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Romance Ummid Tumse Hai

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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अनुनय विनय

मेरी यह कहानी किसी धर्म, समुदाय, संप्रदाय या जातिगत भेदभाव पर आधारित नहीं हैं। बल्कि यह एक पारिवारिक स्नेह वा प्रेम, जीवन के उतर चढ़ाव और प्रेमी जोड़ों के परित्याग पर आधारित हैं। मैने कहानी में पण्डित, पंडिताई, पोथी पोटला और चौपाई के कुछ शब्द इस्तेमाल किया था। इन चौपाई के शब्द हटा दिया लेकिन बाकी बचे शब्दो को नहीं हटाऊंगा। क्योंकि पण्डित (सरनेम), पंडिताई (कर्म) और पोथी पोटला (कर्म करने वाले वस्तु रखने वाला झोला) जो की अमूमन सामान्य बोल चाल की भाषा में बोला जाता हैं। इसलिए किसी को कोई परेशानी नहीं होनी चहिए फिर भी किसी को परेशानी होता हैं तो आप इन शब्दों को धारण करने वाले धारक के प्रवृति से भली भांति रूबरू हैं। मैं उनसे इतना ही बोलना चाहूंगा, मैं उनके प्रवृति से संबंध रखने वाले कोई भी दृश्य पेश नहीं करूंगा फिर भी किसी को चूल मचती हैं तो उनके लिए

सक्त चेतावनी


मधुमक्खी के छाते में ढील मरकर अपने लिए अपात न बुलाए....
 
Last edited:

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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raghav market jaane se kare inkar par apne pita ka naam sun ek hi jhatke nikal padta apni mom sang bajar kharidaari karne... waise uske dil mein khauf itna hai pita ko lekar....
Btw aaj jaise karishma hi hua ho jaise us ghar mein... ye Diwali jaise us ghar ke sabhi members ke liye khushiyon kki saugaat leke aayi ho..... khaakar raghav ke liye... ushe to yakin nahi ho raha tha ki jo ho raha kya wo sach hai.... lekin jo sach tha wo uske pita ke sneh purvak baaton ke roop mein saamne tha...
ab uske pita gai dushman thodi na ... wo kahi raah na bhatak jaaye isliye sakht banna padta hai unko.... jis din wo pita banega us din bhali bhaanti samajh jaayega ke aakhir atal ji jazbaaton ko...
Khair.... jo bhi aaj raghav bahot khush hai, aur uske sath sath puri family bhi...
ab dukh ya gehri chinta ho to bhook pyaas mit jaati hai...Lekin agar mann prasanna to bhookh bhi utni lage insaan ko ... Isliye dabake khana khaya aaj raghav ne....

khushnuma palo se bharpur har ek mod tha.....
Shaandar update, shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan aur sath hi dilkash kirdaaro ki bhumika bhi...

Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills :applause: :applause:

खौफ तो होना ही था बाप के तने सुन सुन कर विचारे का खून जो सूख गया हैं।

दिवाली खुशी तो लेकर आया हैं लेकिन राघव के लिए यहां खुशी दुनगुना हों गया हैं इसलिए तो डकार आणे टक भर पेट खाना खाया।
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills
नेक्स्ट भाई ठीक ठाक ही होगा। बहुत बहुत धन्यवाद नैना जी
 

DREAMBOY40

सपनों का सौदागर 😎
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Update - 8


तीनों नहा धोकर बिल्कुल चकाचक चमकने लगे। घर के धूल के साथ साथ बदन में जमी धूल जो साफ कर लिया था। थकान से बदन चूर हों रहा था लेकिन अभी विश्राम करने का वक्त नहीं था। आज धन के पहरेदार की पूजा जो थी। रिवाज अनुसार आज खरीददारी करना शुभ मना जाता हैं। इसलिए प्रगति राघव को खरीददारी करने साथ चलने को कहा लेकिन राघव आलस की मारी थकान की बीमारी से पीड़ित था। आराम कर थकान नामक बीमारी से निजात पाना चहता था इसलिए आनाकानी करने लगा तो प्रगति खीज कर बोला "थका सिर्फ़ तू ही नहीं, मैं भी थका गई हूं, फिर भी मैं चल रही हूं, तू चल मेरे साथ नहीं तो तेरे बाप को कॉल करती हूं।"

बाप का नाम सुनते ही बाप के ताने याद आ गया थका शरीर फिर से तरो ताजा हों गया प्रफुलित होकर राघव बोला "जैसी अपकी आज्ञा माते, आप चलिए मेरे साथ, खरीद लाते हैं सारा बाजार आज।"

प्रगति कुछ न बोली बस एक मोहिनी मुस्कान बिखेर दी और चल दिया राघव के साथ तभी आ टपकी चुलबुली बाला भोंहे हिलाते हुए बोली "किधर को चल दी मां बेटे की टोली, मुझे भी साथ लेकर चलो, क्यो रहूं मैं घर पर अकेली।"

राघव प्रगति दोनों हंस दिए फिर प्रगति समझते हुए बोली "तू घर पर रह बाजार में बहुत भीड़ होगी खरीददारी करने में समय लगेगी। दुकान दुकान घूमना पड़ेगा तू हमारे साथ कहा कहा टक्कर खाती फिरेगी।"

तन्नु "umhnnnnn मुझे लोलोपॉप दे रहीं हों बच्ची समझी हों क्या मैं तो जाऊंगी।"

दोनों मां बेटी में तर्क वितर्क का युद्ध छिड़ गया। प्रगति तर्क दे तो चुलबुली तन्नु के भेजे में वितर्क उपज आए और अपने अंदाज में कह सुनाए। तर्क वितर्क का युद्ध कुछ लंबा चला तब जाकर कहीं तन्नु मानी तो प्रगति ने चैन की सांस लिया और तन्नु को एक और लॉलीपॉप दिया "तन्नु बेटा बता तुझे क्या खाना हैं जो बोलेगी लेकर आऊंगी।"

मां की बात सुनाकर राघव सर पर हाथ मारा और मन ही मन बोला क्या जरूरत थीं शान्त पानी में पत्थर मार लहर लाने की, इसी लहर में आप भी बहोगी साथ में मुझे भी खींच ले जाओगी।"

क्या खाना हैं? सुनते ही तन्नु की बांछे खिल गई। लिस्ट इतनी लंबी चौड़ी बता दिया। इतना लंबा मेनू तो रेस्टोरेंट और होटलों में भी नहीं होता होगा। न जाने कौन कौन से नाम गिना दिए इस धरा की थी ही, दूसरे धारा की भी समेट कर लिस्ट में छप दिया। इतने सारे नाम सुनाकर प्रगति सोच में पड गई और खुद को कोसने लागी "क्या जरूरत थीं इस भुक्कड़ को छेड़ने की अच्छा खासा मन गई थी अब ढूंढते रहना इसकी लिस्ट हाथ में लिए।" फिर प्रगति मुस्कुराकर बोली "सभी ले तो आऊ तू खा पाएगी क्या?"

