Vikashkumar
Well-Known Member
- 2,883
- 3,663
- 158
Bro Incest story likho , kayi cataracts k sath 4 ya 5 logo k parivaar ki story
Behtareen UpdateUpdate 3 B.
घर पहुंचते पहुंचते 6.30 बज गए थे । राह भर मुझे अमर के साथ बिताए गए पुराने पल याद आ रहे थे । वो एक हंसमुख और जिंदादिल इंसान था । उसकी किसी से कोई खास अदावत भी नहीं थी । उसके पिता किसी सरकारी विभाग में कार्यरत थे और उसी दौरान उनकी मौत भी हो गयी थी । अमर का अपने मां के अलावा कोई भी नहीं था । उनका गुज़ारा पेंशन के पैसों से ही होता था । पेंशन की राशि अच्छी खासी थी ।
आखिर अमर यहां क्या कर रहा था । वो यहां गाजियाबाद में और उस पर भी जीजा के यहां । उसने ऐसा क्या किया होगा कि किसी ने उसकी कत्ल ही कर दी ।
और पुलिस वहां कैसे पहुंच गयी । पुलिस को कैसे पता चला कि वहां किसी का कत्ल हुआ है ।
जीजा का भी हाव भाव कुछ अलग ही था । कहीं जीजा ने ही तो कत्ल नहीं किया । लेकिन क्यों ? सारे सामान बिखरे हुए क्यों थे । और सबसे बड़ी बात वो कटे बालों वाली लड़की कौन थी । वो लड़की जीजा के फ्लेट में आई कैसे । और अगर आई भी तो क्यों आईं । क्या चोरी के इरादे से आई थी और शायद उसे अमर ने चोरी करते हुए पकड़ा होगा और लड़की ने उसे शुट कर दिया हो ।
लेकिन लाख का सवाल ये था कि अमर यहां आया क्यों ।
घर पहुंचने के बाद माॅम डैड और रीतु को ड्राइंगरुम में बैठा पाया । उन्हें इंस्पेक्टर कोठारी के द्वारा फोन पर पुछताछ के दौरान ही सारी बातें पता चल चुकी थी ।
मैंने वहां हुए सारे वारदात को संक्षिप्त में बताया और श्वेता दी का सामान देने उनके घर गया । वहां चाचा चाची श्वेता दी और राहुल सभी थे । उनके पुछने पर फिर से वही बातें दुहराया ।
श्वेता दी ने मुझे अपने सहेली के शादी में चलने को कहा तो मैंने इनकार कर दिया । मेरा खराब मुड देखकर उन्होंने भी जोर नहीं दिया ।
वहां से मैं अमर के घर चला गया । अमर का घर हमारे यहां से आधे घंटे की दूरी पर था । जब उसके घर पहुंचा तब कुछ पड़ोसी औरतें अमर की मां के पास बैठी हुई थी । वहां का माहौल काफी गमगीन था । शायद पुलिस ने खबर कर दी थी ।
मैं अमर की मां के पास पहुंचा तो उनकी नजर मुझ पर पड़ी । वो लगभग 55 साल की दुबली पतली महिला थी । उनका पूरा चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था । मैंने उन्हें अपने गले से लगाया तो वो फफक कर रो पड़ी । मेरी आंखें भी छलक पड़ी । बहुत देर तक हम ऐसे ही रोते रहे ।
" ब.. बेटा अमर ।" उन्होंने रोते हुए कुछ कहने की कोशिश की तो मैंने बीच में ही उन्हें अपने बाजुओं से कसते हुए भर्राये हुए स्वर में बोला ।
" कुछ मत बोलो मां । अमर का इतना ही समय तक हमारा साथ था । भगवान ने उसे अपने मे समाहित कर लिया । मौत पर किसी का भी वश नहीं चलता । अब से मैं ही तेरा अमर हूं । मैं ही तेरा बेटा हूं । आज से तु मेरे साथ मेरे घर पर रहेगी । आखिरी सांसों तक मैं तेरी सेवा करूंगा ।"
वो फुट फुट कर रोये जा रही थी । मैं उसे दिलासा देते रहा । थोड़ी देर बाद मैंने कहा ।
" चल मां । चल मेरे साथ ।"
मेरे कन्धों से सिर उठाकर मुझे देखा और सिसकियां लेते हुए बोली ।
" बेटा मैं जीना नहीं चाहती । काश ! भगवान अमर की जगह मुझे बुला लेता । म.. मैं मरना चाहती हूं बेटा ।" कहकर जोर जोर से रोने लगी ।
" नहीं मां । ऐसा मत बोल । क्या मैं तुम्हारा बेटा नहीं । तुम तो जानती हो अमर मेरा दोस्त कम भाई ज्यादा था । आप ही तो कहती थी मैं तुम्हारा दुसरा बेटा हूं । और अभी तो अमर के क़ातिल को सजा दिलवाना है । चल उठ । मेरे साथ चल ।"
काफी देर तक रोती रही । फिर अपने आंसुओं को पोछते हुए कही ।
" नहीं बेटा । ये घर छोड़ कर मैं कहीं नहीं जाउंगी । इस घर से अमर और उसके पिता की यादें जुड़ी हुई है । अब यही मैं अपनी बाकी बची खुची जिन्दगी भी काट लुंगी । जा । तु घर जा । कल अमर की दाह संस्कार भी करनी है ।"
थोड़ी देर बाद उनको गले लगा कर मैं वहां से भारी मन बिदा हो गया । घर आया किसी ने भी खाना नहीं खाया था । उस दिन मेरे घर खाना ही नहीं बना । सभी थोड़ी थोड़ी जुस पी कर अपने अपने कमरों में चले गए ।
नींद आ नहीं रही थी । दिन भर की घटनाक्रम के बारे में सोचता रहा । करवट बदलते बदलते कब सोया, याद नहीं ।
*****
Update 4.
