• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery Son Of Collector-(Hindi,Incest,Group,Hidden Suspens)

Kyo bhai pasand aa gyi kahani ?


  • Total voters
    68
191
1,313
124
Season २
◆ Son Of Collector◆
(Hindi,Incest,Grou
p,Hidden Suspens)

( Eposode 1- दुश्मनी की आहट )

भेड़ियों के जबड़े में हाथ डाल चुका था अभी हर एक बात से चौकन्ना रहना था।और इन जालिमो से घरवालों को भी बचाना था।सुबह मैं नाश्ता करके घर के बाजू वाले बगीचे में टहल रहा था।तभी सामने से मीना शम्भू के साथ आयी।मतलब बात बढ़ गयी थी।

शम्भू:भैया ये मीना चाची।

मैं:आओ मीना चाची आज यहाँ कहा से आना हुआ!??

मीना:कुछ खास नही छोटी मालकिन बुला रही है आपको।

मैं पीछे देखते हुए:कहा पर है!!?

मीना:वो तो मंदिर में राह देख रही है।

हम लोग वहाँ से सीधा मंदिर में पहुंच गए।

शम्भू और मीना दूर खड़े हो गए।

मैं:बोलिये मेडम जी,क्या सेवा करे आपकी।

श्वेता घूमी और मेरे गाल पे कसके तमाचा मारा।

मैं:अरे क्या हुआ!???

श्वेता:क्या हुआ पूछ रहे हो जैसे कुछ मालूम ही नही।तुम्हे मालूम था न की उस परिवार के साथ हमारे घर का व्यवहार था।चाचा की डील हुई थी उनसे।और उसी घर की लड़की की शादी पापा के हाथो करवाई।ठाकुरों के बीच दरार डालना चाहते हो।

मैं:अच्छा ये बात है।तो हा मैंने किया जानभुजके।जो मुझे सही लगा मैंने किया।उस लड़की की जिंदगी बर्बाद करने पर तुले है तेरे घरवाले।मुझे गलत लगा मैंने टांग अड़ाई।

श्वेता:पर मुझसे दोस्ती का झूठा नाटक करने की क्या जरूरत।बड़े खुदगर्ज और कमीने इंसान हु।तेरी औकात नही तब भी तुझसे दोस्ती का हाथ आगे किया।घरवालों के संस्कार दिख गए तेरे।

मैं:अच्छा जी जरा चेहरा ठीक करना,वो बाल आगे आ रहे है।

श्वेता:क्यो!?

मैं:करो तो सही,बताता हु।

उसने जैसे ही चेहरा ठीक ठाक किया।मैंने एक जोरदार तमाचा दे मारा।वैसे ही शम्भू मेरे पास और मीना चाची उसके पास दौड़ते हुए चली आयी।

मीना:अरे तुम क्या कर रहे हो मालूम है तुझे,ठाकुर की बेटी है ये।

मैं:दोनो को:ओए तू नोकर है उसकी मै नही।वो किसीकी भी बेटी हो,मेरा गाल मुफ्त का नही पड़ा है हाथ साफ करने के लिए।और तुम जरा शर्म करो,तुम भी एक लडक़ी हो।तुम्हारे बाप के झोली में एक भला काम डाल दिया।और अच्छे संस्कार वाले घर से हु इसलिए सिर्फ थप्पड़ मारा हु।आइंदा सोच समझ कर हाथ उठाना।और हा हु मैं कमीना।मेरे को उंगली करेगा तो पछाड़ दूंगा।

मैं वहां से निकल गया।मंदिर के नीचे आया तो देखा की सामने से बल्लू ठाकुर के आदमी आ रहे थे।हलचल से बहोत गुस्से में लग रहे थे।जाने के दो ही रास्ते थे।एक सामने से जहा से वो आ रहे थे और दूसरा नदी।मैंने बिना सोचे नदी में छलांग लगाई।पहले पानी का कोई अंदाजा नही आया।संभल जाने तक बहोत थक गया था।कैसे वैसे घर पहोंच गया।

मा:अरे सुबह तो ही नहा लिए थे अभी नहाने की क्या जरूरत।

मैं कुछ बोला नही।रात के खाने तक मैं अंदर ही बैठा रहा।हमला जरूर नही हुआ था।पर हो सकता था।सरकारी क्वार्टर है इसलिए यहाँ हमला नही करेंगे पर बाहर खतरा हो सकता है।मुझे अभीतक पूरा यकीन नही था की वो लोग सच में मुझे ही मारने आये थे या नहीं ।पर खतरा मोड़ लेने से उधर स भागना सही समझा।अभी ये बात किसको बता के कुछ नही होगा,जिस बात का यकीन नही उसको अइसे फैलाना सही नही होगा,खामखा सब लोग परेशान।

मैं जल्दबाजी में नदी में कूदा था उस वक्त मुझे कुछ अहसास नही हुआ पर अभी अहसास हो रहा था कि मेरे बहोत से शरीर के हिस्से को जख्म हुई थी।मैंने ये बात मा को बताई।उन्होंने डॉक्टर को बुलाया।

डॉक्टर:बेटा वो नदी है।शहर का स्विमिंग टैंक नही है।आगे से सम्भलके नहाना।

मा:कुछ परेशानी की बात है क्या डॉक्टर साब।

डॉक्टर:जान की परेशानी नही है,पर 1 दो दिन बिना कपड़ो के रहना होगा,क्योकि मलम लगाना है।नदी के जंगली कांटेदार झाड़ियां लगी है उसको,अक्सर गाँव वाले फेंक देते है नदी में।2 दिन मलम लगा देगा तो हो जाएगा।

मैं मन में-अरे यार क्या परेशानी है ये!?? पर एक तरफ से अइसे भी लग रहा था जैसे ठाकुर के गुस्से से बचने का यही एक रास्ता बना दिया होगा भगवान ने।वैसे भी 2 दिन तक घर में अइसे पड़ा रहूंगा तो थोड़ी देर के लिए सही सुरक्षित रहूंगा।

डॉक्टर साब जाने के बाद मा अंदर आई:हो गया तेरे मन जैसा।खामखा और एक नई परेशानी।तेरे पिताजी भी नही है।क्या जरूरत थी नदी में कूदने की।घर में पानी की कोई कमी है।

ये मा का गुस्सा नही था,बस मेरे इस हालत से परेशान हो रही थी।और हर बार की तरह दादी ने उन्हें चुप कराया।

दादी:अरे वो बहुरानी,क्यो इतना अफलतफल मचा रही हो।अइसा कर रही हो जैसे बड़ा कोई हो गया हो।हो जाएगा 2 दिन में सही।तुम 2 दिन उसपे ध्यान दिए रखो।और हा उसके ही कमरे में सो जाना।वैसे भी विकास नही है।तुम्हे भी साथ मिल जाएगी और उसे मदद।और चुप हो जा अभी।तेरे चिल्लाने से कुछ नही होगा।

दादी की बात सुन मा चुप हो गयी।दादी बोली की कोई बड़ा हादसा नही हुआ है पर दादी को क्या मालूम अगर आज गलती से भी उनके हाथ लग जाता तो क्या हो जाता।

डॉक्टर ने कांटे तो निकाल दिए थे पर मुझे पैर हिलाने के बाद बहोत दर्द हो रहा था।मुझे अभी वॉशरूम जाना था।मैंने मा को पुकारा।

मैं:मा मुझे सु सु जाना है!!

मैं:हा रुक थोड़ी देर मै आयी।

5, 6 मिनिट अइसे ही लिकल गए।मेरे पेट दर्द करने लगा।बहोत जोर से वाशरूम हुआ था।मैं उठने की कोशिश कर ही रहा था की मा दौड़ती हुई आयी।

मा:सॉरी सॉरी,दूध चढ़ाया था तो !!!

मैं:तो क्या मेरी जान लेगी दूध के लिए।

मा:है राम कैसी अजीब अशुभ बाते कर रहा है।मैंने कहा था तुझे नदी में कूदने को।

मैं:हा तो क्या उसके लिए जान ले लोगी।ज्यादा देर सुसु रुकने से मौत भी हो सकती है।मालूम नही क्या!!??

मा मेरी बात सिर्फ सुनती रही पर जवाब नही दिया।

मैं:किस अनपढ़ गवार को समझा रहा हु।चलो खोलो बाथरूम का दरवाजा।

अंदर आते ही मैंने लुंगी छोड़ दी।मा मेरे पास ही देख रही थी।
मैं:तुम उधर घूमो।

मा हस्ते हुए:अरे डॉक्टर ने नंगा रहने बोला है न।मलम कपडो पे लगेगा तो क्या मतलब उसका।

मैं:तो क्या आपलोगो के सामने नंगा घूमु।

मा:हा तो उसमे क्या बड़ी बात।अभी तो तू छोटा है।

मैं:मा अभी मै बड़ा हो गया हु।

मा:अच्छा तू बड़ा हो गया है क्या?

