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Thriller The cold night (वो सर्द रात)

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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INDEX


Family Introduction

Update ♡ 01♡Update #02Update # 03Update # 04#05Update ♡ ♡
Update #06 ♡ ♡Update #07♡ ♡Update #08♡ ♡Update #09Update #10♡ ♡
Update #11Update #12♡♡Update #13♡♡Update #14Update #15
Update #16Update # 17Update #18Update #19Update # 20
Update # 21Update # 22Update # 23Update #24Update #25
Update # 26Update # 27Update # 28Update # 29Update # 30
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dhalchandarun

Everything in the world will come to end one day.
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# 30

रोमेश का मुकदमा हारने के बाद इंस्पेक्टर विजय का ट्रांसफर हो गया था।

गोरेगांव से कोलाबा पुलिस स्टेशन में उसका तबादला हुआ. था, विजय का प्रमोशन ड्यू था, परन्तु इस केस में पुलिस की जो छीछा लेदर हुई, उसका दण्ड भी विजय को भोगना पड़ा, उसका एक स्टार उतर गया था। अब वह सब-इंस्पेक्टर बन गया था। उसकी सर्विस बुक में एक बड़ी बैडएन्ट्री हो चुकी थी।

कोलाबा पुलिस स्टेशन में स्टेशन का इंचार्ज रविकांत बोरेड था, विजय उसका मातहत बनकर गया था। इस वक्त इंचार्ज घर पर सो रहा था और ड्यूटी पर विजय मौजूद था। रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, अचानक कोलाबा पुलिस थाने में टेलीफोन की घंटी बज उठी। विजय ने फोन रिसीव किया।

"हैलो कोलाबा पुलिस स्टेशन।" दूसरी तरफ से पूछा गया।

"यस, इट इज कोलाबा पुलिस स्टेशन।"

"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ ।"

"क्या ?" विजय चौंक पड़ा,

"तुमको कैसे पता चला कि मेरा ट्रांसफर इस थाने में हो गया है, आज ही तो मैं यहाँ आया हूँ।"

"ओह विजय तुम बोल रहे हो ? सॉरी, मुझे नहीं मालूम था कि यहाँ भी तुम मिलोगे। खैर अच्छा ही है यार, तुम हो। देखो, अब जो मैं कह रहा हूँ, जरा गौर से सुनो।"

"बोलो, तुम्हारी हर बात मैंने आज तक गौर से ही तो सुनी है। तभी तो मैं इंस्पेक्टर से सब इंस्पेक्टर बन गया, थाना इंचार्ज से सहायक बन गया। लेकिन यह मत समझना कि मैं हार गया हूँ, मैं यह जरुर पता लगा लूँगा कि तुमने जे.एन. का क़त्ल कैसे किया ?"

"यह मैं तुम्हें खुद ही बता दूँगा।"

"नहीं दोस्त, मैं तुमसे नहीं पूछने वाला, मैं खुद इसका पता लगाऊंगा।"

"खैर यहाँ मैंने तुम्हें फोन एक और काम के सिलसिले में किया है। अभी इन बातों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है। तुम अभी अपनी रवानगी दर्ज करो, पता मैं बताता हूँ। मैंने यहाँ एक खून कर डाला है।”

"क्या ? " विजय उछल पड़ा।

"हाँ विजय, मैंने अपनी बीवी का खून कर डाला है।"

"त… तुमने… भाभी का खून ? मगर भाभी तो दिल्ली में रहती हैं ?"

"रहती थी, अब यहाँ है, वो भी जिन्दा नहीं मुर्दा हालत में।"

"देखो रोमेश, मेरे साथ ऐसा मजाक मत करो।"

"यह मजाक नहीं है। तुरन्त अपनी फोर्स लेकर मेरे बताए पते पर पहुंचो, यहाँ मैं पुलिस का इन्तजार कर रहा हूँ। अगर तुमने कोताही बरती, तो मैं पुलिस कमिश्नर को फोन करूंगा। उसके बाद तुम्हारी वर्दी भी उतर सकती है, एक कातिल तुम्हें फोन करता रहा और तुम मौका-ए-वारदात पर नहीं पहुंचे।"

"पता बताओ।"

रोमेश ने पता बताया और फोन कट गया। विजय ने थाना इंचार्ज रवि कांत को उसी वक्त जगाया और स्वयं रवानगी दर्ज करके घटना स्थल की तरफ रवाना हो गया। उसके साथ चार सिपाही थे बिल्डिंग के बाहर भीड़ जमा हो गई थी। बारिश थम गई थी। इमारत में रहने वाले दूसरे लोग भी हलचल में शामिल थे। इसी हलचल से पता चल जाता था कि कोई वारदात हुई है। विजय अपनी टीम के साथ घटना स्थल पर पहुँचा। खून से लथपथ सीमा की लाश पड़ी थी। रोमेश के लिबास पर भी खून के धब्बे थे। वह विक्षिप्त-सा बैठा था। पास ही रिवॉल्वर पड़ी थी। पूरे कमरे में नोट बिखरे पड़े थे, लाश के ऊपर भी नोट पड़े हुए थे।

विजय ने कैप उतारी और लाश का मुआयना करना शुरू किया। जरा से भी प्राण न बचे, सीमा की मौत को काफी समय हो गया था। उसका सीना गोलियों से छलनी नजर आ रहा था।

विजय उठ खड़ा हुआ। उसने एक चुभती दृष्टि रोमेश पर डाली, फिर उसका ध्यान रिवॉल्वर पर गया। उसने रिवॉल्वर पर रुमाल डाला और बड़े एतिहायत से उसे उठा लिया। रिवॉल्वर अपनी कस्टडी में लेने के बाद वह रोमेश की तरफ मुड़ा। रोमेश ने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये। विजय ने हथकड़ी पहना दी।

रोमेश को कस्टडी में लेने के उपरान्त पुलिस की जांच पड़ताल शुरू हो गयी। घटना स्थल पर रविकांत बोरेड के अतिरिक्त वरिष्ट अधिकारी भी आ पहुंचे। पुलिस फोटो एंड फिंगर प्रिन्टस स्कैन के अतिरिक्त वैशाली भी घटना स्थल पर पहुंची थी। रोमेश को कोलाबा पुलिस थाने के लॉकअप में बंद कर दिया गया। लॉकअप में बन्द होते समय रोमेश ने कहा,


"विजय ! मैंने इंसानों की अदालत को धोखा तो दे दिया, लेकिन आज मुझे यकीन हुआ कि इंसानों की अदालत से भी बड़ी एक अदालत और है। वह अदालत भगवान की अदालत है। जहाँ हर गुनाह की सजा मिलती है। उसी भगवान ने मुझसे यह दूसरा खून करवाया और मैं इस खून के जुर्म से अपने आपको बचा नहीं सकता, क्यों कि मैं इस अपराध से बचना भी नहीं चाहूँगा।"

विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया और लॉकअप में ताला डाल दिया। एक बार फिर अख़बारों की सुर्खियों में रोमेश का नाम था। सीमा की तस्वीरें भी समाचार पत्रों में छपी थीं। वह बड़ा सनसनी खेज कांड था,

एक पति ने अपनी पत्नी के सीने में रिवॉल्वर की सारी गोलियां उतार दी थीं। रोमेश ने उसकी बेवफाई की दास्तान किसी को नहीं बताई थी, इसलिये अखबारों में तरह-तरह की शंकायें छपी।

"वहाँ एक आदमी और मौजूद था।" विजय ने अगली सुबह रोमेश से पूछताछ शुरू कर दी।

"मुझे नहीं मालूम।" रोमेश ने कहा।

"लेकिन मैं पता निकाल लूँगा।"

"उसका कसूर ही क्या है। सारा कसूर तो मेरी बीवी का है, उसने मेरे साथ बेवफाई की, मैंने उसे इसी की सजा दी।"


"हमें यह भी तो पता लगाना है कि उस कमरे में जो नोट बिखरे पाये गये और बची हुई नोटों की गड्डियां जो सूटकेस में थीं, वह कहाँ से आयीं ? तुम्हें इतनी मोटी रकम किसने दी ?"

