प्रिय पाठकों सभी से निवेदन हैं अपडेट को पड़ने से पहले उपर दिए अनुनय विनय को पढ़ लिजिए
Update - 2
बदन का कोना कोना घिस घिस कर चमकाया गया। इतना घिसा गया बेदाग बदन पर लाल लाल निशान पड़ गया मानो राघव को अपने बदन से कोई खुन्नाश हो जिसे वो घिस घिस कर निकाल रहा हों। मल युद्ध खत्म हुआ भीगे बदन को तौलिए से सुखाकर राघव बाथरूम से निकला, अलमीरा से कपड़े निकाल पहना फिर शीशे के समने खड़े होकर हेयर ड्रायर से बालों को सुखाकर जेल लगाया फिर तरह तरह के हेयर स्टाइल बनाकर देखा संतुष्टि मिलते ही थोडा ओर टच ऑफ देकर डन कर दिया। डीईओ से खुद को महकाया और रूम फ्रेशनर से रूम को भी महका दिया जिससे लगे एक नए दिन की शुभारंभ हों चुका था लेकिन कितना शुभ होगा यह तो ऊपर बैठा जिसे लोग भगवान, गॉड, अल्ला, परवरदिगार ओर पाता नहीं किस किस नाम से बुलाते हैं। वहीं जनता हैं।
राघव रूम फ्रेशनर स्प्रे कर ही रहा था। तभी तन्नू ने आकार जोर जोर से दरवाजा पीटते हुए धावा बोल दिया। इतने जोर जोर से दरवाजा पीटे जाने से राघव बोला " कौन हो भाई दरवाजा अच्छा नहीं लगा रहा जो पीट पीट कर तोड़ने पर तुली हों। एक मिनट रुको मैं आया।"
तन्नु " भईया जल्दी दरवाजा खोलो सुनामी आया। आप बह जाओगे।"
सुनामी सुनते ही अच्छे अच्छे पहलवान की गीली-पीली हों जाती हैं। राघव ठहरा साधारण इंसान, इसको डर और अचंभे ने ऐसा मर मार विचारे की दिमाग का फ्यूज ही उड़ गया। क्या करें समझ नहीं आया तो जाकर दरवाजा खोला, बाहर मुंडी निकलकर देखते हुए बोला " कहा आया सुनामी।"
तन्नु " ही ही ही …… भईया आपके कमरे में अपकी प्यारी बहनिया सुनामी बनकर आईं।"
एक गहरी श्वास लिया छीने पर हाथ रख राघव बोला " क्या यार तन्नु डरा दिया, मुझसे मिलने का तुझे कोई ओर तरीका नहीं सूझता।"
तन्नु " भईया आप जानते हों न जब भी मैं आपसे मिलने आती हूं,, मूझसे वेट नहीं होता इसलिए मैं तरह तरह के बहने बनाकर दरवाजा खुलवाती हूं।"
राघव "हां हां जनता हूं मेरी बहना प्यारी को, वो बहुत नटखट हैं। उसकी ये अदा मेरे दिन को सुहाना कर देता हैं।"
तन्नु " ही ही ही…. वो तो मैं हूं ही अब आप जल्दी चलो।"
राघव तन्नू का हाथ पकड़ चल देता जैसे ही दोनो डायनिंग हॉल में पहुंचे, वहां अटल जी बैठे प्रगति के साथ चाय पर चर्चा कर रहे थे। राघव को तन्नु के साथ आते देख टोंट करते हुए बोले "देखो तो ऐसे आ रहे हैं जैसे किसी रियासत का राजा हों। तनुश्री बेटा जिसका हाथ थामे दसी की तरह ला रहे हों ये निक्कमा किसी रियासत का राजा नहीं, डिग्री तो ले लिया जो इसके किसी काम का नहीं मेरे छीने पर मूंग डाले बैठा हैं और बोटी बोटी नोच रहा हैं।"
हो गई सुभारंभ दिल की खोली में अरमान लिए आया था चैन से बैठ कर दो रोटी खायेगा, रोटी तो मिली नहीं रोटी की जगह खाने को ताने मिला, हाथ झटककर छुड़ाया फिर चल दिया तन्नु तकती रह गई। तन्नु उसके पीछे जा ही रही थीं कि अटल जी बोले " कहा जा रहीं हों,जाने दो उसे वो इसी लायक हैं। तुम उसके पिछे गई तो अच्छा नहीं होगा। चुप चाप यहां बैठो और नाश्ता करों"
