शानदार मेगा अपडेट कमल जीबुच्ची,...इमरतिया भौजी
ब्याह शादी में दो तरह की औरतें बहुत गर्माती हैं, एक तो वो कुँवारी लड़कियां, कच्ची कलियाँ जिन्होंने कभी लंड घोंटा नहीं होता
और दूसरे वो थोड़ी बड़ी उम्र की औरतें जिन्होंने एक ज़माने में तो बहुत लंड घोंटा होता है लेकिन अब बहुत दिनों से नीचे सूखा पड़ा रहता है। तो वो छनछनाती भी रहती हैं और मजाक भी करने के मौके ढूंढती हैं।
पहली कैटगरी में बुच्ची जिसकी चूँचिया तो आनी शुरू हो गयीं थी लेकिन अभी तक किसी लौंडे का उस पे हाथ नहीं पड़ा था और
दूसरे में थीं सूरजु की माई, जिनके मजाक गाली से शुरू होक तुरंत देह पर आ जात्ते थे और वैसे भी ब्याह शादी में लड़के के घर में सबसे ज्यादा लड़के की बहिनिया और महतारी गरियाई जाती हैं।
गाने और रस्म रिवाज, पहले नीचे आंगन में फिर ऊपर कोहबर में चल रहे थे और बुच्ची लगतार अपने ममेरे भाई सूरजु से चिपकी, कभी कान में कुछ कहने के बहाने उसके कान की लर को जीभ की टिप से छू देती थी, कभी अपनी कच्ची अमिया से सूरजु की पीठ रगड़ देती।
इमरतिया देख रही थी, रस ले रही थी और बुच्ची को उकसा भी रही थी
लड़कियों, औरतों की बदमाशियों को देख देख के, कभी आँचल गिरा के, जुबना दिखा के, कभी जाने अनजाने में धक्के मार के, कभी चिकोटियां काट के, ....
सूरजु बाबू की हालत खराब थी और अब औजार लंगोट की कैद में भी नहीं थ। और इमरतिया भौजी ने जानबूझ के ऐसी नेकर छोटी सी बित्ते भर की पहनाई थी जिसमे से बित्ते भर का तना मोटा खूंटा फाड़ के बाहर सब को ललचा रहा था, कोई औरत या लड़की नहीं बची थी, जिसके ऊपर और नीचे वाले मुंह दोनों में पानी नहीं आ रहा था।
सूरजु पहलवान ने इतने दिनों से अपने को रोक के रखा था, लेकिन कल जब से इमरतिया भौजी ने उसे पिजंडे से बाहर निकाला, खूब मस्ती से उसे रगड़ा और ऊपर से बुच्ची, एक तो इमरतिया भौजी ने जिस तरह से बोला था, '
“हे अब कउनो लौडिया हो या औरत, ....चाहे बुच्ची हों या तोहार महतारी,.... सीधे जोबना पे नजर रखना और सोचना की सीधे मुट्ठी में लेकर दबा रहे हो मसल रहे हो,"
और दूसरे कल जब से मुठिया के झाड़ते हुए बोलीं,
" हे देवर आँख बंद,.... और सोचो की बुच्ची की दोनों कसी कसी फांको के बीच, पूरी ताकत से पेल रहे हो, ....अरे तोहार दुलहिनिया भी तो बुच्ची से थोड़िके बड़ी होगी, उसकी भी वैसी ही कसी कसी, एकदम चिपटी सटी फांक होगी, बुच्ची की तरह। "
और ऊपर से बुच्ची की बदमाशी, फिर सबेरे सबेरे इमरतिया भौजी, बुच्ची की फ्राक उठा के दरशन करा दीं, सच में एकदम चिपकी थी, खूब कसी और गोरी गोरी फूली फूली, देख के मन करने लगा, मिल जाए तो छोड़ू नहीं।
और इमरतिया भौजी कौन कम, जब माई भेजती थी बुलाने तो ऐसे देखती थी ललचा के बस खा जाएंगी, कभी आँचल गिरा के जोबना झलकाती कभी उससे कहती, " देवर गोदी में उठा लो " कभी पीछे से धक्का मार देती,
मन तो बहुत करता था लेकिन अखाड़े की कसम, पर अब एक तो गुरु जी उसके खुदे आजाद कर दिए जब उसकी शादी की बात चली, बोले, खूब खुश हो के, " जाओ अब जिंदगी के अखाड़े में नाम रोशन करो , वो भी तुम्हारी जिम्मेदारी है, एकलौते लड़के हो अब वो सब बंधन नहीं है बस मजे लो "
और माई भी रोज लुहाती थी, और उनकी एक बात टालने को तो वो सपने में भी नहीं सोच सकता, गुरु से भी ज्यादा, और वो खुद कल हंस के बोलीं
" इमरतिया भौजी की बात मानना अब कोहबर में, घरे बहरे तोहरे ऊपर इमरतिया क ही हुकुम चले, जैसे कहे वैसे रहो '।
और सच में मन तो उसका कब से कर रहा था, इमरतिया भौजी के साथ,
लेकिन बस हिम्मत नहीं पड़ रही थी, और अब,
ऊपर से बूआ और माई, उन लोगो का मजाक तो एकदम से ही,.... लेकिन आज तो सीधे उसको लगा के, बूआ माई क चिढ़ा रही थीं,
" हमरे भतीजा को जोबना दिखा के, अंचरा गिरा के ललचा रही हो "
और माई क आँचल एकदम से गिर गया, टाइट चोली, एकदम से नीचे तक कटी, पूरा गोर गोर बड़ा बड़ा, और खूब टाइट
और उनकी निगाह वहीँ अटक गयी, लेकिन बुआ की निगाह से कैसे बचती, खिलखिला के बोलीं,
" अरे का लुभा रहे हो, अरे अब लजाने क दिन खतम हो गया। यही पकड़ के हमर भैया,दबाय के मसल के चोदे थे हचक के तो पहली रात के इनके पेट में आ गए थे और तब से वैसे ही टनाटन है, मस्त गदराया, देख लो पकड़ के "
और अपनी भौजी को, माई को चिढ़ाया, " हे हमरे भतीजा का खूंटा देख के पनिया रही हो, ....तो ले लो अंदर तक "
और माई और, कौन पीछे हटने वाली, बोलीं " अरे हमरे मुन्ना क है , ...ले लुंगी और पूरा लुंगी। तोहार झांट काहें सुलगत है , तोहूँ को दिया दूंगी। ओकर बाप बियाहे के पहले से तोहें, अपनी बहिनिया के, पेलत रहे तो उहो, ….यहाँ का तो रिवाज है "
और पीछे से बुच्ची अपने कच्चे टिकोरे गड़ा रही थी, रगड़ रही थी।
सूरजु की हालत ख़राब थी ये सब सोच सोच के,.... और उसी समय दरवाजा खुला और हंसती बिहँसती इमरती भौजी और पीछे खाने की थाली लिए बुच्ची हाजिर।
