“ये लो बात कर लो” अजय ने फोन जेब से निकाल कर शीतल की तरफ बढाते हुए कहा.
“अरे, मैं कैसे बात कर लूँ? कॉल आपके फोन पर आइ है. क्या बात करुँगी मैं?” शीतल ने काल रिसीव करने से इनकार कर दिया. तब तक पहली कॉल समाप्त हो गई थी. और फिर दुबारा कॉल आ गयी.
“ये लो, जो भी है उससे कह दो कि मेरी तबियत ठीक नहीं है” इस बार भी अजय ने कॉल रिसीव करने के बजाय फोन शीतल क़ि तरफ कर दिया. शीतल ने स्क्रीन पर नंबर देखा तो मालुम हुआ क़ि फोन उसके ससुर मलूकदास ने ही किया था. उसने कॉल रिसीव करके फोन कान से लगा लिया.
“हाँ बाबूजी बोलिए. मैं शीतल बोल रही हूँ.”
” बहू, अजय कहाँ है? वो फोन क्यों नहीं उठता?” सामने से मलूकदास की आवाज आयी,
“बाबूजी, अजय कह रहे है क़ि उनकी तबियत ठीक नहीं है. मुझे बोला कॉल रिसीव करने के लिए.”
“तबियत ठीक नहीं है! क्या हुआ उसे? ठीक है, में आ रहा हूँ. अभी. तुम अजय का ख्याल रखना” शीतल को सुझाव दे कर मलूकदास ने फोन कट कर दिया. शीतल फोन और मार्किट से लाइ शोपिंग का सामान अजय के हाथ में थमाते हुए बोली.
“ये लो, आपकी तबियत ठीक नहीं है, तो ये सामान पकड़ो, और कोमल को ले कर अपने कमरे में जाओ, में चाय बना कर लाती हूँ.”
“चलो पापा” कोमल अजय क़ि अंगुली पकड़ कर आगे चलने लगी, और अजय कोमल का अनुसरण करते हुए कोमल के पीछे चलने लगा. शीतल और शांति देवी फिर हैरान हो कर अजय को देखने लगी. क्योंकि हमेशा कोमल अजय क़ि अंगुली पकड़ कर उसके पीछे चलती थी, लेकिन आज कोमल अजय के आगे चलती थी जैसे घर में आये किसी अजनबी मेहमान को घर दिखाने के लिए आगे चल रही हो.
अजय अपने कमरे में जा कर सो गया. शीतल किचन में चली गयी, शान्ति देवी शीतल के पास जा कर अजय के बारे में पूछने लगी.
“बहू, अजय को हुआ क्या है? वो इस तरह खामोश क्यों है? तुम दोनों के बीच झगडा हो गया क्या?”
“नहीं मम्मीजी, हमारे बीच कोई झगड़ा नहीं हुआ है. में तो खुद नहीं समझ नहीं पा रही हूँ, क़ि आखिर हुआ क्या है. मैं शोपिंग के लिए मॉल में चली गयी, और अजय कार में ही बैठे थे. जब शोपिंग करके वापस आइ तो मैंने इस तरह ये बदलाव देखा. बात करना तो दूर नजरें तक नहीं मिलाते. कार में खुद चला कर लाई हूँ.” शीतल ने शान्ति देवी से बात करते हुए चाय बनायीं. तब तक मलूकदास आ गए. आते ही अजय के बारे ने सवाल किया. फिर शीतल और मलूकदास दोनों अजय के पास गए.
“अजय बेटे क्या हुआ?” मलूकदास ने अजय से सवाल किया. लेकिन अजय खामोश बैठा रहा. उसने मलूकदास के सवाल का कोई जवाब नहीं दिया.
“अजय, बाबूजी आपसे कुछ पूछ रहे है. आप जवाब क्यों नहीं देते? क्या तकलीफ है आपको, जी मिचला रहा है, बदन दर्द हो रहा है, या कुछ और, आप बताइए बाबूजी को.”
“बैचेनी हो रही है.” शीतल द्वारा पूछने पर अजय ने जवाब दिया.
“कोई बात नहीं, मैंने डॉक्टर को फोन कर दिया है. वो आता ही होगा. अजय मैंने तुमको कल एक फाइल दी थी. वो फाइल मुझे दो. मुझे उसकी जरुरत है.”
“कौनसी फाइल?” मलूकदास ने फाइल के बारे में पूछा तो अजय ने मलूकदास से ही सवाल पूछ लिया.
“कौनसी फाइल का क्या मतलब? आप भूल गए, लेकिन मुझे मालुम है. आपने वो फाइल ब्रिफकेस में रखि है” शीतल ने फाइल क़ि जानकारी देते हुए कहा.
“तो आप निकाल कर दे दीजिये” अजय ने शीतल से कहा.
“अरे मैं कैसे दे दूँ? ब्रीफकेस का लॉक नंबर आपके पास है” शीतल इस बार बिफरने लगी थी.
“बहू रहने दे, फाइल बाद में ले लेंगे.. अभी इसकी तबियत ठीक नहीं है. अजय बेटा, तुम आराम करो” मलूकदास शीतल के साथ बाहर जाने लगा, तब कोमल दादा से पापा क़ि शिकायत करते हुए बोली.
“दादाजी, पापा मुझसे बात क्यों नहीं करते? आप समझाइए न पापा को दादाजी.”
