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Kaali is to marry in 3 years. Guess what happens


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Ajju Landwalia

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अमर ने काली को सुबह जब अपना लौड़े चूसते हुए देखा तब उसने कोई प्रतिकार नहीं किया। काली की हिम्मत बढ़ रही थी तो उसने अपने मालिक का लोहा चूसते हुए उसकी मर्दाना चूचियों को छेड़ा। अमर की उत्तेजना की आवाज ने काली की हिम्मत बढ़ाई।


काली अपने मालिक के बदन को सीखते हुए उसकी पसंद को जान रही थी। इसी तरह अमर को चूसते हुए जब वह झड़ने की कगार पर पहुंचा तब काली ने अमर की तरह अपनी लंबी पतली उंगली मालिक की बंद गांड़ में घुसा कर अंदर से लौड़े को दबाया।


अमर का वीर्य तेजी से काली के गले में फूट पड़ा और काली को अपने मालिक का माल फुर्ती से गटकना पड़ा। अफसोस कि इसके बाद अमर ने काली को डांट कर ऐसा दुबारा करने से मना कर दिया।


अमर ने काली को समझाया की अक्सर मर्दों को अपने बदन में कोई छेड़छाड़ पसंद नही आती। औरत मर्द का यह महत्वपूर्ण फर्क काली समझ गई और ऐसी गलती दुबारा नहीं की।


काली का बदन एक महीने में पूरी तरह पक गया। काली की छोटे छोटे कच्चे मम्मे अब फूल कर ललचाने लगे। काली की गांड़ भी गदरा गई और चाल मटकने लगी। काली की जांघें कसरत और पोषण से भर गई। काली का सपाट पेट उसके उभरे अंगों को और ज्यादा खुल कर दिखा रहा था।


अमर से मिलने के ठीक एक महीने बाद काली का अगला मासिक धर्म शुरू हो गया। काली ने शर्माकर यह बात अपने मालिक को बताई।


काली को उम्मीद थी कि खतरा टलने की बात सुनकर मालिक खुश हो कर उसे वहीं लूट लेगा। अगर सैनिटरी नैपकिन नही लगा होता तो काली की पैंटी मालिक की उत्तेजना के बारे में सोच कर भीग चुकी होती।


लेकिन मालिक ने अपनी गुलाम की इस अहम खबर को नजरंदाज कर दिया। रात को जब अमर ने काली की पैंटी उतारे बगैर उसे अपनी उंगलियों से झड़ाया तब काली को डर लगने लगा। मालिक अगले दो दिन कुछ खोए खोए नजर आए तो काली को लगा कि मालिक उसे बेचने की फिरात में है।


जिस दिन काली का मासिक धर्म रुक गया उस दिन काली ने ठान लिया कि वह मालिक से अपनी झिल्ली फाड़ कर रहेगी।


अपने बदले बदन को जानकर काली ने अपने नए कपड़ों को अपने नए माप से सी लिया। काली को कपड़े अच्छे से सीना आता था और आज उसने अपनी इसी कला को अपनी इज्जत लूटने के लिए इस्तमाल किया।


काली जानती थी कि शुक्रवार होने की वजह से आज मालिक कुछ जल्दी आयेंगे। काली ने अपनी तयारी कर ली और अपने मालिक का इंतजार करने लगी।


अमर ने काली को इंतजार कराया और रात को 9 बजे घर लौटा। अमर का सक्त चेहरा देखकर काली अंदर ही अंदर डर गई पर उसने अपने डर को दबाए रखा। खाना खाने के बाद काली ने खुद से बात छेड़ी।


काली, “आज मेरी दूसरी मासिक धर्म की बारी पूरी हो गई है। मैने नए पैकेट की पहली गोली भी खा ली है। क्या आप आज मेरी झिल्ली फाड़ कर मुझे अपनी गुलाम बनाओगे?”


