Curiousbull
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Kya likha hai adbhut.7
अमर ने काली की गर्दन के नीचे अपने बाएं हाथ की लंबी उंगलियों को घुसाया और उसका सर उठाया। काली ने अपनी आंखें मदहोशी में कुछ बंद की।
अमर ने काली की नाक को अपने नाक से छू लिया।
अमर, “मैं बुरा आदमी नहीं हूं! पर मैं अपने आप को रोक नहीं सकता…”
काली ने अपने मालिक को अपने दोष को स्वीकार करते सुना और उसकी आह निकल गई। अमर के होठों ने उस आह को पीते हुए काली के होठों तक उसका पीछा किया। अमर के होठों ने काली के होठों को हल्के से छू लिया और काली के बदन ने कांपते हुए यौन उत्तेजना से एक आह भरी।
अमर के अंदर के जानवर ने अपनी शिकार को पहचाना और झपट पड़ा। अमर के होठों ने काली के होठों पर कब्जा करते हुए उसे चूसना शुरू किया। काली ने अपनी बेबस जवानी की पहली आह भरी जिस से उसके होंठ खुल गए।
अमर की जीभ ने काली के खुले होठों को बंद होने से रोकते हुए काली के शरीर में प्रवेश किया। काली जवानी में जलने लगी और उसका बदन तपने लगा। काली की सांसे तेज और कम होने लगी।
अमर के बाएं हाथ ने काली के पेट को सहलाते हुए उसकी कसी हुई नंगी चूची को अपनी उंगलियों की कैंची में पकड़ते हुए उसका सक्त जवान मम्मा दबोच लिया। काली अमर के मुंह में चीख पड़ी और अमर की जीभ काली की जीभ से भिड़ गई।
काली ने अनजाने में अमर की नकल करते हुए अपनी जीभ से अमर की जीभ को सहलाया और अमर ने काली पर हावी होते हुए अपने बदन पर काली को खींच लिया। अब काली की चूचियों को मसल कर निचोड़ा अमर को उतना आसान नहीं रहा पर अमर का निशाना बदल चुका था।
अमर की बाईं हथेली काली के मम्मे को छोड़ कर उसके कसे हुए सांवले पेट को सहलाते हुए काली की नाभी को छेड़ कर नीचे सरकी। अमर की लंबी उंगली ने फूले हुए मांसल यौन होठों की कली के बीच में हल्के से दबाया। यौन होठों में पहली बार मर्द की उंगलियों ने प्रवेश किया।
काली की योनि में से यौन रसों का बांध टूट गया और बाढ़ बाहर बहने लगी। काली अपने मालिक से लिपट गई पर मालिक ने काली के पैरों को फैलाकर अपनी मिल्कियत को सहलाना जारी रखा।
अमर की पहली और तीसरी उंगली ने यौन होठों की कली को फैलाया फुलाते हुए बीच की उंगली को जगह बना कर दी। अमर की इस लुटेरी उंगली ने काली की मासूमियत को लूटना शुरू किया।
काली ने अपने मालिक की लंबी मोटी उंगली को अपने गुप्त अंग में घूमते हुए महसूस किया। ऐसे अंग जिन्हें काली ने छूने की हिम्मत नही की थी उन्हें आज मालिक छेड़ कर उसे तड़पा रहा था।
काली को एहसास हुआ की उसकी जवानी में से बहते गरम पानी का पीछा करते हुए मालिक की उंगली उसकी कोरी जवानी के मुंहाने तक पहुंची। काली को पता नहीं था की वह क्या चाहती थी पर कहीं उसकी जवानी ने अंगड़ाई ली तो उसके बचपन ने रोते हुए उसका साथ छोड़ दिया।
काली की आंखों से आंसू बहते हुए उसके बालों में छुप गए।
अमर की उंगली ने काली की जवानी में एक हल्का गोता लगाया पर वहां का महीन पर्दा महसूस कर रुक गई।
काली सहमी हुई अपनी सांसे रोक कर आने वाले दर्द का इंतजार करने लगी पर अमर के मन में कुछ और ही था। अमर ने योनि के मुंह और महीन परदे के बीच के आधे इंच में ही अपनी उंगली को आगे पीछे करना शुरू किया जिस से काली के बदन में गर्मी बढ़ने लगी। काली को चूमते हुए उसकी आहें पीता अमर उसकी उत्तेजना को मानो जांच रहा था। जब काली को अपने बदन की गर्मी बर्दाश्त के बाहर होने लगी तब अमर ने अपने अंगूठे को इस यौन द्वंद्व में उतारा।
अमर के अंगूठे ने काली की अंदरूनी पतली यौन पंखुड़ियों के मेल में छुपे उभरे हुए यौन मोती को सहलाते हुए बाहर निकाला। काली के बदन में बिजली दौड़ गई और वह चीखते हुए कांपने लगी।
काली को ऐसा एहसास कभी हुआ नहीं था। उसका पूरा बदन मालिक की उंगली के इशारे से किसी तने हुए धनुष की तरह सक्त हो गया था जब उसके पसीने छूटने के बाद भी उसका बदन जलता रहा। अचानक मालिक के अंगूठे ने जैसे तीर को कमान से छोड़ दिया और उसके बदन ने दर्दनाक धुन का मीठा संगीत गाते हुए उसे आसमान की सैर कराई।
काली का गला सूखा हुआ था। काली ने अपनी थकी हुई बोझल आंखें खोल कर अपने मालिक की आंखों में देखा।
काली, “मालिक!… अभी क्या हुआ?…”
अमर मुस्कराकर, “वही जो हर रात तुम मुझे देती हो!”
काली शर्म से लाल होते हुए, “ओह!!…”
Aapki lekhni ne kayal kar diya.