- 23,354
- 62,713
- 259
गाँव जवार
गीता को घर छोड़ने के पहले गीता ने उन सबसे वायदा कर लिया था की कल भी वो रोपनी में आएगी और वैसे भी कल रोपनी का आखिरी दिन था।
गीता ने खुद अपनी माँ से मचल के कहा, और वो हँसते हुए मान गयीं,...
लेकिन ये सब सुनते हुए छुटकी के मन में जो सवाल था वो उसने गीता के सामने झट से उगल दिया,
" लेकिन दीदी, अपने भैया के साथ जो किया था, रोज करवाती थीं, अगवाड़े पिछवाड़े, वो सब तो रोपनी वालियों ने खुद आपके मुंह से कबुलवा लिया तो फिर,...कहीं पूरे गाँव में "
गीता बड़ी देर तक खिलखिलाती रही, फिर खुश होके अपनी नयी बनी छोटी बहन को चूम लिया और हंस के बोली,
"पगली, ... आज कल क्या कहते हैं व्हाट्सअप और इंस्टा फैला है न रोपनी वालियां उन सबसे भी १०० हाथ आगे हैं, ... फिर मुझे कौन झिझक थी, हाँ भैया ही थोड़ा बहुत झिझकता था , माँ को भी कुछ फरक नहीं पड़ता था अगर गाँव वालों को मालूम हो जाये,... तो फिर जब हम माँ बेटी को कुछ नहीं तो,... वो तो कहती थीं प्यार क्या जब तक खुल्ल्म खुला न हो और कौन इस गाँव की लड़कियां अपने मरद के लिए बचा के रखती हैं , सब के सब अपना जोबना , खेत खलिहान, बाग़ बगीचे में लुटाती फिरती हैं , और गाँव के रिश्ते से तो वो लौंडे भी भाई हुए न , तो फिर अगर सगा भाई चढ़ गया तो क्या,... "
और गीता ने कुछ रुक के रोपनी वालियों के बारे में बात और खोली,...
" देख शक तो सब को था, ... तभी तो मेरे पहुँचते ही सब मेरे भैया का नाम मेरे साथ जोड़ जोड़ के , भैया के सामने ही,... और ऊँगली डालते ही मेरे अगवाड़े पिछवाड़े मलाई बजबजा रही थी , और मैं भैया के साथ घर से ही मुंह अँधेरे आ रही थी , रात अभी भी ख़तम भी नहीं हुयी थी,... और घर में मेरे और माँ के अलावा भैया ही तो था , ... "
फिर कुछ रुक के खिलखिलाते हुए गीता ने जोड़ा,
" मलाई निकालने वाली मशीन तो माँ के पास है नहीं तो मलाई और किस की होती , अरविंदवा की ही न , बस,... "
अबकी छुटकी भी हंसी में शामिल हो गयी और गीता ने बात पूरी की
" और ये रोपनी वालियां तार मात इनके आगे, शाम के पहले तक गाँव छोड़ अगल बगल के गाँव में सब को मालूम हो गया था ,ये घर घर जाती है और घर की औरतें जो बेचारी घर से बाहर मुश्किल से निकल पाती हैं इन्ही से कुछ किस्से,.... और कुँवारी लड़की अपने भाई से फंसी, फिर तो,...मिर्च मसाला लगा लगा के ,.. और ये रोपनी वालियां खाली मेरे गाँव की तो थी नहीं तो सब अपने गाँव में और जिस गाँव में रोपनी करने गयीं वहां भी , तो चार पांच दिन में गाँव तो छोड़,... आसपास के दस गाँव जवार में, बजार में, सब जगह,... मेरे और भैया के , .. लेकिन एक तरह से अच्छा ही हुआ , भइया की भी झिझक धीरे धीरे खुल गयी
लेकिन छुटकी का दिमाग कहीं और चल रहा रहा था उसे दीदी की सास और नैना की बात आ रही थी की कैसे सास चिढ़ा रही थी नैना को की इस गाँव की कुल लड़कियां भाई चोद होती है और नैना ने भी माना और की गीता और उसका भाई तो एकदम मर्द औरत की तरह रहते हैं,...