अमर ने गहरी सांस लेकर काली का हाथ अपने हाथों में लिया और उसकी डरी हुई आंखों में देखा।


अमर, “काली, तुम जान चुकी हो की मैं गुलामी के खिलाफ हूं। तुम यह भी जानती हो कि मैं कभी शादी नहीं करने वाला। हो सकता है कि आगे तुम्हारी जिंदगी में कोई आए जिस से तुम प्यार करो, उसे अपना सब कुछ देना चाहो। मगर आज अगर मैंने वह सब लूट लिया तो कल तुम सिर्फ पछताओगी। इस लिए तुम्हें यह अनमोल तोहफा यूं लुटाना नहीं चाहिए।”


सुबह से जमा होता डर और उत्तेजना फट कर गुस्सा बन गई और काली ने अपने मालिक के हाथों को अपने हाथों में पकड़ा।


काली, “मालिक, आप तो जानते हो की मैं बिल्कुल अनछुई कुंवारी थी। आप यह भी जानते हो कि मैं अपने आप को आप की गुलाम मानती हूं। हो सकता है कि आगे चलकर आप को अचानक किसी को रिश्वत देने की जरूरत पड़े और आप को याद आए की आप के पास एक ऐसी रिश्वत है जो कोई और नहीं रखता। यह भी हो सकता है कि आप को अचानक पैसे की जरूरत पड़े। फुलवा दीदी 20 सालों पहले 1 लाख में बिकी थी तो अभी 4-5 लाख तो मिल ही जायेंगे! अगर यह खजाना कल इस्तमाल हो सकता है तो उसे आज जूठा करने से क्या फायदा?”


अमर गुस्से में आकर, “क्या तुम्हें सच में ऐसा लगता है? क्या मैं इतना गिरा हुआ इंसान हूं जो तुम्हें ऐसे बेचूंगा?”


काली, “आप ने कहा था कि आप मुझे अपना बना कर किसी और से नहीं बाटेंगे! कभी नहीं बेचेंगे! आप पहली बात से तो मुकर रहे हो! तो अब मुझे दोबारा बेचने और बांटने में कितना सोचोगे? मैं आप को क्या समझती हूं? मैं आप को महापुरुष की तरह देखती थी। पर शायद आप पुरुष हो ही नहीं!”


अमर का गुस्सा बम धमाके की तरह फटा और काली मुंह खोले देखती रह गई।


अमर ने गुस्से से काली का गला पकड़ लिया और उसे बेडरूम में खींच कर ले जाते हुए, “गुलाम को गुलाम की तरह न रखना यही मेरी गलती थी! तुझे दोस्त नहीं, लड़की नही गुलाम बनना है! पुरुष नही मैं तुझे एक जवान पुरुष की कुंवारी गुलाम होने का मतलब सिखाता हूं!”


काली को अमर ने बिस्तर पर फेंक दिया और अपने कपड़े उतारने लगा। अमर की आंखों में भड़का गुस्सा देख काली कांप उठी। अमर के फूले हुए फौलाद को देख कर काली ने अपनी टांगे जोड़ ली। काली की जांघें अचानक यौन रसों की बाढ से भीग रहीं थी।


काली डरकर, “माफ करना मालिक! मैं आप को गुस्सा नहीं दिला…

आह!!…
मालिक नही!!…”


अमर ने काली की जुड़ी हुई टांगों को पकड़ कर खींचते हुए उसे बिस्तर पर गिरा दिया। काली की सलवार के नाडे को अमर ने खींच कर तोड़ा तो काली औरत के सहज स्वभाव से छटपटाकर प्रतिरोध करने लगी।


काली के प्रतिरोध से अमर के अंदर का मर्द दहाड़ा। अमर ने काली को लात मारने से रोकते हुए उसे पेट के बल लिटाते हुए उसकी सलवार और पैंटी को खींच उतारा। काली ने अपनी हथेलियों को गद्दे पर दबाकर उठने की कोशिश की तो अमर ने काली के ऊपर लेटते हुए उसे ऊपर से दबाया।


काली चीख पड़ी जब उसके लड़ते मजबूर बदन पर से उसका कुर्ता उतार कर उसे बेड पर लिटा दिया गया। काली बिन पानी की मछली की तरह तड़पती छटपटा रही थी जब अमर ने अपने लंबे मोटे लौड़े को उसकी गांड़ की दरार पर लगाया।


