Thank you for reminding me of my mistakeBhai 10 number nhi diya
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Thank you for your continued support and replySuperb update
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Ban zaleli story madhe mi far rough rape che varnan kele hote. Aata tyala durust karun parat chalu karave lagel. Pan tya adhi tharlelya story purn karto Ani mag tikde jaato.story kharach khup mast ahe....n me ky suchna denar? itakya changlya story writting mde n changlya writter mde chuk kadhnya evda motha nhi me...ata next update yei prynt tumcha bakicha story vachun gheto...mla tumchi ban zaleli story de intrest ahe...to kuthe milel vachyla
Thank you for your support and replyBhai 10 number nhi diya
Thank you for your continued support and replyUpdate ki frequency badha do aap Bhai, naye readers apne aap judte chale jayenge........
Both update are awesome
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Super story bhai keep going well12
अमर ने काली को सुबह जब अपना लौड़े चूसते हुए देखा तब उसने कोई प्रतिकार नहीं किया। काली की हिम्मत बढ़ रही थी तो उसने अपने मालिक का लोहा चूसते हुए उसकी मर्दाना चूचियों को छेड़ा। अमर की उत्तेजना की आवाज ने काली की हिम्मत बढ़ाई।
काली अपने मालिक के बदन को सीखते हुए उसकी पसंद को जान रही थी। इसी तरह अमर को चूसते हुए जब वह झड़ने की कगार पर पहुंचा तब काली ने अमर की तरह अपनी लंबी पतली उंगली मालिक की बंद गांड़ में घुसा कर अंदर से लौड़े को दबाया।
अमर का वीर्य तेजी से काली के गले में फूट पड़ा और काली को अपने मालिक का माल फुर्ती से गटकना पड़ा। अफसोस कि इसके बाद अमर ने काली को डांट कर ऐसा दुबारा करने से मना कर दिया।
अमर ने काली को समझाया की अक्सर मर्दों को अपने बदन में कोई छेड़छाड़ पसंद नही आती। औरत मर्द का यह महत्वपूर्ण फर्क काली समझ गई और ऐसी गलती दुबारा नहीं की।
काली का बदन एक महीने में पूरी तरह पक गया। काली की छोटे छोटे कच्चे मम्मे अब फूल कर ललचाने लगे। काली की गांड़ भी गदरा गई और चाल मटकने लगी। काली की जांघें कसरत और पोषण से भर गई। काली का सपाट पेट उसके उभरे अंगों को और ज्यादा खुल कर दिखा रहा था।
अमर से मिलने के ठीक एक महीने बाद काली का अगला मासिक धर्म शुरू हो गया। काली ने शर्माकर यह बात अपने मालिक को बताई।
काली को उम्मीद थी कि खतरा टलने की बात सुनकर मालिक खुश हो कर उसे वही लूट लेगा। अगर सैनिटरी नैपकिन नही लगा होता तो काली की पैंटी मालिक की उत्तेजना के बारे में सोच कर भीग चुकी होती।
लेकिन मालिक ने अपनी गुलाम की इस अहम खबर को नजरंदाज कर दिया। रात को जब अमर ने काली की पैंटी उतारे बगैर उसे अपनी उंगलियों से झड़ाया तब काली को डर लगने लगा। मालिक अगले दो दिन कुछ खोए खोए नजर आए तो काली को लगा कि मालिक उसे बेचने की फिरात में है।
जिस दिन काली का मासिक धर्म रुक गया उस दिन काली ने ठान लिया कि वह मालिक से अपनी झिल्ली फाड़ कर रहेगी।
अपने बदले बदन को जानकर काली ने अपने नए कपड़ों को अपने नए माप से सी लिया। काली को कपड़े अच्छे से सीना आता था और आज उसने अपनी इसी कला को अपनी इज्जत लूटने के लिए इस्तमाल किया।
काली जानती थी कि शुक्रवार होने की वजह से आज मालिक कुछ जल्दी आयेंगे। काली ने अपनी तयारी कर ली और अपने मालिक का इंतजार करने लगी।
अमर ने काली को इंतजार कराया और रात को 9 बजे घर लौटा। अमर का सक्त चेहरा देखकर काली अंदर ही अंदर से डर गई पर उसने अपने डर को दबाए रखा। खाना खाने के बाद काली ने खुद से बात छेड़ी।
काली, “आज मेरी दूसरी मासिक धर्म की बारी पूरी हो गई है। मैने नए पैकेट की पहली गोली भी खा ली है। क्या आप आज मेरी झिल्ली फाड़ कर मुझे अपनी गुलाम बनाओगे?”