तन्नु किया बोले, बोलने को कुछ था ही नहीं इसलिए सिर्फ मुस्कुरा दिया। राघव समझ गया मामला सुलट गया अब कट लेना ही बेहतर हैं। मां का हाथ पकड़ा और बाहर खींच ले गया। बाईक निकाला और चल दिया खरीददारी करने।

बाजार मे भिड़ खचाखच थीं। सभी खरीददारी करने जो आए थे। दुकानों की सजावट देख लगा दिवाली आज यहीं मन जायेगा। दुकान ओर बाहर सजी तरह तरह के समान देख दोनों मां बेटे की आंखे चौंधिया गया क्या खरीदे क्या न खरीदे असमंजस मे पड़ गए। दुकान दुकान घूमे पर पसंद कुछ न आए। अब थकान भी अपना करतब दिखाने लगा राघव की आंखे बोझिल होने लगा तक हर कर राघव बोला "मां कितना घुमाओगे अब तो मेरे पैर भी दाम तोड़ने लगा, जल्दी से जो खरीदना हैं खरीद लो नही तो मैं घर को चला।"

प्रगति "रुक न बाबा पहले पसंद तो कर लू फिर खरीद लूंगी।"

राघव आगे कुछ नहीं कहा क्यो आया मां के साथ घर पर रहता तो अच्छा होता ये पापा भी न आज उनके कारण ही मेरी ऐसी दशा हैं। मन में कहते हुए मां के पीछे पीछे घूमने लगा। घूमते घूमते प्रगति को उसके पसंद का समान मिल गया। उसे खरीदने के लिए दुकान में घूस गई। भाव पता किया तो दाम कुछ जांचा नहीं फिर शुरू हुआ तोल मोल का विचित्र खेल दुकान दर कुछ कहें प्रगति कुछ और कहें, भाव दोनों को पाटे नहीं तोड़ी देर ओर मोल भाव चला अंत में दुकान दर ने हार मान ही लिया। तब प्रगति ने अपने पसंद का समान अपने भाव से खरीद लिया। ऐसे ही मोल भाव करके कुछ और जरूरी समान को खरीदा गया। खरीददारी के समापन होने पर खाने पीने की कुछ चीजे खरीदा और चल दिया घर।

घर पहुंचते ही राघव की बांछे खिल गया। खरीदा हुआ सभी समान अदंर रख कमरे को ऐसे भागा जैसे किसी ने रॉकेट के पूंछ में आग लगा दिया हों। प्रगति "aahannn maaaaa बहुत तक गई तन्नु बेटा एक गिलास पानी पिला दे।"

तन्नी किचन में थी पानी लाकर दिया फिर तन्नु बाजार से लाए सभी सामन को चेक किया और उन्हें सही जगह रख दिया। कुछ वक्त आराम करने के बाद प्रगति शाम की खाने की तैयारी करने किचन चली गईं। साथ में तन्नु को भी ले गईं। इधर ये दोनों खाने की तैयारी में लगे थे उधार राघव रूम में जाते ही पसार गया। आज दिन भर की थकान उसके अंग अंग से झलक रहा था। उसे लेटे एक पल ही हुआ था की नींद ने अपनी जकड़ में ले लिया। नींद की अंचल में अभी खोने ही लगा था की मोबइल ने खलाल डाल दिया मन कर रहा था मोबाइल फेक कर मारे लेकिन विचार को त्याग कर "अब कौन हैं?" बोलकर मोबाइल हाथ में लिया स्क्रीन पर फ्लैश हों रहा नाम देखकर राघव थकान नींद सब भुल गया। नाम ही ऐसा था। कॉल रिसिव किया और शुरू हों गया इनकी बाबू सोना वाली गपशप दिन भरा क्या क्या किया सब सुना डाला। इधर राघव ने कॉल कटा उधर अटल जी का आगमन हुआ। अटल जी की आभास पते ही तन्नु किचन से निकलकर रूम को भागी और किताबों में उलझ गई।

अटल जी अदंर आए घर की सुधरी हुई दशा देखकर मन में बोला "गलती से किसी ओर के घर में तो नहीं घूस गया निकल ले अटल बेटा नहीं तो सारी पंडिताई भुल जाऐगा।

अटल जी सिघ्रता से बाहर निकले। मैन गेट पर गुदे हुए नामावाली पर नज़र फेरा वहा अपना नाम देखकर बोला " ये तो मेरा ही घर हैं लगता हैं मेरे बेटे ने अपना करतब दिखा ही दिया आज तो सब्बासी देना बनता हैं। अरे सब्बासी दिया तो कहीं अपना रास्ता न भटक जाएं। बरहाल जो भी हों आज उसने एक अच्छा काम किया हैं। तारीफ तो करना ही पड़ेगा।"

बड़बड़ाते हुए अटल जी अदंर आए और आवाज दिया "भाग्य श्री किधर हों कभी पति का भी हल चल ले लिया करों जब देखो किचन और बच्चों में उलझी रहती हों।"

प्रगति उस वक्त आटा गूंध रहीं थीं हाथ खाली नहीं था तो बोली "ओ जी मेरा हाथ खाली नहीं हैं आप जरा खुद से लेकर पी लिजिए।"

अटल जी कीचन की और आते हुए बोला "ऐसा किया कर रहीं हों जो हाथ खाली नहीं हैं।"

प्रगति पीछे पलटी तब तक अटल जी किचन में आ गए थे। प्रगति की दशा देखकर अटल जी की हंसी छूट गया। हंसी तो आना ही था प्रगति के दोनों गालों पर आटा जो लगा था। अटल जी पास गए कमर में खोंचा हुआ आंचल निकला गालों पर लगे आटा को पौछते हुए बोला "भाग्य श्री आटा हाथ से गोंद रहीं हों या मुड़ी से जो इन खुबसूरत गालों पर लगा लिया।"

प्रगति मुस्कुराते हुए अपने काम में डांट गई। अटल जी फ्रीज से पानी निकला और गला तर कर लिया फिर दीवाल से टेक लगाई प्रगति को काम करते हुऐ देखने लगा कुछ वक्त देखने के बाद प्रगति के बगल में जाकर खड़ा हों गए और बोला "भाग्य श्री मैं कुछ मदद कर दू।"

प्रगति "नहीं आप थक गए होंगे जाकर थोडा विश्राम कर लिजिए।"

अटल "थक तो तुम भी गई होगी आज घर को जो चमका दिया नक्शा ही बदल दिया। मैं पहचान ही नहीं पाया बाहर जाकर नाम प्लेट देखा तब जाना मैं सही घर में घुसा हूं।"

प्रगति "सच्ची में आप झूठ तो नहीं बोल रहे हों।"

अटल "सही कह रहा हु मै आकर वापिस चला गया था। नाम प्लेट देखकर फिर वापस आया।"

प्रगति "ये जो आपको चमकता हुआ और बदला बदला घर लग रहा हैं। इस काम में हमारे बेटे और बेटी ने भी पूरा पूरा सहयोग दिया था। आज दोनों भी बहुत थक गए हैं।"

अटल "ओ तो उस नालायक ने आज घर का काम किया हैं। उम्मीद नहीं था ये आलस के पुजारी काम करेगा।"

प्रगति " आप उससे इतना खफा क्यो रहते हैं? मैं नहीं जानती लेकिन साफ साफ कह देती हूं। त्यौहार के कुछ दिन उसके साथ अच्छा वर्तव करना नहीं तो……

अटल जी बीच में ही बोल पडा "नहीं तो तुम भूख हड़ताल पर बैठ जाओगी। तुम कम करों में जाकर तनुश्री को भेजती हूं।"

अटल जी बाहर आकार तन्नु के कमरे में गए उसको कीचन में भेज दिया फिर राघव की कमरे के और बड़े राघव के कमरे की ओर जाते हुए अटल जी के पैर डगमगा रहे थे। कईं सालो बाद आज अटल जी बेटे के कमरे में जा रहे थे तो पैर तो डगमगाना ही था। एक मन जाने को कह रहा था एक रोकने की पुरी पुरी कोशिश कर रहा था। लेकिन आज अटल जी का अटल मन हार गया और बाप का मान जीत गया। ऐसा नहीं की अटल जी कभी राघव के कमरे में नहीं गए। अटल की सुबह राघव और तन्नु को देखने से ही शुरू होता था और दिन का अंत दिनों को सोता हुआ देखकर ही होता था। लेकिन समय ने ऐसा चल चाला की अटल जी बेटे से दुर होते गए सिर्फ बेटे से ही नहीं बेटी से भी दूर होते गए और एक अटल पत्थर बन कर रह गए। धीरे धीर डग भरते हुए राघव के रूम तक पूछा, खड़े होकर कुछ वक्त सोचा आवाज दे या दरवाज़ा खटखटाएं, बड़ा ही विकट और असमझास की स्थिति बन गया एक बार तो अटल जी पलट गए दो कदम बड़े फिर पलटे और आवाज दिया "राघव बेटा दरवाजों खोलो।"