मैं:हा तो पूरे 18 साल हो गए है मुझे।तुम लोग अभी भी मुझे छोटा समझते हो।

मा अचानक से घूमी:ज्यादा मत बोल अभी छोटा है तू,बस बाते बड़ो जैसी करता है।

बोलते हुए अचानक से रुक गयी और सिर्फ मेरे लन्ड को ताकने लगी।ज्यादा देर सुसु रुकने से मेरे लन्ड तन गया था।

मैं उनको अइसे ताकते देख खुदको अनकम्फर्टेबल महसूस करने लगा और झट से लुंगी लपेटी।लुंगी के धागे से जख्म दुखने लगी मैं"आआह मा"करके सिसकाया।

मा ने होश में आते हुए लुंगी झट से खींची और नीचे बैठ कर फूंक मारने लगी।1 2 मिनिट तक कुछ नही लगा पर जैसे ही लन्ड झटके मारने लगा तभी हम दोनो एकदूसरे की आंखों में देखने लगे।काफी देर हम वैसे ही खड़े थे।मेरे लन्ड और मा के चेहरे के बीच सिर्फ 1 अंगूठे जितना है फासला था।तभी फिरसे दर्द चालू हुआ क्योकि लुंगी का एक धागा मेरे लन्द में फसे हुए था जिससे लुंगी लन्ड को टंग रही थी और जांगो के जख्म पर घिसे जा रही थी।मा ने झट से वो धागा खिसकाया।मै तो हक्काबक्का हो गया।क्योकि मा ने सीधा मेरे लन्ड को हाथ में लेके लुंगी का धागा सरकाया था।कुछ पल के लिए उनको ये बात मालूम नही पड़ी पर जब उनको ये बात मालूम पड़ी उनके गाल लाल हो गए।

हम अभी बेड के पास आये।मैं बेड पे पीठ के बल बेड को पीठ टिकाए पैर छोड़ के बैठ गया।पर मेरा लन्ड अभी खड़ा था। मा बस उसे घूरे जा रही थी।

मैं:मा मा~~~~

मेरी पुकार उनको सुनाई नही दे रही थी।मैंने उनको हाथ लगाके हिलाया।

मा:आ आ क्या हुआ।दुख रहा है।

मैं:नही मैं ये पूछ रहा था की दादी तो न दूध पीती है न दूधवाली चाय।मै कॉफी पिता हु और डॉक्टर भी नही बोला मुझे दूध पीओ करके।आप भी बिना दूध की चाय पीती हो।तो आज इतना दूध किस बात के लिए?!

मा:अरे हा मैं तो भूल ही गयी।तुम्हारी दीदी आ रही है छुटियो पे कल ।

मैं:क्या दी आ रही है।वोव,सो कूल।

मा:ठीक है,तुम आराम करो मैं आई।कुछ होगा तो बुला लेना।

रात को मुझे कमरे में ही खाना दिया गया।
 
Last edited:

Chunmun

Active Member
1,368
5,427
143
Fabulous update.
Ha ha ha.... Bina soche nadi mai kudne ka parinam accha nikalega ya bura wo raat tak pata chal jaiga.

Lo bhai is musibat mai ab bahan bhi aa rahi hai. Ab use bhi thakuro se protect karna padega.
 

Poojasingh69

Active Member
1,195
2,745
159
Season २
◆ Son Of Collector◆
(Hindi,Incest,Grou
p,Hidden Suspens)

( Eposode 1- दुश्मनी की आहट )

भेड़ियों के जबड़े में हाथ डाल चुका था अभी हर एक बात से चौकन्ना रहना था।और इन जालिमो से घरवालों को भी बचाना था।सुबह मैं नाश्ता करके घर के बाजू वाले बगीचे में टहल रहा था।तभी सामने से मीना शम्भू के साथ आयी।मतलब बात बढ़ गयी थी।

शम्भू:भैया ये मीना चाची।

मैं:आओ मीना चाची आज यहाँ कहा से आना हुआ!??

मीना:कुछ खास नही छोटी मालकिन बुला रही है आपको।

मैं पीछे देखते हुए:कहा पर है!!?

मीना:वो तो मंदिर में राह देख रही है।

हम लोग वहाँ से सीधा मंदिर में पहुंच गए।

शम्भू और मीना दूर खड़े हो गए।

मैं:बोलिये मेडम जी,क्या सेवा करे आपकी।

श्वेता घूमी और मेरे गाल पे कसके तमाचा मारा।

मैं:अरे क्या हुआ!???

श्वेता:क्या हुआ पूछ रहे हो जैसे कुछ मालूम ही नही।तुम्हे मालूम था न की उस परिवार के साथ हमारे घर का व्यवहार था।चाचा की डील हुई थी उनसे।और उसी घर की लड़की की शादी पापा के हाथो करवाई।ठाकुरों के बीच दरार डालना चाहते हो।

मैं:अच्छा ये बात है।तो हा मैंने किया जानभुजके।जो मुझे सही लगा मैंने किया।उस लड़की की जिंदगी बर्बाद करने पर तुले है तेरे घरवाले।मुझे गलत लगा मैंने टांग अड़ाई।

श्वेता:पर मुझसे दोस्ती का झूठा नाटक करने की क्या जरूरत।बड़े खुदगर्ज और कमीने इंसान हु।तेरी औकात नही तब भी तुझसे दोस्ती का हाथ आगे किया।घरवालों के संस्कार दिख गए तेरे।

मैं:अच्छा जी जरा चेहरा ठीक करना,वो बाल आगे आ रहे है।

श्वेता:क्यो!?

मैं:करो तो सही,बताता हु।

उसने जैसे ही चेहरा ठीक ठाक किया।मैंने एक जोरदार तमाचा दे मारा।वैसे ही शम्भू मेरे पास और मीना चाची उसके पास दौड़ते हुए चली आयी।

मीना:अरे तुम क्या कर रहे हो मालूम है तुझे,ठाकुर की बेटी है ये।

मैं:दोनो को:ओए तू नोकर है उसकी मै नही।वो किसीकी भी बेटी हो,मेरा गाल मुफ्त का नही पड़ा है हाथ साफ करने के लिए।और तुम जरा शर्म करो,तुम भी एक लडक़ी हो।तुम्हारे बाप के झोली में एक भला काम डाल दिया।और अच्छे संस्कार वाले घर से हु इसलिए सिर्फ थप्पड़ मारा हु।आइंदा सोच समझ कर हाथ उठाना।और हा हु मैं कमीना।मेरे को उंगली करेगा तो पछाड़ दूंगा।

मैं वहां से निकल गया।मंदिर के नीचे आया तो देखा की सामने से बल्लू ठाकुर के आदमी आ रहे थे।हलचल से बहोत गुस्से में लग रहे थे।जाने के दो ही रास्ते थे।एक सामने से जहा से वो आ रहे थे और दूसरा नदी।मैंने बिना सोचे नदी में छलांग लगाई।पहले पानी का कोई अंदाजा नही आया।संभल जाने तक बहोत थक गया था।कैसे वैसे घर पहोंच गया।

मा:अरे सुबह तो ही नहा लिए थे अभी नहाने की क्या जरूरत।

मैं कुछ बोला नही।रात के खाने तक मैं अंदर ही बैठा रहा।हमला जरूर नही हुआ था।पर हो सकता था।सरकारी क्वार्टर है इसलिए यहाँ हमला नही करेंगे पर बाहर खतरा हो सकता है।मुझे अभीतक पूरा यकीन नही था की वो लोग सच में मुझे ही मारने आये थे या नहीं ।पर खतरा मोड़ लेने से उधर स भागना सही समझा।अभी ये बात किसको बता के कुछ नही होगा,जिस बात का यकीन नही उसको अइसे फैलाना सही नही होगा,खामखा सब लोग परेशान।

मैं जल्दबाजी में नदी में कूदा था उस वक्त मुझे कुछ अहसास नही हुआ पर अभी अहसास हो रहा था कि मेरे बहोत से शरीर के हिस्से को जख्म हुई थी।मैंने ये बात मा को बताई।उन्होंने डॉक्टर को बुलाया।

डॉक्टर:बेटा वो नदी है।शहर का स्विमिंग टैंक नही है।आगे से सम्भलके नहाना।

मा:कुछ परेशानी की बात है क्या डॉक्टर साब।

डॉक्टर:जान की परेशानी नही है,पर 1 दो दिन बिना कपड़ो के रहना होगा,क्योकि मलम लगाना है।नदी के जंगली कांटेदार झाड़ियां लगी है उसको,अक्सर गाँव वाले फेंक देते है नदी में।2 दिन मलम लगा देगा तो हो जाएगा।

