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Incest My Life @Jindgi Ek Safar Begana ( Action , Romance , Thriller , Adult) (Completed)

This story is...........


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Iron Man

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Update 115

मेरा तीन-चौथाई लंड उसकी चूत की झिल्ली को तोड़ता हुया अंदर घुस गया, मुझे मेरे लंड पर गरम-2 सा महसूस हुआ, जब देखा तो उसकी चूत से खून आकर मेरे लंड को रंग रहा था.

शाकीना ने उसके होठ पूरी तरह जकड रखे थे, तो दर्द की वजह से वो मुँह ही मुँह में गॉंगो सी आवाज़ें ही आ पा रही थी, उसकी आँखों के कोरे से पानी बहने लगा.

मैं थोड़ा रुक-कर उसके कड़क हो चुके निपल को मुँह में लेकर चूसने लगा, और दूसरे को अंगूठे से दबा कर रगड़ दिया.

कुछ देर बाद उसकी कमर में हलचल हुई, तो मैने हल्के-2 धक्के लगाना शुरू कर दिया.

अब मैने शाकीना को अपने मुँह के सामने खड़ा कर लिया और जीब से उसकी चूत चाटने लगा और साथ-2 धक्के भी लगाता जा रहा था, शा नीचे से अपने मुँह से अनप शनाप बकती जा रही थी और अपनी कमर को भी चला रही थी.

फिर मैने एक फाइनल शॉट मार कर पूरा लंड उसकी कोरी करारी चूत में ठूंस दिया.
आह्ह्ह्ह…अम्मिईिइ…हाईए…अममाआ…रीइ…मररर.. गाइिईई…

लेकिन कुछ ही धक्कों में वो फिर से कमर उचका-2 कर चुदाई का मज़ा लेने लगी, इधर मेरे सामने खड़ी शाकीना अपनी चूत को मेरे मुँह पर रगड़ रही थी, मज़े में हम तीनों ही सराबोर थे.

10 मिनट की चुदाई के बाद आईशा की चूत पानी छोड़ने लगी और वो हाए-2 करती हुई झड गयी..

अब हम सोफे से उठकर बेड पर आ गये, शाकीना को मैने पलंग पर घोड़ी बना दिया, और उसकी गान्ड पर थपकी लगा कर पीछे से उसकी रसीली चूत में अपने लंड डाल दिया…

एक बार झड़ी हुई उसकी चूत धीरे-धीरे करके पूरा लंड निगल गयी.

आइशा को अपने बाजू में घुटनो पर खड़ा करके उसके होठों को चूस्ते हुए…मैने अपने धक्के शाकीना की चूत में लगाने शुरू कर दिए..

वो हाईए…अल्लहह….करती हुई चुदने लगी, कुछ ही धक्कों में वो अपनी गान्ड को मेरे लंड पर पटक-पटक कर चुदाई का लुफ्त लेने लगी...

शाकीना की गान्ड जब मेरी जांघों पर पड़ती तो थप-2 करके उसकी गोल-गोल उभरी हुई गान्ड से टकरा रही थी. ऐसा लगता था मानो टेबल पर थाप पड़ रही हो.

इधर आईशा के होठ चूस्ते हुए मैने अपनी दो उंगलियाँ उसकी चूत में पेल दी…

वो अपनी गान्ड मटकाते हुए , मेरी उंगलियों से अपनी चूत को चुदवाने लगी….

हम तीनों को ही बहुत मज़ा आरहा था…चोदते-2 मैने एक तूफ़ानी धक्का लगा दिया जिससे शाकीना बॅलेन्स नही बना सकी और वो औंधे मुँह पलंग पर गिर पड़ी…

मैने उसी पोज़िशन में अपना लंड उसकी चूत में डाले हुए अपना गाढ़ा-गाढ़ा पानी उसकी चूत में भर दिया…

उधर शाकीना भी मेरे वीर्य की गर्मी अपनी चूत की गहराइयों में पाकर भल्भलाकर झड़ने लगी…..

धुआँधार चुदाई के दौर के बाद मे, शाकीना के बगल में लेट कर अपनी साँसों को संयत करने लगा…

अभी दो मिनट भी नही हुए थे, कि आईशा मेरा लॉडा फिर से चूसने लगी… ढीला पड़ा हुआ मेरा शेर उसके मुँह की लज़ीज़, लज़्ज़त भरी गर्मी से फिर से सर उठाने लगा…

और कुछ ही मिनटों में वो फिर से अपनी पुरानी अदाएँ बिखेरने लगा…

आइशा को पलंग पर पटक कर मैने अपना मूसल एक झटके से आईशा की ताजी चुदि चूत में पेल दिया, इतने पवरफुल स्ट्रोक के बाद भी वो पूरा उसकी चूत में नही घुस पाया.

आइशा की एक तेज चीक्ख निकल गयी, लेकिन अब मैने रहम नही किया और एक और धक्का मार कर पूरा लंड उसकी चूत में डाल दिया और धक्का-पेल चुदाई शुरू कर दी.

मेरी ताबड-तोड़ चुदाई से आईशा बिल-बिलाने लगी, लेकिन थोड़ी सी ही देर में उसे भी मज़ा आने लगा, और वो भी गान्ड उच्छाल-उच्छालकर चुदने लगी.

20-25 मिनट की चुदाई से वो दो बार झड गयी, फिर अंत में मैने भी उसकी सुखी खेती की अपनी तेज पिचकारी से सिंचाई कर दी….

उसकी पैर की एडीया मेरी गान्ड के इर्द-गिर्द कस गयी और मुझे उसने उपर की ओर ठेल दिया.

मे दो-दो चुतो की गर्मी निकालते-2 पस्त हो गया था, सो आईशा के उपर ही पड़ा रह गया अपने लंड को उसकी चूत में डाले ही.

जब 5 मिनट के बाद मैने अपना लंड बाहर निकाला तो ढेर सारा रॉ मेटीरियल भलल-2 करके उसकी चूत ने फेंक दिया, और रसते-2 उसकी गान्ड से होते हुए पलंग की चादर को गीला करने लगा.