सुबह जब मैं ड्राइंगरुम में पहुंचा तब माॅम breakfast की तैयारी कर रही थी । डैड टीबी के पास बैठे खबर देख रहे थे । रीतु आज सुबह ही कालेज चली गई थी ।
मैंने डैड को गुड मार्निंग वीश किया । माॅम को हग किया और डैड के बगल सोफे पर बैठ गया । कुछ औपचारिक बातें के दरमियान नाश्ता किया फिर मैं अपने बाइक से पुलिस चौकी चला गया ।
इंस्पेक्टर कोठारी वहां नहीं था । वहां अपनी हाजिरी दे और उनके बुलाये हुए स्कैच मैन की सहायता से कटे बालों वाली लड़की का स्कैच बनवा कर अजय के घर चला गया । रास्ते में मोबाइल रिचार्ज कराया । फिर पैराडाइज क्लब के मैनेजर को फोन कर के बताया कि मैं अगले दिन join करुंगा ।
पोस्टमार्टम के बाद डेड बॉडी शाम को चार बजे मिली । अन्तिम संस्कार करते करते आठ बज गए । फिर वापस घर आ गया ।
आज का दिन भी काफी भाग दौड़ करके बीता था इसलिए डीनर के पश्चात मैं जल्दी सो गया ।
अगले दिन सुबह उठकर फ्रेश होकर थोड़ा work out किया और ड्राइंगरुम में जा कर बैठ गया । पुलिस थाने की हाजिरी की । आज इंस्पेक्टर कोठारी मौजूद था । मेरे पुछने पर उसने बताया कि उन्हें कत्ल की सुचना किसी गुमनाम शहरी ने थाने के लैंड लाइन फोन पर दी थी । नम्बर ट्रैश करने पर मालूम हुआ कि वो एक PCO का नम्बर है जो तुम्हारे जीजा के घर से थोड़ी दूर पर है । फोन किस व्यक्ति ने किया ये PCO. वाला नहीं बता पाया ।
थोड़ी देर बाद मैं वहां से अमर के मां के पास चला गया । थोड़ी देर रुक कर मैं वहां से निकल गया ।
शाम को पांच बजे कनाटप्लेस पैराडाइज क्लब पहुंचा और मैनेजर से मिला । मैनेजर का नाम कुलभूषण खन्ना था । वो एक पचपन साल का गंजे सिर वाला भीमकाय व्यक्ति था । उसके आंख काफी छोटे-छोटे थे । उसकी एक आदत थी कि वह जब बोलता था तो अपनी कनपटी को सहलाने लगता था ।
उससे कुछ देर तक formal बातों के उपरांत मैं कराटे वाले कक्ष में गया । वहां कुछ तीस बत्तीस लड़के लड़कियां थी । लड़कियों की संख्या ज्यादा थी । आज देश में जिस तरह की हालात हैं उस लिहाज से तो लड़कियों को self protection बहुत ही जरूरी बनती है ।
वहां जितने भी student दिखे सभी हाई फाई फेमिली से belong लगते दिखे । और हो भी क्यों नहीं । क्लब जो काफी महंगा था ।
वहां मैंने दो घंटे ट्रेनिंग दी । फिर मैनेजर को अभिवादन कर घर चला आया ।
हफ्ते दस दिन तक यही रूटिन रहा । धीरे धीरे अमर के मौत का गम भी कुछ हल्का हुआ । दोनों टाईम आन्टी ( अमर की मां ) के पास जाता और उनकी ज़रुरी के कामों में मदद करता ।
पुलिस ने भी मेरे और जीजा को clean chit दे दिया । उनके पास हमारे खिलाफ न कोई सबूत था और ना कोई गवाह । जिस रिवाल्वर से मौत हुई थी वो भी बरामद नहीं हो पाई थी । हमारे पास मर्डर करने का कोई सटीक कारण भी नहीं था । और वो कटे बालों वाली लड़की भी गायब थी ।
लेकिन मैं एक आस में था कि क़ातिल को मैं ढुंढ निकालूंगा और उसके किये की सजा अवश्य दूंगा ।
रात के खाने के बाद मैं अपने कमरे में गया । नाइट ड्रेस पहनी और बिस्तर पर लेट गया । ये दस बारह दिन मेरे लिए काफी भारी पड़े थे । मन को divert करने के लिए सोचा क्यों न आज अपनी favourite books पढ़ी जाय । मैं उठा और आलमारी से incest कहानियों का बैग ले बिस्तर पर लेट गया ।
तभी मुझे ध्यान आया कि इस मे से कुछ दिन पहले एक किताब गायब थी । मैंने सारी किताबें चेक की । गायब वाली किताब इन किताबों के बीच मोजूद थी । मतलब जिसने भी ये किताब ली थी उसने पढ़ कर वापस रख दी थी ।
लेकिन इस बार एक दुसरी किताब गायब थी ।
Tagda Update bhaiUpdate 5.
