जो बात आप कविता में कह देती हैं वो मैं लाख कोशिश करूँ कहानी में नहीं कह सकती
और इस कहानी ने जो पेज १३६ से इन्सेस्ट की ओर करवट ली और पेज ४०० तक इन्सेस्ट से मुड़ के नहीं देखा , इस पूरी कथा यात्रा का सार आपकी पंक्तियों ने कह दिया
मेरी और से और
अरविन्द और संगीता की ओर से भी कोटिश धन्यवाद , बस ये साथ बना रहे , इस किस्से पर भी और बाकी कहानियों पर भी




भैया तेरी लाडली अब हो गई है सयानी
मेरी चुत से भी रोज बहता है अब पानी
मेरी चुत में भी अब चींटियाँ रेंगती हैं
जब कभी अब तेरा लौड़ा देखती है
हर रात बिस्तर पे जब तुम्हे सोचती हूं
अपने भरकते बदन को मैं खुद नोचती हूं
हर रात चुदने का कुलबुलता है कीड़ा
नहीं अब सही जा रही है ये पीड़ा
काम की अग्नि में ये बदन जल रहा है
तुझसे चुदने की का ख्वाब पल रहा है
मेरी चुत की तुम खुजली मिटा दो
जड़ तक तुम अपना लौड़ा घुसा दो
मेरे दर्द की तुम न परवाह करना
मेरी चीखो पे ने तुम कान धरना
बड़ी खूबसूरत बनेगी अपनी जोड़ी
जब तुम कहो बन जाओगी घोड़ी
जैसे कहोगे के चुदवाउंगी तुमसे
हर छेद में लौड़ा घुसवाओंगी तुमसे
शर्म ओ हया की सब दिवारे गिरा दे
खुल के मजा दे और खुल के मजा ले
बरस जाओ तुम अब यू मेरे अंदर
प्यासी नदिया को मिल जाए समंदर
बरसों की प्यास अब यूं न भुजेगी
जब तक तेरी बहना तुमसे न चुदेगी