राघव उस वक्त कुछ काम कर रहा था। दरसल राघव ने कमरे मे ही एक कोने में छोटा सा वर्क शॉप बना रखा था। खाली टाईम में वहां बैठ कर अपने इंजीनियरिंग दिमाग को काम में लगता था और विभिन्न प्रकार की ब्लैंक सर्किट बोर्ड में कंपोनेंट को जोड़कर नए नए डिवाइस बने का काम करता था। लेकिन उसका यहां काम हमेशा असफल ही रहा। आज भी राघव सृष्टि से बात करने के बाद एक डिवाइस पर काम कर रहा था। तभी उसके कान में अटल जी की आवाज़ गूंजी। पापा भला मुझे क्यों बुलाने आयेंगे। ये सोचकर नजरंदाज कर दिया। एक बार फिर अटल जी ने आवाज दिया तब जाकर राघव को लगा सच में पापा मुझे ही आवाज दे रहे हैं।

राघव उठाकर दरवाजे के पास गया दरवाजा खोल, अटल जी को खड़ा देखकर पहले तो चौका फिर आंखें मलकर देखा। राघव खुद को यकीन ही नहीं दिला पा रहा था कि उसका पिता इतने सालो बाद आज उसके कमरे के सामने दरवाज़े पर खड़ा हैं। इसलिए बार बार आंखें माल रहा था और विस्मित होकर देख रहा था। एक पल को अटल जी की आंखो में भी नमी आ गया। आज अटल जी अटल पत्थर की तरह अटल न रह सके। पलके भोजील होते ही पलके मूंद लिया और आंखों में आई नमी बूंदों का रूप लेकर बह निकला। अटल जी बहते आंसुओ को पोछा और बोला "कैसे हो राघव बेटा दिवाली की बहुत बहुत शुभकामनाएं प्रभु तुम्हारी सभी मनोकामना पुरी करे।"

इतने दिनों बाद बाप से बेटा शब्द सुनाकर राघव खुद को ओर न रोक पाया और पापा मैं ठीक हूं कहकर लिपट गया। बाप बेटे का यहां अदभूत मिलाप जो न जानें कब से अधूरा था। आज पूरा हुआ। कुछ वक्त लिपटे रहने के बाद अटल जी अलग हुए राघव के सर पर हाथ फिरते हुए मन में बोला "राघव मै जानता हु तू आज बहुत खुश होगा। लेकिन मैं भी क्या करू एक बाप हूं तुझे कामियाब होते हुए देखना चहता हूं। तू नहीं जानता मैं तेरे सामने तो पत्थर बना राहता हूं लेकिन अकेले में तुझसे ज्यादा रोता हूं। तू जल्दी से सफलता की सीढ़ी चढ़कर दिखा ताकि मैं तुझे पुराना वाला दुलार फिर से दे सकूं।"

अटल जी राघव के कमरे के अंदर जाते हैं। कमरे को बारीकी से निरीक्षण करते हैं कहीं कुछ कमी तो नहीं हैं फिर बैठ कर बहुत सारी बातें करते हैं। राघव तो फुले नहीं समा पा रहा था खुशी आंखो से आंसू बन छलक रहा था। कुछ वक्त तक सभी तरह की बाते करने के बाद अटल जी "राघव बेटा अब तुम अपना काम करों थोड़ी देर में खाना खाने आ जाना और हां तुम्हारे मां को पता नहीं चलना चाहिए मैं तुमसे बात करने तुम्हारे कमरे में आया था।"

राघव के लिए इससे ज्यादा खुशी की बात ओर किया होगा कि उसके पिता उससे बात करने उसके रूम तक आया। इसलिए हां में मुड़ी हिला दिया। अटल जी मुस्कुराते हुए रूम से चले गए। बाप के जाते ही राघव खुशी से उछल पड़ा किया करे किया न करें समझ ही नहीं पा रहा था। अपना यहां खुशी किस के साथ बांटे उस बंदे को मन ही मन खोज रहा था। उसे सिर्फ़ एक ही नाम सुझा वो हैं सृष्टि बस फ़िर किया था मोबइल उठाया और सृष्टि को कॉल लगा दिया। सृष्टि शायद मोबाइल हाथ में लिए बैठी थीं। पहली रिंग पर ही रिसिव कर लिया और राघव ने एक ही सांस में सब सुना डाला। सुनकर सृष्टि भी खुश हों गई। चलो अच्छा हुआ बाप बेटे का रिश्ता सुधार गया। राघव सृष्टि बातों में मगन था। इधर प्रगति खाना खाने के लिए उसे आवाज दे रहा था। तीन चार आवाज देने के बाद राघव कॉल कट कर खाना खाने चला गया। राघव को इतना खुश देख प्रगति भी खुशी खुशी खाना खिलाने लगीं। आज राघव खुशी के मारे और दिनों से ज्यादा खा लिया। एक डकार आई और उसे एहसास करा दिया बेटा घड़ा भर गया हैं अब उठा जा नही तो सारा लेथन यहां ही फैल जाएगा। राघव उठाकर चला गया बाकी सब ने भी अपने अपने पेट रूपी घड़े को परिपूर्ण भर लिया और अपने अपने रुम में सोने चले गए।


आज के अपडेट को यहां ही विराम देता हूं। पहले खरीददारी फिर बाप बेटे का मिलन कैसा लगा अपने शब्दों में बताना na भूलिएगा। मिलते है फ़िर एक नए किस्से के साथ तब तक के लिए अलविदा।
एमोशनलात्मक ,, ह्रदयटचींग और मुस्कुराहटफुल वाला अपडेट

थक हार कर आखिर अटल जी खुद के प्रेम के भवर मे फस गये और अपना हाल ए दिल अपने बेटे से बया कर बैठे
वैसे अच्छा भी है कि दिवाली जैसे त्योहार मे सब खुश हो , ना सिर्फ़ उपर से बल्कि दिल से भी


मन्मोह्क , अट्रेक्तिव , आकर्षक , चुम्बकीय , मैगनेतीक वाला अपडेट
 

Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
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Update - 5

दोपहर बीत चुका था शाम होने को आई थी। देर होने के कारण प्रगति चिंतित हो रहीं थीं। न जाने जॉब मिला की नहीं कहां रह गया। इतना देर क्यों कर रहा हैं। इसलिए बार बार फोन कर रही थीं। राघव उस वक्त मार्केट में था। मिठाई ले रहा था मिठाई लेने के बाद मां से बात किया और घर को चल दिया, प्रगति घर के बाहर ही मिल गईं बाइक खड़ा किया और जाकर मिठाई का डब्बा खोला, एक टुकड़ा मिठाई का निकला और मां को खिलाते हुए बोला मां मुझे जॉब मिल गया अब पापा के ताने सुनने को नहीं मिलेगा। बेटे को खुश देख मां की ममता स्नेह छलक आया। राघव के सर पर हाथ रख आंख बन्द कर मन ही मन "मेरे बेटे को ऐसे ही खुश रखना इसकी सभी मनोकामना पूर्ण करना" दुआ मांगने लगा फिर राघव को लेकर अदंर गया। अंदर आकार राघव "मां तन्नु कहा हैं।"


तन्नु नाम लेते ही तन्नु टपक पड़ी ये चुलबुली लडक़ी नाम लो और देखो हाजिर हों गई


तन्नु "मैं इधर ही हूं मुझे क्यों ढूंढ रहे हों बताओओओ.. बताओओओ.. "


राघव डब्बे से एक बड़ा सा मिठाई का टुकड़ा निकाला डब्बा मां को थमाया फिर दौड़कर तन्नु के पास गया और बोला "जल्दी से बड़ा सा मुंह खोल"


तन्नु बोहे हिलाकर पूछा kyauuuu तब राघव बोला "खोल न जल्दी फिर बताता हू।"


जितना मुंह खोल सकती थीं खोला और राघव ने झट से मिठाई मुंह में डाल दिया। तन्नु मुंह पे हाथ रख मिठाई बाहर निकाला और बोली "इतना बडा मिठाई का टुकड़ा मेरे मूंह में डाल दिया गले में अटक जाती तो….. वैसे मिठाई किस खुशी में?