अमर ने गहरी सांस लेकर काली का हाथ अपने हाथों में लिया और उसकी डरी हुई आंखों में देखा।
अमर, “काली, तुम जान चुकी हो की मैं गुलामी के खिलाफ हूं। तुम यह भी जानती हो कि मैं कभी शादी नहीं करने वाला। हो सकता है कि आगे तुम्हारी जिंदगी में कोई आए जिस से तुम प्यार करो, उसे अपना सब कुछ देना चाहो। मगर आज अगर मैंने वह सब लूट लिया तो कल तुम सिर्फ पछताओगी। इस लिए तुम्हें यह अनमोल तोहफा यूं लुटाना नहीं चाहिए।”
सुबह से जमा होता डर और उत्तेजना फट कर गुस्सा बन गई और काली ने अपने मालिक के हाथों को अपने हाथों में पकड़ा।
काली, “मालिक, आप तो जानते हो की मैं बिल्कुल अनछुई कुंवारी थी। आप यह भी जानते हो कि मैं अपने आप को आप की गुलाम मानती हूं। हो सकता है कि आगे चलकर आप को अचानक किसी को रिश्वत देने की जरूरत पड़े और आप को याद आए की आप के पास एक ऐसी रिश्वत है जो कोई और नहीं रखता। यह भी हो सकता है कि आप को अचानक पैसे की जरूरत पड़े। फुलवा दीदी 20 सालों पहले 1 लाख में बिकी थी तो अभी 4-5 लाख तो मिल ही जायेंगे! अगर यह खजाना कल इस्तमाल हो सकता है तो उसे आज जूठा करने से क्या फायदा?”
अमर गुस्से में आकर, “क्या तुम्हें सच में ऐसा लगता है? क्या मैं इतना गिरा हुआ इंसान हूं जो तुम्हें ऐसे बेचूंगा?”
काली, “आप से कहा था कि आप मुझे अपना बना कर किसी और से नहीं बाटेंगे! कभी नहीं बेचेंगे! आप पहली बात से तो मुकर रहे हो! तो अब मुझे दोबारा बेचने और बांटने में कितना सोचोगे? मैं आप को क्या समझती हूं? मैं आप को महापुरुष की तरह देखती थी। पर शायद आप पुरुष हो ही नहीं!”
अमर का गुस्सा बम धमाके की तरह फटा और काली मुंह खोले देखती रह गई।
अमर ने गुस्से से काली का गला पकड़ लिया और उसे बेडरूम में खींच कर ले जाते हुए, “गुलाम को गुलाम की तरह न रखना यही मेरी गलती थी! तुझे दोस्त नहीं, लड़की नही गुलाम बनना है! पुरुष नही मैं तुझे एक जवान पुरुष की कुंवारी गुलाम होने का मतलब सिखाता हूं!”
काली को अमर ने बिस्तर पर फेंक दिया और अपने कपड़े उतारने लगा। अमर की आंखों में भड़का गुस्सा देख काली कांप उठी। अमर के फूले हुए फौलाद को देख कर काली ने अपनी टांगे जोड़ ली। काली की जांघें अचानक यौन रसों की बाढ से भीग रहीं थीं।
काली डरकर, “माफ करना मालिक! मैं आप को गुस्सा नहीं दिला…
आह!!…
मालिक नही!!…”
अमर ने काली की जुड़ी हुई टांगों को पकड़ कर खींचते हुए उसे बिस्तर पर गिरा दिया। काली की सलवार के नाडे को अमर ने खींच कर तोड़ा तो काली औरत के सहज स्वभाव से छटपटाकर प्रतिरोध करने लगी।
काली के प्रतिरोध से अमर के अंदर का मर्द दहाड़ा। अमर ने काली को लात मारने से रोकते हुए उसे पेट के बल लिटाते हुए उसकी सलवार और पैंटी को खींच उतारा। काली ने अपनी हथेलियों को गद्दे पर दबाकर उठने की कोशिश की तो अमर ने काली के ऊपर लेटते हुए उसे ऊपर से दबाया।
काली चीख पड़ी जब उसके लड़ते मजबूर बदन पर से उसका कुर्ता उतार कर उसे बेड पर लिटा दिया गया। काली बिन पानी की मछली की तरह तड़पती छटपटा रही थी जब अमर ने अपने लंबे मोटे लौड़े को उसकी गांड़ की दरार पर लगाया।
उस विशालकाय टोपे को अपनी संकरी बुरी गली पर महसूस कर काली सहम गई। अमर ने इसी का फायदा उठाकर काली के बदन से उसका आखरी कपड़ा, काली की तंग होती ब्रा उतार फैंकी।
नंगी काली ने पलटी मारी और अपने नाखूनों से अपने हमलावर पर धावा बोला। अमर ने आसानी से काली की दोनों हथेलियों को पकड़ कर अपनी दाईं हथेली में पकड़ लिया तो काली ने उसके दाएं बाजू को काटने की कोशिश की।
