु रखवाली करने नही, किसी टूर पर जा रहा हो। शेरा बोला
"और बता शामु कुछ और रखवाउ गाड़ी मे?"
"अभी के लिए बहुत है भाई, कुछ जरूरत पड़ी तो मैं आ जाऊंगा"
"कोई ना भाई, अच्छा ये बता, अकेला कर रहा है पार्टी या कोई माल है साथ मे?"
शेरा ने जब माल बोला, तो शामु के जेहन मे माया का ख्याल आया। उसे गुस्सा नही आया, पर अच्छा भी नही लगा। वह बात को ज्यादा खींचना नही चाहता था। उसे पता था शेरा काले शिशो के कारण माया को नही देख पाया होगा।
"है भाई एक" शामु के मुंह से निकल गया,"चल मिलते है बाद मे"
बोलकर शामु गाड़ी मे आकर बेठ गया। कुछ समय बाद वे दोनों खेत पहुँच गए। शामु ने गाड़ी शेड के निचे खड़ी की और गाड़ी से सामान निकाल कर अंदर की तरफ चले गए