- 39,967
- 101,351
- 304
Update 100
उधर शाकीना ने भी अपने पैरों को लपेट कर मेरी कमर में ताला सा लगा दिया और अपनी कमर हवा में लहरा कर झड़ने लगी.
जब हम दोनो का जोश शांत हुआ तो 5 मिनट तक ऐसे ही पड़े रहे. मे उसके उपर ही पसर गया, जिसका उसे भान ही नही हुआ.
फिर मे उसके उपर से उठा तो उसने अपनी आँखें खोली और मेरे गाल को चूम कर बोली - शुक्रिया अशफ़ाक़ साब !!
मैने भी उसके गोरे मुलायम गाल को चूमा और बोला – ये शुक्रिया किस वास्ते..? इसमें तो हम दोनो की खुशी बराबर की थी ना..!
फिर मैने उसे गोद में उठाया और झील के किनारे ले जाकर दोनो फ्रेश हुए और आकर फिर से बिछावन पर बैठ गये एक दूसरे के आलिंगन में.
अभी तक हम दोनो मदरजात नंगे ही थे, मैने फिर से उसे खींच कर अपनी गोद में लिया और उसके चुचक सहला कर पुछा- तुम खुश तो हो ना मेरी जान ?
वो - बेहद ! क्या इतना भी मज़ा इसी जिंदगी में था, मुझे आज पता लगा.
फिर हम दोनो के हाथ फिर से शरारत पर उतर आए, और जल्दी ही फिर एक बार वासना का तूफान उठाने लगा, जब दोनो बेहद गरम हो गये तो मैने शाकीना को अपने उपर बिठा लिया.
वो धीरे-2 मेरे लंड के उपर अपनी चूत रख कर बैठने लगी,
शुरू-शुरू में थोड़ी तकलीफ़ हुई उसको, लेकिन जल्दी ही उसने पूरा लंड निगल ही लिया और कुछ ही देर में मज़े लेकर उच्छल-2 कर मेरे उपर कूदने लगी.
10 मिनट बाद मैने उसको निहुरा दिया और उसके पीछे से घोड़ी बनाकर उसकी सवारी करने लगा.
शाकीना को आज जन्नत की सैर करते-2 शाम हो गयी, तब तक वो ना जाने कितनी बार पानी निकलवा चुकी थी.
आज वो अपने जिंदगी के परम सुख को प्राप्त करके बड़ी खुश लग रही थी, लेकिन उसकी चाल में थोड़ी लंगड़ाहट थी, जो स्वाभाविक था.
अंधेरा होने से पहले हम घर पहुँच गये.
रहना उसकी चाल देख कर कुछ-2 समझ गयी थी, पर वो भी अपनी छोटी बेहन को लेकर खुश थी.
जब उसने मुझसे पुछा तो मैने हामी भरी, और उसको बोला- तुम्हें तो कोई ऐतराज नही है ना !
वो बोली- नही वल्कि मे तो खुश हूँ कि मेरी प्यारी बेहन भी अब इस सुखद एहसास से रूबरू हो गयी है,
और आज उसे एक ऐसा हमसफ़र मिल गया है, जो औरत की कद्र करना जानता है…!
मेरी आपसे एक इलतज़ा है अशफ़ाक़, मेरी मासूम बेहन का साथ कभी मत छोड़ना, वरना वो बेचारी टूट जाएगी.
इस छोटी सी उमर में इतने मुश्किलात का सामना कर चुकी है वो कि अब शायद और ना झेल सके…
रहना की बातें मेरे जेहन में किसी हथौड़े के वार की तरह पड़ रही थी, मे सोचने लगा, कि अगर इन लोगों को मेरी वास्तविकता पता चली तब क्या होगा…
मुझे अपनी सोचों के भंवर में फँसे हुआ देख कर रहना ने मेरी चुटकी काटी और हस्कर बोली… अब किस सोच में डूबे हैं जनाब चलिए खाना तैयार है, खा लेते हैं…
दूसरे दिन मे रहना को साथ लेकर उसके शौहर की खोज खबर के लिए निकल पड़ा,
अब अपने कुछ राज उन लोगों को बताने में कोई परेशानी नही थी, सो अपने गुप्त अड्डे से बाइक ली और चल पड़े मुज़फ़्फ़राबाद की ओर.
रास्ते में उसने पुछा- अशरफ ! आपने अपना समान यहाँ क्यों छुपा के रखा है..?
तो मैने उसको समझा दिया, कि ये तो तुम लोगों के मिलने से पहले का ही एक महफूज़ जगह देख कर रख दिया था. उसको भी मेरी बात सही लगी.
ये शहर ज्यदा दूर नही था, सो 2 घंटे में हम वहाँ पहुँच गये.
मैने रहना को समझा दिया कि अगर ज़रूरत के हिसाब से अपने हुश्न के जलवे दिखाने पड़े तो हिचकना मत, वैसे कोई ज़रूरी नही कि वो सब करना ही पड़े.
हम जैल का पता लगा कर वहाँ तक पहुँच गये, यहाँ दूसरी जेलो जैसा कड़ा प्रबंध नही था,
ड्यूटी पर तैनात दो संतरी गप्पें लगा रहे थे, बौंडरी वॉल भी ज़्यादा उँची नही थी.
यही कोई 6 फीट उँची दीवार के उपर तारों की बढ़ से घिरा ये जैल ज़्यादा बड़ा भी नही था.
