कुछ देर ऐसे ही प्यार करते करते सुनीता को याद आता है राजू अकेला डर रहा होगा।
सुनीता- केती है सुनिए ना
रमेश- क्या हुआ सुनीता अच्छा नहीं लग रहा क्या मेरा प्यार करना
सुनीता- नहीं वैसी बात नहीं है, राजू अकेला होगा कमरे में और उसे रात में अकेला डर लगता है।
रमेश- फिर क्या किया जाये
सुनीता- वो कह रहा था आपके रूम में ही बुलाने को
रमेश- ठीक है लेकिन वहा हम प्यार नहीं कर पाएंगे एक दूसरे से।
और आज मैं तुम्हें बहुत प्यार करना चाहता हूँ।
सुनीता- यार तो मेरा भी बहुत कर रहा है लेकिन राजू का क्या किया जाए।
रमेश- एक काम करो ना राजू को यहीं बुला वो मेरा बगल वाले बिस्तर पर सो जाएगा और हम इसी बिस्तर पर रहेंगे।
रमेश का लंड इस समय एकदुम लोहे के लंड की तरह हो गया था।
वो अब सुनीता से एक पल भी दूर नहीं होना चाहता था।
सुनीता का भी बुरा हाल था.
सुनीता- ठीक है माई राजू को यहीं बुला लेती हूं लेकिन उसके सामने और चुप हो जाती है।
रमेश- कुछ नहीं होगा मैं सब संभाल लूंगा तुम टेंशन मत लो।
सुनिता, रamesh की बाहों से अलग होकर बिस्तर से उठती है और धीरे-धीरे कमरे से बाहर निकलकर रaju को बुलाने चली जाती है।
वह सावधानी से raju के कमरे की ओर बढ़ती है। जब वह दरवाजा खोलकर अंदर जाती है, तो देखती है कि raju जाग रहा है। सुनिता धीरे से कहती है, "रaju, तुम भी चलो, रamesh जी के कमरे में। वो वही बुला रहे हैं।"
रaju सहमति में सिर हिलाते हुए कहता है, "ठीक है दीदी, चलो।" फिर दोनों चुपचाप कमरे से बाहर निकलते हैं और ramesh के कमरे की ओर बढ़ जाते हैं।
उधर, ramesh सुनिता का बेसब्री से इंतजार कर रहा होता है। हर पल उसके लिए काटना मुश्किल हो रहा था। जैसे ही सुनिता और raju कमरे में पहुंचते हैं, ramesh के चेहरे पर खुशी झलक उठती है।
रamesh मुस्कुराते हुए कहता है, "आओ, raju, बैठो ना।"
सुनिता और राजू धीरे-धीरे कमरे में दाखिल होते हैं। रamesh, जो बिस्तर पर बैठा था, उन्हें देख मुस्कुरा देता है।
रamesh: "तुम लोग आने में इतनी देर क्यों लगा दी? मैं कब से इंतज़ार कर रहा था।"
सुनिता: "बस राजू को उठाने में थोड़ा समय लग गया। वो गहरी नींद में था।"
राजू: (हंसते हुए) "दीदी मजाक कर रही हैं। मैं तो पहले से जाग रहा था।"
Raju: "आपने बुलाया तो है, लेकिन बताइए अब बात क्या है?"