उस विशालकाय टोपे को अपनी संकरी भूरी गली पर महसूस कर काली सहम गई। अमर ने इसी का फायदा उठाकर काली के बदन से उसका आखरी कपड़ा, काली की तंग होती ब्रा उतार फैंकी।


नंगी काली ने पलटी मारी और अपने नाखूनों से अपने हमलावर पर धावा बोला। अमर ने आसानी से काली की दोनों हथेलियों को पकड़ कर अपनी दाईं हथेली में पकड़ लिया तो काली ने उसके दाएं बाजू को काटने की कोशिश की।


अमर ने अपने बाजू को बचाने के लिए बाएं हाथ से काली का मुंह दबाया और अपनी दाईं हथेली को नीचे ला कर उसमे काली की जुल्फों को भी फंसाया। इस छटपटाहट में अमर का लौड़ा काली की कुंवारी बंद कली पर रगड़ता रहा। इसी तरह अंदर से बहते रसों में अमर का लौड़ा चिकनाहट में पोत दिया गया और काली उत्तेजना में सिहरते हुए कांपने लगी।


नर मादा की इस पुरानी जंग को दोनो जानवर पहचानते थे और इसके अंत के लिए दोनों बदन तयार हो गए। काली का बदन हार कर अकड़ते हुए कांपने लगा। उसकी तेज सांसों से निकलती आहें अमर के लौड़े को लावा रस से भर कर ठंडक के लिए झरने की ओर पुकार रही थीं।


अमर के लौड़े ने काली की कुंवारी कली को रगड़ते हुए अपनी दिशा बदली और काली की कली की पंखुड़ियां मोटे टोपे से फैल कर खुल गईं। गरमी से उबलते लोहे की छड़ ने मीठे पानी को चख लिया और अपनी प्यास बुझाने लपक लिया।


अमर ने अपने लौड़े के टोपे को काली की कुंवारी चूत के महीन परदे पर पाया और वह रुक गया। अमर ने काली की उत्तेजना से जलती आंखों और झड़कर पसीने से भीगे बदन को देखा और अपना निश्चय किया।


अमर, “Oh Fuck it!!…

Fuck you काली!!…”


“मा!!!!…

मा अमाके बाचन!!…

मा!!…

आ!!…

आ!!…

आह!!!!!…”


काली की चीखें डरकर उसकी मूल बांगला में मां को बचाने के लिए पुकार कर शुरू होकर जख्मी जानवर की बेजुबान चीख बन गई। काली की पिघलती गीली भट्टी में अपना उबलता लोहा सेंकते हुए अमर रुक गया।


अमर को अपने लौड़े पर से गोटियों पर जमा होकर टपकता रस महसूस हुआ और वह जैसे होश में आ गया। अमर समझ गया कि काली की फटी झिल्ली का खून अब उसकी गोटियों से टपककर उसकी चादर को काली की जवानी की तरह दाग लगा रहा था।


अमर ने काली के सिसक कर कांपते बदन को अपने नीचे दबाते हुए उसकी बेबस आंखों में से दर्द भरे आंसू बहते देखे और उसे अपने बारे में दो बातें पता चली।


अमर समझ गया कि उसने काली का बलात्कार कर गलती नहीं गुनाह किया है पर उसे इस बात से एक अनोखे गर्व का एहसास हो रहा था। दूसरे बात यह थी की उसकी पहली प्रेमिका कुंवारी नहीं थी यह तो उसे पता था। अब अमर काली को देखते हुए समझ गया कि उसकी बीवी भी उस तक कुंवारी पहुंची नही थी।


अमर ने अपने लौड़े को काली की जख्मी गहराइयों में दबाकर रखते हुए काली को चूमते हुए उसकी तारीफ करना शुरू किया। जैसे काली हमले में आई गहरी चोट से उभरने लगी तो उसने अमर की परेशान आंखों को देखा।


काली को एहसास हुआ कि अब उसकी झिल्ली का दर्द मिट चुका था और उसकी कच्ची जवानी के फैलकर मालिक का लोहा पकड़ने का एहसास हो रहा था। यह जबरदस्ती किसी के अंग के हिसाब से अपने अंदरूनी हिस्से को ढाले जाने जैसा एहसास था जो दर्दनाक तो नहीं था पर मजेदार भी नहीं था।