" आज ये देंगी तुमको, मन भर के लेना, "
इमरतिया ने आँखे नचाते हुए, थाली पकडे बुच्ची की ओर इशारा करके सुरजू को छेड़ा, लेकिन जवाब झुक के जमीन पर थाली रखते हुए बुच्ची ने ही सीधे अपने ममेरे भाई की आँख में आँख डाल के दिया
" एकदम दूंगी, मन भर के दूंगी, और मेरा भाई है क्यों नहीं लेगा, बोलो भैया, "
लेकिन सुरजू की निगाहें तो उस दर्जा नौ वाली के छोट छोट जोबना पे टिकी थीं, जो टाइट फ्राक फाड़ रहा था।
अब सुरजू की नेकर और टाइट हो गयी। उसने खाने के लिए हाथ बढ़ाया, तो फिर जोर की डांट पड़ गयी, इमरतिया भौजी की
" मना किया था न हम ननद भौजाई के होते हुए अपने हाथ क इस्तेमाल नहीं करोगे, और लेकिन नहीं।। सामने इतने जबरदंग जोबन वाली लौंडिया देने को तैयार बैठी है, लेकिन नहीं "
बुच्ची जोर से मुस्करायी, सुरजू जोर से झेंपे। दोनों समझ रहे थे ' किस बात के लिए हाथ के इस्तेमाल ' की बात हो रही है। इमरतिया से बुच्ची बोली,
" अरे भौजी तोहार देवर ऐसे बुद्धू हैं, आपने उन्हें कुछ समझाया नहीं ठीक से। नयकी भौजी जो आएँगी दस बारह दिन में उनके सामने भी नाक कटायेंगे " और अपने हाथ से सुरजू को खिलाना शुरू किया,
" भैया, बड़ा सा मुंह खोल न "
" जैसा बुच्ची खोलेगी अपना नीचे वाला मुंह, तेरा लौंड़ा घोंटने के लिए, है न बुच्ची। अरे सीधे से नहीं खोलेगी तो मैं हूँ न और मंजू भाभी , बाकी भौजाइयां, जबरदस्ती खोलवाएंगी।" हँसते हुए इमरतिया बोली
बुच्ची और सुरजू थोड़ा झेंप गए लेकिन बुच्ची जो दो दिन पहले ऐसे मजाक का बुरा मान जाती थी अब धीरे धीरे बदल रही थी। बात बदल के सुरजू से बोली
" भैया ठीक से खाओ, थोड़ा ताकत वाकत बढ़ाओ वरना दस बारह दिन में नयकी भौजी आएँगी तो हमें ही बोलेंगी की अपने भैया को तैयार करके नहीं रखी "
" एकदम , देवर जी, नयी कच्ची कली के साथ बहुत ताकत लगती है, एकदम चिपकी फांक और नयी बछेड़ी हाथ पैर भी बहुत फेंकती है। लेकिन ये तोहार छिनार बहिनिया, ...हमरे आनेवाली देवरानी के लिए नहीं, अपने लिए कह रही है। बहुत उसकी चूत में चींटे काट रहे हैं, पनिया रही है। अरे छिनार भाई चोद, ....यह गाँव क तो कुल लड़की भाई चोद होती हैं तो तोहरो मन ललचा रहा है तो कोई नहीं बात नहीं। लेकिन समझ लो, रात में छत क ताला बंद हो जाता है और चाभी तोहरे इमरतिया भौजी के पास, हमार ये देवर अइसन हचक के फाड़ेंगे न , चूत क भोंसड़ा हो जाएगा, बियाहे के पहले।
बोल साफ़ साफ़ चुदवाना है, मुंह खोल के बोल न "
इमरतिया ने गियर आगे बढ़ाया और अब बात एकदम साफ़ साफ़ कह दी।
लेकिन बुच्ची सच में गरमाई थी, थाली लेकर निकलते हुए दरवाजे पे ठिठक गयी, बड़ी अदा से अपनी कजरारी आँखों से सुरजू भैया को देखा जैसे कह उन्ही से रही हो, बात चाहे जिससे कर रही हो और इमरतिया से रस घोलकर मीठे अंदाज में बोली,
" भौजी, आप बड़ी है, पहले आप नंबर लगवाइये, "
इमरतिया ख़ुशी से निहाल, बांछे खिल गयीं, छमिया सच में पेलवाने के लिए तैयार है, वो बुच्ची से बोली,
" अरे हमार ललमुनिया, चलो तो मान गयी न। और हमार बात तो मत करा, हम तो असली भौजी हैं, खड़े खड़े अपने देवर को पेल देंगे , ये तोहार भाई का चोदिहे हम्मे, हम इनको खड़े खड़े पेल देंगे। लेकिन हमरे बाद तोहें चुदवाना होगा, हमरे देवर से। पर भैया के तो सोने क थारी में जोबना परोस दी, खिआय दी , मुहँवा के साफ़ करी। "
" हम करब भौजी, तोहार असली नन्द हैं, सात जन्म क" खिलखिलाती बुच्ची बोली और झट से सूरजु भईया को पकड़ के कस के अपने होंठों को उनके होंठों पे रगड़ दिया।
पीछे से इमरतिया ने सूरजु के नेकर को खींचा, जैसे बटन दबाने से स्प्रिंग वाला चाक़ू बाहर आ जाता है, खूब टनटनाया, फनफनाया, बुच्ची की कलाई से भी मोटा, कड़ा एकदम लोहे की रॉड जैसा,
" पकड़ स्साली कस के, देख कितना मस्त है, हमरे देवर क लंड " इमरतिया हड़काते, फुसफुसाते उस दर्जा नौ वाली टीनेजर के कान में बोली और बुच्ची की मुट्ठी के ऊपर से पकड़ के जबरदस्ती पकड़ा दिया।
बेचारी कल की लौंडी की हालत खराब, कलेजा मुंह को आ गया, मुट्ठी में समा ही नहीं रहा था, वो छुड़ाने की कोशिश करती लेकिन इमरतिया ने कस के उसके हाथ को अपने हाथ से, भैय्या के लंड के ऊपर दबोच रखा था। वो पहले छुड़ाने की कोशिश करती रही, फिर धीरे धीरे भैया के लंड का मजा लेने लगी।
'अबे स्साली ये न सोच की जो मुट्ठी में नहीं समा रहा है, वो उस छेद में जिसमे कोशिश करके भी ऊँगली नहीं जाती, कैसे जाएगा। अरे तुझे बस टाँगे फैलानी है , आगे का काम मेरा देवर करेगा, हाँ चीखना चिल्लाना चाहे जितना, छत का ताला तो बंद ही रहेगा । "
एक बार फिर इमरतिया ने अपनी ननद के कान में बोला।
होंठ उसके अभी भी सूरजु के होंठों से चिपके थे और अब हिम्मत कर के सूरजु ने भी बुच्ची के होंठों को हलके हलके चूसना शुरू कर दिया।
लेकिन तभी नीचे से बुच्ची की सहेलियों की आवाज आयी और वो छुड़ाकर, हँसते खिलखिलाते कमरे से बाहर।