गीता चुप हो गयी थी तो छुटकी ने एक नया प्रसंग छेड़ दिया,
___
छुटकी ने एक बार फिर बात मोड़ दी, दी फिर कभी भैया का माँ के साथ, किसी रात को,... गितवा खिलखिला के हंसी
" तू भी न पगली कभी एक बार मेरे अरविन्द का खूंटा पकड़ेगी न,... देख के लोग दीवाने हो जाते हैं माँ ने तो अगवाड़े पिछवाड़े दोनों घोंटा था, और रात में बोल रही है तू, रात दिन दोनों टाइम, बल्कि उन दोनों के चक्कर में मैं मैं भी पिसती थी। "
“”भाग ४८ - रोपनी -
फुलवा की ननद
ननदें कौन चुप रहने वाली थीं , एक बियाहिता अभी अभी गौने के बाद ससुराल से लौटी ननद सावन मनाने मायके आयी, चिढ़ाते बोली,...
" अरे तो भौजी लोगन को खुस होना चाहिए,की सीखा पढ़ा, खेला खेलाया मिला,... वरना निहुराय के कहीं अगवाड़े की बजाय पिछवाड़े पेल देता, महतारी बुरिया में चपाचप कडुवा तेल लगाय के बिटिया को चोदवाये के लिए भेजी थी और यहाँ दमाद सूखी सूखी गाँड़ मार लिया,... "
फिर तो ननदों की इतनी जोर की हंसी गूंजी,... और उसमें सबसे तेज गीता की हंसी थी, एक और कुँवारी ननद बोली,...
" अरे भौजी, तबे तो यहाँ के मरद एतने जोरदार है की सब भौजाई लोगन क महतारी दान दहेज़ दे की चुदवाने के लिए आपन आपन बिटिया यहां भेजती हैं ,... "
इस मस्ती के बीच रोपनी भी चल रही थी हाँ गन्ने के खेत से आने वाली चीखें अब थोड़ी देर पहले बंद हो गयी थीं और वहां से कभी कभी रुक के सिसकियाँ बस आतीं।
डेढ़ दो घण्टे से ऊपर हो गया था, भैया को फुलवा की बारी ननदिया को गन्ने के खेत में ले गए,... जब रोपनी शुरू हुयी थी, बस आसमान में ललाई छानी शुरू भी नहीं हुयी थी ठीक से,... और अब सूरज निकल तो आया था, लेकिन बादल अभी भी लुका छिपी खेल रहे थे, सावन भादो की धूप छाँह का खेल, और काले काले घने बादल जब आसमान में घिर जाते तो दिन में रात होने सा लगता,... और कभी धूप धकिया के नीचे खेत में रोपनी करने वालियों की मस्ती देखने, झाँकने लगती और कभी उन की शैतानियों से शरमा के बादलों के पीछे मुंह छिपा लेती,...
और तभी सबसे पहले एक भौजाई ने देखा, ...
फिर एक लड़की ने फिर बाकी लड़कियों ने और खिलखिलाहट हंसी, बिन कहे सब को मालूम पड़ गया की फुलवा की ननदिया का उसकी भौजाई के मायके में अच्छे से ख़ातिर हो गयी, जब गयी तो इठलाती, खिलखिलाती तितली की तरह उड़ती अरविंदवा के आगे आगे मचकती, मचलती, चला नहीं जा रहा था, कभी किसी पेड़ की टहनी पकड़ के सहारा लेती तो कभी चिलख के मारे एक दो कदम चल के रुक जाती, ...
