Thank you Ajay Rathor prasha_tam Ajju Landwalia curious.marathi for your continued support and encouragement
31
काली ने वृषभ को गेट खोलते हुए देखा और फिर से विरोध किया।
काली, “जी, मुझे यह ठीक नहीं लग रहा।”
वृषभ ने मुस्कुराकर गाड़ी घर के सामने लगा कर, “और मैं फिर से बता रहा हूं कि मुझे अपनी बीवी के साथ दो दिन बिताने में गलत क्या है? अमर सर ने इस घर को इस्तमाल करने की इजाजत दी है। मां दो दिन चंदा के लिए खाना पहुंचाएगी। चंदा अपनी पढ़ाई में इतनी व्यस्त है की उसे इस बात की भनक भी नहीं लगेगी। अमर सर खुद 2 दिन बाहर जा रहे हैं। तो अब मेरी मेमसहाब को बस एक काम करना है।”
काली मुस्कुराकर, “अच्छा! मेरे लिए भी कुछ छोड़ा है? बताओ! मेरा क्या काम है?”
वृषभ शैतानी मुस्कान से, “तुम्हें मेरे लिए एक छोटा शरारती शैतान लाना है!”
काली ने शर्माकर मुस्कुराते हुए, “हटो!… आप भी बड़े वो हो!!…”
वृषभ काली को पकड़ते हुए, “क्या?… क्या हूं?…”
काली अपने आप को छुड़ाकर अंदर भागते हुए, “पकड़ो तो जानो!!…”
वृषभ काली के पीछे घर में गया और काली के साथ हंसी मजाक करते हुए उसे किचन में ले गया। वृषभ ने काली को शिलाजीत और अश्वगंधा का शरबत दिया। काली इसे खुशी खुशी पीकर नहाने चली गई। वृषभ ने काली को उसके चुने हुए खास कपड़े दिए जो पहनकर काली bed पर बैठ गई।
काली, “जी, पिछले 3 दिनों से मैं गरम हूं और डॉक्टर गीता सोलंकी की दी हुई टेस्ट भी बता रही हैं की अभी सबसे सही समय है। (शर्माकर नीचे देखते हुए) अब बस देखते रहेंगे क्या?”
वृषभ मुस्कुराकर, “नहीं। पर ऐसे गिन कर, नाप कर प्यार नहीं होता ना? मैं आज तुम्हारे लिए खास खेल लाया हूं।”
वृषभ ने काली के बगल में बैठ कर उसे एक काली पट्टी दिखाई।
वृषभ काली की आंखों पर पट्टी बांधते हुए, “आज तुम बस मजे करो! ना बच्चे के बारे में सोचना और ना ही मेरे बारे में!”
पट्टी से काली को दिखना बंद हो गया और उसकी बाकी इंद्रियां जैसे जाग उठी। वृषभ ने काली के कंधे को चूमते हुए उसे बेड पर लिटा दिया और उसकी दाईं कलाई को पकड़ कर उठाया। काली कुछ करने से पहले उसकी कलाई को बेड से बांध दिया गया।
काली उत्तेजित हो कर, “जी!!…
यह क्या कर रहे हो? छोड़ो!!”
वृषभ ने काली की बाईं कलाई को बांधते हुए, “जानू तुम बहुत जिद्दी हो! आज तुम्हारी सजा है! आज तुम्हें मेरे बच्चे से भर दिया जायेगा और तुम मुझे रोक नहीं सकती!”
