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Season २
◆ Son Of Collector◆
(Hindi,Incest,Grou
p,Hidden Suspens)
( Eposode 1- दुश्मनी की आहट )
◆ Son Of Collector◆
(Hindi,Incest,Grou
p,Hidden Suspens)
( Eposode 1- दुश्मनी की आहट )
भेड़ियों के जबड़े में हाथ डाल चुका था अभी हर एक बात से चौकन्ना रहना था।और इन जालिमो से घरवालों को भी बचाना था।सुबह मैं नाश्ता करके घर के बाजू वाले बगीचे में टहल रहा था।तभी सामने से मीना शम्भू के साथ आयी।मतलब बात बढ़ गयी थी।
शम्भू:भैया ये मीना चाची।
मैं:आओ मीना चाची आज यहाँ कहा से आना हुआ!??
मीना:कुछ खास नही छोटी मालकिन बुला रही है आपको।
मैं पीछे देखते हुए:कहा पर है!!?
मीना:वो तो मंदिर में राह देख रही है।
हम लोग वहाँ से सीधा मंदिर में पहुंच गए।
शम्भू और मीना दूर खड़े हो गए।
मैं:बोलिये मेडम जी,क्या सेवा करे आपकी।
श्वेता घूमी और मेरे गाल पे कसके तमाचा मारा।
मैं:अरे क्या हुआ!???
श्वेता:क्या हुआ पूछ रहे हो जैसे कुछ मालूम ही नही।तुम्हे मालूम था न की उस परिवार के साथ हमारे घर का व्यवहार था।चाचा की डील हुई थी उनसे।और उसी घर की लड़की की शादी पापा के हाथो करवाई।ठाकुरों के बीच दरार डालना चाहते हो।
मैं:अच्छा ये बात है।तो हा मैंने किया जानभुजके।जो मुझे सही लगा मैंने किया।उस लड़की की जिंदगी बर्बाद करने पर तुले है तेरे घरवाले।मुझे गलत लगा मैंने टांग अड़ाई।
श्वेता:पर मुझसे दोस्ती का झूठा नाटक करने की क्या जरूरत।बड़े खुदगर्ज और कमीने इंसान हु।तेरी औकात नही तब भी तुझसे दोस्ती का हाथ आगे किया।घरवालों के संस्कार दिख गए तेरे।
मैं:अच्छा जी जरा चेहरा ठीक करना,वो बाल आगे आ रहे है।
श्वेता:क्यो!?
मैं:करो तो सही,बताता हु।
उसने जैसे ही चेहरा ठीक ठाक किया।मैंने एक जोरदार तमाचा दे मारा।वैसे ही शम्भू मेरे पास और मीना चाची उसके पास दौड़ते हुए चली आयी।
मीना:अरे तुम क्या कर रहे हो मालूम है तुझे,ठाकुर की बेटी है ये।
मैं:दोनो को:ओए तू नोकर है उसकी मै नही।वो किसीकी भी बेटी हो,मेरा गाल मुफ्त का नही पड़ा है हाथ साफ करने के लिए।और तुम जरा शर्म करो,तुम भी एक लडक़ी हो।तुम्हारे बाप के झोली में एक भला काम डाल दिया।और अच्छे संस्कार वाले घर से हु इसलिए सिर्फ थप्पड़ मारा हु।आइंदा सोच समझ कर हाथ उठाना।और हा हु मैं कमीना।मेरे को उंगली करेगा तो पछाड़ दूंगा।
मैं वहां से निकल गया।मंदिर के नीचे आया तो देखा की सामने से बल्लू ठाकुर के आदमी आ रहे थे।हलचल से बहोत गुस्से में लग रहे थे।जाने के दो ही रास्ते थे।एक सामने से जहा से वो आ रहे थे और दूसरा नदी।मैंने बिना सोचे नदी में छलांग लगाई।पहले पानी का कोई अंदाजा नही आया।संभल जाने तक बहोत थक गया था।कैसे वैसे घर पहोंच गया।