मैं मन में-अरे यार क्या परेशानी है ये!?? पर एक तरफ से अइसे भी लग रहा था जैसे ठाकुर के गुस्से से बचने का यही एक रास्ता बना दिया होगा भगवान ने।वैसे भी 2 दिन तक घर में अइसे पड़ा रहूंगा तो थोड़ी देर के लिए सही सुरक्षित रहूंगा।

डॉक्टर साब जाने के बाद मा अंदर आई:हो गया तेरे मन जैसा।खामखा और एक नई परेशानी।तेरे पिताजी भी नही है।क्या जरूरत थी नदी में कूदने की।घर में पानी की कोई कमी है।

ये मा का गुस्सा नही था,बस मेरे इस हालत से परेशान हो रही थी।और हर बार की तरह दादी ने उन्हें चुप कराया।

दादी:अरे वो बहुरानी,क्यो इतना अफलतफल मचा रही हो।अइसा कर रही हो जैसे बड़ा कोई हो गया हो।हो जाएगा 2 दिन में सही।तुम 2 दिन उसपे ध्यान दिए रखो।और हा उसके ही कमरे में सो जाना।वैसे भी विकास नही है।तुम्हे भी साथ मिल जाएगी और उसे मदद।और चुप हो जा अभी।तेरे चिल्लाने से कुछ नही होगा।

दादी की बात सुन मा चुप हो गयी।दादी बोली की कोई बड़ा हादसा नही हुआ है पर दादी को क्या मालूम अगर आज गलती से भी उनके हाथ लग जाता तो क्या हो जाता।

डॉक्टर ने कांटे तो निकाल दिए थे पर मुझे पैर हिलाने के बाद बहोत दर्द हो रहा था।मुझे अभी वॉशरूम जाना था।मैंने मा को पुकारा।

मैं:मा मुझे सु सु जाना है!!

मैं:हा रुक थोड़ी देर मै आयी।

5, 6 मिनिट अइसे ही लिकल गए।मेरे पेट दर्द करने लगा।बहोत जोर से वाशरूम हुआ था।मैं उठने की कोशिश कर ही रहा था की मा दौड़ती हुई आयी।

मा:सॉरी सॉरी,दूध चढ़ाया था तो !!!

मैं:तो क्या मेरी जान लेगी दूध के लिए।

मा:है राम कैसी अजीब अशुभ बाते कर रहा है।मैंने कहा था तुझे नदी में कूदने को।

मैं:हा तो क्या उसके लिए जान ले लोगी।ज्यादा देर सुसु रुकने से मौत भी हो सकती है।मालूम नही क्या!!??

मा मेरी बात सिर्फ सुनती रही पर जवाब नही दिया।

मैं:किस अनपढ़ गवार को समझा रहा हु।चलो खोलो बाथरूम का दरवाजा।

अंदर आते ही मैंने लुंगी छोड़ दी।मा मेरे पास ही देख रही थी।
मैं:तुम उधर घूमो।

मा हस्ते हुए:अरे डॉक्टर ने नंगा रहने बोला है न।मलम कपडो पे लगेगा तो क्या मतलब उसका।

मैं:तो क्या आपलोगो के सामने नंगा घूमु।

मा:हा तो उसमे क्या बड़ी बात।अभी तो तू छोटा है।

मैं:मा अभी मै बड़ा हो गया हु।

मा:अच्छा तू बड़ा हो गया है क्या?

मैं:हा तो पूरे 17 साल हो गए है मुझे।तुम लोग अभी भी मुझे छोटा समझते हो।

मा अचानक से घूमी:ज्यादा मत बोल अभी छोटा है तू,बस बाते बड़ो जैसी करता है।

बोलते हुए अचानक से रुक गयी और सिर्फ मेरे लन्ड को ताकने लगी।ज्यादा देर सुसु रुकने से मेरे लन्ड तन गया था।

मैं उनको अइसे ताकते देख खुदको अनकम्फर्टेबल महसूस करने लगा और झट से लुंगी लपेटी।लुंगी के धागे से जख्म दुखने लगी मैं"आआह मा"करके सिसकाया।

मा ने होश में आते हुए लुंगी झट से खींची और नीचे बैठ कर फूंक मारने लगी।1 2 मिनिट तक कुछ नही लगा पर जैसे ही लन्ड झटके मारने लगा तभी हम दोनो एकदूसरे की आंखों में देखने लगे।काफी देर हम वैसे ही खड़े थे।मेरे लन्ड और मा के चेहरे के बीच सिर्फ 1 अंगूठे जितना है फासला था।तभी फिरसे दर्द चालू हुआ क्योकि लुंगी का एक धागा मेरे लन्द में फसे हुए था जिससे लुंगी लन्ड को टंग रही थी और जांगो के जख्म पर घिसे जा रही थी।मा ने झट से वो धागा खिसकाया।मै तो हक्काबक्का हो गया।क्योकि मा ने सीधा मेरे लन्ड को हाथ में लेके लुंगी का धागा सरकाया था।कुछ पल के लिए उनको ये बात मालूम नही पड़ी पर जब उनको ये बात मालूम पड़ी उनके गाल लाल हो गए।

हम अभी बेड के पास आये।मैं बेड पे पीठ के बल बेड को पीठ टिकाए पैर छोड़ के बैठ गया।पर मेरा लन्ड अभी खड़ा था। मा बस उसे घूरे जा रही थी।

मैं:मा मा~~~~

मेरी पुकार उनको सुनाई नही दे रही थी।मैंने उनको हाथ लगाके हिलाया।

मा:आ आ क्या हुआ।दुख रहा है।

मैं:नही मैं ये पूछ रहा था की दादी तो न दूध पीती है न दूधवाली चाय।मै कॉफी पिता हु और डॉक्टर भी नही बोला मुझे दूध पीओ करके।आप भी बिना दूध की चाय पीती हो।तो आज इतना दूध किस बात के लिए?!

मा:अरे हा मैं तो भूल ही गयी।तुम्हारी दीदी आ रही है छुटियो पे कल ।

मैं:क्या दी आ रही है।वोव,सो कूल।

मा:ठीक है,तुम आराम करो मैं आई।कुछ होगा तो बुला लेना।

रात को मुझे कमरे में ही खाना दिया गया।



Nice update
 
191
1,313
124
(Episode 2)

रातभर मैं आज दिनभर जो भी घटा उसको सोच रहा था।मा के सामने मै पहली बार नंगा हुआ था।ये बात मा बेटे के रिश्ते में उतनी मायने नही रखती जब दोनो उस बात को अनजाने में ले।यहां पर मैं सेक्स में पीएचडी कर लिया था और दो औरते पहले ही चोद चुका था।और उसमे ही आज मैंने ये गौर किया की मा भी लन्ड को ताके जा रही थी।आम तौर पर उतना कोई घूरता नही है।बाथरूम में मुझे इतना अजीब नही लगा जितना उनका बैडरूम में आने के बाद घूरना अजीब लगा।कुछ देर के लिए उनके लिए मेरी हवस की भावना जग उठी। मेरा लन्ड भी खड़ा तन कर उस बात की गवाही दे रहा था।मैं बस अपने में ही हस दिया।तभी दरवाजा खुला और मा अंदर आई।आते ही उनकी नजर मेरे लन्ड पे पड़ गयी।

मैं:अरे मा ,100 साल जिओ अभी तुम्हारी याद निकाली थी।

मा: हट नटखट कही के।

मैं हैरान रह गया।इसमे क्या नटखट जैसा बोला।मैं तो वही बात बोला जो आम तौर पर लोग बोल देते है।पर उसी समय मुझे से अहसास हुआ की मा ने वो बात मेरे लन्ड के तरफ देख बोली थी।तभी मैं समझा की वो किस बात पर मुझे नटखट बोली।

वो मेरे पास आकर मेरे बेड पे बैठी।

मैं:क्या हुआ मा ,आप सो नही रहे हो!??

मा:हा सो तो रही हु।

मैं:मेरे साथ!!???