गाँव वाली , उसे गाँव की पतली पतली मेंड़ों चलने का अभ्यास था, दौड़ती उछलती चलती थी, पर अभी, दोनों ओर पानी में डूबे , पौध के खेत, बीच बीच में बगुले,... पर अभी, फुलवा की ननदिया, ... उमर में गितवा की ही समौरिया होगी,... सम्हल सम्हल के पैर रख रही थी, मेंड़ पर तब भी दो चार बार फिसली और एक पैर घुंटने तक कीचड़ में,... किसी तरह मुंह के बल गिरने से बची,
लड़कियां खिलखिलाने लगीं, ... “बहुत बोल रही थीं , अरविंदवा ने सारी अकड़ ढीली कर दी,... “
" हमरे गाँव क सांड़ है उ, आज ननद रानी को पता चला होगा केकरे नीचे आयी हैं, देखो चला नहीं जा रहा है अइसन हचक हचक के फाड़ा है,... "
चमेलिया ने अपनी दीदी फुलवा की ननद की हालत देख के खिलखिलाते हुए कहा
" गितवा के खसम ने "
एक भौजाई ने गीता को चिढ़ाते हुए, गीता को आँख मार के बात पूरी की।
गीता भी बहुत जोर से मुस्करा रही थी, लेकिन फुलवा की माई ने आँख तरेर कर देखा और सब की सब चुप,...
असली खेल तो फुलवा की माई का ही था, वही फुलवा की ननद को रोपनी के लिए लायी थी, उसे मालूम था माल तैयार है लेकिन अभी कोरी गगरिया है, हाँ उमर की थोड़ी बारी है तो क्या हुआ,... और फुलवा की माई ने ही अरविंदवा को समझा बुझा के इस कच्ची कली के साथ गन्ने के खेत में भेजा था. उसे मालूम था एक बार अपनी भौजाई के गाँव क सबसे मोटा गन्ना घोंट लेगी और उहो कुल लड़कियन भौजाई के सामने तो बस,... और ये तो शुरुआत थी,... अभी तो रोपनी कई दिन चलनी थी,
फुलवा की ननदिया थोड़ी नजदीक आयी तो लड़कियों के साथ भौजाइयां भी खिलखिलाने लगीं,
वैसे तो फुलवा के पीछे गाँव की लड़कियां ही पड़ी थीं, फुलवा की ननद तो उनकी ननद,... लेकिन अब भौजाइयां भी, आखिर ननद की ननद तो डबल ननद और कच्ची कोरी ननदिया जब पहली बार चुद के आ रही हो तो कौन भौजाई चिढ़ाने का छेड़ने का मौका छोड़ेगी।
नाग पंचमी के दिन जैसे लड़के बहनों की गुड़िया की पीट पीट के बुरी हाल कर देते हैं बस वही हाल फुलवा की उस बारी उमर की ननदिया की हो रही थी, ब्लाउज जो कस के छोटे छोटे जोबन को दबोचे था और फुलवा के गाँव के लौंडो को चुनौती दे रहा था, ज्यादातर बटन टूट चुके थे , बस एक दो बटनों के सहारे किसी तरह से ब्लाउज में जोबन छुपने की बेकार कोशिश कर रहे थे.
जगह से जगह से फटा नुचा, ब्लाउज,गोरे गोरे उभार दिख ज्यादा रहे थे, छुप कम रहे थे और उस पे नाख़ून से नुचने के दांतों से कस कस के काटे जाने के निशान,
गोरे गुलाबी गालों पर जिस पे गाँव के सब लौंडे लुभाये,गितवा के भाई ने काट काट के , गाल से ज्यादा दांत के निशान और ऐसे गाढ़े की हफ़्तों नहीं जाए,...गुलाब से होठों को न सिर्फ कस के चूसा था उस भौरें ने बल्कि उस को भी काट के, कई जगह खून छलछला आया था,... जिस तरह टाँगे फैला के वो चल रही थी, लग रहा था लकड़ी की कोई मोटी खपच्ची जैसे अभी भी उसकी दोनों जांघों के बीच फंसी हुयी हो,... किसी तरह चलती,... रोपनी वालियों के पास आते आते लगा की वो फिसल के गिर जायेगी, पर
फुलवा की माई ने आगे बढ़ के उसका हाथ पकड़ के अपने पास खींच लिया, ... और सीने से दुबका लिया, आखिर उनकी बेटी की ननद थी और पहली चुदाई के बाद,... आँखों के इसारे से उन्होंने सब लड़कियों को बरज दिया था की उसे चिढ़ाए, छेड़े नहीं,... और उसे गीता के बगल में खड़ी कर दिया,... और फुलवा की ननद से बोला,
“सुन ये नयकी रोपनी वाली, अरविंदवा क बहिनी है, तानी ओहि को हाथ बटाय दो,.. हलके हलके हाथ से,... कल से तोहें यहीं सब के साथ,... “
“”भाग ४८ - रोपनी -
फुलवा की ननद
ननदें कौन चुप रहने वाली थीं , एक बियाहिता अभी अभी गौने के बाद ससुराल से लौटी ननद सावन मनाने मायके आयी, चिढ़ाते बोली,...