"ठहरो , मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ, मगर मेरी एक शर्त है।"

"क्या ?"

"तुम उसे सार्वजनिक नहीं करोगे। मैंने जे.एन. का मर्डर किया, उसे अदालत में ओपन नहीं करोगे। मुझे जो सजा मिलनी थी, वह सीमा के क़त्ल से मिल जायेगी। खून एक हो या दो, उससे क्या फर्क पड़ता है। उसकी सजा एक ही होती है, जो दो बार तो नहीं दी जा सकती। अगर मुझे फाँसी मिली, तो फाँसी दो बार नहीं दी जा सकती। इस शर्त पर मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ।"


"नहीं, एडवोकेट सक्सेना ! इस बेदाग पुलिस इंस्पेक्टर की बड़ी जग हंसाई हुई है। बड़ी रुसवाई हुई है। इसलिये यह फिर से अपना मान-सम्मान पाने के लिए छटपटा रहा है और यह तब तक मुमकिन नहीं, जब तक तुम्हें जे.एन. मर्डर केस में सजा न हो जाये, भले ही तुम्हें इस ताजे केस में सजा न हो।"

"फिर मैं कुछ नहीं बताने वाला।"

"मैं मालूम कर लूँगा। तुम्हें घटना स्थल पर बहुत से लोगों ने देखा है। मैं आज तुम्हें रिमाण्ड पर ले लूंगा, तुमने इतनी जल्दी दूसरा क़त्ल किया है इसलिये रिमाण्ड लेने में हमें कोई परेशानी नहीं होगी।"

"तो क्या तुम मुझे टार्चर करोगे ?"

"नहीं वकील साहब, आप एक दिग्गज वकील हैं। आपको टार्चर नहीं किया जा सकता। आप अपना मेडिकल करवा कर कस्टडी में आयेंगे, मैं तुम्हें उसी तरह दस दिन सताऊंगा जिस तरह तुमने जे.एन. को सताया और हर दिन मैं तुम्हें एक चौंका देने वाली खबर सुनाऊंगा।"

"तुम कभी नहीं जान पाओगे।"

"वक्त __________बतायेगा।"


विजय ने रोमेश को अदालत में पेश करके रिमाण्ड पर ले लिया। उसने दस दिन का ही रिमाण्ड लिया था। रोमेश ने मेडिकल करवाने की कोई आवश्यकता नहीं समझी, वह चुप हो गया था। अब वह किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे रहा था, अदालत में भी वह चुप रहा। उसने अपना कोई बयान नहीं दिया।


"आज पहला दिन गुजर गया दोस्त।" रोमेश चुप रहा, उसने कोई उत्तर नहीं दिया।

"आज मैं तुम्हें पहली खबर बताने आया हूँ। पहली जोरदार खबर यह है एडवोकेट साहब कि हमने उस शख्स का पता लगा लिया है, जो उस फ्लैट में आपके आने से पहले आपकी पत्नी के साथ मौजूद था। उसका नाम है- शंकर नागा रेड्डी।"

विजय इतना कहकर मुस्कराता हुआ वापिस लौट गया। रोमेश ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। वह चुप रहा। एक दिन और गुजर गया । विजय एक बार फिर लॉकअप के सामने था। उसने हवलदार से कहा कि ताला खोलो। लॉकअप का ताला खोला गया, विजय अन्दर दाखिल हो गया।

"एडवोकेट रोमेश सक्सेना साहब, आपके लिए दूसरी खबर है, वह रकम जो फ्लैट में बिखरी पड़ी थी उसके बारे में एक अनुमान है कि वह पच्चीस लाख रुपया आपको शंकर नागा रेड्डी ने दिया था। हम शंकर नागा रेड्डी को तलाश कर रहे हैं, वह अन्डरग्राउंड हो गया है। मगर हम उसे सरकारी गवाह बना लेंगे और वह सरकारी गवाह बनना भी चाहेगा, वरना हम थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके उससे उगलवा लेंगे कि उसने यह रकम आपको क्यों दी।"




जारी रहेगा.......✍️✍️
Wow 😲 nice Vijay ne two days me two clues khoj liye
.. amazing update.
 
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Shetan

Well-Known Member
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# 15

"मैं समझ गया साहब, अपना दूसरा वाला सेल्समैन ठीक बोलता था, आप फिल्म का आदमी है।
साहब वैसे एक्टिंग मैं भी अच्छी कर लेता हूँ, दिखाऊं।"

"नहीं , तुम गलत समझ रहे हो। मैं कोई फ़िल्मी आदमी नहीं हूँ। मुझे सचमुच इस लिबास को पहनकर किसी का कत्ल करना है और मैंने बिल में अपना नाम-पता इसलिये लिखवाया है, क्यों कि बिल की डुप्लीकेट कॉपी तुम्हारे पास रहेगी।

यह कपड़े पुलिस बरामद करेगी, इन पर खून लगा होगा, तहकीकात करते-करते पुलिस यहाँ तक पहुंचेगी, क्यों कि इन कपड़ों की खरीददारी का यह बिल उस वक्त ओवरकोट की जेब में होगा।"

सेल्समन हैरत से रोमेश को देख रहा था।

"फिर… फिर क्या होगा साहब?" उसने हकलाए स्वर में पूछा।

"पुलिस यहाँ पहुंचेगी, बिल देखने के बाद तुम्हें याद आ जायेगा कि यहाँ इन कपड़ों को मैं खरीदने आया था। तुम उन्हें बताओगे कि मैंने कपड़ों को पहनकर खून करने के लिए कहा था और इसीलिये यह कपड़े खरीदे थे।"

"ठीक है फिर।"

"फिर यह होगा कि पुलिस तुम्हें गवाह बनायेगी।" रोमेश ने उसका कंधा थपथपा कर कहा,

"अदालत में तुम्हें पेश किया जायेगा, मैं वहाँ कटघरे में मुलजिम बनकर खड़ा होऊंगा। मुझे देखते ही तुम चीख-चीखकर कहना, योर ऑनर यही वह शख्स है, जो 31 दिसम्बर को हमारी दुकान पर आया और यह कपड़े जो सामने रखे हैं, इसने खून करने के लिए खरीदे थे। मुझसे कहा था।" कुछ रुककर रोमेश बोला,

"क्या कहा था ?"

"ऐं !" सेल्समैन जैसे सोते से जागा। "क्या कहा था ?"

