Update 6 A.
भीड़ भाड़ तक मैंने कार ठीक चलाईं फिर मैंने अपनी बांई बांह उसके कन्धे के पीछे लपेटी और उसे अपनी तरफ खींचने की कोशिश की ।
" गाड़ी चलाने की तरफ तवज्जो दो " - वह मेरी बांह परे करते हुए बोली " एक्सीडेंट हो जाएगा ।"
" तुम तो दिल तोड़ रही हो "
" ऐसे ही हरकतों के कारण ट्रेन से ज्यादा रोड एक्सीडेंट्स होते हैं "
" अच्छा ।" मैं मायूसी से बोला ।
" एक बात बताओ "
" पुछो "
" ऐसी हरकतों से कितनी लड़कियां पटा चुके हो "
" एक भी नहीं "
" झुठ मत बोलो । इतने हैंडसम हो , सुन्दर हो , पढ़ें लिखे हो और उससे भी बड़ी बात लच्छेदार बातें करते हो ।"
" शुक्रिया । मुझे नहीं पता था कि मेरे में इतने सारे गुण है । "
" बोलो ना "
" अरे बोला न । कोई नहीं है । ....वैसे एक है जिस पर मैं ट्राई कर रहा हूं लेकिन वो तो मेरी बांह ही झटक देती है "
" सो सैड ।" मुस्करा कर बोली - " कौन है वो " ।
" हमारे रोहिणी की ही है । बेचारी की शादी गाजियाबाद में एक खुसट से हुई है "
" च..च..च... बेचारी ।" - अफसोस भरे स्वर में बोली ।
" एक बात कहूं ! "
" हां.. हां.. बोलो ।"
" अगर उसकी शादी नहीं हुई होती न तो मैं उसे जबरदस्ती उड़ा ले गया होता ।"
" और वो नहीं जाना चाहती तो ।"
" बोला न जबरदस्ती उड़ा ले गया होता ।"
" जबरदस्ती ! "
" हां , जबरदस्ती ।"
" उसका हसबैंड तुम्हें गोली मार देता ।"
" मैंने कहा अगर उसकी शादी नहीं हुई होती तो ...। वैसे भी मैं ब्लैक बेल्ट हूं , उसके हसबैंड जैसे तीन चार लोगों को तो मैं दो मिनट में छठी का दूध याद दिला दूं ।" - मैंने उसे अपना मसल दिखाते हुए कहा ।
" बड़ा घमंड है अपनी ताकत पर ।"
" घमंड नहीं विश्वास है ।....कभी आजमा लेना ।"
" मैं क्यों आजमाऊ । जिसे आजमानी है वो आजमाएं ।"
" सच कहूं तो मुझे उसके पति से बड़ी जलन होती है ।"
" वो क्यों भला ।"
" इतनी शानदार रसमलाई का रोज रोज भोग लगाता होगा ।"
उसने मेरे भुजाओं में एक जोरदार का पंच मारा ।
" आउच " - मैं अपनी भुजाएं सहलाने लगा ।
" क्या जोर से लगी ।" - उसने संवेदना प्रकट करते हुए कहा ।
" नहीं नहीं । ठीक हूं ।" - मैंने उसके बाल सहलाते हुए कहा ।
थोड़ी देर बाद हम गाजियाबाद उसके फ्लेट के नीचे पहुंचे । कार से उतरकर मैंने कहा - " श्वेता दी ! आप अन्दर चलो , मैं थोड़ी देर में आ रहा हूं ।"
" कहां जा रहे हो ।" उसने पूछा ।
" यहीं बगल में । आप चलो मैं दस मिनट में आया ।"