" अरे तो भौजी लोगन को खुस होना चाहिए,की सीखा पढ़ा, खेला खेलाया मिला,... वरना निहुराय के कहीं अगवाड़े की बजाय पिछवाड़े पेल देता, महतारी बुरिया में चपाचप कडुवा तेल लगाय के बिटिया को चोदवाये के लिए भेजी थी और यहाँ दमाद सूखी सूखी गाँड़ मार लिया,... "
फिर तो ननदों की इतनी जोर की हंसी गूंजी,... और उसमें सबसे तेज गीता की हंसी थी, एक और कुँवारी ननद बोली,...
" अरे भौजी, तबे तो यहाँ के मरद एतने जोरदार है की सब भौजाई लोगन क महतारी दान दहेज़ दे की चुदवाने के लिए आपन आपन बिटिया यहां भेजती हैं ,... "
इस मस्ती के बीच रोपनी भी चल रही थी हाँ गन्ने के खेत से आने वाली चीखें अब थोड़ी देर पहले बंद हो गयी थीं और वहां से कभी कभी रुक के सिसकियाँ बस आतीं।
डेढ़ दो घण्टे से ऊपर हो गया था, भैया को फुलवा की बारी ननदिया को गन्ने के खेत में ले गए,... जब रोपनी शुरू हुयी थी, बस आसमान में ललाई छानी शुरू भी नहीं हुयी थी ठीक से,... और अब सूरज निकल तो आया था, लेकिन बादल अभी भी लुका छिपी खेल रहे थे, सावन भादो की धूप छाँह का खेल, और काले काले घने बादल जब आसमान में घिर जाते तो दिन में रात होने सा लगता,... और कभी धूप धकिया के नीचे खेत में रोपनी करने वालियों की मस्ती देखने, झाँकने लगती और कभी उन की शैतानियों से शरमा के बादलों के पीछे मुंह छिपा लेती,...
और तभी सबसे पहले एक भौजाई ने देखा, ...
फिर एक लड़की ने फिर बाकी लड़कियों ने और खिलखिलाहट हंसी, बिन कहे सब को मालूम पड़ गया की फुलवा की ननदिया का उसकी भौजाई के मायके में अच्छे से ख़ातिर हो गयी, जब गयी तो इठलाती, खिलखिलाती तितली की तरह उड़ती अरविंदवा के आगे आगे मचकती, मचलती, चला नहीं जा रहा था, कभी किसी पेड़ की टहनी पकड़ के सहारा लेती तो कभी चिलख के मारे एक दो कदम चल के रुक जाती, ...
गाँव वाली , उसे गाँव की पतली पतली मेंड़ों चलने का अभ्यास था, दौड़ती उछलती चलती थी, पर अभी, दोनों ओर पानी में डूबे , पौध के खेत, बीच बीच में बगुले,... पर अभी, फुलवा की ननदिया, ... उमर में गितवा की ही समौरिया होगी,... सम्हल सम्हल के पैर रख रही थी, मेंड़ पर तब भी दो चार बार फिसली और एक पैर घुंटने तक कीचड़ में,... किसी तरह मुंह के बल गिरने से बची,
लड़कियां खिलखिलाने लगीं, ... “बहुत बोल रही थीं , अरविंदवा ने सारी अकड़ ढीली कर दी,... “
" हमरे गाँव क सांड़ है उ, आज ननद रानी को पता चला होगा केकरे नीचे आयी हैं, देखो चला नहीं जा रहा है अइसन हचक हचक के फाड़ा है,... "
चमेलिया ने अपनी दीदी फुलवा की ननद की हालत देख के खिलखिलाते हुए कहा
" गितवा के खसम ने "
एक भौजाई ने गीता को चिढ़ाते हुए, गीता को आँख मार के बात पूरी की।
गीता भी बहुत जोर से मुस्करा रही थी, लेकिन फुलवा की माई ने आँख तरेर कर देखा और सब की सब चुप,...