"ख… खून करूंगा, कपड़े पहनकर।"

"शाबास।" रोमेश ने भुगतान किया और सेल्समैन को स्तब्ध छोड़कर बाहर निकल गया।

"साला क्या सस्पेंस वाली स्टोरी सुना गया।" रोमेश के जाने के बाद सेल्समैन को जैसे होश आया,


"फिल्म सुपर हिट हो के रहेगा, जब मुझको सांप सूंघ गया, तो पब्लिक का क्या होगा ? क्या स्टोरी है यार, खून करने वाला गवाह भी पहले खुद तैयार करता फिर रहाहै। पुलिस की पूरी मदद करता है।"

"अपुन को पता था, वह फिल्म का आदमी है, तेरे को काम मांगना था यार चंदूलाल।"

"मैं जरा डायलॉग ठीक से याद कर लूं।" चंदू एक्शन में आया,

"देख सामने अदालत… कुर्सी पर बैठा जज, कैमरा इधर से टर्न हो रहा है, कोर्ट का पूरा सीन दिखाता है और फिर मुझ पर ठहरता है… बोल एक्शन।"

"एक्शन!" दूसरे सेल्समैन ने कहा।

"योर ऑनर।" चन्दू ने शॉट बनाया,

"यह शख्स जो कटघरे में खड़ा है, इसका नाम है रोमेश सक्सेना, मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि कत्ल इसी ने किया है और यह कपड़े, यह कपड़े योर ऑनर।"

"कट।" दूसरे सेल्समैन ने सीन काट दिया।

"क्या हो रहा है यह सब?" अचानक डिपार्टमेन्टल स्टोर का मालिक राउण्ड पर आगया।

दोनों सेल्समैन सकपका कर बगलें झांकने लगे। फिर उन्होंने धीरे-धीरे सारी बात मालिक को बता दी। मालिक भी जोर से हँसने लगा। साला हमारा दुकान का पब्लिसिटी होयेंगा फ्री में। सेल्समैन भी मालिक के साथ हँसने लगे। बारह बजते ही पटाखे छूटने लगे। नया साल शुरू हो गया था, आतिशबाजी और पटाखों के साथ युवक-युवतियों के झुंड सड़कों पर आ गये थे, रोमेश ने जू बीच से मोटर साइकिल स्टार्ट की, वह अब भी उसी गेटअप में था। एक टेलीफोन बूथ के सामने उसने मोटर साइकिल रोकी। बूथ में घुस गया और जनार्दन नागा रेड्डी का फोन नम्बर डायल किया। फोन बजते ही उसने कोड बोला। कुछ क्षण बाद ही जे.एन. फोन पर था।

"हैलो, जे.एन. स्पीकिंग ! कौन बोल रहा है ?"

"नया साल मुबारक।" "तुमको भी मुबारक।" जे.एन. ने उत्तर दिया,

"आवाज पहचानने में नहीं आ रही है, कौन हो भई ?"

"तुम्हारा होने वाला कातिल।"

"क्या बोला ?"

"तुम्हारा होने वाला कातिल।" दूसरी तरफ कुछ पल खामोशी छाई रही, फिर जे.एन. बोला,

"मजाक छोड़ो भाई, अभी बहुत से लोगों की बधाई आ रही है, उनका भी तो फोन सुनना है।"

"मैं ज्यादा वक्त नहीं लूंगा एक्स चीफ मिनिस्टर ! मैं यकीनी तौर पर तुम्हारा होने वाला कातिल ही बोल रहा हूँ। जल्दी ही मैं तुम्हें तुम्हारी मौत की तारीख भी बता दूँगा। अभी मैंने तुम्हारा कत्ल करने के लिए पोशाक खरीदी है, बस यही इत्तला देनी थी।" उसके बाद रोमेश ने फोन काट दिया। उसके बाद वह तेजी से अपने फ्लैट की तरफ रवाना हो गया। नया साल शुरू हो गया था।

रोमेश अब अपने फ्लैट पर तन्हा रहता था, वह अपने परिचितों में से किसी का फोन नहीं सुनता था। सुबह ही निकल जाता था और देर रात तक घर लौटता था। रोमेश ने फिर वही लिबास पहना और मोटर साइकिल लेकर सड़कों पर घूमने लगा। जहाँ वह रुकता, लोग हैरत से देखते, रास्ते में उससे परिचित भी टकरा जाते थे।

मुम्बई में दिन तो गरम होता ही है, उस पर कोई ओवरकोट पहनकर निकले तो अजूबा ही होगा। रोमेश अजूबा ही बनता जा रहा था। दो जनवरी को वह विक्टोरिया टर्मिनल पर घूम रहा था। घूमते-घूमते वह फुटपाथ पर चाकू छुरी बेचने वाले की एक दुकान पर रुका।

"ले लो भई, ले लो। रामपुरी से लेकर छप्पनछुरी तक सब माल मिलता है।" चाकू छुरी बेचने वाला आवाज लगा रहा था।

"ऐ !" रोमेश ने उसे आवाज़ दी।

"आओ साहब, बोलो क्या मांगता? किचन की छुरी या चाकू, छोटा बड़ा सब मिलेगा।"

"रामपुरी बड़ा, तेरह इंच से ऊपर।"


"समझा साहब।" छुरी बेचने वाले ने पास खड़े एक लड़के को बुलाया,

"करीम भाई के जाने का, बोलो राजा ने बढ़िया वाला रामपुरी मंगाया, भाग के जाना।" लड़का भागकर गया और पांच मिनट से पहले आ गया, उसने एक थैला छुरी बेचने वाले को थमा दिया।

"बड़ा चाकू, असली रामपुरी ! यह देखो, पसन्द कर लो।" रोमेश ने एक रामपुरी पसन्द किया।

"यह ठीक है, कितने का है ?"

"पच्चहत्तर का साहब ! सेवन्टी फाइव ओनली ! कम ज्यादा कुछ नहीं , एक दाम।"

"ठीक है, एक बिल बनाओ। उस पर हमारा नाम पता लिखो, रोमेश सक्सेना।"

"अरे साहब, हम फुटपाथ का धन्धा करने वाला आदमी। अपुन के पास बिल कहाँ साब, बिल तो बड़ी दुकान पर बनता है।"

"देखो राजा, राजा है ना तुम्हारा नाम।"

"बरोबर साहब।"


"हम तुमको सौ रुपया देगा, चाहे सादा कागज पर डुप्लीकेट बनाओ, कार्बन लगा के। कार्बन कॉपी तुम अपने पास रखना, उस पर लिखो राजा फुटपाथ वाले ने सेवण्टी फाईव में चाकू रोमेश को आज की तारीख में बेचा। मैं पच्चीस रुपया फालतू दूंगा।"

"ये बात है साहब, तो हम बना देगा। मगर कोई लफड़ा तो नहीं होगा साहब।"

"नहीं ।" अब राजा कागज और कार्बन ले आया। जो रोमेश सक्सेना बोलता रहा , वह लिखता रहा , फिर कार्बन कॉपी अपने पास रखकर बिल रोमेश को दे दिया।

"एक बात समझ में नहीं आया साहब।" सौ का नोट लेने के बाद राजा बोला।

"क्या ?"

"कच्चा बिल लेने के लिए आपने पच्चीस रुपया खर्च किया, ऐसा तो आप खुद बना सकता था ।"

"हाँ , मगर उस सूरत में गवाही देने कौन आता।"

"गवाही, कैसा गवाही ?"

"देखो राजा, तुम्हारा यह रामपुरी बहुत खुशनसीब है। क्यों कि इससे एक वी.आई.पी. का मर्डर होने वाला है।"

"क्यों मजाक करता साहब, मेरे को डराता है क्या ? इधर गुण्डे-मवाली लोग भी चाकू खरीदते हैं, लेकिन इस तरह मर्डर की बात कोई नहीं बोलता।"

"वह गुण्डे-मवाली होंगे, जो कत्ल की वारदात करके छुपाते हैं। लेकिन मैं उस तरह का गुण्डा नहीं हूँ, वैसे भी मुझे बस एक ही खून करना है और वह खून इस रामपुरी से होगा।" रोमेश ने रामपुरी खोलते हुए कहा,


"इसी लिये मैंने बिल लिखवाया है, रामपुरी बरामद करने के साथ पुलिस को यह बिल भी मिल जायेगा। तब उसे पता चलेगा कि रामपुरी तुम्हारे यहाँ से खरीदा गया।" राजा के चेहरे से हवाइयां उड़ने लगीं।


"अदा लत में यह रामपुरी तुझे दिखाया जायेगा, उस वक्त मैं कटघरे में खड़ा रहूँगा। तुम कहोगे, हाँ योर ऑनर, मैं इसे जानता हूँ, यह मशहूर वकील रोमेश सक्सेना है।" आसपास कुछ लोग जमा हो गये थे।


"अरे यह तो मशहूर वकील रोमेश है।" जमा होते लोगों में से कोई बोला। राजा के तो छक्के छूट रहे थे।

"मेरे को पसीना मत दिलाओ साहब, कभी किसी वकील ने किसी का कत्ल किया है क्या? यह तो फिल्म की स्टोरी है।"

"नहीं, मैं तुम्हें अपने जुर्म का गवाह बनाने आया हूँ। दुकान छोड़कर भागेगा, तब भी पुलिस तुझे तलाश कर लेगी।"

"पर मैंने किया क्या है ?"