" अच्छा ।" कहकर जैसे ही वह पलटी कि मैंने उसे रोकते हुए कहा - " श्वेता दी । एक मिनट , रुकना जरा ।"
" क्या हुआ ।" - वह रूकते हुए बोली ।
" मुझे राजीव जीजू से कुछ personal बातें करनी थी , इसलिए आप हम दोनों को कुछ देर के लिए अकेला छोड़ देंगी ? "
" क्यों ! क्या बात है ।" - वह संशय भरे स्वर में बोली ।
" है कूछ बात जो मैं आपको अभी नहीं बता सकता । "
" नहीं । पहले मुझे बताओ बात क्या है ।"
" जब तक उनसे बात नहीं हो जाती तब तक आप को नहीं बता सकता । हां उनसे बात होने के बाद मैं आप को बता दूंगा , वादा करता हूं आपसे ।" - मैंने उनके दोनों हथेलियों को अपने हाथों से सहलाते हुए कहा ।
" कोई गड़बड़ वाली बात नहीं है न ।"
" नहीं । ऐसी बात नहीं है ।" मैंने उन्हें विश्वास दिलाते हुए कहा ।
" ठीक है फिर ।" कहकर वो अपने फ्लैट की तरफ चली गई ।
उनके जाने के पश्चात मैं भी एक तरफ चला गया । थोड़ी पुछताछ करने पर मैं उस PCO में प्रवेश किया जहां से किसी अज्ञात व्यक्ति ने पुलिस को अजय के मर्डर की सूचना दी थी ।
PCO वाला कोई साठ पैंसठ साल का बुजुर्ग था जो आंखों में चस्मा लगाए हुआ था । मैं वहां इस मकसद से आया था कि शायद वो उस अज्ञात मुखबिर के बारे में कुछ जानकारी दे दे । पहले तो बुड्ढा बड़ा ना नुकुर किया । फिर काफी समझाने के बाद बोला कि उस दिन सुबह दस बजे से ही काफी बारिश हो रही थी । और इस कारण PCO में भीड़ नहीं थी । सिर्फ पांच या छः लोग ही उस दिन आये थे जो सभी के सभी मर्द थे । वो उनमें से किसी को भी पहचानता नहीं था । और जो लोग आये थे उन्हें दुबारा देखने पर पहचान भी नहीं पाएगा । ये सारी बातें तो पुलिस के द्वारा मुझे पहले से ही मालूम थी ।
मैं निराश हो कर श्वेता दी के फ्लेट के तरह चला गया ।
जब मैं जीजा के घर पहुंचा तब श्वेता दी ने अपने कपड़े चेंज कर ली थी और जीजू कमरे में blanket से ढके टीबी देख रहे थे । मुझे देखते ही उनके चेहरे पर मुस्कान आई ।
" आओ सागर । बैठो ।" उन्होंने बैठते हुए कहा ।
मैंने उनको नमस्कार करते हुए कहा - " अरे ! अरे ! आप लेटे रहो । कैसी तबीयत है अभी ।"
" ठीक हूं । पहले से बेहतर हूं ।"
मैंने उनका नब्ज छुआ । बुखार नहीं था । मैं उनके बगल में बिस्तर पर बैठ गया । तभी श्वेता दी ने चाय लाई और वो बिस्तर के पास लगे सोफे पर बैठ गई ।
चाय पीते हुए जीजा ने कहा - " तुम्हारे दोस्त अमर के क़ातिल का कुछ पता चला ?"