हम तीनो ही बहुत देर तक एक दूसरे ले लिपटे पड़े रहे. आधे घंटे के बाद उठे, फिर साथ में ही बाथरूम में जाकर नहाए एक दूसरे को साफ कर कर के.

तब तक हमारे कपड़े कुछ पहनने लायक हो चुके थे, सो कपड़े पहने और दूसरे टीम मेंबर को फोन लगाया.

नीचे जाकर एक साथ बैठ कर खाना खाया, अकरम को छोड़ कर वाकी सभी खुश दिख रहे थे, मैने आईशा के कान में बोला, कि अब तो तुम उसको घास डाल सकती हो, देखो वो अकेला ही बेचारा दुखी सा बैठा दिख रहा है.

कुछ देर तो वो आना-कानी करती रही लेकिन कुछ सोच कर उसने हामी भर दी.

खाना खाने के बाद मैने अकरम और आईशा को एक रूम में भेज दिया और
शाकीना मेरे साथ आ गयी. सोने से पहले एक बार और मैने शाकीना की चुदाई की और फिर सो गये…..!

दूसरी सुबह रूम सर्विस चाइ के साथ अख़बार दे गया था, मैने अख़बार शाकीना की ओर बढ़ा दिया वो उसे पढ़ने लगी, आज की हेडलाइन ही फ़ौजियों की किल्लिंग से थी, जिसमें फोटो के साथ-साथ बड़ी सी न्यूज़ दी गयी थी.

दूसरे कॉलम में उसका पोस्टमार्टम किया था कि ये कॉन और क्यों करना चाहता है ?

न्यूज़ के हिसाब से फौज की कारगुजारियाँ दहशतगर्दों के साथ मिलकर जो पीओके में चल रही हैं, उससे अवाम में नाराज़गी बढ़ती जा रही है.

जो मेरा मकसद था वो शुरू हो चुका था, अब देखना था कि आनेवाले समय में अवाम का रुख़ क्या होता है.

अख़बार ने तो यहाँ तक लिख दिया था, कि अगर हालात नही सुधरे तो हो सकता है कि अवाम में बग़ावत के सुर तेज होने लगें.

लेकिन ये किसने किया है, ऐसा कोई सुराग अभी तक नही मिला है, फौज पागल कुत्तों की तरह उन लोगों को ढूँढ रही है, उम्मीद जताई गयी थी, कि वो जल्दी ही गिरफ़्त में होंगे.

मे न्यूज़ सुनकर मन ही मन मुस्करा उठा…!

हम और आगे बढ़ना चाहते थे, लेकिन ये वारदात होने के बाद पूरे इलाक़े में फ़ौजी गतिविधिया तेज होने के चान्स बढ़ गये थे, सो अब लौटने का ही फ़ैसला लिया.

ब्रेकफास्ट ले कर हम लोग वहाँ से निकल पड़े और अपने घर की ओर लौट लिए.

लेकिन लौटते वक़्त हमने पहले वाला रास्ता नही लिया और थोड़ा घूम कर और उत्तरी साइड को निकले जो हमें अपने घर तक पहुँचने में 50-60 केयेम ज़्यादा लगने वाला था.

आज मौसम खुला हुआ था, कहीं-2 बदली आ जाती थी और अपनी छाया बिखेर कर चली जाती.

वातावरण में हल्की उमस पैदा हो गयी थी…
 
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Update 116

अभी हम लगभग 1 घंटे का ही सफ़र तय कर पाए थे, इस समय एक घनी आबादी वाली बस्ती के पास से गुजर रहे थे कि तभी कुछ गोलियों की आवाज़ हमारे कानों में पड़ी.

हमने अपनी बाइक रोक दी और आवाज़ों का अनुमान लगाने लगे.

फिर बहुत देर तक कोई आवाज़ सुनाई नही दी.

कुछ देर हम लोग यूँही खड़े रहे लेकिन फिर भी कुछ सुनाई नही दिया,

अभी हम आगे बढ़ने की सोच ही रहे थे कि कुछ लोगों की चीख पुकार और भागते कदमों की आवाज़ें जो अब हमारी तरफ ही बढ़ती चली आ रही थी कानों में पड़ी.

हमने फ़ौरन अपनी बाइक्स मेन रास्ते से हटाकर घरों की ओट में खड़ी कर दी, और अपने चेहरों को कपड़ों से ढक लिया, हथियारों पर पकड़ अपने आप ही मजबूत हो गयी, और घरों की आड़ लेकर आने वालों का इंतेज़ार करने लगे.

कुछ ही लम्हे बीते होंगे, की 30-40 लोग हमारी ओर बेतहाशा भागते हुए आरहे थे, जिनमें ज़्यादा तार युवतियाँ और कुछ युवक और बच्चे थे.

उनके पीछे एक ओपन टेंपो ट्रॅक्स जीप जिसमें 8 लोग एके-47 लिए जिनका रुख़ इस समय आसमान की तरफ था, बदन पर भारी कपड़े का पठानी सूट और मुँह कपड़ों से ढका हुआ था,

वो जीप के पिछले हिस्से में खड़े थे और ड्राइवर समेत 3 लोग अगले हिस्से में बैठे थे उसी तरह के लिबास में.

ड्राइवर के अलावा उन दोनो के हाथ में भी ऑटोमॅटिक गन थी.

जीप ने स्पीड बढ़ा कर लोगों को रौंदने की कोशिश की लेकिन ज़्यादातर लोग अगल-बगल को बचने लगे, लेकिन एक-दो बच्चों को फिर भी उसने रौंद दिया.

साइड में बचने वाली एक युवती को आगे बैठे हुए आतंकी ने अपनी बाजू की गिरफ़्त में ले लिया और उसको चलती जीप में उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया.

वो बेचारी रहम की भीख माँग रही थी जो उन इंसानियत के दुश्मनों के पास देने को नही थी.