"तूने वह चाकू मुझे बेचा है, जिससे मैं खून करूंगा। लेकिन तुझे कोई पनिशमेन्ट नहीं मिलेगा, तू सिर्फ गवाह बनकर अदालत में आयेगा।"


"मुझे रामपुरी वापिस दे दो माई बाप, सौ के डेढ़ सौ ले लो।"

राजा गिड़गिड़ाने लगा। "नहीं, इससे ही मुझे खून करना है।" रोमेश ने जोर से कहा,

"तुम सब लोग भी सुन लो, मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना इस रामपुरी से कत्ल करने जा रहा हूँ।"

"पागल हो गया, रास्ता छोड़ो भाई।" भीड़ में से कोई बोला।

"ओ आजू बाजू हो जाओ, कहीं तुममें से ही यह किसी का खून न कर दे।" रोमेश ने चाकू बन्द करके जेब में रखा, मोटर साइकिल पर किक लगा दी और फर्राटे के साथ आगे बढ़ गया। शाम ढल रही थी और फिर मुम्बई रात की बाहों में झिलमिलाने लगी। रोमेश घूमता रहा।



जारी रहेगा…✍️✍️
Man na padega ramesh ko bhi ek zutha katal. Ye to katil se bhi jyada shatir chal hai. Maza aa gaya
 

dhparikh

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# 30

रोमेश का मुकदमा हारने के बाद इंस्पेक्टर विजय का ट्रांसफर हो गया था।

गोरेगांव से कोलाबा पुलिस स्टेशन में उसका तबादला हुआ. था, विजय का प्रमोशन ड्यू था, परन्तु इस केस में पुलिस की जो छीछा लेदर हुई, उसका दण्ड भी विजय को भोगना पड़ा, उसका एक स्टार उतर गया था। अब वह सब-इंस्पेक्टर बन गया था। उसकी सर्विस बुक में एक बड़ी बैडएन्ट्री हो चुकी थी।

कोलाबा पुलिस स्टेशन में स्टेशन का इंचार्ज रविकांत बोरेड था, विजय उसका मातहत बनकर गया था। इस वक्त इंचार्ज घर पर सो रहा था और ड्यूटी पर विजय मौजूद था। रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, अचानक कोलाबा पुलिस थाने में टेलीफोन की घंटी बज उठी। विजय ने फोन रिसीव किया।

"हैलो कोलाबा पुलिस स्टेशन।" दूसरी तरफ से पूछा गया।

"यस, इट इज कोलाबा पुलिस स्टेशन।"

"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ ।"

"क्या ?" विजय चौंक पड़ा,

"तुमको कैसे पता चला कि मेरा ट्रांसफर इस थाने में हो गया है, आज ही तो मैं यहाँ आया हूँ।"

"ओह विजय तुम बोल रहे हो ? सॉरी, मुझे नहीं मालूम था कि यहाँ भी तुम मिलोगे। खैर अच्छा ही है यार, तुम हो। देखो, अब जो मैं कह रहा हूँ, जरा गौर से सुनो।"

"बोलो, तुम्हारी हर बात मैंने आज तक गौर से ही तो सुनी है। तभी तो मैं इंस्पेक्टर से सब इंस्पेक्टर बन गया, थाना इंचार्ज से सहायक बन गया। लेकिन यह मत समझना कि मैं हार गया हूँ, मैं यह जरुर पता लगा लूँगा कि तुमने जे.एन. का क़त्ल कैसे किया ?"

"यह मैं तुम्हें खुद ही बता दूँगा।"

"नहीं दोस्त, मैं तुमसे नहीं पूछने वाला, मैं खुद इसका पता लगाऊंगा।"

"खैर यहाँ मैंने तुम्हें फोन एक और काम के सिलसिले में किया है। अभी इन बातों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है। तुम अभी अपनी रवानगी दर्ज करो, पता मैं बताता हूँ। मैंने यहाँ एक खून कर डाला है।”

"क्या ? " विजय उछल पड़ा।

"हाँ विजय, मैंने अपनी बीवी का खून कर डाला है।"

"त… तुमने… भाभी का खून ? मगर भाभी तो दिल्ली में रहती हैं ?"

"रहती थी, अब यहाँ है, वो भी जिन्दा नहीं मुर्दा हालत में।"

"देखो रोमेश, मेरे साथ ऐसा मजाक मत करो।"

"यह मजाक नहीं है। तुरन्त अपनी फोर्स लेकर मेरे बताए पते पर पहुंचो, यहाँ मैं पुलिस का इन्तजार कर रहा हूँ। अगर तुमने कोताही बरती, तो मैं पुलिस कमिश्नर को फोन करूंगा। उसके बाद तुम्हारी वर्दी भी उतर सकती है, एक कातिल तुम्हें फोन करता रहा और तुम मौका-ए-वारदात पर नहीं पहुंचे।"

"पता बताओ।"

रोमेश ने पता बताया और फोन कट गया। विजय ने थाना इंचार्ज रवि कांत को उसी वक्त जगाया और स्वयं रवानगी दर्ज करके घटना स्थल की तरफ रवाना हो गया। उसके साथ चार सिपाही थे बिल्डिंग के बाहर भीड़ जमा हो गई थी। बारिश थम गई थी। इमारत में रहने वाले दूसरे लोग भी हलचल में शामिल थे। इसी हलचल से पता चल जाता था कि कोई वारदात हुई है। विजय अपनी टीम के साथ घटना स्थल पर पहुँचा। खून से लथपथ सीमा की लाश पड़ी थी। रोमेश के लिबास पर भी खून के धब्बे थे। वह विक्षिप्त-सा बैठा था। पास ही रिवॉल्वर पड़ी थी। पूरे कमरे में नोट बिखरे पड़े थे, लाश के ऊपर भी नोट पड़े हुए थे।

विजय ने कैप उतारी और लाश का मुआयना करना शुरू किया। जरा से भी प्राण न बचे, सीमा की मौत को काफी समय हो गया था। उसका सीना गोलियों से छलनी नजर आ रहा था।

विजय उठ खड़ा हुआ। उसने एक चुभती दृष्टि रोमेश पर डाली, फिर उसका ध्यान रिवॉल्वर पर गया। उसने रिवॉल्वर पर रुमाल डाला और बड़े एतिहायत से उसे उठा लिया। रिवॉल्वर अपनी कस्टडी में लेने के बाद वह रोमेश की तरफ मुड़ा। रोमेश ने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये। विजय ने हथकड़ी पहना दी।

रोमेश को कस्टडी में लेने के उपरान्त पुलिस की जांच पड़ताल शुरू हो गयी। घटना स्थल पर रविकांत बोरेड के अतिरिक्त वरिष्ट अधिकारी भी आ पहुंचे। पुलिस फोटो एंड फिंगर प्रिन्टस स्कैन के अतिरिक्त वैशाली भी घटना स्थल पर पहुंची थी। रोमेश को कोलाबा पुलिस थाने के लॉकअप में बंद कर दिया गया। लॉकअप में बन्द होते समय रोमेश ने कहा,