रamesh: "बस, थोड़ा दिल हल्का करना था। आज दिनभर काम में उलझा रहा और किसी से ढंग से बात भी नहीं कर पाया। सोचा तुम लोग से बात करूं तो मन हल्का होगा।"
राजू: "अरे रamesh जी, आप इतना काम क्यों करते हैं? कभी-कभी आराम भी कर लिया करें।"
रamesh: "काम तो करना ही पड़ता है, राजू। लेकिन सही कह रहे हो, शायद थोड़ा ब्रेक लेना चाहिए।"
सुनिता बीच में टोकते हुए बोलती है,
सुनिता: "आपको ब्रेक लेना चाहिए और अपने लिए भी समय निकालना चाहिए। वरना सेहत खराब हो जाएगी।"
रamesh: (थोड़ा गंभीर होकर) "तुम दोनों की बातें सुनकर लगता है कि मैं सच में खुद पर ध्यान नहीं दे रहा। चलो, अब से थोड़ा वक्त खुद के लिए निकालने की कोशिश करूंगा।"
राजू मुस्कुराते हुए कहता है,
राजू: "यही सही रहेगा। और हां, अगर कभी अकेलापन महसूस हो तो हमें बुला लिया करो। हम हमेशा बात करने के लिए तैयार हैं।"
रamesh: "धन्यवाद, राजू। सच कहूं तो तुम दोनों की दोस्ती और साथ मुझे बहुत सुकून देती है।"
सुनिता मुस्कुराकर कहती है,
सुनिता: "हम तो आपके अपने हैं। आप अकेले महसूस करेंगे, तो हमें अच्छा नहीं लगेगा।"
कमरे में हल्की-हल्की हंसी और बातचीत का माहौल बना रहता है। बाहर रात का सन्नाटा गहरा रहा था, लेकिन उनके बीच की बातचीत से एक सुखद माहौल बन गया था।
रamesh: "राजू, आज तुम दोनों यहीं मेरे कमरे में रुक जाओ। सुबह होते ही चले जाना।"
राजू: (सुनिता की ओर देखते हुए थोड़ा झिझकता है)
रamesh: "क्या हुआ राजू? कोई दिक्कत है?"
राजू: "वो... क्या है न, हम बिना किसी को बताए इतनी रात में आपके पास आ गए हैं। अगर किसी को पता चला तो दीदी को समस्या हो सकती है।"
रamesh: (हंसते हुए) "ठीक है राजू, मैं सुनिता को सुबह होने से पहले वापस भेज दूंगा। और तुम यहीं रुक जाना।"
राजू: "हां, ये ठीक रहेगा।"
रamesh: (मुस्कुराते हुए) "वैसे अगर तुम्हारी दीदी मेरे पास रुक जाएं तो तुम्हें कोई दिक्कत तो नहीं है? मुझे सुनिता से बहुत सारी बातें करनी हैं। तुम उस सामने वाले बिस्तर पर सो जाओ।"
राजू: (थोड़ा हंसकर) "मुझे क्या दिक्कत होगी, अगर दीदी को कोई समस्या न हो तो।"
राजू फिर सुनिता की ओर देखता है और इशारे में पूछता है।
राजू: (आंखों से इशारा करते हुए) "तुम ठीक हो न?"
सुनिता: (हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाकर जवाब देती है) "हां, मैं ठीक हूं।"
रamesh: "अच्छा, अब ज्यादा सोचो मत। तुम दोनों आराम से रहो। वैसे भी रात काफी हो चुकी है। सब कुछ ठीक है।"
राजू, बिस्तर पर जाकर लेट जाता है। रamesh और सुनिता के बीच हल्की-फुल्की बातचीत शुरू हो जाती है।
रamesh: "सुनिता, तुमसे बात किए बिना मन खाली-खाली सा लगता है। आज दिनभर बस तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था।"
सुनिता: (शर्माते हुए) "ऐसी भी क्या बात है, रamesh जी। आप तो काम में व्यस्त रहते हैं।"
रamesh: "काम तो चलता रहेगा, लेकिन तुमसे बात करना मेरे लिए सबसे जरूरी है। तुम्हारे साथ वक्त बिताने से मुझे सुकून मिलता है।"
सुनिता: (हल्की मुस्कान के साथ) "आपकी बातें हमेशा दिल को छू जाती हैं। बस इसी तरह खुश रहिए।"
कमरे में एक हल्की-सी खुशी और अपनापन महसूस हो रहा था। राजू एक तरफ चुपचाप मुस्कुराते हुए उनकी बातों को सुन रहा था और धीरे-धीरे उसकी आंखें झपकने लगीं।
रamesh और सुनिता देखते हैं कि राजू गहरी नींद में सो रहा है। कमरे में सन्नाटा छा जाता है।
रamesh: (धीरे से) "सुनिता, अब तो राजू सो गया है। तुमसे कुछ देर और बातें करना चाहता हूं।"
सुनिता: (मुस्कुराते हुए) "रamesh जी, आप हमेशा इतनी बातें क्यों करते हैं?"