राघव की हरकत देख प्रगति हंसे बिना रह नहीं पाई और पेट पकड़ कर हंसने लगीं। प्रगति को हंसता हुआ देखकर तन्नु मिठाई के टुकड़े से एक वाइट लिया और बोली "मां ऐसे क्यों हंस रहीं हों।"


प्रगति हसीं रोककर बोली "तुम दोनों को देखकर कभी कभी लगता हैं तुम दोनों अभी भी छोटे हो, बिल्कुल बच्चों जैसी हरकते करते हों।"


तन्नु आकार बैठते हुए बोली "मम्मा भईया का नहीं जानती लेकिन मैं तो अभी भी छोटी बच्ची हूं।"


फिर से हंसी और ठहाके गुजने लगा। कुछ देर हंसने के बाद तन्नु बोली "भईया आज मिठाई किस खुशी में लेकर आए और आप खुश भी बहुत लग रहे हों।"


राघव "तेरे भईया को जॉब मिल गया है इसलिए खुश होकर मिठाई लेकर आया हूं।"


तन्नु आगे कुछ बोलती उससे पहले किसी और ने बोला "मेरे यारा को जॉब मिल गया और मुझे पाता ही नहीं ये भेद भाव क्यों?"


सार्थक अदंर आते हुए लगड़के चल रहा था ऐसा तो होना ही था जो बंदा बिना बाइक के नहीं चलता था वो दो ढाई किलोमीटर बाइक धकेल कर लायेगा तो ऐसा ही होगा। ऐसे चलते हुए देखकर राघव hhhhhhhhh hhhhhhhh हंस रहा था। तन्नु और प्रगति सार्थक की दशा देख अचंभित होकर देख रहा था। तभी तन्नू बोली "सार्थक भईया आप का ये हल किसने किया आपने फिर किसी से मारपीट किया।"


सार्थक " तौबा तौबा बहना प्यारी क्यो मेरे व्हाइट शर्ट पे पान की पीप डाल रही हैं। मेरे क्यूट और भोला फेश पर कहीं तुझे टपोरी लिख हुआ दिख रहा हैं जो तू मेरे फेस पे कालिक पोत रही हैं।"


सार्थक की बाते सुन तन्नु, प्रगति और राघव अपने अपने ढंग से हंस रहे थे राघव की हंसी से ऐसा लग रहा था मानो वो सार्थक की खिली उड़ा रहा हों। उसको ऐसे हंसते देख सार्थक बोला "तू दोस्त हैं या दुश्मन मेरी जैसी तेरी दशा होता तब तुझे पाता चलता।"


राघव "एक तो तेरी बाते निराली ऊपर से चल तेरी अलबेली अब तु ही बता तुझे छेडूं न तो और क्या करूं।"


सार्थक "मैं तुझे क्या छोरी दिखता हूॅं जो तू मुझे छेड़ रहा है। …. आंटी आप इस मुसीबत के पिटारे को कहा से उठा कर लाए थे। जहां भी जाता हैं मुसीबत साथ लेकर जाता हैं।


प्रगति "ऐसा किया हुआ ठीक ठीक बोल तेरी बाते सुनाकर अब तो मुझे भी हंसी आ रही हैं।"


सार्थक "हां हां हंसो हंसो बत्तीसी फड़के हंसो मेरे इस दशा की देन अपका सुपुत्र राघव प्रभु ही हैं।"


तन्नु "सार्थक भईया आप खामख मेरे भईया को दोष दे रहे हों गलती आप करो और ठीकरा भईया के सर फोड़ों।"


सार्थक "ये तेरा भाई हैं तो मै किया कसाई हु। मैं भी तो तेरा भाई हूं। कभी तो मेरे पले में भी खेल लिया कर जब देखो इस मुसीबत के पिटारे का साथ देगी।"


प्रगति "कोई तेरे पले में खेले चाहे न खेले मैं तेरे पले में हूं बता क्या हुआ था जो अलबेली चाल से चल रहा हैं।"


सार्थक "हां हां अब आप भी मुझे छेड़ो मेरी चल क्या बदल गई आप सब तो मुझे लडक़ी समझ, छेड़ने लगे।"


प्रगति "अच्छा बाबा नहीं छेड़ता अब बता किया हुआ जो तेरी चल बदल गई।"


राघव "मां इससे क्या पूछते हों मैं बताता हूं।"


सार्थक "हां हां बता अपने कारनामे ठीक से बताना hannnnnn…"


राघव "तू चुप करेगा तभी तो बताउंगा बिना बैटरी के लाइट जलना शुरू कर दे तो बुझने का नाम न ले।"


सार्थक मुंह पर उंगली रख बैठ गया और राघव अपने साथ घाटा किस्सा सुनना शुरू किया। जैसे जैसे सुनता गया। वैसे वैसे प्रगति और तन्नु के माथे पर चिंता की लकीर आ गईं लेकिन अंत में खुशी की ख़बर ये मिला राघव बे रोजगार नहीं रहा। पहले विपदा और बाद में खुशी की ख़बर सुन के प्रगति या तन्नु में से कोई कुछ बोलती उससे पहले ही सार्थक बीच में टपक पड़ा और अलबेली अदा से बोल पडा "तेरे ट्यूबलाइट में रोशनी होता भी हैं या नहीं खाली पीली 5fit 6 Inch के धड़ पर कद्दू जैसा भार धोए जा रहा हैं।"


राघव, तन्नू प्रगति सर खुजाते हुए सोचने लगा। सार्थक ने ऐसा क्यों बोला फ़िर राघव fupppp हंसी रोकते हुए बोला "मेरे ट्यूब लाइट में full रोशनी with high voltage और मेरे सर को कद्दू क्यो कहा मेरा सर sharp brain 🧠 वाला हैं।"


सार्थक "छायां sharp brain 🧠 गोबर भरा हुआ हैं….. आंटी आप ही बताओ इसके सर में गोबर नहीं भरा होता तो क्या ये बाइक की टंकी न चेक करता। टंकी चेक करने के वजह full to tension round and round बाइक के फेरे ले रहा था। अब आप ही इससे पूछो बाइक के साथ फेरे लेकर आ गया। सृष्टि भाभी के साथ कौन फेरे लेगा।


सार्थक की बाते किसी को समझ ही नहीं आया सर के ऊपर से बाउंस गया तब तन्नु बोली " क्या सार्थक भईया आप भी गोल गोल घुमा रहे हों सीधे मुद्दे की बात बताओ न हुआ क्या था।


सार्थक "क्या यार बहना प्यारी इतनी दिमाग वाली होकर भी झल्ली जैसी बोल रहीं हैं तुझसे ये उम्मीद न थीं।"


झल्ली बोलते ही तन्नु खिसिया गई पैर फटकते हुए khunnnnnnn😤 " अपका न गला दबा दूंगी दुबारा झल्ली बोला तो।"


प्रगति मुंह पर हाथ रख हंसने लगीं फिर हंसी रोककर बोली "सार्थक तू तन्नु को झल्ली बोलना छोड़ और बिना आंडा टेड़ा अलबेली चल के सीधे जुबान बोल हुआ किया था।"


तन्नु "मम्मी आप भी unhuuuu….."