"विजय ! मैंने इंसानों की अदालत को धोखा तो दे दिया, लेकिन आज मुझे यकीन हुआ कि इंसानों की अदालत से भी बड़ी एक अदालत और है। वह अदालत भगवान की अदालत है। जहाँ हर गुनाह की सजा मिलती है। उसी भगवान ने मुझसे यह दूसरा खून करवाया और मैं इस खून के जुर्म से अपने आपको बचा नहीं सकता, क्यों कि मैं इस अपराध से बचना भी नहीं चाहूँगा।"

विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया और लॉकअप में ताला डाल दिया। एक बार फिर अख़बारों की सुर्खियों में रोमेश का नाम था। सीमा की तस्वीरें भी समाचार पत्रों में छपी थीं। वह बड़ा सनसनी खेज कांड था,

एक पति ने अपनी पत्नी के सीने में रिवॉल्वर की सारी गोलियां उतार दी थीं। रोमेश ने उसकी बेवफाई की दास्तान किसी को नहीं बताई थी, इसलिये अखबारों में तरह-तरह की शंकायें छपी।

"वहाँ एक आदमी और मौजूद था।" विजय ने अगली सुबह रोमेश से पूछताछ शुरू कर दी।

"मुझे नहीं मालूम।" रोमेश ने कहा।

"लेकिन मैं पता निकाल लूँगा।"

"उसका कसूर ही क्या है। सारा कसूर तो मेरी बीवी का है, उसने मेरे साथ बेवफाई की, मैंने उसे इसी की सजा दी।"


"हमें यह भी तो पता लगाना है कि उस कमरे में जो नोट बिखरे पाये गये और बची हुई नोटों की गड्डियां जो सूटकेस में थीं, वह कहाँ से आयीं ? तुम्हें इतनी मोटी रकम किसने दी ?"

"ठहरो , मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ, मगर मेरी एक शर्त है।"

"क्या ?"

"तुम उसे सार्वजनिक नहीं करोगे। मैंने जे.एन. का मर्डर किया, उसे अदालत में ओपन नहीं करोगे। मुझे जो सजा मिलनी थी, वह सीमा के क़त्ल से मिल जायेगी। खून एक हो या दो, उससे क्या फर्क पड़ता है। उसकी सजा एक ही होती है, जो दो बार तो नहीं दी जा सकती। अगर मुझे फाँसी मिली, तो फाँसी दो बार नहीं दी जा सकती। इस शर्त पर मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ।"


"नहीं, एडवोकेट सक्सेना ! इस बेदाग पुलिस इंस्पेक्टर की बड़ी जग हंसाई हुई है। बड़ी रुसवाई हुई है। इसलिये यह फिर से अपना मान-सम्मान पाने के लिए छटपटा रहा है और यह तब तक मुमकिन नहीं, जब तक तुम्हें जे.एन. मर्डर केस में सजा न हो जाये, भले ही तुम्हें इस ताजे केस में सजा न हो।"

"फिर मैं कुछ नहीं बताने वाला।"

"मैं मालूम कर लूँगा। तुम्हें घटना स्थल पर बहुत से लोगों ने देखा है। मैं आज तुम्हें रिमाण्ड पर ले लूंगा, तुमने इतनी जल्दी दूसरा क़त्ल किया है इसलिये रिमाण्ड लेने में हमें कोई परेशानी नहीं होगी।"

"तो क्या तुम मुझे टार्चर करोगे ?"

"नहीं वकील साहब, आप एक दिग्गज वकील हैं। आपको टार्चर नहीं किया जा सकता। आप अपना मेडिकल करवा कर कस्टडी में आयेंगे, मैं तुम्हें उसी तरह दस दिन सताऊंगा जिस तरह तुमने जे.एन. को सताया और हर दिन मैं तुम्हें एक चौंका देने वाली खबर सुनाऊंगा।"

"तुम कभी नहीं जान पाओगे।"

"वक्त __________बतायेगा।"


विजय ने रोमेश को अदालत में पेश करके रिमाण्ड पर ले लिया। उसने दस दिन का ही रिमाण्ड लिया था। रोमेश ने मेडिकल करवाने की कोई आवश्यकता नहीं समझी, वह चुप हो गया था। अब वह किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे रहा था, अदालत में भी वह चुप रहा। उसने अपना कोई बयान नहीं दिया।


"आज पहला दिन गुजर गया दोस्त।" रोमेश चुप रहा, उसने कोई उत्तर नहीं दिया।

"आज मैं तुम्हें पहली खबर बताने आया हूँ। पहली जोरदार खबर यह है एडवोकेट साहब कि हमने उस शख्स का पता लगा लिया है, जो उस फ्लैट में आपके आने से पहले आपकी पत्नी के साथ मौजूद था। उसका नाम है- शंकर नागा रेड्डी।"

विजय इतना कहकर मुस्कराता हुआ वापिस लौट गया। रोमेश ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। वह चुप रहा। एक दिन और गुजर गया । विजय एक बार फिर लॉकअप के सामने था। उसने हवलदार से कहा कि ताला खोलो। लॉकअप का ताला खोला गया, विजय अन्दर दाखिल हो गया।

"एडवोकेट रोमेश सक्सेना साहब, आपके लिए दूसरी खबर है, वह रकम जो फ्लैट में बिखरी पड़ी थी उसके बारे में एक अनुमान है कि वह पच्चीस लाख रुपया आपको शंकर नागा रेड्डी ने दिया था। हम शंकर नागा रेड्डी को तलाश कर रहे हैं, वह अन्डरग्राउंड हो गया है। मगर हम उसे सरकारी गवाह बना लेंगे और वह सरकारी गवाह बनना भी चाहेगा, वरना हम थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके उससे उगलवा लेंगे कि उसने यह रकम आपको क्यों दी।"




जारी रहेगा.......✍️✍️
Nice update....
 

Rekha rani

Well-Known Member
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# 30

रोमेश का मुकदमा हारने के बाद इंस्पेक्टर विजय का ट्रांसफर हो गया था।

गोरेगांव से कोलाबा पुलिस स्टेशन में उसका तबादला हुआ. था, विजय का प्रमोशन ड्यू था, परन्तु इस केस में पुलिस की जो छीछा लेदर हुई, उसका दण्ड भी विजय को भोगना पड़ा, उसका एक स्टार उतर गया था। अब वह सब-इंस्पेक्टर बन गया था। उसकी सर्विस बुक में एक बड़ी बैडएन्ट्री हो चुकी थी।

कोलाबा पुलिस स्टेशन में स्टेशन का इंचार्ज रविकांत बोरेड था, विजय उसका मातहत बनकर गया था। इस वक्त इंचार्ज घर पर सो रहा था और ड्यूटी पर विजय मौजूद था। रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, अचानक कोलाबा पुलिस थाने में टेलीफोन की घंटी बज उठी। विजय ने फोन रिसीव किया।

"हैलो कोलाबा पुलिस स्टेशन।" दूसरी तरफ से पूछा गया।

"यस, इट इज कोलाबा पुलिस स्टेशन।"

"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ ।"

"क्या ?" विजय चौंक पड़ा,

"तुमको कैसे पता चला कि मेरा ट्रांसफर इस थाने में हो गया है, आज ही तो मैं यहाँ आया हूँ।"

"ओह विजय तुम बोल रहे हो ? सॉरी, मुझे नहीं मालूम था कि यहाँ भी तुम मिलोगे। खैर अच्छा ही है यार, तुम हो। देखो, अब जो मैं कह रहा हूँ, जरा गौर से सुनो।"

"बोलो, तुम्हारी हर बात मैंने आज तक गौर से ही तो सुनी है। तभी तो मैं इंस्पेक्टर से सब इंस्पेक्टर बन गया, थाना इंचार्ज से सहायक बन गया। लेकिन यह मत समझना कि मैं हार गया हूँ, मैं यह जरुर पता लगा लूँगा कि तुमने जे.एन. का क़त्ल कैसे किया ?"