मैने चारो ओर का निरीक्षण किया, पीछे की साइड में बहुत सारे पेड़ खड़े थे, और थोड़ा सुनसान भी था
उधर शाकीना ने भी अपने पैरों को लपेट कर मेरी कमर में ताला सा लगा दिया और अपनी कमर हवा में लहरा कर झड़ने लगी.
जब हम दोनो का जोश शांत हुआ तो 5 मिनट तक ऐसे ही पड़े रहे. मे उसके उपर ही पसर गया, जिसका उसे भान ही नही हुआ.
फिर मे उसके उपर से उठा तो उसने अपनी आँखें खोली और मेरे गाल को चूम कर बोली - शुक्रिया अशफ़ाक़ साब !!
मैने भी उसके गोरे मुलायम गाल को चूमा और बोला – ये शुक्रिया किस वास्ते..? इसमें तो हम दोनो की खुशी बराबर की थी ना..!
फिर मैने उसे गोद में उठाया और झील के किनारे ले जाकर दोनो फ्रेश हुए और आकर फिर से बिछावन पर बैठ गये एक दूसरे के आलिंगन में.
अभी तक हम दोनो मदरजात नंगे ही थे, मैने फिर से उसे खींच कर अपनी गोद में लिया और उसके चुचक सहला कर पुछा- तुम खुश तो हो ना मेरी जान ?
वो - बेहद ! क्या इतना भी मज़ा इसी जिंदगी में था, मुझे आज पता लगा.
फिर हम दोनो के हाथ फिर से शरारत पर उतर आए, और जल्दी ही फिर एक बार वासना का तूफान उठाने लगा, जब दोनो बेहद गरम हो गये तो मैने शाकीना को अपने उपर बिठा लिया.
वो धीरे-2 मेरे लंड के उपर अपनी चूत रख कर बैठने लगी,
शुरू-शुरू में थोड़ी तकलीफ़ हुई उसको, लेकिन जल्दी ही उसने पूरा लंड निगल ही लिया और कुछ ही देर में मज़े लेकर उच्छल-2 कर मेरे उपर कूदने लगी.
10 मिनट बाद मैने उसको निहुरा दिया और उसके पीछे से घोड़ी बनाकर उसकी सवारी करने लगा.
शाकीना को आज जन्नत की सैर करते-2 शाम हो गयी, तब तक वो ना जाने कितनी बार पानी निकलवा चुकी थी.
आज वो अपने जिंदगी के परम सुख को प्राप्त करके बड़ी खुश लग रही थी, लेकिन उसकी चाल में थोड़ी लंगड़ाहट थी, जो स्वाभाविक था.
अंधेरा होने से पहले हम घर पहुँच गये.
रहना उसकी चाल देख कर कुछ-2 समझ गयी थी, पर वो भी अपनी छोटी बेहन को लेकर खुश थी.
जब उसने मुझसे पुछा तो मैने हामी भरी, और उसको बोला- तुम्हें तो कोई ऐतराज नही है ना !
वो बोली- नही वल्कि मे तो खुश हूँ कि मेरी प्यारी बेहन भी अब इस सुखद एहसास से रूबरू हो गयी है,
और आज उसे एक ऐसा हमसफ़र मिल गया है, जो औरत की कद्र करना जानता है…!
मेरी आपसे एक इलतज़ा है अशफ़ाक़, मेरी मासूम बेहन का साथ कभी मत छोड़ना, वरना वो बेचारी टूट जाएगी.
इस छोटी सी उमर में इतने मुश्किलात का सामना कर चुकी है वो कि अब शायद और ना झेल सके…
रहना की बातें मेरे जेहन में किसी हथौड़े के वार की तरह पड़ रही थी, मे सोचने लगा, कि अगर इन लोगों को मेरी वास्तविकता पता चली तब क्या होगा…
मुझे अपनी सोचों के भंवर में फँसे हुआ देख कर रहना ने मेरी चुटकी काटी और हस्कर बोली… अब किस सोच में डूबे हैं जनाब चलिए खाना तैयार है, खा लेते हैं…
दूसरे दिन मे रहना को साथ लेकर उसके शौहर की खोज खबर के लिए निकल पड़ा,
अब अपने कुछ राज उन लोगों को बताने में कोई परेशानी नही थी, सो अपने गुप्त अड्डे से बाइक ली और चल पड़े मुज़फ़्फ़राबाद की ओर.
रास्ते में उसने पुछा- अशरफ ! आपने अपना समान यहाँ क्यों छुपा के रखा है..?
तो मैने उसको समझा दिया, कि ये तो तुम लोगों के मिलने से पहले का ही एक महफूज़ जगह देख कर रख दिया था. उसको भी मेरी बात सही लगी.
ये शहर ज्यदा दूर नही था, सो 2 घंटे में हम वहाँ पहुँच गये.
मैने रहना को समझा दिया कि अगर ज़रूरत के हिसाब से अपने हुश्न के जलवे दिखाने पड़े तो हिचकना मत, वैसे कोई ज़रूरी नही कि वो सब करना ही पड़े.
हम जैल का पता लगा कर वहाँ तक पहुँच गये, यहाँ दूसरी जेलो जैसा कड़ा प्रबंध नही था,
ड्यूटी पर तैनात दो संतरी गप्पें लगा रहे थे, बौंडरी वॉल भी ज़्यादा उँची नही थी.
यही कोई 6 फीट उँची दीवार के उपर तारों की बढ़ से घिरा ये जैल ज़्यादा बड़ा भी नही था.
मैने चारो ओर का निरीक्षण किया, पीछे की साइड में बहुत सारे पेड़ खड़े थे, और थोड़ा सुनसान भी था