तन्नु बाप के आज्ञा का निरादर नहीं कर सकता था इसलिए मुंह लटकाएं आंखो में पानी लिए चुप चाप बैठ गई। हल्की नमी प्रगति के आंखो ने भी बाह दिया लेकिन अटल जी बिलकुल अटल रहे न दिल पसीजा न ही जुबान लड़खड़ाया। चाय का काफ मेज पर रख प्रगति से मुखातिब हुए " ऐसे न देखो दिल के झरोखे में छाले पड़ जायेंगे, जाकर तनुश्री को नाश्ता दो।
प्रगति क्या बोलती पतिव्रता नारी हैं साथ फेरो के साथ वचनों से बंधी, आंखो में आई नमी को पोछकर दर्द जो दिल में उठा उसे दबाकर चल दिया। किचन में जाकर प्रगति खुद को ओर न रोक पाई और सुबक सुबक कर रोने लगीं, रोना शायद विधाता ने इसके किस्मत में लिखकर भेजा। तभी तो अंचल में मुंह छुपाए बीना आवाज किए रो रहीं थीं। आने में देर लागी तो फिर से अटल जी की वाणी का तीर छूटा " कितना देर लगाओगी इतनी देर में तो बाघ एक्सप्रेस काठगोदाम से हावड़ा पहुंच जाता। तुम भी इस बेरोजगार की तरह अलसी हों जब तक दो चार डोज न मिले हाथ पांव नहीं चलता।"
तन्नु नजरे उठाकर देखी जो अब तक झुकी हुई थीं। बाप के हाव भाव समझना चाही लेकिन बाप तो पत्थर की मूरत, जिसे न हवा पानी न ही धूप नुकसान पहुंचा पाए फिर करना किया था आराम से नजरे झुका लीं। प्रगति एक प्लेट में जो कुछ भी बनया था लेकर आई, मेज पर तन्नु के सामने रख दिया। तन्नु का मन नहीं था बेमन से खाने लगी, बेमन का भाव देखकर अटल जी बोले "खाना हैं तो मन से खाओ, खाने की बेअदगी मुझे बर्दास्त नहीं, नहीं मन हैं तो थाली छोड़कर उठ जाओ"
तन्नु क्या करती बाप की बातों से पेट का कोना कोना भर गया था लेकिन उसे बाप की उम्मीद पे खारा जो उतरना था इसलिए न चाहते हुए भी मन लगाकर खाने लगीं तन्नु को खाता देखकर अटल जी बोले " साबास बेटी इस घर में तुम ही एक हों जो मेरी उम्मीद के पुल पर चलती हों, बाकी तो सब मेरे उम्मीद पर पानी फेर देते हैं"
प्रगति इस तरह का टोंट बर्दास्त नहीं कर पाई इसलिए किचन की ओर जानें लगीं तब अटल जी बोले " कहा जा रहीं हों कमरे से मेरी पोथी का पोटला ले आओ मुझे एक जजमान से मिलने जाना हैं।"
प्रगति चुपचाप घूमकर कमरे में गई पोथी का पोटला उठाया फिर लेकर अटल जी को दे दिया। अटल जी जाते हुए बोले " दिवाली आने वाली हैं अपने बेटे से कहना घर की सफाई ढंग से करे मुझे कही कोई कमी नहीं दिखना चाहिए"
इस बार प्रगति साहस की कुछ बूंदे इकट्ठा कर बोली " राघव को रहने दो एक काम वाली को बुलाकर सफाई करवा लूंगी।"
बस फिर किया था अटल जी अटल मुद्रा धारण किया फिर बोले " पैसे पेड़ पर नहीं उगते, कमाने में सर का पसीना पाव में आ जाता। किसी काम वाली को बुलाने की जरूरत नहीं, बेरोजगारी की हदें पार कर घर बैठा हैं उसी से करवाना एवज में उसे कुछ खर्चा मिल जाएगा।"