तन्नु पर ध्यान न देखकर सार्थक बोलना शुरू किया "आंटी ये अपका सुपुत्र बाइक में तेल नहीं था बिना चेक किए मन बना लिया बाइक खराब हों गया हैं और बाइक के चाकर काट रहा था। उसी वक्त मैं पहुंचा मैं उस ओर किसी काम से जा रहा था। इसको देखा बाइक के चाकर काट रहा हैं तब मैं रुका मेरे रुकते ही मेरा बाइक लेके 9 2 11 हों गया। बस इतना बोला बाइक खराब हों गया हैं सही करके घर ले जाना। मैंने चेक किया उसमें तेल नहीं था। पूरा ढाई किलोमीटर बाइक धकेल कर लाया। उसी का नतीजा मेरा ये अलबेली चल हैं।



सार्थक से कथा पुराण सुनाकर राघव उसके पास गया। सार्थक से गले मिला फिर बोला " sorry यार मेरी वजह से तेरा ये हल हुआ लेकिन मैं भी किया करता इतने दिनों बाद जॉब की ख़बर मिला और बीच रस्ते में बाइक बंद हों गया। टेंशन में दिमाग काम ही नहीं कर रहा था।


सार्थक "आंटी देखो इसे, मुझे sorry बोल रहा हैं अपने दोस्त को , मेरा मान कर रहा हैं इसे खूब धोऊ आप कुछ मत कहना। फिर रघाव को परे हटाते हुए बोला चल हट बाजू मुझे मिठाई खाने दे।"


सार्थक मिठाई का डिब्बा लिया और बड़े चाव से एक एक पिस मिठाई के, खाने लगा। खाए जा रहा था रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। रुकता न देखकर राघव बोला "अरे अरे सारा खा जाएगा क्या कुछ तो छोड़ दे यार।"


सार्थक मुंह में एक टुकड़ा मिठाई का डालकर बोला "ये सारा मिठाई मेरा हैं मेरे ही करण ये मिठाई आया हैं। तूने ज्यादा कुछ बोला तो अभी जाकर मिठाई के दुकान में बैठ जाऊंगा और सारा मिठाई खा जाऊंगा फिर भरते रहना लब्बा चौड़ा बिल।"


तन्नु "haunnnn भईया आप इतना सार मिठाई खां लेंगे आप का पेट तो ittuuuu सु है।


तन्नु का बोलने का स्टाइल निराला था। फ़िर हुआ वहीं जो हर बार होता है हंसी और ठहाके खैर ठहके थमी तब सार्थक बोला "बहना प्यारी दोस्त के नौकरी मिलने की खुशी में मेरा ittuuuu सा पेट फुलकर बहुत बडा हों गया अब तो मैं दो चार दुकान की सारी मिठाई खां सकता हैं।"


तभी राघव का फोन बजा राघव साइड में जाकर बात करने लगा। कुछ देर बात करने के बाद राघव जब लौटा तब तक सार्थक सारी मिठाई खाकर जा चुका था। तन्नु कमरे में चला गया था। कोई नही था सिर्फ प्रगति बैठी थीं तो प्रगति को बोला मां मैं बाहर जा रहा हु कुछ काम से तब प्रगति बोली कहा जा रहा हैं।


राघव "मां सृष्टि से मिलने जा रहा हूं।"


प्रगति "ओ तो जॉब मिलने की खुशी बहु के साथ भी बाटने जा रहे हों sahiiiii haiiiii, sahiiii haiiii।"


राघव "मां जिसकी वजह से खुशी मिला हैं उसके साथ खुशी बांटना तो बनता हैं। मेरे जीवन में आने वाली सभी सुखद पालो में आप और तन्नु की तरह सृष्टि भी बराबर हकदार हैं। मैं उसका हक कैसे मर सकता हूं।"


प्रगति "मेरा बेटा कितना जिम्मेदार हैं मुझसे बेहतर कौन जान सकता हैं। इसलिए तू जल्दी जा वहां मेरी बहू वेट कर रही होगी और जल्दी आना नहीं तो तेरा बाप रौद्र रूप धारण कर लेगा।"


राघव हां में मुंडी हिलाकर बाहर आता हैं फिर एक कॉल करता हैं कुछ देर बात करता हैं फिर बाइक लेकर चल देता। 15-20 मिनट बाइक चलाने के बाद एक घर के सामने रुक कर हॉर्न देता हैं। कुछ देर बाद फिर हॉर्न देता। लेकिन कोई बहार नहीं आता। तब बार बार हॉर्न देता हैं। तभी सृष्टि बाहर आती और कहती हैं " क्या हुआ बार बार हॉर्न दे रहे हों। थोडा वेट नहीं कर सकते।


बाइक से उतरकर राघव सृष्टि पास जाते हुए बोला "सृष्टि खुशी ही इतनी बड़ी हैं मैं वेट नहीं कर पा रहा था। इसलिए हॉर्न दे रहा था।"


राघव जाकर सृष्टि को गले से लगा लिया ओर बोला " thank you सृष्टि"


सृष्टि राघव को अलग कर धक्का देकर दुर करते हुए बोली "मुझे thunk you बोल रहे हों जाओ मुझे तुमसे बात ही नहीं करनी।"


ये बोली और मुड़कर अंदर जाने लगीं तभी। राघव ने हाथ पकड़ लिया और खीच कर खुद से चिपका लिया फिर सृष्टि के कमर को दोनों, हाथों के घेरे में ले लिया और बोला "क्यों न बोलू thank You तुम्हारा किया हुआ सभी काम thunk You बोलने वाला है फ़िर भी तुम्हे बुरा लगा है तो sorryyyy srishtiiiiii।


राघव के पकड़ से निकलने की भरसक प्रयास करते हुए "छोड़े मुझे न मुझे तुमसे बात करनी हैं न ही मुझे तुम्हारा sorry चाहिए।"


सृष्टि हाथ घुमा कर पिछे लिया फिर राघव के हाथ पर चिकुटी कटा राघव "aahaaaaa जंगली बिल्ली नाखून कितने बड़े बड़े हैं।"


राघव के बाजू में थापड़ मरते हुए बोला "मैं जंगली बिल्ली हूॅं तो तुम जंगली बिल्ला।"


राघव "सही कहा जंगली बिल्ला ही जंगली बिल्ली को सम्भाल सकता हैं।"


सृष्टि हल्की सी मुस्कुराई फिर दिखवाती गुस्से से बोली "तुमसे तो बात करना ही बेकार हैं।"


ये खाकर सृष्टि मुड़ गई राघव घुटने पर बैठा और कान पकड़ बोला "sorryyy sorryyyy sorryyyy आगे से नहीं बोलूंगा।


राघव की और पलटी घुटनो पर बैठा देखकर सृष्टि बोली "उठो सरे कपड़े गंदे हो गए गंदे कही के"


राघव "कपड़े गंदे होता है तो होने दो जब तक माफ नहीं करोगे ऐसे ही घुटनों पर रहूंगा।


सृष्टि " अच्छा बाबा माफ किया अब उठो, ध्यान रखना दुबारा thank You बोला तो माफ नही करूंगी।"