रamesh: "क्योंकि तुम्हारे बिना मन ही नहीं लगता।"
रamesh धीरे-धीरे सुनिता के पास आता है और उसे अपनी बाहों में ले लेता है।
सुनिता: (हल्की हंसी के साथ) "रamesh जी, ये क्या कर रहे हैं? अगर राजू जाग गया तो?"
रamesh: (शरारत भरी मुस्कान के साथ) "राजू इतनी गहरी नींद में है कि उसे कुछ पता भी नहीं चलेगा। और वैसे भी, ये पल सिर्फ हमारा है।"
रamesh सुनिता को अपनी बाहों में लेकर उसे कम्बल के अंदर कर लेता है। दोनों के बीच की नजदीकियां बढ़ने लगती हैं।
सुनिता शरमाते हुए कहती है,
सुनिता: "आप भी न, कभी-कभी बिल्कुल बच्चे बन जाते हैं।"
रamesh: "अगर तुम्हारे साथ बच्चे जैसा बनना है, तो मुझे खुशी होती है। तुम्हारे बिना जिंदगी अधूरी लगती है।"
धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे के करीब आ जाते हैं। उनके बीच प्यार और अपनापन का एहसास गहरा होने लगता है। रamesh, सुनिता के चेहरे को छूते हुए कहता है,
रamesh: "तुम्हारी मुस्कान मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी है। हमेशा ऐसे ही मेरे पास रहो।"
सुनिता: (मुस्कुराकर) "आपके साथ रहकर ही तो मुझे सुकून मिलता है।"
कमरे में हल्की-सी चुप्पी छा जाती है, लेकिन दोनों की आंखों में प्यार की गहराई साफ झलक रही होती है। दोनों एक-दूसरे को चूमने और गले लगाने लगते हैं।
इस बीच, रamesh धीरे से कहता है,
रamesh: "ये रात हमारे लिए खास है, और मैं चाहता हूं कि ये पल कभी खत्म न हो।"
सुनिता भी उसे गले लगाकर अपनी भावनाएं जाहिर करती है।
कमरा एक खूबसूरत एहसास से भर जाता है, जहां केवल उनका प्यार ही महसूस हो रहा था।
रamesh धीरे-धीरे अपनी उंगलियों से सुनिता के होठों को छूता है और कहता है,
रamesh: "कितने मुलायम और प्यारे होठ हैं तुम्हारे, सुनिता। ऐसा लगता है जैसे इन्हें छूकर मेरी सारी थकान मिट गई हो।"
सुनिता शरमा जाती है और हल्की मुस्कान के साथ नजरें झुका लेती है।
सुनिता: (धीरे से) "रamesh जी, आप तो बस हमेशा ऐसी बातें करते हैं।"
रamesh: "मैं सच कह रहा हूं। तुम्हारी हर चीज़ खास है। तुम्हारी मुस्कान, तुम्हारी आंखें, और ये होठ... सबकुछ। तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी अधूरी है।"
सुनिता उसे देखती है और हल्के से कहती है,
सुनिता: "आपकी ये बातें सुनकर दिल को सुकून मिलता है। लेकिन... अगर किसी ने हमें ऐसे देख लिया तो?"
रamesh: (शरारत भरे अंदाज में) "तो मैं कह दूंगा कि मैं अपनी सुनिता को अपना प्यार जता रहा हूं। इसमें छुपाने वाली क्या बात है?"
रamesh फिर धीरे-धीरे सुनिता के चेहरे को अपने हाथों में थाम लेता है और उसकी आंखों में देखते हुए कहता है,
रamesh: "तुम्हारी ये आंखें, जैसे सारी दुनिया की खूबसूरती इनमें समा गई हो। सुनिता, मैं हमेशा तुम्हें ऐसे ही देखता रहना चाहता हूं।"
सुनिता थोड़ी झिझकते हुए, लेकिन मुस्कुराकर कहती है,
सुनिता: "आपका प्यार मेरे लिए सबकुछ है, रamesh जी। बस, यही चाहते हैं कि ये पल कभी खत्म न हो।"
रamesh और सुनिता एक-दूसरे के और करीब आ जाते हैं। रamesh उसकी मांग में बालों को सहलाते हुए धीरे से कहता है,
रamesh: "तुम मेरे लिए सबसे खास हो, सुनिता। और मैं चाहता हूं कि ये पल हमेशा के लिए थम जाए।"
थोड़े देर प्यार करते करते अब रमेश बहुत गरम हो गया था और उसका लंड लोहे के रांड की तरह टाइट हो गया था और दर्द करने लगा था।
रमेश ने एक झटके में सुनीता के सलवार का नाड़ा खोल दिया उसकी सलवार नीचे सरका दी, सुनीता ने पैंटी नहीं पहनी थी। इसलिए उसकी गांड रमेश के सामने नंगी थी।
बहुत सुंदर गांड है आपकी सुनीता।
सुनीता- धीरे बोलिए कहि राजू जाग ना जाए.