मा:अरे सुबह तो ही नहा लिए थे अभी नहाने की क्या जरूरत।
मैं कुछ बोला नही।रात के खाने तक मैं अंदर ही बैठा रहा।हमला जरूर नही हुआ था।पर हो सकता था।सरकारी क्वार्टर है इसलिए यहाँ हमला नही करेंगे पर बाहर खतरा हो सकता है।मुझे अभीतक पूरा यकीन नही था की वो लोग सच में मुझे ही मारने आये थे या नहीं ।पर खतरा मोड़ लेने से उधर स भागना सही समझा।अभी ये बात किसको बता के कुछ नही होगा,जिस बात का यकीन नही उसको अइसे फैलाना सही नही होगा,खामखा सब लोग परेशान।
मैं जल्दबाजी में नदी में कूदा था उस वक्त मुझे कुछ अहसास नही हुआ पर अभी अहसास हो रहा था कि मेरे बहोत से शरीर के हिस्से को जख्म हुई थी।मैंने ये बात मा को बताई।उन्होंने डॉक्टर को बुलाया।
डॉक्टर:बेटा वो नदी है।शहर का स्विमिंग टैंक नही है।आगे से सम्भलके नहाना।
मा:कुछ परेशानी की बात है क्या डॉक्टर साब।
डॉक्टर:जान की परेशानी नही है,पर 1 दो दिन बिना कपड़ो के रहना होगा,क्योकि मलम लगाना है।नदी के जंगली कांटेदार झाड़ियां लगी है उसको,अक्सर गाँव वाले फेंक देते है नदी में।2 दिन मलम लगा देगा तो हो जाएगा।
मैं मन में-अरे यार क्या परेशानी है ये!?? पर एक तरफ से अइसे भी लग रहा था जैसे ठाकुर के गुस्से से बचने का यही एक रास्ता बना दिया होगा भगवान ने।वैसे भी 2 दिन तक घर में अइसे पड़ा रहूंगा तो थोड़ी देर के लिए सही सुरक्षित रहूंगा।
डॉक्टर साब जाने के बाद मा अंदर आई:हो गया तेरे मन जैसा।खामखा और एक नई परेशानी।तेरे पिताजी भी नही है।क्या जरूरत थी नदी में कूदने की।घर में पानी की कोई कमी है।
ये मा का गुस्सा नही था,बस मेरे इस हालत से परेशान हो रही थी।और हर बार की तरह दादी ने उन्हें चुप कराया।
दादी:अरे वो बहुरानी,क्यो इतना अफलतफल मचा रही हो।अइसा कर रही हो जैसे बड़ा कोई हो गया हो।हो जाएगा 2 दिन में सही।तुम 2 दिन उसपे ध्यान दिए रखो।और हा उसके ही कमरे में सो जाना।वैसे भी विकास नही है।तुम्हे भी साथ मिल जाएगी और उसे मदद।और चुप हो जा अभी।तेरे चिल्लाने से कुछ नही होगा।
दादी की बात सुन मा चुप हो गयी।दादी बोली की कोई बड़ा हादसा नही हुआ है पर दादी को क्या मालूम अगर आज गलती से भी उनके हाथ लग जाता तो क्या हो जाता।
डॉक्टर ने कांटे तो निकाल दिए थे पर मुझे पैर हिलाने के बाद बहोत दर्द हो रहा था।मुझे अभी वॉशरूम जाना था।मैंने मा को पुकारा।
मैं:मा मुझे सु सु जाना है!!
मैं:हा रुक थोड़ी देर मै आयी।
5, 6 मिनिट अइसे ही लिकल गए।मेरे पेट दर्द करने लगा।बहोत जोर से वाशरूम हुआ था।मैं उठने की कोशिश कर ही रहा था की मा दौड़ती हुई आयी।
मा:सॉरी सॉरी,दूध चढ़ाया था तो !!!