"यह मैं तुम्हें खुद ही बता दूँगा।"

"नहीं दोस्त, मैं तुमसे नहीं पूछने वाला, मैं खुद इसका पता लगाऊंगा।"

"खैर यहाँ मैंने तुम्हें फोन एक और काम के सिलसिले में किया है। अभी इन बातों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है। तुम अभी अपनी रवानगी दर्ज करो, पता मैं बताता हूँ। मैंने यहाँ एक खून कर डाला है।”

"क्या ? " विजय उछल पड़ा।

"हाँ विजय, मैंने अपनी बीवी का खून कर डाला है।"

"त… तुमने… भाभी का खून ? मगर भाभी तो दिल्ली में रहती हैं ?"

"रहती थी, अब यहाँ है, वो भी जिन्दा नहीं मुर्दा हालत में।"

"देखो रोमेश, मेरे साथ ऐसा मजाक मत करो।"

"यह मजाक नहीं है। तुरन्त अपनी फोर्स लेकर मेरे बताए पते पर पहुंचो, यहाँ मैं पुलिस का इन्तजार कर रहा हूँ। अगर तुमने कोताही बरती, तो मैं पुलिस कमिश्नर को फोन करूंगा। उसके बाद तुम्हारी वर्दी भी उतर सकती है, एक कातिल तुम्हें फोन करता रहा और तुम मौका-ए-वारदात पर नहीं पहुंचे।"

"पता बताओ।"

रोमेश ने पता बताया और फोन कट गया। विजय ने थाना इंचार्ज रवि कांत को उसी वक्त जगाया और स्वयं रवानगी दर्ज करके घटना स्थल की तरफ रवाना हो गया। उसके साथ चार सिपाही थे बिल्डिंग के बाहर भीड़ जमा हो गई थी। बारिश थम गई थी। इमारत में रहने वाले दूसरे लोग भी हलचल में शामिल थे। इसी हलचल से पता चल जाता था कि कोई वारदात हुई है। विजय अपनी टीम के साथ घटना स्थल पर पहुँचा। खून से लथपथ सीमा की लाश पड़ी थी। रोमेश के लिबास पर भी खून के धब्बे थे। वह विक्षिप्त-सा बैठा था। पास ही रिवॉल्वर पड़ी थी। पूरे कमरे में नोट बिखरे पड़े थे, लाश के ऊपर भी नोट पड़े हुए थे।

विजय ने कैप उतारी और लाश का मुआयना करना शुरू किया। जरा से भी प्राण न बचे, सीमा की मौत को काफी समय हो गया था। उसका सीना गोलियों से छलनी नजर आ रहा था।

विजय उठ खड़ा हुआ। उसने एक चुभती दृष्टि रोमेश पर डाली, फिर उसका ध्यान रिवॉल्वर पर गया। उसने रिवॉल्वर पर रुमाल डाला और बड़े एतिहायत से उसे उठा लिया। रिवॉल्वर अपनी कस्टडी में लेने के बाद वह रोमेश की तरफ मुड़ा। रोमेश ने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये। विजय ने हथकड़ी पहना दी।

रोमेश को कस्टडी में लेने के उपरान्त पुलिस की जांच पड़ताल शुरू हो गयी। घटना स्थल पर रविकांत बोरेड के अतिरिक्त वरिष्ट अधिकारी भी आ पहुंचे। पुलिस फोटो एंड फिंगर प्रिन्टस स्कैन के अतिरिक्त वैशाली भी घटना स्थल पर पहुंची थी। रोमेश को कोलाबा पुलिस थाने के लॉकअप में बंद कर दिया गया। लॉकअप में बन्द होते समय रोमेश ने कहा,

"विजय ! मैंने इंसानों की अदालत को धोखा तो दे दिया, लेकिन आज मुझे यकीन हुआ कि इंसानों की अदालत से भी बड़ी एक अदालत और है। वह अदालत भगवान की अदालत है। जहाँ हर गुनाह की सजा मिलती है। उसी भगवान ने मुझसे यह दूसरा खून करवाया और मैं इस खून के जुर्म से अपने आपको बचा नहीं सकता, क्यों कि मैं इस अपराध से बचना भी नहीं चाहूँगा।"

विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया और लॉकअप में ताला डाल दिया। एक बार फिर अख़बारों की सुर्खियों में रोमेश का नाम था। सीमा की तस्वीरें भी समाचार पत्रों में छपी थीं। वह बड़ा सनसनी खेज कांड था,

एक पति ने अपनी पत्नी के सीने में रिवॉल्वर की सारी गोलियां उतार दी थीं। रोमेश ने उसकी बेवफाई की दास्तान किसी को नहीं बताई थी, इसलिये अखबारों में तरह-तरह की शंकायें छपी।

"वहाँ एक आदमी और मौजूद था।" विजय ने अगली सुबह रोमेश से पूछताछ शुरू कर दी।

"मुझे नहीं मालूम।" रोमेश ने कहा।

"लेकिन मैं पता निकाल लूँगा।"

"उसका कसूर ही क्या है। सारा कसूर तो मेरी बीवी का है, उसने मेरे साथ बेवफाई की, मैंने उसे इसी की सजा दी।"

"हमें यह भी तो पता लगाना है कि उस कमरे में जो नोट बिखरे पाये गये और बची हुई नोटों की गड्डियां जो सूटकेस में थीं, वह कहाँ से आयीं ? तुम्हें इतनी मोटी रकम किसने दी ?"

"ठहरो , मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ, मगर मेरी एक शर्त है।"

"क्या ?"

"तुम उसे सार्वजनिक नहीं करोगे। मैंने जे.एन. का मर्डर किया, उसे अदालत में ओपन नहीं करोगे। मुझे जो सजा मिलनी थी, वह सीमा के क़त्ल से मिल जायेगी। खून एक हो या दो, उससे क्या फर्क पड़ता है। उसकी सजा एक ही होती है, जो दो बार तो नहीं दी जा सकती। अगर मुझे फाँसी मिली, तो फाँसी दो बार नहीं दी जा सकती। इस शर्त पर मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ।"


"नहीं, एडवोकेट सक्सेना ! इस बेदाग पुलिस इंस्पेक्टर की बड़ी जग हंसाई हुई है। बड़ी रुसवाई हुई है। इसलिये यह फिर से अपना मान-सम्मान पाने के लिए छटपटा रहा है और यह तब तक मुमकिन नहीं, जब तक तुम्हें जे.एन. मर्डर केस में सजा न हो जाये, भले ही तुम्हें इस ताजे केस में सजा न हो।"

"फिर मैं कुछ नहीं बताने वाला।"

"मैं मालूम कर लूँगा। तुम्हें घटना स्थल पर बहुत से लोगों ने देखा है। मैं आज तुम्हें रिमाण्ड पर ले लूंगा, तुमने इतनी जल्दी दूसरा क़त्ल किया है इसलिये रिमाण्ड लेने में हमें कोई परेशानी नहीं होगी।"

"तो क्या तुम मुझे टार्चर करोगे ?"