अचानक एक गोली हवा में चली और एक भयानक आवाज़ उनमें से एक दहशतगर्द के मुँह से निकली.

सब लोग रुक जाओ वरना सबको भून दिया जाएगा, वो बेचारे सभी लोग एक साथ डर के मारे एक जगह खड़े हो गये.

वो 10 के 10 आतंकी जीप से नीचे आए और उन सभी को घेर कर खड़े हो गये.

वही आवाज़ फिर गूँजी- बताओ तुम में से किसी ने कल हुए फ़ौजिओं के क़त्ले आम को देखा है..?

चारों तरफ सन्नाटा पसर गया, कहीं से कोई आवाज़ नही आई.

जब किसी ने उसकी बात का जबाब नही दिया तो उसकी राइफल से एक गोली निकली और भीड़ में खड़े एक आदमी का सीना चीरती हुई निकल गयी.

उस आदमी की लाश देख कर सभी के चेहरे पीले पड़ गये, वो खड़े-2 थर-2 काँप रहे थे.

उनमें से हिम्मत जुटा कर एक आदमी बोला - मई-बाप हम में से किसी ने ये वाकीया नही देखा. हमें मुआफ़ कीजिए.

वो आतंकी जो शायद इस दल का लीडर था, झुंझल कर बोला- ऐसा कैसे हो सकता है, कि कोई इतना बड़ा कांड करके चला गया और आस-पास दूर-2 तक किसी को कुछ पता नही, सारा इलाक़ा कुछ भी बताने को राज़ी नही है.

उस युवती का हाथ अभी भी वो मजबूती से पकड़े हुए था, फिर अपने साथियों से बोला- चलो कहीं दूसरी बस्ती में पता करते हैं और इनमें से एक-2 अच्छे से माल को उठा लो.

कुछ तो यहाँ आने का फ़ायदा हो, कहीं जंगल में ले जाकर मंगल करके छोड़ देंगे सालियों को.

और खुद उस युवती को घसीटता हुआ फिर से जीप की ओर ले जाने लगा.

उसके साथी तो शायद इसी इंतेज़ार में थे, सुनते ही पहले से सुंदर सी लड़कियों पर नज़रें गढ़ाए हुए थे, फ़ौरन उन्हें उठा लिया और जीप में भूसे की तरह पटक दिया.

वो सभी बेचारी रोती बिलखती रही, दुआ करती रही कि कोई आके बचाए उन्हें. लेकिन ऐसा कॉन था उनके बीच जो उन्हें बचा पता इन दरिंदों से.

उन 10 लड़कियों को अपने पैरों के नीचे दबाए वो लोग जीप लेकर वहाँ से निकल गये, और छोड़ गये गहन सन्नाटा जो वहाँ के बचे-खुचे लोगों के चेहरों पर व्याप्त था.

हम खुले तौर पर अवाम की नज़रों में नही आना चाहते थे, सो उन्हें जाते हुए देखते रहे और जब वो कुछ आगे निकल गये, हमने भी अपनी-2 बाइक निकली और उनके पीछे लग लिए.

कुछ दूर चल कर वो टेंपो ट्रॅक्स सड़क छोड़ कर कच्चे रास्ते पर आ गयी और घने जंगलों की तरफ बढ़ने लगी.

जंगल में थोड़ा चलकर ही उन्होने गाड़ी रोक दी और झाड़ियों के बीच एक छोटे से मैदान में उन लड़कियों को खींच कर ले गये.

वो लड़कियाँ बेजार आँखों से पानी बहाए जा रही थी, लेकिन उन दरिंदों पर उनके आँसुओं का कोई असर नही था,

वो सबके सब उनके कपड़ों को नोंचने में लग गये, अपनी-2 गन उन्होने जीप में ही छोड़ दी थी.

अभी वो उनके कपड़े उतार ही रहे थे कि हवा में सनसनाती हुई एक गोली उनके लीडर की कनपटी में लगी और उसकी खोपड़ी को खोलती हुई निकल गयी.

सेकेंड के सौवे हिस्से में ही उसकी आत्मा उसके शरीर को छोड़ कर 72 हूरों के साथ मटरगस्ति करने चली गयी.

वाकी बचे 10 के 10 आतंकी सकते में रह गये, और भौंचक्के से इधर-उधर को देखने लगे, लेकिन उन्हें कोई नज़र नही आया.

अभी वो सदमे से निकल कर जीप की ओर बढ़ने ही वाले थे अपनी गनों को लेने के लिए, कि तभी दो गोलियाँ और चली और जो दो लोग सबसे आगे थे उन दोनो के सीने चीरती हुई निकल गयी.

वाकी के बचे दहशतगर्द वही के वही जमे रह गये मानो उन्हें साँप सूंघ गया हो.

अपने तीन साथियों के मुर्दा शरीर देख कर उनकी रूह फ़ना हो चुकी थी, वो मौत को अपने सामने देख कर थर-2 काँप रहे थे.

लाचार लोगों में मौत बाँटने वाले दरिंदों की आज अपनी मौत को सामने देख कर गान्ड फट के हाथ में आ गई.

हिम्मत करके उनमें तीन आतकियों ने जीप की तरफ जंप लगा दी, लेकिन उसमें से गन नही उठा सके,

जीप की आड़ लिए वो हमारी पोज़िशन को भाँपने की कोशिश कर रहे थे, जो अब तक बदलकर तीन दिशाओ में पहुँच चुके थे.

बदनसीबी से उनमें से दो मेरी और मेरे साथ बैठी शाकीना की ओर ही थे उनकी पीठ हमारे निशाने पर थी,

वो जीप के सहारे-2 आगे बढ़ कर गन उठाने ही वाले थे कि हम दोनो की गानों से एक-एक गोली निकली और उन दोनो की रीढ़ को चीरती हुई निकल गयी.

वो दोनो चीख मारते हुए वहीं ढेर हो गये.