असली खेल तो फुलवा की माई का ही था, वही फुलवा की ननद को रोपनी के लिए लायी थी, उसे मालूम था माल तैयार है लेकिन अभी कोरी गगरिया है, हाँ उमर की थोड़ी बारी है तो क्या हुआ,... और फुलवा की माई ने ही अरविंदवा को समझा बुझा के इस कच्ची कली के साथ गन्ने के खेत में भेजा था. उसे मालूम था एक बार अपनी भौजाई के गाँव क सबसे मोटा गन्ना घोंट लेगी और उहो कुल लड़कियन भौजाई के सामने तो बस,... और ये तो शुरुआत थी,... अभी तो रोपनी कई दिन चलनी थी,
फुलवा की ननदिया थोड़ी नजदीक आयी तो लड़कियों के साथ भौजाइयां भी खिलखिलाने लगीं,
वैसे तो फुलवा के पीछे गाँव की लड़कियां ही पड़ी थीं, फुलवा की ननद तो उनकी ननद,... लेकिन अब भौजाइयां भी, आखिर ननद की ननद तो डबल ननद और कच्ची कोरी ननदिया जब पहली बार चुद के आ रही हो तो कौन भौजाई चिढ़ाने का छेड़ने का मौका छोड़ेगी।
नाग पंचमी के दिन जैसे लड़के बहनों की गुड़िया की पीट पीट के बुरी हाल कर देते हैं बस वही हाल फुलवा की उस बारी उमर की ननदिया की हो रही थी, ब्लाउज जो कस के छोटे छोटे जोबन को दबोचे था और फुलवा के गाँव के लौंडो को चुनौती दे रहा था, ज्यादातर बटन टूट चुके थे , बस एक दो बटनों के सहारे किसी तरह से ब्लाउज में जोबन छुपने की बेकार कोशिश कर रहे थे.
जगह से जगह से फटा नुचा, ब्लाउज,गोरे गोरे उभार दिख ज्यादा रहे थे, छुप कम रहे थे और उस पे नाख़ून से नुचने के दांतों से कस कस के काटे जाने के निशान,
गोरे गुलाबी गालों पर जिस पे गाँव के सब लौंडे लुभाये,गितवा के भाई ने काट काट के , गाल से ज्यादा दांत के निशान और ऐसे गाढ़े की हफ़्तों नहीं जाए,...गुलाब से होठों को न सिर्फ कस के चूसा था उस भौरें ने बल्कि उस को भी काट के, कई जगह खून छलछला आया था,... जिस तरह टाँगे फैला के वो चल रही थी, लग रहा था लकड़ी की कोई मोटी खपच्ची जैसे अभी भी उसकी दोनों जांघों के बीच फंसी हुयी हो,... किसी तरह चलती,... रोपनी वालियों के पास आते आते लगा की वो फिसल के गिर जायेगी, पर
फुलवा की माई ने आगे बढ़ के उसका हाथ पकड़ के अपने पास खींच लिया, ... और सीने से दुबका लिया, आखिर उनकी बेटी की ननद थी और पहली चुदाई के बाद,... आँखों के इसारे से उन्होंने सब लड़कियों को बरज दिया था की उसे चिढ़ाए, छेड़े नहीं,... और उसे गीता के बगल में खड़ी कर दिया,... और फुलवा की ननद से बोला,
“सुन ये नयकी रोपनी वाली, अरविंदवा क बहिनी है, तानी ओहि को हाथ बटाय दो,.. हलके हलके हाथ से,... कल से तोहें यहीं सब के साथ,... “
मस्ट अपडेट है , देर आए दुरुस्त आयेभाग ४८ - रोपनी -
फुलवा की ननद
ननदें कौन चुप रहने वाली थीं , एक बियाहिता अभी अभी गौने के बाद ससुराल से लौटी ननद सावन मनाने मायके आयी, चिढ़ाते बोली,...