मा:हा,तुझे रात को कुछ लगा तो।वैसे तेरे पिताजी भी नही है तो कमरे में डर सा लगता है।

मैं:ठीक है।सो जाओ।मुझे नींद आ रही है।

रात को 12 बजे।

काफी दिनों से चुदाई की खेल की वजह से लन्ड मेरा खड़ा ही रह रहा था।नींद नींद में मैं अइसे ही मा के पीछे से उसे चिपक गया।जैसे बचपन में बिलग के सोता था।पर मुझे ये अहसास नही हो रहा था की उस वक्त मैं नंगा था।और मेरा लन्ड मा की गांड पर घिस रहा था।मेरे लन्ड को बहोत सुकून मिल रहा था।मैं मदहोशी और नींद में लन्ड को गांड पर घिसे जा रहा था।काफी देर अइसा करने के बाद मैं झड़ने को आया था।मैंने मा को पीछे से कस के पकड़ा और जोर जोर से घिसाने लगा।

मा:वीनू क्या कर रहे हो!!?छोड़ो मुझे आआह,वीनू~~

मैं नींद में मदहोशी में बस लन्ड को शांत करा रहा था।मैं अकड़ के मा की साड़ी के ऊपर ही झड गया।और पीछे होकर सो गया।मेरा लन्ड भी अभी सो गया था।बहोत हल्का महसूस कर रहा था।मा बस मुझे मेरे लन्ड को और गांड पे गिरे रस को बारी बारी घूरे जा रही थी।पर बाद में वो भी सो गयी।

सुबह उठा तो मुझे मेरे जख्म काफी भरे हुए दिखाई दिए।मैं खुद उठ कर बाथरूम गया और नहा लिया।

मा:अरे वा,मेरा बेटा ठीक हो गया,बड़ा ही ताक़दवर हो गया है।

मैं नींद में जरूर था पर रात को जो मैंने किया उसका मुझे पूरा अहसास था।पर उसके ऊपर चिलाना छोड़ के मा अइसे बात कर रही थी जैसे कुछ हुआ ही नही है।

मैं:हा अभी ठीक ठाक लग रहा है।दीदी आ गयी क्या!!?

मा:अरे नही वो अगले महीने आएगी।उसको पिताजी से भी मिलना है तो उसके वजह से वो देरी से आएगी।

मैं:अच्छा ठीक है।

बात करते वक्त मा काफी वक्त मेरे लन्ड के पास देख चुकी थी।पर मेरा लन्ड बैठ गया था।मैं बाहर आके बैठ गया।

मैं:दादी और सीता चाची नही दिखाई दे रहे।

मा:अरे वो मंदिर गयी है प्रवचन के लिए।

मा मेरे सामने पिछवाड़ा करके थी।किचन का काम करते हुए उनकी गांड काफी हिल रही थी।और उसी वजह से मेरा लन्ड भी पूरा गर्मी से तन गया था।नाश्ता होने तक अइसे ही हाल रहा।लन्ड के तनाव से स्नायु को भी तनाव आ गया और मेरे जख्म दुखने लगे।तभी मुझे रात का वो खेल याद आया।पर दिन दहाड़े मा के साथ ये करना मतलब थोड़ा रिस्क वाला काम था।वो कुछ बोली नही इसका मतलब ये तो नही निकाल सकते की गुस्सा नही होंगी।पर मेरा हवस वाला मन वो बात करने के लिए मुझे प्रोत्साहित कर रहा था।

आखिर में मैं उठा और मा को पीछे से जाकर चिपक गया।

मा:अरे क्या हुआ मेरे राजा बेटा को,आज बहोत प्यार आ रहा है मा के ऊपर।

मैं काफी देर वैसे ही रहा और पूरी हिम्मत जुटा कर मा को कस के पकड़ा और लन्ड घिसाने लगा।

मा:वीनू ये क्या बेहूदगी है।क्या कर रहे हो।

मैं:सॉरी मा पर मुझे ये तनाव सहन नही हो रहा था।तो

मा:तो ये सब क्या है!!?छोड़ो मुझे छोड़ो।

मैं:बस दो मिनिट मा,हो गया मेरा।

मैंने और कस के पकड़ के उनको ,उनके गांड पे लन्ड को घिसाने लगा और साड़ी के ऊपर ही झड गया।

मैं:थैंक्यू मा,आप बहोत अछि हो,मुझे बहोत सुकून सा महसूस हो रहा है।

मा मुझे बस देखती रह गयी।

दोपहर को मैं शम्भू को देखने बस्ती पर निकल गया।शम्भू को देखा तो उसे किसीने पीटा था और शांता(रुबीना)उसकी बिवि पास में उसको सेख रही थी।सीता चाची तो मेरे घर थी और चाचा ठाकुर के खेतो पर।

मैं:अरे शम्भू ये क्या हुआ!!?

शांता रोते हुए:बल्लू ठाकुर के आदमियो ने इन्हें बहोत पीटा।क्या हाल बनाया है देखो।

मैं मन में-मतलब मेरा शक सही था।ये हालत मेरी भी होनी थी।

मैं:डॉक्टर को दिखाया?

शांता:हा,दिखाया है।2 से3 दिन लगेंगे बोला था।ये सब मेरी वजह से हो रहा है।क्यो मुझसे शादी की इन्होंने।ये सब होता ही नही।

मैंने उसे समझते हुए:अरे भाभी अइसा कुछ नही है।तुम खुद को मत कोसो।

मैं वहां से निकल कर घर आने ही वाला था की रास्ते में सांबा ठाकुर की गाड़ी मेरे सामने रुकी।लगता है कही से आ रहे थे,प्रवचन के यह से ही आने का अहसास हो रहा था क्योकि गले में रुद्राक्ष और टीका लगाया था।साथ में परिवार भी था।

सांबा:क्यो छोटे कलेक्टर साब कहा चल दिए।

मैं:वो शम्भू के पास गया था।

सांबा:क्यो जिंदा है या मर गया ये देखने गए थे क्या?

मैं थोड़ा चौक गया पर वैसे प्रतीत न करते हए:मरे उसके दुश्मन।बस शादी के बाद नही गया था उसका हालचाल पूछने तो चला गया।

सांबा:नसीब वाले हो,अगर कल मै न रोकता तो तू भी उसीकी तरह बेड पे लेटा नही होता चिता पर लेटा होता।

मैं हस्ते हुए:ठाकुर साब आप हमे इतना हल्के में मत लो,उम्र काफी छोटी है पर दुनियाभर के सारे तौर तरीके मालूम है हमे।अगर मैं लड़की को भगा के उसकी शादी करवा देता तो आपकी और आपके खानदान की इज्जत निकल जाती।

ठाकुर की बिवि:हमारी इज्जत!!?

मैं:कैसा हैं न चाची अगर ये लोग भागके दूसरी जगह जाकर बिहाते तो लोग कहते की ठाकुर को टक्कर दे दी उसकी बातों के बीच टांग अड़ाने वाला भी कोई है,और ठाकुर भी कुछ कर नही पाया,पर वही शादी ठाकुर ने की तो ठाकुर के दुश्मन भी जल रहे है और लोग भी कह रहे है की ठाकुर बड़े दिलवाला है।

बल्लू की बिवि पार्वती:ये बात भी सही है।

सांबा ने उसको बड़ी आंखे दिखाके चुप कराया:बच्चे तुम हमारे इज्जत की चिंता छोड़।और मेरी भी बात को छोड़।पर मेरा भाई तुझे मार के ही दम लेगा।

मैं:आपकी शुभकामनाएं हमारे साथ है तो हमे कैसा डर है।चलो चलता हु ।दोपहर के खाने का समय हो गया है।अलविदा।


मेरे जाने के बाद-

सांबा की बिवि पार्वती से-ठाकुरों को टक्कर देने वाला सही में कोई आ गया है।

पार्वती:ये बात सही फरमाई आपने दीदी।

साम्बा:पर उस नादान को ये मालूम नही की हमसे टकराने का अंजाम क्या हो सकता है।बल्लू तो उसे पछाड़ ही देगा।


घर पर दादी और सीता चाची आ चुकी थी।मैं बाहर गार्डन में ही था।खाने के समय सीता चाची मूझे बुलाने गार्डन में आयी।

सीता:चलो बाबूजी खाना लग गया है।

मैं:चाची आप बोली नही की शम्भू को बल्लू ने पिटवाया है।

सीता:अब क्या करती बोलके।ये तो होना था।

मैं:क्या करती मतलब,मैंने खेल रचा था तो मुझे भी ये बाते मालूम पड़नी जरूरी है।अभी इसकी सजा मिलेगी आपको।

सीता:मतलब!!!