राघव खड़ा हुआ घुटना झाड़ते हुए बोला "gf thunk you सुनने के लिए मरी जाती हैं, न जाने तुम कैसी gf हों thunk you बोलते ही भड़क जाती हों।"


गाल खींचते हुई सृष्टि "ओ मेरे आंशिक हम थोडा दूजे किस्म के हैं।"


राघव "वो तो तुम हों ही अब जल्दी बैठो देर हों रहा हैं।


सृष्टि " अरे जाना कहा हैं और क्यों जाना हैं।"


राघव "पहली जॉब सेलीब्रेट करने, पहुंच कर ख़ुद ही देख लेना।"


सृष्टि "वो तो तुमने फोन पर ही बता दिया फिर सेलीब्रेट क्यों करना।"


राघव "तुम बैठ रहीं हों या फ़िर घुटनों पर बैठू।"


सृष्टि "न न बैठ रहीं हूं।"



सृष्टि बैठ गईं फ़िर दोनों आशिक सेलीब्रेट करने चाल दिया। कहा जा रहे हैं अगले अपडेट में जानेंगे। आज के लिए इतना ही सांस रहीं तो फिर मिलेंगे।
Nice update
 

Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
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Update - 6



सृष्टि के बाईक पर बैठते ही राघव बाईक चला दिया। सृष्टि एक तरफ पैर करके बैठी थी। जो राघव को अच्छा नहीं लग रहा था। इसलिए कुछ दूर बाईक चलाने के बाद बाइक रोक सृष्टि को दोनों तरफ पैर रख कर बैठने को कहता हैं। सृष्टि एक मस्त स्माइल 🤗 देकर बैठ जाती हैं। सृष्टि राघव के कंधे को पकड़ कर बैठी थी। राघव हाथ कंधे से हटाकर निचे कर देता हैं। सृष्टि फिर कंधे पर रखता हैं। राघव फिर हटा देता हैं बार बार ऐसा करने पर सृष्टि राघव के मंशा को समझकर दोनों हाथ राधव के बागलो से होते हुए ले जाकर छीने को कसकर पकड़ लेती हैं और राधव से चिपककर बैठ जाती हैं। जिससे राघव का तन गुदगुदा उठता हैं। राघव गुदगुदाती अहसास में खोने लगता हैं। जिससे बाइक का संतुलन बिगड़ने लगता हैं। तब सृष्टि के चीखने पर राघव बाईक को संतुलित करता हैं। तब सृष्टि राघव को दो तीन थप्पड उसके कंधे पर मरती हैं और फ़िर से पकड़ कर बैठ जाती हैं। राधव शहर के बाहर की ओर बाईक दौड़ाए जाता हैं। कुछ दूर ओर बाइक चलाने के बाद राघव एक कैफे कम रेस्टोरेंट के सामने बाईक को रोकता हैं। सृष्टि इस कैफे को देखकर हर्षित हो जाती हैं और मंद मंद मुस्कान😙 के साथ राधव को देखती हैं तो कभी कैफे को देखती हैं। हर्षित भाव से कैफे को देखते देखकर राघव बोलता हैं " ऐसे ही देखते रहोगे या अदंर भी चलोगे।"

राधव सृष्टि को साथ लेकर अदंर जाता हैं। कॉर्नर की एक टेबल पर बैठ जाता हैं फिर राधव मेनू कार्ड सृष्टि को देते हुए कहता हैं "जो तुम्हे पसंद हों ऑर्डर कर दो।

सृष्टि "यहां का लवर कॉफी सबसे मशहूर हैं क्यो न हम उस कॉफी को पीकर सेलीब्रेट करे।"

राधव " तुम्हें अब भी याद हैं जब की हम कितने दिनों बाद यहां आए हैं।"

सृष्टि "इस जगह को मैं कैसे भूल सकती हूं। यहां बिताया हुआ पल मेरे जीवन के बेहतरीन पालो में से एक हैं। न ही मैं उस दिन को, न ही उस डेट को कभी भूल सकती हूं। जब तुमने मुझे यहां बुलबाकर खचाखच भरी भीड़ के सामने प्रपोज किया था। मुझे ये अहसास कराया था। इस दुनिया में कोई हैं जो भीड़ में भी कभी तुम्हारा हाथ नहीं छोड़ेगा। तुमने इस अनाथ का हाथ थामा था। ये वादा भी किया था मुझे एक भरा पूरा परिवार दोगे जो सिर्फ़ मेरा होगा । जिसमें एक स्नेह और ममता को निछावर करने वाली मां होगी। एक बाप होगा जिसके डांट में संस्कारो वाला प्यार होगा। एक नंद जैसी बहन होगी। जिसकी कमी मुझे हमेशा खालती थी। लेकिन उस दिन के बाद यह कमी भी तुमने भर दिया। तुम ही बताओ मैं उस दिन को उस पल को कैसे भूल सकती हु। जो मेरे जीवन में एक नया सवेरा लेकर आई। एक नई उम्मीद को मेरे अदंर जन्म दिया और उसी उम्मीद को मैं थोडा ही सही पल पल जीती आ रही हूं। आज इस जगह पर वापस लाकर तुमने मुझे उस पल का उस दिन का फिर से अहसास करा दिया। मैं जिन शब्दों में तुम्हारा शुक्रिया अदा करू वो शब्द भी काम होंगे।😰

कहते हुए सृष्टि रो दिया एक एक शब्द उसके अंतरात्मा से निकाल रहीं थीं। उसके कहे एक एक शब्द उसके अनाथ होने की दर्द को बयां कर रही थीं। राघव जो हमेशा सृष्टि की आंखो में निश्छल भाव और लबों पर लुभावनी मुस्कान देखता था। आज उसे सिर्फ दर्द और दर्द के अलावा कुछ नहीं दिखाई दे रहा था। जहां उसे अपने लिए अपर प्यार दिखता था आज उसे उम्मीद दिख रहा था। जैसे उसकी आंखे कह रहीं हों मुझे उम्मीद हैं। तुम मुझे इस बेरहम और बेदर्द दुनिया में कभी अकेले नहीं छोड़ोगे। मेरे निश्छल प्रेम को निराशा में बदलने नहीं दोगे। मेरे प्यार का सही मोल दोगे जो मैंने तुमसे किया।

सृष्टि फफक फफक कर रो रहीं थीं आसपास बैठें लोग सिर्फ़ उन दोनों को ही देख रहे थे। लेकिन राघव का ध्यान सिर्फ सृष्टि पर था। सृष्टि को ऐसे रोते हुए देखकर राधव का दिल भी रो दिया। राधव उठाकर सृष्टि के पास गया और बोला "सृष्टि मत रो मैं हु तुम्हारे साथ तुम्हे कभी अकेला छोड़ कर नहीं जाउंगा। मैं किसी की उम्मीद न पुरी करू लेकिन तुम्हारे उम्मीद को कभी टूटने नहीं दुंगा। मत रो सृष्टि देखो मेरे आंखे से भी आंसू निकाल रहे हैं। तुम कहती हों न तुम मेरे बहते आंसू नहीं देख पाती हों देखो आज सिर्फ तुम्हारे लिए मेरे आंसू बह रहे हैं। देखो न सृष्टि।"😭


सृष्टि ने आंसू को पोछा लेकिन ये आंसू न बहने से कहा मानने वाले थे फिर से बह निकला, सृष्टि ने ओझल दृष्टी से राधव की और देखा। उठाकर राधव से लिपट गई और रोते हुए बोली "राधव तुम कभी मुझे छोड़कर तो नहीं जाओगे। मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी। तभी भीड़ में से किसी ने कहा "अरे बोल दे भाई जहां रिश्ते पल भर में टूट जाते हैं। सुबह प्यार की आस जागती हैं और शाम को आस टूट जाती हैं। वहा ये लडक़ी तुझसे उम्मीद लगाएं तुझसे सिर्फ प्यार मांग रहीं हैं। हां बोल दे, बोल दे हां।