सुबह साढ़े नौ बजे मैं ड्राइंगरुम पहुंचा तब माॅम और रीतु सोफे पर बैठे टीबी देख रहे थे । उन्हें हग करने के बाद मैं भी उनके बगल बैठ गया । माॅम ने नाश्ता निकाला । नाश्ते के ही दौरान मैं चुपके से उनके हाव भाव को भी ताड़ रहा था ।
" माॅम, बहुत दिन हो गए कालेज नहीं गया । सोच रहा हूं आज चला जाऊं ।" मैंने कहा ।
" भाई, आप वहां से लौटोगे कब ।" रीतु बोली ।
" तीन चार बजे तक ।" मैं रीतु की तरफ पलटते हुए कहा ।" तुम्हें कोई काम है क्या ।"
" तीन बजे तक लौटोगे तो मुझे भी कालेज से पिक अप कर लेना । यदि तुम्हें कोई काम न हो तो ।"
" ठीक है ।" कहकर नाश्ते के बाद हाथ मुंह धोकर बाहर निकल गया ।
कालेज में अमर की यादें जब आती थी तो मन उद्वेलित हो जाता था । धीरे धीरे कालेज के वातावरण मे मैं ढलने लगा ।
तीन बजे रीतु का जब फोन आया तो मैं कालेज से अपनी बाइक लेकर उसके कालेज की ओर चल दिया । रीतु का कालेज मेरे कालेज से पन्द्रह मिनट की दूरी पर था ।
उसके कालेज के गेट के पास बाइक खड़ी कर मैं उसका इन्तज़ार करने लगा । थोड़ी ही देर बाद मुझे रीतु अपने सहेलियों के झुंड के साथ आती दिखी ।
रीतु ने भी मुझे देख लिया था । वो अपनी खास सहेली काजल की बांह पकड़े मेरे पास आई ।
काजल भी रीतु की ही तरह खुबसूरत थी बिल्कुल काजल अग्रवाल की तरह । दोनों लड़कियां मेरे पास आ कर खड़ी हो गई । काजल ने मुझे अभिवादन किया तो मैं धीरे से मुस्कुरा कर कहा ।
" कब आईं मामा के घर से ।"
" एक हफ्ते से उपर हो गया भाई ।" उसने मुस्कुराते हुए कहा ।
" कहती थी न तुझसे, भाई तेरे बारे में मुझसे बीसो बार पुछ चुका है ।" रीतु काजल को देख कर मेरी टांग खिंचती हुईं बोली - " कहां है काजल ! कब तक आयेगी काजल ! बहुत दिनों से देखा नहीं है काजल को ! फलां ! फलां ! फलां ।"
" क्या बक रही है । मैंने कब कहा ।" मैं हड़बड़ा कर बोला ।
काजल शर्म से अपनी नजरें नीचे कर धीरे से मुस्कराने लगी ।
" क्यों झूठ बोलते हो भाई । झूठ बोलना अच्छी बात नहीं । पाप लगता है ।" वो कुटिल मुस्कान भरी ।
" अच्छा पुछ भी लिया तो क्या ग़लत हो गया ।" मैं काजल से मुखातिब होते हुए कहा - " क्यों काजल ! क्या मैं तुम्हारे बारे में कुछ पुछ नहीं सकता । आखिर तुम भी तो मेरी बहन जैसी हो ।"
" हां सही कहा ! बहन जैसी हो । बहन नहीं ।"
मैं सकपका गया । लगता है ये लड़की काजल के सामने मेरा पुलंदा बंधवा कर ही रहेंगी ।
" क्या बक बक कर रही है । चुपचाप नहीं रह सकती क्या ।" काजल ने लजाते हुए कहा ।
" अरे बक बक नहीं कर रही । सच बोल रही हूं । " उसने काजल के कंधे पर हाथ रख कर कहा । - " जानती है काजल ! मेरा भाई का दिल न दरिया दिल है । बल्कि दरिया दिल भी नहीं, सागर दिल है ।
मेरे भाई का जैसा नाम वैसा ही उसका दिल । सागर जैसी गहराई वाली दिल । उसके दिल में सिर्फ प्यार ही प्यार है । तु न राज करेगी ।" दार्शनिक अंदाज में काजल को बोली ।
" क्यों अपने भाई को छेड़ रही है ।" काजल हंसते हुए बोली ।
मैं जो अपने आप को लड़कियों के मामले में सुरमा भोपाली समझता था, अभी स्तब्ध सा भौंचक्का खड़ा था । तभी काजल के डैड आ गये और रीतु के जबान पर ब्रेक लगा ।
काजल के डैड का चांदनी में पुराने एंटीक चीजों का बिजनेस था ।
जब वो हमारे पास पहुंचे तो मैंने और रीतु ने उनको हाथ जोड़कर अभिवादन किया । उन्होंने मुस्करा कर हमें आशिर्वाद दिया और हमारी हाल चाल पुछ कर काजल के साथ अपने घर चले गए ।
