Nice and superb update....Update - 10"भोसड़ी के फिर से बोला तू।" जगन ने गुस्से से उसे देखा तो उसने हड़बड़ा कर फ़ौरन ही अपने मुंह पर हाथ रख लिया। ये देख जहां संपत सिर्फ सिर हिला कर रह गया वहीं मंगू और बबलू ये कह कर हंसने लगे कि ये साला नहीं सुधरेगा।
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अब आगे....
"चल बे पहले तू इधर आ।" अगली सुबह तबेले में जोगिंदर ने मोहन को अपने पास बुलाते हुए कहा____"भैंस का दूध कैसे निकालना है ये तो तूने देख ही लिया है इस लिए उसी तरह अब तू इस भैंस का दूध निकाल के दिखा मुझे।"
मोहन अंदर से घबराया हुआ तो था लेकिन फिर एकदम से उसके मन में ख़याल आया कि वो यहां किसी से कम थोड़ी है। यानि वो सबको दिखा देगा कि वो चुटकियों में क्या क्या कर सकता है।
"पहले ये बाल्टी उठा।" जोगिंदर ने कहा____"इस बाल्टी में भरे पानी से भैंस के थनों को अच्छे से धो और फिर दूध निकालना शुरू कर। समझ आ गया है ना तुझे?"
"अबे अपन इतना भी बेवकूफ़ नहीं है उस्ताद।" मोहन शेखी में बोल तो गया लेकिन फिर जल्दी ही उसे एहसास हुआ कि उसने जोगिंदर को अबे शब्द बोल दिया है। ये एहसास होते ही उसकी गांड़ फट गई और उसने घबरा कर जोगिंदर की तरफ देखा। जोगिंदर गुस्से से देखे जा रहा था उसे।
"म..माफ़ कर दो उस्ताद।" मोहन घबरा कर जल्दी से बोला____"व...वो अपन ये बोलना चाह रेला था कि अपन इतना भी बेवकूफ़ नहीं है जितना तुम अपन को समझ रेले हो।"
"भोसड़ी के तू कितना होशियार है ये बताने की ज़रूरत नहीं है, समझा?" जोगिंदर ने सख़्त भाव से कहा____"जो कहा है चुपचाप वो कर वरना गांड़ तोड़ दूंगा।"
मोहन ने जल्दी से बाल्टी उठाई और डरते डरते भैंस की तरफ बढ़ा। जगन और संपत कुछ ही दूरी पर सहमे से खड़े थे और उनके पीछे मंगू और बबलू। वो दोनों मुस्कुराते हुए मोहन की हरकतों को देख रहे थे।
मोहन डरते हुए आगे बढ़ा और भैंस के पास जा कर बैठ गया। भैंस चारा भूसा खाने में लगी हुई थी और थोड़े थोड़े अंतराल में अपनी पूंछ को भी हिला देती थी। मोहन ने डरते हुए बाल्टी से चुल्लू में पानी लिया और भैंस के थनों पर छींटे मारने लगा। ऐसा उसने दो तीन बार किया तो उसके अंदर का डर थोड़ा कम हुआ। उसने मन ही मन सोचा____'लौड़ा ये तो एकदम आसान है बे। अपन तो साला बेकार में ही डर रेला था।'