और इमरतिया भी साथ साथ लेकिन निकलने के पहले सूरजु को हिदायत देना नहीं भूली
" स्साले, का लौंडिया की तरह शर्मा रहे थे, सांझ होते ही मैं आउंगी बुकवा लगाने, आज खाना भी जल्दी हो जाएगा। यहीं छत पे नौ बजे से गाना बजाना होगा, तोहरी बहिन महतारी गरियाई जाएंगी। तो खाना आठ बजे और दो बात, पहली अब कउनो कपडा वपडा पहनने की जरूरत नहीं है, इसको तानी हवा लगने दो और ये नहीं की हम आये तो शर्मा के तोप ढांक के, और दूसरे बुच्ची जब खाना खिलाती है तो अपने गोद में बैठाओ, ओकर हाथ तो थाली पकडे में खिलाने रहेगा , बस फ्राक उठा के दोनों कच्चे टिकोरों का स्वाद लो, "
पर बात काट के सूरजु ने मन की बात कह दी, " पर भौजी, हमार मन तो तोहार, लेवे का,….. "
" आज सांझ को, आउंगी न बुकवा लगाने, चला तब तक सोय जा। "
इमरतिया का मन हर्षाय गया, कितने दिन से ये बड़का नाग लेने के चक्कर में थी और आज ये खुद,
वाह मान गए कोमलजी. मोहे रंग दे मे आपने जो शादी और प्यार दर्शाया था. पर उतनी मस्ती तो वहां भी नहीं थी. वार त्यौहार शादी ब्याह एक ही. जताने का अबदाज़ भी वही. पर किस्सा अलग अलग तो उसकी फीलिंग्स एकदम ही अलग.भाग १०६ - रीत रस्म और गाने
२६,८०,१७७
सुरजू सिंह की माई
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सरजू की निगाह बुच्ची की जाँघों के बीच चिपकी थी, बुच्ची छूटने के लिए छटपटा रही थी। एकदम चिपकी हुयी रस से भीगी मखमली फांके, गोरी गुलाबी, फांके फूली फूली,
लेकिन सुरजू को वहां देखते उसे भी न जाने कैसा कैसा लग रहा था।
और इमरतिया ने गीली लसलसी चासनी से डूबी फांको पर अपनी तर्जनी फिराई, उन्हें अलग करने की कोशिश की और सीधे सुरजू के होंठों पे
" अरे चख लो, खूब मीठ स्वाद है " बोल के बुच्ची का हाथ पकड़ के मुड़ गयी, और दरवाजा बंद करने के पहले दोनों से मुस्करा के बोली,
" अरे कोहबर क बात कोहबर में ही रह जाती है,... और वैसे भी छत पे रात में ताला बंद हो जाता है।
और सीढ़ी से धड़धड़ा के नीचे, बुच्ची का हाथ पकडे, बड़की ठकुराइन दो बार हाँक लगा चुकी थी। बहुत काम था आज दिन में,…
दिन शुरू हो गया था, आज से और मेहमान आने थे, रीत रस्म रिवाज भी शुरू होना था।
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" जा, अपने देवर के ले आवा, आज का काम शुरू होय, बहुत काम बचा है, अभी सुरजू का बूआ भी नहीं आयी " बार बार दरवाजे की ओर देखते,… सुरजू सिंह की माई इमरतिया से बोली।
आँगन में जमावड़ा लगना शुरू हो गया था औरतों, लड़कियों का।
बड़े सैय्यद की दुल्हिन, अभी डेढ़ साल पहले गौने उतरी थीं, सुरजू क असल भौजाई समझिये, ….और उनकी सास, ….
पश्चिम पट्टी क पंडिताइन भौजी, आधे दर्जन से ज्यादा सुरजू की माई की गाँव क देवरानी, जेठानी, गाँव क बहुएं , लड़किया, काम करने वाली,
आज अभी कोहबर लिखा जाना था, उसके पहले मंडप क पूजा, फिर मानर पूजा जाना था, उसके बाद,
और हर काम में इमरतिया और उसकी टोली वाली सब,
" हे चलो, जल्दी माई गुस्सा हो रही हैं, बूआ तोहार आने वाली हैं और ये सब क्या पहने हो, रस्म में ये सब नहीं "
और सुरजू के मना करते करते पैंट खींच के नीचे, और शर्ट खुद सुरजू ने उतार दी,….
" भौजी ये का, ,,,और दरवाजा भी खुला है "बेचारे सूरजु बोलते रह गए
लेकिन ऐसा जवान मर्द उघाड़े खड़ा हो तो जवान भौजाई क निगाह तो जहाँ पड़नी चाहिए वही पड़ी और इमरतिया खुश हो गयी । समझ गयी देवर सच में उसकी बात मानेंगे।
जैसे कल भौजी ने हुकुम दिया था, एकदम उसी तरह, लंड का टोपा एकदम खुला , लाल भभुका और भौजी कौन जो मौके का फायदा न उठाये। इमरतिया झुक के 'उससे ' बोली,
" सबेरे सबेरे दर्शन होगया बुच्ची की बुरिया का, है न एकदम मस्त। बड़ी मेहनत करनी पड़ेगी उसमे घुसने के लिए, खूब कसी है रसीली लेकिन मजा भी उतना ही आएगा, एकदम कच्ची कोरी में पेलने में, थोड़ी मेहनत, ….थोड़ी जबरदस्ती "
और इमरतिया ने अपनी हथेली में थूक लगा के दस पांच बार उसे आगे पीछे, और वो फनफनाने लगा। लेकिन तभी नीचे से ठकुराइन की आवाज आये, " अरे दूल्हा क लैके जल्दी आओ "
सुरजू को पहनने के लिए एक बिना बांह वाली बनियान और एक छोटी सी थोड़ी ढीली नेकर मिली।
'जल्दी पहनो, अब आज से यही, हर रस्म में, तेल हल्दी चुमावन;" वो बोली और नेकर उसने जान बूझ के ऐसी चुनी थी। अंदर कुछ पहनने का सवाल नहीं, तो जैसे ही टनटनायेगा, साफ़ साफ़ दिखाई देगा और हल्दी लगाते, भौजाई सब जब अंदर तक हल्दी लगाएंगी तो ढीली नेकर में हाथ डालने में आसानी होगी।
और निकलते समय भी दो चार बार कस के नेकर के ऊपर से ही मसल दिया। सीढ़ी से उतरते समय भी बस उसी खूंटे को पकड़ के और नतीजा ये हुआ की जैसे सुरजू आंगन में पहुंचे सब उनकी भौजाइयां सीधे ‘वहीँ’ देख के खुल के मुस्कराने लगी।
और उनकी माई भी मुस्करा रही थीं, अपने दुलारे को देख के,… और बुच्ची को हड़काया,