" वैसे तो बड़े तीसमार खान बनते हो, लेकिन आज पता चला कि सिर्फ अपनी डेंगी हांक ते थे । अपना चेहरा देखा, हवा पंचर हो गई थी । रीतु ने हंसते हुए कहा ।
" वो तो मैं अब भी हूं ।" मैंने अपना सीना तान कर कहा - "लड़कियों के मामले में मुझे कम तर मत आंकना । वो तो तेरी सहेली थी इसलिए लिहाज कर गया ।"
" हां, हां वो देखी मैंने ।"
" तुने अभी तक देखा ही कहां है । जिस दिन देख लेगी उस दिन तेरे सारे भ्रम टुट जायेंगे ।"
" अच्छा ! इतना घमंड ।" वो कालेज के कैम्पस की तरफ देखते हुए बोली - "वो ! वो जो लड़की आ रही है , उसे prapose करके दिखाओ ।"
जिस लड़की के बारे में उसने इसारा किया था, उस तरफ देखा तो एक फैशनेबल हाॅट लड़की जींस और टाॅप पहने कालेज के गेट की तरफ आ रही थी ।
" उस को ।" मैंने उस लड़की की तरफ इसारा करते हुए पुछा ।
" हां । उस को ।"
"ठीक है फिर । अब मेरा टेलेंट तु देख ही ले ।" कहकर मैं उस लड़की की तरफ चल दिया ।
" एक्सक्यूज मी मिस ।" मैं लड़की के आगे खड़ा हो कर बोला ।
" मैं ! " लड़की चौंकते हुए बोली ।
" जी ! आप ।" मैंने मिश्री से भी मीठे आवाज में कहा ।
" जी । कहिए ।"
" क्या आप मेरी girlfriend बन सकती है ।"
" क्या मतलब ! " लड़की हड़बड़ाते हुए आंखें चौड़ी करते हुए कही ।
" जी । मेरा मतलब है कि क्या मैं आपका boyfriend बन सकता हूं ।"
" पागल हो क्या । कौन हो तुम । मैं तो तुम्हें जानती नहीं ।"
" जी ! नहीं । मैं पागल नहीं बल्कि आपके खुबसूरती का कदरदान हूं ।" मैंने अपने सीने पर हाथ रख कर कहा ।
" क्या तुम मुझे जानते हो ।" उसने संशय भरे हुए में कहा ।
" नहीं । जानता तो नहीं हूं लेकिन बाद में जान जाउंगा ।"
" क्या बकवास है । सनकी मालूम पड़ते हो । हटो, जाने दो मुझे ।" लड़की गुस्से से बोली ।
" मिस ! मेरी बात तो सुनिए । देखिए , मैं सागर चौहान दिल्ली युनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक एंड कम्यूनिकेशन के फाइनल ईयर का स्टुडेंट । और ठीक मेरे पीछे जो लड़की रेड कलर की सलवार सूट पहनी है, वो मेरी बहन है । लेकिन please उसकी तरफ Direct मत देखिएगा ।" मैंने जल्दी जल्दी एक सांस में ही कह दिया ।
लड़की ने कनखी से रीतु की तरफ देखा ।
" हो गई न मेरी परिचय ।" मैंने कहा ।
लड़की इस बार मुस्कराई । फिर मेरा पिछा छुड़ाने के मकसद से बोली ।
" But kind for your information I'm engaged. I have already booked. "
" कोई बात नहीं । आप फिर भी मुझे boyfriend बना सकती हैं ।"
" वो कैसे ? "
" मिस ! आप तो जानती है जमाना कितना फास्ट हो गया है । और लड़कियां तो फास्ट से भी ज्यादा फास्ट हो गई है ।"
" क्या मतलब ।"
" जैसे एक बार में लड़के कई लड़कियों से फ्रेंडशिप कर लेते हैं उसी तरह लड़कियां भी एक साथ कई कई लड़कों को boyfriend बना लेती हैं । मसलन जब वो सुबह घर से बाहर निकलती है तब , जब रास्ते में होती हैं तब , जब कालेज में होती है तब , कालेज की छुट्टी के बाद घर जाती है तब । और भी ऐसी कई जगहे है ।"
" तौबा तौबा । तुम्हारे कहने का मतलब है कि लड़कियों की इन सभी जगहों पर अलग-अलग boyfriend होती है ।"
" जी ! सही फरमाया ।"
" एक नम्बर के कमीने हो ।"
" शुक्रिया ।"
" किस बात की कि कमीने हो ।"
" नहीं । एक नम्बर का हूं इस बात के लिए । दिल्ली में अगर कोई व्यक्ति एक नम्बर का होता है वो उसकी तारीफ होती है ।" मैंने धीरे से उसके सामने सिर झुकाते हुए कहा ।