अमर ने अपने बाजू को बचाने के लिए बाएं हाथ से काली का मुंह दबाया और अपनी दाईं हथेली को नीचे ला कर उसमे काली की जुल्फों को भी फंसाया। इस छटपटाहट में अमर का लौड़ा काली की कुंवारी बंद कली पर रगड़ता रहा। इसी तरह अंदर से बहते रसों में अमर का लौड़ा चिकनाहट में पोत दिया गया और काली उत्तेजना में सिहरते हुए कांपने लगी।
नर मादा की इस पुरानी जंग को दोनो जानवर पहचानते थे और इसके अंत के लिए दोनों बदन तयार हो गए। काली का बदन हार कर अकड़ते हुए कांपने लगा। उसकी तेज सांसों से निकलती आहें अमर के लौड़े को लावा रस से भर कर ठंडक के लिए झरने की ओर पुकार रही थीं।
अमर के लौड़े ने काली की कुंवारी कली को रगड़ते हुए अपनी दिशा बदली और काली की कली की पंखुड़ियां खुल गईं। गरमी से उबलते लोहे की छड़ ने मीठे पानी को चख लिया और अपनी प्यास बुझाने लपक लिया।
अमर ने अपने लौड़े के टोपे को काली की कुंवारी चूत के महीन परदे पर पाया और वह रुक गया। अमर ने काली की उत्तेजना से जलती आंखों और झड़कर पसीने से भीगे बदन को देखा और अपना निश्चय किया।
अमर, “Oh Fuck it!!… Fuck you काली!!…”
“मा!!!!…
मा अमाके बाचन!!…
मा!!…
आ!!…
आ!!…
आह!!!!!…”
काली की चीखें डरकर उसकी मूल बांगला में मां को बचाने के लिए पुकार कर शुरू होकर जख्मी जानवर की बेजुबान चीख बन गई। काली की पिघलती गीली भट्टी में अपना उबलता लोहा सेंकते हुए अमर रुक गया।
अमर को अपने लौड़े पर से गोटियों पर जमा होकर टपकता रस महसूस हुआ और वह जैसे होश में आ गया। अमर समझ गया कि काली की फटी झिल्ली का खून अब उसकी गोटियों से टपककर उसकी चादर को काली की जवानी की तरह दाग लगा रहा था।
अमर ने काली के सिसक कर कांपते बदन को अपने नीचे दबाते हुए उसकी बेबस आंखों में से दर्द भरे आंसू बहते देखे और उसे अपने बारे में दो बातें पता चली।
अमर समझ गया कि उसने काली का बलात्कार कर गलती नहीं गुनाह किया है पर उसे इस बात से एक अनोखे गर्व का एहसास हो रहा था। दूसरे बात यह थी की उसकी पहली प्रेमिका कुंवारी नहीं थी यह तो उसे पता था। अब अमर काली को देखते हुए समझ गया कि उसकी बीवी भी उस तक कुंवारी पहुंची नही थी।
अमर ने अपने लौड़े को काली की जख्मी गहराइयों में दबाकर रखते हुए काली को चूमते हुए उसकी तारीफ करना शुरू किया। जैसे काली हमले में आई गहरी चोट से उभरने लगी तो उसने अमर की परेशान आंखों को देखा।
काली को एहसास हुआ कि अब उसकी झिल्ली का दर्द मिट चुका था और उसकी कच्ची जवानी के फैलकर मालिक का लोहा पकड़ने का एहसास हो रहा था। यह जबरदस्ती किसी के अंग के हिसाब से अपने अंदरूनी हिस्से को ढाले जाने जैसा एहसास था जो दर्दनाक तो नहीं था पर मजेदार भी नहीं था।
अमर, “काली, मुझे माफ कर दो! मैं गुस्से में पागल हो गया था। मैंने तुम्हें चोट पहुंचाई।”
काली दर्द से सिसककर, “मालिक, अब मैं आप की हो चुकी हूं। बस एक एहसान कीजिए। अब मुझे जाने दीजिए! मुझे (रोते हुए) मां चाहिए…
मुझे घर जाना है!!…”
अमर जानता था कि अब अगर उसने काली को छोड़ दिया तो वह जिंदगी में कभी किसी मर्द को साथी नहीं बना पाएगी।
अमर ने काली के हाथों को छोड़ दिया और उन्हें अपनी बगलों के नीचे से लेते हुए काली को अपनी बाहों में भर लिया। अमर ने काली के सिसककर निश्चल होठों को हल्के से चूमा और अपने लंबे लौड़े को सुपाड़े तक बाहर निकाला। खून और झिल्ली के अवशेषों से सना वह बेरहम अंग जैसे कि काली की जख्मी जवानी में से बाहर निकला तो काली ने अपनी मासूमियत की हत्या का शोक मनाते हुए एक गहरी सांस ली।
अमर ने काली को हल्के से चूम कर, “माफ करना काली!”