" अरे तो भौजी लोगन को खुस होना चाहिए,की सीखा पढ़ा, खेला खेलाया मिला,... वरना निहुराय के कहीं अगवाड़े की बजाय पिछवाड़े पेल देता, महतारी बुरिया में चपाचप कडुवा तेल लगाय के बिटिया को चोदवाये के लिए भेजी थी और यहाँ दमाद सूखी सूखी गाँड़ मार लिया,... "
फिर तो ननदों की इतनी जोर की हंसी गूंजी,... और उसमें सबसे तेज गीता की हंसी थी, एक और कुँवारी ननद बोली,...
" अरे भौजी, तबे तो यहाँ के मरद एतने जोरदार है की सब भौजाई लोगन क महतारी दान दहेज़ दे की चुदवाने के लिए आपन आपन बिटिया यहां भेजती हैं ,... "
इस मस्ती के बीच रोपनी भी चल रही थी हाँ गन्ने के खेत से आने वाली चीखें अब थोड़ी देर पहले बंद हो गयी थीं और वहां से कभी कभी रुक के सिसकियाँ बस आतीं।
डेढ़ दो घण्टे से ऊपर हो गया था, भैया को फुलवा की बारी ननदिया को गन्ने के खेत में ले गए,... जब रोपनी शुरू हुयी थी, बस आसमान में ललाई छानी शुरू भी नहीं हुयी थी ठीक से,... और अब सूरज निकल तो आया था, लेकिन बादल अभी भी लुका छिपी खेल रहे थे, सावन भादो की धूप छाँह का खेल, और काले काले घने बादल जब आसमान में घिर जाते तो दिन में रात होने सा लगता,... और कभी धूप धकिया के नीचे खेत में रोपनी करने वालियों की मस्ती देखने, झाँकने लगती और कभी उन की शैतानियों से शरमा के बादलों के पीछे मुंह छिपा लेती,...
और तभी सबसे पहले एक भौजाई ने देखा, ...
फिर एक लड़की ने फिर बाकी लड़कियों ने और खिलखिलाहट हंसी, बिन कहे सब को मालूम पड़ गया की फुलवा की ननदिया का उसकी भौजाई के मायके में अच्छे से ख़ातिर हो गयी, जब गयी तो इठलाती, खिलखिलाती तितली की तरह उड़ती अरविंदवा के आगे आगे मचकती, मचलती, चला नहीं जा रहा था, कभी किसी पेड़ की टहनी पकड़ के सहारा लेती तो कभी चिलख के मारे एक दो कदम चल के रुक जाती, ...
गाँव वाली , उसे गाँव की पतली पतली मेंड़ों चलने का अभ्यास था, दौड़ती उछलती चलती थी, पर अभी, दोनों ओर पानी में डूबे , पौध के खेत, बीच बीच में बगुले,... पर अभी, फुलवा की ननदिया, ... उमर में गितवा की ही समौरिया होगी,... सम्हल सम्हल के पैर रख रही थी, मेंड़ पर तब भी दो चार बार फिसली और एक पैर घुंटने तक कीचड़ में,... किसी तरह मुंह के बल गिरने से बची,
लड़कियां खिलखिलाने लगीं, ... “बहुत बोल रही थीं , अरविंदवा ने सारी अकड़ ढीली कर दी,... “
" हमरे गाँव क सांड़ है उ, आज ननद रानी को पता चला होगा केकरे नीचे आयी हैं, देखो चला नहीं जा रहा है अइसन हचक हचक के फाड़ा है,... "
चमेलिया ने अपनी दीदी फुलवा की ननद की हालत देख के खिलखिलाते हुए कहा
" गितवा के खसम ने "
एक भौजाई ने गीता को चिढ़ाते हुए, गीता को आँख मार के बात पूरी की।
गीता भी बहुत जोर से मुस्करा रही थी, लेकिन फुलवा की माई ने आँख तरेर कर देखा और सब की सब चुप,...