" बातें अच्छी कर लेते हो ।" अब लड़की मुस्कराई ।
" मैं और भी कई सारी चीज़ें अच्छी अच्छी कर लेता हूं ।"
" अच्छा ! "
" जी हां । तो मेरा application मंजूर हुआ ।" मैंने आशावादी नजरों से उसे देखा ।
" अभी तक तो नहीं । बाद की बाद में देखेंगे ।" कहकर मुस्कराते हुए चली गई ।
उसके जाते ही रीतु आईं । वो सारी बातें चुपके से सुन रही थी । और मेरे हाथों को पकड़ कर जोर जोर से हंसने लगी ।
" सच में तुम एक नम्बर के कमीने हो ।" हंसते हंसते बोली ।
मैं हंसा और बोला - " चल घर चलते हैं । काफी देर हो गई ।"
फिर हम बाइक पर बैठ घर की तरफ रवाना हो गए ।
Halaaki aap mujhse bade hain aur aapko mujhse kahi zyada har cheez ka tazurba hai, is liye main aapko koi suggestion dena uchit nahi samajhta. Bas yahi kahuga ki aapke zahen me bhale hi chaahe jitni stories ke plot ghoom rahe ho magar unme se usi ka chunaav kijiye jise aap sabse zyada khud like kar rahe ho. Kyo ki agar aapko pasand hai to yakeenan ham sabko pasand aayega aur waise bhi mujhe to pura yakeen hai ki aap jaisi bhi story likhenge wo super duper hi hogi,,,,,क्या लिखूं , समझ में नहीं आ रहा है । इस फोरम पर सबसे अधिक पसंद करने वाली कहानियां रिस्तेदारो के व्याभिचार पर लिखी हुई कहानियां होती है । जहां आपने ये टाॅपिक छोड़ा , की भियू और कमेन्टस कम होने लगते हैं ।
मेरी इच्छा थी कि एक पाठक जी के उपन्यासों पे ही आधारित एक थ्रीलर स्टोरी लिखूं लेकिन यहां के माहौल देखकर डर सा लगता है ।
एक अंग्रेजी वेबसाइट पर लिखा हुआ इनसेस्ट कहानी भी दिमाग में था ।
इसके अलावा एक रोमांटिक लव स्टोरी भी लिखना चाहता था । मगर सब कुछ कन्फ्यूजन में है ।
Intzaar rahega bhaiya ji,,,,,आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया और आभार ।
शायद दिसंबर के लास्ट में या जनवरी के शुरूआत में कुछ लिखूं । पर किस सब्जेक्ट पर लिखूं ये मुझे भी समझ में नहीं आ रहा है ।
Marvelous,Update 27. A
" अरे! ये बातों में तुम्हें फंसा रहा है " - जानकी देवी जोर से बोली -" खतम करो इसे ।"
" उसने मेरी तरफ रिवाल्वर ताना । मैंने अपनी आंखें बंद कर ली ।
रिवाल्वर देखकर मेरे छक्के छुट गये थे । ऐसी बात नहीं थी कि उसके पास रिवाल्वर होने का अनुमान नहीं था लेकिन हर वक्त उसके पास रिवाल्वर होने का अंदेशा नहीं था । मैं भले ही शारीरिक रूप से उससे ताकतवर था लेकिन एकाएक जब सामने वाला रिवाल्वर तान दे तो कोई भी क्या कर सकता है ।
" यहां इसका कतल करना मुनासिब नहीं होगा " - रमाकांत बोला -" इसकी लाश यहां से बरामद होना हम दोनों के लिए कोई मुसीबत खड़ा कर देगा ।"
" तो ?"
" यह खुद अपने कदमों से चलकर वहां तक जाएगा जहां से लाश बरामद होने पर हम में से किसी पर कोई आंच नहीं आएगी ।"
" कहां ?"
" इसके जीजा के फ्लैट पर ।"
" इसने कहना न माना तो ?"
" तो मैं इसे यहीं शूट कर दुंगा । जैसे अमर को मारकर इसके जीजा के फ्लैट में रख आया वैसे ही इसे भी रख दुंगा ।"
" लेकिन याद रखना " - मैं बड़ी कठिनाई से कह पाया -" तस्वीर अभी भी मेरे कब्जे में है ।"
" कोई बात नहीं । तस्वीर जब सामने आएगी तब की तब देखेंगे ।"
" जनाब ! " - मैंने अपने होंठों पर जुबान फेरी -" मेरा सवाल तो बीच में ही रह गया ।"
" कैसा सवाल ?"
" मनीष जैन की हत्या आपने की है ?"
" हां , उसका भी खून मैंने ही किया है । "
" क्यों ?"