रमेश- सुन लेने दो आपकी टैरिफ ही तो कर रहा हूँ.
रमेश ने सुनीता के बूर में उंगली डाल दी।
आअहह क्या डाल दिया आपने, सुनीता कर उठी.
उंगली डाली है बस अभी, ताकि अपने लंड के जगह बना लू। ताकी तुमको चुदवाने में दर्द कम हो.
रमेश ने अपनी ज़िप खोली और अपना मोटा लंड को सुनीता के नंगी गांड पर रगड़ने लगा।
सुनीता को अपनी गांड पर बहुत भारी भरकम चीज़ महसूस हो रही थी। उससे रहा नहीं गया और पीछे मुड़ के रमेश के लंड पर नज़र डाली।
क्या बाप रे आपका बहुत बड़ा है,
रमेश ने पूछा, पसंद आया क्या।
मैंने आज तक नहीं देखा इतना बड़ा, आपका सच में बहुत बड़ा है।
मुझे डर लग रहा है।
रमेश ने कहा, डरो मत सुनीता मैं बहुत आराम से करुंगा।
सुनीता ने कहा मुझे बहुत दर्द होगा और अगर मैं बरदास नहीं कर पाऊंगी तो चिल्ला दूंगी। और राजू कहीं उठ गया तो।
रमेश- उठ गया तो अच्छी बात है ना वो भी सीख लेगा प्यार कैसे किया जाता है। रमेश थोड़ा शरारती अंदाज़ में बोला।
सुनीता- मुस्कुरा के बोली आप भी ना
फ़िर रमेश सुनीता के हाथों को अपने लंड पर रख दिया,
सुनीता ने शर्माते हुए लंड को देखा और धीरे धीरे प्यार से लंड को सहलाने लगी. सुनीता का हाथ लगते ही लंड अपने आकार में आने लगे. लंड को अकड़ता देख कर सुनीता शर्मा गयी, पर लंड को सहलाती रही.
इस हरकत से सुनीता के शरीर में कंपन शुरू हो गयी. आज उसके लिए सब कुछ नया नया हो रहा था. उसका रोमांच बढ़ रहा था.
फिर मैंने उसको उठाया और अपनी कमर पर ले लिया. उसकी टांगें मेरी कमर से कस गयी थीं. मैंने अपने लंड पर थूक लगाकर उसकी चूत पर सैट किया और हल्के से उसकी चुत में लंड ठेल दिया.
मेरा आधा लंड अन्दर घुस चुका था. वो ‘आह मर गई ..’ कह कर तड़फ उठी.
रमेश ने उसके होठों को अपने होठों से मिला लिया ताकि उसकी आवाज से राजू उठ ना जाए।
रमेश ने हमसे चूमते हुए बोला बस सुनीता थोड़े देर बाद कर लो, धीरे-धीरे दर्द ख़तम हो जाएगा फिर तुम्हें बहुत मजा आएगा।
सुनीता ने बोला लेकिन बहुत दर्द हो रहा है, बाहर निकल दीजिए ना।
रमेश को पता था अगर बाहर निकल दिया फिर ये डालने नहीं देगी।
फ़िर रमेश ने उसको प्यार से सहलाया और उसकी चूची को चूसने लगा। अब सुनीता को थोड़ी थोड़ी राहत मिली।
फिर धीरे से थोड़ा सा लंड और अंदर घुसा दिया, फिर सुनीता की चीख निकल गई।
सुनीता से अब बरदास नहीं हुआ तो उसने अपने नाखुन से रमेश के पीठ को नोचने लगी।
ये एहसास रमेश को अलग ही मजा दे रहा था। अभी तक रमेश ने आधा लंड सुनीता के बूर में घुसा दिया था।
फ़िर उसने सुनीता को प्यार से सहलाना लगा ताकि सुनीता को थोड़ा आराम मिले।
फिर रमेश ने थोड़ा लंड फिर घुसा दिया और कैसे सुनीता को बाहों में भर कर उसके होठों को चूसने लगा और जैसे ही रमेश ने अपने होठों से उसके होठों को आजाद किया
वो चिल्ला उठी- नहीं रमेश जी … मैं मर जाउंगी … मेरी फट जाएगी.
