Ajju Landwalia
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Nice update6
दोपहर को अमर खाना खाने आया तो उसने काली को कुछ गुमसुम पाया। अमर के जोर देने पर काली ने उसे बताया की काली के पेट में दर्द हो रहा था। अमर समझ गया कि काली का मासिक धर्म शुरू होने वाला है।
रात को अमर अपने साथ कागज में लिपटा एक पैकेट लाया। अमर ने वह पैकेट काली को दिया पर उसे यह चीज पता नहीं थी।
अमर, “जब तुम्हारा मासिक धर्म शुरू होता है तब तुम क्या इस्तमाल किया करती थी?”
काली, “मां मुझे कपड़े का टुकड़ा दिया करती थी जिसे मैं धोकर सुखाती और अगले महीने दुबारा इस्तमाल किया करती।”
अमर, “ऐसी आदत सेहत के लिए अच्छी नहीं होती। क्या नीचे के बालों में खून की गांठें नहीं बनती थी?”
काली, “औरत को यह तकलीफ तो होती ही है!”
अमर ने मुस्कुराकर काली को खाना खाने के बाद अलग तरीका दिखाने का वादा किया। काली को उत्सुकता थी पर डर भी लग रहा था।
अमर ने खाना खाने के बाद काली को नहाने के लिए गरम पानी निकालने को कहा और अपने कमरे में से कुछ ले आया। जब काली ने गरम पानी से बाल्टी भर दी तो अमर ने काली को अपने सामने खड़े होने को कहा।
अमर, “काली, क्या तुम मेरी गुलाम हो? (काली ने सर हिलाकर हां कहा) मेरा हर हुकुम मानना तुम्हारा फर्ज है? (काली ने अपने सर को हिलाकर हां कहा) अब जो मैं कहूं तुम बिना कुछ बोले करोगी!”
काली को डर लग रहा था पर उसके पैरों के बीच में उत्तेजनावश पानी भी बनने लगा था। काली को बाथरूम की दीवार की ओर धकेल कर अमर अपने कमरे में से लाए कंघी, कैंची और उस्तरा निकाला।
अमर ने काली को उसके कपड़े उतारने का हुकुम दिया और काली ने बहुत ज्यादा शरमाते हुए अपने कपड़े उतारे। काली हर रात ब्रा और पैंटी में अमर से चिपक कर सोती पर कभी अमर ने काली को कपड़े उतारने को नहीं कहा था।
ब्रा और पैंटी में हिचकिचाती और अपने बदन को चुराती काली को देख अमर के अंदर का जवान मर्द गुर्राया। अमर ने गुर्राकर काली को अपने हाथों को ऊपर उठाने को कहा। काली ने शर्माते हुए अपनी हथेलियों को अपने सर पर रख कर अमर की ओर देखा तो अमर ने काली की कोहनियों को उठाकर उसकी बगलों में जमा पसीने से भरे घुंगराले बालों को खोल दिया।
अमर, “काली, मैं तुम्हारे बाल काटने वाला हूं। इस से तुम्हें अपने आप को साफ रखने में आसानी होगी। खास कर मासिक धर्म के समय पर।”
काली ने अपने सर को हिलाकर हां कहा तो अमर से अपनी लालच पर काबू नहीं रहा। अमर ने काली को अपनी ब्रा उतारने को कहा। काली ने शर्माते हुए अपनी ब्रा उतारी और अपनी कसी हुई जवान चूचियां को अपनी हथेलियों से छुपाकर खड़ी हो गई।
अमर ने काली के सामने खड़े होकर शरारती मुस्कान के साथ काली की पैंटी नीचे की और काली ने डर कर अमर के कंधों को पकड़ लिया।
अमर ने नीचे झुककर काली की पँटी उतार दी और उसके लंबे पतले सांवले पैरों के जोड़ में भरे हुए घने घुंघराले बालों के गुच्छे को देखा। काली के बालों ने उसके कोरे खजाने को लगभग पूरी तरह छुपाया हुआ था।
काली रोने लगी और अमर ने उसे वजह पूछी। काली ने शर्म महसूस होने के बारे में बताया तो अमर ने अपने पैंट और अंडरवियर निकाल कर उसे शर्माने से मना किया।
अमर ने काली के बालों को मोड़ कर उसे प्लास्टिक की टोपी पहनाई ताकि उसके बाल गीले होने से बचें। जब काली इस नए सामान को छू कर महसूस कर रही थी तब अमर ने शॉवर चला दिया।
काली ने अपने भीगते बदन को ढकने की कोशिश की तो अमर ने पीछे से आकर काली के सीने पर साबुन लगाया। अमर के बड़े मर्दाना पंजों में काली के जवान कड़े मम्मे समा गए और काली सिहर उठी।
काली ने अपने हाथों को उठाते हुए अपनी स्वाभाविक लज्जा से अपने मम्मों को छुपाने की कोशिश की तो अमर ने अपने हाथ पीछे लेते हुए उसकी बगलों में साबुन लगाया। काली ने गुदगुदी होने से विरोध किया तो अमर ने उसे अपने सीने पर खींचते हुए अपने हाथों को नीचे किया। अमर की साबुन भरी हथेलियों ने काली की कच्ची जवानी पर कब्जा कर लिया।
काली शर्म, उत्तेजना और हमले की दिशा से चौंक कर चीख पड़ी। अमर ने काली के घुंगराले बालों के गुच्छे में साबुन मलते हुए चुपके से उसकी नाजुक काली की बंद पंखुड़ियों को छेड़ दिया।
काली शर्माकर चीखी और मुड़कर अमर से लिपट गई। अमर ने इसी बहाने काली की मस्तानी गांड़ को मसलना शुरू किया।
काली शर्माते हुए, “मालिक, क्या मैं भी…”
अमर मुस्कुराकर, “हां, काली। क्यों नहीं?”