" जिस दिन अमर का खून मैंने किया था उस दिन उसने मुझे तुम्हारे जीजा के फ्लैट के बाहर दरवाजे पर खड़े देख लिया था । उस वक्त मैं अमर को तुम्हारे जीजा के फ्लैट में रखकर बाहर निकल कर दरवाजे को बंद कर रहा था । उसने मुझसे पूछा कि मैं क्या कर रहा हूं तो मैंने उस वक्त बहाना बना कर उसे आश्वस्त कर दिया था । फिर जिस दिन तुम्हारे जीजा और बहन यहां से शिफ्ट हो रहे थे उसी दिन मैंने श्वेता का खंजर चुरा लिया था और ये साला कमीना मनीष का बच्चा मुझे खंजर चोरी करते हुए भी देख लिया था । उस वक्त उसने कुछ नहीं कहा । फिर उसी दिन शाम को उसकी पत्नी अपने मायके चली गई । दो दिन तक वो अपने काम में व्यस्त था लेकिन जिस दिन मैंने उसका खून किया उस दिन , रात में शराब पी कर आया और मुझसे खंजर के बारे में पुछने लगा । मैंने बताया कि मुझे खंजर बहुत अच्छा लगा इसलिए लोभ में पड़कर चोरी कर लिया । मैंने उससे कहा कि ये मेरी बड़ी गलती थी । ऐसा मुझे नहीं नहीं करना चाहिए था । मगर वो ये मानने को तैयार नहीं था । वो वकील था । श्वेता के फ्लैट में कतल वाले दिन मुझे दरवाजे के पास देखा था और फिर खंजर चोरी करते हुए देखा । उसे इसमें कोई साजिश दिखाई दे रही थी । मैंने उसे बार बार समझाया कि इसमें कोई साजिश नहीं है । मगर वो मानने को तैयार नहीं था । लेकिन जब वो ये बोला कि अमर को कतल वाले दिन उसने अपने कमरे से नीचे मेन गेट से फ्लैट की तरफ आते हुए देखा था तो मेरे कान खड़े हो गए । वो अमर को तुम्हारे साथ श्वेता के फ्लैट आते हुए पहले भी कई बार देखा था तो पहले तो वो यही समझा था कि वो श्वेता के घर आया था लेकिन इन दो घटनाओं से वो मुझ पर शक करने लगा था । क्योंकि उसे बाद में याद आ गया था कि श्वेता अपने मायके गई हुई है और राजीव अपने काम पर निकल चुका होता है । तो फिर अमर किसके पास आया था ? यदि श्वेता के फ्लैट में नहीं तो फिर किसके फ्लैट में गया हो सकता है ? वो मुझ पर साफ साफ आरोप लगाने लगा कि उस दिन अमर मेरे फ्लैट में आया था । मैं समझ गया कि ये बहुत कुछ जान गया है इसलिए इसका जिन्दा रहना मेरे लिए घातक होगा ।"
" लेकिन खंजर से ही क्यों मारा ? आप के पास तो रिवाल्वर भी थी ।"
" मैं नहीं चाहता था कि रिवाल्वर की गोलियों से फोरेंसिक जांच में अमर के कत्ल के साथ कोई रिश्ता जुड़े ।"
" क्या आगरा में मुझ पर हमला आपने ही करवाया था ?"
" आगरा में तुम पर हमला किया था , ये तो मुझे पता ही नहीं था " - वो अपने कंधे उचकाते हुए कहा ।
" अरे ! क्यों बेकार की बातों में वक्त जाया कर रहे हो " - जानकी देवी बेसब्री से बोली -" जल्दी से इसका काम तमाम करो ।"
" जनाब ! " मैंने कहा -" आपने दो खून किया है , आप बच नहीं सकते ।"
" दो क्यों , बल्कि तीन ।"
" मेरा स्कोर आपने पहले से ही जोड़ लिया ।"
" अभी नहीं जोड़ा । उसे मिलाकर चारों ।"
" जी !"
" हिमाचल में साला रमाकांत कौन सा अपनी आई मौत मरा था । एक नम्बर का कंजूस था वो हरामी का पिल्ला । अपनी बीवी को एक पैसा तक नहीं देता था । तब मैंने जानकी के कहने पर उसका कत्ल कर के उसकी लाश गायब कर दी थी और उसकी जगह खुद ले ली थी ।"
" कमाल है । एक कत्ल का तजुर्बा होने के वावजूद आप अमर के हाथों ब्लैकमेल होते रहे ।"
" हर काम के लिए मुनासिब वक़्त का इंतजार करना पड़ता है , बरखुदार । देख लो , मुनासिब वक़्त आया तो मैंने उसका शिकार कर लिया । और अब तुम्हारा शिकार करने जा रहा हूं ।"
" आप की जानकी जी से कैसे पहचान हुई ?"
" यह खामखाह बातों में वक्त जाया कर रहा है " - जानकी देवी बिफर कर बोली -" और तुम इसकी चाल में फंस रहे हो ।"
" चलो " - रमाकांत सख्ती से बोला ।
" कहां ?" - मैं जानबूझ कर अनजान बनता हुआ बोला ।
" यहां से बाहर । तुम्हारे जीजा के फ्लैट में ।"
" मैं न चलूं तो ?"
" छोकरे , बदतमीजी दिखाने से तेरी मौत टलने वाली नहीं । अब हिलता है या मैं गोली चलाऊं ।"
" हिलता हूं ।" - मैं बोला और मन मन के कदम उठाता हुआ दरवाजे के सामने पहुंचा । मेरा दिल धाड़ धाड़ कर मेरी पसलियों से बज रहा था और मुझे लग रहा था कि पीछे से गोली चलीं की चली ।
" वाह ! क्या संजोग है ।" - रमाकांत मंत्रमुग्ध होते हुए बोला -" अमर की मौत मेरे फ्लैट में , मनीष की मौत उसके फ्लैट में और तुम्हारी मौत तुम्हारे बहन की फ्लैट में । वाह ! वाह !"