असली खेल तो फुलवा की माई का ही था, वही फुलवा की ननद को रोपनी के लिए लायी थी, उसे मालूम था माल तैयार है लेकिन अभी कोरी गगरिया है, हाँ उमर की थोड़ी बारी है तो क्या हुआ,... और फुलवा की माई ने ही अरविंदवा को समझा बुझा के इस कच्ची कली के साथ गन्ने के खेत में भेजा था. उसे मालूम था एक बार अपनी भौजाई के गाँव क सबसे मोटा गन्ना घोंट लेगी और उहो कुल लड़कियन भौजाई के सामने तो बस,... और ये तो शुरुआत थी,... अभी तो रोपनी कई दिन चलनी थी,
फुलवा की ननदिया थोड़ी नजदीक आयी तो लड़कियों के साथ भौजाइयां भी खिलखिलाने लगीं,
वैसे तो फुलवा के पीछे गाँव की लड़कियां ही पड़ी थीं, फुलवा की ननद तो उनकी ननद,... लेकिन अब भौजाइयां भी, आखिर ननद की ननद तो डबल ननद और कच्ची कोरी ननदिया जब पहली बार चुद के आ रही हो तो कौन भौजाई चिढ़ाने का छेड़ने का मौका छोड़ेगी।
नाग पंचमी के दिन जैसे लड़के बहनों की गुड़िया की पीट पीट के बुरी हाल कर देते हैं बस वही हाल फुलवा की उस बारी उमर की ननदिया की हो रही थी, ब्लाउज जो कस के छोटे छोटे जोबन को दबोचे था और फुलवा के गाँव के लौंडो को चुनौती दे रहा था, ज्यादातर बटन टूट चुके थे , बस एक दो बटनों के सहारे किसी तरह से ब्लाउज में जोबन छुपने की बेकार कोशिश कर रहे थे.
जगह से जगह से फटा नुचा, ब्लाउज,गोरे गोरे उभार दिख ज्यादा रहे थे, छुप कम रहे थे और उस पे नाख़ून से नुचने के दांतों से कस कस के काटे जाने के निशान,
गोरे गुलाबी गालों पर जिस पे गाँव के सब लौंडे लुभाये,गितवा के भाई ने काट काट के , गाल से ज्यादा दांत के निशान और ऐसे गाढ़े की हफ़्तों नहीं जाए,...गुलाब से होठों को न सिर्फ कस के चूसा था उस भौरें ने बल्कि उस को भी काट के, कई जगह खून छलछला आया था,... जिस तरह टाँगे फैला के वो चल रही थी, लग रहा था लकड़ी की कोई मोटी खपच्ची जैसे अभी भी उसकी दोनों जांघों के बीच फंसी हुयी हो,... किसी तरह चलती,... रोपनी वालियों के पास आते आते लगा की वो फिसल के गिर जायेगी, पर
फुलवा की माई ने आगे बढ़ के उसका हाथ पकड़ के अपने पास खींच लिया, ... और सीने से दुबका लिया, आखिर उनकी बेटी की ननद थी और पहली चुदाई के बाद,... आँखों के इसारे से उन्होंने सब लड़कियों को बरज दिया था की उसे चिढ़ाए, छेड़े नहीं,... और उसे गीता के बगल में खड़ी कर दिया,... और फुलवा की ननद से बोला,
“सुन ये नयकी रोपनी वाली, अरविंदवा क बहिनी है, तानी ओहि को हाथ बटाय दो,.. हलके हलके हाथ से,... कल से तोहें यहीं सब के साथ,... “
Chhutki bhi ese wakt pe sawal puchha ki maza hi aa gaya. Maza aa gaya. Bilkul end time pe chhutki ne sawal puchha. Or sawal ke jawab ke bad sab se last me bhaiya ke khute ka deewana pan. Superbगाँव जवार
गीता को घर छोड़ने के पहले गीता ने उन सबसे वायदा कर लिया था की कल भी वो रोपनी में आएगी और वैसे भी कल रोपनी का आखिरी दिन था।
गीता ने खुद अपनी माँ से मचल के कहा, और वो हँसते हुए मान गयीं,...