इसके बाद तो प्रगति के पास कहने को कुछ बचा ही नहीं था। शब्दों की तीर जो दिल को छलनी कर दे न जानें मां का दिल कितनी बार छलनी हुआ। छलनी होकर जार जार हो गई, फिर भी कुछ कह न पाई कई बार कोशिश किया हर बर मुंह की खानी पड़ी। क्योंकि अटल के अटल इरादे के सामने प्रगति न टिक पाई। अटल के जाते ही प्रगति दौड़ी, तन्नु खाने की थाली वैसे ही छोड़कर भागी दोनों पहुंचे जाकर राघव के कमरे, कमरे का दरवाजा खुला था राघव अदंर नही था। प्रगति और तन्नु एक दूसरे का मुंह ताके राघव गया तो गया कहा। राघव को न देखकर तन्नु रुवाशा होकर बोली " मम्मा भईया तो यह नहीं हैं कहा गए होंगे"
प्रगति को पता होता तो खुद न चाली जाती। तन्नु को सुनाकर प्रगति परेशान होकर बोली " पता नहीं कहा गई। इनको भी हमेशा चूल चढ़ी रहती हैं जो कहना हैं खाने के वक्त ही कहेंगे मेरे बेटे का जीना ही दुभर कर दिया हैं, न जानें किस जन्म का बदला ले रहे हैं।"
तन्नु " मम्मा बदला वादला छोड़ो चलो भईया को ढूंढते हैं।"
दोनों घर से निकाल पड़ी राघव को ढूंढने बहार आते ही देखा राघव की बाइक वहीं खड़ी थी। जिसे प्रगति ने पिछले बर्थ डे में गिफ्ट किया था। प्रगति झूठ बोलकर अटल से पैसे लेकर राघव के लिए खुद जाकर बाइक पसंद किया था। साथ में तन्नु भी गई थी। बाइक के आते ही अटल जी अटल मुद्रा धारण किया और बवाल मांचा दिया उस दिन राघव का बर्थ डे था प्रगति नहीं चहती थी राघव का यह दिन खराब हो इसलिए प्रगति काम करके पैसे चुकाने की बात कहीं तो यह बात अटल को अहम पर चोट जैसी लगीं। तब जाकर अटल के तेवर में कमी आई।
बाइक देखकर तन्नु बोली " मम्मा बाइक तो यहां खड़ी हैं इससे जन पड़ता, भईया पैदल ही गए हैं।
तब प्रगति बोली " जाकर मेरा मोबाइल लेकर आ"
तन्नु भागी अंदर। अब देखते हैं राघव कहा गया। राघव बाप की खारी खोटी सुनकर सीधा घर से बाहर निकला बाहर आते आते उसके मन को जो ठेस पहुंचा था वो नीर बनकर अविरल बह निकला, राघव नीर बहते हुए बाइक को एक नजर देखा फिर पैदल ही चल दिया। घर से कुछ ही दूरी पर एक मैदान हैं। राघव वहा जाकर बैठ गया, बाप के बातो से उसे इतना चोट पहुंचा था। जिसे शब्दों में बयां करना संभव नहीं था। राघव बीते दिनो को याद कर नीर बहाए जा रहा था। ऐसा नहीं की अटल हमेशा से राघव के साथ सौतेला व्यवहार करते थे। वो राघव से बहुत प्यार करते थे उनके व्यवहार में तब से परिवर्तन आने लगा जब राघव उनके इच्छा के विरुद्ध जाकर इलेक्ट्रिक इंजीनियर की पढ़ाई किया। राघव बैठे बैठें उन प्यार भरे पालो को याद करने लगा। यादों में इस कदर खोया था। उसे ध्यान ही नहीं रहा कोई उसके पास आकार खडा हुआ और उसे आवाज दे रहा था। आवाज देने वाले शख्स को प्रतिक्रिया न मिलने पर कंधा पकड़ हिलाया। दो तीन बार हिलाने पर राघव यादों की झरोखे से बाहर निकला पलटकर पिछे देखा। देखते ही राघव के लव जो अब तक भोजिल थे। खुला और उदास चहरे पर एक सुहानी मुस्कान आया फिर राघव बोला " सृष्टि तुम! कब आई ? कैसी हों?"