"नहीं वकील साहब, आप एक दिग्गज वकील हैं। आपको टार्चर नहीं किया जा सकता। आप अपना मेडिकल करवा कर कस्टडी में आयेंगे, मैं तुम्हें उसी तरह दस दिन सताऊंगा जिस तरह तुमने जे.एन. को सताया और हर दिन मैं तुम्हें एक चौंका देने वाली खबर सुनाऊंगा।"

"तुम कभी नहीं जान पाओगे।"

"वक्त __________बतायेगा।"


विजय ने रोमेश को अदालत में पेश करके रिमाण्ड पर ले लिया। उसने दस दिन का ही रिमाण्ड लिया था। रोमेश ने मेडिकल करवाने की कोई आवश्यकता नहीं समझी, वह चुप हो गया था। अब वह किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे रहा था, अदालत में भी वह चुप रहा। उसने अपना कोई बयान नहीं दिया।


"आज पहला दिन गुजर गया दोस्त।" रोमेश चुप रहा, उसने कोई उत्तर नहीं दिया।

"आज मैं तुम्हें पहली खबर बताने आया हूँ। पहली जोरदार खबर यह है एडवोकेट साहब कि हमने उस शख्स का पता लगा लिया है, जो उस फ्लैट में आपके आने से पहले आपकी पत्नी के साथ मौजूद था। उसका नाम है- शंकर नागा रेड्डी।"

विजय इतना कहकर मुस्कराता हुआ वापिस लौट गया। रोमेश ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। वह चुप रहा। एक दिन और गुजर गया । विजय एक बार फिर लॉकअप के सामने था। उसने हवलदार से कहा कि ताला खोलो। लॉकअप का ताला खोला गया, विजय अन्दर दाखिल हो गया।

"एडवोकेट रोमेश सक्सेना साहब, आपके लिए दूसरी खबर है, वह रकम जो फ्लैट में बिखरी पड़ी थी उसके बारे में एक अनुमान है कि वह पच्चीस लाख रुपया आपको शंकर नागा रेड्डी ने दिया था। हम शंकर नागा रेड्डी को तलाश कर रहे हैं, वह अन्डरग्राउंड हो गया है। मगर हम उसे सरकारी गवाह बना लेंगे और वह सरकारी गवाह बनना भी चाहेगा, वरना हम थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके उससे उगलवा लेंगे कि उसने यह रकम आपको क्यों दी।"




जारी रहेगा.......✍️✍️
Superb update
Ab Vijay apna khel khel Raha hai aur romesh alag hi duniya me chala gya hai
Jabki uske pass mouka hai ki vo Vijay ko sab sach bata kar Shankar Reddy aur mayadass ko bhi saja krva sakta hai
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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Wow

Wow Ramesh khoon karne ki sari taiyari karne laga. Vo sach me karega ya kuchh aur plan hai.

Kuchh chhote chhote par ahmiyat bhare moments kahani ka naksha hi badal dete hai. Jess dustbin se card ka dhudhna, Shankar ke sath ka pura conversation. Ye sab seen img karne par majbur kar dete hai.
Khoon to hoga hi, per kaise ye janne ke liye aage ke update padhna hi padega madam,👍
Thanks for your wonderful review and support Shetan :hug:
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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Superb update
Ab Vijay apna khel khel Raha hai aur romesh alag hi duniya me chala gya hai
Jabki uske pass mouka hai ki vo Vijay ko sab sach bata kar Shankar Reddy aur mayadass ko bhi saja krva sakta hai
Aapko ye lagta hai ki wo bach jayenge? Per mai abhi kuch na bol sakta madam,
Thank you very much for your valuable review and support Rekha rani :thanx:
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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Wow 😲 nice Vijay ne two days me two clues khoj liye
.. amazing update.
Clue to 10 din me poore 10 kholega wo , aisa mai nahi vijay bol raha hai, :D , ab kya sach kya jhooth ye to aage hi pata chalega bhaiyaa,
Thanks brother for your valuable review and support :thanx:
 

Raj_sharma

परिवर्तनमेव स्थिरमस्ति ||❣️
Supreme
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Man na padega ramesh ko bhi ek zutha katal. Ye to katil se bhi jyada shatir chal hai. Maza aa gaya
Dimak ka jadugar hai romesh, shetan ji aage aapko aur bhi maja aaye, thank you for your amazing support and review Shetan dear :hug:
 

Yasasvi3

Darkness is important 💀
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144
# 30

रोमेश का मुकदमा हारने के बाद इंस्पेक्टर विजय का ट्रांसफर हो गया था।

गोरेगांव से कोलाबा पुलिस स्टेशन में उसका तबादला हुआ. था, विजय का प्रमोशन ड्यू था, परन्तु इस केस में पुलिस की जो छीछा लेदर हुई, उसका दण्ड भी विजय को भोगना पड़ा, उसका एक स्टार उतर गया था। अब वह सब-इंस्पेक्टर बन गया था। उसकी सर्विस बुक में एक बड़ी बैडएन्ट्री हो चुकी थी।

कोलाबा पुलिस स्टेशन में स्टेशन का इंचार्ज रविकांत बोरेड था, विजय उसका मातहत बनकर गया था। इस वक्त इंचार्ज घर पर सो रहा था और ड्यूटी पर विजय मौजूद था। रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे, अचानक कोलाबा पुलिस थाने में टेलीफोन की घंटी बज उठी। विजय ने फोन रिसीव किया।

"हैलो कोलाबा पुलिस स्टेशन।" दूसरी तरफ से पूछा गया।

"यस, इट इज कोलाबा पुलिस स्टेशन।"

"मैं एडवोकेट रोमेश सक्सेना बोल रहा हूँ ।"

"क्या ?" विजय चौंक पड़ा,

"तुमको कैसे पता चला कि मेरा ट्रांसफर इस थाने में हो गया है, आज ही तो मैं यहाँ आया हूँ।"

"ओह विजय तुम बोल रहे हो ? सॉरी, मुझे नहीं मालूम था कि यहाँ भी तुम मिलोगे। खैर अच्छा ही है यार, तुम हो। देखो, अब जो मैं कह रहा हूँ, जरा गौर से सुनो।"

"बोलो, तुम्हारी हर बात मैंने आज तक गौर से ही तो सुनी है। तभी तो मैं इंस्पेक्टर से सब इंस्पेक्टर बन गया, थाना इंचार्ज से सहायक बन गया। लेकिन यह मत समझना कि मैं हार गया हूँ, मैं यह जरुर पता लगा लूँगा कि तुमने जे.एन. का क़त्ल कैसे किया ?"

"यह मैं तुम्हें खुद ही बता दूँगा।"

"नहीं दोस्त, मैं तुमसे नहीं पूछने वाला, मैं खुद इसका पता लगाऊंगा।"

"खैर यहाँ मैंने तुम्हें फोन एक और काम के सिलसिले में किया है। अभी इन बातों के लिए मेरे पास वक्त नहीं है। तुम अभी अपनी रवानगी दर्ज करो, पता मैं बताता हूँ। मैंने यहाँ एक खून कर डाला है।”

"क्या ? " विजय उछल पड़ा।

"हाँ विजय, मैंने अपनी बीवी का खून कर डाला है।"

"त… तुमने… भाभी का खून ? मगर भाभी तो दिल्ली में रहती हैं ?"

"रहती थी, अब यहाँ है, वो भी जिन्दा नहीं मुर्दा हालत में।"

"देखो रोमेश, मेरे साथ ऐसा मजाक मत करो।"

"यह मजाक नहीं है। तुरन्त अपनी फोर्स लेकर मेरे बताए पते पर पहुंचो, यहाँ मैं पुलिस का इन्तजार कर रहा हूँ। अगर तुमने कोताही बरती, तो मैं पुलिस कमिश्नर को फोन करूंगा। उसके बाद तुम्हारी वर्दी भी उतर सकती है, एक कातिल तुम्हें फोन करता रहा और तुम मौका-ए-वारदात पर नहीं पहुंचे।"

"पता बताओ।"

रोमेश ने पता बताया और फोन कट गया। विजय ने थाना इंचार्ज रवि कांत को उसी वक्त जगाया और स्वयं रवानगी दर्ज करके घटना स्थल की तरफ रवाना हो गया। उसके साथ चार सिपाही थे बिल्डिंग के बाहर भीड़ जमा हो गई थी। बारिश थम गई थी। इमारत में रहने वाले दूसरे लोग भी हलचल में शामिल थे। इसी हलचल से पता चल जाता था कि कोई वारदात हुई है। विजय अपनी टीम के साथ घटना स्थल पर पहुँचा। खून से लथपथ सीमा की लाश पड़ी थी। रोमेश के लिबास पर भी खून के धब्बे थे। वह विक्षिप्त-सा बैठा था। पास ही रिवॉल्वर पड़ी थी। पूरे कमरे में नोट बिखरे पड़े थे, लाश के ऊपर भी नोट पड़े हुए थे।