मोहन ये सोच कर मुस्कुराया ही था कि तभी भैंस ने अपनी पूंछ घुमाई जो कि तेज़ी से मोहन की कनपटी पर आ कर लगी। पूंछ के लगते ही मोहन उछल पड़ा और डर के मारे पिछवाड़े के बल ज़मीन पर गिर भी गया। खुद को सम्हालने के चक्कर में उसने अपने दोनों हाथ चलाए तो उसके हाथ बाल्टी में तेज़ी से टकरा गए जिससे बाल्टी उलट गई। बाल्टी में जो थोड़ा सा पानी था वो ज़मीन पर फ़ैल गया। अगर बात सिर्फ इतनी ही होती तो गनीमत थी किंतु बाल्टी के उलट जाने से और मोहन के यूं गिर जाने से दो बातें एक साथ हो गईं। एक तो बाल्टी गिरने की आवाज़ हुई और दूसरे डर के मारे मोहन की चीख भी निकल गई जिससे भैंस बिदक गई। भैंस बिदकी तो उसका एक पैर मोहन के घुटने में ज़ोर से टकराया। घुटने में लगते ही मोहन दर्द के मारे हलक फाड़ कर चिल्ला उठा।
"अबे मर गया रे।" मोहन दर्द से चीखा____"इस बेटीचोद ने अपन का पैर तोड़ दिया जगन, बचा ले बे अपन को।"
कहते हुए मोहन जल्दी ही उठ कर भागा और जगन के पास आ कर खड़ा हो गया किंतु उससे ठीक से खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। झुके झुके वो अपने घुटने को सहलाने लगा था। उसकी इस हरकत और दशा को देख जहां बाकी सब ज़ोर ज़ोर से हंसने लगे थे वहीं जोगिंदर भयंकर गुस्से से उसकी तरफ देखने लगा था। मोहन की नज़र जब जोगिंदर पर पड़ी तो उसकी गांड़ फट के हाथ में आ गई।
"भोसड़ी के भैंस को बिदका दिया तूने।" जोगिंदर गुस्से में दहाड़ा____"और भाग कर यहां क्यों आ गया बे तू?"
"म....माफ कर दो उस्ताद।" मोहन झट से जोगिंदर के पैर पकड़ कर बोल उठा____"पर अपन से ये काम न होएगा। अम्मा कसम, अपन के टखने में बड़ी ज़ोर की लात मारी है उसने। बेटीचोद बहुत दर्द हो रेला है अपन को।"
"ख़ामोश।" जोगिंदर गुस्से में फिर से दहाड़ा____"इतना ज़ोर से भी नहीं मारा है उसने जितना कि तू रो रहा है भोसड़ी के। चल जा और फिर से कोशिश कर। इस बार अगर तूने भैंस को बिदकाया तो सोच लेना। साले तेरे ऊपर भैंस को बैठा दूंगा।"
"नहीं नहीं।" मोहन गिड़गिड़ा उठा____"रहम करो उस्ताद। अपन सच कहता है, अपन से दूध नहीं निकाला जाएगा। तुम अपन को कोई दूसरा काम दे दो। अम्मा कसम अपन पूरे मन से करेगा, पर भैंस का दूध नहीं निकाला जाएगा अपन से।"
"दूध तो आज तू ही निकालेगा भोसड़ी के।" जोगिंदर ने मोहन को उसके सिर के बाल पकड़ कर उठा लिया____"वरना ऐसी मार मारूंगा कि मौत से पहले ही तेरी मौत हो जाएगी। चल जा और निकाल दूध।"
मोहन मरता क्या न करता वाली हालत में था। उसका पूरा जिस्म थर थर कांप रहा था। उसने बाकी सबकी तरफ एक एक नज़र डाली किंतु किसी की भी तरफ से उसे किसी तरह की उम्मीद नज़र ना आई। वो डरे सहमे भाव से आगे बढ़ा और गिरी हुई बाल्टी को उठा लिया। मंगू ने आगे बढ़ कर इतनी मदद ज़रूर कर दी कि उसने उसकी बाल्टी को पानी से धो दिया जो गंदी हो गई थी।