जी ये हैं राघव की सोनू मोनू बाबू सोना वाली गर्लफ्रेंड। ऐसा नहीं कहूंगा विश्व सुंदरी हैं। जरूरी तो नहीं सिर्फ विश्व सुंदरियों से प्रेम हों। हीरो अपना सुपर स्मार्ट लेकिन हीरोइन थोड़ी ढल हैं। नैन जिसके मद रस से भरी पीकर दीवाना हो जाइए बैरी बाबरी, गालों पे एक डिंपपल जो दिलकश चहरे को मन लुभावन का भाव दे। रस की भरमार होंटो के किया ही कहने। निचली होंठ के किनारे एक छोटा सा तिल दमकते चहरे के पहरेदारी में खडा मानो कह रहीं हो इधर न देखना नजरे उठा कर वरना पहरा लगा दूंगा नकाब का लबों पे रहती हैं हमेशा एक मीठी सी मुस्कान ये है अपनी हीरोइन की पहचान।
नाम सृष्टि बनर्जी हैं लेकिन इस धरा पर राघव के अलावा कोई ओर नहीं था अनाथ आलय में पली बड़ी हुई दोनों का प्रेम प्रसंग पिछले छ साल से चल रहा हैं दोनों एक फंक्शन मिले थे। राघव को उसके गालों पर पड़ने वाली डिम्पल और होटों के पहरेदारी में खड़ी तिल ने राघव के मन मोह लिया दोनों अलग अलग कॉलेज में पढ़े सृष्टि ने पोस्ट ग्रेजुएशन किया था और इस वक्त एक अच्छी जॉब करती हैं। राघव के बेरोजगार होने से उसे कोई मतलब नहीं क्योंकि दोनों के प्रेम डोर दिल से जुड़े हैं न की जिस्म और परिस्थिती से जुड़ा हैं।
सृष्टि लबों पे मुस्कान लिए बोली " मैं तो अभी अभी आई हूं, तुम किस सोच में गुम थे कितनी आवाज दी सुना ही नहीं।"
राघव हाथ पकड़ सृष्टि को पास बिठाया उसके कंधे पर सर रखा। सर रखते ही राघव को अपर शांति की अनुभूति हुआ। शायद इसलिए कहते हैं जीवन में सच्चा प्रेम का होना बहुत जरूरी हैं। जो शांति सकून एक सच्चा प्रेमी या प्रेमिका दे सकता/ सकती वो ढोंगी प्रेमी नही दे सकता। प्रेम की अनुभूति अगर सच्चा हो तो दोनों प्रेमी खींचा चला आता। चाहे यह लोक हों या प्रलोक इसलिए तो विधाता ने मूलवान उपहार स्वरूप प्रेम का वरदान दिया । लेकिन यह वरदान हमेशा अभिशाप बनकर रह क्योंकि समाज के कायदे कानून प्रेम को तिरस्कार की दृष्टि से देखता, समझ नहीं आता ये कैसे कायदे कानून हैं जो सिर्फ़ प्रेमी जोड़े के लिए हैं। प्रेम की परिभाषा समझाने वाले की पूजा करते हैं लेकिन एक इंसान दूसरे इंसान से प्रेम करे तो इनके आंखो में खटकता हैं। जो प्रेमियों के राह में कटे बिछा देते, जो इनके लिए दुःख दाई , पीड़ा दाई ओर कष्टों से भरा होता हैं।
कुछ ज्यादा ही फ्लो में बह गया था और लम्बा चौड़ा प्रवचन लिख डाला क्या करूं प्रेम पुजारी हुं लेकिन जिसकी प्रेम की पूजा करना चाहता हूं वो अभी तक नहीं मिला लगता हैं इधर का रस्ता ही भुल गई और किसी दूसरे प्लानेट पर लैंड कर गई। खैर गौर तलब मुद्दा ये हैं खोजबीन जारी हैं मिल गई तो मस्त स्माइल के साथ फोटो पोस्ट कर दूंगा लाईक और कोमेट कर देना।
अपडेट यहीं खत्म करता हूं। दोनों प्रेमी जोड़े का वर्तालब next Update में दूंगा जानें से पहले इतना कहूंगा उंगली करके लाईक ओर कॉमेंट छोड़ जाना बरना…… बरना क्या करूंगा कुछ नहीं कर सकता अपकी उंगली अपका मोबाइल, अपका लैपटॉप उंगली करे या न करें अपकी इच्छा मेरी इच्छा से थोड़ी न चलेंगे।