काली अपने पैरों को फैलते हुए महसूस कर, “पर…
मैं तो साथ…
(ऐड़ी को कोने से बंधता महसूस कर) आह!!…
साथ देना चाहती…
(दूसरी ऐड़ी को दूसरी ओर बंधा हुआ महसूस कर) उफ्फ…
चाहती हूं!! छोड़ो ना!!…”
वृषभ, “छोड़ो ना, नही…
अब बस चोदो ना…”
काली को रह रह कर इस घर में, इसी बिस्तर पर मालिक के साथ बनी यादें आंखों के सामने आ रही थी। इसी गद्दे पर काली की चिकनी जवानी ने मालिक के धधकते लोहे पर अपने आप को उसके हिसाब से ढाल लिया था। यहीं मालिक के उबलते रस ने उसकी कोख को अपनी गर्मी से जलाकर भरा था। इन्हीं दीवारों में उसकी वह आह भी गूंज रही थी जब उसने मालिक को अपनी कोरी गांड़ परोसी थी। काली को अब भी अपनी आतों में मालिक की गर्मी महसूस हो रही थी।
वृषभ जवान था, अच्छा प्रेमी था और कबीले की जड़ी बूटी के साथ बेहद चुस्त भी था। पर मालिक के हिसाब से ढले काली के अंदरूनी हिस्से आज भी उसकी कमी महसूस करते थे। काली अपना सब कुछ वृषभ को दे चुकी थी पर वृषभ ने कभी काली की गांड़ मारने की कोशिश नहीं की थी।
मालिक के बारे में सोचते हुए काली की चूत जल उठी और उसकी जवानी में से रसों का झरना बह गया।
वृषभ, “कोई यहां बहुत उतावला हो रहा है? क्या किसी को अपनी खास प्यास बुझानी है? बताओ क्या चाहिए?”
काली, “जी!!… जी मुझे कीजिए!!”
वृषभ ने काली की पैंटी को उतार कर उसकी प्यासी जवानी को खोल दिया। वृषभ की उंगलियों ने अपनी पत्नी को उत्तेजित करने के लिए सहलाना शुरू किया तो वहां पर पहले से बहता झरना पाया।
वृषभ, “हम्मम, किसी को बहुत प्यास लगी है जो इतना पानी बह रहा है! बोलो, क्या करूं?”
वृषभ ने काली की बाईं चूची को पकड़ कर चूस लिया। काली के मम्मे में से जैसे बिजली दौड़ गई और वह उत्तेजना से कराह उठी।
काली अपने पति से राहत मांगते हुए, “चोदो मुझे!…
मेरा बदन जल रहा है! मुझे चोदकर अपने बच्चे की मां बनाओ!”
वृषभ कली के कान में, “जानू, आज मेरा बच्चा लो!”
काली ने वृषभ को जगह बदलते हुए पाया पर विरोध करने से पहले वह दुबारा काली के मम्मे दबाते हुए उसकी गीली पैंटी से उसकी चूत सहलाने लगा।
काली ने आहें भरते हुए वृषभ को बताना शुरू किया की वह कितनी उतावली हो रही है ताकि वह भी गरम हो कर काली पर टूट पड़े। काली ने अपनी एड़ियों को खुलते हुए पाकर राहत की उम्मीद बनाई।
वृषभ पैरों की ओर से फुसफुसाते हुए, “शैतान कहीं की!!…
अभी सबक सिखाता हूं!”
काली के घुटनों को मोड़कर फैलाया गया जिस से उसकी टपकती जवानी की पंखुड़ियां खुल गई। काली ने आह भरते हुए अपने यौन होठों पर अपने प्रेमी के चुम्बन को महसूस किया। काली ने पाया की उसके पैरों को फैला कर मोड़ते हुए दुबारा बांधा जा चुका है पर उसे अपनी भूख से ज्यादा कुछ महसूस नहीं हो रहा था।
काली ने अपनी यौन पंखुड़ियों पर लगे होठों में कुछ अलग महसूस किया और वह चौंक गई। काली ने अपने प्रेमी को अपनी जवानी पर कब्जा करते हुए पाया और अनजाने में अपनी कमर हिला कर उसका साथ देने लगी।
काली के यौन रसों को चूसकर पीते होठों ने ऊपर उठकर उसके यौन मोती को अपने बीच पकड़ कर चूस लिया।
काली चीख पड़ी, “माल्…
मां!!…
आह!!…
जी!!…
जी!!…
वृषभजी!!…”
वृषभ काली के कान में, “हां जानू?”