वो दोनों ठीक मेरे पीछे पीछे आ रहे थे ।
" दरवाजा खोल ।"
मैंने दरवाजा पुरा खोला । सोच रहा था कि काश कोई गलियारे में दिख जाए ताकि इसका ध्यान भटके ।
" बाहर ।"
मैंने चौखट से बाहर कदम डाला ।
तभी एक पहलू से किसी ने मुझे जोर से धक्का दिया । मैं भरभरा कर औंधे मुंह फर्श पर गिरा ।
" खबरदार ।" - कोई गला फाड़कर चिल्लाया ।
साथ ही एक फायर हुआ ।
आतंकित मैं कांखता कराहता हुआ सीधा हुआ और उसी मुद्रा में मैंने सामने निगाह डाली ।
इंस्पेक्टर कोठारी खड़ा था । अपने दोनों हाथों में उसने अपनी सर्विस रिवाल्वर पकड़ी हुई थी जिसकी नाल से धुआं निकल रहा था ।
रमाकांत चौखट से जरा भीतर कमरे में मरा पड़ा था । पिस्तौल उसके हाथ से निकल कर जानकी देवी के पैरों के करीब जाकर गिरी थी लेकिन पता नहीं अपने सकते की सी हालत की वजह से या इंस्पेक्टर कोठारी के हाथ में थमी पहले ही आग उगल चुकी रिवाल्वर के खौफ से वह पिस्तौल उठाने के लिए नीचे नहीं झुक रही थी ।
मैं उठ कर अपने पैरों पर खड़ा हुआ और अपने कांपते हाथों से एक सिगरेट सुलगाने लगा ।
Kahani bahut acchi tarah se likhi gayi hai.Update 28.
मैं उठकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ और अपने कांपते हाथों से एक सिगरेट सुलगाने लगा ।
तब कोठारी का रिवाल्वर वाला हाथ नीचे झुका ।
" मैंने इसे वार्न किया था " - कोठारी बोला -" लेकिन यह मेरे पर गोली चलाने को पुरी तरह से आमादा था ।"
" आप यहां कैसे पहुच गए ? " - मैं फंसे स्वर में बोला ।
" अपने आपको खुशकिस्मत समझो कि मैं यहां पहुंच गया ।"
" लेकिन कैसे ?"
" तुम्हारी ही वजह से । सुबह मनीष जैन के कमरे से बाहर निकल कर जब तुमने अपनी बहन से बातें की थीं तब सारी बातें मैंने सुन ली थी । जिस तरह से तुम खंजर वाली बात की लिपापोती कर रहे थे तो मुझे तुम पर डाउट हो गया था । जब तुम वहां से निकले तभी मैंने तुम्हारे पीछे एक आदमी लगा दिया था । वो तुम्हारे पीछे शुरू से लगा हुआ था । जब उसने मुझे बताया कि तुम रमाकांत के फ्लैट में चले गए हो तो मुझे यह बात बुरी तरह खटकी । लिहाजा मैं सब काम छोड़कर सीधा यहां पहुंच गया जो कि मैंने बहुत अच्छा किया ।"
" आपने कुछ सुना ?"
" हां , सुना । मैं बाहर की होल से कान सटाए रहा था जब तक की तुम्हें बाहर को मार्च करने का हुक्म नहीं मिला ।"
" ओह ! कोठारी सर , मेरी जान बचाने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।"
वह मुस्कराया । वह संतुष्ट था कि इतना बड़ा केस हल हो गया था ।
" खंजर और तस्वीर कहां है ?"
मैंने तत्काल खंजर और तस्वीर उसे सौंप दी ।
" अब तुम यहां से निकलो । यहां अब पुलिस का काम है ।"
मैंने तत्काल आदेश का पालन किया ।
जानकी देवी को धोखाधड़ी में शरीक होने , नाजायज और गैरकानूनी तरीके से अपने पति की मौत के बाद किसी और शख्स को अपना पति बनाकर और ट्रस्ट के साथ लगातार फ्राड करते रहने और अमर एवं मनीष जैन के हत्या में रमाकांत का साथ देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया ।
जानकी देवी ने जेल जाने के बाद एक अच्छा काम किया । उसने अपनी सारी चल और अचल संपत्ति वीणा के नाम कर दिया । बाद में जेल में उससे मिलने वीणा और अनुष्का गई थी जो कि मुझे वीणा से पता चला ।
तीन दिन बाद ----
रीतु जयपुर से वापस आ गई थी । उसके साथ काजल भी अपने फेमिली के साथ आ गई थी ।
दोपहर का समय था । मैं अपने कमरे में आराम कर रहा था कि माॅम ने कहा कि कोई कुरियर वाला आया है । मैं नीचे गया । कुरियर वाले ने एक लिफाफा दिया । लिफाफा मेरे नाम पर था । एक दिन पहले के डेट में केदारनाथ से भेजा गया था । मैं अपने कमरे में चला आया और लिफाफा खोला । लिफाफे के अन्दर एक चिट्ठी थी जिसे अमर की मां ने मुझे भेजा था ।
मैंने पढ़ना शुरू किया ।
सागर बेटा !