"हे चलो, अपने भैया को बैठाओ, चौकी पे और साथ में रहना,… छोट बहिन हो,... खाली खाली नेग लेने के लिए।"
इमरतिया और बुच्ची सुरजू के पीछे, एकदम सट के, कई बार भौजाइयां रस्म करते करते लड़के को जोर से धक्का दे देती हैं, नाउन और बहन का काम है सम्हालना।
आज सुरुजू क माई फूले नहीं समा रही थी।
ख़ुशी छलक रही थी, वैसे भी उस जमाने के हिसाब से भी सुरजू सिंह की माई की कम उम्र में शादी होगयी, साल भर में गौना।
सूरजु के बाबू से रहा नहीं जा रहा था, तो पहले रात ही, और नौ महीने में ही सूरजु बाहर आ गए। ३५-३६ की उमर होगी, लगती दो चार साल कम ही थीं। भरी भरी देह, खूब खायी पी, लेकिन न मोटापा न आलस। कोई काम करने वाली न आये तो खुद घर का सारा काम अकेले निपटा लेती थीं , गाय भैंस दूहने से झाड़ू पोंछा, रसोई। इसलिए देह भी काम करने वालियों की तरह खूब गठी, हाथ पकड़ ले तो नयी नयी बहुरिया नहीं छुड़ा पाती।
खूब गोरी, चेहरे पर लुनाई भरी थी, गजब का नमक था। चौड़ा माथा, सुतवा नाक, बड़ी बड़ी आँखे, भरे भरे होंठ, लेकिन जो जान मारते थे उनके देवर, नन्दोई के,…. वो थे उनके जोबन, सबसे गद्दर, और उतने ही कड़े। और उनको भी ये बात मालूम थी, सब ब्लाउज एकदम टाइट, आँचल के अंदर से भी कड़ाव उभार, झलकता रहता और दर्जिन को कहना नहीं पड़ता, उसे मालूम था की गला इतना कटेगा की बस जरा सा आँचल हटे और गोलाई गहराई सब दिख जाए, और छोटा इतना हो की नाभि के ऊपर भी बित्ते भर पेट दिखे।
और मजाक, छेड़ने के मामले में, गाने, गवनही के मामले में, अकेले आठ दस नंदों के पेटीकोट का नाड़ा खोल लेती थीं।
आज खुश होने की बात भी थी, एकलौते लड़के की शादी थी, उसके चौके बैठने जा रही थीं।
और लड़का भी ऐसा, माँ को कहना भी नहीं पड़ता था, बस इशारा काफी था।
कहीं से दंगल जीत के आता तो पहले मंदिर फिर सीधे माई के पास, और कुल इनाम माई के गोड़ में रख के बस उनका मुंह देखता।
बौरहा, एकदम लजाधुर, और काम में भी सब खेत बाड़ी यहाँ का भी, अपने ननिहाल का भी, इसलिए आज जितने गाँव के लोग, नाते रिश्तेदार जुटे थे, उतने ही सूरजु की माई के मायके के भी, और फिर बहु भी, पहली बार गाँव में पढ़ी लिखी बहु आ रही थी, नहीं तो चिट्ठी पत्री पढ़ लेती बहुत से बहुत,
इस रस्म में माँ को लड़के के साथ चौके बैठना होता है और माँ आलमोस्ट गोदी में लेके छोटे बच्चे की तरह,
तो जैसे सूरजु की माई ने उन्हें अपनी गोद में खींचा, वो बेचारे लजा गए और कस के डांट पड़ गयी,
" हे काहें को लजा रहे हो। ससुराल जाओगे तो सास गोदी में दुबका के प्यार दुलार करेगी तो खुद उचक के बैठ जाओगे, अरे हमरे लिए तो बच्चे ही हो, "
और सूरजु की माई का आँचल ढुलक गया, दोनों जबरदस्त गोलाइयाँ, छलक गयी। पता नहीं मारे बदमाशी के या ऐसे ही। लेकिन जोबन थे उनके जान मारु
गाँव की बहुये जोर जोर से हंसने लगी, एक उनको चिढ़ाते हुए बोली, " अरे जरा नीचे देखिये तो पता चल जाएगा की हमारा देवर बच्चा है,… की बड़ा हो गया,:"
वाकई 'बड़ा' था।
कनखियों से सूरजु की माई ने देखा था, लेकिन अब सीधे वहीँ, नेकर पे निगाह थी। अपने बाबू पे गया था बल्कि उनसे भी आगे, बित्ता भर से कम नहीं होगा और मोटा कितना, लेकिन बहुओं को जवाब देती, मुस्करा के बोलीं,
" हे नजर मत लगावा,… थू, “
और इमरतिया से बोलीं,
" आज ही राय नोन से नजर उतारना हमरे बेटवा की " और इमरतिया क्यों मौका छोड़ती वो बुच्चिया की ओर देख के चिढ़ाते बोलीं,
" तनी काजर ले के टीक देना अपने भैया का, …अच्छी तरह से "
शादी ब्याह में, ख़ास तौर से लड़के के सबसे ज्यादा गरियाई जाती हैं, और कौन लड़के की बहिन और महतारी। और लड़के के महतारी के पीछे पड़ती हैं, लड़के की मामी और बूआ, उनकी महतारी की भाभी और ननद।
तो सूरजु की एक मामी जो कल ही आगयी थीं, सूरजु के ननिहाल से, सूरजु की महतारी को चिढ़ाती बोलीं,
" अरे काहें लजा रही हैं, बचपन में तो बहुत पकड़ा होगा। अंदर हाथ डाल के,.. पकड़ के सहला के देख लीजिये "
सूरजु की माई मुस्करा के रह गयी, वो कुछ और सोच रही थीं, मुस्करा रही थीं, उनका दुलरुआ उनके समधन की बिटिया की का हाल करेगा पहली रात।
और करना भी चाहिए… उसकी महतारी की जिम्मेमदारी है समझा बुझा के भेजे अपनी बिटिया को।
रस्म शुरू हो गयी, ढोलक टनकने लगी, बीच बीच में गाँव की बड़ी औरतें, और इमरतिया भी रस्म में मदद कर रही थीं,
मान गए कोमलजी. ऐसा जबरदस्त फलेशबैक किस्सा भौजी नांदिया का अभी तक पढ़ने नहीं मिला. मज़ा ही आ गया.कांती बूआ,
तभी दरवाजे के पास थोड़ा हलचल हुयी, मुन्ना बहू और एक और कहारिन गाने लगी, और गाँव की औरतें भी शामिल हो गयीं,
" ननंद रानी काहें बैठी हो मुंह लटकाये,…. यार मिले नहीं क्या दो चार "
और सूरजु की माई की आँखे दरवाजे की ओर, सुबह से इन्तजार कर रही थीं,…. सूरजु के बूआ की।
और वही आयी थीं, कांती बूआ,बुच्ची की मौसी.