काली ने चीखते हुए अपने पैरों को बंद करने की कोशिश की पर उसके पैर फैलाकर बंधे हुए थे। काली ने अपने पैरों को मारने की कोशिश की पर वह प्रयास भी विफल रहा।
काली सिसकते हुए, “जी!!…
जी!! मैं आप की पतिव्रता हूं!! जी यह क्या कर रहे हैं आप?…
यह गल…
आह!!…”
अमर की जीभ ने काली की योनि को भेद कर अंदर के जमा रस को चूस कर पी लिया जिस से काली सिहरते हुए झड़ने लगी।
वृषभ काली को चूमते हुए, “शुश…
शुश…
मैं तुम्हारा पति होने के नाते तुम्हें बता रहा हूं कि सोचो मत! सब भूल जाओ और मजे करो!”
काली को एहसास हुआ की उसकी जवानी पर से उसके प्रेमी ने अपने होठों को हटा दिया है। अपने पैरों के बीच हलचल महसूस कर काली आने वाले खतरे को भांप गई।
काली रोते हुए, “जी!!…
जी!! रोकिए इसे!!…
जी!!…”
काली की पंखुड़ियां सुपाड़े से फैल गई और सुपाड़े के नोक ने काली की जवानी को चखा। काली ने डर कर गहरी सांस ली पर तेज हमला नहीं हुआ।
सुपाड़े ने काली को चोदते हुए अपने आप को काली के रसों में भिगोया। काली रो पड़ी क्योंकि उसका बदन इस प्यार भरी चुधाई से खुश हो कर झनझना रहा था। काली चाहती थी कि यह लौड़ा उसे दर्द दे, तड़पते और अधूरा छोड़ दे ताकि वह अपने आप को अपने वृषभ से वफादार माने। पर यह लौड़ा उसकी गर्मी को अपनाता, काली की जवानी को भड़कता और उसके बदन को वासना से जलाता जा रहा था।
धीरे धीरे काली के अंतरंगों को पिघलाते हुए जब चुधते हुए जैसे सदियां बीत गई हों लौड़े की जड़ काली की कली पर दब गई। काली ने सिहरते हुए आह भरी और झड़ने लगी।
काली ने झड़ते हुए पाया की उसके अंदर का लौड़ा हिलने लगा था। काली का झड़ना कुछ कम हुआ तो उसे समझ में आया कि उसका चोदू उसे खास लय में चोद रहा था।
7 छोटे धक्कों के बाद 1 लंबा चाप लगाते हुए उसकी कोख को कुटा जा रहा था। इस तरह से चोदने वाला मर्द गिनती करते हुए अपने स्खलन पर काबू रख पाएगा। लेकिन आंखें बंद होने से अपनी इंद्रियों से मजबूर काली तेजी से अपनी यौन उत्तेजना के चरम पर पहुंच रही थी।
काली हतबल हो कर मदद की गुहार लगाते हुए, “जी!!…
जी!!…
ईई!!…
आ…
आ…
आह!!…
हा!!…
हा!!…
अंह!!…”
काली की चूत में से यौन रसों का फव्वारा फूट पड़ा। काली झड़ते हुए बेहोश हो गई। लेकिन काली की चूत में चलता लौड़ा संयम से उसे चोदता रहा।
बेहोशी में आहें भरती काली बुरी तरह अकड़ते हुए झड़ने लगी और होश में आ गई।
काली चुधते हुए चुपके से, “क…
कौन?…
कौन है?…”
वृषभ ने काली के सिरहाने बैठकर उसकी आंखों पर से पट्टी उठाई। काली ने अपनी आंखें खोली और मालिक को अपनी चूत चोदते हुए देख कर चौंक गई। मालिक को अपनी कोख पर टकराता हुआ महसूस कर काली के अंदर एक साथ कई भावनाएं जाग गई और वह आह भरते हुए झड़ने लगी।
काली आह भरते हुए, “मालिक!!…”
अमर ने काली को अपनी बाहों में लेकर उसके कानों में, “अब मैं तुम्हारा मालिक नहीं हूं! मुझे कुछ और कहो!”