अपने साथियों का हश्र देख कर उस तीसरे बंदे की हिम्मत जबाब दे गयी जो कि रहमत के साथ रेहाना और आईशा की तरफ था.

उसने सर उठाकर अपने दोनो साथियों की स्थिति का जायज़ा लेना चाहा कि तभी रेहाना की गन ने एक गोली उगल दी जिसने उसकी खोपड़ी को पूरी तरह खोल दिया.

अब वाकी बचे 5 आतंकी खड़े-2 अपने पाजामों को गीला करने के अलावा और कुछ नही कर सके….!

मे और शाकीना अपनी जगह से निकल कर बाहर आ गये, मुँह हमारे अभी भी कपड़ों से ढके हुए थे.

वो लड़कियाँ अब तक अपने-2 कपड़े दुरुस्त कर चुकी थी, कुछ के कपड़े थोड़े बहुत कहीं-2 से फट भी गये थे.

मैने उन पाँचों आतंकियों को अपने-2 कपड़े उतारने को कहा, पहले तो वो ना-नुकर करते रहे, लेकिन जैसे ही मैने गन उनकी ओर की वो फटा फट अपने-2 कपड़े उतारने में जुट गये.

अपने-अपने अंडरवेर को छोड़ वो नंगे खड़े थे, मैने अपनी गन से इशारा करते हुए कहा – इन्हें कॉन उतारेगा..?

मेरी बात सुनकर उन आतंकियों के साथ-साथ मेरे सभी साथी भी चोंक कर मेरी ओर देखने लगे…

मैने सर्द लहजे में फिर से कहा – उतारो इन्हें भी वरना समय से पहले मारे जाओगे..

पाँचों ने तुरंत अपने अंडरवेर भी नीचे खिसका दिए…
 
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Update 117

मैने उन लड़कियों को अपने पास आने का इशारा किया तो वो सब बेखौफ़ हमारे पास चली आईं, क्योंकि उन्हें यकीन हो गया था, कि हम उनको बचाने वाले मसीहा हैं और हमसे उन्हें कोई ख़तरा नही होने वाला.

जैसे ही वो पाँचों मादरजात नंगे हुए मैने अपना खजर निकाल कर एक लड़की की तरफ बढ़ाया और उसको उनमें से एक का लिंग काटने को कहा.

वो लड़की डर कर पीछे हट गयी,

शाकीना ने आगे बढ़ कर अपना खंजर निकाला और एक आदमी का लिंग हाथ से पकड़ कर उड़ा दिया.

वो बुरी तरह चीख मार कर ज़मीन पर तड़पने लगा.

मे - क्यों हरामज़ादे, पता चला दर्द किसे कहते हैं..? दूसरों को दर्द बाँटते-2 ये भूल गये कि यही दर्द तुम्हें भी झेलना पड़ सकता है.

फिर शाकीना घायल शेरनी की तरह बिफर कर उन लड़कियों पर गुर्राई.

अपने डर को कब तक अपने अंदर पनाह देती रहोगी तुम लोग..?

सोच लो कि तुम भी किसी से कम नही हो, निकाल फेंको अपने अंदर के डर को, ये लो खंजर और उड़ा दो इन हरामज़ादों के अंगों को जो तुम्हें खराब करने का मंसूबा पाले बैठे थे.

शाकीना की बात का उनपर तुरंत असर हुआ और उनमें से दो लड़कियाँ आगे आई, और उन्होने मेरा और शाकीना का खंजर ले लिया.

जिस तरह से शाकीना ने उसका लिंग काटा था, ठीक उसी तरह उन्होने भी उनमें से दो के लिंग काट डाले.

वो भी चीखते हुए तड़पने लगे.

फिर तो उन सभी लड़कियों में हिम्मत आ गयी और उनमें लिंग काटने की जैसे होड़ सी लग गयी.

उन तीनो के ही नही, जो मर चुके थे उनके भी लिंग उन लड़कियों ने काट डाले.

ये एक मेसेज था उन दरिंदों और उनको पनाह देने वाले नामर्दों के लिए, की औरतों पर अत्याचार का जबाब ऐसे भी दिया जाएगा.

फिर बचे-खुचे आतंकियों को भी शूट करके हमने उन लड़कियों को उनके घर भेज दिया, ज़्यादा दूर नही लाए थे वो लोग सो वो सब पैदल ही निकल पड़ी.

उनके चले जाने के बाद हमने उनके सारे हथियार जीप में डाले और उसकी नंबर प्लेट खरोंच कर ऐसी कर दी जो सीधे तौर पर नंबर पढ़े ना जा सकें.

तीनों बाइक भी हमने जीप में डाली और उसको ले कर चल दिए अपने घर की तरफ….!
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एसीपी ट्रिशा शर्मा : उनके पति को गये हुए 1 साल से भी ज़्यादा वक़्त हो चुका था, तबसे वो ऑफीस और घर दोनो को अच्छे से संभाल रही थी.

नीरा ने इसमें उनका भरपूर साथ दिया था, वो भी अब एक बेटे की माँ बन चुकी थी.

दोनो बच्चे अब बड़े हो रहे थे, और स्कूल जाने लगे थे, पढ़ने में दोनो ही एक से बढ़ कर एक निकले.

जिस बच्चे को भ्रूण में ही ख़तम करने की सलाह दी जा रही थी, वो तो अपनी क्लास में हर बार टॉप पर आता था जो अब तक केजी और 1स्ट स्ट्ड. को पार कर चुका था, बड़ा 3र्ड में आ गया था.

भाग्यवश राज्य की बागडोर एक ऐसे जुझारू और कर्मठ लीडर के हाथों में थी जिसने कुछ ही समय में अपने राज्य को देश के सरबोच्च स्थान पर ला खड़ा किया था.

उनके राज्य का नाम देश में ही नही वरण विश्व में उँचा हुआ था.

ज़्यादातर विदेशी कंपनियाँ उनके राज्य में निवेश करने को तत्पर दिखाई देती.