अमर, “काली, मुझे माफ कर दो! मैं गुस्से में पागल हो गया था। मैंने तुम्हें चोट पहुंचाई।”


काली दर्द से सिसककर, “मालिक, अब मैं आप की हो चुकी हूं। बस एक एहसान कीजिए। अब मुझे जाने दीजिए! मुझे (रोते हुए) मां चाहिए…

मुझे घर जाना है!!…”


अमर जानता था कि अब अगर उसने काली को छोड़ दिया तो वह जिंदगी में कभी किसी मर्द को साथी नहीं बना पाएगी।


अमर ने काली के हाथों को छोड़ दिया और उन्हें अपनी बगलों के नीचे से लेते हुए काली को अपनी बाहों में भर लिया। अमर ने काली के सिसककर निश्चल होठों को हल्के से चूमा और अपने लंबे लौड़े को सुपाड़े तक बाहर निकाला। खून और झिल्ली के अवशेषों से सना वह बेरहम अंग जैसे ही काली की जख्मी जवानी में से बाहर निकला तो काली ने अपनी मासूमियत की हत्या का शोक मनाते हुए एक गहरी सांस ली।


अमर ने काली को हल्के से चूम कर, “माफ करना काली!”


इस से पहले कि काली इस माफी मांगने की वजह पूछ पाती अमर का निर्दयी लौड़ा काली को दुबारा चीरते हुए काली की खून से सनी जवानी की कोरी गहराइयों में समा गया। काली चीख पड़ी और तड़पते हुए अमर की पीठ पर मुट्ठियों से मारते हुए आजादी की भीख मांगने लगी। काली की टांगे अमर के कूल्हों से फैलकर दर्द से घुटनों में मुड़कर उठ गई।


अमर ने काली से माफी मांगते हुए अपनी कमर को जोर से पीछे किया और लौड़े को सुपाड़े तक बाहर निकाला। इस बार काली जानती थी कि अमर क्या करेगा और उसने अमर के नीचे से निकलने की कोशिश की। अमर के नीचे दबने से उसका वजन काली से उठाया नही गया और अमर ने तेज झटके से अपना हथियार काली के पेट की गहराई में घोंप दिया। काली की चीख निकल पड़ी और अमर ने काली को संभलने का कोई मौका नहीं दिया।


काली ने अपने नाखून गड़ाकर अमर के नीचे से बाहर निकलने की कोशिश की पर उसका हर तेज वार काली की अनछुई गहराइयों में आग लगा रहा था। काली की दर्द भरी सिसकियां दुबारा गरमाने लगी। काली की जांघें फैल कर कमर को उठाने लगी।


काली अपने नाखूनों से अपने मालिक को नोच कर अपने ऊपर खींचने लगी। काली की जलती जवानी में खून के रिसाव के साथ अब यौन रसों की बाढ आ गई।


काली, “मालिक!!…
मालिक आ!!…
मालिक आह!!…
उम्म मालिक!!…
मालिक!!…”


काली को पता नहीं था कि वह अपने मालिक से क्या मांग रही थी पर उसे यकीन था की मालिक उसे वह ना दे तो वह जल कर मर जायेगी। काली अपने मालिक से लिपटकर, अपनी गांड़ उठाकर, कमर हिलाकर, एड़ियों से मालिक के कूल्हे जकड़कर, नाखूनों से मालिक को अपने ऊपर खींचते हुए अपने फूले हुए मम्मों की नुकीली चूचियां मालिक के सीने पर रगड़ रही थी।


पसीने से भीग कर भी काली के बदन की आग जोरों से भड़क रही थी। काली का बदन जोरों से अकड़ने लगा। काली को लगा की अब वह मर रही है पर वह जख्मी जानवरों की बोली ही बोल पा रही थी।


काली को अमर की बाहों में जैसी अकड़ी का दौरा पड़ा। काली के अंतरंगों ने अमर को दर्दनाक तरीके से निचोड़ा। काली बहोशी तक झड़ती रही और अमर भी स्खलन के अपने तोड़ चुका था।