सूरजु की माई और उनमे अजीब आंकड़ा था, बिना गरियाये दोनों एक दूसरे से बात नहीं कर सकती थीं, लेकिन जैसे ही कांती बूआ आतीं फिर चौबीस घंटे ननद भाभी, एक थाली में खाना, पाटी में पाटी मिला के सोना, और बात की चक्की चलती ही रहती।
और पूरे गाँव में कांती बुआ अकेले थीं जो सूरजु के माई की गारी का, छेड़ खानी का जवाब दे पाती। हर बार रतजगा में एक दुलहा बनती दूसरी दुल्हन।
सूरजु की महतारी का चेहरा जैसे सूरज को देख के कमल खिल जाता है उस तरह खिलगया और अपनी ननद से बोलीं
" रस्ते में कितने मरद से चुदवा के आरही हैं,… जो इतना टाइम लग गया "
"अरे अपनी भौजाई के लिए बयाना दे रहे थे, दर्जन भर से कम मरद में कहाँ काम चलेगा, ....अइसन गहरा ताल पोखरा है " हंस के कांती बूआ बोलीं
और फिर से गाना चालु हो गया।
शादी बियाह में, जैसे सावन भादो की झड़ी नहीं रूकती वैसे गाने नहीं रुकते और ख़ास तौर से गारी। अबकी सूरजु की मामी ने शुरू किया ,
वो अपनी ननद को बिना रगड़े नहीं छोड़तीं तो ये तो ननद की नन्द, तो बस और उन्होंने सूरजु को भी लपेटे में लिया, अब नन्द छोटी हो बड़ी हो नाम नहीं लेते तो दूल्हे का ही नाम लगा के
दूल्हा आपन बूआ बेचें,
आजमगढ़ में आलू बेचें, बलिया में बोड़ा जी
दुलहा आपन बूआ बेचें, सौ रूपया जोड़ा जी
सूरजु सिंह की माई ने सूरजु की मामी की ओर देखा जैसे कह रही हों अरे हमार ननद है, इतना कम मिर्च से काम नहीं चलेगा और गाने का लेवल बढ़ गया
दूल्हा आपन बुआ चुदावें, अपने ननिहाल में जी।
अब दूल्हे की बुआ खुश हुयी, मुस्करा के सूरज की माई और मामी की ओर देखा और खुद बिना ढोलक के चालु हो गयी
दूल्हा आपन माई चुदावे, दूल्हा आपन मामी चुदावें
और साथ के लिए गाँव की लड़कियों की ओर देखा और वो सब भी चालू हो गयीं, आखिर कांती बुआ इसी गाँव की लड़की थीं
और टारगेट में दूल्हे की महतारी ही थीं,
अंगना में चकरी अजब घुमरी, अंगना में
दूल्हा क माई, सोमवार चुदावें, मंगलवार चुदावें,
बुध को दूल्हा खुद नंबर लगावें, दूल्हे की माई मजा ले ले चुदावें,
और दूल्हे की माई मजे से सुन रही थीं,.... औरचिढ़ा रही थीं सब लड़कियों को,
“बहुत जोश दिखा रही हो न। आज शाम गवनहि में तुम सब क शलवार खोली जायेगी, यह गाँव क कुल लड़की भाई चोद हैं, भाई को देख के खुद शलवार खोल के निहुर के खड़ी हो जाती हैं, ....आवा भैया, “
तो कांती बुआ ने जवाब में गाँव की लड़कियों की ओर से नया गाना शुरू किया,.... लेकिन निशाने पे उनकी भौजी, सूरज की माई,
और गाँव की सब लड़कियां उनका साथ दे रही थीं, खुल के खूब जोर जोर से गा रही थीं, ....और जहाँ सूरजु का नाम आता उन्हें देख के मुस्करातीं, चिढ़ाती, इशारे करतीं
अंगना में लाग गए काई जी, अरे अंगना में लाग गए काई जी ,
ओहि अंगना में निकली दूल्हे की माई, अरे निकली हमरी भौजाई, गिर पड़ी बिछलाई जी,
अरे दूल्हे की माई गिर पड़ी बिछलाई जी, अरे उनकी भोंसड़ी में घुस गयी लकडिया जी ,
दौड़ा दौड़ा दुलहा भैया दौड़ा दुआ सूरजु भैया, भोंसड़ी से खींचा लकडिया जी, अरे बुरिया से खींचा लकडिया जी
सूरजु को बहुत ख़राब लग रहा था, वो झेंप भी रहा था और कुछ कर भी नहीं सकता, लेकिनसाथ साथ गाँव की लड़कियों से ये सब एकदम खुला खुला सुन के मजा भी आ रहा था,
और बुआ की किसी बचपन की सहेली ने अगली लाइन शुरू कर दी
अरे अंगना में निकले दूल्हे की माई, अरे निकली हमार भौजाई, गिर पड़ी बिछलाई जी
और लड़कियां भी गाँव की अपनी बुआ के साथ,
अरे दूल्हे की माई गिर पड़ी बिछलाई रे, अरे उनकी गंडिया में घुस गयी लकडिया जी
दौड़ा दौड़ा दूल्हे भैया, दौड़ा दौड़ा सूरजु भैया, अरे गंडिया से खींचा लकडिया जी।
सूरजु के चेहरे से लग रहा था उसे थोड़ा खराब लग रहा है, ,,,,और जो दुलहा जितना झिझकता है उसकी उतनी रगड़ाई होती है। फिर कांती बूआ तो वो तेल पानी लेके चढ़ गयी अपने भतीजे के ऊपर.
" अरे काहें लजा रहे हो, अपनी माई की चुदाई की बात सुन के, …अरे हमरे भैया तोहरी माई को चोदे न होते तो तू कहाँ से होता, ...की अपने मामा क जामल हो? अपनी महतारी से पूछ ला, हमार भैया कैसे हचक हचक के तोहरे महतारी के पेले थे,.... हमही गए थे लाने सबेरे, उठा नहीं जा रहा था, इतना धक्का खायी थी "
अब सुरजू भी मजा लेने लगे थे, और बुआ तो तो जब आती थीं उसके पीछे पड़ के,
लेकिन अब सुरजू क माई लजा गयीं, पहली रात की बात सोच के,
सच में सुरजू के बाबू ने जबरदस्त फाड़ा था, और रात भर, ….
और सुबह यही सूरज क बूआ, उनकी छोटी ननद अपनी गाँव की दो सहेलियों के साथ, कुँवारी थीं तब कांती, बारी उमरिया, लेकिन बड़ा सहारा दी,
दोनों हाथ पकड़ के दो ननदों ने उठाया, एक ने पीछे से सहारा दिया। देह पूरी टूट रही थी, दर्द के मारे हालत ख़राब थी। और फिर चद्दर जब उन्होंने देखा तो एकदम खून से लाल, एक दो बूँद नहीं, बड़ा सा धब्बा, एकदम वो धक्क से रह गयीं,
लेकिन यही बूआ, चिढ़ाते हुए हिम्मत बढ़ाई,
" अरे भौजी ये खून वाली चद्दर ही तोहरे ननद क नेग है, अरे देखु आज से ठीक नौ महीने बाद भतीजा होई, तब लेब जबरदस्त नेग " और सच में सुरुजू नौ महीने बाद पधार गए।
लेकिन ननद की बात का जवाब न दें ऐसी भौजाई वो नहीं थी और सूरजु की बूआ को जवाब देते, हँसते हुए बोलीं
" देखो ननदी रानी, तोहार भैया हमें चोदे थे,... तो हमार महतारी भेजे थीं चुदवाने l और तोहार भैया गए थे २०० की बारात लेके लाने,… लेकिन ये बतावा की तू काहें सूरजु के बाबू से, अपने भैया से चुदवावत रहु "
गाँव की सब लड़कियां देख रही थीं, अब बूआ का बोलती हैं, कहीं गुस्सा तो नहीं हो जाएंगी लेकिन कांती बुआ, हसंते हुए जवाब दिया अपनी भौजी को