लॉ & ऑर्डर की व्यवस्था अन्य राज्यों की तुलना में देश भर में टॉप पर थी, इनफ्रस्ट्रक्चर के मामले में ये राज्य सबको पीछे छोड़ चुका था,

यही वजह थी कि सभी देसी वीदेसी कोम्पनियाँ यहाँ निवेश करना चाहती थी.

ऐसा नही था कि आतंकवादियों के निशाने पर ये राज्य नही था, बड़ी-2 आतंकी वारदातें हो चुकी थी, बावजूद इसके अब उनके पैर इस राज्य में जम नही पा रहे थे.

कारण था पोलीस और प्रशासन का चौन्कन्ना रहना.

दुश्मन मुल्क की ज़्यादातर समुद्रि सीमा इसी राज्य से लगी थी, फिर भी वो कई बार की नाकाम कोशिशों के बाद भी घुस नही सके, कई को तो अंजाम तक पहुँचा दिया था.

समय तेज़ी से आगे बढ़ रहा था, कभी-2 अरुण की तरफ से ही फोन आता था जिससे पति-पत्नी अपने दिलों को तसल्ली दे लेते थे, बच्चों को तो पता भी नही था, कि उनके प्यारे पापा हैं भी या नही.

जब दूसरे बच्चों के मम्मी-दादी को एक साथ देखते थे, तो पुछ लेते अपने पापा के बारे में,

ट्रिशा कोई ना कोई बहाना बना कर उन्हें चुप करा देती, लेकिन अपने खुद के अंतर्मन को चुप करना उसे कभी-2 असहनीय हो जाता था.

लेकिन वो भी तो एक सुपर कॉप थी देश की, जो अपनी मजबूरियों को भली भाँति समझती थी.

कोई और आम महिला होती तो शायद अब तक टूट कर बिखर चुकी होती या फिर कुछ ऐसा कर बैठती जो एक सभी महिला को नही करना चाहिए.

ऐसा नही था कि लोगों की गंदी नज़र से वो अछुति थी, गाहे बगाहे उसके आस-पास के लोग कॉमेंट पास करते रहते,

लेकिन वो उन्हें अनदेखा कर जाती. पद का रुतवा उसको इन सबमें काफ़ी मददगार साबित होता था.

उधर मे (अरुण) ने दुश्मन मुल्क में पीओके के अंदर आतंकवादियों और फ़ौजी हुकूमत के खिलाफ जंग छेड़ रखी थी,

कितने ही आतंकियों को उनके अंजाम तक पहुँचा चुका था, कितने ही फ़ौजी हलाक हो चुके थे उसके और उसके साथियों द्वारा.

धीरे-धीरे अब मैने अपनी एक पूरी 25 लोगों की टीम खड़ी कर दी थी, जो मेरे एक इशारे पर मर खपने को तैयार थे,

कुछ छोटी टेंपो टाइप गाड़ियाँ और हथियार जो हमने फ़ौजियों और आतंकवादियों को मार कर लूटे थे.

ये सब वही लोग थे जो फ़ौजी हुकूमत और दहशतगर्दों के सताए हुए थे.

पाकिस्तान की फ़ौजी हुकूमत पूरा ज़ोर लगाने पर भी इनका कोई सुराग नही निकाल पाई थी,

गोरिल्ला नीति के तहत ये दुश्मन पर टूट पड़ते और उन्हें उनके अंजाम तक पहुँचा कर ही दम लेते.

चूँकि हमारे हमले अपने ठिकाने से कोसों दूर ही होते थे, जिस कारण से किसी को गुमान ही नही होता कि वारदातों के पीछे हम लोग भी हो सकते हैं,

और वैसे भी हमारे आस-पास के इलाक़े के लोग आँख बंद करके हमारा साथ देते थे.

बॅक-अप के तौर पर अब हमने अपना एक ठिकाना इस्लामाबाद में भी खड़ा कर लिया था, जिसमें भारत के राजदूत की मदद ली गयी थी जगह और इनफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में.

ज़रूरत पड़ने पर हम रातों रात वहाँ शिफ्ट हो सकते थे. जिसकी भनक मेरे अलावा और किसी को नही थी.

लेकिन ये भी सही है कि हर घर में एक विभीषण ज़रूर होता है…!
 
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Update 118

हमारे यहाँ भी एक विभीषण था, जिसने हमारे बारे में एक फ़ौजी कॅंप में सारी इन्फर्मेशन दे दी….!

हमारी बस्ती से कोई 10 किमी पर एक दूसरी बस्ती थी, वहाँ के भी कुछ युवक हमारे ग्रूप में शामिल हो गये थे.

इनमें से ही एक जमाल नाम का 35-36 साल का आदमी जो कि शादी शुदा और 3-4 बच्चों का बाप था.

दरअसल वो दोहरे चरित्र का व्यक्ति था, अपने स्वार्थ के लिए वो किसी की भी जान का सौदा कर सकता था. ये बात उसके गाँव के दूसरे युवकों ने बताई भी थी,

लेकिन जब हमने उस गाँव के लोगों को ऐसी ही एक मुशिबत से बचाया था तो उनमें वो भी शामिल था और हुकूमत का सताया जानकर सबके साथ-2 वो भी हमारे ग्रूप में शामिल होने आ गया.

मे उसके चरित्र को समझ तो गया था, इसलिए मैने उस पर नज़र रखने के लिए उसी की बस्ती के कुछ लोगों को लगा दिया था जो आमतौर से हमारे ग्रूप में शामिल तो नही थे लेकिन मेरी बात का भरोसा करते थे.

अभी उस बस्ती से आए लोगों की ट्रैनिंग चल ही रही थी, एक दिन मुझे खबर मिली कि जमील फ़ौजी कॅंप में आते-जाते देखा गया है, साथ में उसकी बीबी भी थी.