काली के बंधनों को वृषभ ने खोल दिया। काली अपने पहले प्रेमी से लिपट कर उसे अपने गहराई में खींचते हुए चुधने लगी।
काली अमर से चुधते हुए वृषभ को देखकर भावना विवश होकर, “भैय्या!!…
चोदो मुझे भैया!!…”
इस तरह काली की पुकार सुनकर अमर के नियंत्रण से उत्तेजना का धागा छूटा। अमर ने तेज रफ्तार लंबे चाप लगाते हुए काली की कोख को पूरी ताकत से ठोक दिया।
अमर ने कराहते हुए अपने सीने को उठाकर अपनी कमर को हिलाया। वृषभ अमर के स्खलन को पहचान कर काली को चूमने लगा।
काली झड़ते हुए, “जी!!…”
वृषभ, “हां जानू!!…
हां!!…
हां!!…
लो उसे!!…
लो भैय्या की गर्मी लो!!…”
अमर की उबलती धाराएं काल की उपजाऊ मिट्टी में सोख ली गई और काली एक संतुष्ट मादा की आह भरते हुए अपने पति को चूमने लगी। अमर ने अपनी हर बूंद को काली की प्यासी कोख में उड़ेलकर अपने लौड़े को बाहर निकाला। वृषभ से रहा नहीं गया और वह अपनी पत्नी की लूटी पतिव्रता चूत को निहारने लगा। काली ने अपनी तृप्त जवानी के ऊपर से हाथ फेरते हुए अपनी चुधी पंखुड़ियों को सहलाया तो अमर के वीर्य की गाढ़ी बूंद छलक गई।
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Superbवृषभ ने अपने मुंह को अपनी पत्नी की योनि पर दबाते हुए अमर के गाढ़े घोल को अपनी जीभ से काली की कोख में दबाना शुरू किया।
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काली ने वृषभ को गेट खोलते हुए देखा और फिर से विरोध किया।
काली, “जी, मुझे यह ठीक नहीं लग रहा।”
वृषभ ने मुस्कुराकर गाड़ी घर के सामने लगा कर, “और मैं फिर से बता रहा हूं कि मुझे अपनी बीवी के साथ दो दिन बिताने में गलत क्या है? अमर सर ने इस घर को इस्तमाल करने की इजाजत दी है। मां दो दिन चंदा के लिए खाना पहुंचाएगी। चंदा अपनी पढ़ाई में इतनी व्यस्त है की उसे इस बात की भनक भी नहीं लगेगी। अमर सर खुद 2 दिन बाहर जा रहे हैं। तो अब मेरी मेमसहाब को बस एक काम करना है।”
काली मुस्कुराकर, “अच्छा! मेरे लिए भी कुछ छोड़ा है? बताओ! मेरा क्या काम है?”
वृषभ शैतानी मुस्कान से, “तुम्हें मेरे लिए एक छोटा शरारती शैतान लाना है!”
काली ने शर्माकर मुस्कुराते हुए, “हटो!… आप भी बड़े वो हो!!…”
वृषभ काली को पकड़ते हुए, “क्या?… क्या हूं?…”
काली अपने आप को छुड़ाकर अंदर भागते हुए, “पकड़ो तो जानो!!…”
वृषभ काली के पीछे घर में गया और काली के साथ हंसी मजाक करते हुए उसे किचन में ले गया। वृषभ ने काली को शिलाजीत और अश्वगंधा का शरबत दिया। काली इसे खुशी खुशी पीकर नहाने चली गई। वृषभ ने काली को उसके चुने हुए खास कपड़े दिए जो पहनकर काली bed पर बैठ गई।
काली, “जी, पिछले 3 दिनों से मैं गरम हूं और डॉक्टर गीता सोलंकी की दी हुई टेस्ट भी बता रही हैं की अभी सबसे सही समय है। (शर्माकर नीचे देखते हुए) अब बस देखते रहेंगे क्या?”