" अरे भौजी, यही कहते हैं की केहू का फायदा करावा, और वो ऊपर से नखड़ा चोदे, अरे तुहें तो अपनी ननद को धन्यवाद करना चाहिए की तोहरे मरद के सिखाय पढ़ाई के तैयार किये थे, नहीं तो कहीं पहली रात को बजाय अगवाड़े पेले के पीछे, पीछे ठोंक दिए होते तो चार दिन चला नहीं जात। "
भरौटी की एक ननद लगती थीं उन्होंने कांती बूआ को हड़काया, उमर में बड़ी भी थी।
" अरे साफ़ साफ़ बोलो न की कहीं हमार भैया पहली रात में ही गांड मार लिए होते " वो आगे कुछ बोलतीं की सुरजू की मामी बीच में कूद पड़ी
वाह क्या किस्सा सुनाया है. मज़ा आ गया. अरे अपनी दुल्हन को कौन छोड़ेगा. जब सूरज बाहुबली है तो उसका बाप कैसा होगा. लेकिन जितना बल. उतना ही बैल बुद्धि. जिसका फायदा उसकी भाभी मतलब सूरज के महतारी की जेठानी ने उठाया. गंडिया रोंदवा दी बेचारी की.सुरजू की मामी
कौन भौजाई ननद की रगड़ाई का मौका छोड़ देगी और अगर ननद दूल्हे की माँ हो, फिर तो और,
" अरे काहें हमरे नन्दोई क दोष दे रही हैं, सूरजु के बाबू का कौन दोष,… हमरे ननद क चूतड़ अस चाकर, अभी भी मायके में आ के मटकाते चलती हैं, तो इनके भाइयों को छोड़िये,… गाँव भर के गदहों और घोड़ो का खड़ा हो जाता है और गांड कौन बची हमरी ननदी की , चौथी की रात का हुआ, सबको मालूम है "
फिर तो औरतों की टोली में इतना जोर का कहकहा लगा और अबकी सूरजु की माई सच में झेंप गयी। बात ही ऐसी थी और सच भी थी
पहली रात के बाद तो अगले दिन शाम को उनकी हिम्मत नहीं पड़ रही थी, सेज पर जाने की, उस समय तक चला नहीं जा रहा था ।
लेकिन यही कांती और एक दो और गाँव की औरतों ने समझा बुझा के,… और वो रात तो पहली रात से भी भारी थी। कभी निहुरा के, कभी कुतिया बना के,
लेकिन दिन भर वही याद आता रहा और वो खुद अपनी ननदो का इन्तजार करती रही, जैसे ये कांती आयी खुद उठ के साथ चल दी।
पर चौथी रात, उनकी कुछ जेठानी थीं, सब ने अपने देवर को चढ़ा दिया,
“अरे देवर काहें हम लोगन क नाक कटवावत हो, आपन नहीं अपने गाँव क नाम सोचा, अभी तक दुलहिनिया क पिछवाड़ा कोर बा, कल चौथी लेके उसके भाई आएंगे, और सब बताएगी, और वो सब तुमको चिढ़ाएँगे, का हो जीजा पिछवाड़े क हिम्मत ना पड़ी का। अरे छेद छेद में भेद नहीं करना चाहिए, "
अगले दिन सूरजु के ननिहाल से चौथी लेके उनके जो भाई लगते थे वो आने वाले थे,
और उस दिन तो सुरुजू के बाबू ने एक बार तो निहुरा के,
लेकिन अगली बार जब निहुराया तो बजाय बुरिया में सीधे गांड में ठोंक दिया।
वो चोकरती रही, चूतड़ पटकती रही मरद उनका ठेलता रहा।
और एक दो बार नहीं पूरे तीन बार, ऐसी कस कस के गांड मारा सूरजु के बाबू ने, कभी घोड़ी बना के, कभी गोद में बिठा के, कभी फर्श पे ही पटक के पेट के बल लिटा के, अगले दिन उठा नहीं जा रहा था। और जब उनके मायके वाले आये और उनके सामने वो खड़ी नहीं हो पा रही थीं, और एक बार खड़ी हुयी तो ऐसी जोर की चिल्ल्ख मची,
और ननदों ने उनके भाइयों को खूब चिढ़ाया,
" हे स्साले देखो तेरी बहन के पिछवाड़े कुछ घुस गया है, जरा निकाल दो, और कोई मरहम लगा दो। "
और सबसे ज्यादा चिढ़ाने वाली यही कांती बूआ थी,
लेकिन उनके भाइयों ने भी, यही मामी जो चिढ़ा रही थीं उनके मरद ने, ....जाने के पहले कांति पे चढ़ाई कर दी, पिछवाड़ा तो नहीं लेकिन अगवाड़े दो बार मलाई खिलाई। कुँवारी थी, नौवे में पढ़ती थीं, यही बुच्ची की उमर की,
पढ़ी लिखी दुलहिनिया
तबतक बात बदल गयी, गाँव की किसी औरत ने सूरजु की माई से पुछा" सुना है दुलहिनिया खूब पढ़ी लिखी है, घर क काम वाम करेगी की नहीं.
लेकिन हँसते हुए जवाब पठान टोला की नयी बहू, बड़की सैय्यदायन की बहू, सुरजू की भौजाई ने दिया, अपने देवर सुरजू को देखते छेड़ते,
" अरे हमार देवरानी जो काम करे आ रही हैं, वो तो करबे करेगी, ….टांग फैलाने का "
चमक के पूरब पट्टी की एक लड़की ने जवाब दिया,
‘अरे नहीं करेंगी तो हमार सुरजू भैया पक्का पहलवान हैं, …जबरदस्ती दोनों टंगिया फैलाये देंगे,.... पढाई क का मतलब , ….चुदाई न करवाएंगी "
अब थोड़ी बड़ी उमर की सुरजू की भौजाई, बड़की सैय्यादिन की बहू की जेठानी का नंबर था, उन्होंने और अर्था के बताया,
" अरे उसकी महतारी भौजाई समझा बुझा के भेज रही होंगी, ….पढ़ाई भूल जाओ अब चुदाई सोच।तगड़े मरद के पास भेज रही हूँ, तुझे कुछ करना थोड़े ही है, टाँगे उठाना, जाँघे फैलाना, बाकी का काम वो करेगा। "
लेकिन एक ननद ने वही बात कही, जो हर दंगल के पहले सुरजू से कही जाती थी,
" अरे फटती तो हर भौजाई की इस गाँव में है , लेकिन हमार भैया यह गाँव की नाक हैं। चाहे जितना टांग सिकोड़े, हमार भैया फाड़ के रख देंगे और ऐसा फाड़ेंगे, अगवाड़ा पिछवाड़ा दस बीस गाँव क मोची सिल न पाए। “
और सीधे सूरजु से कहा
“ भैया गाँव क इज्जत क सवाल है,… महीना भर भौजी क टांग सीधे फर्श पे न पड़े "
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बिलकुल छिनार का दूसरा नाम ही नांदिया है. बेचारी बुचि तो कोहबर मे अपनी भउजीयो के सिकंजे मे आ गई. बेचारी को शिराह बहोत पसंद हेना. कोहबर कभी भूलेगी नहीं. वही शिलवा तो चार कदम आगे है. पहले से ही खेली खाई है. कितनी बार. गन्ने के खेत मे एक साथ दो दो. अमेज़िंग अपडेट.बुच्ची और शीलवा
( और थोड़ा सा फ्लैशबैक भी, इसी सावन का इसी गाँव का )
सुरजू का शर्माना अब कम हो गया था और अब वो भी मजे ले रहे, देह में फुरफुरी हो रही थी, सोच सोच कर मन कर रहा था,… कैसे मौका मिले
और उन की इस हालत में बुच्ची और इमरतिया की शरारतों का भी बड़ा हाथ था।