दरअसल उसकी बीबी एक गस्ति थी जो कुछ फ़ौजियों की हवस मिटाने खुद और दूसरी लड़कियों को फँसा कर ले जाती थी, इसी से उसका घर चलता था.

फ़ौजियों ने उसी के साथ मिलकर ये जाल बिच्छाया था हम तक पहुँचने के लिए.

जब सारी बात साफ हुई तो मुझे लगा कि अब यहाँ ज़्यादा देर रुकना ख़तरे से खाली नही है, मेरा तो कुछ नही कैसे भी करके निकल सकता था,

लेकिन मेरे भरोसे इतने लोग अपनी जान की बाज़ी लगाकर साथ दे रहे थे उनको महफूज़ करना अब मेरी ज़िम्मेदारी थी.

मेरा अपना भी नेटवर्क कुछ कम नही था, जबसे जमील फ़ौजी कॅंप से मिलकर आया था, तभी से मैने अपने नेटवर्क को और सक्रिय कर दिया.

मुझे पता चला कि यहाँ के कॅंप में फौज की तादात कम ही है, तो उन्होने बाहर से और मिलिटरी बुलवाई है, हो सकता है रात के किसी पहर वो हमें घेरने की प्लॅनिंग कर सकते हैं.

मैने दोपहर बाद ही सब लोगों को इकट्ठा किया जिसमें जमील भी शामिल था और कहा- आज हम सभी 15 सीनियर मेंबर्ज़ को जिनमें हम 8 पुराने थे,

और 7 जो कि ऑलरेडी ट्रेंड हो चुके थे और हमारे साथ एक-दो बार मिसन में शामिल भी हो चुके थे.
इतने लोगों को अभी एक मिसन पर निकलना है, कल दोपहर तक ही लौटेंगे, तो वाकी के सब नये लोग ग्राउंड में जाके अपनी एक्सर्साइज़ करो, ट्रैनिंग कल दी जाएगी.

इतना बोलकर हमने मीटिंग ख़तम की और सभी नये मेंबर्ज़ को ग्राउंड पर भेज दिया, उनमें से एक विश्वसनीय युवक जो परवेज़ का खास दोस्त था, उसको सेक्रटेली बोल दिया कि जैसे ही जमील आप लोगों के पास से चला जाए, तुम सब लोग वापस यहाँ आ जाना.

जमील को तो कैसे भी करके जल्दी से जल्दी ये खबर कॅंप तक पहुँचानी थी, कि आज रात हम लोग नही मिलने वाले हैं, ख़ासकर मे, इसलिए आज की रात हमला करने का कोई फ़ायदा नही है.

वो पट्ठा ग्राउंड तक भी नही गया प्रॅक्टीस के लिए बल्कि हमारे पास से सीधा अपने घर गया और अपनी बीबी को लेकर फ़ौजी कॅंप पहुँच गया.

अब वो लौट कर आनेवाला नही था, तो वो लोग भी वापस हमारे पास आ गये.

मैने सबको पूरी बात बताई और कहा कि अब हमें ये जगह छोड़कर जाना ही पड़ेगा, अगर कोई नही जाना चाहता हो तो वो अभी बता दे.

सबको डर था कि अब उनमें से कोई अकेला रह गया तो फ़ौजी उसको नही छोड़ेंगे.

सो सबने हामी भर दी लेकिन उन सबके मन में कुछ सवाल थे जो वो जानना चाहते थे. आख़िरकार रहमत ने पुछ ही लिया.

भाई लेकिन अब हम लोग जाएँगे कहाँ और इतने सारे लोगों का रहने खाने का इंतेज़ाम कैसे होगा ..?

मे - उसकी आप लोग चिंता मत करो.. मैने सारा इंतेज़ाम कर दिया है, बस आप लोग तैयारी शुरू करो निकलने की.

अमीना - लेकिन बेटा ये घर..? इसका क्या करें..?

मे - इस घर में आपका है ही क्या जो छोड़ने में तकलीफ़ होगी..! कुछ जानवर ही तो हैं, तो उन्हें खुला छोड़ दो, कोई ना कोई तो पकड़ ही लेगा.

अकरम - लेकिन भाई जान हमारे घरवालों को फौज परेशान करेगी तो..?

मे - हां ये बड़ा सवाल है..! वैसे कुल मिलाकर कितने लोग हो जाएँगे सभी परिवारों के साथ..?

रॅंडमली हिसाब किया तो कोई 100 के आस-पास लोग होते हैं सभी बड़े छोटे मिलाकर.

हमारे पास 5 गाड़ियाँ हैं कुछ बाइक्स हैं, हो जाएगा, आप सभी लोग फ़ौरन अपने परिवार वालों को तैयार करो ज़्यादा समान लेने की ज़रूरत नही है बस अपने-2 कपड़े-लत्ते ले लो.

अंधेरा होते ही हमें यहाँ निकलना है, रात भर का सफ़र है.

 
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रेहाना – लेकिन अस्फ़ाक़ भाई जाना कहाँ है, ये तो बता दो…!

मे - भरोसा नही है मुझ पर..?

वो – ऐसा मत कहो आप..! आपके भरोसे ही तो इतने लोग इस आग में कुदे हैं..

मे – तो फिर अभी कोई सवाल नही प्लीज़ ! कुछ चीज़ें समय से पहले जानना ठीक नही होती.

अब सब फटाफट लग जाओ काम पर, समय ज़्यादा नही है हमारे पास.

फिर सब लोग दौड़ लिए अपना-2 इंतेज़ाम करने, और रात 9 बजे तक सब सेट्ल हो गया.

अंधेरा घिरते ही दो टेंपो दूसरी बस्ती भेज दिए, और बिना किसी को हवा लगे वहाँ से लोगों को उठा लिया,

तीन टेंपो और बाइक्स अपनी बस्ती के लोगों से भर गये और देर रात तक निकल लिए हम अपनी नयी मंज़िल की ओर जहाँ उन सबको बसाना ही अब मेरा पहला मकसद था….!