वृषभ मुस्कुराकर, “नहीं। पर ऐसे गिन कर, नाप कर प्यार नहीं होता ना? मैं आज तुम्हारे लिए खास खेल लाया हूं।”
वृषभ ने काली के बगल में बैठ कर उसे एक काली पट्टी दिखाई।
वृषभ काली की आंखों पर पट्टी बांधते हुए, “आज तुम बस मजे करो! ना बच्चे के बारे में सोचना और ना ही मेरे बारे में!”
पट्टी से काली को दिखना बंद हो गया और उसकी बाकी इंद्रियां जैसे जाग उठी। वृषभ ने काली के कंधे को चूमते हुए उसे बेड पर लिटा दिया और उसकी दाईं कलाई को पकड़ कर उठाया। काली कुछ करने से पहले उसकी कलाई को बेड से बांध दिया गया।
काली उत्तेजित हो कर, “जी!!…
यह क्या कर रहे हो? छोड़ो!!”
वृषभ ने काली की बाईं कलाई को बांधते हुए, “जानू तुम बहुत जिद्दी हो! आज तुम्हारी सजा है! आज तुम्हें मेरे बच्चे से भर दिया जायेगा और तुम मुझे रोक नहीं सकती!”
काली अपने पैरों को फैलते हुए महसूस कर, “पर…
मैं तो साथ…
(ऐड़ी को कोने से बंधता महसूस कर) आह!!…
साथ देना चाहती…
(दूसरी ऐड़ी को दूसरी ओर बंधा हुआ महसूस कर) उफ्फ…
चाहती हूं!! छोड़ो ना!!…”
वृषभ, “छोड़ो ना, नही…
अब बस चोदो ना…”
काली को रह रह कर इस घर में, इसी बिस्तर पर मालिक के साथ बनी यादें आंखों के सामने आ रही थी। इसी गद्दे पर काली की चिकनी जवानी ने मालिक के धधकते लोहे पर अपने आप को उसके हिसाब से ढाल लिया था। यहीं मालिक के उबलते रस ने उसकी कोख को अपनी गर्मी से जलाकर भरा था। इन्हीं दीवारों में उसकी वह आह भी गूंज रही थी जब उसने मालिक को अपनी कोरी गांड़ परोसी थी। काली को अब भी अपनी आतों में मालिक की गर्मी महसूस हो रही थी।
वृषभ जवान था, अच्छा प्रेमी था और कबीले की जड़ी बूटी के साथ बेहद चुस्त भी था। पर मालिक के हिसाब से ढले काली के अंदरूनी हिस्से आज भी उसकी कमी महसूस करते थे। काली अपना सब कुछ वृषभ को दे चुकी थी पर वृषभ ने कभी काली की गांड़ मारने की कोशिश नहीं की थी।
मालिक के बारे में सोचते हुए काली की चूत जल उठी और उसकी जवानी में से रसों का झरना बह गया।
वृषभ, “कोई यहां बहुत उतावला हो रहा है? क्या किसी को अपनी खास प्यास बुझानी है? बताओ क्या चाहिए?”
काली, “जी!!… जी मुझे कीजिए!!”
वृषभ ने काली की पैंटी को उतार कर उसकी प्यासी जवानी को खोल दिया। वृषभ की उंगलियों ने अपनी पत्नी को उत्तेजित करने के लिए सहलाना शुरू किया तो वहां पर पहले से बहता झरना पाया।
वृषभ, “हम्मम, किसी को बहुत प्यास लगी है जो इतना पानी बह रहा है! बोलो, क्या करूं?”
वृषभ ने काली की बाईं चूची को पकड़ कर चूस लिया। काली के मम्मे में से जैसे बिजली दौड़ गई और वह उत्तेजना से कराह उठी।
काली अपने पति से राहत मांगते हुए, “चोदो मुझे!…
मेरा बदन जल रहा है! मुझे चोदकर अपने बच्चे की मां बनाओ!”