मोहन भैंस की पूंछ पर नज़र जमाए ज़मीन पर उकड़ू बैठ गया। उसके दिल की धड़कनें धाड़ धाड़ कर के बज रहीं थी। अभी वो भैंस की पूंछ को ही देख रहा था कि तभी दूसरी तरफ से भैंस ने अपनी गर्दन मोड़ कर ज़ोर से अपने मुंह द्वारा जिस्म पर बैठी मक्खी को उड़ाया। उसकी नांक से निकली फुंकार को सुन मोहन डर के मारे जल्दी से पलटा और अपने क़रीब भैंस के मुंह को आया देख वो एक बार फिर से उछल कर दूर हट गया। शुकर था कि इस बार उसकी चीख नहीं निकल गई थी। इधर उसकी ये हरकत देख मंगू और बबलू फिर से हंसने लगे जबकि जगन और संपत इस बार संजीदा नज़र आए। वो बड़े दयनीय भाव से मोहन को देखे जा रहे थे। कदाचित ये सोच कर कि उसके जैसा ही हाल उन दोनों का भी होने वाला है।
मोहन ने पलट कर एक बार जोगिंदर को देखा। जोगिंदर गुस्से से उसे ही देखे जा रहा था। मोहन फ़ौरन ही पलटा और जा कर फिर से भैंस के पास बैठ गया। उसने भैंस के थन तो धो ही दिए थे इस लिए इस बार उसे किसी एक थन को पकड़ कर उससे दूध निकालना था। बाल्टी को बिल्कुल थनों के नीचे जमा कर उसने थनों की तरफ अपना दाहिना हाथ बढ़ाया। उसका बस चलता तो वो इसी वक्त यहां से भाग जाता मगर जोगिंदर द्वारा अपनी गांड़ कुटाई का डर ही इतना था कि वो इस सबके लिए जैसे मजबूर हो गया था। अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को नियंत्रित करने का असफल प्रयास करते हुए उसने भैंस के एक थन को हल्के से छुआ तो उसके समूचे जिस्म में सिहरन सी दौड़ गई। उसने एक बार भैंस की पूंछ की तरफ देखा और फिर उसके मुंह की तरफ। फिर भैंस के थन पर नज़र जमा कर उसने कांपते हाथ से उसके एक थन को आख़िर पकड़ ही लिया। जीवन में पहली बार उसने किसी मवेशी का थन पकड़ा था। उसे बहुत ही गुलगुला किंतु खुरदुरा सा एहसास हुआ। उसने डरते डरते उंगलियों का दबाव दे कर उस थन से दूध निकालने का प्रयास किया। उसकी उंगलियां थन से फिसलते हुए नीचे तक जैसे ही आईं तो उसमें से थोड़ा सा दूध एक पतली सी धार की शक्ल में निकला। ये देख मोहन के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई। उसे अपने अंदर एक अजीब सी खुशी महसूस हुई, शायद जीत की खुशी कि उसने आख़िर दूध निकाल ही लिया।
"थोड़ा ज़ोर लगा कर दूध निकाल लौड़े।" पीछे से जोगिंदर की आवाज़ सुन मोहन एकदम से चौंक गया, उधर जोगिंदर ने कहा____"ऐसे सहलाने से दूध नहीं निकलेगा। जितना ज़ोर लगाएगा उतनी ही मोटी धार भैंस के थन से निकलेगी और तभी सीघ्रता से तू बाल्टी भी उसके दूध से भर पाएगा। वरना चार दिनों में भी तू बाल्टी को दूध से नहीं भर पाएगा, समझा?"