कल रात में बुच्ची की जिस तरह कोहबर में रगड़ाई हुयी थी, मंजू भाभी, मुन्ना बहू और सबसे कस कस के इमरतिया ने जो रगड़ाई की, और उसके पहले उसकी सखी शीलवा ने जिस तरह अपनी बुरिया से सब भौजाइयों के सामने ,….बुच्ची एकदम गर्मायी थी। शीलवा जब चुदवा के आती थी अपनी मलाई से लथपथ बुरिया दिखा दिखा के, बुच्ची को ललचाती थी और उकसाती थी,
" अरे मैं तो अपने गाँव में इतने मजे ले रहे हूँ,... तू तो अपने ननिहाल में आयी है, घोंट ले गपागप. कितने तो लौंडे तुझे देख के लपलपा रहे हैं, बस पहली बार ज़रा सा दर्द होगा, फिर मजे ही मजे, ....मैं रहूंगी न साथ "
बुच्ची का मन तो करता था, लेकिन बस जरा सा झिझक,
पर कल के बाद,... और ऊपर से रात भर की मस्ती के बाद, एक तो भौजाइयों ने जिस तरह उसे रगड़ा था लेकिन झड़ने नहीं दिया था, नीचे ऐसी कसमसाहट मची थी, ऊपर से सबेरे सबेरे सुरजू भैया का मोटे मूसल का दरसन इमरतिया भौजी ने करवा दिया, बाप से बाप कितना मोटा था,
लेकिन सिलवा कहती थी, स्साली बुच्चिया, जेतना मोट होता है उतना ही मजा देता, जब दरकता हुआ घुसता है न जान निकल जाती है लेकिन मजा भी खूब आता है है।
और स्साली शीलवा कहती है तो ठीक कहती है, ...दर्जनों लौंड़े तो घोंट चुकी है,
बल्कि दर्जन भर से ज्यादा तो बुच्ची के सामने, और बुच्ची के पीछे भी पड़ी थी, काहें को बचा के रखी है,
घोंट तो शीलवा कब से रही है,
लेकिन दो चार महीने पहले जब बुच्ची सावन में आयी थी, पूरे पंद्रह दिन रही थी. उसके आने के दो तीन दिन बाद, पास के गाँव में एक बड़ा मेला लगा था, सूरजु भैया की माई भी बोलीं, शीलवा जा रही है, बुच्ची तुम भी उसके साथ घूमी आओ और शीला से चिढ़ाते बोली, 'हाथ पकडे रखना इसका कही मेले में किसी लौण्डे के साथ गायब न हो जाए,'
और मेले में का भीड़ थी, बल्कि एकाध मील पहले से ही कन्धा छिला जा रहा था, गांव की सब औरतें अलग थलग हो गयी थी,
शीला और बुच्ची बस एक दूसरे का हाथ पकड़े, पता नहीं शीला ने बदमाशी से या जान बूझ के, बुच्ची से बोला,
" हे इधर से चलते हैं, नजदीक पड़ेगा। "
एक पतली सी गली, और बिना बुच्ची की बात सुने शीला उसका हाथ पकड़ के घसीट ले गयी, और गली में घुसते ही, आगे लड़के, पीछे लड़के, अगल बगल सब, और उसमे आधे दर्जन तो शीला के यार, और लड़के ही नहीं कुछ औरते भी बगल के गाँव की शायद शीला जानती थी उन सबको, पतली गली, एक साथ दो निकले तो रगड़ते हुए, लेकिन वो चार पांच औरतें रस्ता रोक के जैसे खड़ी हो गयी, और किसी ने बोला भी,... तो बोलीं,
" अरे आगे बहुत भीड़ है, एकदम निकलने की जगह नहीं है "
और जो लौण्डे थे, बुच्ची ने साफ़ साफ़ देखा, शीला ने बुच्ची की ओर इशारा करके, कस के आँख मार दी,
और एक ने पीछे से बुच्ची की कमर पकड़ ली, कस के, हिल भी नहीं सकती थी,
बुच्ची ने शीला की और देखा तो एक लौण्डे ने सीधे शीला की चोली में हाथ डाल रखा था और कस कस के खुल के मसल रहा था, दूसरे ने शीला के चूतड़ दबोच रखे थे और धीरे धीरे के अंदर हाथ डाल रहा था,
शीला तो पहले भी कभी कभी साड़ी पहनती थी, पर आज वो बुच्ची को भी गाँव की गोरी बना के ले आयी थी।
और तबतक किसी ने बुच्ची की चोली के ऊपर भी हाथ डाल दिया, जबतक वो समझती, चोली के दो बटन खुल गए थे, दो हाथ अंदर घुस गए थे।
पहली बार बुच्ची के उभरते जोबन पे किसी लौण्डे का हाथ पड़ा था, बुच्ची की पूरी देह गिनगीना गयी, पैर रबड़ की तरह हो गए, और अब बुच्ची की चूँची खुल के मसली रगड़ी जा रही थी. एक ने तो उसके आ रहे निपल को भी पकड़ के खींच दिया, बुच्ची की सिसकी निकल गयी। लेकिन ये तो बस शुरुआत थी, पीछे से किसी ने साड़ी, पेटीकोट दोनों उठा दिया और बुच्ची के छोटे छोटे चूतड़ पकड़ के मसलने लगा, सरकते हुए उसकी उँगलियाँ जाँघों तक पहुँच गयी,
बुच्ची सिसक रही थी, पनिया रही थी, बुर गीली हो गयी थी, खुद ही टाँगे फैला रही थी.
एक पल के लिए बुच्ची ने शीला की ओर देखा, शीला की हालत तो और खराब थी. साफ़ था एक लौंडा शीला की बिल में कस कस के ऊँगली कर रहा था, और दो उसकी चोली करीब करीब खोल के, खुल के जोबन का रस ले रहे थे,
और बुच्ची के साथ वो लौण्डे हटे तो दूसरे आ गए,
करीब दस पंद्रह मिनट तक तो उसी जगह पे चार पांच लौंडो ने बुच्ची के जोबन का रस लूटा, और वहां से निकले तो थोड़ी दूर आगे फिर, रुक के, ...और जहाँ चलते भी रहते तो लौण्डे रगड़ते, धकियाते, चूँची दबाते, और लड़कियां औरते भी जान बुझे के उन्हें उकसाती,
दस मिनट का रास्ता, आधे घंटे में पार हुआ, और निकलते ही शीला ने हंस के बुच्ची से पुछा, " क्यों सहेली मजा आया भिजवाने में , कितनो ने हारन दबाया "
बुच्ची मुस्करा के बोली, " यार मजा तो आया, लेकिन पहले तू बोल,... कितनो से दबवाया "
शीला ने आँख मार के दोनों हाथ की उंगलियों से इशारा किया, ' दस ' और बुच्ची ने भी वही इशारा दुहराया, मेरे भी दस।
दोनों की चोली के आधे से ज्यादा बटन टूट चुके थे, साड़ी पेटीकोट से बाहर थी, बुच्ची ने ठीक किया लेकिन शीला की निगाह पास के एक गन्ने के खेत की ओर थी, एक लड़का वहां से इशारा कर रहा था, और शीला ने मुड़ के बुच्ची को गलबहियों में भर लिया और चुम्मा लेके बोली
" मेरी सहेली, मेरी छिनार सहेली,... यार मेरा एक काम कर, वो स्साला इन्तजार कर रहा है. बस तू गन्ने के खेत में खड़ी रहना, मैं गयी और आयी.... और हाँ थोड़ा चौकीदारी भी, कोई हम लोगो की ओर आये तो बस इशारा कर देना
और जब तक बुच्ची कुछ बोलती, शीला उस का हाथ पकड़ के गन्ने के खेत में धंस गयी, एकदम घना गन्ना, उन दोनों की ऊंचाई से दूना
और उसे खड़ी रहने को कस के शीला और अंदर, मुश्किल से दस हाथ दूर, और एक लड़का उस का इन्तजार कर रहा था