वृषभ कली के कान में, “जानू, आज मेरा बच्चा लो!”
काली ने वृषभ को जगह बदलते हुए पाया पर विरोध करने से पहले वह दुबारा काली के मम्मे दबाते हुए उसकी गीली पैंटी से उसकी चूत सहलाने लगा।
काली ने आहें भरते हुए वृषभ को बताना शुरू किया की वह कितनी उतावली हो रही है ताकि वह भी गरम हो कर काली पर टूट पड़े। काली ने अपनी एड़ियों को खुलते हुए पाकर राहत की उम्मीद बनाई।
वृषभ पैरों की ओर से फुसफुसाते हुए, “शैतान कहीं की!!…
अभी सबक सिखाता हूं!”
काली के घुटनों को मोड़कर फैलाया गया जिस से उसकी टपकती जवानी की पंखुड़ियां खुल गई। काली ने आह भरते हुए अपने यौन होठों पर अपने प्रेमी के चुम्बन को महसूस किया। काली ने पाया की उसके पैरों को फैला कर मोड़ते हुए दुबारा बांधा जा चुका है पर उसे अपनी भूख से ज्यादा कुछ महसूस नहीं हो रहा था।
काली ने अपनी यौन पंखुड़ियों पर लगे होठों में कुछ अलग महसूस किया और वह चौंक गई। काली ने अपने प्रेमी को अपनी जवानी पर कब्जा करते हुए पाया और अनजाने में अपनी कमर हिला कर उसका साथ देने लगी।
काली के यौन रसों को चूसकर पीते होठों ने ऊपर उठकर उसके यौन मोती को अपने बीच पकड़ कर चूस लिया।
काली चीख पड़ी, “माल्…
मां!!…
आह!!…
जी!!…
जी!!…
वृषभजी!!…”
वृषभ काली के कान में, “हां जानू?”
काली ने चीखते हुए अपने पैरों को बंद करने की कोशिश की पर उसके पैर फैलाकर बंधे हुए थे। काली ने अपने पैरों को मारने की कोशिश की पर वह प्रयास भी विफल रहा।
काली सिसकते हुए, “जी!!…
जी!! मैं आप की पतिव्रता हूं!! जी यह क्या कर रहे हैं आप?…
यह गल…
आह!!…”
अमर की जीभ ने काली की योनि को भेद कर अंदर के जमा रस को चूस कर पी लिया जिस से काली सिहरते हुए झड़ने लगी।
वृषभ काली को चूमते हुए, “शुश…
शुश…
मैं तुम्हारा पति होने के नाते तुम्हें बता रहा हूं कि सोचो मत! सब भूल जाओ और मजे करो!”