जोगिंदर की बात सुन मोहन ने सिर हिलाया और इस बार थोड़ा ज़ोर लगा कर दूध निकालने का प्रयास करने लगा। जब उसने देखा कि उसके ज़ोर लगाने से सच में थन से दूध की मोटी धार निकल रही है तो उसे और भी खुशी हुई। अब वो जल्दी जल्दी उसी क्रिया को दोहराने लगा। इस बीच उसका ध्यान डर और घबराहट से हट गया था। कदाचित थन से निकलती दूध की धार देखने में ही वो मगन हो गया था मगर ये सिलसिला ज़्यादा देर तक नहीं चल पाया क्योंकि मोहन के हाथ अब दर्द करने लगे थे।
"अबे एक ही थन से क्यों निकाल रहा है बे?" पीछे से मंगू ने मोहन से कहा____"दूसरे थनों से भी निकाल न।"
"कैसे निकालू बे?" मोहन झल्ला कर बोल पड़ा____"लौड़ा अपन के हाथ में दर्द हो रेला है।"
"चल बे अब तू जा के बैठ।" जोगिंदर ने जगन को देखते हुए कहा____"तूने देखा न इसने कैसे थन से दूध निकाला है, अब तू भी ऐसे ही निकाल।"
जोगिंदर की ये बात सुन कर मोहन झट से उठा और अपना हाथ सहलाते हुए पीछे हट गया। उधर जगन उसकी जगह पर जा कर आहिस्ता से बैठ गया। डर और घबराहट उसके अंदर भी थी किंतु मोहन से कम। उसने पहले तो भैंस की हरकतों को ध्यान से देखा और फिर डरते हुए उसने भैंस के थन को पकड़ा। कुछ ही पलों में वो मोहन की तरह ही दूध निकालने में सफल हो गया। मोहन की तरह उसका भी डर दूर होता गया और उसकी जगह उसे दूध निकालने में मज़ा आने लगा। कुछ देर बाद जब उसका हाथ दर्द करने लगा तो उसने दूसरे हाथ से दूध निकालना शुरू कर दिया मगर उसका दूसरा हाथ जल्दी ही दर्द करने लगा। जोगिंदर के कहने पर वो हटा तो संपत उसकी जगह बैठ गया।
"आज पहला दिन था।" संपत भी जब वापस आ गया तो जोगिंदर ने तीनों को देखते हुए कहा____"मुझे पता है कि भैंस का दूध निकालना आसान काम नहीं है, खास कर तुम जैसे कामचोरों के लिए। ख़ैर धीरे धीरे आदत हो जाएगी इसकी तुम लोगों को। कुछ भैंसें अलग किस्म की होती हैं जिनके थनों से दूध निकालने में थोड़ा ज़्यादा ज़ोर लगाना पड़ता है जबकि कुछ भैंसें ऐसी होती हैं जिनका दूध निकालने में ज़्यादा ज़ोर नहीं लगाना पड़ता। बहरहाल अब से तुम तीनों हर रोज़ सुबह शाम भैंसों का दूध निकालने का अभ्यास करोगे। अभ्यास के लिए एक भैंस तुम लोगों के लिए रहेगी।"
तीनों नमूने आज थोड़ा खुश थे क्योंकि भैंस का दूध निकालने का अनोखा काम कर चुके थे। ये खुशी उनके चेहरों पर भी नज़र आ रही थी। ख़ैर उसके बाद जोगिंदर ने कुछ और निर्देश दिए और फिर वो दूध बेचने के लिए शहर चला गया।
"तो कैसा लगा तुम तीनों को भैंस का दूध निकाल कर?" मंगू ने तीनों की तरफ देखते हुए पूछा।
"अबे मत पूछ बे।" अपनी आदत से मजबूर मोहन झट से बोल पड़ा____"अपन को तो लौड़ा पहले सेईच पता था कि अपन ये छोटा मोटा काम चुटकियों में कर लेगा।"
"अच्छा ऐसा है क्या?" बबलू मुस्कुराया____"अगर ये तेरे लिए ये काम चुटकियों में कर लेने जैसा था तो शुरू में गांड़ क्यों फटी हुई थी तेरी?"