" अभी तक तो नहीं " मैं चाय की चुस्की लेते हुए कहा ।
" मेरे तो समझ में नहीं आ रहा है कि वह यहां कर क्या रहा था ? किसी ने आखिर उसे क्यों मारा ।"
" ये तो मुझे भी नहीं पता लेकिन वो जो भी हो आखिर में कब तक कानून के नजरों से छुपा रहेगा, कभी ना कभी तो पकड़ा जाएगा ही ।" - कहते हुए मैंने श्वेता दी को इशारा किया तो वो आंखों ही आंखों से हामी भरी ।
" मैं जरा किराने की दुकान से आ रही हूं " श्वेता दी ने जीजू से कहा । और फिर मुझसे बोली - " तुम बैठो । खाना खा कर ही जाना । मैं बस थोड़ी देर में आईं ।"
मैंने सहमति में सिर हिलाया । वह चली गई ।
चाय खतम हो गई थी । मैंने क्लासिक का पैकेट निकाला और जीजा को आफर किया । उन्होंने सिगरेट निकाली लेकिन पीने का उपक्रम नहीं किया । मैंने अपनी सिगरेट सुलगाई , एक गहरा कश लगाया फिर जीजा की तरफ देखते हुए कहा ।
" जीजू , मुझे आप से कूछ बातें पुछनी थी ।"
" पुछो ।"
" मुझे पुरा विश्वास है कि मैं आप से जो कुछ पूछूंगा उसका जवाब आप सच सच देंगे ।"
" क्या बात है ! क्या पुछना चाहते हो ।" उन्होंने संशय भरे स्वर में कहा ।
" क्या आप ने अमर का खून किया ।" - मैंने स्पष्ट शब्दों में कहा ।
" क्या बकवास करते हो । मैं क्यों भला उसका खून करूंगा । मैं तो उसे ढंग से जानता तक नहीं ।"
" ओके । मान लिया । " - मैं उनके आंखों पर अपनी नजरें टिकाए बोला - " आप के फ्लेट में उस दिन जो लड़की थी , वो कौन थी ।"
" म.. मुझे क्या पता । होगी कोई । शायद कोई चोर होगी ।"
" आप उस लड़की को नहीं जानते ।"
" नहीं । मैं नहीं जानता ।"
" आप की जानकारी के लिए बता दूं कि मैं उस लड़की , उस कटे बालों वाली लड़की से मिल चुका हूं ।"
" क्या ! " अब जीजा कुछ बेचैन सा हो गया । उसने पहलु बदलते हुए कहा - " क. कौन है वो ।"
" ये तो आप मुझे बताइए कि वो कौन है जो आप के फ्लेट में आप का इन्तजार कर रही थी । और अगर .... अगर उसने लाश नहीं देखी होती तो वो वहां से भागती नहीं बल्कि आप के आने तक आप का इन्तजार कर रही होती ।"
अब जीजा के सर पर हवाइयां उड़ने लगा। वो बैचैन हुआ । इस बार उसने सिगरेट सुलगाई और उसके लम्बे लम्बे कश लगाया लगा |
वो बड़ी मुश्किल से बोला - " म. मैं तुम्हें सारी बातें बताता हूं लेकिन तुम्हें एक वादा करना होगा कि ये सब तुम श्वेता को नहीं बताओगे ।"
" जीजा ! ये एक कत्ल का मामला है । मेरे सबसे अजीज दोस्त अमर के कत्ल का । एक बुड्ढी औरत के एकलौते पुत्र का जिसकी जिन्दगी में उसके अलावा और कोई सहारा नहीं था । जिसकी जिन्दगी में अब दुःख और सिसकियों के अलावा कुछ नहीं बचा ।"
" वो अनुष्का थी । - " जीजा थके स्वर में बोला - " कालेज के दिनों में हम बहुत अच्छे दोस्त हुआ करते थे । धीरे धीरे हममें प्यार हुआ । मैं उससे शादी करना चाहता था लेकिन..." ।
" लेकिन क्या ? " मैं उत्सुकता से बोला ।
" उसके सपने काफी ऊंचे थे । वो रईसी की जिन्दगी जीने में यकीन करती थी । उसका सपना था कि उसका पति काफी अमीर हो । उसके पास गाड़ी हो , शोपिंग करने के लिए अनाप-शनाप पैसे हों , सोसल स्टेटस हो । लेकिन मैं ठहरा एक मध्यम वर्गीय परिवार का । मैं भला कहां से उसे ये सब दे पाता । एक साल के अफेयर के बाद उसने मुझे छोड़ दिया । फिर ना जाने कहां वो गायब हो गई ।"
" फिर आप से दुबारा कब मुलाकात हुई ।"