गार्डन के एक झाड़ियो के पीछे उनको लेके गया।

सीता:क्या हुआ बाबूजी।क्या सजा दे रहे हो।

मैंने उनको अपनी बाहों में लिया।

सीता:अच्छा ये सजा।

मैंने उनको थोड़ा बाहों से हल्का करते हुए उनके ओंठो को चूमना चालू किया।बहोत देर तक उनकी ओंठो का रस पीने लगा।

सीता:अभी बस भी करो इसीसे पेट भरने वाले हो या खाना भी खाना है।

मेरा मन बहोत कुछ करने का था पर उस वक्त मुनाजीब नही था ।हम खाना खाने के लिए घर में आये।

दादी:वीनू,तेरे पराक्रम की चर्चा पूरे गाँव में है।पर उतनीही लोग चिंतित भी है की तुझे जान का खतरा भी हो सकता है।

मैं:दादी आप ही कहती हो,जो आता है उसे जाना भी है।पर जबतक जी रहे हो अच्छे कर्म करते रहो।

दादी:वो भी बात सही है।मुझे मेरे घर के मर्दो पर पूरा भरोसा है पर फिर भी जरा सम्भलके रहना।बड़े कमीने लीग है ये ठाकुर।

खाना खत्म होते ही मैं सीता चाची को लेके शबीना चाची के पास गया।शुक्र है भगवान का उनको कुछ नही किया था उन्होंने।

शबीना मुझे देख खुशी से:अरे आओ बाबूजी।बहोत दिनों बाद।अभी तबियत कैसी है।

मैंने सीता की ओर देखा,वो हस पडी।मतलब इसीने मेरे उस हादसे की बात शबीना चाची को बताई होगी।

मैं:अभी सब चंगा है,आप बताओ,कैसे चल रहा है!???!!

शबीना:बस आपकी मेहरबानी से सब कुछ ठीक थक,अगर आप उस दिन नही होते तो आज मै किस हालत में होती।

मैं:अभी सब ठीक है न

शबीना:हा,सब बढ़िया।

मैं:तो छोड़ो उस पुरानी बात को।चाचा कहा है!??

शबीना:बाहर गाँव गए है,काम ढूंढने।अभी ठाकुर की सेवा नही करनी हमे।

मैं:तो अभी आप क्या कर रहे हो!!??

शबीना:कुछ नही अइसे ही बैठी हु।क्यो सीता बेटी कैसी है मेरी।

सीता:सब ठीक ठाक,बस शम्भू ठीक हो जाए।

शबीना:चिंता मत करो सब ठीक होगा।बाबूजी आज हमारे यहाँ आना हुआ।

मैं:बहोत दिन से नही आया था बोला मिलते चलू।

शबीना:अच्छा किया आपने!बोलो क्या सेवा करू।

मैं:बहोत दिन से रस नही निकला है।लन्ड बहोत तड़प रहा है।

शबीना:तो हम लोग है न।क्यो सीता!!?

सीता:हा तो,जब भी बोलो,तैयार है।

सीता दरवाजा बन्द कर देती है।दोनो नंगी हो जाती है।और मुझे भी कर देती है।और लन्ड को हिलाकर चुसने लग जाती है।

मैं:शबीना चाची चुचे बहोत सुख गए है।कोई मसलता नही क्या!?

शबीना:कौन मसलेगा,तेरे चाचा तो आते ही सो जाते है।

मैं:तुम्हारी जैसी हॉट बिवि को चोदे बिना।

सीता हसने लगती है।

शबीना:तुम क्यो हस रही हो।तुमको जैसे तेरा पति रोज चोदता हो ।

सीता:मुझे बाबूजी जैसा तगड़ा लंड वाला मिला तो पति की क्या जरूरत।

मैं:हम तीनो खटिया पे सोए थे।मैंने शबीना चाची को मेरे लन्ड के ऊपर आने को कहा।

शबीना:आआह आपका बहोत बड़ा है आआह

सीता:तेरी चुत भी तो भुकी है,बैठ आज सब भूख मिट जाने वाली है।

शबीना लन्ड पे बैठ कर ऊपर नीचे होने लगती है।

"आआह आआह बहोत मजा आ रहा है आआह क्या लन्ड है आआह बाबूजी आआह उम्म अम्मा आआह


मैं:सीता चाची मुझे आपकी चुत चाटनी है।

वो मेरे मुह पे आकर बैठ जाती है।शबीना की तरफ पीठ करके।शबीना उसके चुचो को कस के पकड़ के मसलते हुए ऊपर नीचे हो रही थी।मैं उसकी चुत का रस पीने में लगा हुआ था।शबीना थोड़ी ही देर बाद झड गयी।

सीता:क्या शबीना बेन,बस इतना ही।उठो मैं आती हु।

शबीना बाजूं हो गयी और सीता ने लन्ड को चुत में लगके ऊपर नीचे उछलना चालू किया।दोनो औरते बारी बारी मजे ले रही थी युवा लन्ड की।










 

Poojasingh69

Active Member
1,195
2,745
159
(Episode 2)

रातभर मैं आज दिनभर जो भी घटा उसको सोच रहा था।मा के सामने मै पहली बार नंगा हुआ था।ये बात मा बेटे के रिश्ते में उतनी मायने नही रखती जब दोनो उस बात को अनजाने में ले।यहां पर मैं सेक्स में पीएचडी कर लिया था और दो औरते पहले ही चोद चुका था।और उसमे ही आज मैंने ये गौर किया की मा भी लन्ड को ताके जा रही थी।आम तौर पर उतना कोई घूरता नही है।बाथरूम में मुझे इतना अजीब नही लगा जितना उनका बैडरूम में आने के बाद घूरना अजीब लगा।कुछ देर के लिए उनके लिए मेरी हवस की भावना जग उठी। मेरा लन्ड भी खड़ा तन कर उस बात की गवाही दे रहा था।मैं बस अपने में ही हस दिया।तभी दरवाजा खुला और मा अंदर आई।आते ही उनकी नजर मेरे लन्ड पे पड़ गयी।

मैं:अरे मा ,100 साल जिओ अभी तुम्हारी याद निकाली थी।

मा: हट नटखट कही के।

मैं हैरान रह गया।इसमे क्या नटखट जैसा बोला।मैं तो वही बात बोला जो आम तौर पर लोग बोल देते है।पर उसी समय मुझे से अहसास हुआ की मा ने वो बात मेरे लन्ड के तरफ देख बोली थी।तभी मैं समझा की वो किस बात पर मुझे नटखट बोली।

वो मेरे पास आकर मेरे बेड पे बैठी।

मैं:क्या हुआ मा ,आप सो नही रहे हो!??

मा:हा सो तो रही हु।

मैं:मेरे साथ!!???

मा:हा,तुझे रात को कुछ लगा तो।वैसे तेरे पिताजी भी नही है तो कमरे में डर सा लगता है।

मैं:ठीक है।सो जाओ।मुझे नींद आ रही है।

रात को 12 बजे।

काफी दिनों से चुदाई की खेल की वजह से लन्ड मेरा खड़ा ही रह रहा था।नींद नींद में मैं अइसे ही मा के पीछे से उसे चिपक गया।जैसे बचपन में बिलग के सोता था।पर मुझे ये अहसास नही हो रहा था की उस वक्त मैं नंगा था।और मेरा लन्ड मा की गांड पर घिस रहा था।मेरे लन्ड को बहोत सुकून मिल रहा था।मैं मदहोशी और नींद में लन्ड को गांड पर घिसे जा रहा था।काफी देर अइसा करने के बाद मैं झड़ने को आया था।मैंने मा को पीछे से कस के पकड़ा और जोर जोर से घिसाने लगा।

मा:वीनू क्या कर रहे हो!!?छोड़ो मुझे आआह,वीनू~~

मैं नींद में मदहोशी में बस लन्ड को शांत करा रहा था।मैं अकड़ के मा की साड़ी के ऊपर ही झड गया।और पीछे होकर सो गया।मेरा लन्ड भी अभी सो गया था।बहोत हल्का महसूस कर रहा था।मा बस मुझे मेरे लन्ड को और गांड पे गिरे रस को बारी बारी घूरे जा रही थी।पर बाद में वो भी सो गयी।

सुबह उठा तो मुझे मेरे जख्म काफी भरे हुए दिखाई दिए।मैं खुद उठ कर बाथरूम गया और नहा लिया।

मा:अरे वा,मेरा बेटा ठीक हो गया,बड़ा ही ताक़दवर हो गया है।

मैं नींद में जरूर था पर रात को जो मैंने किया उसका मुझे पूरा अहसास था।पर उसके ऊपर चिलाना छोड़ के मा अइसे बात कर रही थी जैसे कुछ हुआ ही नही है।

मैं:हा अभी ठीक ठाक लग रहा है।दीदी आ गयी क्या!!?