"अबे वो तो अपन का स्टाइल था बे।" मोहन ने एक हाथ से अपने कॉलर को टच करते हुए कहा____"अपन उस्ताद को झांसे में लेने की कोशिश कर रेला था कि वो मुछाड़िया अपन को ऐसे टुच्चे काम करने से मना कर दे पर लौड़ा उसके भेजे में अपन की बात घुसी ही नहीं।"
"अबे घंटा स्टाइल था वो तेरा लौड़े।" संपत ने बुरा सा मुंह बना कर कहा____"भोसड़ी के सच तो ये है कि उस वक्त सच में ही तेरी गांड़ फट गयेली थी, बात करता है लौड़ा।"
"हां तू तो जैसे अपनी गांड़ सिए बैठा था भोसड़ी के।" मोहन तैश में आ गया____"बेटीचोद तेरी भी तो फट गएली थी, बात करता है चिंदी चोर।"
"वैसे संपत की बात से तो मैं भी सहमत हूं मोहन।" मंगू ने मुस्कुराते हुए कहा____"शुरुआत में तेरी सच में फट गई थी और वो भी थोड़ी सी नहीं बल्कि बहुत ज़्यादा। मतलब की भैंस की पूंछ तेरे सिर में थोड़ी सी क्या लगी कि तेरी तो हालत ही ख़राब हो गई। ऊपर से गांड़ ऐसी फटी कि गनीमत ही रही जो तेरी टट्टी नहीं निकल गई।"
"अबे घंटा ऐसा कुछ नहीं था।" मोहन एकदम से सकपकाते हुए बोला____"अपन ने बोला ना कि वो अपन का स्टाइल था। तुम सब लोग जल रेले हो अपन से। बेटीचोद तभी ऐसा बोल रेले हो।"
"कुछ भी हो लेकिन मोहन में एक स्टाइल तो है भाई लोग।" बबलू ने सबकी तरफ देखते हुए कहा____"और ये बात कोई माने या न माने पर मैं तो मानता हूं। मतलब कि बंदा किसी भी परिस्थिति में खुद को कमज़ोर नहीं मानता। तभी तो इसने रवि को ऐसा झटका दिया कि इसके झटके पर उल्टा उसकी चाची अस्पताल पहुंच गई। यानि ये पक्की बात है कि मोहन के पास कोई ख़ास बात ज़रूर है।"
बबलू की बात सुन कर मोहन को एक अलग ही तरह का एहसास हुआ और साथ ही बेहद खुशी भी हुई। उसे खुद पता नहीं चला कि कब उसका सीना एकदम से चौड़ा हो गया और उसके खड़े होने का स्टाइल भी बदल गया।
"अबे हां यार।" संपत एकदम से बोल पड़ा____"लौड़ा अपन तो भूल ही गया था कमला को। अपन को समझ नहीं आ रेला है कि वो अस्पताल कैसे पहुंच गई बे?"
"लो कर लो बात।" मोहन ने अपने माथे पर हथेली मारते हुए कहा____"बेटीचोद इसको अभी यहिच पता नहीं है कि अपन की कमला डार्लिंग अस्पताल कैसे पहुंच गयेली है? अबे लौड़े वो सब अपन ने ही किएला था। तुझे तो पता ही है कि अपन भारी डेंजर आदमी है। अपन ने उसको इधर से ही बंदूक से छूटी गोली के माफिक श्राप दे के मारा और उधर वो अस्पताल पहुंच गई लौड़ी।"
"भोसड़ी के बकचोदी मत कर।" संपत घुड़का____"साला पांचवीं फेल तेरे श्राप से वो अस्पताल नहीं पहुंच गएली है समझा?"