काली को एहसास हुआ की उसकी जवानी पर से उसके प्रेमी ने अपने होठों को हटा दिया है। अपने पैरों के बीच हलचल महसूस कर काली आने वाले खतरे को भांप गई।
काली रोते हुए, “जी!!…
जी!! रोकिए इसे!!…
जी!!…”
काली की पंखुड़ियां सुपाड़े से फैल गई और सुपाड़े के नोक ने काली की जवानी को चखा। काली ने डर कर गहरी सांस ली पर तेज हमला नहीं हुआ।
सुपाड़े ने काली को चोदते हुए अपने आप को काली के रसों में भिगोया। काली रो पड़ी क्योंकि उसका बदन इस प्यार भरी चुधाई से खुश हो कर झनझना रहा था। काली चाहती थी कि यह लौड़ा उसे दर्द दे, तड़पते और अधूरा छोड़ दे ताकि वह अपने आप को अपने वृषभ से वफादार माने। पर यह लौड़ा उसकी गर्मी को अपनाता, काली की जवानी को भड़कता और उसके बदन को वासना से जलाता जा रहा था।
धीरे धीरे काली के अंतरंगों को पिघलाते हुए जब चुधते हुए जैसे सदियां बीत गई हों लौड़े की जड़ काली की कली पर दब गई। काली ने सिहरते हुए आह भरी और झड़ने लगी।
काली ने झड़ते हुए पाया की उसके अंदर का लौड़ा हिलने लगा था। काली का झड़ना कुछ कम हुआ तो उसे समझ में आया कि उसका चोदू उसे खास लय में चोद रहा था।
7 छोटे धक्कों के बाद 1 लंबा चाप लगाते हुए उसकी कोख को कुटा जा रहा था। इस तरह से चोदने वाला मर्द गिनती करते हुए अपने स्खलन पर काबू रख पाएगा। लेकिन आंखें बंद होने से अपनी इंद्रियों से मजबूर काली तेजी से अपनी यौन उत्तेजना के चरम पर पहुंच रही थी।
काली हतबल हो कर मदद की गुहार लगाते हुए, “जी!!…
जी!!…
ईई!!…
आ…
आ…
आह!!…
हा!!…
हा!!…
अंह!!…”
काली की चूत में से यौन रसों का फव्वारा फूट पड़ा। काली झड़ते हुए बेहोश हो गई। लेकिन काली की चूत में चलता लौड़ा संयम से उसे चोदता रहा।
बेहोशी में आहें भरती काली बुरी तरह अकड़ते हुए झड़ने लगी और होश में आ गई।
काली चुधते हुए चुपके से, “क…
कौन?…
कौन है?…”
वृषभ ने काली के सिरहाने बैठकर उसकी आंखों पर से पट्टी उठाई। काली ने अपनी आंखें खोली और मालिक को अपनी चूत चोदते हुए देख कर चौंक गई। मालिक को अपनी कोख पर टकराता हुआ महसूस कर काली के अंदर एक साथ कई भावनाएं जाग गई और वह आह भरते हुए झड़ने लगी।
काली आह भरते हुए, “मालिक!!…”
अमर ने काली को अपनी बाहों में लेकर उसके कानों में, “अब मैं तुम्हारा मालिक नहीं हूं! मुझे कुछ और कहो!”
काली के बंधनों को वृषभ ने खोल दिया। काली अपने पहले प्रेमी से लिपट कर उसे अपने गहराई में खींचते हुए चुधने लगी।
काली अमर से चुधते हुए वृषभ को देखकर भावना विवश होकर, “भैय्या!!…
चोदो मुझे भैया!!…”
इस तरह काली की पुकार सुनकर अमर के नियंत्रण से उत्तेजना का धागा छूटा। अमर ने तेज रफ्तार लंबे चाप लगाते हुए काली की कोख को पूरी ताकत से ठोक दिया।
अमर ने कराहते हुए अपने सीने को उठाकर अपनी कमर को हिलाया। वृषभ अमर के स्खलन को पहचान कर काली को चूमने लगा।
काली झड़ते हुए, “जी!!…”
वृषभ, “हां जानू!!…
हां!!…
हां!!…
लो उसे!!…
लो भैय्या की गर्मी लो!!…”
अमर की उबलती धाराएं काल की उपजाऊ मिट्टी में सोख ली गई और काली एक संतुष्ट मादा की आह भरते हुए अपने पति को चूमने लगी। अमर ने अपनी हर बूंद को काली की प्यासी कोख में उड़ेलकर अपने लौड़े को बाहर निकाला। वृषभ से रहा नहीं गया और वह अपनी पत्नी की लूटी पतिव्रता चूत को निहारने लगा। काली ने अपनी तृप्त जवानी के ऊपर से हाथ फेरते हुए अपनी चुधी पंखुड़ियों को सहलाया तो अमर के वीर्य की गाढ़ी बूंद छलक गई।
वृषभ ने अपने मुंह को अपनी पत्नी की योनि पर दबाते हुए अमर के गाढ़े घोल को अपनी जीभ से काली की कोख में दबाना शुरू किया।
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