मा:अरे नही वो अगले महीने आएगी।उसको पिताजी से भी मिलना है तो उसके वजह से वो देरी से आएगी।

मैं:अच्छा ठीक है।

बात करते वक्त मा काफी वक्त मेरे लन्ड के पास देख चुकी थी।पर मेरा लन्ड बैठ गया था।मैं बाहर आके बैठ गया।

मैं:दादी और सीता चाची नही दिखाई दे रहे।

मा:अरे वो मंदिर गयी है प्रवचन के लिए।

मा मेरे सामने पिछवाड़ा करके थी।किचन का काम करते हुए उनकी गांड काफी हिल रही थी।और उसी वजह से मेरा लन्ड भी पूरा गर्मी से तन गया था।नाश्ता होने तक अइसे ही हाल रहा।लन्ड के तनाव से स्नायु को भी तनाव आ गया और मेरे जख्म दुखने लगे।तभी मुझे रात का वो खेल याद आया।पर दिन दहाड़े मा के साथ ये करना मतलब थोड़ा रिस्क वाला काम था।वो कुछ बोली नही इसका मतलब ये तो नही निकाल सकते की गुस्सा नही होंगी।पर मेरा हवस वाला मन वो बात करने के लिए मुझे प्रोत्साहित कर रहा था।

आखिर में मैं उठा और मा को पीछे से जाकर चिपक गया।

मा:अरे क्या हुआ मेरे राजा बेटा को,आज बहोत प्यार आ रहा है मा के ऊपर।

मैं काफी देर वैसे ही रहा और पूरी हिम्मत जुटा कर मा को कस के पकड़ा और लन्ड घिसाने लगा।

मा:वीनू ये क्या बेहूदगी है।क्या कर रहे हो।

मैं:सॉरी मा पर मुझे ये तनाव सहन नही हो रहा था।तो

मा:तो ये सब क्या है!!?छोड़ो मुझे छोड़ो।

मैं:बस दो मिनिट मा,हो गया मेरा।

मैंने और कस के पकड़ के उनको ,उनके गांड पे लन्ड को घिसाने लगा और साड़ी के ऊपर ही झड गया।

मैं:थैंक्यू मा,आप बहोत अछि हो,मुझे बहोत सुकून सा महसूस हो रहा है।

मा मुझे बस देखती रह गयी।

दोपहर को मैं शम्भू को देखने बस्ती पर निकल गया।शम्भू को देखा तो उसे किसीने पीटा था और शांता(रुबीना)उसकी बिवि पास में उसको सेख रही थी।सीता चाची तो मेरे घर थी और चाचा ठाकुर के खेतो पर।

मैं:अरे शम्भू ये क्या हुआ!!?

शांता रोते हुए:बल्लू ठाकुर के आदमियो ने इन्हें बहोत पीटा।क्या हाल बनाया है देखो।

मैं मन में-मतलब मेरा शक सही था।ये हालत मेरी भी होनी थी।

मैं:डॉक्टर को दिखाया?

शांता:हा,दिखाया है।2 से3 दिन लगेंगे बोला था।ये सब मेरी वजह से हो रहा है।क्यो मुझसे शादी की इन्होंने।ये सब होता ही नही।

मैंने उसे समझते हुए:अरे भाभी अइसा कुछ नही है।तुम खुद को मत कोसो।

मैं वहां से निकल कर घर आने ही वाला था की रास्ते में सांबा ठाकुर की गाड़ी मेरे सामने रुकी।लगता है कही से आ रहे थे,प्रवचन के यह से ही आने का अहसास हो रहा था क्योकि गले में रुद्राक्ष और टीका लगाया था।साथ में परिवार भी था।

सांबा:क्यो छोटे कलेक्टर साब कहा चल दिए।

मैं:वो शम्भू के पास गया था।

सांबा:क्यो जिंदा है या मर गया ये देखने गए थे क्या?

मैं थोड़ा चौक गया पर वैसे प्रतीत न करते हए:मरे उसके दुश्मन।बस शादी के बाद नही गया था उसका हालचाल पूछने तो चला गया।

सांबा:नसीब वाले हो,अगर कल मै न रोकता तो तू भी उसीकी तरह बेड पे लेटा नही होता चिता पर लेटा होता।

मैं हस्ते हुए:ठाकुर साब आप हमे इतना हल्के में मत लो,उम्र काफी छोटी है पर दुनियाभर के सारे तौर तरीके मालूम है हमे।अगर मैं लड़की को भगा के उसकी शादी करवा देता तो आपकी और आपके खानदान की इज्जत निकल जाती।

ठाकुर की बिवि:हमारी इज्जत!!?

मैं:कैसा हैं न चाची अगर ये लोग भागके दूसरी जगह जाकर बिहाते तो लोग कहते की ठाकुर को टक्कर दे दी उसकी बातों के बीच टांग अड़ाने वाला भी कोई है,और ठाकुर भी कुछ कर नही पाया,पर वही शादी ठाकुर ने की तो ठाकुर के दुश्मन भी जल रहे है और लोग भी कह रहे है की ठाकुर बड़े दिलवाला है।

बल्लू की बिवि पार्वती:ये बात भी सही है।

सांबा ने उसको बड़ी आंखे दिखाके चुप कराया:बच्चे तुम हमारे इज्जत की चिंता छोड़।और मेरी भी बात को छोड़।पर मेरा भाई तुझे मार के ही दम लेगा।

मैं:आपकी शुभकामनाएं हमारे साथ है तो हमे कैसा डर है।चलो चलता हु ।दोपहर के खाने का समय हो गया है।अलविदा।


मेरे जाने के बाद-

सांबा की बिवि पार्वती से-ठाकुरों को टक्कर देने वाला सही में कोई आ गया है।

पार्वती:ये बात सही फरमाई आपने दीदी।

साम्बा:पर उस नादान को ये मालूम नही की हमसे टकराने का अंजाम क्या हो सकता है।बल्लू तो उसे पछाड़ ही देगा।


घर पर दादी और सीता चाची आ चुकी थी।मैं बाहर गार्डन में ही था।खाने के समय सीता चाची मूझे बुलाने गार्डन में आयी।

सीता:चलो बाबूजी खाना लग गया है।

मैं:चाची आप बोली नही की शम्भू को बल्लू ने पिटवाया है।

सीता:अब क्या करती बोलके।ये तो होना था।

मैं:क्या करती मतलब,मैंने खेल रचा था तो मुझे भी ये बाते मालूम पड़नी जरूरी है।अभी इसकी सजा मिलेगी आपको।

सीता:मतलब!!!


गार्डन के एक झाड़ियो के पीछे उनको लेके गया।

सीता:क्या हुआ बाबूजी।क्या सजा दे रहे हो।

मैंने उनको अपनी बाहों में लिया।

सीता:अच्छा ये सजा।

मैंने उनको थोड़ा बाहों से हल्का करते हुए उनके ओंठो को चूमना चालू किया।बहोत देर तक उनकी ओंठो का रस पीने लगा।

सीता:अभी बस भी करो इसीसे पेट भरने वाले हो या खाना भी खाना है।

मेरा मन बहोत कुछ करने का था पर उस वक्त मुनाजीब नही था ।हम खाना खाने के लिए घर में आये।

दादी:वीनू,तेरे पराक्रम की चर्चा पूरे गाँव में है।पर उतनीही लोग चिंतित भी है की तुझे जान का खतरा भी हो सकता है।

मैं:दादी आप ही कहती हो,जो आता है उसे जाना भी है।पर जबतक जी रहे हो अच्छे कर्म करते रहो।

दादी:वो भी बात सही है।मुझे मेरे घर के मर्दो पर पूरा भरोसा है पर फिर भी जरा सम्भलके रहना।बड़े कमीने लीग है ये ठाकुर।

खाना खत्म होते ही मैं सीता चाची को लेके शबीना चाची के पास गया।शुक्र है भगवान का उनको कुछ नही किया था उन्होंने।

शबीना मुझे देख खुशी से:अरे आओ बाबूजी।बहोत दिनों बाद।अभी तबियत कैसी है।

मैंने सीता की ओर देखा,वो हस पडी।मतलब इसीने मेरे उस हादसे की बात शबीना चाची को बताई होगी।

मैं:अभी सब चंगा है,आप बताओ,कैसे चल रहा है!???!!

शबीना:बस आपकी मेहरबानी से सब कुछ ठीक थक,अगर आप उस दिन नही होते तो आज मै किस हालत में होती।

मैं:अभी सब ठीक है न

शबीना:हा,सब बढ़िया।

मैं:तो छोड़ो उस पुरानी बात को।चाचा कहा है!??

शबीना:बाहर गाँव गए है,काम ढूंढने।अभी ठाकुर की सेवा नही करनी हमे।

मैं:तो अभी आप क्या कर रहे हो!!??

शबीना:कुछ नही अइसे ही बैठी हु।क्यो सीता बेटी कैसी है मेरी।

सीता:सब ठीक ठाक,बस शम्भू ठीक हो जाए।

शबीना:चिंता मत करो सब ठीक होगा।बाबूजी आज हमारे यहाँ आना हुआ।

मैं:बहोत दिन से नही आया था बोला मिलते चलू।

शबीना:अच्छा किया आपने!बोलो क्या सेवा करू।

मैं:बहोत दिन से रस नही निकला है।लन्ड बहोत तड़प रहा है।

शबीना:तो हम लोग है न।क्यो सीता!!?