विजय ने कैप उतारी और लाश का मुआयना करना शुरू किया। जरा से भी प्राण न बचे, सीमा की मौत को काफी समय हो गया था। उसका सीना गोलियों से छलनी नजर आ रहा था।

विजय उठ खड़ा हुआ। उसने एक चुभती दृष्टि रोमेश पर डाली, फिर उसका ध्यान रिवॉल्वर पर गया। उसने रिवॉल्वर पर रुमाल डाला और बड़े एतिहायत से उसे उठा लिया। रिवॉल्वर अपनी कस्टडी में लेने के बाद वह रोमेश की तरफ मुड़ा। रोमेश ने दोनों हाथ आगे बढ़ा दिये। विजय ने हथकड़ी पहना दी।

रोमेश को कस्टडी में लेने के उपरान्त पुलिस की जांच पड़ताल शुरू हो गयी। घटना स्थल पर रविकांत बोरेड के अतिरिक्त वरिष्ट अधिकारी भी आ पहुंचे। पुलिस फोटो एंड फिंगर प्रिन्टस स्कैन के अतिरिक्त वैशाली भी घटना स्थल पर पहुंची थी। रोमेश को कोलाबा पुलिस थाने के लॉकअप में बंद कर दिया गया। लॉकअप में बन्द होते समय रोमेश ने कहा,


"विजय ! मैंने इंसानों की अदालत को धोखा तो दे दिया, लेकिन आज मुझे यकीन हुआ कि इंसानों की अदालत से भी बड़ी एक अदालत और है। वह अदालत भगवान की अदालत है। जहाँ हर गुनाह की सजा मिलती है। उसी भगवान ने मुझसे यह दूसरा खून करवाया और मैं इस खून के जुर्म से अपने आपको बचा नहीं सकता, क्यों कि मैं इस अपराध से बचना भी नहीं चाहूँगा।"

विजय ने कोई उत्तर नहीं दिया और लॉकअप में ताला डाल दिया। एक बार फिर अख़बारों की सुर्खियों में रोमेश का नाम था। सीमा की तस्वीरें भी समाचार पत्रों में छपी थीं। वह बड़ा सनसनी खेज कांड था,

एक पति ने अपनी पत्नी के सीने में रिवॉल्वर की सारी गोलियां उतार दी थीं। रोमेश ने उसकी बेवफाई की दास्तान किसी को नहीं बताई थी, इसलिये अखबारों में तरह-तरह की शंकायें छपी।

"वहाँ एक आदमी और मौजूद था।" विजय ने अगली सुबह रोमेश से पूछताछ शुरू कर दी।

"मुझे नहीं मालूम।" रोमेश ने कहा।

"लेकिन मैं पता निकाल लूँगा।"

"उसका कसूर ही क्या है। सारा कसूर तो मेरी बीवी का है, उसने मेरे साथ बेवफाई की, मैंने उसे इसी की सजा दी।"


"हमें यह भी तो पता लगाना है कि उस कमरे में जो नोट बिखरे पाये गये और बची हुई नोटों की गड्डियां जो सूटकेस में थीं, वह कहाँ से आयीं ? तुम्हें इतनी मोटी रकम किसने दी ?"

"ठहरो , मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ, मगर मेरी एक शर्त है।"

"क्या ?"

"तुम उसे सार्वजनिक नहीं करोगे। मैंने जे.एन. का मर्डर किया, उसे अदालत में ओपन नहीं करोगे। मुझे जो सजा मिलनी थी, वह सीमा के क़त्ल से मिल जायेगी। खून एक हो या दो, उससे क्या फर्क पड़ता है। उसकी सजा एक ही होती है, जो दो बार तो नहीं दी जा सकती। अगर मुझे फाँसी मिली, तो फाँसी दो बार नहीं दी जा सकती। इस शर्त पर मैं तुम्हें सब कुछ बता सकता हूँ।"


"नहीं, एडवोकेट सक्सेना ! इस बेदाग पुलिस इंस्पेक्टर की बड़ी जग हंसाई हुई है। बड़ी रुसवाई हुई है। इसलिये यह फिर से अपना मान-सम्मान पाने के लिए छटपटा रहा है और यह तब तक मुमकिन नहीं, जब तक तुम्हें जे.एन. मर्डर केस में सजा न हो जाये, भले ही तुम्हें इस ताजे केस में सजा न हो।"

"फिर मैं कुछ नहीं बताने वाला।"

"मैं मालूम कर लूँगा। तुम्हें घटना स्थल पर बहुत से लोगों ने देखा है। मैं आज तुम्हें रिमाण्ड पर ले लूंगा, तुमने इतनी जल्दी दूसरा क़त्ल किया है इसलिये रिमाण्ड लेने में हमें कोई परेशानी नहीं होगी।"

"तो क्या तुम मुझे टार्चर करोगे ?"

"नहीं वकील साहब, आप एक दिग्गज वकील हैं। आपको टार्चर नहीं किया जा सकता। आप अपना मेडिकल करवा कर कस्टडी में आयेंगे, मैं तुम्हें उसी तरह दस दिन सताऊंगा जिस तरह तुमने जे.एन. को सताया और हर दिन मैं तुम्हें एक चौंका देने वाली खबर सुनाऊंगा।"

"तुम कभी नहीं जान पाओगे।"

"वक्त __________बतायेगा।"


विजय ने रोमेश को अदालत में पेश करके रिमाण्ड पर ले लिया। उसने दस दिन का ही रिमाण्ड लिया था। रोमेश ने मेडिकल करवाने की कोई आवश्यकता नहीं समझी, वह चुप हो गया था। अब वह किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे रहा था, अदालत में भी वह चुप रहा। उसने अपना कोई बयान नहीं दिया।


"आज पहला दिन गुजर गया दोस्त।" रोमेश चुप रहा, उसने कोई उत्तर नहीं दिया।

"आज मैं तुम्हें पहली खबर बताने आया हूँ। पहली जोरदार खबर यह है एडवोकेट साहब कि हमने उस शख्स का पता लगा लिया है, जो उस फ्लैट में आपके आने से पहले आपकी पत्नी के साथ मौजूद था। उसका नाम है- शंकर नागा रेड्डी।"

विजय इतना कहकर मुस्कराता हुआ वापिस लौट गया। रोमेश ने कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं की। वह चुप रहा। एक दिन और गुजर गया । विजय एक बार फिर लॉकअप के सामने था। उसने हवलदार से कहा कि ताला खोलो। लॉकअप का ताला खोला गया, विजय अन्दर दाखिल हो गया।

"एडवोकेट रोमेश सक्सेना साहब, आपके लिए दूसरी खबर है, वह रकम जो फ्लैट में बिखरी पड़ी थी उसके बारे में एक अनुमान है कि वह पच्चीस लाख रुपया आपको शंकर नागा रेड्डी ने दिया था। हम शंकर नागा रेड्डी को तलाश कर रहे हैं, वह अन्डरग्राउंड हो गया है। मगर हम उसे सरकारी गवाह बना लेंगे और वह सरकारी गवाह बनना भी चाहेगा, वरना हम थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करके उससे उगलवा लेंगे कि उसने यह रकम आपको क्यों दी।"




जारी रहेगा.......✍️✍️
Bhot hi umda update 🤧🤧 lagata to nahi ki romesh kuch bole but Vijay ko bhi underestimate nahi kar skate......so see in the next update what will happen....😏
 
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