"पांचवीं फेल किसको बोला बे?" मोहन गुस्से में झपट पड़ा उस पर मगर जगन ने पकड़ लिया उसे।
"भोसड़ी के अभी फिर से उठा के पटक देगा अपन तो सारी हेकड़ी निकल जाएगी तेरी।" जगन ने गुस्से से उसे देखते हुए कहा____"बेटीचोद एक घंटा से सुन रेला है तेरा नाटक।"
"एक तो सालो तुम लोग झगड़ा ही बहुत जल्दी शुरू कर देते हो।" मंगू ने कहा____"हर बात को दिल पर मत लिया करो। अगर एक साथ खुश रहना है तो यूं बात बात पर गुस्सा हो कर झगड़ों मत। चलो अब अपने अपने काम पर लग जाओ जल्दी।"
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दोपहर को जोगिंदर खा पी कर अपने कमरे में आराम कर रहा था। आज का खाना कमला की बेटी शालू और रवि ने मिल कर बनाया था। जोगिंदर कमला के लिए बेहद फिक्रमंद था। उसे पहली बार एहसास हो रहा था कि वो कमला का कितना आदी हो चुका है। यानि कमला के बिना एक दिन गुज़ारना उसके लिए किसी अजीयत से कम नहीं लग रहा था। शहर में दूध बेचने के बाद वो कमला का हाल चाल देखने के लिए उसके घर भी गया था। वहां पर उसकी मुलाक़ात कमला के पति महेश से तो हुई ही किंतु रवि की मां निर्मला से भी हुई। कमला क्योंकि बिस्तर पर लेटी थी इस लिए उसके परिवार के लिए खाना बनाने की ज़िम्मेदारी उसने ही ले ली थी और साथ ही अपनी देवरानी का ख़याल भी रख रही थी।
जोगिंदर पहले भी निर्मला को देख चुका था किंतु तब उसने उस पर ज़्यादा गौर नहीं किया था। आज जब उसने क़रीब से निर्मला को देखा तो निर्मला उसे कमला से कहीं ज़्यादा आकर्षक लगी थी। एक तरफ जहां कमला थोड़ी सांवली थी तो दूसरी तरफ उसकी जेठानी निर्मला उससे थोड़ी साफ थी। उसका बदन भी कमला की अपेक्षा थोड़ा कसा हुआ नज़र आता था। ऐसा शायद इस लिए कि एक तो रवि के रूप में उसकी एक ही संतान थी दूसरे पति के गुज़रने के बाद उसका किसी पुरुष से संपर्क नहीं हुआ था। एक तरफ कमला जहां थोड़े तेज़ स्वभाव वाली थी तो वहीं निर्मला शांत और धीर गंभीर महिला थी। जोगिंदर ने आज पहली बार उसे इतने क़रीब से देखा था और कमला की ही तरह उसे भी भोगने की उसके मन में लालसा जाग उठी थी।
कमला का हाल चाल लेने के बाद जोगिंदर ने उसके पति महेश को बहुत खरी खोटी सुनाई थी। महेश एकदम भीगी बिल्ली बना जोगिंदर की बातें सुनता रह गया था। ख़ैर उसके बाद वो अपने घर चला आया था।
अपने कमरे में आराम कर रहा जोगिंदर ये सब सोच ही रहा था कि तभी उसके कानों में बाहर से कुछ आवाज़ें आती सुनाई दीं। उसके मन में ख़याल उभरा कि ये आवाज़ें कैसी हैं? वो फ़ौरन ही बिस्तर से उतर कर बाहर की तरफ गया। जैसे ही वो आंगन में आया तो उसकी नज़र जिस शख्सियत पर पड़ी उसे देखते ही उसके पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई।
आंगन में शालू के साथ उसकी बीवी प्रीतो खड़ी थी। गुलाबी रंग के सलवार सूट में वो गज़ब ढा रही थी। आंगन में खड़ी वो घूम घूम कर चारो तरफ इस तरह देख रही थी जैसे सारे घर का मुआयना कर रही हो। उसके पीछे कमला की बेटी शालू उसका एक बड़ा सा झोला थामे खड़ी थी। प्रीतो की घूमती निगाहें जैसे ही जोगिंदर पर पड़ीं तो जैसे उस पर ही जम गईं। इधर जोगिंदर की जैसे ही उससे निगाहें चार हुईं तो वो एकदम से हड़बड़ा गया किंतु फिर जल्दी ही सम्हला।