सीता:हा तो,जब भी बोलो,तैयार है।

सीता दरवाजा बन्द कर देती है।दोनो नंगी हो जाती है।और मुझे भी कर देती है।और लन्ड को हिलाकर चुसने लग जाती है।

मैं:शबीना चाची चुचे बहोत सुख गए है।कोई मसलता नही क्या!?

शबीना:कौन मसलेगा,तेरे चाचा तो आते ही सो जाते है।

मैं:तुम्हारी जैसी हॉट बिवि को चोदे बिना।

सीता हसने लगती है।

शबीना:तुम क्यो हस रही हो।तुमको जैसे तेरा पति रोज चोदता हो ।

सीता:मुझे बाबूजी जैसा तगड़ा लंड वाला मिला तो पति की क्या जरूरत।

मैं:हम तीनो खटिया पे सोए थे।मैंने शबीना चाची को मेरे लन्ड के ऊपर आने को कहा।

शबीना:आआह आपका बहोत बड़ा है आआह

सीता:तेरी चुत भी तो भुकी है,बैठ आज सब भूख मिट जाने वाली है।

शबीना लन्ड पे बैठ कर ऊपर नीचे होने लगती है।

"आआह आआह बहोत मजा आ रहा है आआह क्या लन्ड है आआह बाबूजी आआह उम्म अम्मा आआह


मैं:सीता चाची मुझे आपकी चुत चाटनी है।

वो मेरे मुह पे आकर बैठ जाती है।शबीना की तरफ पीठ करके।शबीना उसके चुचो को कस के पकड़ के मसलते हुए ऊपर नीचे हो रही थी।मैं उसकी चुत का रस पीने में लगा हुआ था।शबीना थोड़ी ही देर बाद झड गयी।

सीता:क्या शबीना बेन,बस इतना ही।उठो मैं आती हु।

शबीना बाजूं हो गयी और सीता ने लन्ड को चुत में लगके ऊपर नीचे उछलना चालू किया।दोनो औरते बारी बारी मजे ले रही थी युवा लन्ड की।










Ladayi aur chudai dono hi chalu hai mast
 

Poojasingh69

Active Member
1,195
2,745
159
(Episode 2)

रातभर मैं आज दिनभर जो भी घटा उसको सोच रहा था।मा के सामने मै पहली बार नंगा हुआ था।ये बात मा बेटे के रिश्ते में उतनी मायने नही रखती जब दोनो उस बात को अनजाने में ले।यहां पर मैं सेक्स में पीएचडी कर लिया था और दो औरते पहले ही चोद चुका था।और उसमे ही आज मैंने ये गौर किया की मा भी लन्ड को ताके जा रही थी।आम तौर पर उतना कोई घूरता नही है।बाथरूम में मुझे इतना अजीब नही लगा जितना उनका बैडरूम में आने के बाद घूरना अजीब लगा।कुछ देर के लिए उनके लिए मेरी हवस की भावना जग उठी। मेरा लन्ड भी खड़ा तन कर उस बात की गवाही दे रहा था।मैं बस अपने में ही हस दिया।तभी दरवाजा खुला और मा अंदर आई।आते ही उनकी नजर मेरे लन्ड पे पड़ गयी।

मैं:अरे मा ,100 साल जिओ अभी तुम्हारी याद निकाली थी।

मा: हट नटखट कही के।

मैं हैरान रह गया।इसमे क्या नटखट जैसा बोला।मैं तो वही बात बोला जो आम तौर पर लोग बोल देते है।पर उसी समय मुझे से अहसास हुआ की मा ने वो बात मेरे लन्ड के तरफ देख बोली थी।तभी मैं समझा की वो किस बात पर मुझे नटखट बोली।

वो मेरे पास आकर मेरे बेड पे बैठी।

मैं:क्या हुआ मा ,आप सो नही रहे हो!??

मा:हा सो तो रही हु।

मैं:मेरे साथ!!???

मा:हा,तुझे रात को कुछ लगा तो।वैसे तेरे पिताजी भी नही है तो कमरे में डर सा लगता है।

मैं:ठीक है।सो जाओ।मुझे नींद आ रही है।

रात को 12 बजे।

काफी दिनों से चुदाई की खेल की वजह से लन्ड मेरा खड़ा ही रह रहा था।नींद नींद में मैं अइसे ही मा के पीछे से उसे चिपक गया।जैसे बचपन में बिलग के सोता था।पर मुझे ये अहसास नही हो रहा था की उस वक्त मैं नंगा था।और मेरा लन्ड मा की गांड पर घिस रहा था।मेरे लन्ड को बहोत सुकून मिल रहा था।मैं मदहोशी और नींद में लन्ड को गांड पर घिसे जा रहा था।काफी देर अइसा करने के बाद मैं झड़ने को आया था।मैंने मा को पीछे से कस के पकड़ा और जोर जोर से घिसाने लगा।

मा:वीनू क्या कर रहे हो!!?छोड़ो मुझे आआह,वीनू~~

मैं नींद में मदहोशी में बस लन्ड को शांत करा रहा था।मैं अकड़ के मा की साड़ी के ऊपर ही झड गया।और पीछे होकर सो गया।मेरा लन्ड भी अभी सो गया था।बहोत हल्का महसूस कर रहा था।मा बस मुझे मेरे लन्ड को और गांड पे गिरे रस को बारी बारी घूरे जा रही थी।पर बाद में वो भी सो गयी।

सुबह उठा तो मुझे मेरे जख्म काफी भरे हुए दिखाई दिए।मैं खुद उठ कर बाथरूम गया और नहा लिया।

मा:अरे वा,मेरा बेटा ठीक हो गया,बड़ा ही ताक़दवर हो गया है।

मैं नींद में जरूर था पर रात को जो मैंने किया उसका मुझे पूरा अहसास था।पर उसके ऊपर चिलाना छोड़ के मा अइसे बात कर रही थी जैसे कुछ हुआ ही नही है।

मैं:हा अभी ठीक ठाक लग रहा है।दीदी आ गयी क्या!!?

मा:अरे नही वो अगले महीने आएगी।उसको पिताजी से भी मिलना है तो उसके वजह से वो देरी से आएगी।

मैं:अच्छा ठीक है।

बात करते वक्त मा काफी वक्त मेरे लन्ड के पास देख चुकी थी।पर मेरा लन्ड बैठ गया था।मैं बाहर आके बैठ गया।

मैं:दादी और सीता चाची नही दिखाई दे रहे।

मा:अरे वो मंदिर गयी है प्रवचन के लिए।

मा मेरे सामने पिछवाड़ा करके थी।किचन का काम करते हुए उनकी गांड काफी हिल रही थी।और उसी वजह से मेरा लन्ड भी पूरा गर्मी से तन गया था।नाश्ता होने तक अइसे ही हाल रहा।लन्ड के तनाव से स्नायु को भी तनाव आ गया और मेरे जख्म दुखने लगे।तभी मुझे रात का वो खेल याद आया।पर दिन दहाड़े मा के साथ ये करना मतलब थोड़ा रिस्क वाला काम था।वो कुछ बोली नही इसका मतलब ये तो नही निकाल सकते की गुस्सा नही होंगी।पर मेरा हवस वाला मन वो बात करने के लिए मुझे प्रोत्साहित कर रहा था।

आखिर में मैं उठा और मा को पीछे से जाकर चिपक गया।

मा:अरे क्या हुआ मेरे राजा बेटा को,आज बहोत प्यार आ रहा है मा के ऊपर।

मैं काफी देर वैसे ही रहा और पूरी हिम्मत जुटा कर मा को कस के पकड़ा और लन्ड घिसाने लगा।

मा:वीनू ये क्या बेहूदगी है।क्या कर रहे हो।

मैं:सॉरी मा पर मुझे ये तनाव सहन नही हो रहा था।तो

मा:तो ये सब क्या है!!?छोड़ो मुझे छोड़ो।

मैं:बस दो मिनिट मा,हो गया मेरा।

मैंने और कस के पकड़ के उनको ,उनके गांड पे लन्ड को घिसाने लगा और साड़ी के ऊपर ही झड गया।

मैं:थैंक्यू मा,आप बहोत अछि हो,मुझे बहोत सुकून सा महसूस हो रहा है।

मा मुझे बस देखती रह गयी।

दोपहर को मैं शम्भू को देखने बस्ती पर निकल गया।शम्भू को देखा तो उसे किसीने पीटा था और शांता(रुबीना)उसकी बिवि पास में उसको सेख रही थी।सीता चाची तो मेरे घर थी और चाचा ठाकुर के खेतो पर।

मैं:अरे शम्भू ये क्या हुआ!!?

शांता रोते हुए:बल्लू ठाकुर के आदमियो ने इन्हें बहोत पीटा।क्या हाल बनाया है देखो।

मैं मन में-मतलब मेरा शक सही था।ये हालत मेरी भी होनी थी।

मैं:डॉक्टर को दिखाया?