अमर की गोटियां जोरों से धड़कते हुए अपने उबलते माल को उड़ेलने की पूरी कोशिश कर रही थीं। अमर को स्खलन का एहसास हुआ पर उसके लौड़े में से एक बूंद भी बाहर नहीं निकल पाई।


काली की जख्मी जवानी अभी तक अपने आप को मर्द के अंग के हिसाब से ढाल नहीं पाई थी। इसी वजह से अंदर से बने दबाव ने काली के झड़ने के बाद भी अमर को झड़ने से रोके रखा था।


अमर थक कर चूर, पसीने से लथपथ काली को यौन सुख में पहली बार नहाते देख समझ गया कि इस छोटी सी बात के लिए मर्द कत्ल तक क्यों करते हैं।




Behad Shandar update Bhai,

Kaali ko Amar ne Kali se Phool bana hi diya............lekin mujhe aisa lagta he ye sab aaram se aur Kaali ki sahmati se hona chahiye tha...........to aur bhi majedar scene banta.......

Keep posting Bhai
 

Lefty69

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अमर ने अपनी बेहोश गुलाम के माथे पर पसीने से चिपके बालों को दूर किया। काली ने बेहोशी में मीठी मासूम मुस्कान दी जिसे देख कर अमर भी मुस्कुराया।


अमर ने काली के गले पर धड़कती उसकी रक्त वाहिनी को vampire की तरह चूसते हुए चूमा और अपने लौड़े को धीरे धीरे काली की बेतहाशा तंग योनी में से सुपाड़े तक बाहर निकाला। लौड़ा “पक्क!” की आवाज से बाहर निकला।


काली को अपनी चूत में से लौड़ा बाहर निकलने का एहसास हुआ और उसने चैन की सांस ली।


“उन्मम्म…”


अमर ने अपने लौड़े को धीरे धीरे काली की खून और यौन रसों से चिकनी चूत में भरा। अमर के लौड़े की जड़ ने काली के खिलते फूल को “थप!!…” कर चूमा। काली ने उत्तेजना भरी हल्की आह भरी।


“आह!…”


अमर को यह खेल पसंद आया और वह अपनी गुलाम को बेहोशी में धीरे धीरे गरमाते हुए पेलने लगा।

पक्क

“उम्म्म…”

थप!!…

“आह!!…”

पक्क

“उन्म्म्म…”

थप!!…

“अंहह!!…”

पक्क

“उम्म्…”

थप!!…

“हा!!…”

पक्क

“उन्म्…”

थप!!…

“अह!!…”

पक्क

“उन्ह्ह…”

थप!!…

“आह!!…”


रति क्रीड़ा में पहली बार हार कर तृप्त हो चुका काली का शरीर दुबारा खेल में शामिल हो गया। इस बार काली का शरीर अपने प्रतिस्पर्धी को जान चुका था और अपने प्रतिस्पर्धी के आकार को अपनाते हुए खेल खेलने लगा।


“आआह्हह!!…”


काली ने आह भरते हुए अपनी आंखें खोली और अपने आप को पूरी तरह हार कर मालिक की शरण में पाया। काली की जवानी के मुंह पर जलन का हल्का एहसास उसे बता रहा था की वह बेहोशी में भी काफी देर तक खेल रही थी।


काली अपने बदन की थरथराहट से समझ गई की बुरी तरह झड़ने से जिस तरह वह बेहोश हुई थी उसे तरह वह होश में भी आई थी। अपने मालिक को यूं धीरे लंबे और गहरे चाप लगाते देख कर काली उत्तेजना में दुबारा गरमाने लगी।


“उन्मम्म…”
काली थककर, “मालिक!!…”


अमर ने मुस्कुराकर काली की आंखों में देखते हुए, “क्या मेरी…
चोदू गुड़िया…
जाग गई?…
क्या मेरी…
चोदू गुड़िया…
और चुधेगी?”