बोलने वाला शख्स सृष्टि के पीठ की ओर था। इसलिए सृष्टि देख नहीं पाई लेकिन राधव ने देख लिया था। शख्स का सिर्फ आंखे ही दिख रहा था। बाकी चेहरा नकाब से ढका हुआ था। राघव उसकी और देख रहा था। अपनी ओर देखते देखकर शख्स जल्दी से बाहर निकल गया जब तक सृष्टि पलट कर उसको देखती तब तक वह शख्स जा चूका था। तब राघव सृष्टि को अपनी और घुमा कर उसकी आंखो में देखकर कहता हैं "सृष्टि मैं तुम्हें कभी छोड़कर नही जाऊंगा न ही तुम्हारी उम्मीद को कभी टूटने दूंगा ये वादा हैं मेरा।"

राघव के कहते ही कैफे तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता हैं कोई सिटी बजता हैं तो कोई हुर्रे हुर्रे की हूटिंग करता हैं। वह मौजुद लोग दोनों प्रेमी जोड़े को बधाई देते हैं ताली बजाते हैं और हूटिंग भी करते हैं। कुछ वक्त में सब शांत होकर बैठ जाते हैं। सृष्टि और राघव दोनों एक दुसरे के आंसू पूछते हैं और अपनी अपनी जगह बैठ जाते हैं। तब सृष्टि कहती हैं "राधव कुछ याद आया उस दिन भी तुम्हारे प्रपोज करने पर लोगों ने ऐसे ही तालियां बजाईं थी, हुटिग किया था, सिटी बजाई थी।"

राधव "मुझे सब याद हैं सृष्टि जब तुम्हें प्रपोज किया था। वो दिन साल का अखरी था तुमने कुछ वक्त लिया था मेरा प्रपोजल एक्सेप्ट करने में, तुम्हारे एक्सेप्ट करने के लामशम दो घंटे बाद नए साल का वेलकम किया गया था। हम दोनों ने साथ में लवर की तरह नए साल सेलीब्रेट किया था। नए साल की शुरुवात के साथ हम दोनों ने एक नए सफर की शुरवात किया था जो आज तक जारी हैं और आगे भी चलता रहेगा। कुछ दिन बाद मेरा एक और सफर शुरू होने वाला हैं जो मुझे मेरे मुकाम तक पहुंचाएगा। इसलिए मैं तुम्हें आज यह लाया हू। जॉब मिलने की खुशी तुम्हारे साथ सेलिब्रेट कर मुकाम तक पहुंचने का जो रास्ता मैं तय करना चहता हूं उसमे तुम भी मेरे साथ रहो।

सृष्टि "सच्ची में"

राधव "हां सृष्टि यह सफर मैं अकेले तय नहीं कर सकता जो मुझे मेरे सपनों की मंजिल तक पहुंचाएगा जिसका पहला कदम रखने में तुमने ही मेरी मदद की, तुम्हारी वजह से ही मुझे जॉब मिला हैं। मन तो कह रहा है तुम्हे बहुत सारा थैंक you कहूं लेकिन नहीं कहूंगा क्योंकि तुम मुंह फुला लोगी।

सृष्टि "thank You कहना चाहते हो, पर मुझे नहीं इस thank you का हकदार कोई और हैं। तुम्हें उसे कहना चाहिए।

राधव कुछ सोचकर "कौन वो रिसेप्शन वाली जिससे तुम्हे बात कराया था।"

सृष्टि "नहीं रे बाबा ! वो तो एक अनजान शख्स है

राघव "अनजान शख्स ये कैसा नाम हैं।"😄

सृष्टि "ये नाम नहीं ये उसका पहचान हैं।"😏

राघव "ये कैसा पहचान अनजान शख्स"🤪

सृष्टि "तुम मेरी खिंचाई कर रहें हों। करों खिचाई और सेलिब्रेशन मैं चाली।"😡

सृष्टि उठाकर जाने लगीं, राघव उसे पकड़ कर बैठाते हुए बोला "अजीब gf हों मजाक भी नहीं कर सकता। थोडा सा मजाक किया तो बुरा मान गई।

सृष्टि "तुम मजाक कहा कर रहे थे तुम तो मेरी खिंचाई कर रहें थे।😠

राघव हाथ जोड़कर "जैसा तुम कहो मोहतरमा।"

सृष्टि "तुम्हारा सही हैं कुछ भी बोल दो फिर हाथ जोड़कर कन्नी काट लो।"

राघव " लग रहा हैं। तुम आज लड़ाई करने के फूल मुड़ में कमर कस लिया हैं। तुम्हारे मन में ऐसा कुछ हैं तो बता दो।

सृष्टि "हां आज मैं लड़ाई के फूल मुड़ में हूं और तुम्हारा ये कद्दू जैसा सर फोड़ना चहती हूं।:bat1:

राघव उठाकर सृष्टि के पास गया। मेज से एक गिलास उठाकर सृष्टि की ओर बडकर अपना सर आगे कर दिया और बोला "लो मैडम ये कद्दू हाजिर हैं शवख से फोड़ों काटो जो मन हो वो करों।"

सृष्टि गिलास परे हटकर राघव के सर को चूम लिया फिर राघव को बैठने के लिए कहा। बैठते ही राघव बोला " सृष्टि ये किया था फोड़ने के वजह चूम लिया कुछ समझ नहीं पाया।"😉

सृष्टि "तुमने अभी अभी तो कह था जो मन आए वो करों। मेरा मान किया इस कद्दू को न फोड़कर चूम लूं तो चूम लिया।"🤪

राघव "मन बदल कर अच्छा किया नहीं तो कद्दू फूटते ही यहां भाग दौड़ मच जाता।"😁

राघव की बात सुनाकर सृष्टि हंस दिया। संग संग राघव भी हंसने लगा। तभी एक वेटर ऑर्डर लेने आया। सृष्टि ने ऑर्डर दिया फिर वेटर चला गया। जब तक ऑर्डर नहीं आया तब तक दोनों तरह तरह की बाते करते रहे। एक वेटर आकार उन्हें उनका कॉफी दे गया। कॉफी पीते हुए राघव बोला "सृष्टि तुमने उस अनजान शख्स के बरे में कुछ नहीं बताए। उसका पता ठिकाना जानते हों तो बता दो उससे मिलकर उसे भी thank You बोल दू।"

सृष्टि "उसका पता ठिकाना मालूम होता तो मैं उसे अनजान शख्स क्यों कहती। मैं तो यह भी नहीं जानती वो दिखता कैसा हैं।"

राघव "अजीब हों तुम न जान न पहचान फिर भी तुम कहती हों मैं उसे thank You बोलूं अब तुम ही बोलों उसे thank you बोलूं तो कैसे बोलूं।"🤔

सृष्टि "thank you कैसे बोलोगे ये तुम्हारा कम हैं। मेरा काम बताना था सो बता दिया अब तुम सोचो क्या करना हैं और कैसे करना हैं।

राघव "ये भी एक झमेला हैं अब उस शख्स को ढूंढो जिसकी कोई पहचान नहीं, गौर करने वाली बात ये हैं जिसे न हम जानते हैं न पहचानते हैं लेकिन वह कैसे जनता हैं मुझे जॉब चाहिए मैं जॉब की खोज में हूं।"