काली ने अमर की बाहों में से बाहर निकल कर उसकी बगल में खड़ी हो गई। काली ने हिम्मत जुटाकर अपने हाथ को बढ़ाया और अमर के जाने पहचाने हथियार को छू लिया। अमर ने अपने पैरों को थोड़ा फैलाया तो काली को उसके लौड़े को प्यार करने में सहूलियत हुई।
काली ने ध्यान देते हुए अपने मालिक के लंबे मोटे अंग को अपनी चिकनी हथेली में पकड़ कर हिलाना शुरू किया।
काली के इस प्यार भरे मालिश को अमर आज ज्यादा सहने वाला नही था। अमर ने काली को अपनी रफ्तार बढ़ाने को कहा। काली ने अमर का हुकुम माना और अमर ने आह भरते हुए अपने वीर्य की पिचकारी उड़ा दी।
काली “उह्ह्ह्ह…” कहते हुए अमर की पिचकारी कितनी दूर तक जाती है इस पर गौर करती रही। अमर ने फिर गहरी सांस लेकर अपने आप पर काबू पाया और दोनों को शॉवर में धोकर साफ किया।
काली को पता नहीं था पर अमर ने काली के हाथों अपनी पिचकारी उड़वा कर उसकी कोरी जवानी को तार तार होने से बचाया था।
अमर ने काली का और अपना बदन सुखाया। काली को बाथरूम में खड़ा कर फिर अमर ने उसके नरम पड़े घुंगराले बालों को कैंची से तराशा। काली ने अपनी बगलों को साफ करने में कोई विरोध नहीं किया पर अपनी नाजुक जवानी के बालों को तराशते हुए वह अमर के सर को पकड़ कर डर से कांपती रही।
जब बगलें और नीचे के बालों को जंगल से घास के मैदान में बना दिया तो काली ने चैन की सांस ली। लेकिन अमर इतने पर रुका नहीं। अमर ने उस्तरे से काली की बगलें को साफ किया।
काली की जवानी को साफ करते हुए अमर ने उसे टेबल पर लिटा दिया और उसके पैरों को अपने कंधों पर उठा लिया। काली की आहें अमर को उकसा रही थीं। अमर की आंखों के सामने काली के कांपते बदन से यौवन की मादक महक उसे बुला रही थी। काली की फूली हुई यौन पंखुड़ियां उसे अपने अंदर छुपे हुए राज़ को खोलने के लिए यौन रसों को बहाकर मना रही थी।
अमर का लौड़ा अभी अभी झड़ने के बावजूद दुबारा लड़ने को तयार हो गया था। अमर ने काली की जवानी को सफाचट कर दिया तो उसकी आंखें काली की भूरी सिंकुडी हुई गांड़ पर गई। गांड़ के चारों ओर महीन छोटे बालों का एक चक्र था।
अमर की girlfriend ने उसे बताया था की वह वहां भी चुधवा चुकी है पर उसने अमर को वह मौका कभी नहीं दिया। अमर की बीवी ने उसे वहां छूने से भी मना कर दिया था। अमर ने काली पर अपने hakk ko इस्तमाल करते हुए वहां के बालों को भी साफ कर दिया। काली ने चौंक कर अपने भूरे छेद को कसने के अलावा कोई विरोध नहीं किया।
अमर ने काली के पैरों के बीच में से उठते हुए उसके चेहरे को देखा। यौन उत्तेजना से अतृप्त जवानी टेबल पर पड़ी मचल रही थी पर उस मासूम जवानी को इसका इलाज पता ही नहीं था।
अमर के अंदर के जानवर ने उस पर हावी होते हुए गुर्राहट की आवाज निकली। अमर से गुर्राने की आवाज सुन कर काली की मदहोश आंखें खुल गईं।
काली ने अपने मालिक की आंखों में जो देखा उस से उसका गला सुख गया पर चूत बहने लगी।
7
अमर ने काली की गर्दन के नीचे अपने बाएं हाथ की लंबी उंगलियों को घुसाया और उसका सर उठाया। काली ने अपनी आंखें मदहोशी में कुछ बंद की।
अमर ने काली की नाक को अपने नाक से छू लिया।
अमर, “मैं बुरा आदमी नहीं हूं! पर मैं अपने आप को रोक नहीं सकता…”
काली ने अपने मालिक को अपने दोष को स्वीकार करते सुना और उसकी आह निकल गई। अमर के होठों ने उस आह को पीते हुए काली के होठों तक उसका पीछा किया। अमर के होठों ने काली के होठों को हल्के से छू लिया और काली के बदन ने कांपते हुए यौन उत्तेजना से एक आह भरी।