पूरी रात चलने के बाद अब सब लोग एक नये सबेरे का इंतजार कर रहे थे और सोच रहे थे कि ना जाने कल का सूरज उनके लिए क्या लेकर आने वाला है…..!

जो लोग मुझ पर अटूट विश्वास करते थे वो तो लगभग निश्चिंत थे, लेकिन ज़्यादातर के मन में अभी भी उथल-पुथल मची हुई थी भविश्य के बारे में….!

सूरज अपनी रोशनी धरती पर बिखेर चुका था, लेकिन हमारा सफ़र था कि अभी भी ख़तम होने का नाम नही ले रहा था, भीड़ ज़्यादा थी, और रास्ते मसाल्लाह, देर तो लगनी ही थी.

लोग साथ में खाने पीने का समान भी लेकर चले थे सो, सुबह के करीब 9 बजे हम एक जगह पानी का इंतेज़ाम देख कर रुक गये और नाश्ता पानी किया और फिर से चल पड़े.

आख़िरकार दोपहर होते-2 हम अपनी मंज़िल पर पहुँच गये, वहाँ का इंतेज़ाम देख कर लोगों को तसल्ली पहुँची कि चलो एक छत तो नसीब हुई, अब देखते हैं रब्ब आगे क्या-2 खेल दिखाता है इस जिंदगी में….!

शहर से बाहर ये एक छोटी सी टाउनशिप थी, जिसे वहीं के लोकल वाशिंदे रहीम चाचा जो एक बिल्डर थे उनके द्वारा ही बनवाई गयी थी.

रहीम ख़ान 1947 के बँटवारे के बाद अमन की आशा में यहाँ आ गये थे…,

तब उन्हें ये नही मालूम था, कि वो जिस चीज़ को पाने के लिए यहाँ आए थे, वो तो यहाँ के खून-पानी में ही नही है, जो इज़्ज़त उन्हें यहाँ मिलनी चाहिए थी, वो आज तक नही मिली.

आज भी यहाँ की हुकूमत और अवाम हिन्दुस्तान से आए हुए मुसलमानों को मुजाहिर ही समझते हैं.

रहीम चाचा को ये बात ख़टकती थी, इसलिए उनका दिल आज भी पाकिस्तान में रहते हुए हिन्दुस्तान के लिए धड़कता था.

एक तरह से वो पाकिस्तान में रह कर हमारे एजेंट के तौर पर ही काम करते थे.

सभी परिवारों को 2 बीएचके और 3 बीएचके के फ्लॅट में उनके परिवारों के मेम्बरान की संख्या के हिसाब से अलग-2 बसा दिया गया,

शुरू-2 में उन सबको किरायेदार की हैसियत से घर दिए गये इस वादे के साथ कि कुछ दिनों में ही वो घर उनके अपने नाम कर दिए जाएँगे कुछ लीगल फॉरमॅलिटीस के बाद.

महीने के अंदर ही सबको उनके हिसाब से रोज़गार मुन्हैया कराए गये, जैसे किसी को छोटी-मोटी शॉप खुलवाना, किसी को किसी बड़े शॉप पर नौकर रखना, या फिर गॅरेज वग़ैरह में काम पर लगाना.

जिसका जैसा इंटेरेस्ट वैसा काम, रहीम चाचा यहाँ हम सभी के लिए एक फरिस्ते जैसे थे.

इसका डबल फ़ायदा था, एक तो उनको घर चलाने के पैसे मिलने लगे और दूसरा लोगों की शक़ की सुई उनपर नही जाएगी, कि आख़िर ये लोग काम क्या करते हैं.


कुल मिलाकर कुछ ही दिनो में वो सभी लोग बिना डर-भय के पहले से बेहतर जिंदगी बसर करने लगे.

उन सबका विश्वास मेरे उपर पहले से और ज़्यादा बढ़ गया था. वो सब आँख मूंद कर मेरी बात का विश्वास करते थे……..

उधर दूसरी सुबह जब जमील ट्रैनिंग के लिए वहाँ पहुँचा तो उसे कोई भी नही मिला, यहाँ तक कि अमीना के पालतू जानवर भी नही थे, पूरा घर खाली खुला पड़ा था.

फिर जब बस्ती में दूसरे लोगों का पता किया तो वो सब भी नदारद, भागता हुआ अपनी बस्ती में गया तो वो भी सब गायब.

मुँह लटकाए जब अपने घर पहुँचा और अपनी बीवी को ये बात बताई, तो उसकी भी साँस अटकी रह गयी,
अब उनको ये डर सताने लगा कि अगर ये बात फ़ौजियों को पता चल गयी तो वो लोग उन्हें कत्ल कर देंगे.

इसी डर के चलते उन्होने भी वहाँ से निकल भागने में ही अपनी भलाई समझी और बिना किसी को बताए समान बाँध कर बच्चों को लेकर शहर की ओर जाने वाली बस के लिए निकल पड़े.

बस बस्ती के बाहर बने अड्डे पर दिन में गिनती की दो बार ही आती थी.

जमील अपने बच्चों और साजो समान के साथ अड्डे पर बैठा बस का इंतजार कर रहा था, दोपहर ढल रही थी कि तभी वहाँ फौज की एक जीप आकर रुकी.

जमील को वहाँ अपने परिवार और समान के साथ बैठे देख कर उनको कुछ शक़ पैदा हुआ, जब उन्होने उसे अपने पास बुलाकर पुछा तो पहले तो उसने किसी रिस्तेदार के यहाँ जाने का बहाना बनाया,

लेकिन जब ये सब साजो समान के बारे में पुछा तो वो सकपका गया, और दो हाथ लगते ही पट-पटाने लगा और सब सच उगल दिया.

फिर क्या था, धर लिए दोनो मियाँ बीबी साले जीप में बच्चे वहीं बैठे समान के साथ रोते बिलखते रह गये.

मार-मार के साले की चम्डी उधेड़ दी, और उसकी बीवी को एक के बाद एक फ़ौजियों ने उसके सामने इतना चोदा कि उसके सभी छेद सुन्न पड़ गये और चुदते-2 वो बेहोश हो गयी.
 