इस से पहले कि काली इस माफी मांगने की वजह पूछ पाती अमर का निर्दयी लौड़ा काली को दुबारा चीरते हुए काली की खून से सनी जवानी की कोरी गहराइयों में समा गया। काली चीख पड़ी और तड़पते हुए अमर की पीठ मारते हुए आजादी की भीख मांगने लगी। काली की टांगे अमर के कूल्हों से फैलकर दर्द से घुटनों में मुड़कर उठ गई।
अमर ने काली से माफी मांगते हुए अपनी कमर को जोर से पीछे किया और लौड़े को सुपाड़े तक बाहर निकाला। इस बार काली जानती थी कि अमर क्या करेगा और उसने अमर के नीचे से निकलने की कोशिश की। अमर के नीचे दबने से उसका वजन काली से उठाया नही गया और अमर ने तेज झटके से अपना हथियार काली के पेट की गहराई में घोंप दिया। काली की चीख निकल पड़ी और अमर ने काली को संभालने का कोई मौका नहीं दिया।
काली ने अपने नाखून गड़ाकर अमर के नीचे से बाहर निकलने की कोशिश की पर उसका हर तेज वार काली की अनछुई गहराइयों में आग लगा रहा था। काली की दर्द भरी सिसकियां दुबारा गरमाने लगी। काली की जांघें फैल कर कमर उठने लगी।
काली अपने नाखूनों से अपने मालिक को नोच कर अपने ऊपर खींचने लगी। काली की जलती जवानी में खून के रिसाव के साथ अब यौन रसों की बाढ आ गई।
काली, “मालिक!!…
मालिक आ!!…
मालिक आह!!…
उम्म मालिक!!…
मालिक!!…”
काली को पता नहीं था कि वह अपने मालिक से क्या मांग रही थी पर उसे यकीन था की मालिक उसे वह ना दे तो वह जल कर मर जायेगी। काली अपने मालिक से लिपटकर, अपनी गांड़ उठाकर, कमर हिलाकर, एड़ियों से मालिक के कूल्हे जकड़कर, नाखूनों से मालिक को अपने ऊपर खींचते हुए अपने फूले हुए मम्मों की नुकीली चूचियां मालिक के सीने पर रगड़ रही थी।
पसीने से भीग कर भी काली के बदन की आग जोरों से भड़क रही थी। काली का बदन जोरों से अकड़ने लगा। काली को लगा की अब वह मर रही है पर वह जख्मी जानवरों की बोली ही बोल पा रही थी।
काली को अमर की बाहों में जैसी अकड़ी का दौरा पड़ा। काली के अंतरंगों ने अमर को दर्दनाक तरीके से निचोड़ा। काली बहोशी तक झड़ती रही और अमर भी स्खलन के अपने तोड़ चुका था।
अमर की गोटियां जोरों से धड़कते हुए अपने उबलते माल को उड़ेलने की पूरी कोशिश कर रही थीं। अमर को स्खलन का एहसास हुआ पर उसके लौड़े में से एक बूंद भी बाहर नहीं निकल पाई।
काली की जख्मी जवानी अभी तक अपने आप को मर्द के अंग के हिसाब से ढाल नहीं पाई थी। इसी वजह से अंदर से बने दबाव ने काली के झड़ने के बाद भी अमर को झड़ने से रोके रखा था।
अमर थक कर चूर, पसीने से लथपथ काली को यौन सुख में पहली बार नहाते देख समझ गया कि इस छोटी सी बात के लिए मर्द कत्ल तक क्यों करते हैं।