बस थोड़ी देर में, बुच्ची साड़ी का फायदा समझ गयी, साड़ी, पेटीकोट दोनों कमर तक, टाँगे उस लड़के के कंधे पर, और लड़के ने भी पजामा सरका के बस अपना खूंटा,
एक तो चूँची मिसवा के बुच्ची पनिया रही थी, फिर पहली बार चुदाई देख रही थी,.... मोटा था, और लेने में शीला की हालत खराब थी,
मोटा खूंटा, शीला की फैली हुयी बुर, कैसे उसकी सहेली ने अपने हाथ से पकड़ के खूंटा सटाया और कैसे उसके यार ने जबरदस्त धक्का मारा, ... बुच्ची सब एकदम साफ़ साफ़ देख रही थी, ....जैसे बस दो हाथ की दूरी पे सब हो रहा हो,
लेकिन थोड़े देर में ही शीला के चेहरे की ख़ुशी, मस्ती, ....और जिस तरह जोश में वो नीचे से चूतड़ उछाल के धक्के मारती थी, साफ़ था उसे कितना मजा रहा था। करीब दस मिनट तक
,बुचिया पनिया रही थी, बुच्ची की बुरिया में मोटे मोटे चींटे काट रहे थे,साँसे लम्बी लम्बी चल रही थीं, देह काँप रही थी, मस्ती से हालत खराब हो रही थी, बस यही सोच रही स्साली बुच्चिया, जब देखने में इतना मजा आ रहा है तो लेने में कैसा लगेगा, और उसे भी मालूम था उसकी ननिहाल के कितने लौंडे उसपे लाइन मार रहे थे, वो न ना बोलती थी, न हाँ हाँ लाइन मारने में कोई कटौती नहीं करती थी
और जब शीला की बिल से रबड़ी मलाई बहने लगी तो बुच्ची थोड़ा दूर हो गयी और निकल कर शीला ने बुच्ची को दबोच लिया और चूम के बोली,
" यार तू मेरी असली सहेली है, ...पता है हफ्ते भर से बिचारा पीछे पड़ा था '
मेले में दोनों ने खूब मस्ती की, शीला ने घर लौटते लौटते दो बार और घोंट लिया और हर बार बुच्ची ने चौकीदारी की और साफ़ साफ़ देखा की शीला को कितना मजा आ रहा है।
सावन में पंद्रह दिन में कम से चार पांच बार मेले गयीं दोनों सहेलियां, और हर बार शीला तीन चार बार चुदी और बुच्ची ने पहरेदारी की.हर बार वो देखती एकदम साफ़ साफ़, शीला के यार कभी लिटा के कभी निहुरा के, कैसे हचक के पेलते हैं, और शीलवा पहले तो चीखती है, फिर थोड़ी देर में मस्ती से सिसकती है और फिर मजे से उसकी सहेली की हालत खराब हो जाती है, और खुद नीचे से धक्का मार मार के,
शीला बार बार कहती, बुच्ची से यार तू भी मजे ले ले .लौंडे भी दर्जनों पीछे पड़े थे, लेकिन बुच्ची बस,
हाँ , बुच्ची के भी जोबन हर बार, कस के रगड़े गए, चुम्मा चाटी, ऊपर से ऊँगली, सब कुछ हुआ,.... लेकिन बुच्ची कोरी आयी थी, सावन में,... कोरी गयी।
शीला ने कई बार कहा भी." यार लौण्डे बहुत निहोरा करते हैं, दे दे न,.... और तब बुच्ची ने इशारे से बोला, घुसेगा तो,.... लेकिन पहले किसी और का
और शीला समझ गयी और हँसते हुए बोली, " उसने तो लंगोटे में ताला बंद कर रखा है "
बुच्ची भी समझ गयी की शीला उसकी बात समझ गयी, वो भी हँसते हुए बोली, " कब तक बंद कर के रखेगा, जब खुलेगा तब घुसेगा, हाँ,... लेकिन एक बार उसने निवान कर दिया न फिर तो स्साली तेरा भी नंबर डका दूंगी, ....बेचारे जितने तेरे सारे यार तड़प रहेहैं न , सब के सब "
लेकिन शीला का नंबर पार करना मुश्किल था,
एक बार तो चौकीदारी करते बुच्ची ने देखा एक साथ दो दो चढ़े थे शीला पे, एक चोद रहा था,एक गांड मार रहा था,
और शीला जब निकली तो हँसते हुए बुच्ची को चूम के बोली,
"यार बेचारा बहुत जिद कर रहा था और टाइम था नहीं तो मैंने कहा चल स्साले तू पीछे लग जा, छेद तो छेद "
तो बुच्ची चुदी नहीं थी लेकिन चुदाई उसने बहुत देखी थी, इसलिए उसे लग गया था की उसका भाई उन सब से तिगुना नहीं तो दूना तो है ही, और अब तो बुच्ची ने पकड़ के देख लिया था, अपनी चुलबुलिया दिखा दी थी और इमरतिया भौजी ने अभी थोड़ी देर पहले उसकी बुलबुल की चाशनी भी भैया को चटा दी थी,
भैया की हालत ख़राब थी
और बुच्ची समझ रही थी भैया काहें मस्ताए थे, जिस तरह से उसकी छोट छोट चूँची देख के ललचा रहे थे, इसलिए इतना फनफनाया था उनका,
लेकिन अभी बुच्ची की हालत खराब करने में इमरतिया का भी हाथ था।
सभी औरतों का ध्यान तो सुरजू सिंह और उनकी महतारी पर था जो कोरा में दुबका के उनको बैठी थी, और सुरजू सिंह के तने नेकर पर था,
और दूल्हे के पीछे उसकी बहन के अलावा कोई रहता भी नहीं था और बगल में नाउन दूल्हे को सम्हारती थी, रसम रिवाज करवाती थी। सब औरतें दूल्हे की माई को गरियाने में जुटी थी और इमरतिया की उंगलिया अपनी कोरी बारी ननदिया से मजे ले रही थी,
इमरतिया ने खुद ही अपनी ननद की चड्ढी उतारी थी, सुबह सुबह सुरजू को उनकी बहिनिया की कच्ची कोरी बिन चुदी बुरिया दिखा दी, देवर की हालत खराब, तो इमरतिया ने बुच्ची की नंगे छोटे छोट चूतड़ों पर हाथ फेरना शुरू किया, कभी चिकोटी भी काट लेती तो कभी मस्ताती फैली दोनों जांघो के बीच हाथ डाल के गौरेया को दबोच लेती थी, दोनों फांके खूब गीली थीं, एकदम चुदवासी थी स्साली, ,
बस दोनों फांको के बीच दरार पर बाएं हाथ की ऊँगली इमरतिया हलके हलके फिरा रही थी
और दाएं हाथ से रस्म रिवाज,
और बुच्ची की चूँची की घुंडी एकदम बरछी की नोक, और फ्राक के नीचे ढक्क्न भी नहीं था तो बस पीछे से भैया के पीठ में वो धंसा रही थी और जो काम इमरतिया का हाथ उसके पिछवाड़े कर रहा था, वो बुच्ची का हाथ पीछे से सूरज के नेकर में धंसा, उसके भैया के साथ
बेचारे सुरजू,
उन्हें बुच्ची की बदमाशी में मजा भी आ रहा था लेकिन कुछ कर भी नहीं सकते थे, माई बगल में चिपक के बैठी थीं और सामने कांती बूआ, मझली मामी, गाँव की कुल भौजाई खास तौर से सैयदायिन भौजी, अंगूठा में ऊँगली जोड़ के छेद बना के उन्हें दिखा दिखा के छेड़ रही थीं,
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