लेकिन ये सब सुनते हुए छुटकी के मन में जो सवाल था वो उसने गीता के सामने झट से उगल दिया,
" लेकिन दीदी, अपने भैया के साथ जो किया था, रोज करवाती थीं, अगवाड़े पिछवाड़े, वो सब तो रोपनी वालियों ने खुद आपके मुंह से कबुलवा लिया तो फिर,...कहीं पूरे गाँव में "
गीता बड़ी देर तक खिलखिलाती रही, फिर खुश होके अपनी नयी बनी छोटी बहन को चूम लिया और हंस के बोली,
"पगली, ... आज कल क्या कहते हैं व्हाट्सअप और इंस्टा फैला है न रोपनी वालियां उन सबसे भी १०० हाथ आगे हैं, ... फिर मुझे कौन झिझक थी, हाँ भैया ही थोड़ा बहुत झिझकता था , माँ को भी कुछ फरक नहीं पड़ता था अगर गाँव वालों को मालूम हो जाये,... तो फिर जब हम माँ बेटी को कुछ नहीं तो,... वो तो कहती थीं प्यार क्या जब तक खुल्ल्म खुला न हो और कौन इस गाँव की लड़कियां अपने मरद के लिए बचा के रखती हैं , सब के सब अपना जोबना , खेत खलिहान, बाग़ बगीचे में लुटाती फिरती हैं , और गाँव के रिश्ते से तो वो लौंडे भी भाई हुए न , तो फिर अगर सगा भाई चढ़ गया तो क्या,... "
और गीता ने कुछ रुक के रोपनी वालियों के बारे में बात और खोली,...
" देख शक तो सब को था, ... तभी तो मेरे पहुँचते ही सब मेरे भैया का नाम मेरे साथ जोड़ जोड़ के , भैया के सामने ही,... और ऊँगली डालते ही मेरे अगवाड़े पिछवाड़े मलाई बजबजा रही थी , और मैं भैया के साथ घर से ही मुंह अँधेरे आ रही थी , रात अभी भी ख़तम भी नहीं हुयी थी,... और घर में मेरे और माँ के अलावा भैया ही तो था , ... "
फिर कुछ रुक के खिलखिलाते हुए गीता ने जोड़ा,
" मलाई निकालने वाली मशीन तो माँ के पास है नहीं तो मलाई और किस की होती , अरविंदवा की ही न , बस,... "
अबकी छुटकी भी हंसी में शामिल हो गयी और गीता ने बात पूरी की
" और ये रोपनी वालियां तार मात इनके आगे, शाम के पहले तक गाँव छोड़ अगल बगल के गाँव में सब को मालूम हो गया था ,ये घर घर जाती है और घर की औरतें जो बेचारी घर से बाहर मुश्किल से निकल पाती हैं इन्ही से कुछ किस्से,.... और कुँवारी लड़की अपने भाई से फंसी, फिर तो,...मिर्च मसाला लगा लगा के ,.. और ये रोपनी वालियां खाली मेरे गाँव की तो थी नहीं तो सब अपने गाँव में और जिस गाँव में रोपनी करने गयीं वहां भी , तो चार पांच दिन में गाँव तो छोड़,... आसपास के दस गाँव जवार में, बजार में, सब जगह,... मेरे और भैया के , .. लेकिन एक तरह से अच्छा ही हुआ , भइया की भी झिझक धीरे धीरे खुल गयी
लेकिन छुटकी का दिमाग कहीं और चल रहा रहा था उसे दीदी की सास और नैना की बात आ रही थी की कैसे सास चिढ़ा रही थी नैना को की इस गाँव की कुल लड़कियां भाई चोद होती है और नैना ने भी माना और की गीता और उसका भाई तो एकदम मर्द औरत की तरह रहते हैं,...
गीता चुप हो गयी थी तो छुटकी ने एक नया प्रसंग छेड़ दिया,
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छुटकी ने एक बार फिर बात मोड़ दी, दी फिर कभी भैया का माँ के साथ, किसी रात को,... गितवा खिलखिला के हंसी
" तू भी न पगली कभी एक बार मेरे अरविन्द का खूंटा पकड़ेगी न,... देख के लोग दीवाने हो जाते हैं माँ ने तो अगवाड़े पिछवाड़े दोनों घोंटा था, और रात में बोल रही है तू, रात दिन दोनों टाइम, बल्कि उन दोनों के चक्कर में मैं मैं भी पिसती थी। "