“कोमल बेटी, पापा क़ि तबियत ठीक नहीं है. जब तबियत ठीक हो जायेगी न, तब बात करेंगे. अभी चलो बाहर चलते है. पापा को आराम करने दो.” मलूकदास कोमल को ले कर बाहर आ गया. तब तक डॉक्टर सक्सेना भी आ गया. डॉक्टर ने अजय क़ि प्राथमिक जांच क़ि और एक पर्ची पर दवाई लिख कर पर्ची मलूकदास के हाथ में थमाते हुए बोला.
“सेठजी, मैंने जांच कर के दवाई लिख दी है. कल तक इससे आपको फर्क नजर आये तो ठीक है. नहीं तो अजय को अस्पताल में दाखिल करना होगा.” डॉक्टर मलूकदास को सलाह दे कर चला गया. मलूकदास ने एक दिन तक अजय के ठीक होने का इंतज़ार किया लेकिन अजय क़ि सेहत में कोई फर्क नजर नहीं आ रहा था. उसकी खामोशी ही उसकी सबसे बड़ी बिमारी थी.
अजय की सेहत में सुधार हुआ. मलूकदास अजय को ले कर अस्पताल पहुंचे शीतल और अजय की माँ शांति देवी भी साथ में थी. अजय को अस्पताल में दाखिल कराया गया.हर तरह की जांच होने के बाद जांच डॉक्टर ने बताया की अजय को किसी भी प्रकार की शारीरिक बिमारी नहीं है.
“ये क्या कह रहे है आप डॉक्टर? मेरा बेटा जीते जागते इंसान से खामोश बुत बन गया है और आप कह रहे है की इसे कोई बिमारी ही नहीं है. ये कैसे हो सकता है?” मलूकदास ने हैरान हो कर डॉक्टर से कहा.
“मैं आपकी बात समझ सकता हूँ सेठजी. लेकिन आप बिमारी के जो लक्ष्ण बता रहे है वो किसी शारीरिक बिमारी के नहीं बल्कि मानसिक बिमारी के है. जैसा की आपने बताया मरीज का खामोश और अकेले बैठे रहना, किसी से भी बात नहीं करना, ये लक्ष्ण मानसिक बिमारी के है. डॉक्टर ने अजय को मानसिक बिमारी होने की आशंका जाहिर की.
“लेकिन इसकी वजह क्या हो सकती है.? मलूकदास ने फिर सवाल किया.
“वजह कोई भी हो सकती है पूरा मालूम तो किसी मानसिक डॉक्टर से सलाह लेने पर ही होगा. लेकिन कोई बात जरुर है जो मरीज के दिलो दिमाग पर हावी है और इसे परेशान कर रही है. आप किसी मानसिक डॉक्टर से सलाह लीजिये. ये ही बेहतर रहेगा. अगर सही वक्त पर इलाज नहीं हुआ तो खतरनाक हो सकता है.”
डॉक्टर सक्सेना की सलाह मान कर मलूकदास मानसिक डॉक्टर से जा कर मिले. उस डॉक्टर ने जांच करके अगले दिन जांच रिपोर्ट देने की बात कही. उसके बाद मलूकदास अजय को ले कर घर आ गए. घर आते ही अजय अपने कमरे में जा कर सो गया.
“बाबूजी डॉक्टर ने कहा है की अजय के दिलो दिमाग पर कोई बात हावी हो गई है. जो इनको परेशान कर रही है. इस बात पर मुझे एक बात याद आ रही है. चार दिन पहले हमारी कंपनी में एक मजदूर काम करते हुए करंट लगने से मर गया था. जब हम शोपिंग के लिए गए थे तब अजय को फोन पर उसके मरने की खबर मिली और अजय ने कहा था की बेचारे गरीब मजदूर का बच्चा अनाथ हो गया”
“नहीं नहीं. ऐसे थोड़े ही हो सकता है. माना की मेरा बेटा दयालु है गरीबो का हितेषी है. लेकिन किसी गैर की मौत का सदमा अपने दिमाग पर क्यों लेगा.ये हो ही नहीं सकता” मलूकदास ने शीतल की बात से असहमत हो कर कहा.
“मैं इस बात का अंदाजा लगा रही हूँ इसलिए की उसके तुरंत बाद मैंने अजय में ये बदलाव देखा है.”
“नहीं शीतल बात तो कुछ और है. लेकिन है क्या ये मैं भी समझ नहीं पा रहा हूँ” मलूकदास ने फिर शीतल से असहमत हो कर कहा.
अजय की बिमारी की खबर जब उसकी बहिन आरती को लगी तो वह भी अपने के साथ भाई से मिलाने के लिए आई. शीतल के माता पिता भी आये. आरती घर में आते ही सीधी अजय के पास पहुंची.
कैसे हो भैया? कैसी है अब आपकी तबियत? आरती ने हमेशा की तरह चहकते हुए कहा. आरती को उमीद थी की उसे देखते ही अजय खुश होगा. उसे गले से लगा लेगा. क्योंकि आरती अजय की इकलौती बहिन थी. और अजय आरती को जान से भी ज्यादा प्यार करता था. उसकी हर ख़ुशी का ख्याल रखता था. लेकिन आज अजय की खामोशी ने आरती को मायूस ही किया. वह नज़ारे झुकाए बैठा रहा