मैं:तो क्या मेरी जान लेगी दूध के लिए।
मा:है राम कैसी अजीब अशुभ बाते कर रहा है।मैंने कहा था तुझे नदी में कूदने को।
मैं:हा तो क्या उसके लिए जान ले लोगी।ज्यादा देर सुसु रुकने से मौत भी हो सकती है।मालूम नही क्या!!??
मा मेरी बात सिर्फ सुनती रही पर जवाब नही दिया।
मैं:किस अनपढ़ गवार को समझा रहा हु।चलो खोलो बाथरूम का दरवाजा।
अंदर आते ही मैंने लुंगी छोड़ दी।मा मेरे पास ही देख रही थी।
मैं:तुम उधर घूमो।
मा हस्ते हुए:अरे डॉक्टर ने नंगा रहने बोला है न।मलम कपडो पे लगेगा तो क्या मतलब उसका।
मैं:तो क्या आपलोगो के सामने नंगा घूमु।
मा:हा तो उसमे क्या बड़ी बात।अभी तो तू छोटा है।
मैं:मा अभी मै बड़ा हो गया हु।
मा:अच्छा तू बड़ा हो गया है क्या?
मैं:हा तो पूरे 18 साल हो गए है मुझे।तुम लोग अभी भी मुझे छोटा समझते हो।
मा अचानक से घूमी:ज्यादा मत बोल अभी छोटा है तू,बस बाते बड़ो जैसी करता है।
बोलते हुए अचानक से रुक गयी और सिर्फ मेरे लन्ड को ताकने लगी।ज्यादा देर सुसु रुकने से मेरे लन्ड तन गया था।
मैं उनको अइसे ताकते देख खुदको अनकम्फर्टेबल महसूस करने लगा और झट से लुंगी लपेटी।लुंगी के धागे से जख्म दुखने लगी मैं"आआह मा"करके सिसकाया।
मा ने होश में आते हुए लुंगी झट से खींची और नीचे बैठ कर फूंक मारने लगी।1 2 मिनिट तक कुछ नही लगा पर जैसे ही लन्ड झटके मारने लगा तभी हम दोनो एकदूसरे की आंखों में देखने लगे।काफी देर हम वैसे ही खड़े थे।मेरे लन्ड और मा के चेहरे के बीच सिर्फ 1 अंगूठे जितना है फासला था।तभी फिरसे दर्द चालू हुआ क्योकि लुंगी का एक धागा मेरे लन्द में फसे हुए था जिससे लुंगी लन्ड को टंग रही थी और जांगो के जख्म पर घिसे जा रही थी।मा ने झट से वो धागा खिसकाया।मै तो हक्काबक्का हो गया।क्योकि मा ने सीधा मेरे लन्ड को हाथ में लेके लुंगी का धागा सरकाया था।कुछ पल के लिए उनको ये बात मालूम नही पड़ी पर जब उनको ये बात मालूम पड़ी उनके गाल लाल हो गए।
हम अभी बेड के पास आये।मैं बेड पे पीठ के बल बेड को पीठ टिकाए पैर छोड़ के बैठ गया।पर मेरा लन्ड अभी खड़ा था। मा बस उसे घूरे जा रही थी।
मैं:मा मा~~~~
मेरी पुकार उनको सुनाई नही दे रही थी।मैंने उनको हाथ लगाके हिलाया।
मा:आ आ क्या हुआ।दुख रहा है।
मैं:नही मैं ये पूछ रहा था की दादी तो न दूध पीती है न दूधवाली चाय।मै कॉफी पिता हु और डॉक्टर भी नही बोला मुझे दूध पीओ करके।आप भी बिना दूध की चाय पीती हो।तो आज इतना दूध किस बात के लिए?!
मा:अरे हा मैं तो भूल ही गयी।तुम्हारी दीदी आ रही है छुटियो पे कल ।
मैं:क्या दी आ रही है।वोव,सो कूल।
मा:ठीक है,तुम आराम करो मैं आई।कुछ होगा तो बुला लेना।
रात को मुझे कमरे में ही खाना दिया गया।
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