"अ...अरे! प...प्रीतो तू यहां??" जोगिंदर अपनी परेशानी के भावों को ज़बरदस्ती छुपाते हुए किंतु मुस्कुराने का प्रयास करते हुए बोल उठा____"ये तो कमाल हो गया। मतलब कि मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा कि तू मेरे सामने है। वैसे तुझे आना ही था तो मुझे एक बार सूचना तो दे देती।"
"क्यों? सूचना देती तो क्या तुम यहां मेरे स्वागत के लिए कोई भारी इंतजाम कर के रखते?" प्रीतो ने तीखे भाव से उसकी तरफ देखते हुए कहा तो जोगिंदर एकदम से सकपका गया।
"और ये क्या हालत बना रखी है तुमने मेरे घर की?" प्रीतो ने चारो तरफ निगाह घुमाते हुए थोड़े गुस्से में कहा____"रात दिन मवेशियों के साथ रहने से तुम खुद भी मवेशी बन गए हो और मेरे घर को भी मवेशीखाना बना दिया है।"
"अरे! य...ये क्या कह रही है तू?" जोगिंदर ने हैरानी से कहा____"ये घर तुझे कहां से मवेशीखाना दिख रहा है?"
"अंधी नहीं हूं मैं।" प्रीतो ने हाथ झटकते हुए कहा____"सब कुछ साफ दिख रहा है मुझे। अगर मुझे पता होता कि तुम मेरे घर की ऐसी हालत बना दोगे तो मैं यहां से जाती ही नहीं। ख़ैर अब एक बात तुम कान खोल कर सुन लो। कल तक मुझे ये घर एकदम साफ सुथरा नज़र आना चाहिए और यहां पर जो तुमने कचरे के साथ गंध भी फैला रखी है उसे तुम खुद साफ करोगे, समझे?"
"हां हां साफ कर दूंगा मेरी मां।" जोगिंदर ने बात को टालने की गरज से कहा____"अब शांत हो जा। तू तो यहां आते ही मुझ पर बरसने लगी है। अरे! साल भर बाद आई है तो कम से कम प्यार से तो बात कर ले। तुझे पता है तेरी जुदाई में कितना बुरा हाल था मेरा।"
"ये बहाने और ये मगरमच्छ के आंसू किसी और को दिखाना तुम।" प्रीतो ने आंखें दिखाते हुए कहा____"तुम्हारी सारी करतूतों के बारे में पता है मुझे। मेरा मुंह मत खुलवाओ वरना अच्छा नहीं होगा तुम्हारे लिए...और हां जितनी मनमानी तुम्हें करनी थी वो कर ली तुमने। अब से तुम हर चीज़ का हिसाब दोगे मुझे। बाकी तुमने यहां क्या क्या किया है उसका तो मैं जल्द ही पता कर लूंगी, फिर देखूंगी कि मुझे क्या करना है।"
प्रीतो इतना बोल कर लंबे लंबे कदम बढ़ाते हुए एक तरफ को बढ़ती चली गई। उसने जोगिंदर का कोई जवाब सुनना जैसे ज़रूरी ही नहीं समझा था। उसके पीछे उसका झोला लिए शालू भी चली जा रही थी। इधर जोगिंदर को ऐसा लगा जैसे अचानक ही वो चक्कर खा कर गिर जाएगा।
जोगिंदर ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसकी बीवी यूं अचानक से किसी जिन्न की तरह प्रगट हो जाएगी। एकाएक ही उसे एहसास हुआ कि उसने अपनी बीवी के ना रहने पर अब तक जो कुछ किया है वो अब नहीं हो सकेगा और अगर प्रीतो को कमला के बारे में पता चल गया तो जाने वो क्या करेगी उसके साथ। जोगिंदर को एकदम से ऐसा लगा जैसे उसके सिर पर पूरा आसमान ही टूट कर गिर पड़ा है।
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