भगवान तुम्हें सदैव खुश रखें और लम्बी उम्र दें ।
मैं ये चिट्ठी यहां के एक धर्मशाला में बैठकर लिख रही हूं । अभी दो घंटे पहले मुझे अखबार से पता चला कि मेरे बेटे अमर का क़ातिल अपने गुनाहों का फल पा चुका है । मैंने इस की तस्दीक वहां के वकील सोहन लाल भार्गव से भी कर ली है । अब जाकर मेरे दिल को चैन मिला । अब कहीं जाकर मेरे बेटे अमर के आत्मा को शांति मिली होगी ।
मुझे तुम पर नाज है बेटा । तुमने मेरे बेटे के क़ातिल को ढूंढने के लिए बहुत मेहनत की । तुम्हारे चलते ही मेरे बेटे की आत्मा को शांति मिला है । भगवान तुम्हें हमेशा खुश रखे । बाबा केदारनाथ मेरी उम्र भी तुझे दे दें ।
मुझे ये भी पता चला कि अमर के जीवन में एक लड़की थी । वो वीणा नाम की एक लड़की से प्यार करता था । पागल कहीं का ! अगर मुझे बताता कि वो उससे शादी करना चाहता है कि क्या मैं उसकी शादी नहीं करवाती ? उसे अपनी बेटी बनाकर रखती । क्या हुआ जो वो क्लब में नाचती थी । मैं उसे अपने माथे पर बिठाए रखती । इसी लड़की के लिए उसने उस रमाकांत से दुश्मनी कर ली थी । शायद उसे उस लड़की का कष्ट नहीं देखा गया । वो जो कुछ किया उस लड़की के दुखों को देखकर किया । वो दिल का बुरा लड़का नहीं था । ये तुमसे अच्छा कौन जान सकता है । वो तो तुम्हारा सबसे करीबी दोस्त था न ! क्या तुम्हें लगता है कि वो ये सब पैसों के लिए किया होगा ? तुम तो जानते हो कि उसे रूपए पैसों की कभी भी तंगी नहीं थी ।
बेटा ! एक आखिरी बात कहनी थी क्योंकि थोड़ी देर बाद मैं भी अपने बेटे अमर के पास पहुंच चुकी होंगी । अपने बेटे के अस्थि कलश को लिए गंगा मैया में समाधी ले लुंगी । क्या करूंगी जीकर ! किसके लिए जिऊं ! मैं तो अब तक अपनी सांसें इसीलिए ढो रही थी कि उस हत्यारे को फांसी पर चढ़ते देख सकुं । मेरा बेटा वहां अकेले हैं ! वो मुझे पुकार रहा है ! वो मेरे बगैर कहीं भी रहा ही नहीं !
बेटा ! उसके पापा मरे थे तो वो पांच साल का था ! बहुत छोटा सा ! हमेशा मेरी पल्लू से ही बंधा रहता था ! तब से लेकर हमेशा ऐसा ही रहा ! दो महिने पहले तक भी वो कुछ नहीं करता था । सब कुछ मैं ही करती थी । बेटा.... बेटा.. वो अकेले कैसे करेगा ? मुझे जाना ही होगा । मुझे पता है वो बहुत परेशान हैं । वो जैसा बचपन में था वैसा ही आज भी है । मैं जा रही हूं अपने जिगर के टुकड़े के पास । "
मैं घुटनों के बल बैठ गया और फुट फुट कर रोने लगा ।
दो साल बाद ।
वीणा आज मेरी पत्नी है । अच्छी खासी नौकरी भी है ।
माॅम के लिए जो बुरे खयालात थे उससे मैंने कब का तौबा कर लिया ।
रीतु तो मेरी जान है । वो अभी भी वैसे ही अपने हरकतों से मुझे कभी हंसाती है तो कभी मेरी फजीहत कर देती है ।
काजल से अभी भी उसी तरह बातें करते रहता हूं । लेकिन सिर्फ बातें ही होती है ।
श्वेता दी और जीजू ने अपने फ्लैट को बेचकर दिल्ली में ही एक जगह फ्लैट खरीद लिया ।
श्वेता दी से भी सेक्सुअल सम्बन्ध खतम हो गया है । वो अपने फेमिली में व्यस्त हो गई है ।
अनुष्का और उसके हसबैंड की लाइफ भी ठीक ही चल रही है ।
संजय जी से एक बार बातों के दौरान पता चला कि आगरा में उन्हीं के कर्मचारी ने उन्हें मारने की कोशिश की थी । वो फिलहाल जेल में हैं । कुछ मालिक नौकर का प्रोब्लम था ।
मधुमिता की भी शादी हो गई है और वो बहुत खुश है ।
समाप्त ।
_______________________________________________
माफ कीजिएगा । ये कहानी यहीं समाप्त हो रही है ।
कुछ कमी है मुझमें जो मैं समय का मैनेजमेंट नहीं कर पा रहा ।
मुझे बहुत खुशी है कि एक ऐसे आदमी की कहानी को पसंद किया गया जिसने कभी कोई कविता तक नहीं लिखा हो ।
मैं उन सभी लोगों को शुक्रिया कहता हूं जिन्होंने मुझे इतना बर्दाश्त किया ।
और खास तौर पर फ़ायरफ़ॉक्स भाई का । यदि ये नहीं होते तो मैं शायद बहुत पहले लिखना छोड़ देता ।
थोड़ा सा इमोशनल हूं लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं स्टोरी पढ़ना छोडूंगा या कमेंट नहीं करूंगा ।
बहुत बहुत धन्यवाद ।