" उसके छः साल बाद एक दिन मैं अपने दोस्तों के साथ पैराडाइज क्लब गया । वहां वो मिली । स्वीमिंगपूल में । फिर उसके बाद हम कई बार मिले । उसने बताया उसकी शादी हो चुकी है किसी कुलभूषण खन्ना से । वो उसी पैराडाइज क्लब का मैनेजर था । कहने को तो वो क्लब का मैनेजर था लेकिन असलियत में उस क्लब के पचास पर्सेंट का हिस्सेदार था । उस क्लब के अलावा वो एक नाइटक्लब का भी मालिक है जो पहाड़गंज में है ।"
जीजा थोड़ी देर रुका फिर बोला ।
" उसकी शादी एक अमीर व्यक्ति से हो तो गई थी , उसके सपने भी पुरे हो रहे थे लेकिन शारीरिक जरूरतें से वो महरुम हो गई थी । उसका पति उसके जरूरतों को पूरा करने में असक्षम था । और कहते हैं ना पहला प्यार भुलाए नहीं भूलता । हम मिलने लगे । और फिर काफी करीब हो गये ।" कहकर जीजा चुप हो गया ।
" तो उस दिन आप दोनों की डेटिंग थी ।"
" हां । इसीलिए आफिस से बहाना बना कर जल्दी घर आ गया था ।"
" आप को क्या लगता है ? क्या उसने खून किया होगा ? क्या वो हिंसक प्रवृत्ति की है ।"
" नहीं , नहीं । वो कुछ भी हो सकती है लेकिन खुनी नहीं हो सकती है ।"
मैं उनसे कुछ और पुछता तभी श्वेता दी आ गई और हमारी बातों पर विराम लग गया ।
उसके बाद कुछ खास नहीं हुआ । खाना खाने के दौरान श्वेता दी ने जीजू से कहा - " उर्वशी और उसके हसबैंड ने हमें अपने घर बुलाया है । उनकी शादी की रिसेप्शन है परसों ।"
तभी मुझे याद आया कि जिस दिन अमर का खून हुआ था उसी दिन उनकी शादी थी ।
" मैं कैसे जा सकता हूं । अभी मुझे तो ठीक होने में कम से कम पांच सात दिन तक तो लग ही जायेंगे ।" - जीजा ने कहा ।
श्वेता दी उदास हो गई ।
" जाना कहां है ।" मैं खाते खाते पुछा ।
" आगरा ।" श्वेता दी गई कहा ।
" तुम सागर के साथ क्यों नहीं चली जाती " - श्वेता दी की उदासी देखकर जीजा ने कहा ।
" म..म.. मैं ।" मैं हड़बड़ा कर बोला ।
" हां । ये सही रहेगा । चलो न सागर । प्लीज़ ! एक ही तो सहेली है मेरी । मेरे नहीं जाने से वो बहुत गुस्सा करेगी ।" श्वेता दी ने कहा ।
" अरे ! मैं कैसे जा सकता हूं । कालेज जाना है फिर शाम को कराटे क्लास के लिए जाना है ।"
" प्लीज़ ! एक दिन की तो बात है । क्या एक दिन के लिए भी मेरे लिए तुम्हारे पास समय नहीं है ।" - उसने इमोशनल होते हुए कहा ।
" ओके ओके । चलूंगा ।" मैंने मुस्कराते हुए कहा ।
तभी जीजा ने अपनी राय दी । " सागर , तुम दिल्ली से ट्रेन से ही आ जाना और यहां से मेरी कार से आगरा चले जाना ।"
" ठीक है ।" कहकर मैं खाने की थाली से उठा और मुंह धोकर वापस आया ।
फिर मैंने जीजा से जाने की अनुमति ले कर दरवाजे की तरफ चल दिया । श्वेता दी मुझे छोड़ने दरवाजे तक आई ।
" बातें हो गई ।" श्वेता दी ने पूछा ।
" हां । बातें हो गई ।"
" फिर बताओ ।"
" मैंने आपको बताया था न कि बताउंगा । थोड़ी सब्र करो ।" कहकर मैंने उनको हग किया और दरवाजे से बाहर निकल गया । तभी श्वेता दी बोली -
" रूको ।
मैं रूक गया ।
" यहां आओ ।"
मैं उनके पास गया ।
वो मेरे गले लगी और मेरे दाहिने गाल पर एक किस कर दी ।
" अब जाओ ।" उन्होंने मुस्करा कर कहा ।
मैंने अपने होंठ की तरफ इशारा किया तो मुस्कराते हुए मुझे धक्का दिया और बोली - " परसो सुबह आठ बजे तक आ जाना ।"
" जो आज्ञा तुफाने हमदम ।" - मैंने हल्के से सर को झुकाया और अपने घर को निकल गया ।