You are a very good writer who can play with the right emotions and translate those emotions into words.Thank you Amita ji for reading n supporting ?
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You are a very good writer who can play with the right emotions and translate those emotions into words.Thank you Amita ji for reading n supporting ?
Aap kafi had tak sahi hoडायलॉग पढ़ कर लग रहा है कि सुरेन्द्र मोहन पाठकजी ही नाम बदलकर यहां उपस्थित हैं
Thank you Jassybabra bhai for appreciating ?Nice update
Bahut bahut dhanyawad Manik bhai..... nahi Yaar....Nahle pe Dahla Writer hai XF pe....Ek se badhkar ek...?nice update aap wakai mein hindi section ke best writer ho bhai
बहुत बहुत धन्यवाद भाई ?शुभकामनायें भाई ? 100 पृष्ठ ............प्रथम शतक पूरा करने पर
आपकी ये कहानी बहुत अच्छी लग रही है................ आशा करता हूँ........आगे और भी अच्छी कहानिया आपकी कलम से मिलेंगी
रास्ते को देखकर नहीं उसपर चलकर ही कहीं पहुंचा जा सकता है
.........मंजिल/फल की चाह ही तो वो तृष्णा है ...........जो आपको तुष्ट नहीं होने देती...... आनंद नहीं लेने देती जीवन रूपी रास्ते का............जीवन का आनंद ले पाना ही मोक्ष प्राप्त करना है.......... मृत्यु के बाद का मोक्ष किसने देखा है .........बहुत बहुत धन्यवाद भाई ?
आप ने सही कहा लेकिन किसी किसी की जिन्दगी बीत जाती है चलते चलते...... मगर मंजिलें नहीं मिलती ।
लेकिन ये भी तो सच है..... कर्म प्रधान विश्व करि राखा । जा जस करि ताई फल चाखा ।।........ कर्म तो प्रधान है लेकिन उसका फल....?
शुक्रिया संज्ञा जी..... मैं बचपन से उनका फैन रहा हूं.... आप पाठक जी के फैन्स हो तो आप जरूर जानते होंगे कि ७०..८० के दशक में जासूसी उपन्यास में जब राइटर्स के लीड हीरो कर्नल , मेजर , राॅ के जासुस , सिक्रेट सर्विस के एजेंट जैसे पात्र हुआ करते थे ....उस समय पाठक जी ने अपना प्रमुख नायक सुनील को रखा जो ब्लास्ट अखबार में चीफ रिपोर्टर का काम करता था.... एक मामूली रिपोर्टर को अपने उपन्यास का मेन किरदार बना दिया...बहुत बड़ा रिस्क था....और सुनील सीरीज आज तक का सबसे अधिक सीरीज में छपने वाला उपन्यास है ।डायलॉग पढ़ कर लग रहा है कि सुरेन्द्र मोहन पाठकजी ही नाम बदलकर यहां उपस्थित हैं