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Update 120

इतने से ही बस नही की उन्होने , उसे एक कोठे पर बेच दिया, तब जाकर उसे अकल आई कि उसने हमारे साथ गद्दारी करके कितनी बड़ी भूल की थी, पर अब कुछ नही हो सकता था,

जमाल आजकल वो पागलों की तरह सड़कों पर घूमता रहता है, उसके बच्चे भीख माँग कर अपना पेट भरते हैं, बीवी कोठे पर चुद रही है, नित नये लंड से.

ये कोई इकलौता जमील नही था जो फ़ौजी हुकूमत की तानाशाही का शिकार हुआ हो, ऐसे ही ना जाने कितने जमील थे इस देश में जो जुल्मों का शिकार होकर कुरबत की जिंदगी जीने पर मजबूर थे.

खैर ये सब तो इस देश की नियती बन चुकी है, अब चल कर देखते हैं हमारी इंसानियत की दोस्त टीम आजकल क्या कर रही है, जो अब अपना और आकार बढ़ा चुकी है.

मैने ग्रूप की लड़कियों को स्पाई के तौर पर यूज़ करने का सोचा और कैसे भी करके बड़े-2 फ़ौजी अधिकारियों और लीडरन के घरों में काम पर लगवा दिया, जिससे उनकी आक्टिविटी पर नज़र रखी जा सके.

मेरा सबसे बड़ा हथियार हुश्न की मल्लिका शाकीना जो अब पूरी तरह गदरा गयी थी, मेरे साथ रहते-2, हाइट तो उसकी पहले से ही आम लड़कियों की तुलना में ठीक ही थी, लेकिन उसके शरीर के कटाव अब और ज़्यादा सेक्सी हो गये थे.

चेहरे पर लालिमा लिए 34-28-34 का फिगर उपर से 5’6” की हाइट, सुराही दार गर्दन गोरी इतनी की पानी भी गले से नीचे उतरता हुआ महसूस हो.

जब वो हील वाले संडले पहन कर चलती थी तो देखने वाले आहें भरकर अपना लॉडा मसले बिना नही रह पाते थे.

कइयों ने तो राह चलते उसका हाथ ही पकड़ लिया था और उसके साथ ज़ोर जबदस्ती करने की भी कोशिश की,

लेकिन वो कोई आम लड़की तो थी नही, जो हर कोई उसे यूँही आसानी से भोग ले.

जिसने भी उसके साथ इस तरह की हिमाकत करने की कोशिश की, उसको उसने छ्टी का दूध याद दिला दिया.

फिर पलट कर वो कभी उसके सामने आने की भी हिम्मत नही जुटा पाया.

दिलेरी तो मे कई बार उसकी देख ही चुका था, फाइट और शूटिंग में भी हमारे ग्रूप में वाकी सबसे आगे थी.

मेरा निशाना इस मुल्क की सबसे बड़ी ख़ुफ़िया एजेन्सी का चीफ था, जिस मुझे नज़र रखनी थी,

क्योंकि वाकी चाहे कोई कुछ भी करता रहे लेकिन इस देश की सत्ता की छवि उसी के पास थी. सेना और सिस्टम दोनो पर ही उसका नियंत्रण था.

इसी योजना को मद्देनज़र रखते हुए, मे खुद दो महीने से उस पर नज़र रखे हुए था, लेकिन अभी तक कोई सॉलिड प्लान मेरे दिमाग़ में नही आ पा रहा था.

एक तो साला वो खुद ही इतनी टाइट सेक्यूरिटी में रहता था कि बिना उसकी जानकारी के परिंदा भी पर नही मार सकता था, दूसरा उसका शेड्यूल का कुछ पता नही चल रहा था कि वो कब और कहाँ जाने वाला है.

उसकी एक कमज़ोरी मेरे हाथ लग गयी, वो ये कि साला ठर्की नंबर वन था. सुंदर लड़कियाँ, औरतें उसकी कमज़ोरी थी.

अब मुझे इसी बात को मद्देनजर रख कर कोई प्लान तैयार करना होगा…!

और मैने वो प्लान तैयार कर लिया, जिसमें 90 फीसदी चान्स थे उसको जाल में फँसाने के……!!

45-46 साल का उमर खालिद, गोरा चिटा 6’2” हाइट कसरती शरीर, चेहरे पर फ्रेंच कट दाढ़ी, जो लाइट ब्राउन कलर करके रखता था.

बिल्लौरी आँखों वाला शक्ल से ही खुर्राट दिखने वाला उमर खालिद पाकिस्तान की सर्वोत्तम सीक्रॅट एजेन्सी का चीफ था.

अगर रंग रूप से देखा जाए तो खालिद मियाँ पाकिस्तानी तो कतयि नही लगते थे.
वैसे वो थे भी जन्म से केनेडियन, वही पैदा हुए, पले बढ़े, सारी सिक्षा वही से प्राप्त की.

चूँकि पेरेंट्स पाकिस्तानी थे सो लेवेल लग गया और उसी का फ़ायदा उठा कर वो आज इस देश को कंट्रोल कर रहे थे.

नो डाउट हाइ क्वालिफाइड बंदा था ही, और बहुत सालों तक इंटेलिजेन्स सर्वीसज़ में पार्टिसिपेशन रहा था उसका, उसी का परिणाम था कि आज वो इस मुकाम पर पहुँचा था.

गोल्फ और सुंदर लड़कियों का शौकीन खालिद रोज़ शाम को 6 बजे राजधानी में स्थित गोल्फ क्लब में खेलने जाता था, जहाँ शहर के सभी टॉप मोस्ट लोग ही आते थे, फिर चाहे वो किसी भी विभाग या बिज्नीस से रिलेटेड हों.
ट्रैै्ै्ै्ै््ै्
 

Rahul

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wonderfull updates pyare bhai
 
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