नींद आती नहीं तो सुबह तलक
गर्द-ए-महताब का सफ़र देखो
कहाँ है तू कि तिरे इंतिज़ार में ऐ दोस्त
तमाम रात सुलगते हैं दिल के वीराने
रात कितनी गुज़र गई लेकिन
इतनी हिम्मत नहीं कि घर जाएँ
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है
मैं सोते सोते कई बार चौंक चौंक पड़ा
तमाम रात तिरे पहलुओं से आँच आई
तुझ को हर फूल में उर्यां सोते
चाँदनी-रात ने देखा होगा
गर्द-ए-महताब का सफ़र देखो
कहाँ है तू कि तिरे इंतिज़ार में ऐ दोस्त
तमाम रात सुलगते हैं दिल के वीराने
रात कितनी गुज़र गई लेकिन
इतनी हिम्मत नहीं कि घर जाएँ
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है
मैं सोते सोते कई बार चौंक चौंक पड़ा
तमाम रात तिरे पहलुओं से आँच आई
तुझ को हर फूल में उर्यां सोते
चाँदनी-रात ने देखा होगा