अमर के अंदर के जानवर ने अपनी शिकार को पहचाना और झपट पड़ा। अमर के होठों ने काली के होठों पर कब्जा करते हुए उसे चूसना शुरू किया। काली ने अपनी बेबस जवानी की पहली आह भरी जिस से उसके होंठ खुल गए।
अमर की जीभ ने काली के खुले होठों को बंद होने से रोकते हुए काली के शरीर में प्रवेश किया। काली जवानी में जलने लगी और उसका बदन तपने लगा। काली की सांसे तेज और कम होने लगी।
अमर के बाएं हाथ ने काली के पेट को सहलाते हुए उसकी कसी हुई नंगी चूची को अपनी उंगलियों की कैंची में पकड़ते हुए उसका सक्त जवान मम्मा दबोच लिया। काली अमर के मुंह में चीख पड़ी और अमर की जीभ काली की जीभ से भिड़ गई।
काली ने अनजाने में अमर की नकल करते हुए अपनी जीभ से अमर की जीभ को सहलाया और अमर ने काली पर हावी होते हुए अपने बदन पर काली को खींच लिया। अब काली की चूचियों को मसल कर निचोड़ा अमर को उतना आसान नहीं रहा पर अमर का निशाना बदल चुका था।
अमर की बाईं हथेली काली के मम्मे को छोड़ कर उसके कसे हुए सांवले पेट को सहलाते हुए काली की नाभी को छेड़ कर नीचे सरकी। अमर की लंबी उंगली ने फूले हुए मांसल यौन होठों की कली के बीच में हल्के से दबाया। यौन होठों में पहली बार मर्द की उंगलियों ने प्रवेश किया।
काली की योनि में से यौन रसों का बांध टूट गया और बाढ़ बाहर बहने लगी। काली अपने मालिक से लिपट गई पर मालिक ने काली के पैरों को फैलाकर अपनी मिल्कियत को सहलाना जारी रखा।
अमर की पहली और तीसरी उंगली ने यौन होठों की कली को फैलाया फुलाते हुए बीच की उंगली को जगह बना कर दी। अमर की इस लुटेरी उंगली ने काली की मासूमियत को लूटना शुरू किया।
काली ने अपने मालिक की लंबी मोटी उंगली को अपने गुप्त अंग में घूमते हुए महसूस किया। ऐसे अंग जिन्हें काली ने छूने की हिम्मत नही की थी उन्हें आज मालिक छेड़ कर उसे तड़पा रहा था।
काली को एहसास हुआ की उसकी जवानी में से बहते गरम पानी का पीछा करते हुए मालिक की उंगली उसकी कोरी जवानी के मुंहाने तक पहुंची। काली को पता नहीं था की वह क्या चाहती थी पर कहीं उसकी जवानी ने अंगड़ाई ली तो उसके बचपन ने रोते हुए उसका साथ छोड़ दिया।
काली की आंखों से आंसू बहते हुए उसके बालों में छुप गए।
अमर की उंगली ने काली की जवानी में एक हल्का गोता लगाया पर वहां का महीन पर्दा महसूस कर रुक गई।
काली सहमी हुई अपनी सांसे रोक कर आने वाले दर्द का इंतजार करने लगी पर अमर के मन में कुछ और ही था। अमर ने योनि के मुंह और महीन परदे के बीच के आधे इंच में ही अपनी उंगली को आगे पीछे करना शुरू किया जिस से काली के बदन में गर्मी बढ़ने लगी। काली को चूमते हुए उसकी आहें पीता अमर उसकी उत्तेजना को मानो जांच रहा था। जब काली को अपने बदन की गर्मी बर्दाश्त के बाहर होने लगी तब अमर ने अपने अंगूठे को इस यौन द्वंद्व में उतारा।
अमर के अंगूठे ने काली की अंदरूनी पतली यौन पंखुड़ियों के मेल में छुपे उभरे हुए यौन मोती को सहलाते हुए बाहर निकाला। काली के बदन में बिजली दौड़ गई और वह चीखते हुए कांपने लगी।
काली को ऐसा एहसास कभी हुआ नहीं था। उसका पूरा बदन मालिक की उंगली के इशारे से किसी तने हुए धनुष की तरह सक्त हो गया था जब उसके पसीने छूटने के बाद भी उसका बदन जलता रहा। अचानक मालिक के अंगूठे ने जैसे तीर को कमान से छोड़ दिया और उसके बदन ने दर्दनाक धुन का मीठा संगीत गाते हुए उसे आसमान की सैर कराई।
काली का गला सूखा हुआ था। काली ने अपनी थकी हुई बोझल आंखें खोल कर अपने मालिक की आंखों में देखा।
काली, “मालिक!… अभी क्या हुआ?…”
अमर मुस्कराकर, “वही जो हर रात तुम मुझे देती हो!”
काली शर्म से लाल होते हुए, “ओह!!…”