शांता:हा,दिखाया है।2 से3 दिन लगेंगे बोला था।ये सब मेरी वजह से हो रहा है।क्यो मुझसे शादी की इन्होंने।ये सब होता ही नही।

मैंने उसे समझते हुए:अरे भाभी अइसा कुछ नही है।तुम खुद को मत कोसो।

मैं वहां से निकल कर घर आने ही वाला था की रास्ते में सांबा ठाकुर की गाड़ी मेरे सामने रुकी।लगता है कही से आ रहे थे,प्रवचन के यह से ही आने का अहसास हो रहा था क्योकि गले में रुद्राक्ष और टीका लगाया था।साथ में परिवार भी था।

सांबा:क्यो छोटे कलेक्टर साब कहा चल दिए।

मैं:वो शम्भू के पास गया था।

सांबा:क्यो जिंदा है या मर गया ये देखने गए थे क्या?

मैं थोड़ा चौक गया पर वैसे प्रतीत न करते हए:मरे उसके दुश्मन।बस शादी के बाद नही गया था उसका हालचाल पूछने तो चला गया।

सांबा:नसीब वाले हो,अगर कल मै न रोकता तो तू भी उसीकी तरह बेड पे लेटा नही होता चिता पर लेटा होता।

मैं हस्ते हुए:ठाकुर साब आप हमे इतना हल्के में मत लो,उम्र काफी छोटी है पर दुनियाभर के सारे तौर तरीके मालूम है हमे।अगर मैं लड़की को भगा के उसकी शादी करवा देता तो आपकी और आपके खानदान की इज्जत निकल जाती।

ठाकुर की बिवि:हमारी इज्जत!!?

मैं:कैसा हैं न चाची अगर ये लोग भागके दूसरी जगह जाकर बिहाते तो लोग कहते की ठाकुर को टक्कर दे दी उसकी बातों के बीच टांग अड़ाने वाला भी कोई है,और ठाकुर भी कुछ कर नही पाया,पर वही शादी ठाकुर ने की तो ठाकुर के दुश्मन भी जल रहे है और लोग भी कह रहे है की ठाकुर बड़े दिलवाला है।

बल्लू की बिवि पार्वती:ये बात भी सही है।

सांबा ने उसको बड़ी आंखे दिखाके चुप कराया:बच्चे तुम हमारे इज्जत की चिंता छोड़।और मेरी भी बात को छोड़।पर मेरा भाई तुझे मार के ही दम लेगा।

मैं:आपकी शुभकामनाएं हमारे साथ है तो हमे कैसा डर है।चलो चलता हु ।दोपहर के खाने का समय हो गया है।अलविदा।


मेरे जाने के बाद-

सांबा की बिवि पार्वती से-ठाकुरों को टक्कर देने वाला सही में कोई आ गया है।

पार्वती:ये बात सही फरमाई आपने दीदी।

साम्बा:पर उस नादान को ये मालूम नही की हमसे टकराने का अंजाम क्या हो सकता है।बल्लू तो उसे पछाड़ ही देगा।


घर पर दादी और सीता चाची आ चुकी थी।मैं बाहर गार्डन में ही था।खाने के समय सीता चाची मूझे बुलाने गार्डन में आयी।

सीता:चलो बाबूजी खाना लग गया है।

मैं:चाची आप बोली नही की शम्भू को बल्लू ने पिटवाया है।

सीता:अब क्या करती बोलके।ये तो होना था।

मैं:क्या करती मतलब,मैंने खेल रचा था तो मुझे भी ये बाते मालूम पड़नी जरूरी है।अभी इसकी सजा मिलेगी आपको।

सीता:मतलब!!!


गार्डन के एक झाड़ियो के पीछे उनको लेके गया।

सीता:क्या हुआ बाबूजी।क्या सजा दे रहे हो।

मैंने उनको अपनी बाहों में लिया।

सीता:अच्छा ये सजा।

मैंने उनको थोड़ा बाहों से हल्का करते हुए उनके ओंठो को चूमना चालू किया।बहोत देर तक उनकी ओंठो का रस पीने लगा।

सीता:अभी बस भी करो इसीसे पेट भरने वाले हो या खाना भी खाना है।

मेरा मन बहोत कुछ करने का था पर उस वक्त मुनाजीब नही था ।हम खाना खाने के लिए घर में आये।

दादी:वीनू,तेरे पराक्रम की चर्चा पूरे गाँव में है।पर उतनीही लोग चिंतित भी है की तुझे जान का खतरा भी हो सकता है।

मैं:दादी आप ही कहती हो,जो आता है उसे जाना भी है।पर जबतक जी रहे हो अच्छे कर्म करते रहो।

दादी:वो भी बात सही है।मुझे मेरे घर के मर्दो पर पूरा भरोसा है पर फिर भी जरा सम्भलके रहना।बड़े कमीने लीग है ये ठाकुर।

खाना खत्म होते ही मैं सीता चाची को लेके शबीना चाची के पास गया।शुक्र है भगवान का उनको कुछ नही किया था उन्होंने।

शबीना मुझे देख खुशी से:अरे आओ बाबूजी।बहोत दिनों बाद।अभी तबियत कैसी है।

मैंने सीता की ओर देखा,वो हस पडी।मतलब इसीने मेरे उस हादसे की बात शबीना चाची को बताई होगी।

मैं:अभी सब चंगा है,आप बताओ,कैसे चल रहा है!???!!

शबीना:बस आपकी मेहरबानी से सब कुछ ठीक थक,अगर आप उस दिन नही होते तो आज मै किस हालत में होती।

मैं:अभी सब ठीक है न

शबीना:हा,सब बढ़िया।

मैं:तो छोड़ो उस पुरानी बात को।चाचा कहा है!??

शबीना:बाहर गाँव गए है,काम ढूंढने।अभी ठाकुर की सेवा नही करनी हमे।

मैं:तो अभी आप क्या कर रहे हो!!??

शबीना:कुछ नही अइसे ही बैठी हु।क्यो सीता बेटी कैसी है मेरी।

सीता:सब ठीक ठाक,बस शम्भू ठीक हो जाए।

शबीना:चिंता मत करो सब ठीक होगा।बाबूजी आज हमारे यहाँ आना हुआ।

मैं:बहोत दिन से नही आया था बोला मिलते चलू।

शबीना:अच्छा किया आपने!बोलो क्या सेवा करू।

मैं:बहोत दिन से रस नही निकला है।लन्ड बहोत तड़प रहा है।

शबीना:तो हम लोग है न।क्यो सीता!!?

सीता:हा तो,जब भी बोलो,तैयार है।

सीता दरवाजा बन्द कर देती है।दोनो नंगी हो जाती है।और मुझे भी कर देती है।और लन्ड को हिलाकर चुसने लग जाती है।

मैं:शबीना चाची चुचे बहोत सुख गए है।कोई मसलता नही क्या!?

शबीना:कौन मसलेगा,तेरे चाचा तो आते ही सो जाते है।

मैं:तुम्हारी जैसी हॉट बिवि को चोदे बिना।

सीता हसने लगती है।

शबीना:तुम क्यो हस रही हो।तुमको जैसे तेरा पति रोज चोदता हो ।

सीता:मुझे बाबूजी जैसा तगड़ा लंड वाला मिला तो पति की क्या जरूरत।

मैं:हम तीनो खटिया पे सोए थे।मैंने शबीना चाची को मेरे लन्ड के ऊपर आने को कहा।

शबीना:आआह आपका बहोत बड़ा है आआह

सीता:तेरी चुत भी तो भुकी है,बैठ आज सब भूख मिट जाने वाली है।

शबीना लन्ड पे बैठ कर ऊपर नीचे होने लगती है।

"आआह आआह बहोत मजा आ रहा है आआह क्या लन्ड है आआह बाबूजी आआह उम्म अम्मा आआह


मैं:सीता चाची मुझे आपकी चुत चाटनी है।

वो मेरे मुह पे आकर बैठ जाती है।शबीना की तरफ पीठ करके।शबीना उसके चुचो को कस के पकड़ के मसलते हुए ऊपर नीचे हो रही थी।मैं उसकी चुत का रस पीने में लगा हुआ था।शबीना थोड़ी ही देर बाद झड गयी।

सीता:क्या शबीना बेन,बस इतना ही।उठो मैं आती हु।

शबीना बाजूं हो गयी और सीता ने लन्ड को चुत में लगके ऊपर नीचे उछलना चालू किया।दोनो औरते बारी बारी मजे ले रही थी युवा लन्ड की।










Ladayi aur chudai dono hi chalu hai mast
 
  • Like
Reactions: kamdev99008
Top