पर मैं नहीं रूका मैंने अप डाउन चालू रखा.
फिर कुछ मिनट बाद मैंने अपने हाथ उसके कंधे पर रखे और उसके होंठों को अपने होंठों में जकड़ लिया.
पोजिशन बना कर आखिरी जोर लगा कर पूरा लंड अन्दर घुसा दिया. वो एक बार फिर से छटपटा उठी, रोई, गिड़गिड़ाई, पर मैंने लंड अन्दर ही फंसाये रखा. वो कुछ देर बाद चिप हो गई.
अब मैंने आहिस्ता आहिस्ता झटका लगाना चालू किए, तो वो फिर से रोने लगी थी. उसके पैर ढीले पड़ चुके थे.
उसके रोंगटे खड़े होने लगे. वो मौज में चुदने लगी … मेरा साथ देने लगी, दर्द भूल गई. ‘हम्म आंह ..’ की मादक सिसकारियां भरने लगी … ‘दय्या दय्या ..’ करने लगी. हर धक्के में ‘अनम्म हूँम्म म्म ..’ करने लगी.
उसकी चूत की सब नसें मेरे लंड को जकड़ने लगीं. फिर ‘ईस्सस्स ..’की आवाज के साथ वो झड़ने लगी.
मेरा बिना रूके चोदना जारी था. उसके पैरों के जरिये उसकी boor का रस आने लगा.
मैंने अब आसन बदल दिया. उसका एक पैर उठा कर अपना लंड उसकी चूत पर लगा कर खड़े खड़े जोरदार चुदाई चालू कर दी.
अब मुझे भी महसूस हो गया कि इस आसन में मेरा लंड उसके बच्चेदानी तक चोट कर रहा था.
हर धक्के में उसकी आंख बड़ी हो जा रही थीं. वो साथ में ‘आं आं ..’ की आवाज निकाल देती थी.
काफी लम्बी चुदाई के बाद मैं आने को हुआ. वो फिर से थरथराने लगी. हम दोनों साथ में झड़ने लगे.
थोड़ी देर तक उसी पर लेटा रहा. फिर उठ कर लंड उसके कपड़े से साफ करके बाजू हो गया.
वो उठ कर अपने कपड़े पहनने लगी.
मैं भी अपने कपड़े पहन कर उसके नजदीक गया और उससे पूछा- कैसा लगा?
वो शर्मा दी और बोली- बहुत ज्यादा मजा आया.
सुनीता को अंदर ही अंदर बहुत सुकून मिल रहा था, आज रमेश से प्यार करके, क्योंकि आज पहली बार उसे किसी ने शरीर का सुख दिया था वैसे तो सुनीता अंजान थी इन सब चीजों से लेकिन अंदर ही अंदर उसे बहुत मजा मिल रहा था। हलाकी उसके बूर में दर्द भी हो रहा था क्योंकि रमेश का इतना मोटा लंड बड़ी मुश्किल से अपने अंदर लिया था।
रमेश तो अंदर ही अंदर इतना खुश था कि उसकी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
जब सुनीता जाने लगती है तो रमेश कहता है जा रही हो क्या
सुनीता बोलती है हा जा रहि हू, राजू को सुबेह में भेज दीजिए गा।
रमेश फिर बोलता है फिर कब मिलोगी।
सुनीता शर्मा के बोलती है मौका मिलेगा तो बता दूंगी।
रमेश- फिर बोलता है मुझे तुम्हारा इंतज़ार रहेगा
सुनीता बिना कुछ बोले शर्मा के चली जाती है।