काली कांपते हुए, “थक…
गई…”


अमर ने अपने धक्के तेज करते हुए, “जाहिर बात…
है…
तुम लगातार…
5 बार…
झड़ी हो!!…”


काली की आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा और दूर चमकती रोशनी को देखते हुए उसका बदन अकड़ने लगा। काली ने अपनी जवानी में से रसों को बाहर बहते हुए महसूस किया पर साथ ही मालिक भी कराहने लगा।


काली ने अपनी गहराई में मालिक को धड़कते हुए महसूस किया। मालिक की हर धड़कन के साथ उसकी नाभी के नीचे गर्मी जमा हो रही थी। धड़कने महसूस होना कम होकर रुक गई और मालिक की गर्मी को काली के बदन ने अपना लिया।


अमर काली के ऊपर गिर गया। मालिक के पसीने से लथपथ बदन के नीचे दबकर काली को एक अजीब खुशी का एहसास हुआ।


काली, “मालिक, क्या अब मैं बरबाद हो गई हूं? क्या अब मेरी कोई कीमत नहीं रही?”


थके हुए अमर ने अपनी नई प्रेमिका को अपनी बाहों में खींच कर बैठते हुए काली को अपनी गोद में बिठा लिया।


काली को पानी पिलाते हुए अमर, “काली तुम बेशकीमती हो! कोई भी इस से कुछ अलग कहे तो वह झूठा है। आज से तुम औरत बनी हो। इसका कोई खास फर्क नहीं पड़ता। तुम कल जो काली थी आज भी वही हो और कल भी तुम्हें सिर्फ तुम खुद बदल सकती हो!”


काली के जूठे ग्लास से अमर ने पानी पिया और यह देख कर काली शर्मा गई। अमर अभी सिर्फ एक बार झड़ा था और जिद्द करने पर उसकी तोप में से 2 बार और चलने लायक बारूद निकाला जा सकता था। लेकिन काली की कोरी जवानी अब तक उसके लौड़े के हिसाब से ढलते हुए 6 बार झड़ चुकी थी। अमर की चादर पर खून और यौन रसों का बड़ा दाग सूखते हुए उसकी बेरहमी को उजागर कर रहा था।



9-1517808770

इसी वजह से अमर ने अपने तपे हुए लोहे को काबू में रखते हुए अपनी गुलाम को प्यार से अपनी बाहों में लिया और दोनों लेट गए। हालांकि दोनों को नींद आने में काफी देर लगी पर दोनों एक दूसरे को छूते हुए चुप रहे।
 

Lefty69

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Behad Shandar update Bhai,

Kaali ko Amar ne Kali se Phool bana hi diya............lekin mujhe aisa lagta he ye sab aaram se aur Kaali ki sahmati se hona chahiye tha...........to aur bhi majedar scene banta.......

Keep posting Bhai
Kaali ne hi amar ko uksaya. Baad mein dar kar kuch virodh kiya par fir sath bhi diya.

Kali ki pahli suhagan subah kaisi hogi?
 

Lefty69

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Lefty69

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Ban zaleli story madhe mi far rough rape che varnan kele hote. Aata tyala durust karun parat chalu karave lagel. Pan tya adhi tharlelya story purn karto Ani mag tikde jaato.

Manav bana danav
Buri fansi Laxmi aunty
Fulva bekasur randi
Shighrapatni
Hya mazya purn zalelya katha aahet
ho yapn vachyla chalu krty....pn ti ban story jast intresting vataty...ti baher kuth post keliy ka jith vachyla milel
 

Lefty69

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ho yapn vachyla chalu krty....pn ti ban story jast intresting vataty...ti baher kuth post keliy ka jith vachyla milel
Banned story was on hypnosis
Middle aged smart widower makes hypnosis drug to help his son- son leaves but sexy girl finds about hypnosis - girl hypnotized for study but then called at home- girl raped but she forgets about rape due to hypnosis - more and more rape till she accepts it- then neighbour woman has rape history - she is raped by man- Now she is ok-

Basically the story had lot of rape content that I didn't check the rules about. So it got banned.

No complain as I will edit it later to make it acceptable.
 
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Lefty69

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Hello friends,
Please give me your suggestions.

What happens the morning after Kali's "unsealing"?
A. Both are shy and avoid each other
B. Both are excited and start playing till Amar has to go
C. Amar is ashamed but Kali is excited
D. Amar is excited but Kali is scared
E. Amar decides to treat Kali like a real slave. Shares her with his hospital doctors as Bonus
F. Amar has a change of heart and takes Kali for a proper Honeymoon.
 
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