सृष्टि "कहा तो तुमने ठीक हैं न जान न पहचान फिर भी वो जॉब की ख़बर देता हैं और कहता हैं मैं सिफारिश कर दुंगा तुम अपने bf Ko भेज देना।"

सिफारिश की बात सुनाकर राघव चौक गया और बोला "क्या कहा रहीं हों कहीं ये कोई साजिश तो नहीं हैं। कहीं मुझे किसी गलत काम में फंसना तो नहीं चहता हैं।"

सृष्टि "तुम्हें कोई क्यों फंसना चाहेगा। तुम्हारा किसी के साथ कोई दुश्मनी थोड़ी न हैं।"

राघव "दुश्मनी नहीं हैं लेकिन एक बात सोचो बिना कारण कोई अनजान मेरे लिए जॉब खोजता हैं तुम्हारे जरिए मुझ तक ख़बर पहुंचता हैं। सृष्टि बिना कारण कोई किसी की मदद नहीं करता वह ये अनजान शख्स मेरी मदद कर रहा हैं। लेकिन एक बात गौर करने की हैं उसने कैसे जाना मुझे जॉब की जरूरत हैं।"

सृष्टि "मैं नहीं जानती वो अनजान शख्स क्यों तुम्हारा मदद कर रहा हैं इसके पीछे मकसद किया हैं लेकिन ये बता सकती हु उसे कैसे पता चला अभी तीन चार दिन पहले मेरे रूम के पास वाले पार्क में हम दोनों मिले थे। बातों बातों में तुम्हारी जॉब की बात छिड़ी यह बात उस अनजान शख्स ने सुन लिया। तुम्हारे जाने के बाद वह शख्स मेरे पास आया और जॉब कहा मिल सकता हैं उसका एड्रेस दिया और तुम्हें वह भेजने को कहा। लेकिन मुझे उसकी बातों पर भरोसा नहीं हुआ। जब मैंने एड्रेस को ध्यान से देखा तो जाना वह मेरी सहेली साक्षी काम करती हैं। तब मैंने उसे फोन किया उसने बताया वह कोई जॉब खाली नहीं हैं तब मैंने उससे रिक्वेस्ट किया बहुत मनाया तब जाकर उसने कहा मैं तुम्हें वह भेज दूं। वो अपने बॉस से बात कर लेगी तब जाकर मैंने तुम्हें वह का पता दिया।

राघव "तुमने भी मेरी सिफारिश की , ये करके तुमने जो किया उसके लिए मैं जो बोलना चहता हूं। उसे सुनाकर तुम नाराज हों जाओगी। इसलिए नहीं बोल रहा हूं। लेकिन ये अनजान शख्स मेरे लिए अबूझ पहेली जैसी बनता जा रहा हैं न जाने उसके मन में किया हैं न जाने क्यो वो मेरी मदद कर रहा हैं। कुछ समझ नहीं पा रहा हूं। पहले जॉब नहीं थी तो न मिलने की टेंशन थी अब मिल गई तो क्यों मिली ये टेंशन बना हुआ हैं।

सृष्टि "जॉब करते समय ध्यान से करना कुछ भी गलत लगे तो जॉब छोड़ देना। जॉब दूसरी मिल जाएगी लेकिन तुम्हें कुछ हों……

राघव "चुप बिल्कुल चुप एक शब्द भी उटपटांग नहीं बोलना कुछ भी हो जाय सृष्टि तुमसे किया वादा निभाया बिना मैं अपनी सांसों को जबरदस्ती रोक कर रखूंगा ये कहकर मैंने अपनी सृष्टि से किया वादा अभी तक नहीं निभाया इसलिए तेरे निकलने का टाइम नहीं हुआ हैं।"

सृष्टि "मुझे बोलने से रोकते हों और खुद बोलते हों ये कैसा इंसाफ हैं। तुम्हारे इंशाफ का तराजू डामाडोल हों रहा हैं। उसे सही वजन देकर बैलेंस करों नहीं तो……

राघव "आगे कुछ बोलने की जरूरत नहीं हैं। मैं समझ गया हूं तुम कहना किया चहते हों।"

सृष्टि "समझ गए हों तो अच्छी बात हैं नहीं तो मैं तुम्हें अच्छे से समझती। अच्छा सुनो अब हमें घर चलना चाहिए देर हों रहीं हैं।"

राघव "देर तो हों रहा हैं लेकिन जाने का मान नहीं कर रहा हैं। मन कर रहा हैं तुम्हारे साथ बैठ कर बातें करता जाऊ करता ही जाऊ यह बातों का सिलसिला कभी खत्म ही न करूं।"

सृष्टि "अच्छा तो जल्दी से शादी कर लो फिर इतनी बाते करूंगी इतनी बाते करूंगी तुम पाक कर पिलपिला हों जाओगे।"☺️

राघव "तुम्हारी बातों से नहीं पकूंगा क्योंकि तुम मुझे बीच बीच में अपने लवों की मिठास जो चखने दोगी। मेरा मान कर रहा हैं अभी तुम्हारे इन लबों का मिठास चख लू 😘

सृष्टि " चुप करों और चुप चाप बिना इधर उधार देखे बाहर जाओ मैं बिल पे करके आती हूं।"

बिल पे करने को लेकर दोनों में नोक झोंक होने लगता हैं लेकिन सृष्टि किसी भीं हाल में माने को तैयार नहीं होती वो तरह तरह के तर्क देती हैं थक हर कर राघव हां कर देता हैं। तब जाकर कहीं कैफे का बिल पे होता हैं फिर जैसे आए थे वैसे ही सृष्टि राघव से चिपक कर बैठ जाती हैं। एक बर फिर से राघव का तन मन झनझना उठता हैं लेकिन खुद को काबू कर सृष्टि के रूम तक पहुंचता हैं। सृष्टि को बाइक से उतर कर राघव सृष्टि को किस 😘 करता हैं जो थोडा लंबा चलता हैं फिर सृष्टि अदंर चाली जाती हैं और राघव वह से बाजार जाता हैं एक और डब्बा मिटाई का लेता हैं और घर को चाल देता हैं।



आज के लिए इतना ही आगे के अपडेट में जानेंगे राघव ने दुबारा मिठाई किस लिए लिया। अपडेट में मजा आए तो अपना सुंदर सुंदर रेवो से अलंकृत करना न भूलिएगा। सांस रहीं तो फिर मुलाकात होगी। सांसों का किया आती जाती हवा का झोंका हैं।
Anjan shakhs bina matlab ke to madat nahi kar raha hoga kuch to bat jaroor hogi...

Awesome update bhai..
 

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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93
एमोशनलात्मक ,, ह्रदयटचींग और मुस्कुराहटफुल वाला अपडेट

थक हार कर आखिर अटल जी खुद के प्रेम के भवर मे फस गये और अपना हाल ए दिल अपने बेटे से बया कर बैठे
वैसे अच्छा भी है कि दिवाली जैसे त्योहार मे सब खुश हो , ना सिर्फ़ उपर से बल्कि दिल से भी


मन्मोह्क , अट्रेक्तिव , आकर्षक , चुम्बकीय , मैगनेतीक वाला अपडेट

शुक्रिया जी

खुश तो होना ही था मौका ही ऐसा था बेटे को नौकरी मिला और दिवाली भी आ सर पर है
 

Dhaal Urph Pradeep

लाज बचाओ मोरी, लूट गया मैं बावरा
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Anjan shakhs bina matlab ke to madat nahi kar raha hoga kuch to bat jaroor hogi...

Awesome update bhai..

हा बात तो हैं बिना मतलब के वो मदद नहीं कर रहा हैं। उसका मतलब किया हैं यहां भी पता चल जाएगा।

बहुत बहुत शुक्रिया ऐसे ही साथ बने रहिएगा
 
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