मीठा पानी 20
"बुधराम का बेटा केसा हैं अब शामू?" सुबह सुबह सीता, शामू और माया आंगन मे बैठे थे।हरीश दुकान पर जा चूका था। सीता मटर छील रही थी। रात को चोदम पट्टी मचाकर माया और शामू सुबह जल्दी ही घर आ गए थे। ऐसे व्यवहार कर रहे थे जैसे भाई बहन के बीच ये सब सामान्य बात हो।
"ठीक हैं माँ, क्यों?"
"ना ऐसे ही पूछ रही हुँ, कितने दिन और रखवाली करनी होंगी?"
"उसका लड़का ठीक होते ही आ जायेगा, तब तक मैं और माया जा आया करेंगे" शामू ने बोलकर माया की और देखा और उसी समय माया ने भी शामू की और नजर डाली। दोनों की नजर मिली और चेहरे पर शैतानी हसीं आ गयी।
"तू नहाले माया, जमना काकी ने जल्दी बुलाया हैं। कल सूट बेचने वाला आया था तो उससे सूट लिए थे काकी ने। मुझे कह रही थी देख लेना "
"ठीक हैं माँ, वैसे ये सूट वाला कितने दिनों मे आता हैं?"
"क्यों तुझे भी लेने थे?"
"नहीं माँ, ऐसे ही पुछ रही हुँ"
"रचना की शादी के लिये ले आई तू?"
"कहा माँ, बाकि तो ले आये मैं नहीं लायी अभी तक"
"चल ले आना, अभी तो बहुत समय हैं शादी को, पहले लीला की सगाई होंगी"
"उसके लिए भी नहीं हैं माँ"
शामू जो अख़बार पढ़ रहा था अचानक बोला
"इतने तो पड़े हैं तेरे पास, और कितने लाएगी"
"कहा हैं भैया, मुझे नहीं पता, मैं सगाई मे पुराने कपडे नहीं पहनूंगी" माया की बात सुनकर सीता हस पड़ी।
"क्यों टांग खींच रहा हैं उसकी। एक काम कर, कल लीला बाजार जा रही हैं, तू चली जा उसके साथ और ले आ जो लाना हैं फिर समय नहीं मिल पायेगा"
थोड़ी देर और बात करने के बाद माया नहाने चली गयी और अब वहा बस सीता और शामू थे।
सीता अपने काम मे मग्न थी और शामू ने अख़बार का आखिरी पन्ना पलट लिया था। इतनी गौर से नहीं पढता बस तस्वीरे देख देख के ही समाचार समझने की कोसिस कर लेता हैं। उसने नजर उठाई तो देखा सीता अभी भी मटर छील रही हैं और थोड़ी झुकी हुई होने के कारण उसके सूट का गला थोड़ा लटका हुआ था। विशाल मम्मो को घूरता हुआ शामू बोला
"माँ, तू क्या पहनेगी सगाई वाले दिन?"
शामू की बात सुनकर सीता मुस्कुराई पर अपने काम मे लगी रही और उसी अवस्था मे बिना सर उठाये बोली
"सोचा नहीं हैं अभी तक "
"तो क्या सगाई के बाद सोचेगी?"
सीता इस बात पर फिर से मुस्कुराई और बोली
"पहन लुंगी कुछ भी, वैसे साड़ी का ही मन हैं मेरा बेटा "
"हम्म, माँ एक बात बतानी थी "
इस बार सीता ने सर उठाया और बोली
"क्या बात?"
"राकेश से बात हुई थी सुबह, वो बोल रहा था बुधराम का बेटा बहुत ज्यादा ही बीमार हुआ हैं, शायद भर्ती करवाना पड़े।"
"बेचारा, पर अचानक इतना बीमार कैसे हो गया, कुछ दिन पहले तेरा खाना लेने आया था तब तो ठीक लग रहा था "
"पता नहीं क्या चक्कर हैं, मिलके आता हुँ कुछ पता चले तो"
"हाँ जा मिल आ, गरीब हैं बेचारा"
"मिल तो आउगा पर रखवाली का क्या करू, इस हिसाब से तो पुरे सीजन मुझे जाना पड़ेगा रात को"
"फिर क्या हुआ, जाना हैं तो जाना हैं, यु बिना रखवाली के तो नहीं छोड़ना "
"हम्म, माया को यही रख लेते हैं कुछ दिन"
हालांकि शामू जानता था कि उसकी माँ क्या कहेगी इस बात पर
"वो रहेगी? और तेरे नाना रह लेंगे उसके बिना?"
"वो रह लेगी, इस बार उसका मन लग गया है यहाँ, इस बहाने खेती के बारे मे भी जान लेगी"
"नहीं बेटा, तेरे नाना नहीं रह सकते उसके बिना, बूढ़े हो गए हैं, इस तरह दिल नहीं दुखाते, कुछ दिन और रहने दे उसे, फिर उसके लिए भी लड़का ढूंढना होगा, तब बुला लेंगे उसे"
"तो तू चल लेना मेरे साथ रखवाली पर "
शामू की बात पर सीता को हसीं आई और बोली
"तूझे डर लगता हैं क्या वहा?"
"मुझे किसी का डर नहीं हैं, पर अकेले बोर हो जाता हुँ वहा, राकेश भी नहीं आता"
"ठीक हैं, जब तक माया यहाँ हैं उसे लेजा, फिर मैं चलूंगी तेरे साथ"
बोलकर सीता खड़ी हुई और रसोई की तरफ चल पड़ी। शामू को पता था अब काफ़ी देर तक वह रसोई मे ही रहेगी। वह दबे पाँव माया के कमरे की तरफ चला गया। माया नहा चुकी थी और अपने बाल सूखा रही थी शीशे के सामने। दरवाजा खुला था और माया ने ड्रायर चला रखा था। शामू धीरे से उसके पास गया और उसे पीछे से अपनी बाहो मे ले लिया। माया का चेहरा खिल उठा। शामू ने हाथ आगे बढाकर उसके मम्मे पकड़ लिए और कान के पास बोला
"नहा ली लाडो?"
माया ने ड्रायर छोड़ा और शामू के हाथ जो उसके मम्मे थामे हुए थे पर अपने हाथ रखे और गर्दन घुमाकर शामू के गाल पर चुम्बन देने लगी। शामू ने मम्मो के मर्दन किया और फिर उसे अपनी तरफ घुमा लिया। हाथो को निचे सरकाकर गाँड़ पर ले गया और दोनों के होंठ मिल गए। थोड़ी देर तक जीभ ठेल ठेल कर चूमने के बाद दोनों ने चेहरा अलग किया और माया मुस्कुराके बोली
"रात पेट नहीं भरा भैया?"
शामू ने गांड को भींचा और उसे अपने से और ज्यादा सटाते हुए बोला
"जिसकी बहन इतनी सुन्दर हो उसका पेट कैसे भर सकता हैं लाडो?"
माया ने कामुक चेहरा बनाया और फिर से एक छोटी चूमि देकर बोली
"मै चाहती भी नहीं मेरे भाई का मुझसे पेट भरे, पर ये दिन का समय हैं भैया, हमें सावधान रहना होगा"
"तू चिंता मत कर, माँ रसोई मे हैं "
माया को हसीं आ गयी
"इतने उतावले मत बनो, सारी रात हैं हमारे पास, अभी जाओ आप, मुझे तैयार होने दो"
शामू ने धीरे से एक चपेट माया की गांड पर लगाई और उससे अलग होकर बाहर की और चल पड़ा। माया मुस्कुराते हुए उसे जाते हुए देखने लगी और अपने बाल बनाने मे व्यस्त हो गयी। बाल बनाते हुए वह लगातार मुस्कुरा रही थी। अपनी पहली चुदाई को सोचकर उसका मन उछल रहा था। अपने भाई की प्रेमिका बनकर बहुत आनंदित थी माया।